________________ प्रथम प्रतिपत्ति : वायुकाय] वायुकाय 26. से किं तं वाउक्काइया ? वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-~सुहुमवाउक्काइया य बादरवाउक्काइया य / सुहमवाउक्काइया जहा तेउपकाइया णवरं सरोरा पडागसंठिया एगगतिआ दुआगतिया परित्ता असंखिज्जा से तं सुहमवाउक्काइया / से किं तं बादरवाउक्काइया? बादरवाउक्काइया अणेगविधा पण्णत्ता, तंजहा पाईणवाए, पडोणवाए, एवं जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णता, तंजहापज्जत्ताय अपज्जताय / तेसिणं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णता? गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता, तंजहाओरालिए, वेउविए, तेयए, कम्मए / सरीरगा पडागसंठिया, चत्तारि समुग्धायावेयणासमुग्धाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउब्वियसमुग्घाए। आहारो णिव्वाघाएणं छद्दिसि, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि, सिय चउदिसि, सिय पंचदिसि / उववाओ देवमणुयनेरइएसु णस्थि / ठिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिनि वाससहस्साई, सेसं तं चेव एगगतिया, दुआगतिया, परित्ता, असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो ! ! से तं बायरवाउक्काइआ, से तं बाउक्काइया। [26] वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ? वायुकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं, यथासूक्ष्म वायुकायिक और बादर वायुकायिक / सूक्ष्म वायुकायिक तेजस्कायिक की तरह जानने चाहिए। विशेषता यह है कि उनके शरीर पताका (ध्वजा) के आकार के हैं / ये एक गति में जाने वाले और दो गतियों से आने वाले हैं / ये प्रत्येकशरीरी और असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण हैं / यह सूक्ष्म वायुकायिक का कथन हुआ। बादर वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ? बादर वायुकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा-पूर्वी वायु, पश्चिमी वायु और इस प्रकार के अन्य वायुकाय / वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त / / भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! चार शरीर कहे गये हैं-औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण / उनके शरीर ध्वजा के आकार के हैं। उनके चार समुद्घात होते हैं-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणांतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org