Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ प्रथम प्रतिपत्ति: पृथ्वीकाय का वर्णन] [10] ते णं भंते ! जीवा कि सन्नी असन्नी ? गोयमा ! नो सन्नी, असन्नी। [10] भगवन् ! वे जीव संज्ञी हैं या असंज्ञी ? गौतम ! संज्ञी नहीं हैं, असंज्ञी हैं / [11] ते णं भंते ! जीवा कि इस्थिवेया, पुरिसवेया, णपुसगवेया ? गोयमा ! णो इत्थिवेया, णो पुरिसवेया, पसगवेया। [11] भगवन् ! वे जीव स्त्रीवेद वाले हैं, पुरुषवेद वाले हैं या नपुंसकवेद वाले हैं ? गौतम ! वे स्त्रीवेद वाले नहीं हैं, पुरुषवेद वाले नहीं हैं, नपुंसकवेद वाले हैं। [12] तेसि णं भंते ! जीवाणं कति पन्जत्तीओ पण्णताओ? गोयमा ! चत्तारि पज्जत्तीओ पण्णत्तामो, तंजहा-आहारपज्जत्ती, सरीरपग्मती, इंरियपन्जसी, आणपाणुपज्जत्ती। तेसि गं भंते ! जीवाणं कति अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अपज्जत्तीओ पण्णताओ, तंजहा-आहार-मपन्नती नाव मागपाणमपन्नती। [12] भगवन् ! उन जीवों के कितनी पर्याप्तियां कही गई हैं ? गौतम ! चार पर्याप्तियां कही गई हैं। जैसे 1. आहारपर्याप्ति, 2. शरीरपर्याप्ति, 3. इन्द्रियपर्याप्ति और 4. श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति / हे भगवन् ! उन जीवों के कितनी अपर्याप्तियां कही गई हैं ? गौतम ! चार अपर्याप्तियाँ कही गई हैं। यथा--आहार-अपर्याप्ति यावत् श्वासोच्छ्वासअपर्याप्ति / [13] ते णं भंते ! जीवा कि सम्मविट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्ममिच्छादिट्ठी। गोयमा ! णो सम्मदिट्ठी, मिच्छाविट्ठी, णो सम्ममिच्छाविट्ठी। [13] भगवन् ! वे जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्-मिथ्यावृष्टि (मिश्रदृष्टि) गौतम ! वे सम्यग्दृष्टि नहीं हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, सम्यग्-मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि) भी नहीं हैं / [14] ते णं भंते ! जीवा किं चक्खुदंसणी, प्रचक्खुदंसणी, ओहिसणी, केवलदसणी। गोयमा! नो चक्खुदंसणी, अचवखुदंसणी, नो ओहिदंसणी, नो केवलदसणी। [14] भगवन् ! वे जीव चक्षुदर्शनी हैं, अचक्षुदर्शनी हैं, अवधिदर्शनी हैं या केवलदर्शनी हैं ? गौतम ! वे जीव चक्षुदर्शनी नहीं हैं, अचक्षुदर्शनी हैं, अवधिदर्शनी नहीं हैं, केवलदर्शनी नहीं हैं। हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org