________________ द्वितीय प्रतिपत्ति : अल्पबहुत्व [143 हैमवत-हैरण्यवत अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियां दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी; उनसे भरत-ऐरवत कर्मभूमि को मनुष्यस्त्रियां दोनों परस्पर तुल्य और संख्यातगुणी, उनसे पूर्व विदेह और पश्चिमविदेह कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियां दोनों परस्पर तुल्य और संख्यात गुणी, उनसे वैमानिकदेवियां असंख्यातगुणी, उनसे भवनवासीदेवियां असंख्यातगुणी, उनसे खेचरतिर्यक्योनि की स्त्रियां असंख्यातगुणी, उनसे स्थलचरस्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे जलचरस्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे वानव्यन्तरदेवियां संख्यातगुणी, उनसे ज्योतिष्कदेवियां संख्यातगुणी हैं। विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में पांच प्रकार से अल्पबहत्व बताया गया है। पहले प्रकार में तीनों प्रकार की स्त्रियों का सामान्य से अल्पबहुत्व बताया है। दूसरे प्रकार में तीन प्रकार की तिर्यंचस्त्रियों का अल्पबहुत्व है। तीसरे प्रकार में तीन प्रकार की मनुष्यस्त्रियों का अल्पबहुत्व है। चौथे प्रकार में चार प्रकार की देवस्त्रियों की अपेक्षा से अल्पबहुत्व है और पांचवें प्रकार में सब प्रकार की मिथ स्त्रियों की अपेक्षा से अल्पबहुत्व बताया गया है। (1) सामान्य रूप से तीन प्रकार की स्त्रियों में सबसे थोड़ी मनुष्यस्त्रियां हैं, क्योंकि उनका प्रमाण संख्यात कोटाकोटी है। उनसे तिर्यंचस्त्रियां असंख्येयगुण हैं, क्योंकि प्रत्येक द्वीप और प्रत्येक समुद्र में तिर्यंचस्त्रियों की प्रति बहुलता है और द्वीप-समुद्र असंख्यात हैं। उनसे देवस्त्रिया असंख्येयगुणी हैं, क्योंकि भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म-ईशान की देवियां प्रत्येक असंख्येय श्रेणी के प्राकाश-प्रदेशप्रमाण हैं। यह प्रथम अल्पबहुत्व हुआ। (2) दूसरा अल्पबहुत्व तीन प्रकार की तिर्यंचस्त्रियों की अपेक्षा से है। सबसे थोड़ी खेचर तिर्यकयोनि की स्त्रियां, उनसे स्थलचरस्त्रियां संख्येयगुण हैं क्योंकि खेचरों से स्थलचर स्वभाव से प्रचुर प्रमाण में हैं। उनसे जलचरस्त्रियां संख्यातगुणी हैं, क्योंकि लवणसमुद्र में, कालोद में और स्वयंभूरमण समुद्र में मत्स्यों की अति प्रचुरता है और स्वयंभूरमणसमुद्र अन्य समस्त द्वीप-समुद्रों से अति विशाल है। (3) तीसरा अल्पबहुत्व तीन प्रकार की मनुष्यस्त्रियों को लेकर है / सबसे थोड़ी अन्तर्वीपों की अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियां हैं, क्योंकि वह क्षेत्र छोटा है। उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु की स्त्रियां संख्येयगुण हैं, क्योंकि क्षेत्र संख्येयगुण है। स्वस्थान में परस्पर दोनों तुल्य हैं, क्योंकि दोनों का क्षेत्र समान प्रमाण वाला है। उनसे हरिवर्ष रम्यकवर्ष अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुणी हैं, क्योंकि देवकूरु-उत्तरकर क्षेत्र की अपेक्षा हरिवर्ष रम्यकवर्ष का क्षेत्र वहत अधिक है। स्वस्थान में हैं, क्योंकि क्षेत्र समान है। उनसे हैमवत-हैरण्यवत अकर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुण हैं, क्योंकि क्षेत्र की अल्पता होने पर भी अल्प स्थिति वाली होने से वहाँ उनकी बहुलता है / स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं, क्योंकि दोनों क्षेत्रों में समानता है। उनसे भरत और ऐरबत कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियां तुल्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org