Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रतिपति : पृथ्वीकाय का वर्णन] [43 लेनी चाहिए। चोथा बोला-जामुन के गुच्छों को ही तोड़ना चाहिए / पाँचवां बोला-सब गुच्छे नहीं केवल पके-पके जामुन तोड़ लेने चाहिए। छठा बोला-वृक्षादि को काटने की क्या जरूरत है, हमें जामुन खाने से मतलब है तो सहजरूप से नीचे पड़े हुए जामुन ही खा लेने चाहिए। जैसे उक्त पुरुषों की छह तरह की विचारधाराएँ हुईं, इसी तरह लेश्याओं में भी अलग-अलग परिणामों की धारा होती है।' ___प्रारम्भ की कृष्ण, नील, कापोत-ये तीन लेश्याएँ अशुभ हैं और पिछली तेज, पद्म, शुक्ल ये तीन लेश्याएं शुभ हैं / सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में तीन अशुभ लेश्याएँ ही पायी जाती हैं / सूक्ष्मों में देवों की उत्पत्ति नहीं होती है / अतएव अादि की तीन लेश्याएँ ही इनमें होती हैं / 8. इन्द्रियद्वार—'इन्दनाद् इन्द्रः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार सम्पूर्ण ज्ञानरूप परम ऐश्वर्य का अधिपति होने से प्रात्मा इन्द्र है। उसका अविनाभावी चिह्न इन्द्रियाँ हैं। वे इन्द्रियाँ पाँच हैंश्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय / __ ये पांचों इन्द्रियाँ दो-दो प्रकार की हैं-द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय / द्रव्येन्द्रिय भी दो प्रकार को हैं- 1 निर्वृत्तिद्रव्येन्द्रिय और 2 उपकरणद्रव्येन्द्रिय / निवृत्ति का अर्थ है अलग-अलग आकृति की पौद्गलिक रचना / यह निवृत्तिइन्द्रिय भी बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार की है / कान की पपड़ी आदि बाह्य निर्वृत्ति है और इसका कोई एक प्रतिनियत प्राकार नहीं है। मनुष्य के कान नेत्र के प्राजु-बाजु और भौहों के बराबरी में होते हैं जबकि घोड़े के कान नेत्रों के ऊपर होते हैं और उनके अग्रभाग तीखे होते हैं। आभ्यन्तर निवृत्तिइन्द्रिय सब जीवों के एकरूप होती है। इसको लेकर ही आगम में कहा गया है कि-श्रोत्रेन्द्रिय का आकार कदम्ब के फल के समान, चक्षुरिन्द्रिय का मसूर की चन्द्राकार दाल के समान, घ्राणेन्द्रिय का आकार अतिमुक्तक के समान, जिह्वन्द्रिय का खुरपे जैसा और स्पर्शनेन्द्रिय का नाना प्रकार का है। स्पर्शनेन्द्रिय में प्रायः बाह्य-प्राभ्यन्तर का भेद नहीं, तत्वार्थ की मूल टीका में यह भेद नहीं माना गया है / उपकरण का अर्थ है आभ्यन्तर निति की शक्ति-विशेष / बाह्य निर्वत्ति तलवार के समान है और आभ्यन्तर निर्वृत्ति तलवार की धार के समान स्वच्छतर पुद्गल समूह रूप है। उपकरण इन्द्रिय और आभ्यन्तर निवृत्ति इन्द्रिय में थोड़ा भेद है, जो शक्ति और शक्तिमान में है / आभ्यन्तर निर्वृत्ति इन्द्रिय के होने पर भी उपकरणेन्द्रिय का उपघात होने पर विषय ग्रहण नहीं होता / जैसे कदम्बाकृति रूप प्राभ्यन्तर निर्वत्ति इन्द्रिय के होने पर भी महाकठोर घनगर्जना आदि से शक्ति का उपघात होने पर शब्द सुनाई नहीं पड़ता। 1. पंथानो परिभट्ठा छप्पुरिसा अडविमझयारंमि / जम्बूतरुस्स होट्टा परोप्परं ते विचितेंति // 1 // निम्मूल खंघसाला मोच्छे पक्के य पडियसडियाई / जह एएसि भाबा, तह लेसाम्रो वि णायब्वा // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org