________________ 174 [जीवाजीवाभिगमसूत्र जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल है / वह अनन्त काल, वनस्पतिकाल है, जिसका स्वरूप पहले बताया गया है। - कर्मभूमिक मनुष्य नसक का अन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य से एक समय क्योंकि सर्वजघन्य लब्धिपात का काल एक समय का ही होता है। उत्कर्ष से अनन्तकाल / इस अनन्तकाल में अनन्त उत्सपिणियां और अनन्त अवसपिणियां बीत जाती हैं और क्षेत्र से असंख्येय लोकाकाश के प्रदेशों का अपहार हो जाता है। और यह देशोन अर्धपुद्गलपरावर्त जितना है / इसी तरह भरत, ऐरवत, पूर्व विदेह और अपरविदेह कर्मभूमिक नपुसकों का क्षेत्र और धर्माचरण को लेकर जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर कहना चाहिए। __ अकर्मभूमिक मनुष्य नपुसक का जन्म की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त ( अन्य गति में जाने की अपेक्षा इतना व्यवधान होता है ) और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का अन्तर होता है। संहरण की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से बनस्पतिकाल है / किसी ने कर्मभूमि के मनुष्य नपुंसक का अकर्मभूमि में संहरण किया, वह अकर्मभूमिक हो गया / थोड़े समय बाद तथाविध बुद्धिपरिवर्तन से पुनः कर्मभूमि में संहृत कर दिया, वहां अन्तर्मुहूर्त रोक कर पुनः अकर्मभूमि में ले आया, इस अपेक्षा से अन्तर्मुहूर्त का अन्तर होता है / उत्कर्ष से वनस्पतिकाल / विशेष विवक्षा में हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, देवकुरु-उत्तरकुरु अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक का और अन्तरर्दीपिक मनुष्य नपुंसक का जन्म और संहरण की अपेक्षा से जघन्य और उत्कर्ष से अन्तर कहना चाहिए। नपुंसकों का अल्पबहुत्व 60. [1] एतेसिं गं भंते ! गैरइयनपुंसकाणं, तिरिक्खनपुसकाणं, मणुस्सनपुंसकाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुआ वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सणपुंसका, नेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणियनपुंसका अणंतगुणा। [2] एतेसि णं भंते ! रयणप्पहापुढवि गैरइयणपुंसकाणं जाव अहेसत्तमपुढवि गैरइय गपुसकाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा अहेसत्तमपुढवि-नेरइय णपुसका, छठ्ठपुढवि णेरइय नपुंसगा असंखेज्जगुणा जाव दोच्चपुढविणेरइय णपुसका असंखेज्जगुणा। इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए णेरइयणपुसका असंखेज्जगुणा। [3] एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणिय णपुसकाणं, एगिदिय तिरिक्खजोणिय गपुसकाणं, पढविकाइय जाव वणस्सइकाइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय ण सगाणं, बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियपंचेंदिय तिरिक्खजोणिय गपुसकाणं जलयराणं थलयराणं खहयराण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा खहयरतिरिक्खजोणियणपसगा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org