________________ द्वितीय प्रतिपत्ति: स्त्रियों की पूरुषों से अधिकता] [193 [64] तिर्यक्योनि की स्त्रियां तिर्यक्योनि के पुरुषों से तीन गुनी और त्रिरूप अधिक हैं। मनुष्यस्त्रियां मनुष्यपुरुषों से सत्तावीसगुनी और सत्तावीसरूप अधिक हैं। देवस्त्रियां देवपुरुषों से बत्तीसगुनी और बत्तीसरूप अधिक हैं। इस प्रकार संसार समापनक जीव तीन प्रकार के हैं, यह प्रतिपादन पूरा हुआ। (संकलित गाथा) तीन वेदरूप दूसरो प्रतिपत्ति में प्रथम अधिकार भेदविषयक है, इसके बाद स्थिति, संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व का अधिकार है। तत्पश्चात् वेदों की बंधस्थिति तथा वेदों का अनुभव किस प्रकार का है, यह वर्णन किया गया है। ॥विविधसंसार समापनक जीवरूप दूसरी प्रतिपत्ति समाप्त / विवेचन-पहले कहा गया है कि पुरुषों से स्त्रियां अधिक हैं तो सहज प्रश्न होता है कि कितनी अधिक हैं ? इस जिज्ञासा का समाधान इस सूत्र में किया गया है। तिर्यक्योनि की स्त्रियां तिर्यक् पुरुषों से तीन गुनी हैं अर्थात् संख्या में तीनगुनीविशेष हैं। 'गुण' शब्द गुण-दोष के अर्थ में भी पाता है, अतः उसे स्पष्ट करने के लिए त्रिरूप अधिक विशेषण दिया है / 'गुण' से यहां संख्या अर्थ अभिप्रेत है। __मनुष्यस्त्रियां मनुष्यपुरुषों से सत्तावीसगुनी हैं और देवस्त्रियां देवपुरुषों से बत्तीसगुनी उपसंहार इस दूसरी प्रतिपत्ति के अन्त में विषय को संकलित करने वाली गाथा दी गई है / उसमें कहा गया है कि त्रिविध वेदों की वक्तव्यता वाली इस दूसरी प्रतिपत्ति में पहले भेद, तदनन्तर क्रमशः स्थिति, संचिट्ठणा (कायस्थिति), अन्तर एवं अल्पबहुत्व का प्रतिपादन है / इसके पश्चात् वेदों की बंधस्थिति और वेदों के अनुभवप्रकार का कथन किया गया है / ॥त्रिविध संसारसमापन्नक जीव वक्तव्यतारूप द्वितीय प्रतिपत्ति समाप्त / OC 1. तिगुणा तिरूव अहिया तिरियाणं इत्थिया मुणेयध्वा / सत्तावीसगुणा पुण मनुयाणं तदहिया चेव // 1 // बत्तीसगुणा बत्तीस रूप अहिया उ होंति देवाणं / देवीमो पण्णता जिणेहि जियरागदोसेहिं // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org