________________ 70] [जीवाजोवाभिगमसूत्र द्वीन्द्रिय-वर्णन 28. से कि तं वे इंदिया? बेइंदिया अणेगविहा पण्णता, तंजहापुलाकिमिआ जाव समुद्दलिक्खा। जे यावण्णे तहप्पगारा; ते समासओ दुविहा पण्णता, तंजहापज्जत्ता य अपज्जत्ताय। तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णता? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णसा--- ओरालिए, तेयए, कम्मए। तेसिं णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पणता ? . जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जमागं उक्कोसेणं बारसजोयणाई। छेवट्टसंघयणा, हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि लेसामो, दो इंदिया, तो समुग्धाया-वेयणा, कसाय, मारणंतिया, नो सनी, असन्नी, णपुसकवेवगा, पंच पज्जत्तीओ, पंचअपज्जत्तीओ, सम्मदिट्ठी वि, मिच्छाविट्ठी वि, जो सम्ममिच्छाविट्ठी; णो ओहिदसणो, णो चक्खुदंसणी, भचक्खुदंसणी, गो केवलदसणी। ते णं भंते ! जीवा कि णाणी, अण्णाणी? गोयमा ! गाणी वि अण्णाणी विजेणाणी ते णियमा दुण्णाणी, तंजहा-प्रामिणिबोहियपाणी सुयणाणो य / जे अण्णाणी ते नियमा दुअण्णाणी मतिअण्णाणी य सुयअण्णाणो य। नो मणजोगी,वइजोगी, कायजोगी। सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि / आहारो णियमा छदिसि / उववाओ तिरिय-मणुस्सेसु नेरइय देव असंखेज्जवासाउय वज्जेसु। ठिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बारससंवच्छराणि / समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति / कहिं गच्छति ? नेरइय-देव-असंखेज्जवासाउयवज्जेसु गच्छंति, दुगतिया, दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा, से तं बेइंदिया। [28] द्वीन्द्रिय जीव क्या हैं ? द्वीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा-पुलाकृमिक यावत् समुद्रलिक्षा / और भी अन्य इसी प्रकार के द्वीन्द्रिय जीव / ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं--पर्याप्त और अपर्याप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org