________________ 112] जीवाजीवाभिगमसूत्र हे आयुष्मन् श्रमण ! ये देव प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात हैं। इस प्रकार देवों का वर्णन हुआ। इसके साथ पंचेन्द्रियों का वर्णन पूरा हुआ और साथ ही उदार बसों की वक्तव्यता पूर्ण हुई / आगे के सूत्र में स्थावरभाव और त्रसभाव की भवस्थिति का प्रतिपादन करते हुए सूत्रकार कहते हैंभवस्थिति का प्रतिपादन 43. थावरस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता। तसस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता। थावरे णं भंते ! थावरे ति कालमो केवच्चिरं होइ? जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं अणंताओ उस्सप्पिणीओ अवसप्पिणीओ कालो। खेत्तओ अणंता लोया असंखेज्जा पुग्गलपरियट्टा / तेणं पुग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जहभागो। तसे णं भंते ! तसे ति कालओ केवञ्चिरं होइ ? जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जकालं असंखेज्जाओ उस्सपिणीमो अवसप्पिणीओ कालओ। खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। थावरस्स णं भंते ! केवतिकालं अंतर होइ? जहा तससंचिटणाए। तसस्स णं भंते ! केवइकालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एएसि णं भंते ! तसाणं थावराण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा तसा, थावरा अणंतगुणा / से तं दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता / दुविहपडिवत्ती समत्ता। [43] भगवन् ! स्थावर की कालस्थिति (भवस्थिति) कितने समय की कही गई है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से बावीस हजार वर्ष की है। भगवन् ! अस की भवस्थिति कितने समय की कही है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट से तेतीस सागरोपम की कही है। भंते ! स्थावर जीव स्थावर के रूप में कितने काल तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से अनंतकाल तक-अनन्त उत्सपिणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org