________________ 166] [जीवाजीवाभिगमसूत्र गोयमा ! खेत्तं पडच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी / धम्मचरणं पडच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उफ्कोसेगं वेसूणा पुवकोडी। कम्मभूमग भरहेरवय-पुश्वविदेह-अवर विदेह मणुस्सण सगस्स वि तहेव / अकम्मभूमग मणुस्सण सगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / साहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेण देसूणा पुष्यकोडी / एवं जाव अंसरदीवगाणं / [56] भगवन् ! नपुंसक की कितने काल की स्थिति कही है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम / भगवन् ! नरयिक नपुंसक की कितनी स्थिति कही है ? गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम / सब नारक नपुंसकों की स्थिति कहनी चाहिए अधःसप्तमपृथ्वीनारक नपुंसक तक। भगवन ! तिर्यक्योनिक नपुंसक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जधन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि / भगवन् ! एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की कितनी स्थिति कही है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष / / भंते ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की स्थिति कितनी कही है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष / सब एकेन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति कहनी चाहिए। द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति कहनी चाहिए / भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक को कितनी स्थिति कही गई है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि / इसो प्रकार जलचरतियंच, चतुष्पदस्थलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचर तिर्यक्योनिक नपुंसक इन सबकी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटि स्थिति है। भगवन् ! मनुष्य नपंसक की स्थिति कितनी कही है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि / धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि स्थिति / कर्मभूमिक भरत-एरवत, पूर्व विदेह-पश्चिम विदेह के मनुष्य नपुंसक की स्थिति भी उसी प्रकार कहनी चाहिए। भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की कितनी स्थिति कही है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त / संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि / इसी प्रकार अन्तर्दीपिक मनुष्य नपुंसकों तक की स्थिति कहनी चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org