Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुनिधीलावण्याविजयनिर्मित
DEĀTURATNAKARA
MUNI LAVANYA VIJAYA
राष्ट्रिय संस्कृत-संस्थान
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुस्तकमिदं राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानस्य पुनर्मुद्रणयोजनायां प्रकाशितम्।
मुनिश्रीलावण्यविजयसूरिविनिर्मित
धातुरत्नाकर
DHĀTURATNĀKARA
OF MUNI LĀVANYA VIJAYA SŪRI
प्रथम भाग तिङन्त प्रक्रिया
पुनरीक्षित संस्करण
चमः
सविनवसाय
राष्ट्रिय-संस्कृत-संस्थान
मानित विश्वविद्यालय ५६-५७, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, जनकपुरी, नई दिल्ली - ११००५८
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
The firm will replace the copy/copies free of cost if any defect is found
प्रकाशक : प्रो. वेम्पटि कुटुम्ब शास्त्री
कुलपति राष्ट्रिय-संस्कृत-संस्थान
मानित विश्वविद्यालय । (मानवसंसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन)
५६-५७, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, जनक पुरी, नई दिल्ली - ११००५८
योजनासमन्यायक प्रो० आर. देवनाथन् प्राचार्य, (दिल्ली परिसर)
डॉ० प्रकाशपाण्डेय सहायक निदेशक (शोध एवं प्रकाशन)
द्वितीयं पुनर्मुद्रितसंस्करणम् : २००६
मूल्यम् : रूप्यकाणि १६६५.०० (१-५ भाग)
मुद्रकः
परिमल पब्लिकेशन्स
27/28, शक्तिनगर दिल्ली - 110007 (भारत)
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्जुन सिंह
ARJUN SINGH
सत्यमेव जय
मानव संसाधन विकास मंत्री
भारत
नई दिल्ली ११०००१
MINISTRY OF
HUMAN RESOURECE DEVELOPMENT INDIA NEW DELHI- 110001
सन्देश
संस्कृत साहित्य में अनेक ग्रन्थरत्न विद्यमान हैं जिनका पठन-पाठन एवं अनुसन्धान इस राष्ट्र में सहस्रों वर्षों से चला आ रहा है । वेद, शास्त्र, स्मृति एवं पुराण जैसे विशाल ग्रन्थ संस्कृत वाङ्मय का अंग हैं। यह वाङ्मय समय - समय पर प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा परिश्रम एवं आर्थिक व्यय से अंशतः प्रकाशित भी हुआ है । किन्तु समय के साथ इन ग्रन्थों की मुद्रित पुस्तकें छात्रों, विद्वानों एवं सामान्यजनों को दुर्लभ होने लगी हैं। अतः इन दुर्लभ सुसम्पादित ग्रन्थों का पुनर्मुद्रण कर न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध कराने की योजना मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं उसके अंगभूत राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान के द्वारा कार्यान्वित की गयी है ।
मैं आशा करता हूँ कि इस दूरगामी उपक्रम से संस्कृत के विद्वान्, छात्र एवं संस्कृतप्रेमी सामन्यजन लाभान्वित होंगे तथा संस्कृत के ज्ञान, वैभव का विस्तार होगा। साथ ही मैं यह भी कामना करता हूँ कि राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान इस योजना में अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थों को भी प्रकाशित कर संस्कृत की श्रीवृद्धि करेगा ।
ॐ
(अर्जुन सिंह )
य
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
दीक्षा सं. १९४५ ज्येष्ठ शु. ७ भावनगर
जन्म सं. १९२९ कार्तिक शु. १ मधुमती (महवा )
सर्वतन्त्रस्वतन्त्र-शासनसम्राट् सूरिचक्रचक्रवर्त्ति जगहुरुतपागच्छाधिपति भट्टारक
भव्यान्ध्यामद वृद्धिचन्द्रसदृशं श्रीनेमिसूरीश्वरं । सम्यग्दर्शनबोधदानसदनं, चारित्रभान्दयम् ॥ जैनेन्द्रागमतत्त्वनन्दनघनं, लावण्ययोगालयं ॥ भो दक्षास्त्रिविधं हितं प्रणमत, प्रज्ञाप्रमोदक्षमम् ॥ १ ॥ आचार्य श्रीविजयनमिसूरीश्वरः सूरिपद सं. १९६४ ज्येष्ठ शु. ५ भावनगर
गणिपद सं. १९६० कार्त्तिक कृष्ण ७ वल्लभीपुर (वळा) : पन्यासपद सं. १९६० मागशर शु. ३ वल्लभीपुर (वळा)
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
तपोगच्छाधिपति-सर्वतन्त्रस्वतन्त्र-शासनसम्राट्-सूरिचक्रचक्रवर्ति-जगद्गुरु-भट्टारकाचार्यवर्य
श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरपट्टालङ्कारव्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद-कविरत्न-निरुपमव्याख्यानसुधावर्षि-विबुधशिरोमणि-धातुरत्नाकर
तिलकमञ्जरीटीकाद्यनेकग्रन्थप्रणेता
सादडी. ( मारवाड ) ॥
वद २. अमदावाद ॥ जन्म-वि. सं. १९५३ भाद्रपद वद ५ दीक्षा-वि. सं. १९७२ अषाढ सुद ५ वडी दीक्षा-वि. सं. १९७३ मागशर प्रवर्तकपद-वि. सं. १९८७ कात्तिक (प्रायः) बोटाद (काठीयावाड) ॥
सुद ३ सादडी, (मारवाड)॥
आचार्यपद-वि. सं. १९९२ वैशाख वद १२, महुवा (काठीयावाड)॥
सुद ८, भावनगर ॥ गणिपद-वि. सं. १९९० मागशर पन्यासपद-वि. सं. १९९० मागशर उपाध्याय पद-वि. सं. १९९१ जेठ
सद ४, अमदावाद ।
_ सुद १०, भावनगर ॥
भट्टारकाचार्यश्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरः ॥ "न्यायव्याकरणागमेषु ललिते, काव्ये तथा छन्दसि । साहित्यप्रभृतौ प्रबन्धगगने यद्धीकराः विस्तृताः॥ प्रत्युत्पन्नमतिः प्रसादमदनं, व्याख्यानवाचस्पतिः । सोऽयं दक्षप्रमोददो विजयते. लावण्य सूरीश्वरः॥१॥"
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका - धातुरत्नाकर हैम-व्याकरण की पद्धति में धातुरूपों का एक विपुल संग्रह है। इस संग्रह के कर्ता जैनमुनि आचार्य श्रीलावण्यविजयसूरि हैं। ___ पाणिनि-व्याकरण तथा पाणिनि-उत्तरवर्ती संस्कृत व्याकरण की अनेक परम्पराओं के स्वरूपनिर्माण में जैनवैयाकरणों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन-वैयाकरणों में जैनेन्द्र, शाकटायन तथा हेमचन्द्र ने अपनी विशिष्ट व्याकरणपद्धतियाँ स्थापित की हैं। उक्त व्याकरणपद्धतियों में, और संभवतः समस्त पाणिनि-उत्तरवर्ती व्याकरणपद्धतियों में, हेमचन्द्र द्वारा स्थापित व विकसित हैम-व्याकरण स्वयं में सर्वाधिक समग्र व सर्वाधिक वैज्ञानिक व्याकरण-तन्त्र है। __ अपनी स्थापना के अनन्तर छोटी सी कालावधि में ही हैम-व्याकरण का गहन प्रचार और प्रसार हुआ। विद्वत्समाज के बीच इसे शीघ्र ही व्यापक स्वीकृति मिल गयी। हैम-व्याकरण चूँकि संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत भाषा का भी व्याकरण प्रस्तुत करता था, इसलिए जैन परम्परा में तो विशेष रूप से इसके अध्ययन-अध्यापन की एक सुदीर्घ परम्परा ही प्रारम्भ हो गयी। जैन-धर्मावलम्बियों के बीच यह अविलम्ब ही बहुत लोकप्रिय हो गया।
प्रो०. कीलहॉर्न के अनुसार हेमचन्द्र ने समस्त पूर्ववर्ती व्याकरणपद्धतियों का गम्भीर अध्ययन व विस्तृत मनन किया था और उनकी शैलियों व गुण-दोषों की आलोचनात्मक मीमांसा की थी। इसी अध्ययन-मनन और मीमांसा के फलस्वरूप ही वे अपने व्याकरणतन्त्र को एक परिष्कृत एवं उत्कृष्ट स्वरूप प्रदान कर सके थे। हेमचन्द्राचार्य का व्यक्तित्व
हेमचन्द्र जैन-धर्म की श्वेताम्बर-शाखा के एक अग्रणी आचार्य थे। वे बारहवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् हैं। जैन मतानुयायियों के बीच उनका नाम अत्यन्त श्रद्धा से लिया जाता है। जैन ग्रन्थकारों में उनका मूर्धन्य स्थान है। जैनपरम्परा में वे आचार्य हेमचन्द्रसूरि के नाम से विख्यात हैं। हेमचन्द्रसूरि की विविध शास्त्रों में अव्याहत गति थी। जैनधर्मावलम्बी उन्हें 'सर्वज्ञ' मानते हैं। विविध विद्याओं में पारङ्गत होने के कारण ही इस अप्रतिम मनीषी को अनहिलपाटन के सम्राट ने 'कलिकालसर्वज्ञ' की उपाधि प्रदान की थी।
मेरुतुङ्गसूरिविरचित 'प्रबन्धचिन्तामणि' तथा प्रभाचन्द्रसूरिकृत 'प्रभावकचरित' नामक ग्रन्थ में आचार्य हेमचन्द्र के जीवन का विस्तृत विवरण दिया गया है। उन्हीं विवरणों को आधार बनाकर जर्मन विद्वान् डॉ० जी. ब्यूलर ने हेमचन्द्र का जीवनवृत्त लिखा था। यह जीवनवृत्त १८८९ में जर्मनी से प्रकाशित हुआ था। मणिलाल पटेल ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है। पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद वाला यह संस्करण १९३६ में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ था।
हेमचन्द्राचार्य का जन्म सन् १०८८ में हुआ था। पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक कार्तिक पूर्णिमा संवत् ११४५ के दिन को उनकी जन्मतिथि मानते हैं। हेमचन्द्र के जन्मकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में कोई वैमत्य नहीं है।
हेमचन्द्र का जन्म अहमदाबाद के समीप 'धुन्धुका' नामक स्थान पर हुआ था। यह स्थान अहमदाबाद से ६० मील दक्षिण-पश्चिम कोण में स्थित है। प्राचीन समय में यह एक समृद्ध नगर था। अनेक ग्रन्थों में इस नगर को
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
4
'धुन्धक्कनगर' या 'धुन्धकपुर' भी कहा गया है। आचार्य हेमचन्द्र जन्मना वैश्य थे। मोढ़वंश से सम्बन्ध रखने वाले एक वैश्य परिवार में उनका जन्म हुआ था । वस्तुतः उनके वंशजों का निकास मोढेरा गाँव से हुआ था, इसीलिए वे मोढवंशी कहलाने लगे थे। इस वंश सम्बन्ध रखने वाले वैश्य जन आज भी मोढ बनिये कहे जाते हैं । हेमचन्द्र के जन्म का नाम 'चाङ्गदेव' था। वस्तुतः हेमचन्द्र के परिवार की कुलदेवी का नाम 'चामुण्डा' तथा कुलपक्ष का नाम 'गोनस' था। उनके माता-पिता ने इन दोनों ही नामों के आद्यक्षरों को लेकर अपने इस पुत्र का नाम चांगदेव रखा था। कहा जाता है कि बालक चानदेव के जन्म से पूर्व ही उसकी माता को उसकी विलक्षणता के सम्बन्ध में अद्भुत स्वप्न आया करते थे। हेमचन्द्र के पिता का नाम 'चाचिग' और माता का नाम 'पाहिणी' था । युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार हेमचन्द्र के पिता वैदिक मत के अनुयायी थे, जबकि उनकी माता का झुकाव जैन धर्म की ओर था ।
हेमचन्द्र श्वेताम्बर गुरुओं की सूरि उपाधि वाली एक प्रतिष्ठित आचार्य - परम्परा के महानतम सदस्य माने जाते हैं। इस परम्परा के आचार्यों को उनके गुरुओं से 'सूरि' की उपाधि प्राप्त होती थी । हेमचन्द्र के गुरु श्वेताम्बर - सम्प्रदाय की ‘वज्र' नामक शाखा के आचार्य थे। उनका नाम चन्द्रदेवसूरि था । उन्हें देवचन्द्रसूरि के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि बालक चाङ्गदेव, जब वह अभी आठ वर्ष का मात्र था, एक दिन अपनी माता के साथ मन्दिर की ओर जा रहा था। मार्ग के बीच में ही आचार्य चन्द्रदेवसूरि से उसका साक्षात्कार गया। चन्द्रदेवसूरि ने चाङ्गदेव को तीव्र मेधा व विलक्षण सम्भावनाओं से युक्त बालक पाया । उन्हें इस बालक में भवितव्यता के शुभलक्षण स्पष्टरूप से दिखाई पड़े। इन अलौकिक शुभलक्षणों को देखकर देवचन्द्र ने घोषणा की कि यह बालक यदि क्षत्रियकुलोत्पन्न है, तो अवश्यमेव चक्रवर्ती सम्राट् बनेगा, यदि यह ब्राह्मण कुलोत्पन्न है तो महात्मा बनेगा; और यदि इसने दीक्षा ग्रहण कर ली तो अवश्यमेव इस युग में कृतयुग की स्थापना करेगा। स्वाभाविक था कि हेमचन्द्र उस बालक से बहुत प्रभावित हुए। चाङ्गदेव के पिता उस समय परदेश की यात्रा पर थे। आचार्य ने उसकी माता से आग्रह किया कि वे उस बालक को अपने साथ ले जाने की अनुमति प्रदान करें । आचार्य के इस आग्रह पर माता ने अपने उस होनहार पुत्र को सह उन्हें समर्पित कर दिया। गुरु चन्द्रदेवसूरि का शिष्यत्व ग्रहण करने के पश्चात् उस बालक ने उनके सान्निध्य में रहकर अनेक वर्षों तक विविध शास्त्रों का अध्ययन और मनन किया। अपनी विलक्षण प्रतिभा और कठिन परिश्रम के बल पर उस बालक ने बारह वर्ष के अन्तर्गत ही अनेक विद्याओं में अपार वैदुष्य अर्जित कर लिया। उसने शीघ्र ही एक प्रमुख जैन आचार्य के रूप में विशेष ख्याति अर्जित कर ली; और दुनिया उसे आचार्य हेमचन्द्र व हेमचन्द्रसूरि के नाम से जानने, पहचानने व आदर देने लगी।
हेमचन्द्र को बाल्यावस्था में ही संन्यास की दीक्षा प्रदान कर दी गई थी। आचार्य देवचन्द्र ने चतुर्विध संघ के समक्ष स्तम्भतीर्थ के चैत्यालय में उन्हें संन्यास की दीक्षा दी थी। संन्यासदीक्षा के उपरान्त उनका नाम चाङ्गदेव से बदल कर सोमचन्द्र रख दिया गया । मेरुतुङ्गाचार्य के अनुसार संवत् १९५४ माघशुक्ल १४ शनिवार के दिन संन्यासग्रहण के समय उनकी आयु मात्र नौ वर्ष की थी। सत्रह वर्ष की आयु में उन्हें 'सूरि' की उपाधि प्रदान की गई थी। इस उपाधि से अलंकृत किये जाने के साथ ही उनका नाम भी परिवर्तित कर दिया गया। अब उनका नाम हेमचन्द्र रखा गया। एक किंवदन्ती के अनुसार एक बार सोमचन्द्र ने शक्तिप्रदर्शन हेतु अपने हाथ को आग में रख दिया था। आग में जलता
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
हुआ सोमचन्द्र का हाथ सोने का बन गया था। इस घटना के उपरान्त ही वे 'हेमचन्द्र' के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। 'हेमचन्द्रसूरि' बनने के पश्चात् उन्होंने अपना समग्र जीवन जैनविद्या के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। वे आजीवन ग्रन्थलेखन करते रहे। ____ अनाहिलपाटन (गुजरात) का राजा सिद्धराज जयसिंह तथा बाद में उसका पुत्र राजा कुमारपाल हेमचन्द्र के वैदुष्य से आत्यधिक प्रभावित थे। सच तो यह है कि ये दोनों ही राजा हेमचन्द्र के परम भक्त बन गए थे। सिद्धराज जयसिंह ने उन्हें अपने राजदरबार का सदस्य मनोनीत किया था। कुमारपालचरित के अनुसार सिद्धराज ने हेमचन्द्रसूरि के सम्मान में राजविहार तथा सिद्धविहार नामक दो मन्दिरों का निर्माण करवाया था। जयसिंह और कुमारपाल के संरक्षण में ही हेमचन्द्र ने अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनके राज्याश्रय में रहते हुए वे जीवनपर्यन्त जैनमत का प्रचार करते रहे। डॉ० ए.के. मजूमदार का मानना है कि हेमचन्द्र की प्रेरणा से ही कुमारपाल ने अपने राज्य में मद्यपान, द्यूतक्रीडा तथा जीवहत्या जैसी बुराईयों को दूर किया था। हेमचन्द्र की मृत्यु सन् ११७२ में हुई थी। मृत्यु के समय उनकी आयु चौरासी वर्ष की थी। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि उनके स्वर्गस्थ होने के छह मास पश्चात् कुमारपाल की मृत्यु हुई थी। परम्परा के अनुसार उनके शरीर के भस्म को इतने लोगों ने अपने मस्तक पर लगाया कि उनके अन्त्येष्टिस्थल में एक महाखड्ड हो गया। यह महाखड्ड बाद में हेमचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आचार्य हेमचन्द्र की समाधि शत्रुञ्जय पर्वत पर स्थित मानी जाती है। हेमचन्द्र का कृतित्व ___ जैसा कि पिछली पङ्क्तियों में कहा गया, हेमचन्द्रसूरि विविध विद्याओं और उनकी विविध विधाओं में पारङ्गत एक मनीषी आचार्य थे। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। पाश्चात्य विद्वानों ने उन्हें 'ज्ञान का सागर' कहा है। उनका कृतित्व अभूतपूर्व रहा है। उन्होंने व्याकरण के साथ ही छन्द, न्याय और धर्मशास्त्र जैसे विविध विषयों पर अनेक ग्रन्थों की रचना की है। उनकी प्रत्येक रचना में नया चिन्तन, नयी शैली और नया दृष्टिकोण है। डॉ० मुसलगांवकर के अनुसार 'संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का है, श्रीहर्ष के दरबार में जो स्थान बाणभट्ट का है, प्रायः वही स्थान बारहवीं शताब्दी में चालूक्यवंशी गुर्जरनरेश सिद्धराज जयसिंह के इतिहास में हेमचन्द्र का है। उनके द्वारा लिखित अनेक ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं हैं।
आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित ग्रन्थों की सूची निम्न है१. अभिधानचिन्तामणि
२. अभिधानचूडामणि ३. छन्दोऽनुशासन
४. छन्दोऽनुशासनवृत्ति ५. नाममाला
६. नाममालाशेष ७. लिंगानुशासन
८. व्याश्रयमहाकाव्य ९. शेषसंग्रह
१०. शेषसंग्रहसारोद्धार ११. सिद्धहैमशब्दानुशासन
१२. विभ्रमसूत्र १३. बालभाष्यव्याकरणसूत्रवृत्ति
१४. बालाबालसूत्रबृहद्वृत्ति
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५. निघण्टुशेष
१६. धातुपाठ १७. धातुमाला
१८. धातुपारायण १९. देशीनाममाला
२०. अनेकार्थकोष २१. अनेकार्थशेष
२२. काव्यानुशासन २३. उणादिसूत्रवृत्ति हेमचन्द्रप्रणीत सिद्धहैमशब्दानुशासन ___ प्रो० कीलहॉर्न ने हैम व्याकरण को मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण कहा है। हेमचन्द्रसूरि की व्याकरणविषयक प्रमुख रचना 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' है। कहा जाता है कि यह ग्रन्थ उन्होंने सिद्धराज जयसिंह के आग्रह पर लिखा था। प्रभावकचरित में इस संबन्ध में एक रोचक प्रसङ्ग मिलता है। उस प्रसङ्ग के अनुसार एक दिन हेमचन्द्र ने राजा सिद्धराज को भोजदेवकृत सरस्वतीकण्ठाभरण नामक व्याकरणग्रन्थ दिखाया। राजा के समक्ष हेमचन्द्र ने उस ग्रन्थ की बहुत प्रशंसा की। यह सुनकर सिद्धराज ने इच्छा व्यक्त की कि हेमचन्द्र स्वयं एक व्याकरणग्रन्थ लिखें। यह ग्रन्थ न केवल सरस्वतीकण्ठाभरण से अपितु अन्य सभी व्याकरणपद्धतियों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट, अधिक समग्र व अधिक सरल हो। इस ग्रन्थ में संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत भाषा का भी सर्वांग विवेचन हो और इस ग्रन्थ का नाम राजा के नाम पर रखा जाय
यशो मम तव ख्याति: पुण्यं च मुनिनायक।
विश्वलोकोपकाराय कुरु व्याकरणं नवम्।। गुजरात में उन दिनों अध्ययन-अध्यापन में सर्ववर्माविरचित कातन्त्रव्याकरण का प्रचलन था। यह ग्रन्थ स्वयं में समग्र नहीं था। और पाणिनि-व्याकरण के साथ-साथ संस्कृत व्याकरण की अन्य सभी परम्पराएँ बहुत जटिल और बहुत विस्तृत थी। ऐसे में हेमचन्द्र को राजा का उक्त आग्रह अर्थपूर्ण लगा। उन्होंने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली
और एक सर्वांगपूर्ण व्याकरणग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ का नाम हेमचन्द्र ने 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' रखा। राजा की इच्छानुसार ग्रन्थ के नाम के आरम्भ में राजा का नाम (सिद्ध) सम्मिलित किया गया। इसके साथ ही ग्रन्थकार ने ग्रन्थ के नाम में अपना नाम (हैम) भी जोड़ दिया। शब्दानुशासन का तात्पर्य व्याकरण से है। इस प्रकार इस ग्रन्थ का पूरा नाम 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' रखा गया।
हेमचन्द्र ने 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' में संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत भाषा के व्याकरण का भी प्रवचन किया गया है। उन्होंने पाणिनि की अष्टाध्यायी का अनुसरण करते हुए अपने 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' को आठ अध्याययों में विभाजित किया है। प्रत्येक अध्याय में पाणिनि-अष्टाध्यायी के समान ही चार-चार पाद हैं। ग्रन्थ के प्रारम्भिक सात अध्याययों में संस्कृत भाषा का व्याकरण प्रस्तुत किया गया है। जबकि अन्तिम तथा आठवें अध्याय में प्राकृत भाषा का व्याकरण है। हेमचन्द्र ने प्राकृत भाषा को आर्ष कहा है। व्याश्रयमहाकाव्य नामक अपने रचना में हेमचन्द्र ने हैमव्याकरण के उदाहरणों को सूत्रक्रमनुसार प्रस्तुत किया है। यह महाकाव्य संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में लिखा गया है। इसके आदिम २० सर्ग संस्कृत में और अन्त के ८ सर्ग प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। यह ग्रन्थ चालूक्यवंशी राजाओं
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
की यशोगाथा का वर्णन करता है। इसमें मूलराज से लेकर कुमारपाल तक का जीवनवृत्त दिया गया है। इस प्रकार 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' में संस्कृत व्याकरण तथा प्राकृत व्याकरण दोनों के उदाहरण दिये गए हैं। हेमचन्द्र के व्याकरण में वार्तिक नहीं हैं। जैन शाकटायन का अनुसरण करते हुए हेमचन्द्र ने कात्यायन के वार्तिकों के कथ्य को सूत्रों के रूप में ही स्थान प्रदान कर दिया है।
हैम-व्याकरण की रचना शैली कातन्त्र-व्याकरण का विशेष प्रभाव दिखाई देता है। कातन्त्र-व्याकरण की रचनाशैली का ही अनुसरण करते हुए आचार्य हेमचन्द्र अपने शब्दानुशासन को प्रकरणानुसारी बनाया है। इसमें क्रमश: संज्ञा, स्वरसंधि, व्यञ्जनसन्धि, परिभाषा, नाम, कारक, षत्व, णत्व, स्त्रीप्रत्यय, समास, आख्यात, कृदन्त और तद्धित प्रकरण दिये गये हैं। सिद्धहैमशब्दानुशासन' के तृतीय अध्याय के दो पादों (द्वितीय एवं तृतीय) तथा चतुर्थ अध्याय में क्रियारूपों का प्रतिपादन किया गया है। हैम-व्याकरण पर जैनेन्द्र तथा शाकटायन का भी बहुत प्रभाव है। हेमचन्द्र ने अन्य संस्कृत व्याकरण-परम्पराओं में पाये जाने वाले दोषों- विस्तार, जटिलता एवं क्रमभङ्ग या अनुवृत्तिबाहुल्य- से अपने व्याकरण को यथासंभव मुक्त रखा है। यद्यपि वे उन सभी परम्पराओं के ऋण को स्वीकारते हैं।
'सिद्धहैमशब्दानुशासन' पर स्वयं हेमचन्द्र ने अनेक स्वोपज्ञवृत्तियाँ लिखी हैं। इन स्वोपज्ञवृत्तियों का नाम लघुवृत्ति, लघुवृत्तिचन्द्रिका, वृहद्वृत्ति, रहस्यवृत्ति तथा बृहन्न्यास है। इन वृत्तियों में उन्होंने अपने से पूर्ववर्ती वैयाकरण आचार्यों के मतों का उनके नामोलेख सहित विवेचन व आलोचन किया है। __ आचार्य हेमचन्द्र की इस अमर कृति पर अन्य टीकाकारों ने भी अनेक टीकाएँ लिखी हैं। इन टीकाओं में वृहद्वृत्ति दीपिका, वृहद्वृत्ति-अवचूर्णिका, हेमढुण्डिका तथा न्यायसारसमुद्धार प्रमुख हैं। हैम धातुपाठ
संस्कृत व्याकरण की लगभाग समस्त परम्पराओं में शब्दनुशासन को पांच अगों में विभाजित करके प्रस्तुत करने प्रणाली रही है। इसी कारण व्याकरणशास्त्र के लिए सभी व्याकरण-सम्प्रदायों में 'पञ्चाङ्ग व्याकरण' शब्द का प्रयोग किया जाता है। इन पांच अङ्गों में से प्रथम को सूत्रपाठ तथा शेष चार अङ्गों को खिलपाठ कहा जाता हैं। खिलपाठ में धातुपाठ, उणादिपाठ, गणपाठ तथा लिङ्गानुशासन सम्मिलित हैं। इन पांच अङ्गों में सूत्रपाठ सर्वाधिक प्रमुख है। यह व्याकरणशास्त्र का मूल भाग है। व्याकरण के अन्य चार अङ्गों को गौण माना जाता है। गौण होने के कारण ही उन्हें खिलपाठ नाम दिया गया है। व्याकरणशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन में सूत्रपाठ की तुलना में इनकी उपेक्षा होती रही है। चिरकाल से सूत्रपाठ के परिशिष्ट के रूप में ही इनकी प्रयोग होता रहा है। पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक ने पठन-पाठन में इन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के अल्प व्यवहार व उपेक्षा पर खिन्नता व्यक्त की है।
जहाँ तक धातुपाठ का प्रश्न है, धातुओं का प्रवचन व्याकरणशास्त्र के किसी भी परम्परा का एक अनिवार्य अङ्ग होता है। संस्कृत शब्दों की व्याकृति करने वाली समस्त व्याकरणपद्धतियों में धातुओं के प्रवचन का एक व्यवस्थित व प्रणालीबद्ध प्रयास दृष्टिगत होता है। धातुओं के प्रवचन के मूल व आद्य रूप को संस्कृत व्याकरणशास्त्र के विभिन्न सम्प्रदायों में धातुपाठ के रूप में जाना जाता है।
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
8
धातुओं का संग्रह करके उनके क्रियारूपों की सरल, समग्र व सुनियोजित निष्पत्ति के लिए व्याकरणतन्त्र के अनेक प्रवक्ताओं ने अपने-अपने शब्दानुशासन में उन धातुओं की एक विशेष क्रम में जो नियोजना की है उसे ही धातुपाठ कहते हैं।
यद्यपि ऐसा माना जा सकता है कि संस्कृत के सभी व्याकरणतन्त्रों में धातुपाठ का प्रवचन अवश्यमेव किया गया होगा, परन्तु आज पाणिनि - धातुपाठ के अतिरिक्त चान्द्र, जैनेन्द्र, काशकृत्स्न, कातन्त्र, शाकटायन और कविकल्पदुमयह अन्य सात धातुपाठ ही उपलब्ध होते हैं । यद्यपि चान्द्र आदि पाणिनि-उत्तरवर्ती धातुपाठों की अपनी-अपनी मौलिकताएँ व अपनी विशेषताएँ हैं, पुनरपि हम निःशङ्क होकर कह सकते हैं कि उपलब्ध सभी धातुपाठों का प्रवचन पूर्णतया पाणिनि-धातुपाठ को आधार बनाकर ही किया गया है। पाणिनि- धातुपाठ सभी धातुपाठों का उत्स है । हैमधातु पाठ में धातुओं को अकारादिक्रम से रखा गया है। यहाँ तक की अन्तर्गणीय धातुओं को भी अकारादिक्रम से रखा गया है। प्रो० पल्सुले ने इस अर्थ में हैमधातु पाठ को सर्वाधिक वैज्ञानिक धातुपाठ माना है । अकारादिक्रम के सम्बन्ध में एक विशेष बात यह है कि हेमचन्द्र ने 'क्ष' को स्वतन्त्र वर्ण मानकर क्षकारांत धातुओं को हकारांत धातुओं के बाद पढ़ा है। इस धातुपाठ में अनिट् धातुओं को द्योतित करने के लिए धातुओं में अनुबन्ध के रूप में अनुस्वार रखा गया है।
हैम
धातुपाठ की व्याख्याएँ
हेमचन्द्र के धातुपाठ पर कतिपय टीकाएँ भी लिखी गई हैं। उन टीकाओं में हैम धातुओं, उनके अर्थों व धातुरूपों की निष्पतिप्रक्रिया पर विद्वत्तापूर्ण टिप्पणियाँ की गई हैं। इन टीकाओं में सर्वप्रथम हेमचन्द्र की स्वोपज्ञ टीका है। हेमचन्द्र ने स्वयं अपने धातुपाठ पर 'धातुपारायण' नामक एक व्याख्या लिखी है। यह व्याख्या आकार में विशाल है। इसमें ५६०० श्लोक हैं। पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार हेमचन्द्र ने धातुपारायण का एक संक्षिप्त संस्करण भी तैयार किया था। इस संस्करण को 'लघुधातुपारायण' नाम दिया जा सकता है।
धातुपारायण पर 'मधातुपारायणटिप्पण' नामक एक अन्य टीका भी प्राप्त होती है । पण्डित मीमांसक के अनुसार यह व्याख्या संवत् १३१६ में लिखी गई है। इस टीका के लेखक का नाम ज्ञात नहीं है।
हैम धातुपाठ पर 'क्रियारत्नसमुच्चय' नाम से एक अन्य टीका भी मिलती है। यह टीका एक श्रेष्ठ रचना है। इसके रचयिता का नाम गुणरत्नसूरि है। पण्डित मीमांसक ने इसके लेखन का समय विक्रम संवत् १४६६ माना है। ग्रन्थकार ने इसमें हैमधातुपारायण की पद्धति का ही अनुसरण किया है। टीकाकार अनेक स्थलों पर धातुसम्बन्धी प्राचीन मतों का विस्तारपूर्वक विवेचन करते चलते हैं।
है धातुपाठ पर 'अवचूरी' नामक एक अन्य टीका भी देखने को मिलती है। इस टीका के लेखक जयवीरगणि हैं । पण्डित मीमांसक के अनुसार 'अवचूरी' टीका का निर्माणकाल वि० सं० १५०१ है । इसके अतिरिक्त हैम धातुपाठ पर ‘आख्यातवृत्ति' नामक टीका भी मिलती है। इस टीका के लेखक का नाम अज्ञात है।
यहाँ यह वर्णन करना भी आवश्यक है कि हैम धातुपाठ पर श्रीहर्षगणि नामक किसी विद्वान् ने एक पद्यबद्ध व्याख्या भी लिखी थी। इस ग्रन्थ का नाम कविकल्पद्रुम है। इसमें क्रियारूपों की निष्पत्ति से सम्बन्धित विविध पक्षों पर
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की गई है। इसमें ११ पल्लव हैं। प्रथम पल्लव में धातुस्थ अनुबन्धों पर विचार किया गया है। द्वितीय से दशम पल्लव तक नौ गणों का संग्रह है जबकि ग्यारहवें पल्लव में सौत्र धातुएँ दी गई हैं।
हैमधातुपाठ की विशेषताएँ
श्री आर.एस. सैनी ने अपनी पुस्तक 'पोस्ट पाणिनीयन सिस्टम्स ऑफ संस्कृत ग्रामर' में हैमव्याकरण के धातुपाठ की कुछ प्रमुख विशेषताओं पर एक विवरण दिया है। नीचे की पंक्तियों में उस विवरण का सार प्रस्तुत है____ जहाँ तक धातुरूपों का प्रश्न है, आचार्य हेमचन्द्र अपने पूर्ववर्ती सर्ववर्मा के कातन्त्र व्याकरण से प्रभावित प्रतीत होते हैं। हेमचन्द्र ने अपने समय की समस्त धातुपाठों का गम्भीर अध्ययन किया। उन अनुभवों को आधार बनाकर के ही, उनके गुण-दोषों की यथासम्भव मीमांसा करके ही, उन्होनें अपने धातुपाठ का स्वरूप निर्धारित किया। यही कारण है कि वे अपने धातुपाठ को अन्य धातुपाठों में पाये जाने वाले दोषों और न्यूनताओं से मुक्त रखने में सफल हो पाये हैं।
हेमचन्द्र ने क्रियारूपों की सिद्धि प्रस्तुत करने से पूर्व वृद्धि और गुण की अवधारणाओं को स्पष्ट किया है। क्योंकि इन दोनों ही अवधारणाओं का धातुओं के स्वरों में परिवर्तन के संबन्ध में बहुत महत्त्व था। उन्होनें क्रियारूपों को सरल
और सुबोध बनाने के उद्देश्य से अपने धातुपाठ को धातुओं के स्वरूप के अनुसार अलग-अलग भागों में विभक्त किया है। उन्होंने धातुओं को तीन प्रमुख विभागों में विभक्त किया है। पहले विभाग में वे धातुएँ सम्मिलित हैं जिनका गणों में वर्गीकरण किया गया है। दूसरे विभाग में वे धातुएँ सम्मिलित हैं जो नामपदों में प्रत्यय लगाकर क्रियारूप बनाये जाते हैं। ऐसी धातुओं को संस्कृत व्याकरण के लगभग सभी सम्प्रदायों में नामधातु कहा गया है। तीसरे विभाग में केवल वही धातुएँ सम्मिलित हैं जिनका प्रयोग हैमव्याकरण में किया गया है और लौकिक संस्कृत में जिनका कहीं प्रयोग नहीं होता है। प्रथम विभाग की धातुओं को हेमचन्द्र ने नौ गणों में विभाजित किया है। गणों का यह विभाजन पाणिनिकृत धातुपाठ से भिन्न है, क्योंकि पाणिनि ने अपने धातुपाठ में धातुओं को दस गणों में विभाजित किया है। हेमचन्द्र ने कातन्त्र और काशकृत्स्न धातुपाठ का अनुसरण करते हुए पाणिनि के जुहोत्यादिगण को अदादिगण का ही एक उपविभाग माना है। हेमचन्द्र ने धातुओं को जिन नौ गणों में विभाजित किया है वे निम्न हैं
१. अदादिगण २. दिवादिगण ३. स्वादिगण ४. तुदादिगण ५. रुधादिगण ६. तनादिगण ७. क्र्यादिगण ८. चुरादिगण ९. भ्वादिगण
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
10
हेमचन्द्र के धातुपाठ की एक अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि उन्होंने धातुपाठ में आए हुए प्रत्येक धातु के अन्त में एक अनुबन्ध रखा है। उस अनुबन्ध को देखकर धातुपाठ का अध्येता अच्छी तरह से जान लेता है कि कौन सी धातु किस गण की है। हेमचन्द्र ने ऐसे आठ अनुबन्धों का प्रयोग किया है। ये अनुबन्ध व्यंजन के रूप में ही है। आठ अनुबन्ध आठ भिन्न-भिन्न गणों को इंगित करते हैं। एक गण की धातुओं में उन्होंने कोई अनुबन्ध नहीं पढ़ा है। ये सभी धातुएँ भ्वादिगण की धातुएँ हैं। पाणिनि के धातुपाठ में भ्वादिगण प्रथम गण है जबकि हेमचन्द्र के धातुपाठ में यह अन्तिम गण है। हेमचन्द्र के द्वारा उक्त आठ अनुबन्ध निम्न हैं
अदादयः कानुबन्धाश्चानुबन्धा दिवादयः । स्वादयष्टानुबन्धास्तानुबन्धास्तुदादयः।। रुधादयः पानुबन्धाः यानुबन्धास्तनादयः। क्यादयः शानुबन्धा णानुबन्धाश्चुरादयः ।।
- हैमलघुप्रकिया अर्थात् - १. जिन धातुओं के अन्त में क् अनुबन्ध पढ़ा गया है वे धातुएँ अदादिगण की धातुएँ हैं। २. जिन धातुओं के अन्त में च् अनुबन्ध पढ़ा गया है वे दिवादिगण की धातुएँ हैं। ३. जिन धातुओं के अन्त में ट् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे धातुएँ स्वादिगण की हैं। ४. जिन धातुओं के अन्त में त् अनुबन्ध पढ़ा गया है, वे तुदादिगण की धातुएँ हैं। ५. जिन धातुओं के अन्त में प् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे रुधादिगण की धातुएँ हैं। ६. जिन धातुओं के अन्त में य् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे धातुएँ तनादिगण की हैं। ७. जिन धातुओं के अन्त में स् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे धातुएँ क्रियादिगण की हैं। ८. जिन धातुओं के अन्त में न् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे धातुएँ चुरादिगण की हैं।
यह हेमचन्द्राचार्य की नूतन परिकल्पना है। संस्कृत व्याकरण के अन्य धातुपाठों में यह परिकल्पना कहीं भी दिखाई नहीं देती।
धातुरूपों की निष्पत्ति-प्रक्रिया में हेमचन्द्र कातन्त्र व्याकरण के ऋणी हैं। कातन्त्र व्याकरण की शैली में ही उन्होंने पाणिनिविहित लट् आदि लकारों के स्थान में 'वर्तमान' आदि अन्वर्थ संज्ञाओं का विधान किया है। वे अपनी व्याकरण में लट् लकार के लिए 'वर्तमान', लिट् लकार के लिए 'परोक्ष', लुट् लकार के लिए 'श्वस्तनी', लट् लकार के लिए 'भविष्यन्ती', लोट् लकार के लिए 'पंचमी', लङ् लकार के लिए 'ह्यस्तनी', विधिलिङ् के लिए 'सप्तमी', आशीर्लिङ् के लिए 'आशी:', तथा लुङ् लकार के लिए 'क्रियातिपत्ति' शब्द का प्रयोग करते हैं। पाणिनि द्वारा विहित लेट् लकार के वर्ण्यविषय को हैम-व्याकरण में छोड़ दिया गया है। क्योंकि लेट् लकार का विषय मात्र वैदिक भाषा है। पारिभाषिक शब्दों के रूप में लट् आदि के लिए 'वर्तमान' आदि का शब्दों या संज्ञाओं का प्रयोग इनके अर्थबोध को अधिक सुकर व अधिक सुस्पष्ट बना देता है। पाणिनि को अष्टाध्यायी में लकार आदि के अर्थों का प्रतिपादन करने के
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
लिए अलग से सूत्रों की रचना करनी पड़ती है। जबकि लौकिक व्यवहार के शब्द होने के कारण व अन्वर्थ होने के कारण हैमव्याकरण में वर्तमान, ह्यस्तनी आदि शब्दों को परिभाषित करना आवश्यक नहीं होता।
धातुरूपों की निष्पत्ति-प्रक्रिया के सम्बन्ध में हेमचन्द्र की एक अन्य विशेषता भी है। पाणिनि ने अष्टाध्यायी में प्रथमतः दस लकारों का विधान किया है तथा बाद में उनके स्थान पर तिप्, तस् आदि १८ आदेशों का विधान किया है। इन १८ आदेशों में से प्रथम ९ आदेश परस्मैपदी धातुओं के साथ तथा बाद के ९ आदेश आत्मनेपदी धातुओं के साथ जुड़ते हैं। प्रत्येक लकार में तिप् आदि प्रत्ययों का स्वरूप परिवर्तित होता चला जाता है। पाणिनि को भिन्न-भिन्न लकारों में घटित होने वाले इन परिवर्तनों की व्यवस्था के लिए भित्र-भिन्न सूत्रों की रचना करनी पड़ती है। आचार्य हेमचन्द्र ने इस लम्बी तथा जटिल प्रक्रिया से बचने के लिए वर्तमान आदि प्रत्येक लकार के स्थान में भिन्न-भिन्न १८ प्रत्ययों का विधान किया। इस तरह वे पाणिनि के दस लकारों के स्थान में १८० प्रत्ययों की व्यवस्था करते हैं। वर्तमान आदि में विहित प्रत्येक १८ प्रत्ययों में आदि के ९ को परस्मैपद और शेष ९ को आत्मनेपद नाम दिया गया है।
हेमचन्द्र ने शतृ और क्वसु प्रत्ययों को परस्मैपदी धातुओं के साथ जोड़ने का विधान किया है। उन्होंने धातुओं से आत्मनेपदी और परस्मैपदी प्रत्ययों की व्यवस्था के लिए पाणिनि की पद्धति का ही अनुसरण किया है। नौ गणों की धातुओं से, यदि वे इदित् व नित् हैं तो अथवा यदि क्रिया का फल कर्ता को मिल रहा है तो आत्मनेपदी धातुओं का विधान किया गया है। इगित् धातुओं से आत्मनेपदी तथा परस्मैपदी दोनों प्रत्यय आते है। ऐसी धातुओं को हेमचन्द्र ने उभयपदी कहा है। पाणिनि के समान ही हेमचन्द्र का नियमन है कि जो धातुएँ उक्त दो प्रकार की धातुओं से भिन्न हैं, उनसे परस्मैपदी प्रत्यय हों। पाणिनिव्याकरण के समान ही हैमव्याकरण में भी धातुरूपों की निष्पत्ति-प्रक्रिया में विकरणों की व्यवस्था की गई है। इन विकरणों से काल, वाच्य आदि का प्रतिपादन होता है। पाणिनि के शप् के स्थान पर हेमचन्द्र ने शव् प्रत्यय का विधान किया है। इस प्रत्यय का विधान धातुसामान्य से किया गया है।
अदादिगण की धातुओं से शव् विकरण नहीं होता है। दिवादि धातुओं से श्य, स्वादि धातुओं से श्नु, तुदादि धातुओं से श, रुदादि धातुओं से श्ना, तनादि धातुओं से उ, क्रियादि धातुओं से श्नम् तथा चुरादिगणपठित धातुओं से णिच् प्रत्यय का विधान किया गया है। इन प्रत्ययों को पारिभाषिक शब्द में विकरण कहा जाता है। इन विकरणों में स्थित अनुबन्धों के गुण आदि प्रयोजन हैं। प्रेरणा अर्थ में संस्कृत की सभी धातुओं का स्वरूप परिवर्तित हो जाता है। पाणिनिविहित णिच् के स्थान पर हेमचन्द्र ने प्रेरणा अर्थ में धातुमात्र से णिग् प्रत्यय का विधान किया है। णिग् प्रत्यय का णित्-करण धातुओं में अ, ई और उ वर्गों में वृद्धि के निमित्त किया गया है। प्रत्यय का गित्-करण यह प्रतिपादित करने के लिए है कि णिजन्त धातुओं का प्रयोग आत्मनेपदी तथा परस्मैपदी दोनों ही धातुओं में किया जा सकता है। जब णिजन्त धातुओं से परस्मैपदी प्रत्यय जोड़े जाते हैं तो धातु सकर्मक होगा। णिजन्त धातुओं का प्रयोग सभी कालों तथा लकारों में होता है। इच्छा के अर्थ में पाणिनि के समान हेमचन्द्र आचार्य भी सन् प्रत्यय का विधान करते हैं। और सन् प्रत्यय की स्थिति में धातु को द्वित्व हो जाता है। शुद्ध कर्तृप्रक्रिया के समान सनन्त धातुओं से भी पूर्वोक्त विकरण हो जाते हैं।
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
12
क्रिया के पौनःपुन्य अर्थ में हेमचन्द्र भी यङ् प्रत्यय का विधान करते हैं । यङ् में ङ् का अनुबन्ध आत्मनेपद के लिए है। यङ् में भी सन् के समान धातुओं को द्वित्व हो जाता है। पाणिनिव्याकरण के समान हैमव्याकरण में भी यङ्लुगन्त धातुओं की निष्पत्ति - प्रक्रिया प्रदर्शित की गई है। यह भी क्रिया के पौनःपुन्य अर्थ को ही प्रतिपादित करता है । यङ्लुगन्त धातुओं से सर्वदा परस्मैपदी प्रत्यय ही होते हैं। हेमचन्द्र ने नामधातुओं का भी निरूपण किया है। नामधातुओं में काम्य, क्यङ् णिच्, क्विप्, तथा क्यन् प्रत्ययों का विधान किया गया है। हेमचन्द्र ने ह्यस्तनी, अद्यतनी, तथा क्रियातिपत्ति की स्थिति में धातु के आदि में अट् आगम का विधान किया है। पाणिनि के समान हेमचन्द्र लुङ् लकार में च्लि प्रत्यय करके उसके स्थान में अङ् क्स्, चङ् तथा चिण् आदेश का विधान नहीं करते हैं। अपितु उन्होंने सीधे ही सिच् आदि प्रत्ययों की व्यवस्था की है । हैमव्याकरण के चतुर्थ अध्याय के अन्तिम पाद में धातुओं में होने वाले परिवर्तनों तथा धातु के स्थान में होने वाले आदेशों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। धातुरूपों की निष्पत्ति प्रक्रिया में उक्त विवरण अतिमहत्त्वपूर्ण है। हेमचन्द्र ने अपने व्याकरणतन्त्र में धातुओं में इट्-अनिट् की व्यवस्था के लिये भी एक विस्तृत प्रकरण निर्धारित किया है।
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीमञ्जिनपुङ्गवेभ्यो नमः सकलस्वपरसमयपारावारपारीण-तीर्थसंरक्षणप्रवण-विद्यापीठादिप्रस्थानपञ्चकसमाराधक-तपोगच्छाधिपति
भट्टारकाचार्यवर्य-परमगुरुश्रीमद्विजयनेमिसूरिभगवद्भ्यो नमः श्रीमत्तपोगणगगनाङ्गणगगनमणि-सार्वसार्वज्ञशासनसार्वभौम-तीर्थरक्षणपरायणकोविदकुलालङ्कार-अखण्डविजयश्रीमद्गुरुराज-विजयनेमिसूरीश्वर
चरणारविन्दचञ्चरीकायमाणान्तिषन्मुनिलावण्यविजयप्रणीतो
धातुरत्नाकरः
लोकालोकावलोके विलसति विमला केवलार्चिर्यदीया देवादेवाधिदेवैररचि च चरणार्चा च नित्यं यदीया। गावो नावो नवीना घनभवजलधेस्तारणेऽरं यदीया आप्ताः प्राप्ताः शिवं ते जिनवरप्रवरा नो नयन्तां शमालिम्॥११॥ लब्धानेकार्थसार्थो मकरधिमधरीकृत्य यः सत्तयास्ते उद्यत्कल्लोलमालाऽपि जडपरिणतिर्गाहते यञ्च नित्यम्। सद्वंशो वारिराशौ सदमृतसरणिं संसृतौ संसृतोऽस्तु पोतः श्रीनाभिसूतः विलसनवसतिः धीवराणां नराणाम्।।२।। भव्यग्रामानुशासी चरणजयकृतौ सिंहकल्पश्च शास्त्रविद्यादक्षः प्रदाता प्रतिदिनरजनि क्षेत्रभृद्राज्यभीतेः। यो नित्यं दान्तराजैर्विहरति च सदाचारलब्धस्वरूपः श्रीशान्तिं तं क्षमाभृन्निकर उभयतश्चक्रिणं नन्नमीमि॥३॥ विस्फूर्जत्स्फीतवाचो नरसुरकुरुहः प्राणिनां वाञ्छितार्थदाने मीनः सदावस्थितिभृत उदरे शान्तिसिन्धोर्विहाय। कान्तां भौगीञ्च राजी मदनमदजितस्तीर्थराजः प्रभासः आधिव्याधिप्रहीणं शमधि विदधतामक्षरस्थानमिज्यम्॥४॥
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
2
(उपजाति:) जडप्रधानोऽपरभङ्गगोऽपि सपङ्कजातः सगरान्वयोऽपि । नीचः प्रकृत्या मृततां गतोऽपि सप्तांम्बुराशिप्रकरः पृथिव्याम् ॥ ५ ॥
यच्छन्नसप्तस्फटशालिनागाधिराजदम्भात्कृतसेवनातः ।
महाशयत्वञ्च जगाम नित्यं पायादपायाज्ञ्जिनपः स पार्श्वः ॥ ६ ॥ युग्मम् ॥ (शार्दूलविक्रीडितम्)
यस्माद् बोधति चेदकं कुवलयं यस्तारकाल्याञ्चितः सर्वाशासुखसम्पदुल्लसनकृन्नित्यं सुधामाश्रयन्। यश्चञ्चद्धरिणाङ्कितः शमनिधिः सद्वृत्तसौभाग्यभूः वन्देऽज्ञानतमोऽपनोदनकृते वीरं तमीशं सदा ॥७॥ (शिखरिणी)
लसन्ती या नित्यं सरससुमनोमानसमिता जलौल्लासी पक्षैः विलसितमरुद्भिः शुचितरैः । कलध्वाना दीव्यद्गतिरुपनता मौक्तिकफलैः सदा जैनी वाणी सुजयति मरालीव नितराम् ॥८॥ (शार्दूलविक्रीडितम्)
पूज्यः श्रीयुतवृद्धिचन्द्र इह स प्रद्योतते पुण्यकृचाकोरामदवृद्धिचन्द्र इव यश्चन्द्रश्च शान्त्याकरः । सिद्धान्तोदधिवृद्धिचन्द्र उपमातीतः सतां हृत्सर:सम्वित्कैरववृद्धिचन्द्र उदिते पापातपे वारिदः ॥ ९ ॥ सौवर्णाद्रिरिव क्षमाधरवरो मध्यस्थभावं गतो भक्तिभ्राजितवैबुधाश्रितपदः काष्ठान्तप्रापिस्थितिः । जैनेन्द्रागमजातचारुविभवः कल्याणरूपश्च यः भव्यानां स तनोतु मङ्गलततिं श्रीनेमिसूरिप्रभुः ॥ १० ॥ संसारार्णवपारप्रापणविधौ पोतायमानो नृणामत्युद्भासितभिक्षुभावगरिमा विज्ञाततन्त्रावलिः ।
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
श्रीमन्मगुरुः प्रभूतकरणः सोऽयं सदानन्दनं
दद्यात्सद्गुणशालि चामृतपदं लावण्यसन्मन्दिरम् ॥ ११॥
(स्रग्धरा)
कम्रालङ्काररम्या रुचिरतरपदन्याससौम्या प्रसन्ना नानाश्लेषातिदक्षा स्वमधुरतया कर्णयुग्मापहारी । विस्फूर्जत्स्फीतभावा नवरसहृदया चारुवर्णाभिरामा कान्तेवासौ नवीना भुवि जयतितरां भारती नेमिसूरेः ॥१२॥ (उपजाति:)
यः सर्वदारोचितचित्तवृत्ति-स्तथाप्यदारोचितचित्तवृत्तिः । सिद्धेषु रागान्वितचित्तवृत्तिस्तथापि सिद्धान्तसुचित्तवृत्तिः ॥ १३ ॥ समाश्रितोऽधामतया सदापि श्रितः स्फुरद्धामतया तथापि । सदर्पणो दर्पणारिक्तकोऽपि सनेमिसूरिर्जयताज्जगत्याम् ॥ १४॥ (अनुष्टुप्) वर्णवर्गान्तिमत्त्वेऽपि निजनामावलम्बिनौ |
गुणश्रिया योज्यस्पर्शभावं नयन्ति ये ।। १५ ।।
तेषां श्रीनेमिसूरीणां गुरूणां पादसेवया । नायन्ति किमु दक्षत्वं मादृशा जडशेखराः।।१६॥ लावण्यविजयेनाथ तेषामन्तिषदा मया ।
प्रणुन्नेन कृतः सर्वधातुरूपदिदृक्षुभिः ।। १७ ।। चित्रितश्चित्ररूपैश्च श्रितो हेमादिलक्षणैः । चुराद्यन्तगणैर्गुप्तः प्रक्रियाभिः परिष्कृतः ॥ १८ ॥ दधातु धातुरत्नानामाकरो बहुधातुषम् । अवित्तचित्तवृत्तिषु मयि च स्मृतिमद्भुताम् ॥ १९॥
अस्ताघभवनिर्माणनिपुणकषाय
इह हि तावन्निजनिर्मितामितकर्ममर्मोपनीतच्युतिप्रसूतिपानीयपरिप्लाविते पातालपरिष्कृते विशिष्टभ्रमिसम्पादनप्रौढप्रतापमोहावर्त्तपल्लविते संख्यातीतव्यसनजलचरदुर्ललिते निरन्तरप्रसृत्वराज्ञानानिलेरितसंयोगवियोगादिवीचनिचयोपचिते आधिव्याधिवडवानलकरालिते भीमे भवपाथोधौ निमज्जतां दुःखोद्विग्नमनसां सुखैकलिप्सूनां तनुभृतां तस्मात्सन्तरणैकप्रवणम् उपशमादिसुबन्धनबद्धसम्यग्दर्शनकूपकाभिरामम् अतुलज्ञानमयकर्णधाराध्यासितप्रशस्तदेशं वरसंवरावृतविवरवारं दुस्तपतपोऽनिलाहितपटुतरवेगं महार्घशीलाङ्गरत्नराजि
3
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग विराजितमतिनिपुणायव्ययपूर्वकप्रवर्तनशीलवाचंयमवणिग्वरविभूषितममन्दानन्दसन्दोहनिधाननिर्वाणपुरप्रापणैकप्रवणं चारित्रमयपवित्रप्रवहणमिति सर्वजनसिद्धम्।। ___ एतचारित्रमयपवित्रप्रवहणमपि पदपदार्थज्ञानद्वारोत्पन्नहेयोपादेयज्ञानपूर्वकम्। पदपदार्थज्ञानमपि नयनिक्षेपादिभिरधिगमोपायैः परमार्थतः, व्यवहारतस्तु प्रकृत्यादिभिः।। ताश्च प्रकृतयः पूर्वाचार्यप्रसिद्धा एव सुखग्रहणस्मरणकार्यसंसिद्धये विशिष्टानुबन्धसम्बन्धक्रमा अर्थसहिताः प्रस्तूयन्ते। तत्र यद्यपि नामधातुपदभेदाद् "राजा जयति पूर्वाह्नेतरां पचतितराम्" इत्यादौ त्रेधात्प्रकृतिस्तथापि नामपदरूपं यत्प्रकृतिद्वयं तस्य धातुमूलत्वाद् धातुप्रकृतिरेवैका प्रधानम्। तथा ये शब्दानामव्युत्पत्तिपक्षमाश्रयन्ति तेषामपि व्युत्पत्तिपक्षानुसारेणैव शब्दस्वरूपनिर्णय इति तत्रापि धातुमूलत्वमबाधितमेव। धातुप्रकृतिश्च द्वेधा शुद्धा प्रत्ययान्ता च। शुद्धा 'भू' इत्यादि, प्रत्ययान्ता च "गोपाय कामि ऋतीय जुगुप्स कण्डूय बोभूय बोभू चोरि भावि बुभूष" इत्यादिरूपा। एषा प्रत्ययान्तापि प्रकृतिः शुद्धमूलैवेति शुद्धैवात्रादावुदाह्रियन्ते।
१ भू सत्तायाम्। भू इत्यविभक्तिको निर्देशः। सकारान्तरकारान्तभ्रमापाकरणार्थम्। न च धातुत्वेन नामत्वाभावात्कथं भूः इति प्रयोगः सम्भवेदिति शंक्यम्। नायं धातुरपि तु भवति इत्यादिषु योज्यमानभूधातोरनुकरणं तस्मात्तस्मात्सम्भवति विभक्तिः । न च तर्हि निरुक्तशङ्कोपायान्तरेणापनेया अपि तु सविभक्तिक एव प्रयोगः कर्त्तव्यः, निर्विभक्तिकप्रयोगस्य शिष्टासम्मतत्वादिति वाच्यम्, यदा अनुकार्यानुकरणयोः स्याद्वादाश्रयेणाभेदविवक्षा तदार्थत्त्वाभावान्न भवति नामसंज्ञा इति तत्कल्पे निर्विभक्तिक एव प्रयोगः शिष्टसम्मतो, यदा च भेदविवक्षा तदा अनुकार्येणार्थेनार्थवत्त्वात् नामसंज्ञा भवत्येव इति तत्र पक्षे सविभक्तिक एव प्रयोगः शिष्टसम्मतः। प्रस्तुते च प्रथमकल्पादरणात्सर्वशङ्का निरस्ता।। एवं सर्वत्राप्यूह्यम्। भू इत्येषा प्रकृतिः सत्तायां वर्तते। अभूत् भूत इत्यादौ ऊकारस्य प्रयोगित्वदर्शनात् "अप्रयोगीत्" इति इत्संज्ञा न भवति। एवमन्यत्रापि। वर्णसमाम्नायक्रमेण स्वरान्तव्यञ्जनान्तधातूपदेशप्रतिज्ञानात् “पां पाने'' इत्यादेः प्रथमं निर्देशे प्राप्तेऽपि वृद्धसमयानुवर्तनार्थं प्रथममस्य पाठः। यदाहुर्वृद्धाः- 'भ्वादयः धातवः' इति मङ्गलार्थमपि, यदाह- माङ्गलिकत्वात् प्रथममस्य प्रयोग इति, माङ्गलिकत्वञ्चास्य वृद्धादवसेयम्, एवमदादिगणेष्वपि वृद्धसमयानुवर्तनमदिप्रभृतीनां प्राग्निर्देशे प्रयोजनमभ्यूह्यम्। ननु सत्तेति कोऽर्थ इति चेदुच्यते, सतो भावः सत्ता, अस्तित्वं, द्रव्यधर्मो धात्वर्थसामान्यमिति यावत्। यदाहु:
सा नित्या सा महानात्मा तामाहुस्त्वतलादयः।
प्राप्तक्रमा विशेषेषु क्रिया सैवाभिधीयते॥ तां प्रातिपदिकार्थञ्च धात्वर्थं च प्रचक्षते। इति सेति सत्ता। अपि च-धात्वर्थः केवलः शुद्धो भाव इत्यभिधीयते। तथा यत्रान्यत्क्रियापदं न श्रूयते तत्रास्तीति भवन्तीपरं प्रयोक्तव्यमिति। अत्राह- ननु भुवः सत्तावाचित्वे धातुत्वमनुपपन्नम्। क्रियार्थो हि धातुः, क्रिया च स्पन्दनरूपा। सत्ता तु द्रव्यादिषु सत्सदित्यनुवृत्तप्रत्ययाभिधानलिङ्गा स्पन्दरूपा न भवति। नैष दोषः, यथा "जानाति पश्यति स्मरति श्रद्धते संयुज्यते समवैति वियुज्यते नश्यति श्वेतते" इत्यादीनां ज्ञानदर्शनस्मरणश्रद्धानसंयोगसमवायवियोगाविनाशवर्णादयो द्रव्यगुणा अपरिस्पन्दात्मका अपि
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
आख्यातप्रकृतिवाच्याः सन्तः क्रियाव्यपदेशमर्हन्ति। एवं सत्तापि द्रव्यधर्मो धातुवाच्यतामापाद्यमाना क्रियाव्यपदेशं लप्स्यते। मणिमुकुरकृपाणादिज्ञापकवैचित्र्याचैकरूपस्यापि मुखादेर्नानात्वोपलब्धेर्धातुवाच्यैव सत्ता क्रियात्वमास्कन्दति न प्रातिपदिकवाच्येति नाव्यवस्था।
किञ्च पाकादिक्रियाणां त्रैकाल्याभिव्यञ्जकत्वमुपलब्धं पचति पक्ष्यति अपाक्षीत् जानाति ज्ञास्यति अज्ञासीत् इत्यादि। तच्चेहापि भवति भविष्यति अभूदिति धातुवाच्यायां सत्तायामुपलभ्यमानं क्रियात्वं व्यवस्थापयति। अत एव वृक्ष इत्यादिप्रातिपदिकवाच्यायाः सत्ताया न क्रियात्वम्। एवं स्थिते क्रियावाचित्वमात्रमाख्यातुं सत्तोपात्ता। अर्थान्तराण्यपि अनयोपलक्ष्यन्ते। यदाहुः
निपाताचोपसर्गाश्च धातवश्चेति ते त्रयः।
अनेकार्थाः स्मृताः सर्वे पाठस्तेषां निदर्शनम्।। इति ___ तथा च भूरयं क्वचिदस्त्यर्थे वर्तते। यथा बहूनि धनान्यस्य भवति सन्तीत्यर्थः क्वाप्यभूतप्रादुर्भावे। यथा वचाक्षीरभोजिन्याः श्रुतधरः पुत्रो भवति जायते इत्यर्थः। क्वचिदभूततद्भावाख्ये सम्पद्यर्थे। यथा अशुक्ः शुक्लो भवति सम्पद्यते इत्यर्थः । एवमुपसर्गावशाच धातोरनेकोऽर्थः प्रकाशते। यथा प्रभवतीति स्वाम्यर्थः प्रथमत: उपलम्भश्च। पराभवति परिभवति अभिभवतीति तिरस्कारः। सम्भवतीति जन्मार्थः प्रमाणानतिरेकेण धारणञ्च। अनुभवतीति संवेदनम्। विभवतीति व्याप्तिः। आभवतीति भागागतिः। उद्भवतीति उद्भेदः प्रतिभवतीति लग्नकत्वमिति अथवार्थान्तरेष्वपि क्रिया सामान्यरूपा सत्ताऽनुवर्त्तते एवेति सत्ताया एवोपादानं कृतम्। सत्ताव्यतिरेकीणि ह्यर्थान्तराणि खरविषाणायमानानि स्युः। षड्भावविकारा इति वचनाच भावः सत्तासामान्यरूपा क्रियेत्यवसीयते। यदाहुः-जायते अस्ति विपरिणमते वर्धते अपक्षीयते विनश्यतीति षड् भावविकारा इति। अपि च सर्वेऽपि खलु धातवस्तेन तेनोपाधिना सत्तामेवावच्छिद्यावच्छिद्य विषयीकुर्वन्तीति सा क्रिया सामान्यमित्युच्यते। तथा च "क्रियार्थो धातुः" इति भुवो धातुत्वमित्यलं पल्लवितेन।
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
6
वर्त्तमाना (लट्) Present.
भवति
भवसि
भवामि
सप्तमी (विध्यर्थ) (लिङ्) Potential.
भवेत्
भवेः
भू सत्तायाम्
भवतः
भवथः
भवावः
भवेयम्
पञ्चमी (आज्ञार्थ) (लोट्) Imperative.
भवतु/भवतात् भवताम्
भवः /भवतात्
भवतम्
भवानि / भवतात् भवाव
ह्यस्तनी (लङ्) Imperfect.
अभवत्
अभवः
अभवम्
अद्यतनी (लुङ्) Aorist
भवेताम्
भवेतम्
भवेव
भूयात्
भूयाः
अभवताम्
अभवतम्
अभवाव
अभूत्
अभूः
अभूवम्
परोक्षा (लिट्) Perfect.
बभूव
बभूविथ
बभूव
आशी:- (लिङ्) Benedictive.
अभूताम्
अभूतम्
अभूव
बभूवतुः
बभूवथुः
बभूविव
भूयास्ताम्
भूयास्तम्
भूयास्व
भूयासम्
श्वस्तनी (लुट्) I Future.
भविता
भवितासि
भवितास्मि
भविष्यन्ती (लृट्) Il Future.
भविष्यति
भविष्यसि
भविष्यामि
3
भविष्यतः
भविष्यथः
भविष्यावः
भवन्ति
भवथ
भवामः
भवेयुः
भवेत
भवेम
भवन्तु
भवत
भवाम
अभवन्
अभवत
अभवाम्
अभूवन्
अभूत
अभूम
बभूवुः
बभूव
बभूविम
भवितारौ
भवितारः
भवितास्थः भवितास्थ
भवितास्वः
भवितास्मः
भूयासुः
भूयास्त
भूयास्म
भविष्यन्ति
भविष्यथ
भविष्यामः
क्रियातिपत्ति: (लृङ्) Conditional अभविष्यत् अभविष्यताम् अभविष्यन् अभविष्यः अभविष्यतम् अभविष्यत अभविष्यम्
अभविष्याव अभविष्याम
व० पिबति
पिबसि
पिबामि
स० पिबेत्
पिबेः
पिबेयम्
प० पिबतु / पिबतात्
पिब / पिबतात्
पिबानि
ह्य० अपिबत्
अपिब:
अपिबम्
अ० अपात्
अपा
प०
अपाम्
पपौ
평이
आ० पेयात्
पेयाः
पेयासम्
पाता
पातासि
पातास्मि
भ० पास्यति
पास्यसि
पास्यामि
पपाथ / पपिथ
पौ
क्रि० अपास्यत्
अपास्यः
अपास्यम्
।। अथादन्ताः शडनिटच ॥
२. पां(पा) पाने ।
पिबतः
पिबथः
पिबाव:
पिबेताम्
पिबेतम्
पिबेव
पिबताम्
पिबतम्
पिबाव
अपिबताम्
अपिबतम्
अपिबाव
अपाताम्
अपातम्
अपाव
पपतुः
पपथुः
पपिव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
पेयास्ताम्
पेयास्तम्
पेयास्व
पातारौ
पातास्थः
पातास्वः
पास्यतः
पास्यथः
पास्यावः
अपास्यताम्
अपास्यतम्
अपास्याव
पिबन्ति
पिबथ
पिबामः
पिबेयुः
पिबेत
पिबेम
पिबन्तु
पिबत
पिबाम
अपिबन्
अपिबत
अपिबाम
अपुः
अपात
अपाम
पपुः
पप
पपिम
पेयासुः
पेयास्त
पेयास्म
पातार:
पातास्थ
पातास्मः
पास्यन्ति
पास्यथ
पास्यामः
अपास्यन्
अपास्यत
अपास्याम
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
जि ताम्
धमेः
अ०
३. घ्रां (घ्रा) गन्धोपादाने। व० जिघ्रति जिघ्रतः जिघ्रन्ति जिघ्रसि जिघ्रथः
जिघ्रथ जिघ्रामि जिघ्राव: जिघ्राम: स० जिघ्रत्
जिभ्रेयुः जिघ्रः जि तम् जिनेत
जिनेयम् जि व जिभ्रेम प० जिघ्रतु/जिघ्रतात् जिघ्रताम् जिघ्रन्तु
जिघ्र/जिघ्रतात् जिघ्रतम् जिघ्रत
जिघ्राणि जिघ्राव जिभ्राम ह्य० अजिघ्रत अजिघ्रताम् अजिघ्रन्
अजिघ्रः अजिघ्रतम् अजिघ्रत अजिघ्रम्
अजिघ्राव अजिघ्राम अघ्रात्
अघ्राताम् अधुः अघ्राः अघ्रातम्
अघ्रात अघ्राम् अघ्राव
अघ्राम
तथा अघ्रासीत्
अघ्रासिष्टाम् अघ्रासिषुः अघ्रासी: अघ्रासिष्टम् अघ्रासिष्ट
अघ्रासिषम् अघ्रासिष्व अघ्रासिष्म प० जघ्रौ
जघ्रतुः जघुः जघ्राथ/जघ्रिथ
जघ्र जघ्रौ
जघ्रिव जघ्रिम आ० घेयात्
प्रेयास्ताम्
प्रेयास्तम् घेयास्त घ्रयासम घेयास्व घेयास्म
तथा घ्रायात् घ्रायास्ताम्
घ्रायासुः घ्रायाः घ्रायास्तम् घ्रायास्त घ्रायासम् घ्रायास्व
घ्रायास्म श्व० घ्राता घ्रातारौ घ्रातारः
घ्रातामि घ्रातास्थः घ्रातास्थ
घ्रातास्मि घ्रातास्वः घ्रातास्मः भ० घ्रास्यति घ्रास्यतः घ्रास्यन्ति • घ्रास्यसि घ्रास्यथः घ्रास्यथ
घ्रास्यामि घ्रास्यावः घ्रास्यामः क्रि० अघ्रास्यत् अघ्रास्यताम् अघ्रास्यन्
अघ्रास्यः अघ्रास्यतम् अघ्रास्यत अघ्रास्यम् अघ्रास्याव अघ्रास्याम ४. ध्मां (ध्मा) शब्दाग्निसंयोगयोः।
शब्दे मुखादिना चाग्निसंयोगे। व० धमति
धमतः
धमन्ति धमसि धमथ:
धमथ धमामि धमाव: धमामः स० धमेत् धमेताम् धमेयुः
धमेतम् धमेत धमेयम् धमेव धमेम प० धमतु/धमतात् धमताम्
धमन्तु धम/धमतात् धमतम्
धमत धमानि धमाव
धमाम ह्य० अधमत् अधमताम्
अधमन् अधमः अधमतम् अधमत अधमम्
अधमाव अधमाम अ० अध्मासीत् अध्मासिष्टाम् अध्मासिषुः
अध्मासी: अध्मासिष्टम् अध्मासिष्ट
अध्मासिषम् अध्मासिष्व अध्मासिष्म प० दध्मौ दध्मतुः दध्मुः
दध्माथ/दधिमथ दध्मथुः दध्म दध्मौ
दध्मिम आ० ध्येयात्
ध्मेयास्ताम्
ध्येयास्तम् ध्मेयासम् ध्येयास्व ध्मेयास्म
तथा
जघ्रथुः
दध्मिव
घेयासुः
घेयाः
ध्येयासुः ध्मेयास्त
ध्येयाः
ध्मायात्
ध्मायासुः
ध्मायाः
ध्मायास्त
ध्मायासम्
ध्मायास्ताम् ध्मायास्तम् ध्मायास्व ध्मातारौ ध्मातास्थ:
ध्मायास्म
श्व० ध्माता
ध्मातासि
ध्मातास्मि भ० ध्मास्यति
ध्मास्यसि ध्मास्यामि
ध्मातारः ध्मातास्थ ध्मातास्मः ध्मास्यन्ति
ध्मातास्वः
ध्मास्यतः
ध्मास्यथ
ध्मास्यथः ध्मास्याव:
ध्मास्यामः
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
8
क्रि० अध्मास्यत्
अध्मास्यः
अध्मास्यम्
व० तिष्ठति
तिष्ठसि
तिष्ठामि
अध्मास्यताम्
अध्मास्यन्
अध्मास्यतम् अध्मास्यत
अध्मास्याम
तस्थौ
आ० स्थेयात्
स्थेया:
स्थेयासम्
अध्मास्याव
५. ष्ठां (ष्ठा) गतिनिवृत्तौ ।
तिष्ठतः
स० तिष्ठेत
तिष्ठे:
तिष्ठेयम्
प० तिष्ठतु / तिष्ठतात् तिष्ठताम्
तिष्ठ/ तिष्ठतात् तिष्ठतम्
तिष्ठानि
तिष्ठाव
ह्य० अतिष्ठत्
अतिष्ठः
अतिष्ठम्
अ० अध्यष्ठात्
अध्यष्ठाः
अभ्यष्ठाम्
श्व० स्थाता
तिष्ठन्ति
तिष्ठथ
तिष्ठामः
तिष्ठेयुः
तिष्ठेत
तिष्ठेम
तिष्ठन्तु
तिष्ठत
तिष्ठाम
अतिष्ठताम्
अतिष्ठन्
अतिष्ठतम् अतिष्ठत
अतिष्ठाव
अतिष्ठाम
अध्यष्ठाताम् अध्यदुः
अध्यष्ठातम्
अध्यष्ठात
अध्यष्ठाव
अध्यष्ठाम
तथा
अस्थात्
अस्थाताम्
अस्था:
अस्थातम्
अस्थाम्
अस्थाव
प० अधितष्ठौ / तस्थौ तस्थतुः
तिष्ठथः
तिष्ठावः
तिष्ठेताम्
तिष्ठेतम्
तिष्ठेव
तस्थाथ/तस्थिथ तस्थथुः
तस्थिव
अस्थुः
अस्थात
अस्थाम
तस्थुः
तस्थ
तस्थिम
स्थेयास्ताम् स्थेयासुः
स्थेयास्तम् स्थेयास्त
स्थेयास्व
स्थेयास्म
स्थातारी
स्थातासि
स्थातास्थः
स्थातास्मि
स्थातास्वः
भ० स्थास्यति स्थास्यतः
स्थास्यसि
स्थास्यथः
स्थातार:
स्थातास्थ
स्थातास्मः
स्थास्यन्ति
स्थास्यथ
स्थास्यामि
क्रि० अस्थास्यत्
अस्थास्यः
अस्थास्यम्
व० मनति
मनसि
मनामि
स० [मनेत्
मनेः
मनेयम्
प० मनतु / मनतात्
मन/मनतात्
मनानि
ह्य० अमनत्
अमनः
अमनतम्
अ० अम्नासीत्
अम्नासी:
अम्नासिषम्
प० मम्नौ
왕이
स्थास्यावः
स्थास्यामः
अस्थास्यताम् अस्थास्यन्
अस्थास्यतम्
अस्थास्यत
अस्थास्याव
अस्थास्याम
६. मां (म्ना) अभ्यासे ।
म्नायात्
म्नाया:
मनायासम्
मनाता
म्नातासि
म्नातास्मि
मनतः
मनर्थः
मनाव:
मनेताम्
मनेतम्
मनेव
मम्नतुः
मम्नाथ / मनिथ मम्नथुः
मम्नौ
मम्निव
आ० म्नेयात्
म्नेयाः
म्नेयासम्
मनताम्
मनतम्
मनाव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
नेवास्ताम्
म्नेयास्तम्
म्नेयास्व
अमनताम्
अमनतम्
अमनाव
अमनाम
अम्नासिष्टाम्
अम्नासिषुः
अम्नासिष्टम् अम्नासिष्ट
अम्नासिष्व
अम्नासिष्म
तथा
म्नायास्ताम्
म्नायास्तम्
म्नायास्व
नातारौ
म्नातास्थः
म्नातास्वः
मनन्ति
मनथ
मनामः
मनेयुः
मनेत
मनेम
मनन्तु
मनत
मनाम
अमनन्
अमनत
मम्नुः
मम्न
मम्निम
म्नेयासुः
म्नेयास्त
म्नेयास्म
म्नायासुः
म्नायास्त
म्नायास्म
म्नातार:
म्नातास्थ
म्नातास्मः
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
जये:
भ० म्नास्यति म्नास्यत: म्नास्यन्ति
म्नास्यसि म्नास्यथ: म्नास्यथ
म्नास्यामि म्नास्याव: म्नास्यामः क्रि० अम्नास्यत् अम्नास्यताम् अम्नास्यन्
अम्नास्यः अम्नास्यतम् अम्नास्यत अम्नास्यम् अम्नास्याव अम्नास्याम
७. दां(दा) दाने। व० यच्छति यच्छतः यच्छन्ति
यच्छसि यच्छथः यच्छथ यच्छामि यच्छावः
यच्छामः स० यच्छेत् यच्छेताम्
यच्छेयुः यच्छेः यच्छेतम् यच्छेत
यच्छेयम् यच्छेव यच्छेम प० यच्छतु/यच्छतात् यच्छताम्
यच्छन्तु यच्छ/यच्छतात् यच्छतम्
यच्छत यच्छानि यच्छाव यच्छाम ह्य० अयच्छत् अयच्छताम् अयच्छन्
अयच्छ: अयच्छतम् अयच्छत अयच्छम् अयच्छाव
अयच्छाम अ० अदात् अदाताम् अदाः
अदातम् अदाव
अदाम प० ददौ
ददतुः ददाथ/ददिथ ददथुः ___ददौ
ददिम आ० देयात् देयास्ताम्
देयास्तम् देयासम् देयास्व
देयास्म श्व० दाता
दातारौ
दातार: दातासि
दातास्थ: दातास्थ दातास्मि दातास्वः
दातास्मः भ० दास्यति दास्यत:
दास्यन्ति
दास्यसि दास्यथः दास्यथ दास्यामि दास्याव:
दास्यामः क्रि० अदास्यत् अदास्यताम् अदास्यन्
अदास्यः अदास्यतम् अदास्यत अदास्यम् अदास्याव अदास्याम
८. जिं(जि) अभिभवे। व० जयति जयत:
जयन्ति जयसि जयथ:
जयथ जयामि जयाव:
जयामः स० जयेत्
जयेताम् जयेयुः
जयेतम् जयेत जयेयम् जयेव
जयेम प० जयतु/जयतात् जयताम् जयन्तु जय/जयतात् जयतम्
जयत जयानि जयाव
जयाम ह्य० अजयत्
अजयताम् अजयन् अजयः अजयतम् अजयत
अजयम् अजयाव अजयाम अ० अजैषीत् अजैष्टाम् अजैषुः अजैषीः
अजैष्ट
अजैष्व अजैष्म प० जिगाय जिग्यतुः
जिग्युः जिगयिथ/जिगेथ जिग्यथुः जिग्य
जिगाय/जिगय जिग्यिव जिग्यिम आ० जीयात् जीयास्ताम्
जीयाः जीयास्तम् जीयास्त जीयासम् जीयास्व
जीयास्म श्व० जेता
जेतारौ
जेतारः जेतासि जेतास्थ: जेतास्थ
जेतास्मि जेतास्वः जेतास्मः भ० जेष्यति
जेष्यतः
जेष्यन्ति जेष्यसि
जेष्यथ जेष्यामि जेष्याव: जेष्यामः
अजैष्टम्
अदुः अदात
अजैषम्
अदाम्
दद
ददिव
जीयासुः
देयासुः देयास्त
देयाः
जेष्यथ:
Jairt Education International
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
10
क्रि० अजेष्यत्
अजेष्यः
अजेष्यम्
व०
प०
क्षयति
क्षयसि
क्षयामि
० क्षत्
क्षयेः
क्षयेयम्
क्षयतु / क्षयतात्
क्षय/क्षयतात्
क्षयाणि
ह्य० अक्षयत्
अक्षयः
अक्षयम्
अ० अक्षैषीत्
अक्षैषीः
अक्षैषम्
चिक्षाय
प०
आ० क्षीयात्
क्षीयाः
go
क्षीयासम्
क्षेता
क्षेतासि
क्षेतास्मि
भ० क्षेष्यति
क्षेष्यसि
जेम्
अजेष्यतम्
अजेष्याव
९. जिं (जि) अभिभवे ।
(उपरिवत्)
१०. क्षि (क्षि) क्षये ।
क्षयतः
क्षयथ:
क्षयाव:
क्षताम्
क्षतम्
क्षयेव
क्षयताम्
क्षयतम्
क्षयाव
चिक्षियतुः
चिक्षयिथ/चिक्षेr चिक्षियथुः
चिक्षाय /चिक्षय चिक्षियिव
अक्षयताम्
अक्षयतम्
अक्षयाव
अक्षैष्टाम्
क्षैष्टम्
अक्षैष्व
अजेष्यन्
अजेष्यत
अजेष्याम
क्षीयास्ताम्
क्षीयास्तम्
क्षीयास्व
क्षेतारौ
क्षेतास्थः
क्षेतास्वः
क्षेष्यतः
क्षेष्यथः
क्षयन्ति
क्षयथ
क्षयामः
क्षयेयुः
क्षयेत
क्षयेम
क्षयन्तु
क्षयत
क्षयाम
अक्षयन्
अक्षयत
अक्षयाम
अक्षैषुः
अक्षैष्ट
अक्षैष्म
चिक्षियुः
चिक्षय
चिक्षियिम
क्षीयासुः
क्षीयास्त
क्षीयास्म
क्षेतारः
क्षेतास्थ
क्षेतास्मः
क्षेष्यन्ति
क्षेष्यथ
क्षेष्यामि
क्रि० अक्षेष्यत्
अक्षेष्यः
अक्षेष्यम्
अयति
अयसि
अयामि
स० अयेत्
अयेः
व०
प०
ह्य० आयत्
आय:
अम्
अयतु / अयतात्
अय/ अयतात्
अयानि
प०
अ० ऐषीत्
ऐषी:
ऐषम
आयम्
श्व०
इयाय
इययिथ /इयेथ
इयाय / इयय
आ० ईयात्
ईयाः
ईयासम्
एता
एतासि
एतास्मि
भ० एष्यति
एष्यसि
एष्यामि
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
क्षेष्यामः
अक्षेष्यन्
क्षेम् अक्षेष्यत
अक्षेष्याव
अक्षेष्याम
११ इं (इ) गतौ।
अयतः
अयथः
अयावः
अयेताम्
अम्
अयेव
क्षेष्यावः
अक्षेष्यताम्
अयताम्
अयतम्
अयाव
आयताम्
आयतम्
आयाव
ऐष्टाम्
ऐष्टम्
ऐष्व
इयतुः
इयथुः
इयिव
ईयास्ताम्
ईयास्तम्
ईयास्व
एतास्थः
एतास्वः
एष्यतः
एष्यथः
एष्यावः
अयन्ति
अयथ
अयामः
अयेयुः
अयेत
अयेम
अयन्तु
अयत
अयाम
आयन्
आयत
आयाम
ऐषुः
ऐष्ट
ऐष्म
इयुः
इय
इयिम
ईयासुः
ईयास्त
ईयास्म
एतार:
एतास्थ
एतास्मः
एष्यन्ति
एष्यथ
एष्यामः
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
क्रि० ऐष्यत्
ऐष्यः ऐष्यम्
ऐष्यन् ऐष्यत
ऐष्यताम् ऐष्यतम् ऐष्याव ऐष्याम १२. दुं(दु) गतौ। दवतः
दवन्ति दवथः
दवथ दवाव:
दवाम: दवेताम्
स्रवेयुः
व० दवति
दवसि
दवामि स० दवेत्
दवेयुः दवेत
दवः
दवेतम् दवेव
दवेम
दवन्तु
दवत दवाम
दवानि
दवेयम् प० दवतु/दवतात् दवताम् दव/दवतात् दवतम्
दवाव ह्य० अदवत् अदवताम्
अदवः अदवतम् अदवम् अदवाव अदौषीत् अदौष्टाम अदौषीः अदौष्टम् अदौषम् अदौष्व दुदाव दुदुवतुः दुदविथ/दुदोथ दुदुवथुः
दुदाव/दुदव दुदुविव आ० दूयात् दूयास्ताम्
दूयाः दूयास्तम्
दूयासम् श्व० दोता दोतारौ
दोतासि
दोतास्मि दोतास्वः भ० दोष्यति दोष्यतः
दोष्यसि दोष्यथ:
दोष्यामि दोष्याव: क्रि० अदोष्यत्
अदोष्यताम् अदोष्यः अदोष्यतम् अदोष्यम् अदोष्याव
सुस्रोथ
१३. दूं(दु) गतौ।/१४. शुं(शु) गतौ। (उपरिवत्)
१५ (सु) गतौ। | व० स्रवति स्रवत:
स्रवन्ति स्रवसि स्रवथः
स्त्रवथ स्रवामि स्रवाव:
स्रवामः स० स्रवेत् स्रवेताम्
स्रवेः स्रवेतम् स्रवेत स्रवेयम् स्रवेव
स्रवेम प० स्रवतु/स्रवतात् स्रवताम् स्रवन्तु सव/स्रवतात् स्रवतम्
स्रवत सवाणि सवाव
स्वाम ह्य० अस्रवत् अस्रवताम् अत्रवन् अस्रवः
अस्रवतम् अस्रवत अस्रवम् अस्त्रवाव
अस्रवाम अ० असुनुवत् असुस्रुवताम् असुस्रुवन्
असुस्रुषः असुलुवतम् असुस्रुवत
असुस्रुवम् असुस्रुवाव असुस्रुवाम प० सुस्राव सुस्रुवतुः सुस्रुवुः
सुस्रुवथुः सुस्रुव सुस्राव/सुत्रव सुस्रुव
सुस्रुम आ० स्रयात् सूयास्ताम् खूयासुः
स्रयाः सूयास्तम् सूयास्त सूयासम्
खूयास्म श्व० स्रोता स्रोतारौ स्रोतारः
स्रोतासि स्रोतास्थ: स्रोतास्थ
स्रोतास्मि स्रोतास्वः स्रोतास्मः भ० स्रोष्यति स्रोष्यतः स्रोष्यन्ति
स्रोष्यसि स्रोष्यथः स्रोष्यथ
स्रोष्यामि स्रोष्याव: स्रोष्यामः क्रि० अस्रोष्यत् अस्रोष्यताम् अस्रोष्यन् अस्रोष्यः अस्रोष्यतम्
अस्रोष्यत अस्रोष्यम् अस्रोष्याव अस्रोष्याम
अदवन् अदवत अदवाम अदौषुः अदौष्ट अदौष्म दुदुवुः दुदुव दुदुविम दूयासुः दूयास्त दूयास्म दोतारः दोतास्थ दोतास्मः दोष्यन्ति दोष्यथ दोष्यामः अदोष्यन् अदोष्यत अदोष्याम
सूयास्व
दूयास्व
दोतास्थ:
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
12
ध्रुवति
ध्रुवसि
श्रवामि
स० श्रवेत्
श्रवेः
ध्रुवेम्
ਕਰ
प०
ध्रुवतु / ध्रुवतात्
ध्रुव / ध्रुवतात्
श्रवाणि
अध्रवत्
अध्रुवः
अभ्रवम्
अ० अधौषीत्
अश्रौषीः
अधौम्
ह्य०
प०
१६. ध्रु स्थैर्ये च ।
चकाराद् गतौ, गत्यर्थः कुटादिरयमित्यन्ये ।
ध्रुवत:
ध्रुवन्ति
ध्रवथः
ध्रवथ
ध्रुवावः
ध्रवामः
श्रवेताम्
ध्रुवेयुः
ध्रवेतम्
ध्रुवेत
ध्रुवेव
श्रवेम
웜이
आ० श्रूयात्
श्रूयाः
भ०
श्रूयासम्
श्रोता
श्रोतासि
श्रोतास्मि
श्रोष्यति
ध्रोष्यसि
श्रोष्यामि
क्रि० अध्रोष्यत्
अध्रोष्यः
अध्रोष्यम्
दुध्रुवतुः
दुध्रुवुः
दुधाव दुधविध/दुध्रोथ दुध्रुवथुः दुध्रुव दुध्रुविव दुध्रुविम
दुधाव / दुधव
धूयासुः
धूयास्त
ध्रुवताम्
ध्रुवतम्
ध्रुवाव
अध्र्वताम्
अध्रवतम्
अध्रुवाव
अष्टम्
अष्टम्
अध्रौष्व
धूयास्ताम्
धूयास्तम्
धूयास्व
धोतारौ
ध्रुवन्तु
ध्रुवत
ध्रवाम
अध्रवन्
अध्रवत
अध्रवाम
अधौषुः
अध्रौष्ट
अध्रौष्म
धूयास्म
श्रोतार:
श्रोतास्थः
श्रोतास्थ
ध्रोतास्वः श्रोतास्मः
ध्रोष्यतः
ध्रोष्यन्ति
श्रोष्यथः
ध्रोष्यथ
श्रोष्याव:
श्रोष्यामः
अम् अध्रोष्यन्
अध्रोष्यत
अध्रोष्याम
अम्
अध्रोष्याव
व० सवति
सवसि
सवामि
स० सवेत्
सवे:
सवेयम्
प० सवतु/सवतात् सवताम्
सवतम्
सवाव
ह्य० असवत्
असवः
सव / सवतात्
सवानि
असवम्
अ० असावीत्
असावी:
असाविषम्
क्रियारत्नस०
प०
सौषीत्
असौषीः
सौम्
सुसाव
आ० सूयात्
सूया:
सूयासम्
श्व० सोता
सुसुवतुः
सुसविथ/सुसोथ सुसुवथुः
सुसाव / सुसव सुसुविव
सोतासि
सोतास्मि
भ० सोष्यति
सोसि
सोष्यामि
१७. सुं (सु) प्रसवैश्वर्ययोः ।
सवतः
सवथ:
सवाव:
सवेताम्
सवेतम्
सवेव
क्रि० असोष्यत्
असोष्यः
सोम्
असवताम्
असवतम्
असवाव
असौष्टाम्
असौष्टम्
असौष्व
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
असवाम
असाविष्टाम्
असाविषुः
असाविष्टम् असाविष्ट
असाविष्व
असाविष्म
सूयास्ताम्
सूयास्तम्
सूयास्व
सोतारौ
सवन्ति
सवथ
सवामः
सवेयुः
सवेत
सवेम
सोतास्थः
सोतास्वः
सोष्यतः
सोष्यथः
सोष्यावः
सवन्तु
सवत
सवाम
असवन्
असवत
असौषुः
असौष्ट
असौष्म
सुसुवुः
सुसुव
सुवि
सूयासुः
सूयास्त
सूयास्म
सोतार:
सोतास्थ
सोतास्मः
सोष्यन्ति
सोष्यथ
सोष्यामः
असोष्यताम्
असोष्यन्
असोष्यतम् असोष्यत
असोष्याव
असोष्याम
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
गराव:
गरेताम्
गरेयुः
१८. स्पॅ(स्मृ) चिन्तायाम्। व० स्मरति
स्मरत:
स्मरन्ति स्मरसि स्मरथः
स्मरथ स्मरामि स्मराव:
स्मराम: स० स्मरेत् स्मरेताम् स्मरेयुः
स्मरेः स्मरेतम् स्मरेत स्मरेयम्
स्मरेम प० स्मरतु/स्मरतात् स्मरताम्
स्मरन्तु • स्मर/स्मरतात् स्मरतम् स्मरत स्मराणि स्मराव
स्मराम
गरेतम्
स्मरेव
गरेव
गरेयम्
ह्य० अस्मरत्
अस्मरताम्
अस्मरन् अस्मरत
अस्मराम
अस्माषुः अस्मार्ट
अस्मार्म
१९. गू(ग) सेचने। व० गरति
गरत:
गरन्ति गरसि गरथः
गरथ गरामि
गरामः स० गरेत् गरेः
गरेत
गरेम प० गरतु/गरतात् गरताम्
गरन्तु गर/गरतात् गरतम्
गरत गराणि गराव
गराम ह्य० अगरत् अगरताम् अगरन्
अगरः अगरतम् अगरत
अगरम् अगराव अगराम अ० अगार्षीत् अगाष्र्टाम्
अगाएः अगार्षीः अगाष्टम्
अगाट अगार्षम् अगाल अगाह्म प० जगार
जग्रु जगर्थ जग्रथुः जग्र
जगार/जगर जग्रिव जग्रिम आ० ग्रियात्
ग्रियास्ताम्
ग्रियासुः ग्रिया:
ग्रियास्त ग्रियासम्
ग्रियास्व ग्रियास्म श्व० गर्ता
गर्तारौ
गर्तारः गर्तासि गर्तास्थः गर्तास्थ
गर्तास्मि गर्तास्वः गस्मिः भ० गरिष्यति गरिष्यतः गरिष्यन्ति
गरिष्यसि गरिष्यथ: गरिष्यथ
गरिष्यामि गरिष्याव: गरिष्यामः क्रि० अगरिष्यत् अगरिष्यताम् अगरिष्यन्
अगरिष्यः अगरिष्यतम् अगरिष्यत अगरिष्यम् अगरिष्याव अगरिष्याम
२०. (घृ) सेचने।
(उपरिवत्)
जग्रतुः
अस्मरः अस्मरतम्
अस्मरम् अस्मराव अ० अस्मार्षीत् अस्मार्टाम्
अस्मार्षीः अस्माष्टम्
अस्मार्षम् अस्मा@ प० सस्मार सस्मरतुः । सस्मर्थ
सस्मरथुः सस्मार/सस्मर सस्मरिव आ० स्मर्यात् स्मर्यास्ताम् स्मर्याः
स्मर्यास्तम् स्मर्यासम् स्मर्यास्व श्व० स्मर्त्ता स्मर्तारौ
स्मर्त्तासि स्मस्थि:
स्मर्त्तास्मि स्मर्त्तास्वः भ० स्मरिष्यति स्मरिष्यतः
स्मरिष्यसि स्मरिष्यथ:
स्मरिष्यामि स्मरिष्याव: क्रि० अस्मरिष्यत् अस्मरिष्यताम्
अस्मरिष्यः अस्मरिष्यतम् अस्मरिष्यम् अस्मरिष्याव:
ग्रियास्तम्
सस्मरुः सस्मर सस्मरिम स्मर्यासुः स्मर्यास्त स्मर्यास्म स्मर्तारः स्मर्तास्थ स्मर्त्तास्मः स्मरिष्यन्ति स्मरिष्यथ स्मरिष्यामः अस्मरिष्यन् अस्मरिष्यत अस्मरिष्यामः
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
14
व०
प०
स० स्वरेत्
स्वरे:
स्वरेयम्
ह्य०
प०
स्वरति
स्वरसि
स्वरामि
이
भ०
स्वरतु / स्वरतात्
स्वर / स्वरतात्
स्वराणि
अस्वरम्
अ० अस्वारीत्
अस्वारी:
अस्वरत्
अस्वर:
२१. औस्व शब्दोपतापयोः ।
सस्वार
सस्वरिथ
आ० स्वर्यात्
स्वर्याः
सस्वार/ सस्वर
अस्वरताम्
अस्वरतम्
अस्वराव
अस्वराम
अस्वारिष्टाम् अस्वारिषुः
अस्वारिष्टम्
अस्वारिष्ट
अस्वारिषम् अस्वारिष्व
अस्वारिष्म
अस्वार्षीत्
अस्वाम्
अस्वार्षुः
अस्वार्षीः अस्वार्ष्टम्
अस्वार्ष्ट
अस्वार्षम्
अस्वार्श्व
अस्वा
सस्वरुः
सस्वर
सस्वरिम
स्वर्यासुः
स्वर्यास्त
स्वरतः
स्वरथ:
स्वराव:
स्वरेताम्
स्वरेतम्
स्वरेव
स्वरताम्
स्वरतम्
स्वराव
स्वरन्ति
स्वरथ
सस्वरतुः
सस्वरथुः
सस्वरिव
स्वरामः
स्वरेयुः
स्वरेत
स्वरेम
स्वर्यास्ताम्
स्वर्यास्तम्
स्वर्यासम्
स्वर्यास्व
स्वर्यास्म
स्वर्त्ता
स्वर्त्तारौ
स्वर्त्तारः
स्वर्त्तासि
स्वर्त्तास्थः
स्वर्त्तास्थ
स्वर्त्तास्मि
स्वर्त्तास्वः
स्वर्त्तास्मः
स्वरितारौ स्वरितारः
स्वरिता स्वरितासि स्वरितास्थः स्वरितास्थ स्वरितास्मि स्वरितास्वः स्वरितास्मः स्वरिष्यति स्वरिष्यतः स्वरिष्यन्ति स्वरिष्यसि स्वरिष्यथः स्वरिष्यथ स्वरिष्यामि स्वरिष्यावः स्वरिष्यामः क्रि० अस्वरिष्यत् अस्वरिष्यताम् अस्वरिष्यन् अस्वरिष्यः अस्वरिष्यतम् अस्वरिष्यत
अस्वरिष्यम्
अस्वरिष्याव
अस्वरिष्याम
स्वरन्तु
स्वरत
स्वराम
अस्वरन्
अस्वरत
व० द्वरति
रसि
द्वरामि
स० द्वरेत्
द्वरे:
द्वयम्
२२. वृं (वृ) वरणम्। वरणं स्थगनम्।
द्वरतः
द्वरन्ति
द्वरथः
द्वरथ
द्वराव :
द्वराम:
द्वताम्
द्वरेयुः
तम्
द्वत
म
प०
द्वरतु/द्वरतात्
द्वर/द्वरतात्
द्वराणि
ह्य० अद्वरत्
अद्वरः
अद्वरम्
अ० अद्वार्षीत्
अद्वार्षीः
अम्
दद्वार
द्व
दद्वार/दद्वर
प०
आ० द्वर्यात्
द्वर्याः
द्वर्यासम्
श्व० द्वर्त्ता
द्वर्त्तासि
द्वर्त्तास्मि
भ० द्वरिष्यति
द्वरिष्यसि
द्वरिष्यामि
क्रि० अद्वरिष्यत्
अद्वारिष्यः
अद्वरिष्यम्
द्वरताम्
द्वरतम्
द्वराव
अद्वरताम्
अद्वरतम्
अद्वराव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अद्वाम्
अद्वाष्टम्
अद्वा
दद्वरतुः
दद्वरथुः
दद्वरिव
द्वर्यास्ताम्
द्वर्यास्तम्
द्वर्यास्व
द्वर्त्तारौ
द्वरन्तु
द्वरत
द्वराम
अद्वरन्
अद्वरत
अद्वराम
अद्वार्षुः
अद्वाट
अद्वा
दद्वरु:
दद्वर
दरम
द्वर्यासुः
द्वर्यास्त
द्वर्यास्म
द्वर्त्तारः
द्वर्त्तास्थ
द्वर्त्तास्मः
द्वर्त्तास्थः
द्वर्त्तास्वः
द्वारिष्यतः
द्वारिष्यथः
द्वरिष्यथ
द्वरिष्यावः
वरिष्यामः
अद्वरिष्यताम् अरिष्यन्
अद्वरिष्यतम् अद्वरिष्यत
अद्वरिष्याव
अद्वरिष्याम
रिष्यन्ति
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
व०
ध्वरति
स० [ध्वरेत्
प०
ह्य० अध्वरत्
अ० अध्वार्षीत्
प० दध्वार
आ० ध्वर्यात् श्व० ध्वर्त्ता
व० हरति
स० [ह्वरेत्
प०
ह्वरतु / हरतात्
अह्वरत्
अ० अह्नार्षीत्
*
ध्वरतु/ ध्वरतात् ध्वरताम्
अध्वरताम्
अध्वाम्
ह्य
दध्वरतुः
ध्वर्यास्ताम्
ध्वर्त्तारौ
भ० ध्वरिष्यति
ध्वरिष्यतः
क्रि० अध्वरिष्यत् अध्वरिष्यताम् २४. हवं (हवृ) कौटिल्ये
प० जह्वार
आ० ह्वर्यात् व० हर्त्ता
भ० हरिष्यति
क्रि० अह्वारिष्यत्
व० सरति
सरसि
सरामि
·
२३. ध्वं (ध्वृ) कौटिल्ये ।
स० सरेत्
सरे:
सरेयम्
प० सरतु / सरतात्
ह्य०
ध्वरतः
ध्वरेताम्
असरत्
असर:
असरम्
ह्वरत:
ह्वरेताम्
हरताम्
अह्वरताम्
अह्वाम्
जह्वरतुः
ह्वर्यास्ताम्
ह्वर्त्तारौ
हरिष्यतः
अह्वरिष्यताम्
२५. सृ (सृ गतौ।
सरत:
सरथः
सरावः
सरताम्
सर/सरतात् सरतम् सरत
सराणि
सराव
असरताम्
असरतम्
असराव
सरेताम्
सम्
सरेव
ध्वरन्ति
ध्वरेयुः
ध्वरन्तु
अध्वरन्
अध्वार्षुः
दध्वरुः
ध्वर्यासुः
ध्वर्त्तारः
ध्वरिष्यन्ति
अध्वरिष्यन्
हरन्ति
ह्वरेयुः
ह्वरन्तु
अह्वरन्
अह्वार्षुः
जह्वरु:
ह्वर्यासुः
ह्वर्त्तारः
हरिष्यन्ति
अह्नरिष्यन्
सरन्ति
सरथ
सरामः
सरेयुः
सरेत
सरेम
सरन्तु
सराम
असरन्
असरत
असराम
अ० असार्षीत्
असार्षीः
असाम्
असरत्
असर:
प०
आ० स्त्रियात्
स्त्रियाः
स्त्रियासम्
असरम्
ससार
ससर्थ
श्व० सर्त्ता
भ०
ससार / ससर
सर्त्तासि
सर्त्तास्मि
सरिष्यति
सरिष्यसि
सरिष्यामि
क्रि० असरिष्यत्
असरिष्यः
असरिष्यम्
व०
प०
ऋच्छति
ऋच्छसि
ऋच्छामि
स० ऋच्छेत्
असाम्
असाष्टम्
असा
ऋच्छानि
ह्य आर्च्छत्
आर्च्छः
आर्च्छम्
असरताम्
असरतम्
असराव
ऋच्छतु/ऋच्छतात् ऋच्छताम्
ऋच्छ/ऋच्छतात् ऋच्छतम्
असार्षुः
असाट
असा
असरन्
असरत
सस्रतुः
सत्रथुः
ससृव
ससृम
स्त्रियास्ताम्
स्त्रियासुः
स्त्रियास्तम् स्त्रियास्त
स्त्रियास्व
सर्त्तारौ
सर्त्तास्थः
सर्त्तास्वः
सरिष्यतः
सरिष्यथः
सरिष्यावः
२६. ऋ (ऋ) प्रापणे च ।
चकाराद् गतौ।
ऋच्छतः
ऋच्छथः
ऋच्छावः
ऋच्छेताम्
ऋच्छेतम्
ऋऋच्छेः ऋच्छेयम् ऋच्छेव
असराम
ऋच्छाव
आर्च्छताम्
आर्च्छतम्
आच्छव
स्त्रियास्म
सर्त्तारः
सर्त्तास्थ
सर्त्तास्मः
सरिष्यन्ति
सरिष्यथ
सरिष्यामः
असरिष्यताम् असरिष्यन्
असरिष्यतम् असरिष्यत
असरिष्याव
असरिष्याम
सस्रुः
सस्र
ऋच्छन्ति
ऋच्छथ
ऋच्छामः
ऋच्छेयुः
ऋच्छेत
ऋच्छेम
ऋच्छन्तु
ऋच्छत
ऋच्छाम
आर्च्छन्
आर्च्छत
आच्छम
15
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
16
अ० आरत्
आर:
आरम्
प०
श्र०
आर
आ० अर्यात्
अर्याः
अर्यासम्
अर्त्ता
अर्त्तासि
अर्त्तास्मि
अरिष्यति
अरिष्यसि
अरिष्यामि
क्रि० आरिष्यत्
आरिष्यः
आरम्
भ०
व०
आर्षीत्
आर्षोः
आर्षम्
प०
आर
आरिथ
ह्य०
स० तरेत्
तरे:
तरेयम्
तरति
तरसि
तरामि
आरताम्
आरतम्
आराव
तथा
आम्
आष्टम्
आ
आरतुः
आरथुः
आरिव
अर्यास्ताम्
अर्यास्तम्
अर्यास्व
अर्त्तारौ
अर्त्तास्थः
अर्त्तास्वः
अरिष्यतः
अरिष्यथः
अरिष्यावः
आरिष्यताम्
आरिष्यतम्
आरिष्याव
तरतु/तरतात् तरताम्
तर/तरतात्
तरानि
अतरत्
आरन्
आरत
आराम
अथ ऋकारान्तः सेट् च ।
२७. तृ प्लवनतरणयोः ।
प्लवनं मज्जनम्, तरणमुल्लङ्घनम् ।
तरतः
तरन्ति
तरथः
तरथ
तराव:
तराम:
तरेताम्
तरेयुः
तरेतम्
तरेव
आर्षुः
आष्ट
आष्
आरुः
आर
आरिम
अर्यासुः
अर्यास्त
अर्यास्म
अर्त्तारः
अर्त्तास्थ
अर्त्तास्मः
अरिष्यन्ति
अरिष्यथ
अरिष्यामः
आरिष्यन्
आरिष्यत
आरिष्याम
तरतम्
तराव
अतरताम्
तरेत
तरेम
तरन्तु
तरत
तराम
अतरन्
अतरः
अतरम्
अ० अतारीत्
अतारी:
अतारिषम्
प०
० तर्यात्
तीर्याः
ततार
तेरिथ
व०
ततार/ततर
श्व० तरीता
०
तरीतासि
तरीतास्मि
भ० तरीष्यति
तरीष्यसि
तरीष्यामि
क्रि० अतरीष्यत्
अतरीष्यः
अतरीष्यम्
प०
तीर्यासम्
धयति
धयसि
धयामि
धयेः
धयेयम्
धयतु / धयतात्
धय/धयतात् धयानि
ह्य० अधयत्
अधयः
अधयम्
अतरतम्
अतराव
अतरत
अतराम
अतारिष्टाम् अतारिषुः
अतारिष्टम् अतारिष्ट
अतारिष्व
अतारिष्म
तेरतुः
तेरथुः
तेरिव
तेरु:
तेर
तेरिम
तीर्यासुः
तीर्यास्त
तीर्यास्म
तरीतार:
तरीतास्थः
तरीतास्थ
तरीतास्वः
तरीतास्मः १
तरीष्यतः
तरीष्यन्ति
तरीष्यथः
तरीष्यथ
तरीष्यावः
तरीष्यामः
अतरीष्यताम्
अतरीष्यन्
अतष्यतम् अतरीष्यत
अतरीष्याव
अतरीष्याम
तीर्यास्ताम्
तीर्यास्तम्
तीर्याव
तरीतारौ
॥ अथ एकारान्तोऽनिट् च ॥
२८. धें (धे) पाने।
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
धयतः
धयथ:
धयाव:
धयेताम्
धयेतम्
धयेव
धयताम्
धयतम्
धयाव
अधयताम्
अधयतम्
अधयाव
धयन्ति
धयथ
धयामः
धयेयुः
धयेत
धयेम
धयन्तु
धयत
धयाम
अधयन्
अधयत
अधयाम
१. तरिता तरितारौ तरितारः / तरिष्यति तरिष्यतः तरिष्यन्ति / अतरिष्यत्
अतरिष्यताम् अतरिष्यन् -- इत्यादि भी रूप बनेंगे।
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
अधुः
ध्येयासुः
दधौ
धेयासुः
अ० अदधत् अदधताम् अदधन
अदध: अदधतम् अदधत अदधम् अदधाव
अदधाम अधात् अधाताम् अधाः
अधातम् अधात अधाम् अधाव
अधाम
तथा अधासीत् अधासिष्टाम् अधासिषुः अधासी: अधासिष्टम् अधासिष्ट अधासिषम् अधासिष्व अधासिष्म दधौ दधतुः दधुः दधाथ/दधिथ ददथुः
दध
दधिव दधिम आ० धेयात् धेयास्ताम् धेयाः धेयास्तम्
धेयास्त धेयासम् धेयास्व
धेयास्म श्व० धाता धातारौ धातारः . धातासि धातास्थः धातास्थ धातास्मि धातास्व:
धातास्मः भ० धास्यति धास्यतः धास्यन्ति धास्यसि धास्यथः
धास्यथ धास्यामि धास्याव:
धास्यामः क्रि० अधास्यत्
अधास्यताम् अधास्यन् अधास्यः अधास्यतम् अधास्यत अधास्यम् अधास्याव अधास्याम अधास्यम् अधास्याव अधास्याम इतः परमैदन्ता अनुस्वारेतश्चैकविंशतिः।।
२९. दै वू (दै) शोधने। व० दायति दायतः दायन्ति स० दायेत् दायेताम् दाययुः प० दायतु/दायतात् दायताम्
दायन्तु ह्य० अदायत् अदायताम् अदायन् अ० अदासीत् अदासिष्टाम अदासिषुः प० ददौ ददतुः ददुः आ० दायात् दायास्ताम् दायासुः श्व० दाता
दातारौ
दातारः
भ० दास्यति
दास्यतः
दास्यान्ता क्रि० अदास्यत् अदास्यताम् अदास्यन्
३०. ध्य (ध्यै) चिन्तायाम्। व० ध्यायति ध्यायत: ध्यायन्ति स० ध्यायेत् ध्यायेताम् ध्यायेयुः प० ध्यायतु/ध्यायतात् ध्यायताम् ध्यायन्तु ह्य० अध्यायत् अध्यायताम्
अध्यायन् अ० अध्यासीत् अध्यासिष्टाम् अध्यासिषु: प० दध्यौ दध्यतुः दध्युः आ० ध्येयात्
ध्येयास्ताम्
तथा ध्यायात्
ध्यायास्ताम् ध्यायासुः श्व० ध्याता ध्यातारौ ध्यातारः भ० ध्यास्यति ध्यास्यतः ध्यास्यन्ति क्रि० अध्यास्यत् अध्यास्यताम् अध्यास्यन्
३१. ग्लैं (ग्लै) हर्षक्षये।
धातुक्षय इत्यर्थः व० ग्लायति ग्लायत: ग्लायन्ति ग्लायसि
ग्लायथः ग्लायथ ग्लायामि ग्लायावः ग्लायाम: स० ग्लायेत् ग्लायेताम् ग्लायेयुः
ग्लाये: ग्लायतम् ग्लायेत ग्लायेयम् ग्लायेव
ग्लायम प० ग्लायतु/ग्लायतात् ग्लायताम् ग्लायन्तु
ग्लाय/ग्लायतात् ग्लायतम् ग्लायत
ग्लायानि ग्लायाव ग्लायाम ह्य० अग्लायत् अग्लायताम् अग्लायन् अग्लायः
अग्लायतम् अग्लायत अग्लायम् अग्लायाव अग्लायाम अ० अग्लासीत् अग्लासिष्टाम् अग्लासिषुः
अग्लासी: अग्लासिष्टम् अग्लासिष्ट
अग्लासिषम् अग्लासिष्व अग्लासिष्म प० जग्लौ जग्लतुः जग्लुः
जग्लिथ/जग्लाथ जग्लथुः जग्ल
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
जग्लो
द्येयासुः
ग्लेयाः ग्लेयासम्
जग्लिव जग्लिम आ० ग्लेयात् ग्लेयास्ताम् ग्लेयासुः
ग्लेयास्तम् ग्लेयास्त
ग्लेयास्व ग्लेयास्म ग्लायात्
ग्लायास्ताम् ग्लायासुः ग्लायात: ग्लायास्तम् ग्लायास्त
ग्लायासम ग्लायास्व ग्लायास्म श्व० ग्लाता
ग्लातारौ ग्लातार: ग्लातासि ग्लातास्थ: ग्लातास्थ
ग्लातास्मि ग्लातास्वः ग्लातास्मः भ० ग्लास्यति ग्लास्यतः
ग्लास्यन्ति ग्लास्यसि ग्लास्यथः ग्लास्यथ
ग्लास्यामि ग्लास्यावः ग्लास्यामः क्रि० अग्लास्यत् अग्लास्यताम्
अग्लास्यन् अग्लास्यः अग्लास्यतम् अग्लास्यत अग्लास्यम् अग्लास्याव अग्लास्याम ३२. म्लैं (म्लै) गात्रविनामे, कान्तिक्षये इत्यर्थ। व० म्लायति म्लायतः म्लायन्ति स० म्लायेत् म्लायेताम् म्लायेयुः प० म्लायतु/म्लायतात् म्लायताम् ह्य० अम्लायत् अम्लायताम् अम्लायन् अ० अम्लासीत् अम्मासिषम् अम्लासिषुः प० मम्लौ मम्लतुः मम्लुः आ० म्लेयात्
म्लेयास्ता
म्लेयासुः तथा- म्लायात् म्लायास्ताम् म्लेयासुः श्व० म्लाता म्लातारौ म्लातार: भ० म्लास्यति म्लास्यतः म्लास्यन्ति क्रि० अम्लास्यत् अम्लास्यताम् अम्लास्यन्
३३. 3 () न्यङ्गकरणे। व० द्यायति द्यायतः द्यापन्ति स० द्यायेत् द्यायेताम् प० द्यायतु/द्यायतात् द्यायताम् द्यायन्तु ह्य० अद्यायत् अद्यायताम् अद्यायन् अ० अद्यासीत् अद्यासिष्टाम् अद्यासिषुः प० दद्यौ दद्यतुः दद्यहः
आ० द्येयात् द्येयास्ताम् तथा- द्यायात् द्यायास्ताम् द्यायासुः श्व० द्याता
द्यातारौ द्यातारः भ० द्यास्यति द्यास्यतः द्यास्यन्ति क्रि० अद्यास्यत् अद्यास्यताम् अद्यास्यन्
३४. ३ (दै) स्वपने। व० द्रायति द्रायत:
द्रायन्ति स० दायेत् द्रायेताम् द्रायेयुः प० द्रायतु/द्रायतात् द्रायताम् द्रायन्तु ह्य० अद्रायत् अद्रायताम् अद्रायन् अ० अद्रासीत् अद्रासिष्टाम् अद्रासिषुः प० दद्रौ दद्रतुः आ० द्रेयात्
द्रेयास्ताम् द्रेयासुः
तथा द्रायात् द्रायास्ताम् द्रायासुः श्व० द्राता
द्रातारौ
द्रातारः भ० द्रास्यति
द्रास्यतः
द्रास्यन्ति क्रि० अद्रास्यत् अद्रास्यताम् अद्रास्यन्
३५. (धै) तृप्तौ। व० ध्रायति ध्रायत: ध्रायन्ति स० ध्रायेत् ध्रायेताम् ध्रायेयुः प० ध्रायतु/ध्रायतात् ध्रायताम् ध्रायन्तु ह्य० अध्रायत् अध्रायताम् अध्रायन् अ० अध्रासीत् अध्रासिष्टाम् अध्रासिषुः प० दध्रौ आ० धेयात्
धेयासुः
म्लायन्तु
दध्रतुः धेयास्ताम्
तथा
ध्रायात् श्व० ध्राता भ० ध्रास्यति क्रि० अध्रास्यत्
द्यायेयुः
ध्रायास्ताम्
ध्रायासुः ध्रातारौ ध्रातारः ध्रास्यतः ध्रास्यन्ति
अध्रास्यताम् अध्रास्यन् ३६. मैं (कै) शब्दे।
कायत: कायन्ति कायेताम् कायेयुः
व० कायति स० कायेत्
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
प०
० अकायत्
अ० अकासीत्
प० चकौ
आ० कायात्
口 काता
भ० कास्यति
क्रि० अकास्यत्
कायतु/कायतात् कायताम्
अकायताम्
अकासिष्टाम्
व०
गायति
स० [गायेत
प०
ह्य० अगायत्
अ० अगासीत् प० जगौ
आ० गेयात्
श्व०
गाता
भ० गास्यति
क्रि० अगास्यत्
गायत
गायेताम्
गायतु / गायतात् गायताम्
व० रायति
स० [रायेत्
प०
굉
हा० अरायत्
अ० अरासीत्
प० ररौ
आ० रायात्
영이
राता
भ० रास्यति
क्रि० अरास्यत्
व० ष्ट्यायति
रायतु / रायतात्
स० [ट्यायेत्
चकतुः
कायास्ताम्
कातारौ
कास्यतः
अकास्यताम्
३७. मैं (गै) शब्दे ।
अगायताम्
अगासिष्टाम्
जगतुः
गेयास्ताम्
गातारौ
गास्यतः
अगास्यताम्
३८. रैं (२) शब्दे ।
रायतः
रायेताम्
रायताम्
अरायताम्
अरासिष्टाम्
कायन्तु
अकायन्
अकासिषुः
ष्ट्यायतः
ष्ट्यायेताम्
चकुः
कायासुः
कातार:
कास्यन्ति
अकास्यन्
गायन्ति
गायेयुः
गायन्तु
अगायन्
अगासिषुः
जगुः
गेयासुः
गातार:
गास्यन्ति
अगास्थन
ररतुः
रायास्ताम्
रातारौ
रास्यतः
अरास्यताम्
३९. ष्ट्यै (ष्ट्यै) संघाते च ।
चकारात् शब्दे ॥
रायन्ति
रायेयुः
रायन्तु
अरायन्
अरासिषुः
ररुः
रायासुः
रातार:
रास्यन्ति
अरास्यन्
ष्ट्यायन्ति
टयायेयुः
प०
डा०
अष्ट्यायत्
अ० अष्ट्यासीत्
ष्ट्यायतु/ष्ट्यायतात् ष्ट्यायताम्
प० तष्टयौ
आ० ष्टयेयात्
तथा ष्ट्यायात्
왕이 ष्ट्याता
भ० ष्ट्यास्यति
क्रि० अष्ट्यास्यत्
व०
स०
प०
ह्य०
अस्त्यायत्
अ० अस्त्यासीत्
प० तस्त्यौ
आ० स्त्येयात्
सत्यायात्
श्व०
स्त्याता
भ० स्त्यास्यति
क्रि० अस्त्यास्यत्
व० खायति
० खायेत्
४०. स्त्यै (स्त्यै) संघातशब्दयोः ।
स्त्यायति
स्त्यायतः
[स्त्यायेत्
स्त्यायेताम्
स्त्यायतु / स्त्यायतात् स्त्यायताम्
प०
हा० अखायत्
अ० अखासीत्
प०
चखौ
आ० खायात्
ष्ट्यायन्तु
अष्ट्यायताम् अष्ट्यायन् अष्ट्यासिष्टाम्
अष्ट्यासिषुः
खायतु / खायतात्
ᄋ खाता
भ० खास्यति
क्रि० अखास्यत्
तष्ट्यतुः तष्टघुः ष्ट्येयास्ताम् ष्टयेयासुः
ष्ट्यायास्ताम्
ष्ट्यातारी
ष्ट्यास्यतः
अष्ट्यास्यताम् अष्ट्यास्यन्
ष्ट्यायासुः
ष्ट्यातार:
ष्ट्यास्यन्ति
स्त्यायन्ति
त्यायेयुः
स्त्यायन्तु
अस्त्यायताम् अस्त्यायन् अस्त्यासिष्टाम् अस्त्यासिषुः तस्त्यतुः स्त्येयास्ताम्
तथा
४१. खँ (खै) खदने ।
खदनं हिंसा स्थैर्य |
स्त्यायास्ताम्
स्त्यातारौ
स्त्यास्यतः
अस्त्यास्यताम् अस्त्यास्यन्
खायत:
खायेताम्
खायताम्
अखायताम्
अखासिष्टाम्
तस्त्युः स्त्येयासुः
स्त्यायासुः
स्त्यातार:
स्त्यास्यन्ति
खायन्ति
खायेयुः
खायन्तु
अखायन्
अखासिषुः
चखतुः
चखुः
खायास्ताम्
खायासुः
खाता
खातारः
खास्यतः
खास्यन्ति
अखास्यताम् अखास्यन्
19
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चक्षतुः
४२. ः (१) क्षये। व० क्षायति क्षायतः क्षायन्ति स० क्षायेत् क्षायेताम् क्षायेयुः प० क्षायतु/क्षायतात् क्षायताम् क्षायन्तु ह्य० अक्षायत् अक्षायताम् अक्षायन् अ० अक्षासीत् अक्षासिष्टाम् अक्षासिषुः प० चक्षौ
चक्षुः आ० क्षेयात् क्षेयास्ताम् क्षेयासुः व० क्षाता क्षातारौ क्षातारः भ० क्षास्यति क्षास्यतः क्षास्यन्ति क्रि० अक्षास्यत्
अक्षास्यताम् अक्षास्यन्
४३. जैं (जै) क्षये। व० जायति जायत: जायन्ति स० जायेत् जायेताम् प० जायतु/जायतात् जायताम् ह्य० अजायत् अजायताम् अजायन् अ० अजासीत् अजासिष्टाम् अजासिषुः प० जजौ
जायेयुः जायन्तु
श्रायन्ति
श्रायेयुः श्रायन्तु
४५. मैं (स्र) पाके। व० स्रायति स्रायत: स्रायन्ति स० स्रायेत
स्त्रायेताम्
स्रायेयुः प० स्रायतु/स्रायतात् स्रायताम् स्रायन्तु ह्य० अस्रायत् अस्रायताम् अस्रायन् अ० अस्रासीत् असासिष्टाम् अस्रासिषुः प० सस्रो सस्रतुः सतुः आ० स्लेयात्
स्रेयास्ताम्
स्रेयासुः
तथा स्रायात् स्त्रायास्ताम् स्रायासुः श्व० स्राता सातारौ सातारः भ० सास्यति स्रास्यत: त्रास्यन्ति क्रि० अस्रास्यत् अस्रास्यताम् अस्रास्यन्
४६. . (त्रै) पाके। व० श्रायति श्रायत: स० श्रायेत् श्रायेताम् प० श्रायतु/श्रायतात् श्रायताम् ह्य० अश्रायत् अश्रायताम् अश्रायन् अ० अश्रासीत् अश्रासिष्टाम् अश्रासिषुः प० शश्री शश्रतुः
शश्रुः आ० श्रेयात्
श्रेयास्ताम्
श्रायासुः
तथा श्रायात्
श्रायास्ताम् श्व० श्राता
श्रातारौ
श्रातारः भ० श्रास्यति श्रास्यतः श्रास्यन्ति क्रि० अश्रास्यत् अश्रास्यताम् अश्रास्यन्
४७. फ (१) शोषणे। व० पायति पायत: पायन्ति स० पायेत् प० पायतु/पायतात् पायताम् पायन्तु ह्य० अपायत् अपायताम् अपायन् अ० अपासीत् अपासिष्टाम् अपासिषुः प० पपौ
पपतुः आ० पेयात् पेयास्ताम् पेयासुः
जजतुः
जजुः
श्रेयासुः
आ० जायात् जायास्ताम्
जायासुः श्व० जाता
जातारौ
जातार: भ० जास्यति जास्यतः जास्यन्ति क्रि० अजास्यत् अजास्यताम् अजास्यन्
४४. फैं (सै) क्षये। व० सायति
सायतः सायन्ति स० सायेत् सायेताम् सायेयुः प० सायतु/सायतात् सायताम् सायन्तु ह्य० असायत् असायताम् असायन् अ० असासीत् असासिष्टाम् प० ससौ ससतुः
सससुः आ० सेयात् सेयास्ताम् श्व० साता
सातारौ
सातारः भ० सास्यति सास्यत: सास्यन्ति क्रि० असास्यत् असास्यताम् असास्यन्
असासिषुः
पायेताम्
पायेयुः
सेयासुः
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
श्व० पाता
भ० पास्यति
क्रि० अपास्यत्
व० वायति
स० [वायत्
प०
ह्य० अवायत्
अ० अवासीत्
प० ववौ
आ० वायात्
बायतु / वायतात् वायताम्
श्व० वाता
भ० वास्यति
क्रि० अवास्यत्
स्नायात्
४८. ओवं ( वै) शोषणे ।
पातारौ
पास्यतः
अपास्यताम् अपास्यन्
श्व० स्नाता
भ० स्नास्यति
क्रि० अस्नास्यत्
व० फक्कति
वायतः
वायेताम्
ववतुः
वायास्ताम्
वातारौ
वास्यतः
अवास्यताम्
ष्ण ४९. छाँ (स्नै) वेष्टने
व० स्नायति
स्नायतः
स० [स्नायेत्
स्नायेताम्
प० स्नायतु / स्नायतात् स्नायताम्
ह्य० अस्नायत्
अस्नायताम्
अस्नासिष्टाम्
अ० अस्नासीत् प० सरनौ
आ० स्नेयात्
अवायताम्
अवासिष्टाम्
पातार:
पास्यन्ति
सस्नतुः
स्नेयास्ताम्
तथा
स्नायास्ताम्
स्नातारौ
स्नास्यतः
अस्नास्यताम्
वायन्ति
वायेयुः
वायन्तु
अवायन्
अवासिषुः
वबुः
वायासुः
वातार:
वास्यन्ति
अवास्यन्
स्नायन्ति
स्नायेयुः
स्नायन्तु
अस्नायन्
अस्नासिषुः
सस्नुः
स्नेयासुः
||अब कान्ताः पञ्च सेट।
५०. फक्क (फक्क्) नीचगतौ।
नीचैर्गतिः मन्दगमनमसद्व्यवहारो वा
अकारः श्रुतिसुखार्थः । एवं शेषेष्वदन्तेषु ।
फक्कतः
फक्कन्ति
स्नायासुः
स्नातारः
स्नास्यन्ति
अस्नास्यन्
फक्कसि
फक्कामि
स० फक्केत्
फक्के:
फक्केयम्
फक्कतु/ फक्कतात् फक्कताम्
फक्कन्तु
फक्कत
फक्काम
फक्क/फक्कतात् फक्कतम् फक्कानि फक्काव अफक्कताम् अफक्कन् अफक्कतम् अफक्कत
अफक्काव
अफक्काम
अफक्किष्टाम् अफक्किषुः अफक्किष्टम् अफक्किष्ट
अफक्किष्व अफक्किष्म
प०
ह्य० अफक्कत्
अफक्क:
अफक्कम्
अ० अफक्कीत्
अफक्की:
अफक्किषम्
पफक्क
पफक्किथ
पफक्क
आ० फक्क्यात्
फक्क्या:
प०
फक्क्यासम्
श्व० फक्किता
फक्कितासि
फक्कितास्मि
भ० फक्किष्यति
फक्किष्यसि
फक्किष्यामि
क्रि० अफक्किष्यत्
अफक्किष्यः
अफक्किष्यम्
व० तकति
स० [तकेतू
प०
हा० अतकत्
फक्कथ:
फक्कावः
फक्ताम्
फक्केतम्
फक्केव
पफक्कतुः
पफक्कुः
पफक्कथुः
पफक्क
पफक्किव पफक्किम
फक्कथ
फक्कामः
फक्केयुः
फक्त
फक्केम
फक्वयास्ताम् फक्क्यासुः
फक्क्यास्तम् फक्क्यास्त
फक्क्यास्व
फक्क्यास्म
फक्कितारौ फक्कितारः
फक्कितास्थः
फक्कितास्थ
फक्कितास्वः
फक्कितास्मः
फक्किष्यतः
फक्किष्यन्ति
फक्किष्यथः फक्किष्यथ
तकतु/तकतात् तकताम्
अतकताम्
फक्किष्यावः फक्किष्यामः अफक्किष्यताम् अफक्किष्यन् अफक्किष्यतम् अफक्किष्यत
अफक्किष्याव अफक्किष्याम
५१. तक हसने ।
तकत:
तकेताम्
तकन्ति
तकेयुः
तकन्तु
अतकन्
21
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
22
अ० अताकीत् अताकिष्टाम्
तथा
अतकिष्टाम् तेकतुः
अतकीत्
तताक
प०
आ० तक्यात् श्व० तकिता
तक्यास्ताम्
तकितारौ
भ० तकिष्यति
तकिष्यतः
क्रि० अतकिष्यत् अतकिष्यताम्
व० तङ्कति
स० तङ्केत्
प०
५२. तकु (तङ्क) कृच्छ्रजीवने ।
ह्य० अतङ्कत्
अ० अङ्कीत्
प० ततङ्क
तङ्कतः
तङ्केताम्
तङ्कतु/तङ्कतात् तङ्कताम्
अतङ्कताम्
अङ्किष्टाम्
ततङ्कतुः
आ० तङ्क्यात्
तङ्क्यास्ताम्
श्व० तङ्का
तङ्कितारौ
भ० तङ्किष्यति
तङ्किष्यतः
क्रि० अतङ्किष्यत् अतङ्किष्यताम् ५३. शुक (शुक्) गतौ ।
शोकतः
व० शोकति
स० शोकेत्
शोकेताम्
प० शोकतु / शोकतात् शोकताम्
० अशोकत् अशोकताम्
अ० अशोकीत्
प० शुशोक
आ० शुक्यात्
श्र० शोकिता
अताकिषुः
अतकिषुः
तेकुः
व० बुक्कति
तक्यासुः
तकितार:
तकिष्यन्ति
अतकिष्यन्
शुशुकतुः
शुक्यास्ताम्
शोकितारौ
शोकिष्यतः
तङ्कन्ति
तङ्केयुः
तङ्कन्तु
अतङ्कन्
अङ्किषुः
ततङ्कः
तङ्क्यासुः
तङ्कितार:
तङ्किष्यन्ति
शोकन्ति
शोकेयुः
शोकन्तु
अशोकन्
अशोकष्टाम् अशोकिषुः
अङ्क
भ० शोकिष्यति
क्रि० अशोकिष्यत् अशोकिष्यताम् अशोकिष्यन्
५४. बुक्क (बुक्क) लाषणे ।
बुक्कतः
शुशुकुः
शुक्यासुः
शोकितार:
शोकिष्यन्ति
बुक्कन्त
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
बुक्केयुः
बुक्कन्तु
ह्य० अबुक्कत् अनुक्कताम् अबुक्कन्
अ० अबुक्कीत्
अबुक्किष्टाम् अबुक्किषुः
प०
बुबुक्क
बुबुक्कतुः
बुबुक्कुः
आ० बुक्क्यात्
बुक्क्यास्ताम् बुक्क्यासुः
श्व० बुक्किता
बुक्कितारौ
बुक्कितारः
भ०
क्ि
बुक्कष्यतः बुक्कष्यन्ति
क्रि० अबुक्किष्यत्
अबुक्किष्यताम् अबुक्किष्यन्
स० बुक्केत्
प०
व०
ओखति
ओखसि
ओखामि
स० ओखेत्
ओखेः
बुक्कतु/बुक्कतात्बुक्कताम्
अथ खान्ता द्वाविंशतिः सेटच ॥
५५. ओख शोषणालमर्थयोः ।
ओखेयम्
प० ओखतु / ओखतात्
ओख/ओखतात्
प०
ओखानि
ह्य० औखत्
औखः
बुक्तम्
औखम्
अ० औखत्
औखी:
ओखामास
ओखामासिथ
ओखामास
ओखतः
ओखथः
ओखावः
ओखन्तु
ओखत
ओखाम
औखन्
औखत
औखाम
औखिष्टाम्
औखिषुः
औखिष्टम् औखिष्ट
औखिष्व
औखिषम् औखिष्म ओखांचकार ओखांचक्रतुः ओखांचक्रुः ओखांचकर्थ ओखांचक्रथुः ओखांचक्र ओखांचकार/ओखांचकृव ओखांचकृम ओखांचकर
ओखेताम्
ओखेतम्
ओखेव
ओखताम्
ओखतम्
ओखाव
औखताम्
खम्
ओखन्ति
ओखथ
औखाव
ओखामः
ओखेयुः
ओखेत
ओखेम
तथा
ओखामासतुः ओखामासुः
ओखामासथुः ओखामास
ओखामासिव ओखामासिम
तथा
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
ओखांबभूव आ० ओख्यात्
ओख्या:
ओखांबभूव
ओखांबभूविथ
श्व० ओखिता
भ०
ओखितासि
ओखितास्मि
ओखिष्यति
ओखिष्यसि
ओखिष्यामि
क्रि० औखिष्यत्
औखिष्यः
ओख्यासम्
प०
व० राखति
राखसि
खम्
राखामि
स० राखेत्
राखे:
राखेयम्
प०
ओख्यास्व ओख्यास्म
ओखितारौ
ओखितार:
ओखितास्थः ओखितास्थ
ओखितास्वः
ओखितास्मः
ओखिष्यतः ओखिष्यन्ति
ओखिष्यथः ओखिष्यथ
ओखिष्यावः ओखिष्यामः
औखिष्यताम् औखिष्यन् औखिष्यतम् औखिष्यत औखिष्याव औखिष्याम ५६. राख् शोषणालमर्थयोः ।
राखन्ति
राखथ
राखामः
राखेयुः
राखेत
राखेम
ह्य० अराखत्
अराख:
अराखम्
अ० अराखीत्
अराखी:
अराखिषम्
रराख
राखतु/राखतात् राखताम्
राख / राखतात्
राखतम्
राखाणि
राखाव
राखिथ
रराख
ओखांबभूवतुः ओखांबभूवुः ओखांबभूवथुः ओखांबभूव
ओखांबभूविव ओखांबभूविम ओख्यास्ताम् ओख्यासुः
ओख्यास्तम् ओख्यास्त
राखतः
राखथः
राखावः
राखेताम्
खेतम्
राखेव
अराखताम्
अराखतम्
अराखाव
अराखिष्टाम्
अराखिष्टम्
अराखिष्व
रराखतुः
रराखथुः
रराखिव
राखन्तु
राखत
राखाम
अराखन्
अराखत
अराखाम
अराखिषुः
अराखिष्ट
अराखिष्म
रराखुः
रराख
रराखिम
आ० राख्यात्
राख्या:
राख्यास्ताम् राख्यासुः
राख्यास्तम्
राख्यास्त
राख्यासम्
राख्यास्व
श्व० राखिता राखितारौ
राखितासि
राखितास्मि
भ० राखिष्यति
राखिष्यसि
राखिष्यामि
क्रि० अराखिष्यत्
राखिष्यथः राखिष्यथ
राखिष्यावः
राखिष्यामः
अराखिष्यताम् अराखिष्यन् अराखिष्यतम् अराखिष्यत
अराखिष्यः अराखिष्यम् अराखिष्याव अराखिष्याम
५७. लाख (लाख) शोषणालमर्थयोः ।। लाखति
व०
लाखत:
स० लाखेत् लाखेताम्
प० लाखतु/लाखतात्लाखताम्
लाखन्ति
लाखेयुः
लाखन्तु
अलाखताम् अलाखन्
अलाखिष्टाम्
अलाखिषुः
ललाखुः
लाख्यासुः
लाखितार:
लाखिष्यन्ति
अलाखिष्यताम् अलाखिष्यन्
५८. द्राख (द्राख) शोषणालमर्थयोः ।
व० द्राखति
द्राखतः
स० [द्राखेत् द्राखेताम्
प०
द्राखतु/द्राखतात् द्राखताम्
अद्राखताम्
अद्राखिष्टाम्
द्राखतुः
द्राख्यास्ताम्
द्राखितारौ
द्राखिष्यतः
ह्य० अलाखत्
अ० अलाखीत्
प० ललाख
आ० लाख्यात्
श्व० लाखिता
भ० लाखिष्यति
क्रि० अलाखिष्यत्
राख्यास्म
राखितारः
राखितास्थः
राखितास्थ
राखितास्वः राखितास्मः
राखिष्यतः राखिष्यन्ति
ह्य० अद्राखत्
अ० अद्राखीत्
प० दद्राख
आ० द्राख्यात्
श्व० द्राखिता
भ० द्राखिष्यति
ललाखतुः
लाख्यास्ताम्
लाखितारौ
लाखिष्यतः
द्राखन्ति
द्राखेयुः
द्राखन्तु
अद्राखन्
अद्राखिषुः
दद्राखुः
द्राख्यासुः
द्राखितार:
द्राखिष्यन्ति
23
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
24
क्रि० अद्राखिष्यत् अद्राखिष्यताम् अद्राखिष्यन् ५९. धाख (धाख) शोषणालभर्थयोः ।
व०
धाखति
सं० श्राखेत्
प०
ह्य० अभ्राखत्
अ० अभ्राखीत्
प० दधाख
आ० श्राख्यात्
श्र०
श्राखिता
श्राखतः
श्राखेताम्
श्राखतु/ भ्राखतात् श्राखताम्
दधाखतुः
दधाखुः
भ्राख्यास्ताम्
भ्राख्यासुः
श्राखितारी
धाखितार:
भ०
ध्राखिष्यतः
ध्राखिष्यन्ति
श्राखिष्यति क्रि० अधाखिष्यत् अध्राखिष्यताम् अध्राखिष्यन् ६०. शाख ( शाख) व्याप्तौ ।
शाखन्ति
शाखथ
शाखामः
शाखेयुः
शाखेत
शाखेम
व० शाखति
शाखसि
शाखामि
स० [शाखेत्
शाखेः
शाखेयम्
ह्य० अशाखत्
अशाखः
अशाखम्
अ० अशाखीत्
अशाखी:
अशाखिषम्
प
प० शाखतु / शाखतात् शाखताम्
शाख / शाखतात् शाखतम्
शाखानि
शाखाव
भ्राखन्ति
भ्राखेयुः
धाखन्तु
अध्राखताम् अध्राखन्
अभ्राखिष्टाम् अप्राखिषुः
शशाख
शशाखिथ
शशाख
आ० शाख्यात्
शाख्या:
शाखतः
शाखथः
शाखाव:
शाखेताम्
शाखेतम्
शाखेव
अशाखताम्
अशाखतम्
अशाखाव
अशाखिष्टाम्
अशाखिष्टम्
अशाखिष्य
शशाखतुः
शशाखथुः
शशाखिव
शाखन्तु
शाखत
शाखाम
अशाखन्
अशाखत
अशाखाम
अशाखिषुः
अशाखिष्ट
अशाखिष्म
शशाखुः
शशाख
शशाखिम
शाख्यास्ताम्
शाख्यासुः
शाख्यास्तम् शाख्यास्त
४० शाखिता
शाख्यासम्
व०
स०
प०
공
शाखितासि
शाखितास्थ
शाखितास्मि
शाखितास्मः
भ० शाखिष्यति शाखिष्यतः
शाखिष्यन्ति
शाखिष्यसि
शाखिष्यथः
शाखिष्यथ
शाखिष्यामि
शाखिष्यावः शाखिष्यामः
क्रि० अशाखिष्यत् अशाखिष्यताम् अशाखिष्यन् अशाखिष्यः अशाखिष्यतम् अशाखिष्यत अशाखिष्यम् अशाखिष्याव अशाखिष्याम
६१. श्लाख् (श्लाख) व्याप्तौ ।
आ० श्लाख्यात्
श्व० श्लाखिता
श्लाखति
श्लाखत: श्लाखन्ति
श्लाखेत्
श्लाखेताम्
श्लाखेयुः
श्लाखतु / श्लाखतात् श्लाखताम्
श्लाखन्तु
डा०
अश्लाखत्
अश्लाखताम् अश्लाखन् अश्लाखिष्टाम् अश्लाखिषुः
अ० अश्लाखीत्
प० शश्लाख
शश्लाखतुः शश्लाखुः
श्लाख्यास्ताम् श्लाख्यासुः
