________________ प्रथम प्रतिपत्ति : चतुरिन्द्रियों का कथन] [75 द्वीन्द्रिय जीवों के समान जानना चाहिए / तेवीस द्वारों में भी बही कथन करना चाहिए केवल जो अन्तर है वह इस प्रकार है शरीर की अवगाहना-श्रीन्द्रियों की शरीर की अवगाहना उत्कृष्ट तीन कोस की है। . इन्द्रियद्वार-इन जीवों के तीन इन्द्रियाँ होती है। स्थितिद्वार–इनकी स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट उनपचास रात-दिन की है। शेष वही कथन करना चाहिए यावत् वे दो गति और दो प्रागति वाले हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात हैं / इनकी आठ लाख कुलकोडी हैं / यह त्रीन्द्रियों का कथन हुआ। चतुरिन्द्रियों का कथन 30. से कि तं घरिदिआ? चरिदिया अगविहा पण्णत्ता, तंजहाअंधिया, पुत्तिया जाव गोमयकोडा, जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णता, तंजहा-पज्जत्ता य अपज्जता य / तेसि णं भंते ! जीवाणं कतिसरीरमा पग्णत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पण्णत्ता-तं चेव, णवरं सरीरोगाहणा उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई, इंदिआ चत्तारि, चक्नुवंसणी, अचक्खुवंसणी, ठिई उक्कोसेण छम्मासा / सेस महा तेइंबियाणं जाप असंखेज्जा पण्णता / से तं चरिदिया। [30] चतुरिन्द्रिय जीव कौन हैं ? चतुरिन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं-यथा अंधिक, पुत्रिक यावत् गोमयकीट, और इसी प्रकार के अन्य जीव / ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त / हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! तीन शरीर कहे गये हैं। इस प्रकार पूर्ववत कथन करना चाहिए / विशेषता यह है कि उनकी उत्कृष्ट शरीर-अवगाहना चार कोस की है, उनके चार इन्द्रियाँ हैं, वे चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी हैं. उनकी स्थिति उत्कृष्ट छह मास की है / शेष कथन त्रीन्द्रिय जीवों की तरह नाम्ना चाहिए यावत् वे असंख्यात कहे गये हैं / यह चतुरिन्द्रियों का कथन हुआ। विवेचन-प्रज्ञापनासूत्र में चतुरिन्द्रिय जीवों के भेद इस प्रकार बताये गये हैं- . अंधिक, पौत्रिक (नेत्रिक), मक्खी, मशक (मच्छर), कीट (टिड्डी), पतंग, डिंकुण, कुक्कुड, कुक्कुह, नंदावर्त, गिरिट, कृष्णपत्र, नीलपत्र, लोहितपत्र, हरितपत्र, शुक्लपत्र, चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org