________________ 216] [जीवाजीवाभिगमसूत्र वस्तु न एकान्त द्रव्यरूप है और न एकान्त पर्याय रूप है। वह उभयात्मक है।' द्रव्य को छोड़कर पर्याय नहीं रहते और पर्याय के बिना द्रव्य नहीं रहता। द्रव्य, पर्यायों का आधार है और पर्याय द्रव्य का प्राधेय हैं / आधेय के बिना आधार और आधार के बिना प्राधेय की स्थिति ही नहीं है। द्रव्य के बिना पर्याय और पर्याय के बिना द्रव्य नहीं रह सकता। अतएव कहा जा सकता है कि परपरिकल्पित एकान्त द्रव्य असत् है क्योंकि वह पर्यायरहित है। जो पर्याय रहित है वह द्रव्य असत् है जैसे बालत्वादिपर्याय से शून्य वन्ध्यापुत्र / इसी तरह यह भी कहा जा सकता है कि परपरिकल्पित एकान्त पर्याय असत् है क्योंकि वह द्रव्य से भिन्न है / जो द्रव्य से भिन्न है वह असत् है जसे वन्ध्यापुत्र की बालत्व आदि पर्याय / अतएव सिद्ध होता है कि वस्तु द्रव्य-पर्यायात्मक है और उभयदृष्टि से उसका समग्र विचार करना चाहिए। उक्त अनेकान्तवादी एवं प्रमाणित दृष्टिकोण को लेकर ही सूत्र में कहा गया है कि रत्नप्रभापृथ्वी द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत है / अर्थात् रत्नप्रभा पृथ्वी का प्राकारादि भाव उसका अस्तित्व आदि सदा से था, है और रहेगा। अतएव वह शाश्वत है। परन्तु उसके कृष्णादि वर्ण पर्याय, गंधादि पर्याय, रस पर्याय, स्पर्श पर्याय आदि प्रतिक्षण पलटते रहते हैं अतएव वह अशाश्वत भी है / इस प्रकार द्रव्याथिकनय की विवक्षा से रत्नप्रभापृथ्वी शाश्वत है और पर्यायाथिक नय से वह अशाश्वत है। इसी प्रकार सातों नरकपृथ्वियों की वक्तव्यता जाननी चाहिए। रत्नप्रभादि की शाश्वतता द्रव्यापेक्षया कही जाने पर शंका हो सकती है कि यह शाश्वतता सकलकालावस्थिति रूप है या दीर्घकाल-अवस्थितिरूप है, जैसा कि अन्यतीर्थी कहते हैं-यह पृथ्वी आकल्प शाश्वत है ? 2 इस शंका का समाधान करते हुए कहा गया है कि यह पृथ्वी अनादिकाल से सदा से थी, सदा है और सदा रहेगी। यह अनादि-अनन्त है। त्रिकालभावी होने से यह ध्रुव है, नियत स्वरूप वाली होने से धर्मस्तिकाय की तरह नियत है, नियत होने से शाश्वत है, क्योंकि इसका प्रलय नहीं होता / शाश्वत होने से अक्षय है और अक्षय होने से अव्यय है और अव्यय होने से स्वप्रमाण में अवस्थित है / अतएव सदा रहने के कारण नित्य है / अथवा ध्र वादि शब्दों को एकार्थक भी समझा जा सकता है / शाश्वतता पर विशेष भार देने हेतु विविध एकार्थक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार सातों पृथ्वियों की शाश्वतता जाननी चाहिए। प्रवियों का विभागवार अन्तर 79. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उरिल्लाओ चरिमंताओ हेटिल्ले चरिमंते एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णते ? गोयमा ! असिउत्तरं जोयणसयसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते / इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंतानो खरस्स कंडस्स हेदिल्ले चरिमंते एस णं केवइयं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलस जोयणसहस्साई अबाधाए अंतरे पण्णत्ते / 1. द्रव्यं पर्यायवियुत, पर्याया द्रव्यवजिता / क्व कदा केन किंरूपा, दृष्टा मानेन केन वा / 2. 'पाकप्पट्ठाई पुढवी सासया।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org