________________ द्वितीय प्रतिपत्ति : मनुष्यस्त्रियों की स्थिति] [123 (4) चौथी अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त (पूर्ववत्) और उत्कृष्ट पचास पल्योपम / यह सौधर्म कल्प की अपरिगृहीता देवी की अपेक्षा से है।' तियंचस्त्री आदि की पृथक पृथक् भवस्थिति 47. [1] तिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। जलयर-तिरिक्ख-जोणित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण पुश्वकोडी। चउप्पद-थलयर-तिरिक्ख-जोणिस्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा ! जहा तिरिक्खजोणिस्थीओ। उरगपरिसप्प-थलयर-तिरिक्ख-जोणिस्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? . गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसं पुश्वकोडी। एवं भयपरिसप्प-थलयर-तिरिक्ख-जोणित्थीणं / एवं खहयर-तिरिक्खित्थीणं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेण पलिओवमस्त मसंखेज्जइभागो। [47] (1) हे भगवन् ! तिर्यकयोनिस्त्रियों की स्थिति कितने समय की कही गई है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की स्थिति कही गई है। भगवन् ! जलचर तिर्यक्योनिस्त्रियों की स्थिति कितने समय की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति कही गई है। भगवन् ! चतुष्पद स्थलचरतिर्यक स्त्रियों की स्थिति कितनी कही गई है ? गौतम ! जैसे तिर्यंचयोनिक स्त्रियों की (ोधिक) स्थिति कही है वैसी जानना / भंते ! उरपरिसर्प स्थलचर तिर्यकस्त्रियों की स्थिति कितने समय की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि / इसी तरह भुजपरिसर्प स्त्रियों की स्थिति भी समझना / इसी तरह खेचरतियस्त्रियों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग है। मनुष्यस्त्रियों की स्थिति [2] मणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! खेतं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उषकोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुश्वकोडी। 1. उक्तं च संग्रहण्याम्-. सपरिग्गहेयराणं सोहम्मीसाण पलियसाहियं / उक्कोस सत्त पन्ना नव एणपन्ना य देवीणं // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org