Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 98] [जीवाजीवाभिगमसूत्र तिर्यंचों को उत्कृष्ट अवगाहना धनुष पृथक्त्व है। जघन्य तो सर्वत्र अंगुलासंख्येयभाग प्रमाण है। जघन्य स्थिति भी सर्वत्र अन्तर्महतं को है और इनकी उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग है। इनको उद्वर्तना तीसरे नरक से लेकर सहस्रार देवलोक तक के बीच के सब जीवस्थान हैं। अर्थात् इन सब जीवस्थानों में वे मरने के अनन्तर उत्पन्न हो सकते हैं। किन्हीं प्रतियों में अवगाहना और स्थिति बताने वाली दो संग्रहणी गाथाएँ दी गई हैं जिनका भावार्थ इस प्रकार है ____ गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना हजार योजन की है, चतुष्पदों की छह कोस, उरपरिसॉं की हजार योजन, भुजपरिसों की गव्यूतपृथक्त्व, पक्षियों की धनुषपृथक्त्व है। गर्भज जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि है, चतुष्पदों की तीन पल्योपम, उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प की पूर्वकोटि. पक्षियों की पल्योपम का असंख्यातवां भाग है। नरकों में उत्पाद को स्थिति को बताने वाली दो गाथाएँ हैं, जिनका भाव इस प्रकार है __ असंजी जीव पहले नरक तक, सरीसृप दूसरे नरक तक, पक्षी तीसरे नरक तक, सिंह चौथे नरक तक, सर्प पांचवें नरक तक, स्त्रियाँ छठे नरक तक और मत्स्य तथा मनुष्य सातवें नरक तक जा सकते हैं। इस प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का कथन पूरा हुमा / अागे मनुष्यों का प्रतिपादन करते हैं / मनुष्यों का प्रतिपादन 41. से कि तं मणस्सा ? मणुस्सा दुविहा पण्णता, तंजहासमुच्छिममणुस्सा य गम्भवक्कं तियमणुस्सा य / कहि णं भंते ! संमुच्छिममणुस्सा संमुच्छंति ? गोयमा ! अतो मणुस्सखे ते जाव करेंति।। तेसि गं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णता? गोयमा ! तिन्नि सरीरगा पण्णत्ता, तंजहा - - -- --- 1. जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं। गाउयपुहुत्त भुयगे, धणुयपुहुत्तं च पक्खीसु // 1 // गम्भम्मि पुवकोडी, तिन्नि य पलिओवमाइं परमाउं / उरभुजग पुव्वकोडी, पल्लिय असंखेज्जभागो यारा। 2. असण्णी खलु पढमं दोच्चं च सरीसवा तइय पक्खी। सीहा जति चउत्थं उरगा पुण पंचमि पुढवि // 1 // छट्टि च इत्थियाउ, मच्छा मणुया य सत्तमि पुढदि / एसो परमोववाो बोद्धन्दो नरयपुढविसु // 2 // ---वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org