________________ [61 प्रथम प्रतिपत्ति : साधारण वनस्पति का स्वरूप] वृक्षों की तरह ही गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वग, तृण, वलय, हरित, ओषधि, जलरुह और कुहण के विभिन्न प्रकार प्रज्ञापनासूत्र में विस्तार से बताये गये हैं। ___ यहाँ यह शंका उठ सकती है कि यदि वृक्षों के मूल आदि अनेक प्रत्येकशरीरी जीवों से अधिष्ठित हैं तो वे एक शरीराकार में कैसे दिखाई देते हैं ? इस शंका का समाधान सूत्रकार ने दो दृष्टान्तों द्वारा किया है ____ सरसों की बट्टी का दृष्टान्त-जैसे सम्पूर्ण अखण्ड सरसों के दानों को किसी श्लेष द्रव्य के द्वारा मिश्रित कर देने पर एक बट्टी बन जाती है परन्तु उसमें वे सरसों के दाने अलग-अलग अपनी अवगाहना में रहते हैं। यद्यपि परस्पर चिपके होने के कारण बट्टी के रूप में वे एकाकार प्रतीत होते हैं फिर भी वे सरसों के दाने अलग-अलग होते हैं। इसी तरह प्रत्येकशरीरी जीवों के शरीरसंघात भी पृथक्-पृथक् अपनी अवगाहना में रहते हैं, परन्तु विशिष्ट कर्मरूपी श्लेष के द्वारा परस्पर मिश्रित होने से एक शरीराकार प्रतीत होते हैं। तिलपपड़ी का दृष्टान्त-जिस प्रकार तिलपपड़ी में प्रत्येक तिल अपनी-अपनी अवगाहना में अलग-अलग होता है किन्तु तिलपपड़ी एक है। इसी तरह प्रत्येकशरीरी जीव अपनी-अपनी अवगाहना में स्थित होकर भी एक शरीराकार प्रतीत होते हैं। यह प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पति का वर्णन हुआ। साधारण वनस्पति का स्वरूप 21. से किं तं साहारणसरीरवादरवणस्सइकाइया ? ___ साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया अणेगविहा पग्णत्ता, तं जहा-आलुए, मूलए, सिंगबेरे, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्टिया, छिरिया, छिरियविरालिया, कण्हकंदे, वज्जकंदे, सूरणकंदे, खल्लूडे, किमिरासि, भद्दे, मोत्थापिंडे, हलिहा, लोहारी, गोहु [ठिहु], थिभु, अस्सकग्णी, सोहकन्नी, सोउंढी, मूसंढी–जे यावण्णे तहप्पगारा; ते समासओ दुविहा पण्णता, तंजहापज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य / तेसि गं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णता? गोयमा ! तमो सरीरगा पण्णत्ता, तंजहा--- ओरालिए, तेयए, कम्मए / तहेव जहा बायरपुढविकाइयाणं / णवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइमागं उक्कोसेणं सातिरेग जोयणसहस्सं। सरीरगा अणित्यंस्थसंठिया, लिई महन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वसवाससहस्साई। जाव दुगतिया, तिआगतिया, परिसा प्रणंता पण्णता। से तं बायरवणस्सइकाइया, से तं थावरा। [21] साधारणशरीर बादर वनस्पतिकायिक कैसे हैं ? साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के हैं, जैसे-पाल, मूला, अदरख, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिली, किटिका, क्षीरिका, क्षीरविडालिका, कृष्णकन्द, वज्रकन्द, सूरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org