Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ ततीय प्रतिपत्ति: बाहल्य की अपेक्षा तुल्यतादि] [219 अन्तर है। धनवात के उपरितन चरमान्त का अन्तर भी इतना ही है। धनवात के नीचे के चरमान्त तक तथा तनुवात और अवकाशान्तर के ऊपर और नीचे के चरमान्त तक असंख्यात लाख योजन का अन्तर है। इस प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिए / विशेषता यह है कि जिस पृथ्वी का जितना बाहल्य है उससे घनोदधि का संबंध बुद्धि से जोड़ लेना चाहिए। जैसे कि तीसरी पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख अड़तासीस हजार योजन का अन्तर है / पंकप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से उसके घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख चवालीस हजार का अन्तर है / घूमप्रभा के ऊपरी चरमान्त से उसके घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख अड़तीस हजार योजन का अन्तर है। तमःप्रभा में एक लाख छत्तीस हजार योजन का अन्तर तथा अधःसप्तम पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से उसके घनोदधि का चरमान्त एक लाख अट्ठावीस हजार योजन है। इसी प्रकार घनवात के अधस्तन चरमान्त की पृच्छा में तनुवात और अवकाशान्तर के उपरितन और अधस्तन की पृच्छा में असंख्यात लाख योजन का अन्तर कहना चाहिए। बाहल्य की अपेक्षा तुल्यतादि 80. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला, विसेसाहिया, संखेज्जगुणा ? वित्थरेणं किं तुल्ला विसेसहीणा संखेज्जगुणहीणा ? गोयमा ! इमा णं रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय बाहल्लेणं नो तुल्ला, विसेसाहिया नो संखेज्जगुणा, वित्यारेणं नो तुल्ला, विसेसहीणा, णो संखेज्जगुणहीना। वोच्चा णं भंते ! पुढवी तच्चं पुढवि पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला? एवं चेव भाणियव्वं / एवं तच्चा चउत्थी पंचमी छट्ठी / छट्ठी गं भंते ! पुढवी सत्तमं पुढवि पणिहाय बाहल्लेणं कि तुल्ला, विसेसाहिया, संखेज्जगुणा? एवं चेव भाणियव्यं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! नेरइयउद्देसओ पढमो। [80] हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में क्या तुल्य है, विशेषाधिक है या संख्येयगुण है ? और विस्तार की अपेक्षा क्या तुल्य है, विशेषहीन है या संख्येयगुणहीन है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में तुल्य नहीं है, विशेषाधिक है, संख्यातगुणहीन है। विस्तार की अपेक्षा तुल्य नहीं है, विशेषहीन है, संख्यातगुणहीन नहीं है। भगवन् ! दूसरी नरकपृथ्वी तीसरी नरकपृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में क्या तुल्य है इत्यादि उसी प्रकार कहना चाहिए / इसी प्रकार तीसरी, चौथी, पांचवीं और छठी नरक पृथ्वी के विषय में समझना चाहिए। भगवन् ! छठी नरकपृथ्वी सातवीं नरकपृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में क्या तुल्य है, विशेषाधिक है या संख्येयगुण है ? उसी प्रकार कहना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org