________________ 160] [जीवाजीवाभिगमसूत्र आरणकल्प के देवपुरुषों की अपेक्षा प्राणतकल्प के देवपुरुष संख्येयगुण हैं। उनसे आनतकल्प के देवपुरुष संख्येयगुण हैं। यहाँ भी प्राणतकल्प की अपेक्षा प्रानतकल्प में कृष्णपाक्षिक दक्षिणदिशा में ज्यादा होने से संख्येयगुण हैं। सब अनुत्तरवासी देव और पानतकल्प वासी पर्यन्त देवपुरुष प्रत्येक क्षेत्रपल्योपम के असंख्येय भागवर्ती आकाश प्रदेशों को राशि प्रमाण हैं / केवल असंख्येय भाग असंख्येय प्रकार का है इसलिए पूर्वोक्त संख्येयगुणत्व में कोई विरोध नहीं है। आनतकल्प देवपुरुषों से सहस्रारकाल वासी देवपुरुष असंख्येयगुण हैं क्योंकि वे घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितने आकाशप्रदेश हैं, उनके तुल्य हैं। उनसे महाशुक्रकल्पवासी देवपुरुष असंख्येयगुण हैं। क्योंकि वे वृहत्तर श्रेणी के असंख्येर प्रदेश राशि तुल्य हैं। विमानों की बहलता से यह असंख्येय गणता जाननी चाहिए। सहस्रारकल्प में विमानों की संख्या छह हजार है जबकि महाशुक्र विमान में चालीस हजार विमान हैं। नीचेनीचे के विमानों में ऊपर के विमानों की अपेक्षा अधिक देवपुरुष होते हैं। महाशुक्रकल्प के देवपुरुषों की अपेक्षा लान्तक देवपुरुष असंख्येयगुण हैं। क्योंकि वे वहत्तम श्रेणी के असंख्येय भागवर्ती आकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे ब्रह्मलोकवासी देवपुरुष असंख्येयगुण हैं / क्योंकि वे अधिक वृहत्तम श्रेणी के असंख्येयभागगत आकाशप्रदेशराशि प्रमाण हैं। उनसे माहेन्द्रकल्पवासी देवपुरुष असंख्येयगुण हैं क्योंकि वे और अधिक वृहत्तम श्रेणी के असंख्येय भागगत आकाश प्रदेश राशि तुल्य हैं। उनसे सनत्कुमारकल्प के देव असंख्येयगुण हैं / क्योंकि विमानों की बहुलता है / सनत्कुमारकल्प में बारह लाख विमान हैं और माहेन्द्रकल्प में आठ लाख विमान हैं। दूसरी बात यह है कि सनत्कुमारकल्प दक्षिणदिशा में है और माहेन्द्रकल्प उत्तर दिशा में है। दक्षिणदिशा में बहुत से कृष्णपाक्षिक उत्पन्न होते हैं / इसलिए माहेन्द्रकाल से सनत्कुमारकल्प में देवपुरुष असंख्येयगुण हैं / सहस्रारकल्प से लगाकर सनत्कुमारकल्प के देव सभी अपने-अपने स्थान में घनीकृत लोक की एक श्रेणी के असंख्येयभाग में रहे हुए आकाशप्रदेशों की राशि प्रमाण हैं परन्तु श्रेणी का असंख्येय भाग असंख्येय तरह का होने से असंख्यातगुण कहने में कोई विरोध नहीं आता। ___ सनत्कुमारकल्प के देवपुरुषों से ईशानकल्प के देवपुरुष असंख्येयगुण हैं क्योंकि वे अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेशराशि के द्वितीय वर्गमूल को तृतीय वर्गमूल से गुणित करने पर जितनी प्रदेशराशि होती है उतनी घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश होते हैं, उसका जो बत्तीसवां भाग है, उतने प्रमाण वाले हैं। ईशानकल्प के देवपुरुषों से सौधर्मकल्पवासी देवपुरुष संख्येयगुण हैं। यह विमानों की बहुलता के कारण जानना चाहिए। ईशानकल्प में अट्ठावीस लाख विमान हैं और सौधर्मकल्प में बत्तीस लाख विमान हैं। दूसरी बात यह है कि सौधर्मकाल दक्षिणदिशा में है और ईशानकल्प उत्तरदिशा में है / दक्षिण दिशा में तथास्वभाव से कृष्णपाक्षिक अधिक उत्पन्न होते हैं अत: ईशानदेवलोक के देवों से सौधर्मदेवलोक के देव संख्यातगुण होते हैं। ___ यहां एक शंका होती है कि सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में भी उक्त युक्ति कही है। फिर वहां तो माहेन्द्र की अपेक्षा सनत्कुमार में देवों की संख्या असंख्यातगुण कही है और यहाँ सौधर्म में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org