________________ 144] [जीवाजीवामिगमसूत्र संख्येयगुण हैं, क्योंकि कर्मभूमि होने से स्वभावतः उनकी वहां प्रचुरता है। स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं, क्योंकि दोनों क्षेत्रों की समान रचना है। उनसे पूर्व विदेह और पश्चिमविदेह कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुण हैं, क्योंकि क्षेत्र की बहुलता होने से अजितनाथ तीर्थंकर के काल के समान स्वभावतः वहाँ उनकी बहुलता है / स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं, समान क्षेत्ररचना होने से / (4) चौथा अल्पबहत्व चार प्रकार की देवियों को लेकर है, सबसे थोड़ी वैमानिक देवस्त्रियां हैं, क्योंकि अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेशराशि का जो द्वितीय वर्गमूल है उसे तृतीय वर्गमूल से गुणा करने पर जितनी प्रदेशराशि होती है, उतनी धनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने प्रकाश प्रदेश हैं, उनका बत्तीसवां भाग कम कर देने पर जो राशि प्रावे उतने प्रमाण की सौधर्मदेवलोक की देवियां हैं और उतनी ही ईशानदेवलोक की देवियां हैं। वैमानिकदेवियों से भवनवासीदेवियां असंख्यातगुणी हैं, क्योंकि अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेशराशि का जो प्रथम वर्गमूल है उसको द्वितीय वर्गमूल से गुणा करने पर जो प्रदेशराशि होती है उतनी श्रेणियों के जितने प्रदेश हैं उनका बत्तीसवां भाग कम करने पर जो राशि होती है उतनी भवनवासीदेवियां हैं। भवनवासीदेवियों से व्यन्तरदेवियां असंख्येयगुणी हैं, क्योंकि एक प्रतर में संख्येय योजन प्रमाण वाले एक प्रादेशिक श्रेणी प्रमाण जितने खण्ड हों, उनमें से बत्तीसवां भाग कम करने पर जो शेष राशि रहती है, उतने प्रमाण की व्यन्तरदेवियां हैं। व्यन्तरदेवियों से ज्योतिष्कदेवियां संख्येयगुण हैं / स्योंकि 256 अंगुल प्रमाण के जितने खण्ड एक प्रतर में होते हैं, उनमें से बत्तीसवां भाग कम करने पर जितनी प्रदेशराशि होती है उतनी ज्योतिष्कदेवियां हैं। (5) पांचवां अल्पबहुत्व समस्त स्त्री विषयक है। सबसे थोड़ी अन्तर्वीपों की प्रकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियां, उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुणी, उनसे हरिवर्ष-रम्यकवर्ष की यां संख्येय गुणी, उनसे हैमवत-हैरण्यवत की स्त्रियां संख्येयगुणी, उनसे भरत-एरवत कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुण, उनसे पूर्व विदेह-पश्चिमविदेह की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुण हैं। इनका स्पष्टीकरण पूर्ववत् जानना चाहिए। पूर्व विदेह-पश्चिमविदेह की मनुष्यस्त्रियों से वैमानिकदेवस्त्रियां असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे असंख्येय श्रेणी के आकाशप्रदेश की राशि के जितनी हैं। उनसे भवनवासीदेवियां असंख्यातगुण हैं, इसकी युक्ति पहले कही ही है। उनसे खेचरस्त्रियां असंख्येयगुण हैं। वे प्रतर के असंख्येय भागवर्ती असंख्येय श्रेणियों के आकाशप्रदेशों के बराबर हैं। उनसे स्थलचरस्त्रियां संख्येयगुण हैं, क्योंकि वे संख्येयगुण बड़े प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्येय श्रेणियों के प्राकाशप्रदेश जितनी हैं। उनसे जलचर तियंचस्त्रियां संख्येयगुण हैं क्योंकि वे वृहत्तम प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्येय श्रेणियों के प्राकाशप्रदेश जितनी हैं। उनसे व्यन्तरस्त्रियां संख्येयगुण हैं, य कोटाकोटी योजन प्रमाण एक प्रदेश की श्रेणी जितने खण्ड एक प्रतर में होते हैं, उनमें से बत्तीसवां भाग कम करने पर जो राशि होती है उतनी व्यन्तरदेवियां हैं। व्यन्तरदेवियों से ज्योतिष्कदेवियां संख्येयगुणी हैं, इसकी स्पष्टता पूर्व में की जा चुकी है। स्त्रियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org