श्लाखितारौ श्लाखितारः
भ० श्लाखिष्यति
श्लाखिष्यतः श्लाखिष्यन्ति
क्रि० अश्लाखिष्यत् अश्लाखिष्यताम् अश्लाखिष्यन्
६२. कक्ख (कक्ख) हसने ।
व० कक्खति
स०
कक्खेत
शाख्यास्व
शाखितारौ
प०
ह्य०
० अकक्खत्
अ० अकक्खीत्
प० चकक्ख
आ० कक्ख्यात्
४० कक्खिता
शाखितास्थः
शाखितास्वः
भ० कक्खिष्यति
क्रि० अकक्खिष्यत्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कक्खतु / कक्खतात्कक्खताम्
शाख्यास्म
शाखितार:
कक्खतः कक्खन्ति
कक्खेताम्
कक्खेयुः
कक्खन्तु
अकक्खताम् अकक्खन्
अकक्खिष्टाम् अकविखषुः
चकक्खतुः चकक्खुः
कक्ख्यास्ताम् कक्ख्यासुः
कक्खतारौ कक्खितारः
कक्खिष्यतः
कविखष्यन्ति
अकविखष्यताम् अकक्खिण्यन्
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
25
| # # # #
ओखामः
नेखतुः
६३. उख (उख्) गतौ। व० ओखति ओखतः ओखन्ति ओखसि ओखथ:
ओखथ ओखामि ओखाव: स० ओखेत् ओखेताम् ओखेयुः
ओखेः ओखेतम् ओखेत
ओखेयम् ओखेव ओखेम प० ओखतु/ओखतात्ओखताम्
ओखन्तु ओख/ओखतात् ओखतम् ओखत
आखानि ओखाव ओखाम ह्य० औखत्
औखताम्
औखन् औखतम्
औखत औखम् औखाव औखाम अ० औखीत् औखिष्टाम्
औखी: औखिष्टम् औखिष्ट
औखिषम् औखिष्व औखिष्म प० उवाख
ऊखतुः
ऊखुः उवोखिध ऊखतु ऊख उवोख ऊखिव ऊखिम
औखः
# # # # # # # # # #
औखिषुः
६४. नख (नख्) गतौ। व० नखति नखतः नखन्ति स० नखेत्
नखेताम्
नखेयुः प० नखतु/नखतात् नखताम् नखन्तु ह्य० अनखत् अनखताम् अनखन् अ० अनाखीत् अनाखिष्टाम् अनाखिषुः
तथा अनखीत् अनखिष्टाम्
अनखिषुः प० ननाख
नेखुः आ० नख्यात् नख्यास्ताम् नख्यासुः श्व० नखिता नखितारौ नखितारः भ० नखिष्यति नखिष्यतः नखिष्यन्ति क्रि० अनखिष्यत् अनखिष्यताम् अनखिष्यन्
६५. णख (ण) गतौ। व० नखति
नखतः
नखन्ति स० नखेत् नखेताम् नखेयुः प० नखतु/नखतात् नखताम् नखन्तु ह्य० अनखत्
अनखताम्
अनखन् अ० अनाखीत् अनाखिष्टाम् अनाखिषुः
तथा अनखीत् अनखिष्टाम् अनखिषुः प० ननाख नेखतुः आ० नख्यात् नख्यास्ताम् नख्यासुः व० नखिता नखितारौ नखितार: भ० नखिष्यति नखिष्यतः नखिष्यन्ति क्रि० अनखिष्यत् अनखिष्यताम् अनखिष्यन्
६६. वख (वख) गतौ। व० वखति वखतः वखन्ति स० वखेत् वखेताम् वखेयुः प० वखतु/वखतात् वखताम् वखन्तु ह्य० अवखत् अवखताम् अवखन् अ० अवाखीत् अवाखिष्टाम् अवाखिषुः
तथा अवखीत् अवखिष्टाम् अवखिषुः
आ० उख्यात्
उख्यास्ताम्
उख्यासुः उख्यास्त
नेखुः
उख्या:
उख्यास्तम्
उख्यास्व
उख्यास्म
उख्यासम् श्व० ओखिता
ओखितासि
आखितास्मि भ० आखिष्यति
ओखिष्यसि अखिष्यामि औखिष्यत् औखिष्यः औखिष्यम्
ओखितारौ ओखितास्थ: ओखितास्व: ओखिष्यत: ओखिष्यथ: औखिष्याव: औखिष्यताम् औखिष्यतम् औखिष्याव
ओखितारः ओखितास्थ ओखितास्मः ओखिष्यन्ति ओखिष्यथ औखिष्यामः औखिष्यन् औखिष्यत औखिष्याम
# # # # # # # is
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
26
प०
ववाख
आ० वख्यात् श्व० वखिता
ववखतुः
वख्यास्ताम्
वखितारौ
वखिष्यतः
अवखिष्यताम्
६७. मख (मख्) गतौ ।
मखतः
मखेताम्
मखतु / मखतात् मखताम्
अमखताम्
अमाखिष्टाम्
तथा
अमखिष्टाम्
मेखतुः
भ० वखिष्यति
क्रि० अवखिष्यत्
व०
मखति
स० मखेत्
प०
ह्य० अमखत्
अ० अमाखीत्
अमखीत्
प० ममाख
आ० मख्यात्
श्व० मखिता
भ० मखिष्यति
क्रि० अमखिष्यत् अमखिष्यताम्
व०
रखति
स० रखेत्
प०
रखतु / रखतात्
ह्य० अरखत्
अ० अराखीत्
अरखीत्
प० रराख
आ० रख्यात् श्व० रखिता
भ० रखिष्यति
क्रि० अरखिष्यत्
व० लखति
० लखेत्
मख्यास्ताम्
मखितारौ
मखिष्यतः
ववखुः
वख्यासुः
वखितार:
वखिष्यन्ति
अवखिष्यन्
मखन्ति
मखेयुः
मखन्तु
अमखन्
अमाखिषुः
रख्यास्ताम्
रखितारौ
रखिष्यतः
अरखिष्यताम्
अमखिषुः
मेखुः
६८. रख (रख्) गतौ ।
रखतः
रखेताम्
रखताम्
मख्यासुः
मखितार:
मखिष्यन्ति
अमखिष्यन्
रखन्ति
रखेयुः
रखन्तु
अरखताम् अरखन्
अराखिष्टम् अराखिषुः
तथा
अरखिष्टाम्
रेखतुः
अरखिषुः
रेखुः
रख्यासुः
रखितार:
रखिष्यन्ति
अरखिष्यन्
६९. लख (लख्) गतौ ।
लखतः
लखेताम्
लखन्ति
लखेयुः
प०
ह्य० अलखत्
अ० अलाखीत्
लखतु / लखतात् लखताम्
अलखताम्
अलाखिष्टाम्
तथा
अखिष्टाम्
लेखतुः
लख्यास्ताम्
लखितारौ
लखिष्यतः
अलखिष्यताम्
७०. मखु (मड्ख्) गतौ ।
अखत्
प० ललाख:
आ० लख्यात्
श्व० लखिता
भ० लखिष्यति
क्रि० अलखिष्यत्
व० मङ्खति
समङ्खेत्
मङ्खतः
मङ्खेताम्
मङ्खतु / मङ्खतात् मङ्खताम्
अमङ्खताम्
अमष्टाम्
प०
ह्य०
अमङ्खत्
अ० अमङ्घीत्
प० ममड
आ० मङ्ख्यात्
श्व० मङ्खिता
भ० मतिष्
क्रि० अमङ्किष्यत्
व० रङ्खति
स० रजेत्
प०
ममङ्खतुः
मङ्ख्यास्ताम्
मङ्खितारौ
मष्यतः
ह्य० अरङ्खत्
अ० अरङ्खीत्
प० ररड
आ० रङ्ख्यात्
श्व० रङ्खिता
भ० रङ्घिष्यति
क्रि० अरङ्घिष्यत्
रङ्खत:
रङ्खताम्
रङ्खतु/रङ्खतात् रङ्खताम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
लखन्तु
अलखन्
अलाखिषुः
अलखिषुः
लेखुः
अरङ्खताम्
अरङ्खिष्टाम्
ररङ्खतुः
रङ्ख्यास्ताम्
जतारौ
रङ्गिष्यतः
अरङ्घ्रिष्यताम्
लख्यासुः
लखितार:
लखिष्यन्ति
अलखिष्यन्
मन्ति
मङ्खेयुः
मङ्खन्तु
अमङ्खन्
अमजिषुः
ममखुः
अमङ्खिष्यताम् अमङ्खिष्यन्
७१. रखु (रख्) गतौ ।
मङ्ख्यासुः
मङ्खितारः
मष्यन्ति
रङ्खन्ति
रङ्खेयुः
रङ्खन्तु
अरङ्खन्
अरङ्घिषुः
ररङ्कुः
रङ्ख्यासुः
रङ्खितार:
यति
अरजिष्यन्
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
To लङ्कृति
सo लङ्केत्
प०
लङ्खत:
लङ्घन्ति
लङ्केताम्
लङ्घयुः
लङ्घतु/लङ्कृतात् लङ्कृताम्
लङ्घन्तु
ह्य० अलङ्कृत् अलङ्खताम्
अलङ्घन्
अ० अलङ्घीत्
अलङ्खष्टाम्
अलङ्घिषुः
प०
लल
ललङ्घतुः
ललखुः
आ० लड्नुयात्
लङ्ख्यास्ताम्
लख्यासुः
श्व० लङ्घिता लङ्खतारौ
लङ्घितार:
लङ्घिष्यतः
लङ्घिष्यन्ति
भ० लङ्घिष्यति क्रि० अलङ्घिष्यत् अलङ्घिष्यताम् अलङ्घिष्यन् ७३. रिखु (रिङ्ख्) गतौ ।
७२. लखु (लड्ख्) गतौ ।
व० रिङ्खति रिङ्खतः रिङ्खन्ति सं० रिङ्खेत् रिङ्खेताम्
रिङ्खेयुः
प० रिङ्खतु / रिङ्खतात् रिङ्खताम्
रिङ्खन्तु
अरिङ्खताम्
अरिङ्खन्
अरिङ्किष्टाम् अरिङ्खिषुः
रिरिङ्खतुः
रिरिङ्खः
रिङ्ख्यास्ताम्
ह्य० अरिङ्खत्
अ० अरिजीत्
प० रिरिड
आ० रिङ्ख्यात्
व० रिङ्खिता रिङ्खितारौ
भ० रिङ्घिष्यति
रिङ्खष्यतः
क्रि० अरिङ्घिष्यत्
आ० इख्यात् श्व० एखिता
रिङ्ख्यासुः
रिङ्खितार:
रिङ्खष्यन्ति
अरिङ्खष्यताम् अरिजिष्यन्
व०
एखति
स० एखेत्
प०
एखतु / एखतात् एखताम्
ह्य० ऐखत् ऐखताम्
अ० ऐखीत्
ऐखिष्टाम्
प०
इख
ईखतुः
७४. इख (इ) गतौ ।
एखतः
एखेताम्
इख्यास्ताम्
एखितारौ
एखन्ति
एखेयुः
एखन्तु
ऐखन्
ऐखिषुः
ईखुः
इख्यासुः
एखितार:
भ० एखिष्यति
क्रि० ऐखिष्यत्
व० इङ्खति
० इङ्खेत्
प०
ह्य०
अ० ऐङ्खीत्
इङ्खतु / इङ्खतात्
ऐङ्खत्
प० इङ्खाञ्चकार
७५. इखु (इड्ख्) गतौ ।
आ० इङ्ख्यात्
श्व० इङ्गिता
भ० इङ्खष्यति
क्रि० ऐजिष्यत्
अ० ऐङ्खीत्
प० ईङ्खाञ्च
इङ्खाञ्चर्थ इङ्खाञ्चक्रथुः
इङ्खाञ्चकार/चकर इङ्खाञ्चकृव
इङ्खामास / इङ्खाम्बभूव
व० ईङ्खति
सईवेत्
प० ईङ्खतु / ईङ्खतात्
ह्य० ऐङ्खत्
० त्
श्व० ईङ्खिता
भ० ईडिष्यति
क्रि० ऐङ्खिष्यत्
एखिष्यतः एखिष्यन्ति ऐखिष्यन्
ऐखिष्यताम्
व०
वल्गति
० त्
प०
इङ्खतः इङ्खन्ति
इङ्खेताम्
इङ्खेयुः
इङ्खन्तु
ऐजन्
इङ्खताम्
ऐङ्खताम्
ऐङ्खष्टाम् ऐङ्खिषुः
इङ्खाञ्चक्रतुः इङ्खाञ्चक्रुः
इङ्खाञ्चक्र
इङ्खाञ्चकृम
इङ्खयास्ताम्
इङ्खयासुः
इङ्खारौ
इङ्खतार:
इङ्खष्यतः
इङ्खयन्ति
ऐङ्खिष्यताम् ऐङ्खिष्यन्
७६. ईखु (ईड्ख्) गतौ।
ईङ्खत: ईङ्खन्ति
ईङ्खेताम्
ईवेयुः
ईङ्खताम्
ईङ्खन्तु
ऐङ्खताम्
ऐङ्खन्
ऐङ्खिष्टाम्
ईङ्खचक्रतुः
ईङ्ख्यास्ताम्
तारौ
ईडिष्यतः
ऐङ्खिष्यताम्
॥ अथ गान्ता अष्टादश सेटो वल्गवर्जा उदितश्च ॥
७७. वल्ग (वल्ग्) गतौ ।
वल्गतः
ताम्
वल्गतु/वल्गतात् वल्गताम्
ऐङ्खिषुः
ईङ्खाञ्चक्रुः
ईङ्ख्यासुः
ईङ्खितार:
ईङ्खष्यन्ति
ऐङ्खिष्यन्
वल्गन्ति
वल्गेयुः
वल्गन्तु
27
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
28
ह्य० अवलगत्
अ० अवल्गीत्
प० ववल्ग
आ० वल्ग्यात्
श्व० वल्गिता
भ० वल्गिष्यति
क्रि० अवल्गिष्यत्
व० रङ्गति
स० रङ्गेत्
अवल्गताम्
अवलिगष्टाम्
ववल्गतुः
वल्ग्यास्ताम्
वल्गितारौ
वल्गिष्यतः
अवल्गिष्यताम् अवल्गिष्यन्
प० रङ्गतु/रङ्गतात् रङ्गताम्
ह्य० अरङ्गत्
अ० अरङ्गीत्
प० ररङ्ग
७८. रगु (रङ्ग) गतौ ।
रङ्गतः
रङ्गेताम्
व तङ्गति
म तङ्गेत्
अरङ्गताम्
अरङ्गिष्टाम्
ररङ्गतुः
रङ्गयास्ताम्
रङ्गितारौ
रङ्गिष्यतः
व० लङ्गति सलङ्गेत् लङ्गेताम्
प० लङ्गतु/लङ्गतात् लङ्गताम्
अवलगन्
अवगिषुः
ववल्गुः
वग्यासुः
वल्गितार:
वल्गिष्यन्ति
आ० रङ्गयात्
श्व० रङ्गिता
भ० रङ्गिष्यति
क्रि० अरङ्गिष्यत् अरङ्गिष्यताम् ७९. लगु (लड्ग) गतौ ।
आ० लङ्गयात्
श्र० लङ्गिता
भ० लङ्गिष्यति
क्रि० अलङ्गिष्यत् अलङ्गिष्यताम्
लङ्गतः लङ्गन्ति
लङ्गेयुः
लङ्गन्तु
ह्य० अलङ्गत् अलङ्गताम् अलङ्गन्
अ० अलङ्गीत्
अलङ्गिष्टाम्
अलङ्गिषुः
प० ललङ्ग
ललङ्गतुः
ललड्गुः
लङ्गयास्ताम् लङ्गयासुः
लङ्गितारौ
लङ्गितार:
लङ्गिष्यतः
लङ्गिष्यन्ति
अलङ्गिष्यन्
रङ्गन्ति
रङ्गेयुः
रङ्गन्तु
अरङ्गन्
अरङ्गिषुः
तङ्गतः
तङ्गेताम्
प० तङ्गतु/तङ्गतात् तङ्गताम्
ररगुः
रङ्गयासुः
रङ्गितार:
रङ्गिष्यन्ति
अरङ्गिष्यन्
८०. तगु (तड्ग) गतौ ।
तङ्गन्ति
तङ्गेयुः
तङ्गन्तु
ह्य० अतङ्गत्
अ० अतङ्गीत्
प०
ततङ्ग
आ० तङ्गयात्
श्व० तङ्गिता
भ० तङ्गिष्यति
क्रि० अतङ्गिष्यत्
आ० श्रङ्गयात्
श्व० श्रङ्गिता
भ० श्रङ्गिष्यति
क्रि० अश्रङ्गिष्यत्
व० श्रङ्गति
स०
श्रङ्गेत्
प०
श्रङ्गतु / श्रङ्गतात् श्रङ्गताम्
ह्य०
अश्रङ्गत्
अश्रङ्गताम्
अ० अश्राङ्गीत्
अश्रङ्गिष्टाम्
प० शश्रङ्ग
शश्रङ्गतुः
श्रङ्गयास्ताम्
श्रङ्गितारौ
श्रङ्गिष्यतः
अतङ्गताम्
अतङ्गिष्टाम्
ततङ्गतुः
तङ्गयास्ताम्
तङ्गिता
तङ्गिष्यतः
अङ्गति
स० अङ्गेत्
प०
आ० श्लङ्गयात्
go श्लङ्गिता
भ० श्लङ्गिष्यति
क्रि० अश्लङ्गिष्यत्
ह्य० आङ्गत्
८१. श्रगु (श्रड्ग्) गतौ ।
अतङ्गिष्यताम् अतङ्गिष्यन्
श्लङ्गतु/श्लङ्गतात्श्लङ्गताम्
श्रङ्गतः
श्रङ्गेताम्
श्रङ्गन्ति
श्रङ्गेयुः
श्रङ्गन्तु
अश्रङ्गन्
अश्रङ्गिषुः
शश्रङ्गुः
श्रङ्गयासुः
श्रङ्गितार:
श्रङ्गिष्यन्ति
अश्रङ्गिष्यताम् अश्रङ्गिष्यन्
व० श्लङ्गति श्लङ्गतः श्लङ्गन्ति
सo
लङ्गेत् श्लङ्गेताम्
श्लङ्गेयुः
प०
श्लङ्गन्तु
ह्य० अश्लङ्गत् अश्लङ्गताम् अश्लङ्गन्
अ० अश्लङ्गीत्
अश्लङ्गिष्टाम्
अश्लङ्गिषुः
प० शश्लङ्ग
शश्लङ्गुः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अतङ्गन्
अतङ्गिषुः
८२. श्लगु (श्लङ्ग्) गतौ ।
ततङ्गुः
तङ्गन्यासुः
तङ्गितार:
तङ्गिष्यन्ति
शश्लङ्गतुः
श्लङ्गयास्ताम्
श्लङ्गितारौ
अङ्गतु / अङ्गतात् अङ्गताम्
आङ्गताम्
अङ्गतः
अङ्गेताम्
श्लङ्गयासुः
श्लङ्गितार:
श्लङ्गिष्यतः श्लङ्गिष्यन्ति
अश्लङ्गिष्यताम् अश्लङ्गिष्यन्
८३. अगु (अङ्ग्ग्) गतौ ।
अङ्गन्ति
अङ्गेयुः
अङ्गन्तु
आङ्गन्
+
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
29
भ्वादिगण
वङ्गन्ति
इङ्गन्ति
ऐङ्गन् ऐङ्गिषुः
अ० आङ्गीत् आङ्गिष्टाम् आङ्गिषुः प० आनङ्ग आनङ्गतुः आनाः आ० अङ्गयात् अङ्गयास्ताम् अङ्गयासुः श्व० अङ्गिता अङ्गितारौ अङ्गितारः भ० अङ्गिष्यति अङ्गिष्यतः अङ्गिष्यन्ति क्रि० आङ्गिष्यत् आङ्गिष्यताम् आङ्गिष्यन्
८४. वगु (वङ्ग्) गतौ। व० वङ्गति वङ्गतः स० वक्रेत
वङ्गताम्
वनेयुः प० वङ्गतु/वङ्गतात् वङ्गताम् वङ्गन्तु ह्य० अवङ्गत् अवङ्गताम् अवङ्गन् अ० अवङ्गीत् अवङ्गिष्टाम्
अवङ्गिषुः प० ववङ्ग ववङ्गतुः ववगुः आ० वङ्गयात् वङ्गयास्ताम् वङ्गयासुः श्व० वनिता वङ्गितारौ वङ्गितार: भ० वङ्गिष्यति वङ्गिष्यतः वषिष्यन्ति क्रि० अवङ्गिष्यत् अवङ्गिष्यताम् अवङ्गिष्यन्
८५. मगु (मङ्ग्) गतौ। व० मङ्गति
मङ्गतः
मङ्गन्ति स० मङ्गेत् मनेताम् प० मङ्गतु/मङ्गतात् मङ्गताम्
मङ्गन्तु ह्य० अमङ्गत् अमङ्गताम्
अमङ्गन् अ० अमङ्गीत् अमङ्गिष्टाम्
अमङ्गिषुः प० ममङ्ग ममङ्गतुः ममशः आ० मङ्गयात् मङ्गयास्ताम् मङ्गयासुः श्व० मङ्गिता मङ्गितारौ मङ्गितारः भ० मङ्गिष्यति मङ्गिष्यतः मङ्गिष्यन्ति क्रि० अमङ्गिष्यत् अमङ्गिष्यताम् अमङ्गिष्यन्
८६. स्वगु (स्वग्) गतौ। . व० स्वङ्गति स्वङ्गतः स्वङ्गन्ति
स० स्वङ्गेत् स्वङ्गेताम् स्वङ्गेयुः प० स्वङ्गतु/स्वङ्गतात् स्वङ्गताम् स्वङ्गन्तु
ह्य० अस्वङ्गत् अस्वङ्गताम् अस्वङ्गन् अ० अस्वङ्गीत् अस्वङ्गिष्टाम् अस्वङ्गिषुः प० सस्वङ्ग सस्वङ्गतुः सस्वगुः आ० स्वङ्गयात् स्वङ्ग्यास्ताम् स्वङ्गयासुः १० स्वङ्गिता स्वङ्गितारौ स्वङ्गितारः भ० स्वङ्गिष्यति स्वषिष्यतः स्वषिष्यन्ति क्रि० अस्वङ्गिष्यत् अवङ्गिष्यताम् अस्वनिष्यन्
८७. इगु (इङ्ग्) गतौ। व० इङ्गति इङ्गतः स० इक्षेत् इङ्गेताम् इङ्गेयुः प० इङ्गतु/इङ्गतात् इङ्गताम् इङ्गन्तु ह्य० ऐङ्गत् ऐङ्गताम् अ० ऐङ्गीत् ऐङ्गिष्टाम् प० इङ्गाञ्चकार इङ्गाञ्चक्रतुः इङ्गाञ्चक्रुः आ० इङ्गयात् इङ्गयास्ताम् इङ्गन्यासुः श्व० इङ्गिता
इङ्गितारौ
इङ्गितारः भ० इङ्गिष्यति इङ्गिष्यतः इङ्गिष्यन्ति क्रि० ऐङ्गिष्यत् ऐङ्गिष्यताम् ऐङ्गिष्यन्
८८. उगु (उम) गतौ। व० उङ्गति उङ्गतः उङ्गन्ति स० उङ्गेत् प० उङ्गतु/उङ्गतात् उङ्गताम्
उङ्गन्तु ह्य० औङ्गत् औङ्गताम् अ० औङ्गीत्
औङ्गिष्टाम्
औङ्गिषुः प० उङ्गाञ्चकार उङ्गाञ्चक्रतुः उङ्गाञ्चक्रुः आ० उङ्गयात् उङ्गयास्ताम् उङ्गयासुः श्व० उङ्गिता उङ्गितारौ उङ्गितारः भ० उङ्गिष्यति उङ्गिष्यतः उङ्गिष्यन्ति क्रि० औङ्गिष्यत् औङ्गिष्यताम् औङ्गिष्यन्
८९. रिगु (रिङ्ग्) गतौ। व० रिङ्गति रिङ्गतः रिङ्गन्ति | स० रिङ्गेत् रिङ्गेताम् रिङ्गेयुः
मङ्गेयुः
उक्रेताम्
उङ्गेयुः
औङ्गन्
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
रिङ्गन्तु
अवट
प०
प० रिङ्गतु/रिङ्गतात् रिङ्गताम् ह्य० अरिङ्गत् अरिङ्गताम् अरिङ्गन् अ० अरिङ्गीत्
अरिङ्गिष्टाम्
अरिङ्गिषुः प० रिरिङ्ग रिरिङ्गतुः रिरिगुः आ० रिङ्ग्यात् रिङ्गयास्ताम् रिङ्गयासुः श्व० रिङ्गिता रिङ्गितारौ रिङ्गितार: भ० रिङ्गिष्यति रिङ्गिष्यतः रिङ्गिष्यन्ति क्रि० अरिङ्गिष्यत् अरिङ्गिष्यताम् अरिङ्गिष्यन्
९०. लिगु (लिङ्ग्) गतौ। व० लिङ्गति लिङ्गतः लिङ्गन्ति स० लिङ्गेत् लिङ्गेताम् लिङ्गेयुः प० लिङ्गतु/लिङ्गतात् लिङ्गताम् लिङ्गन्तु ह्य० अलिङ्गत् अलिङ्गताम् अलिङ्गन् अ० अलिङ्गीत् अलिङ्गिष्टाम् अलिङ्गिषुः प० लिलिङ्ग लिलिङ्गतुः लिलिङ्गुः आ० लिङ्गन्यात् लिङ्गयास्ताम् लिङ्गयासुः श्व० लिङ्गिता लिङ्गितारौ लिङ्गितार: भ० लिङ्गिष्यति लिङ्गिष्यतः लिङ्गिष्यन्ति क्रि० अलिङ्गिष्यत् अलिङ्गिष्यताम् अलिङ्गिष्यन् ९१. त्वगु (त्वङ्ग्) कम्पने च चकाराद्गतौ। स्थितस्यैव
चलनं कम्पनम्। व० त्वङ्गति त्वङ्गतः त्वङ्गन्ति
त्वङ्गसि त्वङ्गथ: त्वङ्गथ
त्वङ्गामि त्वङ्गाव: त्वङ्गामः स० त्वङ्गेत् त्वनेताम् त्वङ्गेयुः
त्वङ्गतम् त्वङ्गेत त्वङ्गेयम् त्वङ्गेव त्वङ्गेम त्वङ्गतु/त्वङ्गतात् त्वङ्गताम् त्वङ्गन्तु त्वङ्गात्वङ्गतात् त्वङ्गतम् त्वङ्गत
त्वङ्गानि त्वङ्गाव त्वङ्गाम ह्य० अत्वङ्गत् अत्वङ्गताम् अत्वङ्गन्
अत्वङ्गः अत्वङ्गतम् अत्वङ्गत
अत्वङ्गम् अत्वङ्गाव अत्वङ्गाम अ० अत्वङ्गीत् अत्वनिष्टाम् अत्वङ्गिषुः
अत्वङ्गीः अत्वङ्गिष्टम् अत्वनिष्ट अत्वङ्गिषम् अत्वङ्गिष्व अत्वङ्गिष्म तत्वङ्ग तत्वङ्गतुः तत्वगुः तत्वङ्गिथ तत्वङ्गथुः तत्वङ्ग
तत्वङ्ग तत्वङ्गिव तत्वङ्गिम आ० त्वङ्गयात् त्वङ्गयास्ताम् त्वङ्गयासुः
त्वङ्गयाः त्वङ्गयास्तम् त्वङ्गयास्त
त्वङ्गयासम् त्वङ्गयास्व त्वङ्गयास्म श्व० त्वङ्गिता त्वङ्गितारौ त्वङ्गितारः त्वङ्गितासि त्वङ्गितास्थः
त्वङ्गितास्थ त्वङ्गितास्मि त्वङ्गितास्वः त्वङ्गितास्मः भ० त्वनिष्यति त्वनिष्यतः त्वङ्गिष्यन्ति
त्वङ्गिष्यसि त्वनिष्यथ: त्वङ्गिष्यथ
त्वङ्गिष्यामि त्वङ्गिष्याव: त्वङ्गिष्यामः क्रि० अत्वनिष्यत् अत्वङ्गिष्यताम् अत्वनिष्यन् ।
अत्वङ्गिष्यः अत्वनिष्यतम् अत्वङ्गिष्यत अत्वङ्गिष्यम् अत्वनिष्याव अत्वङ्गिष्याम
९२. युगु (युग्) वर्जने। व० युङ्गति युङ्गतः युङ्गसि युङ्गथः
युनावः युनाम: स० युङ्गेत् युङ्गेताम् युङ्गेयुः
युङ्गेः युङ्गेतम् युङ्गेत युनेयम्
युङ्गेम युङ्गतु/युङ्गतात् युङ्गताम् युगायुङ्गतात् युङ्गतम् युङ्गत
युङ्गाव युङ्गाम ह्य० अयुङ्गत् अयुङ्गताम् अयुङ्गन्
अयुङ्गः अयुङ्गतम् अयुङ्गत अयुङ्गम् अयुङ्गाव अयुङ्गाम
युङ्गन्ति युङ्गथ
युङ्गामि
त्वङ्गेः
युङ्गेव
प०
युङ्गानि
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
अ० अयुङ्गीत्
अयुङ्गीः
अयुङ्गिषम्
अयुङ्गिष्टाम्
अयुङ्गिष्टम्
अयुङ्गिष्व
युयुङ्गतुः
युयुङ्गथुः
युयुङ्गिव
युङ्गयास्ताम्
युङ्गयास्तम्
युङ्गयास्व
युङ्गन्यास्म
युङ्गितारौ
युङ्गितार :
युङ्गितासि
युङ्गितास्थः
युङ्गितास्थ
युङ्गितास्मि युङ्गितास्वः
युङ्गितास्मः
युङ्गिष्यतः
युङ्गिष्यन्ति
युङ्गिष्यथः
युङ्गिष्यथ
युङ्गिष्यामः
युङ्गिष्यावः अयुङ्गिष्यताम् अयुङ्गिष्यन् अयुङ्गिष्यतम् अयुङ्गिष्यत
अङ्गिष्य अयुङ्गिष्याम ९३. जुगु (जुड्ग्) वर्जने ।
जुङ्गतः
जुङ्गन्ति
व० जुङ्गति स० जुङ्गेत् जुङ्गेताम्
जुङ्गेयुः
प०
जुङ्गतु/जुङ्गतात् जुङ्गताम्
जुङ्गन्तु
अजुङ्गताम् अजुङ्गन्
अजुङ्गिष्टाम्
अजुङ्गिषुः
जुजुङ्गतुः
जुजुङ्गुः
जुगयास्ताम्
जुङ्गन्यासुः
जुङ्गितारौ
जुङ्गितार:
जुङ्गिष्यतः
जुङ्गिष्यन्ति
अजुङ्गिष्यन्
·
प०
युयुङ्ग
युयुङ्गिथ
युयुङ्ग
आ० युङ्गयात्
युङ्गयाः
युगयासम्
श्व० युङ्गिता
भ० युङ्ग
युङ्गिष्यसि
युङ्गिष्यामि
क्रि० अयुङ्गिष्यत्
अयुङ्गिष्यः
अयुङ्गिष्यम्
ह्य० अजुङ्गत्
अ० अजुङ्गीत्
प० जुजुङ्ग
आ० जुङ्गयात्
श्व० जुङ्गिता
भ० जुङ्गिष्यति
क्रि० अजुङ्गिष्यत् अजुङ्गिष्यताम्
व० वुङ्गति स० वुङ्गेत्
अयुङ्गिषुः
अयुङ्गिष्ट
अयुङ्गिष्म
युयुङ्गुः
युयुङ्ग
युयुङ्गिम
वुङ्गतः
वुङ्गेताम्
युङ्गयासुः
युङ्गन्यास्त
९४. वुगु (वुड्ग्) वर्जने ।
वुङ्गन्ति
वुङ्गेयुः
प०
वुङ्गन्तु
ह्य०
अवुङ्गत्
अवुङ्गताम् अवुङ्गन्
अ० अवुङ्गीत्
अङ्गिष्टाम्
अङ्गिषुः
प०
वुवुङ्ग
वुवुङ्गतुः
वुवुङ्गुः
आ० वुङ्गयात्
वुङ्गयास्ताम् वुङ्गयासुः
श्व० वुङ्गिता
वुङ्गतारौ
वुङ्गतारः
भ० वुङ्गिष्यति
वुङ्गष्यतः
वुङ्गिष्यन्ति
क्रि० अवुङ्गिष्यत् अवुङ्गिष्यताम्
अङ्गिष्यन्
॥अथ घान्ताश्चत्वारः सेटो गग्घवर्जा उदितश्च ।।
९५. गग्घ (गग्घ्) हसने ।
गग्घतः
गग्घथः
गग्घाव:
गग्घेताम्
गग्घेम्
गग्घेव
व०
वुङ्गतु/वुङ्गतात् वुङ्गताम्
प०
सo गग्घेत्
गग्घेः
गग्घेयम्
गग्घति
गग्घसि
गग्घामि
गग्घतु / गग्घतात् गग्घताम्
गग्घ/ गग्घतात् गग्घतम् गग्घानि
गग्घाव
ह्य० अगग्घत्
अगग्घः
अगग्घम्
अ० अगग्घीत्
अगरघी:
अगग्घषम्
go
प० जगग्घ
जगग्घिथ
जगग्घ
आ० गग्ध्यात्
गग्घ्या:
गग्ध्यासम्
गग्घिता
गन्धितासि
गग्घितास्मि
अगग्घताम्
अगग्घतम्
अगग्घाव
अगग्घष्टाम्
अगग्घष्टम्
अगग्घष्व
जगग्घतुः
जगग्घथुः
जगग्घिव
गग्ध्यास्ताम्
गग्ध्यास्तम्
गग्घ्यास्व
गग्घितारौ
गग्घितास्थः
गग्घितास्वः
गग्घन्ति
गग्घथ
गग्घामः
गग्घेयुः
गग्घेत
गग्घेम
गग्घन्तु
गग्घत
गग्घाम
अगग्घन्
अगग्घत
अगग्घाम
अगग्घिषुः
अगग्घष्ट
अगग्घष्म
जगग्घुः
जगग्घ
जगग्धिम
गग्ध्यासुः
गग्ध्यास्त
गग्ध्यास्म
गग्घितार:
गग्घितास्थ
गग्घितास्मः
31
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
32
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
गाग्वष्य
शोचेताम्
भ० गग्घिष्यति गग्घिष्यतः गग्घिष्यन्ति
गग्घिष्यसि गग्घिष्यथ: गग्घिष्यथ
गग्घिष्यामि गग्घिष्याव: गग्घिष्यामः क्रि० अगग्घिष्यत् अगग्घिष्यताम् अगग्घिष्यन्
अगग्घिष्य अगग्घिष्यतम अगग्घिष्यत अगग्घिष्यम अगग्घिष्याव अगग्घिष्याम ९६. दघु (दडम्) पालने।
वर्जनेऽपीत्यन्ये। व० दङ्घति दङ्घत: दङ्घन्ति स० दधेत् दङ्घताम् दधेयुः प० दङ्घतु/दङ्घतात् दयताम् दङ्घन्तु ह्य० अदधत् अदङ्घताम् अदङ्घन् अ० अदङ्घीत् अदयिष्टाम् अदङ्घिषुः प० ददङ्घ ददयतुः ददधुः आ० दझ्यात् दङ्ख्यास्ताम् दध्यासुः श्व० दयिता दङ्घितारौ दङ्घितारः भ० दयिष्यति दयिष्यतः दविष्यन्ति क्रि० अदविष्यत् अदयिष्यताम् अदयिष्यन्
९७. शिघु (शिडम्) आघ्राणे। व० शिवति शिवतः शिवन्ति स० शिङ्केत् शिङ्केताम् शिळेयुः प० शिचतु/शिङ्घतात् शिवताम् ह्य० अशिवत् अशिङ्घताम् अशिङ्घन् अ० अशिक्षीत् अशिङ्घिष्टाम् अशिङ्घिषुः प० शिशिङ्क
शिशिचतुः शिशिङ्खः आ० शिद्ध्यात् शिङ्ख्यास्ताम् शिद्ध्यासुः २० शिङ्किता शिङ्घितारौ शिङ्घितारः भ० शिविष्यति शिविष्यतः शिङ्घिष्यन्ति क्रि० अशिविष्यत् अशिक्ष्यिताम् अशिविष्यन्
९८. लघु-(लडम्) गतौ। व० लधति लवतः लवन्ति
शोचेः
स० लऽत् लङ्घताम् लफेयुः प० लङ्घतु/लङ्घतात् लङ्घताम् लङ्घन्तु ह्य० अलङ्घत् अलङ्घताम् अलङ्घन् अ० अलवीत् अलविष्टाम् अलङ्घिषुः प० ललच ललङ्घतुः ललघुः आ० लयात् लझ्यास्ताम् लद्ध्यासुः श्व० लविता लङ्घितारौ लङ्घितार: भ० लयिष्यति लयिष्यतः लयिष्यन्ति क्रि० अलविष्यत् अलविष्यताम् अलविष्यन्
॥अथ चान्ता विंशतिः सेटच॥
९९. शुच (शुच्) शोके। व० शोचति शोचतः शोचन्ति शोचसि शोचथः
शोचथ शोचामि शोचावः शोचामः स० शोचेत
शोचेयुः शोचेतम् शोचेत शोचेयम् शोचेव
शोचेम | प० शोचतु/शोचतात् शोचताम्
शोच/शोचतात् शोचतम् शोचत
शोचानि शोचाव ह्य० अशोचत् अशोचताम्
अशोचः अशोचतम् अशोचत
अशोचम् अशोचाव अशोचाम अ० अशोचीत् अशोचिष्टाम् अशोचिषुः
अशोची: अशोचिष्टम् अशोचिष्ट
अशोचिषम् अशोचिष्व अशोचिष्म । प० शुशोच शुशुचतु: शुशुचुः
शुशोचिथ शुशुचथुः शुशुच
शुशोच शुशुचिव शुशुचिम आ० शुच्यात् शुच्यास्ताम् शुच्यासुः
शुच्याः शुच्यास्तम् शुच्यास्त शुच्यासम् शुच्यास्व शुच्यास्म
शोचन्तु
शोचाम अशोचन्
शिवन्तु
१. आघ्राणं गन्धोपादानम्।
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
कोचतः
कोचेयुः
श्व० शोचिता शोचितारौ शोचितार:
शोचितासि शोचितास्थः शोचितास्थ शोचितास्मि शोचितास्वः
शोचितास्मः भ० शोचिष्यति शोचिष्यतः शोचिष्यन्ति
शोचिष्यसि शोचिष्यथ: शोचिष्यथ
शोचिष्यामि शोचिष्यावः शोचिष्यामः क्रि० अशोचिष्यत् अशोचिष्यताम् अशोचिष्यन्
अशोचिष्यः अशोचिष्यतम् अशोचिष्यत अशोचिष्यम् अशोचिष्याव अशोचिष्याम १०० कुच (कुच्) शब्दे तारे।
तार उच्च इत्यर्थः॥ व० कोचति
कोचन्ति स० कोचेत्
कोचेताम् प० कोचतु/कोचतात् कोचताम् कोचन्तु ह्य० अकोचत् अकोचताम् अकोचन् अ० अकोचीत् अकोचिष्टाम् अकोचिषुः प० चुकोच चुकुचतुः चुकुचुः आ० कुच्यात् कुच्यास्ताम् कुच्यासुः श्व० कोचिता कोचितारौ कोचितारः भ० कोचिष्यति कोचिष्यतः कोचिष्यन्ति क्रि० अकोचिष्यत् अकोचिष्यताम् अकोचिष्यन्
___१०१. क्रुञ्च (क्रु) गतौ। व० क्रुञ्चति कुञ्चतः क्रुञ्चन्ति स० क्रुञ्चत् क्रुञ्चेताम् क्रुञ्चेयुः प० कुञ्चतु/क्रुञ्चतात् क्रुञ्चताम् क्रुञ्चन्तु ह्य० अक्रुञ्चत् अक्रुञ्चताम् अक्रुञ्चन् अ० अक्रुञ्चीत् अक्रुञ्चिष्टाम् अक्रुञ्चिषुः प० चुक्रुञ्च चुक्रुञ्चतुः चुक्रुञ्चुः आ० क्रुच्यात् क्रुच्यास्ताम् क्रुच्यासुः १० क्रुञ्चिता कुञ्चितारौ कुञ्चितारः भ० क्रुञ्चिष्यति क्रुञ्चिष्यतः क्रुञ्चिष्यन्ति क्रि० अक्रुञ्चिष्यत् अक्रुञ्चिष्यताम् अक्रुञ्चिष्यन्
। १०२. कुञ्च (कुञ्) च कौटिल्याल्पीभावयोः।१
व० कुञ्चति कुञ्चतः कुञ्चन्ति स० कुञ्चेत् कुञ्चेताम् कुञ्चेयुः
कुञ्चतु/कुञ्चतात् कुञ्चताम् ह्य० अकुञ्चत् अकुञ्चताम् अकुञ्चन् अ० अकुञ्चीत् अकुञ्चिष्टाम् अकुञ्चिषुः प० चुकुञ्च चुकुञ्चतुः चुकुञ्चहः आ० कुच्यात् कुच्यास्ताम् कुच्यासुः श्व० कुञ्चिता कुञ्चितारौ कुञ्चितारः भ० कुञ्चिष्यति कुञ्चिष्यतः कुञ्चिष्यन्ति क्रि० अकुञ्चिष्यत् अकुञ्चिष्यताम् अकुञ्चिष्यत्
१०३. लुञ्च (लुच) अपनयने।
अनुपयुक्तापासने। व० लुञ्चति लुञ्चतः लुञ्चन्ति स० लुञ्चेत् लुञ्चेताम् लुञ्चेयुः प० लुञ्चतु/लुञ्चतात् लुञ्चताम् लुञ्चन्तु ह्य० अलुञ्चत्
अलुञ्चताम् अलुञ्चन् अ० अलुञ्चीत् अलुञ्चिष्टाम् अलुञ्चिषुः प० लुलुञ्च लुलुञ्चतुः लुलुञ्चहः आ० लुच्यात् लुच्यास्ताम् श्व० लुञ्चिता लुञ्चितारौ लुञ्चितार: भ० लुञ्चिष्यति लुञ्चिष्यतः लुञ्चिष्यन्ति क्रि० अलुञ्चिष्यत् अलुञ्चिष्यताम् अलुञ्चिष्यन्
१०४. अर्च (अ) पूजायाम्। व० अर्चति अर्चतः अर्चन्ति स० अर्चेत
अर्चेताम्
अर्चेयुः प० अर्चतु/अर्चतात् अर्चताम् अर्चन्तु ह्य० आर्चत् आर्चताम् आर्चन् अ० आर्चीत् आर्चिष्टाम् प० आनर्च आनर्चतुः आनचुः
लुच्यासुः
आर्चिषुः
१ चकारः क्रुञ्चोऽनुकर्षणार्थः तेन क्रुञ्चभैयर्थ्य सिद्ध गतेरन्यस्य वा कौटिल्ये द्रव्यस्याल्पीभावे।
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
34
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ति
आञ्चन्
तञ्चन्तु
आनञ्चः
आ० अर्ध्यात् अास्ताम् अासुः श्व० अर्चिता अर्चितारौ अर्चितारः भ० अर्चिष्यति अर्चिष्यतः अर्चिष्यन्ति क्रि० आर्चिष्यत् आर्चिष्यताम् आर्चिष्यन्
१०५. अचू (अ) गतौ। व० अञ्चति अञ्चतः अञ्चन्ति स० अञ्चत् अञ्चेताम् अञ्चेयुः प० अञ्चतु/अञ्चतात् अञ्चताम् अञ्चन्तु ह्य० आञ्चत्
आञ्चताम् अ० आञ्चीत् आञ्चिष्टाम् आञ्चिषुः प० आनञ्च आनञ्चतुः आ० अच्यात् अच्यास्ताम् अच्यासुः पूजायां विषये
अञ्च्यात् अञ्च्यास्ताम् अञ्च्यासुः श्व० अञ्चिता अञ्चितारौ अञ्चितार: भ० अञ्चिष्यति अञ्चिष्यतः अञ्चिष्यन्ति क्रि० आश्चिष्यत् आञ्चिष्यताम् आञ्चिष्यन्
१०६. तपे (तञ्च) गतौ। व० वञ्चति वञ्चतः वञ्चन्ति स० वञ्चत वञ्चेताम् वञ्चेयुः प० वञ्चतु/वञ्चतात् वञ्चताम् वञ्चन्तु ह्य० अवञ्चत् अवञ्चताम् अवञ्चन् अ० अवञ्चीत् अवञ्चिष्टाम् अवञ्चिषुः प० ववञ्च ववञ्चतुः ववञ्चुः आ० वच्यात्
वच्यास्ताम् वच्यासुः श्व० वञ्चिता वञ्चितारौ वञ्चितारः भ० वञ्चिष्यति वञ्चिष्यतः वञ्चिष्यन्ति क्रि० अवञ्चिष्यत् अवञ्चिष्यताम् अवञ्चिष्यन्
१०७. चयू (चञ्च) गतौ। व० चञ्चति चञ्चतः चञ्चन्ति स० चञ्चेत् चञ्चेताम् चञ्चेयुः प० चञ्चतु/चञ्चतात् चञ्चताम्
चञ्चन्तु ह्य० अचञ्चत् अचञ्चताम् अचञ्चन् अ० अचञ्चीत् अचञ्चिष्टाम् अचञ्चिषुः
प० चचञ्च
चचञ्चतुः चचञ्चः आ० चच्यात् चच्यास्ताम्
चच्यासुः श्व० चञ्चिता चञ्चितारौ चञ्चितार: भ० चञ्चिष्यति चञ्चिष्यतः चञ्चिष्यन्ति क्रि० अचञ्चिष्यत् अचञ्चिष्यताम् अचञ्चिष्यन्
१०८. तञ् (त) गतौ। व० तञ्चति तञ्चतः तञ्चन्ति स० तञ्चेत् तञ्चेताम् तञ्चेयुः प० तञ्चतु/तञ्चतात् तञ्चताम् ह्य० अतञ्चत् अतञ्चताम् अतञ्चन् अ० अतञ्चीत् अतञ्चिष्टाम् अतञ्चिषुः प० ततञ्च ततञ्चतुः ततञ्चुः आ० तच्यात् तच्यास्ताम् तच्यासुः श्व० तञ्चिता तञ्चितारों तञ्चितार: भ० तञ्चिष्यति तञ्चिष्यतः तञ्चिष्यन्ति क्रि० अतञ्चिष्यत् अतञ्चिष्यताम् अतञ्चिष्यन्
१०९. त्वञ्चू (त्व) गतौ। व० त्वञ्चति त्वञ्चतः त्वञ्चन्ति स० त्वञ्चेत् त्वञ्चेताम् त्वञ्चेयुः प० त्वञ्चतु/त्वञ्चतात् त्वञ्चताम् त्वञ्चन्तु ह्य० अत्वञ्चत् अत्वञ्चताम् अत्वञ्चन् अ० अत्वञ्चीत् अत्वञ्चिष्टाम् अत्वञ्चिषुः प० तत्वञ्च तत्वञ्चतुः तत्वञ्चः आ० त्वच्यात् त्वच्यास्ताम् त्वच्यासुः श्व० त्वञ्चिता त्वञ्चितारौ त्वञ्चितारः भ० त्वञ्चिष्यति त्वञ्चिष्यतः त्वञ्चिष्यन्ति क्रि० अत्वञ्चिष्यत् अत्वञ्चिष्यताम् अत्वञ्चिष्यन्
११०. मयू (मञ्च) गतौ। व० मञ्चति मञ्चत: मञ्चन्ति स० मञ्चेत् मञ्चेताम् प० मञ्चतु/मञ्चतात् मञ्चताम् ह्य० अमञ्चत् अमञ्चताम् अमञ्चन् अ० अमञ्चीत् अमञ्चिष्टाम् . अमञ्चिषुः प० ममञ्च ममञ्चतुः ममञ्चः
मञ्छेयुः मञ्चन्तु
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
आ० मच्यात्
श्व० मञ्चिता
भ०
मञ्चिष्यति
क्रि० अमञ्चिष्यत्
व० मुञ्चति
मुञ्चतः
स० मुञ्चेत् मुञ्चेताम्
प० मुञ्चतु/मुञ्चतात् मुञ्चताम्
ह्य० अमुञ्चत्
अ० अमुञ्चीत्
प०
मच्यास्ताम् मच्यासुः
मञ्चितारौ
मञ्चितार:
मञ्चिष्यतः
मञ्चिष्यन्ति
अमञ्चिष्यताम्
अमञ्चिष्यन्
१११. मुञ्च (मुञ्च) गतौ ।
व० म्रुञ्चति
स० म्रुञ्चेत्
प०
मुमुञ्च
मुमुञ्चतुः
आ० मुच्यात्
मुच्यास्ताम्
श्व० मुञ्चिता मुञ्चितारौ
मुञ्चिष्यतः
भ० मुञ्चति क्रि० अमुञ्चिष्यत् अमुचिष्यताम् ११२. म्रुञ्च (मुञ्च) गतौ ।
ह्य० अम्रुञ्चत्
अ० अम्रुञ्चीत्
प० मुम्रुञ्च
अमुञ्चताम्
अमुञ्चष्टाम्
म्रुञ्चतः
म्रुञ्चेताम्
म्रुञ्चतु/म्रुञ्चतात् म्रुञ्चताम्
अम्रुञ्चताम्
अनुचिष्टाम्
मुम्रुञ्चतुः
म्रुच्यास्ताम्
म्रुञ्चितारौ
म्रुचिष्यतः
आ० म्रुच्यात्
श्व० म्रुञ्चिता
भ० म्रुञ्चिष्यति
क्रि० अम्रुञ्चिष्यत् अनुञ्चिष्यताम्
मुञ्चन्ति
मुञ्चेयुः
मुञ्चन्तु
अमुञ्चन्
अमुचिषुः
मुमुचुः
मुच्यासुः
मुञ्चितार:
मुञ्चिष्यन्ति
अमुञ्चष्यन्
व० प्रोचति
स० प्रोचेत् म्रोचेताम्
प० म्रोचतु/म्रोचतात् म्रोचताम्
० अम्रोचत्
अम्रोचताम्
अ० अम्रुचत्
अम्रुचताम्
तथा
म्रुञ्चन्ति
म्रुञ्चेयुः
म्रुञ्चन्तु
अम्रुञ्चन्
अम्रुञ्चिषुः
मुम्रुचुः
म्रुच्यासुः
मुञ्चितार:
मुञ्चिष्यन्ति
अम्रुश्चिष्यन्
११३. म्रुचू (प्रुच्) गतौ ।
प्रोचतः
प्रोचन्ति
म्रोचेयुः
प्रोचन्तु
अम्रोचन्
अम्रुचन्
अम्रोचीत्
प० मुम्रोच
आ० म्रुच्यात्
श्व० प्रोचिता
भ० म्रोचिष्यति
क्रि० अम्रोचिष्यत्
व०
सo
प०
व० म्लोचति
स० म्लोचेत्
म्लोचेताम्
प० म्लोचतु/म्लोचतात् म्लोचताम्
ह्य० अम्लोत्
अ० अम्लोचीत्
प० मुम्लोच
आ० म्लुच्यात्
श्व० म्लोचिता
भ० लोचिष्यति
क्रि० अम्लोचिष्यत्
११४. म्लुचू (म्लुच्) गतौ ।
म्लोचत:
११५.
अम्रोचिष्टाम्
मुम्रुचतुः
म्रुच्यास्ताम्
म्रोचितारौ
म्रोचिष्यतः
अम्रोचिष्यताम्
ग्लुञ्चति
ग्लुञ्चेत्
ग्लुञ्चतु / ग्लुञ्चतात्
ह्य०
अग्लुञ्चत्
अ० अग्लुचत्
तथा - अग्लुञ्चीत्
प० जुग्लुञ्च
आ० ग्लुच्यात्
श्व० ग्लुञ्चिता
भ० ग्लुञ्चिष्यति
क्रि० अग्लुञ्चिष्यत्
अम्रोचिषुः
मुम्रुचुः
म्रुच्यासुः
म्रोचितारः
प्रोचिष्यन्ति
अम्रोचिष्यन्
म्लोचन्ति
म्लोचेयुः
म्लोचन्तु
अम्लोचताम् अम्लोचन्
अम्लोचिष्टाम् अम्लोचिषुः
मुम्लुचतुः
मुम्लुचुः
म्लुच्यास्ताम्
म्लुच्यासुः
म्लोचितारौ
म्लोचितार:
म्लोचिष्यतः म्लोचिष्यन्ति
अम्लोचिष्यताम् अम्लोचिष्यन्
ग्लुञ्च (ग्लुञ्च) गतौ ।
ग्लुञ्चतः ग्लुञ्चन्ति ग्लुञ्चेताम्
ग्लुञ्चेयुः
ग्लुञ्चताम् ग्लुञ्चन्तु
अग्लुञ्चताम्
अग्लुञ्चन्
अग्लुचताम् अग्लुचन्
अग्लुञ्चिष्टाम् अग्लुञ्चिषुः
जुग्लुञ्चतुः जुग्लुचुः
ग्लुच्यास्ताम् ग्लुच्यासुः लुञ्चिता ग्लुञ्चितार: ग्लुञ्चिष्यतः ग्लुञ्चिष्यन्ति
अग्लुञ्चिष्यताम् अग्लुञ्चिष्यन्
व० सश्चति
सश्चतः
स० श्चेत्
सश्चेताम्
प० सश्चतु/सश्चतात् सश्चताम्
११६. षस्व (सश्च) गतौ ।
सश्चन्ति
सश्चेयुः
सश्चन्तु
35
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
36
ह्य०
असश्चत्
अ० असश्चीत्
प० ससश्च
आ० सध्यात्
श्व० सश्चिता
भ० सश्चिष्यति
क्रि० असश्चिष्यत्
व०
ग्रोचति
स० ग्रोचेत्
प०
ग्रोचेताम्
ग्रोचतु / ग्रोचतात् ग्रोचताम्
अग्रोचताम्
० अग्रोचत्
अ० अग्रुचत्
तथा - अग्रोचीत्
प० जुग्रोच
आ० ग्रुच्यात्
श्वо ग्रोचिता
भ० ग्रोचिष्यति
क्रि० अग्रोचिष्यत्
व० ग्लोचति
० ग्लोचेत्
असश्चताम्
असश्चन्
असश्चिष्टाम् असश्चिषुः
ससश्चतुः
ससश्चुः
सध्यास्ताम्
सश्च्यासुः
सचितारौ
सश्चितार:
सश्चिष्यतः
सश्चिष्यन्ति
असश्चिष्यताम् असश्चिष्यन्
११७. च स्तेये ।
ग्रोचतः
अ० अग्लुचत् तथा - अग्लोचीत्
प० जुग्लोच
आ० ग्लुच्यात् श्व० ग्लोचिता
भ० ग्लोचिष्यति
क्रि० अग्लोचिष्यत्
ग्लोचेताम्
प०
ग्लोचतु / ग्लोचतात् ग्लोचताम्
० अग्लोचत् अग्लोचताम्
अग्रुचताम् अग्रुचन्
अग्रोचिष्टाम्
अग्रोचिषुः
जुम्रुचतुः
ग्रुच्यास्ताम्
ग्रोचितारौ
ग्रोचिष्यतः
अग्रोचिष्यताम्
११८. ग्लुचू ( ग्लुच्) स्तेये ।
गतावपि केचित् ।
ग्लोचतः
ग्रोचन्ति
ग्रोचेयुः
ग्रोचन्तु
अग्रोचन्
जुम्रुचुः
ग्रुच्यासुः
ग्रोचितार:
ग्रोचिष्यन्ति
अग्रोचिष्यन्
ग्लोचन्ति
ग्लोचेयुः
ग्लोचन्तु
अग्लोचन्
अग्लुचताम् अग्लुचन् अग्लोचिष्टाम् अग्लोचिषुः
जुग्लुचतुः
जुग्लुचुः
ग्लुच्यास्ताम् ग्लुच्यासुः
ग्लोचितारौ
ग्लोचितार:
ग्लोचिष्यतः
ग्लोचिष्यन्ति
अग्लोचिष्यताम् अग्लोचिष्यन्
अथ छान्ता एकादश सेटच ।
व० म्लेच्छति
म्लेच्छसि
म्लेच्छामि
स० म्लेच्छेत्
म्लेच्छेः
म्लेच्छेयम्
प० म्लेच्छतु / म्लेच्छतात् म्लेच्छताम्
म्लेच्छ/ म्लेच्छतात् म्लेच्छतम् म्लेच्छानि
० अम्लेच्छत्
अम्लेच्छः
११९. म्लेछ (म्लेच्छ्) स्तेये ।
अम्लेच्छम्
अ० अम्लेच्छीत्
अम्लेच्छी:
प०
अम्लेच्छिषम्
मिम्लेच्छ
मिम्लेच्छिथ
मिम्लेच्छ
आम्लेच्छ्त्
म्लेच्छया:
म्लेच्छ्यासम्
श्व० म्लेच्छिता
म्लेच्छितासि
म्लेच्छितास्मि
भ० म्लेच्छिष्यति
म्लेच्छिष्यसि म्लेच्छिष्यामि
क्रि० अम्लेच्छिष्यत्
अम्लेच्छिष्यः
अम्लेच्छिष्यम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
म्लेच्छतः
म्लेच्छथः
म्लेच्छावः म्लेच्छामः
म्लेच्छेताम् म्लेच्छेयुः
म्लेच्छेतम्
म्लेच्छेत
म्लेच्छेव
म्लेच्छेम
म्लेच्छन्तु
म्लेच्छत
म्लेच्छन्ति
म्लेच्छथ
म्लेच्छाव म्लेच्छाम
अम्लेच्छताम् अम्लेच्छन्
अम्लेच्छतम् अम्लेच्छत
अम्लेच्छाव अम्लेच्छाम
अम्लेच्छिष्टाम् अम्लेच्छिषुः
अम्लेच्छिष्टम् अम्लेच्छिष्ट
अम्लेच्छिष्व अम्लेच्छिष्म
मिम्लेच्छतुः मिम्लेच्छुः
मिम्लेच्छथुः मिम्लेच्छ
मिम्लेच्छिव मिम्लेच्छिम
म्लेच्छ्यास्ताम् म्लेच्छ्यासुः
म्लेच्छ्यास्तम् म्लेच्छ्यास्त
म्लेच्छ्यास्व म्लेच्छ्यास्म
म्लेच्छितारौ म्लेच्छितार:
म्लेच्छितास्थः म्लेच्छितास्थ
म्लेच्छितास्वः म्लेच्छितास्मः
म्लेच्छिष्यतः म्लेच्छिष्यन्ति म्लेच्छिष्यथः म्लेच्छिष्यथ म्लेच्छिष्यावः म्लेच्छिष्यामः
अम्लेच्छिष्यताम् अम्लेच्छिष्यन् अम्लेच्छिष्यतम् अम्लेच्छिष्यत
अम्लेच्छिष्याव अम्लेच्छिष्याम
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
व० लच्छति
स० लच्छेत्
प०
लच्छन्ति
लच्छेयुः
लच्छन्तु
अलच्छताम्
अलच्छन्
अलच्छिष्टाम् अलच्छिषुः
ललच्छुः
लच्छ्यासुः
लच्छितार:
भ० लच्छिष्यति
लच्छिष्यन्ति
क्रि० अलच्छिष्यत् अलच्छिष्यताम् अलच्छिष्यन्
१२१. लाछु (लाञ्छ्) लक्षणे।
१२०. लछ (लच्छ्) लक्षणे।
लच्छतः
लच्छेताम्
लच्छतु/लच्छतात्लच्छताम्
ह्य० अलच्छत्
अ०
अलच्छीत्
प०
ललच्छ
आ० लच्छ्यात् व० लच्छिता
+
व० लाञ्छति लाञ्छतः
स० लाञ्छेत् लाञ्छेताम्
प०
लाञ्छतु/लाञ्छतात् लाञ्छताम्
ह्य० अलाञ्छत् अलाञ्छताम् अलाञ्छन् अ० अलाञ्छीत्
अलाञ्छिष्टाम् अलाञ्छिषुः
प० ललाञ्छ
ललाञ्छतुः ललाञ्छुः
आ० लाञ्छ्यात्
लाञ्छ्यास्ताम् लाञ्छ्यासुः
व० लाञ्छिता
लाञ्छितारौ
लाञ्छितार:
भ० लाञ्छिष्यति
लाञ्छिष्यतः
लाञ्छिष्यन्ति
क्रि० अलाञ्छिष्यत् अलाञ्छिष्यताम् अलाञ्छिष्यन्
ललच्छतुः
लच्छ्यास्ताम्
लच्छितारौ
लच्छिष्यतः
१२२. वाछु (वाञ्छ्) इच्छायाम् ।
वाञ्छन्ति
वाञ्छेयुः
वाञ्छन्तु
व० वाञ्छति
स० वाञ्छेत्
प० वाञ्छतु वाञ्छतात् वाञ्छताम्
आ० वाञ्छ्यात्
श्र०,
वाञ्छिता
भ० वाञ्छिष्यति
क्रि० अवाञ्छिष्यत्
लाञ्छन्ति
लाञ्छेयुः
लाञ्छन्तु
वाञ्छतः
वाञ्छेताम्
ह्य० अवाञ्छत् अवाञ्छताम् अवाञ्छन्
अ० अवाञ्छीत्
अवाञ्छिष्टाम् अवाञ्छिषुः
प० ववाञ्छ
ववाञ्छतुः
ववाञ्छुः वाञ्छ्यास्ताम् वाञ्छ्यासुः
वाञ्छितारौ
वाञ्छितार:
वाञ्छिष्यन्ति
वाञ्छिष्यतः अवाञ्छिष्यताम् अवाञ्छिष्यन्
व० आञ्छति
स० आञ्छेत्
प०
१२३. आछु (आञ्छ्) आयामे ।
आञ्छतः
आञ्छेताम्
आञ्छतु/आञ्छतात् आञ्छताम्
आञ्छताम्
आञ्छिष्टाम्
आञ्छतुः
आञ्छ्यास्ताम्
आञ्छ्यासुः
आञ्छितारौ
आञ्छितारः
भ० आञ्छिष्यति
आञ्छिष्यतः
आञ्छिष्यन्ति
क्रि० आञ्छिष्यत् आञ्छिष्यताम् आञ्छिष्यन्
१२४. ह्रीच्छ (ह्रीच्छ्) लज्जायाम्।
हीच्छति
ह्रीच्छतः
हीच्छन्ति
ह्रीच्छेत्
हीच्छेताम्
ह्रीच्छेयुः
ह्रीच्छतु / ह्रीच्छतात् हीच्छताम्
हीच्छन्तु
अह्रीच्छताम्
अह्रीच्छन्
अह्रीच्छिष्टाम्
अह्रीच्छिषुः
जिह्रीच्छतुः जिह्रीच्छुः
ह्य० आञ्छत्
अ० आञ्छीत्
प० आञ्छ
आ० आञ्छ्यात्
४०
आञ्छिता
व०
स०
प०
ह्य० अह्रीच्छत्
अ० अहीच्छीत्
प० जिह्रीच्छ
आ० च्छात्
श्व० हीच्छिता
च्छ्यास्ताम् ह्रीच्छ्यासुः
हीच्छितार:
भ० हीच्छिष्यति
हीच्छिष्यन्ति
क्रि० अह्रीच्छिष्यत् अह्रीच्छिष्यताम् अह्रीच्छिष्यन्
१२५. हुर्छा (हूर्च्छ) कौटिल्ये ।
आ० हूत्
श्व० हूर्छिता
भ० हूर्छिष्यति क्रि० अहूर्छिष्यत्
हीच्छिता
हीच्छिष्यतः
व० हूर्छति हूर्छत:
स० हूर्च्छत्
हूर्च्छताम्
प० हूर्छतु/हूर्छतात् हूर्छताम्
ह्य० अहूर्छत्
अ० अहूछत्
प० जुहूर्छ
आञ्छन्ति
आञ्छेयुः
आञ्छन्तु
आञ्छन्
आञ्छिषुः
आञ्छुः
हूर्छन्ति
हूर्छेयुः
हूर्छन्तु
अहूर्छन्
अहूर्छिषुः
जुहूर्छतुः जुहूर्छह:
अहूर्छाम्
अहूर्च्छष्टाम्
हूर्यास्ताम्
हूर्छितारौ
हूर्छिष्यत:
अहूर्छिष्यताम्
हूर्ध्यासुः
हूर्छितार:
हूर्छिष्यन्ति
अहूर्छिष्यन्
37
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
38
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मुमर्छः
१२६. मुर्छा (मूर्च्छ) मोहसमुच्छाययोः। व० मूर्छति मूर्छतः मूर्छन्ति स० मूर्छत् मूर्छताम् मूर्छयुः प० मूर्छतु/मूर्छतात् मूर्छताम् मूर्छन्तु ह्य० अमूर्छत् अमूर्छताम् अमूर्छन् अ० अमूर्चीत् अमूर्छिष्टाम् अमूर्छिषुः प० मुमूर्छ मुमूर्छतुः आ० मूर्ध्यात् मूर्यास्ताम् मूळसुः २० मूर्छिता मूर्छितारौ मूर्छितारः भ० मूर्छिष्यति मूर्छिष्यतः मूर्छिष्यन्ति क्रि० अमूर्छिष्यत् अमूर्छिष्यताम् अमूर्छिष्यन्
१२७. स्फुर्छा (स्फूर्छ) विस्मृतौ। व० स्फूर्छति स्फूर्छतः स्फूर्छन्ति स० स्फूर्छत् स्फूर्छताम् स्फूर्च्युः प० स्फूर्छतु/स्फूर्छतात् स्फूर्छताम् स्फूर्छन्तु ह्य० अस्फूर्छत् अस्फूर्छताम् अस्फूर्छन् अ० अस्फूर्चीत् अस्फूर्छिष्टाम् अस्फूर्छिषुः प० पुस्फूर्छ पुस्फूर्छतुः पुस्फर्छः आ० स्फूात् स्फूर्यास्ताम् स्फूासुः श्व० स्फूर्छिता स्फूर्छितारौ स्फूर्छितारः भ० स्फूर्छिष्यति स्फूर्छिष्यतः स्फूर्छिष्यन्ति क्रि० अस्फूर्छिष्यत् अस्फूर्छिष्यताम् अस्फूर्छिष्यन्
१२८. स्मुर्छा (स्मू ) विस्मृतौ। व० स्मूर्छति स्मूर्छतः स्मूर्छन्ति स० स्मूर्छत् स्मूर्छताम् स्मूर्छयुः प० स्मूर्छतु/स्मूर्छतात् स्मूर्छताम् स्मूर्छन्तु ह्य० अस्मूर्छत् अस्मूर्छताम् अस्मूर्छन् अ० अम्मू त् अस्मूर्छिष्टाम् अस्मूर्छिषुः प० सुस्मूर्छ सुस्मूर्छतुः सुस्मर्छ: आ० स्मू र्ध्यात् स्मूर्यास्ताम् स्मासुः व० स्मूर्छिता स्मूर्छितारौ स्मूर्छितार: भ० स्मूर्छिष्यति स्मूर्छिष्यतः
स्मूर्छिष्यन्ति
क्रि० अस्मूर्छिष्यत् अस्मूर्छिष्यताम् अस्मूर्छिष्यन्
१२९. युछ (युच्छ) प्रमादे।। व० युच्छति युच्छतः युच्छन्ति स० युच्छेत् युच्छेताम् युच्छेयुः प० युच्छतु/युच्छतात् युच्छताम् युच्छन्तु ह्य० अयुच्छत् अयुच्छताम् अयुच्छन् अ० अयुच्छीत् अयुच्छिष्टाम् अयुच्छिषुः प० युयुच्छ युयुच्छतुः युयुच्छु: आ० युच्छयात् युच्छ्यास्ताम् युच्छयासुः श्व० युच्छता युच्छितारौ युच्छितारः भ० युच्छिष्यति युच्छिष्यतः युच्छिष्यन्ति क्रि० अयुच्छिष्यत् अयुच्छिष्यताम् अयुच्छिष्यन् __अथ जान्ताश्चतुश्चत्वारिंशत् त्यजषजवर्जाः सेटश्च।।
१३०. धृज (धृज्) गतौ। व० धर्जति धर्जतः धर्जन्ति
धर्जसि धर्जथः धर्जथ धर्जामि धर्जाव: धर्नाम: धर्जेत्
धर्जेयुः धर्जे: धर्जेतम् धर्जेत
धर्जेयम् धर्जेव धर्जेम | प० धर्जतु/धर्जतात् धर्जताम् धर्जन्तु
धर्ज/धर्जतात् धर्जतम् धर्जत
धर्जानि धर्जाव धर्जाम ह्य० अधर्जत् अधर्जताम् अधर्जन्
अधर्ज: अधर्जतम् अधर्जत
अधर्जाम् अधर्जाव अधर्जाम अ० अधर्जीत् अधर्जिष्टाम् अधर्जिषुः
अधर्जीः अधर्जिष्टम् अधर्जिष्ट
अधर्जिषम अधर्जिष्व अधर्जिष्म प० दधर्ज दधृजतुः
दधृजुः दधर्जिथ दधृजथुः दधृज दधर्ज
दधृजिव दधृजिम | आ० धृज्यात् धृज्यास्ताम् धृज्यासुः
धर्जेताम्
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
# # # # # #
ध्रजेयुः
धृज्याः
धृज्यास्तम् धृज्यास्त धृज्यासम् धृज्यास्व धृज्यास्म श्व० धर्जिता धर्जितारौ धर्जितारः
धर्जितासि धर्जितास्थ: धर्जितास्थ
धर्जितास्मि धर्जितास्वः धर्जितास्मः भ० धर्जिष्यति धर्जिष्यतः धर्जिष्यन्ति
धर्जिष्यसि धर्जिष्यथः धर्जिष्यथ
धर्जिष्यामि धर्जिष्याव: धर्जिष्यामः क्रि० अधर्जिष्यत् अधर्जिष्यताम् अधर्जिष्यन्
अधर्जिष्यः अधर्जिष्यतम अधर्जिष्यत अधर्जिष्यम् अधर्जिष्याव अधर्जिष्याम १३१. धृजु (धृ) गतौ।
(उपरिवत्) व० धृति धृञ्जतः धृञ्जन्ति स० धृजेत् धृजेताम् धृजेयुः प० धृञ्जतु/धृञ्जतात् धृञ्जताम् । धृञ्जन्तु ह्य० अधृजत् अधृञ्जताम् । अधृजन् अ० अधृञ्जीत् अधृञ्जिष्टाम् अधृञ्जिषुः प० दधृज दधृजतुः दधृ ः आ० धृज्यात् धृज्यास्ताम् धृज्यासुः श्व० धृञ्जिता धृञ्जितारौ धृञ्जितारः भ० धृजिष्यति धृञ्जिष्यतः धृञ्जिष्यन्ति क्रि० अधृञ्जिष्यत् अधृञ्जिष्यताम् अधृञ्जिष्यन्
१३२. ध्वज (ध्वज) गतौ। व० ध्वजति ध्वजतः ध्वजन्ति स० ध्वजेत्
ध्वजेताम्
ध्वजेयुः प० ध्वजतु/ध्वजतात् ध्वजताम् ह्य० अध्वजत् अध्वजताम् अध्वजन् अ० अध्वाजीत् अध्वाजिष्टाम् अध्वाजिषुः
तथा अध्वजीत् अध्वजिष्टाम् अध्वजिषु प० दध्वाज दध्वजतुः दध्वजुः आ० ध्वज्यात् ध्वज्यास्ताम्
ध्वज्यासुः
श्व० ध्वजिता ध्वजितारौ ध्वजितारः भ० ध्वजिष्यति ध्वजिष्यतः ध्वजिष्यन्ति क्रि० अध्वजिष्यत् अध्वजिष्यताम् अध्वजिष्यन्
१३३. ध्वजु (ध्वज्) गतौ। व० ध्वञ्जति ध्वञ्जतः ध्वञ्जन्ति स० ध्वजेत् ध्वजेताम् ध्वजेयुः प० ध्वञ्जतु/ध्वञ्जतात् ध्वञ्जताम् ध्वजन्तु ह्य० अध्वजत् अध्वञ्जताम् अध्वजन् अ० अध्वजीत् अध्वञ्जिष्टाम् अध्वञ्जिषुः प० दध्वज दध्वञ्जतुः दध्वजैः आ० ध्वज्यात् ध्वज्यास्ताम् ध्वज्यासुः श्व० ध्वञ्जिता ध्वञ्जितारौ ध्वञ्जितारः भ० ध्वञ्जिष्यति ध्वञ्जिष्यतः ध्वञ्जिष्यन्ति क्रि० अध्वञ्जिष्यत् अध्वञ्जिष्यताम् अध्वञ्जिष्यन्
१३४. ध्रज (ध्रज) गतौ। व० ध्रजति ध्रजतः ध्रजन्ति स० ध्रजेत् ध्रजेताम् प० ध्रजतु/ध्रजतात् ध्रजताम् । ध्रजन्तु ह्य० अध्रजत् अध्रजताम् अध्रजन् अ० अध्राजीत् अध्राजिष्टाम् अध्राजिषुः
तथा अध्रजीत् अध्रजिष्टाम् अध्रजिषुः प० दध्राज दध्रजतुः दध्रजुः आ० ध्रज्यात् ध्रज्यास्ताम् ध्रज्यासुः N० ध्रजिता ध्रजितारौ ध्रजितार: भ० ध्रजिष्यति ध्रजिष्यतः ध्रजिष्यन्ति क्रि० अध्रजिष्यत् अध्रजिष्यताम् अध्रजिष्यन्
१३५. ध्रजु (ध्र) गतौ। व० ध्रञ्जति ध्रञ्जतः ध्रञ्जन्ति स० ध्रजेत्
ध्रजेताम् प० ध्रञ्जतु/ध्रञ्जतात् ध्रञ्जताम् ध्रञ्जन्तु ह्य० अध्रञ्जत् अध्रञ्जताम् अध्रञ्जन् अ० अध्रजीत् अध्रञ्जिष्टाम् अध्रञ्जिषुः प० दध्रञ्ज दध्रञ्जतुः दध्र ः आ० ध्रज्यात् ध्रज्यास्ताम् ध्रज्यासुः
ध्वजन्तु
ध्रजेयुः
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
वजेताम्
वजेयुः
अजेयुः अजन्तु
विव्युः वीयासुः
वेष्यतः
श्व० ध्रञ्जिता ध्रञ्जितारौ ध्रञ्जितारः भ० ध्रञ्जिष्यति ध्रञ्जिष्यतः ध्रञ्जिष्यन्ति क्रि० अध्रञ्जिष्यत् अध्रञ्जिष्यताम् अध्रञ्जिष्यन
१३६. वज (वज्) गतौ। व० वजति
वजतः
वजन्ति स० वजेत् प० वजतु/वजतात् वजताम् वजन्तु ह्य० अवजत् अवजताम्
अवजन् अ० अवाजीत् अवाजिष्टाम् अवाजिषुः
तथा अवजीत् अवजिष्टाम् अवजिषुः प० ववाज ववजतुः
ववजुः आ० वज्यात् वज्यास्ताम्
वज्यासुः ० वजिता वजितारौ वजितार: भ० वजिष्यति वजिष्यत: वजिष्यन्ति क्रि० अवजिष्यत् अवजिष्यताम् अवजिष्यन्
१३७. व्रज (व्रज्) गतौ। व० व्रजति
व्रजतः
व्रजन्ति स० व्रजेत् व्रजेताम् प० व्रजतु/व्रजतात् व्रजताम्
व्रजन्तु ह्य० अव्रजत् अव्रजताम् अव्रजन् अ० अव्राजीत् अव्राजिष्टाम अव्राजिषुः
अव्रजीत् अवजिष्टाम् अव्रजिषुः प० वव्राज वव्रजतुः वव्रजुः आ० व्रज्यात् व्रज्यास्ताम्
व्रज्यासुः श्व० व्रजिता व्रजितारौ व्रजितार: भ० व्रजिष्यति व्रजिष्यतः व्रजिष्यन्ति क्रि० अवजिष्यत् अव्रजिष्यताम् अवजिष्यन्
१३८. षस्ज (सज्ज्) गतौ। व० सज्जति
सज्जतः सज्जन्ति स० सज्जेत्
सज्जेताम् प० सज्जतु/सज्जतात् सज्जताम् सज्जन्तु ह्य० असज्जत् असज्जताम्
असज्जन् अ० असज्जीत् असज्जिष्टाम् असज्जिषुः
प० ससज्ज ससज्जतुः ससज्जुः आ० सज्ज्यात् सज्ज्यास्ताम् सज्ज्यासुः श्व० सज्जिता सज्जितारौ सज्जितारः भ० सज्जिष्यति सज्जिष्यतः सज्जिष्यन्ति क्रि० असज्जिष्यत् असज्जिष्यताम् असज्जिष्यन्
१३९. अज (अज्) क्षेपणे च। चकाराद् गतौ। व० अजति अजतः अजन्ति स० अजेत् अजेताम् प० अजतु/अजतात् अजताम् ह्य० आजत् आजताम् आजन् अ० अवैषीत् अवैष्टाम् अवैषुः प० विवाय विव्यतुः आ० वीयात्
वीयास्ताम् श्व० वेता वेतारौ वेतारः भ० वेष्यति
वेष्यन्ति क्रि० अवेष्यत् __अवेष्यताम् अवेष्यन्
१४०. कुजू (कुज्) स्तेये। व० कोजति कोजतः कोजन्ति स० कोजेत् कोजेताम् कोजेयुः प० कोजतु/कोजतात् कोजताम् कोजन्तु ह्य० अकोजत् अकोजताम् अकोजन् अ० अकोजीत् अकोजिष्टाम् अकोजिषुः प० चुकोज चुकुजतुः चुकजुः आ० कुज्यात् कुज्यास्ताम् कुज्यासुः श्व० कोजिता कोजितारौ कोजितारः भ० कोजिष्यति कोजिष्यतः कोजिष्यन्ति क्रि० अकोजिष्यत् अकोजिष्यताम् अकोजिष्यन्
१४१. खुजू (खुज्) स्तेये। व० खोजति खोजतः खोजन्ति स० खोजेत् खोजेताम् खोजेयुः प० खोजतु/खोजतात् खोजताम् ह्य० अखोजत् अखोजताम् अखोजन्
व्रजेयुः
सज्जेयुः
खोजन्तु
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
अ० अखोजीत्
प० खोज
आ० खुज्यात् व० खोजिता
भ० खोजिष्यति
क्रि० अखोजिष्यत्
व० अर्जति
स० अर्जेत्
प०
ह्य० आर्जत्
अ० आर्जीत्
प०
आनर्ज
आ. अर्ध्यात्
श्व० अर्जिता
भ० अर्जिष्यति
क्रि० आर्जिष्यत्
व० सर्जति
स० सर्जेत्
प०
अर्जेताम्
अर्जतु/अर्जतात् अर्जताम्
आर्जतम्
आर्जिष्टाम्
आनर्जतुः
अर्ध्याताम्
अर्ज्यासुः
अर्जितारौ
अर्जितार:
अर्जिष्यतः
अर्जिष्यन्ति
आर्जिष्यताम् आर्जिष्यन्
असत्
अ० असर्जीत्
प० ससर्ज
आ० सर्ज्यात्
व० सर्जिता
व०
कर्जति
अखोजिष्टाम् अखोजिषुः
चुखुजतुः
चुखजुः
खुज्यास्ताम् खुज्यासुः
खोजितारौ
खोजितार:
खोजिष्यतः
१४२. अर्ज (अर्ज) अर्जने ।
अर्जतः
सर्जे
खोजिष्यन्ति
अखोजिष्यताम् अखोजिष्यन्
१४३. सर्ज (सर्ज्) सर्जने ।
सर्जत:
सर्जेताम्
सर्जतु / सर्जतात् सर्जताम्
असर्जताम्
असर्जन्
असर्जिष्टाम्
असर्जिषुः
सर्जतुः
ससर्जुः
सर्ज्यास्ताम्
सर्ज्यासुः
सर्जितारौ
सर्जितार:
भ० सर्जिष्यति
सर्जिष्यतः
सर्जिष्यन्ति
क्रि० असर्जिष्यत् असर्जिष्यताम् असर्जिष्यन्
१४४. कर्ज (कर्ज) व्यथने ।
कर्जत :
कर्जेताम्
अर्जन्ति
अर्जेयुः
अर्जन्तु
आर्जन्
आर्जिषुः
आनर्जुः
सर्जन्ति
सर्जेयुः
सर्ज
कर्जन्ति
कर्जेयुः
प०
ह्य०
अ० अकर्जीत्
प० चकर्ज
आ० कर्ण्यात्
श्व० कर्जिता
भ० कर्जिष्यति
क्रि० अकर्जिष्यत्
कर्जतु / कर्जतात् कर्जताम्
अर्ज्जत्
व० खर्जति
० खर्जेत्
प०
ह्य०
अखत्
अ० अखर्जीत्
प० चखर्ज
व०
० खर्ज्यात्
श्व० खर्जिता
प०
१४५. खर्ज (खर्ज्) मार्जने च ।
खर्जेताम्
खर्जतु / खर्जतात् खर्जताम्
अखर्ज्जताम्
अष्टिम्
अखन्
अखर्जिषुः
चखर्जुः
खर्ज्यासुः
खर्जितार:
खर्जिष्यन्ति
अखर्जिष्यन्
१४६. खज (खज्) मन्थे । मन्थो विलोडनम् ।
खजति
खजन्ति
० खजेत्
खजेयुः
खजन्तु
अखजन्
अखाजिषुः
अर्ज्जताम्
भ० खर्जिष्यति
क्रि० अखर्जिष्यत् अखर्जिष्यताम्
ह्य०
अखजत्
अ० अखाजीत्
अखत्
प० चखाज
आ० खज्यात्
श्व० खजिता
अष्टाम्
चकर्जतुः चकर्जुः
कर्ज्यास्ताम्
कर्ज्यासुः
कर्जितारौ
कर्जितार:
कर्जिष्यतः
कर्जिष्यन्ति
अकर्जिष्यताम् अर्जिष्यन्
चकाराद् व्यथने ।
खर्जतः
खजतः
खजेताम्
खजतु / खजतात् खजताम्
भ० खजिष्यति
क्रि० अखजिष्यत्
चखर्जतुः
खर्ज्यास्ताम्
खर्जितारौ
खर्जिष्यतः
कर्जन्तु अकर्ज्जन्
अकर्जिषुः
अखजताम्
अखाजिष्टाम्
तथा
अखजिष्टाम्
चखजतुः
खज्यास्ताम्
खजितारौ
खजिष्यतः
अखजिष्यताम्
खर्जन्ति
खर्जेयुः
खर्जन्तु
अखजिषुः
चखजुः
खज्यासुः
खजितार:
खजिष्यन्ति
अखजिष्यन्
41
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ऐजिष्यतम्
१४७. खजु (ख) गतौ। व० खञ्जति खञ्जतः खञ्जन्ति स० खञ्जत् खजेताम
खजेयुः प० खञ्जतु/खञ्जतात् खञ्जताम् खञ्जन्तु ह्य० अखञ्जः अखञ्जताम् अखञ्जन् अ० अखञ्जीत् अखञ्जिष्टाम् अखञ्जिषुः प० चखञ्ज चखञ्जतुः चखञ्जः आ० खज्यात् खज्यास्ताम् खज्यासुः श्रु० खञ्जिता खञ्जितारौ खञ्जितारः भ० खञ्जिष्यति खञ्जिष्यतः खञ्जिष्यन्ति क्रि० अखञ्जिष्यत् अखञ्जिष्यताम् अखञ्जिष्यन्
१४८. एज़ (एज्) कम्पने। व० एजति एजतः
एजन्ति एजसि एजथ:
एजथ एजामि एजाव: एजाम: स० एजेत् एजेताम् एजेयुः
एजेतम् एजेयम् एजेव एजेम एजतु/एजतात् एजताम् एजन्तु एज/एजतात् एजतम् एजत
एजानि एजाव एजाम ह्य० ऐजत् ऐजताम्
ऐजत ऐजाव
ऐजाम अ० ऐजीत्
ऐजिषुः ऐजी:
ऐजिष्टम् ऐजिषम् ऐजिष्व ऐजिष्म एजाञ्चकार एजाञ्चक्रतुः एजाञ्चक्रुः एजाञ्चकर्थ एजाञ्चक्रथुः एजाञ्चक्र एजाञ्चकार/रजाशकर एजाञ्चकृव एजाञ्चकृम
एजाम्बभूव/एजामास आ० एज्यात् एज्यास्ताम् एज्यासुः
एज्या: एज्यास्तम् एज्यास्त
एजेत
एज्यासम् एज्यास्व एज्यास्म श्व० एजिता एजितारौ एजितार:
एजितासि एजितास्थः एजितास्थ
एजितास्मि एजितास्वः एजितास्मः भ० एजिष्यति
एजिष्यतः
एजिष्यन्ति एजिष्यसि एजिष्यथ: एजिष्यथ
एजिष्यामि एजिष्याव: एजिष्याम: क्रि० ऐजिष्यत् ऐजिष्यताम् ऐजिष्यन् ऐजिष्यः
ऐजिष्यत ऐजिष्यम्
ऐजिष्याव ऐजिष्याम १४९. ट्वोस्फूर्जा (स्फू) वज्रनिर्घोषे। व० स्फूर्जति स्फूर्जतः स्फूर्जन्ति
स्फूर्जसि स्फूर्जथः स्फूर्जथ
स्फूर्जामि स्फूर्जाव: स्फूर्जामः स० स्फूर्फत् स्फूर्जेताम् स्फूर्जेयुः
स्फूर्जे: स्फूर्जेतम् स्फूर्जेत
स्फूर्जेयम् स्फूर्जेव स्फूर्जेम प० स्फूर्जतु/स्फूर्जतात् स्फूर्जताम् स्फूर्जन्तु
स्फूर्ज/स्फूर्जतात् स्फूर्जतम् स्फूर्जत
स्फूर्जानि स्फूर्जाव स्फूर्जाम ह्य० अस्फूर्जत् अस्फूर्जताम् अस्फूर्जन्
अस्फूर्जः अस्फूर्जतम् __ अस्फूर्जत
अस्फूर्जम् अस्फूर्जाव अस्फूर्जाम अ० अस्फूर्जीत् अस्फूर्जिष्टाम् __ अस्फूर्जिषुः
अस्फूर्जीः अस्फूर्जिष्टम् अस्फूर्जिष्ट
अस्फूर्जिषम् अस्फूर्जिष्व । अस्फूर्जिष्म प० पुस्फूर्ज पुस्फूर्जतुः पुस्फूर्जुः
पुस्फूर्जथुः
पुस्फूर्ज पुस्फूर्ज पुस्फूर्जिव पुस्फूर्जिम आ० स्फू र्ध्यात् स्फूर्यास्ताम् स्फूर्ध्यासुः
स्फूर्त्याः स्फूजर्यास्तम् स्फूर्यास्त स्फूर्त्यासम् स्फूास्व स्फूर्यास्म
प०
ऐजन्
ऐजतम्
ऐजः ऐजम्
ऐजिष्टाम्
ऐजिष्ट
प०
पुस्फूर्जिथ
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
43
गोजतः
चिक्षीजुः
श्व० स्फूर्जिता स्फूर्जितारौ स्फूर्जितार: | क्रि० अकूजिष्यत् अकूजिष्यताम् अकूजिष्यन् स्फूर्जितासि स्फूर्जितास्थः स्फूर्जितास्थ
१५२. गुज (गुज्) अव्यक्ते शब्द। स्फूर्जितास्मि स्फूर्जितास्वः स्फूर्जितास्मः व० गोजति
गोजन्ति भ० स्फूर्जिष्यति स्फूर्जिष्यतः स्फूर्जिष्यन्ति स० गोजेत्
गोजेताम्
गोजेयुः स्फूर्जिष्यसि स्फूर्जिष्यथः स्फूर्जिष्यथ प० गोजतु/गोजतात् गोजताम् गोगन्तु
स्फूर्जिष्यामि स्फूर्जिष्यावः स्फूर्जिष्यामः ह्य० अगोजत् अगोजताम् अगोजन् क्रि० अस्फूर्जिष्यत् अस्फूर्जिष्यताम् अस्फूर्जिष्यन्
अ० अगोजीत् अगोजिष्टाम् अगोजिषुः अस्फूर्जिष्यः अस्फूर्जिष्यतम् अस्फूर्जिष्यत
प० जुगोज जुगुजतुः
जुगुजुः अस्फूर्जिष्यम् अस्फूर्जिष्याव अस्फूर्जिष्याम आ० गुज्यात् गुज्यास्ताम् गुज्यासुः
श्व० गोजिता गोजितारौ १५०. क्षीज (क्षीज्) अव्यक्ते शब्द।
गोजितार: व० क्षीजति क्षीजतः क्षीजन्ति
भ० गोजिष्यति गोजिष्यतः गोजिष्यन्ति स० क्षीजेत् क्षीजेताम् क्षीजेयुः
क्रि० अगोजिष्यत् अगोजिष्यताम् अगोजिष्यन् प० क्षीजतु/क्षीजतात् क्षीजताम् क्षीजन्तु
१५३. गुजु (गुज्) अव्यक्ते शब्दे। ह्य० अक्षीजत् अक्षीजताम् अक्षीजन्
व० गुञ्जति गुञ्जतः गुञ्जन्ति अ अक्षीजीत् अक्षीजिष्टाम् अक्षीजिषुः
स० गुञ्जेत् गुजेताम् गुञ्जेयुः प० चिक्षीज चिक्षीजतुः
प० गुञ्जतु/गुञ्जतात् गुजताम् गुञ्जन्तु आ० क्षीज्यात् क्षीज्यास्ताम्
क्षीज्यासुः
ह्य० अगुञ्जत् अगुञ्जताम् अगुञ्जन् श्व० क्षीजिता क्षीजितारौ क्षीजितारः अ० अगुञ्जीत् अगुञ्जिष्टाम् अगुञ्जिषुः भ० क्षीजिष्यति क्षीजिष्यतः क्षीजिष्यन्ति प० जुगुञ्ज जुगुञ्जतुः जुगु ः क्रि० अक्षीजिष्यत् अक्षीजिष्यताम् अक्षीजिष्यन् आ० गुज्यात् गुज्यास्ताम् गुज्यासुः १५१. कूज (कूज्) अव्यक्ते शब्द।
श्व० गुञ्जिता गुञ्जितारौ गुञ्जितार: व० कूजति कूजतः कूजन्ति
भ० गुञ्जिष्यति गुञ्जिष्यतः गुञ्जिष्यन्ति स० कूजेत् कूजेताम्
क्रि० अगुञ्जिष्यत् अगुञ्जिष्यताम् अगुञ्जिष्यन् कूजेयुः
१५४. लज (लज्) भर्त्सने। प० कूजतु/कूजतात् कूजताम्
व० लजति लजतः
लजन्ति ह्य० अकूजत् अकूजताम् अकूजन्
स० लजेत् लजेताम् अ० अकूजीत् अकूजिष्टाम् अकूजिषुः
प० लजतु/लजतात् लजताम् लजन्तु प० चुकूज चुकूजतुः चुकूजुः
ह्य० अलजत्
अलजताम् अलजन् आ० कुज्यात् कुज्यास्ताम् कुज्यासुः
अ० अलाजीत् अलाजिष्टाम् अलाजिषुः श्व० कूजिता कूजितारौ कूजितार:
तथा भ० कूजिष्यति कूजिष्यतः कूजिष्यन्ति
अलजीत् अलजिष्टाम् अलजिषुः प० ललाज
लेजुः १. भ्वादेर्नामिन इति दीर्घ सिद्ध दीर्घोच्चारणम् भ्वादेरिति | आ० लज्यात् लज्यास्ताम् लज्यासुः दीर्घत्वस्यानित्यत्वख्यापनार्थम्। तेन कुर्दते कुर्दन इति सिद्धम् श्व० लजिता लजितारौ लजितार:
कूजन्तु
लजेयुः
लेजतुः
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
44
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
भ० लजिष्यति लजिष्यतः लजिष्यन्ति क्रि० अलजिष्यत् अलजिष्यताम् अलजिष्यन्
१५५. लजु (लज्) भर्त्सने। व० लञ्जति लञ्जतः लञ्जन्ति स० लजेत् लजेताम् लजेयुः प० लञ्जतु/लञ्जतात् लञ्जताम् लञ्जन्तु ह्य० अलञ्जत् अलञ्जताम् अलजन् अ० अलजीत् अलञ्जिष्टाम् अलञ्जिषुः प० ललज ललञ्जतुः लल ः आ० लज्यात् लज्यास्ताम् लज्यासुः श्व० लञ्जिता लञ्जितारौ लञ्जितारः भ० लञ्जिष्यति लञ्जिष्यतः लञ्जिष्यन्ति क्रि० अलञ्जिष्यत् अलञ्जिष्यताम् अलञ्जिष्यन्
१५६. तर्ज (त) भर्त्सने। व० तर्जति तर्जतः तर्जन्ति स० तर्जेत्
तर्जेताम्
तर्जेयुः प० तर्जतु/तर्जतात् तर्जताम् ह्य० अतर्जत् अतर्जताम् अतर्जन् अ० अतीत् अतर्जिष्टाम् अतर्जिषुः प० ततर्ज ततर्जतुः आ० तात् तास्ताम् तासुः श्व० तर्जिता तर्जितारौ तर्जितार: भ० तर्जिष्यति तर्जिष्यतः तर्जिष्यन्ति क्रि० अतर्जिष्यत् अतर्जिष्यताम् अतर्जिष्यन्
१५७. लाज (लाज्) भर्जने च चकाराद् भर्त्सने। व० लाजति लाजतः लाजन्ति स० लाजेत् लाजेताम् प० लाजतु/लाजतात् लाजताम् लाजन्तु ह्य० अलाजत् अलाजताम् अलाजन् अ० अलाजीत् अलाजिष्टाम् अलाजिषुः
श्व० लाजिता लाजितारौ लाजितार: भ० लाजिष्यति लाजिष्यतः लाजिष्यन्ति क्रि० अलाजिष्यत् अलाजिष्यताम् अलाजिष्यन्
१५८. लाजु (लाज्) भर्जने च। चकाराद्भर्त्सने। व० लाञ्जति लाञ्जतः लाञ्जन्ति स० लाञ्जत् लाजेताम् लाञ्जेयुः प० लाञ्जतु/लाञ्जतात् लाञ्जताम् लाञ्जन्तु ह्य० अलाञ्जत् अलाञ्जताम् अलाजन् अ० अलाञ्जीत् अलाञ्जिष्टाम् अलाधिषुः प० ललाञ्ज ललाञ्जतुः लला ः आ० लाज्यात् लाञ्ज्यास्ताम् लाज्यासुः श्व० लाञ्जिता लाञ्जितारौ लाञ्जितारः भ० लाञ्जिष्यति लाञ्जिष्यतः लाञ्जिष्यन्ति क्रि० अलाञ्जिष्यत् अलाञ्जिष्यताम् अलाञ्जिष्यन्
१५९. जज (जज्) युद्धे। व० जजति जजत: जजन्ति स० जजेत् जजेताम् जजेयुः प० जजतु/जजतात् जजताम् जजन्तु ह्य० अजजत् अजजताम् अजजन् अ० अजाजीत् अजाजिष्टाम् अजाजिषुः
तर्जन्तु
ततर्जुः
तथा
जेजतुः
लाजेयुः
अजजीत् अजजिष्टाम् अजजिषुः प० जजाज
जेजुः आ० जज्यात् जज्यास्ताम् जज्यासुः श्व० जजिता जजितारौ
जजितारः भ० जजिष्यति जजिष्यतः जजिष्यन्ति क्रि० अजजिष्यत् अजजिष्यताम् अजजिष्यन्
१६०. जजु (ज) युद्ध। व० जञ्जति जञ्जतः जञ्जन्ति स० जजेत् जञ्जताम् जज्ञेयुः प० जञ्जतु/जञ्जतात् जञ्जताम् जञ्जन्तु ह्य० अजञ्जत् अजञ्जताम् अजञ्जन्
प० ललाज
ललाजतुः
ललाजुः लाज्यासुः
आ० लाज्यात्
लाज्यास्ताम्
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
अ० अजञ्जीत्
प० जजञ्ज
अजञ्जिष्टाम्
जजञ्जतुः
आ० जञ्ज्यात्
जञ्ज्यास्ताम्
श्व० जञ्जिता
जञ्जारौ
भ० जञ्जिष्यति
जञ्जिष्यतः
क्रि० अजजिष्यत् अजञ्जिष्यताम्
मं
व० तोजति
तोजन्ति
स० तोजेत्
जेम्
तोजेयुः
प० तोजतु /तोजतात् तोजताम्
तोन्तु
ह्य० अतोजत्
अतोजाम्
अतोजन्
अ० अतोजीत्
अतोजिष्टाम् अतोजिषुः
प० तुतोज
१६१. तुज (तुज्) हिंसायाम् ।
तोजतः
अजञ्जिषुः
जजञ्जुः
जञ्ज्यासुः
जञ्जितार:
जञ्जिष्यन्ति
अजञ्जिष्यन्
आ० तुज्यात्
•
श्व०
तोजिता
भ० तोजिष्यति
क्रि० अतोजिष्यत्
व०
गर्जति
स० गर्जेत्
तुतुजतुः
तुज्यास्ताम्
तोजितारौ
तोजिष्यतः
अतोजिष्यताम्
१६२. तुजु (तु) बलने च ।
चाद् हिंसायाम् । बलनं प्राणनम् ।
तुतुजुः
तुज्यासुः
तोजितार:
तोजिष्यन्ति
अतोजिष्यन्
तुञ्जतः
व० तुञ्जति स० तुञ्जेत् तुञ्जेताम्
प०
तुञ्जतु/तुञ्जतात् तुञ्जताम्
तुञ्जन्तु
ह्य० अतुञ्जत् अतुञ्जताम् अतुञ्जन्
अ० अतुञ्जीत्
अतुञ्जष्टाम्
अतुञ्जिषुः
प०
तुतुञ्ज
तुतुञ्जतुः
तुतुञ्जः
आ० तुञ्ज्यात्
तुज्यास्ताम्
तुज्यासुः
श्व० तुञ्जिता
तुञ्जारौ
तुञ्जितार:
भ० तुञ्जिष्यति
तुञ्जिष्यतः
तुञ्जिष्यन्ति
क्रि० अतुञ्जिष्यत् अतुञ्जिष्यताम्
अतुञ्जिष्यन्
तुञ्जन्ति
तुञ्जेयुः
१६३. गर्ज (गर्ज्) शब्दे ।
गर्जतः
गर्जेताम्
गर्जन्ति
गर्जेयुः
प० गर्जतु/गर्जतात् गर्जताम्
ह्य० अगर्जत्
अगर्जताम्
अ० अगर्जीत्
अर्जिष्टाम्
प० जगर्ज
जगर्जतुः
आ० गर्ज्यात्
श्व० गर्जिता
भ० गर्जिष्यति
क्रि० अगर्जिष्यत्
व० गञ्जति
गञ्जसि
गञ्जामि
स० गञ्जेत्
गजे:
गञ्जेयम्
प०
प०
ह्य० अगञ्जत्
अगञ्जः
अगञ्जम्
अ० अगञ्जीत्
अगञ्जी:
अगञ्जिषम्
जगञ्ज
जगञ्जिथ
जगञ्ज
आ० गञ्ज्यात्
गञ्ज्याः
गयासम्
श्व० गञ्जिता
गञ्जतु/गञ्जतात् गञ्जताम्
गञ्ज/गञ्जतात् गञ्जतम् गञ्जानि
गञ्जाव
गञ्जितासि
गञ्जितास्मि
यस्ताम्
गर्ज्यासुः
गर्जितार:
गर्जिष्यन्ति
अगर्जिष्यताम् अगर्जिष्यन्
गर्जितारौ
गर्जिष्टतः
१६४. गजु (गज्) शब्दे ।
गञ्जतः
गञ्जथः
गञ्जाव:
जेम्
जेम्
गञ्जन्ति
गञ्जथ
गञ्जाम:
गजेयुः
गञ्जेत
गञ्जेम
गञ्जन्तु
गञ्जत
गञ्जाम
अगञ्जताम्
अगञ्जन्
अगञ्जतम् अगञ्जत
अगञ्जाव
अगञ्जाम
अगञ्जिष्टाम् अञ्जिषुः
अगञ्जिष्टम्
अगञ्जिष्ट
अगञ्जिष्व
अगञ्जिष्म
गञ्जेव
गर्जन्तु
अगर्जन्
जगञ्जतुः
जगञ्जथुः
जगञ्जिव
अगर्जिषुः
जगर्जुः
गञ्ज्यास्ताम्
गञ्ज्यास्तम्
गञ्ज्यास्व
गञ्जितारौ
गञ्जितास्थः
गञ्जितास्वः
जगञ्जुः
जगञ्ज
जगञ्जिम
गञ्ज्यासुः
गञ्ज्यास्त
गञ्ज्यास्म
गञ्जितार:
गञ्जितास्थ
गञ्जितास्मः
45
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
.46
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मुञ्जितारौ
जगृजुः
मर्जन्तु अमर्जन्
भ० गञ्जिष्यति गञ्जिष्यतः गञ्जिष्यन्ति
गञ्जिष्यसि गञ्जिष्यथः गञ्जिष्यथ
गञ्जिष्यामि गञ्जिष्याव: गञ्जिष्यामः क्रि० अगञ्जिष्यत् अगञ्जिष्यताम् अगञ्जिष्यन्
अगञ्जिष्यः अंगञ्जिष्यतम् अगञ्जिष्यत अगञ्जिष्यम् अगञ्जिष्याव अगञ्जिष्याम
१६५. गृज (गृज्) शब्दे। व० गर्जति गर्जतः
गर्जन्ति स० गर्जेत्
गर्जेताम्
गर्जेयुः प० गर्जतु/गर्जतात् गर्जताम् गर्जन्तु ह्य० अगर्जत् अगर्जताम् अगर्जन् अ० अगर्जीत् अगर्जिष्टाम्
अगर्जिषुः प० जगर्ज
जगृजतुः आ० गृज्यात् गृज्यास्ताम् गृज्यासुः श्व० गर्जिता गर्जितारौ गर्जितारः भ० गर्जिष्यति
गर्जिष्यतः
गर्जिष्यन्ति क्रि० अगर्जिष्यत् अगर्जिष्यताम अगर्जिष्यन
१६६. गृजु (गृञ्) शब्दे।
(उपरिवत्)
१६७. मुज (मुज्) शब्दे। व० मोजति मोजतः मोजन्ति स० मोजेत् मोजेताम् प० मोजतु/मोजतात् मोजताम् ह्य० अमोजत् अमोजताम् अमोजन् अ० अमोजीत् अमोजिष्टाम्
अमोजिषुः प० मुमोज मुमुजतुः मुमुजुः आ० मुज्यात् मुज्यास्ताम् मुज्यासुः श्व० मोजिता
मोजितारौ मोजितार: भ० मोजिष्यति मोजिष्यतः मोजिष्यन्ति क्रि० अमोजिष्यत् अमोजिष्यताम् अमोजिष्यन्
१६८. मुजु (मुज्) शब्दे इति। व० मुजति मुञ्जतः मुञ्जन्ति
स० मुछेत् मुजेताम् मुञ्जेयुः प० मुजतु/मुञ्जतात् मुञ्जताम् मुञ्जन्तु ह्य० अमुञ्जत् अमुञ्जताम् अमुञ्जन् अ० अमुञ्जीत् अमुञ्जिष्टाम् अमुञ्जिषुः प० मुमुञ्ज मुमुञ्जमुः मुमुक्षुः आ० मुज्यात् मुज्यास्ताम् मुज्यासुः श्व० मञ्जिता
मुञ्जितारः भ० मुञ्जिष्यति मुञ्जिष्यतः मुञ्जिष्यन्ति क्रि० अमुञ्जिष्यत् अमुञ्जिष्यताम् अमुञ्जिष्यन्
१६८. २ मृज (मृज्) शब्दे इति केचित्। व० मर्जति मर्जतः मर्जन्ति स० मर्जेत् मर्जेताम् मर्जेयुः प० मर्जतु/मर्जतात् मर्जताम् ह्य० अमर्जत् अमर्जताम् अ० अमर्जीत् अमर्जिष्टाम् अमर्जिषुः प० ममर्ज
ममृर्जुः आ० मृज्यात् मृज्यास्ताम् मृज्यासुः श्व० मर्जिता मर्जितारौ मर्जितारः भ० मर्जिष्यति मर्जिष्यतः मर्जिष्यन्ति क्रि० अमर्जिष्यत् अमर्जिष्यताम् अमर्जिष्यन्
१६९. मृजु (मृङ्ग्) शब्दे। व० मृञ्जति मृञ्जतः मृञ्जन्ति, इत्यादि।
१७०. मज (मज्) शब्द। व० मजति मजतः मजन्ति इत्यादि। १७१. गज (गज्) मदने च चकारात् शब्द। मदनं
मदोत्पत्तिः। | व० गजति गजतः
गजन्ति गजसि गजथः
गजथ गजामि गजावः गजाम: | स० गजेत् गजेताम्
गजेत गजेव
गजेम
ममृजतुः
मोजेयुः मोजन्तु
गजेयुः
गजे:
गजेतम्
गजेयम्
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
गजतु/गजतात् गजताम्
गज/गजतात् गजतम्
गजानि
गजाव
० अगजत्
अगजः
अगजम्
अ० अगाजीत्
अगाजी:
अगाजिषम्
प०
अगजीत्
अगजी:
अगजिषम्
प० जगाज
जगजिथ
+ जगाज/जगज
आ० गज्यात्
गज्याः
गज्यासम्
श्व० गजिता
अगजताम्
अगजतम्
अगजाव
अंगजाम
अगाजिष्टाम् अगाजिषुः
अगाजिष्टम्
अगाजिष्ट
अगाजिष्व
अगाजिष्म
तथा
अगजिष्टाम्
अगजिष्टम्
अगजिष्व
जगजतुः
जगजथुः
जगजिव
गजन्तु
गजत
गजाम
अगजन्
अगजत
गज्यास्म
गजितार:
गजितासि
गणितास्थ
गजितास्मि
गजितास्मः
भ० गजिष्यति
गजिष्यन्ति
गजिष्यसि
गजिष्यथ
गजिष्यामि
गजिष्यामः
क्रि० अगजिष्यत् अगजिष्यताम् अगजिष्यन् अगजिष्यः अगजिष्यतम् अगजिष्यत
अगजिष्यम् अगजिष्याव अगजिष्याम १७२. त्यजं (त्यज्) हानौ । हानिस्त्यागः । त्यजति
त्यजतः
१७३. षञ्ज (सञ्ज्) सङ्गे ।
ब० सजति
सजतः
स० [सजेत
सजेताम्
प० सजतु/ सजतात् सजताम्
अगजिषुः
अगजिष्ट
अगजिष्म
गजितास्थः
गजितास्वः
गजिष्यतः
गजिष्यथः
गजिष्यावः
जगजुः
जगज
जगजिम
गज्यास्ताम् गज्यासुः
गज्यास्तम्
गज्यास्त
गज्यास्व
गजितारौ
त्यजन्ति इत्यादि ।
सजन्ति
सजेयुः
सजन्तु
हा० असजत्
अ० असाङ्क्षीत्
प०
ससञ्ज
आ० सज्यात्
सङ्क्ता
भ० सदस्यति
क्रि० असङ्क्षयत्
이
व०
कटति
कटसि
कटामि
स० कटेत्
कटे:
कटेयम्
प०
॥अथ यन्ता अष्टात्रिंशत्सेच ||
१७४. कटे (कट्) वर्षावरणयोः ।
वृष्टौ आवरणे चेत्यर्थः ।
कटतः
कटथ:
कटावः
कटेताम्
कटेतम्
कटेव
कटतु/कटतात् कटताम्
कट/कटतात् कटतम्
कटानि
कटाव
ह्य० अकटत्
अकट:
अकटम्
अ० अकटीत्
अकटी
अम्ि
प०
चकाट
चकटिथ
चकाट/चकट
आ० कट्यात्
कट्याः
कट्यासम्
४० कटिता
असजन्
असाइक्षुः
ससञ्जतुः
ससञ्जुः
सज्यास्ताम्
सज्यासुः
सङ्क्तारौ
सङ्क्तारः
सङ्क्ष्यतः
सङ्क्षयन्ति
असक्ष्यताम् असङ्क्षयन्
कटितासि
असजताम्
असाङ्क्ताम्
अकटताम्
अकटतम्
अकटाव
अकटिष्टाम्
अकटिष्टम्
अकटिष्व
चकटतुः
चकटथुः
चकटिव
कट्यास्ताम्
कट्यास्तम्
कट्यास्व
कटितारौ
कटितास्थः
कटन्ति
कटथ
कटामः
कटेयुः
कटे
कटेम
कटन्तु
कटत
कटाम
अकटन्
अकटत
अकटाम
अकटिषुः
अकटिष्ट
अकटिष्म
चकटुः
चकट
चकटिम
कट्यासुः
कट्यास्त
कट्यास्म
कटितार:
कटितास्थ
47
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
केटेयुः केटन्तु
शटन्तु
खेटेयुः
शेटतुः
कटितास्मि कटितास्वः कटितास्मः भ० कटिष्यति कटिष्यतः कटिष्यन्ति
कटिष्यसि कटिष्यथ: कटिष्यथ
कटिष्यामि कटिष्याव: कटिष्यामः क्रि० अकटिष्यत् अकटिष्यताम् अकटिष्यन्
अकटिष्यः अकटिष्यतम् अकटिष्यत अकटिष्यम् अकटिष्याव अकटिष्याम
१७५. शटे (शट्) रुजाविशरणगत्यवसादनेषु। व० शटति शटतः
शटन्ति स० शटेत् शटेताम् शटेयुः प० शटतु/शटतात् शटताम् ह्य० अशटत् अशटताम्
अशटन् अ० अशाटीत् अशाटिष्टाम् अशाटिषुः
अशटीत् अशटिष्टाम् अशटिषुः प० शशाट
शेटुः आ० शट्यात् शट्यास्ताम् शट्यासुः श्व० शटिता शटितारौ शटितारः भ० शटिष्यति शटिष्यतः शटिष्यन्ति क्रि० अशटिष्यत् अशटिष्यताम् अशटिष्यन्
१७६. वट (वट) वेष्टने। व० वटति वटतः स० वटेत् प० वटतु/वटतात् वटताम् वटन्तु ह्य० अवटत् अवटताम् अवटन् अ० अवाटीत् अवाटिष्टाम् अवाटिषुः
तथा अवटीत् अवटिष्टाम्
अवटिषुः प० ववाट ववस्तुः ववटुः आ० वट्यात् वट्यास्ताम् वट्यासुः श्व० वटिता वटितारौ वटितारः भ० वटिष्यति वटिष्यतः वटिष्यन्ति क्रि० अवटिष्यत् अवटिष्यताम् अवटिष्यन
१७७. किट (किट) उत्रासे। उनासो भयोद्गतिस्त्रासनञ्च।
व० केटति
केटत:
केटन्ति स० केटेत् केटेताम् प० केटतु/केटतात् केटताम् ह्य० अकेटत् अकेटताम् अकेटन् अ० अकेटीत् अकेटिष्टाम्
अकेटिषुः प० चिकेट चिकिटतुः चिकिटुः आ० किट्यात् किट्यास्ताम् किट्यासुः श्व० केटिता केटितारौ केटितारः भ० केटिष्यति केटिष्यतः केटिष्यन्ति क्रि० अकेटिष्यत् अकेटिष्यताम् अकेटिष्यन्
१७८. खिट (खिट्) उत्रासे।
उनासो भयोद्गतिस्त्रासनञ्च व० खेटति खेटतः खेटन्ति स० खेटेत् खेटेताम् प० खेटतु/खेटतात् खेटताम् खेटन्तु ह्य० अखेटत् अखेटताम् अखेटन् अ० अखेटीत् अखेटिष्टाम्
अखेटिषुः प० चिखेट
चिखिटतुः आ० खिट्यात् खिट्यास्ताम् श्व० खेटिता खेटितारौ खेटितारः भ० खेटिष्यति खेटिष्यतः खेटिष्यन्ति क्रि० अखेटिष्यत् अखेटिष्यताम् अखेटिष्यन्
१७९. शिट (शिट्) अनादरे। व० शेटति शेटतः शेटन्ति स० शेटेत् शेटेताम् प० शेटतु/शेटतात् शेटताम् शेटन्तु ह्य० अशेटत् अशेटताम् अशेटन् अ० अशेटीत् अशेटिष्टाम्
अशेटिषुः प० शिशेट आ० शिट्यात् शिट्यास्ताम् श्व० शेटिता शेटितारौ शेटितार: भ० शेटिष्यति शेटिष्यतः शेटिष्यन्ति
चिखिदुः खिट्यासुः
वटन्ति
वटेताम्
वटेयुः
शेटेयुः
शिशिटतुः
शिशिटुः शिट्यासुः
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
क्रि० अशेटिष्यत्
व० सेटति
स० [सेटेत्
प० सेटतु / सेटतात्
० असेत्
अ० असे
सिषेट
प०
आ० सिट्यात्
श्व० सेटिता
भ० सेटिष्यति
क्रि० असेटिष्यत्
व०
जटति
स० जटेत्
प०
ह्य० अजटत् अ० अजाटीत्
+
१८० षिट (सिट) अनादरे ।
सेटत:
सेटन्ति
अजटीत्
जजाट
प०
आ० जट्यात् श्र० जटिता
प०
जटतु/जटतात्
व० झटति
स० झटेत्
प०
भ० जटिष्यति
क्रि० अजटिष्यत्
ह्य० अझटत्
अ० अझाटीत्
अझटी
जझाट
अशेष्यताम् अशेटिष्यन्
सेताम्
सेटताम्
सिषिटतुः
सिट्यास्ताम्
सेटितारौ
सेटिष्यतः
असेताम्
१८१. जट (ज) संघाते ।
जटत:
जटेताम्
जटताम्
अजटताम्
अजाटिष्टाम्
तथा
अजटिष्टाम्
जेटतुः
असेताम्
असेटिष्टाम्
झटत:
झटेताम्
झटतु/झटतात् झटताम्
अझटताम्
अझाटिष्टाम्
अझटिष्टाम्
जझाटतुः
सेटेयुः
सेतु
असेटन्
असेटिषुः
सिषिटुः
सिट्यासुः
सेटितार:
सेटिष्यन्ति
असेटिष्यन्
जट्यास्ताम्
जटितारौ
जटिष्यतः
अजटिष्यताम्
१८२. झट (झट) संघाते ।
जन्ति
जटेयुः
जटन्तु
अजटन्
अजाटिषुः
अजटिषुः
जेटुः
जट्यासुः
जटितारः
जटिष्यन्ति
अजयन्
झटन्ति
झटेयुः
झटन्तु
अझटन्
अझाटिषुः
अझटिषुः
जझाटुः
आ० झट्यात्
श्व० झटिता
भ० झटिष्यति
क्रि० अझटिष्यत्
व०
स०
प०
०
अ० अपेटीत्
प०
पिपेट
आ० पिट्यात्
श्व० पेटिता
व०
पेटत:
पेटेताम्
पेटताम्
अपेटताम्
अपेष्टाम्
पिपिटतुः
पिट्यास्ताम्
पेटितारौ
भ० पेटिष्यति
पेटिष्यतः
क्रि० अपेटिष्यत् अपेटिष्यताम्
प०
० भत्
पेटति
पेटेत्
पेटतु / पेटतात्
अपे
ह्य० अभटत्
अ० अभ
व०
भटतु/भटतात्
प०
प०
आ० भट्यात्
श्व० भटिता
अत्
बभाट
अपेटिष्यन्
१८४. भट (भट्) भृतौ । भृतिर्वेतनं भरणञ्च ।
भटति
भ० भटिष्यति
क्रि० अभविष्यत्
तटति सत्
१८३. पिट ( पिट्) शब्दे च ।
चकारात्संघाते।
झट्यास्ताम् झटितारौ
झटिष्यतः
अझटिष्यताम् अझष्यन्
तटतु / तटतात्
झट्यासुः
झटितार:
झटिष्यन्ति
भटत:
भटेताम्
भटताम्
अभटताम्
अभाटिष्टाम्
तथा
अष्टिम्
अभटिषुः
बभटुः
भट्यासुः
भटितार:
भटिष्यन्ति
अष्यिताम्
अभटिष्यन्
१८५. तट (तट्) उच्छाये । वृद्धावित्यर्थः ।
बभटतुः
भट्यास्ताम्
भटितारौ
भटिष्यतः
पेटन्ति
पेटेयुः
पेटन्तु
तटतः
ताम्
तटताम्
अपेटन्
अपेटिषुः
पिपिटुः
पिट्यासुः
पेटितार:
पेटिष्यन्ति
भटन्ति
भटेयुः
भटन्तु
अभटन्
अभाटिषुः
तटन्ति
तटेयुः
तु
49
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
50
ह्य०
अतटत्
अ० अताटीत्
अत्
तताट
प०
आ० तट्यात् श्व० तटिता
भ० तरिष्यति
क्रि० अतटिष्यत्
व० खटति
स० खत्
प०
ह्य० अखटत्
अ० अखाटीत्
अखटीत्
चखाट
१८६. खट (खट्) काङ्क्षे |
खटतः
खटन्ति
खताम्
खटेयुः
खटतु/ खटतात् खटताम्
अखटताम्
अखाटिष्टाम्
तथा
अखटष्टाम्
प०
चखटतुः
आ० खट्यात्
खट्यास्ताम्
श्व० खटिता
खटितारौ
भ० खटिष्यति
खटिष्यतः
क्रि० अखटिष्यत् अखटिष्यताम्
नटति
व०
स
प०
ह्य० अनटत्
अ० अनाटीत्
नटतु / नटतात्
अनीत्
अतटताम्
अताटिष्टाम्
तथा
अतटिष्टाम्
तेतु:
प० ननाट
आ० नट्यात्
अतटन्
अताटिषुः
अतटिषुः
टुः
तट्यास्ताम्
तट्यासुः
तटितारौ
तटितार:
तटिष्यतः
तटिष्यन्ति
अतरिष्यताम् अतटिष्यन्
नटतः
नटेताम्
नटताम्
खटन्तु
अखन्
अखाटिषुः
१८७. पाट (नट्) नृत्तौ ।
नतावित्यन्ये । हिंसायामित्येके ।
अखटिषुः
चखटुः
खट्यासुः
खटितार:
खटिष्यन्ति
अखटष्यन्
अनटिषुः
नेटुः
नट्यासुः
१. काङ्क्षास्यास्तीत्यभ्रादित्वादः काङ्क्षाविशिष्टो धात्वर्थः ।
नटन्ति
नटेयुः
नटन्तु
अनटताम्
अनटन्
अनाटिष्टाम् अनाटिषुः
तथा
अनटिष्टाम्
तुः
नट्यास्ताम्
श्व० नटिता
भ०
नटिष्यति
क्रि० अनटिष्यत् .
व०
हटति
स० हटेत्
प०
हटतु / हटतात्
ह्य०
अहटत्
अ० अहाटीत्
अहटीत्
प० जाट
आ० हट्यात्
श्व० हटिता
अहटिषुः
जुटुः
हट्यासुः
हटितार:
हटिष्यन्ति
अहटिष्यन्
१८९. घट (सट्) अवयवे (उपरिवत्)
भ० हटिष्यति
क्रि० अहटिष्यत्
नटितारौ
नटिष्यतः
अनटिष्यताम्
१८८. हट (हट) दीप्तौ ।
हटतः
हटन्ति
हाम्
हयुः
हटताम्
हटन्तु
अहटताम्
अहटन्
अहाटष्टाम् अहाटिषुः
अ० अलोटीत्
प० लुलोट
आ० लुट्यात्
श्व० लोटिता
१९०. लुट (लुट्) विलोडने विलोटन इत्येके ।,
लोटति
व०
लोटतः
स० लोटेत्
लोटताम्
प० लोटतु/लोटतात् लोटताम्
० अलोट
अलोटताम्
अष्टाम्
तथा
अहटिष्टाम्
व० चेटति
स०
प०
ह्य० अचेत्
जुटतुः
हट्यास्ताम्
हटितारौ
हटिष्यतः
अहटिष्यताम्
भ० लोटिष्यति
क्रि० अलोटिष्यत् अलोटिष्यताम्
चेटतु / चेटतात्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
नटितार:
नटिष्यन्ति
अनटिष्यन्
लुलुटतुः
लुट्यास्ताम्
लोटितारौ
लोटिष्यतः
लोटन्ति
लोटेयुः
तु
अलोटन्
अलोटिषुः
१९१. चिट (चिट्) प्रैष्यं दासत्वम् ।
चेटत:
चेटन्ति
चेटेताम्
चेटताम्
अचेटताम्
लुलुटुः
लुट्यासुः
लोटितार:
लोटिष्यन्ति
अलोटियन्
चेटेयुः
चेटन्तु
अचेटन्
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
चिचिटुः चिट्यासुः
आटिष्टाम्
अट्यासुः
वेटतः
वेटन्ति वेटेयुः
वेटन्तु
पटेताम्
पटेयुः
विविदुः विट्यासुः
अ० अचेटीत् अचेटिष्टाम् अचेटिषुः प० चिचेट चिचिटतुः आ० चिट्यात् चिट्यास्ताम् श्व० चेटिता चेटितारौ चेटितारः भ० चेटिष्यति चेटिष्यतः चेटिष्यन्ति क्रि० अचेटिष्यत् अचेटिष्यताम् अचेटिष्यन्
१९२. विट (विट्) शब्दे, आक्रोशे इत्यन्ये। व० वेटति स० वेटेत् वेटेताम् प० वेटतु/वेटतात् वेटताम् ह्य० अवेटत्
अवेटताम्
अवेटन् अ० अवेटीत् अवेटिष्टाम् अवेटिषुः प० विवेट विविटतुः आ० विट्यात् विट्यास्ताम् श्व०' वेटिता वेटितारौ
वेटितारः भ० वेटिष्यति वेटिष्यतः वेटिष्यन्ति क्रि० अवेटिष्यत् अवेटिष्यताम् __ अवेटिष्यन् - १९३. हेट (हेट्) विबाधायाम्; डान्तोऽयमित्येके। व० हेटति हेटत: हेटन्ति स० हेटेत हेटेताम् हेटेयुः प० हेटतु/हेटतात् हेटताम् ह्य० अहेटत् अहेटताम् अहेटन् अ० अहेटीत् अहेटिष्टाम् अहेटिषुः प० जिहेट जिहेटतुः जिहेटुः आ० हेट्यात् हेट्यास्ताम् श्व० हेटिता हेटितारौ हेटितारः भ० हेटिष्यति हेटिष्यतः हेटिष्यन्ति क्रि० अहेटिष्यत् अहेटिष्यताम् अहेटिष्यन् . १९४. अट (अट्) गतौ। व० अटति अटतः स० अटेत् अटेताम्
प० अटतु/अटतात् अटताम् अटन्तु ह्य० आटत् आटताम्
आटन् अ० आटीत्
आटिषुः प० आट
आटतुः
आटुः आ० अट्यात् अट्यास्ताम् श्व० अटिता अटितारौ अटितारः भ० अटिष्यति अटिष्यतः अटिष्यन्ति क्रि० आटिष्यत् आटिष्यताम् आटिष्यन्
१९५. पट (पट्) गतौ।। व० पटति पटतः
पटन्ति स० पटेत् प० पटतु/पटतात् पटताम्
पटन्तु ह्य० अपटत् अपटताम् अपटन् अ० अपाटीत् अपाटिष्टाम् अपाटिषुः
तथा अपटीत् अपटिष्टाम् अपटिषुः प० पपाट आ० पट्यात् पट्यास्ताम् पट्यासुः श्व० पटिता पटितारौ पटितारः भ० पटिष्यति पटिष्यतः पटिष्यन्ति क्रि० अपटिष्यत् अपटिष्यताम् अपटिष्यन्
१९६. इट (इट्) गतौ। व० एटति एटतः एटन्ति स० एटेत् एटेताम् एटेयुः प० एटतु/एटतात् एटताम् एटन्तु ह्य० ऐटत् ऐटताम् ऐटन् अ० ऐटीत् ऐटिष्टाम् ऐटिषुः प० इयेट
ईटतुः आ० इट्यात् इट्यास्ताम् इट्यासुः श्व० एटिता एटितारौ एटितारः भ० एटिष्यति एटिष्यतः एटिष्यन्ति क्रि० एटिष्यत् एटिष्यताम् एटिष्यन्
पेटतुः
हेटन्तु
हेट्यासुः
अटन्ति
अटेयुः
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
केटतः
केटेयुः केटन्तु
कुण्टन्ति
चिकिटुः किट्यासुः
कुण्टे:
कुण्टेत कुण्टेम
कटेयुः
१९७. किट (किट्) गतौ। व० केटति
केटन्ति स० केटेत्
केटेताम् प० केटतु/केटतात् केटताम् । ह्य० अकेटत् अकेटताम्
अकेटन् अ० अकेटीत् अकेटिष्टाम् अकेटिषुः प० चिकेट
चिकिटतुः आ० किट्यात् किट्यास्ताम् श्व० केटिता केटितारौ केटितारः भ० केटिष्यति केटिष्यतः केटिष्यन्ति क्रि० अकेटिष्यत् अकेटिष्यताम् अकेटिष्यन
१९८. कट (कट) गतौ। व० कटति कटतः कटन्ति स० कटेत् कटेताम् प० कटतु/कटतात् कटताम्
कटन्तु ह्य० अकटत् अकटताम् अकटन् अ० अकाटीत् अकाटिष्टाम् अकाटिषुः
तथा अकटीत् अकटिष्टाम् प० चकाट चकटतुः
चकटुः आ० कट्यात् कट्यास्ताम् कट्यासुः श्व० कटिता कटितारौ कटितारः भ० कटिष्यति कटिष्यतः कटिष्यन्ति क्रि० अकटिष्यत् अकटिष्यताम् अकटिष्यन्
१९९. कटु (कण्ट्) गतौ। व० कण्टति कण्टतः कण्टन्ति स० कण्टेत् कण्टेताम् प० कण्टतु/कण्टतात् कण्टताम् कण्टन्तु ह्य० अकण्टत् अकण्टताम् अकण्टन् अ० अकण्टीत् अकण्टिष्टाम् अकण्टिषुः प० चकण्ट चकण्टतुः चकण्टुः आ० कण्ट्यात् कण्ट्यास्ताम् कण्ट्यासुः श्व० कण्टिता कण्टितारौ कण्टितारः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग भ० कण्टिष्यति कण्टिष्यतः कण्टिष्यन्ति क्रि० अकण्टिष्यत् अकण्टिष्यताम् अकण्टिष्यन् २०० कटे (कट) गतौ एतद्रूपाणि अनुपदोक्त कट १९८ वत्। पुनः पाठः "कदृ कट्टवान्'' इत्यत्र
ऐदित्करणेनक्तयोरिनिषेधार्थः। २०१. कुटु (कुण्ट्) वैकल्ये, डान्तोऽयमित्येके। व० कुण्टति कुण्टत:
कुण्टसि कुण्टथः कुण्टथ
कुण्टामि कुण्टावः कुण्टाम: स० कुण्टेत् कुण्टेताम् कुण्टेयुः
कुण्टेतम् कुण्टेयम्
कुण्टेव प० कुण्टतु/कुण्टतात् कुण्टताम् कुण्टन्तु
कुण्ट/कुण्टतात् कुण्टतम् कुण्टत
कुण्टानि कुण्टाव कुण्टाम ह्य० अकुण्टत् अकुण्टताम् अकुण्टन्
अकुण्टः अकुण्टतम् अकुण्टत
अकुण्टम् अकुण्टाव अकुण्टाम अ० अकुण्टीत् अकुटिष्टाम् अकुण्टषुः
अकुण्टी: अकुण्टष्टम् अकुण्टष्ट
अकुण्टषम् अकुटिष्व अकुटिष्म | प० चुकुण्ट चुकुण्टतुः चुकुण्टुः
चुकुण्टिथ चुकुण्टथुः चुकुण्ट चुकुण्ट चुकुण्टिव
चुकुण्टिम आ० कुण्ट्यात् कुण्ट्यास्ताम् कुण्ट्यासुः कुण्ट्याः
कुण्ट्यास्त कुण्ट्यासम् कुण्ट्यास्व कुण्ट्यास्म श्व० कुण्टिता कुण्टितारौ । कुण्टितारः
कुण्टितासि कुण्टितास्थः कुण्टितास्थ
कुण्टितास्मि कुण्टितास्वः कुण्टितास्मः भ० कुण्टिष्यति
कुण्टिष्यतः
कुण्टिष्यन्ति कुण्टिष्यसि कुण्टिष्यथ: कुण्टिष्यथ
कुण्टिष्यामि कुण्टिष्याव: कुण्टिष्यामः क्रि० अकुण्टिष्यत् अकुण्टिष्यताम् अकुण्टिष्यन्
अकटिषुः
कण्टेयुः
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
मोटतः
मोटेत
मोटेव
मोटत
'अमोटम्
अकुण्टिष्यः अकुण्टिष्यतम् अकुण्टिष्यत अकुण्टिष्यम् अकुण्टिष्याव अकुण्टिष्याम
२०२. मुट (ट्) प्रमर्दने।
उदितोऽयमिति कौशिकः। -व० मोटति
मोटन्ति मोटसि मोटथः
मोटथ मोटामि मोटाव:
मोटाम: स० मोटेत् मोटेताम् मोटेयुः
मोटेः मोटेतम् मोटेयम्
मोटेम प० मोटतु/मोटतात् मोटताम् मोटन्तु
मोट/मोटतात् मोटतम्
मोटानि मोटाव मोटाम ह्य० अमोटत्
अमोटताम्
अमोटन् अमोट: अमोटतम् अमोटत
अमोटाव अमोटाम अ० अमोटीत् अमोटिष्टाम् अमोटिषुः
अमोटी: अमोटिष्टम् अमोटिष्ट
अमोटिषम् अमोटिष्व अमोटिष्म प० मुमोट मुमुटतुः
मुमुटुः मुमोटिथ मुमुटथुः मुमुट मुमोट
मुमुटिम आ० मुट्यात् मुट्यास्ताम् मुख्यासुः
मुट्याः मुट्यास्तम् मुट्यास्त
मुट्यासम् मुट्यास्व मुट्यास्म श्व० मोटिता मोटितारौ मोटितारः
मोटितासि मोटितास्थः मोटितास्थ
मोटितास्मि मोटितास्वः मोटितास्मः भ० मोटिष्यति मोटिष्यतः मोटिष्यन्ति
मोटिष्यसि मोटिष्यथ: मोटिष्यथ • मोटिष्यामि मोटिष्याव: मोटिष्यामः क्रि० अमोटिष्यत् अमोटिष्यताम् अमोटिष्यन्
अमोटिष्यः अमोटिष्यतम् अमोटिष्यत अमोटिष्यम् अमोटिष्याव अमोटिष्याम
२०३. चुट (चुट) अल्पीभावे। व० चोटति चोटत: चोटन्ति स० चोटेत्
चोटेताम्
चोटेयुः प० चोटतु/चोटतात् चोटताम् चोटन्तु ह्य० अचोटत् अचोटताम् अचोटन् अ० अचोटीत् अचोटिष्टाम् अचोटिषुः प० चुचोट चुचुटतुः चुचुटुः आ० चुट्यात् चुट्यास्ताम् चुट्यासुः श्व० चोटिता चोटितारौ चोटितारः भ० चोटिष्यति चोटिष्यतः चोटिष्यन्ति क्रि० अचोटिष्यत् अचोटिष्यताम् अचोटिष्यन्
२०४. चुटु (चुण्ट्) अल्पीभावे। व० चुण्टति चुण्टतः चुण्टन्ति स० चुण्टेत् चुण्टेताम् चुण्टेयुः प० चुण्टतु/चुण्टतात् चुण्टताम् चुण्टन्तु ह्य० अचुण्टत् अचुण्टताम् अचुण्टन् अ० अचुण्टीत् अचुण्टिष्टाम् अचुण्टिषुः प० चुचुण्ट चुचुण्टतुः चुचुण्टुः आ० चुण्ट्यात् चुण्ट्यास्ताम् चुण्ट्यासुः श्व० चुण्टिता चुण्टितारौ चुण्टितारः भ० चुण्टिष्यति चुण्टिष्यतः चुण्टिष्यन्ति क्रि० अचुण्टिष्यत् अचुण्टिष्यताम् अचुण्टिष्यन्
२०५. वटु (वण्ट्) विभाजने।
विभाजनं विभागीकरणम्। व० वण्टति वण्टतः वण्टन्ति स० वण्टेत् वण्टेताम् वण्टेयुः प० वण्टतु/वण्टतात् वण्टताम् वण्टन्तु ह्य० अवण्टत् अवण्टताम् अवण्टन् अ० अवण्टीत् अवण्टिष्टाम् अवण्टिषुः प० ववण्ट
ववण्टुः | आ० वण्ट्यात् वण्ट्यास्ताम् वण्ट्यासुः
मुमुटिव
ववण्टतुः
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
54
व०
वण्टिता
भ०
वण्टिष्यति
क्रि० अवण्टिष्यत्
रुटति
सरुण्टेत्
रु०
२०६. रुटु (रुण्ट्) स्तेये ।
रुण्टतः
रुण्टेम्
रुण्टतु/रुण्टतात् रुण्टताम्
अरुण्टताम्
अरुण्टष्टाम्
रुरुण्टतुः
रुण्ट्यास्ताम्
रुण्टतारौ
रुण्टिष्यतः
रुण्टिष्यन्ति
अरुण्टिष्यताम् अरुण्टिष्यन्
प०
ह्य० अरुण्टत्
अ० अरुण्टीत्
प० रुरुण्ट
आ० रुण्ट्यात्
श्व० रुण्टिता
भ० रुण्टिष्यति
क्रि० अरुण्टिष्यत्
स्फटति
वण्टितारौ
वण्टितार:
वण्टिष्यतः
वण्टिष्यन्ति
अवण्टिष्यताम् अवण्टिष्यन्
व०
स. स्फटे
प०
व० लुण्टति
टन्ति
Ho
लुण्टेयुः
प०
लुण्टतु/लुण्टतात् लुण्टताम
लुण्टन्तु
ह्य० अलुण्टत् अलुण्टताम्
अलुण्टन्
अ० अलुण्टीत्
अलुष्टाम्
अलुटिषुः
प० लुलुण्ट लुलुण्टतुः
लुलुण्टुः
आ० लुण्ट्यात्
लुण्ट्यासुः
श्व० लुण्टिता
लुण्टतार:
भ० लुण्टिष्यति लुण्टिष्यतः
लुण्टिष्यन्ति
क्रि० अलुण्टिष्यत् अलुण्टिष्यताम् अलुण्टिष्यन्
२०८. स्फट (स्फट्) विसरणे ।
स्फटन्ति
स्फटेयुः
स्फटन्तु
अस्फटताम् अस्फटन्
अस्फाटिष्टाम्
अस्फाटिषुः
तथा
ह्य० अस्फटत्
अ० अस्फाटीत्
२०७. लुटु (लुण्ट्) स्तेये ।
लुण्टतः
स्फटतः
स्फटेताम्
स्फटतु/ स्फटतात् स्फटताम्
टेम्
रुण्टन्ति
टेयुः
लुण्ट्यास्ताम्
रुण्टन्तु
अरुण्टन्
अरुण्टिषुः
रुरुण्टुः
रुण्ट्यासुः
रुण्टरः
प०
आ० स्फट्यात्
श्व० स्फटिता
अस्फटीत्
पस्फाट
भ० स्फटिष्यति
क्रि० अस्फटिष्यत्
व०
स्फोटति
स्फोटत:
स० [स्फोटत्
स्फोटताम्
प० स्फोटतु/स्फोटतात् स्फोटताम्
ह्य० अस्फोटत्
अस्फोटताम्
अ० अस्फुटत्
व०
स०
प०
२०९. स्फुट्ट (स्फुट्) विसरणे ।
अस्फोटीत्
प० पुस्फोट
आ० स्फुट्यात्
श्व० स्फोटिता
अस्फुटताम् अस्फुटन्
तथा
अस्फोटिष्टाम् अस्फोटिषुः पुस्फुटतुः पुस्फटुः
स्फुट्यास्ताम् स्फुट्यासुः स्फोटितारौ स्फोटितार:
स्फोटिष्यतः स्फोटिष्यन्ति
अस्फोटिष्यताम् अस्फोटिष्यन्
२१०. लट (लट्) बाल्ये; बाल्यं बालक्रिया । लटति
भ० स्फोटिष्यति
क्रि० अस्फोटिष्यत्
लटतु / लटतात्
ह्य० अलटत्
अ० अलाटीत्
अलटीत्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अस्फटिषुः
पस्फटुः
स्फट्यासुः
स्फटितार:
स्फटिष्यन्ति
अस्फटिष्यताम् अस्फटिष्यन्
प० ललाट
अस्फटिष्टाम्
पस्फटतुः
स्फट्यास्ताम्
स्फटितारौ
स्फटिष्यतः
आ० लट्यात्
श्व० लटिता
भ० लटिष्यति
क्रि० अलटिष्यत्
लटत:
ताम्
लटताम्
अलटताम्
अलाटिष्टाम्
तथा
अष्टिम्
लेटतुः
स्फोटन्ति
स्फोटयुः
स्फोटन्तु
अस्फोटन्
लट्यास्ताम्
लटितारौ
लटिष्यतः
अलटिष्यताम्
टन्ति
लटेयुः
लटन्तु
अलटन्
अलाटिषुः
अलटिषुः
लेटुः
लट्यासुः
लटितार:
लटिष्यन्ति
अलटिष्यन्
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
व०
स० रटेत्
रटे:
रटेयम्
प०
रटति
रटसि
रटामि
ह्य० अरटत्
अरटः
प०
रतु/रटतात्
रट/ रटतात्
रटानि
२११ रट (रट्) परिभाषणे च । १
रटतः
रटन्ति
रटथ:
रटथ
रटाव:
रटेताम्
रटेतम्
रटेव
अरटम्
अ० अराटीत्
अराटी:
अराटिषम्
अरटीत्
अरटी:
अरटिषम्
रराट
रेटिथ
रराट/ररट
आ० रट्यात्
रट्याः
रट्यासम्
श्व० रटिता
क्रि० अरटिष्यत्
रटताम्
रटतम्
रटाव
अरटताम्
अरटतम्
अरटाव
अराटिष्टाम्
अष्टिम्
अराटिष्व
तथा
अरटिष्टाम्
अरटिष्टम्
अरटिष्व
रेटतुः
रेटथुः
रेटिव
रट्यास्व
रटितारौ
रटितासि
रटितास्थः
रटितास्मि
रटितास्वः
भ० रटिष्यति
रटिष्यतः
रटिष्यसि
रटिष्यथः
रटिष्यामि रटिष्यावः
रटामः
रटेयुः
रटेत
रटेम
• अरटिष्यः अरटियम्
रटन्तु
रटत
रटाम
अरटन्
अरटत
अरटाम
अराटिषुः
अराटिष्ट
अराटिष्म
अरटिषुः
अरटिष्ट
अरटिष्म
रट्यास्ताम्
रट्यासुः
रट्यास्तम् रट्यास्त
रेटुः
रेट
रेटिम
रट्यास्म
रटितार:
रटितास्थ
रटितास्मः
रटिष्यन्ति
रटिष्यथ
रटिष्यामः
अरटिष्यताम् अरटिष्यन्
अरटिष्यत
१. चकारो लटानुकर्षणार्थः । तेन लटेरर्थद्वयं सिद्धम् ।
व०
रठति
स० रठेत्
प०
अरटिष्यम्
ह्य० अरठत्
अ० अराठीत्
॥ अथ ठान्ताः सप्तदश सेटच ||
२१२. रठ (रट्) परिभाषणे ।
रठन्ति
रठेयुः
रठन्तु
अरठन्
अराटिषुः
रठतु/रठतात्
व०
प० रराठ
ठा० रठ्यात्
go रठिता
प०
अरठीत्
भ० रठिष्यति
क्रि० अरठिष्यत्
पठति
पठसि
पठामि
स० पठेत्
पठेः
पठेयम्
रठ्यासुः
रठितार:
रठिष्यन्ति
अरठिष्यताम्
अरठिष्यन्
२१३. पठ ( पठ्) व्यक्तायां वाचि ।
पठतः
पठन्ति
पठथः
पठथ
पठाव:
पठामः
पठेताम्
पठेयुः
पठेतम्
पठेत
पठेव
पठेम
पठतु / पठतात्
पठ/ पठतात्
पठानि
ह्य० अपठत्
अपठः
अपठम्
अ० अपाठीत्
अपाठी:
अपाठिषम्
अरटिष्याव अरटिष्याम
अपठीत्
अपठी:
रठतः
रठेताम्
रठताम्
अरठताम्
अराठिष्टाम्
तथा
अरठिष्टाम्
रेठतुः
रठ्यास्ताम्
रठितारौ
रठिष्यतः
पठताम्
पठतम्
पठाव
तथा
अपठिष्टाम्
अपठिष्टम्
अपठिषम् अपठिष्व
अपठताम्
अपठतम्
अपठाव
अपठिष्टाम्
अपाठिष्टम्
अपाठिष्व
अरठिषुः
रेठुः
पठन्तु
पठत
पठाम
अपठन्
अपठत
अपठाम
अपाठिषुः
अपाठिष्ट
अपाठिष्म
अपठिषुः
अपठिष्ट
अपठिष्म
55
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
56
धातुरलाकर प्रथम भाग
पठिथ
मेठुः
पटितास्थ
कठेयुः
प० पपाठ पेठतुः पेठुः
पेठथुः
पेठ । पपाठ/पपठ पेठिव
पेठिम ठा० पठ्यात् पठ्यास्ताम् पठ्यासुः
पठ्याः पठ्यास्तम् पठ्यास्त
पठ्यासम् पठ्यास्व पठ्यास्म श्व० पठिता पठितारौ पठितारः
पठितासि पठितास्थः
पठितास्मि पठितास्वः पठितास्मः भ० पठिष्यति पठिष्यतः पठिष्यन्ति
पठिष्यसि पठिष्यथ: पठिष्यथ
पठिष्यामि पठिष्याव: पठिष्यामः क्रि० अपठिष्यत् अपठिष्यताम् अपठिष्यन्
अपठिष्यः अपठिष्यतम् अपठिष्यत अपठिष्यम् अपठिष्याव अपठिष्याम
२१४. वठ (वठ्) स्थौल्ये। व० वठति वठतः
वठन्ति स० वठेत् वठेताम् प० वठतु/वठतात् वठताम् वठन्तु ह्य० अवठत् अवठताम् अवठन् अ० अवाठीत् अवाठिष्टाम् अवाठिषुः
तथा अमठीत् अमठिष्टाम् अमठिषुः प० ममाठ मेठतुः ठा० मठ्यात् मठ्यास्ताम् मठ्यासुः श्व० मठिता मठितारौ मठितारः भ० मठिष्यति मठिष्यतः मठिष्यन्ति क्रि० अमठिष्यत् अमठिष्यताम् अमठिष्यन्
२१६. कठ (क) कृच्छ्रजीवने। व० कठति
कठतः
कठन्ति स० कठेत्
कठेताम् प० कठतु/कठतात् कठताम् कठन्तु ह्य० अकठत् अकठताम् अकठन् अ० अकाटीत् अकाठिष्टाम् अकाठिषुः
तथा अकठीत् अकठिष्टाम् अकठिषुः प० चकाठ चकठतुः आ० कठ्यात्
कठ्यास्ताम् कठ्यासुः श्व० कठिता कठितारौ कठितारः भ० कठिष्यति कठिष्यतः कठिष्यन्ति क्रि० अकठिष्यत् अकठिष्यताम् अकठिष्यन्
२१७. हठ (ह) बलात्कारे।
प्लवनकीलबन्धनयो रियन्ये। व० हठति हठतः हठन्ति स० हठेत् हठेताम् प० हठतु/हठतात् हठताम् हठन्तु ह्य० अहठत् अहठताम् अहठन् अ० अहाठीत् अहाठिष्टाम् अहाठिषुः।
चकटुः
वठेयुः
तथा
हठेयुः
अवठीत् अवठिष्टाम् अवठिषु: प० ववाठ ववठतुः ववठुः ठा० वठ्यात् वठ्यास्ताम् वठ्यासुः श्व० वठिता वठितारौ वठितारः भ० वठिष्यति वठिष्यतः वठिष्यन्ति क्रि० अवठिष्यत् अवठिष्यताम् अवठिष्यन् २१५. मठ (म) मदनिवासयोश्च।
चकारात्स्थौल्ये। व० मठति मठतः मठन्ति स० मठेत् प० मठतु/मठतात् मठताम् ह्य० अमठत् अमठताम् अमठन् अ० अमाठीत् अमाठिष्टाम् अमाठिषुः
तथा अहठिष्टाम्
अहठिषुः
जहठुः
मठेताम्
मठेयुः मठन्तु
अहठीत् प० जहाठ आ० हठ्यात् श्व० हठिता भ० हठिष्यति क्रि० अहठिष्यत्
जहठतुः हठ्यास्ताम् हठितारौ हठिष्यतः अहठिष्यताम्
हठ्यासुः हठितार: हठिष्यन्ति अहठिष्यन्
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
ओठेयुः
पेठेताम्
पेठन्ति पेठेयुः पेठन्तु
औठन् औठिषुः
अपेठिषुः
ऊठतुः
क्रि० अलोठिष्यत् अलोठिष्यताम् अलोठिष्यन्
२२१. पिठ (पिठ्) हिंसासंक्लेशनयोः। व० पेठति
पेठतः स० पेठेत् प० पेठतु/पेठतात् पेठताम् ह्य० अपेठत् अपेठताम् अपेठन् अ० अपेठीत् अपेठिष्टठाम् प० पिपेठ पिपिठतुः पिपिठुः आ० पिठ्यात् पिठ्यास्ताम् पिठ्यासुः श्व० पेठिता पेठितारौ
पेठितारः भ० पेठिष्यति पेठिष्यतः पेठिष्यन्ति क्रि० अपेठिष्यत् अपेठिष्यताम अपेठिष्यन्
२२२. शठ (श) कैतवे च। व० शठति
शठत:
शठन्ति स० शठेत् शठेताम् शठेयुः प० शठतु/शठतात् शठताम् शठन्तु ह्य० अशठत् अशठताम् अशठन् अ० अशाठीत् अशाठिष्टाम् अशाठिषुः
रोठेताम्
२१८. उठ (उठ्) उपघाते। व० ओठति ओठतः ओठन्ति स० ओठेत ओठेताम् प० ओठतु/ओठतात् ओठताम् ओठन्तु ह्य० औठत् औठताम् अ० औठीत् औठिष्टाम् प० उवोठ
ऊठुः आ० उठ्यात् उठ्यास्ताम् उठ्यासुः श्व० ओठिता ओठितारौ ओठितारः भ० ओठिष्यति ओठिष्यतः ओठिष्यन्ति क्रि० औठिष्यत् औठिष्यताम् औठिष्यन्
२१९. रुठ (रु) उपघाते। व० रोठति रोठतः रोठन्ति स० रोठेत् प० . रोठतु/रोठतात् रोठताम् ह्य० अरोठत् अरोठताम् अरोठन् अ० अरोठीत् अरोठिष्ठाम् अरोठिषुः प० रुरोठ
रुरुठतुः आ० रुठ्यात् रुठ्यास्ताम्
रुठ्यासुः श्व० रोठिता रोठितारौ
रोठितार: भ० रोठिष्यति
रोठिष्यतः
रोठिष्यन्ति क्रि० अरोठिष्यत् अरोठिष्यताम् अरोठिष्यन्
२२०. लुठ (लुल्) उपघाते। व० लोठति लोठतः लोठन्ति स० लोठेत् लोठेताम् प० लोठत/लो लोठताम् लोठन्तु ह्य० अलोठत् अलोठताम् अलोठन् अ० अलोठीत् अलोठिष्टाम् अलोठिषुः प० लुलोठ लुलुठतुः लुलुठुः आ० लुठ्यात् लुठ्यास्ताम् लुठ्यासुः श्व० लोठिता लोठितारौ लोठितारः भ० लोठिष्यति लोठिष्यतः लोठिष्यन्ति
रोठेयुः रोठन्तु
रुरुः
तथा
शेठतुः
लोठेयुः
अशठीत् अशठिष्ठाम् अशठिषुः प० शशाठ
शेठु: आ० शठ्यात् शठ्यास्ताम् शठ्यासुः श्व० शठिता शठितारौ शठितार: भ० शठिष्यति शठिष्यतः शठिष्यन्ति क्रि० अशठिष्यत् अशठिष्यताम् अशठिष्यन्
२२३. शुठ (शुल्) गतिप्रतिघाते। व० शोठति शोठतः शोठन्ति स० शोठेत् शोठेताम् शोठेयुः प. शोठतु/शोठतात् शोठताम् शोठन्तु ह्य० अशोठत् अशोठताम् अशोठन् अ० अशोठीत् अशोठिष्टाम् अशोठिषुः प० शुशोठ
शुशुठतुः
शुशुठुः
१. चकाराद्धिसासंक्लेशनयोः ।
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
58
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आठुः
आ० शुठ्यात् शुठ्यास्ताम् शुठ्यासुः श्व० शोठिता शोठितारौ शोठितारः भ० शोठिष्यति शोठिष्यतः शोठिष्यन्ति क्रि० अशोठिष्यत् अशोठिष्यताम् अशोठिष्यन्
२२४. कुठु (कुहण्ठ्) आलस्ये चार व० कुण्ठति कुण्ठतः कुण्ठन्ति स० कुण्ठेत् कुण्ठेताम् कुण्ठेयुः प० कुण्ठतु/कुण्ठतात् कुण्ठताम् कुण्ठन्तु ह्य० अकुण्ठत् अकुण्ठताम्
अकुण्ठन् अ० अकुण्ठीत् अकुण्ठिष्टाम् अकुण्ठिषुः प० चुकुण्ठ चुकुण्ठतुः चुकुण्ठः आ० कुण्ठ्यात् कुण्ठ्यास्ताम् कुण्ठ्यासुः भ० कुण्ठिता कुण्ठितारौ कुण्ठितारः भ० कुण्ठिष्यति कुण्ठिष्यतः कुण्ठिष्यन्ति क्रि० अकुण्ठिष्यत् अकुण्ठिष्यताम् अकुण्ठिष्यन्
२२५. लुठु (लुण्ठ्) आलस्ये गतिप्रतिघाते च। व० लुण्ठति लुण्ठतः लुण्ठन्ति स० लुण्ठेत् लुण्ठेताम् लुण्ठेयुः प० लुण्ठतु/लुण्ठतात् लुण्ठताम् लुण्ठन्तु ह्य० अलुण्ठत् अलुण्ठताम् अलुण्ठन् अ० अलुण्ठीत् अलुठिष्टाम् अलुठिषुः प० लुलुण्ठ लुलुण्ठतु: लुलुण्ठः आ० लुण्ठ्यात् लुण्ठ्यास्ताम् लुण्ठ्यासुः श्व० लुण्ठिता लुण्ठितारौ लुण्ठितारः भ० लुण्ठिष्यति लुण्ठिष्यतः लुण्ठिष्यन्ति क्रि० अलुण्ठिष्यत् अलुण्ठिष्यताम् अलुण्ठिष्यन्
२२६. शुठु (शुण्ठ्) शोषणे। व० शुण्ठति शुण्ठतः शुण्ठन्ति स० शुण्ठेत् शुण्ठेताम् शुण्ठेयुः प० शुण्ठतु/शुण्ठतात् शुण्ठताम् शुण्ठन्तु ह्य० अशुण्ठत् अशुण्ठताम् अशुण्ठन्
अ० अशुण्ठीत् अशुण्ठिष्टाम् अशुण्ठिषुः प० शुशुण्ठ शुशुण्ठतुः शुशुण्ठः आ० शुण्ठ्यात् शुण्ठ्यास्ताम् शुण्ठ्यासुः श्व० शुण्ठिता शुण्ठितारौ शुण्ठितारः भ० शुण्ठिष्यति शुण्ठिष्यतः शुण्ठिष्यन्ति क्रि० अशुण्ठिष्यत् अशुण्ठिष्यताम् अशुण्ठिष्यन्
२२७. अठ (अ) गतौ। व० अठति अठतः अठन्ति स० अठेत्
अठेताम्
अठेयुः प० अठतु/अठतात् अठताम् अठन्तु ह्य० आठत् आठताम्
आठन् अ० आठीत् आठिष्टाम् आठिषुः प० आठ
आठतुः आ० अठ्यात् अठ्यास्ताम् अठ्यासुः श्व० अठिता अठितारौ अठितार: भ० अठिष्यति अठिष्यतः अठिष्यन्ति क्रि० आठिष्यत् आठिष्यताम् आठिष्यन्
२२८. रुठु (रुण्ठ्) गतौ। व० रुण्ठति रुण्ठतः रुण्ठन्ति स० रुण्ठेत् रुण्ठेताम् रुण्ठेयुः प० रुण्ठतु/रुण्ठतात् रुण्ठताम् रुण्ठन्तु ह्य० अरुण्ठत् अरुण्ठताम् अरुण्ठन् अ० अरुण्ठीत् अरुण्ठिष्टाम् अरुण्ठिषुः प० रुरुण्ठ रुरुण्ठतुः रुरुण्ठुः आ० रुण्ठ्यात् रुण्ठ्यास्ताम् रुण्ठ्यासुः श्व० रुण्ठिता रुण्ठितारौ रुण्ठितारः भ० रुण्ठिष्यति रुण्ठिष्यतः रुण्ठिष्यन्ति क्रि० अरुण्ठिष्यत् अरुण्ठिष्यताम् अरुण्ठिष्यन्
अथ डान्तास्त्रिंशत्सेटच।
२२९. पुडु (पुण्ड) प्रमर्दने। | व० पुण्डति
पुण्डतः
पुण्डन्ति पुण्डसि पुण्डथः पुण्डथ पुण्डामि पुण्डाव: पुण्डाम:
आदि
२. चकाराद्गतिप्रतिघाते।
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
पुण्डेत
स० पुण्डेत् पुण्डेताम् पुण्डेयुः
पुण्डे: पुण्डेतम्
पुण्डेयम् पुण्डेव पुण्डेम प० पुण्डतु/पुण्डतात् पुण्डताम् पुण्डन्तु
पुण्ड/पुण्डतात् पुण्डतम् पुण्डत
पुण्डानि पुण्डाव पुण्डाम ह्य० अपुण्डत् अपुण्डताम् अपुण्डन्
अपुण्डः अपुण्डतम् अपुण्डत
अपुण्डम् अपुण्डाव अपुण्डाम अ० अपुण्डीत् अपुण्डिष्टाम् अपुण्डिषुः
अपुण्डी: अपुण्डिष्टम् अपुण्डिष्ट
अपुण्डिषम् अपुण्डिष्च अपुण्डिष्म प० पुपुण्ड पुपुण्डतुः पुपुण्डुः पुपुण्डिथ
पुपुण्डथुः पुपुण्ड - पुपुण्ड पुपुण्डिव पुपुण्डिम आ० पुण्ड्यात् पुण्ड्यास्ताम् पुण्ड्यासुः
पुण्ड्याः पुण्ड्यास्तम् पुण्ड्यास्त
पुण्ड्यासम् पुण्ड्यास्व पुण्ड्यास्म श्व० पुण्डिता पुण्डितारौ पुण्डितारः
पुण्डितासि पुण्डितास्थः पुण्डितास्थ
पुण्डितास्मि पुण्डितास्वः पुण्डितास्मः भ० पुण्डिष्यति पुण्डिष्यतः पुण्डिष्यन्ति
पुण्डिष्यसि पुण्डिष्यथ: पुण्डिष्यथ
पुण्डिष्यामि पुण्डिष्यावः । पुण्डिष्यामः क्रि० अपुण्डिष्यत् अपुण्डिष्यताम् अपुण्डिष्यन्
अपुण्डिष्यः अपुण्डिष्यतम् अपुण्डिष्यत
अपुण्डिष्यम् अपुण्डिष्याव अपुण्डिष्याम ___ २३०. मुडु (मुण्ड्) खण्डने च। चकारात्प्रमर्दने।
व० मुण्डति मुण्डतः मुण्डन्ति • स० मुण्डेत् मुण्डेताम् मुण्डेयुः प० मुण्डतु/मुण्डतात् मुण्डताम् मुण्डन्तु ह्य० अमुण्डत् अमुण्डताम् अमुण्डन्
अ० अमुण्डीत् अमुण्डिष्टाम् अमुण्डिषुः प० मुमुण्ड मुमुण्डतुः मुमुण्डुः आ० मुण्ड्यात् मुण्ड्यास्ताम् मुण्ड्यासुः श्व० मुण्डिता मुण्डितारौ मुण्डितारः भ० मुण्डिष्यति मुण्डिष्यतः मुण्डिष्यन्ति क्रि० अमुण्डिष्यत् अमुण्डिष्यताम् अमुण्डिष्यन्
२३१. मडु (मण्ड्) भूषायाम्। व० मण्डति मण्डतः मण्डन्ति स० मण्डेत मण्डेताम्
मण्डेयु: प० मण्डतु/मण्डतात् मण्डताम् मण्डन्तु ह्य० अमण्डत् अमण्डताम् अमण्डन् अ० अमण्डीत् अमण्डिष्टाम् अमण्डिषु: प० ममण्ड ममण्डतुः ममण्ड: आ० मण्ड्यात् मण्ड्यास्ताम् मण्ड्यासुः श्व० मण्डिता मण्डितारौ मण्डितार: भ० मण्डिष्यति मण्डिष्यतः मण्डिष्यन्ति क्रि० अमण्डिष्यत् अमण्डिष्यताम् अमण्डिष्यन्
२३२. गडु (गण्ड्) वदनैकदेशे। व० गण्डति गण्डतः गण्डन्ति
गण्डसि गण्डथः गण्डथ
गण्डामि गण्डाव: गण्डाम: स० गण्डेत्
गण्डेताम्
गण्डेयुः गण्डेतम् गण्डेत गण्डेयम् गण्डेव गण्डेम गण्डतु/गण्डतात् गण्डताम् गण्डन्तु गण्ड/गण्डतात् गण्डतम् गण्डत गण्डानि गण्डाव
गण्डाम ह्य० अगण्डत् अगण्डताम् अगण्डन्
अगण्ड: अगण्डतम् अगण्डत
अगण्डम् अगण्डाव अगण्डाम अ० अगण्डीत् अगण्डिष्टाम् अगण्डिषुः
सात
गण्डे:
मास
१. गण्डगतसंहननक्रियायामित्यर्थः।
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
60
अगण्डी:
अगण्डिम्
प०
जगण्ड
जगण्डिथ
जगण्ड
आ० गण्ड्यात्
गण्ड्याः
गण्ड्यासम्
श्व० गण्डिता
गण्ड्यास्व
गण्ड्यास्म
गण्डितारौ
गण्डितार:
गण्डितासि गण्डितास्थः
गण्डितास्थ
गण्डितास्मि
गण्डितास्वः
गण्डितास्मः
भ० गण्डिष्यति
गण्डिष्यतः गण्डिष्यन्ति
गण्डिष्यथः गण्डिष्यथ
गण्डिष्यसि गण्डिष्यामि गण्डिष्यावः गण्डष्यामः
अगण्डिष्यताम् अगण्डिष्यन् अगण्डिष्यः अगण्डिष्यतम् अगण्डिष्यत अगण्डिष्यम् अगण्डिष्याव अगण्डिष्याम २३३. शौड़ (शौड्) गर्ने ।
शौडतः
शौडन्ति
शौडथ:
शौडथ
शौडाव:
शौडाम
शौडेताम्
शौडेयुः
शौडेम्
शौडे
शौडेव
शौडेम
प० शौडतु/शौडतात् शौडताम्
शौडन्तु
शौड/शौडतात् शौडतम्
शौडत
शौडाव
शौडाम
अशौडन्
अशौडत
क्रि० अगण्डिष्यत्
व० शौडति
शौडसि
शौडाम
सं० शौडेत्
शौडे:
शौडेयम्
शौडानि
ह्य० अशौडत्
अशौडः
अशौडम्
अ० अशौडीत्
अशौडी:
अगण्डिष्टम् अगण्डिष्ट
अगण्डिष्व अगण्डिष्म
जगण्डतुः
जगण्डुः
जगण्डथुः
जगण्ड
जगण्डिव जगण्डिम
गण्ड्यास्ताम् गण्ड्यासुः
गण्ड्यास्तम् गण्ड्यास्त
शौडताम्
अशौडतम्
अशौडाव
अशौडिष्टाम्
अशौडिष्टम्
शौडाम
अशौडिषुः
अशौडिष्ट
अशौडिषम्
प० शौड
शौ
आ० शौड्या
शौड्या
शौयास्ताम् शौड्यासुः
शौड्यास्तम् शौड्यास्त
शौड्या
शौड्यास्म.
