________________ द्वितीय प्रतिपत्ति : नपुसक की स्थिति] [165 एकेन्द्रियजाति नपुसकों के पांच भेद हैं-पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय नपुंसक / द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय नपुंसकों के भेद अनेक प्रकार के हैं। प्रथम प्रतिपत्ति में इनके जो भेद-प्रभेद बताये हैं, वे सब यहाँ कहने चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनि नपुसक के तीन भेद-जलचर नपुसक, स्थलचर नपुसक और खेचर नपसक हैं। इनके अवान्तर भेद-प्रभेद प्रथम प्रतिपत्ति के अनुसार कहने चाहिए। केवल में प्रासालिका का अधिकार नहीं कहना चाहिए। क्योंकि प्रासालिका चक्रवर्ती के स्कन्धावार आदि में कभी कभी उत्पन्न होते हैं और अन्तर्मुहूर्त मात्र आयु वाले होते हैं अत: उनकी यहाँ विवशा नहीं है। मनुष्य नपुसक तीन प्रकार के हैं - कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तर्वीपिक नपुसक / इनके भेद-अभेद प्रथम प्रतिपत्ति के अनुसार कहने चाहिए। नपुंसक की स्थिति 56. [1] णसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। रइय नपुंसगस्स गं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं वसवाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई / सम्धेसि ठिई भाणियव्वा जाव अधेसत्तमपुढविनेरइया। तिरियजोणिय णपुसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुन्यकोडी। एगिदिय तिरिक्खजोणिय गपुसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई यण्णता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वाबीसं वाससहस्साई। पुढधिकाइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसकस्स गं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई। सव्वेसि एगिदिय नपुसकाणं ठिती माणियग्या। बेइंविय तेइंदिय चउरिदिय णपुसगाणं ठिई भाणियम्वा / पंचिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसकस्स गं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुग्वकोडी। एवं जलयरतिरिक्खचउप्पद-यलयर-उरगपरिसप्प-भुयगपरिसप्प-खहयरतिरिक्खजोणियणपुसकाणं सव्वेसि जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुत्वकोडी। मणुस्स गपुसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org