________________ 56] [जीवाजीवाभिगमसूत्र सेसं सं चेव जहा बायरपुढविकाइया जाव दुगतिया तिआगतिया परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता समणाउसो ! से तं बायरआउक्काइया, से तं आउक्काइया। [17] बादर अप्कायिक का स्वरूप क्या है ? बादर अप्कायिक अनेक प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-प्रोस, हिम यावत् अन्य भी इसी प्रकार के जल रूप। वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं--पर्याप्त और अपर्याप्त / इस प्रकार पूर्ववत् कहना चाहिए / विशेषता यह है कि उनका संस्थान स्तिबुक (बुद्बुद) है। उनमें लेश्याएँ चार पाई जाती हैं, पाहार नियम से छहों दिशाओं का, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देवों से उपपात, स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष जानना चाहिए / शेष बादर पृथ्वीकाय की तरह जानना चाहिए यावत् वे दो गति वाले, तीन आगति वाले हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात कहे गये हैं / हे आयुष्मन् ! हे श्रमण ! यह बादर अप्कायिकों का कथन हुआ। इसके साथ ही अप्कायिकों का अधिकार पूरा हुआ। विवेचन-पृथ्वीकायिक जीवों के वर्णन के पश्चात् इन दो सूत्रों में प्रकायिक जीवों के संबंध में जानकारी दी गई है। अप्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं.-सूक्ष्म अप्कायिक और बादर अप्कायिक / सूक्ष्म अप्कायिक जीव सारे लोक में व्याप्त हैं और बादर अपकायिक जीव घनोदधि आदि स्थानों में हैं। सूक्ष्म अपकायिक जीवों के सम्बन्ध में पूर्वोक्त 23 द्वार सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के समान ही समझना चाहिए / केवल संस्थानद्वार में अन्तर है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों का संस्थान मसूर की चक्राकार दाल के समान बताया गया है जबकि सूक्ष्म अप्कायिक जीवों का संस्थान बुद्बुद के समान है। बादर अपकायिक जीव-बादर अपकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि प्रोस, बर्फ आदि / इनका विशेष वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार जानना चाहिए / वह अधिकार इस प्रकार है _ 'बादर अप्कायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि प्रोस, हिम (जमा हुआ पानी-बर्फ) महिका (गर्भमास में सूक्ष्म वर्षा-अर) करक (ोला) हरतनु (भूमि को फोड़कर अंकुरित होने वाला तृणादि पर रहा हुआ जलबिन्दु), शुद्धोदक (आकाश से गिरा हुआ या नदी आदि का पानी) शीतोदक (ठंडा कुए आदि का पानी) उष्णोदक (गरम सोता का पानी) क्षारोदक (खारा पानी) खट्टोदक (कुछ खट्टा पानी) आम्लोदक (अधिक कांजी-सा खट्टा पानी) लवणोदक (लवणसमद्र का पानी) वारुणोदक (वरुणसमद्र का मदिरा जैसे स्वाद वाला पानी) क्षीरोदक (क्षीरसमुद्र का पानी) घृतोदक (घृतवरसमुद्र का पानी) क्षोदोदक (इक्षुरससमुद्र का पानी) और रसोदक (पुष्करवरसमुद्र का पानी) इत्यादि, और भी इसी प्रकार के पानी हैं। वे सब बादर अप्कायिक समझने चाहिए। वे बादर अप्कायिक दो प्रकार के हैं—पर्याप्त और अपर्याप्त / इनमें 1. प्राचारांगनियुक्ति तथा उत्तराध्ययन प्र. 36 गाथा 26 में बादर अपकाय के पांच भेद ही बताये है 1. शुद्धोदक, 2. प्रोस, 3. हिम, 4. महिका पोर 5. हरतनु / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org