शौडितारौ
शौडितार:
शौडितास्थः
शौडितास्थ
शौडितास्वः शौडितास्मः
शौडिष्यतः शौडिष्यन्ति
शौडिष्यथः शौडिष्यथ शौडिष्यावः शौडिष्यामः
अशौडिष्यताम् अशौडिष्यन् अशौडिष्यः अशौडिष्यतम् अशौडिष्यत अशौडिष्यम् अशौडिष्याव अशौडिष्याम. २३४. यौड़ (यौड्) सम्बन्धे । सम्बन्धः श्लेषः । यौडतः
यौन्ति
डेयुः
यौडन्तु
अयौडन्
ड्य
श्व० शौडिता
शौडितासि
शौडितास्मि
भ० शौडिष्यति
शौडिष्यसि
शौडिष्यामि
क्रि० अशौडिष्यत्
व० यौति
सौत्
प०
यौडतु / यौडतात् यौडताम्
ह्य०
अयौडत्
अ० अयौडीत्
आ० ड्य
श्व०
यौडिता
भ० यौडिष्यति
क्रि० अयौडिष्यत्
अशौडिष्व
शुशौड:
शौडि
श
व० मेडति
समेत्
प० मेडतु / मेडतात्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अशौडिष्म
शौडु:
शौ
शौ
अयौताम्
अयौडिष्टाम्
अयौडिषुः
युयौs: युयौडुः
यौयास्ताम्
यौडितारौ
यौडिष्यतः
यौड्यासुः
यौडितार:
यौडिष्यन्ति
यौडिष्यताम् अयौडिष्यन्
२३४. मेड़ (मेड्) उन्मादे ।
मेडत:
ताम्
मेडताम्
मेडन्ति
मेडेयुः
मेडन्तु
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
० अमेत्
अ० अमेत्
प०
मिमेड
आ० मेड्यात्
श्व० मेडिता
भ० मेडिष्यति
क्रि० अमेडिष्यत्
प०
व० म्लेडति
स० प्लेडेत् म्लेडेताम्
प० म्लेडतु/म्लेडतात् म्लेडताम्
ह्य० अम्लेडत् अम्लेडताम्
अ० अम्लेडी
•
मिम्लेड
o लेड
श्व० म्लेडिता
भ० म्लेडिष्यति
क्रि० अम्लेडिष्यत्
अमेडताम्
अष्टाम्
मिमेतुः
मेड्यास्ताम्
मेडितारौ
मेडिष्यतः
भ० लोडिष्यति
क्रि० अलोडिष्यत्
अमेडिष्यताम् २३५. म्रेड् (प्रेड्) उन्मादे ।
२३७. प्लेड (म्लेड्) उन्मादे ।
म्लेडतः
अमेडन्
अमेडिषुः
मिडुः
मिलेडतुः
म्लेड्यास्ताम्
लेडितारौ
म्लेडिष्यतः
ड्यासुः
मेडितार:
मेडिष्यन्ति
अमेडियन्
म्लेडेयुः
म्लेडन्तु
अम्लेडन्
अम्लेडिष्टाम् अम्लेडिषुः
मिम्लेडुः
म्लेड्यासुः
म्लेडितार:
लुलोडतुः
लोड्यास्ताम्
म्लेडन्ति
२३८. लोड़ (लोड) उन्मादे ।
व० लोडति
लोडतः
लोडन्ति
स० लोडेत्
लोम्
लोडेयुः
प० लोडतु/लोडतात् लोडताम्
लोडन्तु
० अलोड
अलोडताम् अलोडन्
अ० अलोड
अलोडिष्टाम् अलोडिषुः
प० लुलोड
लुलोडुः
आ० लोड्यात्
लोड्यासुः
श्व० लोडिता लोडितारौ
लोडितार:
लोडिष्यतः
लोडिष्यन्ति
अलोडिष्यताम् अलोडिष्यन्
म्लेडिष्यन्ति
अम्लेडिष्यताम् अम्लेडिष्यन्
२३९. लौड़ (लौड्) उन्मादे ।
व० लौडति
लौडत:
सत्
लौडेताम्
प० लौडतु / लौडतात् लौडताम्
अलौ
अलौडताम्
अलौष्टि
लुलौडतुः
लौड्यास्ताम्
लौडितारौ
लौडिष्यतः
अ० अलौडीत्
प० लुलौड
आ० लौड्य
श्व० लौडिता
भ० लौडिष्यति
क्रि० अलौडिष्यत्
व०
रोडति
स० रोडेत्
ताम्
प० रोडतु/रोडतात् रोडताम्
ह्य० अरोड
अरोड
अ० अरोडीत्
प० रुरोड
आ० रुड्यात्
श्व० रोडिता
भ० रोडिष्यति
क्रि० अरोडिष्यत्
व० रौडति
व०
कीडति
कीडसि
कीडामि
स० कीडेत्
कीडे:
लौडिष्यन्ति
अलौडिष्यताम् अलौडिष्यन्
२४०. रोड़ (रोड्) अनादरे । रोडतः
अरोडष्टाम्
रोड:
व० तौडति तौडतः तौडन्ति - इत्यादि
लौडन्ति
लौडेयुः
लौ
रुड्यास्ताम्
रोडितारौ
रोडिष्यतः
अलौडन्
अलौडिषुः
लुलौडुः
लौड्यासुः
लौडितार:
रोडन्ति
रोडेयुः
रोडन्तु
अरोडन्
अरोडिषुः
रुरोडुः
अरोडष्यताम्
२४१. रौड़ (रौड्) अनादरे ।
रौडत: २४२. तौड़ (तौड़) अनादरे ।
रुड्यासुः
रोडितार:
रोडिष्यन्ति
अरोडिष्यन्
डन्ति इत्यादि
२४३. कीड़ (कीड्) विहारे ।
कीडतः
कीडथ:
कीडाव:
कीडेताम्
कम्
कीडन्ति
कीडथ
कीडामः
कीडेयुः
कीडेत
61
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
62
कीडेयम्
कीडेव
प० कीडतु/कीडतात् कीडताम्
कीड/कीडतात् कीडतम्
कीडाव
कीडानि
ह्य० अकीडत्
अकीड:
अकडम्
अ० अकीडीत्
अकीडी:
प०
चिकीड
चिकीडिथ
चिकीड
आ० कीड्यात्
कीड्याः
डिम्
कीड्यासम्
व०
श्व० कीडिता
स तोडे
तोडे:
कीडेम
कीडन्तु
कीडत
कीडाम
अकीडन्
अकीडत
अकीडाम
अकीडिष्टाम् अकीडिषुः
अकीडिष्टम् अकीडिष्ट
अकीडिष्व अकीडिष्म
कीडितार:
कीडितासि
कीडितास्थः
कीडितास्थ
कीडितास्मि कीडितास्वः
कीडितास्मः
कीडिष्यन्ति
भ० कीडिष्यति कीडिष्यतः कीडिष्यसि कीडिष्यथः कीडिष्यथ कीडिष्यामि कीडिष्यावः कीडिष्यामः क्रि० अकीडिष्यत् अकीडिष्यताम् अकीडिष्यन् अकीडिष्यः अकीडिष्यतम् अकीडिष्यत अकीडिष्यम् अकीडिष्याव अकीडिष्याम २४४. तुड़ (तुड्) तोडने । तोडनं दारणम् ।
तोडति
तोडत:
तोडन्ति
तोडसि
तोडथ:
तोडथ
तोडामि
तोडाव:
तोडामः
तोताम्
तोडेयुः
तोडेम्
तोडेत
अकीडताम्
अकीडतम्
अकीडाव
चिकीडुः
चिकीड
चिकीडिम
कीड्यास्ताम् कीड्यासुः
कड्याम् कड्यात
कड्यास्व
कीड्यास्म
कीडितारौ
चिकीडतुः
चिकीडथुः
चिकीडिव
तोडेयम्
तोडेव
प० तोडतु/तोडतात् तोडताम्
तोड/ तोडतात् तोडतम्
तोडानि
तोडाव
ह्य० अतोडत्
अतोड:
अतोडम्
अ० अतोडीत्
अतोडी:
अतोडिषम्
प० तुतोड
तोडि
आ० तुड्यात्
तुड्याः
तुड्यासम्
श्व० तोडिता
तोडितासि
तोडितास्मि
भ० तोडिष्यति
व०
स०
प०
तोडिष्यसि
तोडिष्यामि
क्रि० अतोडिष्यत्
ह्य० अतूडत्
अ० अडत्
अतोडताम्
तोड
अतोडाव
अतोडन्
अतोडत
अतोडाम
अतोडिष्टाम् अतोडिषुः
अतोडष्टम् अतोडिष्ट
अतोडिष्व
अतोडिष्म
तुड्यासुः
तुड्यास्त
तुड्यास्व
तुड्यास्म
तोडितारौ
तोडितार:
तोडितास्थः
तोडितास्थ
तोडितास्वः
तोडितास्मः
तोडिष्यतः
तोडिष्यन्ति
तोडिष्यथः तोडिष्यथ
तोडिष्यावः तोडिष्यामः
तोडिष्यताम् अतोडिष्यन् अतोडिष्यः तोड अतोडिष्यत अतोडष्यम् अतोडिष्याव अतोडिष्याम २४५. तूड (तूड्) तोडने, दारणे इत्यर्थः । तूडति तूड़त:
तूडेत्
ताम्
तुडतु/ तूडतात् तूडताम्
अडताम्
अंडिष्टाम्
तुतुडतुः
तुतुडथुः
तुडव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तोडेम
तोडन्तु
तोडत
तोडाम
तुड्यास्ताम्
तुड्यास्तम्
तुतुडुः
तुतुड
डिम
तूडन्ति
तूयुः
तुडतु
अतूडन्
अतूडिषुः
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
तुतूड
आ० तूड्यात्
श्व० तूडिता
भ० तूडिष्यति
प०
तुतूडुः
तूड्यासुः
तूडितार:
तूडिष्यन्ति
अतूडिष्यन्
२४६. तोड़ (तोड्) तोडने, दारणे इत्यर्थः ।
तोडतः
क्रि० अतूडिष्यत् अडिष्यताम्
व० तोडति
स तोडे
तोडेताम्
प० तोडतु/तोडतात् तोडताम्
० अतोडत्
अतोडताम्
अ० अतोडीत्
प० तोड
तुतूडतुः
तूड्यास्ताम्
तूडितारौ
तूडिष्यत:
व०
आतड्यात्
श्व० तोडिता
भ० तोडिष्यति
क्रि० अतोडिष्यत् तोडिष्यताम्
तोडिष्टाम्
• व० हूडति
व० हूडति
तोडतुः
तोड्यास्ताम्
तोडितारौ
तोडिष्यतः
२४७. हुड् (हुड्) गतौ ।
होडति
होडत:
० होत्
होडेताम्
प० होडतु / होडतात् होडताम्
ह्य० अहोडत्
अहोडताम्
अ० अहोड
अहोडिष्टाम्
प० जुहोड
आ० हुड्यात्
श्व० होडिता
तोडन्ति
तोडेयुः
तोडन्तु
अतोडन्
अतोडिषुः
तोडुः
तोड्यासुः
तोडितार:
तोडिष्यन्ति
तोडिन्
जुहुडतुः
हुड्यास्ताम्
होडितारौ
होडिष्यतः
जुहुडुः
हुड्यासुः
होडितार:
भ० होडिष्यति
होडिष्यन्ति
क्रि० अहोडिष्यत् होडष्यताम् अहोडिष्यन्
२४८. हूड (हूड्) गतौ ।
होडन्ति
होडेयुः
होडन्तु
अहोडन्
अहोडिषुः
हूडत: २४९. हूइ (ड्) गतौ । छूडतः
डन्ति इत्यादि
डन्ति इत्यादि
व० हौडति
०
हौडेताम्
प० हौडतु / हौडतात् हौडताम्
अहौडताम्
अष्ट
जुहतुः
हौड्या
अ० अहौडत्
प० जुहौड
आ० हौड्या
श्व० हौडिता
भ० हौडिष्यति
क्रि० अहौडिष्यत्
आ० खोड्यात्
खोडिता
२५०. हौड़ (हौड्) गतौ ।
ᄋ
२५१. खोड़ (खोड्) प्रतीघाते ।
व० खोडति
खोडतः
खोडन्ति
०
खोडे
खोडे
प०
खोडतु / खोडतात् खोडताम्
ह्य०
अखोडत्
खो
अ० अखोडीत्
प० खोड
भ० खोडिष्यति
क्रि० अखोडिष्यत्
व० वेडति
स० वेडे
हौडितारौ
हौडिष्यतः
अ
अ० अवेडीत्
प०
विवेड
आ० विड्यात्
श्व० वेडिता
भ० वेडिष्यति
क्रि० अवेडिष्यत्
डिष्यन्ति
अहौडिष्यताम् अहौडिष्यन्
अखोडष्टाम्
चुखोडतुः
खोड्यास्ताम्
खोडितारौ
खोडिष्यतः
हौडन्ति
हौडेयुः
तु
अन्
अहौडिषुः
जुहौडु:
हौड्यासुः
हौडितार:
वेताम्
प० वेडतु/वेडतात् वेडताम्
अवेताम्
खोडेयुः
खोड
अखोडिष्यताम् अखोडिष्यन्
२५२. विड (विड्) आक्रोशे ।
वेडत:
वेडन्ति
अष्टाम्
विवितुः
विड्यास्ताम्
वेडितारौ
वेडिष्यतः
अवेडिष्यताम्
अखोडन्
अखोडषुः
चुखोडुः
खोड्यासुः
खोडितार:
खोडिष्यन्ति
वेडेयुः
वेडन्तु
अवेडन्
अवेडिषुः
विविडुः
विड्यासुः
वेडितार:
वेडिष्यन्ति
अवेडिष्यन्
63
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
२५३. अड (अड्) उद्यमे। व० अडति अडतः अडन्ति स० अडेत् अडेताम् अडेयुः प० अडतु/अडतात् अडताम् अडन्तु ह्य० आडत् आडताम् आडन् अ० आडीत् आडिष्टाम् आडिषुः प० आड
आडतुः
आडुः आ० अड्यात् अड्यास्ताम् अड्यासुः श्व० अडिता अडितारौ अडितार: भ० अडिष्यति अडिष्यतः अडिष्यन्ति क्रि० आडिष्यत् आडिष्यताम् आडिष्यन्
२५४. लड (लड्) विलासे। व० लडति लडतः लडन्ति स० लडेत् लडेताम् लडेयुः प० लडतु/लडतात् लडताम् लडन्तु ह्य० अलडत् अलड़ताम् अलडन् अ० अलाडीत् अलाडिष्टाम् अलाडिषुः
तथा अलडीत् अलडिष्टाम् अलडिषुः प० ललाड लेडतुः आ० लड्यात् लड्यास्ताम् लड्यासुः श्व० लडिता लडितारौ लडितार: भ० लडिष्यति लडिष्यतः लडिष्यन्ति क्रि० अलडिष्यत् अलडिष्यताम् अलडिष्यन्
२५४-१ लल (लल्) विलासे। व० ललति ललतः ललन्ति स० ललेत् ललेताम् ललेयुः प० ललतु/ललतात् ललताम् ललन्तु ह्य० अललत् अललताम् अललन् अ० अलालीत् अलालिष्टाम् अलालिषुः प० ललाल
लेलु: आ० लल्यात् लल्यास्ताम् लल्यासुः
श्व० ललिता ललितारौ ललितार: भ० ललिष्यति ललिष्यतः ललिष्यन्ति क्रि० अललिष्यत् अललिष्यताम् अललिष्यन्
२५५. कडु (कण्ड्) मदे। व० कण्डति कण्डत: कण्डन्ति स० कण्डेत् कण्डेताम् कण्डेयुः प० कण्डतु/कण्डतात् कण्डताम् कण्डन्तु ह्य० अकण्डत् अकण्डताम् अकण्डन् अ० अकण्डीत् अकण्डिष्टाम् अकण्डिषुः प० चकण्ड चकण्डतुः चकण्डुः आ० कण्ड्यात् कण्ड्यास्ताम् कण्ड्यासुः श्व० कण्डिता कण्डितारौ कण्डितार: भ० कण्डिष्यति कण्डिष्यतः कण्डिष्यन्ति क्रि० अकण्डिष्यत् अकण्डिष्यताम् अकण्डिष्यन्
२५६. कद्ड (कड्ड्) कार्कश्ये।
दोपान्त्योऽयम्, दकास्य डत्वे कड्ड व० कड्डुति कड्डुतः कड्डुन्ति
कड्डथ: कड्डथ
कड्डाव: कड्डामः स० कड्डत् कड्डताम् कड्डेयुः
कड्डेः कड्डतम् कड्डेत
कड्डेयम् कड्डेव कड्डेम प० कड्डतु/कड्डतात् कड्डताम् कड्डन्तु
कड्ड/कड्डतात् कड्डतम् कडुत
कड्डानि कड्डाव कड्डाम ह्य० अकडुत्
अकडताम् अकड्डः अकडतम् अकड्डत
अकड्डम् अकड्डाव अकड्डाम | अ० अकड्डीत् अकड्डिष्टाम् अकड्डिषुः
अकड्डीः अकड्डिष्टम् अकड्डिष्ट
अकड्डिषम् अकड्डिष्व अकुड्डिष्म | प० चकड्ड चकडतुः चकड्डुः
कडुसि कड्डामि
लेडुः
अकडन्
लेलतुः
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
ड्ड
चड्ड
आ० कड्डयात्
कड्डया:
कड्डयासम्
श्व० कड्डिता
ड
कड्डितास्मि
भ० कड्डिष्यति
ड्ड
ड्ड
अड्ड
सo अड्डेत्
प०
अड्डतु / अड्डतात्
ह्य० आड्डत्
अ० आड्डीत्
प० आनड्ड
आ० अड्डयात्
व० अड्डिता
भ० अड्डिष्यति
क्रि० आड्डिष्यत्
कड्डष्यथः
ड्ड
कड्डष्यावः
कड्डष्यामः
अकड्डिष्यताम् अकड्डिष्यन्
क्रि० अकड्डिष्यत् अकड्डष्य: अकड्डष्यम् अड्डयाव
अकड्डष्यतम्
ड
ड्ड
२५७. अद्ड् (अड्ड्) अभियोगे दोपान्त्यः |
व० चुड्डति
० चुड्डे
चुड्डतु/ चुड्डतात्
चकड्डुथुः
चड्ड
प०
ह्य० अचुड्डत्
अ० अचुड्डीत्
कड्डड्यास्ताम्
कड्डयास्तम्
कड्डयाव
ड्ड
ड्ड स्थ
कड्डितास्वः
अड्डेयुः
अड्डन्तु
आड्डताम्
आड्डन्
आड्डष्टम्
आड्डिषुः
आनड्डतुः
आनड्डुः
अड्डयास्ताम् अड्डड्यासुः
अड्डितारौ
अड्डितारः
अड्डिष्यतः
अड्डष्यन्ति
आड्डष्यताम् आड्डष्यन्
२५८. चुड (चुड्ड्) हावकरणे ।
हावका रणमभिप्रायसूचनम् ।
अड्डतः
अड्डेताम्
अड्डताम्
चकड्ड
ड्ड
कड्डयासुः
कड्डयास्त
कड्डयास्म
ड्ड :
ड्ड
कड्डितास्मः
ड्डष्यन्ति
चुड्डतः
चुड्डेताम्
चुड्डताम्
अचुड्डताम्
चुड्डष्ट
अड्ड
चुड्डन्ति
चुड्डेयुः
चुड्डन्तु
अचुड्डन्
अचुड्डषुः
प०
चुड्ड
आ० चुड्डयात्
श्व० चुड्डा
भ० चुड्डिष्यति
क्रि० अचुड्डष्यत्
व०
० अत्
अणे:
अणेयम्
प०
अथ णान्ता एकोनविंशतिः सेटच ।
२५९. अण (अण् शब्दे । शब्दः शब्दक्रिया ।
अणति
अणसि
अणामि
अणतु / अणतात्
अण/ अणतात्
अणानि
ह्य० आणत्
आण:
आणम्
अ० आणीत्
आणीः
आणिषम्
प० आण
आणिथ
आण
आ० अण्यात्
अण्या:
अण्यासम्
श्व० अणिता
अणितासि
चुचुड्डतुः
चुचुड्डुः
चुड्डयास्ताम् चुड्डड्यासुः
चुड्डा
चुड्डतार:
चुड्डष्यतः
चुड्डष्यन्ति
अचुड्डष्यताम् अचुड्डिष्यन् '
अणतः
अणथः
अणावः
अणेताम्
अम्
अणेव
अणताम्
अणतम्
अणाव
आणताम्
आणतम्
आणाव
आणिष्टाम्
आणिष्टम्
आणिष्व
आणतुः
आणथुः
आणिव
अणन्ति
अणथ
अण्यास्व
अणितारौ
अणितास्थः
अणामः
अणेयुः
अणेत
अणेम
अणन्तु
अणत
अणाम
आणन्
आणत
आणाम
आणिषुः
आणिष्ट
आणिष्म
आणुः
आण
आणिम
अण्यास्ताम् अण्यासुः
अण्यास्तम् अण्यास्त
अण्यास्म
अणितार:
अणितास्थ
65
१. त्रयोऽप्येते दोपान्त्याः एषां क्विपि कत् अत् चुत् । ये डोपान्त्या
मन्यन्ते तेषां मते कट् अट् चुट् इति भवति
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
66
भ०
अणिष्यामि
क्रि० आणिष्यत्
व०
अणितास्मि
अणिष्यति
अणिष्यसि
प०
२६०. रण (रण) शब्दे शब्दक्रियायामित्यर्थः ।
रणति
सरत्
प०
आणिष्यताम्
आणिष्यः आणिष्यतम्
आणिष्यम्
रणतु/रणतात्
ह्य० अरणत्
अ० अराणीत्
अरणीत्
रराण
रेणिथ
रराण/ररण
आ० रण्यात् श्व० रणिता
व०
वणति
स० वणेत्
प०
ह्य० अवणत्
अ० अवाणीत्
वणतु/ वणतात्
अवणीत्
अणितास्वः
अणिष्यतः
अणिष्यथः
अणिष्यावः
प० ववाण
अणितास्मः
अणिष्यन्ति
अणिष्यथ
अणिष्यामः
आणिष्यन्
आणिष्यत
आणिष्याव आणिष्याम
रण्यासुः
रणितार:
भ० रणिष्यति
रणिष्यन्ति
क्रि० अरणिष्यत् अरणिष्यताम् अरणिष्यन्
२६१. वण (वण्) शब्दे शब्दक्रियायाम् ।
वणत:
वणन्ति
:
वणन्तु
अवणन्
अवाणिषुः
आ० वण्यात् श्व० वणिता
रणतः
रणेताम्
रणताम्
अरणताम्
अराणिष्टाम्
तथा
अरणिष्टाम्
रेणतुः
रेणथुः
रेणिव
रण्यास्ताम्
रणितारौ
रणिष्यतः
ताम्
वणताम्
अवणताम्
अवाणिष्टाम्
तथा
अवणिष्टाम्
रणन्ति
रणेयुः
रणन्तु
अरणन्
अराणिषुः
ववणतुः
वण्यास्ताम्
वणितारौ
अरणिषुः
रेणुः
रेण
रेणिम
अवणिषुः
ववणुः
वण्यासुः
वणितार:
भ० वणिष्यति वणिष्यतः क्रि० अवणिष्यत्
व०
व्रणति
स० व्रणेत्
प०
व्रणतु / व्रणतात्
ह्य०
अव्रणत्
अ० अवाणीत्
· 용명용공
प०
२६२. व्रण (व्रण) शब्दे शब्दक्रियायाम् ।
व्रणन्ति
व्रणेयुः
आ० व्रण्यात्
व्रणिता
अव्रणिषुः
वव्रणुः
व्रण्यासुः
व्रणितार:
व्रणिष्यन्ति
भ०
व्रणिष्यति क्रि० अव्रणिष्यत् अव्रणिष्यताम् अव्रणिष्यन्
२६३. बण (बण्) शब्दक्रियायाम् बणति बणन्ति
बणतः
बणेयुः
अव्रणीत्
वव्राण
व०
स० बणेत्
प०
बणतु / बणतात्
ह्य०
अबणत्
अ० अबाणीत्
प०
आ० बण्यात्
श्व० बणिता
व०
अबणीत्
बबाण
प०
भणति
० भत्
वणिष्यन्ति अवणिष्यताम् अवणिष्यन्
व्रणत:
व्रणेताम्
व्रणताम्
अव्रणताम्
अव्राणिष्टाम्
तथा
अव्रणिष्टाम्
भ० बणिष्यति
क्रि० अबणिष्यत् अबणिष्यताम्
ह्य० अभणत्
अ० अभाणीत्
वव्रणतुः
व्रण्यास्ताम्
व्रणितारौ
व्रणिष्यतः
ताम्
बणताम्
अबणताम्
अबाणिष्टाम्
तथा
अबणिष्टाम्
बेणतुः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
बण्यास्ताम्
बणितारौ
बणिष्यतः
भणत:
भणेताम्
भणतु/भणतात् भणताम्
अभणताम्
अभाणिष्टाम्
व्रणन्तु
अव्रणन्
अव्राणिषुः
बणिष्यन्ति
अबणिष्यन्
२६४. भण (भण्) शब्द क्रियायाम् ।
भणन्ति
भणेयुः
भणन्तु
अभणन्
अभाणिषुः
बणन्तु
अबणन्
अबाणिषुः
अबणिषुः
बेणुः
बण्यासुः
बणितार:
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
धणन्ति
व० धणति
धणतः स० धणेत् धणेताम् प० धणतु/धणतात् धणताम् ह्य० अधणत् अधणताम् अ० अधाणीत् अधाणिष्टाम्
धणेयुः धणन्तु
अधणन् अधाणिषुः
तथा
भ्रणतः
तथा अभणीत् अभणिष्टाम् अभणिषुः प० बभाण बभणतुः
बभणुः आ० भण्यात् भण्यास्ताम्
भण्यासुः श्व० भणिता भणितारौ भणितारः भ० भणिष्यति भणिष्यतः भणिष्यन्ति क्रि० अभणिष्यत् अभणिष्यताम् अभणिष्यन्
२६५. भ्रण (भ्रण) शब्दक्रियायाम। व० भ्रणति
भ्रणन्ति स० भ्रणेत् भ्रणेताम् भ्रणेयुः प० भ्रणतु/भ्रणतात् भ्रणताम् भ्रणन्तु ह्य० अभ्रणत् अभ्रणताम् अभ्रणन् अ० अभ्राणीत अभ्राणिष्टाम् अभ्राणिषुः
तथा अभ्रणीत् अभ्रणिष्टाम् अभ्रणिषुः प० बभ्राण बभ्रणतुः
बभ्रणुः आ० भ्रण्यात् भ्रण्यास्ताम् भ्रण्यासुः श्व० भ्रणिता भ्रणितारौ भ्रणितारः भ० भ्रणिष्यति भ्रणिष्यतः भ्रणिष्यन्ति क्रि० अभ्रणिष्यत् अभ्रणिष्यताम् अभ्रणिष्यन्
२६६. मण (मण्) शब्दक्रियायाम्। व० मणति मणत: मणन्ति स० मणेत् मणेताम् प० मणतु/मणतात् मणताम्
मणन्तु ह्य० अमणत् अमणताम् अमणन् अ० अमाणीत् अमाणिष्टाम् अमाणिषः
तथा अमणीत् अमणिष्टाम् अमणिषुः प० ममाण मेणतुः
मेणुः आ० मण्यात् मण्यास्ताम् मण्यासुः श्व० मणिता मणितारौ
मणितारः म० मणिष्यति मणिष्यतः मणिष्यन्ति क्रि० अमणिष्यत् अमणिष्यताम् अमणिष्यन्
२६७. धण (धण) शब्दक्रियायाम्।
अधणीत् अधणिष्टाम् अधणिषुः प० दधाण दधणतुः दधणुः आ० धण्यात् धण्यास्ताम् धण्यासुः श्व० धणिता धणितारौ धणितारः भ० धणिष्यति धणिष्यतः धणिष्यन्ति क्रि० अधणिष्यत् अधणिष्यताम् अधणिष्यन्
२६८. ध्वण (ध्वण) शब्दक्रियायाम्। व० ध्वणति ध्वणतः ध्वणन्ति स० ध्वणेत् ध्वणेताम् ध्वणेयुः प० ध्वणतु/ध्वणतात् ध्वणताम् ध्वणन्तु ह्य० अध्वणत् अध्वणताम् अध्वणन् अ० अध्वाणीत् अध्वाणिष्टाम् अध्वाणिषुः
तथा
गत
मणेयुः
सारा
अध्वणीत् अध्वणिष्टाम् अध्वणिषुः प० दध्वाण दध्वणतुः दध्वणुः आ० ध्वण्यात् ध्वण्यास्ताम् ध्वण्यासुः श्व० ध्वणिता ध्वणितारौ ध्वणितारः भ० ध्वणिष्यति ध्वणिष्यतः ध्वणिष्यन्ति क्रि० अध्वणिष्यत् अध्वणिष्यताम् अध्वणिष्यन्
२६९. ध्रण (ध्रण) शब्दक्रियायाम्। व० ध्रणति ध्रणतः ध्रणन्ति स० ध्रणेत् ध्रणेताम् ध्रणेयुः प० ध्रणतु/ध्रणतात् ध्रणताम् ध्रणन्तु ह्य० अध्रणत् अध्रणताम् अध्रणन् अ० अध्राणीत् अध्राणिष्टाम् अध्राणिषुः
तथा अध्रणीत् अध्रणिष्टाम् अध्रणिषुः | प० दध्राण
दशृणुः
दध्रणतुः
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
68
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चेणतुः
चेणुः
आ० ध्रण्यात् ध्रण्यास्ताम् ध्रण्यासुः व० ध्रणिता ध्रणितारौ ध्रणितार: भ० ध्रणिष्यति ध्रणिष्यतः ध्रणिष्यन्ति क्रि० अध्रणिष्यत् अध्रणिष्यताम् अध्रणिष्यन्
२७०. कण (कण) शब्दक्रियायाम्। व० कणति कणतः कणन्ति स० कणेत् कणेताम् कणेयुः प० कणतु/कणतात् कणताम् कणन्तु ह्य० अकणत् अकणताम् अकणन् अ० अकाणीत् अकाणिष्टाम् अकाणिषुः
तथा अकणीत् अकणिष्टाम् अकणिषुः प० चकाण चकणतुः चकणुः आ० कण्यात् कण्यास्ताम्
कण्यासुः श्व० कणिता कणितारौ कणितारः भ० कणिष्यति कणिष्यतः कणिष्यन्ति क्रि० अकणिष्यत् अकणिष्यताम् अकणिष्यन्
२७१. क्वण (क्वण) शब्दक्रियायाम। व० क्वणति क्वणतः क्वणन्ति स० क्वणेत् क्वणेताम् क्वणेयुः प० क्वणतु/क्वणतात् क्वणताम् क्वणन्तु ह्य० अक्वणत् अक्वणताम् अक्वणन् अ० अक्वाणीत् अक्वाणिष्टाम् अक्वाणिषु:
ओणे:
ह्य० अचणत् अचणताम् अचणन् अ० अचाणीत् अचाणिष्टाम् अचाणिषुः
तथा अचणीत् अचणिष्टाम् अचणिषुः प० चचाण आ० चण्यात् चण्यास्ताम् चण्यासुः श्व० चणिता चणितारौ चणितारः भ० चणिष्यति चणिष्यतः चणिष्यन्ति क्रि० अचणिष्यत् अचणिष्यताम् अचणिष्यन्
२७३. ओण (ओण) अपनयने। व० ओणति ओणतः ओणन्ति
ओणसि ओणथः ओणथ ओणामि ओणावः
ओणामः स० ओणेत् ओणेताम् ओणेयुः
ओणेतम्
ओणेत ओणेयम ओणेव ओणेम ओणतु/ओणतात् ओणताम् ओणन्तु ओण/ओणतात् ओणतम् ओणत
ओणानि ओणाव ह्य० औणत् औणताम् औणः औणतम्
औणत औणम् औणाव औणाम औणिष्टाम्
औणिषुः औणी: औणिष्टम् औणिष्ट औणिषम्
औणिष्व औणिष्म ओणाञ्चकार ओणाञ्चक्रतुः ओणाञ्चक्रुः ओणाचक्रर्थ ओणाञ्चक्रथः ओणाञ्चक्र
ओणाञ्चकार/ओणाञ्चकर ओणाञ्चकृव ओणाञ्चकृम आ० ओण्यात् ओण्यास्ताम् ओण्यासुः ओण्याः ओण्यास्तम्
ओण्यास्त ओण्यासम् ओण्यास्व
ओण्यास्म श्व० ओणिता ओणितारौ ओणितार:
ओणितासि ओणितास्थः ओणितास्थ
ओणाम
औणन्
तथा
अ०
औणीत्
अक्वणीत् अक्वणिष्टाम्
अक्वणिषुः प० चक्वाण चक्वणतुः चक्वणुः आ० क्वण्यात् क्वण्यास्ताम् क्वण्यासुः व० क्वणिता क्वणितारौ क्वणितार: भ० क्वणिष्यति क्वणिष्यतः क्वणिष्यन्ति क्रि० अक्वणिष्यत् अक्वणिष्यताम् अक्वणिष्यन्
२७२. चण (चण्) शब्दक्रियायाम्। व० चणति चणतः चणन्ति स० चणेत चणेताम् चणेयुः प० चणतु/चणतात् चणताम् चणन्तु
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
शाणमा
शोणथ
श्रोणेयुः श्रोणन्तु अश्रोणन्
शोणेत
ओणितास्मि ओणितास्वः ओणितास्मः भ० ओणिष्यति ओणिष्यतः ओणिष्यन्ति
ओणिष्यसि ओणिष्यथ: ओणिष्यथ
ओणिष्यामि ओणिष्याव: ओणिष्यामः क्रि० औणिष्यत् औणिष्यताम् औणिष्यन्
औणिष्यः औणिष्यतम् औणिष्यत औणिष्यम् औणिष्याव औणिष्याम
२७४. शोण (शोण) वर्णगत्योः। व० शोणति शोणतः शोणन्ति शोणसि
शोणथः शोणामि शोणावः
शोणामः स० शोणेत्
शोणेताम्
शोणेयुः शोणेः शोणेतम्
शोणेयम् शोणेव शोणेम प०. शोणतु/शोणतात् शोणताम्
शोण/शोणतात् शोणतम्
शोणानि शोणाव शोणाम हो० अशोणत् अशोणताम अशोणन
अशोण: अशोणतम् अशोणत
अशोणतम् अशोणाव अशोणाम अ० अशोणीत् अशोणिष्टाम् अशोणिषु:
अशोणीः अशोणिष्टम् अशोणिष्ट
अशोणिषम् अशोणिष्व अशोणिष्म प० शुशोण शुशोणतुः शुशोणुः शुशोणिथ
शुशोणिथुः
शुशोणिव शुशोणिम आ० शोण्यात् शोण्यास्ताम् शोण्यासुः
शोण्याः शोण्यास्तम् शोण्यास्त शोण्यासम् शोण्यास्व शोण्यास्म शोणिता शोणितारौ
शोणितार: शोणितासि शोणितास्थः । शोणितास्थ शोणितास्मि शोणितास्वः शोणितास्मः
शोणन्तु शोणत
भ० शोणिष्यति शोणिष्यतः शोणिष्यन्ति
शोणिष्यसि शोणिष्यथ: शोणिष्यथ शोणिष्यामि शोणिष्याव:
शोणिष्यामः क्रि० अशोणिष्यत् अशोणिष्यताम् अशोणिष्यन्
अशोणिष्यः अशोणिष्यतम् अशोणिष्यत अशोणिष्यम् अशोणिष्याव अशोणिष्याम
२७५. श्रोण (श्रोण) संघाते। व० श्रोणति श्रोणतः श्रोणन्ति स० श्रोणेत् श्रोणेताम् प० श्रोणतु/श्रोणतात् श्रोणताम् । ह्य० अश्रोणत् अश्रोणताम् अ० अश्रोणीत् अश्रोणिष्टाम् अश्रोणिषुः प० शुश्रोण शुश्रोणतुः शुश्रोणुः आ० श्रोण्यात् श्रोण्यास्ताम् श्रोण्यासुः श्व० श्रोणिता श्रोणितारौ श्रोणितार: भ० श्रोणिष्यति श्रोणिष्यतः श्रोणिष्यन्ति क्रि० अश्रोणिष्यत् अश्रोणिष्यताम् अश्रोणिष्यन्
२७६.श्लोण (श्लोण) संघाते। व० श्लोणति श्लोणतः श्लोणन्ति स० श्लोणेत् श्लोणेताम् श्लोणेयुः प० श्लोणतु/श्लोणतात्श्लोणताम् श्लोणन्तु ह्य० अश्लोणत् अश्लोणताम् अश्लोणन् अ० अश्लोणीत् अश्लोणिष्टाम् अश्लोणिषुः प० शुश्लोण शुश्लोणतुः शुश्लोणुः आ० श्लोण्यात् श्लोण्यास्ताम् श्लोण्यासुः श्व० श्लोणिता श्लोणितारौ श्लोणितार:
श्लोणिष्यति श्लोणिष्यतः श्लोणिष्यन्ति क्रि० अश्लोणिष्यत् अश्लोणिष्यताम् अश्लोणिष्यन्
२७७. पैरों (पैण) गतिप्रेरणश्लेषणेषु। व० पैणति पैणतः पैणन्ति स० पैणेत् पैणेताम् प० पैणतु/पैणतात् पैणताम्
शुशोण
शुशोण
पैणेयुः पैणन्तु
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
70
ह्य अपैणत्
अ० अपैणीत्
प०
पिपैण
आ० पैण्यात्
पैणिता
भ० पैणिष्यति
क्रि० अपैणिष्यत्
ᄋ
व० चेतति
चेतसि
चेतामि
स० चेतेत्
चेते:
चेतेयम्
प० चेततु / चेततात्
चेत/चेततात्
चेतानि
ह्य० अचेतंत्
अचेतः
अचेतम्
अ० अचेतीत्
अचेती:
अथ तान्ताः दश सेटच ॥
२७८. चितै (चित्) संज्ञाने । संज्ञानं संवित्तिः ।
चेतत:
चेतथः
चेताव:
चेताम्
चेतम्
चेतेव
अचेतिषम्
चिचेत
चिचेतिथ
चिचेत
आ० चित्यात्
चित्याः
चित्यासम्
चेतिता
चेतितासि
प०
व०
अपैणन्
अपैणिषुः
पिपैणुः
पैण्यासुः
पैणितार:
पैणिष्यन्ति
अपैणिष्यताम् अपैणिष्यन्
अपैणताम्
अपैणिष्टाम्
पिपैणतुः
पैण्यास्ताम्
पैणितारौ
पैणिष्यतः
चेतताम्
चेम्
चेताव
अचेतताम्
अचे
अचेताव
चेतन्ति
चेतथ
चेतामः
चेतेयुः
चेतेत
चेतेम
चेतन्तु
चेतत
चेताम
अचेतन्
अचेतत
अचेताम
अचेतिष्टाम् अचेतिषुः
अचेतिष्टम् अचेतिष्ट
अचेतिष्व
अचेतिष्म
चिचिततुः
चिचितुः
चिचितथुः चिचित
चिचितिव चिचितिम
चित्यास्ताम्
चित्यासुः
चित्यास्तम् चित्यास्त
चित्यास्व
चित्यास्म
चेतितारौ
चेतितारः
चेतितास्थः
चेतितास्थ
चेतितास्मि
चेतिष्यति
चेतिष्यसि
चेतिष्यामि
क्रि० अचेतिष्यत्
भ०
व०
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चेतितास्वः
चेतितास्मः
चेतिष्यतः
चेतिष्यन्ति
चेतिष्यथः
चेतिष्यथ
चेतिष्यावः चेतिष्यामः
अचेतिष्यताम् अचेतिष्यन्
अचेतिष्यः अचेतिष्यतम् अचेतिष्यत अचेतिष्यम् अचेतिष्याव अचेतिष्याम
२७९. अत (अत्) सातत्यगमने ।
सातत्येन गमनं नित्यगतिः ।
प०
अतति
अतसि
अतामि
सत्
अते:
अतेयम्
अततु / अततात्
अत/ अततात्
अतानि
ह्य० आतत्
आतः
आतम्
अ० आतीत्
आती:
आतिषम्
प० आत
आतिथ
आत
आ० अत्यात्
अत्याः
अत्यासम्
श्व० अतिता
अतितासि
अतितास्मि
अततः
अतथः
अतावः
अताम्
अतेतम्
अतेव
अतताम्
अततम्
अताव
आतताम्
आततम्
आताव
आतिष्टाम्
आतिष्टम्
आतिष्व
आततुः
आतथुः
आतिव
अत्यास्ताम्
अत्यास्तम्
अत्यास्व
अतितारौ
अतितास्थः
अतितास्वः
अतन्ति
अतथ
अतामः
अतेयुः
अतेत
अतेम
अतन्तु
अतत
अताम
आतन्
आतत
आताम
तिषुः
आतिष्ट
आतिष्म
आतुः
आत
आतिम
अत्यासुः
अत्यास्त
अत्यास्म
अतितार :
अतितास्थ
अतितास्मः
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
श्चो ततः
श्चोतेयुः
भ० अतिष्यति अतिष्यतः अतिष्यन्ति
२८२. स्चुत (स्चुत्) क्षरणे। क्षरणं स्रवणम्। अतिष्यसि अतिष्यथ: अतिष्यथ
व० श्चोतति
श्चोतन्ति अतिष्यामि अतिष्याव: अतिष्याम:
स० श्चोतेत् श्चोतेताम् क्रि० आतिष्यत् आतिष्यताम् आतिष्यन्
| प० श्चोततु/श्चोततात् श्चोतताम् श्चोतन्तु आतिष्यः आतिष्यतम् आतिष्यत
ह्य० अश्चोतत् अश्चोतताम्
अश्चोतन् आतिष्यम् आतिष्याव आतिष्याम
अ० अश्चोतीत् अश्चोतिष्टाम् अश्चोतिषुः २८०. च्युत (च्युत्) आसेचने। आसेचनमीषत्सेकः।
तथा व० च्योतति
च्योतन्ति
अश्चुतत् अश्चतताम् च्योततः
अश्चतन
प० चुश्चोत स० च्योतेत् च्योतेताम् च्योतेयुः
चुश्श्रुततुः चुश्चतुः प० च्योततु/च्योततात् च्योतताम् च्योतन्तु
आ० श्चुत्यात् श्रुत्यास्ताम् श्रुत्यासुः
श्व० श्चोतिता श्योतितारौ श्योतितारः ह्य० अच्योतत् अच्योतताम् अच्योतन् अ० अच्योतीत्
अच्योतिषुः
भ० श्चोतिष्यति चोतिष्यतः अच्योतिष्टाम्
चोतिष्यन्ति क्रि० अश्वोतिष्यत् अश्ोतिष्यताम् अश्चोतिष्यन् तथा अच्युतत् अच्युतताम् अच्युतन
२८३. स्व्युत (श्युत्) क्षरणे। क्षरणं स्रवणम्। चुच्योत चुच्युततुः चुच्युतुः
व० श्चयोतति श्चयोततः श्चयोतन्ति आ० च्युत्यात् च्युत्यास्ताम् च्युत्यासुः
स० श्चयोतेत् श्चयोतेताम् श्च्योतेयुः श्व० च्योतिता च्योतितारौ
च्योतितारः
प० श्चयोततु/श्चयोततात्श्चयोतताम् श्चयोतन्तु भ० च्योतिष्यति च्योतिष्यतः च्योतिष्यन्ति ह्य० अश्चयोतत् अश्चयोतताम् अश्चयोतन् क्रि० अच्योतिष्यत् अच्योतिष्यताम् अच्योतिष्यन् अ० अश्चयोतीत् अश्चयोतिष्टाम् अश्चयोतिषुः
तथा २८१. चुतृ (चुत्) क्षरणे। क्षरणं स्रवणम्।
अच्युतत् अच्युतताम् अच्युतन व० चोतति चोततः चोतन्ति
प० चुश्श्योत चुच्युततुः चुच्यतः स० चोतेत् चोतेताम्
आ० श्युत्यात् श्युत्यास्ताम् ध्युत्यासुः प० चोततु/चोततात् चोतताम्
श्व० श्चयोतिता श्योतितारौ श्चयोतितारः ह्य० अचोतत् अचोतताम् अचोतन्
भ० श्योतिष्यति श्योतिष्यतः । श्योतिष्यन्ति अ० अचुतत् अचुतताम् अचुतन्
क्रि० अश्चयोतिष्यत् अश्चयोतिष्यताम् अश्चयोतिष्यन् तथा
२८४. जत (जत) भासने। अचोतीत् अचोतिष्टाम् अचोतिषुः
व० जोतति जोततः जोतन्ति प० चुचोत चुचुततुः चुचुतुः
जोतसि जोतथः आ० चुत्यात् चुत्यास्ताम् चुत्यासुः
जोतामि जोतावः श्व० चोतिता चोतितारौ चोतितारः
जोतेत्
जोतेताम् जोतेयुः भ० चोतिष्यति चोतिष्यतः चोतिष्यन्ति
जोते: जोतेतम्
जोतेत क्रि० अचोतिष्यत् अचोतिष्यताम् अचोतिष्यन्
जोतेयम जोतेव
जोतेम
चोतेयुः
चोतन्तु
जोतथ जोतामः
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
___
अन्तेतम्
जोतन्तु जोतत
अन्तेत
अन्तेः अन्तेयम्
अन्तेव
अन्तेम
प०
अन्ततु/अन्ततात् अन्तताम्
अन्तन्तु
आन्तः
प० जोततु/जोततात् जोतताम्
जोत/जोततात् जोतम्
जोतानि जोताव जोताम ह्य० अजोतत् अजोतताम् अजोतन् अजोतः अजोततम्
अजोतत अजोतम् अजोताव अजोताम अ० अजुतत् अजुतताम् अजुतन
अजुतः अजुततम् अजुतत अजुतम् अजुताव अजुताम
तथा अजोतीत् अजोतिष्टाम् अजोतिषुः अजोती: अजोतिष्टम् अजोतिष्ट
अजोतिषम् अजोतिष्व अजोतिष्म प० जुजोत जुजुततुः जुजुतुः
जुजोतिथ जुजुतथुः जुजुत
जुजोत जुजुतिव जुजुतिम आ० जुत्यात् जुत्यास्ताम् जुत्यासुः
जुत्याः जुत्यास्तम् जुत्यास्त
जुत्यासम् जुत्यास्व जुत्यास्म श्व० जोतिता जोतितारौ
जोतितारः जोतितासि जोतितास्थः जोतितास्थ
जोतितास्मि जोतितास्वः जोतितास्मः भ० जोतिष्यति जोतिष्यतः जोतिष्यन्ति
जोतिष्यसि जोतिष्यथ: जोतिष्यथ
जोतिष्यामि जोतिष्याव: जोतिष्यामः क्रि० अजोतिष्यत् अजोतिष्यताम् अजोतिष्यन्
अजोतिष्यः अजोतिष्यतम् अजोतिष्यत अजोतिष्यम् अजोतिष्याव अजोतिष्याम
२८५. अतु (अन्त्) बन्धने। व० अन्तति अन्ततः अन्तन्ति अन्तसि अन्तथः
अन्तथ अन्तामि अन्ताव: अन्तामः स० अन्तेत् अन्तेताम् अन्तेयुः
अन्त/अन्ततात् अन्तम्
अन्तत अन्तानि अन्ताव
अन्ताम ह्य० आन्तत् आन्तताम् आन्तन्
आन्ततम् आन्तत आन्तम् आन्ताव
आन्ताम | अ० आन्तीत् आन्तिष्टाम् आन्तिषुः
आन्ती: आन्तिष्टम् आन्तिष्ट
आन्तिषम् आतिष्व आन्तिष्म | प० आनन्त आनन्ततुः आनन्तुः
आनन्तिथ आनन्तथुः आनन्त
आनन्त आनन्तिव आनन्तिम आ० अन्त्यात् अन्त्यास्ताम् अन्त्यासुः
अन्त्याः अन्त्यास्तम् अन्त्यास्त
अन्त्यासम् अन्त्यास्व अन्त्यास्म श्व० अन्तिता अन्तितारौ अन्तितार:
अन्तितासि अन्तितास्थः अन्तितास्थ
अन्तितास्मि अन्तितास्वः अन्तितास्मः भ० अन्तिष्यति अन्तिष्यतः अन्तिष्यन्ति
अन्तिष्यसि अन्तिष्यथ: अन्तिष्यथ
अन्तिष्यामि अन्तिष्यावः अन्तिष्यामः क्रि० आन्तिष्यत् आन्तिष्यताम् आन्तिष्यन्
आन्तिष्यः आन्तिष्यतम् आन्तिष्यत आन्तिष्यम् आन्तिष्याव आन्तिष्याम
२८६. कित (कित्) निवासे। व० केतति केततः केतन्ति केतसि केतथ:
केतथ केतामि | स० केतेत्
केतेयुः
केतामः
केतावः केतेताम्
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
केते:
केतेत
केतेव
केतेम
केतन्तु
प०
केतेतम् केतेयम् प० केततु/केततात् केतताम् केत/केततात् केतम्
केतत केतानि केताव केताम ह्य० अकेतत् अकेतताम् अकेतन् अकेतः अकेततम्
अकेतत अकेतम् अकेताव अकेताम अ० अकेतीत् अकेतिष्टाम्
अकेतिषुः अकेती: अकेतिष्टम् अकेतिष्ट
अकेतिषम् अकेतिष्व अकेतिष्म प० चिकेत चिकिततुः चिकितुः
चिकेतिथ चिकितथुः चिकित चिकेत चिकितिव
चिकितिम आ० कित्यात् कुित्यास्ताम्
कित्यासुः कित्याः कित्यास्तम् कित्यास्त कित्यासम् कित्यास्व कित्यास्म केतितारौ
केतितारः केतितासि केतितास्थः केतितास्थ
केतितास्मि केतितास्वः केतितास्मः भ० केतिष्यति केतिष्यतः केतिष्यन्ति
केतिष्यसि केतिष्यथ: केतिष्यथ
केतिष्यामि केतिष्याव: केतिष्यामः क्रि० अकेतिष्यत् अकेतिष्यताम् अकेतिष्यन्
अकेतिष्यः अकेतिष्यतम् अकेतिष्यत अकेतिष्यम् अकेतिष्याव अकेतिष्याम धातूनामनेकार्थत्वात् कित: संशयप्रतीकारेऽपि ज्ञेयः।
निग्रुविनाशौ प्रतीकारस्यैव भेदौ।
२८६-१. स्वार्थे सनि। (चिकित्स्) व० चिकित्सति चिकित्सतः चिकित्सन्ति • चिकित्ससि चिकित्सथः चिकित्सथ
__चिकित्सामि चिकित्सावः चिकित्सामः स० चिकित्सेत् चिकित्सेताम् चिकित्सेयुः
चिकित्से: चिकित्सेतम् चिकित्सेत चिकित्सेयम् चिकित्सेव चिकित्सेम चिकित्सतु/तात् चिकित्सताम्
चिकित्सन्तु चिकित्स/तात् चिकित्सम् चिकित्सत चिकित्सानि चिकित्साव चिकित्साम
अचिकित्सताम् अचिकित्सन् अचिकित्सः अचिकित्सतम् अचिकित्सत
अचिकित्सम् अचिकित्साव अचिकित्साम अ० अचिकित्सीत् अचिकित्सिष्टाम् अचिकित्सिषुः
अचिकित्सीः अचिकित्सिष्टम् अचिकित्सिष्ट
अचिकित्सिषम् अचिकित्सिष्व अचिकित्सिष्म प० चिकित्साञ्चकार चिकित्साञ्चक्रतुः चिकित्साञ्चक्रुः
चिकित्साञ्चकर्थ चिकित्साञ्चक्रथुः चिकित्साञ्चक्र चिकित्साञ्चकार/चकर चिकित्साञ्चकव चिकित्साञ्चकम
चिकित्साम्बभूव/चिकित्सामास आ० चिकित्स्यात् चिकित्स्यास्ताम् चिकित्स्यासुः
चिकित्स्याः चिकित्स्यास्तम् चिकित्स्यास्त
चिकित्स्यासम् चिकित्स्यास्व चिकित्स्यास्म श्व० चिकित्सिता चिकित्सितारौ चिकित्सितारः
चिकित्सितासि चिकित्सितास्थः चिकित्सितास्थ चिकित्सितास्मि चिकित्सितास्व: चिकित्सितास्मः चिकित्सिष्यति चिकित्सिष्यतः चिकित्सिष्यन्ति चिकित्सिष्यसि चिकित्सिष्यथः चिकित्सिष्यथ
चिकित्सिष्यामि चिकित्सिष्याव: चिकित्सिष्यामः क्रि० अचिकित्सिष्यत् अचिकित्सिष्यताम् अचिकित्सिष्यन्
अचिकित्सिष्यः अचिकित्सिष्यतम् अचिकित्सिष्यत अचिकित्सिष्यम् अचिकित्सिष्याव अचिकित्सिष्याम
२८७. ऋत (ऋत्-ऋतीय) घृणागतिस्पर्धेषु। | व० ऋतीयते ऋतीयेते ऋतीयन्ते ऋतीयसे ऋतीयेथे
ऋतीयध्वे ऋतीये ऋतीयावहे ऋतीयामहे स० ऋतीयेत् ऋतीयेयाताम् ऋतीयेरन्
ऋतीयेथाः ऋतीयेयाथाम् ऋतीयेध्वम् ऋतीयेय ऋतीयेवहि ऋतीयेमहि
केतिता
भ०
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
74
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प० ऋतीयताम्
ऋतीयस्व
ऋतीयै ह्य० आर्तीयत
आर्तीयथाः
आर्तीये अ० आर्तियिष्ट
आर्तियिष्ठाः आर्तियिषि
ऋतीयेताम् ऋतीयेथाम् ऋतीयावहे आर्तीयेताम आर्तीयेथाम् आर्तीयावहि आर्तियिषाताम् आर्तियिषाथाम् आर्तियिष्वहि
ऋतीयन्ताम् ऋतीयध्वम् ऋतीयामहै आर्तीयन्त आर्तीयध्वम् आर्तीयामहि आर्तियिषत आर्तियिड्डवं/ध्वम् आर्तियिष्महि
तथा
ऋतीयाञ्चक्रे ऋतीयाञ्चक्राते ऋतीयाञ्चक्रिरे ऋतीयाञ्चकृषे ऋतीयाञ्चक्रावे ऋतीयाञ्चकदवे ऋतीयाञ्चक्रे ऋतीयाञ्चकृवहे ऋतीयाञ्चकृमहे
ऋतीयामास/ऋतीयाम्बभूव प० आनर्त आनृततुः आनृतुः आनर्तिथ
आनृतथुः आनृत आनर्त आनृतिव आनृतिम आ० ऋतीयिषीष्ट ऋतीयीषीयास्ताम् ऋतीयिषीरन्
ऋतीयिषीष्ठाः ऋतीयिषीयास्थाम् ऋतीयिषीदवम् ऋतीयिषीय ऋतीयिषीवहि ऋतीयिषीमहि
अर्तिष्यति अर्तिष्यतः अर्तिष्यन्ति अर्तिष्यसि अर्तिष्यथ: अर्तिष्यथ
अर्तिष्यामि अर्तिष्याव: अर्तिष्यामः क्रि० आर्तीयिष्यत् आर्तीयिष्येताम् आर्तीयिष्यन्त
आर्तीयिष्यथाः आर्तीयिष्येथाम् आर्तीयिष्यध्वम् आर्तीयिष्ये आर्तीयिष्यावहि आर्तीयिष्यामहि
तथा आर्तिष्यत् आर्तिष्यताम् आर्तिष्यन् आर्तिष्यः आर्तिष्यतम् आर्तिष्यत आर्तिष्यम् आर्तिष्याव आर्तिष्याम
॥अथ थान्ताः षट् सेटश्च।। २८८. कुथु (कुन्थ्) हिंसासक्लेशनयोः।
__ हिंसाप्राण्युपघातः, संक्लेशो बाधा। व० कुन्थति कुन्थतः कुन्थन्ति
कुन्थसि कुन्थथः कुन्थथ
कुन्थामि कुन्थावः कुन्थाम: स० कुन्थेत्
कुन्थेताम् कुन्थेयुः
कुन्थेतम् कुन्थेत कुन्थेयम् कुन्थेव कुन्थेम प० कुन्थतु/कुन्थतात् कुन्थताम् कुन्थन्तु
कुन्थ/कुन्थतात् कुन्थतम् कुन्थत
कुन्थानि कुन्थाव कुन्थाम ह्य० अकुन्थत् अकुन्थताम् अकुन्थन्
अकुन्थः अकुन्थतम् अकुन्थत
अकुन्थतम् अकुन्थाव अकुन्थाम अ० . अकुन्थीत् अकुन्थिष्टाम् अकुन्थिषुः अकुन्थीः
अकुन्थिष्टम् अकुन्थिष्ट अकुन्थिषम् अकुन्थिष्व अकुन्थिष्म प० चुकुन्थ चुकुन्थतुः चुकुन्थुः
चुकुन्थिथ चुकुन्थथुः चुकुन्थ
चुकुन्थ चुकुन्थिव चुकुन्थिम आ० कुन्थ्यात् कुन्थ्यास्ताम् कुन्थ्यासुः
कुन्थ्याः कुन्थ्यास्तम् कुन्थ्यास्त कुन्थ्यासम् कुन्थ्यास्व कुन्थ्यास्म
कुन्थे
तथा
ऋत्यात्
ऋत्या :
ऋत्यासम् अर्तिता अर्तितासि अर्तितास्मि
ऋत्यास्ताम् ऋत्यासुः ऋत्यास्तम् ऋत्यास्त ऋत्यास्व ऋत्यास्म अर्तितारौ अर्तितारः अर्तितास्थः अर्तितास्थ अर्तितास्वः अर्तितास्मः
तथा ऋतीयितारौ । ऋतीयितार: ऋतीयितासाथे ऋतीयिताध्वे ऋतीयितास्वहे ऋतीयितास्मिहे ऋतीयिष्येते: ऋतीयिष्यन्ते ऋतीयिष्येथे ऋतीयिष्यध्वे ऋतीयिष्यावहे ऋतीयिष्यामहे
ऋतीयिता ऋतीयितासे
ऋतीयिताहे भ० ऋतीयिष्यते
ऋतीयिष्यसे ऋतीयिष्ये
तथा
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
श्व० कुन्थिता
कुन्तारौ
कुन्थितासि
कुन्थितास्थः
स्थ
कुन्थितास्मि कुन्थितास्वः
कुन्थितास्मः
कुन्थिष्यतः
कुन्थिष्यन्ति
कुन्थिय कुन्थिष्यथः
कुन्थियथ
कुन्थिष्यामः
कुन्थिष्यामि कुन्थिष्यावः क्रि० अकुन्थिष्यत् अकुन्थिष्यताम् अकुन्थिष्यन् अकुन्थियः अकुन्थिष्यतम् अकुन्थिष्यत अकुन्थिष्यम् अकुन्थिष्याव अकुन्थियाम २८९. पुथु (पुन्थ्) हिंसासङ्क्लेशनयोः ।
भ० कुन्थिष्यति
पुन्थतः
व० पुन्थति स० पुन्थेत् पुन्थेताम्
प०
पुन्तु / पुन्थतात् पुन्थताम्
पुन्धन्तु
ह्य० अपुन्थत् अपुन्थताम्
अपुन्धन्
अ० अन्त्
अन्थिष्टाम्
अपुन्थिषुः
प० पुपुन्थ
पुपुन्थुः
पुन्ध्यासुः
आ० पुन्ध्यात् श्व० पुन्थिता
पुन्थितारः
पुन्थिष्यन्ति
भ० पुन्थिष्यति क्रि० अपुन्थिष्यत् अपुन्थिष्यताम् अपुन्थिष्यन् २९०. लुथु (लुन्थ्) हिंसासङ्क्लेशनयोः
व० लुन्थति लुन्धतः *स० लुन्थेत् लुन्थेताम्
प०
लुन्धतु/लुन्थतात् लुन्थताम्
ह्य० अलुन्थत् अलुन्धताम्
अ० अलुन्धीत्
प० लुलुन्ध
कुन्थितार:
पुपुन्धतुः
पुन्ध्यास्ताम्
पुन्तिरौ
पुन्थिष्यतः
व०
लुन्थन्ति
लुन्थेयुः
लुन्धन्तु
अलुन्थन्
अलुन्थिष्टाम् अलुन्थिषुः लुलुन्थुः लुन्थ्यास्ताम् लुन्ध्यासुः
लुलुन्धतुः
आ० लुन्ध्यात् श्व० लुन्थिता लुन्तिरौ भ० लुन्थिष्यति लुन्थिष्यतः क्रि० अलुन्थिष्यत् अलुन्थिष्यताम् अलुन्थिष्यन्
लुन्थितार: लुन्थिष्यन्ति
२९१. मथु (मन्य्) हिंसासङ्क्लेशनयोः ।
मन्थति
मन्थतः
मन्थसि
मन्थथः
पुन्थन्ति
पुन्थेयुः
मन्थन्ति
मन्थथ
मन्थामि
० मन्त्
मन्थेः
मन्थेयम्
प०
ह्य० अमन्थत्
अमन्थः
अमन्थम्
अ० अमन्थीत्
अमन्थीः
अन्थिम्
प०
ममन्थ
ममन्थिथ
ममन्थ
आ० मन्ध्यात्
मन्ध्या:
मन्थतु/मन्थतात् मन्थताम्
मन्थ / मन्थतात्
मन्थतम्
मन्थानि
मन्थाव
व०
मन्ध्यासम्
श्व० मन्थिता
मन्थितासि
मन्थितास्मि
भ० मन्थिष्यति
मन्थिष्यसि
मन्थिष्यामि
क्रि० अमन्थिष्यत्
अमन्थिष्यः
मन्थावः
मन्थेताम्
थेम्
मन्थेव
मन्थन्तु
मन्थत
मन्थाम
अमन्थताम् अमन्थन्
अमन्थतम्
अमन्थत
अमन्थाव
अमन्थाम
अमन्थिष्टाम् अमन्थिषुः अन्थिष्टम् अमन्थिष्ट
अमन्थिष्व अमन्थिष्म
ममन्थतुः
ममन्थथुः
ममन्थिव
मन्थ्यास्ताम्
मन्थ्यास्तम्
मन्थ्यास्म
मन्थितार:
मन्थितास्थ
मन्थितास्मः
मन्थिष्यन्ति
मन्थिष्यथ
मन्थिष्यामः
अमन्थिष्यताम् अमन्थिष्यन्
अमन्थिष्यतम्
अमन्थिष्यत
अमन्थिष्यम् अमन्थिष्याव
अमन्थिष्याम
२९२. मन्य (मन्य्) हिंसासङ्क्लेशनयोः,
केचित् । २९३. मान्य (मान्थ्) हिंसासङ्क्लेशनयोः ।
मान्थतः
मान्थति मान्थन्ति ॥ अथ दान्ताः षड्विंशतिः स्कन्दृवर्जा : सेटच || २९४. खादृ (खाद्) भक्षणे ।
मन्थामः
मन्थेयुः
मन्थेत
मन्थेम
मन्थ्यास्व
मन्थितारौ
मन्थितास्थः
मन्थितास्वः
मन्थिष्यतः
मन्थिष्यथः
मन्थिष्यावः
ममन्थुः
ममन्थ
ममन्थिम
मन्ध्यासुः
मन्थ्यास्त
विलोडने
75
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
76
व० खादति
खादसि
खादामि
स० खादेत्
खादेः
खादेयम्
खादतु/ खादतात् खादताम्
खाद/खादतात् खादतम्
खादानि
खादाव
हा० अखादत्
अखादः
अखादम्
अ० अखादीत्
अखादी:
अखादिषम्
प०
चखाद
चखदिथ
चखाद
आ० खाद्यात्
खाद्याः
प०
खाद्यासम्
श्व० खादिता
व० बदति
बदसि
खादतः
खादथः
खादावः
खादेताम्
खादेतम्
खादेव
खादन्तु
खादत
खादाम
अखादताम्
अखादन्
अखादतम्
अखादत
अखादाव
अखादाम
अखादिष्टाम् अखादिषुः
अखादिष्टम्
अखादिष्ट
अखादिष्व
अखादिष्म
चखादतुः
चखादथुः
चखादिव
खाद्यास्व
खाद्यास्म
खादितारौ खादितार:
खादितासि
खादितास्थः
खादितास्थ
खादितास्मि खादितास्वः
खादितास्मः
खादिष्यन्ति
भ० खादिष्यति खादिष्यतः खादिष्यसि खादिष्यथः खादिष्यथ खादिष्यामि खादिष्यावः खादिष्यामः अखादिष्यताम् अखादिष्यन् अखादिष्यः अखादिष्यतम् अखादिष्यत अखादिष्यम् अखादिष्याव अखादिष्याम
क्रि० अखादिष्यत्
२९५. वद (बद) स्थैर्ये ।
खादन्ति
खादथ
खादामः
खादेयुः
खादेत
खादेम
चखादुः
चखाद
चखादिम
खाद्यास्ताम् खाद्यासुः
खाद्यास्तम्
खाद्यास्त
बदतः
बदथः
बदन्ति
बदथ
बदाम
स० वदेत्
बदेः
बदेयम्
प० बदतु/ बदतात्
बद/बदतात्
बदानि
ह्य० अबदत्
अबदः
अबदम्
अ० अबदीत्
अबदी:
अवदिषम्
प०
अबादीत्
अबादी:
अबादिषम्
बबाद
बेदिथ
बबाद/ बबद
आ० बचात्
बद्याः
बद्यासम्
श्व० बदिता
बदावः
बदेताम्
बतम्
बदेव
बदताम्
बदतम्
बदाव
अवदताम्
अबदतम्
अबदाव
अबदाम
अष्टिम् अवदिषुः
अबदिष्ट
अबदिष्म
अवदिष्टम्
अबदिष्व
तथा
अवादिष्टाम्
अबादिष्टम्
अबादिष्व
बेदतुः
बेदथुः
बेदिव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
बदाम:
बदेयुः
बत
बम
बदन्तु
बदत
बदाम
अबदन्
अबदत
बद्यास्ताम्
बद्यास्तम्
बद्यास्व
बदितारौ
अवादिषुः
अबादिष्ट
अबादिष्म
बेदुः
बेद
बद्यास्म
बदितार:
बदितासि
बदितास्थः
बदितास्थ
बदितास्मि
बदितास्वः
बदितास्मः
भ० बदिष्यति
बदिष्यतः
बदिष्यन्ति
बदिष्यसि
बदिष्यथः
बदिष्यथ
बदिष्यामि
बदिष्यावः
बदिष्यामः
अवदिष्यताम्
अवदिष्यन्
क्रि० अबदिष्यत् अबदिष्यः अबदिष्यम् अवदिष्याव अबदिष्याम
अबदिष्यतम्
अबदिष्यत
२९६. खद (खद) हिंसायाञ्च । चकारात्स्थैर्ये । व० खदति
खदतः
खदन्ति
बेदिम
बद्यासुः
बद्यास्त
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
77
व० गदति
गदसि
गदामि स० गदेत्
गदेः गदेयम् गदतु/गदतात् गद/गदतात् गदानि
खदेः
गदतः गदथ: गदाव: गदेताम् गदेतम् गदेव गदताम् गदतम् गदाव
गदन्ति गदथ गदामः गदेयुः गदेत गदेम
खदन्तु
गदन्तु
गदत
ह्य०
अगदत्
अगदताम्
अगदः
अगदम्
गदाम अगदन् अगदत अगदाम अगादिषुः अगादिष्ट अगादिष्म
अ०
अगादीत् अगादी: अगादिषम्
खदसि खदथः
खदथ खदामि खदाव:
खदामः स० खदेत् खदेताम् खदेयुः
खदेतम् खदेत खदेयम् खदेव
खदेम प० खदतु/खदतात् खदताम्
खदाखदतात् खदतम् खदत खदानि खदाव
खदाम ह्य० अखदत् अखदताम्
अखदन् अखदः
अखदतम् अखदत अखदम् अखदाव अखदाम अ० अखादीत् अखादिष्टाम् अखादिषुः
अखादी: अखादिष्टम् अखादिष्ट अखादिषम् अखादिष्व अखादिष्म
तथा अखदीत् अखदिष्टाम् अखदिषुः अखदी: अखदिष्टम् अखदिष्ट
अखदिषम् अखदिष्व अखदिष्म प० चखाद चखदतुः
चखदिथ चखदथुः चखद
चखाद चखदिव चखदिम आ० खद्यात् खद्यास्ताम् खद्यासुः खद्याः
खद्यास्तम् खद्यास्त खद्यासम् खद्यास्व खद्यास्म श्व० खदिता खदितारौ खदितारः
खदितासि खदितास्थः खदितास्थ
खदितास्मि खदितास्वः खदितास्मः भ० खदिष्यति खदिष्यतः खदिष्यन्ति
खदिष्यसि खदिष्यथ: खदिष्यथ
खदिष्यामि खदिष्याव: खदिष्यामः क्रि० अखदिष्यत् अखदिष्यताम् अखदिष्यन्
अखदिष्यः अखदिष्यतम् अखदिष्यत अखदिष्यम् अखदिष्याव अखदिष्याम १ २९७. गद (गद्) व्यक्तायां वाचि।
अगदतम् अगदाव अगादिष्टाम् अगादिष्टम् अगादिष्व
तथा अगदिष्टाम् अगदिष्टम् अगदिष्व जगदतुः जगदथुः जगदिव
चखदुः
अगदीत् अगदी:
अगदिषम् प० जगाद
जगदिथ जगाद/जगद
अगदिषुः अगदिष्ट अगदिष्म जगदुः जगद जगदिम
आ० गद्यात्
गद्यासुः गद्यास्त
गद्याः
गद्यासम् श्व० गदिता
गदितासि
गदितास्मि भ० गदिष्यति
गदिष्यसि
गदिष्यामि क्रि० अगदिष्यत्
अगदिष्यः अगदिष्यम्
गद्यास्ताम् गद्यास्तम् गद्यास्व गदितारौ गदितास्थः गदितास्वः गदिष्यतः गदिष्यथ: गदिष्याव: अगदिष्यताम् अगदिष्यतम् अगदिष्याव
गद्यास्म गदितारः गदितास्थ गदितास्मः गदिष्यन्ति गदिष्यथ गदिष्यामः अगदिष्यन् अगदिष्यत अगदिष्याम
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
नदामि
नदावः
नदेम
नदानि
अ० अनादा
२९८. रद (रद्) विलेखने।
विलेखनमुत्पाटनम्। व० रदति
रदतः
रदन्ति रदसि
रदथः रदामि
रदावः रदामः स० रदेत् रदेताम् रदेयुः
रदेः रदेतम् रदेत रदेयम् रदेव
रदेम प० रदतु/रदतात् रदताम् रद/रदतात् रदतम्
रदत रदानि रदाव
रदाम ह्य० अरदत् अरदताम्
अरदन् अरदः अरदतम्
अरदत अरदम् अरदाव अरदाम अ० अरदीत् अरदिष्टाम् अरदिषुः
अरदी: अरदिष्टम् अरदिष्ट अरदिषम् अरदिष्व अरदिष्म
तथा अरादीत् अरादिष्टाम् अरादिषुः अरादी: अरादिष्टम् अरादिष्ट
अरादिषम् अरादिष्व अरादिष्म प० रराद/ररद रेदतुः
रेदथुः रराद
ररद रेदिव आ० रद्यात्
रद्यास्ताम् रद्या: रद्यास्तम्
रद्यास्त रद्यासम् रद्यास्व
रद्यास्म श्व० रदिता रदितारौ रदितारः
रदितासि रदितास्थः रदितास्थ रदितास्मि रदितास्वः
रदितास्मः भ० रदिष्यति रदिष्यतः रदिष्यन्ति
रदिष्यसि रदिष्यथ: रदिष्यथ
रदिष्यामि रदिष्याव: रदिष्यामः क्रि० अरदिष्यत् अरदिष्यताम् अरदिष्यन्
अरदिष्यः अरदिष्यतम् अरदिष्यत
अरदिष्यम् अरदिष्याव अरदिष्याम २९९. णद (नद्) अव्यक्ते शब्द। शब्दमात्रे केचित्। व० नदति नदतः
नदन्ति नदसि नदथः
नदथ
नदामः स० नदेत् नदेताम् नदेयुः
नदेः नदेतम् नदेत नदेयम्
नदेव प० नदतु/नदतात् नदताम्
नदन्तु नद/नदतात् नदतम्
नदत नदाव
नदाम ह्य० अनदत् अनदताम्
अनदन् अनदः अनदतम्
अनदत अनदम् अनदाव
अनदाम अनादीत् अनादिष्टाम् अनादिषुः अनादी: अनादिष्टम् अनादिष्ट अनादिषम् अनादिष्व अनादिष्म
तथा अनदीत् अनदिष्टाम् अनदिषुः
अनदिष्टम् अनदिष्ट अनदिषम् अनदिष्व अनदिष्म प० ननाद
नेदिथ नेदथुः
ननाद/ननद ननद नेदिव नेदिम आ० नद्यात् नद्यास्ताम्
नद्यास्तम् नद्यास्त नद्यासम् नद्यास्व नद्यास्म श्व० नदिता नदितारौ नदितारः
नदितासि नदितास्थः नदितास्थ
नदितास्मि नदितास्वः नदितास्मः भ० नदिष्यति नदिष्यतः नदिष्यन्ति
नदिष्यसि नदिष्यथः नदिष्यथ
नदिष्यामि नदिष्याव: नदिष्यामः क्रि० अनदिष्यत् अनदिष्यताम् अनदिष्यन्
अनदी:
नेदतुः
नेदुः
रेदिथ
द
नेद
रेदिम
रद्यासुः
नद्यासुः
नद्याः
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
अनदिष्यः अनदिष्यम् अनदिष्यत अनदिष्यम् अनदिष्याव अनदिष्याम ३०० ञिविदा (विद्) अव्यक्ते शब्दे शब्दमात्रे
केचित् ।
व० क्ष्वेदति
क्ष्वेदसि
वेदामि
सo क्ष्वेत्
क्ष्वेदेः
क्ष्वेदेयम्
पo क्ष्वेदतु / क्ष्वेदतात् क्ष्वेदताम्
क्ष्वेद / क्ष्वेदतात्
क्ष्वेदतम्
वेदाव
वेदानि
० अक्ष्वेत्
अक्ष्वेदः
अक्ष्वेदम्
अ० अक्ष्वेदीत्
अक्ष्वेदी:
अक्ष्वेदिषम्
प० चिक्ष्वेद
चिक्ष्वेदिथ
चिक्ष्वेद
आ० क्ष्विद्यात्
विद्याः
विद्यासम्
व० क्ष्वेदिता
क्ष्वेदतः
क्ष्वेदथः
क्ष्वेदावः
श्वेताम्
श्वेतम्
क्ष्वेदेव
अवेदिष्टाम् अक्ष्वेदिषुः
अक्ष्वेदिष्टम्
अक्ष्वेदिष्ट
अक्ष्वेदिष्व अक्ष्वेदिष्म
चिक्ष्विदतुः
चिक्ष्विदुः
चिक्ष्विदथुः चिक्ष्विद
चिश्विदिव
चिक्ष्विदिम
विद्यास्ताम्
विद्यासुः
विद्यास्तम् विद्यास्त
विद्यास्व
विद्यास्म
वेदितारौ क्ष्वेदितार:
क्ष्वेदितास्थः
वेदितास्थ
वेदितासि वेदितास्मि वेदितास्वः
वेदितास्मः
क्ष्वेदिष्यतः क्ष्वेदिष्यन्ति
वेदिष्यथः वेदिष्यथ
वेदिष्यसि क्ष्वेदिष्यामि वेदिष्यावः क्ष्वेदिष्यामः
क्रि० अक्ष्वेदिष्यत् अक्ष्वेदिष्यताम् अक्ष्वेदिष्यन्
भ० क्ष्वेदिष्यति
अक्ष्वेदताम्
अक्ष्वेदतम्
अक्ष्वेदाव
वेदन्ति
क्ष्वेदथ
क्ष्वेदामः
क्ष्वेदेयुः
वेदेत
क्ष्वेदेम
क्ष्वेदन्तु
क्ष्वेदत
वेदाम
अक्ष्वेदन्
अक्ष्वेदत
अक्ष्वेदाम
व०
अक्ष्वेदिष्यतम् अक्ष्वेदिष्यत
अक्ष्वेदिष्यः अक्ष्वेदिष्यम् अक्ष्वेदिष्याव अक्ष्वेदिष्याम
३०१. अर्द (अर्द) गतियाचनयोः ।
अर्दति
अर्दसि
अर्दामि
स० अत्
अर्देः
अर्देयम्
प० अर्दतु/अर्दतात् अर्दताम्
अर्द/अर्दतात् अर्दतम्
अर्दानि
अर्दाव
ह्य आत्
आर्दः
आर्दम्
अ० आर्दीत्
आर्दी:
आर्दिषम्
प० आनर्द
आनर्दिथ
आनर्द
आ० अर्धात्
अर्धाः
अर्धासम्
श्व० अर्दिता
अर्दितासि
अर्दितास्मि
भ० अर्दिष्यति
अर्दिष्यसि
अर्दिष्यामि
क्रि० आर्दिष्यत्
अर्दत:
अर्टथ:
अर्दावः
अर्देताम्
अर्देम्
अर्देव
आर्दताम्
आर्दतम्
आदव
आर्दिष्टाम्
आर्दिष्टम्
आर्दिष्व
आनर्दतुः
आनर्दधुः
आनर्दिव
अर्धास्ताम्
अर्धास्तम्
अर्धास्व
अर्दितारौ
अर्दितास्थः
अर्दितास्वः
अर्दिष्यतः
अर्दिष्यथः
अर्दिष्यावः
आर्दिष्यताम्
अर्दन्ति
अर्दथ
अर्दामः
अर्देयुः
अर्देत
अम
अर्दन्तु
अर्दत
अर्दाम
आर्दन्
आर्दत
आदम
आर्दिषुः
आर्दिष्ट
आर्दिष्म
आनर्दुः
आनर्द
आनर्दिम
अर्घासुः
अर्धास्त
अर्धास्
अर्दितार:
अर्दितास्थ
अर्दितास्मः
अर्दिष्यन्ति
अर्दिष्यथ
अर्दिष्यामः
आर्दिष्यन्
79
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
80
आर्दिष्यः
आर्दिष्यम्
व० नर्दति
सर्दे
प० नर्दतु/नर्दतात् अनर्दत्
अ० अनर्दीत्
प०
ननर्द
अ०
० त्
श्व० नर्दिता
भ० नर्दिष्यति
क्रि० अनर्दिष्यत् अनर्दिष्यताम्
आर्दिष्यतम्
आर्दिष्याव
३०२. नर्द (नई) शब्दे ।
नर्दतः
गर्द
- अगर्दीत्
प० जगर्द
आ० गर्द्यात्
go गर्दिता
३०३ पर्द (नर्द) शब्दे ।
नर्दू (३०२) वद्रूपाणि पृथक्पाठस्तु णोपदेशार्थं ; तेन
भ० गर्दिष्यति
क्रि० अगर्दिष्यत्
नाम्
नर्दताम्
अनर्दताम्
अनर्दिष्टाम्
३०४. गर्द (गर्द) शब्दे ।
व०
गर्दति
गर्दतः
स गर्दैत्
गर्देताम्
प० गर्दतु/गर्दतात् गर्दा
ह्य
ननर्दतुः
नर्धास्ताम्
नर्दितारौ
नर्दिष्यतः
व० तर्दति
सर्देत्
प० तर्दतु /तर्दतात् ह्य० अतर्दत्
गर्दिष्टम्
आर्दिष्यत
आर्दिष्याम
जगर्दतुः
गर्द्यास्ताम्
गर्दितारौ
गर्दिष्यतः
नर्दन्ति
नर्देयुः
नर्दन्तु
अनर्दन्
अनर्दिषुः
ननर्दुः
नर्घासुः
नर्दितार:
नर्दिष्यन्ति
अनर्दिष्यन्
ताम्
तर्दताम्
अर्दताम्
गर्दन्ति
गर्देयुः
गर्द
३०५. तर्द (त) हिंसायाम् ।
तर्दतः
अगर्दन्
अगर्दिषुः
जगर्दुः
गर्द्यासुः
गर्दितारः
गर्दिष्यन्ति
अगर्दिष्यताम् अगर्दिष्यन्
तदन्ति
तर्देयुः
तर्दन्तु
अतर्दन्
अ० अर्दीत्
प० ततर्द
आ० तत्
श्व० तर्दिता
भ० तर्दिष्यति
क्रि० अतर्दिष्यत्
व०
कर्दति
तर्घासुः
तर्दितार:
तर्दिष्यन्ति
अतर्दिष्यताम्
अर्दिष्यन्
३०६. कर्द (क) कुत्सिते शब्दे ।
कौक्षे इत्यर्थः ।
कर्दत:
व० खर्दति
स० खर्देत्
प०
स०
प०
कर्दतु / कर्दतात्
ह्य०
अकर्दत्
अ० अकर्दीत्
प०
चकर्द
आ० कर्धात्
श्व० कर्दिता
भ० कर्दिष्यति
क्रि० अकर्दिष्यत् अकर्दिष्यताम्
अतर्दिष्टाम्
ततर्दतुः
तर्द्यास्ताम्
तर्दिता
तर्दिष्यतः
ह्य० अखत्
अ० अखर्दीत्
प० चखर्द
आ० खर्धात्
श्व० खर्दिता
भ० खर्दिष्यति
१. दशनमिह
काम्
कर्दताम्
अकर्दताम्
अकर्दिष्टम्
खताम्
खर्दतु / खर्दतात् खर्दताम्
चकर्दतुः
कर्यास्ताम्
कर्दितारौ
कर्दिष्यतः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तर्दिषुः
दुः
३०७. खर्द (खर्द) दशने । १
खर्दतः
खर्दन्ति
अखर्दताम्
अखर्दिष्टाम्
चखर्दतुः
खर्द्यास्ताम्
खर्दितारौ
खर्दिष्यतः
कर्दन्ति
कर्देयुः
कर्दन्तु
अकर्दन्
अकर्दिषुः
चकर्दुः
कर्घासुः
कर्दितारः
कर्दिष्यन्ति
अकर्दिष्यन्
दन्दशूकर्तृकं दन्तकर्म । स्वभावाच्च धातुः साधनप्रधानप्रयोगसमवायी । पूर्वे तु खर्ददन्दशूके इति पठन्ति व्याचक्षते च दन्दशनशीलो दन्दशूक उच्यतेऽनेन च तद्विषया क्रिया लक्ष्यते क्रियार्थत्वाद्धातोः । दन्दशम इति यङन्तनिर्देशेऽपि तद्विषयाक्रिया प्रतीयते । किन्तुसाधननिर्देशः प्रयोगसमवायित्वज्ञापनार्थः ॥
साधनप्रधान
खर्देयुः
खर्दन्तु
अखर्दन्
अखर्दिषुः
चखर्दुः
खर्द्यासुः
खर्दितार:
खर्दिष्यन्ति
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
81
अन्देयुः अन्दन्तु
आन्दिषुः आनन्दुः अन्द्यासुः
ऐन्दिष्यन्
क्रि० अखर्दिष्यत् अखर्दिष्यताम् अखर्दिष्यन्
३०८. अदु (अन्द्) बन्धने। व० अन्दति अन्दतः अन्दन्ति स० अन्देत् अन्देताम् प० अन्दतु/अन्दतात् अन्दताम् ह्य० आन्दत् आन्दताम् आन्दन् अ० आन्दीत् आन्दिष्टाम् प० आनन्द
आनन्दतु: आ० अन्द्यात् अन्धास्ताम् श्व० अन्दिता अन्दितारौ अन्दितारः भ० अन्दिष्यति अन्दिष्यतः अन्दिष्यन्ति क्रि० आन्दिष्यत् आन्दिष्यताम् आन्दिष्यन्
३०९. इदु (इन्द) परमैश्वर्ये। व० इन्दति इन्दतः इन्दन्ति इन्दसि इन्दथः
इन्दथ इन्दामि इन्दावः इन्दामः स० इन्देत् इन्देताम् इन्देयुः
इन्देतम् इन्देत इन्देयम् इन्देव
इन्देम प० इन्दतु/इन्दतात् इन्दताम् इदन्तु
इन्द/इन्दतात् इन्दतम् इदत इन्दानि इन्दाव
इन्दाम ह्य० ऐन्दत्
ऐन्दन्
ऐन्दत
ऐन्दाव ऐन्दाम अ० ऐन्दीत्
ऐन्दिष्टाम् ऐन्दी: ऐन्दिष्टम्
ऐन्दिष्ट ऐन्दिषम् ऐन्दिष्व ऐन्दिष्म प० इन्दाञ्चकार इन्दाञ्चक्रतुः इन्दाञ्चक्रुः
इन्दाञ्चकर्थः इन्दाञ्चक्रथुः इन्दाञ्चक्र इन्दाञ्चकार/इन्दाञ्चकर इन्दाञ्चकृव इन्दाञ्चकृम इन्दाम्बभूव/इन्दामास
आ० इन्द्यात् इन्द्यास्ताम्
इन्द्यासुः इन्द्याः इन्द्यास्तम् इन्द्यास्त
इन्द्यासम् इन्द्यास्व इन्द्यास्म श्व० इन्दिता इन्दितारौ इन्दितार:
इन्दितासि इन्दितास्थः इन्दितास्थ
इन्दितास्मि इन्दितास्वः इन्दितास्मः भ० इन्दिष्यति इन्दिष्यतः इन्दिष्यन्ति
इन्दिष्यसि इन्दिष्यथ: इन्दिष्यथ
इन्दिष्यामि इन्दिष्याव: इन्दिष्यामः क्रि० ऐन्दिष्यत्
ऐन्दिष्यताम् ऐन्दिष्यः ऐन्दिष्यतम् ऐन्दिष्यत ऐन्दिष्यम् ऐन्दिष्याव ऐन्दिष्याम
३१०. विदु (विन्द्) अवयवे। व० विन्दति विन्दतः विन्दन्ति
विन्दसि विन्दथः विन्दथ
विन्दामि विन्दावः विन्दामः स० विन्देत् विन्देताम्
विन्देः विन्तम् विन्देत
विन्देयम् विन्देव विन्देम प० विन्दतु/विन्दतात् विन्दताम्
विन्द/विन्दतात् विन्दतम् विन्दत
विन्दानि विन्दाव विन्दाम ह्य० अविन्दत् अविन्दताम् अविन्दन्
अविन्दः अविन्दतम् अविन्दत
अविन्दम् अविन्दाव अविन्दाम अ० अविन्दीत् अविन्दिष्टाम् अविन्दिषुः
अविन्दी: अविन्दिष्टम् अविन्दिष्ट
अविन्दिषम् अविन्दिष्व अविन्दिष्म प० विविन्द
विविन्दुः विविन्दिथ विविन्दथुः
विविन्द विविन्द .. विविन्दिव विविन्दिम
विन्देयुः
विन्दन्तु
ऐन्दताम् ऐन्दतम्
ऐन्दम्
ऐन्दिषुः
विविन्दतुः
१. परमैश्वर्यं परमेशनक्रिया।
२. अवयव एकदेशः । अनेन स्वगता क्रिया लक्ष्यते।
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
82
आ० विन्द्यात्
विन्द्याः
विन्द्यासम्
विन्द्यास्म
विन्दितार:
विन्दितास्थ
विन्दितास्मः
विन्दिष्यतः विन्दिष्यन्ति
विन्दिष्यथः विन्दिष्यथ
विन्दिष्यावः
विन्दिष्यामः
अविन्दिष्यताम् अविन्दिष्यन्
अविन्दिष्यतम् अविन्दिष्यत
अविन्दिष्यः अविन्दिष्यम् अविन्दिष्याव अविन्दिष्याम
३११. णिदु (निन्द्) कुत्सायाम् ।
व० निन्दति
निन्दतः
निन्दन्ति
स० निन्देत्
निन्देताम्
प० निन्दतु / निन्दतात् निन्दताम्
ह्य० अनिन्दत् अनिन्दताम्
अ० अनिन्दीत्
अनिन्दिष्टाम्
प० निनिन्द
व० विन्दिता
विन्दितासि
विन्दितास्थः
विन्दितास्मि विन्दितास्वः
भ० विन्दिष्यति
विन्दिष्यसि
विन्दिष्यामि
क्रि० अविन्दिष्यत्
आ० निन्द्यात्
व० निन्दिता
भ०
निन्दिष्यति
क्रि० अनिन्दिष्यत्
विन्द्यास्ताम्
विन्द्यास्तम्
विन्द्यास्व
विन्दितारौ
व० नन्दति
स० नन्देत्
प०
ह्य० अनन्दत्
अ० अनन्दत्
प० ननन्द
आ० नन्द्यात्
श्व० नन्दिता
विन्द्यासुः
विन्द्यास्त
निनिन्दतुः
निन्द्यास्ताम्
निन्दितारौ
निन्दिष्यतः
३१२. टुणदु (नन्द) समृद्धौ ।
नन्दतः
नन्दन्ति
नन्देताम्
नन्देयुः
नन्दतु/नन्दतात् नन्दताम्
नन्दन्तु
अनन्दताम्
अनन्दन्
अनन्दिष्टाम् अनन्दिषुः
ननन्दतुः
ननन्दुः
नन्द्यास्ताम्
नन्द्यासुः
नन्दितारौ
नन्दितार:
निन्देयुः
निन्दन्तु
अनिन्दन्
अनिन्दिषुः
निनिन्दुः
निन्द्यासुः
निन्दितार:
निन्दिष्यन्ति
अनिन्दिष्यताम् अनिन्दिष्यन्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
नन्दिष्यन्ति
अनन्दिष्यताम्
अनन्दिष्यन्
३१३. चदु (चन्द्र) दीप्त्याह्लादयोः १
चन्दतः
चन्दन्ति
चन्देाम्
चन्देयुः
चन्दतु / चन्दतात् चन्दताम्
चन्दन्तु
ह्य०
अचन्दत्
अचन्दताम्
अचन्दन्
अ० अचन्दीत्
अचन्दिष्टाम् अचन्दिषुः
प० चचन्द
भ० नन्दिष्यति नन्दिष्यतः
क्रि० अनन्दिष्यत्
व०
०
प०
चन्दति
चन्देत्
आ० चन्द्यात्
श्व० चन्दिता
भ० चन्दिष्यति
क्रि० अचन्दिष्यत्
व० त्रन्दति
सत्
प०
ह्य० अत्रन्दत्
अ० अत्रन्दीत्
प० तत्रन्द
त्रन्दन्ति
ताम्
त्रन्देयुः
त्रन्दतु/त्रन्दतात् त्रन्दताम्
त्रन्दन्तु
अत्रन्दताम्
अत्रन्दन्
अदिष्टाम् अत्रन्दिषुः
तत्रन्दुः
त्रन्द्यासुः
त्रन्दितार:
त्रन्दिष्यन्ति
चचन्दतुः
चन्द्यास्ताम्
चन्दितारौ
चन्दिष्यतः
व० कन्दति
स०
कन्देत्
प०
३१४. त्रदु (त्रन्द्) चेष्टायाम्।
त्रन्दतः
अचन्दिष्यताम् अचन्दिष्यन्
आ० त्रन्द्यात्
श्व० त्रन्दिता
भ० त्रन्दिष्यति
क्रि० अत्रन्दिष्यत् अत्रन्दिष्यताम्
ह्य० अकन्दत्
अ० अकन्दीत्
तत्रन्दतुः
त्रन्द्यास्ताम्
न्दितारौ
त्रन्दिष्यतः
३१५. कदु (कन्द्) रोदनाह्वानयोः ।
कन्दतः
कन्ताम्
कन्दतु / कन्दतात् कन्दताम्
चचन्दुः
चन्द्यासुः
चन्दितार:
चन्दिष्यन्ति
अकन्दताम्
अकन्दिष्टाम्
१. आह्लाद आह्लादनमानन्दोत्पादनमित्यर्थः ।
अत्रन्दिष्यन्
कन्दन्ति
कन्देयुः
कन्दन्तु
अकन्दन्
अकन्दिषुः
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
चकन्दुः
कन्द्यासुः
कन्दितार:
कन्दिष्यन्ति
क्रि० अकन्दिष्यत् अकन्दिष्यताम् अकन्दिष्यन् ३१६ . ऋदु (क्रन्द्) रोदनाह्वानयोः ।
क्रन्दतः
क्रन्देताम्
क्रन्दतु/क्रन्दतात् क्रन्दताम्
चकन्द
आ० कन्द्यात्
श्व० कन्दिता
भ० कन्दिष्यति
• प०
क्रन्दन्ति
क्रन्देयुः
क्रन्दन्तु
अक्रन्दन्
अक्रन्दिष्टाम् अक्रन्दिषुः
चक्रन्दुः
क्रन्द्यासुः
क्रन्दितार:
भ० क्रन्दिष्यति
क्रन्दिष्यन्ति
क्रि० अक्रन्दिष्यत् अक्रन्दिष्यताम् अक्रन्दिष्यन्
३ १७. क्लदु (क्लन्द्) रोदनाह्वानयोः ।
व०
क्लन्दति
क्लन्दतः क्लन्दन्ति
स० क्लन्देत्
क्लन्देताम्
क्लन्देयुः
प०
क्लन्दतु/क्लन्दतात् क्लन्दताम्
क्लन्दन्तु
अक्लन्दताम् अक्लन्दन् अक्लन्दिष्टाम् अक्लन्दिषुः चक्लन्दतुः चक्लन्दुः
व० क्रन्दति
स० क्रन्देत्
प०
ह्य० अक्रन्दत् अक्रन्दताम्
अ० अक्रन्दीत्
प०
चक्रन्द
आ० क्रन्द्यात्
श्व० क्रन्दिता
चकन्दतुः
कन्द्यास्ताम्
कन्दितारौ
कन्दिष्यतः
ह्य० अक्लन्दत्
अ० अक्लन्दीत्
प० चक्लन्द
१. परिदेवनं शोचनम् ।
चक्रन्दतुः
क्रन्द्यास्ताम्
क्रन्दितारौ
क्रन्दिष्यतः
आ० क्लन्द्यात्
श्व० क्लन्दिता
भ० क्लन्दिष्यति क्रि० अक्लन्दिष्यत् अक्लन्दिष्यताम् अक्लन्दिष्यन्
३१८. क्लिदु (क्लिन्द्) परिदेवने । १
क्लन्द्यास्ताम् क्लन्द्यासुः
क्लन्दितारौ क्लन्दितारः
क्लन्दिष्यतः क्लन्दिष्यन्ति
व० क्लिन्दति क्लिन्दतः
क्लिन्दसि
क्लिन्दथ:
क्लिन्दन्ति
क्लिन्दथ
क्लिन्दामि
स० क्लिन्देत्
क्लिन्देः
क्लिन्देयम्
प० क्लिन्दतु / क्लिन्दतात् क्लिन्दताम्
क्लिन्द / क्लिन्दतात् क्लिन्दतम्
क्लिन्दानि
क्लिन्दाव
ह्य० अक्लिन्दत्
अक्लिन्दः
अक्लिन्दम्
अ० अक्लिन्दीत्
प०
क्लिन्दावः
क्लिन्ताम्
क्लिन्तम्
क्लिदेव
अक्लिन्दी: अक्लिन्दिष्टम्
अक्लिन्दिषम् अक्लिन्दिष्व चिक्लिन्द
चिक्लिन्दिथ
चिक्लिन्द
आ० क्लिन्द्यात्
क्लिन्द्याः
क्लिन्द्यासम्
श्व० क्लिन्दिता
क्लिन्दाम:
क्लिन्देयुः
क्लिन्देत
क्लिन्देम
क्लिन्दन्तु
क्लिन्दत
क्लिन्दाम
चिक्लिन्दतुः चिक्लिन्दुः
चिक्लिन्दथुः चिक्लिन्द
चिक्लिन्दिव
चिक्लिन्दिम
क्लिन्द्यास्ताम्
क्लिन्द्यासुः
क्लिन्द्यास्तम्
क्लिन्धास्त
क्लिन्द्यास्व क्लिन्द्यास्म
क्लिन्दितारौ क्लिन्दितार:
क्लिन्दितासि क्लिन्दितास्थः क्लिन्दितास्थ
क्लिन्दितास्मि क्लिन्दितास्वः
क्लिन्दितास्मः
भ० क्लिन्दिष्यति क्लिन्दिष्यतः
क्लिन्दिष्यन्ति
क्लिन्दिष्यसि क्लिन्दिष्यथः क्लिन्दिष्यथ क्लिन्दिष्यामि क्लिन्दिष्यावः क्लिन्दिष्यामः
क्रि० अक्लिन्दिष्यत् अक्लिन्दिष्यताम् अक्लिन्दिष्यन अक्लिन्दिष्यः अक्लिन्दिष्यतम् अक्लिन्दिष्यत अक्लिन्दिष्यम् अक्लिन्दिष्याव अक्लिन्दिष्याम ३१९. स्कन्दं (स्कन्द्) गतिशोषणयोः ।
व० स्कन्दति स्कन्दतः
स्कन्दन्ति
स्कन्दसि
स्कन्दथः
स्कन्दथ
स्कन्दामि
स्कन्दावः
स्कन्दामः
अक्लिन्दताम्
अक्लिन्दतम्
अक्लिन्दाव अक्लिन्दाम
अक्लिन्दन्
अक्लिन्दत
अक्लिन्दिष्टाम् अक्लिन्दिषुः
अक्लिन्दिष्टं
अक्लिन्दिष्म
83
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
84
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
सेधथ:
सेधेताम्
सेधेतम्
सेधत
असेधम्
सिषधुः
स० स्कन्देत् स्कन्देताम् स्कन्देयुः
स्कन्देः स्कन्दतम् स्कन्देत
स्कन्देयम् स्कन्देव स्कन्देम प० स्कन्दतु/स्कन्दतात् स्कन्दताम् स्कन्दन्तु
स्कन्द/स्कन्दतात् स्कन्दतम् स्कन्दत स्कन्दानि स्कन्दाव
स्कन्दाम ह्य० अस्कन्दत् अस्कन्दताम् अस्कन्दन्
अस्कन्दः अस्कन्दतम् अस्कन्दत
अस्कन्दम् अस्कन्दाव अस्कन्दाम अ० अस्कदत् अस्कदताम् अस्कदन
अस्कद: अस्कदतम् अस्कदत अस्कदम् अस्कदाव अस्कदाम
तथा अस्कान्त्सीत् अस्कान्ताम् अस्कान्त्सुः अस्कान्त्सी: अस्कान्तम अस्कान्त
अस्कान्त्सम् अस्कान्त्स्व अस्कान्स्म प० चस्कन्द चस्कन्दतुः चस्कन्दुः
चस्कन्दिथ चस्कन्दथुः चस्कन्द
चस्कन्थ/चस्कन्द चस्कन्दिव चस्कन्दिम आ० स्कद्यात् स्कद्यास्ताम् स्कद्यासुः
स्कद्याः स्कद्यास्तम् स्कद्यास्त
स्कद्यासम् स्कद्यास्व स्कद्यास्म श्व० स्कन्ता
स्कन्तारः स्कन्तासि स्कन्तास्थ: स्कन्तास्थ
स्कन्तास्मि स्कन्तास्वः भ० स्कन्त्स्यति स्कन्स्यतः स्कन्त्स्यन्ति
स्कन्त्स्यसि स्कन्स्यथ: स्कन्त्स्यथ
स्कन्त्स्यामि स्कन्त्स्याव: स्कन्त्स्यामः क्रि० अस्कन्त्स्यत् अस्कन्त्स्यताम् अस्कन्त्स्यन्
अस्कन्स्य: अस्कन्स्यतम् अस्कन्स्यत अस्कन्त्स्यम् अस्कन्स्याव अस्कन्त्स्याम
अथ धान्तास्त्रयः।
३२०. षिध् (सिध्) गत्याम्। व० सेधति सेधत: सेधन्ति
सेधसि
सेधथ सेधामि सेधावः सेधामः स० सेधेत्
सेधेयुः सेधेः
सेधेत सेधेयम् सेधेव
सेधेम | प० सेधतु/सेधतात् सेधताम् सेधन्तु
सेध/सेधतात् सेधतम्
सेधानि सेधाव सेधाम ह्य० असेधत् असेधताम् असेधन् असेधः असेधतम् असेधत
असेधाव असेधाम अ० असेधीत् असेधिष्टाम् असेधिषुः
असेधीः असेधिष्टम् असेधिष्ट
असेधिषम् असेधिष्व असेधिष्म प० सिषेध सिषिधतुः सिषेधिथ सिषिधथुः
सिषिध सिषेध सिषिधिव सिषिधिम आ० सिध्यात् सिध्यास्ताम्
सिध्याः सिध्यास्तम् सिध्यास्त
सिध्यासम् सिध्यास्व सिध्यास्म श्व० सेधिता सेधितारौ सेधितासि
सेधितास्थः सेधितास्थ सेधितास्मि सेधितास्विः
सेधितास्मः भ० सेधिष्यति सेधिष्यतः सेधिष्यन्ति सेधिष्यसि सेधिष्यथः
सेधिष्यथ सेधिष्यामि सेधिष्याव: सेधिष्यामः क्रि० असेधिष्यत् असेधिष्यताम् असेधिष्यन्
असेधिष्यः असेधिष्यतम् असेधिष्यत असेधिष्यम् असेधिष्याव असेधिष्याम ३२१. षिधौ (सिध्) शास्त्रमाङ्गल्ययोः।
सिध्यासुः
सेधितारः
१. शास्त्रं शास्त्रविषयं शासनम्, माङ्गल्यं मङ्गलविषया क्रिया।
अनयोरेवार्थयोरयमौदित्। अर्थान्तरे पुनरूदित्पूर्वक एव अन्यथा
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
• व०
सेधति
सेधसि
सेधामि
सत्
सेधेः सेधेयम्
प० सेधतु / सेधतात्
सेध / सेधतात्
सेधानि
ह्य असेधत्
असेधः
असेधम्
अ० असेधीत्
असेधी:
असेधिषम्
प०
असैत्सीत्
असैत्सीः
असैत्स्म्
सिषेध
सिषेधिथ
सिषेध
आ० सिध्यात्
सिध्या:
सिध्यासम्
श्व० सेधिता
सेधितासि
सेधितास्मि
सेद्धा
सेद्धासि
सेधतः
सेधथ:
सेधावः
सेधेताम्
सेधेतम्
सेधेव
सेधताम्
सेधतम्
सेधाव
असेताम्
असेम्
असेधाव
असेधन्
असेधत
असेधाम
अष्ट
असेधिषुः
असेधिष्टम् असेधिष्ट
असेधिष्व
असेधिष्म
सेधन्ति
सेधथ
सेधाम:
सेधेयुः
सेधेत
सेधेम
सेधन्तु
सेधत
सेधाम
तथा
असैद्धाम्
असैत्सुः
असैद्धम्
असैद्ध
असैत्स्व
असैत्स्म
सिषिधतुः
सिषिधुः
सिषिधथुः सिषिध
सिषिधिव
सेधितास्थः
सेधितास्वः
तथा
सिध्यास्ताम्
सिध्यासुः
सिध्यास्तम् सिध्यास्त
सिध्यास्व
सिध्यास्म
सेधितारौ
सेधितार:
सेधितास्थ
सेधितास्मः
सेद्धारौ
सेद्धास्थः
सिषिधिम
सेद्धारः
सेद्धास्थ
तत्पाठोऽनर्थकः स्यात् । अर्थान्तरेऽपि अनेनैव इविकल्पस्य
सर्वत्रैव सिद्धत्वात् ॥
सेद्धास्मि
भ० सेधिष्यति
सेधिष्यसि
सेधिष्यामि
सेत्स्यति
सेत्स्यसि
सेत्स्यामि
क्रि० असेधिष्यत्
असेधिष्यः
अधिष्यम्
तथा
असेत्स्यत्
असेत्स्यताम्
असेत्स्यः
असेत्स्यतम्
असेत्स्यम् असेत्स्याव
ह्य० अशुन्धत्
सेद्धास्वः
सेधिष्यतः
सेधिष्यथः
सेधिष्यावः
तथा
अशुन्धः
अशुन्धम्
अ० अशुन्धीत्
अशुन्धीः
अशुन्धिम्
प० शुशुन्ध
शुशुन्धि
शुशुन्ध
आ० शुध्यात्
सेत्स्यतः
सेत्स्यथः
सेत्स्याव:
व० शुन्धति
शुन्धतः
शुन्धसि
शुन्धथ:
शुन्धामि
शुन्धाव:
स० शुन्धेत्
शुन्धेताम्
शुधे:
शुन्धतम्
शुन्धेयम्
शुन्धेव
प० शुन्धतु / शुन्धतात् शुन्धताम्
शुन्ध / शुन्धतात् शुन्धतम् शुन्धानि
शुन्धाव
अशुन्धताम्
अशुन्धतम्
अशुन्धाव
अशुधिष्टाम्
अशुधिष्ट
अशुन्धिष्व
शुशुन्धतुः
शुशुन्धथुः
शशुन्धिव
शुध्यास्ताम्
सेद्धास्मः
सेधिष्यन्ति
सेधिष्यथ
सेधिष्यामः
सेत्स्यामः
असेधिष्यताम् असेधिष्यन् असेधिष्यतम् असेधिष्यत
असेधिष्याव असेधिष्याम
सेत्स्यन्ति
सेत्स्य
३२२. शुन्ध (शुन्ध ।) शुद्धौ ।
असेत्स्यन्
असेत्स्यत
असेत्स्याम
शुन्धन्ति
शुन्धथ
शुन्धाम:
शुन्धेयुः
शुन्धेत
शुन्धेम
शुन्धन्तु
शुन्धत
शुन्धाम
अशुन्धन्
अशुन्धत
अशुन्धाम
अशुन्धिषुः
अधिष्ट
अधि
शुशुन्धुः
शुशुन्ध
शुशुन्धिम
शुध्यासुः
85
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
86
शुध्या:
शुध्यासम्
श्व० शुन्धिता शुन्धितासि
शुधितास्मि
भ० शुन्धिष्यति शुधिष्यसि शुन्धिष्यामि शुधिष्यावः
क्रि० अशुन्धिष्यत्
शुन्धयः
अशुन्धयम्
प०
व० स्तनति
स्तनसि
स्तनामि
स० स्तनेत्
स्तने:
स्तनेयम्
स्तनतु / स्तनतात् स्तनताम्
स्तन / स्तनतात्
स्तनतम्
स्तनानि
स्तनाव
ह्य० अस्तनत्
अस्तनः
प०
अस्तनतम्
अ० अस्तानीत्
अथ नान्ता नव सेटक्ष।
३२३. स्तन (स्तन्) शब्दे ।
स्तनतः
स्तनथः
स्तनाव:
शुध्यास्तम् शुध्यास्त
शुध्यास्व
शुध्यास्म
शुन्धितारौ
शुन्धितार:
शुधितास्थः
शुन्धितास्थ
शुन्धितास्वः
शुन्धितास्मः
शुन्धिष्यतः
शुन्धिष्यन्ति
शुधिष्यथः शुन्धिष्यथ
शुधिष्यामः अशुन्धिष्यताम् अशुन्धिष्यन् अशुन्धिष्यतम् अशुन्धिष्यत अशुन्धिष्याव अशुधिष्याम
अस्तनीत्
अस्तनी:
अस्तनिषम्
अस्तनताम्
अस्तनतम्
अस्तनाव
अस्तानिष्टाम्
अस्तानी: अस्तानिष्टम् अस्तानिषम् अस्तानिष्व
तस्तान
तस्तनिथ
तस्तान / तस्तन
आ० स्तन्यात्
ताम्
स्तनेतम्
स्तनेव
स्तनन्ति
स्तनथ
स्तनामः
स्तनेयुः
स्तनेत
स्तनेम
तस्तनतुः
तस्तनथुः
तस्तनिव
स्तन्यास्ताम्
स्तनन्तु
स्तनत
स्तनाम
अस्तनन्
अस्तनत
अस्तनाम
अस्तानिषुः
अस्तानिष्ट
अस्तानिष्म
तथा
अस्तनिष्टाम् अस्तनिषुः
अस्तनिष्टम् अस्तनिष्ट
अस्तनिष्व अस्तनिष्प
तस्तनुः
तस्तन
तस्तनिम
स्तन्यासुः
स्तन्याः
स्तन्यासम्
श्व० स्तनिता
स्तनितासि
स्तनितास्मि
भ० स्तनिष्यति
स्तनिष्यसि
स्तनिष्यामि
क्रि० अस्तनिष्यत्
अस्तनिष्यः
अस्तनिष्यम्
व०
धनति
स० धनेत्
प०
धनतु / धनतात्
ह्य०
अधनत्
अ० अधानीत्
अधीत्
प० दधान
आ०
व०
धन्यात्
धनिता
व०
ध्वनति
स० [ध्वनेत्
प०
ह्य०
अ० अध्वानीत्
भ०
धनिष्यति
क्रि० अधनिष्यत् अधनिष्यताम्
अध्वनत्
प० दध्वान
आ० ध्वन्यात्
श्व० ध्वनिता
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
स्तन्यास्त
स्तन्यास्म
स्तनितार:
स्तनितास्थः स्तनितास्थ
स्तनितास्वः स्तनितास्मः
स्तनिष्यतः स्तनिष्यन्ति
स्तनिष्यथः स्तनिष्यथ स्तनिष्यावः स्तनिष्यामः अस्तनिष्यताम् अस्तनिष्यन् अस्तनिष्यतम् अस्तनिष्यत
अस्तनिष्याव अस्तनिष्याम
३२४. धन (धन्) शब्दे ।
धनतः
धनेताम्
स्तन्यास्तम्
स्तन्यास्व
स्तनितारौ
ध्वनतः
ध्वनेताम्
ध्वनतु / ध्वनतात् ध्वनताम्
अध्वनत् अध्वनताम्
अध्वानिष्टाम्
तथा अध्वनष्टाम्
भ०
ध्वनिष्यति
क्रि० अध्वनिष्यत्
धनताम्
अधनताम्
अधानिष्टाम्
तथा
अधनिष्टाम्
दधनतुः
धन्यास्ताम्
धनितारौ
धनिष्यतः
३२५. ध्वन (ध्वन्) शब्दे ।
धनन्ति
धनेयुः
धनन्तु
अधनन्
अधानिषुः
अधनिषुः
दधनुः
धन्यासुः
धनितार:
धनिष्यन्ति
ध्वनन्ति
ध्वनेयुः
ध्वनन्तु
अध्वनन्
अध्वानिषुः
अध्वनिषुः
दध्वनतुः
दध्वनुः
ध्वन्यास्ताम् ध्वन्यासुः ध्वनितारः
ध्वनितारौ ध्वनिष्यतः ध्वनिष्यन्ति अध्वनिष्यताम् अध्वनिष्यन्
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
व०
चनति
स० चनेत्
प०
ह्य० अचनत्
अ० अचानीत्
चनतु / चनतात्
अचनीत्
चचान
प०
आ० चन्यात् श्व० चनिता
भ० चनिष्यति
क्रि० अचनिष्यत्
व० स्वनति
० स्वनेत्
प०
प०
ह्य० अस्वनत्
अ० अस्व
३२६. चन (चन्) शब्दे ।
चनतः
स्वनतः
स्वनेताम्
स्वनतु / स्वनतात् स्वनताम्
अस्वनीत्
सस्वान
सस्वान
आ० स्वन्यात्
팡이 स्वनिता
चन्यास्ताम्
चनितारौ
चनिष्यतः
अचनिष्यताम्
३२७. स्वन (स्वन्) शब्दे ।
भ० स्वनिष्यति
क्रि० अस्वनिष्यत्
चनेताम्
चनताम्
अचनताम्
अचानिष्टाम्
तथा
अचनिष्टाम्
चेनतुः
व० वनति
सत्
प० वनतु / वनतात्
ह्य० अवनत्
अ० अवानीत्
चनन्ति
चनेयुः
चनन्तु
अचनन्
अचानिषुः
अचनिषुः
चेनुः
चन्यासुः
चनितार:
चनिष्यन्ति
अचनिष्यन्
स्वेनतुः
स्वन्यास्ताम्
स्वनितारौ
स्वनिष्यतः
स्वनन्ति
स्वनेयुः
स्वनन्तु
अस्वनन्
अस्वनताम् अस्वानिष्टाम् अस्वानिषुः
तथा
अस्वनिष्टाम् अस्वनिषुः
सस्वनतुः
सस्वनुः
तथा
स्वेनुः
स्वन्यासुः
स्वनितार:
स्वनिष्यन्ति
अस्वनिष्यताम् अस्वनिष्यन्
३२८. वन (वन्) शब्दे ।
वनतः
वताम्
वनताम्
अवनताम्
अवानिष्टाम्
तथा
वनन्ति
वनेयुः
वनन्तु
अवनन्
अवानिषुः
प०
आ० वन्यात्
श्व० वनिता
अवनीत्
ववान
do
भ० वनिष्यति
क्रि० अवनिष्यत् अवनिष्यताम्
प०
सनति
सनसि
सनामि
० सत्
सनेः
३२९. वन (वन्) भक्तौ । १
३३०. घन (सन्) भक्तौ । भक्तिर्भजनम् ।
सनतः
सनन्ति
सनथः
सनथ
सनाव:
सनामः
सयुः
सनेत
सनेम
नेयम्
ह्य० असनत्
असनः
असनतम्
अ० असानीत्
असानी:
असानिषम्
सनतु/सनतात् सनताम्
सन/सनतात्
सनतम्
सनानि
सनाव
असनीत्
असनी:
असनिषम्
प० ससान
ससनिथ
ससान/ससन
आ० सन्यात्
सन्याः
सन्यासम्
अवनिष्टाम्
ववनतुः
वन्यास्ताम्
वनितारौ
वनिष्यतः
१. भक्तिर्भजनम् ।
चानुपदमेवोक्तानि
ताम्
सतम्
सनेव
असनताम्
असनतम्
असनाव
असानिष्टाम्
असानिष्टम्
असानिष्व
तथा
असनिष्टाम्
असनिष्टम्
असनिष्व
सेनतुः
सेनथुः
सेनिव
सन्यास्ताम्
सन्यास्तम्
सन्यास्व
अवनिषुः
ववनुः
वन्यासुः
वनितार:
वनिष्यन्ति
अवनिष्यन्
अर्थभेदार्थमिह
सनन्तु
सनत
सनाम
असनन्
असनत
असनाम
असानिषुः
असानिष्ट
असानिष्म
असनिषुः
असनिष्ट
असनिष्म
सेनुः
सेन
सेनिम
सन्यासुः
सन्यास्त
सन्यास्म
87
पुनरधीतः । एतदूपाणि
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
88
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कनेतम्
कनन्तु
श्व० सनिता सनितारौ सनितारः
सनितासि सनितास्थः सनितास्थ
सनितास्मि सनितास्वः सनितास्मः भ० सनिष्यति सनिष्यतः सनिष्यन्ति
सनिष्यसि सनिष्यथः सनिष्यथ
सनिष्यामि सनिष्याव: सनिष्यामः क्रि० असनिष्यत् असनिष्यताम् असनिष्यन्
असनिष्यः असनिष्यतम् असनिष्यत असनिष्यम् असनिष्याव असनिष्याम
३३१. कनै (कन्) दीप्तिगतिकान्तिषु।१ व० कनति कनतः कनन्ति कनसि कनथः
कनथ कनामि कनावः कनाम: स० कनेत् कनेताम् कनेयुः कने:
कनेत कनेयम् कनेव कनेम प० कनतु/कनतात् कनताम् कन/कनतात् कनतम्
कनत कनानि कनाव
कनाम ह्य० अकनत् अकनताम् अकनन् अकन: अकनतम्
अकनत अकनम् अकनाव अकनाम अ० अकानीत् अकानिष्टाम्
अकानिषुः अकानीः अकानिष्टम् अकानिष्ट अकानिषम् अकानिष्व अकानिष्म
तथा अकनीत् अकनिष्टाम् अकनिषुः अकनी: अकनिष्टम् अकनिष्ट
अकनिषम् अकनिष्व अकनिष्म प० चकान
चकनतुः चकनिथ चकनथुः चकन
चकान/चकन चकनिव चकनिम आ० कन्यात् कन्यास्ताम् कन्यासुः कन्या :
कन्यास्तम् कन्यास्त
गोपायेयुः
कन्यासम् कन्यास्व कन्यास्म श्व० कनिता कनितारौ कनितार:
कनितासि कनितास्थः कनितास्थ
कनितास्मि कनितास्वः कनितास्मः भ० कनिष्यति कनिष्यतः कनिष्यन्ति
कनिष्यसि कनिष्यथ: कनिष्यथ
कनिष्यामि कनिष्याव: कनिष्यामः क्रि० अकनिष्यत् अकनिष्यताम् अकनिष्यन्
अकनिष्यः अकनिष्यतम् अकनिष्यत अकनिष्यम् अकनिष्याव अकनिष्याम ॥अथ पान्ताः पञ्चदश गुपौ वेट् तपं सृप्लं अनिटौ शेषाः
सेटः॥ ३३२. गुपौ (गुप्-गोपाय) रक्षणे। व० गोपायति गोपायत: गोपायन्ति गोपायसि गोपायथः
गोपायथ गोपायामि गोपायावः
गोपायाम: स० गोपायेत् गोपायेताम्। गोपायः
गोपायेत गोपायेयम् गोपायेव गोपायेम प० गोपायतु/गोपायतात् गोपायताम् गोपायन्तु
गोपाय/गोपायतात् गोपायम् गोपायत
गोपायानि गोपायाव गोपायाम ह्य० अगोपायत् अगोपायताम् अगोपायन्
अगोपायः अगोपायतम् अगोपायत
अगोपायम् अगोपायाव अगोपायाम अ० अगोपायीत् अगोपायिष्टाम् अगोपायिषुः
अगोपायी: अगोपायिष्टम् अगोपायिष्ट अगोपायिषम् अगोपायिष्व अगोपायिष्म
तथा अगोपीत् अगोपिष्टाम् अगोपिषुः अगोपी: अगोपिष्टम् अगोपिष्ट अगोपिषम् अगोपिष्व अगोपिष्म अगौप्सीत् अगौप्ताम् अगौप्सुः अगौप्सीः
अगौप्त अगौप्सम् अगौप्स्व अगौप्स्म
गोपायेतम्
चकनुः
अगौप्तम्
१. दीप्तिः प्रकाशः । कान्तिः शोभा।
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
प० गोपायाञ्चकार
गोपायाञ्चक्रतुः गोपायाञ्चक्रुः गोपायाञ्चकर्थ गोपायाञ्चक्रथुः गोपायाञ्चक्र
गोपायाञ्चकृम
गोपायाञ्चकार/कर गोपायाञ्चकृव गोपायाम्बभूव गोपायामास
तथा
जुगोप
जुगोपथ
ग
आ० गुप्यात्
गुप्याः
गुप्यासम्
गोपाय्यात्
गोपाय्याः
गोपाय्यासम्
श्व० गोपिता
तथा
गोपाय्यास्ताम् गोपाय्यासुः
गोपाय्यास्तम्
गोपाय्यास्त
गोपाय्यास्व
गोपाय्यास्म
गोपितारौ
गोपितार:
गोपितासि
गोपितास्थः
गोपितास्थ
गोपितास्मि गोपितास्वः
गोपितास्मः
जुगुपतुः
जुगुपथुः
प
गोप्ता
गोप्तासि
गोप्तास्मि
भ० गोपिष्यति
गुप्यास्ताम्
गुप्यास्तम्
गुप्यास्व
तथा
गोपायिता
गोपायितारौ
गोपायितासि गोपायितास्थः
गोपायितास्मि
गोपायितास्वः
गोप्तारौ
गोप्तास्थः
गोप्तास्वः
गोपिष्यतः
गोपिष्यथः
गोपिष्यसि गोपिष्यामि गोपिष्यावः
जुगुपुः
जुगुप
जुगुपिम
गुप्यासुः
गुप्यास्त
गुप्यास्म
गोपायितारः
गोपायितास्थ
गोपायितास्मः
गोप्तार:
गोप्तास्थ
गोप्तास्मः
गोपिष्यन्ति
गोपिष्यथ
गोपिष्यामः
तथा
गोपायिष्यति गोपायिष्यतः गोपायिष्यन्ति गोपायिष्यसि गोपायिष्यथः गोपायिष्यथ गोपायिष्यामि गोपायिष्यावः गोपायिष्यामः
तथा
गोप्स्यति गोप्स्यतः
गोप्स्यसि
गोप्स्यथः
गोप्स्यामि
गोप्स्यावः
गोप्स्यन्ति
गोप्स्यथ
गोप्स्यामः
अगोपिष्यन्
क्रि० अगोपिष्यत् अगोपिष्यताम् अगोपिष्यः अगोपिष्यतम् गोपिय अगोपिष्यम् अगोपिष्याव गोपियाम
व०
तथा
अगोपायिष्यत अगोपायिष्यताम् अगोपायिष्यन् अगोपायिष्यः अगोपायिष्यतम् अगोपायिष्यत अगोपायिष्याम
अगोपायिष्यम् अगोपायिष्याव
प०
अगोप्स्यः
अगोप्स्यम्
तपति
तपसि
तपामि
स० तपेत्
तपे:
तपेयम्
तपतु/ तपतात्
तप / तपतात्
तपानि
ह्य० अतपत्
अतपः
अतपम्
अ० अताप्सीत्
अताप्सीः
अताप्सम्
प० तताप
तेपिथ/ततप्थ
तताप/ततप
आ० तप्यात्
तप्या:
तप्यासम्
तथा
अगोप्यताम् गोप्यन्
अगोप्स्यतम् अगोप्स्यत
अगोप्स्याव
अगोप्स्याम
३३३. तप (तप्) संतापे ।
तपतः
तपथ:
तपाव:
तपेताम्
तपेतम्
तपेव
व० तप्ता
तप्तासि
तप्तास्मि
भ० तप्स्यति
तपताम्
तपतम्
तपाव
अतपताम्
अतपतम्
अतपाव
अताप्ताम्
अताप्तम्
अताप्स्व
तेपतुः
तेपथुः
तेपिव
तप्यास्ताम्
तप्यास्तम्
तप्यास्व
तप्तारौ
तप्तास्थः
तप्तास्वः
तप्स्यतः
तपन्ति
तपथ
तपामः
तपेयुः
तपेत
पे
तपन्तु
तपत
तपाम
अतपन्
अतपत
अतपाम
अताप्सुः
अताप्त
अताप्स्म
तेपुः
तेप
तेपिम
तप्यासुः
तप्यास्त
तप्यास्म
तप्तार:
तप्तास्थ
तप्तास्मः
तप्स्यन्ति
89
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
90
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
धूपाय्यात् धूपाय्याः
धूपाय्यासम् श्व० धूपिता
धूपितासि धूपितास्मि
तथा धूपाय्यास्ताम् धूपाय्यासुः धूपाय्यास्तम् धूपाय्यास्त धूपाय्यास्व धूपाय्यास्म
धूपितारः धूपितास्थः । धूपितास्थ धूपितास्वः धूपितास्मः
धूपितारौ
धूपायसि
तथा
धूपायेम
तस्यसि तप्स्यथः तप्स्यथ
तप्स्यामि तप्स्यावः तप्स्यामः क्रि० अतप्स्यत् अतप्स्यताम् अतप्स्यन् अतप्स्यः अतप्स्यतम्
अतप्स्यत अतप्स्यम् अतप्स्याव अतप्स्याम
__ ३३४. धूप (धूप-धूपाय) संतापे। व० धूपायति धूपायतः धूपायन्ति
धूपायथ: धूपायथ धूपायामि धूपायाव: धूपायामः स० धूपायेत् धूपायेताम् धूपायेयुः
धूपाये: धूपायेतम् धूपायेत
धूपायेयम् धूपायेव प० धूपायतु/धूपायतात् धूपायताम् धूपायन्तु
धूपाय/धूपायतात् धूपायतम् धूपायत
धुपायानि धूपायाव धूपायाम ह्य० अधूपायत् अधूपायताम् अधूपायन्
अधूपायः अधूपायतम् अधूपायत अधूपायम् अधूपायाव अधूपायाम अधूपायीत् अधूपायिष्टाम् अधूपायिषुः अधूपायी: अधूपायिष्टम् अधूपायिष्ट अधूपायिषम् अधूपायिष्व अधूपायिष्म
तथा अधूपीत् अधूपिष्टाम् अधूपिषुः अधूपी: अधूपिष्टम् अधूपिष्ट अधूपिषम् अधूपिष्व अधूपिष्म धूपायाञ्चकार धूपायाञ्चक्रतुः धूपायाञ्चक्रुः धूपायाञ्चकर्थ धूपायाञ्चक्रथुः धूपायाञ्चक्र धूपायाञ्चकार/कर धूपायाञ्चकृव धूपायाञ्चकृम धूपायाम्बभूव धूपायामास
तथा दुधूप दुधूपतुः
दुधूपुः दुधूपिथ दुधूपथुः
दुधूप दुधूप दुधूपिव आ० धूप्यात् धूप्यास्ताम् धूप्यासुः धूप्याः धूप्यास्तम्
धूप्यास्त धूप्यासम् धूप्यास्व
धूप्यास्म
धूपायिता धूपायितारौ धूपायितारः धूपायितासि धूपायितास्थः धूपायितास्थ
धूपायितास्मि धूपायितास्व: धूपायितास्मः भ० धूपिष्यति धूपिष्यतः धूपिष्यन्ति
धूपिष्यसि धूपिष्यथ: धूपिष्यथ धूपिष्यामि धूपिष्याव: धूपिष्याम:
तथा धूपायिष्यति धूपायिष्यतः धूपायिष्यन्ति धूपायिष्यसि धूपायिष्यथ: धूपायिष्यथ धूपायिष्यामि धूपायिष्याव: धूपायिष्यामः अधूपिष्यत् अधूपिष्यताम् अधूपिष्यन् अधूपिष्यः अधूपिष्यतम् अधूपिष्यत अधूपिष्यम् अधूपिष्याव अधूपिष्याम
तथा अधूपायिष्यत् अधूपायिष्यताम् अधूपायिष्यन् अधूपायिष्यः अधूपायिष्यतम् अधूपायिष्यत अधूपायिष्यम् अधूपायिष्याव अधूपायिष्याम
३३५. रप (रप्) व्यक्ते वचने। व० रपति रपत:
रपन्ति स० रपेत्
रपेयुः प० रपतु/रपतात् ह्य० अरपत् अरपताम् अरपन् अ० अरापीत् अरापिष्टाम् अरापिषुः
तथा अरपीत् अरपिष्टाम् अरपिषुः
प०
रपेताम्
रपताम्
रपन्तु
दुधूपिम
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
-
रप्यासुः रपितारः
प० जपतु/जपतात् ह्य० अजपत् अ० अजापीत्
जपताम् अजपताम् अजापिष्टाम्
जपन्तु अजपन् अजापिषुः
तथा
जेपुः जप्यासुः
चपेताम्
चपेयुः
लेपुः
अचपत्
प० रराप
रेपतुः आ० रप्यात् रप्यास्ताम् श्व० रपिता रपितारौ भ० रपिष्यति रपिष्यतः रपिष्यन्ति क्रि० अरपिष्यत् अरपिष्यताम् अरपिष्यन्
३३६. लप (लप्) व्यक्ते वचने। व० लपति लपत: लपन्ति स० लपेत् लपेताम् लपेयुः प० लपतु/लपतात् लपताम् लपन्तु ह्य० अलपत् अलपताम्
अलपन् अ० अलापीत् अलापिष्टाम् अलापिषुः
तथा अलपीत् अलपिष्टाम् अलपिषुः प० ललाप लेपतुः आ० लप्यात् लप्यास्ताम् लप्यासुः श्व० लपिता लपितारौ लपितारः भ० लपिष्यति लपिष्यतः लपिष्यन्ति क्रि० अलपिष्यत् अलपिष्यताम् अलपिष्यन्
३३७. जल्प (जल्प) व्यक्ते वचने। व० जल्पति जल्पतः जल्पन्ति स० जल्पेत् जल्पेताम् जल्पेयुः प० जल्पतु/जल्पतात् जल्पताम् ह्य० अजल्पत् अजल्पताम्
अजल्पन् अ० अजल्पीत् अजल्पिष्टाम् अजल्पिषुः प० जजल्प जजल्पतुः जजल्पुः आ० जल्प्यात् - जल्प्यास्ताम् जल्प्यासुः श्व० जल्पिता जल्पितारौ जल्पितारः भ० जल्पिष्यति जल्पिष्यतः जल्पिष्यन्ति क्रि० अजल्पिष्यत् अजल्पिष्यताम् अजल्पिष्यन्
३३८. जप (जप्) मानसे चा? व० जपति जपतः
जपन्ति स० जपेत् जपेताम् जपेयुः
अचपीत्
चेपतुः
चेपुः
अजपीत् अजपिष्टाम् अजपिषुः प० जजाप जेपतुः । आ० जप्यात् जप्यास्ताम् श्व० जपिता जपितारौ जपितारः भ० जपिष्यति जपिष्यतः जपिष्यन्ति क्रि० अजपिष्यत् अजपिष्यताम् अजपिष्यन्
३३९. चप (चप्) सान्त्वने। व० चपति चपतः
चपन्ति स० चपेत् प० चपतु/चपतात् चपताम् चपन्तु ह्य० अचपत् अचपताम् अ० अचापीत् अचापिष्टाम् अचापिषुः
तथा
अचपिष्टाम् अचपिषुः प० चचाप आ० चप्यात् चप्यास्ताम् चप्यासुः श्व० चपिता चपितारौ चपितार: भ० चपिष्यति चपिष्यतः चपिष्यन्ति क्रि० अचपिष्यत् अचपिष्यताम् अचपिष्यन्
३४०. षप (सप) समवाये। व० सपति सपतः
सपन्ति स० सपेत् सपेताम् सपेयुः प० सपतु/सपतात् सपताम्
सपन्तु ह्य० असपत् असपताम्
असपन् अ० असापीत् असापिष्टाम् असापिषु:
तथा असपीत् असपिष्टाम् असपिषुः प० ससाप
सेपुः आ० सप्यात् सप्यास्ताम्
सप्यासुः श्व० सपिता सपितारौ सपितार: भ० सपिष्यति सपिष्यतः सपिष्यन्ति
जल्पन्तु
सेपतुः
१. मनोनिर्व] वचने। चात् व्यक्ते वचने।
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
क्रि० असपिष्यत् असपिष्यताम् असपिष्यन्
___ ३४१. सृष्ल (सृप्) गतौ। व० सर्पति सर्पतः सर्पन्ति स० सत् सप्ताम् सर्पयुः प० सर्पतु/सर्पतात् सर्पताम् सर्पन्तु ह्य० असर्पत् असर्पताम् असर्पन् अ० असृपत् असृपताम् असृपन् प० ससर्प ससृपतुः ससृपुः आ० सृप्यात् सृप्यास्ताम् सृप्यासुः व० सप्र्ता सप्रौ
सप्तरः
तथा सप्ता
स्रप्तारौ स्रप्तारः भ० सय॑ति सप्य॑तः सय॑न्ति
तथा स्रप्स्यति स्रप्स्य त: स्रप्स्यन्ति क्रि० असय॑त् असय॑ताम् असर्म्यन्
तथा अस्रप्स्यत् अस्रप्स्यताम् अस्रप्स्यन्
३४२. चुप (चुप्) मन्दायाम्।
गतावित्यनुवृत्तेर्मन्दायां गतौ। व० चोपति
चोपन्ति स० चोपेत् चोपेताम्
चोपेयुः प० चोपतु/चोपतात् चोपताम् ह्य० अचोपत् अचोपताम् अचोपन् अ० अचोपीत् अचोपिष्टाम्
अचोपिषुः प० चुचोप चुचुपतुः चुचुपुः आ० चुप्यात् चुप्यास्ताम् चुप्यासुः श्व० चोपिता चोपितारौ चोपितार: भ० चोपिष्यति चोपिष्यतः चोपिष्यन्ति क्रि० अचोपिष्यत् अचोपिष्यताम् अचोपिष्यन्
३४३. तुप (तुप्) हिंसायाम्। व० तोपति तोपतः तोपन्ति स० तोपेत् तोपेताम तोपेयुः प० तोपतु/तोपतात् तोपताम् तोपन्तु
अतोपत् अतोपताम् अतोपन् अ० अतोपीत् अतोपिष्टाम् अतोपिषुः प० तुतोप तुतुपतुः तुतुपुः आ० तुप्यात् तुप्यास्ताम् तुप्यासुः श्व० तोपिता तोपितारौ तोपितार: भ० तोपिष्यति तोपिष्यतः तोपिष्यन्ति क्रि० अतोपिष्यत् अतोपिष्यताम् अतोपिष्यन्
३४४. तुम्प (तुम्प) हिंसायाम्। व० तुम्पति तुम्पतः तुम्पन्ति स० तुम्पेत् तुम्पेताम् तुम्पेयुः प० तुम्पतु/तुम्पतात् तुम्पताम् तुम्पन्तु ह्य० अतुम्पत् अतुम्पताम् अतुम्पन् अ० अतुम्पीत् अतुम्पिष्टाम् अतुम्पिषुः प० तुतुम्प
तुतुम्पतुः तुतुम्पुः आ० तुप्यात् तुप्यास्ताम् तुप्यासुः श्व० तुम्पिता तुम्पितारौ तुम्पितारः भ० तुम्पिष्यति तुम्पिष्यतः तुम्पिष्यन्ति क्रि० अतुम्पिष्यत् अतुम्पिष्यताम् अतुम्पिष्यन्
३४५. त्रुप (त्रुप्) हिंसायाम्। व० त्रोपतित्रोपतः त्रोपन्ति स० त्रोपेत् प० त्रोपतु/त्रोपतात् त्रोपताम् त्रोपन्तु ह्य० अत्रोपत् अत्रोपताम् अत्रोपन् अ० अत्रोपीत् अत्रोपिष्टाम् अत्रोपिषुः प० तुत्रोप तुत्रुपतुः
तुत्रुपुः आ० त्रुप्यात् त्रुप्यास्ताम् त्रुप्यासुः श्व० त्रोपिता त्रोपितारौ त्रोपितार: भ० त्रोपिष्यति
त्रोपिष्यन्ति क्रि० अत्रोपिष्यत् अत्रोपिष्यताम् अत्रोपिष्यन्
३४६. त्रुम्प (त्रुम्प्) हिंसायाम्। व० त्रुम्पति त्रुम्पतः त्रुम्पन्ति स० त्रुम्पेत् त्रुम्पेताम् त्रुम्पेयुः
चोपतः
चोपन्तु
त्रोपेताम्
त्रोपेयुः
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
त्रोफेताम्
त्रोफेयुः
तोफतः
तोफन्तु
प० त्रुम्पतु/त्रुम्पतात् त्रुम्पताम् त्रुम्पन्तु ह्य० अत्रुम्पत् अत्रुम्पताम् अत्रुम्पन् अ० अत्रुम्पीत् अत्रुम्पिष्टाम् अत्रुम्पिषुः प० तुत्रुम्प तुत्रुम्पतुः तुत्रुम्पुः आ० त्रुप्यात् त्रुप्यास्ताम् त्रुप्यासुः श्व० त्रुम्पिता त्रुम्पितारौ त्रुम्पितारः भ० त्रुम्पिष्यति त्रुम्पिष्यत: त्रुम्पिष्यन्ति क्रि० अत्रुम्पिष्यत् अत्रुम्पिष्यताम् अत्रुम्पिष्यन्
॥ अथ फान्ता: सप्त सेटश्च।।
३४७. तुफ (तुफ्) हिंसायाम्। व० तोफति
तोफन्ति स० तोफेत् तोफेताम् तोफेयुः प० तोफतु/तोफतात् तोफताम् ह्य० अतोफत् अतोफताम् अतोफन् अ० अतोफीत् अतोफिष्टाम अतोफिषुः प० तुतोफ तुतुफतुः तुतुफुः आ० तुफ्यात् तुझ्यास्ताम् तुझ्यासुः श्व० तोफिता तोफितारौ तोफितार: भ० तोफिष्यति तोफिष्यतः तोफिष्यन्ति क्रि० अतोफिष्यत् अतोफिष्यताम् अतोफिष्यन्
३४८. तुम्फ (तुम्फ्) हिंसायाम्। व० तुम्फति तुम्फतः तुम्फन्ति स० तुम्फेत् तुम्फेताम् तुम्फेयु: प० तुम्फतु/तुम्फतात् तुम्फताम् तुम्फन्तु ह्य० अतुम्फत् अतुम्फताम् अतुम्फन् अ० अतुम्फीत् अतुम्फिष्टाम् अतुम्फिषुः प० तुतुम्फ तुतुम्फतुः तुतुम्फुः आ० तुझ्यात् तुझ्यास्ताम् तुझ्यासुः श्व० तुम्फिता तुम्फितारौ तुम्फितार: भ० तुम्फिष्यति तुम्फिष्यतः तुम्फिष्यन्ति क्रि० अतुम्फिष्यत् अतुम्फिष्यताम् अतुम्फिष्यन्
३४९. त्रुफ (त्रुफ्) हिंसायाम्।
व० त्रोफति त्रोफतः त्रोफन्ति स० त्रोफेत् प० त्रोफतु/त्रोफतात् त्रोफताम् त्रोफन्तु ह्य० अत्रोफत् अत्रोफताम् अत्रोफन् अ० अत्रोफीत् अत्रोफिष्टाम् अत्रोफिषुः प० तुत्रोफ तुत्रुफतु: तुत्रुफुः आ० त्रुफ्यात् त्रुफ्यास्ताम् त्रुफ्यासुः श्व० त्रोफिता त्रोफितारौ त्रोफितार: भ० त्रोफिष्यति त्रोफिष्यतः त्रोफिष्यन्ति क्रि० अत्रोफिष्यत् अत्रोफिष्यताम् अत्रोफिष्यन्
३५०. त्रुम्फ (त्रुम्फ) हिंसायाम्। व० त्रुम्फति त्रुम्फतः त्रुम्फन्ति स० त्रुम्फेत् त्रुम्फेताम् त्रुम्फेयुः प० त्रुम्फतु/त्रुम्फतात् त्रुम्फताम् त्रुम्फन्तु ह्य० अत्रुम्फत् अत्रुम्फताम् अत्रुम्फन् अ० अत्रुम्फीत् अत्रुम्फिष्टाम् अत्रुम्फिषुः प० तुत्रुम्फ तुत्रुम्फतुः तुत्रुम्फुः आ० त्रुफ्यात् त्रुफ्यास्ताम् त्रुफ्यासुः श्व० त्रुम्फिता त्रुम्फितारौ त्रुम्फितारः भ० त्रुम्फिष्यति त्रुम्फिष्यतः त्रुम्फिष्यन्ति क्रि० अत्रुम्फिष्यत् अत्रुम्फिष्यताम् अत्रुम्फिष्यन्
३५१. वर्फ (वर्षं) गतौ। व० वर्फति
वर्फन्ति स० वर्फत् वर्फेताम् वर्फेयुः प० वर्फतु/वर्फतात् वर्फताम् वर्फन्तु ह्य० अवर्फत् अवर्फताम् अवर्फन् अ० अवर्फीत् अवर्फिष्टाम् अवर्फिषुः प० ववर्फ ववर्फतुः ववर्षाः आ० वात् वास्ताम् वासुः श्व० वर्फिता वर्फितारौ वर्फितार: भ० वर्फिष्यति वर्फिष्यतः वर्फिष्यन्ति क्रि० अवर्फिष्यत् अवर्फिष्यताम् अवर्फिष्यन्
वर्फतः
तण्या
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आर्ब
आर्बिष्टम्
रेफतुः
रफ्यासुः
३५२. रफ (रफ्) गतौ।
अर्ब/अर्बतात् अर्बतम् अर्बत व० रफति
रफतः रफन्ति
अर्बाणि अर्बाव अर्बाम स० रफेत् रफेताम् रफेयुः
आर्बत् आर्बताम् आर्बन् प० रफतु/रफतात् रफताम् रफन्तु
आर्बतम् आर्बत ह्य० अरफत् अरफताम् अरफन्
आर्बम् आर्बाव आर्बाम अ० अराफीत् अराफिष्टाम् अराफिषुः
अ० आर्चीत् आर्बिष्टाम् आर्बिषुः तथा
आर्बीः
आर्बिष्ट अरफीत् अरफिष्टाम् अरफिषुः
आर्बिषम् आर्बिष्व आर्बिष्प प० रराफ
प० आनर्ब आनर्बतुः आनर्बुः आ० रफ्यात् रफ्यास्ताम्
आनर्बिथ
आनर्ब
आनर्बथुः रफितारौ श्व० रफिता
रफितार:
आनर्ब आनर्बिव आनर्बिम भ० रफिष्यति
रफिष्यतः रफिष्यन्ति
आ० अर्ध्यात् क्रि० अरफिष्यत् अरफिष्यताम् अरफिष्यन्
अास्ताम् अासुः
___अाः अास्तम् अस्ति ___३५३. रफु (रम्प) गतौ।
अासम् अास्व अस्मि व० रम्फति रम्फतः रम्फन्ति
श्व० अर्बिता अर्बितारौ अर्बितारः स० रम्फेत रम्फेताम् रम्फेयुः
अर्बितासि अर्बितास्थः अर्बितास्थ प० रम्फतु/रम्फतात् रम्फताम् रम्फन्तु
अर्बितास्मि अर्बितास्वः अर्बितास्मः ह्य० अरम्फत् अरम्फताम् अरम्फन्
भ० अर्बिष्यति अर्बिष्यतः अर्बिष्यन्ति अ० अरम्फीत् अरम्फिष्टाम् अरम्फिषुः
अर्बिष्यसि अर्बिष्यथ: अर्बिष्यथ प० ररम्फ ररम्फतुः ररम्फुः
अर्बिष्यामि अर्बिष्याव: अर्बिष्यामः आ० रम्फ्यात् रम्पयास्ताम् रम्पयासुः
क्रि० आर्बिष्यत् आर्बिष्यताम् आर्बिष्यन् श्व० रम्फिता रम्फितारौ रम्फितार:
आर्बिष्यः आर्बिष्यतम् आर्बिष्यत भ० रम्फिष्यति रम्फिष्यतः रम्फिष्यन्ति
आर्बिष्यम आर्बिष्याव आर्बिष्याम क्रि० अरम्फिष्यत् अरम्फिष्यताम् अरम्फिष्यन्
३५५. कर्ब (क) गतौ। अथ बान्ता अष्टादश सेटश्च।
व० कर्बति कर्बत: कर्बन्ति ३५४. अर्ब (अ) गतौ।
कर्बसि कर्बथः कर्बथ व० अर्बति अर्बत: अर्बन्ति
कामि कर्बाव: कीमः अर्बसि अर्बथ: अर्बथ
स० कर्बेत् कर्बेताम् अर्बामि अर्बामः
कर्खेतम् कर्खेत स० अर्बेत् अर्बेताम्
कर्बयम् कर्बेव कर्बेम अर्खेतम् अर्खेत
कर्बन्तु
प० कर्बतु/कर्बतात् कर्बताम् अर्बेयम् अर्बेव अर्बेम प०
कर्बत
कर्ब/कर्बतात् कर्बतम् अर्बतु/अर्ततात् अर्बताम् अर्बन्तु
यात
कर्बेयुः
अर्बाव:
कर्वे
अर्बेयुः
अझै
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
कर्बाव
खर्बानि
कर्बाणि
कर्बाम ह्य० अकर्बत् अकर्बताम् अकर्बन् अकर्ब: अकर्बतम्
अकर्बत अकर्बम् अकर्बाव अकर्बाम अ० अकर्बीत् अकर्बिष्टाम् अकर्बिषुः
अकर्बी: अकर्बिष्टम् अकर्बिष्ट
अकर्बिषम् अकर्बिष्व अकर्बिष्म प० चकर्ब चकर्बतुः चकर्बुः
चकर्बिथ चकर्बथुः चकर्ब
चकर्ब चकर्बिव चकर्बिम आ० कात् कास्ताम् कासुः
काः कास्तम् कास्त
कासम् कास्व कास्म श्व० कबिता कर्बितारौ कर्बितार:
कबितासि कबितास्थः कबितास्थ
कबितास्मि कबितास्वः कबितास्मः भ० कर्बिष्यति कर्बिष्यतः कबिष्यन्ति
कर्बिष्यसि कबिष्यथ: कबिष्यथ
कबिष्यामि कार्बेष्याव: कर्बिष्यामः क्रि० अकर्बिष्यत् अकर्बिष्यताम् अकर्बिष्यन
अकर्बिष्यः अकर्बिष्यतम् अकर्बिष्यत अकर्बिष्यम् अकर्बिष्याव अकर्बिष्याम
३५६. खर्ब (ख) गतौ। व० खर्बति
खर्बत:
खर्बन्ति खर्बसि खर्बथ: खर्बथ
खर्बामि खर्बाव: खर्बामः स० खर्बेत् ख.ताम्
खर्चेत खबेयम् खर्बेव खर्बेम प० खर्बतु/खर्बतात् खर्बताम्
खर्ब/खर्बतात् खर्बतम् खर्बत
खर्बाव खर्बाम ह्य० अखर्बत् अखर्बताम् अखर्बन्
अखर्बः अखर्बतम् अखर्बत
अखर्बम् अखर्बाव अखर्बाम अ० अखर्बीत् अखर्बिष्टाम्
अखर्बिषुः अखर्बीः अखर्बिष्टम् अखर्बिष्ट
अखर्बिषम् अखर्बिष्व अखर्बिष्म प० चखर्ब चखर्बतुः चखर्बुः
चखर्बिथ चखर्बथुः चखर्ब चखर्ब
चखर्बिव चखर्बिम आ० खात् खास्ताम् खासुः
खाः खास्तम् खास्त
खासम् खास्व खास्म श्व० खर्बिता खर्बितारौ खर्बितारः
खर्बितासि खर्बितास्थः खर्बितास्थ
खर्बितास्मि खर्बितास्वः खर्बितास्मः भ० खर्बिष्यति खर्बिष्यतः खर्बिष्यन्ति
खबिष्यसि खर्बिष्यथ: खर्बिष्यथ
खर्बिष्यामि खर्बिष्यावः खर्बिष्याम: क्रि० अखर्बिष्यत् अखर्बिष्यताम् अखर्बिष्यन्
अखर्बिष्यः अखर्बिष्यतम् अखर्बिष्यत अखर्बिष्यम् अखर्बिष्याव अखर्बिष्याम
३५७. गर्ब (ग) गतौ। व० गर्बति गर्बत: गर्बन्ति स० ग.त् गर्दैताम् गर्वेयुः प० गर्बतु/गर्बतात् गर्बताम् गर्बन्तु ह्य० अगर्बत् अगर्बताम् अगर्बन् अ० अग/त् अगर्बिष्टाम् अगर्बिषुः प० जगर्ब जगतः जगर्बुः आ० गात् गास्ताम् गासुः श्व० गर्बिता गर्बितारौ गर्बितारः
खर्बेयुः
खर्बेः
खइँतम्
खर्बन्तु
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
96
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
नासुः
चर्बेयुः
पर्खेताम्
पर्बेयुः
भ० गर्विष्यति गर्बिष्यतः गर्बिष्यन्ति क्रि० अगर्बिष्यत् अगर्बिष्यताम् अगर्बिष्यन्
३५८. चर्ब (च) गतौ। व० चर्बति चर्बत: चर्बन्ति स० चर्चेत् चर्खेताम् प० चर्बतु/चर्बतात् चर्बताम् चर्बन्तु ह्य० अचर्बत् अचर्बताम् अचर्बन् अ० अचर्बीत् अचर्बिष्टाम् अचर्बिषुः प० चचर्ब
चचर्बतुः
चचर्बुः आ० चात् चास्ताम् चासुः श्व० चर्बिता चर्बितारौ चर्बितार: भ० चर्बिष्यति चर्बिष्यतः चर्बिष्यन्ति क्रि० अचर्बिष्यत् अचर्बिष्यताम् अचर्बिष्यन्
३५९. तर्ब (त) गतौ। व० तर्बति तर्बत: तर्बन्ति स० त.त् प० तर्बतु/तर्बतात् तर्बताम् ह्य० अतर्बत् अतर्बताम् अतर्बन् अ० अतीत् अतर्बिष्टाम् अतर्बिषुः प० ततर्ब ततर्बतुः . ततर्बुः आ० तात् तास्ताम् तासुः श्व० तर्बिता तर्बितारौ तर्बितार: भ० तर्बिष्यति तर्बिष्यतः तर्बिष्यन्ति क्रि० अतर्बिष्यत् अतर्बिष्यताम अतर्बिष्यन
३६०. नर्ब (नर्ब) गतौ। व० नर्बति नर्बत: नर्बन्ति स० नर्बेत् नर्बेताम् प० नर्बतु/नर्बतात् नर्बताम् ह्य० अनर्बत् अनर्बताम् अनर्बन् अ० अनीत् अनर्बिष्टाम्
अनर्बिषुः प० ननर्ब ननर्बतुः
ननर्बुः
* * * * * * * *
तर्खेताम्
तर्बेयुः तर्बन्तु
आ० नात् नास्ताम् श्व० नर्बिता नर्बितारौ नर्बितार: भ० नर्बिष्यति नर्बिष्यतः नर्बिष्यन्ति क्रि० अनर्बिष्यत् अनर्बिष्यताम् अनर्बिष्यन्
३६१. पर्ब (प) गतौ। व० पर्बति पर्बत: पर्बन्ति स० पर्खेत् प० पर्बतु/पर्बतात् पर्बताम् पर्बन्तु ह्य० अपर्बत् अपर्बताम् अपर्बन् अ० अपर्बीत् अपर्बिष्टाम् अपर्बिषुः प० पपर्ब पपर्बतुः पपर्छः आ० पात् पास्ताम् पासुः श्व० पर्बिता पर्बितारौ पर्बितार: भ० पर्बिष्यति पर्बिष्यतः पर्बिष्यन्ति क्रि० अपर्बिष्यत् अपर्बिष्यताम् अपर्बिष्यन्
३६२. बर्ब (ब) गतौ। व० बर्बति बर्बत:
बर्बन्ति स० बर्खेत ब.ताम् बर्बेयुः प० बर्बतु/बर्बतात् बर्बताम् ह्य० अबर्बत् अबर्बताम् अबर्बन् अ० अबर्बीत् अबबिष्टाम अबर्वेिषुः प० बबर्ब
बबर्बतुः बबर्बुः आ० बर्ध्यात् बास्ताम् बासुः श्व० बबिता बर्बितारौ बर्बितारः भ० बर्बिष्यति बर्बिष्यतः बर्बिष्यन्ति क्रि० अबर्बिष्यत् अबर्बिष्यताम् अबर्बिष्यन्
३६३. शर्ब (श) गतौ। व० शर्बति शर्बत: शर्बन्ति स० शर्बेत् शर्बेताम् शर्बेयुः प० शर्बतु/शर्बतात् शर्बताम् शर्बन्तु ह्य० अशर्बत् अशर्बताम् । अशर्बन्
बर्बन्तु
* * * * * * * *
नर्वेयुः नर्बन्तु
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
97
रिरिम्बुः
सर्बत:
अ० अशर्बीत् अशर्बिष्टाम् अशर्बिषुः प० शशर्ब शशर्बतुः शशर्छः आ० शात् शास्ताम् शासुः श्व० शर्बिता शर्बितारौ शर्बितार: भ० शर्बिष्यति शर्बिष्यतः शर्बिष्यन्ति क्रि० अशर्बिष्यत् अशर्बिष्यताम् अशर्बिष्यन्
३६४. पर्व (स) गतौ। व० सर्बति
सर्बन्ति स० सर्बेत् सर्बेताम् सर्वेयुः प० सर्बतु/सर्बतात् सर्बताम् सर्बन्तु ह्य० असर्बत् असर्बताम् असर्बन् अ० असीत् असर्बिष्टाम् असर्बिषुः प० ससर्ब ससर्बतुः ससर्बुः आ० सात् सास्ताम् सासुः श्व० सर्बिता सर्बितारौ सर्बितार: भ० सर्बिष्यति सर्बिष्यतः सर्बिष्यन्ति क्रि० असर्बिष्यत् असर्बिष्यताम् असर्बिष्यन्
३६५ सर्ब (स) गतौ। अस्य रूपाणि षर्ब (३६४) वत्।
३६६. रिबु (रिम्ब्) गतौ। व० रिम्बति रिम्बतः रिम्बन्ति रिम्बसि रिम्बथः
रिम्बथ रिम्बामि रिम्बावः रिम्बामः स० रिम्बेत् रिम्बेताम् रिम्बेः
रिम्बेतम् रिम्बेयम् रिम्बेव रिम्बेम प० रिम्बतु/रिम्बतात् रिम्बताम्
रिम्ब/रिम्बतात् रिम्बतम्
रिम्बाणि रिम्बाव रिम्बाम ह्य० अरिम्बत् अरिम्बताम् अरिम्बन्
अरिम्बः अरिम्बतम् अरिम्बत
अरिम्बम् अरिम्बाव अरिम्बाम अ० अरिम्बीत् अरिम्बिष्टाम् अरिम्बिषुः
अरिम्बी: अरिम्बिष्टम् अरिम्बिष्ट
अरिम्बिषम् अरिम्बिष्व अरिम्बिष्म प० रिरिम्ब
रिरिम्बतुः रिरिम्बिथ रिरिम्बथुः
रिरिम्ब रिरिम्ब
रिरिम्बिव रिरिम्बिम आ० रिम्ब्यात् रिम्ब्यास्ताम्.
