________________ 60] [जीवाजीवाभिगमसूत्र वक्ष दो प्रकार के हैं एक बीज वाले और बहुत बीज वाले। जिसके प्रत्येक फल में एक गुठली या बीज हो वह एकास्थिक है और जिनके फल में बहुत बीज हों वे बहुबीजक हैं। एकास्थिक वृक्षों में से नीम, पाम आदि कुछ वृक्षों के नाम सूत्र में गिनाए हैं और शेष प्रज्ञापनासत्र के अनुसार जानने की सूचना दी गई है। प्रज्ञापनासत्र में एकास्थिक वक्षों के नाम इस प्रकार गिनाये हैं- 'नीम, आम, जामुन, कोशम्ब (जंगली प्राम), शाल, अंकोल्ल, (अखरोट या पिश्ते का पेड़), पीलु, शेलु (लसोड़ा), सल्लकी (हाथ को प्रिय) मोनकी, मालुक, बकुल (मौलसरी), पलाश (ढाक), करंज (नकमाल); पुत्रजीवक, अरिष्ट (अरीठा), विभीतक (बहेड़ा), हरड, भल्लातक (भिलावा), उम्बेभरिया, खिरनी, धातकी (धावडा) और प्रियाल; पूतिक (निम्ब), करंज, श्लक्ष्ण, शिंशपा, अशन, पुन्नाग (नागकेसर) नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक. ये सब एकास्थिक वक्ष हैं। इसी प्रकार के अन्य जितने भी वक्ष हैं जो विभिन्न देशों में उत्पन्न होते हैं तथा जिनके फल में एक ही गुठली हो वे सब एकास्थिक वृक्ष समझने चाहिए / ___ इन एकास्थिक वृक्षों के मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं / इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल), शाखा और कोंपल भी असंख्यात जीवों वाले होते हैं। किन्तु इनके पत्ते प्रत्येकजीव (एक पत्ते में एक जीव) वाले होते हैं / इनके फूलों में अनेक जीव होते हैं, इनके फलों में एक गुठली होती है। बहुबीजक वृक्षों के नाम पन्नवणासूत्र में इस प्रकार कहे गये हैं__अस्थिक, तिंदुक, कबीठ, अम्बाडग, मातुलिंग (बिजौरा), बिल्व, आमलक (प्रांवला), पनस (अनन्नास), दाडिम, अश्वस्थ (पीपल), उदुम्बर, (गूलर), वट (बड), न्यग्रोध (बड़ा बड़); नन्दिवृक्ष, पिप्पली, शतरी, प्लक्ष, कादुम्बरी, कस्तुम्भरी, देवदाली, तिलक, लवक (लकुच-लीची), छत्रोपक, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण लोध्र, धव, चन्दन, अर्जन, नीप, कूरज, (कूटक) और कदम्ब; इसी प्रकार के और भी जितने वक्ष हैं कि जिनके फल में बहुत बीज हैं, वे सब बहुबीजक जानने चाहिए। ऊपर जो वृक्षों के नाम गिनाये गये हैं उनमें कतिपय नाम ऐसे हैं जो प्रसिद्ध हैं और कतिपय नाम ऐसे हैं जो देशविशेष में ही होते हैं। कई नाम ऐसे हैं जो एक ही वृक्ष के सूचक हैं किन्तु उनमें प्रकार भेद समझना चाहिए। भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न नाम से कहे जाने के कारण भी अलग से निर्देश समझना चाहिए। बहुबीजकों में 'पामलक' (प्रांवला) नाम पाया है। वह प्रसिद्ध प्रांवले का वाचक न होकर अन्य वृक्षविशेष का वाचक समझना चाहिए। क्योंकि बहु-प्रसिद्ध प्रांवला तो एक बीज वाला है, बहुबीजवाला नहीं। ___ इन बहुबीजक वृक्षों के मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं। इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा और प्रवाल (कोंपल) असंख्य जीवात्मक होते हैं। इनके पत्ते प्रत्येकजीवात्मक होते हैं, अथ प्रत्येक पत्ते में एक-एक जीव होता है। इनके पुष्प अनेक जीवोंवाले हैं और फल बहुत बीज वाले हैं। 1. प्रज्ञापनासूत्र, प्रथमपद, गाथा 13-14-15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org