________________ 140] [जीवाजीवाभिगमसूत्र कर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों का अन्तर कर्मभूमिक्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल अर्थात् बनस्पतिकाल प्रमाण जानना चाहिए। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कर्ष से अनन्तकाल अर्थात् देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त जितना अन्तर है। इससे अधिक चरणलब्धि का प्रतिपातकाल नहीं है / दर्शनलब्धि के प्रतिपात का काल सम्पूर्ण अपार्ध पुद्गल परावर्त होने का स्थान-स्थान पर निषेध हुआ है। इसी तरह भरत-ऐरवत मनुष्यस्त्रियों का और पूर्व विदेह पश्चिमविदेह को स्त्रियों का अन्तर क्षेत्र और धर्माचरण को अपेक्षा से समझना चाहिए। अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियों का अन्तर जन्म की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहुर्त अधिक दस हजार वर्ष है / इसका स्पष्टीकरण इस तरह है-कोई अकर्मभूमि की स्त्री मर कर जघन्य स्थिति के देवों में उत्पन्न हुई / वहाँ दस हजार वर्ष की आयु पाल कर उसके क्षय होने पर वहाँ से च्यवकर कर्मभूमि में मनुष्यपुरुष या मनुष्यस्त्री के रूप में उत्पन्न हुई (क्योंकि देवलोक से कोई सीधा अकर्मभूमि में पैदा नहीं होता), अन्तर्मुहूर्त काल में मरकर फिर अकर्मभूमि की स्त्री रूप में उत्पन्न हुई, इस अपेक्षा से अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष का जघन्य अन्तर होता है / उत्कर्ष से अन्तर वनस्पतिकाल है / संहरण की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त का अन्तर इस अपेक्षा से है कि कोई अकर्मभूमिज स्त्री को कर्मभूमि में संहृत कर अन्तर्मुहूर्त बाद ही बुद्धिपरिवर्तन होने से पुन: उसी स्थान पर रख दे। उत्कर्ष से अन्तर वनस्पतिकाल प्रमाण है। इतने लम्बे काल में कर्मभूमि में उत्पत्ति की तरह संहरण भी निश्चय से होता ही है। कोई अकर्मभूमि की स्त्री कर्मभूमि में संहृत की गई। वह अपनी आयु के क्षय के अनन्तर अनन्तकाल तक वनस्पति आदि में भटक कर पुन: प्रकर्मभूमि में उत्पन्न हुई। वहाँ से किसी ने उसका संहरण किया तो यथोक्त संहरण का उत्कृष्ट कालमान हुआ। इसी प्रकार हैमवत हैरण्यवत हरिवर्ष रम्यकवर्ष देवकुरु उत्तरकुरु और अन्तर्वीपों की मनुष्यस्त्रियों का भी जन्म से और संहरण की अपेक्षा से जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर कहना चाहिए / देवस्त्रियों का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। कोई देवीभाव से च्यवकर गर्भज मनुष्य में उत्पन्न हुई / वहाँ वह पर्याप्ति की पूर्णता के पश्चात् तथाविध अध्यवसाय से मृत्यु पाकर देवी के रूप में उत्पन्न हो गई—इस अपेक्षा से जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त हुअा। उत्कर्ष से वनस्पति काल का अन्तर स्पष्ट ही है। इसी प्रकार असुरकुमार देवी से लगाकर ईशानकल्प की देवियों का अन्तर भी जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बनस्पतिकाल जानना चाहिए / अल्पबहुत्व 50. (1) एतासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थियाणं, मणुस्सिस्थियाणं देवित्थियाणं कयरा कयराहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सिस्थिओ, तिरिक्खजोणियाओ असंखेज्जगुणाओ, देवित्थियाओ असंखिज्जगुणाओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org