रिम्ब्यासुः रिम्ब्याः रिम्ब्यास्तम् रिम्ब्यास्त
रिम्ब्यासम् रिम्ब्यास्व रिम्ब्यास्म श्व० रिम्बिता रिम्बितारौ रिम्बितारः रिम्बितासि रिम्बितास्थः
रिम्बितास्थ रिम्बितास्मि रिम्बितास्वः रिम्बितास्मः भ० रिम्बिष्यति रिम्बिष्यतः रिम्बिष्यन्ति
रिम्बिष्यसि रिम्बिष्यथ: रिम्बिष्यथ
रिम्बिष्यामि रिम्बिष्याव: रिम्बिष्यामः क्रि० अरिम्बिष्यत् अरिम्बिष्यताम् अरिम्बिष्यत्
अरिम्बिष्यः अरिम्बिष्यतम् अरिम्बिष्यत अरिम्बिष्यम् अरिम्बिष्याव अरिम्बिष्याम
३६७. रबु (रम्ब्) गतौ। व० रम्बति रम्बत: रम्बन्ति स० रम्बेत् रम्बेताम् रम्बेयुः प० रम्बतु/रम्बतात् रम्बताम् रम्बन्तु ह्य० अरम्बत् अरम्बताम् अरम्बन् अ० अरम्बीत् अरम्बिष्टाम् अरम्बिषुः प० ररम्ब
ररम्बतुः ररम्बुः आ० रम्ब्यात् रम्ब्यास्ताम् रम्ब्यासुः श्व० रम्बिता रम्बितारौ रम्बितार: भ० रम्बिष्यति रम्बिष्यतः रम्बिष्यन्ति क्रि० अरम्बिष्यत् अरम्बिष्यताम् अरम्बिष्यन् | ३६८. कुबु (कुम्ब्) आच्छादने। व० कुम्बति कुम्बत: कुम्बन्ति
कुम्बथ
रिम्बेयुः रिम्बेत
रिम्बन्तु रिम्बत
१. अोपदेशत्वात् सिसर्बयिषति, षोपदेशत्वात् सिषर्वयिषति।
कुम्बसि
कुम्बथ:
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कुम्बामि
AH 11 12 133 |
तुम्बन्ति
अ०
चुकुम्ब
चुकुम्बुः
कुम्बावः कुम्बाम: स० कुम्बेत् कुम्बेताम् कुम्बेयुः
कुम्बेः कुम्बेतम् कुम्बेत कुम्बेयम् कुम्बेव कुम्बेम कुम्बतु/कुम्बतात्कुम्बताम् कुम्बन्तु कुम्ब/कुम्बतात् कुम्बतम् कुम्बत
कुम्बानि कुम्बाव कुम्बाम ह्य० अकुम्बत् अकुम्बताम् अकुम्बन्
अकुम्बः अकुम्बतम् अकुम्बत अकुम्बतम् अकुम्बाव अकुम्बाम अकुम्बीत् अकुम्बिष्टाम् अकुम्बिषुः अकुम्बी: अकुम्बिष्टम् अकुम्बिष्ट अकुम्बिषम् अकुम्बिष्व अकुम्बिष्म
चुकुम्बतुः चुकम्बिथ चुकुम्बथुः चुकुम्ब
चुकुम्ब चुकुम्बिव चुकुम्बिम आ० कुम्ब्यात् कुम्ब्यास्ताम् कुम्ब्यासुः
कुम्ब्याः कुम्ब्यास्तम् कुम्ब्यास्त कुम्ब्यासम् कुम्ब्यास्व
कुम्ब्यास्म कुम्बिता कुम्बितारौ कुम्बितार: कुम्बितासि कुम्बितास्थ: कुम्बितास्थ
कुम्बितास्मि कुम्बितास्वः कुम्बितास्मः भ० कुम्बिष्यति कुम्बिष्यतः
कुम्बिष्यन्ति कुम्बिष्यसि कुम्बिष्यथः कुम्बिष्यथ
कुम्बिष्यामि कुम्बिष्यावः कुम्बिष्यामः क्रि० अकुम्बिष्यत् अकुम्बिष्यताम् अकुम्बिष्यन्
अकुम्बिष्यः अकुम्बिष्यतम् अकुम्बिष्यत अकुम्बिष्यम् अकुम्बिष्याव अकुम्बिष्याम
३६९. लुबु (लुम्ब) अर्दने। व० लुम्बति लुम्बत: स० लुम्बेत् लुम्बेताम् लुम्बेयुः
प० लुम्बतु/लुम्बतात् लुम्बताम् लुम्बन्तु ह्य० अलुम्बत् अलुम्बताम् अलुम्बन् अ० अलुम्बीत् अलुम्बिष्टाम् अलुम्बिषुः प० लुलुम्ब लुलुम्बतुः लुलुम्बुः आ० लुम्ब्यात् लुम्ब्यास्ताम् लुम्ब्यासुः श्व० लुम्बिता लुम्बितारौ लुम्बितारः भ० लुम्बिष्यति लुम्बिष्यतः लुम्बिष्यन्ति क्रि० अलुम्बिष्यत् अलुम्बिष्यताम् अलुम्बिष्यन्
३७०. तुबु (तुम्ब्) अर्दने। व० तुम्बति तुम्बत: स० तुम्बेत् तुम्बेताम् तुम्बेयुः प० तुम्बतु/तुम्बतात् तुम्बताम् तुम्बन्तु ह्य० अतुम्बत् अतुम्बताम् अतुम्बन् अ० अतुम्बीत् अतुम्बिष्टाम् अतुम्बिषुः प० तुतुम्ब तुतुम्बतुः तुतुम्बुः आ० तुम्ब्यात् तुम्ब्यास्ताम् तुम्ब्यासुः श्व० तुम्बिता तुम्बितारौ तुम्बितारः भ० तुम्बिष्यति तुम्बिष्यतः तुम्बिष्यन्ति क्रि० अतुम्बिष्यत् अतुम्बिष्यताम् अतुम्बिष्यन् ३७१. चुबु (चुम्ब्) वक्त्रसंयोगे।
वक्त्रेण सम्बन्धे। व० चुम्बति चुम्बत: स० चुम्बेत् चुम्बेताम् चुम्बेयुः प० चुम्बचु/चुम्बतात् चुम्बताम् । चुम्बन्तु ह्य० अचुम्बत् अचुम्बताम् अचुम्बन्
० अचुम्बीत् अचुम्बिष्टाम् अचुम्बिषुः प० चुचुम्ब चुचुम्बतुः चुचुम्बुः आ० चुम्ब्यात् चुम्ब्यास्ताम् चुम्ब्यासुः श्व० चुम्बिता चुम्बितारौ चुम्बितार: भ० चुम्बिष्यति चुम्बिष्यतः चुम्बिष्यन्ति क्रि० अचुम्बिष्यत् अचुम्बिष्यताम् अचुम्बिष्यन्
||अथ भान्ता अष्टौ यलवर्जा: सेटश्च ।।
चुम्बन्ति
THM
लुम्बन्ति
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
90
सर्भेतम्
सृम्भे:
असर्भिषुः
३७२. सृभू (सृभ्) हिंसायाम्। व० सर्भति
सर्भतः
सन्ति सर्भसि सर्भथ: सर्भथ
सर्भामि सर्भावः सर्भाम: स० सर्भेत सर्भताम् सर्भेयुः सर्भे:
सर्भेत सर्भेयम् सर्भेव सर्भेयुः प० सर्भतु/सर्भतात् सर्भताम् सर्भन्तु
सर्भ/सर्भतात् सर्भतम् सर्भत
सर्भाणि सर्भाव सर्भाम ह्य० असर्भत् असर्भताम् असन्
असर्भः असर्भतम् असर्भत
असर्भतम् असर्भाव अस म अ० असीत् असर्भिष्टाम्
असी : असर्भिष्टम् असर्भिष्ट
असर्भिषम् असर्भिष्व असर्भिष्म प० ससर्भ
ससृभतुः ससृभुः ससर्भिथ
ससृभथुः ससृभ ससर्भ
ससृभिव ससृभिम आ० सृभ्यात् सृभ्यास्ताम् सृभ्यासुः
सृभ्या: सृभ्यास्तम् सृभ्यास्त
सृभ्यासम् सृभ्यास्व सृभ्यास्म श्व० सर्भिता सर्भितारौ. सर्भितार:
सर्भितासि सर्भितास्थ: सर्भितास्थ
सर्भितास्मि सर्भितास्वः सर्भितास्मः भ० सर्भिष्यति सर्भिष्यतः सर्भिष्यन्ति
सर्भिष्यसि सर्भिष्यथ: सर्भिष्यथ
सर्भिष्यामि सर्भिष्यातः सर्भिष्यामः क्रि० असर्भिष्यत् असर्भिष्यताम् असर्भिष्यन्
असर्भिष्यः असर्भिष्यतम् असर्भिष्यत असर्भिष्यम् असर्भिष्याव असर्भिष्याम
३७३. सृम्भू (सृम्भ) हिंसायाम्। व० सृम्भति सृम्भतः सृम्भन्ति
सृम्भसि सृम्भथ: सृम्भथ
सृम्भामि सृम्भाव: सृम्भामः स० सृम्भेत् सृम्भेताम् सृम्भेयुः
सृम्भेतम् सृम्भेत सृम्भेयम् सृम्भेव सृम्भेम प० सृम्भतु/सृम्भतात्सृम्भताम् सृम्भन्तु
सृम्भ/सृम्भतात् सृम्भतम् सृम्भत
सृम्भाणि सृम्भाव सृम्भाम ह्य० असृम्भत् असृम्भताम् असृम्भन्
असृम्भः असृम्भतम् असृम्भत
असृम्भतम् असृम्भाव असृम्भाम अ० असृम्भीत् असृम्भिष्टाम् असृम्भिषुः
असृम्भी: असृम्भिष्टम् असृम्भिष्ट
असृम्भिषम् ___ असृम्भिष्व असृम्भिष्म प० ससृम्भ ससृम्भतुः ससृम्भुः
ससृम्भिथ ससृम्भथुः ससृम्भ
ससृम्भ ससृम्भिव ससृम्भिम आ० सृभ्यात् सृभ्यास्ताम् सृभ्यासुः
सृभ्याः सृभ्यास्तम् सृभ्यास्त
सृभ्यासम् सृभ्यास्व सृभ्यास्म श्व० सृम्भिता सम्भितारौ सृम्भितार:
सृम्भितासि सृम्भितास्थ: सृम्भितास्थ
सृम्भितास्मि सृम्भितास्वः सृम्भितास्मः भ० सृम्भिष्यति सृम्भिष्यतः सम्भिष्यन्ति
सृम्भिष्यसि सृम्भिष्यथ: सृम्भिष्यथ
सृम्भिष्यामि सृम्भिष्याव: सृम्भिष्यामः क्रि० असृम्भिष्यत् असृम्भिष्यताम् असृम्भिष्यन्
असृम्भिष्यः असृम्भिष्यतम् असृम्भिष्यत असृम्भिष्यम् असृम्भिष्याव असृम्भिष्याम
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
100
स्रेभेयुः
शुम्भन्ति
अभिषुः
सिम्भेयुः
३७४. त्रिभू (स्रिम्) हिंसायाम्। व० स्रेभति स्रेभतः स्रेभन्ति स० सेभेत् स्रेभेताम् प० रोभतु/ोभतात् स्रेभताम् रोभन्तु ह्य० अोभत् अस्रेभताम्
अस्त्रेभन् अ० अस्रेभीत् अभिष्टाम् प० सिटेभ सिस्त्रिभतुः सिस्त्रिभुः आ० त्रिभ्यात् त्रिभ्यास्ताम् त्रिभ्यासुः श्व० सेभिता स्रेभितारौ ोभितारः भ० भिष्यति स्रभिष्यतः स्रभिष्यन्ति क्रि० अस्रेभिष्यत् अभिष्यताम् अस्रेभिष्यन्
३७५.षिम्भू (सिम्भ) हिंसायाम्। व० सिम्भति सिम्भतः सिम्भन्ति स० सिम्भेत् सिम्भेताम् प० सिम्भतु/सिम्भतात् सिम्भताम् सिम्भन्तु ह्य० असिम्भत् असिम्भताम् असिम्भन् अ० असिम्भीत् असिम्भिष्टाम् असिम्भिषुः प० सिषिम्भ सिषिम्भतुः आ० सिभ्यात् सिभ्यास्ताम् श्व० सिम्भिता सिम्भितारौ सिम्भितार: भ० सिम्भिष्यति सिम्भिष्यतः सिम्भिष्यन्ति क्रि० असिम्भिष्यत् असिम्भिष्यताम् असिम्भिष्यन्
३७६. भर्भ (भर्भ) हिंसायाम्। व० भर्भति भर्भतः भर्भन्ति भ० भर्भेत् भर्भताम् भर्भेयुः प० भर्भतु/भर्भतात् भर्भताम् भर्भन्तु ह्य० अभर्भत् अभर्भताम् अभन अ० अभीत् अभर्भिष्टाम् अभर्धिषुः प० बभर्भ बभर्भतुः
बभर्भुः आ० भात् भास्ताम् भासुः श्व० भर्भिता भर्भितारौ भर्भितारः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग भ० भर्भिष्यति भर्भिष्यतः भर्भिष्यन्ति क्रि० अभर्भिष्यत् अभर्भिष्यताम् अभर्भिष्यन्
३७७. शुम्भ (शुम्भ) भाषणे च।
चकाराद् हिंसायाम्। व० शुम्भति शुम्भतः स० शुम्भेत् शुम्भेताम् शुम्भेयुः प० शुम्भतु/शुम्भतात् शुम्भताम् शुम्भन्तु ह्य० अशुम्भत् अशुम्भताम् अशुम्भन् अ० अशुम्भीत् अशुम्भिष्टाम् । अशुम्भिषुः प० शुशुम्भ शुशुम्भतुः शुशुम्भुः आ० शुभ्यात् शुभ्यास्ताम् शुभ्यासुः श्व० शुम्भिता शुम्भितारौ शुम्भितारः भ० शुम्भिष्यति शुम्भिष्यतः शुम्भिष्यन्ति क्रि० अशुम्भिष्यत् अशुम्भिष्यताम् अशुम्भिष्यन्
३७८. यभ (यभ) मैथुने।
मिथुनस्य कर्मणि भावे वा। व० यभति यभतः यभन्ति स० यभेत्
यभेताम् प० यभतु/यभतात् यभताम् यभन्तु ह्य० अयभत् अयभताम् अयभन् अ० अयाप्सीत् अयाब्धाम् अयाप्सुः प० ययाभ
येभतुः आ० यभ्यात् यभ्यास्ताम् यभ्यासुः श्व० यब्धा यब्धारौ यब्धारः भ० यप्स्यति
यप्स्यत:
यप्स्यन्ति क्रि० अयप्स्यत्
अयप्स्यताम् अयप्प्यन् ३७९. जभ (जम्म) मैथुने।
मिथुनस्य कर्मणि भावे वा। व० जम्भति जम्भतः जम्भन्ति स० जम्भेत् जम्भेताम् जम्भेयुः प० जम्भतु/जम्भतात् जम्भताम् जम्भन्तु ह्य० अजम्भत् अजम्भताम् अजम्भन् अ० अजम्भीत् अजम्भिष्टाम् अजम्भिषुः
यभेयुः
सिषिम्भुः सिभ्यासुः
येभुः
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
101
श्व०
चमत:
चमेताम् चमेतम्
चमे
प० जजम्भ जजम्भतुः
जजम्भुः आ० जभ्यात् जभ्यास्ताम् जभ्यासुः श्रु० जम्भिता जम्भितारौ जम्भितारः भ० जम्भिष्यति जम्भिष्यतः जम्भिष्यन्ति क्रि० अजम्भिष्यत् अजम्भिष्यताम् अजम्भिष्यन् अथ मान्ताः सप्तदश यमूंणमगम्लवर्जा: सेटश्च।।
३८०. चमू (चम्) अदने। व० चमति
चमन्ति चमसि चमथ: चमथ चमामि चमाव:
चमामः स० चमेत्
चमेयुः
चमेत चमेयम् चमेव
चमेम म० चमतु/चमतात् चमताम् चमन्तु चम/चमतात् चमतम्
चमत चमानि चमाव
चमाम ह्य० अचमत् अचमताम् अचमन्
अचमः अचमतम् अचमत अचमम्
अचमाव अचमाम आङपूर्वस्य तु चतसृषु विभक्तिषु दीर्घत्वम् व० आचामति आचामतः आचामन्ति
आचामसि आचामथः आचामथ
आचामामि आचामावः आचामामः स० आचामेत् आचामेताम् आचामेयुः
आचामे: आचामेतम् आचामेत
आचामेयम् आचामेव आचामेम प० आचामतु आचामतात् आचामताम् आचामन्तु आचाम
आचामतात् आचामतम् आचामत
आचामानि आचामाव आचामाम ह्य० आचामत् आचामताम् आचामन्
आचामः आचामतम् आचामत
आचामम् आचामाव आचामाम अ० अचमीत् अचमिष्टाम् अचमिषुः
अचमी: अचमिष्टम् अचमिष्ट
अचमिषम् अचमिष्व अचमिष्म प० चचाम
चेमिथ चचाम/चचम चेमिव चेमिम
| आ० चम्यात् चम्यास्ताम्
चम्यासुः चम्या: चम्यास्तम् चम्यास्त चम्यासम् चम्यास्व चम्यास्म चमिता चमितारौ
चमितार: चमितासि चमितास्थः चमितास्थ
चमितास्मि चमितास्व: चमितास्मः भ० चमिष्यति चमिष्यतः चमिष्यन्ति
चमिष्यसि चमिष्यथ: चमिष्यथ
चमिष्यामि चमिष्याव: चमिष्यामः क्रि० अचमिष्यत् अचमिष्यताम् अचमिष्यन्
अचमिष्यः अचमिष्यतम् अचमिष्यत अचमिष्यम् अचमिष्याव अचमिष्याम
३८१. छमू (छम्) अदने। व० छमति छमतः छमन्ति स० छमेत् छमेताम् छमेयुः प० छमतु/छमतात् छमताम् छमन्तु ह्य० अच्छमत् अच्छमताम् अच्छमन् अ० अच्छमीत् अच्छमिष्टाम् अच्छमिषुः प० चच्छाम चच्छमतुः चच्छमुः आ० छम्यात् छम्यास्ताम् छम्यासुः श्व० छमिता छमितारौ छमितारः भ० छमिष्यति छमिष्यतः छमिष्यन्ति क्रि० अच्छमिष्यत् अच्छमिष्यताम् अच्छमिष्यन्
३८२. जमू (जम्) अदने। व० जमति
जमन्ति स० जमेत् जमेताम् प० जमतु/जमतात् जमताम् जमन्तु ह्य० अजमत् अजमताम् . अजमन् अ० अजमीत्
अजमिष्टाम् अजमिषुः प० जजाम आ० जम्यात् जम्यास्ताम् श्व० जमिता जमितारौ जमितारः भ० जमिष्यति जमिष्यतः जमिष्यन्ति क्रि० अजमिष्यत् अजमिष्यताम् अजमिष्यन्
ति
जमतः
जमेयुः
जेमतुः
जेमुः
जम्यासुः
तारा
चेमतुः चेमथुः
चेमुः चेम
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
102
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
झमेताम्
तथा क्राम्येत् क्राम्येताम् क्राम्ये: क्राम्येतम् क्राम्येयम्
क्राम्येव क्रामतु/क्रामतात् क्रामताम् क्राम/क्रामतात् क्रामतम् क्रामानि क्रामाव
क्राम्येयु: क्राम्येत क्राम्येम क्रामन्तु क्रामत क्रामाम
प०
तथा
क्राम्यन्तु क्राम्यत
क्राम्याम
अक्रामन् अक्रामत अक्रामाम
जमताम्
जेमेयुः
जेमन्तु
३८३. झमू (झम्) अदने। व० झमति झमत:
झमन्ति स० झमेत्
झमेयुः प० झमतु/झमतात् झमताम् झमन्तु ह्य० अझमत्
अझमताम्
अझमन् अ० अझमीत् अझमिष्टाम् अझमिषुः प० जझाम
जझमतुः
जझमुः आ० झम्यात् झम्यास्ताम् झम्यासुः श्व० झमिता झमितारौ झमितारः भ० झमिष्यति झमिष्यतः झमिष्यन्ति क्रि० अझमिष्यत् अझमिष्यताम् अझमिष्यन्
३८४. जिमू (जिम्) अदने। व० जेमति जेमतः जेमन्ति स० जेमेत् जेमेताम् प० जेमतु/जेमतात् जेमताम् ह्य० अजेमत् अजेमताम् अजेमन् अ० अजेमीत् अजेमिष्टाम् प० जिजेम
जिजिमतुः जिजिमुः आ० जिम्यात् जिम्यास्ताम् जिम्यासुः व० जेमिता जेमितारौ जेमितार: भ० जेमिष्यति जेमिष्यतः जेमिष्यन्ति क्रि० अजेमिष्यत् अजेमिष्यताम् अजेमिष्यन्
३८५. क्रमू (क्रम्) पादविक्षेपे। व० क्रामति क्रामतः क्रामन्ति क्रामसि क्रामथ:
क्रामथ क्रामामि क्रामाव:
क्रामामः
तथा क्राम्यति क्राम्यतः क्राम्यन्ति क्राम्यसि क्राम्यथः क्राम्यथ
क्राम्यामि क्राम्याव: क्राम्यामः स० क्रामेत् क्रामेताम् क्रामेयुः क्रामः
क्रामेतम् क्रामेत क्रामेयम् कामेव
क्रामेम
अजेमिषु:
क्राम्यतु/क्राम्यतात् क्राम्यताम् क्राम्य/क्राम्यतात् क्राम्यतम्
क्राम्यानि क्राम्याव ह्य० अक्रामत् अक्रामताम्
अक्राम: अक्रामतम् अक्रामम् अक्रामाव
तथा अक्राम्यत् अक्राम्यताम् अक्राम्यः अक्राम्यतम्
अक्राम्यम् अक्राम्याव अ० अक्रमीत् अक्रमिष्टाम्
अक्रमी: अक्रमिष्टम्
अक्रमिषम् अक्रमिष्व प० चक्राम
चक्रमतुः चक्रमिथ चक्रमथुः
चक्राम/चक्रम चक्रमिव आ० क्रम्यात् क्रम्यास्ताम्
क्रम्या: क्रम्यास्तम्
क्रम्यासम् क्रम्यास्व श्व० ऋमिता ऋमितारौ
ऋमितासि क्रमितास्थः
ऋमितास्मि क्रमितास्वः भ० ऋमिष्यति क्रमिष्यतः
क्रमिष्यसि क्रमिष्यथ:
क्रमिष्यामि क्रमिष्याव: क्रि० अक्रमिष्यत् अक्रमिष्यताम्
अक्रमिष्यः अक्रमिष्यतम् अक्रमिष्यम् अक्रमिष्याव
अक्राम्यत् अक्राम्यन् अक्राम्याम अक्रमिषुः अक्रमिष्ट अक्रमिष्म चक्रमुः चक्रम चक्रमिम क्रम्यासुः क्रम्यास्त
क्रम्यास्म क्रमितारः क्रमितास्थ क्रमितास्मः ऋमिष्यन्ति क्रमिष्यथ ऋमिष्यामः अक्रमिष्यन् अक्रमिष्यत अक्रमिष्याम
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
व०
यच्छति
यच्छतः
स० यच्छेत् यच्छेताम्
प०
यच्छतु/यच्छतात् यच्छताम्
ह्य० अयच्छत् अयच्छताम्
अ० अर्यसीत्
अर्यसिष्टाम्
प०
ययाम
येमतुः
आ० यम्यात्
व०
यन्ता
भ० यंस्यति
क्रि० अयंस्यत्
डा० अस्यमत्
अ० अस्यमीत्
प०
सस्याम
३८६. यमूं (यम्) उपरमे ।
उपरमो निवृत्तिः ।
व० नमति
नमसि
नमामि
स० [नमेत्
नमः
नमेयम्
प०
व० स्यमति
स्यमतः
सस्यमेत्
स्यमेताम्
प० स्यमतु / स्यमतात् स्यमताम्
स्यमन्तु
अस्यमताम्
अस्यमन्
अस्यमिष्टाम् अस्यमिषुः
सस्यमतुः
सस्यमुः
तथा
यच्छन्ति
यच्छेयुः
यम्यास्ताम्
यन्तारौ
यंस्यतः
अयंस्यताम्
३८७. स्यम् (स्यम्) शब्दे ।
स्येमतुः
स्यम्यास्ताम्
स्यमितारौ
यच्छन्तु
अयच्छन्
अर्यसिषुः
येमुः
यम्यासः
यन्तारः
यंस्यन्ति
नमतु/नमतात् नमताम्
नम/नमतात् नमतम्
नमानि
नमाव
अयंस्यन्
सस्याम
आ० स्यम्यात् श्व० स्यमिता
भ० स्यमिष्यति स्यमिष्यतः क्रि० अस्यमिष्यत् अस्यमिष्यताम् अस्यमिष्यन्
३८८. णमं (नम्) प्रह्वत्वे । नम्रत्वे इत्यर्थः ।
नमतः
नमन्ति
नमथः
नमथ
नमावः
नमामः
नमेताम्
नमेयुः
नमेतम्
नमेत
नमेव
नमेम
स्यमन्ति
स्यमेयुः
स्येमुः
स्यम्यासुः
स्यमितारः
स्यमिष्यन्ति
नमन्तु
नमत
नमाम
ह्य० अनमत्
अनमः
अनमम्
अ० अनंसीत्
अनंसी:
अनंसिषम्
प०
ननाम
नेमिथ / ननन्थ
ननाम/ननम
आ० नम्यात्
नम्याः
नम्यासम्
ᄋ नन्ता
नन्तासि
नन्तास्मि
भ० नंस्यति
नस्थिसि
नंस्यामि
क्रि० अनंस्यत्
अनंस्यः
अनंस्यम्
व० समति
समसि
समामि
स. समेत्
समः
समेयम्
प० समतु / समतात्
सम/समतात्
समानि
अनमताम्
अनमतम्
अनमाव
अनंसिष्टाम्
अनसिष्टम्
अनसिष्व
नेमतुः
नेमथुः
नेमिव
नम्यास्ताम्
नम्यास्तम्
नम्यास्व
नन्तारौ
नन्तास्थः
नन्तास्वः
नंस्यतः
नंस्यथः
नंस्यावः
अनंस्यताम्
अनंस्यतम्
अनंस्याव
समतः
समथः
समावः
समेताम्
समेतम्
समेव
अनमन्
अनमत
समताम्
सप्तम्
समाव
अनमाम
अनंसिषुः
अनंसिष्ट
अनंसिष्म
नेमुः
नेम
नेमिम
३८९. षम (सम्) वैक्लव्ये । वैक्लव्यं कातरत्वम् ।
नम्यासुः
नम्यास्त
नम्यास्म
नन्तारः
नन्तास्थ
नन्तास्मः
नंस्यन्ति
नंस्यथ
नंस्यामः
अनंस्यन्
अनंस्यत
अर्नस्थाम
समन्ति
समथ
समामः
समेयुः
समेत
समेम
समन्तु
समत
समाम
103
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
104
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ह्य० असमत्
असमताम्
असमन्
असमः
असमतम्
असमत
अमेयुः
सेमुः
सेमथुः
क्रि० अस्तमिष्यत् अस्तमिष्यताम् अस्तमिष्यन्
३९१: अम (अम्) शब्दभक्त्योः । भक्तिर्भजनम्। व० अमति अमतः
अमन्ति स० अमेत् अमेताम् प० अमतु/अमतात् अमताम्
अमन्तु ह्य० आमत् आमताम् आमन् अ० आमीत् आमिष्टाम् आमिषुः प० आम
आमतुः .आमुः आ० अम्यात् अम्यास्ताम्
अभ्यासुः श्व० अमिता अमितारौ अमितार: भ० अमिष्यति अमिष्यतः अमिष्यन्ति क्रि० आमिष्यत् आमिष्यताम् आमिष्यन्
३९२. अम (अम्) गतौ। अम (३९१) वदूपाणि; अर्थभेदार्थं पुनरुपादानम्। ।
३९३. द्रम (द्रम्) गतौ। व० द्रमति द्रमतः द्रमन्ति स० द्रमेत् प० द्रमतु/द्रमतात् द्रमताम्
द्रमन्तु ह्य० अद्रमत् अ० अद्रमीत् अद्रमिष्टाम्
अद्रमिषुः प० दद्राम दद्रमतुः दद्रमुः आ० द्रम्यात् द्रम्यास्ताम् द्रम्यासुः श्व० द्रमिता द्रमितारौ द्रमितार: भ० द्रमिष्यति द्रमिष्यतः द्रमिष्यन्ति क्रि० अद्रमिष्यत् अद्रमिष्यताम् अद्रमिष्यन्
३९४. हम्म (हम्म्) गतौ। व० हम्मति हम्मतः हम्मन्ति स० हम्मेत् हम्मेताम् हम्मेयुः प० हम्मतु/हम्मतात् हम्मताम् हम्मन्तु ह्य० अहम्मत् अहम्मताम् अहम्मन् अ० अहम्मीत् अहम्मिष्टाम्
अहम्मिषुः प० जहम्म जहम्मतुः जहम्मुः
असमम् असमाव असमाम अ० असमीत् असमिष्टाम् असमिषुः
असमीः असमिष्टम असमिष्ट
असमिषम् असमिष्व असमिष्म प० ससाम सेमतुः सेमिथ
सेम ससाम/ससम सेमिव
सेमिम आ० सम्यात् सम्यास्ताम् सम्यासुः
सम्या: सम्यास्तम् सम्यास्त
सम्यासम् सम्यास्व सम्यास्म श्व० समिता समितारौ समितारः
समितासि समितास्थः समितास्थ
समितास्मि समितास्वः समितास्मः भ० समिष्यति समिष्यतः समिष्यन्ति
समिष्यसि समिष्यथ: समिष्यथ
समिष्यामि समिष्याव: समिष्यामः क्रि० असमिष्यत् असमिष्यताम् असमिष्यन्
असमिष्यः असमिष्यतम् असमिष्यत असमिष्यम् असमिष्याव असमिष्याम ३९०. ष्टम (स्तम्) वैक्लव्ये।
वैक्लव्यं कातरत्वम्। व० स्तमति स्तमतः स्तमन्ति स० स्तमेत् स्तमेताम् स्तमेयुः प० स्तमतु/स्तमतात् स्तमताम् स्तमन्तु ह्य० अस्तमत् अस्तमताम् अस्तमन् अ० अस्तमीत् असमिष्टाम् असमिषुः प० तस्ताम तस्तमतुः तस्तमुः आ० स्तम्यात् स्तम्यास्ताम् श्व० स्तमिता स्तमितारौ स्तमितारः भ० स्तमिष्यति स्तमिष्यतः स्तमिष्यन्ति
द्रमेताम्
द्रमेयुः
अद्रमताम्
अद्रमत्
स्तम्यासुः
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
आ० हम्म्यात्
श्व० हम्मिता
भ० हम्मिष्यति
क्रि० अहम्मिष्यत्
व०
मीमति
सo मीमेत्
मीताम्
प० मीमतु/मीमतात् मीमताम्
ह्य० अमीत् अमीमताम्
अ० अमीमीत्
अमीमिष्टाम्
प०
मिमीम
मिमीमतुः
आ० मीम्यात्
मीम्यास्ताम्
श्व० मीमिता
मीमितारौ
म० मीमिष्यति
मीमिष्यतः
क्रि० अमीमिष्यत् अमीमिष्यताम्
व० गच्छति
स गच्छेत्
प०
हम्म्यास्ताम् हम्म्यासुः
हम्मत
हम्मितार:
हम्मिष्यतः
हम्मिष्यन्ति
अहम्मिष्यताम्
अहम्मिष्यन्
३९५. मीमृ (मीम्) गतौ ।
मीमतः
३९६. गम्लं (गम्) गतौ ।
गच्छतः
गच्छेताम्
गच्छतु/गच्छतात् गच्छताम्
ह्य० अगच्छत्
अ० अगमत्
प० जगाम
जग्मतुः
जगमिथ / जगन्थ जग्मथुः
जगाम / जगम
जग्मिव
आ० गम्यात्
왕ᄋ गन्ता
भ० गमिष्यति
क्रि० अगमिष्यत्
व० हयति
अगच्छताम्
अगमताम्
मीमन्ति
मीमेयुः
मीमन्तु
अमीमन्
अमीमिषुः
मिमीमुः
मीम्यासुः
मीमितार:
मीमिष्यन्ति
अमीमिष्यन्
गम्यास्ताम्
गन्तारौ
गमिष्यतः
अगमिष्यताम्
॥ अथ यान्ता अष्टौ सेटच ॥
३९७. हय (हय्) क्लान्तौ । चकाराद्गतौ।
हयतः
हयन्ति
गच्छन्ति
गच्छेयुः
गच्छन्तु
अगच्छन्
अगमन्
जग्मुः
जग्म
जग्मिम
गम्यासुः
गन्तारः
गमिष्यन्ति
अगमिष्यन्
सत्
प० हयतु/ हयतात्
ह्य० अहयत्
अ० अहयीत्
प०
जहाय
आ० हय्यात्
श्व० हयिता
भ० हयिष्यति
क्रि० अहयिष्यत्
व०
स०
प०
ह्य
अ० अहर्दीत्
प० जहर्य
आ० हर्य्यात्
हर्यात्
व० हर्यिता
भ० हर्दिष्यति
क्रि० अहर्यिष्यत्
हय्यासुः
हयितार:
हयिष्यन्ति
अहष्यताम्
अहयिष्यन्
३९८. हर्य (हय्) क्लान्तौ च । चकाराद्गतौ
हर्यति
हर्यत:
हर्येत्
हर्यतु / हर्यतात्
अहर्यत्
व०
मव्यति
स० मव्येत्
प०
हाम्
हयताम्
अहयताम्
अष्टिम्
जहयतुः
हय्यास्ताम्
हयितारौ
हयिष्यतः
ह्य० अमव्यत्
अ० अमव्यीत्
प०
ममव्य
आ० मव्यात्
왕ᄋ मव्यिता
भ० मव्यिष्यति
क्रि० अमव्यिष्यत्
हाम्
हर्यताम्
अहर्यताम्
अहर्दिष्टाम्
जहर्यतुः
हर्य्यास्ताम्
हर्यास्ताम्
हर्यितारौ
हार्यष्यतः
अहर्यिष्यताम्
मव्यतः
मव्येताम्
मव्यतु/मव्यतात् मव्यताम्
:
हयन्तु
अहयन्
अहयिषुः
जहर्युः
३९९. मव्य (मव्य्) बन्धने ।
हर्यति
हर्येयुः
हर्यन्तु
अहर्यन्
अहर्दिषुः
अमव्यताम्
अमव्यिष्टाम्
जहर्युः
हर्य्यासुः
हर्यासुः
हर्यितार:
हर्दिष्यन्ति
अहर्यष्यन्
मव्यन्ति
मव्येयुः
मव्यन्तु
अमव्यन्
अमव्यषुः
ममव्यतुः
ममव्युः
मव्यास्ताम् मव्यासुः
मव्यतारौ
मव्यितारः
मव्यिष्यतः
मव्यिष्यन्ति
अमव्यिष्यताम् अमव्यिष्यन्
105
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
106
सूर्ध्यत:
सूयन्ति
सूय॑सि
सूामः
ईक्ष्य
ईय॑न्तु ईयत
सूाव
४००. सूर्य (सूय) ईर्ष्यायाम्।
ईर्ष्या कामजमसहनम्। व० सूर्ध्यति
सूय॑थः सूर्यथ सूामि
सूावः स० सूर्येत् सूर्येताम् सूर्येयुः
सूर्ये: सूर्खेतम् सूर्येत
सूर्येयम् सूर्येव सूर्येम प० सूीतु/सूयंतात् सूर्ध्यताम् सूर्यन्तु
सूय/सू_तात् सूय॑तम् सूर्ध्यत सूानि
सूाम ह्य० असूय॑त् असूर्थ्यताम् असूयंन्
असूयः असूय॑तम् असूयंत
असूय॑म् असूाव असूाम अ० असूीत् असूयिष्टाम् असूयिषुः
असूीः असूप्रिंष्टम् असूयिष्ट असूयिषम् असूयिष्व
असूयिष्म सुसूय॑तुः सुसूयुः सुसूमिंथ सुसूय॑थुः
सुसूय सुसूयिव सुसूयिम आ० सूर्य्यात् सूर्यास्ताम् सूर्य्यासुः
सूर्य्याः सूर्यास्तम् सूर्यास्त सूर्यासम सूक्ष्य्यास्व सूक्ष्य्यास्म
तथा सूर्ध्यात् सूयास्ताम् सूासुः
सूक्ष्ास्तम् सूास्त सूयासम् सूक्ष्ास्व सूास्म श्व० सूयिता सूयितारौ सूयितारः
सूयितासि सूयितास्थः सूयिंतास्थ
सूयिंतास्मि सूयितास्वः सूयितास्म: भ० सूयिष्यति सूर्यिष्यतः सूर्यिष्यन्ति
सूयिष्यसि सूयिष्यथ: सूर्य्यिष्यथ
सूयिष्यामि सूयिष्याव: सूयिष्याम: क्रि० असूयिष्यत् असूयिष्यताम् असूयिष्यन् ___ असूयिष्यः असूयिष्यतम् असूयिष्यत
धातुरत्नाकर प्रथम भाग असूयिष्यम् असूयिष्याव असूयिष्याम ४०१. ईर्थ्य (ईय) ईर्ष्यायाम्।
ईर्ष्या कामजमसहनम्। व० ईक्ष्यति ईयतः ईय॑न्ति
ईय॑सि ईय॑थः ईग्रंथ
ईर्ष्यामि ईर्ष्याव: ईर्ष्यामः स० ईयेत् ईयेताम् ईयेयुः
ईर्खेतम् ईयेत ईयेयम् ईयेव ईयेम प० ईय॑तु/ईय॑तात् ईय॑ताम्
ईयाईयंतात् ईय॑तम्
ईर्ष्यानि ईक्व ईयाम ह्य० ऐय॑त् ऐयताम्
ऐयन् ऐयः ऐय॑तम् ऐयत
ऐयम् ऐयाव ऐाम अ० ऐVत् ऐय॑िष्टाम् ऐयिषुः
ऐ<ः ऐय॑िष्टम् ऐयिष्ट
ऐयिषम् ऐयिष्व ऐयिष्म | प० ईयाञ्चकार ईाञ्चक्रतुः ईयाञ्चक्रुः
ईयाञ्चकर्थ ईाञ्चक्रथुः ईयाञ्चक्र ईयाञ्चकार/ईाञ्चकर ईाञ्चकव ईक्ष्याञ्चकम
ईर्ष्याम्बभूव ईामास आ० ईर्ष्यात् ईर्ष्यास्ताम् ईर्ष्यासुः
ईर्ष्याः ईर्ष्यास्तम् ईक्ष्र्यास्त ईर्ष्यासम ईOस्व ईस्मि
तथा ईर्ष्यात् ईयास्ताम् ईयासुः ईक्ष्याः ईर्ष्यास्तम् ईर्ष्यास्त ईयासम् ईास्व ईर्ष्यास्म ईयिता ईमिंतारौ ईमिंतार: ईयिंतासि ईय॑ितास्थः ईयितास्थ
ईय॑ितास्मि ईयितास्वः ईयितास्मः भ० ईयिष्यति ईयिष्यतः ईयिष्यन्ति
ईयिष्यसि ईयिष्यथ: ईप्रिंष्यथ
ईयिष्यामि ईयिष्याव: ईयिष्यामः | क्रि० ऐयिष्यत् ऐयिष्यताम् ऐयिष्यन्
सुसूय
immikintill milli
सुसूय
सूयाः
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
107
भ्वादिगण
ईय॑न्ति
ईय॑न्तु
ऐjिषुः
शुच्यास्व शुच्यितारौ
शुच्यिता
ऐयिष्यः ऐयिष्यतम् ऐयिष्यत ऐयिष्यम् ऐयिष्याव ऐयिष्याम ४०२. ईर्ण्य (ईप॒) ईर्ष्यायाम्।
ईर्ष्या कामजमसहनम्। व० ईय॑ति ईर्ष्णतः स० ईयेत् ईर्येताम् ईयेयुः प० ईर्ष्णतु/ईर्ण्यतात् ईर्ष्णताम् ह्य० ऐर्ण्यत् ऐर्श्यताम् ऐय॑न् अ० ऐशत् ऐय॑िष्टाम् प० ईञ्चिकार ईर्ष्याञ्चक्रतः ईर्ष्याञ्चक्रुः
ईर्ष्याम्बभूव/ ईर्ष्यामास आ० ईर्ष्यात् ईर्ष्यास्ताम् ईर्ष्यासुः
तथा ईर्ष्यात् ईर्ष्यास्ताम् ईर्ष्यासुः श्व० ईर्ष्णता ईjितारौ ईयितार: भ० ईयिष्यति ईjिष्यतः ईर्ण्यिष्यन्ति क्रि० ऐय॒िष्यत् ऐय॒िष्यताम् ऐयिष्यन्
४०३. शुच्यै (शुच्य्) अभिषवे। अभिषवो द्रवेण द्रवाणां परिवासनम् स्नानमिति चान्द्राः। व० शुच्यति शुच्यतः
शुच्यथ: शुच्यथ
शुच्यावः शुच्यामः स०
शुच्येताम् शुच्येयुः शुच्ये: शुच्येतम् शुच्येत
शुच्येयम् शुच्येव शुच्येम प० शुच्यतु/शुच्यतात् शुच्यताम् शुच्यन्तु
शुच्य/शुच्यतात् शुच्यतम् .. शुच्यत
शुच्यानि शुच्याव शुच्याम ह्य० अशुच्यत् अशुच्यताम् अशुच्यन्
अशुच्यः अशुच्यतम् अशुच्यत
अशुच्यम् अशुच्याव अशुच्याम अ० अशुच्यीत् अशुच्यिष्टाम् अशुच्यिषुः
अशुच्यी: अशुच्यिष्टम् अशुच्यिष्ट
अशुच्यिषम् अशुच्यिष्व अशुच्यिष्म प० शुशुच्य शुशुच्यतुः शुशुच्युः
शुशुच्यिथ शुशुच्यथुः शुशुच्य
शुशुच्य शुशुच्यिव शुशुच्यिम आ० शुच्य्यात् शुच्च्यास्ताम् शुच्य्यासुः शुच्य्याः
शुच्य्यास्तम् शुच्य्यास्त शुच्य्यासम् शुच्य्यास्व शुच्य्यास्म
तथा शुच्यात् शुच्यास्ताम् शुच्यासुः शुच्याः शुच्यास्तम् शुच्यास्त शुच्यासम्
शुच्यास्म
शुच्यितारः शुच्यितासि शुच्यितास्थ: शुच्यितास्थ
शुच्यितास्मि शुच्यितास्वः शुच्यितास्मः भ० शुच्यिष्यति शुच्यिष्यतः शुच्यिष्यन्ति शुच्यिष्यसि
शुच्यिष्यथ: शुच्यिष्यथ शुच्यिष्यामि शुच्यिष्यावः शुच्यिष्याम: क्रि० अशुच्यिष्यत् अशुच्यिष्यताम् अशुच्यिष्यश्
अशुच्यिष्यः अशुच्यिष्यतम् अशुच्यिष्यत अशुच्यिष्यम् अशुच्यिष्याव अशुच्यिष्याम
४०४. चुच्यै (चुच्य) अभिषवे।
द्रवेण द्रवाणां परिवासने इत्यर्थः। व० चुच्यति चुच्यतः चुच्यन्ति स० चुच्येत् चुच्येताम् चुच्येयुः प० चुच्यतु/चुच्यतात् चुच्यताम् चुच्यन्तु ह्य० अचुच्यत् अचुच्यताम् अचुच्यन् अ० अचुच्यीत्
अचुाच्यष्टाम् अचुच्यिषः प० चुचुच्य चुचुच्यतुः चुचुच्युः आ० चुच्यात् चुच्यास्ताम् चुच्यासुः
चुच्य्यात् चुच्च्यास्ताम् चुच्य्यासुः श्व० चुच्यिता चुच्यितारौ चुच्यितार: भ० चुच्यिष्यति चुच्यिष्यतः चुच्यिष्यन्ति क्रि० अचुच्यिष्यत् अचुच्यिष्यताम् अचुच्यिष्यन्
॥अथ रान्ता अष्टौ सेटश्च॥ ४०५. त्सर (त्सर्) छद्मगतौ छद्मप्रकारे व० त्सरति त्सरत: त्सरन्ति त्सरसि त्सरथः
त्सरथ
शुच्यन्ति
शुच्यसि शुच्यामि शुच्येत्
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
108
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
त्सरेयुः
अभ्रेयम्
त्सरामि त्सरावः त्सराम: ० त्सरेत् त्सरेताम्
त्सरे: त्सरेतम् त्सरेत त्सरेयम् त्सरेव
त्सरेम त्सरतु/त्सरतात् त्सरताम् त्सरन्तु त्सर/त्सरतात् त्सरतम् त्सरत त्सराणि त्सराव
त्सराम ह्य० अत्सरत् अत्सरताम् अत्सरन्
अत्सरः अत्सरतम् अत्सरत
अत्सरम् अत्सराव अत्सराम अ अत्सारीत् अत्सारिष्टाम अत्सारिषुः
अत्सारी: अत्सारिष्टम् अत्सारिष्ट
अत्सारिषम् अत्सारिष्व अत्सारिष्म ५० तत्सार तत्सरतुः तत्सरु:
तत्सरिथ तत्सरथुः तत्सर
तत्सार/तत्सर तत्सरिव तत्सरिम आ० त्सयात् त्सर्यास्ताम् त्सर्यासुः त्सया:
त्सर्यास्तम् त्सर्यास्त त्सयांसम् त्सर्यास्व त्सर्यास्म हा त्सरिता त्सरितारौ त्सरितारः
त्सरितासि त्सरितास्थ: त्सरितास्थ
त्सरितास्मि त्सरितास्वः त्सरितास्मः भ० त्सरिष्यति त्सरिष्यतः त्सरिष्यन्ति
त्सरिष्यसि त्सरिष्यथ: त्सरिष्यथ
त्सरिष्यामि त्सरिष्याव: त्सरिष्यामः कि० अत्सरिष्यत् अत्सरिष्यताम् ___ अत्सरिष्यन्
अत्सरिष्यतम् अत्सरिष्यत अत्सरिष्यम् अत्सरिष्याव अत्सरिष्याम ४०६. क्मर (क्मर) हूछने।
कौटिल्ये इत्यर्थः। व क्मरति
क्मरतः
क्मरन्ति स० क्मरेत् क्मरेताम्
प० क्मरतु/क्मरतात् क्मरताम् क्मरन्तु ह्य० अक्मरत् अक्मरताम् अक्मरन् अ० अक्मारीत् अक्मारिष्टाम् अक्मारिषुः प० चक्मार चक्मरतुः चक्मरु: आ० क्मर्यात् क्मर्यास्ताम् क्मर्यासुः श्व० क्मरिता क्मरितारौ क्मरितारः भ० मरिष्यति क्मरिष्यतः क्मरिष्यन्ति क्रि० अक्मरिष्यत् अक्मरिष्यताम् अक्मरिष्यन्
अभ्र बभ्र मभ्र गतौ।
४०७. अभ्र (अध्) गतौ। व० अभ्रति अभ्रतः
अभ्रन्ति अभ्रसि
अभ्रथः अभ्रथ अभ्रामि अभ्राव:
अभ्राम: स० अभ्रेत् अभ्रेताम् अभ्रेयुः अभ्रे: अभ्रेतम्
अभ्रेत अभ्रेव
अभ्रेम प० अभ्रतु/अभ्रतात् अभ्रताम्
अभ्रन्तु अभ्र/अभ्रतात् अभ्रतम् अभ्रत अभ्राणि अभ्राव
अभ्राम ह्य० आभ्रत् आभ्रताम् आभ्रन् आभ्रः आभ्रतम्
आभ्रत आभ्रम् आभ्राव आभ्राम अ० आभ्रीत् आभ्रिष्टाम् आभ्रिषुः आभ्री:
आभ्रिष्टम् आभ्रिष्ट आभ्रिषम् आभ्रिष्व आभ्रिष्म प० आनभ्र आनभ्रतुः आनभ्रः
आनभ्रिथ आनभ्रथुः आनभ्र आनभ्र
आनभ्रिव आनभ्रिम आ० अध्यात्
अभ्रयास्ताम् अभ्रयासुः अभ्रयाः अभ्रयास्तम् अभ्रयास्त
अभ्रयासम् अभ्रयास्व अभ्रयास्म श्व० अभ्रिता अभ्रितारौ अभ्रितार:
क्मरेयुः
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
109
चरेयुः चरन्तु
बभ्रेयुः
धोरतः धोरेताम्
धोरेयुः धोरन्तु
अभ्रितासि अभ्रितास्थ: अभ्रितास्थ
अभ्रितास्मि अभ्रितास्वः अभ्रितास्मः भ० अभ्रिष्यति अभ्रिष्यतः अभ्रिष्यन्ति
अभ्रिष्यसि अभ्रिष्यथ: अभ्रिष्यथ
अभ्रिष्यामि अभ्रिष्याव: अभ्रिष्यामः क्रि० आभ्रिष्यत् आभ्रिष्यताम् आभ्रिष्यन्
आभ्रिष्यः आभ्रिष्यतम् आभ्रिष्यत आभ्रिष्यम् आभ्रिष्याव आभ्रिष्याम
__ ४०८. बभ्र (बभ्र) गतौ। व० बभ्रति बभ्रतः
बभ्रन्ति स० बभ्रेत् बभ्रेताम् प० बभ्रतु/बभ्रतात् बभ्रताम् बभ्रन्तु ह्य० अबभ्रत् अबभ्रताम् अबभ्रब् अ० अबभ्रीत् अबभ्रिष्टाम् अबभ्रिषुः प० बबभ्र बबभ्रतुः बबभ्रुः आ० बभ्यात् बभ्यास्ताम् बभ्यासुः श्व० बभ्रिता बभ्रितारौ बभ्रितारः भ० बभ्रिष्यति बभ्रिष्यतः बभ्रिष्यन्ति क्रि० अबभ्रिष्यत् अबभ्रिष्यताम् अबभ्रिष्यन्
४०९. मभ्र (म) गतौ। व० मभ्रति
मभ्रतः
मभ्रन्ति स० मभ्रेत् मभ्रेताम् प० मभ्रतु/मभ्रतात् मभ्रताम्
मभ्रन्तु ह्य० अमभ्रत् अमभ्रताम् अमभ्रन् अ० अमभ्रीत् अमभ्रिष्टाम् अमभ्रिषुः प० ममभ्र
ममभ्रतुः आ० मभ्यात् मभ्यास्ताम् मभ्यासुः श्व० मभ्रिता मभ्रितारौ
मभ्रितारः म० मभ्रिष्यति मभ्रिष्यतः मभ्रिष्यन्ति क्रि० अमभ्रिष्यत् अमभ्रिष्यताम् अमभ्रिष्यन्
४१०. चर (चर) भक्षणे च।
चकाराद्गतौ।
व० चरति
चरतः
चरन्ति स० चरेत् चरेताम् प० चरतु/चरतात् चरताम् ह्य० अचरत् अचरताम्
अचरन् अ० अचारीत् अचारिष्टाम् अचारिषुः प० चचार चैरतुः
चेरुः आ० चर्यात् चर्यास्ताम् चर्यासुः श्व० चरिता चरितारौ चरितारः भ० चरिष्यति चरिष्यतः चरिष्यन्ति क्रि० अचरिष्यत् अचरिष्यताम् अचरिष्यन्
४११. धोर (धोर्) गतेश्चातुर्ये। व० धोरति
धोरन्ति स० धोरेत्
धोरतु/धोरतात् धोरताम् ह्य० अधोरत्
अधोरताम्
अधोरन् अ० अधोरीत् अधोरिष्टाम् अधोरिषुः प० दुधोर दुधोरतुः दुधोरु: आ० धोर्यात् धोर्यास्ताम् धोर्यासुः श्व० धोरिता धोरितारौ भ० धोरिष्यति धोरिष्यतः धोरिष्यन्ति क्रि० अधोरिष्यत् अधोरिष्यताम् अधोरिष्यन्
४१२. खोर (खोर) प्रतीघाते।
गतेरित्यनुवृत्तेर्गतिप्रतीघाते। व० खोरति खोरतः खोरन्ति स० खोरेत् खोरेताम् खोरेयुः प० खोरतु/खोरतात् खोरताम् ह्य० अखोरत् अखोरताम् अखोरन् अ० अखोरीत् अखोरिष्टाम् अखोरिषुः प० चुखोर चुखोरतुः चुखोरुः आ० खोर्यात् खोर्यास्ताम् श्व० खोरिता खोरितारौ खोरितार: भ० खोरिष्यति खोरिष्यतः खोरिष्यन्ति
धोरितारः
मभ्रेयुः
ममभ्रुः
खोरन्तु
आरो
खोर्यासुः
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
110
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मीलन्तु
देलतुः
देलुः
क्रि० अखोरिष्यत् अखोरिष्यताम् अखोरिष्यन्
४१३. दल (दल्) विशरणे।
अथ लान्ताश्चत्वारिंशत्सेटश्च। व० दलति दलतः दलन्ति स० दलेत्
दलेताम्
दलेयुः प० दलतु/दलतात् दलताम् दलन्तु ह्य० अदलत् अदलताम् अदलन् अ० अदालीत् अदालिष्टाम् अदालिषुः प० ददाल आ० दल्यात् दल्यास्ताम् दल्यासुः श्व० दलिता दलितारौ दलितार: भ० दलिष्यति दलिष्यतः दलिष्यन्ति क्रि० अदलिष्यत् अदलिष्यताम् अदलिष्यन्
४१४. त्रिफला (फल) विशरणे। व० फलति फलतः फलन्ति स० फलेत फलेताम् फलेयुः प० फलतु/फलतात् फलताम् फलन्तु ह्य० अफलत् अफलताम् अफलन् अ० अफालीत् अफालिष्टाम् अफालिषुः प० पफाल फेलतुः आ० फल्यात् फल्यास्ताम् फल्यासुः श्व० फलिता फलितारौ फलितारः भ० फलिष्यति फलिष्यतः फलिष्यन्ति क्रि० अफलिष्यत् अफलिष्यताम् अफलिष्यन
४१५. मील (मील) निमेषणे। व० मीलति
मीलन्ति मीलसि मीलथ: मीलथ मीलामि मीलावः
मीलामः स० मीलेत् मीलेताम्
मीलेतम् मीलेत
मीलेयम् मीलेव मीलेम प० मीलतु/मीलतात् मीलताम्
मील/मीलतात् मीलतम् मीलत मीलानि मीलाव
मीलाम ह्य० अमीलत् अमीलताम्
अमीलन् अमील:
अमीलतम् अमीलत अमीलम् अमीलाव अमीलाम अ० अमीलीत् अमीलिष्टाम् अमीलिषुः
अमीली: अमीलिष्टम् अमीलिष्ट
अमीलिषम् अमीलिष्व अमीलिष्म प० मिमील मिमीलतुः
मिमीलुः मिमीलिथ मिमीलथुः
मिमील मिमील मिमीलिव मिमीलिम आ० मील्यात् मील्यास्ताम्
मील्यासुः मील्याः
मील्यास्तम् मील्यास्त मील्यासम् मील्यास्व मील्यास्म श्व० मीलिता मीलितारौ मीलितार: मीलितासि मीलितास्थः
मीलितास्थ मीलितास्मि मीलितास्वः मीलितास्मः भ० मीलिष्यति मीलिष्यतः मीलिष्यन्ति मीलिष्यसि मीलिष्यथ:
मीलिष्यथ मीलिष्यामि मीलिष्याव: मीलिष्यामः क्रि० अमीलिष्यत् अमीलिष्यताम् अमीलिष्यन्
अमीलिष्यः अमीलिष्यतम् अमीलिष्यत अमीलिष्यम् अमीलिष्याव अमीलिष्याम ४१६. श्मील (श्मील) निमेषणे।
निमेषणं सङ्कोचः। व० श्मीलति श्मीलतः श्मीलन्ति स० श्मीलेत् श्मीलेताम् श्मीलेयुः प० श्मीलतु/श्मीलतात्श्मीलताम्
श्मीलन्तु ह्य० अश्मीलत् अश्मीलताम् अश्मीलन् अ० अश्मीलीत् अश्मीलिष्टाम् अश्मीलिषुः
फेलुः
मीलत:
मीलेयुः
मीले:
१. निमेषणं सङ्कोचः।
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
प०
शिश्मील
आ० मील्यात्
왕이
मीलिता
भ०
मीलिष्यति
क्रि० अम्मीलिष्यत्
४१७.
आ० स्मील्यात्
श्व० स्मीलिता
मील्यासुः
मीलितारः
मीलिष्यन्ति
अम्मीलिष्यताम् अम्मीलिष्यन्
स्मील (स्मील) निमेषणे ।
निमेषणं सङ्कोचः ।
व० स्मीलति
स्मीलतः
स्मीलन्ति
स० स्मीलेत् स्मीताम्
स्मीलेयुः
प० स्मीलतु/स्मीलतात् स्मीलताम्
मीलन्तु
ह्य० अस्मीलत् अस्मीलताम् अस्मीलन्
अ० अस्मीलीत्
अस्मीलिष्टाम् अस्मीलिषुः
प० सिस्मील
सिस्मीलतुः सिस्मीलुः
स्मील्यास्ताम् स्मील्यासुः स्मीलितारौ
स्मीलितार:
भ० स्मीलिष्यति
स्मीलिष्यतः
स्मीलिष्यन्ति
क्रि० अस्मीलिष्यत् अस्मीलिष्यताम् अस्मीलिष्यन्
४१८. क्ष्मील (क्ष्मील) निमेषणे ।
निमेषणं सङ्कोचः ।
व० क्ष्मीलति
क्ष्मीलतः
सo क्ष्मीलेत् क्ष्मीलेताम्
प० क्ष्मीलतु /क्ष्मीलतात् क्ष्मीलताम्
ह्य० अक्ष्मीलत् अक्ष्मीलताम्
अ० अक्ष्मीलीत्
प० चिक्ष्मील
आ० क्ष्मील्यात्
왕이
क्ष्मीलिता
भ० क्ष्मीलिष्यति
क्रि० अक्ष्मीलिष्यत्
व०
पीलति
शिश्मीलतुः
शिश्मीलुः
मील्यास्ताम्
मीलितारौ
श्मीलिष्यतः
क्ष्मीलन्ति
क्ष्मीलेयुः
क्ष्मीलन्तु
अक्ष्मीलन्
अक्ष्मीलिष्टाम् अक्ष्मीलिषुः
चिक्ष्मीलतुः चिक्ष्मीलुः
क्ष्मील्याक्ष्ताम् क्ष्मील्यासुः
क्ष्मीलितारौ
क्ष्मीलितारः
क्ष्मीलिष्यतः
क्ष्मीलिष्यन्ति
अक्ष्मीलिष्यताम् अक्ष्मीलिष्यन्
४१९. पील (पील) प्रतिष्टम्भे ।
प्रतिष्टम्भो रोपणतम्
पीलतः
पीलन्ति
पीलेत्
पीताम्
पीलेयुः
पीलतु / पीलतात् पीलताम्
पीलन्तु
अपील
अपीलताम्
अपीलन्
अपीलिष्टाम्
अपीलिषुः
पिपीलतुः पिपीलुः
पील्यास्ताम्
पील्यासुः
पीलितारौ
पीलितार:
पीलिष्यतः
पीलिष्यन्ति
अपीलिष्यताम्
अपीलिष्यन्
४२०. णील (नील) वर्णे ।
वर्णोपलक्षितायां क्रियायामित्यर्थः ।
नीलन्ति
नीलेयुः
नीलन्तु
स०
प०
ह्य०
अ० अपीलीत्
प० पिपील
आ० पील्यात्
श्व० पीलिता
भ०
पीलिष्यति
क्रि० अपीलिष्यत्
व० नीलति
नीलतः
सनत्
नीलेताम्
प० नीलतु / नीलतात् नीलताम्
ह्य० अनीलत्
अनीलताम्
अ० अनीलीत्
अनीलिष्टाम् अनीलिषुः
प० निनील
निनीलुः
आ० नील्यात्
नील्यासुः
श्व० नीलिता
नीलितार:
भ० नीलिष्यति
नीलिष्यन्ति
क्रि० अनीलिष्यत्
अनीलिष्यताम् अनीलिष्यन्
व० शीलति
स०
प०
ह्य० अशीलत्
अ० अशीलीत्
प० शिशील
आ० शील्यात्
श्व० शीलिता
भ० शीलिष्यति
निनीलतुः
नील्यास्ताम्
नीलितारौ
नीलिष्यतः
४२१. शील (शी) समाधौ ।
समाधिरैकाग्यम्।
शीलत:
शीलेत्
शीताम्
शीलतु / शीलतात् शीलताम्
अनीलन्
शीलन्ति
शीलेयुः
शीलन्तु
अशीलताम्
अशीलन्
अशीलिष्टाम् अशीलिषुः
शिशीलतुः शिशीलुः
शील्यास्ताम्
शील्यासुः
शीलितारौ
शीलितार:
शीलिष्यतः
शीलिष्यन्ति
111
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
112
क्रि० अशीलिष्यत्
४२२.
व० कूलति
स० कूलेत्
प०
व० कीलति
स० कीलेत् कीताम्
:
प० कीलतु/कीलतात् कीलताम्
कीलन्तु
ह्य० अकीलत्
अकीलताम्
अकीलन्
अ० अकीलीत्
अकीलिष्टाम् अकीलिषुः
प०
चिकील
चिकीलतुः
चिकीलुः
आ० कील्यात्
कील्यास्ताम् कील्यासुः
व० कीलिता
कीलितारौ
कीलितार:
भ० कीलिष्यति
कीलिष्यतः
कीलिष्यन्ति
क्रि० अकीलिष्यत् अकीलिष्यताम् अकीलिष्यन्
४२३. कूल (कूल्) आवरणे ।
कूलतः
कूताम्
कूलतु/कूलतात् कूलताम्
ह्य० अकूलत् अकूलताम्
अ० अकूलीत्
कूट
प० चुकूल
आ० कूल्यात्
श्व० कूलिता
भ० कूलिष्यति
क्रि० अकूलिष्यत्
अशीलिष्यताम् अशीलिष्यन्
कील (कील) बन्धे।
कीलतः
कूलन्ति
कूलेयुः
कूलन्तु
अकूलन्
अकूलिषुः
चुकूलुः
कूल्यासुः
कूलितार:
कूलिष्यन्ति
अकूलिष्यताम् अकूलिष्यन्
चुकूलतुः
कूल्यास्ताम्
कूलितारौ
कूलिष्यतः
४२४. शूल (शूल्) रुजायाम् ।
शूलन्ति
शूलेयुः
शूलन्तु
अशून्
अशूलिषुः
व० शूलति
शूलत:
स० शूलेत् शूलेताम्
प०
शूलतु / शूलतात् शूलताम्
ह्य० अशूलत्
अ० अशूलीत्
प० शुशूल
आ० शूल्यात्
कीलन्ति
अशूलताम्
अष्टिम्
शुशूलतुः
शूल्यास्ताम्
शुशूलुः
शूल्यासुः
श्व० शूलिता
भ० शूलिष्यति
क्रि० अशूलिष्यत्
व० तूलति
स.
तूत्
प०
तूलतु/ तूलतात्
ह्य०
अतूलत्
अ० अतूलीत्
प० तुतूल
आ० तूल्यात्
श्व० तूलिता
भ० तूलिष्यति
क्रि० अतूलिष्यत्
To
स० पूलेत्
प०
ह्य०
अ०
प०
पुपूल
आ० पूल्यात्
श्व० पूलिता
अशूलिष्यताम्
४२५. तूल (तूल्) निष्कर्षे । १
तूलत:
तूलन्ति
तूताम्
तूलेयुः
तूलताम्
तूलन्तु
अतूलताम्
अतूलन्
अतूलिष्टाम् अतूलिषुः
तुतूलुः
तूल्यासुः
तूलितार:
पूलतु/ पूलतात्
अपूलत्
अपूलीत्
भ० पूलिष्यति
क्रि० अपूलिष्यत्
शूलितारौ
शूलिष्यतः
प०
ह्य० अमूलत्
तुतूलतुः
तुल्यास्ताम्
तूलितारौ
तूलिष्यत:
अतुलिष्यताम्
४२६. पूल (पूल्) संघाते ।
पूलत:
ताम्
पूलताम्
अपूलताम्
अष्टिम्
पुपूलतुः
पूल्यास्ताम्
पूलितारौ
पूलिष्यतः
मूलतः
व० मूलति समूलेत् मूलेताम्
मूलतु/मूलतात् मूलताम्
अमूलताम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शूलितार:
शूलिष्यन्ति
अशूलिष्यन्
१. निष्कर्षोऽन्तर्गतस्य बहिर्निःसारणतम् ।
अपूलिष्यताम् ४२७. मूल (मूल्) प्रतिष्ठायाम् ।
तूलिष्यन्ति
अतूलियन्
पूलन्ति
पूलेयुः
पूलन्तु
अपूलन्
अपूलिषुः
पुपूलुः
पूल्यासुः
पूलितार:
पूलिष्यन्ति
अपूलिष्यन्
मूलन्ति
मूलेयुः
मूलन्तु
अमूलन्
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
113
फुल्लसि
फुल्लेत
अ० अमूलीत् अमूलिष्टाम् अमूलिषुः प० मुमूल मुमूलतुः मुमूलुः आ० मूल्यात् मूल्यास्ताम् मूल्यासुः श्व० मूलिता मूलितारौ मूलितारः भ० मूलिष्यति मूलिष्यतः मूलिष्यन्ति क्रि० अमूलिष्यत् अमूलिष्यताम् अमूलिष्यन्
४२८. फूल (फल) निष्पत्तौ।
त्रिफला (४१४) वत्
४२९. फुल्ल (फुल्ल्) विकसने। व० फुल्लति फुल्लतः फुल्लन्ति
फुल्लथः फुल्लथ फुल्लामि
फुल्लावः फुल्लामः स० फुल्लेत् फुल्लेताम् फुल्लेयुः
फुल्ले: फुल्लेतम् फुल्लेयम् फुल्लेव फुल्लेम फुल्लतु/फुल्लतात् फुल्लताम् फुल्लन्तु फुल्ल/फुल्लतात् फुल्लतम्
फुल्लत फुल्लानि फुल्लाव फुल्लाम अफुल्लत् अफुल्लताम् अफुल्लन् अफुल्ल: अफुल्लतम्
अफुल्लत अफुल्लम् अफुल्लाव अफुल्लाम अ० अफुल्लीत् अफुल्लिष्टाम् अफुल्लिषुः
अफुल्ली : अफुल्लिष्टम् अफुल्लिष्ट अफुल्लिषम् अफुल्लिष्व अफुल्लिष्म पुफुल्ल पुफुल्लतुः पुफुल्लु: पुफुल्लिथ पुफुल्लथुः पुफुल्ल
पुफुल्ल पुफुल्लिव पुफुल्लिम आ० फुल्ल्यात् फुल्ल्यास्ताम् फुल्ल्यासुः
फुल्ल्या : फुल्ल्यास्तम् फुल्ल्यास्त
फुल्ल्यासम् फुल्ल्यास्व फुल्ल्यास्म श्व० फुल्लिता फुल्लितारौ फुल्लितारः
फुल्लितासि फुल्लितास्थः फुल्लितास्थ
फुल्लितास्मि फुल्लितास्वः फुल्लितास्मः भ० फुल्लिष्यति फुल्लिष्यतः फुल्लिष्यन्ति
फुल्लिष्यसि फुल्लिष्यथः फुल्लिष्यथ
फुल्लिष्यामि फुल्लिष्याव: फुल्लिष्याम: क्रि० अफुल्लिष्यत् अफुल्लिष्यताम् अफुल्लिष्यन्
अफुल्लिष्यः अफुल्लिष्यतम् अफुल्लिष्यत अफुल्लिष्यम् अफुल्लिष्याव अफुल्लिष्याम
४३०. चुल्ल (चुल्ल्) हावकरणे।
मैथुनेच्छाप्रेरितशरीरविकारो हावकरणम्। व० चुल्लति चुल्लतः .. चुल्लन्ति स० चुल्लेत् चुल्लेताम् चुल्लेयुः
चुल्लतु/चुल्लतात् चुल्लताम् चुल्लन्तु ह्य० अचुल्लत् अचुल्लताम् अचुल्लन् अ० अचुल्लीत् अचुल्लिष्टाम् अचुल्लिषु: प० चुचुल्ल चुचुल्लतुः चुचुल्लुः आ० चुल्ल्यात् चुल्ल्यास्ताम् चुल्ल्यासुः श्व० चुल्लिता चुल्लितारौ चुल्लितार: भ० चुल्लिष्यति चुल्लिष्यतः चुल्लिष्यन्ति क्रि० अचुल्लिष्यत् अचुल्लिष्यताम् अचुल्लिष्यन् ४३१. चिल्ल (चिल्ल्) शैथिल्ये च।
चकाराद्धावकरणे। व० चिल्लति चिल्लतः चिल्लन्ति स० चिल्लेत् चिल्लेताम् चिल्लेयुः प० चिल्लतु/चिल्लतात् चिल्लताम् चिल्लन्तु ह्य० अचिल्लत् अचिल्लताम् अचिल्लन् अ० अचिल्लीत् अचिल्लिष्टाम् अचिल्लिषुः प० चिचिल्ल चिचिल्लतुः चिचिल्लु: आ० चिल्ल्यात् चिल्ल्यास्ताम् चिल्ल्यासुः श्व० चिल्लिता चिल्लितारौ चिल्लितार: भ० चिल्लिष्यति चिल्लिष्यतः चिल्लिष्यन्ति क्रि० अचिल्लिष्यत् अचिल्लिष्यताम् अचिल्लिष्यन्
प०
पफ
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
114
व० पेलति
सत्
प०
४३२. पेलू (पेल) गतौ ।
पेलत:
पेलेताम्
पेलताम्
अपेलताम्
अपेष्टाम्
पिपेलतुः
पेल्यास्ताम्
पेलितारौ
पेलिष्यतः
पेलतु / पेलतात्
० अपेलत्
अ० अपेलीत्
प०
पिपेल
आ० पेल्यात्
व० पेलिता
भ० पेलिष्यति
क्रि० अपेलिष्यत्
पेलन्ति
पेलेयुः
पेलन्तु
अपेलन्
अपेलिषुः
पिपेलुः
पेल्यासुः
पेलितार:
पेलिष्यन्ति
अपेलिष्यन्
अपेलिष्यताम्
४३३. फेलृ (फेल्) गतौ ।
फेलत:
व० फेलति
स० फेलेत् फेलेताम्
फेलेयुः
प० फेलतु / फेलतात् फेलताम्
फेलन्तु
० अफेलत् अफलताम्
अफेन्
अ० अफेलीत्
अष्ट
अफेलिषुः
प० पिफेल
पिफेलतुः
पिफेलुः
आ० फेल्यात्
फेल्यास्ताम्
फेल्यासुः
श्र० फेलिता
फेलितारौ
फेलितार:
भ०
फेलिष्यति फेलिष्यतः फेलिष्यन्ति क्रि० अफेलिष्यत् अफेलिष्यताम् अफेलिष्यन् ४३४. शेल (शेल्) गतौ ।
शेलतः
शेलन्ति
व० शेलति
स० शेलेत् शेताम्
प० शेलतु / शेलतात् शेलताम्
ह्य० अशेलत् अशलताम्
अ० अशेीत् अलिष्टाम्
प० शिशेल
शिशेलतुः
आ० शेल्यात्
शेल्यास्ताम्
श्र० शेलिता
शेलितारौ
फेलन्ति
शेलेयुः
शेलन्तु
अशेलन्
अशेलिषुः
शिशेलुः
शेल्यासुः
शेलितार:
भ० शेलिष्यति
क्रि० अशेलिष्यत्
आ० सेल्यात्
श्व० सेलिता
व० सेलति
स० सेलेत्
सेताम्
प० सेलतु/सेलतात् सेलताम्
ह्य असेल
असेलताम्
अ० असेल
अष्टिम्
प० सिषेल
सिषेलतुः
सेल्यास्ताम्
सेलितारौ
सेलिष्यतः
असेलिष्यताम् ४३६. सेल
(उपरिवत्)
भ० सेलिष्यति
क्रि० असेलिष्यत्
To
वेह्नसि
हामि
शेलिष्यतः
अशेलिष्यताम्
४३५. बेलृ (सेल्) गतौ ।
सेलत:
सह्नेत्
वेह्नेः
वेम्
प० वेह्नतु / वेह्रतात्
वेह्न/वेह्णतात्
वेह्नानि
ह्य अवेहृत्
अवेह्नः
अवेह्णम्
अ० अवेह्णीत्
४३७. वेहलृ (वेह्ल्) गतौ।
वेह्नतः
वेह्नथ:
वेह्नाव:
वेह्णेताम्
वेम्
वेह्नेव
अवेह्लीः
अवेह्निषम्
आ० यात्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शेलिष्यन्ति
अशेलिष्यन्
वेह्लताम्
वेह्नतम्
वेह्लाव
अहृताम्
अम्
अव
अष्टम्
अवेह्निष्टम्
अवेष्वि
वेयास्ताम्
सेलन्ति
सेलेयुः
सेलन्तु
असेलन्
असेलिषुः
सिषेलुः
सेल्यासुः
सेलितार:
सेलिष्यन्ति
असेलिष्यन्
वेह्णन्ति
वेह्रथ
वेह्लाम:
वेह्नेयुः
वेत
वेह्नेम
वेह्णन्तु
वेह्नत
वेह्लाम
अवेन्
अवेत
अाम
अवेह्निषुः
अवेह्निष्ट
अवेष्मि
वेड्यासुः
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
115
सेलिथ
सेलथुः
सेल सेलिम
ससाल/ससल सेलिव
विवेह्रतुः विवेह्रथुः
विवेहलुः विवेत
वेहितारः
वेयाः वेढ्यास्तम् वेढ्यास्त
वेलयासम् वेयास्व वेयास्म प० विवेल
विवेह्निथ
विवेह विवेलिव विवेलिम श्व० वेह्निता वेह्नितारौ
वेह्नितासि वेलितास्थः वेलितास्थ
वेह्नितास्मि वेलितास्व: वेलितास्मः भ० वेलिष्यति वेलिष्यतः वेलिष्यन्ति
वेलिष्यसि वेलिष्यथ: वेलिष्यथ
वेलिष्यामि वेलिष्याव: वेलिष्यामः क्रि० अवेलिष्यत् अवेलिष्यताम् अवेलिष्यन्
अवेलिष्यः अवेलिष्यतम् अवेलिष्यत अवेलिष्यम् अवेलिष्याव अवेलिष्याम
४३८. सल (सल्) गतौ। व० सलति सलतः
सलन्ति सलसि सलथ:
सलथ सलामि सलाव:
सलामः स० सलेत् सलेताम् सलेयुः
सलेः सलेतम् सलेत
सलेयम् सलेव सलेम प० सलतु/सलतात् सलताम्
सलन्तु सल/सलतात् सलतम् सलत सलानि सलाव
सलाम ह्य० असलत् असलताम् असलन्
असलः असलतम् असलत
असलम् असलाव असलाम अ० असालीत् असालिष्टाम् असालिषुः
असाली: असालिष्टम् असालिष्ट
असालिषम् असालिष्व असालिष्म प० ससाल
सेलतुः
आ० सल्यात् सल्यास्ताम् सल्यासुः
सल्याः सल्यास्तम् सल्यास्त
सल्यासम् सल्यास्व सल्यास्म श्व० सलिता सलितारौ
सलितार: सलितासि सलितास्थः सलितास्थ
सलितास्मि सलितास्वः सलितास्मः भ० सलिष्यति सलिष्यतः सलिष्यन्ति
सलिष्यसि सलिष्यथ: सलिष्यथ
सलिष्यामि सलिष्याव: सलिष्यामः क्रि० असलिष्यत् असलिष्यताम् असलिष्यन्
असलिष्यः असलिष्यतम् असलिष्यत असलिष्यम् असलिष्याव असलिष्याम
४३९. तिल (तिल्) गतौ। व० तेलति तेलतः तेलन्ति स० तेलेत्
तेलेताम् प० तेलतु/तेलतात् तेलताम्
अतेलत् अतेलताम् अ० अतेलीत् अतेलिष्टाम्
अतेलिषुः प० तितिल तितिलतुः आ० तिल्यात् तिल्यास्ताम्
तिल्यासुः श्व० तेलिता तेलितारौ तेलितारः भ० तेलिष्यति तेलिष्यतः तेलिष्यन्ति क्रि० अतेलिष्यत् अतेलिष्यताम् अतेलिष्यन्
४४०. तिल्ल (तिल्ल) गतौ। व० तिल्लति तिल्लतः तिल्लन्ति स० तिल्लेत् तिल्लेताम् तिल्लेयुः प० तिल्लतु/तिल्लतात् तिल्लताम् तिल्लन्तु ह्य० अतिल्लत् अतिल्लताम् अतिल्लन् अ० अतिल्लीत् अतिल्लिष्टाम् अतिल्लिषुः
तेलेयुः तेलन्तु अतेलन्
तितिलुः
सेलुः
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
116
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अवेलिषुः
वेल्यासुः
चेलेयुः
चिचेलतुः
चिचेलुः चेल्यासुः
प० तितिल्ल तितिल्लतुः तितिल्लुः आ० तिल्ल्यात् तिल्ल्यास्ताम् तिल्ल्यासुः श्व० तिल्लिता तिल्लितारौ तिल्लितारः भ० तिल्लिष्यति तिल्लिष्यतः तिल्लिष्यन्ति क्रि० अतिल्लिष्यत् अतिल्लिष्यताम् अतिल्लिष्यन्
४४१. पल्ल (पल्ल्) गतौ। व० पल्लति पल्लतः पल्लन्ति स० पल्लेत् पल्लेताम् पल्लेयुः प० पल्लतु/पल्लतात् पल्लताम् पल्लन्तु ह्य० अपल्लत् अपल्लताम् अपल्लन् अ० अपल्लीत् अपल्लिष्टाम् अपल्लिषुः प० पपल्ल पपल्लतुः पपल्लः आ० पल्ल्यात् पल्ल्यास्ताम्
पल्ल्यासुः व० पल्लिता पल्लितारौ पल्लितारः भ० पल्लिष्यति पल्लिष्यतः पल्लिष्यन्ति क्रि० अपल्लिष्यत् अपल्लिष्यताम् अपल्लिष्यन्
४४२. वेल्ल (वेल्ल) गतौ। व० वेल्लति वेल्लतः वेल्लन्ति स० वेल्लेत् वेल्लेताम् वेल्लेयुः प० वेल्लतु/वेल्लतात् वेल्लताम्
वेल्लन्तु ह्य० अवेल्लत् अवेल्लताम् अवेल्लन् अ० अवेल्लीत् अवेल्लिष्टाम् अवेल्लिषुः प० विवेल्ल विवेल्लतुः विवेल्लुः आ० वेल्ल्यात् वेल्ल्यास्ताम्
वेल्ल्यासुः श्व० वेल्लिता वेल्लितारौ वेल्लितार: भ० वेल्लिष्यति वेल्लिष्यतः वेल्लिष्यन्ति क्रि० अवेल्लिष्यत् अवेल्लिष्यताम् अवेल्लिष्यन्
४४३. वेल (वेल्) चलने। व० वेलति वेलतः वेलन्ति स० वेलेत् वेलेताम् । प० वेलतु/वेलतात् वेलताम्
ह्य० अवेलत् अवेलताम् अवेलन् अ० अवेलीत् अवेलिष्टाम् प० विवेल
विवेलतुः
विवेलुः आ० वेल्यात् वेल्यास्ताम् श्व० वेलिता वेलितारौ वेलितारः भ० वेलिष्यति वेलिष्यतः वेलिष्यन्ति क्रि० अवेलिष्यत् अवेलिष्यताम् अवेलिष्यन्
४४४. चेल (चेल्) चलने। व० चेलति चेलतः चेलन्ति स० चेलेत्
चेलेताम् प० चेलतु/चेलतात् चेलताम् चेलन्तु ह्य० अचेलत् ___ अचेलताम् अचेलन् अ० अचेलीत् अचेलिष्टाम् अचेलिषुः प० चिचेल आ० चेल्यात्
चेल्यास्ताम् श्व० चेलिता चेलितारौ चेलितारः भ० चेलिष्यति चेलिष्यतः चेलिष्यन्ति क्रि० अचेलिष्यत् अचेलिष्यताम् अचेलिष्यन्
४४५. केल (केल्) चलने। व० केलति
केलन्ति स० केलेत् केलेताम् प० केलतु/केलतात् केलताम् ह्य० अकेलत् अकेलताम् अकेलन् अ० अकेलीत् अकेलिष्टाम् अकेलिषुः प० चिकेल चिकेलतुः आ० केल्यात्
केल्यास्ताम् श्व० केलिता केलितारौ केलितारः भ० केलिष्यति केलिष्यतः केलिष्यन्ति क्रि० अकेलिष्यत् अकेलिष्यताम् अकेलिष्यन्
४४६. क्वेल (क्वेल्) चलने व० क्वेलति क्वेलतः क्वेलन्ति
केलतः
केलेयुः केलन्तु
चिकेलुः केल्यासुः
वेलेयुः वेलन्तु
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
चिक्वेलुः
____## # # # # # # # # # # # # # # # # # #
खेलेयुः खेलन्तु
स० क्वेलेत् क्वेलेताम् क्वेलेयुः प० क्वेलतु/क्वेलतात् क्वेलताम्
क्वेलन्तु ह्य० अक्वेलत् अक्वेलताम् अक्वेलन् अ० अक्वेलीत् अक्वेलिष्टाम् अक्वेलिषुः प० चिक्वेल चिक्वेलतुः आ० क्वेल्यात् क्वेल्यास्ताम् क्वेल्यासुः श्व० क्वेलिता क्वेलितारौ क्वेलितारः भ० क्वेलिष्यति क्वेलिष्यतः क्वेलिष्यन्ति क्रि० अक्वेलिष्यत् अक्वेलिष्यताम् अक्वेलिष्यन्
४४७. खेल (खेल्) चलने। व० खेलति खेलतः खेलन्ति स० खेलेत् खेलेताम् प० खेलतु/खेलतात् खेलताम् ह्य० अखेलत् अखेलताम् अखेलन् अ० अखेलीत् अखेलिष्टाम् अखेलिषुः प० चिखेल चिखेलतुः आ० खेल्यात् खेल्यास्ताम् श्व० खेलिता खेलितारौ खेलितारः भ० खेलिष्यति खेलिष्यतः खेलिष्यन्ति क्रि० अखेलिष्यत् अखेलिष्यताम् अखेलिष्यन्
४४८. स्खलु (स्खल्) चलने। व० स्खलति स्खलतः स्खलन्ति स० स्खलेत् स्खलेताम् स्खलेयुः प० स्खलतु/स्खलतात् स्खलताम् स्खलन्तु ह्य० अस्खलत् अस्खलताम् अस्खलन् अ० अस्खालीत् अस्खालिष्टाम् अस्खालिषुः प० चस्खाल चस्खलतुः
चस्खलुः आ० स्खल्यात् स्खल्यास्ताम् स्खल्यासुः श्व० स्खलिता स्खलितारौ स्खलितार: भ० स्खलिष्यति स्खलिष्यतः स्खलिष्यन्ति क्रि० अस्खलिष्यत् अस्खलिष्यताम् अस्खलिष्यन
श्वलेयुः
चिखेलुः खेल्यासुः
४४९. खल (खल्) संचये च।
चकारच्चलने। व० खलति खलतः खलन्ति स० खलेत् खलेताम् खलेयुः प० खलतु/खलतात् खलताम् खलन्तु ह्य० अखलत् अखलताम् अखलन् अ० अखालीत् अखालिष्टाम् अखालिषुः प० चखाल चखलतुः चखलुः आ० खल्यात् खल्यास्ताम्
खल्यासुः श्व० खलिता खलितारौ खलितार: भ० खलिष्यति खलिष्यतः खलिष्यन्ति क्रि० अखलिष्यत् अखलिष्यताम् अखलिष्यन्
४५०. श्वल (श्वल्) आशुगतौ। व० श्वलति श्वलतः श्वलन्ति स० श्वलेत् श्वलेताम् प० श्वलतु/श्वलतात्श्वलताम्
श्वलन्तु ह्य० अश्वलत् अश्वलताम्
अश्वलन् अ० अश्वालीत् अश्वालिष्टाम् अश्वालिषुः प० शश्वाल
शश्वलतुः शश्वलुः आ० श्वल्यात्
श्वल्यास्ताम् श्वल्यासुः श्व० श्वलिता श्वलितारौ श्वलितार: भ० श्वलिष्यति श्वलिष्यतः श्वलिष्यन्ति क्रि० अश्वलिष्यत् अश्वलिष्यताम अश्वलिष्यन
४५१. श्वल्ल (श्वल्ल्) आशुगतौ। व० श्वल्लति श्वल्लत: श्वल्लन्ति स० श्वल्लेत् श्वल्लेताम् श्वल्लेयुः प० श्वल्लतु/श्वल्लतात्श्वल्लताम् श्वल्लन्तु ह्य० अश्वल्लत् अश्वल्लताम् अश्वल्लन् अ० अश्वल्लीत् अश्वल्लिष्टाम् अश्वल्लिषुः प० शश्वल्ल शश्वल्लतुः शश्वल्लुः आ० श्वल्ल्यात् श्वल्ल्यास्ताम् श्वल्ल्यासुः श्व० श्वल्लिता श्वल्लितारौ श्वल्लितार:
# # # # # # #
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
118
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
गलेताम्
गलन्तु
भ० श्वल्लिष्यति श्वल्लिष्यतः श्वल्लिष्यन्ति क्रि० अश्वल्लिष्यत् अश्वल्लिष्यताम् अश्वल्लिष्यन्
४५२. गल (गल्) अदने।
धातूनामनेकार्थत्वात्स्रवणेऽपि। व० गलति
गलतः
गलन्ति स० गलेत्
गलेयुः प० गलतु/गलतात् गलताम् ह्य० अगलत् अगलताम् अगलन् अ० अगालीत् अगालिष्टाम् अगालिषुः प० जगाल जगलतुः जगलुः आ० गल्यात् गल्यास्ताम्
गल्यासुः श्व० गलिता गलितारौ गलितार: भ० गलिष्यति गलिष्यतः गलिष्यन्ति क्रि० अगलिष्यत् अगलिष्यताम अगलिष्यन
॥अथ वान्ताः सप्तत्रिंशत्सेटच।। ४५३. चर्व (च) अदने।
लक्षणे इत्यर्थः। व० चर्वति चर्वतः चर्वन्ति
चर्वसि चर्वथः चर्वथ
चर्वामि चर्वावः चर्वामः स० चर्वेत्
चर्वेयुः चर्वेः चर्वेतम् चर्वेत
चर्वेयम् चर्वेव चर्वेम प० चतु/चर्वतात् चर्वताम् चर्वन्तु
चर्व/चर्वतात् चर्वतम् चर्वत
चर्वाणि चर्वाव चर्वाम ह्य० अचर्वत् अचर्वताम् अचर्वन्
अचर्वतम् अचर्वत अचर्वम् अचीव अचर्वाम अ० अचर्वीत् अचर्विष्टाम् अचर्विषुः
अचर्वीः अचर्विष्टम् अचर्विष्ट
अचर्विषम् अचर्विष्व अचर्विष्म प० चचर्व चचर्वतुः चचर्वहः
चचर्विथ चचर्वथुः चचर्व
चचर्व चचर्विव चचर्विम आ० चात् चास्ताम् चासुः चाः चास्तम्
चास्त चासम् चास्व चास्म श्व० चर्विता चर्वितारौ चर्वितारः
चर्वितासि चर्वितास्थः चर्वितास्थ
चर्वितास्मि चर्वितास्वः चर्वितास्मः भ० चर्विष्यति चर्विष्यतः चर्विष्यन्ति
चर्विष्यसि चर्विष्यथ: चर्विष्यथ
चर्विष्यामि चर्विष्याव: चर्विष्यामः क्रि० अचर्विष्यत् अचर्विष्यताम् अचर्विष्यन्
अचर्विष्यः अचर्विष्यतम् अचर्विष्यत अचर्विष्यम् अचर्विष्याव: अचर्विष्याम
४५४. पूर्व (पूर्व) पूरणे। व० पूर्वति पूर्वतः पूर्वन्ति
पूर्वथः पूर्वामि पूर्वावः पूर्वामः स० पूर्वेत् पूर्वेताम् पूर्वेयुः
पूर्वेतम् पूर्वेत पूर्वेयम् पूर्वेव पूर्वेम प० पूर्वतु/पूर्वतात् पूर्वताम् पूर्वन्तु
पूर्व/पूर्वतात् पूर्वतम्
पूर्वाणि ह्य० अपूर्वत् अपूर्वताम् अपूर्वन्
अपूर्वः अपूर्वतम् अपूर्वत
अपूर्वम् अपूर्वाव अपूर्वाम अ० अपूर्वीत्
अपूर्विष्टाम् अपूर्विषुः अपूर्वीः अपूर्विष्टम् अपूर्विष्ट
अपूर्विषम् अपूर्विष्व अपूर्विष्म प० पुपूर्व पुपूर्वतुः पुपूर्वः
पुपूर्विथ पुपूर्वथुः पुपूर्व
पूर्वसि
पूर्वथ
पूर्वेः
चर्वेताम्
पूर्वत पूर्वाम
पूर्वाव
अचर्वः
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
पूर्व
आ० पूर्व्यात्
पूर्व्या:
पूर्व्याम्
श्व० पूर्विता
पूर्वतासि
पूर्वितास्मि
भ० पूर्विष्यति पूर्विष्यतः
पूर्विष्यि
पूर्विष्यथः
पूर्विष्यामि
पूर्विष्यावः
क्रि० अपूर्विष्यत्
अपूर्विष्यताम्
अपूर्विष्य: अपूर्विष्यतम्
अपूर्विष्यम्
व० पर्वति
स० पर्वेत्
प० पर्वतु / पर्वतात्
ह्य० अपर्वत्
अ० अपर्वीत्
प० पर्व
पुपूर्विव
पूर्विम
पूर्व्यास्ताम्
पूर्व्यासुः
पूर्व्यास्तम् पूर्व्यास्त
पूर्व्याव
पूर्व
पूर्वितास्थः
पूर्वितास्वः
ह्य० अमर्वत्
अ० अमर्वीत्
ДО ममर्व
आ० मर्व्यात्
अपूर्विष्याव
४५५. पर्व (पर्व) पूरणे।
पर्वतः
पर्वेताम्
पर्वताम्
अपर्वताम्
अपर्विष्टाम्
पपर्वतुः
पर्व्यास्ताम्
पर्वितारौ
पर्विष्यतः
व०
मर्वति
स मर्वेत्
मर्वेताम्
म० मर्वतु/मर्वतात् मर्वताम्
अमर्वताम्
अमर्विष्टाम्
आ० पर्व्यात्
पर्व्यासुः
श्र० पर्विता
पर्वितार:
भ० पर्विष्यति
पर्विष्यन्ति
क्रि० अपर्विष्यत् अपर्विष्यताम् अपर्विष्यन्
४५६. मर्व (म) पूरणे ।
मर्वतः
पूर्व्यास्म
पूर्वितार:
पूर्वितास्थ
पूर्वितास्मः
पूर्विष्यन्ति
पूर्विष्यथ
पूर्विष्यामः
अपूर्विष्यन्
पूर्विष्
अपूर्विष्याम
ममर्वतुः
मर्व्यास्ताम्
पर्वन्ति
पर्वेयुः
पर्वन्तु
अपर्वन्
अपर्विषुः
पपर्वहः
मर्वन्ति
मर्वेयुः
मर्वन्तु
अमर्वन्
अमर्विषुः
ममर्वहः
मर्व्यासुः
श्व० मर्विता
भ० मर्विष्यति
क्रि० अमर्विष्यत्
अमर्विष्यताम्
४५७. मर्व (मर्व्) गतौ । मर्व (४५६) वद्रूपाणि ।
व०
धन्वति
स० धन्वेत्
म०
अर्थभेदार्थं पुनः पाठः ।
४५८. धवु (धन्वू) गतौ ।
धन्वतः
धन्वेताम्
धन्वतु / धन्वतात् धन्वताम्
ह्य०
अधन्वत्
अ० अधन्वीत्
म० दधन्व
आ० धन्व्यात्
श्व० धन्विता
भ० धन्विष्यति
क्रि० अधन्विष्यत्
व० शवति
स०
शवेत्
प०
शवतु / शवतात्
ह्य०
अशवत्
अ० अशावीत्
अशी
प० शशाव
आ० शव्यात्
व० शविता
भ० शविष्यति
क्रि० अशविष्यत्
मर्वितारौ
मर्विष्यतः
४५९. शव (शव्) गतौ ।
व० कर्वति
स० कर्वेत्
प० कर्वतु / कर्वतात्
मर्वितार:
मर्विष्यन्ति
अमर्विष्यन्
धन्वन्ति
धन्वेयुः
धन्वन्तु
अधन्वताम्
अधन्वर
अधन्विष्टाम्
अधन्विषुः
दधन्वतुः
दधन्वुः
धन्व्यास्ताम्
धन्व्यासुः
धन्वितारौ
धन्वितारः
धन्विष्यतः
धन्विष्यन्ति
अधन्विष्यताम् अधन्विष्यन्
शवत:
शवेताम्
शवताम्
शवन्ति
शवेयुः
शवन्तु
अशवताम् अशवन्
अशाविष्टाम् अशाविषुः
तथा
अशविष्टाम्
शेवतुः
शव्यास्ताम्
शवितारौ
शविष्यतः
अशविषुः
शेवुः
शव्यासुः
शवितारः
शविष्यन्ति
अशविष्यताम् अविष्यन्
४६०. कर्व (कर्व्) दर्पे
कर्वत:
ताम्
कर्वताम्
119
कर्वन्ति
कर्वेयुः
कर्वन्तु
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
120
ह्य० अकर्वत्
अ० अकर्वीत्
प०
चकर्व
आ०. कर्व्यात्
왕이
कर्विता
भ०
कर्विष्यति
क्रि० अकर्विष्यत्
ह्य० अखर्वत्
अ० अखर्वीत्
प० चखर्व
आ० खर्व्यात्
श्व० खर्विता
भ० खर्विष्यति
क्रि० अखर्विष्यत्
व०
खर्वति
स० खर्वेत्
खाम्
प० खर्वतु/खर्वतात् खर्वताम्
ह्य० अगर्वत्
अ० अगर्वीत्
प० जगर्व
आ० गर्व्यात्
श्व० गर्विता
व० गर्वति
स० गर्वेत्
प० गर्वतु / गर्वतात्
व०
भ० गर्विष्यति
क्रि० अगर्विष्यत्
ष्ठीवति
अकर्वताम् अकर्वन्
अकर्विष्टाम्
४६१. खर्व (खर्व्ं) दर्पे ।
खर्वतः
४६३.
चकर्वतुः
कर्व्यास्ताम्
कवितारौ
कर्विष्यतः
कर्व्यासुः
कवितारः
कर्विष्यन्ति
अकर्विष्यताम् अकर्विष्यन्
अकर्विषुः
चकर्वहः
४६२. गर्व (गर्व्) दर्पे ।
गर्वतः
गर्वेताम्
गर्वताम्
अगर्वताम्
खर्वन्ति
खर्वेयुः
खर्वन्तु
अखर्वताम् अखर्वन्
अखर्विष्टाम्
अखर्विषुः
चखर्वतुः
चखर्वहः
खर्व्यास्ताम् खर्व्यासुः
खर्वितारौ
खर्वितारः
खर्विष्यतः
खर्विष्यन्ति
अखर्विष्यताम् अखर्विष्यन्
गर्विष्टम्
गर्वन्ति
गर्वेयुः
गर्वन्तु
अगर्वन्
अगर्विषुः
जगर्वहः
जगर्वतुः
गर्व्यास्ताम्
गर्वितारौ
गर्विष्यतः
अगर्विष्यताम्
ष्ठिवू (ष्ठिव्) निरसने।
ष्ठीवतः
गर्व्यासुः
गर्वितारः
गर्विष्यन्ति
अगर्विष्यन्
ष्ठीवन्ति
ष्ठीवसि
ष्ठीवामि
स० ष्ठीवेत्
ष्ठीवे:
ष्ठीवेयम्
प० ष्ठीवतु/ष्ठीवतात् ष्ठीवताम्
ष्ठीव/ ष्ठीवतात् ष्ठीवतम्
ष्ठीवानि
ष्ठीवाव
ह्य० अष्ठीवत्
अष्ठीव:
अष्ठीवम्
अ० अष्ठेवीत्
अष्ठेवी:
अष्ठेविषम्
तिष्ठेव
तिष्ठेविथ
तिष्ठेव
प०
टिष्ठेव
टिष्ठेविथ
टिष्ठेव
आ० ष्ठीव्यात्
ष्ठीव्याः
ष्ठीव्यासम्
श्व० ष्ठेविता
ष्ठीवथः
ष्ठीवावः
ष्ठीवेताम्
ष्ठीवेतम्
ष्ठीवेव
भ० ष्ठेविष्यति
ष्ठेविष्यसि
ष्ठेविष्यामि
क्रि० अष्ठेविष्यत्
अष्ठेविष्यः
अष्ठेविष्यम्
ष्ठीव्यास्ताम्
ष्ठीव्यास्तम्
ष्ठीव्यास्व
ष्ठेवितारौ
ष्ठेवितासि
ष्ठेवितास्थः
ष्ठेवितास्मि ष्ठेवितास्वः
अष्ठीवताम्
अष्ठीवतम्
अष्ठीवाव
अष्ठीवन्
अष्ठीवत
अष्ठीवाम
अष्ठेविष्टाम् अष्ठेविषुः
अष्ठेविष्टम्
अष्ठेविष्ट
अष्ठेविष्व
अष्ठेविष्म
तिष्ठिवतुः
तिष्ठिवथुः
तिष्ठिविव
तथा
टिष्ठिवतुः
टिष्ठिवथुः
टिष्ठिविव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ष्ठीवथ
ष्ठीवामः
ष्ठीवेयुः
ष्ठीवेत
ष्ठीवेम
ष्ठीवन्तु
ष्ठीवत
ष्ठीवाम
तिष्ठिवुः
तिष्ठिव
तिष्ठिविम
टिष्ठिवुः
टिष्ठिव
टिष्ठिविम
ष्ठीव्यासुः
ष्ठीव्यास्त
ष्ठीव्यास्म
ष्ठेवितारः
ष्ठेवितास्थ
ष्ठेवितास्मः
ष्ठेविष्यन्ति
ष्ठेविष्यतः ष्ठेविष्यथः ष्ठेविष्यथ ष्ठेविष्यावः ष्ठेविष्यामः
अष्ठेविष्यताम् अष्ठेविष्यन्
अष्ठेविष्यतम् अष्ठेविष्यत
अष्ठेविष्याव
अष्ठेविष्याम
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
121
जीवथ: जीवावः
क्षेवाव:
जीवाम:
क्षेवेयुः
क्षेवेः
क्षेवेतम्
जीवेः
जीवेतम्
क्षेवन्तु
जीवाम
४६४. क्षिवू (क्षिव्) निरसने। व० क्षेवति क्षेवत: क्षेवन्ति
क्षेवसि क्षेवथः क्षेवथ क्षेवाणि
क्षेवामः स० क्षेवेत् क्षेवेताम्
क्षेवेत क्षेवेयम् क्षेवेव क्षेवेम प० क्षेवतु/क्षेवतात् क्षेवताम्
क्षेव/क्षेवतात् क्षेवतम् क्षेवत
क्षेवानि क्षेवाव क्षेवाम ह्य० अक्षेवत् अक्षेवताम्
अक्षेवन् अक्षेवः अक्षेवतम् अक्षेवत
अक्षेवम् अक्षेवाव अक्षेवाम अ० अक्षेवीत्
अक्षेविष्टाम्
अक्षेविषुः अक्षेवीः अक्षेविष्टम् अक्षेविष्ट
अक्षेविषम् अक्षेविष्व अक्षेविष्म प० चिक्षेव
चिक्षिवतुः
चिक्षिवुः चिक्षेविथ चिक्षिवथुः चिक्षिव चिक्षेव
चिक्षिविव चिक्षिविम आ० क्षीव्यात् क्षीव्यास्ताम् क्षीव्यासुः
क्षीव्याः क्षीव्यास्तम् क्षीव्यास्त
क्षीव्यासम् क्षीव्यास्व क्षीव्यास्म श्व० क्षेविता क्षेवितारौ क्षेवितार:
क्षेवितासि क्षेवितास्थः क्षेवितास्थ
क्षेवितास्मि क्षेवितास्वः क्षेवितास्मः भ० क्षेविष्यति क्षेविष्यतः क्षेविष्यन्ति
क्षेविष्यसि क्षेविष्यथ: क्षेविष्यथ
क्षेविष्यामि क्षेविष्याव: क्षेविष्यामः क्रि० अक्षेविष्यत् अक्षेविष्यताम् अक्षेविष्यन्
अक्षेविष्यः अक्षेविष्यतम् अक्षेविष्यत अक्षेविष्यम् अक्षेविष्याव अक्षेविष्याम
__ ४६५. जीव (जीव्) प्राणधारणे। व० जीवति जीवतः जीवन्ति जीवसि
जीवथ जीवामि स० जीवेत्
जीवेताम्
जीवेयुः
जीवेत जीवेयम् जीवेव
जीवेम जीवतु/जीवतात् जीवताम्
जीवन्तु जीव/जीवतात् जीवतम् जीवत
जीवानि जीवाव ह्य० अजीवत् अजीवताम् अजीवन्
अजीवः अजीवतम् अजीवत
अजीवम् अजीवाव अजीवाम अ० अजीवीत् अजीविष्टाम् अजीविषुः
अजीवी: अजीविष्टम् अजीविष्ट
अजीविषम् अजीविष्व अजीविष्म प० जिजीव
जिजीवुः जिजीविथ जिजीवथुः जिजीव
जिजीव जिजीविव जिजीविम आ० जीव्यात्
जीव्यास्ताम्
जीव्यासुः जीव्याः जीव्यास्तम्
जीव्यास्त जीव्यासम् जीव्यास्व .जीव्यास्म श्व० जीविता जीवितारौ जीवितारः
जीवितासि जीवितास्थ: जीवितास्थ जीवितास्मि जीवितास्वः
जीवितास्मः भ० जीविष्यति जीविष्यतः जीविष्यन्ति
जीविष्यसि जीविष्यथ: जीविष्यथ
जीविष्यामि जीविष्याव: जीविष्यामः क्रि० अजीविष्यत् अजीविष्यताम् अजीविष्यन्
अजीविष्यः अजीविष्यतम् अजीविष्यत अजीविष्यम् अजीविष्याव अजीविष्याम
जिजीवतुः
____
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
122
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अनीवन्
निनीवु:
पीव्यासुः
नीव्यासुः
मीवेयुः
४६६. पीव (पीव) स्थौल्ये। व० पीवति पीवतः पीवन्ति स० पीवेत् पीवेताम् पीवेयुः प० पीवतु/पीवतात् पीवताम्
पीवन्तु ह्य० अपीवत् अपीवताम् अपीवन् अ० अपीवीत् अपीविष्टाम्
अपीविषुः प० पिपीव पिपीवतुः पिपीवुः आ० पीव्यात् पीव्यास्ताम् श्व० पीविता पीवितारौ पीवितारः भ० पीविष्यति पीविष्यतः पीविष्यन्ति क्रि० अपीविष्यत् अपीविष्यताम् अपीविष्यन्
४६७. मीव (मीव) स्थौल्ये। व० मीवति मीवतः मीवन्ति स० मीवेत् मीवेताम् प० मीवतु/मीवतात् मीवताम् मीवन्तु ह्य० अमीवत् अमीवताम्
अमीवन् अ० अमीवीत् अमीविष्टाम् अमीगिषुः प० मिमीव मिमीवतुः आ० मीव्यात् मीव्यास्ताम् श्व० मीविता मीवितारौ मीवितारः भ० मीविष्यति मीविष्यतः मीविष्यन्ति क्रि० अमीविष्यत अमीविष्यताम् अमीविष्यन्
४६८. तीव (तीव्) स्थौल्ये। व० तीवति तीवतः तीवन्ति स० तीवेत्
तीवेताम्
तीवेयुः प० तीवतु/तीवतात् तीवताम् तीवन्तु ह्य० अतीवत् अतीवताम्
अतीवन् अ० अतीवीत् अतीविष्टाम् अतीविषुः प० तितीव तितीवतुः आ० तीव्यात् तीव्यास्ताम् तीव्यासुः श्व० तीविता तीवितारौ तीवितारः भ० तीविष्यति तीविष्यतः तीविष्यन्ति
क्रि० अतीविष्यत अतीविष्यताम् अतीविष्यन्
४६९. नीव (नीव) स्थौल्ये। व० नीवति नीवतः नीवन्ति स० नीवेत् नीवेताम् नीवेयुः प० नीवतु/नीवतात् नीवताम् नीवन्तु ह्य० अनीवत् अनीवताम् अ० अनीवीत् अनीविष्टाम् अनीविषुः प० निनीव निनीवतुः आ० नीव्यात् नीव्यास्ताम् श्व० नीविता नीवितारौ नीवितार: भ० नीविष्यति नीविष्यतः नीविष्यन्ति क्रि० अनीविष्यत अनीविष्यताम् अनीविष्यन्
४७०. ऊर्वे (ऊ) हिंसायाम्। व० ऊर्वति
ऊर्वतः
ऊर्वन्ति स० ऊर्वेत् ऊर्वेताम् ऊर्वेयुः प० ऊर्वतु/ऊर्वतात् ऊर्वताम् ऊर्वन्तु ह्य० और्वत् और्वताम् अ० और्वीत् और्विष्टाम् प० ऊर्वाञ्चकार ऊर्वाञ्चक्रतुः ऊर्वाञ्चक्रुः
ऊर्वाम्बभूव/ऊर्वामास आ० ऊर्ध्यात् ऊास्ताम् ऊर्ध्यासुः श्व० ऊर्विता ऊर्वितारौ ऊर्वितारः भ० ऊर्विष्यति ऊर्विष्यतः ऊर्विष्यन्ति क्रि० और्विष्यत् और्विष्यताम् और्विष्यन्
४७१. तुर्वे (तू) हिंसायाम्। व० तूर्वति पूर्वतः स० तूर्वेत् तूर्वेताम् तूर्वेयुः प० तूर्वतु तूर्वतात् तूर्वताम् तूर्वन्तु ह्य० अतूर्वत् अतूर्वताम् अतून् अ० अतूर्वीत् अतूर्विष्टाम् अतूर्विषुः प० तुतूर्व तुतूर्वतुः तुतूर्वहः | आ० तूात् तूफ्स्ताम् तूफ्सुः
और्वन्
और्विषुः
मिमीवुः मीव्यासुः
तूर्वन्ति
तितीवु:
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
जवत:
थूर्वितारौ
श्व० तूर्विता तूर्वितारौ तूर्वितार: भ० तूर्विष्यति तूर्विष्यतः तूर्विष्यन्ति क्रि० अतूर्विष्यत् अतूर्विष्यताम् अतूर्विष्यन्
४७२. थूर्व (थू) हिंसायाम्। व० थूर्वति थूर्वतः थूर्वन्ति स० थूर्वेत् थूर्वेताम् थूर्वेयुः प० थूर्वथू थूर्वतात् थूर्वताम् थूर्वन्) ह्य० अथूर्वत् अथूर्वताम् अथूर्वन् अ० अथूर्वीत् अथूर्विष्टाम् अथूर्विषुः प० तुथूर्व तुथूर्वथू: तुथूर्वहः
आ० थूात् थूास्ताम् थूर्व्यासुः श्व० थूर्विता
थूर्वितारः भ० थूर्विष्यति थूर्विष्यतः थूर्विष्यन्ति क्रि० अथूर्विष्यत् अथूर्विष्यताम् अथूर्विष्यन्
४७३. दुर्वै (दू) हिंसायाम्। व० दूर्वति दूर्वतः दूर्वन्ति स० दूर्वेत् दूर्वेताम् दूर्वेयुः प० दूर्वतु/दूर्वतात् दूर्वताम् । दूर्वन्तु ह्य० अदूर्वत् अदूर्वताम् अदूर्वन् अ० अदूर्वीत् अदूर्विष्टाम् अदूर्विषुः प० दुदूर्व दुदूर्वतुः दुदूर्वहः आ० दूर्व्यात् दूर्व्यास्ताम् दूर्व्यासुः श्व० दूर्विता
दूर्वितारौ
दूर्वितारः भ० दूर्विष्यति दूर्विष्यतः दूर्विष्यन्ति क्रि० अदुर्विष्यत् अदुर्विष्यताम् अदूर्विष्यन्
४७४. धुर्वे (धू) हिंसायाम्। व० धूर्वति धूर्वतः धूर्वन्ति स० धूर्वेत् धूर्वेताम् धूर्वेयुः प० धूर्वतु/धूर्वतात् धूर्वताम् धूर्वन्तु ह्य० अधूर्वत् अधूर्वताम् अधूर्वन् अ० अधूर्वीत् अधूर्विष्टाम् अधूर्विषुः प० दुधूर्व दुधूर्वतुः दुधूर्वहः
आ० धूर्ध्यात् धूर्व्यास्ताम् धूर्व्यासुः श्व० धूर्विता धूर्वितारौ धूर्वितारः भ० धूर्विष्यति धूर्विष्यतः धूर्विष्यन्ति क्रि० अधूर्विष्यत् अधूर्विष्यताम् अधूर्विष्यन्
४७५. जुर्वे (जू) हिंसायाम्। व० जूर्वति
जूर्वन्ति स० जूर्वेत् जूर्वेताम् जूर्वेयुः प० जूर्वतु/जूर्वतात् जूर्वताम् जूर्वन्तु ह्य० अजूर्वत् अजूर्वताम् अजून् अ० अजूर्वीत् अजूर्विष्टाम् ___अजूर्विषुः प० जुजूर्व जुजूर्वतुः जुजूर्वहः आ० जूात् जूास्ताम् जूक्सुः श्व० जूर्विता
जूर्वितारौ
जूर्वितार: भ० जूर्विष्यति जूर्विष्यतः जूर्विष्यन्ति क्रि० अजूर्विष्यत् अजूर्विष्यताम् अजूर्विष्यन्
४७६. अर्व (अ) हिंसायाम्। व० अर्वति अर्वतः अर्वन्ति स० अर्वेत् अर्वेताम् अर्वेयुः
अर्वतु/अर्वतात् अर्वताम् अर्वन्तु ह्य० आर्वत् आर्वताम् आर्वन् अ० आर्वीत् आर्विष्टाम् आर्विषुः प० आनर्व आनर्वतुः आनर्वहः आ० अर्ध्यात् अास्ताम्
अासुः श्व० अर्विता अर्वितारौ अर्वितारः भ० अर्विष्यति अर्विष्यतः अर्विष्यन्ति क्रि० आविष्यत् आर्विष्यताम् आर्विष्यन्
४७७. लर्व (ल) हिंसायाम्। व० लर्वति लर्वतः स० लर्वेत् लर्वेताम् प० लर्वतु/लर्वतात् लर्वताम् लर्वन्तु ह्य० अलर्वत् अलर्वताम् अलर्वन् अ० अलर्वीत् अलर्विष्टाम् अलर्विषुः प० बलर्व बलवतुः बलवहः
लर्वन्ति
लर्वेयुः
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
124
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मेवतुः
मेवुः
शर्वेयुः
अगूर्वन्
आ० लात् लास्ताम् लासुः श्व० लर्विता लर्वितारौ लर्वितारः भ० लर्विष्यति लर्विष्यतः लर्विष्यन्ति क्रि० अलर्विष्यत् अलर्विष्यताम् अलर्विष्यन्
४७८. शर्व (श) हिंसायाम्। व० शर्वति शर्वतः शर्वन्ति स० शर्वेत् शर्वेताम् प० शर्वतु/शर्वतात् शर्वताम् शर्वन्तु ह्य० अशर्वत् अशर्वताम् अशर्वन् अ० अशर्वीत् अशर्विष्टाम अशर्विषुः प० शशर्व शशर्वतुः शशर्वहः आ० शात् शास्ताम् शासुः श्व० शर्विता शर्वितारौ शर्वितार: भ० शर्विष्यति शर्विष्यतः शर्विष्यन्ति क्रि० अशर्विष्यत् अशर्विष्यताम् अशर्विष्यन्
४७९. मुवै (मूर्व) बन्धने। व० मूर्वति मूर्वतः स० मूर्वेत् मूर्वेताम् मूर्वेयुः प० मूर्वतु/पूर्वतात् पूर्वताम् । मूर्वन्तु ह्य० अमूर्वत् अमूर्वताम् अमूर्वन् अ० अमूर्वीत् अमूर्विष्टाम् अमूर्विषुः प० मुमूर्व मुमूर्वतुः मुमूर्वहः आ० मूर्ध्यात् मूळस्ताम् मासुः श्व० मूर्विता
मूर्वितारः भ० मूर्विष्यति मूर्विष्यतः मूर्विष्यन्ति क्रि० अमूर्विष्यत अमूर्विष्यताम् । अमूर्विष्यन्
४८० मव (म) बन्धने। व० मवति मवतः
मवन्ति स० मवेत् मवेताम् प० मवतु/मवतात् मवताम्
मवन्तु ह्य० अमवत् अमवताम् अमवन् अ० अमावीत् अमाविष्टाम् अमाविषुः
तथा अमवीत् अमविष्टाम् अमविषुः प० ममाव आ० मव्यात् मव्यास्ताम् मव्यासुः श्व० मविता मवितारौ मवितारः भ० मविष्यति मविष्यतः मविष्यन्ति क्रि० अमविष्यत अमविष्यताम् अमविष्यन्
४८१. गुर्वे (गूर्व) उद्यमे। व० गूर्वति गूर्वतः गूर्वन्ति स० गूर्वेत् गूर्वेताम् गूर्वेयुः प० गूर्वतु/गूर्वतात् गूर्वताम् गूर्वन्तु ह्य० अगूर्वत् अगूर्वताम् अ० अगूर्वीत् अगूर्विष्टाम् अगूर्विषुः प० जहगूर्व जहगूर्वतुः जहगूर्वहः आ० गूर्व्यात् गूास्ताम् गूासुः श्व० गूर्विता गूर्वितारौ गूर्वितार: भ० गूर्विष्यति गूर्विष्यतः गर्विष्यन्ति क्रि० अगूर्विष्यत् अगूर्विष्यताम् अगूर्विष्यन्
४८२. पिबु (पिन्व्) सेचने। व० पिन्वति पिन्वतः पिन्वन्ति स० पिन्वेत् पिन्वेताम् पिन्वेयुः प० पिन्वतु/पिन्वतात् पिन्वताम् ह्य० अपिन्वत् अपिन्वताम् अपिन्वन् अ० अपिन्वीत् अपिन्विष्टाम् अपिन्विषुः प० पिपिन्व
पिपिन्वतुः
पिपिन्वु: आ० पिन्व्यात् पिन्व्यास्ताम् श्व० पिन्विता पिन्वितारौ
पिन्वितार: भ० पिन्विष्यति पिन्विष्यप्तः पिन्विष्यन्ति क्रि० अपिन्विष्यत् अपिन्विष्यताम् अपिन्विष्यन्
४८३. मिबु (मिन्व्) सेचने। | व० मिन्वति मिन्वतः मिन्वन्ति
स० मिन्वेत् मिन्वेताम् मिन्वेयुः
मूर्वन्ति
पिन्वन्तु
मूर्वितारौ
पिन्व्यासुः
मवेयुः
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
125
स्वत:
दिन्वन्तु
दिन्व्यासुः
निन्वन्तु अनिन्वन्
प० मिन्वतु/मिन्वतात् मिन्वताम्
मिन्वन्तु ह्य० अमिन्वत् अमिन्वताम्
अमिन्वन् अ० अमिन्वीत् अमिन्विष्टाम् अमिन्विषुः म० मिमिन्व मिमिन्वतुः मिमिन्वुः आ० मिन्च्यात् मिन्व्यास्ताम् मिन्व्यासुः श्व० मिन्विता मिन्वितारौ
मिन्वितारः भ० मिन्विष्यति मिन्विष्यतः मिन्विष्यन्ति क्रि० अमिन्विष्यत् अमिन्विष्यताम् अमिन्विष्यन्
४८४. निबु (निन्व्) सेचने। व० निन्वति निन्वतः निन्वन्ति स० निन्वेत् निन्वेताम् निन्वेयुः प० निन्वतु/निन्वतात् निन्वताम् ह्य० अनिन्वत् अनिन्वताम् अ० अनिन्वीत् अनिन्विष्टाम् अनिन्विषुः प० निनिन्व निनिन्वतुः निनिन्वुः आ० निन्व्यात् निन्व्यास्ताम्
निन्व्यासुः श्व० निन्विता निन्वितारौ निन्वितारः भ० निन्विष्यति निन्विष्यतः निन्विष्यन्ति क्रि० अनिन्विष्यत् अनिन्विष्यताम् अनिन्विष्यन्
४८५. हिबु (हिन्द) प्रीणने। व० हिन्वति हिन्वतः हिन्वन्ति स० हिन्वेत् हिन्वेताम् हिन्वेयुः प० हिन्वतु/हिन्वतात् हिन्वताम् ह्य० अहिन्वत् अहिन्वताम् अहिन्वन् अ० अहिन्वीत् अहिन्विष्टाम् अहिन्विषुः प० जिहिन्व
जिहिन्वतुः
जिहिन्वुः आ० हिन्व्यात् हिन्व्यास्ताम् हिन्व्यासुः श्व० हिन्विता हिन्वितारौ हिन्वितारः भ० हिन्विष्यति हिन्विष्यतः हिन्विष्यन्ति क्रि० अहिन्विष्यत् अहिन्विष्यताम् अहिन्विष्यन्
४८६. दिबु (दिव्) प्रीणने।
व० दिन्वति दिन्वतः दिन्वन्ति स० दिन्वेत् दिन्वेताम् दिन्वेयुः प० दिन्वतु/दिन्वतात् दिन्वताम् ह्य० अदिन्वत् अदिन्वताम् अदिन्वन् अ० अदिन्वीत् अदिन्विष्टाम् अदिन्विषुः प० दिदिन्व दिदिन्वतुः दिदिन्वुः आ० दिन्व्यात् दिन्व्यास्ताम् श्व० दिन्विता दिन्वितारौ दिन्वितारः भ० दिन्विष्यति दिन्विष्यतः दिन्विष्यन्ति क्रि० अदिन्विष्यत् अदिन्विष्यताम् अदिन्विष्यन्
४८७. जिबु (जिन्व) प्रीणने। व० जिन्वति जिन्वतः जिन्वन्ति स० जिन्वेत् जिन्वेताम् जिन्वेयुः प० जिन्वतु/जिन्वतात् जिन्वताम् जिन्वन्तु ह्य० अजिन्वत् अजिन्वताम् अजिन्वन् अ० अजिन्वीत् अजिन्विष्टाम् अजिन्विषुः प० जिजिन्व जिजिन्वतुः आ० जिन्व्यात् जिन्व्यास्ताम् जिन्व्यासुः श्व० जिन्विता जिन्वितारौ
जिन्वितार: भ० जिन्विष्यति जिन्विष्यतः जिन्विष्यन्ति क्रि० अजिन्विष्यत् अजिन्विष्यताम् अजिन्विष्यन्
४८८. इबु (इन्व्) व्याप्तौ च।
चकारात्प्रीणने। व० इन्वति इन्वतः
इन्वन्ति इन्वसि इन्वथः इन्वथ
इन्वामि इन्वाव:इन्वाम: स० इन्वेत् इन्वेताम् इन्वेयुः
इन्वे: इन्वेतम् इन्वेत
इन्वेयम् इन्वेव इन्वेम | प० इन्वतु/इन्वतात् इन्वताम् इन्वन्तु
इन्व/इन्वतात् इन्वतम् इन्वत इन्वानि इन्वाव
इन्वाम
जिजिन्वुः
हिन्वन्तु
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
126
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ऐन्वन्
ऐन्वम्
ऐन्विषुः
अ.
