Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र भावेन्द्रिय दो प्रकार की हैं-१. लब्धि और 2. उपयोग। आवरण का क्षयोपशय होना लब्धिइन्द्रिय है और अपने-अपने विषय में लब्धि के अनुसार प्रवृत्त होना-जानना उपयोगभावेन्द्रिय है। द्रव्येन्द्रिय-भावेन्द्रिय आदि अनेक प्रकार की इन्द्रियाँ होने पर भी यहाँ बाह्य निर्वत्ति रूप इन्द्रिय को लेकर प्रश्नोत्तर समझने चाहिए। इसको लेकर ही एकेन्द्रियादि का व्यवहार होता है।' बकुल आदि बनस्पतियाँ भावरूप से पाँचों इन्द्रियों के विषय को ग्रहण करती हैं किन्तु वे पंचेन्द्रिय नहीं कही जातीं, क्योंकि उनके बाह्यन्द्रियाँ पाँच नहीं हैं। स्पर्शनरूप बाह्य इन्द्रिय एक होने से वे एकेन्द्रिय ही हैं। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में केवल एक स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है। 9. समुद्घातद्वार-वेदना आदि के साथ एकरूप होकर वेदनीयादि कर्मदलिकों का प्रबलता के साथ घात करना समुद्घात कहलाता है। समुद्घात सात हैं—१. वेदनासमुद्घात, 2. कषायसमुद्घात, 3. मारणान्तिकसमुद्धात, 4. वैक्रियसमुद्घात, 5. तेजससमुद्घात, 6. आहारकसमुद्घात और 7. केवलिसमुद्घात / 1. वेदनासमुद्घात–असातावेदनीय कर्म को लेकर वेदनासमुद्घात होता है। तीव्रवेदना से अभिभूत जीव बहुत-से वेदनीयादि कर्मपुद्गलों को, कालान्तर में अनुभवयोग्य दलिकों को भी उदीरणाकरण से उदयावलिका में लाकर वेदता-भोग भोग कर उन्हें निर्जरित कर देता है-आत्मप्रदेशों से अलग कर देता है / वेदना से पीड़ित जीव अनन्तानन्त कर्मपुद्गलों से वेष्टित आत्मप्रदेशों को शरीर से बाहर फेंकता है। उन प्रदेशों से वदन-जघनादि छिद्रों को और कर्ण-स्कन्धादि अन्तरालों की पूर्ति करके आयाम-विस्तार से शरीरमात्र क्षेत्र में व्याप्त होकर अन्तर्मुहर्त तक स्थित होता है। उस अन्तर्मुहूर्त में बहुत सारे असातावेदनीय के कर्मपुद्गलों की परिशातना, निर्जरा होती है / यह वेदनासमुद्घात है। 2. कषायसमुद्घात-यह समुद्घात कषायोदय से होता है। कषायोदय से समाकुल जीव स्वप्रदेशों को बाहर निकालकर उनसे वदनोदरादि रन्ध्रों और अन्तरालों की पूर्ति कर आयामविस्तार से देहमात्र क्षेत्र में व्याप्त होकर रहता है। इस स्थिति में वह जीव बहुत से कषायकर्मपुद्गलों का परिशातन (निर्जरा) करता है, यह कषायसमुद्घात है। 3. मारणांतिकसमुद्घात-पायुकर्म को लेकर यह समुद्घात होता है / इस समुद्घात बाला जीव पूर्वविधि से बहुत सारे प्रायुकर्म के दलिकों की परिशातना करता है, यह मारणांतिकसमुद्घात है। 4. वैकियसमुद्घात-वैक्रियशरीर का प्रारम्भ करते समय वैक्रियशरीर नामकर्म को लेकर यह होता है। वैक्रियसमुद्घातगत जीव स्वप्रदेशों को शरीर से बाहर निकालकर शरीर की 1. पंचिदियो उ बउलो नरोव्व सब्ब विसरोवलंभाओ। तहवि न भण्णइ पंचिदिउ ति बज्झिदियाभावा / / 2. समिति–एकीभावे उत्-प्राबल्ये ; एकीभावेन प्राबल्येन घात: समुद्घातः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org