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चरकसंहिता-भा० टी०। गमन कर निकल जाताहै । यह सामान्यतासे मूत्रोंके लक्षण कथन किये हैं। अव . विशेषतासे श्रवण करो ॥ ९१-९७॥
मेषादिमूत्रके गुण । अविमूत्रसतिक्तस्यात् स्निग्धंपित्ताविरोधिच॥आजकषायमधुरं पथ्यंदोपान्निहन्तिच । गव्यसमधुरंकिञ्चिद्दोषतंक्रिमिकुष्ठनुत् ॥ ९८ ॥ कण्डूलंशमयेत्पीतंसम्यग्दोषोदरोहतम्।अर्शःशोफोदरनन्तुसक्षारंमाहिसरम् ॥ १९ ॥ हस्तिकंलवणंमूत्रं हितन्तुक्रिमिकुष्टिनाम्।प्रशस्तबद्धविण्मूत्रविषश्लेष्मामयाशसाम् ॥ १०० ॥ सतिक्तंश्वासकासनमझेनचौष्ट्रमुच्यते । वाजिनांतिक्तकटुकंकुष्ठव्रणाविषपाहम् ॥१०१॥ खरमत्रमपस्मारोन्मादग्रहविनाशनम् । इतीहोक्तानिमूत्राणियथासाम
र्ययोगतः ॥ १०२॥ भेडका मूत्र कडुआ, चिकना, गर्म तथा पित्तको कुपित नहीं करनेवाला होता है । वकरीका मूत्र-कषैला, मीठा, पथ्य और त्रिदोषनाशक है । गोमूत्र कषैला, मीठा, कुछ कुछ दोपाको नष्ट करनेवाला, कृमि तथा कुष्ठको नष्ट कर्ता, खाजनाशक, और पीयाहुआ उदरके सव विकारोंको शांत करताहै । भैसका मूत्र-अर्श, शोथ और उदररोगांको नष्ट करताहै तथा खारा और दस्तावर है। हस्तीका मूत्रनमकीन है और कृमि, कुष्ठ और मल मूत्रके अवरोधको नष्ट करताहै, तथा विषविकार, कफ और अर्शवालोंको हित है। उंटका मृत्र-कटुतायुक्त, श्वासकासनाशक, और अर्शजित् है । पोडेका मूत्र-कडवा है, चर्परा है, और कुष्ट, घाव,विष, इनको नष्ट करताहै । गधेका मूत्र-मिरगी, उन्माद, ग्रहदोष इनको नष्ट करता है। इस प्रकार क्रमपूर्वक मूत्रोंके गुण कथन करदिये हैं ॥ ९८-१०२ ॥
भेडी वकरी गाय आदिके दूधोंका वर्णन । अतःक्षीराणिवक्ष्यन्तेकर्मचेपांगुणाश्चये । अविक्षीरमजाक्षीरं गोक्षीरंमाहिपंचयत् ॥ १०३ ॥ उष्ट्रीणामथनागीनांवडवायाः स्त्रियास्तथा।प्रायशोमधुरास्निग्धशास्तन्यपयःस्मृतम् ॥१०॥