ह्य० ऐन्वत्
ऐन्वताम् ऐन्वः ऐन्वतम्
ऐन्वत
ऐन्वाव ऐन्वाम अ० ऐन्वीत् ऐन्विष्टाम्
ऐन्वी : ऐन्विष्टम् ऐन्विष्ट
ऐन्विषम् ऐन्विष्व ऐन्विष्म प०
इन्वाञ्चकार इन्वाञ्चक्रतुः इन्वाञ्चक्रुः इन्वाञ्चकथ इन्वाञ्चक्रथुः इन्वाञ्चक्र इन्वाञ्चकार/इन्वाञ्चकर इन्वाञ्चकृव इन्वाञ्चकृम
इन्वाम्बभूव/इन्वामास आ० इन्व्यात् इन्व्यास्ताम् इन्व्यासुः
इन्व्याः इन्व्यास्तम् इन्व्यास्त
इन्व्यासम् इन्व्यास्व इन्व्यास्म श्व० इन्विता इन्वितारौ इन्वितारः
इन्वितासि इन्वितास्थः इन्वितास्थ
इन्वितास्मि इन्वितास्वः इन्वितास्मः भ० इन्विष्यति इन्विष्यतः इन्विष्यन्ति
इन्विष्यसि इन्विष्यथ: इन्विष्यथ
इन्विष्यामि इन्विष्याव: इन्विष्यामः क्रि० ऐन्विष्यत् ऐन्विष्यताम् ऐन्विष्यन्
ऐन्विष्यः ऐन्विष्यतम् ऐन्विष्यत
ऐन्विष्यम् ऐन्विष्याव ऐन्विष्याम ४८९. अव (अव्) रक्षणगति कान्ति-प्रीतितृप्त्यवगमन प्रवेशश्रवणस्वाम्यर्थयाचनक्रियेच्छा दीप्त्यवाप्त्यालिङ्गन
हिंसादहनलाववृद्धिषु एकोनविंशतावर्थेषु। व० अवति
अवतः
अवन्ति अवसि अवथः
अवथ अवामि अवाव:
अवामः स० अवेत्
अवेताम् अवेः अवेतम् अवेत अवेयम् अवेव
अवेम प० अवतु/अवतात् अवताम् अवन्तु
अव/अवतात् अवतम् अवत
अवानि अवाव
अवाम ह्य० आवत् आवताम्
आवन् आव:
आवतम् आवत आवम् आर्वाव आर्वाम आवीत् आविष्टाम् आविषुः आवी: आविष्टम् आविष्ट
आविषम् आविष्व आविष्म प० आव
आवतुः
आवुः आविथ आवथुः
आव आव आविव
आविम आ० अव्यात् अव्यास्ताम् अव्यासुः
अव्या: अव्यास्तम् अव्यास्त
अव्यासम् अव्यास्व अव्यास्म श्व० अविता अवितारौ अवितार:
अवितासि अवितास्थः अवितास्थ
अवितास्मि अवितास्वः अवितास्मः भ० अविष्यति अविष्यतः अविष्यन्ति
अविष्यसि अविष्यथ: अविष्यथ
अविष्यामि अविष्यावः अविष्यामः क्रि० आविष्यत् आविष्यताम्
आविष्यन् आविष्यः आविष्यतम् आविष्यत आविष्यम् आविष्याव आविष्याम ॥अथ शान्ताः सप्त आद्याः पञ्च सेटच।। ४९०. कश (कश्) शब्दे।
सौत्रौऽयमित्यन्ये। व० कशति कशतः
कशन्ति कशसि कशथ:
कशथ कशामि कशावः
कशामः स० कशेत्
कशेयुः कशेः कशेतम्
कशेत कशेयम् कशेव कशेम प० कशतु/कशतात् कशताम् कशन्तु
कश/कशतात् कशतम् कशत कशानि कशाव
कशाम
कशेताम्
अवेयुः
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
127
मशेयुः
ह्य० अकशत् अकशताम् अकशन्
अकश: अकशतम् अकशत
अकशम् अकशाव अकशाम अ० अकाशीत् अकाशिष्टाम् अकाशिषुः अकाशी: अकाशिष्टम् अकाशिष्ट
तथा अकाशिषम् अकाशिष्व अकाशिष्म अकशीत् अकशिष्टाम् अकशिषुः अकशी: अकशिष्टम् अकशिष्ट
अकशिषम् अकशिष्व अकशिष्म प० चकाश
चकशतुः
चकशुः चकशिथ चकशथुः
चकश चकाश/चकश चकशिव चकशिम आ० कश्यात् कश्यास्ताम् कश्यासुः
कश्याः कश्यास्तम् कश्यास्त
कश्यासम् कश्यास्व कश्यास्म श्व० कशिता कशितारौ कशितार:
कशितासि कशितास्थ: कशितास्थ
कशितास्मि कशितास्वः कशितास्मः भ० कशिष्यति कशिष्यतः कशिष्यन्ति
कशिष्यसि कशिष्यथः कशिष्यथ
कशिष्यामि कशिष्याव: कशिष्यामः क्रि० अकशिष्यत् अकशिष्यताम् अकशिष्यन्
अकशिष्यः अकशिष्यतम् अकशिष्यत अकशिष्यम् अकशिष्याव अकशिष्याम __ ४९१. मिश (मिश्) रोषे च।
चकाराच्छब्दे। शब्दने रोषक्रियायां चेत्यर्थः। व० मेशति मेशतः मेशन्ति स० मेशेत् प० मेशतु/मेशतात् मेशताम् ह्य० अमेशत् अमेशताम् अ० अमेशीत् अमेशिष्टाम् प० मिमेश
मिमिशतुः आ० मिश्यात् मिश्यास्ताम् श्व० मेशिता मेशितारौ मेशितार:
भ० मेशिष्यति मेशिष्यतः मेशिष्यन्ति | क्रि० अमेशिष्यत् अमेशिष्यताम् अमेशिष्यन्
४९२. मश (मश
रोषक्रियायाञ्च। व० मशति
मशतः
मशन्ति स० मशेत्
मशेताम् प० मशतु/मशतात् मशताम् मशन्तु ह्य० अमशत् अमशताम् अमशन् अ० अमशीत् अमशिष्टाम् अमशिषुः
तथा अमाशीत् अमाशिष्टाम् अमाशिषुः प० ममाश मेशतुः मेशुः आ० मश्यात् मश्यास्ताम् मश्यासुः श्व० मशिता मशितारौ मशितारः भ० मशिष्यति
मशिष्यतः
मशिष्यन्ति क्रि० अमशिष्यत् अमशिष्यताम् अमशिष्यन्
४९३. शश (शश्) प्लुतिगतौ।
प्लुतिलिर्गमने उत्प्लुत्य गमने इत्यर्थः। व० शशति शशतः शशन्ति स० शशेत्
शशेताम्
शशेयुः प० शशतु/शशतात् शशताम् शशन्तु ह्य० अशशत् अशशताम् अशशन् अ० अशाशीत् अशाशिष्टाम् अशाशिषुः
तथा अशशीत् अशशिष्टाम् अशशिषुः प० शशाश आ० शश्यात् शश्यास्ताम् शश्यासुः श्व० शशिता शशितारौ शशितार: भ० शशिष्यति शशिष्यतः शशिष्यन्ति क्रि० अशशिष्यत् अशशिष्यताम् अशशिष्यन्
४९४. णिश (नेश्) समाधौ।
चित्तवृत्तिनिरोध इत्यर्थः। व० नेशति
नेशतः
नेशन्ति स० नेशेत्
नेशेताम्
शेशतुः
शेशुः
मशेताम्
मेशेयुः मेशन्तु
अमेशन् अमेशिषुः मिमिशः मिश्यासुः
नेशेयुः
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
128
नेशन्तु
अनेशन्
अनेशिषुः
प०
निनिशतुः
निनिशुः
आ० निश्यात्
निश्यास्ताम् निश्यासुः
४० नेशिता
शितारौ
नेशितार:
भ० नेशिष्यति
शिष्यतः
नेशिष्यन्ति
क्रि० अनेशिष्यत् अनेशिष्यताम् अनेशिष्यन्
४९५ दृश (दश) प्रेक्षणे ।
पश्यतः
पश्यथ:
पश्याव:
पश्येताम्
पश्येतम्
पश्येव
प० नेशतु/नेशतात् नेशताम्
० अनेशत्
अनेशताम्
अ० अनेशीत्
अनेशिष्टाम्
निनेश
व० पश्यति
पश्यसि
पश्यामि
स० पश्येत्
पश्येः
पश्येयम्
प०
ह्य०
पश्यतु/पश्यतात् पश्यताम्
पश्य/पश्यतात् पश्यतम्
पश्यानि
पश्याव
अपश्यत्
अपश्य:
अपश्यम्
अ० अदर्शत्
अदर्शः
अदर्शम्
अद्राक्षम्
तथा
अद्राक्षीत् अद्राष्टाम्
अद्राक्षीः
अष्टम्
अद्राक्ष्व
प० ददर्श
ददर्शिथ/ दद्रष्ठ
ददर्श
आ० दृश्यात् दृश्याः
दृश्यासम्
पश्यन्तु
पश्यत
पश्याम
अपश्यताम्
अपश्यन्
अपश्यतम् अपश्यत
अपश्याव
अदर्शताम्
अदर्शतम्
अदर्शाव
पश्यन्ति
पश्यथ
पश्यामः
पश्येयुः
पश्येत
पश्येम
ददृशतुः
ददृशथुः
ददृशिव
अपश्याम
अदर्शन्
अदर्शत
अदर्शाव
अद्राक्षुः
अद्राष्ट
अद्राक्ष्म
ददृशुः
ददृश
ददृशिम
दृश्यास्ताम्
दृश्यासुः
दृश्यास्तम् दृश्यास्त
दृश्यास्व
दृश्यास्म
श्व० द्रष्टा
द्रष्टासि
द्रष्टस्म
द्रक्ष्यति
द्रक्ष्यसि
द्रक्ष्यामि
क्रि० अद्रक्ष्यत्
अद्रक्ष्यः
अद्रक्ष्यम्
भ०
व० दशति
दशसि
दशामि
स० [दशेत्
दशे:
दशेयम्
प० दशतु / दशतात्
दश / दशतात्
दशानि
हा० अदशत्
अदश:
अदशम्
अ० अदाङ्क्षीत्
अदाङ्क्षीः
अदाक्षम्
प० ददंश
दर्दशिथ
ददंश
अद्रक्ष्याव
४९६. दंशं (दंश) दशने ।
दशनं दन्तकर्म ।
दशतः
दशथः
दशाव:
दशेताम्
दशेतम्
दशेव
दशताम्
दशतम्
दशाव
आ० दश्यात्
दश्या:
दश्यासम्
द्रष्टारौ
द्रष्टास्थः
द्रष्टास्वः
द्रक्ष्यतः
द्रक्ष्यथः
द्रक्ष्यावः
अद्रक्ष्यताम्
अद्रक्ष्यतम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
द्रष्टारः
द्रष्टास्थ
द्रष्टास्मः
द्रक्ष्यन्ति
द्रक्ष्यथ
द्रक्ष्यामः
अद्रक्ष्यन्
अद्रक्ष्यत
अदशताम्
अदशतम्
अदशाव
अदष्टाम्
अदष्टम्
अदाइक्ष्व
दर्दशतुः
ददंशथुः
ददंशिव
अद्रक्ष्याम
दशन्ति
दशथ
दशाम
दशेयुः
दशेत
दशेम
दशन्तु
दशत
दशाम
अदशन्
अदशत
अदशाम
अदाक्षुः
अदोष्ट
अदाइक्ष्म
ददंशुः
दर्दश
ददंशिम
दश्यास्ताम् दश्यासुः
दश्यास्तम्
दश्यास्त
दश्यास्व
दश्यास्म
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
श्व० दंष्टा
दंष्टारौ
दंष्टारः
दंष्टास्थ:
दंष्टास्थ
दंष्टास्वः
दंष्टास्मः
दक्ष्यतः
दङ्क्ष्यन्ति
दक्ष्यथः
दक्ष्यथ
दक्ष्यावः
दक्ष्यामः
अदक्ष्यताम्
अदक्ष्यन्
अदक्ष्यः अदक्ष्यतम्
अदक्ष्यत
अदक्ष्यम्
अदक्ष्याव
अदक्ष्याम
अथ षान्ता एकचत्वारिंशत् कृषं वर्जा: सेटश्च ।
४९७. घुट (घुष्) शब्दे ।
घोषतः
दंष्टासि
दंष्टास्मि
भ० दक्ष्यति
दक्ष्यसि
दङ्क्ष्यामि
क्रि० अदक्ष्यत्
घोषति
व०
स० घोषेत्
प० घोषतु / घोषतात्
ह्य घोष
अ० अघोषीत्
अघुषम्
प० जुघोष
आ० घुष्यात्
श्व० घोषिता
व० चूषति
स० चूषेत्
प०
घोषन्ति
घोषेयुः
घोषन्तु
अघोषताम् अघोषन्
अघोषिष्टाम्
अघोषिषुः
अघुषाम
भ०
घोषिष्यति क्रि० अघोषिष्यत् अघोषिष्यताम्
घोषेताम्
घोषताम्
ह्य० अचूषत्
अ० अचूषीत्
प०
चुचूष
आ० चूषयात्
व० चूषिता
भ० चूषिष्यति
क्रि० अचूषिष्यत्
अघुषाव
जुघुषतुः
घुष्यास्ताम्
घोषितारौ
घोषिष्यतः
४९८: चूष (चूष्) पाने ।
चूषतः
चूषन्ति
चूषेताम्
चूषेयुः
चूषतु/ चूषतात् चूषताम्
चूषन्तु
अचूषताम्
अचूषन्
अचूषिष्टाम्
अचूषिषुः
चुचूषतुः
चुचूषुः
चूषयास्ताम् चूषयासुः
चूषितार:
चूषिष्यन्ति
अचूषिष्यन्
जुघुषुः
घुष्यासुः
घोषितार:
घोषिष्यन्ति
अघोषिष्यन्
चूषिता
चूषिष्यतः
अचूषिष्यताम्
व० तूषति
स० तूषेत्
प०
तूषतु/ तूषतात्
ह्य०
अतूषत्
अ० अतूषीत्
प० तुतूष
आ० तूषयात्
श्व० तूषिता
भ० तूषिष्यति
क्रि० अतूषिष्यत्
व० पूषति
स० पूषेत्
प०
- ४९९. तुष (तुष्) तुष्टौ ।
ह्य०
अपूषत्
अ० अपूषीत्
प० पुपूष
पूषतु/ पूषतात्
व० लोषति
स० लोषेत्
प०
आ० पूष्यात्
श्व० पूषिता
भ० पूषिष्यति
क्रि० अपूषिष्यत्
० अलो
अ० अलोषीत्
प० लुलोष
आ० लुष्यात्
श्व० लोषिता
तूषत:
तूषेताम्
तूषताम्
अतूषताम्
अतूषिष्टाम्
५००. पूष (पूष्) वृद्धौ ।
तुतूषतुः
तुतूषुः
तूयास्ताम्
तूषयासुः
तूषित
तूषिताः
तूषिष्यतः
तूषिष्यन्ति
अतूषिष्यताम् अतूषिष्यन्
तूषन्ति
तूषेयु:
तूषन्तु
अतूषन्
अतूषिषुः
पूषतः
पूषेताम्
पूषताम्
पूषन्ति
पूषेयुः
पूषन्तु
अपूषन्
अपूषिषुः
पुपूषतुः
पुपूषुः
पूष्यास्ताम्
पूष्यासुः
पूषिता
पूषितारः
पूषिष्यतः
पूषिष्यन्ति
अपूषिष्यताम् अपूषिष्यन्
अपूषताम्
अष्टम्
लोषेताम्
लोषतु / लोषतात् लोषताम्
५०१. लुष (लुष्) स्तेये ।
लोषत:
लोषन्ति
लोषेयुः
लोषन्तु
अलोषन्
अलोषताम्
अोषिष्टाम् अलोषिषुः
लुलुषतुः
लुलुषुः
लुष्यास्ताम् लुष्यासुः
लोषितारौ
लोषितार:
129
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
130
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ईषेयुः
ऐषन् ऐषिषुः
मूषितारौ
भ० लोषिष्यति लोषिष्यतः लोषिष्यन्ति क्रि० अलोषिष्यत् अलोषिष्यताम् अलोषिष्यन्
५०२. मूष (मूए) स्तेये। व० मूषति मूषतः मूषन्ति स० मूषेत् मूषेताम् मूषेयुः प० मूषतु/मूषतात् मूषताम्
मूषन्तु ह्य० अमूषत् अमूषताम् अमूषन् अ० अमूषीत् अमूषिष्टाम् अमूषिषुः प० मुमूष मुमूषतुः
मुमूषुः आ० मूष्यात् मूष्यास्ताम् मूष्यासुः श्व० मूषिता
मूषितारः भ० मूषिष्यति मूषिष्यतः मूषिष्यन्ति क्रि० अमूषिष्यत् अमूषिष्यताम् अमूषिष्यन्
५०३. खूष (सूष्) प्रसवे। व० सूषति सूषतः सूषन्ति स० सूषेत् सूषेताम् सूषेयुः प० सूषतु/सूषतात् सूषताम् ह्य० असूषत् असूषताम् असूषन् अ० असूषीत् असूषिष्टाम् असूषिषुः प० सुसूष सुसूषतुः सुसूषुः आ० सूष्यात् सूष्यास्ताम् सूष्यासुः श्व० सूषिता सूषितारौ सूषितारः भ० सूषिष्यति सूषिष्यतः सूषिष्यन्ति क्रि० असूषिष्यत् असूषिष्यताम् असूषिष्यन्
५०४. ऊष (ऊष्) रुजायाम्। व० ऊषति ऊषतः ऊषन्ति स० ऊषेत् ऊषेताम् ऊषेयुः प० ऊषतु/ऊषतात् ऊषताम् ह्य० औषत्
औषताम्
औषन् अ० औषीत् औषिष्टाम् प० ऊषाञ्चकार ऊषाञ्चक्रतुः ऊषाञ्चक्रुः
ऊषाम्बभूव/ऊषामास आ० ऊष्यात् ऊष्यास्ताम् ऊष्यासुः श्व० ऊषिता ऊषितारौ ऊषितारः भ० ऊषिष्यति ऊषिष्यतः ऊषिष्यन्ति क्रि० औषिष्यत् औषिष्यताम् औषिष्यन्
५०५. ईष (ईए) उच्छे उच्चयने। व० ईषति
ईषतः
ईषन्ति स० ईषेत् ईषताम् प० ईषतु/ईषतात् ईषताम् ईषन्तु ह्य० ऐषत् ऐषताम् अ० ऐषीत् ऐषिष्टाम् प० ईषाञ्चकार ईषाञ्चक्रतुः ईषाञ्चक्रुः
ईषाम्बभूव/ईषामास आ० ईष्यात् ईष्यास्ताम् ईष्यासुः श्व० ईषिता ईषितारौ ईषितारः भ० ईषिष्यति ईषिष्यत: ईषिष्यन्ति क्रि० ऐषिष्यत् ऐषिष्यताम् ऐषिष्यन्
५०६. कृषं (कृष्) विलेखने।
हलोत्कर्षणम्। व० कर्षति
कर्षन्ति कर्षसि कर्षथः कर्षथ
कर्षामि कर्षाव: कर्षाम: स० कषेत्
कर्षेः कर्षेतम् कर्षेयम् कर्षेव कम कर्षतु/कर्षतात् कर्षताम् कर्ष/कर्षतात् ___ कर्षतम् कर्षत
कर्षानि कर्षाव कर्षाम ह्य० अकर्षत् अकर्षताम् अकर्षन्
अकर्षः अकर्षतम् अकर्षत
अकर्षम् अकर्षाव अकर्षाम अ० अकृक्षत अकृक्षताम् अकृक्षन्
अकृक्षः अकृक्षतम् अकृक्षत अकृक्षम् अकृक्षाव अकृक्षाम
कर्षतः
कषेताम्
कर्षेयुः कर्षेत
कर्षन्तु
ऊषन्तु
औषिषुः
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
प०
अकाक्षीत
अक्राक्षीः
अक्राक्षम्
आ
अकाक्षः
अक्षम्
चकर्ष
चकर्षिथ
चकर्ष
आ० कृष्यात् कृष्याः
कृष्यासम्
श्व० क
व०
कस
कस्मि
क्रष्टा क्रष्टासि
ऋष्टास्मि
भ० कर्क्ष्यति
कर्क्ष्यसि
कमि
ऋक्ष्यति
क्रक्ष्यसि
ऋक्ष्यामि
क्रि० अकर्क्ष्यत्
अकर्क्ष्यः
अकर्क्ष्यम्
अक्रक्ष्यत्
अक्रक्ष्यः
अक्रक्ष्यम्
कषति
तथा
अक्राष्टाम्
अक्राष्टम्
अक्राक्ष्व
तथा
अकम्
अकार्ष्टम्
अकार्श्व
चकृषतुः
चकर्षथुः
चकृषिव
कृष्णास्व
करौ
कष्टास्थः
कस्वः
तथा
अक्राक्षुः
अक्राष्ट
अक्राक्ष्म
कृष्यास्ताम् कृष्यासुः
कृष्यास्तम्
कृष्यास्त
कृष्यास्म
करः
ऋष्टारौ
ऋष्टास्थः
ऋष्टास्वः
कर्क्ष्यतः
कर्क्ष्यथः
कर्क्ष्याव:
तथा
अकाक्षुः
अकार्ष्ट
अका
चकृषुः
चकृर्ष
चकृषिम
कष्टास्थ
कस्भः
ऋष्टारः
ऋष्टास्थ
ऋष्टास्मः
कर्क्ष्यन्ति
कर्क्ष्यथ
कर्थ्यामः
ऋक्ष्यन्ति
क्रक्ष्यथ
ऋक्ष्यतः
क्रक्ष्यथः
ऋक्ष्यावः
ऋक्ष्यामः
अकर्क्ष्यताम्
अकन्
अकर्क्ष्यतम् अकत
अकर्त्याव
अकम
तथा
अक्रक्ष्यताम्
अक्रक्ष्यन्
अक्रक्ष्यतम् अक्रक्ष्यत
अक्रक्ष्याव
अक्रक्ष्याम
५०७. कष (कष्) हिंसायाम् ।
कषतः
कषन्ति
स० कषेत्
प०
ताम्
कषतु / कषतात् कषताम्
ह्य०
अकषत्
अ० अकाषीत्
क
प०
चकाष
आ० कष्यात्
व० कषिता
भ० कषिष्यति
क्रि० अकषिष्यत्
व० शेषति
स०
शेषेत्
प०
शेषतु / शेषतात्
ह्य
अशेषत्
अ० अशेषीत्
प० शिशेष
आ० शिष्यात्
श्व० शेषिता
व० जषति
सoजषेत्
भ० शेषिष्यति
क्रि० अशेषिष्यत्
अकषताम्
अकाषिष्टाम्
५०८. शेष (शेष) हिसायाम् ।
शेषत:
शेषन्ति
शेषेयुः
शेषन्तु
अजषीत्
तथा
अकषिष्टाम्
चकषतुः
कष्यास्ताम्
कषितारौ
कषिष्यतः
प० जजाष
आ० जष्यात्
왕ᄋ जषिता
भ० जषिष्यति
क्रि० अजषिष्यत्
अकषिष्यताम् अकषिष्यन्
शेषेाम्
शेषताम्
अशेषाम्
अशेषिष्टाम्
शिशिषतुः
प०
जषतु / जषतात् जषताम्
ह्य०
अजषत्
अजषताम्
अ० अजाषीत्
अजाषिष्टाम्
तथा
अजषिष्टाम्
जेषतुः
जष्यास्ताम्
जषितारौ
जषिष्यतः
अजषिष्यताम्
कषेयुः
कषन्तु
अकषन्
अकाषिषुः
शिष्यास्ताम्
शेषितारौ
शेषिष्यतः
अशेषिष्यताम्
५०९. जष (जष्) हिंसायाम् ।
जषन्ति
जषेयुः
अकषिषुः
चकषुः
कष्यासुः
कषितारः
कषिष्यन्ति
जषतः
जषेताम्
अशेषन्
अशेषिषुः
शिशिषुः
शिष्यासुः
शेषितार:
शेषिष्यन्ति
अशेषष्यन्
जषन्तु
अजषन्
अजाषिषुः
अजषिषुः
जेषुः
जष्यासुः
जषितार:
जषिष्यन्ति
अजषिष्यन्
131
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
132
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मेषतुः
मोषेयुः मोषन्तु
जझषुः
५१०. झष (झ) हिंसायाम्। व० झषति झषतः झषन्ति स० झषेत् झषेताम् झषेयुः प० झषतु/झषतात् झषताम् झषन्तु ह्य० अझषत् अझषताम् अझषन् अ० अझाषीत् अझाषिष्टाम् अझाषिषुः
तथा अझषीत् अझषिष्टाम् अझषिषुः प० जझाष जझषतुः आ० झष्यात्
झष्यास्ताम् झष्यासुः ० झषिता झषितारौ झषितारः भ० झषिष्यति झषिष्यतः झषिष्यन्ति क्रि० अझषिष्यत् अझषिष्यताम् अझषिष्यन्
५११. वष (वष्) हिसायाम्। व० वषति वषतः वषन्ति स० वषेत् वषेताम् प० वषतु/वषतात् वषताम् ह्य० अवषत् अवषताम् अवषन् अ० अवाषीत् अवाषिष्टाम्
अवाषिषुः
तथा अवषीत् अवषिष्टाम् अवषिषुः प० ववाष ववषतुः ववषुः आ० वष्यात् वष्यास्ताम् श्व० वषिता वषितागै वषितारः भ० वषिष्यति वषिष्यतः वषिष्यन्ति क्रि० अवषिष्यत् अवषिष्यताम् अवषिष्यन्
५१२. मष (मष्) हिंसायाम्। व० मषति मषतः
मषन्ति स० मषेत् प० मषतु/मषतात् मषताम्
मषन्तु ह्य० अमषत् अमषताम् अमषन् अ० अमाषीत् अमाषिष्टाम् अमाषिषुः
वषेयुः वषन्तु
प० ममाष
मेषुः आ० मष्यात् मष्यास्ताम् मष्यासुः श्व० मषिता मषितारौ मषितारः भ० मषिष्यति मषिष्यतः मषिष्यन्ति क्रि० अमषिष्यत् अमषिष्यताम् अमषिष्यन्
५१३. मुष (मुष्) हिंसायाम्। व० मोषति मोषतः मोषन्ति स० मोषेत् मोषेताम् प० मोषतु/मोषतात् मोषताम् ह्य० अमोषत् अमोषताम् अमोषन् अ० अमोषीत् अमोषिष्टाम् अमोषिषुः प. मुमोष मुमुषतुः मुमुषुः आ० मुष्यात् मुष्यास्ताम् मुष्यासुः श्व० मोषिता मोषितारौ मोषितारः भ० मोषिष्यति मोषिष्यतः मोषिष्यन्ति क्रि० अमोषिष्यत् अमोषिष्यताम् अमोषिष्यन्
५१४. रुष (रुष्) हिंसायाम्। व० रोषति रोषतः रोषन्ति स० रोषेत् रोषेताम् प० रोषतु/रोषतात् रोषताम् ह्य० अरोषत्
अरोषताम्
अरोषन् अ० अरोषीत् अरोषिष्टाम् अरोषिषु: प० रुरोष
रुरुषतुः
रुरुषुः आ० रुष्यात् रुष्यास्ताम् श्व० रोषिता रोषितारौ रोषितार:
तथा
रोष्टारौ रोष्टारः भ० रोषिष्यति रोषिष्यतः रोषिष्यन्ति क्रि० अरोषिष्यत् अरोषिष्यताम् अरोषिष्यन्
५१५. रिष (रिष्) हिंसायाम्। | व० रेषति रेषतः रेषन्ति | स० रेषेत् | प० रेषतु/रेषतात् रेषताम्
रोषेयुः रोषन्तु
वष्यासुः
रुष्यासुः
रोष्टा
मषात
मषेताम्
मषेयुः
तथा
रेषेताम्
रेषेयुः रेषन्तु
अमषीत्
अमषिष्टाम्
अमषिषुः
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
. 133
अरेषन् अरेषिषुः रिरिषुः रिष्यासुः
ह्य० अरषत् अरेषताम् अ० अरेषीत् अरेषिष्टाम् प० रिरेष रिरिषतुः आ० रिष्यात् रिष्यास्ताम् श्व० रेषिता रेषितारौ रेषितार:
तथा
रेष्टारौ भ० रेषिष्यति
रेषिष्यन्ति क्रि० अरेषिष्यत् अरेषिष्यताम् अरेषिष्यन्
५१६. यूष (यूए) हिंसायाम्।
५१८. शष (शष्) हिंसायाम्। व० शषति शषतः शषन्ति स० शषेत् शषेताम् शषेयुः प० शषतु/शषतात् शषताम् ह्य० अशषत् अशषताम् अशषन् अ० अशाषीत् अशाषिष्टाम् अशाषिषुः
शषन्तु
रेष्टा
रेष्टारः
तथा
रेषिष्यतः
शेषुः
यूषेयुः
चषतः चषेताम्
अशषीत् अशषिष्टाम् अशषिषुः प० शशाष शेषतुः आ० शष्यात् शष्यास्ताम् शष्यासुः श्व० शषिता शषितारौ शषितार: भ० शषिष्यति शषिष्यतः शषिष्यन्ति क्रि० अशषिष्यत् अशषिष्यताम् अशषिष्यन्
५१९. चष (चष्) हिंसायाम्। व० चषति
चषन्ति स० चषेत्
चषेयुः प० चषतु/चषतात् चषताम् चषन्तु ह्य० अचषत् अचषताम् अचषन् अ० अचाषीत् अचाषिष्टाम् अचाषिषुः
तथा अचषीत् अचषिष्टाम् अचषिषुः प० चचाष आ० चषयात् चषयास्ताम् चक्यासुः श्व० चषिता चषितारौ चषितारः भ० चषिष्यति चषिष्यतः चषिष्यन्ति क्रि० अचषिष्यत् अचषिष्यताम् अचषिष्यन्
५२०. वृष (वृष्) संघाते च।
चकाराद्धिंसायाम्। व० वर्षति
वर्षन्ति स० वर्षेत्
वर्षेयुः प० वर्षतु/वर्षतात् वर्षताम् वर्षन्तु ह्य० अवर्षत् अवर्षताम् अवर्षन् अ० अवर्षीत् अवर्षिष्टाम् अवर्षिषुः ।
चेषतुः
व० यूषति यूषतः यूषन्ति स० यूषेत् यूषेताम् प० यूषतु/यूषतात् यूषताम् यूषन्तु ह्य० अयूषत् अयूषताम् अयूषन् अ० अयूषीत् अयूषिष्टाम् अयूषिषुः प० युयूष युयूषतुः युयूषुः आ० यूष्यात् यूष्यास्ताम्
यूष्यासुः श्व० यूषिता यूषितारौ यूषितारः भ० यूषिष्यति यूषिष्यतः यूषिष्यन्ति क्रि० अयूषिष्यत् अयूषिष्यताम् अयूषिष्यन्
५१७. जूष (जूष) हिंसायाम्। व० जूषति जूषतः जूषन्ति स० जूषेत् जूषेताम् जूषेयुः प० जूषतु/जूषतात् जूषताम् जूषन्तु ह्य० अजूषत् अजूषताम् अजूषन् अ० अजूषीत् अजूषिष्टाम् अजूषिषुः प० जुजूष जुजूतु: जुजूषुः आ० जूष्यात् जूष्यास्ताम् जूष्यासुः श्व० जूषिता जूषितारौ जूषितारः भ० जूषिष्यति जूषिष्यतः जूषिष्यन्ति क्रि० अजूषिष्यत् अजूषिष्यताम् अजूषिष्यन्
चेषुः
वर्षतः वर्षेताम्
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
134
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ववृषुः
अवेषिषुः विविषुः विष्यासुः
भषतः भषेताम्
भषेयुः भषन्तु अभषन्
मेषतः मेषेताम्
मेषेयुः
बभषुः भष्यासुः
अमेषिषुः मिमिषुः
प० ववर्ष ववृषतुः आ० वृष्यात् वृष्यास्ताम् वृष्यासुः श्व० वर्षिता वर्षितारौ वर्षितारः भ० वर्षिष्यति वर्षिष्यतः वर्षिष्यन्ति क्रि० अवर्षिष्यत् अवर्षिष्यताम् अवर्षिष्यन्
५२१. भष (भष्) भर्त्सने।
भर्त्सनं कुत्सितशब्दकरणम्। व० भषति
भषन्ति स० भषेत् प० भषतु/भषतात् भषताम् ह्य० अभषत् अभषताम् अ० अभाषीत् अभाषिष्टाम् अभाषिषुः
तथा अभषीत् अभषिष्टाम् अभषिषुः प० बभाष
बभषतुः आ० भष्यात्
भष्यास्ताम् श्व० भषिता भषितारौ भषितार: भ० भषिष्यति भषिष्यतः भषिष्यन्ति क्रि० अभषिष्यत् अभषिष्यताम् अभषिष्यन
५२२. जिषू (जिष्) सेचने। व० जेषति जेषतः जेषन्ति स० जेषेत्
जेषेताम् प० जेषतु/जेषतात् जेषताम् जेषन्तु ह्य० अजेषत् अजेषताम् अजेषन् अ० अजेषीत् अजेषिष्टाम् प० जिजेष
जिजिषतुः
जिजिषुः आ० जिष्यात्
जिष्यास्ताम् श्व० जेषिता जेषितारौ
जेषितारः भ० जेषिष्यति जेषिष्यतः जेषिष्यन्ति क्रि० अजेषिष्यत् अजेषिष्यताम् अजेषिष्यन्
५२३. विषू (विष्) सेचने। व० वेषति वेषतः वेषन्ति स० वषेत् वेषेताभ
प० वेषतु/वेषतात् वेषताम् वेषन्तु ह्य० अवेषत् अवेषताम् अवेषन् अ० अवेषीत् अवेषिष्टाम् प० विवेष विविषतुः आ० विष्यात् विष्यास्ताम् श्व० वेषिता वेषितारौ वेषितारः भ० वेषिष्यति वेषिष्यतः वेषिष्यन्ति क्रि० अवेषिष्यत् अवेषिष्यताम् अवेषिष्यन्
५२४. मिषू (मिष्) सेचने। व० मेषति
मेषन्ति स० मेषेत् प० मेषतु/मेषतात् मेषताम् । मेषन्तु ह्य० अमेषत् अमेषताम् अमेषन् अ० अमेषीत्
अमेषिष्टाम् प० मिमेष मिमिषतुः आ० मिष्यात् मिष्यास्ताम्
मिष्यासुः श्व० मेषिता मेषितारौ मेषितारः भ० मेषिष्यति मेषिष्यतः मेषिष्यन्ति क्रि० अमेषिष्यत् अमेषिष्यताम् अमेषिष्यन्
५२५. निषू (निष्) सेचने। व० नेषति नेषतः नेषन्ति स० नेषेत् नेषेताम् नेषेयुः प० नेषतु/नेषतात् नेषताम् ह्य० अनेषत् अनेषताम् अनेषन् अ० अनेषीत् अनेषिष्टाम् प० निनेष निनिषतुः आ० निष्यात् निष्यास्ताम् निष्यासुः श्व० नेषिता नेषितारौ
नेषितार: भ० नेषिष्यति नेषिष्यतः नेषिष्यन्ति क्रि० अनेषिष्यत् अनेषिष्यताम् अनेषिष्यन्
जेषेयुः
अजेषिषुः
नेषन्तु
जिष्यासुः
अनेषिषुः निनिषुः
वेषेयुः
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
५२६. पृषू (पृष्) सेचने ।
व० पर्षति
पर्षतः
स पर्षेत्
पर्षेताम्
प० पर्षतु/पर्षतात् पर्षताम्
ह्य० अपर्षत्
अपर्षताम्
अ० अपर्पीत्
अपर्षिष्टाम्
प०
पपर्ष
आ० पृष्यात् श्र० पर्षिता
भ० पर्षिष्यति
क्रि० अपर्षिष्यत् अपर्षिष्यताम्
व० वर्षति
स० वर्षेत्
प० वर्षतु / वर्षतात्
ह्य० अवर्षत्
अ० अवर्षीत्
प० ववर्ष
आ० वृष्यात् श्व० वर्षिता
पपृषतुः
पृष्यास्ताम्
पर्षितारौ
पर्षिष्यतः
५२७. वृषू (वृष) सेचने ।
वर्षतः
वर्षे
भ० वर्षिष्यति
क्रि० अवर्षिष्यत्
व० मर्षति
स० मर्षेत्
प० मर्षतु/मर्पतात्
ह्य० अमर्षत्
अ० अमर्षीत्
प०
ममर्ष
आ० मृष्यात् श्र० मर्षिता
वर्षाम्
अवर्षताम्
अवर्षिष्टाम्
ववृषतुः
वृष्यास्ताम्
वर्षितारौ
वर्षिष्यतः
अवर्षिष्यताम्
५२८. मृषू (मृष्) सुने च ।
चकारात्सेचने ।
पर्षन्ति
पर्षेयुः
पर्षन्तु
अपर्षन्
अपर्षिषुः
पपृषुः
पृष्यासुः
पर्षितार:
पर्षिष्यन्ति
अपर्षिष्यन्
मर्षतः
मर्षेताम्
मर्षताम्
अमर्षताम्
अमर्षिष्टाम्
ममृषतुः
मृष्यास्ताम्
मर्षितारौ
वर्षन्ति
वर्षेयुः
वर्षन्तु
अवर्षन्
अवर्षिषुः
ववृषुः
वृष्यासुः
वर्षितारः
वर्षिष्यन्ति
अवर्षिष्यन्
मर्षन्ति
मर्षेयुः
मर्षन्तु
अमर्षन्
अमर्षिषुः
ममृषू:
मृष्यासुः
मर्षितार:
भ०
मर्षिष्यति
क्रि० अमर्षिष्यत्
व०
स०
प०
ह्य
अ०
प०
उवोष
आ० उष्यात्
श्व० ओषिता
भ० ओषिष्यति
क्रि० औषिष्यत्
ओषति
ओषेत्
ओषेताम्
ओषतु / ओषतात् ओषताम्
औषत्
औष
औषीत्
ओषाञ्चकार
व०
श्रेषति
सत्
प०
श्रेषतु / श्रेषतात्
०
अषत्
अ० अश्रेषीत्
प० शिश्रेष
मर्षिष्यतः
मर्षिष्यन्ति
अमर्षिष्यताम् अमर्षिष्यन्
५२९. उषू (उष्) दाहे ।
ओषतः
५३०. श्रिषू (श्रिष्) दाहे ।
श्रेषतः
श्रेषन्ति
श्रेषेताम्
श्रेषेयुः
श्रेषताम्
श्रेषन्तु
अषताम्
अश्रेषन्
अषिष्टाम्
अषिषुः
शिश्रिषतुः
शिश्रिषुः
श्रिष्यास्ताम्
श्रिष्यासुः
श्रेषितारौ
श्रेषितार:
भ० श्रेषिष्यति
श्रेषिष्यतः
श्रेषिष्यन्ति
क्रि० अश्रेषिष्यत् अश्रेषिष्यताम् अश्रेषिष्यन्
५३१. श्लिषू (श्लिष्) दाहे ।
आ० श्रिष्यात्
श्व० श्रेषिता
षष्टम्
ओषाऋतुः
तथा
ओषन्ति
ओषेयुः
ओषन्तु
औषन्
औषिषुः
ओषाञ्चक्रः
ऊषतुः
ऊषुः
उष्यास्ताम्
उष्यासुः
ओषितारौ
ओषितार:
ओषिष्यतः
ओषिष्यन्ति
औषिष्यताम् औषिष्यन्
व०
श्लेषति श्लेषतः स० श्लषेत् श्लेषेताम्
प०
श्लेषतु/श्लेषतात्श्लेषताम्
ह्य० अश्लेषत् अश्लेषाम्
अ० अश्लेषीत्
अश्लेषाम्
श्लेषन्ति
श्लेषेयुः
श्लेषन्तु
अश्लेषन्
अश्लेषिषुः
135
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
136
धातुरलाकर प्रथम भाग
जघृषुः
प्रोषतः प्रोषेताम्
प० शिश्लेष शिश्लिषतुः शिश्लिषुः आ० श्लिष्यात् श्लिष्यास्ताम् श्लिष्यासुः श्व० श्लेषिता श्लेषितारौ श्लेषितारः भ० श्लेषिष्यति श्लेषिष्यतः श्लेषिष्यन्ति क्रि० अश्लेषिष्यत् अश्लेषिष्यताम् अश्लेषिष्यन्
५३२. प्रषू (प्रष्) दाहे। व० प्रोषति
प्रोषन्ति स० प्रोषेत्
प्रोषेयुः प० प्रोषतु/ प्रोषतात् प्रोषताम् प्रोषन्तु ह्य० अप्रोषत् अप्रोषताम् अप्रोषन् अ० अप्रोषीत् अप्रोषिष्टाम् अप्रोषिषुः प० पुप्रोष पुऔषतुः पुषुः आ० पुष्यात् पुष्यास्ताम् पुष्यासुः श्व० प्रोषिता प्रोषितारौ प्रोषितारः भ० प्रोषिष्यति प्रोषिष्यतः प्रोषिष्यन्ति क्रि० अप्रोषिष्यत् अप्रोषिष्यताम् अप्रोषिष्यन्
५३३. प्लुषू (प्लुष्) दाहे। व० प्लोषति प्लोषतः प्लोषन्ति स० प्लोषेत् प्लोषेताम् प० प्लोषतु/प्लोषतात् प्लोषताम् । ह्य० अप्लोषत्
अप्लोषताम्
अप्लोषन् अ० अप्लोषीत् अप्लोषिष्टाम् अप्लोषिषुः प० पुप्लोष पुप्लुषतुः पुप्लुषुः आ० प्लुष्यात् प्लुष्यास्ताम् प्लुष्यासुः श्व० प्लोषिता प्लोषितारौ प्लोषितार: भ० प्लोषिष्यति प्लोषिष्यतः प्लोषिष्यन्ति क्रि० अप्लोषिष्यत् अप्लोषिष्यताम् अप्लोषिष्यन्
५३४. घृषू (घृष्) संहर्षे। व० घर्षति
घर्षतः
घर्षन्ति स० घर्षत घर्षताम् प० घर्षतु/घर्षतात् घर्षताम् घर्षन्तु ह्य० अघर्षत् अघर्षताम् अघर्षन्
अ० अघर्षीत् अघर्षिष्टाम् अघर्षिषुः प० जघर्ष जघृषतुः आ० घृष्यात्
घृष्यास्ताम्
घृष्यासुः श्व० घर्षिता घर्षितारौ घर्षितारः भ० घर्षिष्यति घर्षिष्यतः घर्षिष्यन्ति क्रि० अघर्षिष्यत् अघर्षिष्यताम् अघर्षिष्यन्
५३५. हृषू (हृष्) अलीके। व० हर्षति हर्षतः हर्षन्ति स० हर्षेत् हर्षताम् हर्षेयुः प० हर्षतु/हर्षतात् हर्षताम् हर्षन्तु ह्य० अहर्षत् अहर्षताम् अहर्षन् अ० अहर्षीत् अहर्षिष्टाम् अहर्षिषुः प० जहर्ष जहषतुः जहषुः आ० हृष्यात् हृष्यास्ताम् हृष्यासुः श्व० हर्षिता हर्षितारौ हर्षितारः भ० हर्षिष्यति हर्षिष्यतः हर्षिष्यन्ति क्रि० अहर्षिष्यत् अहर्षिष्यताम् अहर्षिष्यन्
५३६. पृष (पृष्) पृष्टौ। व० पोषति पोषतः पोषन्ति स० पोषेत् प० पोषतु/पोषतात् पोषताम् पोषन्तु अपोषत् अपोषताम्
अपोषन् अ० अपोषीत् अपोषिष्टाम् अपोषिषुः प० पुपोष पुपुषतुः पुपुषुः
पुष्यास्ताम् पुष्यासुः श्व० पोषिता पोषितारौ पोषितार: भ० पोषिष्यति पोषिष्यतः पोषिष्यन्ति | क्रि० अपोषिष्यत् अपोषिष्यताम् अपोषिष्यन्
५३७. भूष (भूए) अलङ्कारे। व० भूषति भूषतः भूषन्ति भूषसि भूषथः
भूषथ भूषाव:
भूषाम:
प्लोषेयुः प्लोषन्तु
पोषेताम्
पोषेयुः
आ० पुष्यात्
घर्षेयुः
भूषामि
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
137
तंसे: तसेयम्
४ मा क क क
तंसन्तु तंसत
रा
.
अभूषन्
अतंसः
अभूषम्
ततंसुः
स० भूपेत् भूषताम् भूषेयुः
भूषेतम् भूषेत भूषेयम् भूषेव भूषेम भूषतु/भूषतात् भूषताम् भूषन्तु भूष/भूषतात् भूषतम् भूवत
भूषाणि भूषाव भूषाम ह्य० अभूषत् अभूषताम् अभूषः अभूषतम्
अभूषत
अभूषाव अभूषाम अ० अभूषीत् अभूषिष्टाम् अभूषिषुः . अभूषीः अभूषिष्टम् अभूषिष्ट
अभूषिषम् अभूषिष्व अभूषिष्म प० बुभूष
बुभूषतुः बुभूषु: बुभूषिथ बुभूषथुः बुभूष
बुभूष बुभूषिव बुभूषिम आ० भूष्यात् भूष्यास्ताम् भूष्यासुः
भूष्याः भूष्यास्तम् भूष्यास्त
भूष्यासम् भूष्यास्व भूष्यास्म श्व० भूषिता भूषितारौ भूषितारः
भूषितासि भूषितास्थः भूषितास्थ
भूषितास्मि भूषितास्वः भूषितास्मः भ० भूषिष्यति भूषिष्यतः भूषिष्यन्ति
भूषिष्यसि भूषिष्यथ: भूषिष्यथ
भूषिष्यामि भूषिष्याव: भूषिष्यामः क्रि० अभूषिष्यत् अभूषिष्यताम् अभूषिष्यन्
अभूषिष्यः अभूषिष्यतम् अभूषिष्यत अभूषिष्यम् अभूषिष्याव अभूषिष्याम
अथ सान्तास्त्रयोदश धस्लूवर्जा: सेटच।
___५३८. तसु (तंस्) अलङ्कारे। व० तंसति
तंसन्ति तंससि
तंसथ तंसामि
तंसामः
119
तस्यासुः
स० तंसेत् तंसेताम् तंसेयुः
तंसेतम् तंसेत
तंसेव तंसेम प० तंसतु/तंसतात् तंसताम्
तंस/तंसतात् तंसतम् तंसानि तंसाव
तंसाम अतंसत् अतंसताम् अतंसन् अतंसतम्
अतंसत अतंसम्
अतंसाव अतंसाम अ० अतंसीत् अतंसिष्टाम् अतंसिषुः
अतंसी: अतंसिष्टम् अतंसिष्ट
अतंसिषम् अतंसिष्व अतंसिष्म प० ततंस ततंसतुः
ततंसिथ ततंसथुः ततंस
ततंस ततंसिव ततंसिम आ० तस्यात् तस्यास्ताम् तस्याः तस्यास्तम्
तस्यास्त तस्यासम्
तंस्यास्व तंस्यास्म श्व० तंसिता तंसितारौ तंसितारः
तंसितासि तंसितास्थ: तंसितास्थ
तंसितास्मि तंसितास्वः तंसितास्मः भू० तंसिष्यति
तंसिष्यतः
तंसिष्यन्ति तंसिष्यसि तंसिष्यथ: तंसिष्यथ
तंसिष्यामि तंसिष्याव: तंसिष्यामः क्रि० अतंसिष्यत् अतंसिष्यताम् अतंसिष्यन्
अतंसिष्यः अतंसिष्यतम् अतंसिष्यत अतंसिष्यम्
अतंसिष्यामः ५३९. तुस (तुस्) शब्दे। व० तोसति तोसतः तोसन्ति स० तोसेत् तोसेताम् तोसेयुः प० तोसतु/तोसतात् तोसताम् ह्य० अतोसत् अतोसताम् अतोसन्
तंसतः तंसथः
तोसन्तु
तंसावः
४
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
138
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अरसिषुः
रेसतुः
रेसुः
५४२. रस (रस्) शब्दे। व० रसति रसतः रसन्ति स० रसेत् रसेताम् रसेयुः प० रसतु/रसतात् रसताम्
रसन्तु ह्य० अरसत् अरसताम् अरसन् अ० अरासीत् अरासिष्टाम् अरासिषुः
तथा अरसीत् अरसिष्टाम् प० ररास आ० रस्यात् रस्यास्ताम् रस्यासुः श्व० रसिता रसितारौ रसितारः लू० रसिष्यति रसिष्यतः रसिष्यन्ति क्रि० अरसिष्यत् अरसिष्यताम् अरसिष्यन्
५४३. लस (लस्) श्लेषणक्रीयनयोः। व० लसति लसतः लसन्ति स० लसेत् लसेताम् प० लसतु/लसतात् लसताम् लसन्तु ह्य० अलसत् अलसताम् अलसन् अ० अलासीत् अलासिष्टाम अलासिषुः
अहासिषुः
जहसुः
अ० अतोसीत् अतोसिष्टाम् अतोसिषुः प० तुतोस तुतुसतुः
तुतुसुः आ० तुस्यात् तुस्यास्ताम् तुस्यासुः श्व० तोसिता तोसितारौ तोसितारः लू० तोसिष्यति तोसिष्यतः तोसिष्यन्ति क्रि० अतोसिष्यत् अतोसिष्यताम् अतोसिष्यन्
५४०. ह्रस (ह्रस्) शब्दे। व० हसति हसतः ह्रसन्ति स० हसेत्
हसेताम्
ह्रसेयुः प० ह्रसतु/हसतात् हसताम् ह्रसन्तु ह्य० अह्रसत् अहसताम्
अह्रसन् अ० अह्रासीत् अहासिष्टाम्
तथा अहसीत् अहसिष्टाम् अहसिषुः प० जह्रास जहसतुः आ० ह्रस्यात् ह्रस्यास्ताम् ह्रस्यासुः २० ह्रसिता हसितारौ हसितारः ल० हसिष्यति हसिष्यत: हसिष्यन्ति क्रि० अहसिष्यत् अहसिष्यताम् अहसिष्यन्
५४१. ह्रस (ह्रस्) शब्दे। व० ह्रसति हसतः हसन्ति स० हसेत् ह्रसेताम् हसेयुः प० हृसतु/हृसतात् हसताम् ह्लसन्तु ह्य० अह्लसत् अह्लसताम् अहसन् अ० अह्रासीत् अह्लासिष्टाम् अह्लासिषुः
तथा अलसीत् अह्लसिष्टाम् अहसिषुः प० जह्लास जलसतुः जह्नसुः आ० ह्रस्यात् ह्रस्यास्ताम् ह्रस्यासुः श्व० ह्लसिता ह्लसितारौ ह्रसितारः लू० हसिष्यति हसिष्यतः हसिष्यन्ति क्रि० अर्हसिष्यत् अर्हसिष्यताम् अहसिष्यन्
लसेयुः
तथा
लेसतुः
लेसुः
अलसीत् अलसिष्टाम्
अलसिषुः प० ललास आ० लस्यात् लस्यास्ताम् लस्यासुः श्व० लसिता लसितारौ लसितारः लू० लसिष्यति लसिष्यतः लसिष्यन्ति क्रि० अलसिष्यत् अलसिष्यताम् अलसिष्यन्
५४४. घस्ल (घस्) अदने। व० घसति घसत:
घसन्ति स० घसेत् घसेताम्
घसेयुः प० घसतु/घसतात् घसताम् घसन्तु ह्य० अघसत् अघसताम् अघसन् अ० अघसत् अघसताम्
अघसन् | प० जघास जक्षतुः
जक्षुः
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
आ० घस्यात्
श्र०
घस्ता
लू० घत्स्यति
क्रि० अघत्स्यत्
व०
हसति
स० हसेत्
प०
हसतु / हसतात्
ह्य० अहसत्
अ० अहसीत्
प० जहास
घस्यास्ताम्
घस्तारौ
घत्स्यतः
अघत्स्यताम्
५४५. हस (हस्) हसने ।
हसत:
हसेताम्
आ० हस्यात् श्र० हसिता
हसताम्
अहसताम्
अहसिष्टाम्
जहसतुः
हस्यास्ताम्
हसितारौ
हसिष्यतः
व० पेसति
स० [पेसेत्
पेसेताम्
प० पेसतु/पेसतात् पेसताम्
० अपेसत्
अपेताम्
अ० अपेसीत्
अपेसिष्टाम्
प० पिपेस
पिपिसतुः
आ० पिस्यात्
पिस्यास्ताम्
श्र० पेसिता
पेसितारौ
लू० पेसिष्यति
पेसिष्यतः
क्रि० अपेसिष्यत् अपेसिष्यताम्
व० पेसति
स० [पेसेत्
प० पेसत / पेसतात्
०
अपेसत्
घस्यासुः
घस्तार:
घत्स्यन्ति
लू० हसिष्यति
क्रि० अहसिष्यत् अहसिष्यताम् अहसिष्यन्
५४६. पिसृ (पिस्) गतौ ।
पेसत:
अघत्स्यन्
पेसेताम्
पेसताम्
अपेसताम्
हसन्ति
हसेयुः
हसन्तु
अहसन्
अहसिषुः
जहसुः
हस्यासुः
हसितार:
हसिष्यन्ति
पेसन्ति
पेसेयुः
पेसन्तु
अपेसन्
अपेसिषुः
पिपिसुः
पिस्यासुः
पेसितार:
पेसिष्यन्ति
५४७. पेसृ (पेस्) गतौ ।
पेसतः
अपेसिष्यन्
पेसन्ति
पेसेयुः
पेसन्तु
असन्
अ० अपेसीत्
प०
पिपेस
आ० पेस्यात्
श्व० पेसिता
लू० पेसिष्यति
क्रि० अपेसिष्यत्
असत्
अ० अवेसीत्
प०
विवेस
व० वेसति
सo वेसेत्
वेताम्
प० वेसतु/वेसतात् वेसताम्
अवेसताम्
व०
शसति
स० शसेत्
प०
ह्य० अशसत्
अ० अशसीत्
प० शशास
लं
अवेसिष्टाम्
विवेसतुः
आ० वेस्यात्
वेस्यास्ताम्
श्व० वेसिता
वेसितारौ
भ० वेसिष्यति
वसिष्यतः
सिष्यन्ति
क्रि० अवेसिष्यत् अवेसिष्यताम् अवेसिष्यन्
५४९. शसू (शस्) हिंसायाम् ।
शसत:
शसन्ति
शसेयुः
शसन्तु
अशसन्
अशसिषुः
सेताम्
शसतु / शसतात् शसताम्
अशसताम्
अशसिष्टाम्
आ० शस्यात्
श्व० शसिता
अपेसिष्टाम्
पिपिसतुः
पेस्यास्ताम्
पेसितारौ
पेसिष्यतः
भ० शसिष्यति
क्रि० अशसिष्यत्
व० शंसति
० शंसेत्
अपेसिष्यताम्
५४८. वेस (वेस्) गतौ ।
वेसत:
अपेसिषुः
पिषेसुः
पेस्यासुः
पेसितार:
पेसिष्यन्ति
अपेसिष्यन्
वेसन्ति
वेसेयुः
वेसन्तु
अवेसन्
अवेसिषुः
विवेसुः
वेस्यासुः
वेसितार:
शंसतः
शंसेताम्
शशसतुः
शस्यास्ताम्
शसितारौ
शसिष्यतः
अशसिष्यताम् अशसिष्यन्
शशसुः
शस्यासुः
शसितार:
शसिष्यन्ति
५५०. शंसू (शंस्) स्तुतौच ।
चकाराद्धिंसायाम् ।
शंसन्ति
शंसेयुः
139
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
140
प० शंसतु / शंसतात् शंसताम्
हा० अशंसत्
अ० अशंसीत्
प० शशांस
आ० शस्यात्
श्व० शंसिता
भ०
शंसिष्यति
क्रि० अशंसिष्यत् अशंसिष्यताम्
त्र० मेहति
स० मेहेत्
प० मेहतु / मेहतात्
अमे
अ० अमिक्षत्
प०
मिमह
आ० मिह्यात्
श्र० मेढा
व० दहति
स० दहेत्
प० दहतु / दहतात्
ह्य० अदहत्
अ० अधाक्षीत्
प० ददाह
आ० दह्यात्
व० दग्धा
धक्ष्यति
अशंसताम्
अशंसिष्टाम्
शशंसतुः
शस्यास्ताम्
शंसितारौ
शंसिष्यतः
मेहेताम्
मेहताम्
अमेहताम्
अमिक्षताम्
मिमिहतुः
मिमिहुः
मिह्यास्ताम्
मिह्यासुः
मेढारौ
मेढार:
भ० मेक्ष्यति
मेक्ष्यतः
मेक्ष्यन्ति
क्रि० अमेक्ष्यत् अमेक्ष्यताम् अमेक्ष्यन्
५५२. दहं (दह) भस्मीकरणे ।
भ०
क्रि० अधक्ष्यत्
५५१. मिहं (मिह) सेचने ।
मेहतः
शंसन्तु
अशंसन्
अशंसिषुः
शशंसुः
दहतः
दहेताम्
दहताम्
अदहताम्
अदाग्धाम्
देहतुः
शस्यासुः
शंसितार:
शंसिष्यन्ति
अशंसिष्यन्
दह्यास्ताम्
दग्धारौ
धक्ष्यतः
मेहन्ति
मेहेयुः
मेहन्तु
अमेहन्
अमिक्षन
दहन्ति
दहेयुः
दहन्तु
अदहन्
अधाक्षुः
देहुः
दह्यासुः
दग्धारः
धक्ष्यन्ति
अधक्ष्यताम्
५५३. चह (चह) कल्कने ।
कल्कनं शाठ्यम् ।
अधक्ष्यन्
चहति
० चत्
चहतः
चहेताम्
चहतु / चहतात् चहताम्
ह्य०
अचहत्
अचहताम्
अ० अचहीत्
अचहिष्टाम्
प० चचाह
चेहतुः
चह्यास्ताम्
चहितारौ
चहिष्यतः
व०
प०
आ० चह्यात्
श्वо चहिता
भ० चहिष्यति
क्रि० अचहिष्यत्
व० रहति
स० रहेत्
प० रहतु/रहतात्
ह्य० अरहत्
अ० अरहीत्
प० रराह
आ० रह्यात्
श्व० रहिता
भ० रहिष्यति
क्रि० अरहिष्यत्
व० रंहति
सहेत्
प०
ह्य० अरंहत्
अ० अरंहीत्
प० ररंह
रंहतु / रंहतात्
आ० ह्या
श्व० रंहिता
भ० रंहिष्यति
क्रि० अरंहिष्यत्
अचहिष्यताम्
५५४. रह (रह्) त्यागे ।
रहत:
रहेताम्
रहताम्
अरहताम्
अरहिष्टाम्
रेहतुः
रह्यास्ताम्
रहितारौ
रहिष्यतः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चहन्ति
चहेयुः
चहन्तु
अरंहताम्
अष्टिम्
रहतुः
अचहन्
अचहिषुः
चेहुः
ह्यास्ताम्
चह्यासुः
चहितार:
चहिष्यन्ति
अचहिष्यन्
रहितारौ
रंहिष्यतः
अरंहिष्यताम्
अरहिष्यताम् अरहिष्यन्
५५५. रंह (रंह्) गतौ ।
रहत:
रहेताम्
रंहताम्
रहन्ति
रहेयुः
रहन्तु
अरहन्
अरहिषुः
रेहु:
रह्यासुः
रहितार:
रहिष्यन्ति
रंहन्ति
रंहेयुः
रहन्तु
अरहन्
अरंहिषुः
ररंहुः
रंह्यासुः
रंहितार:
रंहिष्यन्ति
अहिन्
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
141
५६०. वृह (ब्रह्) शब्दे च।
चकारावृद्धौ। व० वर्हति वर्हतः वर्हन्ति स० वर्हेत् प० वर्हतु/वर्हतात् वर्हताम् ह्य० अवर्हत् अवर्हताम् अवहन अ० अवृहत् अवृहताम् अवृहन्
वर्हेताम्
वर्हेयुः वर्हन्तु
वहेयुः वर्हन्तु
तथा
दर्हतः
अवीत् अवर्हिष्टाम् अवर्हिषुः प० ववह
ववृहतुः
ववृहुः आ० वृह्यात् वृह्यास्ताम् वृह्यासुः श्व० वर्हिता वर्हितारौ वर्हितारः भ० वर्हिष्यति वर्हिष्यतः वर्हिष्यन्ति क्रि० अवर्हिष्यत् अवर्हिष्यताम् अवर्हिष्यन्
५५६. दृह (दृह्) वृद्धौ। व० दर्हति
दर्हन्ति स० दर्हेत् दर्हेताम् दर्हेयुः प० दर्हतु/दर्हतात् दर्हताम् दर्हन्तु ह्य० अदर्हत्
अदर्हताम्
अदर्हन् अ० अदीत् अदर्हिष्टाम् अदर्हिषुः प० ददर्ह ददृहतुः आ० दृह्यात् दृह्यास्ताम् दृह्यासुः द० दर्हिता दहितारौ दर्हितारः भ० दर्हिष्यति दर्हिष्यतः दर्हिष्यन्ति क्रि० अदर्हिष्यत् अदर्हिष्यताम् अदर्हिष्यन्
५५७. दृहु (दह्) वृद्धौ। व० वृंहति
दृहन्ति स० द्हेत् इंहेताम् इंहेयुः प० ट्रॅहतु/हतात् दुंहताम् ह्य० अर्दृहत् अदुंहताम् अदृहन् अ० अर्दृहीत् अइंहिष्टाम् अदंहिषुः प० दद्वंह दद्वृहतुः दर्दूहुः आ० ,ह्यात् दुंह्यास्ताम् इंद्यासुः
श्व० इंहिता इंहितारौ इंहितार: लू० इंहिष्यति इंहिष्यतः इंहिष्यन्ति क्रि० अइंहिष्यत् अटूंहिष्यताम् अदंहिष्यन्
५५८. वृह (वृह) वृद्धौ। व० वर्हति वर्हतः वर्हन्ति स० वर्हेत् वर्हेताम् प० वर्हतु/वर्हतात् वर्हताम् ह्य० अवर्हत् अवर्हताम् अवर्हन् अ० अवीत् अवर्हिष्टाम् अवर्हिषुः प० ववह ववृहतुः ववृहु: आ० वृह्यात् वृह्यास्ताम्
वृह्यासुः व० वर्हिता वर्हितारौ वर्हितारः भ० वर्हिष्यति वर्हिष्यतः वर्हिष्यन्ति क्रि० अवर्हिष्यत् अवर्हिष्यताम् अवर्हिष्यन्
५५९. वृंह (वृंह) शब्दे वृद्धौ च। व० वृंहति वृंहतः वृंहन्ति स० हेत् वृंहेताम् वृंहेयुः प० वृहतु/हतात् वृंहताम् वृंहन्तु ह्य० अवृहत् अहताम्
अवँहन् अ० अर्वृहीत् अहिष्टाम् अहिषुः प० ववृंह ववृहतुः ववृंहुः आ० ह्यात्
वृंह्यास्ताम् श्व० वृंहिता वृंहितारौ वृंहितारः भ० वृंहिष्यति वृंहिष्यतः वृंहिष्यन्ति क्रि० अहिष्यत् अहिष्यताम् अहिष्यन्
उहट्ट तुहट्ट दहट्ट अर्दने।
५६१. उट्ट (उह) अर्दन। व० ओहति ओहतः ओहन्ति
ओहसि ओहथः ओहथ
ओहामि ओहावः ओहामः | स० ओहेत्
ओहेताम्
ओहेयुः
वृंह्यासुः
दंहतः
दे॒हन्तु
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
142
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आहे:
आहेतम्
*
ओहेत ओहेम
प०
ओहन्तु
ओहेयम् ओहेव ओहतु/ओहतात् ओहताम् ओह/आहतात् ओहतम् ओहानि ओहाव औहत् औहताम्
ह्य०
ओहत ओहाम औहन् औहत औहाम
* * * *
औहः
औहतम्
औहम्
अ० अतोहीत् अतोहिष्टाम् अतोहिषुः
तथा अतुहत् अतुहताम् अतुहन् प० तुतोह तुतुहतुः
तुतुहुः आ० तुह्यात् तुह्यास्ताम् तुह्यासुः श्व० तोहिता तोहितारौ तोहितारः भ० तोहिष्यति तोहिष्यतः तोहिष्यन्ति क्रि० अतोहिष्यत् अतोहिष्यताम् अतोहिष्यन्
५६३. दुहट्ट (दुह्) अर्दने। व० दोहति दोहतः दोहन्ति स० दोहेत् दोहेताम् प० दोहतु/दोहतात् दोहताम् । ह्य० अदोहत् अदोहताम् अदोहन अ० अदोहीत् अदोहिष्टाम अदोहिषुः
अ०
औहीत्
औहाव औहिष्टाम् औहिष्टम् औहिष्व
औहिषुः
औही: औहिषम्
औहिष्ट औहिष्म
तथा
दोहेयुः दोहन्तु
औहत् औहः
* * * *
औहम्
तथा
औहताम् औहन् औहतम् औहत औहाव
औहाम प० उवोह ऊहतुः ऊहुः
ऊहिथ ऊहथुः ऊह
उवोह ऊहिव ऊहिम आ० उह्यात् उह्यास्ताम्
उह्यासुः उह्याः
उह्यास्तम् उह्यास्त उह्यासम् उह्यास्व उह्यास्म ० आहिता ओहितारौ ओहितारः
ओहितासि ओहितास्थः ओहितास्थ
ओहितास्मि ओहितास्वः ओहितास्मः भ० ओहिष्यति ओहिष्यतः ओहिष्यन्ति
ओहिष्यसि ओहिष्यथ: ओहिष्यथ
ओहिष्यामि ओहिष्याव: ओहिष्यामः क्रि० औहिष्यत् औहिष्यताम्
औहिष्यः औहिष्यतम् औहिष्यत औहिष्यम् औहिष्याव औहिष्याम
५६२. तुहट (तुह) अर्दने। व० तोहति तोहतः तोहन्ति स० तोहेत्
तोहेताम् प० तोहतु/तोहतात् तोहताम्
तोहन्तु ह्य० अताहत्
अतोहताम्
अतोहन्
अर्हतः
* * * * * * * * * * * * * * *
अदुहत्
अदुहताम् अदुहन् प० दुदोह दुदुहतुः
दुदुहुः आ० दुह्यात् दुह्यास्ताम् दुह्यासुः श्व० दोहिता दोहितारौ दोहितारः भ० दोहिष्यति दोहिष्यतः दोहिष्यन्ति क्रि० अदोहिष्यत् अदोहिष्यताम् अदोहिष्यन्
५६४. अर्ह (अ) पूजायाम्। व० अर्हति
अर्हन्ति स० अर्हेत् अर्हेताम् अर्हेयुः प० अर्हतु/अर्हतात् अर्हताम् अर्हन्तु ह्य० आर्हत् आर्हताम् आर्हन् अ० आीत् आर्हिष्टाम् प० आनर्ह आनहतुः आनहुः आ० अह्यात् अह्यास्ताम्
अह्यासुः श्व० अर्हिता अर्हितारौ अर्हितार: भ० अर्हिष्यति अर्हिष्यतः अर्हिष्यन्ति क्रि० आर्हिष्यत् आर्हिष्यताम् आर्हिष्यन्
औहिष्यन्
आर्हिषुः
तोहेयुः
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
143
५६५. मह (मह्) पूजायाम् महत:
महन्ति
महथ:
महथ
व० महति
महसि
महामि स० महेत
महे:
महाम:
महेयुः
महावः महेताम् महेतम् महेव महताम् महतम्
महेत महेम
उक्षेयुः
उक्षेः
प०
महेयम् महतु/महतात् मह/महतात् महानि
महन्तु महत
महाव
महाम
ह्य०
अमहत्
अमहताम्
अमहन्
अमहः
अमहतम्
अमहत
औक्षताम् औक्षतम्
अमहम्
अमहाव
अमहाम
अ०
औक्षाम
अमहीत् अमही: अमहिषम्
अमहिष्टाम् अमहिष्टम् अमहिष्व मेहतुः
अमहिषुः अमहिष्ट अमहिष्म
औक्षिष्टाम्
औक्षिष्ट
५६६. उक्ष (उक्ष) सेचने। ॥अथ क्षान्ता विंशति: सेटचा क्षान्तानां षान्तेषु पाठो युक्तो
वैचित्र्यार्थे त्विह कृतः।। व० उक्षति उक्षतः
उक्षन्ति उक्षसि उक्षथः
उक्षथ उक्षामि उक्षाव: उक्षाम: स० उक्षेत् उक्षेताम्
उक्षेतम् उक्षेत उक्षेयम् उक्षेव उक्षेम प० उक्षतु/उक्षतात् उक्षताम्
उक्षन्तु उक्ष/उक्षतात् उक्षतम्
उक्षत उक्षानि उक्षाव
उक्षाम ह्य० औक्षत्
औक्षन् औक्ष:
औक्षत औक्षम् औक्षाव अ० औक्षीत्
औक्षिषुः औक्षीः
औक्षिष्टम् औक्षिषम् औक्षिष्व औक्षिष्म उक्षाञ्चकार उक्षाञ्चक्रतुः उक्षाञ्चक्रुः उक्षाञ्चकर्थ उक्षाञ्चक्रथुः उक्षाञ्चक्र उक्षाञ्चकार/उक्षाञ्चकर उक्षाञ्चकृव उक्षाञ्चकृम
उक्षाम्बभूव/उक्षामास आ० उक्ष्यात् उक्ष्यास्ताम् उक्ष्यासुः उक्ष्याः
उक्ष्यास्तम् उक्ष्यास्त उक्ष्यासम् उक्ष्यास्व उक्ष्यास्म श्व० उक्षिता उक्षितारौ उक्षितार:
उक्षितासि उक्षितास्थः उक्षितास्थ
उक्षितास्मि उक्षितास्वः उक्षितास्मः भ० उक्षिष्यति उक्षिष्यतः उक्षिष्यन्ति
उक्षिष्यसि उक्षिष्यथ: उक्षिष्यथ उक्षिष्यामि उक्षिष्याव:
उक्षिष्यामः क्रि० औक्षिष्यत् औक्षिष्यताम् औक्षिष्यन्
औक्षिष्य: औक्षिष्यतम् औक्षिष्यत औक्षिष्यम् औक्षिष्याव औक्षिष्याम
प०
ममाह महिथ
मेहुः मेह
प०
मेहथुः
ममाह/ममह
मेहिव
मेहिम
आ० मह्यात्
मह्यास्ताम्
मह्यासुः
मह्याः
मह्मास्तम्
मह्यास्त
मह्यासम
मह्यास्म
मह्यास्व महितारौ
श्व० महिता
महितासि
महितास्मि भ० महिष्यति
महिष्यसि
महिष्यामि क्रि० अमहिष्यत्
अमहिष्यः अमहिष्यम्
महितास्थ: महितास्वः महिष्यतः महिष्यथ: महिष्याव: अमहिष्यताम् अमहिष्यतम् अमहिष्याव
महितार: महितास्थ महितास्मः महिष्यन्ति महिष्यथ महिष्यामः अमहिष्यन् अमहिष्यत अमहिष्याम
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
144
व० रक्षति
रक्षसि
रक्षामि
स० [रक्षेत्
रक्षेः
रक्षेयम्
प०
हा० अरक्षत्
अरक्षः
रक्षतु / रक्षतात्
रक्ष/ रक्षतात्
रक्षानि
अरक्षम्
अ० अरक्षीत्
अरक्षीः
अरक्षिषम्
प०
ररक्ष
ररक्षिथ
ररक्ष
आ० रक्ष्यात्
रक्ष्याः
रक्ष्यासम्
श्र० रक्षिता
५६७. रक्ष (रक्ष) पालने ।
रक्षतः
रक्षथः
रक्षावः
रक्षेताम्
रक्षेतम्
रक्षेव
रक्षितासि
रक्षितास्मि
भ० रक्षिष्यति
रक्षिष्यि
रक्षिष्यामि
क्रि० अरक्षिष्यत्
अरक्षिष्यः
अरक्षिष्यम्
रक्षताम्
रक्षतम्
रक्षाव
अरक्षताम्
अरक्षतम्
अरक्षाव
अरक्षिष्टाम्
अरक्षिष्टम्
अरक्षिष्व
ररक्षतुः
ररक्षथुः
ररक्षिव
रक्षन्ति
रक्षथ
रक्षामः
रक्षेयुः
रक्षेत
रक्षेम
रक्षन्तु
रक्षत
रक्षाम
अरक्षन्
अरक्षत
अरक्षाम
अरक्षिषुः
अरक्षिष्ट
अरक्षिष्म
ररक्षुः
ररक्ष
ररक्षिम
रक्ष्यास्ताम् रक्ष्यासुः
रक्ष्यास्तम्
रक्ष्यास्त
रक्ष्यास्व
रक्षितारौ
रक्षितास्थः
रक्षितास्वः
रक्षिष्यतः
रक्षिष्यथः
रक्षिष्यावः
रक्ष्यास्म
रक्षितार:
रक्षितास्थ
रक्षितास्मः
रक्षिष्यन्ति
रक्षिष्यथ
रक्षिष्यामः
अरक्षिष्यताम् अरक्षिष्यन्
अरक्षिष्यतम् अरक्षिष्यत
अरक्षिष्याव
अरक्षिष्याम
व०
मक्षति
स० मक्षेत्
प०
क्षेताम्
मक्षतु / मक्षतात् मक्षताम्
ह्य०
अमक्षत्
अमक्षताम्
अ० अमक्षीत्
अमक्षिष्टाम्
प०
ममक्ष
आ० मक्ष्यात्
왕ᄋ मक्षिता
भ० मक्षिष्यति
क्रि० अमक्षिष्यत्
५६८. मक्ष (मक्ष) सङ्घाते ।
मक्षत:
मक्षन्ति
मक्षेयुः
मक्षन्तु
अमक्षन्
अमक्षिषुः
ममक्षुः
मक्ष्यासुः
मक्षितारः
मक्षिष्यन्ति
अमक्षिष्यन्
व० मुक्षति
स०
मुक्षेत्
प०
मुक्षतु / मुक्षतात्
ह्य०
अमुक्षत्
अ० अमुक्षीत्
प०
मुमुक्ष
आ० मुक्ष्यात्
श्व० मुक्षिता
भ० मुक्षिष्यति
क्रि० अमुक्षिष्यत्
व० अक्षति
व० अक्ष्णोति
स० अक्षेत्
स०
ममक्षतुः
मक्ष्यास्ताम्
मक्षितारौ
मक्षिष्यतः
अमक्षिष्यताम्
५६९. मुक्ष (मुक्ष्) सङ्घाते ।
मुक्षन्ति
मुक्षेयुः
मुक्षन्तु
अमुक्षन्
अमुक्षिषुः
मुमुक्षुः
मुक्ष्यासुः
मुक्षितार:
मुक्षिष्यन्ति
ह्य०
आक्षत
० अक्ष्णोत्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मुक्षतः
मुक्षेताम्
मुक्षताम्
अमुक्षताम्
अक्षिष्टाम्
मुमुक्षतुः
मुक्ष्यास्ताम्
मुक्षितारौ
मुक्षिष्यतः
अक्ष्णुयात्
अक्ष्णुयाताम्
प०
अक्षतु / अक्षतात्
अक्षताम् प० अक्ष्णोतु / अक्ष्णुतात् अक्ष्णुताम्
आक्षताम्
अक्ष्णुताम्
अमुक्षिष्यताम् अमुक्षिष्यन्
५७० अक्षौ व्याप्तौ चा
चकारात्संघाते ।
अक्षतः
अक्ष्णुतः
अक्षेताम्
अक्षन्ति
अन्ति
अक्षेयुः
अक्ष्णुयुः
अक्षन्तु
अक्ष्णुवन्तु
आक्षन्
अक्ष्णुवन्
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
145
आक्षिषु:
आक्षुः
अ० आक्षीत् आक्षिष्टाम्
तथा आक्षीत्
आष्टाम् प० आनक्ष
आनक्षतुः
आनक्षुः आ० अक्ष्यात्
अक्ष्यास्ताम्
अक्ष्यासुः श्व० अक्षिता अक्षितारौ अक्षितारः
तथा अष्टा अष्टारौः
अष्टारः भ० अक्षिष्यति अक्षिष्यतः अक्षिष्यन्ति
तथा अक्ष्यति अक्ष्यतः
अक्ष्यन्ति क्रि० आक्षिष्यत् आक्षिष्यताम् आक्षिष्यन्
तथा आक्ष्यत्
आक्ष्यताम् आक्ष्यन् ५७१. तक्षौ (तक्ष्) तनूकरणे।
तनूकरण कार्यम्। व० तक्षति
तक्षतः
तक्षन्ति व० तक्ष्णोति तक्ष्णुतः तक्ष्णुन्ति स० तक्षेत्
तक्षेताम् तक्षेयुः स० तक्ष्णुयात् तक्ष्णुयाताम् तक्ष्णुयुः प० तक्षतु/तक्षतात् तक्षताम् तक्षन्तु प० तक्ष्णोतु/तक्ष्णुतात् तक्ष्णुताम् तक्ष्णुवन्तु ह्य० अतक्षत
अतक्षताम् अतक्षन् ह्य० अक्षणोत् अक्ष्णुताम् अक्ष्णुवन् अ० अतक्षीत् अतक्षिष्टाम्
अतक्षिषुः
तथा अतक्षीत् अतष्टाम्
अतषुः प० ततक्ष
ततक्षतुः आ० तक्ष्यात् तक्ष्यास्ताम् तक्ष्यासुः श्व० तक्षिता
तक्षितारौ तक्षितार:
तथा
तष्टारौः तष्टारः भ० तक्षिष्यति तक्षिष्यतः तक्षिष्यन्ति
तथा तक्ष्यति
तक्ष्यतः तक्ष्यन्ति क्रि० अतक्षिष्यत् अतक्षिष्यताम् अतक्षिष्यन्
तथा अतक्ष्यत् अतक्ष्यताम् अतक्ष्यन् ५७२. त्वक्षौ (त्वक्ष्) तनूकरणे।
कार्ये इत्यर्थः। व० त्वक्षति त्वक्षतः त्वक्षन्ति स० त्वक्षेत् त्वक्षेताम् त्वक्षेयुः प० त्वक्षतु/त्वक्षतात् त्वक्षताम् त्वक्षन्तु ह्य० अत्वक्षत अत्वक्षताम् अत्वक्षन् अ० अत्वक्षीत् अत्वक्षिष्टाम् अत्वक्षिषुः
तथा अत्वक्षीत् अत्वष्टाम्
अत्वक्षुः प० तत्वक्ष तत्वक्षतुः तत्वक्षुः आ० त्वक्ष्यात् त्वक्ष्यास्ताम् त्वक्ष्यासुः श्व० त्वक्षिता त्वक्षितारौ त्वक्षितार:
तथा त्वष्टा त्वष्टारौः त्वष्टारः भ० त्वक्षिष्यति त्वक्षिष्यतः त्वक्षिष्यन्ति
तथा त्वक्ष्यति त्वक्ष्यतः त्वक्ष्यन्ति क्रि० अत्वक्षिष्यत् अत्वक्षिष्यताम् अत्वक्षिष्यन्
तथा अत्वक्ष्यत् अत्वक्ष्यताम् अत्वक्ष्यन् ५७३. णिक्ष (निक्ष) चुम्बने।
चुम्बनं वक्त्रसंयोगः। व० निक्षति निक्षतः निक्षन्ति स० निक्षेत् निक्षेताम् निक्षेयुः प० निक्षतु/निक्षतात् निक्षताम् ह्य० अनिक्षत् अनिक्षताम् अ० अनिक्षीत् अनिक्षिष्टाम् अनिक्षिषुः प० निनिक्ष निनिक्षतुः आ० निक्ष्यात् निक्ष्यास्ताम् निक्ष्यासुः श्व० निक्षिता निक्षितारौ निक्षितारः भ० निक्षिष्यति निक्षिष्यतः निक्षिष्यन्ति क्रि० अनिक्षिष्यत् अनिक्षिष्यताम् अनिक्षिष्यन्
ततक्षुः
निक्षन्तु अनिक्षन्
निनिक्षुः
तष्टा
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
146
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अतृक्षन्
वक्षन्तु
५७४. तृक्ष (तृक्ष) गतौ। व० तृक्षति तृक्षतः
तृक्षन्ति स० तृक्षेत् तृक्षेताम् तृक्षेयुः प० तृक्षतु/तृक्षतात् तृक्षताम् तृक्षन्तु ह्य० अतृक्षत् अतृक्षताम् अ० अतृक्षीत् अतृक्षिष्टाम् अतृक्षिषुः प० ततृक्ष ततृक्षतुः ततृक्षुः आ० तृक्ष्यात् तृक्ष्यास्ताम् तृक्ष्यासुः श्व० तृक्षिता तृक्षितारौ तृक्षितारः भ० तृक्षिष्यति तृक्षिष्यतः तृक्षिष्यन्ति क्रि० अतृक्षिष्यत् अतृक्षिष्यताम् अतृक्षिष्यन्
५७५. स्तृक्ष (स्तृक्ष) गतौ। व० स्तृक्षति स्तृक्षतः स्तृक्षन्ति स० स्तृक्षेत् स्तृताम् स्तृक्षेयुः प० स्तृक्षतु/स्तृक्षतात् स्तृक्षताम् स्तृक्षन्तु ह्य० अस्तृक्षत् अस्तृक्षताम् अस्तृक्षन् अ० अस्तृक्षीत् अस्तृक्षिष्टाम् अस्तृक्षिषुः प० तस्तृक्ष तस्तृक्षतुः आ० स्तृक्ष्यात् स्तृश्यास्ताम् स्तृक्ष्यासुः श्व० स्तृक्षिता स्तृक्षितारौ स्तृक्षितारः भ० स्तृक्षिष्यति स्तृक्षिष्यतः स्तृक्षिष्यन्ति क्रि० अस्तृक्षिष्यत् अस्तृक्षिष्यताम् अस्तृक्षिष्यन्
५७६. णक्ष (नक्ष) गतौ। व० नक्षति नक्षतः नक्षन्ति स० नक्षेत् नक्षेताम् प० नक्षतु नक्षतात् नक्षताम्
नक्षन्तु ह्य० अनक्षत् अनक्षताम् अनक्षन् अ० अनक्षीत् अनक्षिष्टाम् अनक्षिषुः प० ननक्ष
ननक्षुः आ० नक्ष्यात् नक्ष्यास्ताम्
नक्ष्यासुः ० नक्षिता नक्षितारौ नक्षितार:
भ० नक्षिष्यति नक्षिष्यतः नक्षिष्यन्ति क्रि० अनक्षिष्यत् अनक्षिष्यताम् अनक्षिष्यन्
५७७. वक्ष (वक्ष) रोषे।
संघाते इत्येके। व० वक्षति वक्षतः वक्षन्ति स० वक्षेत् वक्षेताम् वक्षेयुः प० वक्षतु/वक्षतात् वक्षताम् ह्य० अवक्षत् अवक्षताम् अवक्षन् अ० अवक्षीत् अवक्षिष्टाम्
अवक्षिषुः प० ववक्ष ववक्षतुः ववक्षुः आ० वक्ष्यात् वक्ष्यास्ताम्
वक्ष्यासुः श्व० वक्षिता वक्षितारौ वक्षितारः भ० वक्षिष्यति वक्षिष्यतः वक्षिष्यन्ति क्रि० अवक्षिष्यत् अवक्षिष्यताम् अवक्षिष्यन्
५७८. त्वक्ष (त्वक्ष्) त्वचने।
त्वचनं त्वग्ग्रहणं संवरणं वा। व० त्वक्षति त्वक्षतः त्वक्षन्ति स० त्वक्षेत् त्वक्षेताम् त्वक्षेयुः प० त्वक्षतु/त्वक्षतात् त्वक्षताम् त्वक्षन्तु ह्य० अत्वक्षत् अत्वक्षताम् अत्वक्षन् अ० अत्वक्षीत् अत्वक्षिष्टाम् अत्वक्षिषुः प० तत्वक्ष तत्वक्षतुः तत्वक्षुः आ० त्वक्ष्यात् त्वक्ष्यास्ताम् त्वक्ष्यासुः श्व० त्वक्षिता त्वक्षितारौ त्वक्षितार: भ० त्वक्षिष्यति त्वक्षिष्यतः त्वक्षिष्यन्ति क्रि० अत्वक्षिष्यत् अत्वक्षिष्यताम् अत्वक्षिष्यन्
५७९. सूर्भ (सूर्भ) अनादरे। व० सूक्षति सूक्षतः सूर्धन्ति स० सूक्षैत् सूर्वेताम् सूर्भेयुः प० सूर्खतु/सूर्खतात् सूक्षताम् सूक्षन्तु ह्य० असूक्षत् असूक्षताम् असूक्षन् अ० असूक्षीत् असूर्खिष्टाम् असूक्षिषुः
तस्तृक्षुः
नक्षेयुः
ननक्षतुः
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
प० सुसूर्फ सुसूक्षतुः सुसूक्षहः आ० सूर्ध्यात् सूक्ष्ास्ताम् सूक्ष्ासुः श्व० सूक्षिता सूक्षितारौ सूर्खितारः भ० सूक्षिष्यति सूक्षिष्यतः सूक्षिष्यन्ति क्रि० असूर्खिष्यत् असूर्खिष्यताम् असूक्षिष्यन्
५८०. काक्षु (काइझ्) काङ्क्षायाम्। व० काङ्क्षति काङ्क्षतः काङ्क्षन्ति स० काङ्केत् काङ्क्षताम् काङ्गेयुः प० काङ्क्षतु/काङ्क्षतात् काङ्क्षताम् काङ्क्षन्तु ह्य० अकाङ्क्षत् अकाङ्क्षताम् अकाङ्क्षन् अ० अकाङ्क्षीत् अकाङ्किष्टाम् अकाक्षिषुः प० चकाङ्क्ष चकाङ्क्षतुः चकाङ्क्षः आ० काझ्यात् काझ्यास्ताम् काझ्यासुः श्व० काङ्किता काङ्कितारौ काङ्कितार: भ० काक्षिष्यति काक्षिष्यतः काक्षिष्यन्ति क्रि० अकाक्षिष्यत् अकाक्षिष्यताम् अकाक्षिष्यन्
५८१. वाक्षु (वाझ्) काङ्क्षायाम्। व० वाङ्क्षति वाङ्क्षतः वाङ्क्षन्ति स० वाक्षेत्र वाङ्क्षताम् वाङ्युः प० वाङ्क्षतु/वाङ्गतात् वाङ्क्षताम् वाङ्क्षन्तु ह्य० अवाङ्क्षत् अवाङ्क्षताम् अवाङ्क्षन् अ० अवाङ्क्षीत् अवाक्षिष्टाम् अवाक्षिषुः प० ववाङ्क्ष ववाङ्क्षतुः ववाक्षुः आ० वाझ्यात् वाझ्यास्ताम् वाझ्यासुः १० वाक्षिता वाङ्कितारौ वाङ्कितारः भ० वाक्षिष्यति वाक्षिष्यतः वाक्षिष्यन्ति क्रि० अवाक्षिष्यत् अवाक्षिष्यताम् अवाङ्किष्यन्
५८२. माक्षु (माझ्) काक्षायाम्। व० माङ्क्षति माङ्क्षतः माङ्क्षन्ति स० माक्षेत् माङ्क्षताम् माझेयुः प० माङ्क्षतु/माङ्क्षतात् माङ्क्षताम् माङ्क्षन्तु
ह्य० अमाङ्क्षत् अमाङ्क्षताम् अमाङ्क्षन् अ० अमाङ्क्षीत् अमाक्षिष्टाम् अमाक्षिषुः प० ममाङ्क्ष ममाङ्क्षतुः ममाङ्क्षः आ० माझ्यात् माझ्यास्ताम् माझ्यासुः श्व० माह्निता माङ्कितारौ माङ्कितार: भ० माक्षिष्यति मासिष्यतः माक्षिष्यन्ति क्रि० अमाक्षिष्यत् अमाक्षिष्यताम् अमाक्षिष्यन् ५८३. द्राक्षु (द्रास्) घोरबाशिते च।
चकारात्काङ्क्षायाम्। व० द्राङ्क्षति द्राङ्क्षतः द्राक्षन्ति स० द्राक्षेत्
द्राक्षेताम् द्राक्षेयुः प० द्रार्धातु/द्राङ्क्षतात् द्राङ्क्षताम् द्राक्षन्तु ह्य० अद्राङ्क्षत् अद्राङ्क्षताम् अद्राक्षन् अ० अद्राङ्क्षीत् अद्राक्षिष्टाम् अद्राक्षिषुः प० दद्राक्ष दद्राङ्क्षतुः दद्राक्षुः आ० द्राक्ष्यात् द्राक्ष्यास्ताम् द्राक्ष्यासुः श्व० द्राङ्किता द्राङ्कितारौ द्राङ्कितारः भ० द्राक्षिष्यति द्राक्षिष्यतः द्राक्षिष्यन्ति क्रि० अद्राङ्किष्यत् अद्राङ्किष्यताम् अद्राङ्किष्यन्
५८४. धाक्षु (धाक्ष) घोरबाशिते काङ्गायाञ्च। व० ध्राङ्क्षति ध्राङ्क्षतः स० ध्राक्षेत् ध्राङ्क्षताम् ध्राझेयुः प० ध्राङ्क्षतु/ध्राङ्क्षतात् ध्राङ्क्षताम् ध्राङ्क्षन्तु ह्य० अध्राङ्क्षत् अध्राङ्क्षताम् अध्राङ्क्षन् अ० अध्राङ्क्षीत् अध्राङ्किष्टाम् अध्राक्षिषुः प० दध्राक्ष दध्राङ्क्षतुः दध्राक्षुः आ० ध्राझ्यात् ध्राझ्यास्ताम् ध्राझ्यासुः व० ध्राक्षिता ध्राङ्कितारौ ध्राङ्कितारः भ० ध्राक्षिष्यति ध्राक्षिष्यतः ध्राक्षिष्यन्ति क्रि० अध्राक्षिष्यत् अध्राक्षिष्यताम् अध्राइक्षिष्यन्
ध्राङ्क्षन्ति
Jạin Education International
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
148
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
५८५ ध्वाक्षु (ध्वार) घोरवाशिते।
काङ्क्षायाञ्च। व० ध्वाक्षति ध्वाङ्क्षतः ध्वाङ्क्षन्ति स० ध्वाक्षेत् ध्वाङ्क्षताम् ध्वाङ्युः प० ध्वाङ्क्षतु/ध्वाङ्क्षतात् ध्वाङ्क्षताम् ध्वाङ्क्षन्तु ह्य० अध्वाङ्क्षत् अध्वाक्षताम् अध्वाङ्क्षन् अ० अध्वाङ्क्षीत् अध्वाक्षिष्टाम् अध्वाक्षिषुः प० दध्वाङ्क्ष दध्वाङ्क्षतुः दध्वाक्षुः आ० ध्वाझ्यात् ध्वाझ्यास्ताम् ध्वाझ्यासुः श्व० ध्वाक्षिता
ध्वाङ्कितारौ
ध्वाङ्कितार: भ० ध्वाक्षिष्यति ध्वाक्षिष्यतः ध्वाक्षिष्यन्ति क्रि० अध्वाङ्किष्यत् अध्वाक्षिष्यताम् अध्वाक्षिष्यन् एते निरनुबन्धत्वाच्छेषात्कर्तरीति परस्मैपदिनः। ॥ इति परस्मैपदिनो धातवः।।
॥अथात्मनेपदिनः।। अथ इडित आत्मनेपदिन आईक्षेर्वर्णसमाम्नायक्रमेण वक्ष्यन्ते।
५८६. गाङ् (गा) गती। व० गाते गासे गाथे
गाध्वे गावहे गामहे
स्मये
जगे
जगिवहे जगिमहे आ० गासीष्ट गासीयास्ताम् गासीरन्
गासीष्ठाः गासीयास्थाम् गासीध्वम्
गासीय गासीवहि गासीमहि श्व० गाता गातारौ गातार:
गातासे गातासाथे गाताध्वे
गाताहे गातास्वहे गातास्मिहे भ० गास्यते
गास्येते गास्यन्ते गास्यसे गास्येथे गास्यध्वे
गास्ये गास्यावहे गास्यामहे क्रि० अगास्यत अगास्येताम् अगास्यन्त
अगास्यथाः अगास्येथाम् अगास्यध्वम् अगास्ये अगास्यावहि अगास्यामहि
५८७. पिङ् (स्मि) इषद्धसने। व० स्मयते स्मयेते स्मयन्ते स्मयसे स्मयेथे स्मयध्वे
स्मयावहे स्मयामहे स० स्मयेत स्मयेयाताम् स्मयेरन्
स्मयेथाः स्मयेयाथाम् स्मयेध्वम् स्मयेय स्मयेवहि स्मयेमहि स्मयताम्
स्मयन्ताम् स्मयस्व
स्मयध्वम् स्मयै स्मयावहै स्मयामहै ह्य० अस्मयत अस्मयेताम अस्मयन्त
अस्मयथा: अस्मयथाम अस्मयध्वम्
अस्मये अस्मयावहि अस्मयामहि अ० अस्मेष्ट अस्मेषाताम् अस्मेषत
अस्मेष्ठाः अस्मेषाथाम् अस्मेड्ढ्वम्
अस्मेषि अस्मेष्वहि अस्मेष्महि प० सिष्मिये सिष्मियाते सिष्मियिरे
सिष्मियिषे सिमियाथे सिष्मियिदवे/यिध्वे
सिष्मियिये सिष्मियिवहे सिष्मियिमहे आ० स्मेषीष्ट स्मेषीयास्ताम् स्मेषीरन्
स्मेषीष्ठाः स्मेषीयास्थाम् स्मेषीध्वम्
गाते
गाते
गागै
प०
स्मयेताम् स्मयेथाम्
गेयाताम्
गेरन्
गेध्वम्
गेथाः गय
गेमहि
गाताम्
गाताम
गाध्वम्
गामहै
अगात
ह्य० अगात
अगाथा:
अगे अ० अगास्त
अगास्थाः
अगासि प० जग
जगिषे
गेयाथाम् गेवहि गाताम् गाथाम गावहै अगाताम् अगाथाम् अगावहि अगासाताम् अगासाथाम् अगास्वहि जगाते जगाथे
अगाध्वम् अगामहि अगासत अगादध्वम् अगास्महि जगिरे जगिध्वे
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
___149
डयन्ते
डये
अवेथाः
स्मेषीय स्मेषीवहि स्मेषीमहि २० स्मता स्मतारौ स्मतार:
स्मतासे स्मतासाथे स्मताध्वे
स्मताहे स्मतास्वहे स्मेतास्मिहे भ० स्मेष्यते स्मेष्स्येते स्मेष्यन्ते
स्मेष्यसे स्मेष्स्येथे स्मेष्यध्वे
स्मेष्ट्ये स्मेष्यावहे स्मेष्यामहे क्रि० अस्मेष्यत अस्मेष्येताम् अस्मेष्यन्त
अस्मेष्यथाः अस्मेष्येथाम् अस्मेष्यध्वम् अस्मेष्ये अस्मेष्यावहि अस्मेष्यामहि
५८८. डीङ् (डी) विहायसांगतौ। व० डयते डयेते डयसे डयेथे
डयध्वे
डयावहे डयामहे स० डयेत डयेयाताम् डयेरन्
डयेथाः डयेयाथाम् डयेध्वम्
डयेय डयेवहि डयेमहि प० डयताम् डयेताम् डयन्ताम्
डयस्व डयेथाम डयध्वम्
डयै डयावहै डयामहै ह्य० अडयत अडयेताम् अडयन्त
अडयथा: अडयथाम अडयध्वम्
अडये अडयावहि अडयामहि अ० अडयिष्ट अडयिषाताम् अडेषत
अडयिष्ठाः अडयिषाथाम् अडयिडूंवम/ध्वम्
अडयिषि अडयिष्वहि अडेष्महि प० डिड्ये डिड्याते डिड्यरे
डिड्यषे डिड्याथे डिड्यढवे डिड्यध्वे
डिड्ये डिड्यिावहे डिडियामहे आ० डयिषीष्ट डयिषीयास्ताम् डयिषीरन्
डयिषीष्ठाः डयिषीयास्थाम् डयिषीढ्वम्/ध्वम् डयिषीय डयिषीवहि डयिषीमहि
श्व० डयिता डयितारौ डयितार:
डयतासे डयितासाथे डयिताध्वे/ड्दवे
डयिताहे डयितास्वहे डयितास्महे भ० डयिष्यते डयिष्स्येते डयिष्यन्ते
डयिष्यसे डयिष्स्येथे डयिष्यते
डयिष्ये डयिष्यावहे डयिष्यामहे क्रि० अडयिष्यत अडयिष्येताम् अडयिष्यन्त
अडयिष्यथाः अडयिष्येथाम् अडयिष्यध्वम् अडयिष्ये अडयिष्यावहि अडयिष्यामहि
अथ उकारान्ता एकादश अनिटश्च।
५८९. उंङ् (उ) शब्दे। व० अवते अवेते
अवन्ते __ अवसे अवेथे अवध्वे
अवे अवावहे अवामहे स० अवेत अवेयाताम् अवेरन्
अवेयाथाम् अवेध्वम् अवेय अवेवहि अवेमहि प० अवताम्
अवेताम् अवन्ताम् अवस्व
अवेथाम अवध्वम्
अवावहै अवामहै आवत आवेताम् आवन्त आवथा: आवथाम आवध्वम् आवे
आवावहि आवामहि अ० औष्ट औषाताम् औषत औष्ठाः औषाथाम्
औड्डवम् औषि औष्वहि
औष्महि/वम् ऊवे ऊवाते
ऊविरे ऊविषे ऊवाथे ऊविढ्वे/ध्वे
ऊविवहे ऊविमहे आ० ओषीष्ट ओषीयास्ताम्
ओषीष्ठाः ओषीयास्थाम् ओषीदवम् ओषीय ओषीवहि ओषीमहि
अवै
ह्य०
ऊवे
ओषीरन्
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
150
धातुरलाकर प्रथम भाग
कवे
कवेध्वम्
श्व० ओता ओतारौ ओतार:
आतासे ओतासाथे आताध्वे ओताहे
ओतास्वहे ओतास्मिहे भ० ओष्यते ओष्स्येते ओष्यन्ते
ओष्यसे ओष्स्येथे ओष्यध्वे आष्स्ये ओष्यावहे
ओष्यामहे क्रि० औष्यत औष्येताम् औष्यन्त
औष्यथाः औष्येथाम् औष्यध्वम् औष्ये औष्यावहि औष्यामहि
५९०. कुंङ् (कु) शब्दे। व० कवते कवेते कवन्ते - कवसे कवेथे कवध्वे
कवावहे कवामहे स० कवेत कवेयाताम् कवेरन्
कवेथाः कवेयाथाम्
कवेय कवेवहि कवेमहि प० कवताम् कवेताम् कवन्ताम्
कवस्व कवेथाम कवध्वम्
कवै कवावहै कवामहै ह्य० अकवत अकवेताम् अकवन्त अकवथा: अकवथाम अकवध्वम्
अकवावहि अकवामहि अ० अकोष्ट अकोषाताम् अकोषत अकोष्ठाः
अकोषाथाम् अकोडूवम्/वम् अकोषि
अकोष्वहि अकोष्महि प० चुकुवे चुकुवाते चुकुविषे
चुकुवाथे चुकुविढ्वे/ध्वे
चुकुविवहे चुकुविमहे आ० कोषीष्ट कोषीयास्ताम् कोषीरन्
कोषीष्ठाः कोषीयास्थाम् कोषीढ्वम् कोषोय कोषीवहि कोषीमहि
श्व० कोता कोतारौ
कोतार: कोतासे कोतासाथे कोताध्वे
कोताहे कोतास्वहे कोतास्महे भ० कोष्यते कोष्येते कोष्यन्ते
कोष्यसे कोष्येथे कोष्यध्वे
कोष्ये कोष्यावहे कोष्यामहे क्रि० अकोष्यत अकोष्येताम् अकोष्यन्त
अकोष्यथाः अकोष्येथाम् अकोष्यध्वम् अकोष्ये अकोष्यावहि अकोष्यामहि
५९१. गुंङ् (गु) शब्दे।
अव्यक्ते इति केचित्। व० गवते गवते गवन्ते स० गवत गवेयाताम् गवेरन् प० गवताम् गवेताम् गवन्ताम् ह० अगवत अगवेताम् अगवन्त अ० अगोष्ट अगोषाताम् अगोषत प० जुगुवे
जुगुवाते जुगुविरे आ० गोषीष्ट गोषीयास्ताम् गोषीरन् श्व० गोता गोतारौ गोतारः भ० गोष्यते गोष्येते गोष्यन्ते क्रि० अगोष्यत अगोष्येताम् अगोष्यन्त
५९२. थुङ् (घु) शब्दे। व० घवते घवेते
घवन्ते स० घवेत घवेयाताम् प० घवताम् घवेताम् घवन्ताम् ह्य० अघवत अघवेताम् अघवन्त अघोष्ट अघोषाताम्
अघोषत
जुघुवाते आ० घोषीष्ट घोषीयास्ताम् घोषीरन् श्व० घोता घोतारौ भ० घोष्यते घोष्स्येते घोष्यन्ते क्रि० अघोष्यत अघोष्येताम् अघोष्यन्त
अकवे
घवेरन्
चुकुविरे
चुकुवे
जुघुवे
जुघुविरे
घोतारः
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
व० डवते
ङवत
स०
प० ङवताम्
ह्य०
अ०
प० जुडुवे
आ० डाषीष्ट
श्र०
होता
भ० डोप्यते
क्रि० अोप्यत
अवत
अडोष्ट
व०
च्यवते
स० च्यवेत
प० च्यवताम्
ह्य० अच्यवत
अ० अच्योष्ट
प० चुच्युवे
आ० च्यापीष्ट
श्र० च्योता
भ० च्योष्यत
क्रि० अन्योष्यत
व० ज्यवते
स० ज्यवेत
प० ज्यवताम
हा०
अज्यवत
अ अज्याष्ट
प० जुज्युत्रे
आ० ज्योषीष्ट
श्र० ज्योता
५९३. डुंङ् (ङ) शब्दे ।
एतत्स्थाने खुङ् इत्येके
ङवेते
ङवेयाताम्
ङवेताम्
ङवन्ताम्
अङवेताम् अङवन्त
अडोषाताम्
अडोषत
डुवा
ङोषीयास्ताम्
तारौ
डोष्येते
ङवन्ते
ङवेरन्
त्रुडुविरे
ङोषीरन्
ङोतार:
ङोष्यन्ते
अडोष्यन्त
अडोष्येताम्
५९४. च्युङ् (च्यु) गतौ ।
च्यवेते
च्यांतारौ
च्योष्स्येते
च्यवन्ते
च्यवेयाताम्
च्यवेरन्
च्यवेताम्
च्यवन्ताम्
अच्यवेताम् अच्यवन्त
अच्योषाताम् अच्योषत
चुच्युवाते
च्योषीयास्ताम्
चुच्यविरे
च्योषीरन्
च्योतारः
च्योष्यन्ते
अच्योष्यन्त
अच्योष्येताम्
५९५. ज्युङ् (ज्यु) गतौ ।
ज्यवेते
ज्यवन्ते
ज्यवेयाताम्
ज्यवेरन्
ज्यवेताम्
ज्यवन्ताम्
अज्यवेताम् अज्यवन्त
अज्योषाताम्
अज्योषत
ज्युवा
जुज्युविरे
ज्योषीयास्ताम् ज्योषीरन्
ज्यांतारौ
ज्योतार:
भ०
ज्योष्यते
क्रि० अज्योष्यत
व० जवते
स०
जवेत
प० जवताम्
ह्य० अजवत
अ० अजोष्ट
प० जुजुवे
आ० जोषीष्ट
श्व० जोता
भ० जोष्यते
क्रि० अजोष्यत
व० प्रवते
स० प्रवेत
प० प्रवताम्
ह्य० अप्रवत
अ० अप्रोष्ट
लं
प० पुप्रुवे
आ० प्रोषीष्ट
श्व० प्रोता
भ० प्रोष्यते
क्रि० अप्रोष्यत
व० प्लवते
स० प्लवेत
प० प्लवताम्
ह्य० अप्लवत
अ० अप्लोष्ट
प० पुप्लुवे
ज्योष्स्येते
अज्योष्येताम्
५९६. जुङ् (जु) गतौ ।
जवेते
जवन्ते
जवेयाताम्
जवेरन्
वेताम्
जवन्ताम्
अजवेताम् अजवन्त
अजोषाताम् अजोषत
जुजुविरे
जोषीरन्
जोतार:
जोष्यन्ते
अजोष्यन्त
जुजुव
जोषीयास्ताम्
जोतारौ
जोष्स्येते
अजोष्येताम्
५९७. प्रुङ् (त्रु) गतौ ।
प्रवेते
प्रवेयाताम्
प्रवेताम्
प्रवे
अप्रोषाताम्
पुपुवाते
प्रोषीयास्ताम्
ज्योष्यन्ते
अज्योष्यन्त
प्रोतारौ
प्रोष्स्येते
प्लवेयाताम्
प्लवेताम्
प्रवन्ते
प्रवेरन्
प्रवन्ताम्
अप्रवन्त
अप्रोषत
पुप्रुविरे
प्रोषीरन्
प्रोतार:
प्रोष्यन्ते
अप्रोष्यन्त
अप्रोष्येताम्
५९८. प्लुंङ् (प्लु) गतौ ।
प्लवेते
प्लवन्ते
प्लवेरन्
प्लवन्ताम्
अप्लवेताम् अप्लवन्त
अप्लोषाताम्
अप्लोषत
पुप्लुवाते
पुप्लुविरं
151
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
152
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अमवेताम् अमविषाताम्
अमवन्त अमविषत
मुमुवाते
मुमुविरे
ह्य० अमवत अ० अमविष्ट प० मुमुवे आ० मविषीष्ट श्व० मविता भ० मविष्यते क्रि० अमविष्यत
मविषीयास्ताम् मवितारौ मविष्स्येते अमविष्येताम्
मविषीरन् मवितार: मविष्यन्ते अमविष्यन्त
रवेते
रवन्ते
रवेरन्
धरेन्
धरेताम्
रोषीरन्
आ० प्लाषीष्ट प्लोषीयास्ताम् प्लोषीरन् श्व० प्लोता प्लोतारौ प्लोतारः भ० प्लोष्यते प्लोष्स्येते प्लोष्यन्ते क्रि० अप्लाष्यत अप्लोष्येताम् अप्लोष्यन्त
५९९. रुंङ् (रु) रेषणे च।
चकाराद्गतौ। रेषणं हिंसाशब्दः। व० रवते स० रवेत
रवेयाताम् प० रवताम्
रवेताम् रवन्ताम् ह्य० अरवत अरवेताम् अरवन्त अ० अरोष्ट अरोषाताम् अरोषत प० रुरुवे रुरुवाते रुरुविरे आ० रोषीष्ट
रोषीयास्ताम् श्व० रोता रोतारौ रोतार: भ० रोष्यते रोष्येते रोष्यन्ते क्रि० अरोष्यत अरोष्येताम् अरोष्यन्त
॥अथ ऊदन्तौ द्वौ सेटौ च॥
६००. पूङ् (पू) पवने। व० पवते
पवेते
पवन्ते स० पवेत पवेयाताम् पवेरन प० पवताम्
पवन्ताम् ह्य० अपवत अपवेताम् अपवन्त अ० अपविष्ट अपविषाताम् अपविषत प० पुपुर्व आ० पविषीष्ट पविषीयास्ताम् पविषीरन् श्व० पविता पवितारौ पवितारः भ० पविष्यते पविष्येते पविष्यन्ते क्रि० अपविष्यत अपविष्येताम् अपविष्यन्त
६०१. मूङ् (मू) बन्धने। व० मवते मवेते
मवन्ते स० मवेत मवेयाताम्
मवेरन् प० मवताम् मवेताम् मवन्ताम्
६०२. धुंङ् (धृ) अविध्वंसने। व० धरते धरेते
धरन्ते स० धरेत
धरेयाताम् प० धरताम्
धरन्ताम् ह्य० अधरत अधरेताम् अधरन्त अ० अधृत अधृषाताम् अधृषत प० दधे
दध्राते
दध्रिरे आ० धृषीष्ट धृषीयास्ताम् धृषीरन् श्व० धर्ता धर्तारौ धर्तारः भ० धरिष्यते धरिष्स्येते धरिष्यन्ते क्रि० अधरिष्यत अधरिष्येताम् अधरिष्यन्त
अतः परावेदन्तौ द्वावनिटौ च। ६०३. मेंङ् (मे) प्रतिदाने।
प्रतिदान प्रत्यर्पणम्। व० मयते मयेते मयन्ते स० मयेत मयेयाताम् मयेरन प० मयताम् मयेताम् मयन्ताम् ह्य० अमयत
अमयेताम्
अमयन्त अ० अमास्त अमासाताम् अमासत प० ममे ममाते
ममिरे आ० मासीष्ट मासीयास्ताम् मासीरन् श्व० माता मातारौ
मातार: भ० मास्यते मास्स्येते मास्यन्ते क्रि० अमास्यत अमास्येताम अमास्यन्त
पवेताम्
पुपुवाते
पुपुविरे
-
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
दयते
स० दयेत
प०
व०
दयताम्
ह्य०
अदयत
अ० अदित
प०
दिग्ये
आ० दासीष्ट
श्व० दाता
भ० दास्यते
क्रि० अदास्यत
व० त्रायते
त्रायसे
त्राये
स० त्रायेत
प०
हा०
अ०
त्रायेथा:
त्रायेय
प०
त्रायताम्
त्रायस्व
त्रायै
अत्रायत
अत्रायथाः
अत्राये
अत्रास्त
अत्रास्था:
अत्रासि
तत्रे
तत्रिषे
त्रे
आ० त्रासीष्ट
त्रासीष्ठाः
६०४. देंङ् (दे) पालने ।
द
दयेयाताम्
दाम्
अदयेताम्
अदिषाताम्
दिग्याते
दासीयास्ताम्
दातारौ
दास्स्येते
अदास्येताम्
अथ ऐत्रान्तास्त्रयोऽनिश्च ।
६०५. त्रङ् (त्रै) पालने ।
त्रायेते
त्रायते
त्रायेथे
त्रायध्वे
त्रायावहे
त्रायामहे
त्रायेयाताम् त्रायेरन्
त्रायेयाथाम्
त्रायेध्वम्
त्रायेवहि
त्राहि
त्रायेताम्
त्रायेथाम्
त्राया है
अत्रायेताम्
दयन्ते
दयेरन्
दयन्ताम्
अदयन्त
अदिषत
दिग्यिरे
दासीरन्
दातारः
दास्यन्ते
अदास्यन्त
अत्रायथाम्
अत्रायावहि
अत्रासाताम्
अत्रासाथाम्
अत्रास्वहि
तत्राते
तत्रा
तत्रिवहे
त्रायन्ताम्
त्रायध्वम्
त्रायाम
अत्रायन्त
अत्रायध्वम्
अत्रायामहि
अत्रासत
अत्रासद्द्वम्/ध्वम्
अत्रास्महि
तत्रिरे
दिवे / वे
तत्रिमहे
त्रासीयास्ताम् त्रासीरन् त्रासीयास्थाम् त्रासीद्द्वम्
go
भ० त्रास्यते
त्रास्यसे
त्रास्स्ये
क्रि० अत्रास्यत
व०
स०
प०
त्रासीय
त्राता
त्रातासे
ह्य०
अत्रास्यथाः
अत्रास्ये
श्यायते
श्यायेत
श्यायताम्
अश्यायत
अ० अश्यास्त
प० शश्ये
आ० श्यासीष्ट
go श्याता
भ० श्यास्यते
क्रि० अश्यास्यत
व० प्यायते
स० प्यायेत
प० प्यायताम्
ह्य० अप्यायत
अ० अप्यास्त
प० पप्ये
आ० प्यासीष्ट
श्व०
प्याता
भ० प्यास्यते
क्रि० अप्यास्यत
त्रासीवहि
त्रातारौ
त्रासी महि
त्रातार:
त्रातासाथे
त्राताध्वे
त्रातास्वहे
त्रातास्मिहे
त्रास्स्येते
त्रास्यन्ते
त्रास्येथे
त्रास्यध्वे
त्रास्यावहे
त्रास्यामहे
अत्रायेताम्
अत्रास्यन्त
अत्रास्येथाम्
अत्रास्यध्वम्
अत्रास्यावहि अत्रास्यामहि
६०६. श्यैङ् (श्यै) गतौ ।
श्यायेते
श्यायेयाताम्
श्याम्
अश्यायेताम्
श्यायन्ते
श्यायेरन्
श्यायन्ताम्
अश्यायन्त
अश्यासत
शश्यिरे
श्यासीयास्ताम् श्यासीरन्
श्यातार:
श्या श्यास्येते अश्यास्येताम् अश्यास्यन्त
श्यास्यन्ते
अश्यासाताम्
शश्याते
६०७. प्यैङ् (प्यै) वृद्धौ ।
प्यायेते
प्यायेयाताम्
प्यायेताम्
अप्यायेताम्
अप्यासाताम्
पप्याते
प्यायन्ते
प्यायेरन्
प्यायन्ताम्
अप्यायन्त
अप्यासत
पप्यिरे
प्यासीयास्ताम्
प्यातारौ
प्यास्स्येते
अप्यास्येताम् अप्यास्यन्त
प्यासीरन्
प्यातार:
प्यास्यन्ते
अथ एकोनत्रिंशत्कान्ताः सेटच ।
153
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
154
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प० मङ्कताम्
|s # # # # # # #
वडय
६०८. वकुङ् (वङ्क) कौटिल्ये। व० वङ्कते वक्रेते वङ्कन्ते
वङ्कस वतेथे वकध्वे
वङ्के वङ्कावहे वङ्कामहे स० वङ्केत वङ्केयाताम् वङ्केरन् वङ्केथाः वङ्केयाथाम् वङ्केध्वम्
वङ्केवहि वक्रेमहि प० वङ्कताम्
वङ्केताम् वङ्कन्ताम् वङ्कस्व वङ्केथाम् वकध्वम्
वळे वङ्कावहै वङ्कामहै ह्या अवत अवङ्केताम् अवन्त
अवङ्कथाः अवङ्कथाम् अवकध्वम्
अवङ्के अवङ्कावहि अवङ्कामहि अ० अवङ्किष्ट अवङ्किषाताम् अवङ्किषत
अवङ्किष्ठाः अवतिषाथाम् अवड्डूिवम्/ध्वम्
अवङ्किषि अवङ्किष्वहि अवङ्किष्महि प० ववते ववङ्काते ववङ्किरे
ववङ्किषे ववङ्काथे ववङ्किध्वे
ववङ्के ववङ्किवहे ववङ्किमहे आ० वतिषीष्ट वङ्किषीयास्ताम् वङ्किषीरन्
वङ्किषीष्ठाः वतिषीयास्थाम् वङ्किषीढ्वम् वऋिषीय
वतिषीवहि वऋिषीमहि श्व० वङ्किता वङ्कितारौ वङ्कितारः
वङ्कितासे वङ्कितासाथे वङ्किताध्वे
वङ्किताहे वङ्कितास्वहे वङ्कितास्मिहे भ० वऋिष्यते वतिष्येते वङ्किष्यन्ते
वङ्गिष्यसे वङ्किष्येथे वतिध्वे
वदिष्ये वङ्किष्यावहे वङ्किष्यामहे क्रि० अङ्किष्यत अवङ्किष्येताम् अप्यास्यन्त
अवङ्किष्यथाः अवङ्किष्येथाम् अवङ्किष्यध्वम् अवङ्किष्ये अवङ्किष्यावहि अवङ्किष्यामहि
६०९. मकुङ् (मङ्क) मण्डने।
# # # * * * * *
व० मङ्कते मङ्केते मङ्कन्ते स० मङ्केत मङ्केयाताम् मङ्केरन्
मङ्केताम् । मङ्कन्ताम् ह्य० अमङ्कत अमङ्केताम् अमङ्कन्त अ० अमङ्किष्ट अमङ्किषाताम् अमङ्किषत
ममङ्के ममकाते ममङ्किरे आ० मङ्किषीष्ट मङ्किषीयास्ताम् मङ्किषीरन् श्व० मङ्किता मङ्कितारौ मङ्कितार: भ० मङ्किष्यते मतिष्येते मङ्किष्यन्ते क्रि० अमङ्किष्यत अमङ्किष्येताम् अप्यास्यन्त
६१०. अकुङ् (अङ्क) लक्षणे।
लक्षणं चिह्नम्। व० अङ्कते अङ्केते अङ्कन्ते स० अङ्केत अङ्केयाताम् अङ्केरन् प० अङ्कताम् अङ्केताम् अङ्कन्ताम् ह्य० आङ्कत आङ्केताम् आङ्कन्त अ० आङ्किष्ट आङ्किषाताम् आङ्किषत प० आनङ्के आनङ्काते आनङ्किरे आ० अङ्किषीष्ट अङ्किषीयास्ताम् अङ्किषीरन् श्व० अङ्किता अङ्कितारौ अङ्कितार: भ० अतिष्यते अङ्किष्येते अङ्किष्यन्ते क्रि० आङ्किष्यत आङ्किष्येताम् आङ्किष्यन्त
६११. शीकृङ् (शीक्) सेचने। व० शीकते शीकेते शीकन्ते स० शीकेत शीकेयाताम् शीकेरन् प० शीकताम् शीकेताम्
शीकन्ताम् ह्य० अशीकत अशीकेताम् अशीकन्त अ० अशीकिष्ट अशीकिषाताम् अशीकिषत प० शिशीके शिशीकाते शिशीकिरे आ० शीकिषीष्ट शीकिषीयास्ताम् शीकिषीरन् श्व० शीकिता शीकितारौ शीकितारः भ० शीकिष्यते शीकिष्येते शीकिष्यन्ते क्रि० अशीकिष्यत अशीकिष्येताम अशीकिष्यन्त
* * * * * * *
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
155
लोकेते
लाल
६१२. लोकृङ् (लोक्) दर्शने। व० लोकते
लोकन्ते स० लोकेत लोकेयाताम् लोकेरन् प० लोकताम् लोकेताम् लोकन्ताम् ह्य० अलोकत अलोकेताम् अलोकन्त अ० अलोकिष्ट अलोकिषाताम् अलोकिषत प० लुलोके लुलोकाते लुलोकिरे आ० लोकिषीष्ट लोकिषीयास्ताम् लोकिषीरन् श्व० लोकिता लोकितारौ लोकितारः भ० लोकिष्यते लोकिष्येते लोकिष्यन्ते क्रि० अलोकिष्यत अलोकिष्येताम् अलोकिष्यन्त
६१३. श्लोकृङ् (श्लोक्) सङ्घाते।
संघातः संहननं संहन्यमानश्च। व० श्लोकते श्लोकेते श्लोकन्ते स० श्लोकेत श्लोकेयाताम् श्लोकेरन् प० श्लोकताम् श्लोकेताम् श्लोकन्ताम् ह्य० अश्लोकत अश्लोकेताम् अश्लोकन्त अ० अश्लोकिष्ट अश्लोकिषाताम् अश्लोकिषत प० शुश्लोके शुश्लोकाते शुश्लोकिरे आ० श्लोकिषीष्ट श्लोकिषीयास्ताम् श्लोकिषीरन् श्व० श्लोकिता श्लोकितारौ श्लोकितार: भ० श्लोकिष्यते श्लोकिष्येते श्लोकिष्यन्ते क्रि० अश्लोकिष्यत अश्लोकिष्येताम् अश्लोकिष्यन्त
६१४. द्रेकृङ् (द्रेक) शब्दोत्साहे।
__ शब्दस्योत्साह औद्धत्यं वृद्धिश्च। व० नेकते द्रेकेते द्रेकन्ते स० द्रकेत द्रेकेयाताम् द्रेकेरन् प० देकताम् द्रेकेताम् द्रेकन्ताम् ह्य० अनेकत अद्रकेताम् अनेकन्त अ० अद्रेकिष्ट अद्रेकिषाताम् अद्रेकिषत प० दिनेके दिद्रेकाते दिद्रकिरे आ० द्रकिषीष्ट ट्रेकिषीयास्ताम् द्रकिषीरन्
श्व० द्रेकिता नेकितारौ द्रेकितार: भ० देकिष्यते ट्रेकिष्येते द्रकिष्यन्ते क्रि० अद्रेकिष्यत अद्रेकिष्येताम् अद्रेकिष्यन्त
६१५. धेकृङ् (धेक्) शब्दोत्साहे।
शब्दस्कोत्साह औद्धत्यं वृद्धिश्च। व० धेकते धेकेते ध्रेकन्ते स० धेकेत धेकेयाताम् धेकेरन् प० धेकताम् धेकेताम्
धेकन्ताम् ह्य० अधेकत अधेकेताम् अध्रेकन्त अ० अधेकिष्ट अधेकिषाताम् अधेकिषत प० दिधेके दिधेकाते दिब्रेकिरे आ० धेकिषीष्ट धेकिषीयास्ताम् ब्रेकिषीरन् श्व० ब्रेकिता धेकितारौ धेकितारः भ० क्रेकिष्यते धेकिष्येते धेकिष्यन्ते क्रि० अब्रेकिष्यत अध्रेकिष्येताम् अध्रेकिष्यन्त
६१६. रेकङ् (रेक्) शङ्कायाम्।
अत्र शङ्का सन्देहः। व० रेकते
रेकेते
रेकन्ते स० रेकेत रेकेयाताम् प० रेकताम् ह्य० अरेकत
अरेकन्त अ० अरेकिष्ट अरेकिषाताम् अरेकिषत प० रिदरेके रिरेकाते रिरेकिरे आ० रेकिषीष्ट रेकिषीयास्ताम् श्व० रेकिता रेकितारौ रेकितारः भ० रेकिष्यते रेकिष्येते रेकिष्यन्ते क्रि० अरेकिष्यत अरेकिष्येताम् अरेकिष्यन्त
६१७. शकुङ् (शक्) शङ्कायाम्।
अत्र शङ्का सन्देहः त्रासश्च। | व० शङ्कते शङ्केते शङ्कन्ते | स० शङ्केत शङ्केयाताम् शङ्करन्
प० शङ्कताम् शङ्केताम् शङ्कन्ताम्
रेकेरन् रेकन्ताम्
रेकेताम् अरेकेताम्
रेकिषीरन्
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
156
ह्य० अशङ्कत
अशङ्केताम्
अशङ्कन्त
अ० अशङ्किष्ट
अशङ्किषाताम् अशङ्किषत
प० शशङ्के
शशङ्काते
शशङ्करे
आ० शङ्किषीष्ट
शङ्किषीयास्ताम् शङ्किषीरन्
श्र० शङ्किता
शङ्कितार:
शङ्किष्यन्ते
भ० शङ्किष्यते क्रि० अशङ्किष्यत अशङ्किष्येताम् अशङ्किष्यन्त
६१८. कक् (कक्) लौल्ये ।
लौल्यं गर्धश्चापल्यम्।
ककेते
ककेयाताम्
ताम्
अककेताम्
अककिषाताम्
चककाते
व०
ककते
स० ककेत
प०
ककताम्
ह्य० अककत
अ० अककिष्ट
प० चकके
आ० ककिषीष्ट
श्र०
ककिता
भ०
ककिष्यते
क्रि० अककिष्यत अककिष्येताम्
व० कोक
स० कोकत
प० कोकताम्
अकांक
공
हा०
अ० अकोकिष्ट
प० चुकुके
आ० ककिषीष्ट
श्व० कोकिता
भ० कोकिष्यते
क्रि० ओककिष्यत
व वर्कते
शङ्किता
शङ्किष्ये
६१९. कुकि (कुक्) आदाने ।
कोके
कोकन्ते
कोकेयाताम्
कोकेरन्
ताम्
कोकन्ताम्
अकोकेताम् अकोकन्त
अकोकिषाताम् अकोकिषत
चुकुकाते चुकुकिरे
ककिषीयास्ताम् ककिषीरन्
कोकितारौ
कोकितार:
कोकिष्येते
कोकिष्यन्ते
ओककिष्यन्त
६२०.
ककन्ते
कन्
ककन्ताम्
अककन्त
अककिषत
चककिरे
ककिषीयास्ताम् ककिषीरन्
कवितारौ
ककितार:
ककिष्येते
ककिष्यन्ते
अककिष्यन्त
ओक किष्येताम्
वृर्कि (वृर्क) आदाने ।
वर्कते
वर्कन्ते
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
वर्केयाताम्
वर्केरन्
ताम्
वर्कन्ताम्
अवर्केताम् अवर्कन्त अवर्कषाताम्
अवर्किषत
ववृकाते ववृकिरे
वर्किषीयास्ताम् वर्किषीरन्
वर्कितारौ
वर्कितार:
भ० वर्किष्यते
वर्किष्येते
वर्किष्यन्ते
क्रि० अवर्किष्यत अवर्कष्येताम् अवर्किष्यन्त
६२१. चकि (चक्) तृप्तिप्रतीघातयेः ।
चकेते
चकते
चकेयाताम् चकेरन्
चकेताम्
चकन्ताम्
अचकेताम् अचकन्त
अचकिषाताम् अचकिषत
चचका
चचकिरे
स० वर्केत
प० वर्कताम्
ह्य० अवर्कत
अ० अवर्किष्ट
प० ववृके
आ० वर्किषीष्ट
श्व० वर्किता
व० चकते
चकेत
स०
प० चकताम्
ह्य०
अचकत
अ० अचकिष्ट
प० चचके
आ० चकिषीष्ट
श्व० चकिता
भ० चकिष्यते
क्रि० अचकिष्यत
To
स० कङ्केत
प० कङ्कताम्
ह्य० अकङ्कत
अ० अकङ्किष्ट
प० चकङ्के
आ० कङ्किषीष्ट
श्व० कङ्किता
भ० कङ्किष्यते
क्रि० अकङ्किष्यत
चकिषीयास्ताम् चकिषीरन्
चकितार:
चकिष्यन्ते
चकितारौ
चकिष्येते
अचकिष्येताम् अचकिष्यन्त
६२२. ककुङ् (कङ्क) गतौ ।
कङ्के
कङ्कन्ते
कङ्केयाताम् कङ्केरन्
कङ्केताम्
कङ्कन्ताम्
अङ्केताम् अकङ्कन्त
अङ्किषाताम् अङ्किषत
चङ्का चकङ्किरे
कङ्किषीयास्ताम् कङ्किषीरन् कङ्कारौ
कङ्कितार:
कङ्क
कङ्किष्यन्ते
अकङ्किष्येताम् अकङ्किष्यन्त
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
157
अङ्केताम्
६२३.श्वकुङ् (वङ्क) गतौ। व० श्वते
श्वलेते
श्वतन्ते स० श्वङ्केत श्वङ्केयाताम् श्वङ्करन् प० श्वङ्कताम् श्वङ्केताम् श्वङ्कन्ताम् ह्य० अश्वङ्कत अश्वङ्केताम् अश्वङ्कन्त अ० अवङ्किष्ट अश्वङ्किषाताम् अश्वङ्किषत प० शश्व
शश्वङ्काते शश्वङ्किरे आ० श्वङ्किषीष्ट श्वऋिषीयास्ताम् श्वङ्किषीरन् श्र० श्रुङ्किता श्वङ्कितारौ श्वङ्कितारः भ० ङ्किष्यते श्वतिष्येते श्वतिष्यन्ते क्रि० अश्वङ्किष्यत अश्वङ्किष्येताम् अश्वङ्किष्यन्त
६२४. कुङ् (त्रक) गतौ। व० ऋङ्कत त्रकेते सङ्कन्ते स० अङ्केत त्रङ्केयाताम् अङ्केरन् प० ताम्
त्रन्ताम् ह्य० अङ्कत अत्रङ्केताम् अत्रङ्कन्त अ० अङ्किाट अङ्किषाताम् अत्रङ्किषत प० तत्र
तत्रङ्काते तत्रङ्किरे आ० ङ्किषीष्ट त्रतिषीयास्ताम् अङ्किषीरन् श्र० ङ्किता अङ्कितारौ त्रङ्कितारः भ० तिष्यते तिष्येते त्रङ्किष्यन्ते क्रि० अत्रक्रिष्यत अङ्किष्येताम् अत्रङ्किष्यन्त
६२५. श्रकुङ् (श्रङ्क) गतौ। व० श्रङ्कते श्रङ्केते श्रङ्कन्ते स० श्रङ्केत श्रङ्केयाताम् श्रङ्केरन् प० अङ्कताम् श्रङ्केताम् श्रङ्कन्ताम् ह्य० अश्रङ्कत अश्रङ्केताम् अश्रङ्कन्त अ० अङ्किाट अङ्किषाताम् अङ्किषत प० शश्रङ्के शङ्काते शङ्किरे आ० श्रङ्किपीष्ट श्रतिषीयास्ताम् अङ्किषीरन् श्र० किता श्रङ्कितारौ अङ्कितारः
भ० श्रतिष्यते श्रतिष्येते श्रतिष्यन्ते क्रि० अङ्किष्यत अश्रतिष्येताम् अङ्किष्यन्त
६२६.श्लकुङ् (लङ्क) गतौ। व० श्लङ्कते श्लङ्केते श्लङ्कन्ते स० श्लङ्केत श्लङ्केयाताम् ग्लङ्करन् प० श्लङ्कताम् श्लङ्कताम् श्लङ्कन्ताम् ह्य० अश्लङ्कत
अश्लङ्केताम् अश्लङ्कन्त अ० अश्लङ्किष्ट अश्लङ्किषाताम् अश्लङ्किषत प० शश्लङ्के शश्लङ्काते शश्लङ्किरे आ० श्लङ्किषीष्ट श्लङ्किषीयास्ताम् श्लङ्किषीरन् श्व० श्लङ्किता श्लङ्कितारौ श्लङ्कितार: भ० श्लङ्किष्यते श्लङ्किष्येते श्लङ्किष्यन्ते क्रि० अश्लङ्किष्यत अश्लङ्किष्येताम् अश्लङ्किष्यन्त
६२७. ढौकृङ् (ढौक्) गतौ। व० ढोकते ढौकेते ढौकन्ते
ढौकसे ढौकेथे ढौकध्वे
ढौके ढोकावहे ढौकामहे स० ढौकेत
ढौकेयाताम् ढौकेयाथाम्
ढौकेध्वम्
ढौकेवहि ढौकेमहि प० ढौकताम् ढौकेताम्
ढौकन्ताम् ढौकस्व ढौकेथाम्
ढौकध्वम् ढोकै ढोकावहै ढौकामहै अढौकत अढौकेताम् अढौकन्त अढौकथाः
अढौकथाम् अढौकध्वम् अढौके अढौकावहि अढौकामहि. अ० अढौकिष्ट अढौकिषाताम् अढौकिषत
अढौकिष्ठाः अढौकिषाथाम अढौकिड्दवम्/दवम्
अढौकिषि अढौकिष्वहि अढौकिष्महि प० डुढौके
डुढौकिरे डुढौकिषे
डुढौकिध्वे
ढौकेरन्
दौकेथाः ढौकेय
डुढौकाते डुढौकाथे
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
158
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
वस्केते
डुढौके डुढौकिवहे डुढौकिमहे आ० ढौकिषीष्ट ढौकिषीयास्ताम् ढौकिषीरन्
ढौकिषीष्ठाः ढौकिषीयास्थाम् ढौकिषीध्वम्
ढौकिषीय ढौकिषीवहि ढौकिषीमहि व० ढौकिता ढौकितारौ ढौकितार:
ढौकितासे ढौकितासाथे ढौकिताध्वे
ढौकिताहे ढौकितास्वहे ढौकिताढौहे भ० ढौकिष्यते ढौकिष्येते ढौकिष्यन्ते
ढौकिष्यसे ढौकिष्येथे ढौकिष्यध्वे
ढौकिष्ये ढौकिष्यावहे ढौकिष्यामहे क्रि० अढौकिष्यत अढौकिष्येताम् अढौकिष्यन्त
अढौकिष्यथाः अढौकिष्येथाम् अढौकिष्यध्वम् अढौकिष्ये अढौकिष्यावहि अढौकिष्यामहि
६२८. नौकृङ् (ौक) गतौ। व० नौकते त्रौकेते त्रौकन्ते स० नौकेत त्रौकेयाताम त्रौकेरन् प० त्रौकताम् नौकेताम् त्रौकन्ताम् ह्य० अत्रौकत अनौकेताम् अत्रौकन्तः अ० अत्रौकिष्ट अत्रौकिषाताम् अत्रौकिषत प० तुत्रौके तुत्रौकाते तुत्रौकिरे आ० त्रौकिषीष्ट त्रौकिषीयास्ताम् बौकिषीरन् श्व० त्रौकिता चौकितारौ त्रौकितार: भ० चौकिष्यते त्रौकिष्येते त्रौकिष्यन्ते क्रि० अौकिष्यत अत्रौकिष्येताम् अत्रौकिष्यन्त
६२९. प्वष्कि (वष्क्) गतौ। व० प्वष्कते ष्वष्केते ष्वष्कन्ते स० ष्वष्केत ष्वष्केयाताम् ष्वष्करन् प० ष्वष्कताम् ष्वष्केताम् ष्वष्कन्ताम् ह्य० अप्वष्कत अष्वष्केताम् अष्वष्कन्त अ० अष्वष्किष्ट अष्वष्किषाताम् अष्वष्किषत प० पष्वष्क षष्वष्काते षष्वष्किरे
आ० ष्वष्किषीष्ट ष्वष्किषीयास्ताम् ष्वष्किषीरन् श्व० ष्वष्किता ष्वष्कितारौ ष्वष्कितारः भ० ष्वष्किष्यते वष्किष्येतेष्वष्किष्यन्ते क्रि० अष्वष्किष्यत अष्वष्किष्येताम् अष्वष्किष्यन्त
६३०. वस्कि (वस्क्) गतौ। व० वस्कते
वस्कन्ते स० वस्केत वस्केयाताम् वस्केरन् प० वस्कताम् वस्केताम् वस्कन्ताम् ह्य० अवस्कत अवस्केताम् अवस्कन्त अ० अवस्किष्ट अवस्किषाताम् अवस्किषत प० ववस्के पवस्काते ववस्किरे आ० वस्किषीष्ट वस्किषीयास्ताम् वस्किषोरन् श्व० वस्किता वस्कितारौ वस्कितारः भ० वस्किष्यते वस्किष्येते वस्किष्यन्ते क्रि० अवस्किष्यत अवस्किष्येताम् अवस्किष्यन्त
६३१. मस्कि (मस्क्) गतौ। व० मस्कते मस्केते मस्कन्ते स० मस्केत मस्केयाताम् मस्केरन् प० मस्कताम् मस्केताम् मस्कन्ताम् ह्य० अमस्कत अमस्केताम् अमस्कन्त अ० अमस्किष्ट अमस्किषाताम् अमस्किषत प० ममस्के ममस्काते ममस्किरे आ० मस्किषीष्ट मस्किषीयास्ताम् मस्किषीरन् श्व० मस्किता मस्कितारौ मस्कितारः भ० मस्किष्यते मस्किष्येते मस्किष्यन्ते क्रि० अमस्किष्यत अमस्किष्येताम् अमस्किष्यन्त
६३२. तिकि (तिक) गतौ। व० तेकते तेकेते तेकन्ते स० तेकेत तेकेयाताम् तेकेरन् प० तेकताम्
अतेकत अतेकेताम् अतेकन्त
मास्कष्यत
तेकेताम्
तेकन्ताम्
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
अ० अतेकिष्ट
प०
तितिके
आ० तेकिषीष्ट
श्व० तेकिता
भ० तेकिष्यते
क्रि० अतेकिष्यत अतेकिष्येताम् अतेकिष्यन्त
टीकते
स० टीकेत
प० टीकताम्
탕 अटीकत
व०
अ०
व० टेकते
स० टेकेत
प० टेकताम्
ह्य० अटेकत
अ० अटेकिष्ट
प०
टिटिके
आ० टेकिषीष्ट
श्र०
टेकिता
भ० टेकिष्यते
क्रि० अटेकिष्यत अटेकिष्येताम् अटेकिष्यन्त
६३४. टीकृङ् (टीक्) गतौ ।
टीकेते
ᄋ
व०
स०
अटीकिष्ट
अतेकिषाताम्
तितिका
सेकते
संकेत
अतेकिषत
तितिकिरे
किषीयास्ताम् तेकिषीरन्
तेकितार:
तेकिष्यन्ते
६३३. टिकि (टिक) गतौ।
टेके
टेकन्ते
टेकेन्
टेकन्ताम्
अटेकन्त
अटेकिषत
टिटिकिरे
टेकिषीयास्ताम् टेकिषीरन्
टेकितारौ
टेकितार:
टेकिष्येते
टेकिष्यन्ते
तेकितारौ
किष्येते
प० टिटीके
आ० टीकिषीष्ट
टीकिता
भ०
टीकिष्यते
क्रि० अटीकिष्यत अटीकिष्येताम् अटीकिष्यन्त
६३५. सेकङ् (सेक्) गतौ।
सेके
सेकेयाताम्
टेयाताम्
टेकेताम्
अटेकेताम्
अटेकिषाताम्
टिटिकाते
टीकते
टीकेयाताम्
टीकेरन्
टीकेताम्
टीकन्ताम्
अटीकेताम् अटीकन्त
अटीकिषाताम् अटीकिषत टिटीकिरे
टिटीकाते
टीकिषीयास्ताम् टीकिषीरन्
टीकतार:
टीकिष्यन्ते
टीकतारौ
टीकिष्येते
सेकन्ते
सेकेरन्
प० सेकताम्
ह्य०
असेकत
अ० असेकिष्ट
प० सिसेके
आ० सेकिषीष्ट
श्व० सेकिता
भ० सेकिष्यते
क्रि० असेकिष्यत
व० कते
सं० सेकेत
प० स्कताम्
ह्य० अत्रेकत
अ० अस्त्रेकिष्ट
प० सिके
आ० स्रेकिषीष्ट
श्व० सेकिता
भ०
किष्यते
क्रि० अस्त्रेकिष्यत
व० रङ्घते
सङ्केत
६३६. स्स्रेकृङ् (स्स्रेक्) गतौ ।
खेते
कन्ते
स्रेकेयाताम्
ताम्
अस्रेताम्
अस्त्रेकिषाताम् अस्त्रेकिषत
प० रङ्घताम्
ह्य० अरङ्घत
अ० अरङ्घिष्ट
प० ररवे
आ० रङ्घिषीष्ट
सेताम्
सेकन्ताम्
असेताम् असेकन्त
असेकिषाताम् असेकिषत
सिसेकाते सिसेकिरे
सेकिषीयास्ताम् सेकिषीरन्
सेकितारौ
सेकितार:
सेकिष्येते
सेकिष्यन्ते
असेकिष्येताम् असेकिष्यन्त
श्व० रङ्घिता
भ० रङ्घिष्यते
क्रि० अरङ्घिष्यत
सिकाते सिकिरे
किषीयास्ताम् स्रेकिषीरन्
स्स्रेकितार:
किष्यन्ते
अस्रेकिष्यन्त
कितारौ
किष्येते
अस्त्रे किष्येताम्
अथ घान्ता नव सेटक्ष।
६३७. रघुङ् (रङ्ङ्घ) गतौ ।
रङ्घते
केरन्
स्रेकन्ताम्
अनेकन्त
रङ्खेयाताम्
रङ्खेताम्
रङ्घते
रङ्खेरन्
रङ्घन्ताम्
चेम् अरङ्घन्त
अरङ्घिषाताम्
अङ्घिषत
रङ्गितारौ
रङ्घिये
अङ्घष्ाम्
रङ्घाते ररङ्घिरे
रङ्घिषीयास्ताम् रङ्घिषीरन्
रङ्घितार:
रङ्घिष्यन्ते
अरङ्घिष्यन्त
159
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
160
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
६३८. लघुङ् (लड्य) गतौ।
अयं भोजननिवृत्तावपि। व० लङ्घते लङ्घते लङ्घन्ते स० लङ्केत लड्रयाताम् ल लन् प० लङ्घताम् लङ्घताम् लङ्घन्ताम् ह्य० अलङ्घत
अलङ्घताम् अलङ्घन्त अ० अलविष्ट अलङ्घिषाताम् अलषित प० ललचे ललझाते ललविरे आ० लतिषीष्ट लङ्घिषीयास्ताम् लङ्घिषीरन् श्व० लङ्घिता लङ्घितारौ लङ्घितारः भ० लक्षिष्यते लतिष्येते लजिष्यन्ते क्रि० अलविष्यत अलविष्येताम् अलविष्यन्त
६३९. अघुङ् (अड्य) गत्याक्षेपे
गतेराक्षेपो वेग आरम्भ उपलब्भो वा। व० अङ्घते अङ्ग्रेते अङ्घन्ते स० अङ्केत अ याताम् अवेरन् प० अङ्घताम् अद्वेताम् अङ्घन्ताम् ह्य० आङ्घत आवेताम् आवन्त अ० आविष्ट आङ्घिषाताम् आविषत प० आनङ्घ आनचाते आनङ्घिरे आ० अङ्घिषीष्ट अङ्घिषीयास्ताम् अङ्घिषीरन् ० अङ्घिता __ अङ्घितारौ अङ्घितारः भ० अनिष्यते अङ्किष्येते अऋिष्यन्ते क्रि० आङ्घिष्यत आविष्येताम् आविष्यन्त
६४०. वघुङ् (वय) गत्याक्षेपे।
गतेराक्षेपो वेग आरम्भ उपलम्भो वा। व० वङ्घते वङ्घते वङ्घन्ते स० वड्वेत वचेयाताम् वचेवन् प० वङ्घताम् वचेताम् वचन्ताम् ह्य० अवकृत अवचेताम् अवङ्घन्त अ० अवञ्जिष्ट अवङ्घिषाताम् अवचिषत प० ववचे वववाते ववविरे
आ० वङ्घिषीष्ट वङ्घिषीयास्ताम् वङ्घिषीरन् श्व० वनिता वञ्जितारौ वञ्जितार: भ० वञ्जिष्यते वञ्जिष्येते वऋिष्यन्ते क्रि० अवविष्यत अवविष्येताम् अवविष्यन्त
६४१. मधुङ् (मङ्य) कैतवे च।
कैतवं वञ्चना चकाराद्गत्याक्षेपे। व० मङ्घते मङ्घते मङ्घन्ते स० मङ्केत मङ्घयाताम् मङ्घरन् प० मङ्घताम् म ताम् मङ्घन्ताम् ह्य० अमङ्घत अमङ्केताम् अमवन्त अ० अमविष्ट अमङ्घिषाताम् अमङ्घिषत प० ममचे ममचाते ममङ्घिरे आ० मङ्क्षिीष्ट मङ्घिषीयास्ताम् मङ्घिषीरन् श्व० मङ्घिता
मनितारौ
मङ्घितारः भ० मङ्घिष्यते मतिष्येते मङ्घिष्यन्ते क्रि० अमङ्घिष्यत अमङ्घिष्येताम् अमविष्यन्त
६४२. राघृङ् (राघ्) सामर्थ्ये । व० राघते
राघेते
राघन्ते राघसे राघेथे राघध्वे राधे
राघावहे राघामहे स० राघेत राघेयाताम्
राघेथाः राघेयाथाम् राघेध्वम्
राधेय राघेवहि राघेमहि प० राघताम्
राघेताम् राघन्ताम् राघस्व राघेथाम राघध्वम्
राघावहै राघामहै ह्य० अराधत अराघेताम अराघन्त
अराघथा: अराघथाम अराघध्वम् अराधे
अराघावहि अराघामहि अ० अराघिष्ट अराधिषाताम् अराघिषत
अराघिष्ठाः अराधिषाथाम् अराघिध्वम् अराधिषि अराधिष्वहि अराघिष्महि
राघेरन्
राधै
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
161
रराधे
ह्य० अद्राघत अ० अद्राघिष्ट प० दद्राघे आ० द्राघिषीष्ट श्व० द्राघिता भ० द्राघिष्यते क्रि० अद्राघिष्यत
अद्राघेताम् अद्राघन्त अद्राघिषाताम् अद्राघिषत दद्राघाते
दद्राघिरे द्राघिषीयास्ताम् द्राघिषीरन् द्राघितारौ द्राघितारः द्राघिष्येते द्राघिष्यन्ते अद्राघिष्येताम् अद्राघिष्यन्त
प० रराघे रराघाते रराघिरा रराघिषे रराघाथे रराधिध्वे
रराघिवहे रराघिमहे आ० राघिषीष्ट राधिषीयास्ताम् राघिषीरन्
राघिषीष्ठाः राघिषीयास्थाम् राघिषीध्वम्
राघिषीय राघिषीवहि राघिषीमहि श्व० राषिता राघितारौ राघितारः
राघितासे राघितासाथे राघिताध्वे
राघिताहे राघितास्वहे राषितास्मिहे भ० राघिष्यते राघिष्येते राघिष्यन्ते
राघिष्यसे राघिष्येथे राघिष्यध्वे
राघिष्यघे राघिष्यावहे राघिष्यामहे क्रि० अराघिष्यत अराघिष्येताम् अराघिष्यन्त
अराघिष्यथाः अराघिष्येथाम् अराघिष्यध्वम् अराघिष्ये अराघिष्यावहि अराघिष्यामहि
६४३. लाघृङ् (लाघ्) सामर्थ्ये। व० लाघते लाघेते
लाघन्ते स० लाघेत लाघेयाताम् लाघेरन् प० लाघताम् लाघेताम् लाघन्ताम् ह्य० अलाघत अलाघेताम् अलाघन्त अ० अलाघिष्ट अलाधिषाताम् अलाघिषत प० ललाघे ललाधाते ललाघिरे आ० लाघिषीष्ट लाघिषीयास्ताम् लाघिषीरन् व० लाघिता लाघितारौ लाघितारः भ० लाघिष्यते लाघिष्येते लाघिष्यन्ते क्रि० अलाघिष्यत अलाघिष्येताम् अलाघिष्यन्त ६४४. दाघृङ् (दाघ्) आयासे च।
चकारात्सामर्थ्ये। व० द्राघते द्राघेते स० द्रात द्राघेयाताम् द्राघेरन् प० द्राघताम् द्राघेताम् द्राघन्ताम्
६४५. श्लाघृङ् (श्लाघ्) घत्थने।
कत्थनमुत्कर्षाख्यानम्। व० श्लाघते श्लाघेते श्लाघन्ते स० श्लाघेत श्लाघेयाताम् श्लाघेरन् प० श्लाघताम् श्लाघेताम् श्लाघन्ताम् ह्य० अश्लाघत अश्लाघेताम् अश्लाघन्त अ० अश्लाघिष्ट अश्लाघिषाताम् अश्लाघिषत प० शश्लाघे शुश्लाघाते शश्लाघिरे आ० श्लाघिषीष्ट श्लाघिषीयास्ताम् श्लाधिषीरन् श्व० श्लाघिता श्लाघितारौ श्लाघितार: भ० श्लाघिष्यते श्लाघिष्येते श्लाघिष्यन्ते क्रि० अश्लाघिष्यत अश्लाघिष्येताम अश्लाघिष्यन्त
अथ चान्तास्त्रयोदश सेटश्च।
६४६. लोचूङ् (लोच्) दर्शने। व० लोचते लोचते लोचन्ते स० लोचेत लोचेयाताम् लोचेरन् प० लोचताम् लोचेताम् लोचन्ताम् ह्य० अलोचत अलोचेताम् अलोचन्त अ० अलोचिष्ट अलोचिषाताम् अलोचिषत प० लुलोचे
लुलोचाते लुलोचिरे आ० लोचिषीष्ट लोचिषीयास्ताम् लोचिषीरन् श्व० लोचिता लोचितारौ लोचितारः भ० लोचिष्यते लोचिष्येते लोचिष्यन्ते क्रि० अलोचिष्यत अलोचिष्येताम अलोचिष्यन्त
द्राघन्ते
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
162
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शचन्ते
श्वचन्ते
६४७. षचि (सेच्) सेचने।
सेचनं सेवनं भजनमिति यावत्। व० सचते सचेते
सचन्ते स० सचेत सचेयाताम् सचेरन् प० सचताम् सचेताम् सचन्ताम् ह्य० असचत असचेताम् असचन्त अ० असचिष्ट असचिषाताम् असचिषत प० सेचे सेचाते सेचिरे आ० सचिषीष्ट सचिषीयास्ताम् सचिषीरन् श्व० सचिता सचितारौ सचितारः भ० सचिष्यते सचिष्येते सचिष्यन्ते क्रि० असचिष्यत असचिष्येताम् असचिष्यन्त
६४८. शचि (शच्) व्यक्तायां वाचि। व० शचते शचेते स० शचेत शचेयाताम शचेरन् प० शचताम् शचेताम् शचन्ताम् ह्य० अशचत अशचेताम् अशचन्त अ० अशचिष्ट अशचिषाताम् अशचिषत प० शेचे शेचाते आ० शचिषीष्ट शचिषीयास्ताम् शचिषीरन् श्व० शचिता शचितारौ शचितारः भ० शचिष्यते शचिष्येते शचिष्यन्ते क्रि० अशचिष्यत अशचिष्येताम् अशचिष्यन्त
६४९. कचि (कच्) बन्धने। व० कचते कचेते कचन्ते स० कचेत कचेयाताम् कचेरन् प० कचताम्
कचेताम् कचन्ताम् ह्य० अकचत अकचेताम् अकचन्त अ० अकचिष्ट अकचिषाताम् अकचिषत प० चकचे चकचाते चकचिरे आ० कचिषीष्ट कचिषीयास्ताम् कचिषीरन् श्व० कचिता कचितारौ कचितार:
| भ० कचिष्यते कचिष्येते कचिष्यन्ते क्रि० अकचिष्यत अकचिष्येताम् अकचिष्यन्त
६५०. कचुङ् (क) दीप्तौ च।
चकाराद् बन्धने। व० कञ्चते कञ्चेते कञ्चन्ते स० कञ्चेत कञ्चेयाताम् कञ्चेरन् प० कञ्चताम् कञ्चेताम् कञ्चन्ताम् ह्य० अकञ्चत अकञ्चेताम् अकञ्चन्त अ० अकञ्चिष्ट अकञ्चिषाताम् अकञ्चिषत प० चकञ्चे चकचाते
चकञ्चिरे आ० कञ्चिषीष्ट कञ्चिषीयास्ताम् कञ्चिषीरन् श्व० कञ्चिता कञ्चितारौ कञ्चितार: भ० कञ्चिष्यते कञ्चिष्येते कञ्चिष्यन्ते क्रि० अकञ्चिष्यत अकञ्चिष्येताम् अकञ्चिष्यन्त
६५१. श्वचि (श्वचू) गतौ। व० श्वचते श्वचेते स० श्व चेत श्वचेयाताम् श्वचेरन् प० श्वचताम् श्वचेताम्
श्वचन्ताम् ह्य० अश्वचत अश्वचेताम् अश्वचन्त अ० अश्वचिष्ट अश्वचिषाताम् अश्वचिषत प० शश्वचे शश्वचाते शश्वचिरे आ० श्वचिषीष्ट श्वचिषीयास्ताम् श्वचिषीरन् श्व० श्वचिता श्वचितारौ श्वचितार: भ० श्वचिष्यते श्वचिष्येते श्वचिष्यन्ते क्रि० अश्वचिष्यत अश्वचिष्येताम अश्वचिष्यन्त
६५२. श्वचुङ् (श्वयू) गतौ। व० श्वञ्चते श्वञ्चेते श्वञ्चन्ते स० श्वञ्चेत श्वञ्चयाताम् श्वञ्चरन्
श्वञ्चताम् श्वञ्चेताम् श्वञ्चन्ताम् ह्य० अश्वञ्चत अश्वञ्चेताम् সম্বনা अ० अश्वञ्चिष्ट अश्वञ्चिषाताम् अश्वञ्चिषत प० शश्वञ्चे शश्वश्चाते शश्वञ्चिरे
शेचिरे
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
आ० श्वञ्चिषीष्ट
श्वञ्चिता
भ०
श्वञ्चिष्यते
क्रि० अश्वञ्चिष्यत
왕이
व० वर्चते
स० वर्चेत
प० वर्चताम्
ह्य० अवर्चत
अ० अवर्चिष्ट
प०
ववर्चे
आ० वर्चिषीष्ट
왕이
वर्चिता
भ० वर्चिष्यते
क्रि० अवर्चिष्यत
अश्वञ्चिष्येताम्
६५३. वर्चि (वर्च) दीप्तौ ।
वर्चेते
वर्चन्ते
वर्चेरन्
वर्चन्ताम्
अवर्चन्त
अवर्चिषत
ववचिर
वर्चिषीयास्ताम् वर्चिषीरन्
वर्चितारौ
वर्चार:
वर्चिष्येते
वर्चिष्यन्ते
अवर्चिष्यन्त
व० मचते
स०
मचेत
प० मचताम्
ह्य० अमचत
अ० अमचिष्ट
प०
मेचे
आ० मचिषीष्ट
श्र० मचिता
भ० मचिष्यते
क्रि० अमचिष्यत
श्वञ्चिषीयास्ताम् श्वञ्चिषीरन्
चितारौ
श्वञ्चितारः
श्वञ्चिष्येते
श्वञ्चिष्यन्ते
व० मुञ्चते
स० मुञ्चेत
प० मुञ्चताम्
अवर्चिष्येताम्
६५४. मचि (मेच्) कल्कने ।
कल्कनं दम्भः शाठ्यं क्वथनं च ।
मचेते
मचन्ते
मचेरन्
वर्चेयाताम्
वर्चेताम्
अवर्चेताम्
अवर्चिषाताम्
ववर्चाते
मचेयाताम्
मचेताम्
अमचेताम्
अमचिषाताम्
मेचाते
अश्वञ्चिष्यन्त
मचितारौ
मचिष्येते
मचन्ताम्
अमचन्त
अमचिषत
मेचिरे
मचिषीयास्ताम् मचिषीरन्
मचितार:
मचिष्यन्ते
६५५. मुचुङ् (मुञ्च) कल्कने ।
कल्कनं दम्भः शाठ्यं क्वथनं च ।
मुञ्चेते
मुञ्चेयाताम्
मुञ्चेताम्
अमचिष्येताम् अमचिष्यन्त
मुञ्चन्ते
मुञ्चेरन्
मुञ्चन्ताम्
ह्य० अमुञ्चत
अ० अमुञ्चिष्ट
प० मुमुञ्चे
आ० चिषष्ट
श्व० मुञ्चिता
भ० मुञ्चिष्यते
क्रि० अमुञ्चिष्यत
व० मञ्चते
स० मञ्चेत
प० मञ्चताम्
ह्य०
अमञ्चत
अ० अमञ्चिष्ट
प० ममचे
आ० मञ्चिषीष्ट
श्व० मञ्चिता
भ० मञ्चिष्यते
क्रि० अमञ्चिष्यत
अमुञ्चष्येताम्
६५६. मचुङ्- (मञ्च) धारणोच्छ्राय ।
पूजनेषु च। चकारात्कल्कने ।
मञ्चेते
व०
पञ्चते
स० पञ्चेत
प०
ᄋ
पञ्चताम्
ह्य० अपञ्चत
अ० अपञ्चिष्ट
प०
पपचे
आ० पञ्चिषीष्ट
पञ्चिता
भ० पञ्चिष्यते
क्रि० अपञ्चिष्यत
व०
अमुञ्चेताम् अमुञ्चन्त
अमुञ्चषाताम् अमुञ्चिषत
मुमुञ्चा
मुमुञ्चिरे
मुञ्चिषीयास्ताम् मुञ्चिषीरन्
मुञ्चितार:
मुञ्चष्यन्ते
स्तोचते
मुञ्चिता
मुञ्चिष्येते
अमुञ्चष्यन्त
चेयाताम्
मञ्चन्ते
मञ्चेरन्
मचेताम्
मञ्चन्ताम्
अचेताम्
अमञ्चन्त
अमञ्चिषाताम् अमञ्चिषत
ममचाते
ममञ्चिरे
अमञ्चिष्येताम् ६५७. पथुङ् (पञ्च) व्यक्तीकरणे ।
पञ्चेते
मञ्चिषीयास्ताम् मञ्चिषीरन्
मचितारौ
मञ्चितार:
मञ्चिष्येते
मञ्चिष्यन्ते
अमञ्चिष्यन्त
पञ्चन्ते
पञ्चेरन्
पञ्चेयाताम्
पञ्चेताम्
पञ्चन्ताम्
अपञ्चेताम् अपञ्चन्त
अपञ्चिषाताम्
अपञ्चिषत
पपञ्चिरे
पपञ्चाते पञ्चिषीयास्ताम् पञ्चिषीरन्
पञ्चितारौ
पञ्चितार:
पञ्चिष्येते
पञ्चिष्यन्ते
अपञ्चिष्येताम् अपञ्चिष्यन्त
६५८. ष्टुचि (स्तुच्) प्रसादे ।
स्तोचेते
स्तोचन्ते
163
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
164
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
एजै
ऐजथाम्
.
