________________ प्रथम प्रतिपत्ति: गर्भज जलचरों का वर्णन] [38] (गर्भज) जलचर क्या हैं ? ये जलचर पांच प्रकार के हैं-मत्स्य, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार। इन सबके भेद प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना चाहिए यावत् इस प्रकार के गर्भज जलचर संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त / हे भगवन ! इन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! इनके चार शरीर कहे गये हैं, जैसे कि औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण / इनकी शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से हजार योजन की है। इन जीवों के छह प्रकार के संहनन होते हैं, जैसे कि वज्रऋषभनाराचसंहनन, ऋषभनाराचसंहनन, नाराचसंहनन, अर्धनाराचसंहनन, कोलिकासंहनन और सेवार्तसंहनन / इन जीवों के शरीर के संस्थान छह प्रकार के हैं - समचतुरस्त्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, सादिसंस्थान, कुब्जसंस्थान, वामनसंस्थान और हुंडसंस्थान / इन जीवों के सब कषाय, चारों संज्ञाएँ, छहों लेश्याएँ, पांचों इन्द्रियाँ, शुरू के पांच समुद्घात होते हैं। ये जीव संज्ञी होते हैं, असंज्ञी नहीं / इनमें तीन वेद, छह पर्याप्तियाँ, छह अपर्याप्तियाँ, तीनों दृष्टियां, तीन दर्शन, पाये जाते हैं। ये जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं / जो ज्ञानी हैं उनमें कोई दो ज्ञान वाले हैं और कोई तीन ज्ञान वाले / जो दो ज्ञान वाले हैं वे मतिज्ञान वाले और श्रुतज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे नियम से मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी हैं। इसी तरह अज्ञानी भी। इन जीवों में तीन योग, दोनों उपयोग होते हैं / इनका पाहार छहों दिशाओं से होता है। ये जीव नै रयिकों से भी प्राकर उत्पन्न होते हैं यावत् सातवीं नरक से भी पाकर उत्पन्न होते हैं / असंख्य वर्षायु वाले तिर्यंचों को छोड़कर सब तिर्यंचों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। अकर्मभूमि, अन्तर्वीप और असंख्य वर्षायु वाले मनुष्यों को छोड़कर शेष सब मनुष्यों से भी पाकर उत्पन्न होते हैं। ये सहस्रार तक के देवलोकों से पाकर भी उत्पन्न होते हैं / इनको जघन्य स्थिति अन्तर्महर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटी की है। ये दोनों प्रकार केसमवहत, असमवहत मरण से मरते हैं। ये यहाँ से मर कर सातवीं नरक तक, सब तिर्यंचों और मनुष्यों में और सहस्रार तक के देवलोक में जाते हैं / ये चार गति वाले, चार प्रागति वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं / यह (गर्भज) जलचरों का कथन हुआ। विवेचन- गर्भज जलचरों के भेद प्रज्ञापना के अनुसार जानने का निर्देश दिया गया है। ये भेद मत्स्य, कच्छप आदि पूर्व के सूत्र के विवेचन में बता दिये हैं / पर्याप्त, अपर्याप्त का वर्णन भी पूर्ववत् जानना चाहिए। शरीर आदि द्वार सम्मूछिम जलचरों के समान जानने चाहिए; जो अन्तर है, वह इस प्रकार जानना चाहिए शरीरद्वार में गर्भज जलचरों में चार शरीर पाये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org