________________ सृतीय प्रपित्ति : नरकावासों की संख्या] (1) प्रथम रत्नप्रभापृथ्वी से लगाकर छठी तमःप्रभापृथ्वी पर्यन्त पृथ्वियों में नरकावास दो प्रकार के हैं प्रावलिकाप्रविष्ट और प्रकीर्णक रूप। जो नरकावास पंक्तिबद्ध हैं वे श्रावलिकाप्रविष्ट हैं और जो बिखरे-बिखरे हैं, वे प्रकीर्णक रूप हैं / रत्नप्रभापृथ्वी के तेरह प्रस्तर (पाथड़े) हैं। प्रस्तर गृहभूमि तुल्य होते हैं / पहले प्रस्तर में पूर्वादि चारों दिशाओं में 49-49 नरकावास हैं / चार विदिशामों में 48-48 नरकावास हैं। मध्य में सीमन्तक नाम का नरकेन्द्रक है / ये सब नरकावास होते हैं। शेष बारह प्रस्तरों में प्रत्येक में चारों दिशाओं और चारों विदिशाओं में एक-एक नरकावास कम होने से प्राठ-पाठ नरकावास कम-कम होते गये हैं / अर्थात् प्रथम प्रस्तर में 389, दूसरे में 381, तीसरे में 373 इस प्रकार आगे-आगे के प्रस्तर में आठ-आठ नरकावास कम हैं। इस प्रकार तेरह प्रस्तरों में कुल 4433 नरकावास प्रावलिकाप्रविष्ट हैं और शेष 2965567 (उनतीस लाख पंचानवै हजार पांच सौ सडसढ) नारकावास प्रकीर्णक रूप हैं। कुल मिलाकर प्रथम रत्नप्रभापृथ्वी में तीस लाख नरकावास हैं।' (2) शर्कराप्रभा के ग्यारह प्रस्तर हैं / पहले प्रस्तर में चारों दिशाओं में 36-36 प्रावलिकाप्रविष्ट नरकाबास हैं / चारों विदिशाओं में 35-35 नरकावास और मध्य में एक नरकेन्द्रक, सब मिलाकर 285 नरकवास पहले प्रस्तर में आवलिकाप्रविष्ट हैं। शेष दस प्रस्तरों में प्रत्येक में आठपाठ की हानि होने से सब प्रस्तरों के मिलाकर 2695 प्रावलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं / शेष 2497305 (चौवीस लाख सित्तानवै हजार तीन सौ पांच) पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं / दोनों मिलाकर पच्चीस लाख नरकावास दूसरी शर्क राप्रभा में हैं। (3) तीसरी बालुकाप्रभा में नौ प्रस्तर हैं। पहले प्रस्तर में प्रत्येक दिशा में 25-25, विदिशा में 24-24 और मध्य में एक नरकेन्द्रक-कुल मिलाकर 197 श्रावलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं / शेष आठ प्रस्तरों में प्रत्येक में आठ-आठ की हानि है, सब मिलाकर 1485 प्रावलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं / शेष 1498515 पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं। दोनों मिलाकर पन्द्रह लाख नरकावास तोसरी पृथ्वी में हैं। (4) चौथी पंकप्रभा में सात प्रस्तर हैं। पहले प्रस्तर में प्रत्येक दिशा में 16-16 श्रावलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं और विदिशा में 15-15 हैं, मध्य में एक नरकेन्द्रक है। सब मिलकर 125 नरकावास हए / शेष छह प्रस्तरों में प्रत्येक में पाठ-पाठ की हानि है अतः सब मिलाकर 707 प्रावलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं-शेश 999293 (नौ लाख निन्यानवै हजार दो सौ तिरानवै) पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं। दोनों मिलाकर दस लाख नरकावास पंकप्रभा में हैं। 1. सत्तट्ठी पंचसया पणनउइसहस्स लक्ख गुणतीसं / रयणाए सेढिगया चोयालसया उ तित्तीसं // 1 // 2. सत्ता णउइसहस्सा चउवीसं लक्खं तिसय पंचहिया / बीयाए सेढिगया छब्बीससया उ पणनउया // 3. पंचसया पन्नारा अडनवइसहस्स लक्ख चोद्दस य। तइयाए सेढिमया पणसीया चोदस सया उ / 4. तेणउया दोण्णि सया नवनउइसहस्स मव य लक्खा य / पंकाए सेढिगया सत्तसया हंति सत्तहिया // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org