14
तुष्टुचिषे
तुष्टुचाथे
स्तोचसे स्तोचेथे स्तोचध्वे
स्तीचे स्तोचावहे स्तोचामहे स० स्तोचेत स्तोचेयाताम् स्तोचेरन्
स्तोचेथाः स्तोचेयाथाम् स्तोचेध्वम्
स्तोचेय स्तोचेवहि स्तोचेमहि प० स्तोचताम् स्तोचेताम् स्तोचन्ताम्
स्तोचस्व स्तोचेथाम स्तोचध्वम्
स्तोचै स्तोचावहै स्तोचामहै ह्य० अस्तोचत अस्तोचेताम् अस्तोचन्त
अस्तोचथाः अस्तोचथाम अस्तोचध्वम्
अस्तोचे अस्तोचावहि अस्तोचामहि अ० अस्तोचिष्ट अस्तोचिषाताम् अस्तोचिषत
अस्तोचिष्ठाः अस्तोचिषाथाम् अस्तोचिड्ढवम्/ध्वम्
अस्तोचिषि अस्तोचिष्वहि अस्तोचिष्महि प० तुष्टुचे तुष्टुचाते तुष्टुचिरे
तुष्टुचिध्वे तुष्टुचे तुष्टुचिवहे तुष्टुचिमहे आ० स्तोचिषीष्ट स्तोचिषीयास्ताम् स्तोचिषीरन्
स्तोचिषीष्ठाः स्तोचिषीयास्थाम् स्तोचिषीध्वम्
स्तोचिषीय स्तोचिषीवहि स्तोचिषीमहि श्व० स्तोचिता स्तोचितारौ स्तोचितारः
स्तोचितासे स्तोचितासाथे स्तोचिताध्वे
स्तोचिताहे स्तोचितास्वहे स्तोचितास्मिहे भ० स्तोचिष्यते स्तोचिष्येते स्तोचिष्यन्ते
स्तोचिष्यसे स्तोचिष्येथे स्तोचिष्यध्वे
स्तोचिष्ये स्तोचिष्यावहे स्तोचिष्यामहे क्रि० अस्तोचिष्यत अस्तोचिष्येताम अस्तोचिष्यन्त
अस्तोचिष्यथाः अस्तोचिष्येथाम् अस्तोचिष्यध्वम् अस्तोचिष्ये अस्तोचिष्यावहि अस्तोचिष्यामहि
अथ जान्ता नव सेटचा
६५९. एजङ् (एजू) दीप्तौ। व० एजते
एजेते
एजन्ते एजेथे एजध्वे
एजावहे एजामहे स० एजेत एजेयाताम् एजेरन्
एजेथाः एजेयाथाम् एजेध्वम्
एजेय एजेवहि एजेमहि प० एजताम् एजेताम् एजन्ताम् एजस्व एजेथाम् एजध्वम्
एजावहै एजामहै ह्य० ऐजत ऐजेताम् ऐजन्त ऐजथाः
ऐजध्वम् ऐजे ऐजावहि ऐजामहि अ० ऐजिष्ट ऐजिषाताम् ऐजिषत
ऐजिष्ठाः ऐजिषाथाम् ऐजिड्डवम/ऐजिध्वम्
ऐजिषि ऐजिष्वहि ऐजिष्यहि प० एजाञ्चके एजाञ्चक्राते एजाञ्चक्रिरे
एजाञ्चकृषे एजाञ्चक्राथे । एजाञ्चकृढ्वे एजाञ्चके एजाञ्चकृवहे एजाञ्चकृमहे
एजाम्बभूव/एजामास आ० एजिषीष्ट एजिषीयास्ताम् एजिषीरन्
एजिषीष्ठाः एजिषीयास्थाम् एजिषीध्वम्
एजिषीय एजिषीवहि एजिषीमहि श्व० एजिता एजितारौ एजितार:
एजितासे एजितासाथे एजिताध्वे एजिताहे
एजितास्वहे एजितास्मिहे भ० एजिष्यते एजिष्येते एजिष्यन्ते
एजिष्यसे एजिष्येथे एजिष्यध्वे
एजिष्ये एजिष्यावहे एजिष्यामहे क्रि० ऐजिष्यत ऐजिष्येताम् ऐजिष्यन्त
ऐजिष्यथाः ऐजिष्येथाम् ऐजिष्यध्वम् ऐजिष्ये ऐजिष्यावहि ऐजिष्यामहि
६६०. लेजुङ् (लेजू) दीप्तौ। व० लेजते लेजेते लेजन्ते स० लेजेत लेजेयाताम् लेजेरन् प० लेजताम् लेजेताम् लेजन्ताम्
एजसे
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
___165
ह्य० अलेजत अलेजेताम् अलेजन्त अ० अलेजिष्ट अलेजिषाताम् अलेजिषत प० लिलेजे लिलेजाते लिलेजिरे आ० लेजिषीष्ट लेजिषीयास्ताम् लेजिषीरन् श्व० लेजिता लेजितारौ लेजितारः भ० लेजिष्यते लेजिष्येते लेजिष्यन्ते क्रि० अलेजिष्यत अलेजिष्येताम् अलेजिष्यन्त
६६१. भ्राजि (भ्राज्) दीप्तौ। व० भ्राजते भ्राजेते भ्राजन्ते स० भ्राजेत भ्राजेयाताम् भ्राजेरन प० भ्राजताम् भ्राजेताम् भ्राजन्ताम् ह्य० अभ्राजत अभ्राजेताम् अभ्राजन्त अ० अभ्राजिष्ट अभ्राजिषाताम् अभ्राजिषत प० बभ्राजे बभ्राजाते बभ्राजिरे आ० भ्राजिषीष्ट भ्राजिषीयास्ताम् भ्राजिषीरन् श्व० भ्राजिता भ्राजितारौ भ्राजितार: भ० भ्राजिष्यते भ्राजिष्येते भ्राजिष्यन्ते क्रि० अभ्राजिष्यत अभ्राजिष्येताम् अभ्राजिष्यन्त 'जभ्रम..' इत्यत्र राजिसहचरितस्यैव भ्राजेर्ग्रहणादस्य एत्वद्वित्वाभावविकल्पो न।
६६२. इजुङ् (इ) गतौ। व० इञ्जते इजेते
इञ्जन्ते इञ्जसे इञ्जेथे इञ्जध्वे
इजे इजावहे इजामहे स० इञ्जत इजेयाताम् इञ्जेरन् इजेथाः इजेयाथाम्
इजेध्वम् इजेय इञ्जवहि इजेमहि इञ्जताम् इञ्जताम् इञ्जन्ताम् इञ्जस्व इजेथाम इजध्वम्
इजै इजावहै इजामहै ह्य० ऐञ्जत ऐजेताम् ऐजन्त
ऐजथा: ऐजथाम् ऐञ्जध्वम्
ऐजे ऐजावहि ऐजामहि अ० ऐञ्जिष्ट ऐञ्जिषाताम् ऐञ्जिषत
ऐञ्जिष्ठाः ऐञ्जिषाथाम् ऐञ्जिड्डूवम्/ऐञ्जिध्वम्
ऐञ्जिषि ऐञ्जिष्वहि ऐञ्जिष्महि प० इजाञ्चक्रे इजाञ्चक्राते इजाञ्चक्रिरे
इञाञ्चकृषे इजाञ्चक्राथे इजाञ्चकृढ्वे इञाञ्चक्रे इञाञ्चकृवहे . इञाञ्चकृमहे
इञ्जाम्बभूव/इञ्जामास आ० इञ्जिषीष्ट इञ्जिषीयास्ताम् इञ्जिषीरन्
इञ्जिषीष्ठाः इञ्जिषीयास्थाम् इञ्जिषीध्वम् इञ्जिषीय इञ्जिषीवहि इञ्जिषीमहि इञ्जिता इञ्जितारौ इञ्जितार: इञ्जितासे इञ्जितासाथे इञ्जिताध्वे
इञ्जिताहे इञ्जितास्वहे इञ्जितास्मिहे भ० इञ्जिष्यते इञ्जिष्येते इञ्जिष्यन्ते
इञ्जिष्यसे इञ्जिष्येथे इञ्जिष्यध्वे
इञ्जिष्ये इञ्जिष्यावहे इञ्जिष्यामहे क्रि० ऐञ्जिष्यत ऐञ्जिष्येताम् ऐञ्जिष्यन्त
ऐञ्जिष्यथाः ऐञ्जिष्येथाम् ऐञ्जिष्यध्वम् ऐञ्जिष्ये ऐञ्जिष्यावहि ऐञ्जिष्यामहि
६६३. ईजि (ईज) कुत्सने च चकाराद्गतौ। व० ईजते ईजेते
ईजन्ते स० ईजेत ईजेयाताम् ईजेरन् प० ईजताम्
ईजेताम् ईजन्ताम् ह्य० ऐजत ऐजेताम् ऐजन्त अ० ऐजिष्ट
ऐजिषाताम्
ऐजिषत प० ईजाञ्चक्रे ईजाञ्चक्राते ईजाञ्चक्रिरे
ईजाम्बभूव/ईजामास आ० ईजिषीष्ट ईजिषीयास्ताम् ईजिषीरन् श्व० ईजिता ईजितारौ ईजितार: भ० ईजिष्यते ईजिष्येते ईजिष्यन्ते क्रि० ऐजिष्यत ऐजिष्येताम् ऐजिष्यन्त
नाचक्र
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
166
व०
६६४. ऋजि (ऋज्) गतिस्थानार्जनोर्जनेषु । ऊर्जनं
अर्जते
अर्जेत
स०
प०
हा० आर्जत
अ०
अर्जताम्
आर्जिष्ट
प०
आनृजे
आ० अर्जिषीष्ट
श्र०
अर्जिता
भ०
अर्जिष्यते
क्रि० आर्जिष्यत
व०
ऋञ्जते
स० ऋजेत
प० ऋञ्जताम्
ह्य० आर्ज्जत
अ० आञ्जिष्ट
प० आनृञ्जे
आ० ऋञ्जिषीष्ट
श्र० ऋञ्जिता
६६५. ऋञ्जुङ् (ऋ) भर्ज्जने।
भर्जनं पाकप्रकारः ।
प्राणनम्।
अर्जे
अर्जेयाताम्
अर्जेताम्
आर्जे
व० भर्जते
स० भर्जेत
प०
भर्जताम्
ह्य० अभर्जत
अ० अभर्जिष्ट
प० बजे
आर्जिषाताम्
आनृजाते
आनृजिरे
अर्जिषीयास्ताम् अर्जिषीरन्
अर्जितारौ
अर्जितार:
अर्जिष्स्येते
अर्जिष्यन्ते
आर्जिष्येताम् आर्जिष्यन्त
भ० ऋञ्जिष्यते
क्रि० आर्ङ्गिष्यत आञ्जिष्येताम्
अर्जन्ते
अर्जेरन्
अर्जन्ताम्
आर्जन्त
आर्जिषत
ऋजेते
ऋञ्जन्ते
ऋञ्जेयाताम्
ऋजेरन्
ऋजेताम्
ऋञ्जन्ताम्
आताम्
आञ्जन्त
आञ्जिषाताम् आर्जित
आनृञ्ज आनृञ्जरे
ऋञ्जिषीयास्ताम् ऋञ्जिषीरन्
ऋञ्जितारौ
ऋञ्जितार:
ऋञ्जिष्येते
ऋञ्जिष्यन्ते
यन्त
६६६. लृजैङ्- (लृज्) भर्जने ।
भर्जनं पाकप्रकारः ।
भर्जे
र्जेयाताम्
भर्जेताम्
अर्जे
अभर्जिषाताम्
बजा
भर्जन्ते
भर्जेरन्
भर्जन्ताम्
अभर्जन्त
अभर्जिषत
बभृजिरे
आ० भर्जिषीष्ट
भर्जिषीयास्ताम् भर्जिषीरन्
go
भर्जिता
भर्जितारौ
भर्जितारः
भ० भर्जिष्यते
भर्जिष्येते
भर्जिष्यन्ते
क्रि० अभर्जिष्यत
अर्जिताम्
अभर्जिष्यन्त
६६७. तिचि (तिक्ष- तितिक्षु) क्षमानिशानयोः । निशानं
तीक्ष्णकरणम् । तत्र क्षान्तौ ।
व० तितिक्षते
तितिक्षसे
तितिक्षे
तितिक्षेत
तितिक्षेथाः
तितिक्षेय
स०
तितिक्षताम्
तितिक्षस्व
तितिक्षै
ह्य० अतितिक्षत
प०
अतितिक्षथाः अतितिक्षे
अ० अतितिक्षिष्ट
go
तितिक्षेते
तितिक्षेथे
तितिक्षा हे
तितिक्षेयाताम्
तितिक्षेयाथाम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तितिक्षेवहि
तितिक्षेताम्
तितिक्षेथाम
तितिक्षा है
तितिक्षन्ते
तितिक्षध्वे
तितिक्षामहे
तितिक्षेरन्
तितिक्षेध्वम्
तितिक्षेमहि
अतितिक्षिषाताम् अतितिक्षिषत
अतितिक्षिष्ठाः अतितिक्षिषाथाम् अतितिक्षिड्डवम्/ध्वम् अतितिक्षिषि अतितिक्षिष्वहि अतितिक्षिष्महि
प० तितिक्षाञ्चक्रे तितिक्षाञ्चक्राते तितिक्षाञ्चक्रिरे
तितिक्षाञ्चकृषे तितिक्षाञ्चक्राथे तितिक्षाञ्चकृवे तितिक्षाञ्चक्रे तितिक्षाञ्चकृवहे तितिक्षाञ्चकृमहे तितिक्षाम्बभूव/तितिक्षामास
तितिक्षन्ताम्
तितिक्षध्वम्
तितिक्षामहै
अतितिक्षन्त
अतितिक्षेताम् अतितिक्षथाम् अतितिक्षध्वम्
अतितिक्षावहि अतितिक्षामहि
आ० तितिक्षिषीष्ट तितिक्षिषीयास्ताम् तितिक्षिषीरन् तितिक्षिषीष्ठाः तितिक्षिषीयास्थाम् तितिक्षिषीध्वम्
तितिक्षिषीय
तितिक्षिषीवहि तितिक्षिषीमहि
तितिक्षितारौ तितिक्षितार:
तितिक्षिता तितिक्षितासे तितिक्षितासाथे तितिक्षिताध्वे
तितिक्षिताहे तितिक्षितास्वहे तितिक्षितास्महे भ० तितिक्षिष्यते
तितिक्षिष्येते तितिक्षिष्यन्ते
तितिक्षिष्यसे
तितिक्षिष्येथे
तितिक्षिष्यध्वे
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
167
तितिक्षिष्ये तितिक्षिष्यावहे तितिक्षिष्यामहे क्रि० अतितिक्षिष्यत अतितिक्षिष्येताम अतितिक्षिष्यन्त
अतितिक्षिष्यथाः अतितिक्षिष्येथाम् अतितिक्षिष्यध्वम् अतितिक्षिष्ये अतितिक्षिष्यावहि अतितिक्षिष्यामहि
६६७-१. तिजि (तिज्) निशाने तु। व० तेजते तेजेते तेजन्ते
तेजध्वे
तेजावहे तेजामहे स० तेजेत
तेजेयाताम् तेजेथाः
तेजेयाथाम् तेजेय तेजेवहि तेजेमहि प० तेजताम्
तेजसे
तेजेथे
तेजे
घट्टसे
तेजेरन् तेजेध्वम्
तेजेताम् तेजेथाम
तेजन्ताम् तेजध्वम्
तेजस्व
तेज
ह्य० अतेजत
अतेजथाः
अतेजे अ० अतेजिष्ट
अतेजिष्ठाः
अतेजिषि प० तितिजे
तितिजिषे
तितिजे आ० तेजिषीष्ट
तेजिषीष्ठाः
तेजिषीय श्व० तेजिता
तेजितासे
तेजिताहे त० तेजिष्यते
तेजिष्यसे
तेजावहै तेजामहै अतेजेताम् अतेजन्त अतेजथाम् अतेजध्वम् अतेजावहि अतेजामहि अतेजिषाताम् अतेजिषत अतेजिषाथाम् अतेजिड़वम ध्वम अतेजिष्वहि अतेजिष्महि तितिजाते तितिजिरे तितिजाथे तितिजिध्वे तितिजिवहे तितिजिमहे तेजिषीयास्ताम् तेजिषीरन तेजिषीयास्थाम् तेजिषीध्वम् तेजिषीवहि तेजिषीमहि तेजितारौ तेजितार: तेजितासाथे तेजिताध्वे तेजितास्वहे तेजितास्मिहे तेजिष्येते तेजिष्यन्ते तेजिष्येथे तेजिष्यध्वे
तेजिष्ये तेजिष्यावहे तेजिष्यामहे | क्रि० अतेजिष्यत अतेजिष्येताम् अतेजिष्यन्त
अतेजिष्यथाः अतेजिष्येथाम् अतेजिष्यध्वम् अतेजिष्ये अतेजिष्यावहि अतेजिष्यामहि
अथ टान्ताः सप्त सेटचा
६६८. घट्टि (घट्ट) चलने। व० घट्टते घट्टेते घट्टन्ते
घट्टेथे
घट्टध्वे घट्टे
घट्टावहे घट्टामहे स० घट्टेत घट्टेयाताम् घट्टेरन्
घट्टेथाः घट्टेयाथाम् घट्टेध्वम्
घट्टेय घट्टेवहि घट्टेमहि प० घट्टताम् घट्टेताम् घट्टन्ताम् घट्टस्व घट्टेथाम् घट्टध्वम्
घट्टावहै घट्टामहै ह्य० अघट्टत अघट्टेताम् अघट्टन्त
अघट्टथाः अघट्टथाम् अघट्टध्वम्
अघटे अघट्टावहि अघट्टामहि | अ० अघट्टिष्ट
अघट्टिषाताम् अघट्टिषत अघट्टिष्ठाः अघट्टिपाथाम् अघट्टिड्डूवम्/ध्वम्
अघट्टिषि अघट्टिष्वहि अघट्टिष्महि | प० जघट्टे जघट्टाते जघट्टिरे जघट्टिषे जघट्टाथे
जघट्टिध्वे जघट्टे जघट्टिवहे जघट्टिमहे आ० घट्टिषीष्ट घट्टिषीयास्ताम् घट्टिषीरन्
घट्टिषीष्ठाः घट्टिषीयास्थाम् घट्टिषीध्वम्
घट्टिषीय घट्टिषीवहि घट्टिषीमहि | श्व० घट्टिता घट्टितारौ घट्टितारः
घट्टितासे घट्टितासाथे घट्टिताध्वे
घट्टिताहे घट्टितास्वहे घट्टितास्मिहे | भ० घट्टिष्यते घट्टिष्येते घट्टिष्यन्ते ___ घट्टिष्यसे घट्टियेथे घट्टिष्यध्वे
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
168
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
घट्टिष्ये
सातारा
स्फोटेरन
घट्टिष्यावहे घट्टिष्यामहे क्रि० अघट्टिष्यत अघट्टिष्येताम् अघट्टिष्यन्त
अघट्टिष्यथाः अघट्टिष्येथाम् अघट्टिष्यध्वम् अघट्टिष्ये अघट्टिष्यावहि अघट्टिष्यामहि
६६९. स्फुटि (स्फुट) विकसने। व० स्फोटते स्फोटेते . स्फोटन्ते स० स्फोटेत स्फोटेयाताम प० स्फोटताम् स्फोटेताम्
स्फोटन्ताम् ह्य० अस्फोटत अस्फोटेताम् अस्फोटन्त अ० अस्फोटिष्ट अस्फोटिषाताम् अस्फोटिषत प० पुस्फुटे पुस्फुटाते पुस्फुटिरे आ० स्फोटिषीष्ट स्फोटिषीयास्ताम् स्फोटिषीरन् श्व० स्फोटिता स्फोटितारौ स्फोटितारः भ० स्फोटिष्यते स्फोटिष्येते स्फोटिष्यन्ते क्रि० अस्फोटिष्यत अस्फोटिष्येताम् अस्फोटिष्यन्त ६७०. चेष्टि (चेष्ट्) चेष्टायाम्
चेष्टेहा। व० चेष्टते चेष्टेते चेष्टन्ते स० चेष्टेत चेष्टेयाताम् प० चेष्टताम् चेष्टेताम्
चेष्टन्ताम् ह्य०. अचेष्टत अचेष्टेताम् अचेष्टन्त अ० अचेष्टिष्ट अचेष्टिषाताम् अचेष्टिषत प० चिचेष्टे चिचेष्टाते चिचेष्टिरे आ० चेष्टिषीष्ट चेष्टिषीयास्ताम् चेष्टिषीरन् श्व० चेष्टिता चेष्टितारौ चेष्टितारः च० चेष्टिष्यते चेष्टिष्येते चेष्टिष्यन्ते क्रि० अचेष्टिष्यत अचेष्टिष्येताम अचेष्टिष्यन्त
६७१. गोष्टि (गोष्ट) सङ्घाते। व० गोष्टते
गोष्टन्ते स० गोष्टेत
गोष्टेयाताम् प० गोष्टताम् गोष्टेताम्
गोष्टन्ताम् ह्या अगोष्टत अगोष्टेताम् अगोष्टन्त
अ० अगोष्टिष्ट अगोष्टिषाताम् अगोष्टिषत प० जुगोष्टे जुगोष्टाते जुगोष्टिरे आ० गोष्टिषीष्ट गोष्टिषीयास्ताम् गोष्टिषीरन् श्व० गोष्टिता गोष्टितारौ गोष्टितार: च० गोष्टिष्यते गोष्टिष्येते गोष्टिष्यन्ते क्रि० अगोष्टिष्यत अगोष्टिष्येताम् अगोष्टिष्यन्त
६७२. लोष्टि (लोष्ट) संघाते। व० लोष्टते लोष्टेते लोष्टन्ते स० लोष्टेत लोष्टेयाताम् लोष्टेरन् प० लोष्टताम् लोष्टेताम् लोष्टन्ताम् ह्य० अलोष्टत अलोष्टेताम् अलोष्टन्त अ० अलोष्टिष्ट अलोष्टिषाताम् अलोष्टिषत प० लुलोष्टे लुलोष्टाते लुलोष्टिरे आ० लोष्टिषीष्ट लोष्टिषीयास्ताम् लोष्टिषीरन् श्व० लोष्टिता लोष्टितारौ लोष्टितार: च० लोष्टिष्यते लोष्टिष्येते लोष्टिष्यन्ते क्रि० अलोष्टिष्यत अलोष्टिष्येताम् अलोष्टिष्यन्त
६७३. वेष्टि (वेष्ट) वेष्टने।
वेष्टनं ग्रन्थनं लोटनं परिहाणिश्च। व० वेष्टते वेष्टेते
वेष्टन्ते स० वेष्टेत वेष्टेयाताम् प० वेष्टताम्
वेष्टन्ताम् ह्य० अवेष्टत अवेष्टेताम् अवेष्टन्त अ० अवेष्टिष्ट अवेष्टिषाताम् अवेष्टिषत प० विवेष्टे विवेष्टाते विवेष्टिरे आ० वेष्टिषीष्ट वेष्टिषीयास्ताम् वेष्टिषीरन श्व० वेष्टिता वेष्टितारौ वेष्टितारः च० वेष्टिष्यते वेष्टिष्येते वेष्टिष्यन्ते : क्रि० अवेष्टिष्यत अवेष्टिष्येताम् अवेष्टिष्यन्त ६७४. अट्टि (अट्ट) हिंसातिक्रमयोः। अतिक्रम
उल्लङ्घनम्। व० अट्टते अट्टेते अट्टन्ते
चेष्टेरन्
वेष्टेरन्
वेष्टेताम्
गोष्टेते
गोष्टेरन्
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
169
एठेते
हेठेरन्
एठसे
एठध्वे
एठेथाः
स० अट्टेत अट्टेयाताम् अट्टेरन् प० अट्टताम् अट्टेताम् अट्टन्ताम् ह्य० आट्टत आट्टेताम् आडन्त अ० आट्टिष्ट आट्टिषाताम् आट्टिषत प० आनट्टे आनट्टाते आनट्टिरे आ० अट्टिषीष्ट अट्टिषीयास्ताम् अट्टिषीरन् १० अट्टिता अट्टितारौ अट्टितार: भ० अट्टिष्यते अट्टिष्येते अट्टिष्यन्ते क्रि० आट्टिष्यत ___ आदृिष्येताम् आदृिष्यन्त
६७५. एठि (एठ) विबाधायाम्।
अथ ठान्ताः सप्त सेटच। व० एठते
एठन्ते एठेथे
एठावहे एठामहे स० एठेत एठेयाताम्
एठेरन् एठेयाथाम् एठेध्वम् एठेय एठेवहि एठेमहि प० एठताम् एठेताम् एठन्ताम् एठस्व एठेथाम एठध्वम्
एठावहै एठामहै ह्य० ऐठत ऐठेताम् ऐठन्त ऐठथाः ऐठथाम ऐठध्वम्
ऐठावहि ऐठामहि अ० ऐठिष्ट
ऐठिषाताम्
ऐठिषत ऐठिष्ठाः ऐठिषाथाम् ऐठिड्डवम्/ध्वम्
ऐठिषि ऐठिष्वहि ऐठिष्महि प० एठाञ्च एठाञ्चक्राते एठाञ्चक्रिरे
एठाञ्चकृषे एठाञ्चक्राथे एठाञ्चकृढ्वे एठाञ्चक्रे एठाञ्चकृवहे एठाञ्चकृमहे
एठाम्बभूव/एठामास आ० एठिषीष्ट एठिषीयास्ताम् एठिषीरन्
एठिपीष्ठाः एठिषीयास्थाम एठिषीध्वम् एठिषीय एठिषीवहि एठिषीमहि
श्व० एठिता एठितारौ एठितार:
एठितासे एठितासाथे एठिताध्वे
एठिताहे एठितास्वहे एठितास्मिहे भ० एठिष्यते एठिष्येते
एठिष्यन्ते एठिष्यसे एठिष्येथे एठिष्यध्वे
एठिष्ये एठिष्यावहे एठिष्यामहे क्रि० ऐठिष्यत ऐठिष्येताम् ऐठिष्यन्त
ऐठिष्यथाः ऐठिष्येथाम् ऐठिष्यध्वम् ऐठिष्ये ऐठिष्यावहि ऐठिष्यामहि
६७६. हेठि (हेल्) विबाधायाम्। व० हेठते . हेठेते हेठन्ते स० हेठेत हेठेयाताम् प० हेठताम् हेठेताम् हेठन्ताम् ह्य० अहेठत
अहेठेताम्
अहेठन्त अ० अहेठिष्ट अहेठिषाताम् अहेठिषत प० जिहेठे जिहेठाते जिहेठिरे आ० हेठिषीष्ट हेठिषीयास्ताम् हेठिषीरन् श्व० हेठिता हेठितारौ हेठितारः भ० हेठिष्यते हेठिष्येते हेठिष्यन्ते क्रि० अहेठिष्यत अहेठिष्येताम् अहेठिष्यन्त
६७७. मठुङ् (मण्ठ्) शोके।
शोकोऽत्राध्यानमुत्कण्ठेत्यर्थः। व० मण्ठते मण्ठेते मण्ठन्ते स० मण्ठेत मण्ठेयाताम् मण्ठेरन् प० मण्ठताम् मण्ठेताम् मण्ठन्ताम् ह्य० अमण्ठत अमण्ठेताम् अमण्ठन्त अ० अमण्ठिष्ट अमण्ठिषाताम् अमण्ठिषत प० ममण्ठे ममण्ठाते ममण्ठिरे आ० मण्ठिषीष्ट मण्ठिषीयास्ताम् मण्ठिषीरन् श्व० मण्ठिता मण्ठितारौ मण्ठितार: भ० मण्ठिष्यते मण्ठिष्येते मण्ठिष्यन्ते क्रि० अमण्ठिष्यत अमण्ठिष्येताम् अमण्ठिष्यन्त
एंठ
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
170
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
"ठता
'वात
६७८. कठुङ् (कण्ठ्) शोके।
शोकोऽत्राध्यानमुत्कण्ठेत्यर्थः। व० कण्ठते कण्ठेते कण्ठन्ते स० कण्ठेत कण्ठेयाताम् कण्ठेरन् प० कण्ठताम् कण्ठेताम् कण्ठन्ताम् ह्य० अकण्ठत अकण्ठेताम् अकण्ठन्त अ० अकण्ठिष्ट अकण्ठिषाताम् अकण्ठिषत प० चकण्ठे चकण्ठाते
चकण्ठिरे आ० कण्ठिषीष्ट कण्ठिषीयास्ताम् कण्ठिषीरन् श्व० कण्ठिता कण्ठितारौ कण्ठितार: भ० कण्ठिष्यते कण्ठिष्येते कण्ठिष्यन्ते क्रि० अकण्ठिष्यत अकण्ठिष्येताम् अकण्ठिष्यन्त
६७९. मुठुङ् (मुण्ठ्) पलायने। व० मुण्ठते मुण्ठेते मुण्ठन्ते स० मुण्ठेत मुण्ठेयाताम् मुण्ठेरन् प० मुण्ठताम् मुण्ठेताम् मुण्ठन्ताम् ह्य० अमुण्ठत अमुण्ठेताम् अमुण्ठन्त अ० अमुण्ठिष्ट अमुण्ठिषाताम् अमुण्ठिषत प० मुमुण्ठे मुमुण्ठाते मुमुण्ठिरे आ० मुण्ठिषीष्ट मुण्ठिषीयास्ताम् मुण्ठिषीरन् व० मुण्ठिता मुण्ठितारी मुण्ठितारः भ० मुण्ठिष्यते मुण्ठिष्येते मुण्ठिष्यन्ते क्रि० अमुण्ठिष्यत अमुण्ठिष्येताम् अमुण्ठिष्यन्त
६८०. वठुङ् (वण्ठ्) एकचर्यायाम्।
एकस्य असाहयस्य चर्या गतिस्तस्याम् व० वण्ठते वण्ठते वण्ठन्ते स० वण्ठेत वण्ठेयाताम् वण्ठेरन् प० वण्ठताम् वण्ठेताम् वण्ठन्ताम् ह्य० अवण्ठत अवण्ठेताम् अवण्ठन्त अ० अवण्ठिष्ट अवण्ठिषाताम् अवण्ठिषत प० ववण्ठे ववण्ठाते ववण्ठिरे आ० वण्ठिषीष्ट वण्ठिषीयास्ताम् वण्ठिषीरन्
श्व० वण्ठिता वण्ठितारौ वण्ठितार: भ० वण्ठिष्यते वण्ठिष्येते वण्ठिष्यन्ते क्रि० अवण्ठिष्यत अवण्ठिष्येताम् अवण्ठिष्यन्त
६८१. अठुङ् (अण्) गतौ। व० अण्ठते अण्ठेते अण्ठन्ते स० अण्ठेत अण्ठेयाताम् अण्ठेरन् प० अण्ठताम् अण्ठेताम् अण्ठन्ताम् ह्य० आण्ठत आण्ठेताम् आण्ठन्त अ० आण्ठिष्ट आण्ठिषाताम् आण्ठिषत प० आनण्ठे आनण्ठाते आनण्ठिरे आ० अण्ठिषीष्ट अण्ठिषीयास्ताम् अण्ठिषीरन् श्व० अण्ठिता अण्ठितारौ अण्ठितार: भ० अण्ठिष्यते अण्ठिष्येते अण्ठिष्यन्ते क्रि० आण्ठिष्यत आण्ठिष्येताम् आण्ठिष्यन्त
अथ डान्ता स्त्रयोविशतिः सेटश्च।
६८२. पडुङ् (पण्ड्) गतौ। व० पण्डते पण्डेते पण्डन्ते स० पण्डेत पण्डेयाताम् पण्डेरन् प० पण्डताम् पण्डेताम् पण्डन्ताम् ह्य० अपण्डत अपण्डेताम् अपण्डन्त अ० अपण्डिष्ट अपण्डिषाताम् अपण्डिषत प० पपण्डे पपण्डाते पपण्डिरे आ० पण्डिषीष्ट पण्डिषीयास्ताम् पण्डिषीरन् श्व० पण्डिता पण्डितारौ पण्डितारः भ० पण्डिष्यते पण्डिष्येते पण्डिष्यन्ते क्रि० अपण्डिष्यत अपण्डिष्येताम् अपण्डिष्यन्त
६८३. हुडुङ् (हुण्ड्) सयाते। व० हुण्डते हुण्डेते हुण्डन्ते स० हुण्डेत हुण्डेयाताम् हुण्डेरन् प० हुण्डताम् हुण्डेताम् हुण्डन्ताम् ह्य० अहुण्डत अहुण्डेताम् अहुण्डन्त अ० अहुण्डिष्ट __ अहुण्डिषाताम् अहुण्डिषत
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
171
7
प० जुहुण्डे जुहुण्डाते जुहुण्डिरे आ० हुण्डिषीष्ट ____ हुण्डिषीयास्ताम् हुण्डिषीरन् श्व० हुण्डिता हुण्डितारौ हुण्डितार: भ० हुण्डिष्यते हुण्डिष्येते हुण्डिष्यन्ते क्रि० अहुण्डिष्यत अहुण्डिष्येताम् अहुण्डिष्यन्त
६८४. पिडुङ् (पिण्ड्) सयाते। व० पिण्डते पिण्डेते पिण्डन्ते स० पिण्डेत पिण्डेयाताम् पिण्डेरन् प० पिण्डताम् पिण्डेताम् पिण्डन्ताम् ह्य० अपिण्डत
अपिण्डेताम्
अपिण्डन्त अ० अपिण्डिष्ट अपिण्डिषाताम् अपिण्डिषत प० पिपिण्डे पिपिण्डाते पिपिण्डिरे आ० पिण्डिषीष्ट पिण्डिषीयास्ताम् पिण्डिषीरन् ० पिण्डिता पिण्डितारौ पिण्डितार: भ० पिण्डिष्यते - पिण्डिष्येतेपिण्डिष्यन्ते क्रि० अपिण्डिष्यत अपिण्डिष्येताम् अपिण्डिष्यन्त ६८५. शडुङ् (शण्ड्) रुजायाञ्च।
चकारात्संघाते। व० शण्डते शण्डेते शण्डन्ते स० शण्डेत शण्डेयाताम् शण्डेरन् प० शण्डताम् शण्डेताम् शण्डन्ताम् ह्य० अशण्डत अशण्डेताम् अशण्डन्त अ० अशण्डिष्ट अशण्डिषाताम् अशण्डिषत प० शशण्डे शशण्डाते शशण्डिरे आ० शण्डिषीष्ट शण्डिषीयास्ताम् शण्डिषीरन् श्व० शण्डिता शण्डितारौ शण्डितारः भ० शण्डिष्यते शण्डिष्येते शण्डिष्यन्ते क्रि० अशण्डिष्यत अशण्डिष्येताम् अशण्डिष्यन्त
६८६. तडुङ् (तण्ड्) ताडने। व० तण्डते तण्डेते तण्डन्ते स० तण्डेत तण्डेयाताम् तण्डेरन प० तण्डताम् तण्डेताम् तण्डन्ताम्
ह्य० अतण्डत अतण्डेताम् अतण्डन्त अ० अतण्डिष्ट अतण्डिषाताम् अतण्डिषत प० ततण्डे ततण्डाते ततण्डिरे आ० तण्डिषीष्ट तण्डिषीयास्ताम् तण्डिषीरन् श्व० तण्डिता तण्डितारौ तण्डितार: भ० तण्डिष्यते तण्डिष्येते तण्डिष्यन्ते क्रि० अतण्डिष्यत अतण्डिष्येताम् अतण्डिष्यन्त
६८७. कडुङ् (कण्ड्) मदे। व० कण्डते कण्डेते कण्डन्ते स० कण्डेत कण्डेयाताम् कण्डेरन् प० कण्डताम् कण्डेताम् कण्डन्ताम्
० अकण्डत अकण्डेताम् अकण्डन्त अ० अकण्डिष्ट अकण्डिषाताम् अकण्डिषत प० चकण्डे चकण्डाते चकण्डिरे आ० कण्डिषीष्ट . कण्डिषीयास्ताम् कण्डिषीरन् श्व० कण्डिता कण्डितारौ कण्डितारः भ० कण्डिष्यते कण्डिष्येते कण्डिष्यन्ते क्रि० अकण्डिष्यत अकण्डिष्येताम् अकण्डिष्यन्त
६८८. खडुङ् (खण्ड्) मन्थे। व० खण्डते खण्डेते खण्डन्ते स० खण्डेत खण्डेयाताम् खण्डेरन् प० खण्डताम् खण्डेताम् खण्डन्ताम् ह्य० अखण्डत अखण्डेताम् अखण्डन्त अ० अखण्डिष्ट अखण्डिषाताम् अखण्डिषत प० चखण्डे चखण्डाते चखण्डिरे आ० खण्डिषीष्ट खण्डिषीयास्ताम् खण्डिषीरन् श्व० खण्डिता खण्डितारौ खण्डितार: भ० खण्डिष्यते खण्डिष्येते खण्डिष्यन्ते क्रि० अखण्डिष्यत अखण्डिष्येताम् अखण्डिष्यन्त
६८९. खुडुङ् (खुण्ड्) गतिवैकल्ये। व० खुण्डते खुण्डेते खुण्डन्ते | स० खुण्डेत खुण्डेयाताम् खुण्डेरन्
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
172
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प० खुण्डताम् खुण्डेताम् खुण्डन्ताम् ह्य० अखुण्डत अखुण्डेताम् अखुण्डन्त अ० अखुण्डिष्ट अखुण्डिषाताम् अखुण्डिषत प० चुखुण्डे चुखुण्डाते चुखुण्डिरे आ० खुण्डिषीष्ट खुण्डिषीयास्ताम् खुण्डिषीरन् श्र० खुण्डिता खुण्डितारौ खुण्डितार: भ० खुण्डिष्यते खुण्डिष्येते खुण्डिष्यन्ते क्रि० अखुण्डिष्यत अखुण्डिष्येताम् अखण्डिष्यन्त
६९०. कुडुङ् (कुण्ड्) गतिवैकल्ये। व० कुण्डते कुण्डेते कुण्डन्ते स० कुण्डेत कुण्डेयाताम् कुण्डेरन् प० कुण्डताम् . कुण्डेताम् कुण्डन्ताम् ह्य० अकुण्डत अकुण्डेताम् अकुण्डन्त अ० अकुण्डिष्ट अकुण्डिषाताम् अकुण्डिषत प० चुकुण्डे चुकुण्डाते चुकुण्डिरे आ० कुण्डिषीष्ट कुण्डिषीयास्ताम् कुण्डिषीरन् श्व० कुण्डिता कुण्डितारौ कुण्डितारः भ० कुण्डिष्यते कुण्डिष्येते कुण्डिष्यन्ते क्रि० अकुण्डिष्यत अकुण्डिष्येताम् अकुण्डिष्यन्त
६९१. वडुङ् (वण्ड्) वेष्टने। विभाजनेऽप्यन्ये। विलाजनं विभागीकरणं चर्माभावश्च। व० वण्डते वण्डेते वण्डन्ते स० वण्डेत वण्डेयाताम् वण्डेरन् प० वण्डताम्
वण्डेताम् वण्डन्ताम् ह्य० अवण्डत अवण्डेताम् अवण्डन्त अ० अवण्डिष्ट अवण्डिषाताम् अवण्डिषत प० ववण्डे ववण्डाते ववण्डिरे आ० वण्डिषीष्ट वण्डिषीयास्ताम् वण्डिषीरन् श्व० वण्डिता वण्डितारौ वण्डितार: भ० वण्डिष्यते वण्डिष्येते वण्डिष्यन्ते क्रि० अवण्डिष्यत अवण्डिष्येताम अवण्डिष्यन्त
६९२. मडुङ् (मण्ड्) वेष्टने। विभाजनेऽप्यन्ये। विभाजनं विभागीकरणं चर्माभावश्च। व० मण्डते मण्डेते मण्डन्ते स० मण्डेत मण्डेयाताम् मण्डेरन् प० मण्डताम्
मण्डेताम् मण्डन्ताम् ह्य० अमण्डत अमण्डेताम् अमण्डन्त अ० अमण्डिष्ट अमण्डिषाताम् अमण्डिषत प० ममण्डे ममण्डाते ममण्डिरे आ० मण्डिषीष्ट मण्डिषीयास्ताम् मण्डिषीरन् श्व० मण्डिता मण्डितारौ मण्डितार: भ० मण्डिष्यते मण्डिष्येते मण्डिष्यन्ते क्रि० अमण्डिष्यत अमण्डिष्येताम् अमण्डिष्यन्त
६९३. भडुङ् (भण्ड्) परिभाषणे। व० भण्डते . भण्डेते भण्डन्ते स० भण्डेत भण्डेयाताम् भण्डेरन् प० भण्डताम् भण्डेताम् भण्डन्ताम् ह्य० अभण्डत अभण्डेताम् अभण्डन्त अ० अभण्डिष्ट अभण्डिषाताम् अभण्डिषत प० बभण्डे बभण्डाते बभण्डिरे आ० भण्डिषीष्ट भण्डिषीयास्ताम् भण्डिषीरन् श्व० भण्डिता भण्डितारौ भण्डितारः भ० भण्डिष्यते भण्डिष्यते भण्डिष्यन्ते क्रि० अभण्डिष्यत अभण्डिष्येताम् अभण्डिष्यन्त
६९४. मुडुङ् (मुण्ड्) मज्जने।
मज्जनं शोधनं न्यग्भावश्च। व० मुण्डते स० मुण्डेत मुण्डेयाताम् मुण्डेरन् प० मुण्डताम् मुण्डेताम् मुण्डन्ताम् ह्य० अमुण्डत अमुण्डेताम् अमुण्डन्त अ० अमुण्डिष्ट अमुण्डिषाताम् अमुण्डिषत प० मुमुण्डे मुमुण्डाते मुमुण्डिरे आ० मुण्डिषीष्ट मुण्डिषीयास्ताम् मुण्डिषीरन्
मुण्डेते
मुण्डन्ते
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
173
श्र० मुण्डिता मुण्डितारौ मुण्डितार: श्व० मुण्डिष्यते मुण्डिष्येते मुण्डिष्यन्ते क्रि० अमुण्डिष्यत अमुण्डिष्येताम् अमुण्डिष्यन्त
६९५. तुडुङ् (तुण्ड्) तोडने।
तोडनं हिंसा। व० तुण्डते तुण्डेते तुण्डन्ते स० तुण्डेत तुण्डेयाताम् तुण्डेरन् प० तुण्डताम् तुण्डेताम् तुण्डन्ताम् ह्य० अतुण्डत अतुण्डेताम् अतुण्डन्त अ० अतुण्डिष्ट अतुण्डिषाताम् अतुण्डिषत प० तुतुण्डे तुतुण्डाते तुतुण्डिरे आ० तुण्डिषीष्ट तुण्डिषीयास्ताम् तुण्डिषीरन् श्र० तुण्डिता तुण्डितारौ तुण्डितारः तु० तुण्डिष्यते तुण्डिष्येते तुण्डिष्यन्ते क्रि० अतुण्डिष्यत अतुण्डिष्येताम् अतुण्डिष्यन्त
६९६. भुडुङ् (भुण्ड्) वरणे।
वरणं स्वीकरणम्। व० भुण्डते भुण्डेते भुण्डन्ते स० भुण्डेत भुण्डेयाताम् भुण्डेरन् प० भुण्डताम् भुण्डेताम् भुण्डन्ताम् ह्य० अभुण्डत अभुण्डेताम् अभुण्डन्त अ० अभुण्डिष्ट अभुण्डिषाताम् अभुण्डिषत प० बुभुण्डे बुभुण्डाते बुभुण्डिरे आ० भुण्डिषीष्ट भुण्डिषीयास्ताम् भुण्डिषीरन् श्व० भुण्डिता भुण्डितारौ भुण्डितार: भु० भुण्डिष्यते भुण्डिष्येते भुण्डिष्यन्ते क्रि० अभुण्डिष्यत अभुण्डिष्येताम् अभुण्डिष्यन्त
६९७. चडुङ् (चण्ड्) कोपे। व० चण्डते चण्डेते चण्डन्ते स० चण्डत चण्डेयाताम् चण्डेरन् प० चण्डताम् चण्डेताम् चण्डन्ताम् ह्य० अचण्डत अचण्डेताम् अचण्डन्त
अ० अचण्डिष्ट अचण्डिषाताम् अचण्डिषत प० चचण्डे चचण्डाते चचण्डिरे आ० चण्डिषीष्ट चण्डिषीयास्ताम् चण्डिषीरन् श्व० चण्डिता चण्डितारौ चण्डितारः च० चण्डिष्यते चण्डिष्येते चण्डिष्यन्ते क्रि० अचण्डिष्यत अचण्डिष्येताम् अचण्डिष्यन्त
६९८. द्राङ् (द्राड्) विशरणे। व० द्राडते द्राडेते द्राडन्ते स० द्राडेत द्राडेयाताम् द्राडेरन् प० द्राडताम् द्राडेताम् द्राडन्ताम् ह्य० अद्राडत अद्राडेताम् अद्राडन्त अ० अद्राडिष्ट अद्राडिषाताम् अद्राडिषत प० दद्राडे दद्राडाते दद्राडिरे आ० द्राडिषीष्ट द्राडिषीयास्ताम् द्राडिषीरन् श्व० द्राडिता द्राडितारौ द्राडितार: भ० द्राडिष्यते
द्राडिष्येते
द्राडिष्यन्ते क्रि० अद्राडिष्यत अद्राडिष्येताम् अद्राडिष्यन्त
६९९. ध्राइङ् (ध्राड्) विशरणे। व० धाडते ध्राडेते ध्राडन्ते स० धाडेत ध्राडेयाताम् ध्राडेरन् प० ध्राडताम्
ध्राडेताम् ध्राडन्ताम् ह्य० अध्राडत अध्राडेताम् अध्राडन्त अ० अध्राडिष्ट अध्राडिषाताम् अध्राडिषत प० दध्राडे दध्राडाते दध्राडिरे आ० धाडिषीष्ट ध्राडिषीयास्ताम् ध्राडिषीरन् श्व० धाडिता ध्राडितारौ ध्राडितार: भ० धाडिष्यते ध्राडिष्येते ध्राडिष्यन्ते क्रि० अध्राडिष्यत अध्राडिष्येताम् अध्राडिष्यन्त
७००. शाइङ् (शाड्) श्लाघायाम्। व० शाडते शाडेते शाडन्ते स० शाडेत शाडेयाताम् शाडेरन्
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
174
प०
ह्य०
अ०
शाडताम्
अशाडत
अशाडिष्ट
प०
शशाडे
आ० शाडिषीष्ट
व०
शाडिता
भ० शाडिष्यते
क्रि० अशाडिष्यत अशाडिष्येताम् अशाडिष्यन्त
७०१. वाङ्ङ् (वाड्) आप्लाव्ये ।
आप्लाव्यमाप्लावनम् ।
वाडेते
वाडे
व०
वाडते
स० वाडेत
प०
ह्य०
अ०
प० वाडे
आ० वाडिषीष्ट
श्वо
वाडिता
भ० वाडिष्यते
क्रि० अवाडिष्यत
वाडताम्
अवाडत
अवाडिष्ट
व०
हेडते
स० हेडेत
प० हेडताम्
० अहेडत
अ० अहेडिष्ट
प०
जिहेडे
आ० हेडिषीष्ट
श्व० हेडिता
शाडेताम्
अशाडे
भ०
हेडिष्यते
क्रि० अहेडिष्यत
शाडन्ताम्
अशाडन्त
अशाडिषाताम् अशाडिषत
शशाडाते
शशाडिरे
शाडिषीयास्ताम् शाडिषीरन्
शाडितार:
शाडिष्यन्ते
शाडितारौ
शाडिष्येते
वाडेताम्
अवाडे
अवाडिषाताम् अवाडिषत
ववाडा
अवाडिष्येताम्
७०२. हेड्ङ् (हेड्) अनादरे ।
हेडे
हेडन्ते
हेडेन्
वाडन्ते
वाडेन्
वाडन्ताम्
अवाडन्त
ववाडिरे
वाडिषीयास्ताम् वाडिषीरन्
वाडितारौ
वाडितार:
वाडिष्येते
वाडिष्यन्ते
अवाडिष्यन्त
हेडेयाताम्
हेडेताम्
अहेडेताम्
अहेडिषाताम्
जिहेडाते
डन्ताम्
अन्त
अहेडिषत
जिहेडिरे
हेडिषीयास्ताम् हेडिषीरन्
हेडितारौ
हेडितार:
हेडिष्येते
हेडिष्यन्ते
अहेडिष्येताम् अहेडिष्यन्त
धातुरत्नाकर प्रथम भाग ७०३. होइङ् (होड्) अनादरे ।
होडेते
होडन्ते
होडेयाताम् होडेरन्
होम्
होडन्ताम्
अहोडेम्
अहोडन्त
अहोडिषाताम् अहोडिषत
जु
जुहोि
होडिषीयास्ताम् होडिषीरन्
होडितार:
होडिष्यन्ते
व० होड
स० होडेत
प० होडताम्
ह्य० अहोडत
अ० अहोडिष्ट
प०
जुहोडे
आ० होडिषीष्ट
श्व० होडिता
भ० होडिष्यते
क्रि० अहोडिष्यत
व०
हिण्डते
स० हिण्डेत
प० हिण्डताम्
ह्य० अहिण्डत
अ० अहिण्डिष्ट
प० जिहिण्डे
आ० हिण्डिषीष्ट
७०४. हिडुङ् (हिण्ड्) गतौ च ।
श्व० हिण्डिता
हि० हिण्डिष्यते
क्रि० अहिण्डिष्यत
व० घिण्णते
स० घिण्णेत
७०५.
प०
घिण्णताम्
ह्य० अघिण्णत
अ० अघिण्णिष्ट
प० जिघिण्णे
आ० घिण्णिषीष्ट
होडता
होडिष्येते
अहोडिष्येताम् अहोडिष्यन्त
चकारादनादरे ।
हिण्डेते
हिण्डन्ते
हिण्डेयाताम् हिण्डेरन्
हिण्डेताम्
हिण्डन्ताम्
अहिण्डन्त
• हिण्डे अहिण्डिषाताम् अहिण्डिषत जिहिण्डाते जिहिण्डिरे
हिण्डिषीयास्ताम् हिण्डिषीरन् हिण्डितारौ हिण्डितार:
हिण्डिष्येते
हिण्डिष्यन्ते
अहिण्डिष्येताम् अहिण्डिष्यन्त
अथ णान्ताः षट् सेट |
घिणुङ् (घिण्ण्) ग्रहणे ।
घिण्णेते
घिण्णन्ते
घिण्णेयाताम्
घिण्णेरन्
घिण्णेताम् घिन्ताम्
अघिण्णेताम्
अघिण्णन्त
अघिण्णिषाताम् अघिण्णिषत
जिघिण्णाते जिघिण्णिरे
घिष्णिषीयास्ताम् घिण्णिषीरन्
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
श्र० घिण्णिता घिण्णितारौ
घि० घिण्णिष्यते घिण्णिष्येते
क्रि० अघिण्णिष्यत
व० घुण्णते
०घु
७०६. घुणुङ् (घुण्ण्)
घु
घुमन्ते
घुणेयाताम्
घुरन्
घुणेताम्
घुण्णन्ताम्
अघुणेताम् अघुण्णन्त
अघुण्णिषाताम् अघुण्णिषत
घु
जुघुणिरे
घुण्णिषीयास्ताम् घुण्णिषीरन्
घुण्णतः
घुणयन्
क्रि० अघुण्णिष्यत अघुणिष्येताम् अघुण्णिष्यन्त ७०७. घृणुङ् (घृण्ण्) ग्रहणे ।
घृष्णे
प०
घुण्णताम्
ह्य० अघुण्णत
अ० अघुण्णिष्ट
प० जुघुण्णे
आ० घुण्णिषीष्ट
श्व० घुण्णिता
भ० णिष्यते
व० घृणते
सत
प० घृण्णताम्
ह्य० अघृण्णत
अ० अघृण्णिष्ट
प० जघृणे
आ० घृणिषीष्ट
श्व० घृण्णिता
भ० घृणिष्यते
क्रि० अघृण्णिष्यत
अघिण्णिष्येताम् अघिण्णिष्यन्त
ग्रहणे ।
व०
घोणते
स० घोणेत
प० घोणताम्
ह्य० अघोणत अ० अघोणिष्ट
घिण्णितार: घिण्णिष्यन्ते
घु
घु
घृणन्ते
घृणेरन्
घृणेयाताम्
घृष्णेताम् घृण्णन्ताम्
७०८. घुणि (घुण्) भ्रमणे ।
घोणते
घोणेते घोणेयाताम् घोणेरन्
घोणेताम् घोणन्ताम्
अघोणेताम् अघोणत
अघोणिषाताम् अघोषित
अघृण्णेताम् अघृण्णन्त
अघृणिषाताम् अघृण्णिषत घृणा घृण घृण्णिषीयास्ताम् घृण्णिषीरन्
घृणितारौ
घृण्णितार:
घृणि
घृणिष्यन्ते
अघृण्णिष्येताम् अघृण्णिष्यन्त
प० जुघुणे
आ० घोणिषीष्ट
श्व० घोणिता
भ० घोणिष्यते
क्रि० अघोणिष्यत
व० घूर्णते
स० घूर्णेत
प० घूर्णताम्
ह्य० अघूर्णत
अ० अघूर्णिष्ट
प० जुघुर्णे
आ० घूर्णिषीष्ट
श्व० घूर्णिता
भ० घूर्णिष्यते
क्रि० अघूर्णिष्यत
व०
प०
७०९.
ह्य० अपणायत्
अपणायः
जुघुणा जुघुणिरे
घोणिषीयास्ताम् घोणिषीरन्
घोणितार:
घोणिष्यन्ते
अपणायम्
अ० अपणायीत्
अपणायी: अपणायिषम्
अ० अपणायिष्ट
अपणायिष्ठाः अपणायिषि
घोणितारौ
घोणिष्येते
जुघुर्णा
जुघुर्णि
घूर्णिषीयास्ताम् घूर्णिषीरन्
घूर्णितार:
घूर्णिय
घूर्णितम्
अघूर्णित
७१०. पणि (पण - पणाय्) व्यवहारस्तुत्योः ।
पणायति
पणायत:
पणायन्ति
पणायसि
पणायथ:
पणायथ
पणायामि
पणायाव:
पणायामः
स० पणायेत्
पणायेताम्
पणायेयुः
पणाये:
पणायेत
पणायेयम्
पणाम
अघोणिष्येताम्
धूणि (घूर्ण) भ्रमणे ।
घूर्णते
घूर्णेयाताम्
घूर्णेताम्
अघूर्णेताम्
घूर्णषाताम्
पणायतु/पणायतात् पणायताम्
पणाय / पणायतात् पणायतम् पणायानि
पणायाव
घूर्णित
घूर्णिते
अघोणिष्यन्त
पणातम्
पणायेव
घूर्णन्ते
घूर्णेरन्
घूर्णन्ताम्
अघूर्णन्त
घूर्ण
175
पणायन्तु
पणायत
पणायाम
अपणायन्
अपणायताम् अपणायतम् अपणायत अपणायाम
अपणायाव
अपणायिष्टाम् अपणायिषुः अपणायिष्यम् अपणायिष्ट अपणायिष्व अपणायिष्म्
अपणायिषाताम् अपणायिषत
अपणायिषाथाम् अपणायिवम् / ध्वम्
अपणायिष्वहि
अपणायिष्महि
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
176
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
यतसे
यतेथे
यते
पेणे
यतै
प० पणायाञ्चकार पणायाञ्चक्रतुः पणायाञ्चक्रुः
पणायाञ्चकथ पणायाञ्चक्रथुः पणायाञ्चक्र पणायाञ्चकार/चकर पणायाञ्चकृव पणायाञ्चकृम
पणायाम्बभूव/पणायामास। प० पेणे
पेणाते
पेणिरे पेणिषे
पेणाथे पेणिध्वे
पेणिवहे पेणिमहे आ० पणाय्यात् पणाय्यास्ताम् पणाय्यासुः पणाय्याः
पणाक्यास्तम् पणाय्यास्त पणाय्यासम् पणाय्यास्व पणाय्यास्म आ० पणिषीष्ट पणिषीयास्ताम् पणिषीरन्
पणिषीष्ठाः पणिषीयास्थाम् पणिषीध्वम्
पणिषीय पणिषीवहि पणिषीमहि व० पणायिता पणायितारौ पणायितार:
पणायितासि पणायितास्थः पणायितास्थ
पणायितास्मि पणायितास्वः पणायितास्मः श्व० पणिता पणितारौ पणितारः
पणितासे पणितासाथे पणिताध्वे
पणिताहे पणितास्वहे पणितास्महे भ० पणायिष्यति पणायिष्यतः पणायिष्यन्ति
पणायिष्यसि पणायिष्यथ: पणायिष्यथ
पणायिष्यामि पणायिष्याव: पणायिष्यामः भ० पणिष्यते पणिष्येते पणिष्यन्ते
पणिष्यसे पणिष्येथे पणिष्यध्वे पणिष्ये
पणिष्यावहे पणिष्यामहे क्रि० अपणायिष्यत् अपणायिष्यताम् अपणायिष्यन्
अपणायिष्यः अपणायिष्यतम् अपणायिष्यत
अपणायिष्यम् अपणायिष्याव अपणायिष्याम क्रि० अपणिष्यत अपणिष्येताम् अपणिष्यन्त
अपणिष्यथाः अपणिष्येथाम् अपणिष्यध्वम् अपणिष्ये अपणिष्यावहि अपणिष्यामहि
स्वार्थिकप्रत्ययान्तस्य प्रकृतिवद्ग्रहणात्पणिरेवायम्। अनुबन्धस्याशवि केवले चारितार्थ्यादायप्रत्यान्तान्नात्मनेपदम् किन्तु आयान्तस्य इङित्त्वाभावात् "शेषात्-" इति परस्मैपदम्। ये तु स्तुत्यर्थादेव पणेरायमिच्छन्ति तन्मते व्यवहारार्थाच्छव्यप्या भावे
शतस्य पणते इत्यादि।
अथ तान्तास्त्रयः सेटश्च।
७११. यतैङ् (यत्) प्रयत्ने। व० यतते यतेते यतन्ते
यतध्वे
यतावहे यतामहे स० यतेत यतेयाताम् यतेरन यतेथाः यतेयाथाम्
यतेध्वम् यतेय यतेवहि यतेमहि यतताम् यतेताम् यतन्ताम् यतस्व यतेथाम् यतध्वम्
यतावहै यतामहै ह्य० अयतत अयतेताम् अयतन्त
अयतथाः अयतेथाम् अयतध्वम् अयते
अयतावहि अयतामहि अ० अयतिष्ट अयतिषाताम् अयतिषत
अयतिष्ठाः अयतिषाथाम् अयतिड्डवम्ध्वम्
अयतिषि अयतिष्वहि अयतिष्पहि | प० येते येताते येतिरे येतिषे येताथे येतिध्वे
येतिवहे येतिमहे आ० यतिषीष्ट यतिषीयास्ताम् यतिषीरन्
यतिषीष्ठाः यतिषीयास्थाम् यतिषीध्वम्
यतिषीय यतिषीवहि यतिषीमहि श्व० यतिता यतितारौ यतितारः
यतितासे यतितासाथे यतिताध्वे
यतिताहे यतितास्वहे यतितास्महे भ० यतिष्यते यतिष्येते यतिष्यन्ते
यतिष्यसे यतिष्येथे यतिष्यध्वे
यतिष्ये यतिष्यावहे यतिष्यामहे क्रि० अयतिष्यत अयतिष्येताम् अयतिष्यन्त
अयतिष्यथाः अयतिष्येथाम् अयतिष्यध्वम् अयतिष्ये अयतिष्यावहि अयतिष्यामहि
७१२. युतङ् (युत) भासने। योतते योतेते
योतन्ते स० योतेत
योतेयाताम् योतेरन् योतताम् योतेताम् योतन्ताम्
येते
नाम
व०
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
177
जोतेरन् जोतन्ताम्
जोतेताम्
ह्य० अयोतत अयोतेताम् अयोतन्त अ० अयोतिष्ट अयोतिषाताम् . अयोतिषत प० युयुते युयुताते युयुतिरे आ० योतिषीष्ट योतिषीयास्ताम् योतिषीरन् श्व० योतिता योतितारौ योतितारः भ० योतिष्यते योतिष्येते योतिष्यन्ते क्रि० अयोतिष्यत अयोतिष्येताम् अयोतिष्यन्त
७१३. जुतृङ् (जुत्) भासने। व० जोतते जोतेते जोतन्ते स० जोतेत जोतेयाताम् प० जोतताम् ह्य० अजोतत अजोतेताम् अजोतन्त अ० अजोतिष्ट अजोतिषाताम् अजोतिषत प० जुजुते जुजुताते जुजुतिरे आ० जोतिषीष्ट जोतिषीयास्ताम् जोतिषीरन् श्व० जोतिता जोतितारौ जोतितार: भ० जोतिष्यते जोतिष्येते जोतिष्यन्ते क्रि० अजोतिष्यत अजोतिष्येताम् अजोतिष्यन्त
अथ थान्ताः षट् सेटश्च।
७१४. विशृङ् (विथ्) याचने। व० वेथते वेथेते वेथन्ते स० वेथेत वेथेयाताम्
वेथताम् वेथेताम् ह्य० अवेथत अवेथेताम् अवेथन्त अ० अवेथिष्ट अवेथिषाताम् अवेथिषत प० विविथे विविथाते विविथिरे आ० वेथिषीष्ट वेथिषीयास्ताम् वेथिषीरन् श्व० वेथिता वेथितारौ वेथितार: भ० वेथिष्यते वेथिष्येते वेथिष्यन्ते क्रि० अवेथिष्यत अवेथिष्येताम् अवेथिष्यन्त
७१५. वेशृङ् (वेथ्) याचने। व० वेथते वेथेते
वेथन्ते स० वेथेत वेथेयाताम्
प० वेथताम् वेथेताम् वेथन्ताम् ह्य० अवेथत अवेथेताम् अवेथन्त अ० अवेथिष्ट अवेथिषाताम् अवेथिषत प० विवेथे विवेथाते विवेथिरे आ० वेथिषीष्ट वेथिषीयास्ताम् वेथिषीरन् श्व० वेथिता वेथितारौ वेथितार: भ० वेथिष्यते वेथिष्येते वेथिष्यन्ते क्रि० अवेथिष्यत अवेथिष्येताम् अवेथिष्यन्त
७१६. नाथङ् उपतापैश्वर्याशीःषु च। चकारात् याचने। उपताप उपघातः। अत्र याञ्चोपतापौ क्रियार्थत्वादर्थी। ऐश्वर्याशिषौ तु धर्मत्वाद् द्यौत्ये। यद्वा गण्डति श्वेतते प्रासादः, घण्टा ध्वनति संयुज्यते अस्ति समवैतीति द्रव्यगणसंयोगसत्तासमवायानामिव सिद्धानामप्याख्यात वाच्यत्वेन साध्यतया प्रतीतेरनयोरर्थवत्वमप्यस्तु। यदाहपूर्वापरीभूतं भावमाख्यातेनाचष्टे "आशिषि नाथः" ३.३.३६ इत्याशिष्येवात्मनेपदनियमाद् अर्थान्तरे परस्मैपदमेव। कथं तर्हि
एतन्मन्दविपक्वतिन्दुकफलश्यामोदरापाण्डुरप्रान्तं हन्त पुलिन्दसुन्दरकरस्पर्शक्षम लक्ष्यते। तत्पल्लीपतिपुत्रीकुञ्जरकुलं जीवाभयाभ्यर्थनाद्दीनं त्वामनुनाथते कुचयुगं पत्राशुकैर्मा पिधाः।।१।।
तत्राशिषि - व० नाथते
नाथन्ते स० नाथेत नाथेयाताम् नाथेरन् प० नाथताम् नाथेताम् नाथन्ताम् ह्य० अनाथत अनाथेताम् अनाथन्त अ० अनाथिष्ट अनाथिषाताम् अनाथिषत प० ननाथे ननाथाते ननाथिरे आ० नाथिषीष्ट नाथिषीयास्ताम् नाथिषीरन् श्व० नाथिता नाथितारौ नाथितारः भ० नाथिष्यते नाथिष्येते नाथिष्यन्ते. क्रि० अनाथिष्यत अनाथिष्येताम् अनाथिष्यन्त
वेथेरन् वेथन्ताम्
प० वथत
नाथेते
वेथेरन्
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
178
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
७१६. आशिषोऽन्यत्र। व० नाथति नाथतः
नाथन्ति स० नाथेत्
नाथेताम्
नाथेयुः प० नाथतु/नाथतीत् नाथताम् नाथन्तु ह्य० अनाथत् अनाथताम् अनाथन् अ० अनाथीत् अनाथिष्थाम् अनाथिषुः प० ननाथ
ननाथतुः
ननाथुः आ० नाथ्यात् नाथ्यास्ताम्
नाथ्यासुः २० नाथिता नाथितारौ नाथितारः भ० नाथिष्यति नाथिष्यतः नाथिष्यन्ति क्रि० अनाथिष्यत् अनाथिष्यताम् अनाथिष्यन्
७१७. श्रथुङ् (श्रन्थ्) शैथिल्ये। व० श्रन्थते श्रन्थेते श्रन्थन्ते स० श्रन्थेत श्रन्थेयाताम् श्रन्थेरन् प० श्रन्थताम् श्रन्थेताम् श्रन्थन्ताम् ह्य० अश्रन्थत अश्रन्थेताम् अश्रन्थन्त अ० अश्रन्थिष्ट अश्रन्थिषाताम् अश्रन्थिषत प० शश्रन्थे शश्रन्थाते शश्रन्थिरे . आ० श्रन्थिषीष्ट श्रन्थिषीयास्ताम् श्रन्थिषीरन् श्व० श्रन्थिता श्रन्थितारौ श्रन्थितार: भ० श्रन्थिष्यते श्रन्थिष्येते श्रन्थिष्यन्ते क्रि० अश्रन्थिष्यत अश्रन्थिष्येताम् अश्रन्थिष्यन्त ७१८. प्रथुङ् (ग्रन्थ्) कौटिल्ये। कौटिल्यं
कुसृति: बन्धश्च। व० ग्रन्थते
ग्रन्थेते ग्रन्थन्ते स० ग्रन्थेत ग्रन्थेयाताम् ग्रन्थेरन् प० ग्रन्थताम्
ग्रन्थेताम् ग्रन्थन्ताम् ह्य० अग्रन्थत अग्रन्थेताम् अग्रन्थन्त अ० अग्रन्थिष्ट अग्रन्थिषाताम् अग्रन्थिषत प० जग्रन्थे जग्रन्थाते
जग्रन्थिरे आ० ग्रन्थिषीष्ट ग्रन्थिषीयास्ताम् ग्रन्थिषीरन् श्व० ग्रन्थिता ग्रन्थितारौ ग्रन्थितार:
भ० ग्रन्थिष्यते ग्रन्थिष्येते ग्रन्थिष्यन्ते क्रि० अग्रन्थिष्यत अग्रन्थिष्येताम् अग्रन्थिष्यन्त ७१९. कस्थि (कत्य्) श्लाघायाम्।
श्लाघा गुणारोपः। व० कत्थते कत्थेते कत्थन्ते स० कत्थेत कत्थेयाताम् कत्थेरन् प० कत्थताम् कत्थेताम् कत्थन्ताम्
अकत्थत अकत्थेताम् अकत्थन्त
अकत्थिष्ट अकत्थिषाताम् अकत्थिषत प० चकत्थे चकत्थाते चकत्थिरे आ० कत्थिषीष्ट कत्थिषीयास्ताम् कत्थिषीरन् श्व० कत्थिता कत्थितारौ कत्थितारः भ० कत्थिष्यते कत्थिष्येते कत्थिष्यन्ते क्रि० अकत्थिष्यत अकत्थिष्येताम् अकत्थिष्यन्त
अथ दान्ता एकविंशतिर्हदिवर्जा: सेटश्च।
७२०. स्विदुङ् (स्विन्द्) श्वैत्ये। व० स्विन्दते स्विन्देते स्विन्दन्ते स० स्विन्देत स्विन्देयाताम् स्विन्देरन् प० स्विन्दताम् स्विन्देताम् स्विन्दन्ताम् ह्य० अस्विन्दत अस्विन्देताम् अस्विन्दन्त अ० अस्विन्दिष्ट अस्विन्दिषाताम् अस्विन्दिषत प० सिस्विन्दे सिस्विन्दाते सिस्विन्दिरे आ० स्विन्दिषीष्ट स्विन्दिषीयास्ताम् स्विन्दिषीरन् श्व० स्विन्दिता स्विन्दितारौ स्विन्दितार: भ० स्विन्दिष्यते स्विन्दिष्येते स्विन्दिष्यन्ते क्रि० अस्विन्दिष्यत अस्विन्दिष्येताम अस्विन्दिष्यन्त
७२१. वदुङ् (वन्द्) स्तुत्यभिवादनयोः। __ स्तुति: गुणैः प्रशंसा अभिवादनं पादयोः प्रणिपातः।। व० वन्दते वन्देते वन्दन्ते स० वन्देत
वन्देयाताम्
वन्देरन् प० वन्दताम् वन्देताम् वन्दन्ताम् ह्य० अवन्दत अवन्देताम् अवन्दन्त अ० अवन्दिष्ट अवन्दिषाताम् अवन्दिषत
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
179
प० ववन्दे ववन्दाते ववन्दिरे आ० वन्दिषीष्ट वन्दिषीयास्ताम् वन्दिषीरन् श्व० वन्दिता वन्दितारौ वन्दितारः भ० वन्दिष्यते वन्दिष्येते वन्दिष्यन्ते क्रि० अवन्दिष्यत अवन्दिष्येताम् अवन्दिष्यन्त
७२२. भदुङ् (भन्द) सुखकल्याणयोः। सुखं सद्वेद्यकर्मोदयाच्छुभानुभवनम् कल्याणं श्रेयः।
प्रीतावप्यन्ये। प्रीतिर्मोहनीयविपाकः। व० भन्दते भन्देते भन्दन्ते स० भन्दत भन्देयाताम् भन्देरन् प० भन्दताम् भन्देताम् भन्दन्ताम्
अभन्दत अभन्देताम् अभन्दन्त अ० अभन्दिष्ट अभन्दिषाताम् अभन्दिषत प० बभन्दे बभन्दाते बभन्दिरे आ० भन्दिषीष्ट भन्दिषीयास्ताम् भन्दिषीरन् श्व० भन्दिता भन्दितारौ भन्दितार: भ० भन्दिष्यते. भन्दिष्येते भन्दिष्यन्ते क्रि० अभन्दिष्यत अभन्दिष्येताम् अभन्दिष्यन्त ७२३. मदुङ् (मन्द) स्तुतिमोदमदस्वप्नगतिषु। मोदो
हर्षः। मदो दर्पः। स्वजेनालस्यमपि लक्ष्यते। व० मन्दते मन्देते मन्दन्ते स० मन्देत मन्देयाताम् मन्देरन् प० मन्दताम् मन्देताम् मन्दन्ताम् ह्य० अमन्दत अमन्देताम् अमन्दन्त अ० अमन्दिष्ट अमन्दिषाताम् अमन्दिषत प० ममन्दे ममन्दाते ममन्दिरे आ० मन्दिषीष्ट मन्दिषीयास्ताम् मन्दिषीरन् व० मन्दिता मन्दितारौ मन्दितारः भ० मन्दिष्यते मन्दिष्येते मन्दिष्यन्ते क्रि० अमन्दिष्यत अमन्दिष्येताम् अमन्दिष्यन्त
७२४. स्पदुङ् ( स्पन्द्) किञ्चिच्चलने। व० स्पन्दते स्पन्देते स्पन्दन्ते स० स्पन्देत स्पन्देयाताम् स्पन्देरन् प० स्पन्दताम् स्पन्देताम् स्पन्दन्ताम् ह्य० अस्पन्दत अस्पन्देताम् अस्पन्दन्त
अ० अस्पन्दिष्ट अस्पन्दिषाताम् अस्पन्दिषत प० पस्पन्दे पस्पन्दाते पस्पन्दिरे आ० स्पन्दिषीष्ट स्पन्दिषीयास्ताम् स्पन्दिषीरन् श्व० स्पन्दिता स्पन्दितारौ स्पन्दितारः भ० स्पन्दिष्यते स्पन्दिष्येते स्पन्दिष्यन्ते क्रि० अस्पन्दिष्यत अस्पन्दिष्येताम् अस्पन्दिष्यन्त ७२५. क्लिदुङ् (क्लिन्द्) परिदेवने।
परिदेवनं शोचनम्। व० क्लिन्दते क्लिन्देते क्लिन्दन्ते स० क्लिन्देत क्लिन्देयाताम् क्लिन्देरन् प० क्लिन्दताम् क्लिन्देताम् क्लिन्दन्ताम् ह्य० अक्लिन्दत अक्लिन्देताम् अक्लिन्दन्त अ० अक्लिन्दिष्ट अक्लिन्दिषाताम् अक्लिन्दिषत प० चिक्लिन्दे चिक्लिन्दाते चिक्लिन्दिरे आ० क्लिन्दिषीष्ट क्लिन्दिषीयास्ताक्लिन्दिषीरन् श्व० क्लिन्दिता क्लिन्दितारौ क्लिन्दितारः भ० क्लिन्दिष्यते क्लिन्दिष्येते क्लिन्दिष्यन्ते क्रि० अक्लिन्दिष्यत अक्लिन्दिष्येताम् अक्लिन्दिष्यन्त
७२६. मुदि (मुद्) हर्षे।
अकर्मकोऽयम्। व० मोदते मोदेते मोदन्ते स० मोदेत मोदेयाताम् प० मोदताम् मोदेताम् मोदन्ताम् ह्य० अमोदत अमोदेताम् अमोदन्त अ० अमोदिष्ट अमोदिषाताम् अमोदिषत प० मुमुदे मुमुदाते आ० मोदिषीष्ट मोदिषीयास्ताम् मोदिषीरन् श्व० मोदिता मोदितारौ मोदितारः भ० मोदिष्यते मोदिष्येते मोदिष्यते क्रि० अमोदिष्यत अमोदिष्येताम् अमोदिष्यत
७२७. ददि (दद) दाने।
धारणे इति कौशिकः। व० ददते
ददन्ते स० ददेत ददेयाताम् ददेरन् प० ददताम्
ददन्ताम् ह्य० अददत अददेताम् अददन्त
मोदेरन्
मुमुदिरे
ददेते
ददेताम्
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
180
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
he
अ० अददिष्ट अददिषाताम् अददिषत प० दददे दददाते दददिरे आ० ददिषीष्ट ददिषीयास्ताम् ददिषीरन् श्व० ददिता ददितारौ ददितारः भ० ददिष्यते ददिष्यते ददिष्यन्ते क्रि० अददिष्यत अददिष्येताम् अददिष्यन्त
७२८. हदि (हद्) पुरीषोत्सर्गे। व० हदते हदेते हदन्ते स० हदेत हदेयाताम् हदेरन् प० हदताम् हदेताम् हदन्ताम् ह्य० अहदत अहदेताम्
अहदन्त अ० अहदिष्ट अहदिषाताम् अहदिषत प० जहदे जहदाते जहदिरे आ० अहत्त
अहत्साताम् अहत्सत श्व० हत्ता हत्तारौ हत्तारः भ० हत्स्यते हत्स्येते हत्स्यते क्रि० अहत्स्यत अहत्स्येताम् अहत्स्यत
७२९. ष्वदि (स्वद्) आस्वादने।
आस्वादनं जिह्वया लेहः। व० स्वदते
स्वदेते
स्वदन्ते स० स्वदेत स्वदेयाताम् स्वदेरन् प० स्वदताम् स्वदेताम् स्वदन्ताम् ह्य० अस्वदत अस्वदेताम् अस्वदन्त अ० अस्वदिष्ट अस्वदिषाताम् अस्वदिषत प० सस्वदे सस्वदाते सस्वदिरे आ० स्वदिषीष्ट स्वदिषीयास्ताम् स्वदिषीरन् श्व० स्वदिता स्वदितारौ स्वदितारः भ० स्वदिष्यते स्वदिष्येते स्वदिष्यन्ते क्रि० अस्वदिष्यत अस्वदिष्येताम् अस्वदिष्यन्त
७३०. स्वर्दि (स्व) आस्वादने।
आस्वादनं जिह्वया लेहः। व० स्वर्दते स्वर्देते स्वर्दन्ते स० स्वर्देत स्वर्देयाताम् स्वर्देरन् प० स्वर्दताम् स्वर्देताम् स्वर्दन्ताम्
ह्य० अस्वर्दत अस्वर्देताम् अस्वर्दन्त अ० अस्वर्दिष्ट अस्वर्दिषाताम् अस्वर्दिषत प० सस्वर्दे सस्वर्दाते सस्वर्दिरे आ० स्वर्दिषीष्ट स्वर्दिषीयास्ताम् स्वर्दिषीरन् श्व० स्वर्दिता स्वर्दितारौ स्वर्दितार: भ० स्वर्दिष्यते स्वर्दिष्येते स्वर्दिष्यन्ते क्रि० अस्वर्दिष्यत अस्वर्दिष्येताम् अस्वर्दिष्यन्त
७३१. स्वादि (स्वाद्) आस्वादने।
आस्वादनं जिह्वया लेहः। व० स्वादते स्वादेते स्वादन्ते स० स्वादेत स्वादेयाताम् स्वादेरन् प० स्वादताम् स्वादेताम् स्वादन्ताम् ह्य० अस्वादत अस्वादेताम् अस्वादन्त अ० अस्वादिष्ट अस्वादिषाताम् अस्वादिषत प० सस्वादे सस्वादाते. सस्वादिरे आ० स्वादिषीष्ट स्वादिषीयास्ताम् स्वादिषीरन् श्व० स्वादिता स्वादितारौ स्वादितार: भ० स्वादिष्यते स्वादिष्येते स्वादिष्यन्ते क्रि० अस्वादिष्यत अस्वादिष्येताम् अस्वादिष्यन्त ७३२. उर्दि (ऊ) मानक्रीडयोश्च।
मानं मितिः। व० ऊर्दते ऊर्देते ऊर्दन्ते स० ऊर्देत ऊर्देयाताम् ऊर्देरन् प० ऊर्दताम् ऊर्देताम् ऊर्दन्ताम् ह्य० औदत और्देताम् औदन्त अ० और्दिष्ट और्दिषाताम् और्दिषत प० ऊर्दाञ्चक्रे ऊर्दाञ्चक्राते ऊर्दाञ्चक्रिरे
ऊर्दाम्बभूव। ऊर्दामास। आ० ऊर्दिषीष्ट ऊर्दिषीयास्ताम् ऊर्दिषीरन् श्व० ऊर्दिता ऊर्दितारौ ऊर्दितार: भ० ऊर्दिष्यते ऊर्दिष्येते ऊर्दिष्यन्ते क्रि० और्दिष्यत और्दिष्येताम् और्दिष्यन्त
७३३. कुर्दि (कू) क्रीडायाम्। व० कूदते कूते कूर्दन्ते | स० कूर्देत कूर्देयाताम् कूर्देरन्
स्वदत
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
प० कूर्दताम् ० अकूर्दत
अ० अकूर्दिष्ट
प०
चुकूर्दे
आ० कूर्दिषीष्ट
व० कूर्दिता
भ० कूर्दिष्यते
क्रि० अकूर्दिष्यत
व० गूर्दते
सo गूर्देत
प० गूर्दताम्
ह्य० अगूर्दत
अ० अगूर्दिष्ट
प० जुगूर्दे
आ० गर्दिषीष्ट
श्व० गर्दिता
भ० गर्दिष्यते
क्रि० अगूर्दिष्यत
व० गोदते
स० गोदेत
प० गोदताम्
ह्य० अगोदत
अ० अगोदिष्ट
प० जुगुदे
आ० गोदिषीष्ट
व० सूदते
स० सूदेत
श्व० गोदिता
भ० गोदिष्यते
क्रि० अगोदिष्यत
प०
७३४. गुर्दि (गूर्द ) क्रीडायाम् ।
ह्य० असूदत
सूदताम्
कूर्दताम्
अकूर्दताम्
कूर्दन्ताम्
अकूर्दन्त
अकूर्दिषाताम् अकूर्दिषत
चुकूर्दा
चुकूर्दिरे
कूर्दिषीयास्ताम् कूर्दिषीरन्
कूर्दितारः कूर्दिष्यन्ते
गूर्दन्ताम्
अगूर्दन्त
अगूर्दिषाताम् अगूर्दिषत
जुगूद
जुर्दि
गर्दिषीयास्ताम् गर्दिषीरन्
गर्दितार:
गर्दिष्यते
अगूर्दिष्येताम् अगूर्दिष्यन्त
७३५. गुदि (गुद्) क्रीडायाम् । गोदेते गोदन्ते गोदेयाताम् गोरन् गोदन्ताम्
गोताम्
अगोदेताम् अगोदन्त
अगोदिषाताम् अगोदिषत
कूर्दतारौ
कूर्दिष्येते
अकूर्दिष्येताम् अकूर्दिष्यन्त
गर्दन्ते
गुर्देयाताम् गुर्देरन्
गूर्दताम्
अगूर्देताम्
गर्दितारौ
गर्दिष्येते
जुदिरे
गोदिषीयास्ताम् गोदिषीरन्
गोदितारः
गोदिष्यन्ते
अगोदिष्येताम् अगोदिष्यन्त
गोदितारौ
गोदिष्येते
७३६. बुदि (सूद्) क्षरणे ।
क्षरणं निरसनम् ।
सूदेते सूदेयाताम्
सूदेताम्
असूदेताम्
सू
सूदेरन्
सूदन्ताम्
असूदन्त
अ० असूदिष्ट
प० सुषूदे
आ० सूदिषीष्ट
श्व० सूदिता
भ० सूदिष्यते
क्रि० असूदिष्यत
असूदिषाताम् असूदिषत सुषूदाते सुषूदिरे सूदिषीयास्ताम् सूदिषीरन् सूदितारौ सूदितार: सूदिष्येते सूदिष्यन्ते
असूदिष्येताम् असूदिष्यन्त
७३७. हादि (ह्राद्) शब्दे । अव्यक्ते शब्दे इत्यन्ये ।
अव्यक्तोऽपरिस्फुटवर्णः ।
व० ह्रादते
स० हादेत
प० हादताम्
ह्य० अह्रादत
अ० अह्नादिष्ट
प० जहादे
आ० ह्रादिषीष्ट
श्व० हादिता
भ० ह्रादिष्यते
क्रि० अह्नादिष्यत
व० ह्लादते
० हात
प० ह्लादताम्
ह्य० अह्लादत
अ० अह्नादिष्ट
प० जह्लादे
आ० ह्रादिषीष्ट
श्व० ह्रादिता
भ० ह्रादिष्यते
क्रि० अह्नादिष्यत
७३८. ह्लादैङ् (ह्राद्) सुखे च ।
चकाराच्छब्दे ।
दे
ह्लादेयाताम्
ह्लादताम् ह्लादन्ताम् अह्नादेताम् अह्लादन्त
अह्लादिषाताम् अह्लादिषत जा
जह्लादिरे ह्रादिषीयास्ताम् ह्रादिषीरन् ह्लादितारौ ह्लादितार:
ह्रादिष्येते
ह्रादिष्यन्ते
व० पर्दते
स० पर्देत
प० पर्दताम्
ह्रादन्ते
ह्रादेरन्
ह्रादेयाताम् ह्रादेताम् ह्रादन्ताम्
अहाताम् अह्रादन्त अह्रादिषाताम् अह्रादिषत
जहादाते जहादिरे
ह्रादिषीयास्ताम् ह्रादिषीरन् हादितारौ
हादितार:
हादि
हादिष्यन्ते
अह्रादिष्येताम् अह्रादिष्यन्त
अह्लादिष्येताम् अह्नादिष्यन्त ७३९. पर्दि (पर्द) कुत्सिते शब्दे ।
पायुध्वनौ वर्तते । अन्ये तु निःशब्दमधोवातं पर्दनं मन्वाना
अशब्दे इत्याहुः ।
पर्देते
पर्देयाताम्
पर्देताम्
ह्लादते
ह्लादेरन्
181
पर्दन्ते
पर्देरन्
पर्दन्ताम्
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
182
ह्य०
अपर्दत
अ० अपर्दिष्ट
अपर्देताम्
अपर्दन्त
अपर्दिषताम् अपर्दिषत
पपर्दाते
पपदिर
पर्दिषीयास्ताम् पर्दिषीरन्
पर्दितार:
पर्दिष्यन्ते
अपर्दिष्येताम् अपर्दिष्यन्त
७४०. स्कुदुङ् (स्कुन्द्) आप्रवणे ।
प०
पपर्दे
आ० पर्दिषीष्ट
श्व० पर्दिता
भ० पर्दिष्यते
क्रि० अपर्दिष्यत
व० स्कुन्दते
स० स्कुन्देत
प० स्कुन्दताम्
स०
आप्रवणमुत्प्लुत्य गमनमास्कन्दनं वा ।
स्कुन्दन्ते
स्कुन्देरन्
ह्य० अस्कुन्दत
अ० अस्कुन्दिष्ट
प० चुस्कुन्दे आ० स्कुन्दिषीष्ट
श्व० स्कुन्दिता
भ० स्कुन्दिष्यते क्रि० अस्कुन्दिष्यत
एधे
एधेथा:
प० एधताम्
एधस्व
एधै
ह्य० ऐधत
ऐधथा:
ऐधे
अ० ऐधिष्ट
ऐधिष्ठाः
, ऐधिषि
पर्दितारौ
पर्दिष्येते
कुन्दे
स्कुन्देयाताम्
स्कुन्देताम्
स्कुन्दन्ताम्
अस्कुन्देताम् अस्कुन्दन्त अस्कुन्दिषाताम् अस्कुन्दिषत चुकुन्दा चुस्कुन्दिरे स्कुन्दिषीयास्ताम् स्कुन्दिषीरन् स्कन्दितारौ कुन्दितार: स्कुन्दिष्येते कुन्दिष्यन्ते अस्कुन्दिष्येताम् अस्कुन्दिष्यन्त अथ धान्ताः सप्त सेट।
७४१. एधि (एघ्) वृद्धौ ।
एधन्ते
एधध्वे
एधामहे
धेर
एधावहे
एधेयाताम्
एधेयाथाम्
वह
म्
एधेथाम्
एधावहै
ऐधेताम्
ऐधेथाम्
ऐधावहि
ऐधिषाताम्
ऐधिषाथाम्
ऐधिष्वहि
एवम्
महि
एधन्ताम्
एधध्वम्
एधामहै
ऐधन्त
ऐधध्वम्
ऐधामहि
ऐधिषत
ऐधिड्डूवम् / ध्वम्
ऐधिष्
प० एधाञ्चक्रे
एधाञ्चकृषे
एधाञ्चक्रे
धाम्बभूव ।
आ० एधिषीष्ट
팡이
एधिषीष्ठाः
धिषीय
एधिता
एधितासे
एधिताहे
भ० एधिष्यते
एधिष्यसे
ि
क्रि० ऐधिष्यत
ऐधिष्यथाः
ऐधिष्ये
स्पर्द्धते
स्पर्द्धसे
स्पर्द्ध
स० स्पर्धेत
स्पर्द्धेथाः
स्पर्द्धेय
प० स्पर्द्धताम्
स्पर्द्धस्व
स्पर्द्ध
० अस्पर्द्धत
अस्पर्द्धथाः अस्पर्धे
अ० अस्पर्द्धिष्ट
अस्पर्द्धिष्ठाः
अस्पर्द्धिषि
प० पस्पर्द्ध
पस्पर्द्धिषे
एधाञ्चक्राते
एधाञ्चक्राथे
एधाञ्चकृवहे
७४२. स्पर्द्धि (स्पर्द्ध) सङ्घर्षे ।
संघर्षः पराभिभवेच्छा। कर्मणो धात्वर्थेनोपसङ्ग्रहादकर्मकः ।
व०
स्पर्द्ध
स्पर्द्धन्ते
स्पर्द्धथे
स्पर्द्धध्वे
स्पर्द्धामहे
स्पर्द्धरन्
स्पर्द्धेध्वम्
स्पर्द्धमहि
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
एधाञ्चक्रिरे
एधाञ्चकृदवे
एधाञ्चकृमहे
धामास ।
एधिषीयास्ताम् एधिषीरन्
एधिषीयास्थाम् एधिषीध्वम्
एधिषीवहि एधिषीमहि
एधितारौ
एधितार:
एधितासा एधिता
एधितास्वहे
एधिष्येते
एधिष्येथे
एधिष्यावहे
ऐधिष्येताम्
ऐधिष्येथाम्
एधितास्महे
एधिष्यन्ते
एधिष्यध्वे
एधिष्यामहे
ऐधिष्यन्त
ऐधिष्यध्वम्
ऐधिष्यावहि ऐधिष्यामहि
स्पर्द्धाव
स्पर्द्धेयाताम्
स्पर्द्धेयाथाम्
स्पर्द्धवहि
स्पर्धेताम्
स्पर्द्धन्ताम्
स्पर्द्धेथाम्
स्पर्द्धध्वम्
स्पर्द्धावहै
स्पर्द्धामहै
अस्पर्द्धेताम् अस्पर्द्धन्त
अस्पर्द्धथाम्
अस्पर्द्धध्वम्
अस्पर्द्धावहि अस्पर्द्धामहि अस्पर्द्धिषाताम् अस्पर्द्धिषत
अस्पर्द्धिषाथाम् अस्पर्द्धिडूवम्/ध्वम्
अस्पर्द्धिष्वहि अस्पर्द्धिष्महि
पस्पद्धति
पस्पर्द्धिर
पस्पर्द्धाथे
पस्पर्द्धिध्वे
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
पस्पर्द्ध
आ० स्पर्द्धिषीष्ट
स्पर्द्धिषीष्ठाः
स्पर्द्धिषीय
श्व० स्पर्द्धिता
भ० स्पर्द्धिष्यते
स्पर्द्धिष्यसे
स्पर्द्धये
स्पर्द्धितासे
स्पर्द्धितासाथे
स्पर्द्धा स्पर्द्धितास्व
स्पर्द्धिष्येते
स्पर्द्धिष्येथे
स्पर्द्धष्याव
क्रि० अस्पर्द्धिष्यत
अस्पर्द्धिष्येताम्
अस्पर्द्धिष्यथाः अस्पर्द्धिष्येथाम् अस्पर्द्धिष्ये अस्पर्द्धिष्यावहि
व० गाधते
स० गाधेत
प० गाधताम्
ह्य०
अगाधत
अ० अगाधिष्ट
पस्पर्द्धिमहे
प० बबाधे
पस्पर्द्धिवहे स्पर्द्धिषीयास्ताम् स्पर्द्धिषीरन् स्पर्द्धिषीयास्थाम् स्पर्द्धिषीध्वम् व० बाधिता
आ० बाधिषीष्ट
स्पर्द्धिषीमहि
भ० बाधिष्यते
स्पर्द्धितारः
क्रि० अबाधिष्यत
स्पर्द्धिताध्वे
प०
जगाधे
आ० गाधिषीष्ट
श्व० गाधिता
भ० गाधिष्यते
क्रि० अगाधिष्यत
स्पर्द्धिषीवहि
स्पर्द्धितारौ
७४३. गाधृङ् (गाघ्) प्रतिष्ठालिप्साग्रन्थेषु । प्रतिष्ठास्पदम् । लब्धुमिच्छा लिप्सा । ग्रन्यं ग्रन्थः । प्रतिष्ठायामकर्मकोऽयम् लिप्साग्रन्थयोः सकर्मकः ।
व० बाधते
स० बाधेत
प० बाधताम्
ह्य० अबाधत अ० अबाधिष्ट
गाधेते
गधेयाताम्
स्पर्द्धितास्महे
स्पर्द्धिष्यन्ते
स्पर्द्धिष्यध्वे
स्पर्द्धिष्यामहे
अस्पर्द्धिष्यन्त
अस्पर्द्धिष्यध्वम्
स्पर्द्धा
गाधन्ते
गाधेरन्
गाधन्ताम्
अगाधेताम् अगाधन्त
अगाधिषाताम् अगाधिषत
जगाधाते
जगाधिरे
७४४. बाधृङ् (बाघ्) रोटने ।
रोटनं प्रतिघातः ।
बाधेते
गाधिषीयास्ताम् गाधिषीरन्
गाधितारौ
गाधितार:
गाधिष्ये
गाधिष्यन्ते
अगाधिष्येताम् अगाधिष्यन्त
बाधेयाताम्
बाधेताम्
अबाधेताम्
बाधन्ते
बाधेन्
बाधन्ताम्
अबाधन्त
अबाधिषाताम् अबाधिषत
व० दधते
स० दधेत
प०
दधाम्
ह्य० अदधत
अ० अदधिष्ट
प०
धे
आ० दधिषीष्ट
श्व० दधिता
दधन्ते
दधेरन्
दधन्ताम्
अदधन्त
अदधिषत
धा देधिरे दधिषीयास्ताम् दधिषीरन् धिता दधितार:
दधिष्येते
दधिष्यन्ते
अदधिष्येताम् अदधिष्यन्त
७४६. बधि (बधू- बीभत्स ) बन्धने ।
तस्माद्वैरूप्ये।
बीभत्सेते
भ० दधिष्यते
क्रि० अदधिष्यत
व० बीभित्सते
स० बीभित्सेत
प०
बीभत्सताम्
ह्य० अबीभित्सत
७४५. दधि (द) धारणे ।
दाने इति कौशिकः ।
दधेते
व० बधते
स० बधेत
प० बधताम्
अबधत
ह्य०
बबाधाते
बबाधिरे
बाधिषीयास्ताम् बाधिषीरन्
बाधितारौ बाधितार:
बाधिष्येते बाधिष्यन्ते अबाधिष्येताम् अबाधिष्यन्त
अ० अबीभित्सिष्ट
प० बीभित्साञ्चक्रे
आ० बीभित्सिषीष्ट
श्व० बीभित्सिता
भ० बीभित्सिष्यते
क्रि० अबीभित्सिष्यत अबीभित्सिष्येताम् अबीभित्सिष्यन्त
दाम्
दाम्
अदधेताम् अदधिषाताम्
बीभत्सन्ते
बीभित्सेयाताम् बीभित्सेरन् बीभत्सेताम् बीभित्सन्ताम् अबीभत्सेताम् अबीभित्सन्त अबीभित्सिषाताम् अबीभित्सिषत बीभित्साञ्चक्राथे बीभित्साञ्चक्रिरे बीभत्सषीयास्ताम् बीभित्सिषीरन् बीभित्सितारौ बीभित्सितार: बीभित्सिष्येते बीभत्सष्यन्ते
७४६ - १. वैरूप्यादन्यत्र ।
बधे
बधन्ते म् धेरन्
बधेताम्
अबधेताम्
बधन्ताम्
अबधन्त
183
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
184
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अ० अबधिष्ट अबधिषाताम् अबधिषत प० बेधे
बेधाते बेधिरे आ० बधिषीष्ट बधिषीयास्ताम् बधिषीरन् श्व० बधिता बधितारौ बधितारः भ० बधिष्यते बधिष्येते बधिष्यन्ते क्रि० अबधिष्यत अबधिष्येताम् अबधिष्यन्त
७४७. नाधृङ् (नाध्) नाथूड्वत्। उपतापैश्वर्याशीर्याञ्चास्वर्थेषु नाथड्वदयं वर्तते। लाघवार्थमेवं
निर्देशः। वर्णक्रमानुसरणात्तु नैकत्राधीतौ। व० नाधते नाधेते नाधन्ते स० नाधेत नाधेयाताम् नाधेरन् प० नाधताम् नाधेताम् नाधन्ताम् ह्य० अनाधत अनाधेताम् अनाधन्त अ० अनाधिष्ट अनाधिषाताम् अनाधिषत प० ननाधे ननाधाते ननाधिरे आ० नाधिषीष्ट नाधिषीयास्ताम् नाधिषीरन् । श्व० नाधिता नाधितारौ नाधितार: भ० नाधिष्यते नाधिष्येते नाधिष्यन्ते क्रि० अनाधिष्यत अनाधिष्येताम् अनाधिष्यन्त
अथ नान्तौ द्वौ सेटौ च।
७४८. पनि (पन्-पनाय) स्तुतौ। व० पनायति पनायतः पनायन्ति स० पनायेत् पनायेताम् पनायेयुः प० पनायतु/पनायतात् पनायताम् पनायन्तु ह्य० अपनायत् अपनायताम् अपनायन् अ० अपनायीत् अपनायिष्टाम् अपनायिषुः
तथा अपनिष्ट अपनिषाताम् अपनिषत पनायाञ्चकार पनायाञ्चक्रतुः __ पनायाञ्चक्रुः
पनायाम्बभूव। पनायामास। प० पेने
पेनाते आ० पनाय्यात् पनाय्यास्ताम् पनाय्यासुः आ० पनिषीष्ट पनिषीयास्ताम् पनिषीरन् श्व० पनायिता पनायितारौ पनायितारः श्व० पनिता पनितारौ पनितार:
भ० पनायिष्यति पनायिष्यतः पनायिष्यन्ति भ० पनिष्यते पनिष्येते पनिष्यन्ते क्रि० अपनायिष्यत् अपनायिष्यताम् अपनायिष्यन क्रि० अपनिष्यत अपनिष्येताम् अपनिष्यन्त अत्रायान्तस्येडित्वाभावात् 'शेषात्परस्मै' इति परस्मैपदम्। ये तु स्वार्थिकप्रत्ययान्तस्य प्रकृतिवद्ग्रहणाद् यथायप्रत्ययान्तस्य प्रकृत्यर्थवाचित्वं तथेदित्त्वभपीति प्रतिपत्रास्तन्मते 'इडितः कर्तरि' इत्यात्मनेपदे ‘पनायते' इत्यादि। ए प्रणिधातावपि ज्ञेयम्। केवलं नकारस्थाने णकारो वाच्यः। तन्मते निम्नगतरूपाणिपनायते। पनायेत। पनायताम्। अपनायत। अपनायिष्ट/अपनिष्ट। पनायाञ्चक्रे/पनायाम्बभूव/ पनायामास। पनायिषीष्ट/पनिषीष्ट। पनायिता/पनिता। पनायिष्यते। पनिष्यते।। अपनायिष्यत अपनिष्यत।। इत्यादि।।
७४९. मानि (मान्-मीमांस्) विचारे। व० मीमांसते मीमांसेते मीमांसन्ते स० मीमांसेत मीमांसेयाताम् मीमांसेरन् प० मीमांसताम् मीमांसेताम् मीमांसन्ताम् ह्य० अमीमांसत अमीमांसेताम् अमीमांसन्त अ० अभीमांसिष्ट अमीमांसिषाताम् अमीमांसिषत ५० मीमांसाञ्चक्रे मीमांसाञ्चक्राते मीमांसाञ्चक्रिरे
मीमांसाम्बभूव। मीमांसामास। आ० मीमांसिषीष्ट मीमांसिषीयास्ताम् मीमांसिषीरन् श्व० मीमांसिता मीमांसितारौ मीमांसितार: भ० मीमांसिष्यते मीमांसिष्येते मीमांसिष्यन्ते क्रि० अमीमांसिष्यत अमीमांसिष्येताम् अमीमांसिष्यन्त
अथ पान्ताश्चतुर्दश सेटश्च। .
७५०. तिपृङ (तिप्) क्षरणे। व० तेपते तेपेते तेपन्ते स० तेपेत तेपेयाताम् प० तेपताम् तेपेताम् तेपन्ताम् ह्य० अतेपत अतेपेताम् अतेपन्त
प०
पेनिरे
तेपेरन्
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
185
वेपन्ते
वेपेरन्
अ० अतेपिष्ट अतेपिषाताम् अतेपिषत प० तितिपे तितिपाते तितिपिरे आ० तेपिषीष्ट तेपिषीयास्ताम् तेपिषीरन् श्व० तेपिता तेपितारौ तेपितार: भ० तेपिष्यते तेपिष्येते तेपिष्यन्ते क्रि० अतेपिष्यत अतेपिष्येताम अतेपिष्यन्त
७५१. ष्टिपृङ् (स्तिए) क्षरणे। व० स्तेपते स्तेपेते
स्तेपन्ते स० स्तेपेत स्तेपेयाताम् स्तेपेरन् प० स्तेपताम् स्तेपेताम् स्तेपन्ताम् ह्य० अस्तेपत
अस्तेपेताम्
अस्तेपन्त अ० अस्तेपिष्ट अस्तेपिषाताम् अस्तेपिषत प० तिष्टिपे तिष्टिपाते तिष्टिपिरे आ० स्तेपिषीष्ट स्तेपिषीयास्ताम् स्तेपिषीरन् श्व० स्तेपिता स्तेपितारौ स्तेपितार: भ० स्तेपिष्यते स्तेपिष्येते स्तेपिष्यन्ते क्रि० अस्तेपिष्यत अस्तेपिष्येताम् अस्तेपिष्यन्त
७५२. ष्टेपृङ् (स्तेप) क्षरणे। व० स्तेपते स्तेपेते
स्तेपन्ते स० स्तेपेत
स्तेपेयाताम् स्तेपेरन्
स्तेपेताम् स्तेपन्ताम् ह्य० अस्तेपत अस्तेपेताम् अस्तपन्त अ० अस्तेपिष्ट अस्तेपिषाताम् अस्तेपिषत प० तिष्टेपे तिष्टेपाते तिष्टेपिरे आ० स्तेपिषीष्ट स्तेपिषीयास्ताम् स्तेपिषीरन् श्व० स्तेपिता स्तेपितारौ स्तेपितारः भ० स्तेपिष्यते स्तेपिष्येते स्तेपिष्यन्ते क्रि० अस्तेपिष्यत अस्तेपिष्येताम् अस्तेपिष्यन्त
७५३. तेपृङ (तेप) कम्पने च।
चकारात्क्षरणे। व० तेपते तेपेते
तेपन्ते स० तेपेत तेपेयाताम् तेपेरन् प० तेपताम्
तेपन्ताम् ह्य० अतेपत अतेपेताम् अतेपन्त
अ० अतेपिष्ट अतेपिषाताम् अतेपिषत प० तितेपे तितेपाते तितेपिरे आ० तेपिषीष्ट तेपिषीयास्ताम्
तेपिषीरन् श्व० तेपिता तेपितारौ तेपितार: भ० तेपिष्यते तेपिष्येते तेपिष्यन्ते क्रि० अतेपिष्यत अतेपिष्येताम् अतेपिष्यन्त
७५४. टुवेपृङ् (वेप्) चलने। व० वेपते वेपेते स० वेपेत वेपेयाताम् प० वेपताम्
वेपेताम्
वेपन्ताम् ह्य० अवेपत अवेपेताम् अवेपन्त अ० अवेपिष्ट अवेपिषाताम् अवेपिषत प० विवेपे विवेपाते विवेपिरे आ० वेपिषीष्ट वेपिषीयावाम् वेपिषीरन् श्व० वेपिता वेपितारौ वेपितार: भ० वेपिष्यते वेपिष्येते वेपिष्यन्ते क्रि० अवेपिष्यत अवेपिष्येताम अवेपिष्यन्त
७५५. केपृङ् (केप्) चलने। व० केपते केपेते
केपन्ते स० केपेत केपेयाताम् केपेरन् प० केपताम् केपेताम्
केपन्ताम् ह्य० अकेपत अकेपेताम् अकेपन्त अ० अकेपिष्ट अकेपिषाताम् अकेपिषत प० चिकेपे चिकेपाते चिकेपिरे आ० केपिषीष्ट केपिषीयास्ताम् केपिषीरन् । श्व० केपिता केपितारौ केपितारः भ० केपिष्यते केपिष्येते केपिष्यन्ते क्रि० अकेपिष्यत अकेपिष्येताम् अकेपिष्यन्त
७५६. गेपृङ् (गेप) चलने। व० गेपते
गेपेते
गेपन्ते स० गेपेत
गेपेयाताम् प० गेपताम्
गेपेताम्
गेपन्ताम् ह्य० अगेपत अगेपेताम्
अगेपन्त अ० अगेपिष्ट अगेपिषाताम् अगेपिषत प० जिगेपे जिगेपाते जिगेपिरे
प० स्तेपताम्
गेपेरन्
तेपेताम्
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
186
रेपेते
रेपेरन्
रेपन्ताम्
भ० रेपिष्यते
आ० गेपिषीष्ट गेपिषीयास्ताम्
गेपिषीरन् श्व० गेपिता गेपितारौ
गेपितार: भ० गेपिष्यते गेपिष्येते गेपिष्यन्ते क्रि० अगेपिष्यत अगेपिष्येताम् अगेपिष्यन्त
७५७. कपृङ् (कम्प) चलने। व० कम्पते
कम्पेते
कम्पन्ते स० कम्पेत
कम्पेयाताम्
कम्पेरन् प० कम्पताम् कम्पेताम् कम्पन्ताम् ह्य० अकम्पत अकम्पेताम् अकम्पन्त अ० अकम्पिष्ट अकम्पिषाताम् अकम्पिषत प० चकम्मे चकम्पाते चकम्पिरे आ० कम्पिषीष्ट कम्पिषीयास्ताम् कम्पिषीरन् श्व० कम्पिता कम्पितारौ कम्पितार: भ० कम्पिष्यते कम्पियेते कम्पिष्यन्ते क्रि० अकम्पिष्यत अकम्पिष्येताम् अकम्पिष्यन्त.
