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## First Understanding: The Air Body
**What is the Air Body?** The Air Body is said to be of two types: **Subtle Air Body** and **Dense Air Body**.
**What is the Subtle Air Body?** The Subtle Air Body should be understood like the Light Body. It is characterized by its flag-like shape. These bodies move in one direction and come from two directions. They are each-bodied and countless in number, extending across the entire universe.
**What is the Dense Air Body?** The Dense Air Body is said to be of many types, such as the Eastern Wind, the Western Wind, and other similar Air Bodies. In summary, they are of two types: **Sufficient** and **Insufficient**.
**Lord! How many bodies are there for the living beings?** **Gautama!** There are four bodies: **Audaric**, **Vaikriya**, **Tejas**, and **Karman**.
**Their bodies are flag-shaped.** They have four accumulations: **Pain Accumulation**, **Passion Accumulation**, **Fatal Accumulation**, and **Vaikriya Accumulation**.
**Food is taken in six directions, eight directions, ten directions, twelve directions, and fifteen directions.**
**There is no dwelling place for the gods, humans, and the inhabitants of the lower realms.**
**They remain in the womb for three thousand years, and then they are born in one direction, two directions, many directions, and countless directions.**
**This is the Dense Air Body, and this is the Air Body.**
________________ प्रथम प्रतिपत्ति : वायुकाय] वायुकाय 26. से किं तं वाउक्काइया ? वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-~सुहुमवाउक्काइया य बादरवाउक्काइया य / सुहमवाउक्काइया जहा तेउपकाइया णवरं सरोरा पडागसंठिया एगगतिआ दुआगतिया परित्ता असंखिज्जा से तं सुहमवाउक्काइया / से किं तं बादरवाउक्काइया? बादरवाउक्काइया अणेगविधा पण्णत्ता, तंजहा पाईणवाए, पडोणवाए, एवं जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णता, तंजहापज्जत्ताय अपज्जताय / तेसिणं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णता? गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता, तंजहाओरालिए, वेउविए, तेयए, कम्मए / सरीरगा पडागसंठिया, चत्तारि समुग्धायावेयणासमुग्धाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउब्वियसमुग्घाए। आहारो णिव्वाघाएणं छद्दिसि, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि, सिय चउदिसि, सिय पंचदिसि / उववाओ देवमणुयनेरइएसु णस्थि / ठिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिनि वाससहस्साई, सेसं तं चेव एगगतिया, दुआगतिया, परित्ता, असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो ! ! से तं बायरवाउक्काइआ, से तं बाउक्काइया। [26] वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ? वायुकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं, यथासूक्ष्म वायुकायिक और बादर वायुकायिक / सूक्ष्म वायुकायिक तेजस्कायिक की तरह जानने चाहिए। विशेषता यह है कि उनके शरीर पताका (ध्वजा) के आकार के हैं / ये एक गति में जाने वाले और दो गतियों से आने वाले हैं / ये प्रत्येकशरीरी और असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण हैं / यह सूक्ष्म वायुकायिक का कथन हुआ। बादर वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ? बादर वायुकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा-पूर्वी वायु, पश्चिमी वायु और इस प्रकार के अन्य वायुकाय / वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त / / भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! चार शरीर कहे गये हैं-औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण / उनके शरीर ध्वजा के आकार के हैं। उनके चार समुद्घात होते हैं-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणांतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org