________________ 150] [जीवाजीवाभिगमसूत्र प्रारणकल्प के देवों की जघन्य स्थिति बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम है। अच्युतकल्प के देवों की जधन्य स्थिति इक्कीस सागरोपम है और उत्कृष्ट बावीस सागरोपम है। अधस्तनाधस्तन ग्रे वेयक देवपुरुषों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तेवीस सागरोपम है। अधस्तनमध्यम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति तेवीस सागरोपम और उत्कृष्ट चौवीस सागरोपम है। अधस्तनोपरितन ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति चौवीस सागरोपम और उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम है। मध्यमाधस्तन ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति पच्चीस सागरोपम है, उत्कृष्ट छव्वीस सागरोपम है। - मध्यममध्यम ग्रेवेयक देवों की जघन्य स्थिति छव्वीस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्तावीस सागरोपम की है। मध्यमोपरितन ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति सत्तावीस सागरोपम और उत्कृष्ट अट्ठावीस सागरोपम है। उपरितनाधस्तन अवेयक देवों की जघन्य स्थिति अट्ठावीस सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति उनतीस सागरोपम है। ____ उपरितनमध्यम अवेयक देवों की जघन्य स्थिति उनतीस सागरोपम और उत्कृष्ट तीस सागरोपम है। उपरितनोपरितन ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति तीस सागरोपम और उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम है। विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमान गत देवपुरुषों की जघन्य स्थिति इकतीस सागरोपम की है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम है / सर्वार्थसिद्धविमान के देवों की स्थिति तेतीस सागरोपम की है। यहाँ स्थिति में जघन्यउत्कृष्ट का भेद नहीं। पुरुष का पुरुषरूप में निरन्तर रहने का काल 54. पुरिसे णं भंते ! पुरिसेत्ति कालओ केवच्चिरं होई ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं / तिरिक्खजोणियपुरिसे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिनोवमाइं पुवकोडिपुत्तमभहियाई। एवं तं चेव संचिटणा जहा इत्थोणं जाव खहयर तिरिक्खजोणियपुरिसस्स संचिट्ठणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org