७५८. ग्लेपृङ् (ग्लेप्) दैन्येच।
चकाराच्चलने। व० ग्लेपते ग्लेपेते
ग्लेपन्ते स० ग्लेपेत ग्लेपेयाताम् प० ग्लेपताम् ग्लेपेताम्
ग्लेपन्ताम् ह्य० अग्लेपत अग्लेपेताम् अग्लेपन्त अ० अग्लेपिष्ट अग्लेपिषाताम् अग्लेपिषत प० जिग्लेपे जिग्लेपाते जिग्लेपिरे आ० ग्लेपिषीष्ट ग्लेपिषीयास्ताम्
ग्लेपिषीरन् व०. ग्लेपिता ग्लेपितारौ
ग्लेपितारः भ० ग्लेपिष्यते ग्लेपिष्येते ग्लेपिष्यन्ते क्रि० अग्लेपिष्यत अग्लेपिष्येताम् आलेपिष्यन्त
७५९. मेपृङ् (मे) गतौ। व० मेपते
मेपन्ते स० मेपेत मेपेयाताम्
मेपेरन् प० मेपताम्
मेपन्ताम् ह्य० अमेपत अमेपेताम् अमेपन्त अ० अमेपिष्ट अमेपिषाताम् अमेपिषत प० मिमेपे मिमेपाते मिमेपिरे आ० मेपिषीष्ट मेपिषीयास्ताम् मेपिषीरन्
as # # # # # # # # # # * * * * * * *
धातुरत्नाकर प्रथम भाग श्व० मेपिता मेपितारौ मेपितार: भ० मेपिष्यते मेपिष्येते मेपिष्यन्ते क्रि० अमेपिष्यत अमेपिष्येताम् अमेपिष्यन्त
७६०. रेपृङ् (रेप्) गतौ। व० रेपते
रेपन्ते स० रेपेत रेपेयाताम प० रेपताम् रेपेताम् ह्य० अरेपत अरेपेताम् अरेपन्त अ० अरेपिष्ट अरेपिषाताम् अरेपिषत प० रिरेपे रिरेपाते रिरेपिरे आ० रेपिषीष्ट रेपिषीयास्ताम् रेपिषीरन् श्व० रेपिता रेपितारौ रेपितार:
रेपिष्येते रेपिष्यन्ते क्रि० अरेपिष्यत अरेपिष्येताम् अरेपिष्यन्त
७६१. लेपृङ् (लेए) गतौ। व० लेपते
लेपेते स० लेपेत
लेपेयाताम् प० लेपताम् लेपेताम् ह्य० अलेपत अलेपेताम् अलेपन्त अ० अलेपिष्ट अलेपिषाताम् अलेपिषत प० लिलेपे लिलेपाते लिलेपिरे आ० लेपिषीष्ट लेपिषीयास्ताम् लेपिषीरन् श्व० लेपिता लेपितारौ लेपितारः भ० लेपिष्यते लेपिष्येते लेपिष्यन्ते क्रि० अलेपिष्यत अलेपिष्येताम् अलेपिष्यन्त
७६२. पौषि (त्रप्) लज्जायाम्। व० त्रपते त्रपेते
त्रपन्ते स० पेत त्रपेयाताम् प० त्रपताम् त्रपेताम् त्रपन्ताम् ह्य० अत्रपत
अत्रपन्त अ० अत्रपिष्ट अत्रपिषाताम् अत्रपिषत
तथा
लेपन्ते
ग्लेपेरन्
लेपेरन् लेपन्ताम्
मेपेते
पेरन्
मेपेताम्
अनपेताम्
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
187
अत्रप्त प० पे आ० त्रपिषीष्ट
त्रप्सीष्ट श्व० त्रपिता
अत्रप्साताम् अत्रप्सत पाते त्रेपिरे त्रपिषीयास्ताम् त्रपिषीरन्
तथा त्रप्सीयास्ताम् त्रप्सीरन् इत्यादि। त्रपितारौ त्रपितार:
तथा त्रप्तारौ त्रप्तारः इत्यादि। त्रपिष्येते त्रपिष्यन्ते
त्रप्ता भ० त्रपिष्यते
तथा
त्रप्स्यते त्रप्स्येते त्रप्स्यन्ते इत्यादि। क्रि० अत्रपिष्यत अत्रपिष्येताम् अत्रपिष्यन्त
तथा अत्रप्स्यत अत्रप्स्येताम् अत्रप्स्यन्त इत्यादि। ७६३. गुपि (गुप् जुगुप्स) गोपन कुत्सनयोः। अवयवे कृतं लिङ्ग समुदायस्य विशेषकं भवति यं समुदाय सोऽवयवो न व्यभिचरति। न व्यभिचरति च गुपिर्गर्हायां सनन्तसमुदायमिति "इड्ति-'' इति आत्मनेपदम्। गर्हायां
॥अथ बान्ताः षट् सेटश्च।।
७६४ अबुङ् (अम्बू) शब्दे॥ व० अम्बते अम्बेते अम्बन्ते स० अम्बेत अम्बेयाताम् अम्बेरन् प० अम्बताम् अम्बेताम्
अम्बन्ताम् ह्य० आम्बत
आम्बेताम् आम्बन्त अ० आम्बिष्ट आम्बिषाताम् आम्बिषत प० आनम्बे आनम्बाते आनम्बिरे आ० अम्बिषीष्ट अम्बिषीयास्ताम् अम्बिषीरन् ० अम्बिता अम्बितारौ अम्बितारः भ० अम्बिष्यते अम्बिष्येते अम्बिष्यन्ते क्रि० आम्बिष्यत आम्बिष्येताम् आम्बिष्यन्त
७६५. रम्बु (रम्ब) शब्दे। व० रम्बते रम्बेते रम्बन्ते स० रम्बेत रम्बेयाताम् रम्बेरन् प० रम्बताम् रम्बेताम् रम्बन्ताम् ह्य० अरम्बत अरम्बेताम् अरम्बन्त अ० अरम्बिष्ट अरम्बिषाताम् अरम्बिषत प० ररम्बे ररम्बाते ररम्बिरे आ० रम्बिषीष्ट रम्बिषीयास्ताम् रम्बिषीरन् श्व० रम्बिता
रम्बितारौ
रम्बितारः भ० रम्बिष्यते रम्बिष्येते रम्बिष्यन्ते क्रि० अरम्बिष्यत अरम्बिष्येताम् अरम्बिष्यन्त
७६६. लबुङ् (लम्ब्) अवलंसने च। चकाराच्छब्द। व० लम्बते
लम्बेते
लम्बन्ते स० लम्बेत लम्बेयाताम् लम्बेरन्
लम्बताम् लम्बेताम् लम्बन्ताम् ह्य० अलम्बत अलम्बेताम् अलम्बन्त अ० अलम्बिष्ट अलम्बिषाताम् अलम्बिषत प० ललम्बे ललम्बाते ललम्बिरे आ० लम्बिषीष्ट
लम्बिषीयास्ताम् लम्बिषीरन् श्व० लम्बिता लम्बितारौ लम्बितारः भ० लम्बिष्यते लम्बिष्येते लम्बिष्यन्ते क्रि० अलम्बिष्यत अलम्बिष्येताम अलम्बिष्यन्त
सनि। जुगुप्सेते
जुगुप्सन्ते
व० जुगुप्सते स० जुगुप्सेत जुगुप्सेयाताम् जुगुप्सेरन् प० जुगुप्सताम् जुगुप्सेताम् जुगुप्सन्ताम् ह्य० अजुगुप्सत अजुगुप्सेताम् अजुगुप्सन्त अ० अजुगुप्सिष्ट अजुगुप्सिषाताम् अजुगुप्सिषत प० जुगुप्साञ्चक्रे जुगुप्साञ्चक्राते जुगुप्साञ्चक्रिरे
जुगुप्साम्बभूव। जुगुप्सामास। आ० जुगुप्सिषीष्ट जुगुप्सिषीयास्ताम् जुगुप्सिषीरन् श्व० जुगुप्सिता जुगुप्सितारौ जुगुप्सितारः भ० जुगुप्सिष्यते जुगुप्सिष्येते जुगुप्सिष्यन्ते क्रि० अजुगुप्सिष्यत अजुगुप्सिष्येताम् अजुगुप्सिष्यन्त
गर्हाया अन्यत्र सनोऽभावे अर्थान्तरेऽपि प्रायेण त्यादयोनाभिधीयन्ते इत्यत्र प्रायोग्रहणात् गोपते।
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
188
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
७६७. कबृङ् (कब्) वर्णे।
वर्णो वर्णनं शुक्कादिश्च। व० कबते कबेते
कबन्ते स० कबेत कबेयाताम् कबेरन प० कबताम् कबेताम् कबन्ताम् ह्य० अकबत अकबेताम् अकबन्त अ० अकबिष्ट अकबिषाताम्
अकबिषत प० चकबे चकबाते
चकबिरे आ० कबिषीष्ट कबिषीयास्ताम् कबिषीरन् श्व० कबिता कबितारौ कबितारः भ० कबिष्यते कबिष्येते कबिष्यन्ते क्रि० अकबिष्यत अकबिष्येताम् अकबिष्यन्त
७६८. क्लीबृङ् (क्लीब्) अधाष्टयें। व० क्लीबते क्लीबेते क्लीबन्ते स० क्लीबेत क्लीबेयाताम् क्लीबेरन् प० क्लीबताम् क्लीबेताम् क्लीबन्ताम् ह्य० अक्लीबत अक्लीबेताम् अक्लीबन्त अ० अक्लीबिष्ट अक्लीबिषाताम् अक्लीबिषत प० चिक्लीबे चिक्लीबाते चिक्लीबिरे आ० क्लीबिषीष्ट क्लीबिषीयास्ताम् क्लीबिषीरन् श्र० क्लीबिता क्लीबितारौ क्लीबितारः भ० क्लीबिष्यते क्लीबिष्येते क्लीबिष्यन्ते क्रि० अक्लीबिष्यत अक्लीबिष्येताम अक्लीबिष्यन्त
७६९. क्षीबृङ् (क्षीब्) मदे। व क्षीबते
क्षीबन्ते स० क्षीबेत क्षीबेयाताम् क्षीबेरन् प० क्षीबताम् क्षीबेताम्
क्षीबन्ताम् ह्य० अक्षीबत अक्षीबेताम् अक्षीबन्त अ० अक्षीबिष्ट अक्षीबिषाताम् अक्षीबिषत प० चिक्षीबे चिक्षीबाते चिक्षीबिरे आ० क्षीबिषीष्ट क्षीबिषीयास्ताम् क्षीबिषीरन् श्व० क्षीबिता क्षीबितारौ क्षीबितारः भ० क्षीबिष्यते क्षीबिष्येते क्षीबिष्यन्ते क्रि० अक्षीबिष्यत अक्षीबिष्येताम् अक्षीबिष्यन्त
वीभेयाताम्
वीभेरन्
एते च कबृडादयो यद्यपि दन्त्यौष्ठ्यान्ता अपि काव्यादिशब्देषु श्रूयन्ते तथापि वृद्धरोष्ठ्यान्त्यमध्ये पठितत्वादस्माभिस्तथैव पठिताः॥ अथ भान्ताः सप्तदश रभिंलभिवर्जा: सेटश्च।
७७०. शीभृङ् (शीभ) कत्थने। व० शीभते शीभेते शीभन्ते स० शीभेत शीभेयाताम् शीभेरन् प० शीभताम् शीभेताम् शीभन्ताम् ह्य० अशीभत अशीभेताम् अशीभन्त अ० अशीभिष्ट अशीभिषाताम् अशीभिषत प० शिशीभे
शिशीभाते शिशीभिरे आ० शीभिषीष्ट शीभिषीयास्ताम् शीभिषीरन् श्व० शीभिता शीभितारौ शीभितारः भ० शीभिष्यते शीभिष्येते शीभिष्यन्ते क्रि० अशीभिष्यत अशीभिष्येताम् अशीभिष्यन्त
७७१. वीभृङ् (वीभ) कत्यने। व० वीभते वीभेते वीभन्ते स० वीभेत प० वीभताम्
वीभेताम् वीभन्ताम् ह्य० अवीभत अवीभेताम् अवीभन्त अ० अवीभिष्ट अवीभिषाताम् अवीभिषत प० विवीभे विवीभाते विवीभिरे आ० वीभिषीष्ट वीभिषीयास्ताम् वीभिषीरन् श्व० वीभिता वीभितारौ वीभितार: भ० वीभिष्यते वीभिष्येते वीभिष्यन्ते क्रि० अवीभिष्यत अवीभिष्येताम् अवीभिष्यन्त
७७२. शल्भि (शल्म) कत्यने। व० शल्भते शल्भेते शल्भन्ते स० शल्भेत शल्भेयाताम् शल्भेरन् प० शल्भताम् शल्भेताम् शल्भन्ताम् ह्य० अशल्भत अशल्भेताम् अशल्भन्त अ० अशल्भिष्ट अशल्भिषाताम् अशल्भिषत प० शशल्भे
शशल्भिरे आ० शल्भिषीष्ट शल्भिषीयास्ताम् शल्भिषीरन् श्व० शल्भिता शल्भितारौ शल्भितार: भ० शल्भिष्यते शल्भिष्येते शल्भिष्यन्ते
क्षीबेते
शशल्भाते
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
189
क्रि० अशल्भिष्यत अशल्भिष्येताम् अशल्भिष्यन्त
७७३. वल्भि (वल्म्) भोजने। व० वल्भते वल्भेते
वल्भन्ते स० वल्भेत वल्भेयाताम् वल्भेरन् प० वल्भताम् वल्भेताम् वल्भन्ताम् ह्य० अवल्भत अवल्भेताम् अवल्भन्त अ० अवल्भिष्ट अवल्भिषाताम् अवल्भिषत प० ववल्भे ववल्भाते ववल्भिरे आ० वल्भिषीष्ट वल्भिषीयास्ताम् वल्भिषीरन् श्व० वल्भिता वल्भितारौ वल्भितारः भ० वल्भिष्यते वल्भिष्येते वल्भिष्यन्ते क्रि० अवल्भिष्यत अवल्भिष्येताम् अवल्भिष्यन्त
७७४. गल्भि (गल्भ्) धाष्टयें। व० गल्भते गल्भेते गल्भन्ते स० गल्भेत गल्भेयाताम् गल्भेरन् प० गल्भताम् गल्भेताम् गल्भन्ताम् ह्य० अगल्भत अगल्भेताम् अगल्भन्त अ० अगल्भिष्ट अगल्भिषाताम् अगल्भिषत प० जगल्भे जगल्भाते जगल्भिरे आ० गल्भिषीष्ट गल्भिषीयास्ताम् गल्भिषीरन् श्व० गल्भिता गल्भितारौ गल्भितारः भ० गल्भिष्यते गल्भिष्येते गल्भिष्यन्ते क्रि० अगल्भिष्यत अगल्भिष्येताम् अगल्भिष्यन्त
७७५. रेभृङ् (रेभ्) शब्दे। व० रेभते
रेभन्ते स० रेभेत
रेभेयाताम् प० रेभताम् ह्य० अरेभत
अरेभन्त अ० अरेभिष्ट अरेभिषाताम् अरेभिषत प० रिभे रिरेभाते
रिरेभिरे आ० रेभिषीष्ट रेभिषीयास्ताम्
रेभिषीरन् २० रेभिता रेभितारौ भ० रेभिष्यते रेभिष्येते
रेभिष्यन्ते क्रि० अरेभिष्यत
अरेभिष्यन्त ७७६. अभुङ् (अम्भ) शब्दे। व० अम्भते अम्भेते
अम्भन्ते
स० अम्भेत अम्भेयाताम् अम्भेरन् प० अम्भताम् अम्भेताम्
अम्भन्ताम् ह्य० आम्भत आम्भेताम् आम्भन्त अ० आम्भिष्ट आम्भिषाताम् आम्भिषत प० आनम्भे आनम्भाते आनम्भिरे आ० अम्भिषीष्ट अम्भिषीयास्ताम् अम्भिषीरन् श्व० अम्भिता अम्भितारौ अम्भितार: भ० अम्भिष्यते अम्भिष्येते अम्भिष्यन्ते क्रि० आम्भिष्यत आम्भिष्येताम् आम्भिष्यन्त
७७७. रभुङ् (रम्भ) शब्दे। व० रम्भते रम्भेते
रम्भन्ते | स० रम्भेत
रम्भेयाताम् रम्भेरन् प० रम्भताम् रम्भेताम् रम्भन्ताम् ह्य० अरम्भत अरम्भेताम् अरम्भन्त अ० अरम्भिष्ट अरम्भिषाताम् अरम्भिषत प० ररम्भे ररम्भाते
ररम्भिरे आ० रम्भिषीष्ट रम्भिषीयास्ताम् रम्भिषीरन् श्व० रम्भिता रम्भितारौ रम्भितारः भ० रम्भिष्यते रम्भिष्येते रम्भिष्यन्ते क्रि० अरम्भिष्यत अरम्भिष्येताम् अरम्भिष्यन्त
७७८. लभुङ् (लम्भ) शब्दे। व० लम्भते लम्भेते. लम्भन्ते स० लम्भेत लम्भेयाताम् लम्भेरन् प० लम्भताम् लम्भेताम् लम्भन्ताम् ह्य० अलम्भत अलम्भेताम् अलम्भन्त अ० अलम्भिष्ट अलम्भिषाताम् अलम्भिषत प० ललम्भे ललम्भाते ललम्भिरे ला० लम्भिषीष्ट लम्भिषीयास्ताम् लम्भिषीरन् श्व० लम्भिता लम्भितारौ लम्भितार: भ० लम्भिष्यते लम्भिष्येते लम्भिष्यन्ते क्रि० अलम्भिष्यत अलम्भिष्येताम् अलम्भिष्यन्त
७७९. ष्टभुङ् (स्तम्भ) स्तम्भे।
स्तम्भः क्रियानिरोधः। व० स्तम्भते स्तम्भेते
स्तम्भन्ते स० स्तम्भेत स्तम्भेयाताम् स्तम्भेरन् प० स्तम्भताम् स्तम्भेताम् स्तम्भन्ताम्
स
रेभेते
रेभेरन् रेभन्ताम्
रेभेताम् अरेभेताम्
रेभितारः
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
190
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
जम्भन्ताम्
ह्य० अस्तम्भत अस्तम्भेताम् अस्तम्भन्त अ० अस्तम्भिष्ट अस्तम्भिषाताम् अस्तम्भिषत प० तस्तम्भे तस्तम्भाते तस्तम्भिरे आ० स्तम्भिषीष्ट स्तम्भिषीयास्ताम् स्तम्भिषीरन् श्व० स्तम्भिता स्तम्भितारौ स्तम्भितार: भ० स्तम्भिष्यते स्तम्भिष्येते स्तम्भिष्यन्ते क्रि० अस्तम्भिष्यत अस्तम्भिष्येताम् अस्तम्भिष्यन्त
७८०. स्कभुङ् (स्कम्भ) स्तम्भे।
स्तम्भः क्रियानिरोधः। व० स्कम्भते स्कम्भेते स्कम्भन्ते स० स्कम्भेत स्कम्भेयाताम् स्कम्भेरन प० स्कम्भताम् स्कम्भेताम् स्कम्भन्ताम् ह्य० अस्कम्भत अस्कम्भेताम् अस्कम्भन्त अ० अस्कम्भिष्ट अस्कम्भिषाताम् अस्कम्भिषत प० चस्कम्भे चस्कम्भाते चस्कम्भिरे आ० स्कम्भिषीष्ट स्कम्भिषीयास्काम् स्कम्भिषीरन् श्व० स्कम्भिता स्कम्भितारौ
स्कम्भितारः भ० स्कम्भिष्यते स्कम्भिष्येते स्कम्भिष्यन्ते क्रि० अस्कम्भिष्यत अस्कम्भिष्येताम अस्कम्भिष्यन्त
७८१. ष्टुभुङ् (स्तुभ्) स्तभे।
स्तम्भः क्रियानिरोधः। व० स्तोभते स्तोभेते स्तोभन्ते स० स्तोभेत स्तोभेयाताम् स्तोभेरन् प० स्तोभताम् स्तोभेताम् स्तोभन्ताम् ह्य० अस्तोभत अस्तोभेताम् अस्तोभन्त अ० अस्तोभिष्ट अस्तोभिषाताम् अस्तोभिषत प० तुष्टुभे तुष्टुभाते तुष्टुभिरे आ० स्तोभिषीष्ट स्तोभिषीयास्तोम् स्तोभिषीरन् श्व० स्तोभिता स्तोभितारौ स्तोभितारः भ० स्तोभिष्यते स्तोभिष्यते स्तोभिष्यन्ते क्रि० अस्तोभिष्यत अस्तोभिष्येताम अस्तोभिष्यन्त
७८२. जभुङ् (जम्म) गात्रविनामे। व० जम्भते जम्भेते
जम्भन्ते स० जम्भेत जम्भेयाताम्
जम्भेरन् प० जम्भताम् जम्भेताम् जम्भन्ताम् ह्य० अजम्भत अजम्भेताम् अजम्भन्त
अ० अजम्भिष्ट अजम्भिषाताम् अजम्भिषत प० जजम्भे जजम्भाते जजम्भिरे आ० जम्भिषीष्ट जम्भिषीयाजाम् जम्भिषीरन् श्व० जम्भिता जम्भितारौ जम्भितारः भ० जम्भिष्यते जम्भिष्येते जम्भिष्यन्ते क्रि० अजम्भिष्यत अजम्भिष्येताम् अजम्भिष्यन्त
७८३. जभैङ् (जम्भू) गात्रविनामे। व० जम्भते जम्भेते
जम्भन्ते स० जम्भेत जम्भेयाताम् जम्भेरन् प० जम्भताम् जम्भेताम् ह्य० अजम्भत अजम्भेताम् अजम्भन्त अ० अजम्भिष्ट अजम्भिषाताम् अजम्भिषत प० जजम्भे जजम्भाते जजम्भिरे आ० जम्भिषीष्ट जम्भिषीयाजाम् जम्भिषीरन श्व० जम्भिता जम्भितारौ जम्भितारः भ० जम्भिष्यते जम्भिष्येते जम्भिष्यन्ते क्रि० अजम्भिष्यत अजम्भिष्येताम अजम्भिष्यन्त
७८४. जुभुङ् (जृम्भ) गात्रविनामे। व० जृम्भते जृम्भेते स० जृम्भेत जम्भेयाताम् जृम्भेरन् प० जृम्भताम् जृम्भेताम् जृम्भन्ताम् ह्य० अजृम्भत अजृम्भेताम् अजृम्भन्त अ० अजृम्भिष्ट अजृम्भिषाताम् अजृम्भिषत प० जजृम्भे जजृम्भाते जजृम्भिरे आ० जृम्भिषीष्ट जृम्भिषीयाताम् जृम्भिषीरन् श्व० जृम्भिता जृम्भितारौ जृम्भितारः भ० जृम्भिष्यते जृम्भिष्येते जृम्भिष्यन्ते क्रि० अजृम्भिष्यत अजृम्भिष्येताम् अजृम्भिष्यन्त
७८५. रभिं (रभ) राभस्ये।
कार्योद्यम इत्यर्थः। प्रायेणाड्यूर्वः॥ व० आरभते आरभेते
आरभन्ते स० आरभेत आरभेयाताम् आरभेरन् प० आरभताम् आरभेताम् आरभन्ताम् ह्य० आरभत आरभेताम् आरभन्त अ० आरब्ध आरप्साताम् आरप्सत प० आरेभे आरेभाते
आरेभिरे
जुम्भन्ते
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
191
आ० क्षमिषीष्ट
क्षमिषीरन्
क्षसीष्ट श्व० क्षमिता
क्षसीरन् क्षमितारः
क्षमिषीयास्ताम्
तथा क्षसीयास्ताम् क्षमितारौ
तथा क्षन्तारौ क्षमिष्येते
तथा क्षस्येते अक्षमिष्येताम्
क्षन्ता भ० क्षमिष्यते
क्षन्तारः क्षमिष्यन्ते
क्षस्यत क्रि० अक्षमिष्यत
क्षस्यन्ते अक्षमिष्यन्त
तथा
लप्स्येते
आ० आरप्सीष्ट आरप्सीयास्ताम् आरप्सीरन् श्व० आरब्धा आरब्धारौ आरब्धारः भ० आरप्स्यते आरप्स्येते आरप्स्यन्ते क्रि० आरप्स्यत आरप्स्येताम् आरप्स्यन्त
७८६. डुलभिंष् (लभ) प्राप्तौ। व० लभते लभेते
लभन्ते स० लभेत लभेयाताम् लभेरन् प० लभताम् लभेताम् लभन्ताम्
अलभत अलभेताम् अलभन्त अ० अलब्ध अलप्साताम् अलप्सत प० लेभे लेभाते
लेभिरे आ० लप्सीष्ट लप्सीयास्ताम् लप्सीरन् श्व० लब्धा लब्धारौ लब्धारः भ० लप्स्यते
लप्स्यन्ते क्रि० अलप्स्यत अलप्स्येताम् अलप्स्यन्त
॥अथ मान्तास्त्रयः सेटश्च।।
७८७. भामि (भाम्) क्रोधे। व० भामते भामेते स० भामेत भामेयाताम् भामेरन् प० भामताम्
भामन्ताम् ह्य० अभामत अभामेताम् अभामन्त अ० अभामिष्ट अभामिषाताम् अभामिषत प० बभामे बभामाते बभामिरे आ० भामिषीष्ट भामिषीयास्ताम् भामिषीरन् श्व० भामिता भामितारौ भामितारः भ० भामिष्यते भामिष्येते भामिष्यन्ते क्रि० अभामिष्यत अभामिष्येताम् अभामिष्यन्त
७८८. क्षमौषि (क्षम्) सहने। व० क्षमते क्षमेते
क्षमन्ते स० क्षमेत क्षमेयाताम् क्षमेरन् प० क्षमताम् क्षमेताम्
क्षमन्ताम् ह्य० अक्षमत अक्षमेताम् अक्षमन्त अ० अक्षमिष्ट अक्षमिषाताम् अक्षमिषत
तथा अक्षस्त
अक्षांसाताम् अक्षंसत प०. चक्षमे चक्षमाते
चक्षमिरे
भामन्ते
भामेताम्
अक्षस्यत अक्षस्येताम् अक्षस्यन्त ७८९. कमूङ् (कम् कामय्) कान्तौ।
कान्तिरभिलाषः। व० कामयते कामयेते
कामयन्ते कामयसे कामयेथे
कामयध्वे कामये
कामयावहे कामयामहे स० कामयेत कामयेयाताम्
कामयेरन् कामयेथाः कामयेयाथाम् कामयेध्वम् कामयेय कामयेवहि कामयेमहि कामयताम् कामयेताम् कामयन्ताम् कामयस्व कामयेथाम् कामयध्वम् कामयै कामयावहै कामयामहै अकामयत अकामयेताम् अकामयन्त अकामयथाः अकामयेथाम् अकामयध्वम्
अकामये अकामयावहि अकामयामहि अ० अचीकमत अचीकमेताम् अचीकमन्त
अचीकमथाः अचीकमेथाम् अचीकमयध्वम् अचीकमे अचीकमयावहि अचीकमयामहि
तथा अचकमत अचकमेताम् अचकमन्त अचकमथा: अचकमेथाम् अचकमयध्वम्
अचकमे अचकमयावहि अचकमयामहि प० कामायाश्चक्रे कामायाञ्चक्राते कामायाञ्चक्रिरे
कामायाञ्चकृषे कामायाञ्चक्राथे कामायाञ्चकृढ्वे कामायाञ्चक्रे कामायाञ्चकृवहे कामायाञ्चकृमहे
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
192
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अयेते
अयसे
अये
आये
तथा
कामायाम्बभूव। कामयामास।
व० अयते
अयन्ते तथा
अयेथे
अयध्वे चकमे चकमाते चकमिरे
अयावहे अयामहे चकमिषे चकमाथे चकमिध्वे | स० अयेत
अयेयाताम्
अयेरन् चकमे चकमिवहे चकमिमहे
अयेथाः अयेयाथाम् अयेध्वम् आ० कमिषीष्ट कमिषीयास्ताम् कमिषीरन्
अयेय अयेवहि अयेमहि कमिषीष्ठाः कमिषीयास्थाम् कमिषीध्वम् प० अयताम्
अयेताम्
अयन्ताम्
अयस्व अयेथाम् अयध्वम् कमिषीय कमिषीवहि कमिषीमहि
अयै
अयावहै अयामहै तथा
ह्य० आयत आयेताम्
आयन्त कामयिषीष्ट कामयिषीयास्ताम् कामयिषीरन्
आयथाः आयेथाम्
आयध्वम् कामयिषीष्ठाः कामयिषीयास्थाम् कामयिषीध्वम्
आयावहि आयामहि कामयिषीय कामयिषीवहि कामयिषीमहि | अ० आयिष्ट आयिषाताम् आयिषत श्व० कामयिता कामयितारौ कामयितार:
आयिष्ठाः आयिषाथाम् आयिड्ढवम/ध्वम् कामयितासे कामयितासाथे कामयिताध्वे
आयिषि आयिष्वहि आयिष्महि कामयिताहे कामयितास्वहे कामयितास्महे प० अयाञ्चके अयाञ्चक्राते अयाञ्चक्रिरे
अयाञ्चकृषे अयाञ्चक्राथे अयाञ्चकुवे कमिता कमितारौ कमितार:
अयाञ्चके अयाञ्चकृवहे अयाञ्चकृमहे कमितासे कमितासाथे कमिताध्वे
आयाम्बभूव। आयामास। कमिताहे कमितास्वहे कमितास्महे आ० अयिषीष्ट अयिषीयास्ताम् अयिषीरन् भ० कामयिष्यते कामयिष्येते कामयिष्यन्ते
अयिषीष्ठाः अयिषीयास्थाम् अयिषीध्वम् कामयिष्यसे कामयिष्येथे
कामयिष्यध्वे कामयिष्ये कामयिष्यावहे कामयिष्यामहे
अयिषीय अयिषीवहि अयिषीमहि तथा
श्व० अयिता अयितारौ अयितारः कमिष्यते कमिष्येते कमिष्यन्ते
अयितासे अयितासाथे अयिताध्वे कमिष्यसे कमिष्येथे कमिष्यध्वे
अयिताहे अयितास्वहे अयितास्महे कमिष्ये कमिष्यावहे कमिष्यामहे भ० अयिष्यते अयिष्येते अयिष्यन्ते क्रि० अकामयिष्यत अकामयिष्येताम् अकामयिष्यन्त अयिष्यसे अयिष्येथे अयिष्यध्वे
अकामयिष्यथाः अकामयिष्येथाम् अकामयिष्येध्वम् अयिष्ये अयिष्यावहे अयिष्यामहे अकामयिष्ये अकामयिष्यावहि अकामयिष्यामहि । क्रि० आयिष्यत आयिष्येताम् आयिष्यन्त तथा
आयिष्यथाः आयिष्येथाम् आयिष्यध्वम् अकमिष्यत अकमिष्येताम् अकमिष्यन्त
आयिष्ये आयिष्यावहि आयिष्यामहि अकमिष्यथाः अकमिष्येथाम् अकमिष्येध्वम्
७९१. वयि (वय) गतौ। अकमिष्ये अकमिष्यावहि अकमिष्यामहि
व० वयते वयेते अथ यान्ताः सप्तदश सेटश्चा
वयसे वयेथे
वयध्वे ७९०. अयि (अय) गतौ।
वये वयावहे
वयामहे
वयन्ते
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
193
मयेते
वये
अवये
मयिष्येते
स० वयेत वयेयाताम् वयेरन्
वयेथाः वयेयाथाम् वयेध्वम्
वयेय वयेवहि वयेमहि प० वयताम् वयेताम् वयन्ताम् वयस्व वयेथाम् वयध्वम्
वयावहै वयामहै ह्य० अवयत अवयेताम् अवयन्त अवयथाः अवयेथाम् अवयध्वम्
अवयावहि अवयामहि व० अवयिष्ट अवयिषाताम् अवयिषत
अवयिष्ठाः अवयिषाथाम् अवयिड्ढवम ध्वम्
अवयिषि अवयिष्वहि अवयिष्महि प० ववये ववयाते
ववयिरे ववयिषे ववयाथे ववयिढवे ध्वे
ववये ववयिवहे ववयिमहे आ० वयिषीष्ट वयिषीयास्ताम् वयिषीरन् वयिषीष्ठाः वयिषीयास्थाम्
वयिषीध्वम् वयिषीय वयिषीवहि वयिषीमहि श्व० वयिता वयितारौ वयितार:
वयितासे वयितासाथे वयिताध्वे
वयिताहे वयितास्वहे वयितास्महे भ० वयिष्यते वयिष्येते वयिष्यन्ते
वयिष्यसे वयिष्येथे वयिष्यध्वे
वयिष्ये वयिष्यावहे वयिष्यामहे क्रि० अवयिष्यत ___ अवयिष्येताम् अवयिष्यन्त
अवयिष्यथाः अवयिष्येथाम् अवयिष्यध्वम् अवयिष्ये अवयिष्यावहि अवयिष्यामहि
७९२. पयि (पय्) गतौ। व० पयते पयेते
पयन्ते स० पयेत पयेयाताम् पयेरन् प० पयताम् पयेताम् पयन्ताम् ह्य० अपयत अपयेताम्
अपयन्त अ० अपयिष्ट अपयिषाताम् अपयिषत प० पेये पेयाते आ० पयिषीष्ट पयिषीयास्ताम् पयिषीरन्
प० नयताम्
श्व० पयिता पयितारौ पयितार: भ० पयिष्यते पयिष्येते
पयिष्यन्ते क्रि० अपयिष्यत अपयिष्येताम अपयिष्यन्त
७९३. मयि (मय) गतौ। व० मयते
मयन्ते स० मयेत मयेयाताम्
मयेरन् प० मयताम् मयेताम्
मयन्ताम् ह्य० अमयत अमयेताम् अमयन्त अ० अमयिष्ट अमयिषाताम् अमयिषत प० मेये मेयाते
मेयिरे आ० मयिषीष्ट मयिषीयास्ताम् मयिषीरन् श्व० मयिता मयितारौ मयितार: भ० मयिष्यते
मयिष्यन्ते क्रि० अमयिष्यत अमयिष्येताम अमयिष्यन्त
७९४. नयि (नय) गतौ। व० नयते नयेते
नयन्ते स० नयेत नयेयाताम् नयेरन् नयेताम्
नयन्ताम् ह्य० अनयत अनयेताम्
अनयन्त अ० अनयिष्ट अनयिषाताम् अनयिषत प० नेये
नेयिरे आ० नयिषीष्ट नयिषीयास्ताम् नयिषीरन् श्व० नयिता नयितारौ नयितारः भ० नयिष्यते नयिष्येते नयिष्यन्ते क्रि० अनयिष्यत अनयिष्येताम् अनयिष्यन्त
७९५. चयि (चय) गतौ। व० चयते चयेते
चयन्ते स० चयेत चयेयाताम् प० चयताम् चयेताम्
चयन्ताम् ह्य० अचयत अचयेताम् अचयन्त अ० अचयिष्ट
अचयिषाताम् अचयिषत प० चेये
चेयाते
चेयिरे आ० चयिषीष्ट चयिषीयास्ताम् चयिषीरन् श्व० चयिता चयितारौ चयितारः भ० चयिष्यते चयिष्येते
चयिष्यन्ते क्रि० अचयिष्यत अचयिष्येताम् अचयिष्यन्त
नेयाते
चयेरन्
* * * *
पेयिरे
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
194
रयेते
रयेरन्
रेयाते
तयेते
पूयन्ते
धातुरलाकर प्रथम भाग ७९६. रयि (रय) गतौ।
८००. ऊयैङ् (उय्) तन्तुसन्ताने। व० रयते
रयन्ते व० ऊयते ऊयेते
ऊयन्ते स० रयेत रयेयाताम्
स० ऊयेत ऊयेयाताम् ऊयेरन् स० रयताम् रयेताम्
रयन्ताम् प० ऊयताम् ऊयेताम्
ऊयन्ताम् ह्य० अरयत अरयेताम्
अरयन्त ह्य० औयत औयेताम् औयन्त अ० अरयिष्ट अरयिषाताम् अरयिषत अ० औयिष्ट
औयिषाताम्
औयिषत प० रेये
रेयिरे
प० ऊयाञ्चके ऊयाञ्चक्राते ऊयाञ्चक्रिरे आ० रयिषीष्ट रयिषीयास्ताम् रयिषीरन्
ऊयाम्बभूव। ऊयामास। श्व० रयिता रयितारौ
रयितारः
आ० ऊयिषीष्ट ऊयिषीयास्ताम् ऊयिषीरन् भ० रयिष्यते रयिष्येते रयिष्यन्ते श्व० ऊयिता ऊयितारौ ऊयितारः क्रि० अरयिष्यत
अरयिष्यन्त भ० ऊयिष्यते ऊयिष्येते ऊयिष्यन्ते ७९७. तयि (तय) रक्षणे च। चादगतौ। क्रि० औयिष्यत
औयिष्येताम्
औयिष्यन्त व० तयते
तयन्ते
८०१ पूयैड् (पूय) दुर्गन्धविशरणयोः। स० तयेत तयेयाताम् तयेरन्
व० पूयते पूयेते प० तयताम् तयेताम्
तयन्ताम्
स० पूयेत पूयेयाताम् पूयेरन् ह्य० अतयत अतयेताम्
अतयन्त पूयताम् पूयेताम्
पूयन्ताम् अ० अतयिष्ट अतयिषाताम् अतयिषत ह्य० अपूयत अपूयेताम् अपूयन्त प० तेये
तेयाते तेयिरे
अ० अपूयिष्ट अपूयिषाताम् अपूयिषत आ० तयिषीष्ट तयिषीयास्ताम् तयिषीरन् प० पुपूये श्व० तयिता तयितारौ तयितारः आ० पूयिषीष्ट पूयिषीयास्ताम् पूयिषीरन् भ० तयिष्यते तयिष्येते तयिष्यन्ते | श्व० पूयिता पूयितारौ पूयितारः क्रि० अतयिष्यत अतयिष्येताम् अतयिष्यन्त | भ० पूयिष्यते पूयिष्येते पूयिष्यन्ते ७९८. णयि (नय) रक्षणे च। चाद्गतौ। नयि (७९४) |
| क्रि० अपूयिष्यत अपूयिष्येताम् अपूयिष्यन्त वत्। पृथक्पाठस्तु प्रणयते इत्यादौ णत्वार्थः। ८०२. क्यैड् (क्तूय) शब्दोन्दनयोः। उन्दनं क्लेदनम्। ७९९. दयि (दय्) दानगतिहिंसादहनेषु च। व० क्नूयते येते क्नूयन्ते चकाराद्रक्षणे।
स० क्नूयेत नूयेयाताम् क्येरन् व० दयते दयेते
दयन्ते
प० नूयताम् क्नूयेताम् क्नूयन्ताम् स० दयेत दयेयाताम्
ह्य० अक्तूयत अक्नूयेताम् अक्नूयन्त द० दयताम् दयेताम्
दयन्ताम्
अ० अक्मूयिष्ट अक्नूयिषाताम् अक्नूयिषत ह्य० अदयत अदयेताम्
अदयन्त प० चुक्नूये चुक्नूयाते चुक्नूयिरे द० अदयिष्ट अदयिषाताम् अदयिषत आ० क्यूयिषीष्ट क्नूयिषीयास्ताम् मूयिषीरन् प० दयाञ्चके दयाञ्चक्राते दयाश्चक्रिरे श्व० नूयिता क्नूयितारौ क्नूयितारः आ० दयिषीष्ट दयिषीयास्ताम् दयिषीरन्
भ० क्नूयिष्यते नूयिष्येते नूयिष्यन्ते श्व० दयिता दयितारौ दयितारः क्रि० अक्नूयिष्यत अक्नूयिष्येताम् अक्नूयिष्यन्त भ० “दयिष्यते दयिष्येते
दयिष्यन्ते
८०३. क्षमायैङ् (माय) विधूनने। क्रि० अदयिष्यत अदयिष्येताम् अदयिष्यन्त
क्ष्मायेते क्ष्मायन्ते
पुपूयाते
पुपूयिरे
दयेरन्
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
195
स० क्ष्मायेत क्ष्मायेयाताम् क्ष्मायेरन् प० क्ष्मायताम् क्ष्मायेताम् क्ष्मायन्ताम् ह्य० अक्ष्मायत अक्ष्मायेताम् अक्ष्मायन्त अ० अक्ष्मायिष्ट अक्ष्मायिषाताम् अक्ष्मायिषत प० चक्ष्माये चक्ष्मायाते चक्ष्मायिरे आ० मायिषीष्ट क्ष्मायिषीयास्ताम् क्ष्मायिषीरन् श्व० क्ष्मायिता क्ष्मायितारौ क्ष्मायितारः भ० क्ष्मायिष्यते क्ष्मायिष्येते
क्ष्मायिष्यन्ते क्रि० अक्ष्मायिष्यत अक्ष्मायिष्येताम अक्ष्मायिष्यन्त
८०४. स्फायैङ् (स्फाय) वृद्धौ। व० स्फायते स्फायेते स्फायन्ते स० स्फायेत स्फायेयाताम् स्फायेरन् प० स्फायताम् स्फायेताम् स्फायन्ताम् ह्य० अस्फायत अस्फायेताम् अस्फायन्त अ० अस्फायिष्ट अस्फायिषाताम् अस्फायिषत प० पस्फाये पस्फायाते पस्फायिरे आ० स्फायिषीष्ट स्फायिषीयास्ताम् स्फायिषीरन् श्व० स्फायिता स्फायितारौ स्फायितारः भ० स्फायिष्यते स्फायिष्येते स्फायिष्यन्ते क्रि० अस्फायिष्यत अस्फायिष्येताम् अस्फायिष्यन्त
८०५. ओप्यायैङ् (प्याय) वृद्धौ। व० प्यायते प्यायेते
प्यायन्ते स० प्यायेत प्यायेयाताम् प्यायेरन्
प्यायताम् प्यायेताम् प्यायन्ताम् ह्य० अप्यायत अप्यायेताम् अप्यायन्त अ० अप्यायिष्ट अप्यायिषाताम् अप्यायिषत प० पिप्ये पिप्याते
पिप्यिरे आ० प्यायिषीष्ट प्यायिषीयास्ताम् प्यायिषीरन् व० प्यायिता प्यायितारौ प्यायितारः भ० प्यायिष्यते प्यायिष्येते प्यायिष्यन्ते क्रि० अप्यायिष्यत अप्यायिष्येताम् अप्यायिष्यन्त ८०६. तायङ् (ताय) सन्तानपालनयोः।
सन्तानप्रबन्धः। व० तायते तायेते स० तायेत तायेयाताम् तायेरन् प० तायताम् तायेताम्
तायन्ताम्
ह्य अतायत अतायेताम् अतायन्त अ० अतायिष्ट अतायिषाताम् अतायिषत प० तताये ततायाते ततायिरे आ० तायिषीष्ट तायिषीयास्ताम् तायिषीरन् श्व० तायिता तायितारौ तायितारः भ० तायिष्यते तायिष्येते तायिष्यन्ते क्रि० अतायिष्यत अतायिष्येताम् अतायिष्यन्त
८०७. वलि (वल्) संवरणे।
अथ लान्ता नव सेटचा व० वलते वलेते
वलन्ते स० वलेत वलेयाताम्
वलेरन् प० वलताम् वलेताम्
वलन्ताम् ह्य० अवलत अवलेताम्
अवलन्त अ० अवलिष्ट अवलिषाताम् अवलिषत प० ववले ववलाते
ववलिरे आ० वलिषीष्ट वलिषीयास्ताम् वलिषीरन् श्व० वलिता वलितारौ वलितारः ल० वलिष्यते वलिष्येते वलिष्यन्ते क्रि० अवलिष्यत अवलिष्येताम् अवलिष्यन्त
८०८ वल्लि (वल्ल्) संवरणे। व० वल्लते वल्लेते
वल्लन्ते स० वल्लेत वल्लेयाताम् वल्लेरन् प० वल्लताम् वल्लेताम् वल्लन्ताम् ह्य० अवल्लत अवल्लेताम् अवल्लन्त अ० अवलिष्ट अवल्लिषाताम् अवल्लिषत प० ववल्ले ववल्लाते ववल्लिरे आ० वल्लिषीष्ट वल्लिषीयास्ताम् वल्लिषीरन् श्व० वल्लिता वल्लितारौ वल्लितारः ल० वल्लिष्यते वल्लिष्येते वल्लिष्यन्ते क्रि० अवल्लिष्यत अवल्लिष्येताम् अवल्लिष्यन्त
८०९. शलि (शल) चलने च।
चकारात्संवरणे। व० शलते शलेते
शलन्ते स० शलेत शलेयाताम् शलेरन् प० शलताम् शलेताम्
शलन्ताम् | ह्य० अशलत अशलेताम् अशलन्त
प०
तायन्ते
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
196
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कलन्ते
अ० अशलिष्ट अशलिषाताम् अशलिषत प० शेले
शेलाते
शेलिरे आ० शलिषीष्ट शलिषीयास्ताम् शलिषीरन् श्व० शलिता शलितारौ शलितारः भ० शलिष्यते शलिष्येते शलिष्यन्ते क्रि० अशलिष्यत अशलिष्येताम् अशलिष्यन्त
८१०. मलि (मल) धारणे। व० मलते मलेते
मलन्ते स० मलेत मलेयाताम् मलेरन् प० मलताम् मलेताम् मलन्ताम् ह्य० अमलत अमलेताम् अमलन्त अ० अमलिष्ट अमलिषाताम् अमलिषत प० मेले मेलाते
मेलिरे आ० मलिषीष्ट मलिषीयास्ताम् मलिषीरन् श्व० मलिता भलितारौ मलितारः भ० मलिष्यते मलिष्येते मलिष्यन्ते क्रि० अमलिष्यत अमलिष्येताम् अमलिष्यन्त
८११. मल्लि (मल्ल) धारणे। व० मल्लते मल्लेते स० मल्लेत मल्लेयाताम् मल्लेरन् प० मल्लताम्
मल्लेताम् मल्लन्ताम् ह्य० अमल्लत अमल्लेताम् अमल्लन्त अ० अमल्लिष्ट अमल्लिषाताम् अमल्लिषत प० ममल्ले ममल्लाते ममल्लिरे आ० मल्लिषीष्ट मल्लिषीयास्ताम् मल्लिषीरन् श्व० मल्लिता मल्लितारौ मल्लितारः भ० मल्लिष्यते मल्लिष्येते मल्लिष्यन्ते क्रि० अमल्लिष्यत अमल्लिष्येताम् अमल्लिष्यन्त
८१२. भलि (भल) परिभाषणहिंसादानेषु। व० भलते भलेते
भलन्ते स० भलेत भलेयाताम्
भलेरन् प० भलताम् भलेताम्
भलन्ताम् ह्य० अभलत अभलेताम् अभलन्त अ० अभलिष्ट अभलिषाताम् अभलिषत प० बभले बभलाते बभलिरे आ० भलिषीष्ट भलिषीयास्ताम् भलिषीरन्
श्व० भलिता भलितारौ भलितारः भ० भलिष्यते भलिष्येते भलिष्यन्ते क्रि० अभलिष्यत अभलिष्येताम् अभलिष्यन्त
८१३. भल्लि (भल्ल) परिभाषणहिंसादानेषु। व० भल्लते भल्लेते
भल्लन्ते स० भल्लेत भल्लेयाताम् भल्लेरन् प० भल्लताम् भल्लेताम् भल्लन्ताम् ह्य० अभल्लत अभल्लेताम् अभल्लन्त अ० अभल्लिष्ट अभल्लिषाताम् अभल्लिषत प० बभल्ले बभल्लाते बभल्लिरे आ० भल्लिषीष्ट भल्लिषीयास्ताम् भल्लिषीरन् श्व० भल्लिता भल्लितारौ भल्लितार: भ० भल्लिष्यते भल्लिष्येते भल्लिष्यन्ते क्रि० अभल्लिष्यत अभल्लिष्येताम अभल्लिष्यन्त
८१४. कलि (कल्) शब्दसङ्ख्यानयोः। व० कलते कलेते स० कलेत कलेयाताम् कलेरन् प० कलताम् कलेताम् कलन्ताम् ह्य० अकलत अकलेताम् अकलन्त अ० अकलिष्ट अकलिषाताम् अकलिषत प० चकले चकलाते चकलिरे आ० कलिषीष्ट कलिषीयास्ताम् कलिषीरन् श्व० कलिता कलितारौ कलितारः क० कलिष्यते कलिष्येते कलिष्यन्ते क्रि० अकलिष्यत अकलिष्येताम अकलिष्यन्त
८१५. कल्लि (कल्ल) अशब्दे।
शब्दस्याभावोऽशब्दं तूष्णीभावः। व० कल्लते कल्लेते
कल्लन्ते स० कल्लेत कल्लेयाताम् कल्लेरन् प० कल्लताम् कल्लेताम् कल्लन्ताम् ह्य० अकल्लत अकल्लेताम् अकल्लन्त अ० अकल्लिष्ट अकल्लिषाताम् अकल्लिषत प० चकल्ले चकल्लाते चकल्लिरे आ० कल्लिषीष्ट कल्लिषीयास्ताम् कल्लिषीरन्
मल्लन्ते
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
197
सेवेरन्
तेवन्ते
तेवेरन्
केवेताम्
श्व० कल्लिता कल्लितारौ कल्लितारः क. कल्लिष्यते कल्लिष्येते कल्लिष्यन्ते क्रि० अकल्लिष्यत अकल्लिष्येताम् अकल्लिष्यन्त
अथ वान्ताश्चतुर्दश सेटश्च।
८१६. तेवृङ् (तेव्) देवने। व० तेवते तेवेते स० तेवेत तेवेयाताम् प० तेवताम् तेवेताम्
तेवन्ताम् ह्य० अतेवत अतेवेताम् अतेवन्त अ० अतेविष्ट अतेविषाताम् अतेविषत प० तितेवे तितेवाते तितेविरे आ० तेविषीष्ट तेविषीयास्ताम्
तेविषीरन् श्व० तेविता तेवितारौ तेवितारः भ० तेविष्यते तेविष्येते तेविष्यन्ते क्रि० अतेविष्यत अतेविष्येताम् अतेविष्यन्त
८१७. देवृङ् (देव) देवने। .व० देवते देवेते
देवन्ते स० देवेत देवेयाताम् देवेरन् प० देवताम् देवेताम् देवन्ताम् ह्य० अदेवत अदेवेताम् अदेवन्त अ० अदेविष्ट अदेविषाताम् अदेविषत प० दिदेवे दिदेवाते दिदेविरे आ० देविषीष्ट देविषीयास्ताम् देविषीरन् श्व० देविता देवितारौ देवितारः भ० देविष्यते देविष्येते देविष्यन्ते क्रि० अदेविष्यत अदेविष्येताम् अदेविष्यन्त
८१८. घेवृङ् (सेव) सेवने। व० सेवते सेवेते
सेवन्ते स० सेवेत सेवेयाताम् सेवेरन् प० सेवताम् सेवेताम्
सेवन्ताम् ह्य० असेवत असेवेताम् असेवन्त अ० असेविष्ट असेविषाताम् असेविषत प० सिषेवे सिषेवाते सिषेविरे
आ० सेविषीष्ट सेविषीयास्ताम् सेविषीरन् श्व० सेविता सेवितारौ सेवितारः
भ० सेविष्यते सेविष्येते सेविष्यन्ते क्रि० असेविष्यत असेविष्येताम् असेविष्यन्त
८१९. सेवृङ् (सेव) सेवने। व० सेवते सेवेते
सेवन्ते स० सेवेत सेवेयाताम् प० सेवताम् सेवेताम्
सेवन्ताम् ह्य० असेवत असेवेताम् असेवन्त
असेविष्ट असेविषाताम् असेविषत
सिसेवे सिसेवाते सिसेविरे आ० सेविषीष्ट सेविषीयास्ताम् सेविषीरन् श्व० सेविता सेवितारौ सेवितारः भ० सेविष्यते सेविष्येते सेविष्यन्ते क्रि० असेविष्यत असेविष्येताम् असेविष्यन्त
८२०. केवृङ् (केव) सेवने। व० केवते केवेते
केवन्ते स० केवेत केवेयाताम् केवेरन् प० केवताम्
केवन्ताम् ह्य० अकेवत अकेवेताम् अकेवन्त अ० अकेविष्ट अकेविषाताम् अकेविषत प० चिकेवे चिकेवाते चिकेविरे आ० केविषीष्ट केविषीयास्ताम् केविषीरन् श्व० केविता केवितारौ केवितारः भ० केविष्यते केविष्येते केविष्यन्ते क्रि० अकेविष्यत अकेविष्येताम् अकेविष्यन्त
८२१. खेवृङ् (खेव) सेवने। व० खेवते खेवेते
खेवन्ते स० खेवेत खेवेयाताम् प० खेवताम् खेवेताम् खेवन्ताम् ह्य० अखेवत अखेवेताम् अखेवन्त अ० अखेविष्ट अखेविषाताम् अखेविषत प० चिखेवे चिखेवाते चिखेविरे आ० खेविषीष्ट खेविषीयास्ताम् खेविषीरन् श्व० खेविता खेवितारौ खेवितारः भ० खेविष्यते खेविष्येते
खेविष्यन्ते क्रि० अखेविष्यत अखेविष्येताम् अखेविष्यन्त
खेवेरन्
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
198
व०
गेवते
स० गेवेत
प० गेवताम्
ह्य० अगवत
अ० अगेविष्ट
प० जिगेवे
आ० गेविषीष्ट
व० गेविता
भ० गेविष्यते
क्रि० अगेविष्यत अगेविष्येताम्
व० ग्लेवते
स०
ग्लेवेत
प० ग्लेवताम् ह्य० अग्लेवत
अ०
अग्लेविष्ट
८२२. गेवृङ् (गेव्) सेवने ।
गेवेते
प० जिग्लेवे
आ० ग्लेविषीष्ट
व०
ग्लेविता
व० पेवते
स० पेवेत प० पेवताम् ह्य० अपेवत
अ० अपेविष्ट
h
प० पिपेवे
आ० पेविषीष्ट
व० पेविता
गेवेयाताम्
गेवेताम्
अगेवेताम्
अगेविषाताम्
जिगेवाते
८२३. ग्लेवृङ् (ग्लेव्) सेवने।
ग्लेवेते
व० प्लेवते
स०
प्लेवेत
भ० ग्लेविष्यते
क्रि० अग्लेविष्यत अग्लेविष्येताम्
गेविषीयास्ताम्
गेवितारौ
गेविष्येते
ग्लेविषीयास्ताम्
ग्लेवितारौ
ग्लेविष्येते
ग्लेवन्ते
ग्लेवेयाताम्
ग्लेवेरन्
ग्लेवेताम्
ग्लेवन्ताम्
अग्लेवेताम्
अग्लेवन्त
अग्लेविषाताम् अग्लेविषत
जिग्लेवाते
जिग्लेविरे
गेवन्ते
गेवेरन्
गेवन्ताम्
अगेवन्त
पेवेयाताम्
पेवेताम्
अपेवेताम्
अपेविषाताम्
पिपेवाते
भ० पेविष्यते
क्रि० अपेविष्यत अपेविष्येताम्
अगेविषत
जिगेविरे
गेविषीरन्
गेवितारः
गेविष्यन्ते
अगेविष्यन्त
८२४. पेवृङ् (पेव्) सेवने ।
पेवेते
पेविषीयास्ताम्
पेवितारौ
पेविष्येते
ग्लेविषन्
ग्लेवितारः
ग्लेविष्यन्ते
अग्लेविष्यन्त
पेवन्ते
पेवेरन्
पेवन्ताम्
अपेवन्त
अपेविषत
पिपेविरे
विषीरन्
पेवितारः
पेविष्यन्ते
अपेविष्यन्त
८२५. प्लेवृङ् (प्लेव्) सेवने ।
प्लेवेते
प्लेवेयाताम्
प्लेवन्ते
प्लेवेरन्
प० प्लेवताम्
ह्य० अप्लेवत
अ०
अप्लेविष्ट
प० पिप्लेवे
आ० प्लेविषीष्ट
멍ᄋ
प्लेविता
भ० प्लेविष्यते
क्रि० अप्लेविष्यत
व० मेवते
स० मेवेत
प० मेवताम्
ह्य० अमेवत
अ० अमेविष्ट
प० मिमेवे
आ० मेविषीष्ट
श्व० मेविता
भ० मेविष्यते
क्रि० अमेविष्यत
व० म्लेवते
स० म्लेवेत
प० म्लेवताम्ल्
ह्य० अम्लेवत
अ० अम्लेविष्ट
व० रेवते
स० रेवेत
प० रेवताम्
ह्य० अरेवत
अ० अरेविष्ट
प० मिम्लेवे
आ० म्लेविषीष्ट
श्व० म्लेविता
भ० म्लेविष्यते
क्रि० अम्लेविष्यत
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प्लेवन्ताम्
अप्लेवन्त
अप्लेविषत
पिप्लेविरे
प्लेविषीरन्
प्लेवितारः
प्लेविष्यन्ते
अप्लेविष्येताम् अप्लेविष्यन्त
८२६. मेवृङ् (मेव्) सेवने ।
मेवेते
प्लेवेताम्
अप्लेवेताम्
अप्लेविषाताम्
प्लिप्लेवाते
प्लेविषीयास्ताम्
प्लेवितारौ
प्लेविष्येते
मेविषीयास्ताम्
मेवितारौ
मेविष्येते
अमेविष्येताम्
८२७. म्लेवृङ् (प्लेव्) सेवने।
म्लेवेते
मेवेयाताम्
वेताम्
अवेताम्
अमेविषाताम्
मिमेवाते
म्लेवेयाताम्ल्
लेवेताम्
अम्लवेताम्
अम्लेविषाताम्
मिम्लेवाते
मेवन्ते
मेवेरन्
मेवन्ताम्
अमेवन्त
अमेविषत
मिमेविरे
म्लेविषीयास्ताम्
म्लेवितारौ
म्लेविष्येते
अम्लेविषत
मिम्लेविरे
म्लेविषीरन्
म्लेवितारः
म्लेविष्यन्ते
अम्लेविष्येताम् अम्लेविष्यन्त
८२८. रेवृङ् (रेव्) गतौ ।
रेवेते
रेवेयाताम्
रेवेताम्
अरेवेताम्
अरेविषाताम्
मेविषीरन्
मेवितारः
मेविष्यन्ते
अमेविष्यन्त
म्लेवन्ते
म्लेवेरन्
म्लेवन्ताम्ल
अम्लेवन्त
रेवन्ते
रेवेरन्
रेवन्ताम्
अरेवन्त
अरेविषत
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
199
पवेरन्
अपवेताम्
भाषेयाताम्
प० रिरेवे रिरेवाते
रिरेविरे आ० रेविषीष्ट रेविषीयास्ताम्
रेविषीरन् श्व० रेविता रेवितारौ
रेवितारः भ० रविष्यते रेविष्येते रेविष्यन्ते क्रि० अरेविष्यत
अरेविष्यन्त ८२९. पवि (पव्) गतौ।
प्लुतिगतावित्यन्ये। व० पवते पवेते
पवन्ते स० पवेत पवेयाताम् प० पवताम् पवेताम्
पवन्ताम् ह्य० अपवत
अपवन्त अ० अपविष्ट अपविषाताम् अपविषत प० पेवे पेवाते
पेविरे आ० पविषीष्ट पविषीयास्ताम् पविषीरन् श्व० पविता पवितारौ पवितार: भ० पविष्यते पविष्येते
पविष्यन्ते क्रि० अपविष्यत अपविष्येताम् अपविष्यन्त
____अथ शान्तौ द्वौ सेटौ च।
८३०. काशृङ् (काश्) दीप्तौ। व० काशते काशेते स० काशेत काशेयाताम् काशेरन् प० काशताम्
काशेताम् काशन्ताम् ह्य० अकाशत अकाशेताम् अकाशन्त अ० अकाशिष्ट अकाशिषाताम् अकाशिषत प० चकाशे चकाशाते चकाशिरे आ० काशिषीष्ट काशिषीयास्ताम् काशिषीरन् श्व० काशिता काशितारौ काशितार: भ० काशिष्यते काशिष्येते काशिष्यन्ते क्रि० अकाशिष्यत अकाशिष्येताम अकाशिष्यन्त
८३१. क्लेशि (क्लेश्) विबाधने। व० क्लेशते क्लेशेते क्लेशन्ते स० क्लेशेत क्लेशेयाताम् प० क्लेशताम् क्लेशेताम् क्लेशन्ताम् ह्य० अक्लेशत अक्लेशेताम् अक्लेशन्त अ० अक्लेशिष्ट अक्लेशिषाताम् अक्लेशिषत प० चिक्लेशे चिक्लेशाते चिक्लेशिरे
आ० क्लेशिषीष्ट क्लेशिषीयास्ताम् क्लेशिषीरन् श्व० क्लेशिता क्लेशितारौ क्लेशितार: भ० क्लेशिष्यते क्लेशिष्येते क्लेशिष्यन्ते क्रि० अक्लेशिष्यत अक्लेशिष्येताम् अक्लेशिष्यन्त
अथ षान्ता द्वादश सेटच। ८३२. भाषि (भाष्) च व्यक्तायां वाचि। प्रकृतेः परश्चकारः प्रकृतिमनुकर्षति। तेन क्लेशिर्भाषिश्च व्यक्तायां
वाचि। क्लेशिरुदाहृत एव। भाषि व० भाषते भाषेते
भाषन्ते भाषसे भाषेथे
भाषध्वे भाषे भाषावहे
भाषामहे भाषेत
भाषेरन् भाषेथाः भाषेयाथाम्
भाषेध्वम् भाषेय भाषेवहि
भाषेमहि भाषताम् भाषेताम्
भाषन्ताम् भाषस्व भाषेथाम्
भाषध्वम् भाषै भाषावहै
भाषामहै अभाषत अभाषेताम अभाषन्त अभाषथाः अभाषथाम् अभाषध्वम् अभाषे
अभाषावहि अभाषामहि अभाषिष्ट अभाषिषाताम् अभाषिषत अभाषिष्ठाः अभाषिषाथाम् अभाषिड्वम्/ध्वम्
अभाषिषि अभाषिष्वहि अभाषिष्महि | प० बभाषे
बभाषाते
बभाषिरे बभाषिषे बभाषाथे बभाषिध्वे
बभाषिवहे बभाषिमहे आ० भाषिषीष्ट भाषिषीयास्ताम् भाषिषीरन्
भाषिषीष्ठाः भाषिषीयास्थाम् भाषिषीध्वम् भाषिषीय भाषिषीवहि भाषिषीमहि भाषिता भाषितारौ भाषितारः भाषितासे भाषितासाथे भाषिताध्वे
भाषिताहे भाषितास्वहे भाषितास्महे भ० भाषिष्यते भाषिष्येते भाषिष्यन्ते
भाषिष्यसे भाषिष्येथे भाषिष्यध्वे
भाषिष्ये भाषिष्यावह भाषिष्यामहे क्रि० अभाषिष्यत अभाषिष्येताम् अभाषिष्यन्त
काशन्ते
अ०
बभाषे
श्व०
क्लेशेरन्
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
200
व०
अभाषिष्यथाः अभाषिष्येथाम् अभाषिष्यावहि
अभाषिष्ये
स० ईषेत
ईषते
ईषसे
८३३ ईषि (ईष्) गतिहिंसादर्शनेषु ।
ईषन्ते
ईषवे
प०
ईषेथाः
ईषेय
प० ईषताम्
ईषस्व
ई
ह्य० ऐषत
ऐषथा:
ऐषे
अ० ऐषिष्ट
ऐषिष्ठा:
ऐषिषि
ईषाञ्चक्रे
ईषाञ्चकृषे
ईषाञ्चक्रे
आ० ईषिषीष्ट
इषाम्बभूव / इषामास ।
ईषिषीष्ठाः
ईषिषीय
श्व० ईषिता
ईषिता
ईषताहे
भ० ईषिष्यते
षष्यसे
ईषिष्ये
क्रि० ऐषिष्यत
ईषेथे
ईषावहे
ईषेयाताम्
ईषेयाथाम्
ईषेवहि
ईषेताम्
ईषेथाम्
ईषावहै
ऐषिष्यथाः
ऐषिष्ये
ऐम्
ऐषथाम्
ऐषावहि
ऐषिषाताम्
ऐषिषाथाम्
ऐषिष्वहि
ईषाञ्चा
ईषाञ्चा
ईषाञ्च
ईषिषीयास्ताम्
ईषिषीयास्थाम्
ईषिषीवहि
ईषितारौ
अभाषिष्यध्वम् व० गेषते अभाषिष्यामहि स० गेषेत ए गेषताम्
० अगषत
अ० अगेषिष्ट
प० जिगेषे
आ० गेषिषीष्ट
श्व० गेषिता
तासा
ईषितास्वहे
ईषिष्येते
येथे
ईषाम
ईषेरन्
षेध्वम्
महि
ईषन्ताम्
ईषध्वम्
ईषामहै
ऐषन्त
ऐषध्वम्
ऐषामहि
ऐषिषत
ऐषिष्महि
ईषाञ्चक्रिरे
ईषाञ्चकृदवे
ईषाञ्चकृम
ईषिषीरन्
ईषिष्याव
ऐषिष्येताम्
ऐषिष्येथाम्
ऐषिष्यावहि
८३४. गेषृङ् (गेष्) अन्विच्छायाम् ।
अन्विच्छान्वेषणम् ।
ऐषिष्ट्वम्/ध्वम् प० यियेषे
आ० येषिषीष्ट
श्व० येषिता
भ० येषिष्यते
क्रि० अयेषिष्यत
ध्वम्
ईषिषीमहि
ईषितार:
ईषिताध्वे
ईषितास्महे
ईषिष्यन्ते
ईषिष्यध्वे
ईषिष्यामहे
ऐषिष्यन्त
ऐषिष्यध्वम्
ऐषिष्यामहि
भ० गेषिष्यते
क्रि० अगेषिष्यत
व० येषते
स० येषेत
प० येषताम्
ह्य० अयेषत
अ० अयेषिष्ट
व० नेषते
स० नेषेत
प० नेषताम्
व०
जेष
स० जेषेत
प० जेषताम्
ह्य० अजेषत
अ० अजेषिष्ट
प० जिजेषे
आ० जेषिषीष्ट
평ᄋ
जेषिता
भ० जेषिष्यते
क्रि० अजेषिष्यत
गेषेते
गेषेयाताम्
गेषेताम्
अषेताम्
अगेषिषाताम्
जिगेषाते
गेषिषीयास्ताम्
गेषितारौ
गेषिष्येते
अगेषिष्येताम्
८३५. येषृङ् (येष्) प्रयले।
येते
येषेयाताम्
येताम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
गेषन्ते
गेषेरन्
गेषन्ताम्
अगेषन्त
अगेषिषत
जिगेषिरे
अयेषिषाताम्
यियेषाते
येषिषीयास्ताम्
येषितारौ
येषिष्येते
जेषेयाताम्
जेम्
अजेषेताम्
अजेषिषाताम्
जिजेषाते
गेषिषीरन्
गेषितार:
गेषिष्यन्ते
अगेषिष्यन्त
येषाम्
८३६. जेषृङ् (जेष्) गतौ ।
जे
जेषिषीयास्ताम्
जेषितारौ
जेषिष्येते
येषन्ते
येषेरन्
येषन्ताम्
अयेषन्त
अयेषिषत
यियेषिरे
नेषेयाताम्
नेषेताम्
येषिषीरन्
येषितारः
येषिष्यन्ते
अयेषिष्यन्त
जेषन्ते
जेषेरन्
जेषन्ताम्
अजेषन्त
अजेषिषत
जिजेषिरे
जेषिषीरन्
जेषितार:
जेषिष्यन्ते
अजेषिताम् अजेषिष्यन्त
८३७. णेषूङ् (नेष्) गतौ ।
नेषेते
नेषन्ते
नेषेरन्
ताम्
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
201
एषेते
ह्य० अनेषत अनेषेताम्
अनेषन्त अ० अनेषिष्ट अनेषिषाताम् अनेषिषत प० निनेषे निनेषाते
निनेषिरे आ० नेषिषीष्ट नेषिषीयास्ताम् नेषिषीरन् २० नेषिता नेषितारौ नेषितारः भ० नेषिष्यते नेषिष्येते नेषिष्यन्ते क्रि० अनेषिष्यत अनेषिष्येताम् । अनेषिष्यन्त
८३८ एषङ् (एष) गतौ। व० एषते
एषन्ते स० एषेत
एषेयाताम् एषेरन् प० एषताम् एषेताम्
एषन्ताम् ह्य० ऐषत ऐषेताम् ऐषन्त अ० ऐषिष्ट ऐषिषाताम् ऐषिषत प० एषाञ्चक्रे एषाञ्चक्राते एषाश्चक्रिरे आ० एषिषीष्ट एषिषीयास्ताम् एषिषीरन् श्व० एषिता एषितारौ एषितारः भ० एषिष्यते
एषिष्येते
एषिष्यन्ते क्रि० ऐषिष्यत ऐषिष्येताम् ऐषिष्यन्त
८३९. हृषङ् (राष्) गतौ। व० हेषते हृषेते
हृषन्ते स० हेषेत हृषेयाताम् हेषेरन्
हेषन्ताम् ह्य० अद्वेषत अहेषेताम् अहेषन्त अ० अहेषिष्ट अहेषिषाताम् अहेषिषत प० जिहेषे जिह्वेषाते जिहेषिरे आ० हृषिषीष्ट हेषिषीयास्ताम्
हेषिषीरन् श्व० हेषिता हृषितारौ हेषितारः भ० हृषिष्यते हृषिष्येते हृषिष्यन्ते क्रि० अहृषिष्यत अहेषिष्येताम् अहेषिष्यन्त
८४०. रेपृङ् (रेष्) अव्यक्ते शब्द। व० रेषते
रेषन्ते स० रेषेत
रेषेयाताम् प० रेषताम्
रेषन्ताम् ह्य० अरेषत अरेषेताम् अरेषन्त अ० अरेषिष्ट अरेषिषाताम् अरेषिषत प० रिरेषे रिरेषाते रिरेषिरे
आ० रेषिषीष्ट रेषिषीयास्ताम् रेषिषीरन् श्व० रेषिता रेषितारौ रेषितार: भ० रेषिष्यते रेषिष्येते रेषिष्यन्ते क्रि० अरेषिष्यत अरेषिष्येताम् अरेषिष्यन्त
८४१. हेर्पङ् (हेष्) अव्यक्ते शब्द। व० हेषते हेषेते
हेषन्ते स० हेषेत हेषेयाताम् हेषेरन् प० हेषताम् हेषेताम्
हेषन्ताम् ह्य० अहेषत अहेषेताम् अहेषन्त अ० अहेषिष्ट अहेषिषाताम् अहेषिषत प० जिहेषे जिहेषाते जिहेषिरे आ० हेषिषीष्ट हेषिषीयास्ताम् हेषिषीरन् श्व० हेषिता हेषितारौ हेषितारः भ० हेषिष्यते हेषिष्येते हेषिष्यन्ते क्रि० अहेषिष्यत अहेषिष्येताम् अहेषिष्यन्त
८४२. पर्षि (प) स्नेहने। व० पर्षते पर्वते
पर्षन्ते स० पर्खेत पर्षेयाताम् पपेरन् प० पर्षताम् पर्येताम्
पर्षन्ताम् ह्य० अपर्षत अपर्येताम् अपर्षन्त अ० अपर्षिष्ट अपर्षिषाताम् अपर्षिषत प० पपर्षे पपर्षाते
पपपिरे आ० पर्षिषीष्ट पर्षिषीयास्ताम् श्व० पर्षिता पर्षितारौ पर्षितारः भ० पर्षिष्यते पर्षिष्येते
पर्षिष्यन्ते क्रि० अपर्षिष्यत अपर्षिष्येताम् अपर्षिष्यन्त
घषङ (घंष) कान्तीकरणे। व० पुंषते
पुंषन्ते स० पुंषेत घुषेयाताम् घुषेरन् प० पुंषताम् धुंषेताम्
पुंषन्ताम् ह्य० अधुंषत अधुंषेताम् अधूषन्त अ० अधूषिष्ट अधूषिषाताम् अधूषिषत प० जुधुंषे जुघुषाते जुघुषिरे आ० धूषिषीष्ट घुषिषीयास्ताम् धूषिषीरन् श्व० धूषिता धूषितारौ धूषितारः भ० धूषिष्यते घुषिष्येते धूषिष्यन्ते
प० हेषताम्
हेषेताम्
पर्षिषीरन्
पुंषेते
रेषेते
रेषेरन्
रेषेताम्
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
202
क्रि० अघुषिष्यत
व०
स्रंसते
स० संसेत
प०
ह्य०
अ० अस्रंसिष्ट
प० सस्रंसे
आ० स्रंसिषीष्ट
व० स्रंसिता
भ० स्रंसिष्यते
क्रि० अस्रंसिष्यत
व० कासते
स० कासेत
प०
명용 공용공굉
स्रंसताम्
अस्रंसत
कासताम्
ह्य०
अकासत
अ० अकासिष्ट
प०
कासाञ्चक्रे
व०
अर्घुषिष्येताम् अघुषिष्यन्त अथ सान्तास्त्रयोदश सेटच ।
८४४. स्रंसूङ् (स्रंस्) प्रमादे ।
प्रमादोऽवलेपः ।
स्रंसेते
स्रंसेयाताम्
स्रंसेताम्
अस्त्रंसेताम्
अस्रंसिषाताम्
सस्रंसाते
स०
प०
ह्य०
अस्त्रंसिष्येताम्
८४५. कासृङ् (कास्) शब्दकुत्सायाम्।
शब्दस्य कुत्सारोगः ।
कासेते
आ० कासिषीष्ट
व० कासिता
भ० कासिष्यते
क्रि० अकासिष्यत अकासिष्येताम्
भासते
भासेत
भासताम्
अभासत
अ० अभासिष्ट
कासाम्बभूव / कासामास ।
प० बभासे
स्रंसिषीयास्ताम्
सितारौ
स्रंसिष्येते
कासेयाताम्
कासेताम्
अकासेताम्
आ० भासिषीष्ट
भासिता
अकासिषाताम्
कासाञ्चक्राते
कासिषीयास्ताम्
कासितारौ
कासिष्येते
स्रंसते
स्रंसेरन्
स्रंसन्ताम्
अस्रंसन्त
असिषत
सस्रंसिरे
८४६. भासि (भास्) दीप्तौ ।
भासेते
भासेयाताम्
भासेताम्
अभासेताम्
अभासिषाताम्
बभासते
स्रंसिषीरन्
सितार:
सिष्यन्ते
अस्रंसिष्यन्त
भासिषीयास्ताम् भासितारौ
कासन्ते
कासेरन्
कासन्ताम्
अकासन्त
अकासिषत
कासाञ्चक्रिरे
कासिषीरन्
कासितार:
कासिष्यन्ते
अकासिष्यन्त
भासन्ते
भासेरन्
भासन्ताम्
अभासन्त
अभासिषत
बभासिरे
भासिषीरन्
भासितार:
भ० भासिष्यते भासिष्येते क्रि० अभासिष्यत अभासिष्येताम्
व०
प०
भ्रास्यते
स० भ्रासेत
ह्य०
लं
भ्रासते
अभ्रास्यत
अ० अभ्रासिष्ट
प०
बभ्रासे
८४७. टुभ्रासि (भ्रास्) दीप्तौ ।
भ्रासेते
भ्रास्येत
भ्रासताम्
प०
भ्रास्यताम्
अभ्रासत
थ्रेसे
आ० भ्रासिषीष्ट
श्व० भ्रासिता
भ० भ्रासिष्यते
क्रि० अभ्रासिष्यत
ह्य०
व० भ्लासते
भ्लास्यते
स० भ्लासेत
भ्लास्येत
भ्लासताम्
भ्लास्यताम्
अभ्लासत
अभ्लास्यत
तथा
भ्रास्येते
भ्रासेयाताम्
तथा
भ्राताम्
भ्राताम्
तथा
भ्रास्येताम्
अभ्रासेताम्
तथा
अभ्रास्येताम्
अभ्रासिषाताम्
बभ्रासाते
तथा
साते
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
भासिष्यन्ते
अभासिष्यन्त
भ्रासिषीयास्ताम्
भ्रासितारौ
भ्रासिष्येते
अभ्रासिष्येताम्
८४८. टुभ्लासृङ् (भ्लास्) दीप्तौ ।
भ्लासेते
तथा
भ्लास्येते
भ्लासेयाताम्
तथा
भ्लास्येयाताम्
भ्लासेताम्
तथा
भ्लास्येताम्
अभ्लासेताम्
तथा
अभ्लास्येताम्
भ्रासन्ते
भ्रास्यन्ते
भ्रासेरन्
भ्रास्येरन्
भ्रास-ताम्
भ्रास्यन्ताम्
अभ्रासन्त
अभ्रास्यन्त
अभ्रासिषत
बभ्रासिरे
थ्रेसिरे
भ्रासिषीरन्
भ्रासितार:
भ्रासिष्यन्ते
अभ्रासिष्यन्त
भ्लासन्ते
भ्लास्यन्ते
भ्लासेरन्
भ्लास्येरन्
भ्लासन्ताम्
भ्लास्यन्ताम्
अभ्लासन्त
अभ्लास्यन्त
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
अ० अभ्लासिष्ट
प०
बभ्लासे
भ्लेसे
आ० भ्लासिषीष्ट
श्व० भ्लासिता
भ० भ्लासिष्यते
क्रि० अभ्लासिष्यत अभ्लासिष्येताम्
व०
नासते
स० नासेत
५०
नासताम्
ह्य० अनासत
अ० अनासिष्ट
अभ्लासिषाताम् बभ्लासाते
तथा
व०
रासते
स० रासेत
प० रासताम्
ह्य०
अरासत
अ० अरासिष्ट
प० ररासे
आ० रासिषीष्ट
श्व० रासिता
भ० रासिष्यते
क्रि० अरासिष्यत अरासिष्येताम्
व० नसते
स० नसेत
भ्लेसाते
प० ननासे
आ० नासिषीष्ट
श्व० नासिता
भ० नासिष्यते
क्रि० अनासिष्यत
भ्लासिषीयास्ताम्
भ्लासितारौ
भ्लासिष्येते
८४९. रासृङ् (रास्) शब्दे ।
रासेते
सेयाताम्
रासेताम्
अरासेताम्
अरासिषाताम्
रसाते
रासिषीयास्ताम्
रासितारौ
रासिष्येते
अभ्लासिषत
बभ्लासिरे
८५०. णासृङ् (नास्) शब्दे ।
पाठे धात्वादेरिति नत्वे ।
नासेते
नासेयाताम्
सेताम्
भ्लेसिरे
भ्लाखिषीरन्
भ्लासितारः
अम्
अनासिषाताम्
ननासाते
नासिषीयास्ताम्
नासितारौ
नासिष्येते
रासन्ते
रासेरन्
रासन्ताम्
अरासन्त
अरासिषत
ररासिरे
रासिषीरन्
रासितार:
रासिष्यन्ते
अरासिष्यन्त
नासन्ते
नासेरन्
नासन्ताम्
अनासन्त
अनासिषत
ननासिरे
नासिषीरन्
नासितार:
नासिष्यन्ते
अनासिष्येताम् अनासिष्यन्त
८५१. णसि (नस) कौटिल्ये ।
नसे नसेयाताम्
भ्लासिष्यन्ते न० नसिष्यते
अभ्लासिष्यन्त
क्रि० अनसिष्यत
नसन्ते
प० नसताम्
सेन्
ह्य०
अ०
अनसत
अनसिष्ट
प० नेसे
आ० नसिषीष्ट
श्व० नसिता
भ्यसते
भ्यसेत
व०
स०
प० भ्यसताम्
ह्य० अभ्यसत
अ० अभ्यसिष्ट
प० बभ्यसे
आ० भ्यसिषीष्ट
श्व० भ्यसिता
व०
आशंसते
स० आशंसेत
प० आशंसताम्
ह्य०
आशंसत
अ० आशंसिष्ट
प० आशशंसे
आ० आशंसिषीष्ट
श्व० आशंसिता
भ० आशंसिष्यते
क्रि० आशंसिष्यत
व० ग्रसते
म्
अनसेताम्
अनसिषाताम्
नेसाते
नसिषीयास्ताम्
नसितारौ
नसिष्येते
सम्
८५२. भ्यसि (भ्यस्) भये ।
भ्यसेते
सेयाताम्
भ्यसेताम्
अभ्यसेताम्
अभ्यसिषाताम्
बभ्यसते
भ्यसिषीयास्ताम्
भ्यसितारौ
भ्यसिष्येते
भ० भ्यसिष्यते
क्रि० अभ्यसिष्यत
अभ्यसिष्येताम्
अभ्यसिष्यन्त
८५३. आङः शसुङ् (आशंस्) इच्छायाम्। आङ इति आङ: पर एवायं प्रयुज्यते नान्योपसर्गान्नापि केवल इति
ज्ञापनार्थम्।
आशंसेते
सेयाताम्
आशंसेताम्
आशंसेताम्
नसन्ताम्
अनसन्त
अनसिषत
नेसिरे
आशंसिषाताम्
आशशंसाते
नसिषीरन्
नसितार:
नसिष्यन्ते
अनसिष्यन्त
आशंसितारौ
आशंसिष्येते
भ्यसन्ते
भ्यसेरन्
भ्यसन्ताम्
अभ्यसन्त
अभ्यसिषत
बभ्यसिरे
भ्यसिषीरन्
भ्यसितारः
भ्यसिष्यन्ते
आशंसन्ते
आशंसेन्
आशंसन्ताम्
आशंसन्त
आशंसिषत
आशशंसिरे
आशंसिषीयास्ताम् आशंसिषीरन्
आशंसितारः
आशंसिष्यन्ते आशंसिष्येताम् आशंसिष्यन्त
203
८५४. प्रसूङ् (ग्रस्) अदने ।
ग्रसेते
ग्रसन्ते
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
204
धातरत्नाकर प्रथम भाग
स० ग्रसेत ग्रसेयाताम् ग्रसेरन् प० ग्रसताम् ग्रसेताम् ग्रसन्ताम् ह्य० अग्रसत अग्रसेताम् अग्रसन्त अ० अग्रसिष्ट अग्रसिषाताम् अग्रसिषत प० जग्रसे जग्रसाते
जग्रसिरे आ० ग्रसिषीष्ट ग्रसिषीयास्ताम् ग्रसिषीरन् श्व० ग्रसिता ग्रसितारौ ग्रसितार: भ० ग्रसिष्यते ग्रसिष्येते ग्रसिष्यन्ते क्रि० अग्रसिष्यत अग्रसिष्येताम् अग्रसिष्यन्त
८५५. ग्लसूङ् (ग्लस्) अदने। . व० ग्लसते ग्लसेते
ग्लसन्ते स० ग्लसेत ग्लसेयाताम्
ग्लसेरन् प० ग्लसताम् ग्लसेताम् ग्लसन्ताम् ह्य० अग्लसत अग्लसेताम् अग्लसन्त अ० अग्लसिष्ट अग्लसिषाताम् अग्लसिषत प० जग्लसे जग्लसाते जग्लसिरे आ० ग्लसिषीष्ट ग्लसिषीयास्ताम् ग्लसिषीरन् श्व० ग्लसिता ग्लसितारौ ग्लसितार: भ० ग्लसिष्यते ग्लसिष्येते ग्लसिष्यन्ते क्रि० अग्लसिष्यत अग्लसिष्येताम अग्लसिष्यन्त
८५६. घसुङ् (घंस्) करणे। व० घंसते घंसेते
घंसन्ते स० घंसेत घंसेयाताम् घंसेरन् प० घंसताम् घंसेताम्
घंसन्ताम् ह्य० अघंसत अघंसेताम् अघसन्त अ० अघंसिष्ट अघंसिषाताम् अघंसिषत प० जघंसे
जघंसाते
जघंसिरे आ० घंसिषीष्ट घंसिषीयास्ताम् घंसिषीरन् श्व० घंसिता घंसितारौ घंसितारः भ० घंसिष्यते घंसिष्येते घंसिष्यन्ते क्रि० अघंसिष्यत अघंसिष्येताम् अघसिष्यन्त
अथ हान्ता अष्टादश सेटच।
८५७ ईहि (ई) चेष्टायाम्। व० ईहते स० ईहेत ईहेयाताम् ईहेरन् प० ईहताम् ईहेताम्
ह्य० ऐहत ऐहेताम् ऐहन्त अ० ऐहिष्ट ऐहिषाताम् ऐहिषत प० ईहाञ्चके ईहाञ्चक्राते ईहाञ्चक्रिरे
ईहाम्बभूव/ईहामास। आ० ईहिषीष्ट ईहिषीयास्ताम् ईहिषीरन् श्व० ईहिता ईहितारौ ईहितार: भ० ईहिष्यते ईहिष्येते ईहिष्यन्ते क्रि० ऐहिष्यत ऐहिष्येताम् ऐहिष्यन्त
८५८. अहुङ् (अंह) गतौ। व० अंहते अंहेते
अंहन्ते स० अंहेत अंहेयाताम् अंहेरन् प० अंहताम् आहेताम्
अंहन्ताम् ह्य० आहत आहेताम्
आंहन्त अ० आंहिष्ट आंहिषाताम् आंहिषत प० आनंहे आनंहाते आनंहिरे आ० अंहिषीष्ट अंहिषीयास्ताम् अंहिषीरन् श्व० अंहिता अंहितारौ अंहितारः भ० अंहिष्यते अंहिष्येते अंहिष्यन्ते क्रि० आंहिष्यत आंहिष्येताम् आंहिष्यन्त
८५९ प्लेहि (प्लेह) गतौ। व० प्लेहते प्लेहेते
प्लेहन्ते स० प्लेहेत प्लेहेयाताम् प्लेहेरन् प० प्लेहताम् प्लेहेताम् ह्य० अप्लेहत अप्लेहेताम् अप्लेहन्त अ० अप्लेहिष्ट अप्लेहिषाताम् अप्लेहिषत प० पिप्लिहे पिप्लिहाते पिप्लिहिस्वे आ० प्लेहिषीष्ट प्लेहिषीयास्ताम् प्लेहिषीरन् श्व० प्लेहिता प्लेहितारौ प्लेहितार: भ० प्लेहिष्यते प्लेहिष्येते प्लेहिष्यन्ते क्रि० अप्लेहिष्यत अप्लेहिष्येताम् अप्लेहिष्यन्त
८६०. गर्हि (गर्ह) कुत्सने। व० गर्हते गते
गर्हन्ते स० गत गयाताम् गर्हेरन् प० गर्हताम् गर्हेताम् गर्हन्ताम् ह्य० अगर्हत अगताम् अगर्हन्त अ० अगर्हिष्ट अगर्हिषाताम् अगर्हिषत
प्लेहन्ताम्
ईहेते
ईहन्ताम्
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
205
बर्हेरन्
बर्हेताम्
वर्हन्ते
प० जगहें जगाते
जगहिरे आ० गर्हिषीष्ट गर्हिषीयास्ताम् गर्हिषीरन् श्व० गर्हिता गर्हितारौ गर्हितार: भ० गर्हिष्यते गर्हिष्येते गहिंष्यन्ते क्रि० अगर्हिष्यत अगर्हिष्येताम् अगर्हिष्यन्त
८६१ गल्हि (गल्ह्) कुत्सने। व० गल्हते गल्हेते
गल्हन्ते स० गल्हेत गल्हेयाताम् गल्हेरन् प० गल्हताम् गल्हेताम् गल्हन्ताम् ह्य० अगल्हत अगल्हेताम् अगल्हन्त अ० अगल्हिष्ट अगल्हिषाताम् अगल्हिषत प० जगल्हे जगल्हाते जगल्हिरे आ० गल्हिषीष्ट गल्हिषीयास्ताम् गल्हिषीरन् श्व० गल्हिता गल्हितारौ गल्हितार: भ० गल्हिष्यते गल्हिष्येते गल्हिष्यन्ते क्रि० अगल्हिष्यत अगल्हिष्येताम अगल्हिष्यन्त
८६२. वर्हि (वह) प्राधान्य। व० वर्हते वर्हेते स० वर्हेत वर्हेयाताम् वर्तेरन् प० वर्हताम् वर्हेताम् वर्हन्ताम् ह्य० अवर्हत अवर्हेताम् अवर्हन्त अ० अवर्हिष्ट अवर्हिषाताम्
अवर्हिषत प० ववर्हे ववर्हाते
ववहिरे आ० वर्हिषीष्ट वर्हिषीयास्ताम् वर्हिषीरन् श्व० वर्हिता वर्हितारौ वहितार: भ० वर्हिष्यते वर्हिष्येते वर्हिष्यन्ते क्रि० अवर्हिष्यत अवर्हिष्येताम् अवर्हिष्यन्त
८६३ वल्हि (वल्ह) प्राधान्ये। व० वल्हते वल्हेते
वल्हन्ते स० वल्हेत वल्हेयाताम्
वल्हेरन् प० वल्हताम्
वल्हेताम् वल्हन्ताम् ह्य० अवल्हत अवल्हेताम् अवल्हन्त अ० अवल्हिष्ट अवल्हिषाताम् अवल्हिषत प० ववल्हे ववल्हाते ववल्हिरे आ० वल्हिषीष्ट वल्हिषीयास्ताम् वल्हिषीरन् श्व० वल्हिता वल्हितारौ वल्हितार:
भ० वल्हिष्यते वल्हिष्येते वल्हिष्यन्ते क्रि० अवल्हिष्यत अवल्हिष्येताम् अवल्हिष्यन्त
८६४. बर्हि (बर्ह) परिभाषणहिंसाच्छादनेषु। व० बर्हते बर्हेते
बर्हन्ते स० बर्हेत बर्हेयाताम् प० बर्हताम्
बर्हन्ताम् ह्य० अबर्हत अबर्हेताम् अबर्हन्त अ० अबर्हिष्ट अबर्हिषाताम् अबर्हिषत प० बबहे बबाते
बबहिरे आ० बर्हिषीष्ट बर्हिषीयास्ताम् बर्हिषीरन् श्व० बर्हिता बर्हितारौ बर्हितारः भ० बर्हिष्यते बर्हिष्येते बर्हिष्यन्ते क्रि० अबर्हिष्यत अबर्हिष्येताम अबर्हिष्यन्त
८६५ बल्हि (बल्ह) परिभाषणहिंसाच्छादनेषु। व० बल्हते बल्हेते
बल्हन्ते स० बल्हेत बल्हेयाताम् बल्हेरन् प० बल्हताम् बल्हेताम् बल्हन्ताम् ह्य० अबल्हत अबल्हेताम्
अबल्हन्त अ० अबल्हिष्ट अबल्हिषाताम् अबल्हिषत प० बबल्हे बबल्हाते बबल्हिरे आ० बल्हिषीष्ट बल्हिषीयास्ताम् बल्हिषीरन् श्व० बल्हिता बल्हितारौ बल्हितारः भ० बल्हिष्यते बल्हिष्येते बल्हिष्यन्ते क्रि० अबल्हिष्यत अबल्हिष्येताम् अबल्हिष्यन्त
८६६ वेहृङ् (वेह्) प्रयत्ने। व० वेहते वेहेते
वेहन्ते स० वेहेत वेहेयाताम् वेहेरन् प० वेहताम् वेहेताम् ह्य० अवेहत अवेहेताम् अवेहन्त अ० अवेहिष्ट अवेहिषाताम् अवेहिषत प० विवेहे विवेहाते विवेहिरे आ० वेहिषीष्ट वेहिषीयास्ताम् व० वेहिता वेहितारौ
वेहितारः भ० वेहिष्यते वेहिष्येते वेहिष्यन्ते क्रि० अवेहिष्यत अवेहिष्येताम् अवेहिष्यन्त
वेहन्ताम्
वेहिषीरन्
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
206
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
जेहितारः
गाहसे
गाहेध्वम्
८६७ जेहङ् (जेह्) प्रयत्ने। व० जेहते जेहेते
जेहन्ते स० जेहेत जेहेयाताम्
जेहेरन् प० जेहताम्
जेहेताम् जेहन्ताम् ह्य० अजेहत अजेहेताम् अजेहन्त अ० अजेहिष्ट अजेहिषाताम् अजेहिषत प० जिजेहे जिजेहाते जिजेहिरे आ० जेहिषीष्ट जेहिषीयास्ताम् जेहिषीरन् श्व० जेहिता जेहितारौ भ० जेहिष्यते जेहिष्येते जेहिष्यन्ते क्रि० अजेहिष्यत अजेहिष्येताम् अजेहिष्यन्त
८६८ वाहृङ् (वाह्) प्रयत्ने। व० वाहते वाहेते
वाहन्ते स० वाहेत वाहेयाताम् वाहेरन् प० वाहताम् वाहेताम् वाहन्ताम् ह्य० अवाहत अवाहेताम् अवाहन्त अ० अवाहिष्ट अवाहिषाताम् अवाहिषत प० ववाहे ववाहाते ववाहिरे आ० वाहिषीष्ट वाहिषीयास्ताम् वाहिषीरन् श्व० वाहिता वाहितारौ वाहितारः भ० वाहिष्यते वाहिष्येते वाहिष्यन्ते क्रि० अवाहिष्यत अवाहिष्येताम् अवाहिष्यन्त
८६९ द्राहङ् (द्राह्) निक्षेपे।
निद्राक्षेपे इत्येके। व० द्राहते
द्राहन्ते स० द्राहेत द्राहेयाताम् द्राहेरन् प० द्राहताम् द्राहेताम्
द्राहन्ताम् ह्य० अद्राहत अद्राहेताम् अद्राहन्त अ० अद्राहिष्ट अद्राहिषाताम् अद्राहिषत प० दद्राहे दद्राहाते दद्राहिरे आ० द्राहिषीष्ट द्राहिषीयास्ताम् द्राहिषीरन् श्व० द्राहिता द्राहितारौ
द्राहितारः भ० द्राहिष्यते द्राहिष्येते द्राहिष्यन्ते क्रि० अद्राहिष्यत अद्राहिष्येताम् अद्राहिष्यन्त
८७०. ऊहि (ऊह) तर्के। तर्क उत्प्रेक्षा। व० ऊहते ऊहेते
ऊहन्ते
स० ऊहेत ऊहेयाताम् ऊहेरन् प० ऊहताम् ऊहेताम्
ऊहन्ताम् ह्य० औहत औहेताम्
औहन्त अ० औहिष्ट औहिषाताम् औहिषत प० ऊहाञ्चके ऊहाञ्चक्राते ऊहाञ्चक्रिरे
ऊहाम्बभूव/ऊहामास। आ० ऊहिषीष्ट ऊहिषीयास्ताम् ऊहिषीरन् श्व० ऊहिता ऊहितारौ ऊहितारः भ० ऊहिष्यते ऊहिष्येते ऊहिष्यन्ते क्रि० औहिष्यत औहिष्येताम् औहिष्यन्त
८७१. गाहौङ् (गाह्) विलोडने।
विलोडनं परिमलनम्। व० गाहते गाहेते
गाहन्ते गाहेथे
गाहध्वे गाहे
गाहावहे गाहामहे स० गाहेत गाहेयाताम् गाहेरन्
गाहेथाः गाहेयाथाम् गाहेय गाहेवहि
गाहेमहि प० गाहताम्
गाहन्ताम् गाहस्व गाहेथाम् गाहध्वम्
गाहै गाहावहै गाहामहै ह्य० अगाहत अगाहेताम् अगाहन्त
अगाहथाः अगाहथाम् अगाहध्वम्
अगाहे अगाहावहि अगाहामहि अ० अगाहिष्ट अगाहिषाताम् अगाहिषत
अगाहिष्ठाः अगाहिषाथाम् अगाहिड्डूवम् ध्वम्
अगाहिषि अगाहिष्वहि अगाहिष्महि अगाढ
अघाक्षाताम् अघाक्षत अगाढा: अघाक्षाथाम् अघाग्ड्ढ्व म्
अघावम् अघाक्षि अघावहि अघामहि प० जगाहे जगाहाते जगाहिरे
जगाहिषे जगाहाथे जगाहिध्व/दवे
जगाहे जगाहिवहे जगाहिमहे आ० गाहिषीष्ट गाहिषीयास्ताम् गाहिषीरन्
गाहेताम्
द्राहेते
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
207
गाहिषीष्ठाः गाहिषीय
गाहिषीयास्थाम्। गाहिषीध्वम गाहिषीवहि गाहिषीमहि
तथा
अग्लहे
गाढा
ग्लहै ग्लहावहै ग्लहामहै | ह्य० अग्लहत अग्लहेताम् अग्लहन्त अग्लहथा: अग्लहथाम् अग्लहध्वम्
अग्लहावहि अग्लहामहि अ० अग्लहिष्ट अग्लहिषाताम् अग्लहिषत
अग्लहिष्ठाः अग्लहिषाथाम अग्लहिड्डूवम्/ध्वम् अग्लहिषि अग्लहिष्वहि अग्लहिष्महि
तथा अग्लाढ अप्लक्षाताम् अध्लक्षत अग्लाढाः अप्लक्षाथाम् अघ्लग्दूवम्
अलढ्वम् अघ्लक्षि अलक्ष्वहि अलक्ष्महि प० जग्लहे जग्लहाते
जग्लहिरे जग्लहिषे जग्लहाथे जग्लहिध्वे/ढ्वे
जग्लहे जग्लहिवहे जग्लहिमहे आ० ग्लहिषीष्ट ग्लहिषीयास्ताम् ग्लहिषीरन्
ग्लहिषीष्ठाः ग्लहिषीयास्थाम् ग्लहिषीध्वम् ग्लहिषीय ग्लहिषीवहि ग्लहिषीमहि
तथा प्लक्षीष्ट घ्लक्षीयास्ताम् घ्लक्षीरन् घ्लक्षीष्ठाः घ्लक्षीयास्थाम् घ्लक्षीध्वम्
प्लक्षीय घ्लक्षीवहि घ्लक्षीमहि श्व० ग्लहिता ग्लहितारौ ग्लहितार:
ग्लहितासे ग्लहितासाथे ग्लहिताध्वे ग्लहिताहे ग्लहितास्वहे ग्लहितास्महे ग्लाढा ग्लाढारौ
ग्लाढार: ग्लाढासे ग्लाढासाथे ग्लाढाध्वे
ग्लाढहे ग्लाढास्वहे ग्लाढास्महे भ० ग्लहिष्यते ग्लहिष्येते ग्लहिष्यन्ते
ग्लहिष्यसे ग्लहिष्येथे ग्लहिष्यध्वे ग्लहिष्ये ग्लहिष्यावहे ग्लहिष्यामहे
तथा लक्ष्यते प्लक्ष्येते प्लक्ष्यन्ते
लक्ष्येथे प्लक्ष्यध्वे लक्ष्ये लक्ष्यावहे लक्ष्यामहे | क्रि० अग्लहिष्यत अग्लहिष्येताम् अग्लहिष्यन्त
घाक्षीष्ट घाक्षीयास्ताम् घाक्षीरन् घाक्षीष्ठाः घाक्षीयास्थाम् घाक्षीध्वम्
घाक्षीय घाक्षीवहि घाक्षीमहि श्व० गाहिता गाहितारौ गाहितार:
गाहितासे गाहितासाथे गाहिताध्वे गाहिताहे गाहितास्वहे गाहितास्महे
तथा गाढारौ
गाढार: गाढासे
गाढासाथे गाढाध्वे गाढहे
गाढास्वहे गाढास्महे भ० गाहिष्यते गाहिष्येते गाहिष्यन्ते
गाहिष्यसे गाहिष्येथे गाहिष्यध्वे गाहिष्ये गाहिष्यावहे गाहिष्यामहे
तथा घाक्ष्यते घाक्ष्येते
घाक्ष्यन्ते घाक्ष्यसे घाक्ष्येथे
घाक्ष्ये घाझ्यावहे घाक्ष्यामहे क्रि० अगाहिष्यत अगाहिष्येताम् अगाहिष्यन्त अगाहिष्यथाः अगाहिष्येथाम्
अगाहिष्यध्वम् अगाहिष्ये अगाहिष्यावहि अगाहिष्यामहि
तथा अघाक्ष्यत अघाक्ष्येताम् अघाक्ष्यन्त अघाक्ष्यथाः अघाक्ष्येथाम् अघाक्ष्यध्वम् अघाक्ष्य अघाक्ष्यावहि अघाक्ष्यामहि
८७२. ग्लहौङ् (ग्ल) ग्रहणे। व० ग्लहते ग्लहेते
ग्लहन्ते ग्लहसे ग्लहेथे
ग्लहवे ग्लहे ग्लहावहे ग्लहामहे स० ग्लहेत ग्लहेयाताम् ग्लहेरन्
ग्लहेथाः ग्लहेयाथाम् ग्लहेध्वम्
ग्लहेय ग्लहेवहि ग्लहेमहि प० ग्लहताम् ग्लहेताम् ग्लहन्ताम्
ग्लहस्व ग्लहेथाम् ग्लहध्वम्
घाक्ष्यध्वे
प्लक्ष्यसे
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
208
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
दुधुक्षिरे
अग्लहिष्यथाः अग्लहिष्येथाम् अग्लहिष्यध्वम् अग्लहिष्ये अग्लहिष्यावहि अग्लहिष्यामहि
तथा अलक्ष्यत अलक्ष्येताम् अलक्ष्यन्त अघ्लक्ष्यथाः अघ्लक्ष्येथाम् अलक्ष्यध्वम् अलक्ष्ये अलक्ष्यावहि अघ्लक्ष्यामहि
८७३. बहुङ् (बंह) वृद्धौ। व० बंहते बंहेते
बंहन्ते स० बंहेत बहेयाताम् बंहेरन् प० बंहताम् बंहेताम्
बंहन्ताम् हा० अबंहत अबहेताम् अबंहन्त अ० अबंहिष्ट अबंहिषाताम् अबंहिषत प० बबहे बबंहाते
बबंहिरे आ० बंहिषीष्ट बंहिषीयास्ताम्
बंहिषीरन् श्व० बंहिता बंहितारौ बंहितार: भ० 'बंहिष्यते बंहिष्येते बंहिष्यन्ते क्रि० अबंहिष्यत अबंहिष्येताम् अबंहिष्यन्त
८७४. महुङ् (मंह) वृद्धौ। व० मंहते मंहते
महन्ते स० मंहेत
महेयाताम् प० मंहताम्
महेताम्
मंहन्ताम् ह्य० अमंहत अमहेताम् अमहन्त अ० अमंहिष्ट अमंहिषाताम् अमंहिषत प० ममहे ममहाते
ममंहिरे आ० मंहिषीष्ट मंहिषीयास्ताम् मंहिषीरन् श्व० मंहिता मंहितारौ मंहितारः भ० मंहिष्यते मंहिष्येते मंहिष्यन्ते क्रि० अमंहिष्यत अमंहिष्येताम् अमंहिष्यन्त अथ क्षान्ता अष्टौ सेटच। एतेषां च षान्तेषु पाठो युक्तो,
वैचित्र्यार्थं त्विह कृतः।। ८७५. दक्षि (दक्ष) शैघ्येच।
शैघ्यं शीघ्रता। चकारावृद्धौ। व० दक्षते दक्षेते स० दक्षेत दक्षेयाताम् दक्षेरन् प० दक्षताम् दक्षेताम्
दक्षन्ताम् ह्य० अदक्षत अदक्षेताम् अदक्षन्त
अ० अदक्षिष्ट अदक्षिषाताम् अदक्षिषत प० ददक्षे ददक्षाते
ददक्षिरे आ० दक्षिषीष्ट दक्षिषीयास्ताम् दक्षिषीरन् श्व० दक्षिता दक्षितारौ दक्षितारः भ० दक्षिष्यते दक्षिष्येते दक्षिष्यन्ते क्रि० अदक्षिष्यत अदक्षिष्येताम् अदक्षिष्यन्त
८७६. धुक्षि (धक्ष) संदीपनक्लेशनजीवनेषु। व० धुक्षते धुक्षेते
धुक्षन्ते स० धुक्षेत धुक्षेयाताम् धुक्षेरन् प० धुक्षताम् धुक्षेताम् धुक्षन्ताम् ह्य० अधुक्षत अधुक्षेताम् अधुक्षन्त अ० अधुक्षिष्ट अधुक्षिषाताम् अधुक्षिषत प० दुधुक्षे दुधुक्षाते आ० धुक्षिषीष्ट धुक्षिषीयास्ताम् धुक्षिषीरन् श्व० धुक्षिता धुक्षितारौ धुक्षितारः भ० धुक्षिष्यते धुक्षिष्येते
धुक्षिष्यन्ते क्रि० अधुक्षिष्यत अधुक्षिष्येताम् अधुक्षिष्यन्त
८७७. धिक्षि (धिष) संदीपनक्लेशनजीवनेषु। व० धिक्षते धिक्षेते
धिक्षन्ते स० धिक्षेत धिक्षेयाताम् धिक्षरन् प० धिक्षताम् धिक्षेताम्
धिक्षन्ताम् ह्य० अधिक्षत अधिक्षेताम् अधिक्षन्त अ० अधिक्षिष्ट अधिक्षिषाताम् अधिक्षिषत प० दिधिक्षे दिधिक्षाते दिधिक्षिरे आ० धिक्षिषीष्ट धिक्षिषीयास्ताम् धिक्षिषीरन् श्व० धिक्षिता धिक्षितारौ धिक्षितारः भ० धिक्षिष्यते धिक्षिष्येते धिक्षिष्यन्ते क्रि० अधिक्षिष्यत अधिक्षिष्येताम् अधिक्षिष्यन्त
८७८. वृक्षि (वृक्ष) वरणे। व० वृक्षते वृक्षेते स० वृक्षेत
वृक्षेयाताम् प० वृक्षताम् वृक्षेताम् वृक्षन्ताम् ह्य० अवृक्षत अवृक्षेताम् अवृक्षन्त अ० अवृक्षिष्ट अवृक्षिषाताम् अवृक्षिषत प० ववृक्षे ववृक्षाते ववृक्षिरे
महेरन्
वृक्षन्ते वृक्षरन्
दक्षन्ते
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
209
ईक्षेते
ईक्षन्ते
ईक्षेरन्
ऐक्षेताम्
आ० वृक्षिषीष्ट वृक्षिषीयास्ताम् वृक्षिषीरन् ह्य० अदीक्षत अदीक्षेताम् अदीक्षन्त श्व० वृक्षिता
वृक्षितारौ
वृक्षितारः अ० अदीक्षिष्ट अदीक्षिषाताम् अदीक्षिषत भ० वृक्षिष्यते वृक्षिष्येते वृक्षिष्यन्ते प० दिदीक्षे दिदीक्षाते दिदीक्षिरे क्रि० अवृक्षिष्यत अवृक्षिष्येताम् अवृक्षिष्यन्त आ० दीक्षिषीष्ट दीक्षिषीयास्ताम् दीक्षिषीरन्
८७९. शिक्षि (शिक्ष) विद्योपादने। श्व० दीक्षिता दीक्षितारौ दीक्षितारः व० शिक्षते शिक्षेते
शिक्षन्ते
भ० दीक्षिष्यते दीक्षिष्येते दीक्षिष्यन्ते स० शिक्षेत शिक्षेयाताम् शिक्षेरन् क्रि० अदीक्षिष्यत अदीक्षिष्येताम् अदीक्षिष्यन्त प० शिक्षताम् शिक्षेताम् शिक्षन्ताम्
८८२. ईक्षि (ईक्ष) दर्शने। ह्य० अशिक्षत अशिक्षेताम् अशिक्षन्त व० ईक्षते अ० अशिक्षिष्ट अशिक्षिषाताम् अशिक्षिषत स० ईक्षेत ईक्षेयाताम् प० शिशिक्षे शिशिक्षाते शिशिक्षिरे प० ईक्षताम् ईक्षेताम् ईक्षन्ताम् आ० शिक्षिषीष्ट शिक्षिषीयास्ताम् शिक्षिषीरन
ह्य० ऐक्षत
ऐक्षन्त श्व० शिक्षिता शिक्षितारौ शिक्षितारः
अ० ऐक्षिष्ट ऐक्षिषाताम् ऐक्षिषत
प० ईक्षाञ्चके ईक्षाञ्चक्राते ईक्षाञ्चक्रिरे भ० शिक्षिष्यते शिक्षिष्येते शिक्षिष्यन्ते
आ० ईक्षिषीष्ट ईक्षिषीयास्ताम् ईक्षिषीरन् क्रि० अशिक्षिष्यत अशिक्षिष्येताम् अशिक्षिष्यन्त
श्व० ईक्षिता ईक्षितारौ ईक्षितारः ८८०. भिक्षि (भिक्ष) याञ्चायाम्।
भ० ईक्षिष्यते ईक्षिष्येते ईक्षिष्यन्ते व० भिक्षते भिक्षेते
क्रि० ऐक्षिष्यत ऐक्षिष्येताम् ऐक्षिष्यन्त स० भिक्षेत भिख्याताम्
॥इति आत्मनेपदिनः॥ प० भिक्षताम् भिक्षेताम् भिक्षन्ताम्
___ अथोभयपदिनः ह्य० अभिक्षत अभिक्षेताम् अभिक्षन्त
भ्लक्षीपर्यन्ता वर्णक्रमेण। अ० अभिक्षिष्ट अभिक्षिषाताम् अभिक्षिषत
८८३. श्रिगू (श्रि) सेवायाम्। प० बिभिक्षे बिभिक्षाते बिभिक्षिरे
गित्त्वात्फलवति कर्तरि "ईगितः" इत्यात्मनेपदेऽन्यत्र वा आ० भिक्षिषीष्ट भिक्षिषीयास्ताम् भिक्षिषीरन्
"शेषात्परस्मै" इति परस्मैपदमेवं सर्वत्र भावनीयम्। श्व० भिक्षिता भिक्षितारौ भिक्षितारः
व० श्रयति श्रयत:
श्रयन्ति भ० भिक्षिष्यते भिक्षिष्येते भिक्षिष्यन्ते
श्रयसि श्रयथ:
श्रयथ श्रयामि श्रयाव:
श्रयामः क्रि० अभिक्षिष्यत अभिक्षिष्येताम् अभिक्षिष्यन्त
स० श्रयेत् श्रयेताम् श्रयेयुः ८८१. दीक्षि (दीक्ष) मौण्ड्येज्योपनयननियमव्रतादेशेषु।
श्रयः श्रयेतम् श्रयेत मौण्ड्यं वपनम्। इज्या यजनम्। उपनयनं मौजीबन्धः।
श्रयेयम् श्रयेव
श्रयेम नियमः संयमः। व्रतादेशः संस्कारादेशः।
| प० श्रयतु/श्रयतात श्रयताम्
श्रयन्तु व० दीक्षते दीक्षेते
दीक्षन्ते श्रय/श्रयतात् श्रयतम्
श्रयत स० दीक्षेत दीक्षेयाताम् दीक्षेरन्
श्रयानि श्रयाव
श्रयाम प० दीक्षताम् दीक्षेताम् दीक्षन्ताम्
| ह्य० अश्रयत् अश्रयताम् अश्रयन्
भिक्षन्ते
भिक्षेरन्
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
210
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
श्रीयासुः
अश्रयतम् अश्रयाव अशिश्रियताम् अशिश्रियतम् अशिश्रियाव शिश्रियतुः शिश्रियिथुः शिश्रियिव श्रीयास्ताम् श्रीयास्तम् श्रीयास्व श्रयितारौ श्रयितास्थः श्रयितास्व: श्रयिष्यतः श्रयिष्यथ: श्रयिष्याव: अश्रयिष्यताम् अश्रयिष्यतम् अश्रयिष्याव श्रयेते श्रयेथे श्रयावहे श्रयेयाताम् श्रयेयाथाम् श्रयेवहि
अश्रयः
अश्रयम् अ० अशिश्रियत्
अशिश्रियः
अशिश्रियम् प० शिश्राय
शिश्रियिथ
शिश्रिय आ० श्रीयात्
श्रीयाः
श्रीयासम् श्व० श्रयिता
श्रयितासि
श्रयितास्म भ० श्रयिष्यति
श्रयिष्यसि
श्रयिष्यामि क्रि० अश्रयिष्यत्
अश्रयिष्यः
अश्रयिष्यम् व० श्रयते
श्रयसे
श्रये स० श्रयेत
श्रयेथाः
श्रयेय प० श्रयताम्
श्रयस्व
श्रयै ह्य० अश्रयत
अश्रयथाः
अश्रये अ० अशिश्रियत
अशिश्रियथाः
अशिश्रिये प० शिश्रिये
नयतः
अश्रयत
शिश्रिषे शिश्रियाथे शिश्रियिढवे/ध्वे अश्रयाम
शिश्रिये शिश्रियिवहे शिश्रियिमहे अशिश्रियन् आ० श्रयिषीष्ट श्रयिषीयास्ताम्
श्रयिषीरन् अशिश्रियत
श्रयिषीष्ठाः श्रयिषीयास्थाम् श्रयिषीध्वम अशिश्रियाम
श्रयिषीय श्रयिषीवहि श्रयिषीमहि शिश्रियुः श्व० श्रयिता श्रयितारौ श्रयितार: शिश्रिय
श्रयितासे श्रयितासाथे श्रयिताध्वे शिश्रियिम
श्रयिताहे श्रयितास्वहे श्रयितास्महे भ० श्रयिष्यते श्रयिष्येते
श्रयिष्यन्ते श्रीयास्त
श्रयिष्यसे श्रयिष्येथे श्रयिष्यध्वे श्रीयास्म
श्रयिष्ये श्रयिष्यावहे श्रयिष्यामहे श्रयितार: क्रि० अश्रयिष्यत अश्रयिष्येताम् अश्रयिष्यन्त श्रयितास्थ अश्रयिष्यथाः
अश्रयिष्यध्वम् श्रयितास्मः
अश्रयिष्ये अश्रयिष्यावहि अश्रयिष्यामहि श्रयिष्यन्ति
८८४. णींग (नी) प्रापणे। श्रयिष्यथ व० नयति
नयन्ति श्रयिष्यामः नयसि नयथः
नयथ अश्रयिष्यन् नयामि नयाव:
नयामः अश्रयिष्यत स० नयेत्
नयेताम् अश्रयिष्याम नये: नयेतम्
नयेत श्रयन्ते नयेयम् नयेव
नयेम श्रयध्वे प० नयतु/नयतात् नयताम्
नयन्तु श्रयामहे
नय/नयतात् नयम्
नयत श्रयेरन् नयानि नयाव
नयाम श्रयेध्वम् अनयत् अनयताम
अनयन श्रयेमहि
अनयः अनयतम्
अनयत श्रयन्ताम् अनयम् अनयाव
अनयाम श्रयध्वम् अ० अनैषीत् अनैष्टाम श्रयामहै
अनैषीः अनैष्टम् अनैष्ट अश्रयन्त अनैषम् अनैष्व
अनैष्म अश्रयध्वम् निनाय
निन्युः अश्रयामहि
निनयिथ निनेथ/निन्यथुः
निन्य अशिश्रियन्त निनाय/निनय निन्यिव
निन्यिम अशिश्रिय/ध्वम् | आ० नीयात् नीयास्ताम् अशिश्रियामहि
नीया: नीयास्तम् नीयास्त शिश्रियिरे नीयासम् नीयास्व
नीयास्म
नयेयुः
ह्य०
श्रयेताम् श्रयेथाम्
अनैषुः
श्रयावहै अश्रयेताम्
अश्रयेथाम्
प०
निन्यतुः
अश्रयावहि अशिश्रियेताम् अशिश्रियेथाम् अशिश्रियावहि शिश्रियाते
नीयासुः
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
211
नेतारः
नेतास्थ नेतास्मः नेष्यन्ति
नेष्यथ नेष्यामः
नेतारौ नेतास्थ: नेतास्वः नेष्यतः नेष्यथ: नेष्याव: अनेष्यताम् अनेष्यतम् अनेष्याव नयेते नयेथे नयावहे नयेयाताम् नयेयाथाम् नयेवहि नयेताम्
अनेष्यन् अनेष्यत अनेष्याम
० नेता
नेतासि
नेतास्मि भ० नेष्यति
नेष्यसि
नेष्यामि क्रि० अनेष्यत्
अनेष्यः
अनेष्यम् व० नयते
नयसे
नये स० नयेत
नयेथाः
नयेय प० नयताम्
नयस्व
नयै ह्य० अनयत
अनयथाः
नयन्ते
जहुः
हर्तारौ
नयेथाम्
हरेरन्
नयध्वे नयामहे नयेरन् नयेध्वम् नयेमहि नयन्ताम् नयध्वम् नयामहै अनयन्त अनयध्वम् अनयामहि अनेषत अनेदवम्/ड्डूवम् अनेष्महि निन्यिरे निन्यिढवे/ध्वे निन्यिमहे
क्रि० अनेष्यत अनेष्येताम् अनेष्यन्त
अनेष्यथाः अनेष्येथाम् अनेष्यध्वम् अनेष्ये
अनेष्यावहि अनेष्यामहि अथ ऋदन्ताश्चत्वारोऽनिटश्च।
८८५. हंग् (ह) हरणे। व० हरति हरतः
हरन्ति स० हरेत् हरेताम् हरेयुः प० हरतु/हरतात् हरताम्
हरन्तु ह्य० अहरत् अहरताम्
अहरन् अ० अहार्षीत् अहार्टाम् अहार्षुः प० जहार जहृतुः आ० ह्रियात् हियास्ताम् ह्रियासुः श्व० हर्ता
हर्तारः भ० हरिष्यति हरिष्यतः हरिष्यन्ति क्रि० अहरिष्यत् अहरिष्यताम् अहरिष्यन्
आत्मनेपद व० हरते हरेते
हरन्ते स० हरेत हरेयाताम् हरताम्
हरन्ताम् ह्य० अहरत अहरेताम्
अहरन्त अ० अहृत अहषाताम् अहषत प० जहे जहाते
जहिरे आ० हृषीष्ट हषीयास्ताम् हषीरन् श्व० हर्ता हर्तारौ
हर्तारः भ० हरिष्यते हरिष्येते
हरिष्यन्ते क्रि० अहरिष्यत अहरिष्येताम् अहरिष्यन्त
८८६. भृग् (भ) भरणे। व० भरति भरत:
भरन्ति स० भरेत् भरेताम्
भरेयुः प० भरतु/भरतात् भरताम्
भरन्तु ह्य० अभरत् अभरताम् अभरन् अ० अभार्षीत् अभाष्र्टाम् अभार्षः प० बभार
बभ्रुः आ० भ्रियात् भ्रियास्ताम् श्व० भर्ता
भर्तारौ
भर्तारः भ० भरिष्यति भरिष्यतः
भरिष्यन्ति
हरेताम्
अनये
नयावहै अनयेताम् अनयेथाम् अनयावहि अनेषाताम् अनेषाथाम् अनेष्वहि निन्याते निन्याथे निन्यिवहे नेषीयास्ताम् नेषीयास्थाम् नेषीवहि नेतारौ नेतासाथे नेतास्वहे नेष्येते नेष्येथे नेष्यावहे
अ० अनेष्ट
अनेष्ठाः
अनेषि प० निन्ये
निन्यिषे
निन्ये
आ० नेषीष्ट
नेषीरन्
नेषीष्ठाः नेषीय
श्व० नेता
नेतासे
नेषीध्वम् नेषीमहि नेतारः नेताध्वे नेतास्महे नेष्यन्ते नेष्यध्वे नेष्यामहे
नेताहे
बभ्रतुः
भ० नेष्यते
नेष्यसे
भ्रियासुः
नेष्ये
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
212
क्रि० अभरिष्यत्
भरते
स० भरेत
공용명용 공용공쑁굉
अ० अभृत बभ्रे
आ०
भृषीष्ट भर्ता
भरिष्यते
• क्रि० अभरिष्यत
श्व०
व०
धरति
०धरेत्
प०
ह्य० अधरत् अ० अधार्षीत्
प० दधार
आ० ध्रियात्
go धर्ता
공용명용 공용왱공굉
भरताम्
अभरत
भ०
धरिष्यति
क्रि० अधरिष्यत्
स०
ह्य०
प०
Jo
धरतु /धरतात्
धरते
धरेत
व०
धरताम्
अधरत
आ० धृषीष्ट
धर्ता
अधृत
दध्रे
भ० धरिष्यते
क्रि० अधरिष्यत
करोति
अभरिष्यताम्
आत्मनेपद
भ
भरेयाताम्
भरेताम्
अभरेताम्
अभृषाताम्
बभ्राते
भृषीयास्ताम्
भर्तारौ
भरिष्येते
अभरिष्येताम्
८८७. धृग् (धृ) धारणे ।
धरत:
धरेताम्
धरताम्
अधरताम्
अधाम्
दध्रतुः
ध्रियास्ताम्
धर्तारौ
धरिष्यतः
अधरिष्यताम्
आत्मनेपद
धरेते
धरेयाताम्
धरेताम्
अध
अधृषाताम्
दधाते
अभरिष्यन्
भरन्ते
भरेरन्
भरन्ताम्
अभरन्त
अभूषत
बभिरे
भृषीरन्
भर्तारः
भरिष्यन्ते
अभरिष्यन्त
धरन्ति
धरेयुः
धरन्तु
अधरन्
अधार्षुः
दध्रुः
ध्रियासुः
धर्तारः
धरिष्यन्ति
अधरिष्यन्
धरन्ते
धरेरन्
धरन्ताम्
अधरन्त
अधृषत
दधिरे
धृषीयास्ताम्
धृषीरन्
धर्तारौ
धर्तारः
धरिष्येते धरिष्यन्ते अधरिष्येताम् अधरिष्यन्त
८८८. इकृंग् (कृ) करणे ।
कुरुत:
कुर्वन्ति
कुर्यात्
कुर्याताम्
करोतु /कुरुतात् कुरुताम्
अकरोत्
अकुरुताम्
अकाम्
प०
ह्य०
अ० अकार्षीत्
प० चकार
आ० क्रियात्
श्व० कर्ता
करु करिष्यति
क्रि० अकरिष्यत्
व० कुरुते
स० कुर्वीत
प० कुरुताम्
ह्य० अकुरुत
अ० अकृत
प०
चक्रे
आ० कृषीष्ट
go कर्ता
भ० करिष्यते
क्रि० अकरिष्यत
व०
स०
प०
ह्य०
अहिक्कत्
अ० अहिक्कीत्
प० जिहिक्क
आ० हिक्क्यात्.
श्व० हिक्किता
भ० हिक्किष्यति
क्रि० अहिक्किष्यत्
व० हिक्कते
स० हिक्केत
प० हिक्कताम्
चक्रतुः
क्रियास्ताम्
कर्तारौ
करिष्यतः
अकरिष्यताम्
आत्मनेपद
कुर्वाते
कुर्वीयाताम्
कुर्वाताम्
अकुर्वाताम्
अकृषाताम्
चक्राते
कृषीयास्ताम्
कर्तारौ
करिष्येते
अकरिष्येताम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कुर्युः
कुर्वन्तु
अकुर्वन्
अकार्षुः
अथ कान्तः ।
८८९. हिक्की (हिक्क) अव्यक्ते शब्दे ।
हिक्कति
हिक्कतः
हिक्कन्ति
हिक्केत्
हिक्केताम्
हिक्केयुः
हिक्कतु / हिक्कतात् हिक्कताम्
हिक्कन्तु
हक्का अहिक्कष्टाम्
जिहिक्कतुः
हिक्क्यास्ताम्
हिक्कतारौ
हिक्कष्यतः
अहिक्ष्यिताम्
आत्मनेपद
हिक्केते
हिक्केयाताम्
हिक्ताम्
चक्रुः
क्रियासुः
कर्तारः
करिष्यन्ति
अकरिष्यन्
कुर्वते
कुर्वीरन्
कुर्वताम्
अकुर्वत
अकृषत
चक्रिरे
कृषीरन्
कर्तारः
करिष्यन्ते
अकरिष्यन्त
अहिक्कन्
अहिक्किषुः
जहिक्कु :
हिक्क्यासुः
हिक्कितार:
हिक्किष्यन्ति
अहिक्किष्यन्
हिक्कन्ते
हिक्केक्कन्
हिक्कन्ताम्
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
ह्य० अहिक्कत
अ०
अहिक्किष्ट
प० जिहिक्के
आ० हिक्किषीष्ट
श्व० हिक्किता
भ० हिक्किष्यते क्रि० अहिक्किष्यत अहिक्किष्येताम् अहिक्किष्यन्त अथ चान्तास्त्रयस्तत्राद्यौ सेटावन्त्योऽनिट् गतिपूजयोरयं परस्मैपदिषु पठितः । स चास्य पाठो गतौ फलवति कर्तरि परस्मैपदार्थः ।
८९०. अञ्चर् (अञ्च) गतौ च । चकारादव्यक्ते शब्दे । अञ्चति
व०
स० अञ्चेत्
प०
ह्य० आञ्चत्
अ० आञ्चीत्
प० आनञ्च
आ० अच्यात्
go
अञ्चिता
भ० अञ्चिष्यति
क्रि० आञ्चिष्यत्
अञ्चत:
अचेताम्
अञ्चतु/अञ्चतात् अञ्चताम्
आञ्चताम्
आञ्चिष्टाम्
व० अञ्चते
स० अञ्चेत
प०
अञ्चताम्
ह्य० आञ्चत अ० आञ्चिष्ट
प०
आनचे
आ० अञ्चिषीष्ट
श्र० अञ्चिता
अ० अञ्चिष्यते
क्रि० आञ्चिष्यत
अहिक्केताम्
अहिक्किषाताम्
जिहिक्काते
व०
याचति
स० याचेत्
प०
हिक्कषीयास्ताम् हिक्किषीक्कन्
हिक्कितार:
हिक्किष्यन्ते
हिक्कितारौ
हिक्किष्येते
आनञ्चतुः
अच्यास्ताम्
अञ्चितारौ
अञ्चिष्यतः
आञ्चिष्यताम्
आत्मनेपद
अञ्चेते
अञ्चेयाताम्
अञ्चेताम्
आञ्चेताम्
आञ्चिषाताम्
आनञ्चाते
अञ्चिषीयास्ताम्
अञ्चितारौ
अञ्चिष्येते
आञ्चिष्येताम्
अहिक्कन्त अहिक्किषत
जिहिक्करे
याचतः
याचेताम्
याचतु/याचतात् याचताम्
अञ्चन्ति
अञ्चेयुः
अञ्चन्तु
आञ्चन्
आञ्चिषुः
आनञ्चुः
अच्यासुः
अञ्चितार:
अञ्चिष्यन्ति
आञ्चिष्यन्
८९१. डुयावृग् (याच्) याच्ञायाम् ।
याचन्ति
याचेयुः
याचन्तु
अञ्चन्ते
अञ्चेञ्चन्
अञ्चन्ताम्
आञ्चन्त
आञ्चिषत्
आनञ्चरे
अञ्चिषीञ्चन्
अचितार:
अञ्चिष्यन्ते
आञ्चिष्यन्त
ह्य० अयाचत्
अ० अयाचीत्
प० ययाच
आ० याच्यात्
श्व० याचिता
भ० याचिष्यति
क्रि० अयाचिष्यत्
व० याचते
स० याचेत
प० याचताम्
ह्य० अयाचत
अ० अयाचिष्ट
प०
ययाचे
आ० याचिषीष्ट
श्व० याचिता
भ० याचिष्यते
क्रि० अयाचिष्यत
पचति
० पचेत्
공용명의 공용꽹공성명
प०
ह्य० अपचत्
प०
अ० अपाक्षीत्
पपाच
पचतु/पचतात्
भ०
आ० पच्यात्
पक्ता
पक्ष्यति
क्रि० अपक्ष्यत्
व०
पचते
स० पचेत
प०
ह्य०
अ०
प०
पचताम्
अपचत
अपक्त
पेचे
याचिषीयास्ताम्
याचितारौ
याचिष्येते
अयाचित ८९२. डुपचष् (पच्) पाके ।
अयाचताम्
अयाचिष्टाम्
ययाचतुः
याच्यास्ताम्
याचितारौ
याचिष्यतः
अयाचिष्यताम्
आत्मनेपद
याचेते
याचेयाताम्
याचेताम्
अयाचेताम्
अयाचिषाताम्
ययाचाते
पचतः
पचेताम्
पचताम्
अपचताम्
अपाक्ताम्
पेचतुः
पच्यास्ताम्
पक्तारौ
पक्ष्यतः
अपक्ष्यताम्
आत्मनेपद
पचेते
पचेयाताम्
पचेताम्
अपचेताम्
अयाचन्
अयाचिषुः
ययाचुः
याच्यासुः
याचितारः
याचिष्यन्ति
अयाचिष्यन्
अपक्षाताम्
पेचाते
याचन्ते
याचेचन्
याचन्ताम्
अयाचन्त
अयाचित्
ययाचिरे
याचिषीरन्
याचितार:
याचिष्यन्ते
अयाचिष्यन्त
पचन्ति
पचेयुः
पचन्तु
अपचन्
अपाक्षुः
पेचुः
पच्यासुः
पक्तार:
पक्ष्यन्ति
अपक्ष्यन्
पचन्ते
पचेरन्
पचन्ताम्
अपचन्त
213
अपक्षत्
पेचिरे
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
214
आ० पक्षीष्ट
श्र० पक्ता
भ०
क्रि० अपक्ष्यत
व०
पक्ष्यते
प०
प०
राजति
राजसि
राजामि
० राजेत्
राजे:
राजेयम्
राजतु / राजतात्
राज/राजतात्
राजानि
ह्य० अराजत्
अराज
अपक्ष्यन्त
अथ जान्ताश्चत्वारस्तत्राद्यौ सेटावन्त्यौ त्वनिटौ ।
अराजम्
अ० अराजीत्
अराजी:
अराजिषम्
रराज
रेजिथ / रराजिथ
रराज
आ० राज्यात्
राज्याः
८९३. राजृग् (राज्) दीप्तौ ।
राजतः
राजथः
राजाव:
राजेताम्
राजेतम्
राजेव
राज्यासम्
श्र० राजिता
पक्षीयास्ताम्
पक्तारौ
पक्ष्येते
अपक्ष्येताम्
राजितासि
राजितास्मि
भ० राजिष्यति
राजिष्यसि
राजिष्यामि
क्रि० अराजिष्यत्
अराजिष्यः
अराजिष्यम्
राजताम्
राजतम्
राजाव
अराजताम्
अराजतम्
अराजाव
अराजिष्टाम्
अराजिष्टम्
अराजिष्व
रेजतुः/रराजतुः
रेजथुः /रराजथुः
राजिव / रेजिव
राज्यास्ताम्
राज्यास्तम्
पक्षीरन्
पक्तारः
पक्ष्यन्ते
राज्यास्व
राजितारौ
राजितास्थः
राजितास्वः
राजिष्यतः
राजिष्यथः
राजिष्यावः
राजन्ति
राजथ
राजाम:
राजेयुः
राजेत
राजेम
राजन्तु
राजत
राजाम
अराजन्
अराजत
अराजाम
अराजिषुः
अराजिष्ट
अराजिष्म
रेजुः/रराजुः
रराज/रेज
राजिम / रेजिम
राज्यासुः
राज्यास्त
राज्यास्म
राजितार:
राजितास्थ
राजितास्मः
राजिष्यन्ति
राजिष्यथ
राजिष्यामः
अराजिष्यताम् अराजिष्यन् अराजिष्यतम् अराजिष्यत
अराजिष्याव
अराजिष्याम
राजते
राजसे
राजे
स० राजेत
व०
प०
ह्य०
अ०
राजेथा:
राजेय
राजताम्
राजस्व
राजै
अराजत
अराजथा
अराजे
अराजिष्ट
अराजिष्ठाः
अराजिषि
प० रेजे
रेजिषे
रेजे
राजे
रराजिषे
रराजे
आ० राजिषीष्ट
राजिषीष्ठाः
राजिषीय
श्व० राजिता
राजितासे
राजिताहे
भ० राजिष्यते
राजिष्यसे
राजिष्ये
क्रि० अराजिष्यत
अराजिष्यथाः
अराजिष्ये
आत्मनेपद
राजेते
राजेथे
राजावहे
राजेयाताम्
राजेयाथाम्
राजेवहि
म्
राजेथाम्
राजावहै
अराजेताम्
अराजेथाम्
अराजावहि
अराजिषाताम्
अराजिषाथाम्
अराजिष्वहि
रेजाते
रेजाथे
रेजिवहे
तथा
रराजाते
राजाथे
राजिव
धातुमलाकर प्रथम भाग
राजिषीयास्ताम्
राजिषीयास्थाम्
राजिषीवहि
राजितारौ
राजितासाथे:
राजितास्वहे
राजिष्येते
राजिष्येथे
राजिष्यावहे
अराजिष्येताम्
अराजिष्येथाम्
अराजिष्यावहि
राजन्ते
राजध्वे
राजामहे
राजेन्
राजेश्वम्
राजेमह
राजन्ताम्
राजध्वम्
राजामहै
अराजन्त
अराजध्वम्
अराजामहि
अराजिषत्
अराजिड्डूवम्/ध्वम्
अराजिष्महि
रेजिरे
रेजिध्वे
रेजिमहे
रराजिरे
रराजिध्वे
रराजमहे
राजिषीरन्
राजिषीध्वम्
राजिषीमहि
राजितार:
राजिताध्वे
राजितास्महे
राजिष्यन्ते
राजिष्यध्वे
राजिष्यामहे
अराजिष्यन्त
अराजिष्यध्वम्
अराजिष्यामहि
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
215
भजेत
अ०
रजेताम्
रजेयुः रजन्तु
८९४ टुभ्राजि (भ्राज्) दीप्तौ।
आत्मनेपद अस्यात्मनेपदिनोऽपि पुनरिह पाठो राजसाहचर्य- व० भजते भजेते भजन्ते प्रदर्शनार्थः। तेन जभ्रम-इत्यत्र 'यजसृज'-इत्यत्र चास्यैव | स०
भजेयाताम्
भजेरन् ग्रहणात् एत्वद्वित्वाभावविकल्पः षत्वञ्चास्यैव तथा चास्य
भजताम्
भजेताम् भजन्ताम् भ्रेजे, बभ्राजे, बाभ्राष्टि। पूर्वस्य तु बभ्राजे, बाभ्राक्ति,
ह्य० अभजत अभजेताम् अभजन्त इति। ट्विच्चायं, तेनास्य भ्राजथुः। पूर्वस्य तु भ्राज इति रूपम्। ननु एत्वद्वित्वाभावविकल्पने प्रयोजनं तु भेजे अभक्त अभक्षाताम् अभक्षत बभ्राजे इति रूपद्वयसिद्धिः। सा तु अन्यथापि प० भेजे
भेजाते
भेजिरे भविष्यति। बाभ्राष्टि, बाभ्राक्ति इति रूपद्वयार्थं तु | आ० भक्षीष्ट भक्षीयास्ताम् भक्षीरन् षत्वमेव विकल्प्यतां किं पुनः पाठेन? सत्यम्,
श्व० भक्ता भक्तारौ भक्तारः अस्यात्मनेपदाव्यभिचारोपदर्शनद्वाराऽन्येषां यथादर्शन
भ०
भक्ष्येते भक्ष्यते
भक्ष्यन्ते मात्मनेपदानित्यत्वज्ञापनार्थः पाठः। पुनः तेन लभते, लभति, सेवते, सेवति। श्रोतारमुपलभति न
क्र० अभक्ष्यत अभक्ष्येताम् अभक्ष्यन्त प्रशंसितारम्। “स्वाधीने विभवेऽप्यहो नरपति सेवन्ति
८९६. रञ्जी (रज्ज्) रागे। किं मानिनः" इत्यादयः प्रयोगाः साधव इति
व० रजति रजतः रजन्ति व० भ्राजते स०
भ्राजेत।
स० रजेत् प० भ्राजताम्। ह्य०
अभ्राजत।
प० रजतु/रजतात् रजताम् अ० अभ्राजिष्ट।
भ्रेजे बभ्राजे।
ह्य० अरजत् अरजताम् अरजन् आ० भ्राजिषीष्ट श्व० भ० भ्राजिष्यते। क्रि०
अभ्राजिष्यत।
अरङ्क्षीत् अराङ्क्ताम् अराक्षुः
प० ८९५. भजी (भज्) सेवायाम्।
ररञ्ज ररञ्जतुः ररञ्जः व० भजति भजत: भजन्ति
आ० रज्यात् रज्यास्ताम् रज्यासुः स० भजेत् भजेताम् श्व० रङ्क्ता
रङ्क्तारः प० भजतु/भजतात् भजताम्
भजन्तु
भ० रक्ष्यति रक्ष्यत: रक्ष्यन्ति
क्रि० अरक्ष्यत् अभजत् अभजताम् अभजन्
अरक्ष्यताम् अरक्ष्यन्
आत्मनेपद अ० अभाक्षीत् अभाक्ताम्
व० रजते
रजन्ते बभाज भेजतुः भेजुः
रजेयाताम् रजेरन् भेभजिथ/बभक्थ भेजथुः भेज
प० रजताम्
रजेताम्
रजन्ताम् बभाज/बभज भेजिव
अरजत अरजेताम् अरजन्त आ० भज्यात् भज्यास्ताम्
भज्यासुः
अ० भक्तारौ श्व० भक्ता
भक्तारः
अरङ्क्त अरङ्क्षाताम् अरक्षत भ० भक्ष्यति भक्ष्यतः भक्ष्यन्ति
प० ररञ्ज ररजाते ररञ्जिरे क्रि० अभक्ष्यत् अभक्ष्यताम् अभक्ष्यन्
आ० रङ्क्षीष्ट रङ्क्षीयास्ताम् रङ्क्षीरन् श्व० रङ्क्ता
रक्तार:
भ्राजिता।
अ०
भजेयुः
रङ्क्तारौ
अभाक्षुः
रजेते
रजेत
भेजिम
ह्य०
रफ्तारौ
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
216
भ०
क्रि०
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
व०
स०
प०
प०
आ० रेट्यात्
go
रेटिता
भ०
रेटिष्यति
क्रि० अरेटिष्यत्
रक्ष्यते
अरक्ष्यत
ह्य०
अ०
अथ टान्तः सेट् च ।
८९७ रेट्टङ् (रेटू) परिभाषणयाचनयोः ।
रेटति
रेटत:
रेटेत्
रेटतु / रेटतात्
अरेत्
अरेटीत्
रिवेट
व०
स०
प०
ह्य०
रेटते
रेटेत
अरेटत
अरेटिष्ट
प०
रिरेटे
आ० रेटिषीष्ट
멍ᄋ रेटिता
ताम्
भ०
क्रि० अरेटिष्यत
रेटिष्यते
वेणति
वेणेत्
रङ्क्ष्येते
रक्ष्यन्ते
अरङ्क्ष्येताम् अरक्ष्यन्त
अवेणत्
रेटेताम्
रेटताम्
अरेताम्
अरेटिष्टाम्
रिवेटतुः
रेट्यास्ताम्
रेटितारौ
रेटिष्यतः
अरेष्टिष्यताम्
आत्मनेपद
रेटितारौ
रेटिष्येते
वेणात् वेताम्
रेटन्ति
रेटेयुः
रेटन्तु
अथ णान्तः सेट् च ।
वेग् (वेण्) गतिज्ञानचिन्तानिशामनवादित्रग्रहणेषु ।
वेणत:
वेताम्
अरेटन्
रेटे
रेटन्ते
रेयाताम्
रेटेरन्
रेटेताम्
रेटन्ताम्
अरेटेताम् अरेटन्त
अरेटिषाताम्
अरेटिषत
रिरेटाते
भेजिरे
रेटिषीयास्ताम् रेटिषीरन्
रेटितार:
रेटिष्यन्ते
अरेटिषुः
अवेताम्
रिवेटुः
अरेटिष्येताम् अरेटिष्यन्त
रेट्यासुः
रेटितार:
रेटिष्यन्ति
अरेटिष्यन्
वेणन्ति
वेणेयुः
वेणन्तु
अवेन्
अवेणीत्
प०
विवेण
आ० वेण्यत्
왕이
वेणिता
भ०
वेणिष्यति
क्रि० अवेणिष्यत्
अ०
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
अवेणत
अवेणिष्ट
विवेणे
वेणिषीष्ट
वेणिता
भ०
वेणिष्यते
क्रि० अवेणिष्यत
ᄋ
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
वेणते
वेणेत
ᄋ
वेताम्
व०
चत्यात्
चतिता
भ०
चतिष्यति
क्रि० अचतिष्यत्
चतति
चतेत्
चततु / चततात्
अचतत्
अचतीत्
चचत
चतते
अष्टिम्
विजेणतुः
वेण्यास्ताम्
वेणितारौ
वेष्यतः
अवेणिष्यताम्
आत्मनेपद
वेणेते
वेणन्ते
वेम्
वेरन्
वेताम्
वेणन्ताम्
अवेताम् अवेणन्त
अवेणिषाताम्
अवेणिषत
विवेणाते
विवेणिरे
वेणिषीयास्ताम् वेणिषीरन्
वेणितार:
वेष्यन्ते
अवेणिष्यन्त
वेणितारौ
वेणिष्येते
अवेणिष्येताम्
अथ तान्तः सेट् च ।
८९९ चतेग् (चत्) याचने ।
चततः
चतेताम्
चतताम्
अतताम्
अचतिष्टाम्
चेततुः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अवेणिषुः
विवेणुः
वेण्यासुः
वेणितार:
वेणिष्यन्ति
अवेणिष्यन्
चत्यास्ताम्
चतितारौ
चतिष्यतः
चतेते
चतन्ति
चतेयुः
चतन्तु
अचतन्
अचतिषुः
चेतुः
चत्यासुः
चतितार:
चतिष्यन्ति
अचतिष्यताम् अचतिष्यन्
आत्मनेपद
चतन्ते
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
217
चतेरन्
मेथेयुः
मेथन्तु
अमेथीत्
अमेथिषुः
मिमेथुः
मिथ्यासुः
प्रोथेयुः प्रोथन्तु
मेथेते
स० चतेत चतेयाताम् प० चतताम् चतेताम् चतन्ताम् ह्य० अचतत अचतेताम् अचतन्त अ० अचतिष्ट अचतिषाताम् अचतिषत प० चेते
चेताते चेतिरे आ० चतिषीष्ट चतिषीयास्ताम् चतिषीरन् श्व० चतिता चतितारौ चतितार: भ० चतिष्यते चतिष्येते चतिष्यन्ते क्रि० अचतिष्यत अचतिष्येताम् अचतिष्यन्त
अथ थान्तास्त्रयः सेटचा ९०० प्रोग् (प्रोथ्) पर्याप्तौ। पर्याप्तिः पूर्णता। व० प्रोथति प्रोथतः प्रोथन्ति स० प्रोथेत् प्रोथेताम् प० प्रोथतु/प्रोथतात् प्रोथताम् ह्य० अप्रोथत् अप्रोथताम् अप्रोथन् अ० अप्रोथीत् अप्रोथिष्टाम् अप्रोथिषुः प० पुप्रोथ पुप्रोथतुः पुप्रोथुः आ० प्रोथ्यात् प्रोथ्यास्ताम् श्व० प्रोथिता प्रोथितारौ प्रोथितार: भ० प्रोथिष्यति प्रोथिष्यतः प्रोथिष्यन्ति क्रि० अप्रोथिष्यत् अप्रोथिष्यताम् अप्रोथिष्यन
आत्मनेपद व० प्रोथते प्रोथेते प्रोथन्ते स० प्रोथेत प्रोथेयाताम् प०
प्रोथताम् प्रोथेताम् प्रोथन्ताम् ह्य० अप्रोथत अप्रोथेताम् अप्रोथन्त अ० अप्रोथिष्ट अप्रोथिषाताम् अप्रोथिषत प०
पप्रोथे पुप्रोथाते पुप्रोथिरे आ० प्रोथिषीष्ट प्रोथिषीयास्ताम् प्रोथिषीरन् श्व० प्रोथिता प्रोथितारौ प्रोथितार: भ० प्रोथिष्यते प्रोथिष्येते प्रोशिष्यन्ते
| क्रि० अप्रोथिष्यत अप्रोथिष्येताम् अप्रोथिष्यन्त
९०१ मिथूग (मिथ्) मेधाहिंसयोः। व० मेथति मेथतः मेथन्ति स० मेथेत् मेथेताम् प० मेथतु/मेथतात् मेथताम् ह्य० अमेथत्
अमेथताम्
अमेथन्
अमेथिष्टाम् प० मिमेथ
मिमेथतुः आ० मिथ्यात्
मिथ्यास्ताम् श्व० मेथिता मेथितारौ मेथितार: भ० मेथिष्यति मेथिष्यतः मेथिष्यन्ति क्रि० अमेथिष्यत् अमेथिष्यताम् अमाथष्यन्
आत्मनेपद : व० मेथते
मेथन्ते स० मेथेत
मेथेयाताम् प० मेथताम् ह्य० अमेथत अमेथेताम् अमेथन्त अ० अमेथिष्ट अमेथिषाताम्
अमेथिषत प० मिमेथे मिमेथाते मिमेथिरे आ० मेथिषीष्ट मेथिषीयास्ताम् मेथिषीरन् श्व० मेथिता मेथितारौ मेथितारः भ० मेथिष्यते मेथिष्येते मेथिष्यन्ते क्रि० अमेथिष्यत अमेथिष्येताम् अमेथिष्यन्त
९०२ मेथूग (मेथ्) संगमे च।
चकारान्मेधाहिंसयोः। व० मेथति मेथतः मेथन्ति स० मेथेत् प० मेथतु/मेथतात् मेथताम् ह्य० अमेथत् अमेथताम्
अमेथन् अ० अमेथीत् अमेथिष्टाम् अमेथिषुः | प० मिमेथ मिमेथतुः मिमेथुः
मेथेरन् मेथन्ताम्
मेथेताम्
प्रोथ्यासुः
प्रोथेरन्
मेथेताम्
मेथेयुः मेथन्तु
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
218
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अचदिष्व
अचदिष्म
अचदिषम् चचाद
प०
चेदतुः
चेदुः
चेदिथ
चेदथुः
चेद
आ०
मेथन्ते
मेथेत
मेथेरन्
आ० मेथ्यात् मेथ्यास्ताम् मेथ्यासुः श्व० मेथिता मेथितारौ मेथितारः भ० मेथिष्यति मेथिष्यतः मेथिष्यन्ति क्रि० अमेथिष्यत् अमेथिष्यताम् अमेथिष्यन्
आत्मनेपद व० मेथते मेथेते
मेथेयाताम् मेथताम् मेथेताम् मेथन्ताम् अमेथत अमेथेताम्
अमेथन्त अमेथिष्ट अमेथिषाताम् अमेथिषत
मिमेथे मिमेथाते मिमेथिरे आ० मेथिषीष्ट मेथिषीयास्ताम् मेथिषीरन् श्व० मेथिता मेथितारौ मेथितारः भ० मेथिष्यते मेथिष्येते मेथिष्यन्ते क्रि० अमेथिष्यत अमेथिष्येताम् अमेथिष्यन्त
अथ दान्ताः षट् सेटश्च।
९०३ चदेग् (चद्) याचने। व० चदति चदतः
चदन्ति चदसि चदथः
चदथ चदामि चदाव:
चदामः स० चदेत् चदेताम् चदेः
चदेतम् चदेयम् चदेव चदेम चदतु/चदतात् चदताम् चदन्तु चद/चदतात् चदतम् चदत चदानि चदाव
चदाम अचदत् अचदताम् अचदन् अचदः
अचदतम् अचदत अचदम् अचदाव
अचदाम अ० अचदीत् अचदिष्टाम् अचदिषुः
अचदी: अचदिष्टम् अचदिष्ट
चेदिव
चेदिम चद्यात् चद्यास्ताम् चद्यासुः चद्याः चद्यास्तम् चद्यास्त चद्यासम् चद्यास्व
चद्यास्म श्व० चदिता चदितारौ चदितार:
चदितासि चदितास्थः चदितास्थ
चदितास्मि चदितास्व: चदितास्मः भ० चदिष्यति चदिष्यतः चदिष्यन्ति
चदिष्यसि चदिष्यथः चदिष्यथ
चदिष्यामि चदिष्याव: चदिष्यामः क्रि० अचदिष्यत् अचदिष्यताम् अवदिष्यन्
अचदिष्यः अचदिष्यतम् अचदिष्यत अचदिष्यम् अचदिष्याव अचदिष्याम
आत्मनेपद व० चदते चदेते
चदन्ते चदेत चदेयाताम् चदेरन् प० चदताम् चदेताम् चदन्ताम्
अचदत अचदेताम् अचदन्त अ० अचदिष्ट अचदिषाताम् अचदिषत प० चेदे चेदाते
चेदिरे आ० चदिषीष्ट चदिषीयास्ताम् चदिषीरन् श्व० चदिता चदितारौ चदितार: भ० चदिष्यते चदिष्येते चदिष्यन्ते क्रि० अचदिष्यत अचदिष्येताम् अचदिष्यन्त
९०४ ऊबुन्दग् (बुन्द्) निशामने।
निशामनमलोचनम्। बुन्दति बुन्दतः बुन्दन्ति | स० बुन्देत् बुन्देताम् बुन्देयुः
ह्य
चदेयुः चदेत
व०
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
श्व०
बुबुन्द
बुण्यात्
बुण्यास्ताम्
बुन्दिता
बुदितारौ
भ०
बुन्दिष्यति
बुन्दिष्यतः
क्रि० अबुन्दिष्यत् अबुन्दिष्यताम्
आत्मनेपद
व०
बुन्द
बुन्देत
बुन्दताम्
अबुन्दत
अबुन्दिष्ट
प०
बुबुन्दे
आ० बुन्दिषीष्ट
sgo बुन्दिता
स०
प०
ह्य०
अ०
व०
बुन्दतु/बुन्दतात् बुन्दताम्
स०
अबुन्दत्
अबदत्
प०
ह्य०
भ०
बुन्दिष्यते
क्रि० अबुन्दिष्यत अबुन्दिष्येताम्
प०
अबुन्दताम्
अबुदताम्
बुबुन्दतुः
ताम्
द/तात् नेदताम्
अनेदत्
अ० अदीत्
निनेद
आ०
निद्यात्
go नेदिता
भ०
नेदिष्यति
क्रि० अनेदिष्यत्
बुन्दे
बुन्देयाताम्
बुन्देताम्
अबुन्देताम्
बुन्दन्ते
बुन्देरन्
बुन्दन्ताम्
अबुन्दन्त
अबुन्दिषाताम् अबुन्दिषत
बुबुदा
बुबुन्दिरे
बुन्दिषीयास्ताम् बुन्दिषीरन्
बुन्दितारः
बुन्दिष्यते
अबुन्दिष्यन्त
बुन्दितारौ
बुन्दिष्येते
९०५ णिदृग् (निद्) कुत्सासंनिकर्षयोः ।
नेदति
नेदतः
नेदेत्
बुन्दन्तु
अबुन्दन्
अबुदन
बुबुन्दुः
बुण्यासुः
बुन्दितारः
बुन्दिष्यन्ति
अबुन्दिष्यन्
अदताम्
अष्टम्
निनिदतुः
निद्यास्ताम्
नेदितारौ
नेदिष्यतः
अनेदिष्यताम्
नेदन्ति
नेदेयुः
नेदन्तु
अनेदन्
अनेदिषुः
निनिदुः
निद्यासुः
नेदितार:
नेदिष्यन्ति
अनेदिष्यन्
व०
स०
प० ताम्
अनेदत
अनेदिष्ट
निनिदे
नेदिषीष्ट
नेदिता
भ०
नेदिष्यते
क्रि० अनेदिष्यत
ह्य०
अ०
प०
आ०
ᄋ
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
핑ᄋ
नेदते
नेदेत
प०
निद्यात्
नेदिता
भ०
नेदिष्यति
क्रि० अनेदिष्यत्
आ०
ᄋ
व० नेदते
स० नेदेत
प० नेदताम्
ह्य०
अदत
अ० अनेदिष्ट
निनिदे
नेदिषीष्ट
नेदिता
अदत्
अनेदीत्
निनेद
आत्मनेपद
नेदेते
नेदेयाताम्
नेताम्
ताम्
तु/नेदतात् नेदताम्
अदेताम्
अनेदिषाताम्
निनिदा
अनेदिष्येताम् अनेदिष्यन्त
९०६ णेदृग् (नेद्) कुत्सासंनिकर्षयोः ।
नेदति
नेदतः
नेत्
नेदिषीयास्ताम्
नेदितारौ
नेदिष्येते
अदम्
अनेदिष्टम्
निनिदतुः
निद्यास्ताम्
नेदितारौ
नेदिष्यतः
अनेदिष्यताम्
आत्मनेपद
नेदेते
नेदेयाताम्
नेताम्
अम्
अनेदिषाताम्
निनिदाते
दन्ते
नेदेरन्
नेदिषीयास्ताम्
नेदितारौ
दन्ताम्
अदन्त
अदिषत
निनिदिरे
नेदिषीरन्
नेदितार:
नेदिष्यन्ते
नेदन्ति
नेदेयुः
दन्तु
अनेदन्
अनेदिषुः
निनिदुः
निद्यासुः
नेदितार:
नेदिष्यन्ति
अनेदिष्यन्
दन्ते
नेदेरन्
नेदन्ताम्
अदन्त
अनेदिषत
निनिदिरे
नेदिषीरन्
नेदितार:
219
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
220
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
* * * *
मेदेताम्
मेदेयुः मेदन्तु
मेदेरन् मेदन्ताम्
मेदेताम्
मिमेदतुः
मिमेदुः मिद्यासुः
* * * * * * * *
मेदन्ते
भ० नेदिष्यते नेदिष्येते नेदिष्यन्ते क्रि० अनेदिष्यत अनेदिष्येताम् अनेदिष्यन्त
९०७ मिदृग् (मिद्) मेधाहिंसयोः। व० मेदति मेदतः मेदन्ति
मेदेत् प० मेदतु/मेदतात् मेदताम् ह्य० अमेदत् अमेदताम्
अमेदन् अ० अमेदीत् अमेदिष्टाम् अमेदिषुः प० मिमेद आ० मिद्यात् मिद्यास्ताम् व० मेदिता मेदितारौ मेदितारः भ० मेदिष्यति मेदिष्यतः मेदिष्यन्ति क्रि० अमेदिष्यत् अमेदिष्यताम् अमेदिष्यन्
आत्मनेपद व० मेदते मेदेते स० मेदेत मेदेयाताम् प० मेदताम्
मेदेताम् ह्य० अमेदत अमेदेताम् अमेदन्त अ० अमेदिष्ट अमेदिषाताम् अमेदिषत प० मिमेदे मिमेदाते मिमेदिरे आ० मेदिषीष्ट मेदिषीयास्ताम् मेदिषीरन् श्व० मेदिता मेदितारौ मेदितारः भ० मेदिष्यते मेदिष्येते मेदिष्यन्ते क्रि० अमेदिष्यत अमेदिष्येताम् अमेदिष्यन्त
९०८ मेदृग् (मेद्) मेधाहिसयोः। व० मेदति मेदतः स० मेदेत्
मेदेताम् प० मेदतु/मेदतात् मेदताम् मेदन्त ।
अमेदताम् अमेदन् अ० अमेदीत् अमेदिष्टाम् प० मिमेद मिमेदतुः
मेदेरन् मेदन्ताम्
आ० मिद्यात् मिद्यास्ताम् मिद्यासुः श्व० मेदिता मेदितारौ मेदितारः भ० मेदिष्यति मेदिष्यतः मेदिष्यन्ति क्रि० अमेदिष्यत् अमेदिष्यताम् अमेदिष्यन्
आत्मनेपद व० मेदते मेदेते
मेदन्ते स० मेदेत मेदेयाताम् प० मेदताम्
अमेदत अमेदेताम् अमेदन्त अ० अमेदिष्ट अमेदिषाताम् अमेदिषत प० मिमेदे मिमेदाते मिमेदिरे आ० मेदिषीष्ट मेदिषीयास्ताम् मेदिषीरन् श्व० मेदिता मेदितारौ मेदितार: भ० मेदिष्यते मेदिष्येते मेदिष्यन्ते क्रि० अमेदिष्यत अमेदिष्येताम् अमेदिष्यन्त
अथ धान्ताश्चत्वारः सेटश्च। ९०९ मेधृग् (मेध्) संगमे च।
चकारान्मेधाहिंसयोः। व० मेधति मेधत: मेधन्ति स० मेधेत् प० मेधतु/मेधतात् मेधताम् अमेधत् अमेधताम्
अमेधिष्टाम् प० मिमेध
मिमेधुः आ० मिध्यात् मिध्यास्ताम् श्व० मेधिता मेधितारौ मेधितारः भ० मेधिष्यति मेधिष्यतः
मेधिष्यन्ति क्रि० अमेधिष्यत् अमेधिष्यताम् अमेधिष्यन्
आत्मनेपद व० मेधते मेधेते मेधन्ते स० मेधेत मेधेयाताम् मेधेरन्
मेधेताम्
मेधेयुः मेधन्तु अमेधन् अमेधिषुः
ह्य०
अ०
अमेधीत्
मिमेधतुः
मिध्यासुः
मेदन्ति मेदेयुः
* * * * * * *
अमेदत्
अमेदिषुः मिमेदुः
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
221
प०
आ.
