________________ प्रथम प्रतिपत्ति : गर्भज स्थलचरों का वर्णन] [95 अवधिज्ञान और विभंगज्ञान में सम्यक्त्व और मिथ्यात्व को लेकर भेद है / सम्यग्दृष्टि का अवधिज्ञान होता है और मिथ्यादृष्टि का वही ज्ञान विभंगज्ञान कहलाता है।' उपपातद्वार में ये जीव सातों नारकों से, असंख्यात वर्षायु वाले तिर्यंचों को छोड़कर शेष सब तिर्यंचों से, अकर्मभूमिज अन्तर्वीपज और असंख्यात वर्ष की आयुवालों को छोड़कर शेष कर्मभूमि के मनुष्यों से और सहस्रार नामक पाठवें देवलोक तक के देवों से आकर उत्पन्न होते हैं / इससे आगे के देव इनमें उत्पन्न नहीं होते। स्थितिद्वार में इन जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटी की है। __उद्वर्तनाद्वार में सहस्रार देवलोक से आगे के देवों को छोड़कर शेष सब जीवस्थानों में जाते हैं। अतएव गति-प्रागति द्वार में ये चार गति वाले और चार प्रागति वाले हैं। ये प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं / यह गर्भज जलचरों का वर्णन हुआ। गर्भज स्थलचरों का वर्णन 39. से कि तं यलयरा? थलयरा दुविहा पण्णता, तंजहाचउप्पदा य परिसप्पा य / से कि तं चउम्पया? चउप्पया चरविहा पण्णत्ता, तंजहा–एगखुरा सो चेव भेदो जाय जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तंजहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य / चत्तारि सरीरा, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं छ गाउयाई। ठिती उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई नवरं उज्ववट्टित्ता नेरइएसु चउत्थपुढविं गच्छति, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया, चउआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता / से तं चउप्पया / से कि तं परिसप्पा? परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता, तंजहाउरपरिसप्पा य भुयगपरिसप्पा य / से कि तं उरपरिसप्पा? उरपरिसप्पा तहेब आसालियवज्जो मेवो भाणियव्वो, सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, ठिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी। उववट्टित्ता नेरइएसु जाव पंचमं पुढवि ताव गच्छंति, तिरिक्खमणुस्सेसु सम्वेसु, देवेसु जाव सहस्सारा। सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया चउआगलिया परित्ता असंखेज्जा। से तं उरपरिसप्पा। 1. सम्यग्दृष्टेनिं मिथ्यादृष्टेविपर्यासः / --वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org