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चरकसंहिता-भा० टी० ॥
अर्कक्षीरके गुण । क्षीरमर्कस्यविज्ञेयंवमनेसविरेचने ॥११३ ॥ आकका दूध, विरेचन, और वमनमें प्रयुक्त किया जाताहै ॥ ११३ ॥
त्वचाप्रधान ३ वृक्ष । इमांस्त्रीनपरान्वृक्षानाहुर्येषांहितास्त्वचः। पूतिकः कृष्णगन्धाचतिल्लकश्चतथातसः । विरेचनेप्रयोक्तव्यःपूतिकस्तिल्लकस्तथा ॥ ११४ ॥ कृष्णगन्धापरीसपेंशोथेष्वस्सुिचोच्यते । दविद्रधिगण्डेषुकुष्ठेष्वप्यलजीषुच॥११५ ॥ षड्वृक्षाशोधनानेतानपिविद्याद्विचक्षणः ॥ ११६ ॥ जिनकी त्वचा प्रयुक्त कीजाती है इन तीन वृक्षोंका और कथन कियाहै । वह यह है-१ पूतिकरंज, २ सुहाँजना, ३ पठानीलोध । इनमें पूतिकरन और लोध विरेचन कर्ममें प्रयुक्त करने चाहिये । और सुहाँजना-विसर्प, शोथ और अर्श रोगाम प्रयुक्त किया जाताहै । बुद्धिमान् वैद्यको उचित है कि थोहर, आँक, अश्मंतक, पूतिकरंज, सुहांजना, लोध, इन छः वृक्षोंको दगु, विद्रधि, गलगंड, कुष्ठ, अलजी, (अजीर्णरोगका भेद और पादरोग) और संशोधन कर्ममें प्रयुक्त करे ।। ११४-११६ ॥
इत्युक्ताःफलमूलिन्यः स्नेहाश्चलवणानिच ।
सूत्रंक्षाराणिवृक्षाश्चपड्यदृष्टाःपयस्त्वचः ॥ ११७॥ इस प्रकार १९ फलप्रधान द्रव्य, १६ मुलप्रधान, ४ स्नेह, ५ लवण, ८ मूत्र. ८ दृध और जिनके दूध में त्वचाका वर्णन कियाहै वह ६ वृक्ष इन सवका वर्णन किया जा चुका है ॥ १२७ ॥
गडरिये आदियोंसे औषधिका ज्ञान । ओपधीर्नामरूपाभ्यांजानतेाजपावने । __अविपाश्चैवगोपाश्चयेचान्येवनवासिनः ॥११८ ॥ अब आपधियोंके जाननेकी विधि लिखते हैं कि बकरी, भेड और गोआकं चगनेवाला और उनमें रहने और विचरनेवालासे वनापधियांक नाम आरहा जानना चाहिये ।। ११८ ॥