________________ द्वितीय प्रतिपसि : नपुंसकों का अल्पबहुत्व] [177 गौतम ! सबसे थोड़े अन्तर्वीपिक मनुष्य नपुसक, उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु अकर्मभूमि के मनुष्य नपुसक दोनों संख्यातगुण, इस प्रकार यावत् पूर्व विदेह-पश्चिमविदेह के कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक दोनों संख्येयगुण हैं / (5) हे भगवन् ! इन नैरयिक नपुसक, रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक नपुसक यावत् अधःसप्तम पृथ्वी नरयिक नपुसकों में, तिर्यंचयोनिक नपुसकों में-एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों में, पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक् नपुसकों में, यावत् वनस्पतिकायिक तिर्यक नपुसकों में, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यकयोनिक नपुंसकों में, जलचरों में,स्थलचरों में, खेचरों में, मनुष्य नपुसकों में, कर्मभूमिक मनुष्य नपुसकों में, अकर्मभूमिक मनुष्य नपुसकों में अंतर्दीपिक मनुष्य नपुंसकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े अधःसप्तमपृथ्वी नरयिक नपुंसक, उनसे छठी पृथ्वी के नैरयिक नपुसक असंख्यातगुण, उनसे यावत् दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुसक असंख्यातगुण, उनसे अन्तर्वीप के मनुष्य नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु अकर्मभूमिक म. नपुसक दोनों संख्यातगुण, उनसे यावत् पूर्व विदेह पश्चिमविदेह कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक दोनों संख्यातगुण, उनसे रत्नप्रभा के नैरयिक नपुसक असंख्यातगुण, उनसे खेचर पंचेन्द्रियतिर्यक्योनिक नपुसक असंख्यातगुण, उनसे स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक नपुसक संख्यातगुण, उनसे जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक नपुसक संख्यातगुण, उनसे चतुरिन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुसक विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुसक विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय तिर्यकयोनिक नपुसक विशेषाधिक, उनसे तेजस्काय एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय ति. यो. नपुंसक विशेषाधिक, उनसे अप्कायिक एकेन्द्रिय ति. यो. नपुसक विशेषाधिक, उनसे वायुकायिक एकेन्द्रिय ति. यो. नपुसक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुसक अनन्तगुण हैं। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में पांच प्रकार से अल्पबहुत्व बताया गया है। प्रथम प्रकार में नैरयिक, तिर्यक्योनिक और मनुष्य नपुसकों का सामान्य रूप से अल्पबहुत्व है। दूसरे में नैरयिकों के सात भेदों का अल्पबहुत्व है / तीसरे प्रकार में तिर्यक्योनिक नपुसकों के भेदों की अपेक्षा से अल्पबहुत्व है। चौथे प्रकार में मनुष्यों के भेदों की अपेक्षा से अल्पबहुत्व है और पांचवें प्रकार में सामान्य और विशेष दोनों प्रकारों का मिश्रित अल्पबहुत्व है। (1) प्रथम प्रकार के अल्पबहुत्व में पूछा गया है कि नैरयिक नपुसक, तिर्यक्योनिक नपुसक और मनुष्य नपुसकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है। इसके उत्तर में कहा गया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org