मध्यात्
स०
शर्धेयुः शर्धन्तु
प० मेधताम् मेधेताम् मेधन्ताम् ह्य० अमेधत अमेधेताम् अमेधन्त अ० अमेधिष्ट अमेधिषाताम् अमेधिषत प० मिमेधे मिमेधाते मिमेधिरे
मेधिषीष्ट मेधिषीयास्ताम् मेधिषीरन्
मेधिता मेधितारौ मेधितारः भ० मेधिष्यते मेधिष्येते मेधिष्यन्ते क्रि० अमेधिष्यत अमेधिष्येताम् अमेधिष्यन्त
९१० शृधूग् (शृथ्) उन्दे। उन्दः क्लेदनम्। व० शर्धति शर्धतः शर्धन्ति
शर्धेत् शर्धेताम् प० शर्धतु/शर्धतात् शर्धताम् ह्य० अशर्धत् अशर्धताम् अशर्धन् अ० अश(त् अशर्धिष्टाम् अशर्धिषुः प० शशर्ध शशर्धतुः शशधुः आ० शध्यात् शध्यास्ताम् शध्यासुः श्व० शर्धिता शर्धितारौ शर्धितारः भ० शर्धिष्यति शर्धिष्यतः शर्धिष्यन्ति क्रि० अशर्धिष्यत् अशर्धिष्यताम अशर्धिष्यन
आत्मनेपद व० शर्धते शर्धेते
शर्धन्ते शर्धेत शर्धेयाताम् शधैरन् प० शर्धताम् शर्धेताम् शर्धन्ताम् ह्य० अशर्धत अशर्धेताम् अशर्धन्त अ० अशर्धिष्ट अशर्धिषाताम् अशर्धिषत प० शशृधे
शशृधिरे आ० शर्धिषीष्ट शर्धिषीयास्ताम् शर्धिषीरन् श्व० शर्धिता शर्धितारौ शर्धितार: भ० शर्धिष्यते शर्धिष्येते शर्धिष्यन्ते क्रि० अशर्धिष्यत अशर्धिष्येताम् अशर्धिष्यन्त
९११ मृधूग् (मृथ्) उन्दे। उन्दः क्लेदनम्। व० मर्धति
मर्धत:
मर्धन्ति
| स० मर्धेत् मर्धेताम् मर्धेयुः प० मर्धतु/मर्धतात् मर्धताम् मर्धन्तु ह्य० अमर्धत् अमर्धताम् अमर्धन्
अमर्धीत् अमर्धिष्टाम् अमर्धिषुः
ममर्ध ममर्धतुः ममधुः आ०
मध्यास्ताम्
मध्यासुः श्व० मर्धिता मर्धितारौ मर्धितार: भ० मर्धिष्यति मर्धिष्यतः मर्धिष्यन्ति क्रि० अमर्धिष्यत् अमर्धिष्यताम् अमर्धिष्यन्
आत्मनेपद व० मर्धते मर्धेते
मर्धन्ते स० मर्धेत मधैयाताम् मधैरन् प० मर्धताम् मर्धेताम् मर्धन्ताम् ह्य० अमर्धत अमर्धेताम् अमर्धन्त अ० अमर्धिष्ट अमर्धिषाताम् अमर्धिषत प० ममृधे ममृधाते ममृधिरे आ० मर्धिषीष्ट मर्धिषीयास्ताम् मर्धिषीरन् श्व० मर्धिता मर्धितारौ मर्धितार: भ० मर्धिष्यते मर्धिष्येते मर्धिष्यन्ते क्रि० अमर्धिष्यत अमर्धिष्येताम् अमर्धिष्यन्त
९१२ बुधग् (बुध्) बोधने। ९१० शृधूम् (शृथ्) उन्दे। उन्दः क्लेदनम्। व० बोधति
बोधन्ति स० बोधेत् बोधेताम् बोधेयुः प० बोधतु/बोधतात् बोधताम् ह्य० अबोधत् अबोधताम् । अबोधन् अ० अबोर्धीत् अबोधिष्टाम्
अबोधिषुः बुबोध बुबुधतुः बुबुधुः आ० बुध्यात् बुध्यास्ताम् बुध्यासुः श्व० बोधिता बोधितारौ बोधितारः भ० बोधिष्यति बोधिष्यतः बोधिष्यन्ति
स
बोधत:
शशृधाते
बोधन्तु
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
222
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आ० खनिषीष्ट खनिषीयास्ताम् श्व० खनिता खनितारौ भ० खनिष्यते खनिष्येते क्रि० अखनिष्यत अखनिष्वेताम
खनिषीरन् खनितारः खनिष्यन्ते
बोधेरन्
अखनिष्यन्त
क्रि० अबोधिष्यत् अबोधिष्यताम् अबोधिष्यन्
आत्मनेपद व० बोधते बोधेते बोधन्ते स० बोधेत
बोधेयाताम् प० बोधताम् बोधेताम्
बोधन्ताम् ह्य० अबोधत अबोधेताम् अबोधन्त अ० अबोधिष्ट अबोधिषाताम् अबोधिषत प० बुबुधे बुबुधाते बुबुधिरे आ० बोधिषीष्ट बोधिषीयास्ताम् बोधिषीरन् श्व० बोधिता बोधितारौ बोधितारः भ० बोधिष्यते बोधिष्येते बोधिष्यन्ते क्रि० अबोधिष्यत अबोधिष्येताम् अबोधिष्यन्त
। अथ नान्तास्त्रयः सेटश्च।
९१३ स्वनूग् (खन्) अवदारणे। व० खनति खनत: खनन्ति स० खनेत् खनेताम् खनेयुः प० खनतु/खनतात् खनताम् खनन्तु ह्य० अखनत् अखनताम् अ० अखनीत् अखनिष्टाम् अखनिषुः प० चखान चख्नतुः चख्नुः आ० खन्यात् खन्यास्ताम् खन्यासुः श्व० खनिता खनितारौ खनितार: भ० खनिष्यति खनिष्यतः खनिष्यन्ति क्रि० अखनिष्यत् अखनिष्यताम् अखनिष्यन्
आत्मनेपद व० खनते खनेते
खनन्ते स० खनेत खनेयाताम् खनेरन् प० खनताम्
खनेताम् खनन्ताम् ह्य० अखनत अखनेताम् अखनन्त
अखनिष्ट अखनिषाताम् अखनिषत प० चख्ने चलाते चलिरे
अखनन्
९१४ दानी (दान्-दीदांस्) अवखण्डने आर्जवे। व० दीदांसति दीदांसतः दीदांसन्ति
दीदांससि दीदांसथः दीदांसथ
दीदांसामि दीदांसावः दीदांसामः | स० दीदांसेत् दीदांसेताम् दीदांसेयुः
दीदांसे: दीदांसेतम् दीदांसेत
दीदांसेयम् दीदांसेव दीदांसेम प० दीदांसतु/दीदांसतात् दीदासताम्
दीदांसन्तु दीदांस/दीदांसतात् दीदांसतम् दीदांसत
दीदांसानि दीदांसाव दीदांसाम ह्य० अदीदांसत् अदीदांसताम् अदीदांसन्
अदीदांसः अदीदांसतम् अदीदांसत अदीदासम् अदीदांसाव अदीदांसाम अदीदांसीत् अदीदांसिष्टाम् अदीदांसिषुः अदीदांसी: अदीदांसिष्टम् अदीदांसिष्ट
अदीदांसिषम् अदीदांसिष्व अदीदांसिष्म प० दीदांसाञ्चकार दीदांसाञ्चक्रतुः दीदांसाञ्चक्रुः
दीदांसाञ्चकर्थ दीदांसाञ्चक्रथुः दीदासाञ्चक्र दीदांसाञ्चक्रार/चकर दीदांसाञ्चकृव दीदांसाञ्चकृम
दीदांसाम्बभूव/दीदांसामास आ० दीदास्यात् दीदास्यास्ताम् दीदास्यासुः
दीदांस्याः दीदास्यास्तम् दीदास्यास्त
दीदास्यासम् दीदास्यास्व दीदास्यास्म श्व० दीदांसिता दीदांसितारौ दीदांसितार:
दीदांसितासि दीदांसितास्थः दीदांसितास्थ
दीदांसितास्मि दीदांसितास्वः दीदांसितास्मः | भ० दीदांसिष्यति दीदांसिष्यतः दीदांसिष्यन्ति
अ०
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
क्रि० अदीदांसिष्यत्
व०
दीदांसन्ते
दीदांसध्वे
दीदांसावहे दीदांसामहे
दीदांसेयाताम् दीदांसेरन्
दीदांसेध्वम्
दीदांसे महि
दीदांसन्ताम्
दीदांसध्वम्
दीदांसाम
अदीदांसत
अदीदांसेताम्
अदीदांसन्त
अदीदांसथाः अदीदांसेथाम अदीदांसे अ० अदीदांसिष्ट अदीदांसिषाताम् अदीदांसिषत
अदीदांसध्वम् अदीदांसावहि अदीदांसामहि
स०
प०
ह्य०
प०
दीदांसिष्यसि दीदांसिष्यथः दीदांसिष्यथ
दीदांसिष्यामः
दीदांसिष्यामि दीदांसिष्यावः अदीदांसिष्यताम् अदीदांसिष्यन् अदीदांसिष्यः अदीदांसिष्यतम् अदीदांसिष्यत अदीदांसिष्यम् अदीदांसिष्याव अदीदांसिष्याम्
आत्मनेपद
आ०
왕이
दीदांसते दीदांसे
दीदांस
दीदांसे
दीदां
दीदांसेत
दीदांसेथाः दीदांसेयाथाम्
दीदांसेय
दीदांसेवहि
दीदांसेताम्
दीदांसेथाम्
दीदांसा है
दीदांसताम्
दीदांसस्व
दीदांसै
अदीदांसिष्ठाः अदीदांसिषाथाम् अदीदांसिडूवम / ध्वम् अदीदांसिषि अदीदांसिष्वहि अदीदांसिष्महि दीदांसाञ्चक्रे दीदांसाञ्चक्राते दीदांसाञ्चक्रिरे दीदांसाञ्चकृषे दीदांसाञ्चक्राथे दीदांसाञ्चकृवे दीदांसाञ्चक्रे दीदांसाञ्चकृवहे दीदांसाञ्चकृमहे दीदांसाम्बभूव/दीदांसामास
दीदांसिषीष्ट दीदांसिषीयास्ताम् दीदांसिषीरन्
दीदांसिषीष्ठाः दीदांसिषीयास्थाम् दीदांसिषीध्वम्
दीदांसिषीय दीदांसिषीवहि दीदांसिषीमहि
दीदांसिता दीदांसितारौ दीदांसितार: दीदांसितासे दीदांसितासा दीदांसिताध्वे दीदांसिताहे दीदांसितास्वहे दीदांसितास्महे
भ०
दीदांसिष्यते दीदांसिष्येते दीदांसिष्यन्ते दीदांसिष्यसे दीदांसिष्येथे दीदांसिष्यध्वे दीदांसिष्ये दीदांसिष्यावहे दीदांसिष्यामहे
क्रि० अदीदांसिष्यत अदीदांसिष्येताम् अदीदांसिष्यन्त अदीदांसिष्यथाः अदीदांसिष्येथाम् अदीदांसिष्यध्वम् अदीदांसिष्ये अदीदांसिष्यावहि अदीदांसिष्यामहि
९१५ शानी (शान् शीशांसू) तेजने निशाने सनि । श्रीश्रांसन्ति श्रीश्रांत श्रीश्रांसेयुः
शीशांसति श्री श्रांसतः
श्रीश्रांसेत्
श्रीश्रांस/ श्रीश्रांतात् श्रीश्रांसताम् श्रीश्रांसन्तु
श्रीश्रांत् अशीशांसताम् शीशांसन्
अशीशांसीत् अशीशांसिष्टाम् अशीशांसिषुः श्रीश्रांसाञ्चकार श्रीश्रांसाञ्चक्रतुः श्रीश्रांसाञ्चक्रुः
शीशांस्यात् शीशांस्यास्ताम् शीशांस्यासुः
शीशांसिता शीशांसितारौ
शीशांसितार:
공용명용 공용왱딩욍굉
ह्य०
प०
आ०
शीशांसिष्यति शीशांसिष्यतः शीशांसिष्यन्ति
क्रि० अशीशांसिष्यत् अशीशांसिष्यताम् अशीशांसिष्यन्
आत्मनेपद
भ०
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
शीशांसते
शीशांसेत
शीशांसेते
शीशांसन्ते
शीशांसेयाताम् शीशांसेरन्
शीशांसताम्
शीशांसेताम् शीशांसन्ताम्
शीशांसेताम् अशीशांसन्त
अशीशांसत अशीशांसिष्ट अशीशांसिषाताम् अशीशांसिषत शीशांसाञ्चक्रे शीशांसाञ्चक्राते श्री श्रासाञ्चक्रिरे
श्री साम्बभूव / श्रीश्रांसामास
शीशांसिषीष्ट शीशांसिषीयास्ताम् शीशांसिषीरन्
शीशांसिता शीशांसितारौ शीशांसितार:
भ०
श्रीशांसिष्यते श्रीशांसिष्येते
क्रि० अश्रीशांसिष्यत अश्रीशांसिष्येताम्
왕이
223
श्रीशांसिष्यन्ते अश्रीशांसिष्यन्त
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
224
अथ पान्तोऽनिट् च । ९१६ शपीं (शप्) आक्रोशे ।
आक्रोश विरुद्धानुध्यानम् । अनेकार्थत्वादुपलम्भनेऽपि ।
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
व०
भ०
शपति
शपसि
शपामि
शपेत्
शपे:
शपेयम्
शपतु / शपतात् शपताम्
शप शपतात्
शपतम्
शपानि
शपाव
अशपत्
अशप:
शपतः
शपथ:
शपाव:
शपेताम्
शपेतम्
शपेव
अशपम्
अशाप्सीत्
अशाप्ताम्
अशाप्सीः अशाप्तम्
अशाप्सम्
अशाप्स्व
शशाप शेपतुः
शेशपिथ/ शशष्य शेपथुः
शशाप / शशप
शेपिव
शप्यात्
शप्या:
क्रि० अशप्स्यत्
अशप्स्यः
अशप्स्यम्
अशपताम्
अशपतम्
अशपाव
शप्यासम्
शप्ता
शप्तासि
शप्तास्थः
शप्तास्मि
शप्तास्वः
शप्स्यति
शप्स्यतः
शप्स्यसि
शप्स्यथ:
शस्यामि शप्स्यावः
शपन्ति
शपथ
शपामः
शपेयुः
शपेत
शपेम
शपन्तु
शपत
शपाम
अशपन्
अशपत
अशपाम
अशाक्षुः
अशाप्त
अशाप्स्म
शेपु
शेप
शेषिम
शप्यास्ताम् शप्यासुः
शप्यास्तम्
शप्यास्त
शप्यास्व
शप्यास्म
शप्तारौ
शप्तार:
शप्तास्थ
शप्तास्मः
शप्स्यन्ति
शप्स्यथ
शप्स्यामः
अशप्स्यताम्
अशप्स्यन्
अशप्स्यतम् अशप्स्यत
अशप्स्याव
अशप्स्याम्
व०
स०
प०
ह्य०
शपताम्
शपस्व
शपै
अशपत
अशपथाः
अशपे
अशप्त
अशप्थाः
अशप्सि
शेपे
शेपिषे
शेपे
आ० शप्सीष्ट
अ०
प०
शपते
शपसे
शपे
शपेत
पेथाः
शपेय
भ०
शप्सीष्ठाः
शप्सीय
go शप्ता
शप्तासे
शप्ता
शस्यते
शस्यसे
शस्ये
क्रि० अशप्स्यत
अशप्स्यथाः
अशप्स्ये
आत्मनेपद
शपेते
शपेथे
शपावहे
शपेयाताम्
शपेयाथाम्
शपेवहि
शपेताम्
शपेथाम्
शपावहै
अशपेताम्
अशपेथाम
अशपावहि
अशप्साताम
अशप्साथाम्
अशप्स्वहि
शेपाते
शेपाथे
शेपिवहे
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शपन्ते
शपध्वे
शपामहे
शपेरन्
शपेध्वम्
शपेमहि
शपन्ताम्
शपध्वम्
शपाम है
अशपन्त
अशपध्वम्
अशपामहि
अशप्सत
अशब्द्ध्वम/ब्ध्वम्
अशप्स्महि
शेपिरे
शेपिध्वे
शेपिमहे
शप्सीयास्ताम् शप्सीरन्
शप्सीयास्थाम् शप्सीध्वम्
शप्सीवहि शप्सीमहि
शप्तारौ
शप्तासाथे
शप्तार:
शप्ताध्वे
शताव
शप्तास्महे
शस्येते
शस्यन्ते
शस्
शस्यध्वे
शप्स्यावहे
शप्स्यामहे
अशस्येताम् अशप्स्यन्त
अशप्स्येथाम् अशप्स्यध्वम्
अशप्स्यावहि
अशप्स्यामहि
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
왕이
भ०
अथ यान्तौ सेटौ च ।
९१७ चायृग् (चाय्) पूजानिशामनयोः ।
चायति
चायत:
चायन्ति
चायसि
चायथः
चायथ
चायामि
चायावः
चायामः
चायेत्
चायेताम्
चायेयुः
चायेः
चायेत
चायेयम्
चायेम
चायतु / चायतात् चायताम्
चाय / चायतात् चायतम्
चायानि
चायाव
अचायत्
अचाय:
चम्
चायेव
अचायताम्
अचायतम्
अचायम्
अचायाव
अचायाम
अचायीत् अचायिष्टाम् अचायिषुः अचायी: अचायिष्टम् अचायिष्ट
अचायिषम् अचायिष्व
अचायिष्म
चचाय
चचायतुः
चचायिथ चचायथुः
चचाय
चचायिव
चाय्यात्
चाय्याः
चाय्यासम्
चायिता
चायन्तु
चायत
चायाम
अचायन्
अचायत
क्रि० अचायिष्यत् अचायिष्यताम्
चचायुः
चचाय
चचायिम
चाय्यास्ताम् चाय्यासुः
चाय्यास्तम् चाय्यास्त
चाय्यास्व
चायितारौ
चाय्यास्म
चायितारः
चायितासि
चायितास्यः चायितास्य
चायितास्मि चायितास्वः
चायितास्मः
चायिष्यति चायिष्यतः चायिष्यन्ति चायिष्यसि चायिष्ययः चायिष्यय चायिष्यामि चायिष्यावः चायिष्यामः अचायिष्यन् अचायिष्यः अचायिष्यतम् अचायिष्यत अचायिष्यम् अचायिष्याव
अचायिष्याम्
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
चायन्ताम्
चायध्वम्
चायाम है
अचम्
अचायन्त
अचायेयाम
अचायध्वम्
अचायावहि अचायामहि
अचायिष्ट
अचायिषाताम् अचायिषत
अचायिष्ठाः अचायिषायाम् अचायिड्ढवम / ध्वम्
अचायिषि
अचायिष्वहि
अचायिष्महि
चचाये
चचायाते
चचायिरे
चचायिषे
चचायाये
चचायिध्वे
चचाये
चचायिवहे चचायिमहे
आ० चायिषीष्ट
चायिषीयास्ताम् चायिषीरन्
चायिषीष्ठाः
चायिषीयास्याम् चायिषीध्वम्
चायिषीय
चायिषीवहि चायिषीमहि
चायिता
चायितारौ
चायितारः
चायितासे
चायितासा
चायिताध्वे
चायिताहे चायितास्वहे
चायितास्महे
चायिष्यते चायिष्येते
चायिष्यन्ते
चायिष्यसे चायिष्येये चायिष्यध्वे चायिष्ये चायिष्यावहे चायिष्यामहे क्रि० अचायिष्यत अचायिष्ययाः अचायिष्येयाम् अचायिष्यध्वम् अचायिष्ये अचायिष्यावहि अचायिष्यामहि
अचायिष्येताम् अचायिष्यन्त
go
चायते
चायसे
चाये
चायेत
चायेयाः
चायेय
चायताम्
चायस्व
चायै
अचायत
अचाययाः
अचाये
भ०
आत्मनेपद
चायेते
चायेये
चायाव
चायेयाताम्
चायायाम्
चायेवहि
चायेताम्
चायेयाम्
चायाव
चायन्ते
चायध्वे
चायामहे
चायेरन्
चायेध्वम्
चायेमहि
225
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
226
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अलन्ते
*
* * * * * * *
_९१८ व्ययी (व्यय) गतौ। व० व्ययति व्ययतः व्ययन्ति स० व्ययेत् व्ययेताम् व्ययेयुः प० व्ययतु/व्ययतात् व्ययताम् व्ययन्तु ह्य० अव्ययत् अव्ययताम् अव्ययन् अ० अव्ययीत् अव्ययिष्टाम् अव्ययिषुः प० वव्याय व्यव्ययतुः व्यव्ययुः आ० व्यय्यात् व्यय्यास्ताम् व्यय्यासुः श्व० व्ययिता व्ययितारौ व्ययितार: भ० व्ययिष्यति व्ययिष्यतः व्ययिष्यन्ति क्रि० अव्ययिष्यत् अव्ययिष्यताम् अव्ययिष्यन्
आत्मनेपद व० व्ययते व्ययेते व्ययन्ते
व्ययेत व्ययेयाताम् व्ययेरन् व्ययताम व्ययेताम्
व्ययन्ताम् ह्य० अव्ययत अव्ययेताम् अव्ययन्त
अव्ययिष्ट अव्ययिषाताम् अव्ययिषत
व्यव्यये व्यव्ययाते व्यव्ययिरे आ० व्ययिषीष्ट व्ययिषीयास्ताम् व्ययिषीरन् श्व० व्ययिता व्ययितारौ व्ययितारः भ० व्ययिष्यते व्ययिष्येते व्ययिष्यन्ते क्रि० अव्ययिष्यत अव्ययिष्येताम् अव्ययिष्यन्त
अथ लान्तः सेट् च। ९१९ अली (अल्) भूषणपर्याप्तिवारणेषु। व० अलति अलतः अलन्ति
अलेत् अलेताम् अलेयुः अलतु/अलतात् अलताम् अलन्तु
आलत् आलताम् आलन् अ०
आलीत् आलिष्टाम् आलिषुः प० आल आलतुः आलुः आ० आल्यात् आल्यास्ताम् आल्यासुः श्व० अलिता
अलितारौ
अलितारः
भ० अलिष्यति . अलिष्यतः अलिष्यन्ति क्रि० आलिष्यत् आलिष्यताम् आलिष्यन्
आत्मनेपद व० अलते
अलेते स० अलेत अलेयाताम् अलेरन् प० अलताम् अलेताम् अलन्ताम्
आलत आलेताम् आलन्त अ० आलिष्ट आलिषाताम् आलिषत प० आले आलाते आलिरे आ० अलिषीष्ट अलिषीयास्ताम् अलिषीरन् श्व० अलिता अलितारौ अलितारः भ० अलिष्यते अलिष्येते अलिष्यन्ते क्रि० आलिष्यत आलिष्येताम् आलिष्यन्त
अथ वान्तौ सेटौ च। ९२० धावूग् (धाव्) गतिशुद्ध्योः । व० धावति धावत: धावन्ति स० धावेत् धावेताम् धावेयुः प० धावतु/धावतात् धावताम् धावन्तु ह्य० अधावत् अधावताम्
अधावन् अधावीत् अधाविष्टाम् अधाविषुः प० दधाव दधावतुः आ० धाव्यात् धाव्यास्ताम् धाव्यासुः श्व० धाविता धावितारौ धावितारः
धाविष्यति धाविष्यतः धाविष्यन्ति क्रि० अधाविष्यत् अधाविष्यताम् अधाविष्यन्
आत्मनेपद व० धावते
धावेते धावेत धावेयाताम् धावेरन् धावताम् धावेताम् धावन्ताम्
अधावत अधावेताम् अधावन्त अ० अधाविष्ट अधाविषाताम् अधाविषत
दधावुः
धावन्ते
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
227
दधाविरे
चीवेयुः
चीव्यासुः
प० दधावे दधावाते आ० धाविषीष्ट धाविषीयास्ताम् धाविषीरन् श्व० धाविता धावितारौ धावितार: भ० धाविष्यते धाविष्येते धाविष्यन्ते क्रि० अधाविष्यत अधाविष्येताम् अधाविष्यन्त
९२१ चीवृग् (चीव्) झषीवत्। झषी आदानसंवरणयोर्वक्ष्यते तद्वदयमप्यादानसंवरणयोरित्यर्थः। व० चीवति चीवतः चीवन्ति स० चीवेत् चीवेताम् प० चीवतु/चीवतात् चीवताम्
चीवन्तु ह्य० अचीवत् अचीवताम् अचीवन् अ० अचीवीत् अचीविष्टाम्
अचीविषुः प० चिचीव चिचीवतुः चिचीवुः आ० चीव्यात् चीव्यास्ताम् श्व० चीविता चीवितारौ चीवितारः भ० चीविष्यति चीविष्यतः चीविष्यन्ति क्रि० अचीविष्यत् अचीविष्यताम् अचीविष्यन्
आत्मनेपद व० चीवते चीवेते
चीवन्ते स० चीवेत चीवेयाताम् चीवेरन् प० चीवताम् चीवेताम्
चीवन्ताम् ह्य० अचीवत अचीवेताम् अचीवन्त अ० अचीविष्ट अचीविषाताम् अचीविषत प० चिचीवे चिचीवाते चिचीविरे आ० चीविषीष्ट चीविषीयास्ताम् चीविषीरन् श्व० चीविता चीवितारौ चीवितारः भ० चीविष्यते चीविष्येते चीविष्यन्ते क्रि० अचीविष्यत अचीविष्येताम् अचीविष्यन्त
अथ शान्तः सेट् च।
९२२ दाशृङ् (दाश्) दाने। व० दाशति
दाशतः
दाशन्ति स० दाशेत् दाशेताम् दाशेयुः
प० दाशतु/दाशतात् दाशताम् दाशन्तु ह्य० अदाशत् अदाशताम् अदाशन् अ० अदाशीत् अदाशिष्टाम् अदाशिषुः प० ददाश ददाशतुः ददाशुः आ० दाश्यात् दाश्यास्ताम् दाश्यासुः श्व० दाशिता दाशितारौ दाशितार: | भ० दाशिष्यति दाशिष्यतः दाशिष्यन्ति क्रि० अदाशिष्यत् अदाशिष्यताम् अदाशिष्यन्
आत्मनेपद व० दाशते दाशेते दाशन्ते स० दाशेत दाशेयाताम् । दाशेरन् प० दाशताम् दाशेताम् दाशन्ताम् ह्य० अदाशत
अदाशेताम् अदाशन्त अ० अदाशिष्ट अदाशिषाताम् अदाशिषत प० ददाशे ददाशाते ददिाशरे आ० दाशिषीष्ट दाशिषीयास्ताम् दाशिषीरन् श्व० दाशिता दाशितारौ दाशितारः भ० दाशिष्यते दाशिष्येते दाशिष्यन्ते क्रि० अदाशिष्यत अदाशिष्येताम् अदाशिष्यश्त
अथ षान्ता नव त्विषींवर्जाः सेटश्च।
९२३ झषि (झए) आदानसंवरणयोः। व० झषति झषतः स० झषेत् झषेताम् झषेयुः प० झषतु/झषतात् झषताम् झषन्तु ह्य० अझषत् अझषताम् अझषन् अ० अझषीत् अझषिष्टाम् अझषिषुः
तथा अझाषीत् अझाषिष्टाम् अझाषिषुः प० जझष जझषतुः
जझषुः आ० झष्यात् झष्यास्ताम् झष्यासुः श्व० झषिता झषितारौ झषितारः भ० झषिष्यति झषिष्यतः झषिष्यन्ति क्रि० अझषिष्यत् अझषिष्यताम् अझषिष्यन्
झषन्ति
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
228
व०
स०
प० झषताम्
ह्य०
अझषत
अझषिष्ट
जझषे
झषिषीष्ट
झषिता
भ०
झषिष्यते
क्रि० अझषिष्यत
अ०
प०
आ०
왕이
व०
स०
प०
ह्य०
공용명용 공용
अ०
प०
भ०
व०
स०
प०
आ० भेष्यात्
भेषिता
भेषिष्यति
क्रि० अभेषिष्यत्
ह्य०
अ०
झषते
झषेत
प०
आ०
श्व०
भेषति
भेषेत्
अभेषत्
अभेषीत्
बिभेष
भेषते
भेषेत
भेषताम्
भेषेताम्
भेषतु/भेषतात् भेषताम्
अभेषत
अभेषिष्ट
बिभेषे
भेषिषीष्ट
भेषिता
आत्मनेपद
झषेते
झषन्ते
झषेयाताम्
झषेरन्
झषेताम्
झषन्ताम्
अझषेताम्
अझषन्त
अझषिषाताम् अझषिषत
जझषाते
जझषिरे
झषिषीयास्ताम् झषिषीरन्
झषितारौ
झषितार:
झषिष्येते
झषिष्यन्ते
अझषिष्यष्त
अझषिष्येताम्
९२४ भेषृग् (भेषू) भये।
भेषत:
अभेषताम्
अभेषष्टम्
बिभेषतुः
भेष्यास्ताम्
भेषितारौ
भेषिष्यतः
अभेषिष्यताम्
आत्मनेपद
भेषन्ति
भेषेयुः
भेषन्तु
अभेषन्
अभेषिषुः
बिभेषुः
भेषेते
भेषेयाताम्
भेषेताम्
अभेषेाम्
अभेषिषाताम्
बिभेषाते
भेष्यासुः
भेषितारः
भेषिष्यन्ति
अभेषिष्यन्
भेषन्ते
भेषेरन्
भेषन्ताम्
अभेषन्त
अभेषिषत
बिभेषिरे
भेषिषीयास्ताम् भेषिषीरन्
भेषितारौ
भेषितारः
व०
भ०
क्रि० अभेषिष्यत
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
이
व०
स०
आ यात्
श्रेषिता
भ०
भ्रेषिष्यति
क्रि० अभ्रेषिष्यत्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
भेषिष्यन्ते
अभेषिष्येताम्
अभेषिष्यष्त
९२५ भ्रेषृग् (भ्रेष्) चलने च । चकराये ।
भ्रेषति
भ्रेषतः
श्रेषन्ति
षेत्
ह्य०
भेषिष्यते भेषिष्येते
ल
भ्रेषेताम्
भ्रेषतु/भ्रेषतात् भ्रेषताम्
अभ्रेषत् अभ्रेषताम्
अभ्रेषीत्
बिष
प० भ्रेषताम्
अभ्रेषत
अ० अभ्रेषिष्ट
प० बिषे
आ० भ्रेषिषीष्ट
왕이 भ्रेषिता
अ०
भ्रेषते
भ्रेषेत
अपषीत्
अष्टम्
बिभ्रेषतुः
भ्रेष्यास्ताम्
श्रेषितारौ
भ्रेषिष्यतः
अभ्रेषिष्यताम्
आत्मनेपद
भ्रेषेते
श्रेयाताम्
भ्रेषेताम्
अभ्रेताम्
अभ्रेषिषत
रे
भ्रेषिषीरन्
थ्रेषितार:
भ०
भ्रेषिष्यते
भ्रेषिष्यन्ते
क्रि० अभ्रेषिष्यत
अभ्रेषिष्येताम् अभ्रेषिष्यष्त
९२६ पषि (पष्) बाधनस्पर्शनयोः । स्पर्शनं ग्रन्थनम्।।
व०
पति
पषतः
पषन्ति
स०
पत्
पताम्
पषेयुः
प०
पषतु / पषतात् पषताम्
पषन्तु
ह्य०
अपषत्
अपषन्
अपात्
अपाषिषुः
अपाषिषुः
ताम्
बिषा
भ्रेषिषीयास्ताम्
श्रेषितारौ
भ्रेषिष्येते
अपषताम्
अपाषिष्टाम्
भ्रेषेयुः
भ्रेषन्तु
अभ्रेषन् -
तथा
अपाषिष्टाम्
अभ्रेषिषुः
बिभ्रेषुः
श्रेष्यासुः
श्रेषितार:
भ्रेषिष्यन्ति
अभ्रेषिष्यन्
भ्रेषन्ते
श्रेषेरन्
भ्रेषन्ताम्
अभ्रेषन्त
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
पपष
पष्यात्
पषिता
भ०
पषिष्यति
क्रि० अपषिष्यत्
प०
आ०
go
पषते
पषेत
पषताम्
अपषत
अपषिष्ट
पपषे
पषिषीष्ट
पषिता
भ०
पषिष्यते
क्रि० अपषिष्यत
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
वo
व०
स०
प०
ह्य०
व०
स०
प०
ह्य०
लष्यति
लष्येत्
प०
अलषत्
अ० अलाषीत्
पपषतुः
पष्यास्ताम्
पषितारौ
पषिष्यतः
पपषुः
पष्यासुः
पषितार:
पषिष्यन्ति
अपषिष्यताम् अपषिष्यन्
आत्मनेपद
अलषीत्
ललाष
आ० लष्यात्
पषन्ते
परन्
पषन्ताम्
अपषन्त
अपषिषत
पपिषरे
पषिषीयास्ताम् पषिषीरन्
पषितार:
पषिष्यन्ते
अपषिष्यष्त
अपषिष्येताम्
९२७ लषी (लघु) कान्तौ ।
कान्तिरिच्छा।
पते
पषेयाताम्
पताम्
अपताम्
अपषिषाताम्
पपषाते
लष्यतः
लष्येताम्
लष्यतु/लष्यतात् लष्यताम्
अलष्यत् अलष्यताम्
लषति
लषेत्
पषितारौ
पषिष्येते
लषतः
लषेताम्
लषतु/लषतात् लषताम्
लष्यन्ति
लष्येयुः
लष्यन्तु
अलष्यन्
लषन्ति
लषेयुः
लषन्तु
अलषताम्
अलषन्
अलाषष्टाम् अलाषिषुः
तथा
अलषिष्टाम्
लेषतुः
लष्यास्ताम्
अलषिषुः
लेषुः
लष्यासुः
ᄋ
भ०
क्रि०
व०
स०
प० लष्यताम्
ह्य०
अलष्यत
व०
लषते
स०
लषेत
प०
ह्य०
लषताम्
अलषत
अलषिष्ट
लेषे
लषिषीष्ट
लषिता
भ०
लषिष्यते
क्रि० अलषिष्यत
अ०
प०
आ०
व०
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
लषिता
लषिष्यति
अलषिष्यत्
आ०
लष्यते
लष्येत
왕이
व०
चष्यात्
चषिता
भ०
चषिष्यति
क्रि० अचषिष्यत्
चषते
लषितारौ
लषिष्यतः
अलषिष्यताम्
आत्मनेपद
लष्येते
येयाताम्
येताम्
अलष्येताम्
लषेते
लषेयाताम्
ताम्
अलषेताम्
अलषिषाताम्
लेषा
लषितारौ
लषिष्येते
लषितार:
लषिष्यन्ति
अलषिष्यन्
रन्
लषन्ताम्
अलषन्त
अलषिषत
लेषरे
लषिषीयास्ताम् लषिषीरन्
लषितार: लषिष्यन्ते
अलषिष्येताम् अलषिष्यष्त
लष्यन्ते
येरन्
लष्यन्ताम्
अलष्यन्त
लषन्ते
९२८ चषी (चष्) भक्षणे ।
चषतः
चषताम्
चषति
चषेत्
चषतु / चषतात् चषताम्
अचषत्
अचषताम्
अत्
अचषिष्टाम्
अचाषीत्
अचाषिष्टाम्
चचाष
चेषतुः
चष्यास्ताम्
चष्यासुः
चषितारौ
चषितार:
चषिष्यतः
चषिष्यन्ति
अचषिष्यताम् अचषिष्यन्
आत्मनेपद
चषेते
चषन्ति
चषेयुः
चषन्तु
अचषन्
अचषिषुः
अचाषिषुः इत्यादि
चेषुः
229
चषन्ते
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
230
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
स० चषेत
चषेयाताम्
चरष् चषताम् चषेताम् चषष्ताम्
अचषत अचषेताम् अचषन्त ____ अचषिष्ट अचषिषाताम् अचषिषत प० चेषे चेषाते
चेषिरे आ० चषिषीष्ट चषिषीयास्ताम् चषिषीरन् श्व०
चषिता चषितारौ चषितारः भ० चषिष्यते चषिष्येते चषिष्यन्ते क्रि० अचषिष्यत अचषिष्येताम अचषिष्यष्त
९२९ छषी (छष्) हिंसायाम्। व० छषति छषतः
छषन्ति छषेत् छषेताम् छषेयुः प० छषतु/छषतात् छषताम् छषन्तु ह्य० अच्छषत् अच्छषताम् अच्छषन् अ० अच्छाषीत् अच्छाषिष्टाम् । अच्छाषिषु:
तथा अच्छषीत् अच्छाषिष्टाम् अच्छाषिषुः प० चच्छष चच्छषतुः चच्छषुः आ० छष्यात् छष्यास्ताम् छष्यासुः
छषिता छषितारौ छषितार: भ० छषिष्यति छषिष्यतः छषिष्यन्ति क्रि० अछषिष्यत् अछषिष्यताम् अछषिष्यन्
आत्मनेपद व० छषते छषेते
छषन्ते स० छषेत छषेयाताम् छषेरन् छषताम्
छषेताम् छषन्ताम् अच्छषत अच्छषेताम् अच्छषन्त अ० अच्छषिष्ट अच्छषिषाताम् अच्छषिषत प० चच्छषे चच्छषाते चच्छषिरे आ० छषिषीष्ट छषिषीयास्ताम् छषिषीरन् श्व० छषिता
छषितारौ
छषितार: भ० छषिष्यते छषिष्येते छषिष्यन्ते
| क्रि० अच्छषिष्यत अच्छषिष्येताम् अच्छषिष्यष्त
९३० त्विषीं (त्विष्) दीप्तौ। व० त्वेषति त्वेषतः त्वेषन्ति स० त्वेषेत् त्वेषताम् त्वेषेयुः प० त्वेषतु/त्वेषतात् त्वेषताम् त्वेषन्तु ह्य० अत्वेषत् । अत्वेषताम् अत्वेषन्
अत्विक्षत् अत्विाक्षतम् अत्विक्षन प० त्विवेष तित्विषतुः तित्विषु: आ० त्विष्यात् त्विष्यास्ताम् त्विष्यासुः श्व० त्वेषिता त्वेषितारौ त्वेषितारः भ० त्वेषिक्ष्यति त्वेक्ष्यतः त्वेक्ष्यन्ति क्रि० अत्वेक्ष्यत् अत्वेक्ष्यताम् अत्वेक्ष्यन्
आत्मनेपद व० त्वेषते त्वेषेते त्वेषन्ते स० त्वेषेत त्वेषयाताम् त्वेषेरन् __ त्वेषताम्
त्वेषताम् त्वेषन्ताम् ह्य० अत्वेषत अत्वेषेताम् अत्वेषन्त अ० अत्विक्षत अत्विक्षाताम् अत्विक्षन्त प० तित्विषे तित्विषाते तित्विषिरे आ० त्विक्षीष्ट त्विक्षीयास्ताम् त्विक्षीरन् श्व० त्वेषिता त्वेषितारौ त्वेषितार: भ० त्वेक्ष्यते त्वेक्ष्येते त्वेक्ष्यन्ते क्रि० अत्वेक्ष्यत अत्वेक्ष्येताम् अत्वेक्ष्यष्त
९३१ अषी (अष्) गत्यादानयोश्च चकारादीप्तौ। व० अषति अषतः
अषन्ति स० अषेत् अषेताम्
अषेयुः प० अषतु/अषतात् अषताम्
अषन्तु ह्य० आषत्
आषताम् अ० आषीत् आषिष्टाम् प० आष आषतुः
आषुः आ० अष्यात् अष्यास्ताम् अष्यासुः
प्यात
आषन् आषिषुः
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
원이 अषिता
भ०
अषिष्यति
क्रि० आषिष्यत्
व०
स०
प० अषताम्
ह्य० आषत
अ०
आषिष्ट
आषे
प०
अषिषीष्ट
अषिता
भ०
अषिष्यते
क्रि० आषिष्यत
आ०
वо
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
go
व०
अषते
अषेत
स०
प०
अषितारौ
अषिष्येते
आषिष्येताम्
अथ सान्तौ सेटौ च ।
९३२ असी (अस्) गत्यादानयोश्च । चकाराद्दीप्तौ ।
भ०
असिष्यति
क्रि० आसिष्यत्
ह्य०
अ०
आसत्
आसीत्
आस
अस्यात्
असिता
असति
असत:
असेत् असेताम्
असतु/असतात् असताम्
आसताम्
आसिष्टाम्
आसतुः
अस्यास्ताम्
असितारौ
असिष्यतः
असते
असेत
अषितारौ
अषिष्यतः
आषिष्यताम्
आत्मनेपद
असताम्
आसत
आसिष्ट
अषेते
अषन्ते
अषेयाताम्
अषेरन्
अषेताम्
अषन्ताम्
आषेताम् आषन्त
आषिषाताम् आषिषत
आषाते
आषिरे
अषिषीयास्ताम् अषिषीरन्
अषितार:
अषिष्यन्ते
आषिष्यष्त
अषितारः
अषिष्यन्ति
आषिष्यन्
आसिष्यताम्
आत्मनेपद
असेते
असे
असेताम्
आसेताम्
आसिषाताम्
असन्ति
असेयुः
असन्तु
आसन्
आसिषुः
आसुः
अस्यासुः
असितारः
असिष्यन्ति
आसिष्यन्
असन्ते
असेरन्
असन्ताम्
आसन्त
आसिषत
आसे
असिषीष्ट
असिता
भ०
असिष्यते
क्रि० आसिष्यत
प०
आ०
go
공용병용 공용왱딩쑁굉
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
भ०
공용명용 공똥왱성경광
दासिष्यति
क्रि० अदासिष्यत्
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
ᄋ
भ०
दास्यात्
दासिता
व०
स०
प०
दासति दासतः
दासेत्
दासेताम्
दासतु/ दासतात् दासताम्
अदासत्
अदासताम्
अदासीत्
अदासिष्टाम्
ददास
ददासतुः
दास्यास्ताम्
दासितारौ
दासिष्यतः
अदासिष्यताम्
आत्मनेपद
दासते
दासेत
आ० दासिषीष्ट
९३३ दासृग् (दास्) दाने।
दासिता
दासिष्यते
क्रि० अदासिष्यत
दासताम्
अदासत
अदासिष्ट
ददा
असाते
असिषीयास्ताम्
असितारौ
असिष्येते
आसिरे
असिषीरन्
असितार:
असिष्यन्ते
आसिष्येताम् आसिष्यन्त
दासेते
दासेयाताम्
दासेताम्
दासन्ति
दासेयुः
दासिषीयास्ताम्
दासितारौ
दासिष्येते
दासन्तु
अदासन्
अदासिषुः
ददासुः
दास्यासुः
द सितार:
दासन्ते
दासेरन्
दासन्ताम्
दाम् अदासन्त
अदासिषाताम् अदासिषत
असाते
ददासिरे
दासिषीरन्
दासितार:
दासिष्यन्ते
अदासिष्यन्त
दासियन्त
अदासिष्यन्
अदासिष्येताम्
अथ हान्तौ सेटौ च ।
९३४ माहृग् (माह्) माने । मानं वर्तनम् ।
माहति
माहतः
माहन्ति
माहेत्
माहेताम्
माहेयुः
माहतु/माहतात् माहताम्
माहन्तु
231
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
232
ह्य०
अ०
प०
आ०
ममाह
माह्यात्
माहिता
भ०
माहिष्यति
क्रि० अमाहिष्यत्
go
व०
स०
प०
ह्य०
अ०
प०
आ०
श्व०
अमाहत् अमाहताम्
महत्
अमाहिष्टाम्
स०
प०
माहते
माहेत
व० गूहति
गूहसि
गूहामि
गुहेत्
गूहे:
ह्य०
माहताम्
अमाहत
अमाहिष्ट
ममा
माहिषीष्ट
माहिता
माहिष्यते
भ०
क्रि० अमाहिष्यत माहिष्म्
ममाहतुः
माह्यास्ताम्
माहितारौ
माहिष्यतः
अमाहिष्यताम् महिष्यन्
आत्मनेपद
म्
अमाहेताम्
अमाहिषाताम्
ममाहाते
माहिषीयास्ताम्
माहितारौ
माहिष्येते
गूम्
गूहतु / गूहतात्
गूह / गूहतात्
गूहानि
अगूहत्
अगूह:
अगूहम्
अमाहन्
अमाहिषुः
ममाहुः
माह्यासुः
माहितार:
माहिष्यन्ति
माहेते
माहन्ते
माहेयाताम् माहेरन्
माहन्ताम्
अमाहन्त
अमाहिषत
ममाहिरे
माहिषीरन्
माहितार:
माहिष्यन्ते
अमाहिष्यन्त
९३५ गुहौग् (गुह्) संवरणे।
गूहत:
गूहथ:
गूहाव:
गूहेताम्
गूहेतम्
गूहेव
गूहताम्
गूहतम्
गूहाव
गूहन्ति
गूहथ
गूहाम:
हेयुः
गुहेत
हेम
गूहन्तु
गूहत
गूहाम
अगूहताम् अगूहन्
अगूहतम्
अगूहत
अगूहाव
अगूहाम
अ० अत्
अगूही
अगूहिषम्
प०
जुगूह
जुगूह
जुगूह
आ० गुह्यात्
गुह्या:
गुह्यासम्
गूहिता
गूहितासि
गूहितास्मि
ᄋ
अघुक्षत्
अघुक्षः
अघुक्षम्
भ०
अगूहिष्टाम्
ट
अगूहिष्व
तथा
अघुक्षताम्
अघुक्षन्
अघुक्षतम् अघुक्षत
अघुक्षाव
अघुक्षाम
जुगूहतुः
जुगुहथुः
जुगुहिव
गुह्यास्ताम्
गुह्यास्तम्
गुह्यास्व
हिरौ
गूहितास्थः
गूहितास्वः
तथा
गोढा
गोढारौ
गोढासि
गोढास्थ:
गोढास्मि गोढास्वः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अगूहिषुः
अगूहिष्ट
अगूहिष्म
जुगुहुः
जुगुह
जुगुहिम
गुह्यासुः
गुह्यास्त
क्रि० अगूहिष्यत् अगूहिष्यताम्
अगूहिष्य: अमाहिष्यतम्
अमाहिष्यम् अमाहिष्याव
तथा
गुह्यास्म
गूहितार:
गूहितास्थ
गूहितास्मः
गोढार:
गोढास्थ
गोढास्मः
गूहिष्यति
गूहिष्यसि गूहिष्यथः
गूहिष्यामि हिष्यावः गूहिष्यामः
तथा
गूहिष्यतः गूहिष्यन्ति
थि
घोक्ष्यति
घोक्ष्यतः
घोक्ष्यन्ति
घोक्ष्यसि
घोक्ष्यथः
घोक्ष्यथ
घोक्ष्यामि घोक्ष्यावः घोक्ष्यामः
अगूहिष्यन्
अमाहिष्यत
अमाहिष्याम्
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
233
घुक्षीमहि
घुक्षीवहि गृहितारौ
श्व०
गृहिता
गृहेते
गोढा
श्व०
गूहसे
गृहध्वे
गृहेथे
गृहेय
गूहिष्ये
गूहावहै
अघोक्ष्यत् अघोक्ष्यताम् अघोक्ष्यन्
घुक्षीष्ठाः घुक्षीयास्थाम् घुक्षीध्वम् अगूहिष्यः अघोक्ष्यतम् अघोक्ष्यत
घुक्षीय अघोक्ष्यम् अघोक्ष्याव अघोक्ष्याम्
गृहितारः आत्मनेपद
गृहितासे गृहितासाथे गृहिताध्वे व० गृहते
गृहन्ते
गृहिताहे गृहितास्वहे गृहितास्महे
गोढारौ गोढार:
गोढासे - गोढासाथे गोढाध्वे गृहावहे गृहामहे
गोढाहे गोढास्वहे: गोढास्महे: गूहेत गृहेयाताम् गृहेरन्
गृहिष्यते गृहिष्येते गूहिष्यन्ते गृहेथाः गृहेयाथाम् गृहेध्वम्
गृहिष्यसे गूहिष्येथे गूहिष्यध्वे गृहेवहि गृहेमहि
गूहिष्यावहे गूहिष्यामहे प० गूहताम् गृहेताम् गृहन्ताम्
| भ० घोक्ष्यते घोक्ष्येते घोक्ष्यन्ते गृहस्व गूहेथाम् गृहध्वम्
घोक्ष्यसे घोक्ष्येथे घोक्ष्यध्वे गूहामहै
घोक्ष्ये
घोक्ष्यावहे घोक्ष्यामहे ह्य० अगूहत अगूहेताम् अगूहन्त
क्रि० अगहिष्यत अगहिष्येताम अगहिष्यन्त अगूहथाः अगूहेथाम अगूहध्वम्
अगूहिष्यथाः अगूहिष्येथाम् अगूहिष्यध्वम् अगूहे अगृहावहि अगूहामहि
अगूहिष्ये अगूहिष्यावहि अगूहिष्यामहि अ० अगूहिष्ट अगूहिषाताम् अगूहिषत
क्रि०
अघोक्ष्यत अघोक्ष्येताम् अघोक्ष्यन्त अगूहिष्ठाः अगूहिषाथाम् अगूहिड्ढवमढवम्/ध्वम्
अघोक्ष्यथाः अघोक्ष्येथाम् अघोक्ष्यध्वम् अगहिषि अगूहिष्वहि अगूहिष्महि
अघोक्ष्ये अघोक्ष्यावहि अघोक्ष्यामहि
९३६ श्लक्षी (भलक्ष्) भक्षणे।
व० भ्लक्षति भ्लक्षतः भ्लक्षन्ति अगूढ/अघुक्षत अघुक्षाताम् अघुक्षन्त
भ्लक्षेत् भ्लक्षेताम् भ्लक्षेयुः अगूढाः/अघुक्षथाः अघुक्षाथाम् अघूढ्वम्/अघुक्षध्वम्
भ्लक्षतु/भ्लक्षतात् भ्लक्षताम् भ्लक्षन्तु अघुक्षि अगुह्वहि/अघुक्षावहि अघुमहि/अघुक्षामहि
अभ्लक्षत् अभ्लक्षताम् अभ्लक्षन्
अभ्लक्षीत् अभ्लक्षिष्टाम् अभ्लक्षिषुः जुगुहाथे
प० बभ्लक्ष बभ्लक्षतुः बभ्लक्षुः जुगुहे जुगुहिवहे जुगुहिमहे
आ० भ्लक्ष्यात् भ्लक्ष्यास्ताम् भ्लक्ष्यासुः आ० गूहिषीष्ट गृहिषीयास्ताम् गूहिषीरन्
श्व० भ्लक्षिता भ्लक्षितारौ भ्लक्षितार: गूहिषीष्ठाः गृहिषीयास्थाम् गृहिषीध्वम्
भ० भ्लक्षिष्यति भ्लक्षिष्यतः भ्लक्षिष्यन्ति गूहिषीय गृहिषीवहि गूहिषीमहि
क्रि० अभ्लक्षिष्यत् अभ्लक्षिष्यताम अभ्लक्षिष्यन् आ० घुक्षीष्ट घुक्षीयास्ताम् घुक्षीरन्
तथा
स०
जुगुहे
जुगुहाते
जुगुहिरे जुगुहिध्वे
जुगुहिषे
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
234
व०
स०
भ्लक्षेते
भ्लक्षन्ते
लक्षेयाताम् लक्षेरन्
लक्षेताम्
भ्लक्षन्ताम्
अभ्लक्षेताम्
अभ्लक्षन्त
अभ्लक्षिषाताम् अभ्लक्षिषत
अक्षा
बभ्लक्षिरे
भ्लक्षिषीष्ट भ्लक्षिषीयास्ताम्
लक्षिषीरन्
भ्लक्षिता
भ्लक्षितारौ
लक्षितार:
भ०
भ्लक्षिष्यते भ्लक्षिष्येते
लक्षिष्यन्ते
क्रि० अभ्लक्षिष्यत अभ्लक्षिष्येताम् अभ्लक्षिष्यन्त ९३७. द्युति (द्युत्) दीप्तौ ।
धोतेते
द्योतन्ते
द्योतेथे
द्योतध्वे
द्योतावहे
द्यतामहे
द्योतेन्
द्यध्वम्
द्यो महि
प० भ्लक्षताम्
हा०
अभ्लक्षत
अ०
अभ्लक्षिष्ट
बभ्लक्षे
प०
आ०
भ्लक्षते
लक्षेत
이
व० द्योतते
द्योतसे
द्योते
स० द्योतेत
द्योतेथा:
धोतेय
प० द्योतताम्
द्योतस्व
द्योतै
प०
० अद्योतत
अद्योतथा:
अद्यो
अ० अद्योतिष्ट
अद्योतिष्ठा:
अद्योतिषि
अद्युतत्
अद्युतः
अद्युतम्
दिद्यते
दिद्युतिषे
आत्मनेपद
द्योतेयाताम्
द्ययाथाम्
द्यवहि
द्योताम्
द्योतेथाम
द्योता है
अद्यताम्
अद्योतन्त
अद्यतेथाम
अद्यतध्वम्
अद्योतावहि
अद्योतामहि
अद्योतिषाताम् अद्योतिषत
अद्योतिषाथाम् अद्योतिडूवम/ध्वम् अद्योतिष्वहि अद्योतिष्महि
तथा
द्योतन्ताम्
द्योतध्वम्
धोता है
अघुतताम् अद्युतन्
अद्युततम् अद्युतत
अद्युताम
दिधुतिरे
दिधुतिध्वे
अद्युताव
दिद्यताते
दिधुता
दिद्युते आ० द्योतिषीष्ट
द्योतिषीष्ठाः
द्योतिषीय
दिधुतिव दिधुतिमहे द्योतिषीयास्ताम् द्योतिषीरन् द्योतिषीयास्थाम् द्योतिषीध्वम् द्योतिषीवहि द्योतिषीमहि
द्योतितारौ
द्योतितार:
द्योतितासाथे
द्योतिताध्वे
द्योतितास्वहे द्योतितास्मिहे
द्योतिष्येते
द्योतिष्यन्ते
द्योतिष्येथे
द्योतिष्यध्वे
द्योतिष्याव द्योतिष्यामहे अद्योतिष्येताम्
अद्योतिष्यन्त
अद्योतिष्येथाम् अद्योतिष्यध्वम्
अद्योतिष्यावहि
अद्योतिष्यामहि
९३८. रुचि (रुच्) अभिप्रीत्यांच
चकाराद्रीप्तौ । अभिप्रीतिरलिलाषः ॥
रोचेते
रोचन्ते
श्व० द्योतिता
द्योतितासे
द्योतिताहे
भ० द्योतिष्यते
द्योतिष्यसे
द्योतिष्ये
क्रि० अद्योतिष्यत
अद्योतिष्यथाः
अद्योतिष्ये
व० रोचते
स० रोचेत
प० रोचताम्
ह्य० अरोचत
अ० अरोचिष्ट
अरुचत्
प० रुरुचे
आ० रोचिषीष्ट
व० रोचिता
भ० रोचिष्यते
रोचिष्यसे
रोचिष्ये
क्रि० अरोचिष्यत
अरोचिष्यथाः
अरोचिष्ये
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
रोचेयाताम्
चेन्
रोचेताम् रोचन्ताम्
अरोचेताम्
अरोचन्त
अरोचिषाताम्
अरोचिषत
तथा
अरुचताम्
रुरुचाते
अरुचन्
रुरुचिरे
रोचिषीयास्ताम् रोचिषीरन्
रोचितारौ
रोचितार:
रोचिष्येते
रोचिष्यन्ते
रोचिष्येथे
रोचिष्यध्वे
रोचिष्यावहे रोचिष्यामहे
अरोचिष्येताम् अरोचिष्यन्त
अरोचिष्येथाम्
अरोचिष्यध्वम्
अरोचिष्यावहि अरोचिष्यामहि
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
235
घोटेते
लुलुटाते
॥ अथ टान्तास्त्रयः॥
९३९. घुटि (घुट) परिवर्तने। व० घोटते
घोटन्ते स० घोटेत
घोटेयाताम् प० घोटताम्
घोटेताम्
घोटन्ताम् ह्य० अघोटत अघोटेताम् अघोटन्त अ० अघोटिष्ट अघोटिषाताम् अघोटिषत
घोटेरन्
तथा
लोठन्ताम्
घोटितारः
अघुटत् अघुटताम् अघुटन् प० जुघुटे जुघुटाते जुघुटिरे आ० घोटिषीष्ट घोटिषीयास्ताम् घोटिषीरन् श्व० घोटिता घोटितारौ भ० घोटिष्यते घोटिष्येते घोटिष्यन्ते क्रि० अघोटिष्यत अघोटिष्येताम अघोटिष्यन्त
९४०. रुटि (रुट्) प्रतीघाते। व० रोटते
रोटेते
रोटन्ते स० रोटेत
रोटेयाताम्
रोटेरन् प० रोटताम् रोटेताम् रोटन्ताम् ह्य० अरोटत अरोटेताम् अरोटन्त अ० अरोटिष्ट अरोटिषाताम् अरोटिषत
तथा अरुटत् अरुटताम्
अरुटन् प० रुरुटे रुरुटाते
रुरुटिरे आ० रोटिषीष्ट रोटिषीयास्ताम् रोटिषीरन् श्व० रोटिता रोटितारौ
रोटितारः भ० रोटिष्यते रोटिष्येते रोटिष्यन्ते
अरोटिष्येताम् अरोटिष्यन्त ९४१. लुटि (लुट्) प्रतिघाते।
आद्योदिप्तावित्यन्ये। व० लोटते लोटेते लोटन्ते स० लोटेत लोटेयाताम् लोटेरन् प० लोटताम् लोटेताम् लोटन्ताम् ह्य० अलोटत अलोटेताम् अलोटन्त अ० अलोटिष्ट अलोटिषाताम् अलोटिषत
तथा अलुटत् अलुटताम् अलुटन् लुलुटे
लुलुटिरे आ० लोटिषीष्ट लोटिषीयास्ताम् लोटिषीरन् श्व० लोटिता लोटितारौ लोटितारः भ० लोटिष्यते लोटिष्येते लोटिष्यन्ते क्रि० अलोटिष्यत अलोटिष्येताम् अलोटिष्यन्त
९४२. लुठि (लु) प्रतिघाते। व० लोठते लोठेते लोठन्ते स० लोठेत लोठेयाताम् लोठेरन् प० लोठताम् लोठेताम्
अलोठत अलोठेताम् अलोठन्त अ० अलोठिष्ठ अलोठिषाताम् अलोठिषत
तथा अलुठत् अलुठताम् अलुठन् प० लुलुठे लुलुठाते लुलुठिरे आ० लोठिषीष्ट लोठिषीयास्ताम् लोठिषीरन् श्व० लोठिता लोठितारौ लोठितार: भ० लोठिष्यते लोठिष्येते लोठिष्यन्ते क्रि० अलोठिष्यत अलोठिष्येताम् अलोठिष्यन्त
॥अथ तान्तः॥
९४३. श्विताङ् (वित्) वर्णे। व० श्वेतते श्वेतेते श्वेतन्ते स० श्वेतेत
श्वेतेयाताम् श्वेतेरन् प० श्वेतताम्
श्वेतन्ताम् ह्य० अश्वेतत अश्वेतेताम् अश्वेतन्त अ० अश्वेतिष्ट अश्वेतिषाताम् अश्वेतिषत
तथा अश्वितत् अश्वितताम् अश्वितन् प० शिश्विते शिश्विताते शिश्वितिरे आ० श्वेतिषीष्ट श्वेतिषीयास्ताम् श्वेतिषीरन् श्व० श्वेतिता श्वेतितारौ श्वेतितारः भ० श्वेतिष्यते श्वेतिष्येते श्वेतिष्यन्ते क्रि० अश्वेतिष्यत अश्वेतिष्येताम् अश्वेतिष्यन्त
श्वेतेताम्
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
236
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तथा
मेदेरन्
अमिदत्
शोभन्ताम्
अथ दान्तास्त्रयः। ९४४. जिमिदाङ् (मिद्) स्नेहने।
अस्विदत अस्विदताम् अस्विदन् स्नेहनं स्नेहयोगः।
प० सिष्विदे सिष्विदाते सिष्विदिरे व० मेदते मेदेते मेदन्ते
आ० स्वेदिषीष्ट स्वेदिषीयास्ताम् स्वेदिषीरन् स० मेदेत मेदेयाताम्
व० स्वेदिता स्वेदितारौ स्वेदितारः प० मेदताम् मेदेताम मेदन्ताम्
भ० स्वेदिष्यते स्वेदिष्येते स्वेदिष्यन्ते ह्य० अमेदत अमेदेताम् अमेदन्त
क्रि० अस्वेदिष्यत अस्वेदिष्येताम अस्वेदिष्यन्त अ० अमेदिष्ट अमेदिषाताम् अमेदिषत
॥अथ लान्ताः पञ्च।। अमिदताम् अमिदन
९४७. शुलि (शुल्) दीप्तौ। प० मिमिदे मिमिदाते मिमिदिरे
व० शोभते शोभेते शोभन्ते आ० मेदिषीष्ट मेदिषीयास्ताम् मेदिषीरन् मेदितारौ
स० शोभेत श्व० मेदिता
शोभेयाताम् मेदितारः
शोभेरन् भ० मेदिष्यते मेदिष्येते मेदिष्यन्ते
| प० शोभताम्
शोभेताम् क्रि० अमेदिष्यत अमेदिष्येताम् अमेदिष्यन्त
ह्य० अशोभत अशोभेताम् अशोभन्त ९४५. लिक्ष्विदाङ् (विद्) मोचने च। चकारात्स्नेहने। | अ० अशोभिष्ट अशोभिषाताम् अशोभिषत व० श्वेदते श्वेदेते क्ष्वेदन्ते
तथा स० श्वेदेत श्वेदेयाताम् श्वेदेरत्
अशुभत अशुभताम् अशुभान् प० श्वेदताम् श्वेदेताम् श्वेदन्ताम् | प० शुशुभे शुशुभाते शुशुभिरे ह्य० अक्ष्वेदत अश्वेदेताम अक्ष्वेदन्त
आ० शोभिषीष्ट शोभिषीयास्ताम् शोभिषीरन् अ० अक्ष्वेदिष्ट अक्ष्वेदिषाताम् अक्ष्वेदिषत
श्व० शोभिता शोभितारौ शोभितारः भ० शोभिष्यते शोभिष्येते शोभिष्यन्ते
क्रि० अशोभिष्यत अशोभिष्येताम् अशोभिष्यन्त अक्ष्विदत अक्ष्विदताम् अक्ष्विदन् प० चिक्ष्विदे चिक्ष्विदाते चिक्ष्विदिरे
९४८. क्षुलि (क्षुल्) संचलने। आ० स्वदिषीष्ट क्ष्वेदिषीयास्ताम् क्ष्वेदिषीरन्
संचलनं रूपान्यथात्वम् व० क्षोभते क्षोभेते
क्षोभन्ते श्व० श्वेदिता क्ष्वेदितारौ क्ष्वेदितार:
स० क्षोभेत क्षोभेयाताम् भ० क्ष्वेदिष्यते क्ष्वेदिष्येते श्वेदिष्यन्ते
क्षोभेरन्
प० क्षोभताम् क्षोभेताम् क्षोभन्ताम् क्रि० अक्ष्वेदिष्यत अक्ष्वेदिष्येताम अक्ष्वेदिष्यन्त
ह्य० अक्षोभत अक्षोभेताम् अक्षोभन्त ९४६. त्रिविदाङ् (स्विद्) मोचने।
अ० अक्षोभिष्ट अक्षोभिषाताम् अक्षोभिषत स्नेहने च।
तथा व० स्वेदते स्वेदेते स्वेदन्ते
अक्षुभत् अक्षुभताम् अक्षुभन् स० स्वेदेत स्वेदेयाताम् प० चुक्षुभे
चुक्षुभिरे प० स्वेदताम् स्वेदेताम्
स्वेदन्ताम्
आ० क्षोभिषीष्ट क्षोभिषीयास्ताम् क्षोभिषीरन् ह्य० अस्वेदत अस्वेदेताम् अस्वेदन्त
व० क्षोभिता क्षोभितारौ क्षोभितार: अ० अस्वेदिष्ट अस्वेदिषाताम् अस्वेदिषत
तथा
स्वेदेरन्
चुक्षुभाते
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
237
तथा
भ० क्षोभिष्यते क्षोभिष्यते क्षोभिष्यन्ते क्रि० अक्षोभिष्यत अक्षोभिष्येताम् अक्षोभिष्यन्त
९४९ णभि (नभ्) हिंसायाम्।। व० नभते नभेते
नभन्ते स० नभेत नभेयाताम् नभेरन् प० नभताम् नभेताम्
नभन्ताम् ह्य० अनभत अनभेताम् अनभन्त अ० अनभिष्ट अनभिषाताम् अनभिषत अनभत् अनभताम्
अनभन् प० नेभे नेभाते
नेभिरे आ० नभिषीष्ट नभिषीयास्ताम्
नभिषीरन् श्व० नभिता नभितारौ नभितारः भ० नभिष्यते नभिष्येते नभिष्यन्ते क्रि० अनभिष्यत अनभिष्येताम् अनभिष्यन्त
९५० तुभि (तुभ्) हिंसायाम्।। व० तोभते तोभेते
तोभन्ते स० तोभेत तोभेयाताम् तोभेरन् । प० तोभताम् ह्य० अतोभत
अतोभेताम्
अतोभन् अ० अतोभिष्ट अतोभिषाताम अतोभिषत
भ्रंशेरन्
तोभेताम्
तोभन्ताम्
अस्रभत् अस्रभताम् अत्रभन् प० सत्रम्भे सस्रम्भाते सस्रम्भिरे आ० सम्भिषीष्ट स्रम्भिषीयास्ताम् सम्भिषीरन् श्व० स्रम्भिता सम्भितारौ सम्भितार: भ० सम्भिष्यते सम्भिध्येते स्रम्भिष्यन्ते क्रि० अम्भिष्यत अस्त्रम्भिष्येताम अस्रम्भिष्यन्त
॥अथ शान्ताः ।। ९५२. भ्रंशूङ् (भ्रंश्) अवलंसने। व० भ्रंशते
भ्रंशेते
भ्रंशन्ते स० भ्रंशेत भ्रंशेयाताम् प० भ्रंशताम् भ्रंशेताम् भ्रंशन्ताम् ह्य० अभ्रंशत अभ्रंशेताम् अभ्रंशन्त अ० अभ्रंशिष्ट अभ्रंशिषाताम् अभ्रंशिषत
तथा अभ्रशत् अभ्रशताम् अभ्रशन् प० बभ्रंशे बभ्रंशाते बभ्रंशिरे आ० भ्रंशिषीष्ट भ्रंशिषीयास्ताम् भ्रंशिषीरन् श्व० भ्रंशिता भ्रंशितारौ
भ्रंशितारः भ० भ्रंशिष्यते भ्रंशिष्येते भ्रंशिष्यन्ते क्रि० अभ्रंशिष्यत अभ्रंशिष्येताम अभ्रंशिष्यन्त
९५३. स्रंसूङ् (संस्) अवस्रंसने। व० स्रंसते स्रंसेते
खंसन्ते स० स्रंसेत स्रंसेयाताम्
स्रंसेरन् प० स्रंसताम्
स्रंसेताम् स्रंसन्ताम् ह्य० अस्रंसेत अस्रंसेताम् असंसन्त अ० अस्त्रसत् अस्रसताम्
अस्त्रसन्
तथा अस्त्रंसिष्ट अस्रंसिषाताम् अत्रंसिषत | प० सस्रंसे सस्रंसाते सत्रंसिरे
आ० खंसिषीष्ट स्रंसिषीयास्ताम् स्रंसिषीरन् श्व० स्त्रंसिता स्रंसितारौ स्रंसितार: भ० स्रंसिष्यते स्रंसिष्येते स्रंसिष्यन्ते क्रि० अस्रंसिष्यत अस्रंसिष्येताम् अस्रंसिष्यन्त
तथा
अतोभत् अतोभताम् अतोभन् प० तुतुभे तुतुभाते तुतुभिरे आ० तोभिषीष्ट तोभिषीयास्ताम् तोभिषीरन् श्व० तोभिता तोभितारौ तोभितार: भ० तोभिष्यते तोभिष्येते तोभिष्यन्ते क्रि० अतोभिष्यत अतोभिष्येताम् अतोभिष्यन्त
९५१. सम्भङ् (सम्भ) वि श्वासे। व० सम्भते
सम्भेते
सम्भन्ते स० सम्भेत सम्भेयाताम् स्रम्भेरन् प० सम्भताम् सम्भेताम् स्त्रम्भन्ताम् ह्य० असम्भत अस्रम्भेताम् असम्भन्त अ० अस्रम्भिष्ट अलम्भिषाताम् अस्रम्भिषत
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
238
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ध्वंसन्ताम्
अवृतम् प० ववृते
ववृतिषे
ववृते आ० वर्तिषीष्ट
वर्तिषीष्ठाः
वर्तिषीय | श्व० वर्तिता
वर्तितासे
वर्तिताहे भ० वर्तिष्यते
वर्तिष्यसे वर्तिष्ये
अवृताव ववृताते ववृताथे ववृतिहे वर्तिषीयास्ताम् वर्तिषीयास्थाम् वर्तिषीवहि वर्तितारौ वर्तितासाथे वर्तितास्वहे वर्तिष्येते वर्तिष्येथे वर्तिष्यावहे
अवृताम ववृतिरे ववृतिध्वे ववृतिमहे वर्तिषीरन् वर्तिषीध्वम् वर्तिषीमहि वर्तितारः वर्तिताध्वे वर्तितास्मिहे वर्तिष्यन्ते वर्तिष्यध्वे वर्तिष्यामहे
तथा
९५४. ध्वंसूङ् (ध्वंस्) गतौ च।
चकारादवप्रेसने। व० ध्वंसते ध्वंसेते ध्वंसन्ते स० ध्वंसेत ध्वंसेयाताम् ध्वंसेरन् प० ध्वंसताम् ध्वंसेताम् ह्य० अध्वंसेत अध्वंसेताम् अध्वंसन्त अ० अध्वसत् अध्वसताम् अध्वसन्
तथा अध्वंसिष्ट अध्वंसिषानाम् अध्वंसिषन प० दध्वंसे दध्वंसाते दध्वंसिरे आ० ध्वंसिषीष्ट ध्वंसिषीयास्ताम् ध्वंसिषीरन् श्व० ध्वंसिता ध्वंसितारौ ध्वंसितार: भ० ध्वंसिष्यते ध्वंसिष्येते ध्वंसिष्यन्ते क्रि० अध्वंसिष्यत अध्वंसिष्येताम् अध्वंसिष्यन्त
अथ द्युताद्यन्तर्गणो वृतादिः पञ्चकः ९५५. वृतूङ् (वृतू) वर्तने।
वर्तनं स्थितिः। व० वर्तते वर्तेते
वर्तन्ते वर्तसे वर्तेथे
वर्तध्वे वर्तावहे
वर्तामहे स० वर्तेत वर्तेयाताम्
वर्तेथाः वर्तेयाथाम् वर्तेध्वम् वर्तेय वर्तेवहि
वर्तेमहि
वर्तन्ताम् वर्तस्व वर्तेथाम वर्तध्वम्
वर्तावहै वर्तामहै ह्य० अवर्तत अवर्तेताम् अवर्तन्त अवर्तथाः अवर्तेथाम अवर्तध्वम्
अवर्तावहि अवर्तामहि अ० अवर्तिष्ट अवर्तिषाताम्
अवर्तिषत अवर्तिष्ठाः अवर्तिषाथाम् अवर्तिड्डवम/ध्वम् अवर्तिषि अवर्तिष्वहि अवर्तिष्महि
वर्त
वर्तेरन्
वर्तताम्
वर्तेताम्
वय॑ति वय॑तः वय॑न्ति इत्यादि क्रि० अवर्तिष्यत अवर्तिष्येताम् अवर्तिष्यन्त
अवर्तिष्यथाः अवर्तिष्येथाम् अवर्तिष्यध्वम् अवर्तिष्ये अवर्तिष्यावहि अवर्तिष्यामहि
तथा अवय॑त् अवय॑ताम् अवय॑न् इत्यादि
॥अथ दान्तः।। ९५६. स्यन्दौङ् (स्यन्द) स्रवणे। स्यन्दते स्यन्देते
स्यन्दन्ते स्यन्दसे स्यन्देथे स्यन्दध्वे
स्यन्दे स्यन्दावहे स्यन्दामहे स० स्यन्देत स्यन्देयाताम् स्यन्देरन्
स्यन्देथाः स्यन्देयाथाम् स्यन्देध्वम्
स्यन्देय स्यन्देवहि स्यन्देमहि प० स्यन्दताम् स्यन्देताम् स्यन्दन्ताम् स्यन्दस्व स्यन्देथाम स्यन्दध्वम्.
स्यन्दावहै स्यन्दामहै अस्यन्दत अस्यन्देताम् अस्यन्दन्त अस्यन्दथाः अस्यन्दथाम अस्यन्दध्वम्
अस्यन्दे अस्यन्दावहि अस्यन्दामहि अ० अस्यन्दिष्ट अस्यन्दिषाताम् अस्यन्दिषत
अस्यन्दिष्ठाः अस्यन्दिषाथाम् अस्यन्दिड्ढवम/ध्वम् अस्यन्दिषि अस्यन्दिष्वहि अस्यन्दिष्महि
वते
अवर्ते
स्यन्दै
तथा
अवृतत् अवृतः
अवृतताम् अवृततम्
अवृतन् अवृतत
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
239
दवह
व०
वर्धते
वर्धन्ते
तथा
तथा अ० अस्यदत् अस्यदताम् अस्यदन्
अस्यन्त्स्यत् अस्यन्त्स्येताम्। अस्यन्त्स्यन्त अस्यदः अस्यदतम् अस्यदत
अस्यन्त्स्यथाः अस्यन्त्स्येथाम् । अस्यन्त्स्यध्वम् अस्यदम् अस्यदाव
अस्यदाम
अस्यन्त्स्ये अस्यन्त्स्यावहि । अस्यन्त्स्यामहि अस्यन्त अस्यन्त्साताम् अस्यन्त्सत
तथा अस्यन्थाः अस्यन्त्साथाम् अस्यन्द्ध्वम्/न्ध्वम्/न्द्ध्वम्
अस्यन्त्स्यत् अस्यन्त्स्यताम् अस्यन्त्स्यन् अस्यन्त्सि अस्यन्त्सवहि अस्यन्त्समहि
अस्यन्त्स्यः अस्यन्त्स्यतम् अस्यन्त्स्यत प० सस्यन्दे सस्यन्दाते
सस्यन्दिरे
अस्यन्त्स्यम् अस्यत्स्याव अस्यन्त्स्याम सस्यन्दिषे सस्यन्तसे सस्यन्दाथे सस्यन्दिध्वे
॥अथ धान्तौः ॥ सस्यन्दे सस्यन्दिवहे सस्यन्दिमहे
९५७. वृधूङ् (वृथ्) वृद्धौ। आ० स्यन्दिषीष्ट स्यन्दिषीयास्ताम् स्यन्दिषीरन्
वर्धते स्यन्दिषीष्ठाः स्यन्दिषीयास्थाम् स्यन्दिषीध्वम्
स० वर्धेत वर्धेयाताम् वर्धेरन् स्यन्दिषीय स्यन्दिषीवहि स्यन्दिषीमहि
प० वर्धताम् वर्धेताम् वर्धन्ताम् तथा
ह्य०
अवर्धेताम् स्यन्त्सीष्ट स्यन्त्सीयास्ताम् स्यन्त्सीरन्
अवर्धत
अवर्धन्त स्यन्त्सीष्ठाः स्यन्त्सीयास्थाम् स्यन्त्सीध्वम्
अ० अवर्धिष्ट अवर्धिषाताम् अवर्धिषत स्यन्त्सीय स्यन्त्सीवहि स्यन्त्सीमहि
तथा म्यन्दिता स्यन्दितारौ स्यन्दितारः
अवृधत् अवृधताम् अवृधन् स्यन्दितासे स्यन्दितासाथे स्यन्दिताध्वे प० ववृधे ववृधाते ववृधिरे स्थन्दिताहे स्यन्दितास्वहे स्यन्दितास्मिहे आ० वर्धिषीष्ट वर्धिषीयास्ताम् वर्धिषीरन्
श्व० वर्धिता वर्धितारौ वर्धितारः स्यन्ता स्यन्तारौ स्यन्तारः भ० वर्धिष्यते वर्धिष्येते वर्धिष्यन्ते स्यन्तासे स्यन्तासाथे स्यन्ताध्वे भ० वय॑ति वय॑तः वय॑न्ति स्यन्ताहे स्यन्तास्वहे स्यन्तास्मिहे
क्रि० अवर्धिष्यत अवर्धिष्येताम अवर्धिष्यन्त भ० स्यन्दिष्यते स्यन्दिष्येते स्यन्दिष्यन्ते
तथा स्यन्दिष्यसे स्यन्दिष्येथे स्यन्दिष्यध्वे
अवय॑त् अवय॑ताम् अवय॑न् स्यन्दिष्ये स्यन्दिष्यावहे स्यन्दिष्यामहे
९५८. शृधूङ् (शृथ्) शब्दकुत्सायाम्॥ तथा स्यन्त्स्यते स्यन्त्स्येते स्यन्त्स्यन्ते
शब्दकुत्सा वायुशब्दत्वात्। स्यन्त्स्यसे स्यन्त्स्येथे स्यन्त्स्यध्वे
व० शर्धते शर्धेते
शर्धन्ते स्यन्त्स्ये स्यन्त्स्यावहे स्यन्त्स्यामहे
स० शर्धेत शर्धेयाताम् शधैरन् तथा
प० शर्धताम् शर्धेताम् शर्धन्ताम् स्यन्त्स्यति स्यन्त्स्यतः स्यन्त्स्यन्ति ह्य० अशर्धत अशर्धेताम् अशर्धन्त स्यन्त्स्यसि स्यन्त्स्यथ: स्यन्त्स्यथ अ० अशर्धिष्ट अशर्धिषाताम् अशर्धिषत
स्यन्त्स्यामि स्यन्त्स्यावः स्यन्त्स्यामः क्रि० अस्यन्दिष्यत अस्यन्दिष्येताम् अस्यन्दिष्यन्त
अशधत् अशृधताम् अशृधन् अस्यन्दिष्यथाः अस्यन्दिष्येथाम् अस्यन्दिष्यध्वम् । प० शशृधे
शशधाते शशृधिरे अस्यन्दिष्ये अस्यन्दिष्यावहि अस्यन्दिष्यामहि | आ० शर्धिषीष्ट
शर्धिषीयास्ताम् शर्धिषीरन्
तथा
तथा
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
240
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तथा क्लृप्सीष्ट क्लृप्सीयास्ताम् क्लुप्सीरन् क्लृप्सीष्ठाः क्लृप्सीयास्थाम् क्लृप्सीध्वम् क्लृप्सीय क्लृप्सीवहि क्लृप्सीमहि कल्पिता कल्पितारौ कल्पितारः कल्पितासे कल्पितासाथे कल्पिताध्वे कल्पिताहे कल्पितास्वहे कल्पितास्मिहे
श्व०
तथा
कल्पन्ते कल्पध्वे
कल्प्ता
कल्प्तासे
कल्प्ताहे
कल्प्ता कल्प्तासि कल्प्तास्मि कल्पिष्यते कल्पिष्यसे कल्पिष्ये
कल्प्तारौ कल्प्तारः कल्प्तासाथे कल्प्ताध्वे कल्प्तास्वहे कल्प्तास्मिहे
तथा कल्प्तारौ कल्प्तार: कल्प्तास्थः कल्प्तास्थ कल्प्तास्वः कल्प्तास्मः कल्पिष्येते कल्पिष्यन्ते कल्पिष्येथे कल्पिष्यध्वे कल्पिष्यावहे कल्पिष्यामहे
भ०
श्व० शर्धिता शर्धितारौ शर्धितार: भ० शर्धिष्यते शर्धिष्येते शर्धिष्यते भ० शय॑ति शर्यत: शय॑न्ति क्रि० अशर्धिष्यत अशर्धिष्येताम् अशर्धिष्यन्त
तथा अशय॑त् अशय॑ताम् अशय॑न्
९५९. कृपौङ् (कृ) सामथ्ये। व० कल्पते कल्पेते
कल्पसे कल्पेथे कल्पे
कल्पावहे कल्पामहे स० कल्पेत कल्पेयाताम् कल्पेरन्
कल्पेथाः कल्पेयाथाम् कल्पेध्वम्
कल्पेय कल्पेवहि कल्पेमहि प० कल्पताम् कल्पेताम् कल्पन्ताम्
कल्पस्व कल्पेथाम कल्पध्वम् कल्पै
कल्पावहै कल्पामहै ह्य० अकल्पत अकल्पेताम् अकल्पन्त
अकल्पथाः अकल्पथाम अकल्पध्वम्
अकल्पे अकल्पावहि अकल्पामहि अ० अकल्पिष्ट अकल्पिषाताम् अकल्पिषत.
अकल्पिष्ठाः अकल्पिषाथाम् अकल्पिड्ढवम्/ध्वम् अकल्पिषि अकल्पिष्वहि अकल्पिष्महि
तथा अ० अक्लपत् अक्लृपताम् अक्लृपन्
अक्लृपः अक्लुपतम् अक्लुपत अक्लृपम् अक्लृपाव अक्लृपाम
है तथा अक्लृप्त अक्लुप्साताम् अक्लृप्सत अक्लृप्था: अक्लप्साथाम् अक्लुब्दध्वम्/ब्ध्वम्
अक्लृप्सि अक्लृप्सवहि अक्लृप्समहि प० चक्लृपे चक्लुपाते चक्लृपिरे
चक्लृपिषे/चक्लृप्से चक्लृपाथे चक्लृपिध्वे
चक्लृपे चक्लपिवहे चक्लपिमहे आ० कल्पिषीष्ट कल्पिषीयास्ताम् कल्पिषीरन्
कल्पिषीष्ठाः कल्पिषीयास्थाम् कल्पिषीध्वम् कल्पिषीय कल्पिषीवहि कल्पिषीमहि
तथा
कल्प्स्यथः
कल्प्स्य ते कल्प्स्ये ते कल्प्स्यन्ते कल्प्स्ये कल्प्स्येथे कल्प्स्यध्वे कल्प्स्ये कल्प्स्यावहे कल्प्स्यामहे
तथा कल्प्स्यति कल्प्स्यतः
कल्प्स्यन्ति कल्प्स्यसि
कल्प्स्य थ कल्प्स्यामि कल्प्स्यावः कल्प्स्याम: क्रि० अकल्पिष्यत अकल्पिष्येताम् अकल्पिष्यन्त
अकल्पिष्यथाः अकल्पिष्येथाम् अकल्पिष्यध्वम् अकल्पिष्ये अकल्पिष्यावहि अकल्पिष्यामहि
तथा अकल्प्स्यत् अकल्प्स्येताम् अकल्प्स्यन्त अकल्प्स्यथाः अकल्प्स्येथाम् अकल्प्स्यध्वम् अकल्प्स्ये अकल्प्स्यावहि अकल्प्स्यामहि
तथा अकल्प्स्यत् अकल्प्स्यताम् अकल्प्स्यन् अकल्प्स्य: अकल्प्स्यतम् अकल्प्स्यत
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
अकल्प्स्यम् अकल्प्स्याव अकल्प्स्याम
वृत् वर्तनम्। वृत् द्युतादि २३ वृतादि-५ श्चान्तर्गणौ वर्तितौ समाप्तावित्यर्थः । वृधेः क्विपि वृत् वर्धितौ पूर्णावित्येके अथ ज्वादयो यजादेः प्राक् षलं शल कुशं रुहं रमिं वर्जा: सेट।
व०
प०
स० ज्वलेत्
ज्वले:
वर्णक्रमेण निर्दिश्यन्ते तत्रापि पूर्वाचार्यानुरोधेन पूर्वं ९६०. ज्वल (ज्वल्) दीप्तौ ।
ज्वलतः
ज्वलन्ति
ज्वलथः
ज्वलथ
ज्वलाव:
ज्वलामः
ज्वताम्
ज्वलेयुः
ज्वलेतम्
ज्वलेत
ज्वलेव
ज्वलेम
ज्वलति
ज्वलसि
ज्वलामि
प०
ज्वयम्
ज्वलतु / ज्वलतात् ज्वलताम्
ज्वल / ज्वलतात् ज्वलतम् ज्वलानि
ज्वलाव
ह्य० अज्वलत्
अज्वलः
ज्वलन्तु
ज्वलत
ज्वलाम
अज्वलताम्
अज्वलन्
अज्वलतम् अज्वलत
अज्वलाव
अज्वलाम
अज्वालिष्टाम् अज्वालिषुः
अज्वाली: अज्वालिष्टम् अज्वालिष्ट
अज्वालिषम्
अज्वालिष्व अज्वालिष्म
अज्वलम्
अ० अज्वालीत्
भ०
जज्वाल
जज्वलतुः
जज्वलिथ जज्वलथुः जज्वाल / जज्वल जज्वलिव
आ० ज्वल्यात्
ज्वल्याः
ज्वल्यासम्
श्व० ज्वलिता
ज्वल्यास्व
ज्वल्यास्म
ज्वलितारौ
ज्वलितारः
ज्वलितासि
ज्वलितास्थः
ज्वलितास्थ
ज्वलितास्मि
ज्वलितास्वः ज्वलितास्मः
ज्वलिष्यति
ज्वलिष्यतः ज्वलिष्यन्ति
ज्वलिष्यथः ज्वलिष्यथ
ज्वलिष्यसि ज्वलिष्यामि ज्वलिष्यावः ज्वलिष्यामः
अज्वलिष्यताम् अज्वलिष्यन् अज्वलिष्यतम् अज्वलिष्यत
अज्वलिष्याव अज्वलिष्याम
क्रि० अज्वलिष्यत्
अज्वलिष्यः अज्वलिष्यम्
ज्वल्यास्ताम्
ज्वल्यास्तम्
जज्वलुः
जज्वल
जज्वलिम
ज्वल्यासुः
ज्वल्यास्त
॥ अथ चान्तः ॥
९६१. कुच (कुच्) सम्पर्च
नकौटिल्यप्रतिष्टम्भविलेखनेषु । सम्पर्चनं मिश्रता । प्रतिष्टम्भो रोधनम्। विलेखनं कर्षणम् कुच शब्दे तारे इति पठितोऽपि अर्थविशेषेषु ज्वलादिकार्यार्थमिह पुनः पठितः । अस्य रूपाणि च कुच शब्दे तारे १०० इतिवज्ज्ञेयानि ।
॥ अथ तान्तः ॥
९६२. पत्लृ (पत्) गतौ ।
पततः
पताम्
पतताम्
अपतताम्
अपप्तताम्
पेततुः
व०
पतति
स० पतेत्
प०
ह्य० अपतत्
अ०
अपप्तत्
प० पपात
पततु/पततात्
आ० पत्यात्
왕이
पतिता
भ० पतिष्यति
क्रि० अपतिष्यत्
व०
पथति
स० पथेत्
प०
ह्य०
अपथत्
अ० अपथीत्
प० पपाथ
आ० पथ्यात्
go पथिता
पथतु / पथतात्
ह्य०
अ०
भ० पथिष्यथि
क्रि० अपथिष्यत्
लं
॥ अथ थान्तास्त्रयः सेटच ॥
९६३. पथे (पथ्) गतौ।
पथतः
पथेताम्
पथताम्
पतन्तु
अपतन्
अपप्तन
पेतुः
पत्यास्ताम्
पत्यासुः
पतितारौ
पतितार:
पतिष्यन्ति
पतिष्यतः अपतिष्यताम् अपतिष्यन्
व० क्वथति
क्वथतः
स० क्वथेत् क्वथेताम् प० क्वथतु/ क्वथतात् क्वथताम्
अक्वथत्
अक्वथीत्
अपथताम्
अपथिष्टाम्
पेथतुः
पतन्ति
तेयुः
९६४. क्वथे (क्वथ्) निष्पाके ।
पथ्यास्ताम्
पथ्यासुः
पथितारौ
पथितार:
पथिष्यन्ति
पथिष्यतः अपथिष्यताम् अपथिष्यन्
पथन्ति
पथेयुः
पथन्तु
अपथन्
अपथिषुः
पेथुः
अक्वथताम्
अक्वथिष्टाम्
241
क्वथन्त
क्वथेयुः
क्वथन्तु
अक्वथन्
अक्वथिषुः
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
242
प०
चक्वाथ
आ० क्वथ्यात्
श्र० क्वथिता
भ० क्वथिष्यथि
क्रि० अक्वथिष्यत्
मथति
समथेत्
व०
प०
5
ह्य० अमथत्
ताम्
मथतु/मथतात् मथताम्
अमथताम्
अष्टिम्
मेथतुः
अ० अमीत्
प० ममाथ
आ० मध्यात्
श्व० मथिता
भ० मथिष्यथि
क्रि० अमथिष्यत्
व० सीदति
स० सीदेत्
प०
चक्वथतुः
क्वथ्यास्ताम्
क्वथितारौ
क्वथिष्यतः
९६५. मथे (मथ्) विलोडने ।
मथतः
मथन्ति
मथेयुः
मथन्तु
अमथन्
अमथिषुः
मेथुः
अक्वथिष्यताम् अक्वथिष्यन्
व० शीयते
स०
शीयेत
सीदतः
सीदेताम्
सीदतु / सीदतात् सीदताम्
असीदताम्
मथ्यास्ताम्
मथितारौ
मथिष्यतः
अमथिष्यताम् ॥ अथ दान्तौ ॥
९६६. षट्टं (सद्) विशरणगत्यवसादनेषु। विशरणं
शटनम् । अवसादोऽनुत्साहः ।
० असीदत्
अ० असदत्
प०
ससाद
आ० सद्यात्
सद्यास्ताम्
व० सत्ता
सत्तारौ
भ० सत्स्यति
सत्स्यतः
क्रि० असत्स्यत् असत्स्यताम्
चक्वथुः
क्वथ्यासुः
क्वथितारः
क्वथिष्यन्ति
असदताम्
सेदतुः
मध्यासुः
मथितार:
मथिष्यन्ति
अमथिष्यन्
सीदन्ति
सीदेयुः
सीदन्तु
असीदन्
असदन्
सेदुः
सद्यासुः
सत्तार:
सत्स्यन्ति
असत्स्यन्
९६७. शदलं (शय्) शातने ।
शातनं तनूकरणम् ।
शीयेते
शीयेयाताम्
शीयन्ते
शीयेरन्
प० शीयताम्
ह्य० अशीयत
अ० अशदत्
प० शशाद
आ० शधात्
व०
शत्ता
भ० शत्स्यति
क्रि० अशत्स्यत्
आ० बुध्यात्
श्व० बोधिता
भ० बोधिष्यति
क्रि० अबोधिष्यत्
शीयेताम्
अशीयेताम्
शद्यास्ताम्
शत्तारौ
शत्स्यतः
अशत्स्यताम्
|| अथ धान्तः ।।
९६८. बुध (बुध) अवगमने ।
अवगमनं ज्ञापनम् बुधुग् बोधने इत्युभययदिषु पठितोऽपि अवगमने ज्वलादिकार्यार्थं पुनः पठ्यते।
व० बोधति
बोधत:
बोधन्ति
० बोत्
बोधेताम्
प० बोधतु/बोधतात् बोधताम् अबोध
अ० अबोधीत्
प० बुबोध
ह्य० अवमत्
अ० अवमीत्
प० ववाम
आ० वम्यात्
श्व० वमिता
अशदताम्
शेदतुः
भ० वमिष्यति
क्रि० अवमिष्यत्
अबोधताम्
अबोधिष्टाम्
व० वमति
स० वमेत्
ताम्
प० वमतु/वमतात् वमताम्
बुबुधतुः
बुध्यास्ताम्
बोधितारौ
बोधिष्यतः
अबोधिष्यताम् ॥ अथ मान्तौ ॥
९६९. टुवमू (वम्) उद्गिरणे । उद्भिरणं भुक्तस्योर्ध्वगतिः ।
वमतः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शीयन्ताम्
अशीयन्त
अवमताम् अवमिष्टाम्
वेमतुः /ववमंतुः
अशदन्
शेदुः
शद्यासुः
शत्तार:
शत्स्यन्ति
अशत्स्यन्
वम्यास्ताम्
वमितारौ
वमिष्यतः
अवमिष्यताम्
बोधेयुः
बोधन्तु
अबोधन्
अबोधिषुः
बुबुधुः
बुध्यासुः
बोधितार:
बोधिष्यन्ति
अबोधिष्यन्
वमन्ति
वमेयुः
वमन्तु
अवमन्
अवमिषुः
मु: वमुः
वम्यासुः
वमितार:
वमिष्यन्ति
अमिष्यन्
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
243
भ्रम्येः
भ्रम्येत
क्षरेताम् क्षरेतम्
क्षरेत
भ्रमेयुः
९७०. भ्रमू (भ्रम) चभने। व० भ्रम्यति भ्रम्यतः भ्रम्यन्ति भ्रम्यसि
भ्रम्यथः भ्रम्यथ
तथा भ्रम्यामि
भ्रम्यावः भ्रम्यामः व० भ्रमति भ्रमतः
भ्रमन्ति स० भ्रम्येत् भ्रम्येताम् भ्रम्येयुः
भ्रम्येतम् भ्रम्येयम् भ्रम्येव भ्रम्येम
तथा स० भ्रमेत्
भ्रमेताम् प० भ्रम्यतु/भ्रम्यतात् भ्रम्यताम् भ्रम्यन्तु
भ्रम्य/भ्रम्यतात् भ्रम्यम् भ्रम्यत भ्रम्यानि भ्रम्याव
भ्रम्याम
तथा प० भ्रमतु भ्रमतात् भ्रमताम्
भ्रमन्तु ह्य० अभ्रम्यत् अभ्रम्यताम्
अभ्रम्यन् अभ्रम्यः अभ्रम्यतम् अभ्रम्यत अभ्रम्यम् अभ्रम्याव अभ्रम्याम
तथा ह्य० अभ्रमत् अभ्रमताम् अभ्रमन् अ० अभ्रमीत्
अभ्रमिष्टाम्
अभ्रामिषुः अभ्रमीः अभ्रमिष्टम् अभ्रमिष्ट
अभ्रमिषम् अभ्रमिष्व अभ्रमिष्म प० बभ्राम
भ्रेमहः भ्रेमिथ बभ्राम/बभ्रम भ्रमिव
भ्रेमिम
तथा प० बभ्राम बभ्रमतुः बभ्रमहः आ० भ्रम्यात् भ्रम्यास्ताम्
भ्रम्यासुः भ्रम्या: भ्रम्यास्तम् भ्रम्यास्त
भ्रम्यासम् भ्रम्यास्व भ्रम्यास्म श्व० भ्रमिता भ्रमितारौ भ्रमितार:
भ्रमितासि भ्रमितास्थः भ्रमितास्थ
भ्रमितास्मि भ्रमितास्वः भ्रमितास्मः भ० भ्रमिष्यति भ्रमिष्यतः भ्रमिष्यन्ति
भ्रमिष्यसि भ्रमिष्यथ: भ्रमिष्यथ
भ्रमिष्यामि भ्रमिष्याव: भ्रमिष्यामः क्रि० अभ्रमिष्यत् अभ्रमिष्यताम् अभ्रमिष्यन्
अभ्रमिष्यः अभ्रमिष्यतम् अभ्रमिष्यत अभ्रमिष्यम् अभ्रमिष्याव अभ्रमिष्याम
॥अथ रान्तः ॥
९७१. क्षर (क्षर) संचलने। व० क्षरति
क्षरतः
क्षरन्ति क्षरसि क्षरथः
क्षरथ क्षरामि क्षरावः क्षरामः स० क्षरेत्
क्षरेयुः क्षरे: क्षरेयम् क्षरेव
क्षरेम । प० क्षरतु/क्षरतात् क्षरताम्
क्षरन्तु क्षर/क्षरतात् क्षरम्
क्षरत क्षराणि क्षराव
क्षराम ह्य० अक्षरत् अक्षरताम् अक्षरन्
अक्षरः अक्षरतम् अक्षरत
अक्षरम् अक्षराव अक्षराम अ० अक्षारीत् अक्षारिष्टाम् अक्षारिषुः
अक्षारी: अक्षारिष्टम् अक्षारिष्ट अक्षारिषम् अक्षारिष्व अक्षारिष्म चक्षार
चक्षरु: चक्षरिथ
चक्षरथुः चक्षर चक्षार/चक्षर चक्षरिव
चक्षरिम आ० क्षर्यात् क्षर्यास्ताम् क्षर्यासुः
क्षर्याः क्षर्यास्तम् क्षर्यास्त
क्षर्यासम् क्षर्यास्व क्षर्यास्म श्व० क्षरिता क्षरितारौ क्षरितार:
क्षरितासि । क्षरितास्थः क्षरितास्थ
क्षरितास्मि क्षरितास्वः क्षरितास्मः भ० क्षरिष्यति क्षरिष्यतः क्षरिष्यन्ति
क्षरिष्यसि क्षरिष्यथ: क्षरिष्यथ
क्षरिष्यामि क्षरिष्याव: क्षरिष्यामः क्रि० अक्षरिष्यत् अक्षरिष्यताम् अक्षरिष्यन्
अक्षरिष्यः अक्षरिष्यतम् अक्षरिष्यत अक्षरिष्यम् अक्षरिष्याव अक्षरिष्याम
चक्षरतुः
भ्रेमतुः भ्रेमथुः
प्रेम
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
244
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प०
प०
सकर्मकश्चायमकर्मकः। क्षरति गौः पयो मुञ्चतीत्यर्थः। क्षरति । अचलिष्यः अचलिष्यतम् अचलिष्यत जलं स्रवतीत्यर्थः।
अचलिष्यम् अचलिष्याव अचलिष्याम ॥अथ लान्ताश्चतुर्दश।
९७३. जल (जलू) घात्ये। ९७२. चल (चलू) कम्पने।
घात्यं जडत्वमतैक्षण्यमित्यर्थः। व० चलति चलतः
चलन्ति | व० जलति
जलतः
जलन्ति चलसि चलथः
चलथ जलसि जलथ:
जलथ चलामि चलाव:
चलामः
जलामि जलाव: जलामः स० चलेत् चलेताम् चलेयुः | स० जलेत्
जलेताम्
जलेयुः चलेः चलेतम् चलेत
जले: जलेतम् जलेत चलेयम् चलेव
चलेम
जलेयम् जलेव जलेम चलतु/चलतात् चलताम् चलन्तु
जलतु/जलतात् जलताम् जलन्तु चल/चलतात् चलतम् चलत
जल/जलतात् जलतम्
जलत चलानि चलाव चलाम जलानि जलाव
जलाम ह्य० अचलत् अचलताम् अचलन्
ह्य० अजलत् अजलताम् अजलन् अचल: अचलतम् अचलत
अजल: अजलतम् अजलत अचलम् अचलाव अचलाम
अजलम् अजलाव अजलाम अ० अचालीत् अचालिष्टाम् अचालिषुः | अ० अजालीत् अजालिष्टाम् अजालिषुः अचाली: अचालिष्टम् अचालिष्ट
अजाली: अजालिष्टम् अजालिष्ट अचालिषम् अचालिष्व अचालिष्म
अजालिषम् अजालिष्व अजालिष्म प० चचाल
चेलुः
प० ज्जाल चेलिथ
जेलिथ चचाल/चचल चेलिव
ज्जाल/ज्जल
जेलिव आ० चल्यात् चल्यास्ताम् चल्यासुः
आ० जल्यात् जल्यास्ताम् जल्यासुः चल्या : चल्यास्तम् चल्यास्त
जल्याः
जल्यास्तम् जल्यास्त चल्यासम् चल्यास्व चल्यास्म
जल्यासम् जल्यास्व जल्यास्म श्व० चलिता चलितारौ चलितारः
जलिता जलितारौ जलितारः चलितासि चलितास्थः चलितास्थ
जलितासि जलितास्थः जलितास्थ चलितास्मि चलितास्वः चलितास्मः
जलितास्मि जलितास्वः जलितास्मः भ० चलिष्यति चलिष्यतः चलिष्यन्ति भ० जलिष्यति जलिष्यतः जलिष्यन्ति चलिष्यसि चलिष्यथ: चलिष्यथ
जलिष्यसि जलिष्यथः जलिष्यथ चलिष्यामि चलिष्याव: चलिष्यामः
जलिष्यामि जलिष्याव: जलिष्यामः क्रि० अचलिष्यत् अचलिष्यताम् अचलिष्यन् क्रि० अजलिष्यत् अजलिष्यताम् अजलिष्यन्
जेलतुः
चेलतुः चेलथुः
जेलुः जेल
जेलथुः
चेल चेलिम
जेलिम
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
245
टले:
ट्वले:
ट्वलेव
टलन्तु
टलतम्
अजलिष्यः अजलिष्यतम् अजलिष्यत अजलिष्यम् अजलिष्याव अजलिष्याम ९७४. ट्वल (टवल्) वैक्लव्ये।
विक्ल एव वैक्लव्यम्। व० टलति
टलतः
टलन्ति टलसि टलथ:
टलथ टलामि टलाव: टलामः स० टलेत् टलेताम् टलेयुः
टलेतम् टलेत टलेयम् टलेव टलेम प० टलतु/टलतात् टलताम् टल/टलतात्
टलत टलानि टलाव
टलाम ह्य० अटलत् अटलताम् अटलन् अटल:
अटलतम् अटलत अटलम् अटलाव अटलाम अ० अटालीत् अटालिष्टाम् अटालिषुः
अटाली: अटालिष्टम् अटालिष्ट
अटालिषम् अटालिष्व अटालिष्म प० टटाल टेलिथ
टेल टटाल/टटल टेलिव आ० टल्यात् टल्यास्ताम्
टल्या : टल्यास्तम् टल्यास्त
टल्यासम् टल्यास्व टल्यास्म श्व० टलिता टलितारौ टलितार:
टलितासि टलितास्थ: टलितास्थ
टलितास्मि टलितास्वः टलितास्मः भ० टलिष्यति
टलिष्यतः
टलिष्यन्ति टलिष्यसि टलिष्यथ: टलिष्यथ
टलिष्यामि टलिष्याव: टलिष्यामः क्रि० अटलिष्यत् अटलिष्यताम् अटलिष्यन्
अटलिष्यः अटलिष्यतम् अटलिष्यत अटलिष्यम् अटलिष्याव अटलिष्याम ९७५. ट्वल (ट्वल्) वैक्लव्ये।
क्विलव एव वैक्लव्यम्। व० ट्वलति ट्वलतः ट्वलन्ति ट्वलसि ट्वलथः
ट्वलथ ट्वलामि ट्वलावः ट्वलामः स० ट्वलेत् ट्वलेताम् ट्वलेयुः
ट्वलेतम् ट्वलेत ट्वलेयम्
ट्वलेम प० ट्वलतु/ट्वलतात् ट्वलताम् ट्वलन्तु ट्वल/ट्वलतात् ट्वलतम्
ट्वलत ट्वलानि
ट्वलाव ट्वलाम ह्य० अट्वलत् अट्वलताम् अट्वलन्
अट्वल: अट्वलतम् अट्वलत
अट्वलम् अट्वलाव अट्वलाम अ० अट्वालीत् अट्वालिष्टाम् अट्वालिषु: अट्वाली: अट्वालिष्टम्
अट्वालिष्ट अट्वालिषम् अट्वालिष्व अट्वालिष्म टट्वाल टट्वलतुः टट्वलुः टट्वलिथ टट्वलथुः टट्वल
टट्वाल/ट्वल टट्वलिव टट्वलिम आ० ट्वल्यात् ट्वल्यास्ताम् ट्वल्यासुः
ट्वल्या: ट्वल्यास्तम् ट्वल्यास्त
ट्वल्यासम् ट्वल्यास्व ट्वल्यास्म श्व० ट्वलिता
ट्वलितारौ ट्वलितारः ट्वलितासि ट्वलितास्थ: ट्वलितास्थ
टूवलितास्मि ट्वलितास्वः ट्वलितास्मः भ० ट्वलिष्यति ट्वलिष्यतः ट्वलिष्यन्ति ट्वलिष्यसि
ट्वलिष्यथ ट्वलिष्यामि ट्वलिष्याव: ट्वलिष्यामः | क्रि० अट्वलिष्यत् अट्वलिष्यताम् अट्वलिष्यन्
टेलतुः
टेलथुः
टेलिम
टल्यासुः
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
246
व०
प०
अट्वलिष्यः अट्वलिष्यतम् अट्वलिष्यत
अट्वलिष्यम्
अट्वलिष्याव अट्वलिष्याम
० स्थ
स्थलति
स्थलसि
स्थलामि
प०
९७६. ष्ठल (स्थलू) स्थाने ।
स्थलतः
स्थलथः
स्थलाव:
स्थलेताम्
स्थलेतम्
स्थलेव
स्थले:
स्थलेयम्
स्थलतु / स्थलतात् स्थलताम्
स्थल / स्थलतात् स्थलतम्
स्थलानि
स्थलाव
ह्य० अस्थलत्
अस्थल:
अस्थलम्
अ० अस्थालीत्
अस्थलाम
अस्थालिष्टाम् अस्थालिषुः अस्थाली: अस्थाष्टम् अस्थालिष्ट अस्थालिषम् अस्थालिष्व अस्थालिष्म
आ० स्थल्यात्
स्थल्या:
तस्थलतुः तस्थलुः
तस्थाल तस्थलिथ तस्थाल / तस्थल तस्थलिव
तस्थलथुः
तस्थल
तस्थलिम
स्थल्यासम्
श्व० स्थलिता
स्थलन्ति
स्थलथ
स्थल्यास्व
स्थलितारौ
स्थलितासि स्थलितास्थः
स्थलितास्मि स्थलितास्वः
भ० स्थलिष्यति स्थलिष्यतः स्थलिष्यसि
स्थलिष्यामि
क्रि० अस्थलिष्यत्
स्थलाम:
स्थलेयुः
स्थलेत
स्थलेम
स्थलन्तु
स्थलत
स्थलाम
अस्थलताम् अस्थलन्
अस्थलतम्
अस्थलत
अस्थलाव
स्थल्यास्ताम् स्थल्यासुः
स्थल्यास्तम् स्थल्यास्त
स्थल्यास्म
स्थलितार:
स्थलितास्थ
स्थलितास्मः
स्थलिष्यन्ति
स्थलिष्यथः स्थलिष्यथ
स्थलिष्यावः स्थलिष्यामः
अस्थलिष्यताम् अस्थलिष्यन्
व० हलति
हलसि
हलामि
अस्थलिष्यः
अस्थलिष्यम्
प०
स० हत्
हले:
हलेयम्
हलतु / हलतात्
हल / हलतात्
हलानि
ह्य० अहलत्
अहल:
प०
अहलम्
अ० अहालीत्
अहाली:
अहालिषम्
जहाल
हुलिथ
जहाल / जहल
आ० हल्यात्
हल्या:
९७७. हल (हलू) विलेखने। विलेखनं कर्षणम् ।
हलत:
हलथ:
हलाव:
हाम्
हतम्
हव
हल्यासम्
श्व० हलिता
हलितासि
हलितास्मि
भ० हलिष्यति
हलिष्यसि
हलिष्यामि
क्रि० अहलिष्यत्
अस्थलिष्यतम्
अस्थलिष्याव
हलताम्
हलतम्
हलाव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अस्थलिष्यत
अस्थलिष्याम
जहलतुः
जुलधुः
जहलिव
हलन्ति
हलथ
हलाम:
हलेयुः
हलेत
हलेम
अहलताम्
अहलतम्
अहलाव
अहलाम
अहालिष्टाम् अहालिषुः अहालिष्टम् अहालिष्ट
अहालिष्व
अहालिष्म
हल्यास्व
हलितारौ
हलन्तु
हलत
हलाम
अहलन्
अहलत
जहलुः
जहल
जहलिम
हल्यास्ताम्
हल्यासुः
हल्यास्तम् हल्यास्त
हल्यास्म
हलितार:
हलितास्थः
हलितास्थ
हलितास्वः
हलितास्मः
हलिष्यतः
हलिष्यन्ति
हलिष्यथः
हलिष्यथ
हलिष्यावः
हलिष्यामः
अहलिष्यताम् अहलिष्यन्
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
व० नलति
नलसि
नलामि
अहलिष्यः अहलिष्यतम्
अहलिष्यम्
अहलिष्याव
स० नलेत्
नलेः
नलेयम्
प०
नलतु / नलतात्
नल / नलतात्
नलानि
ह्य० अनलत्
अनलः
प०
अनलम्
अ० अनालीत्
अनाली:
अनालिषम्
ननाल
लिथ
ननाल/ननल
आ० नल्यात्
नल्या:
९७८. ल ( नलू) गन्धे ।
गन्धोर्दनम् ।
नल्यासम्
श्व० नलिता
नलितासि
नलितास्मि
भ० नलिष्यति
नलिष्यसि
नलिष्यामि
क्रि० अनलिष्यत्
नलतः
नलथः
नलाव:
ताम्
नतम्
नलेव
नलताम्
नलतम्
नलाव
अहलिष्यत
अहलिष्याम
नेलतुः
लथुः
नेलिव
नल्यास्ताम्
नल्यास्तम्
नल्यास्व
नलितारौ
नलन्ति
नलथ
नलाम:
नलेयुः
नलेत
नलेम
अनलताम्
अनलतम्
अनलाव
अनलाम
अनालिष्टाम् अनालिषुः
अनालिष्टम् अनालिष्ट
अनालिष्व
अनालिष्म
नलन्तु
नलत
नलाम
अनलन्
अनलत
नेलुः
नेल
नेलिम
नल्यासुः
नल्यास्त
नल्यास्म
नलितारः
नलितास्थ
नलितास्थ
नलितास्वः
नलितास्मः
नलिष्यतः
नलिष्यन्ति
नलिष्यथः
नलिष्यथ
नलिष्यावः
नलिष्यामः
अनलिष्यताम् अनलिष्यन्
व०
अनलिष्यः
अनलिष्यम्
९७९. बल (बलु) प्राणनधान्यावरोधयोः
प्राणनं जीवनम् धान्यमवस्थ्यते यत्रेति धान्यावरोध: कुसूलः ।
बलन्ति
बलथ
सo बलेत्
बलेः
बलेयम्
बलतु / बलतात्
बल/बलतात्
बलानि
प०
बलति
बलसि
बलामि
ह्य० अबलत्
अबलः
अबलम्
अ० अबालीत्
अबाली:
अबालिषम्
प०
बबाल
बेलिथ
बबाल/बबल
आ० बल्यात्
बल्याः
बल्यासम्
श्व० बलिता
बलितासि
बलितास्मि
भ० बलिष्यति
बलिष्यसि
बलिष्यामि
क्रि० अबलिष्यत्
अनलिष्यतम् अनलिष्यत
अनलिष्याव
अनलिष्याम
बलत:
बलथः
बलाव:
बताम्
बम्
बलेव
बलताम्
बलतम्
बलाव
अबलताम्
अबलतम्
अबलाव
अबालिष्टाम्
अबालिष्टम्
अबालिष्व
बेलतुः
बेलथुः
बेलिव
बल्यास्ताम्
बल्यास्तम्
बल्यास्व
बलितारौ
बलितास्थः
बलितास्वः
बलिष्यतः
बलिष्यथः
बलिष्यावः
अबलिष्यताम्
बलामः
बलेयुः
बलेत
बलेम
बलन्तु
बलत
बलाम
अबलन्
अबलत
अबलाम
अबालिषुः
अबालिष्ट
अबालिष्म
बेलुः
बेल
बेलिम
बल्यासुः
बल्यास्त
247
बल्यास्म
बलितार:
बलितास्थ
बलितास्मः
बलिष्यन्ति
बलिष्यथ
बलिष्यामः
अबलिष्यन्
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
248
अबलिष्यः अबलिष्यतम्
अबलिष्यम्
अबलिष्याव
व०
पोलति
पोलसि
पोलामि
० पोत्
पोले:
९८०. पुल (पुलू) महत्वे ।
पोलतः
पोलथः
पोलाव:
पोलेताम्
पोलेम्
पोयम्
पोलेव
प० पोलतु / पोलतात् पोलताम्
पोल / पोलतात्
पोलतम्
पोलानि
पोलाव
ह्य अपोल
अपोल:
अपोल
अ० अपोलीत्
अपोली:
अपोलिषम्
प० पोल
पुपोलिथ
पोल
आ० पुल्यात्
पुल्याः
पुल्यासम्
भ०
व० पोलिता
अबलिष्यत
अबलिष्याम
पोलन्ति
पोलथ
पोलामः
पोलेयुः
पोलेत
पोलेम
पोलन्तु
पोलत
पोलाम
अपोल
अपोलत
अपोलाम
अपोलिष्टाम् अपोलिषुः
अपोलिष्टम् अपोलिष्ट
अपोलिष्व
अपोलिष्म
म्
अपोलम्
अपोलाव
पुपुलतुः
पुपुलथुः
पुलि
पुल्यास्ताम्
पुल्यासुः
पुल्यास्तम्
पुल्यास्त
पुल्यास्व
पुल्यास्म
पोलितारौ पोलितार:
पोलितास्थः पोलितास्थ
पोलितासि पोलितास्मि पोलितास्वः पोलितास्मः
पोलिष्यति
पोलिष्यतः पोलिष्यन्ति
पोलिष्यसि
पोलिष्यथः पोलिष्यथ
पोलिष्यामि
पोलिष्यावः पोलिष्यामः
क्रि० अपोलिष्यत्
अपोलिष्यताम्
पोलिष्यन्
पुपुलुः
पुपुल
पुपुलिम
अपोलिष्यः
अपोलिष्यम्
व० कोलति
कोलसि
कोलामि
अपोष्यम्
अपोलिष्याव
९८१. कुल (कुलू) बन्धुसंस्त्नयोः ।
० कोत्
कोलेः
कोलेयम्
प० चुकोल
प० कोलतु/कोलतात् कोलताम्
कोल/ कोलतात् कोलतम्
कोलानि
कोलाव
० अकोल
अकोल
अकोलम्
अ० अकोलीत्
अकोली:
अकोलम्
चुकोलिथ
चुकोल
आ० कुल्यात्
कुल्याः
कुल्यासम्
श्व० कोलिता
कोलितासि
कोलितास्मि
भ० कोलिष्यति
कोलिष्यसि
कोलिष्यामि
क्रि० अकोलिष्यत्
सस्त्यानं संघातः ।
कोलतः
कोलथ:
कोलाव:
कोलेताम्
कम्
कोव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अपोलिष्यत
अपोलिष्याम
अकोलताम्
अकोलम्
अकोलाव
कोलन्ति
कोलथ
कोलाम:
कोलेयुः
को
चुकुलतुः
चुकुलथुः
चुकुलिव
कुल्यास्ताम्
कुल्यास्तम्
कोम
कोलन्तु
कोलत
कोलाम
अकोलन्
अकोलत
अकोलाम
अकोलष्टाम् अकोलिषुः
अकोलिष्टम् अकोलिष्ट
अकोल
अकोलिष्म
चुकुलुः
चुकुल
चुकुलिम
कुल्यासुः
कुल्यास्त
कुल्यास्व
कुल्यास्म
कोलितारौ
कोलितार:
कोलितास्थः
कोलितास्थ
कोलितास्वः
कोलितास्मः
कोलिष्यतः
कोलिष्यन्ति
कोलिष्यथः
कोलिष्यथ
कोलिष्यावः
कोलिष्यामः
अकोलिष्यताम् अकोलिष्यन्
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
249
अकोलिष्यः अकोलिष्यतम् अकोलिष्यत अकोलिष्यम् अकोलिष्याव अकोलिष्याम
९८२. पल (पल्) गतौ। व० पलति
पलतः पलन्ति पलसि पलथः
पलथ पलामि पलाव:
पलामः स० पलेत् पलेताम् पलेयुः पले: पलेतम् पलेत पलेव
पलेम प० पलतु/पलतात् पलताम्
पलन्तु पल/पलतात् पलतम् पलत पलानि पलाव
पलाम
पलेयम्
ह्य०
अपलत्
अपलताम्
अपलन्
अपल:
अपलतम्
अपलत
अपलम् अ० अपालीत्
अपाली:
अपालिषम् प० पपाल
पेलिथ
अपलाव अपालिष्टाम् अपालिष्टम् अपालिष्व
अपलाम अपालिषुः अपालिष्ट अपालिष्म
अपलिष्यः अपलिष्यतम् अपलिष्यत
अपलिष्यम् अपलिष्याव अपलिष्याम ९८३. फल (फल्) गतौ। पूर्वमधीतस्यापीह पाठो गतौ ज्वलादिकार्यार्थः। एतद्रूपाणि च त्रिफला विशरणे
४१४ इतिवज्ज्ञेयानि।
९८४. शल (शल्) गतौ। पूर्वमधीतस्यापीह पाठो गतौ ज्वलादिकार्यार्थः परस्मैपदार्थश्च। व० शलति शलतः शलन्ति शलसि शलथः
शलथ शलामि शलाव: शलाम: स० शलेत्
शलेताम्
शलेयुः शले: शलेतम् शलेत शलेयम् शलेव
शलेम प० शलतु/शलतात् शलताम् शलन्तु
शल/शलतात् शलतम् शलत शलानि शलाव
शलाम ह्य० अशलत् अशलताम् अशलन्
अशल: अशलतम् अशलत
अशलम् अशलाव अशलाम अ० अशालीत् अशालिष्टाम् अशालिषुः
अशाली: अशालिष्टम् अशालिष्ट
अशालिषम् अशालिष्व अशालिष्म प० शशाल शेलतुः
शेलुः शेलिथ शेलथुः शेल
शशाल/शशल शेलिव शेलिम आ० शल्यात् शल्यास्ताम् शल्यासुः
शल्या : शल्यास्तम् शल्यास्त शल्यासम्
शल्यास्व शल्यास्म शलिता शलितारौ शलितार: शलितासि शलितास्थः शलितास्थ
शलितास्मि शलितास्वः शलितास्मः भ० शलिष्यति शलिष्यतः शलिष्यन्ति
शलिष्यसि शलिष्यथ: शलिष्यथ
शलिष्याभि शलिष्याव: शलिष्याम: क्रि० अशलिष्यत् अशलिष्यताम् अशलिष्यन
पेलुः
पेलतुः पेलथुः
पेल
पपाल/पपल
पेलिव
पेलिम
आ० पल्यात्
पल्यास्ताम्
पल्यासुः
पल्या :
पल्यास्तम्
पल्यास्त
पल्यास्म
पल्यास्व पलितारौ पलितास्थः पलितास्वः
पल्यासम् व० पलिता
पलितासि
पलितास्मि भ० पलिष्यति
पलिष्यसि
पलिष्यामि क्रि० अपलिष्यत्
पलिष्यतः पलिष्यथ: . पलिष्यावः अपलिष्यताम्
पलितारः पलितास्थ पलितास्मः पलिष्यन्ति पलिष्यथ पलिष्यामः अपलिष्यन्
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
250
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
होलथः
होलथ
अशलिष्यः अशलिष्यतम् अशलिष्यत
अहोलिष्यः अहोलिष्यतम् अहोलिष्यत अशलिष्यम् अशलिष्याव अशलिष्याम
अहोलिष्यम् अहोलिष्याव अहोलिष्याम ९८५. हुल (हुल्) हिंसासंवरणयोश्च। चकाराद्गतौ।
॥अथ शान्तः॥ व० होलति होलतः होलन्ति
९८६. क्रुशं (क्रश्) आह्वानरोदनयोः। होलसि
व० क्रोशति क्रोशतः क्रोशन्ति होलामि होलावः होलामः
क्रोशसि क्रोशथः क्रोशथ स० होलेत् होलेताम् होलेयुः
क्रोशामि क्रोशाव: क्रोशामः होलेः होलेतम् होलेत
स० क्रोशेत्
क्रोशेताम् क्रोशेयुः होलेयम् होलेव होलेम
क्रोशेः क्रोशेतम् क्रोशेत प० होलतु/होलतात् होलताम् होलन्तु
क्रोशेयम् क्रोशेव क्रोशेम होल/होलतात् होलतम् होलत
प० क्रोशतु/क्रोशतात् क्रोशताम् क्रोशन्तु होलानि होलाव होलाम
क्रोश/क्रोशतात् क्रोशतम्
क्रोशत ह्य० अहोलत् अहोलताम् अहोलन्
क्रोशानि क्रोशाव क्रोशाम अहोल: अहोलतम् अहोलत
अक्रोशत् अक्रोशताम् अक्रोशन् अहोलम् अहोलाव अहोलाम
अक्रोश: अक्रोशतम् अक्रोशत अ० अहोलीत
अक्रोशाव
अक्रोशम् अहोलिष्टाम् अहोलिषुः
अक्रोशाम अहोली: अहोलिष्टम् अहोलिष्ट
अ० अक्रुक्षत् अक्रुक्षताम् अक्रुक्षन्
अक्रुक्षः अक्रुक्षतम् अक्रुक्षत अहोलिषम् अहोलिष्व अहोलिष्म
अक्रुक्षम्
अक्रुक्षाव अक्रुक्षाम जुहोल जुहुलतु: जुहुलुः
प० चुक्रोश चुक्रुशतुः चुक्रुशुः जहोलिथ जुहुलथुः जुहुल
चुक्रोशिथ चुक्रुशथुः चुक्रुश जुहोल जुहुलिव जुहुलिम
चुक्रुशिव चुक्रुशिम आ० हुल्यात् हुल्यास्ताम् हुल्यासुः
आ० क्रुश्यात् क्रुश्यास्ताम् क्रुश्यासुः हुल्या: हुल्यास्तम् हुल्यास्त
क्रुश्याः क्रुश्यास्तम् क्रुश्यास्त हुल्यासम् हुल्यास्व हुल्यास्म
क्रुश्यासम् क्रुश्यास्व क्रुश्यास्म १० होलिता होलितारौ होलितारः
श्व० क्रोष्टा क्रोष्टारौ क्रोष्टारः होलितासि होलितास्थः होलितास्थ
कोष्टासि क्रोष्टास्थः क्रोष्टास्थ होलितास्मि होलितास्व: होलितास्मः
क्रोष्टास्मि क्रोष्टास्वः क्रोष्टास्मः भ० होलिष्यति होलिष्यतः होलिष्यन्ति
भ० क्रोक्ष्यति क्रोक्ष्यतः क्रोक्ष्यन्ति होलिष्यसि होलिष्यथ: होलिष्यथ
क्रोक्ष्यसि क्रोक्ष्यथ: क्रोक्ष्यथ होलिष्यामि
होलिष्यामः
क्रोक्ष्यामि क्रोक्ष्याव: क्रोक्ष्याम: क्रि० अहोलिष्यत् अहोलिष्यताम् अहोलिष्यन्
| क्रि० अक्रोक्ष्यत् अक्रोक्ष्यताम् अक्रोक्ष्यन्
चुक्रोश
जग
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
251
रोहसि रोहामि
रोहामः रोहेयुः
रोहे:
अकसिष्यः अकसिष्यतम् अकसिष्यत अकसिष्यम् अकसिष्याव अकसिष्याम
९८८. रुहं (रु) जन्मनि।
बीजजन्मनीत्यन्ये। भीजन्माङ्क रोत्पत्तिः। व० रोहति रोहतः रोहन्ति
रोहथः रोहथ
रोहावः स० रोहेत्
रोहेत
रोहेम रोहतु/रोहतात् रोहताम् रोह/रोहतात् रोहतम् रोहत
रोहाणि रोहाव | ह्य० अरोहत् अरोहताम् अरोहन्
अरोहतम् अरोहत अरोहम् अरोहाव अरोहाम अ० अरुक्षत् अरुक्षताम् अरुक्षन्
अरुक्षः अरुक्षतम् अरुक्षत अरुक्षम् अरुक्षाव
अरुक्षाम
रोहेताम् रोहेतम् रोहेव
रोहेयम्
प०
रोहन्तु
रोहाम
अक्रोक्ष्यः अक्रोक्ष्यतम् अक्रोक्ष्यत अक्रोक्ष्यम् अक्रोक्ष्याव अक्रोक्ष्याम
९८७. कस (कस्) गतौ। व० कसति
कसत:
कसन्ति कससि कसथ:
कसथ कसामि कसाव:
कसामः स० कसेत् कसेताम् कसेयुः
कसे: कसेतम् कसेत
कसेयम् कसेव कसेम प० कसतु/कसतात् कसताम् कसन्तु
कस/कसतात् कसतम् कसत कसानि कसाव
कसाम ह्य० अकसत् अकसताम् अकसन्
अकस: अकसतम् अकसत
अकसम् अकसाव अकसाम अ० अकासीत् अकासिष्टाम् अकासिषुः
अकासी: अकासिष्टम् अकासिष्ट
अकासिषम् अकासिष्व अकासिष्म अ० अकसीत् अकसिष्टाम् अकासिषुः
अकसी: अकसिष्टम् अकसिष्ट
अकसिषम् अकसिष्व अकसिष्म प० चकास चकसतुः
चकसुः चकसिथ चकसथुः चकस
चकास/चकस चकसिव चकसिम आ० कस्यात् कस्यास्ताम् कस्यासुः
कस्याः कस्यास्तम् कस्यास्त कस्यासम्
कस्यास्व कस्यास्म श्व० कसिता कसितारौ कसितार:
कसितासि कसितास्थः कसितास्थ
कसितास्मि कसितास्वः कसितास्मः भ० कसिष्यति कसिष्यतः कसिष्यन्ति
कसिष्यसि कसिष्यथ: कसिष्यथ
कसिष्यामि कसिष्याव: कसिष्यामः क्रि० अकसिष्यत् अकसिष्यताम् अकसिष्यन्
अरोहः
प०
रुरोह
रुरुहतुः
रुरुहथुः रुरुहिव
रुरुह रुरुहिम
रुद्यास्ताम् रुद्यास्तम्
रुद्यासुः रुद्यास्त
रुद्यास्व
रुद्यास्म
रोढार:
रुरोहिथ
रोह आ० रुद्यात्
रुद्याः
रुद्यासम् श्व० रोढा
रोढासि
रोढास्मि भ० रोक्ष्यति
रोक्ष्यसि
रोक्ष्यामि क्रि० अरोक्ष्यत्
रोढारौ रोढास्थ: रोढास्वः रोक्ष्यतः रोक्ष्यथ: रोक्ष्याव: अरोक्ष्यताम्
रोढास्थ रोढास्मः रोक्ष्यन्ति रोक्ष्यथ रोक्ष्यामः अरोक्ष्यन्
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
252
व० रमते
रमसे
रमे
स० रमेत
प०
अरोक्ष्यः
अक्ष्यम्
ह्य०
रमताम्
रमस्व
रमै
अरमत
अरमथाः
अरमे
अ० अरंस्त
रमेथाः
रमेय
प०
अरंस्था:
अरंसि
रेमे
रेमिषे
रेमे
आ० रंसीष्ट
९८९. रमिं (रम्) क्रीडायाम् ।
रमेते
रमन्ते
रमेथे
रमध्वे
रमावहे
रमामहे
रमेरन्
रमेध्वम्
रमेमहि
रंसीष्ठाः
रंसीय
श्वo. रन्ता
रन्तासे
रन्ताहे
भ० रंस्यते
रंस्यसे
रंस्ये
क्रि० अरंस्यत
अरोक्ष्यतम्
अरोक्ष्याव
अथात्मनेपदिना ।
रमेयाताम्
रमेयाथाम्
रमेवहि
रमेताम्
रमेथाम
रमाव
अरमेताम्
अरमेथाम
अरमावहि
अरोक्ष्यत
अरोक्ष्याम
असाताम्
अरंसाथाम्
अरंस्वहि
रेमाते
रेमाथे
रेमिवहे
रमन्ताम्
रमध्वम्
राम
अरमन्त
अरमध्वम्
अरमामहि
अरंसत
अरन्ध्वम्/न्द्ध्वम्
अरंस्महि
रेमिरे
रेमिध्वे
रेमि
रंसीयास्ताम् रंसीरन्
रंसीयास्थाम्
रंसीध्वम्
रंसीवहि
रंसीमहि
रन्तारौ
रतासाथे
रन्तास्वहे
रंस्येते
रंस्येथे
रंस्यावहे
अरंस्ताम्
रन्तारः
रन्ताध्वे
रन्तास्मिहे
रंस्यन्ते
रंस्यध्वे
स्पामहे
अरंस्यन्त
विरमति
आरमति
आरमसि
आरमामि
स० आरमेत्
आरमेः
आरमेयम्
व०
प०
अरंस्यथाः अस्था
अरंस्ये
अरंस्यावहि
ह्य० आरमत्
आरमः
प०
आरमतम्
अ० आरंसीत्
आरंसी:
आरंसिषम्
팡이
भ०
आरमतु/आरमतात् आरमताम्
आरम / आरमतात् आरमतम् आरमाणि
आरमाव
आ० आरम्यात्
आरम्याः
व्यापरेति परस्मैपदे
आरमति
आरमतः
आरमथः
आरमावः
आरम्
आरमेतम्
आरमेव
आरराम आरेमतुः
आरेमिथ / आररन्थ आरेमथुः
आरराम / आररम आरेमिव
आरन्ता
आरन्तासि
आरन्तास्मि
आरंस्यति
आरंस्यसि
आरंस्यामि
आरमताम्
आरमतम्
आरमाव
आरंसिष्टाम्
आरंसिष्टम्
आरंसिष्व
आरम्यासम् आरम्यास्व
आरन्तारौ
आरन्तास्थः
आरन्तास्वः
आरंस्यतः
आरंस्यथः
आरंस्यावः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अरंस्यध्वम्
अरंस्यामहि
परिरमति
आरमन्ति
आरमर्थं
आरमामः
आरमेयुः
आरत
आरमेम
आरमन्तु
आरमत
आरमाम
आरमन्
आरमत
आरमाम
आरंसिषुः
आरंसिष्ट
आरंसिष्म
आरेमुः
आरेम
आरेमिम
आरम्यास्ताम्
आरम्यासुः
आरम्यास्तम् आरम्यास्त
आरम्यास्म
आरन्तारः
आरन्तास्थ
आरन्तास्मः
आरंस्यन्ति
आरंस्यथ
आरंस्यामः
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
253
प०
ईजतुः
ईजिम
इज्यासुः
इज्यास्त
सहेरन्
इज्यास्म
यष्टार:
यष्टास्थ
यष्टास्मः यक्ष्यन्ति यक्ष्यथ
इयाज इयजिथ/इयष्ठ ईजथुः
इयाज/इयज ईजिव आ० इज्यात् इज्यास्ताम् इज्या :
इज्यास्तम् इज्यासम्
ज्या व श्व० यष्टा
यष्टागै यष्टासि यष्टास्थ:
यष्टास्म यष्टास्वः भ० यक्ष्यति यक्ष्यतः यक्ष्यसि
यक्ष्यथ: यक्ष्यामि यक्ष्याव: | क्रि० अयक्ष्यत् अयक्ष्यताम् अयक्ष्यः
अयक्ष्यतम् अयक्ष्यम् अयक्ष्याव
आत्मनेपद व० यजते यजसे यजेथे
यजावहे | स० यजेत यजेयाताम् यजेथाः
यजेयाथाम् यजेय यजेवहि
यक्ष्यामः
अयक्ष्यन्
अयक्ष्यत
क्रि० आरंस्यत् आरंस्यताम् आरंस्यन्
आरंस्य आरंस्यतम् आरंस्यत आरंस्यम् आरंस्याव
आरंस्याम ९९०. षहि (सह) मर्षणे। मर्षणं क्षमा। व० सहते सहेते सहन्ते स० सहेत सहेयाताम् प० सहताम् सहेताम् सहन्ताम् ह्य० असहत असहेताम् असहन्त अ० असहिष्ट असहिषाताम् असहिषत प० सेहे
सेहाते सेहिरे आ० सहिषीष्ट सहिषीयास्ताम् सहिषीरन् श्व० सहिता सहितारौ सहितार: श्व० सोढा सोढारौ सोढार: भ० सहिष्यते सहिष्येते सहिष्यन्ते क्रि० असहिष्यत असहिष्येताम् असहिष्यन्त अथ यजादयो नव श्विवदवर्जा अनिटश्च वर्णक्रमेण
दर्श्यन्ते। तत्रापि पूर्वाचार्यानुरोधेनादौ ९९१. यजी (यज्) देवपूजासंगतिकरणदानेषु। व० यजति यजतः यजन्ति यजसि यजथः
यजथ यजामि यजाव:
यजामः स० यजेत् यजेताम्
यजेत
यजेव यजेम प० यजतु/यजतात् यजताम्
यजन्तु यज/यजतात् यजतम्
यजत यजानि यजाव
यजाम 'ह्य० अयजत् अयजताम्
अयजन् अयजतम् अयजत अयजम् अयजाव
अयजाम अ० अयाक्षीत् अयाष्टाम् अयाक्षुः
अयाक्षी: अयाष्टम् अयाष्ट अयाक्षम् अयाश्व
अयाक्ष्म
अयक्ष्याम
यजेते
यजन्ते यजध्वे यजामहे यजेरन्
यजे
यजेध्वम् यजेमहि
यजेयुः
यजे:
यजेतम्
प०
यजताम् यजस्व यजै
यजेताम् यजेथाम्
यजेयम्
यजन्ताम् यजध्वम् यजामहै अयजन्त अयजध्वम् अयजामहि
ह्य०
यजावहै अयजेताम् अयजेथाम अयजावहि अयक्षाताम् अयक्षाथाम् अयक्ष्वहि
अयजत अयजथा: अयजे
अयजः
अ०
अयष्ट
अयक्षत
अयडूवम्/ध्वम् अयक्ष्महि
अयष्ठा: अयक्षि ईजे ईजिषे
| प०
ईजाते
ईजिरे
ईजाथे
ईजिध्वे
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
254
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ईजे
ववौ
ऊविम
ऊविव
तथा ववतुः
ववौ
वविथ/ववाथ
ववथुः
ववौ
वविव ऊयास्ताम् ऊयास्तम् ऊयास्व
ववुः वव वविम ऊयासुः ऊयास्त ऊयास्म
वातारौ
वातारः
वातास्थ
आ० ऊयात्
ऊयाः
ऊयासम् श्व० वाता
वातासि
वातास्मि भ० वास्यति
वास्यसि
वास्यामि क्रि० अवास्यत्
अवास्यः
अवास्यम् व० वयते
वयसे
ईजिवहे ईजिमहे आ० यक्षीष्ट यक्षीयास्ताम् यक्षीरन्
यक्षीष्ठाः यक्षीयास्थाम् यक्षीध्वम्
यक्षीय यक्षीवहि यक्षीमहि श्व० यष्टा यष्टारौ
यष्टारः यष्टासे यष्टासाथे यष्टाध्वे
यष्टाहे यष्टास्वहे यष्टास्महे भ० यक्ष्यते यक्ष्येते यक्ष्यन्ते
यक्ष्यसे यक्ष्येथे यक्ष्यध्वे
यक्ष्ये यक्ष्यावहे यक्ष्यामहे क्रि० अयक्ष्यत अयक्ष्येताम् अयक्ष्यन्त
अयक्ष्यथाः अयक्ष्येथाम् अयक्ष्यध्वम् अयक्ष्ये अयक्ष्यावहि अयक्ष्यामहि
॥अथैदन्तास्त्रयः॥
९९२. वेंग (वे) तन्तुसन्ताने। व० वयति
वयत:
वयन्ति वयसि वयथः
वयथ वयामि वयावः
वयाम: स० वयेत्
वयेयुः वये:
वयेत वयेयम् वयेव
वयेम प० वयतु/वयतात् वयताम् वयन्तु वय/वयतात् वयतम्
वयत वयानि वयाव
वयाम ह्य० अवयत् अवयताम् अवयन्
अवयः अवयतम् अवयत
अवयम् अवयाव अवयाम अ० अवासीत् अवासिष्टाम् अवासिषुः
अवासी: अवासिष्टम् अवासिष्ट अवासिषम् अवासिष्व अवासिष्म उवाय ऊवयतुः उवयिथ ऊयथुः उवाय/उवय ऊयिव ऊयिम
तथा ववौ ऊवतुः
ऊवुः वविध/तवाथ ऊवथुः
वातास्थ: वातास्वः वास्यतः वास्यथः वास्यावः अवास्यताम् अवास्यतम् अवास्याव वयेते वयेथे वयावहे वयेयाताम् वयेयाथाम् वयेवहि
वये
वयेताम् वयेतम्
वयेत वयेथाः वयेय वयताम् वयस्व
वातास्मः वास्यन्ति वास्यथ वास्यामः अवास्यन् अवास्यत अवास्याम वयन्ते वयध्वे वयामहे वयेरन् वयेध्वम् वयेमहि वयन्ताम् वयध्वम् वयामहै अवयन्त अवयध्वम् अवयामहि अवासत अवाद्ध्वम्/ध्वम् अवास्महि
वयेताम्
वयै
ह्य० अवयत
अवयथाः
अवये अ० अवास्त
अवास्थाः
अवासि प० ऊये
ऊविषे
वयेथाम वयावहै अवयेताम् अवयेथाम अवयावहि अवासाताम् अवासाथाम् अवास्वहि
प०
ऊयाते
ऊयिरे
ऊयाथे ऊयिवहे
तथा
ऊयिध्वे/वे ऊयिमहे
ऊये
ववाते
वविरे
ऊव
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
255
ववाथे
ह्य० अव्ययत अव्ययेताम् अव्ययन्त अ० अव्यास्त अव्यासाताम् अव्यासत प० विव्ये विव्याते विवयरे आ० व्यासीष्ट व्यासीयास्ताम् व्यासीरन् श्व० व्याता व्यातारौ व्यातार: भ० व्यास्यते व्यास्येते व्यास्यन्ते क्रि० अव्यास्यत अव्यास्येताम् अव्यास्यन्त
९९४. डेंग् (हे) स्पर्धाशब्दयोः। ह्वयति ह्वयतः
ह्वयन्ति
ह्वयसि
हयथः
यथ
ह्वयाम:
ह्वयेयुः
हयेत ह्वयेम
ह्वयन्तु
वविषे
वविध्वे/वे ववे
वविवहे वविमहे
तथा ऊवे ऊवाते
ऊविरे ऊविषे ऊवाथे ऊविध्वे/वे
ऊवे ऊविवहे ऊविमहे आ० वासीष्ट वासीयास्ताम् वासीरन्
वासीष्ठाः वासीयास्थाम् वासीध्वम्
वासीय वासीवहि वासीमहि श्व० वाता वातारौ
वातारः वातासे वातासाथे वाताध्वे
वाताहे वातास्वहे वातास्मिहे भ० वास्यते वास्येते वास्यन्ते
वास्यसे वास्येथे वास्यध्वे
वास्ये वास्यावहे वास्यामहे क्रि० अवास्यत अवास्येताम् अवास्यन्त
अवास्यथाः अवास्येथाम् अवास्यध्वम् अवास्ये
अवास्यावहि अवास्यामहि ९९३. व्यंग् (व्ये) संवरणे।
संवरणमाच्छादनम्। व० व्ययति व्ययतः व्ययन्ति स. व्ययेत् व्ययेताम् व्ययेयुः प० व्ययतु/व्ययतात् व्ययताम् व्ययन्तु ह्य० अव्ययत् अव्ययताम् अव्ययन् अ० अव्यासीत् अव्यासिष्टाम् अव्यासिषुः प० विव्याय विव्यतुः आ० वीयात्
वीयास्ताम् श्व० व्याता व्यातारौ
व्यातार: भ० व्यास्यति व्यास्यतः व्यास्यन्ति क्रि० अव्यास्यत् अव्यास्यताम् अव्यास्यन्
आत्मनेपद व० व्ययते व्ययेते व्ययन्ते स० व्ययेत व्ययेयाताम् व्ययेरन् प० व्ययताम् व्ययेताम् व्ययन्ताम्
ह्वयत
ह्वयाम
अह्वयन्
अह्वयत
अह्वयाम
ह्वयामि
याव: स० ह्वयेत् ह्वयेताम्
ह्वयेतम् ह्वयेयम् ह्वयेव प० ह्वयतु/ह्वयतात् ह्वयताम्
ह्वय/ह्वयतात् ह्वयतम्
ह्वयानि ह्वयाव ह्य० अह्वयत् अह्वयताम्
अह्वयः अह्वयतम्
अह्वयम् अह्वयाव अ० अह्वयत् अह्वयताम्
अह्वयः अह्वयतम् अह्वयम्
अह्वयाव प० जुहाव
जुहुवतुः जुहोथ/जुहुविथ जुहुवथुः
जुहाव/जुहुव जुहुविव आ० हूयात् हूयास्ताम्
हूयास्तम् हूयासम्
हूयास्व | श्व० ह्वाता ह्वातारौ
ह्वातासि ह्वातास्थ:
अह्वयन्
अह्वयत
अह्वयाम
विव्युः वीयासुः
जुहुवुः
जुहुव जुहुविम हूयासुः
हूयाः
हूयास्त हूयास्म
ह्वातारः
ह्वातास्थ
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
256
ह्वातास्मि
हास्यति
वायसि
हास्यामि
क्रि० अह्नास्यत्
अह्वास्यः
अह्वास्यम्
भ०
व० ह्वयते
ह्वयसे
ये
सह्वयेत
प०
ह्वयेथाः
ह्वयेय
ह्य०
ह्वयताम्
ह्वयस्व
अह्वयत
अह्वयथा:
अह्वये
अ० अह्नास्त
अह्वास्था:
अह्वासि
अह्वत
अह्वथा:
अह्वे
प० जुहुवे
जुहुविषे
जुहुवे
आ० ह्रासीष्ट
ह्रासीष्ठा:
हासीय
ह्वातास्वः
ह्वास्यतः
ह्वास्यथः
ह्वास्याव:
अह्वास्ताम्
अह्वास्यतम्
अह्वास्याव
आत्मनेपद
ह्वये
ह्वयेथे
ह्वयावहे
ह्वाम्
ह्वयेथाम
ह्वावहै
ह्वयेयाताम्
ह्वयेरन्
ह्वयेयाथाम् ह्वयेध्वम्
ह्वयेवहि
अह्वयेताम्
अह्वयेथाम
अह्वयावहि
ह्वातास्मः
ह्वास्यन्ति
ह्वास्यथ
ह्वास्यामः
अह्नास्यन्
अह्वास्यत
अह्वास्याम
अम्
अह्वेथाम्
अह्वावहि
ह्वयन्ते
ह्वयध्वे
जुहुवा
जुहुवा
जुहुविव
अह्वासाताम् अह्वासत
अह्नासाथाम्
अह्वास्वहि
तथा
ह्वयन्ताम्
ह्वयध्वम्
ह्वयाम
अह्वयन्त
अह्वयध्वम्
अह्वयामहि
अह्वाद्ध्वम्/ध्वम्
अह्वास्महि
अह्वन्त
अह्वध्वम्
अह्वामहि
जुहुविरे
जुहुविध्वे / वे
जुम
ह्वासीयास्ताम् ह्वासीरन्
ह्वासीयास्थाम् ह्वासीध्वम्
ह्रासी हि
सीमहि
ह्वाता
ह्वात
ह्वाताहे
भ० ह्वास्यते
ह्वास्से
ह्वास्ये
क्रि० अह्नास्यत
श्व०
व०
अह्वास्यथाः
अह्वास्
प०
सत्
वपे:
वयम्
प०
वपति
वपसि
वपामि
वपतु/वपतात्
वप/वपतात्
वपानि
ह्य० अवपत्
अवपः
अवपतम्
अ० अवाप्सीत्
अवाप्सीः
अवाप्सम्
उवाप
उवपथ / उवाथ
उवाप / उवप
आ० उप्यात्
उप्याः
उप्यासम्
ह्वातारौ
ह्वातासाथे
॥ अथ पान्तः ।।
९९५.
डुवपीं (वप्) बीजसंताने ।
बीजानां संतान क्षेत्रे विस्तारणम् ।
वपतः
वपन्ति
पथ:
वपथ
वपाव:
वपामः
वपेताम्
पेपुः
वपेतम्
वत
aa
पेम
ह्वात
ह्वा
ह्वास्येथे
ह्वास्याव
ह्वास्याम
अह्वास्येताम् अह्नास्यन्त
अह्नास्येथाम्
अह्वास्व
वपताम्
वपतम्
वपाव
अवपताम्
अवपतम्
अवपाव
अवाप्ताम्
अवाप्तम्
अवाप्स्व
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ह्वातार:
ह्वाताध्वे
ह्वातास्मि
हास्यन्ते
ह्रास्यध्वे
ऊपतुः
ऊपथुः
ऊपिव
उप्यास्ताम्
उप्यास्तम्
उप्यास्व
अह्वास्यध्वम्
अह्वास्यामहि
वपन्तु
वपत
वपाम
अवपन्
अवपत
अवपाम
अवाप्सुः
अवाप्त
अवाप्स्म
ऊपुः
ऊप
ऊपिम
उप्यासुः
उप्यास्त
उप्यास्म
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
257
वप्तारौ
वप्तार:
वप्तास्थ:
वप्तास्थ
वप्तास्वः
वप्तास्मः
श्व० वप्ता
वप्तासि
वप्तास्मि भ० वप्स्यति
वप्स्यसि वस्यामि
वप्स्यतः
वप्स्यन्ति
वप्स्यथ:
वप्स्यथ
वप्स्यावः
वप्स्यामः
अवप्स्यन्
क्रि० अवप्स्यत्
अवस्यः अवस्यम्
अवस्यताम् अवप्स्यतम् अवप्स्याव आत्मनेपद
अवप्स्यत अवप्स्याम
व०
वपेते
वपते वपसे वपे
वपन्ते वपध्वे वपामहे
श्व० वप्ता वप्तारौ
वप्तार: वप्तासे वप्तासाथे वप्ताध्वे
वप्ताहे वप्तास्वहे वप्तास्मिहे भ० वप्स्य ते वस्येते वप्स्यन्ते वप्स्यसे वस्येथे
वस्यध्वे वप्स्ये वप्स्यावहे वप्स्यामहे क्रि० अवप्स्यत अवस्येताम् . अवस्यन्त
अवप्स्यथाः अवस्येथाम् अवप्स्यध्वम् अवप्स्ये अवप्स्यावहि अवस्यामहि
॥ अथ हान्तः॥
९९६. वहीं (वह्) प्राहणे। व० वहति वहतः
वहन्ति वहसि वहथः
वहथ वहामि वहावः
वहाम: स० वत् वहेताम् वहेहुः
वहेत वहेयम् वहेव वहेम ह० वहतु/वहतात् वहताम्
वहन्तु वह/वहतात् वहतम्
वहत वहानि वहाव
वहाम
स०
नो
वपेथे वपावहे वपेयाताम् वपेयाथाम् वपेवहि
वपेरन्
वपेथाः
वध्वम् वपेमहि
वपेय
वहे:
वहेतम्
प०
वपेताम्
वपताम् वपस्व वपै
वपेथाम वपावहै अवपेताम्
वपन्ताम् वपध्वम् वपामहै
ह्य०
अवपत
अवपन्त
अवपथा:
अवपथाम
ह्य०
अवहत्
अवहताम्
अवहन्
अवपध्वम् अवपामहि
अवपे
अवपावहि
अवहः
अवहत
अवहतम् अवहाव
अ०
अवप्सत
अवप्त अवस्थाः अवप्सि
अवप्साताम् अवप्साथाम् अवप्स्वहि ऊपाते ऊपाथे
अवब्ध्वम्/ब्द्ध्वम् अवस्महि
अवहम् अ० अवाक्षीत्
अवाक्षी:
अवहाम अवाक्षुः अवोढ
अवोढाम् अवोढम् अवाक्ष्व
अवाक्षम्
अवाक्ष्म
प०
ऊपे
ऊपिरे
ह.
ऊपिध्वे
ऊपिवहे
ऊहिम
ऊपिणे
ऊपे आ० वप्सीष्ट
वप्सीष्ठाः वप्सीय
वप्सायास्ताम् वप्सीयास्थाम्
ऊपिमहे वप्सीरन् वप्सीध्वम् वप्सीमहि
उवाह ऊहतुः उवहिथ/उवोढ ऊहथुः
उवाह/उवह ऊहिव आ० उह्यात् उह्यास्ताम् उह्याः
उह्यास्तम् उह्यासम् उह्यास्व
उह्यासुः
उह्यास्त
वप्सीवहि
उह्यास्म
Page #275
--------------------------------------------------------------------------
________________
258
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
वोढार:
वोढारौ वोढास्थः वोढास्वः
वोढास्थ
वोढास्मः वक्ष्यन्ति
वक्ष्यतः
श्व० वोढा
वोढासि
वोढास्मि भ० वक्ष्यति
वक्ष्यसि
वक्ष्यामि क्रि० अवक्ष्यत्
अवक्ष्यः अवक्ष्यम्
वक्ष्यथ:
वक्ष्यथ
वक्ष्याव:
वक्ष्यामः
अवक्ष्यताम्
अवक्ष्यतम्
अवक्ष्यन् अवक्ष्यत अवक्ष्याम
व०
वहते
वहसे
अवक्ष्याव
आत्मनेपद वहेते वहेथे वहावहे वहेयाताम् वहेयाथाम् वहेवहि
वहे
वहन्ते वहध्वे वहामहे वहेरन वहेध्वम् वहेमहि
श्व० वोढा वोढारौ वोढारः
वोढासे वोढासाथे वोढाध्वे
वोढाहे वोढास्वहे वोढास्महे भ० वक्ष्यते वक्ष्येते
वक्ष्यन्ते वक्ष्यसे वक्ष्येथे वक्ष्यध्वे
वक्ष्ये वक्ष्यावहे वक्ष्यामहे क्रि० अवक्ष्यत अवक्ष्येताम् अवक्ष्यन्त
अवक्ष्यथाः अवक्ष्येथाम् अवक्ष्यध्वम् अवक्ष्ये अवक्ष्यावहि अवक्ष्यामहि
॥अथ परस्मैपदिनस्त्रयः।।
९९७. ट्वोश्चि (श्वि) गतिवृद्धयोः। व० श्वयति
श्वयतः
श्वयन्ति श्वयसि श्वयथ:
श्वयथ श्वयामि श्वयाव:
श्वयामः स० श्वयेत् श्वयेताम् श्वयेयुः
श्वये: श्वयेतम् श्वयेत श्वयेयम् श्वयेव श्वयेम श्वयतु/श्वयतात् श्वयताम् श्वयन्तु श्वय/श्वयतात् श्वयतम् श्वयत श्वयानि श्वयाव
श्वयाम ह्य० अश्वयत् अश्वयताम् अश्वयन् अश्वयः अश्वयतम्
अश्वयत अश्वयम्
अश्वयाव अश्वयाम अ० अश्वत्
अश्वताम् अश्वन् अश्वतम
अश्वत अश्वम् अश्वाव
अश्वाम
स०
वहेत वहेथाः वहेय
प०
वहताम्
वहेताम्
वहन्ताम्
प०
वहस्व
वहेथाम वहावहै अवहेताम्
वहध्वम् वहामहै
ह्य०
अवहत
अवहन्त
अवहथाः
अवहथाम अवहावहि
अवहध्वम् अवहामहि
अवहे
अ०
अवोढ
अश्वः
तथा
अवोढाः अवक्षि ऊहे ऊहिषे
प०
ऊहाते
अशिश्वियन, इत्यादि अश्वयिषुः, इत्यादि
अवक्षाताम् अवक्षत अवक्षाथाम् अवोढ्वम्/अवग्डूवम् अवक्ष्वहि अवक्ष्महि
ऊहिरे ऊहाथे ऊहिध्वे/दवे ऊहिवहे ऊहिमहे वक्षीयास्ताम् वक्षीरन् वक्षीयास्थाम् वक्षीध्वम् वक्षीवहि वक्षीमहि
शुशुवुः
अशिश्वियत् अशिश्वियताम्
अश्वयीत् अश्वयिष्टाम् प० शुशाव शुशुवतुः
शुशुवथुः शुशावं/शुशव शुशुविव
तथा शिश्वाय
शुशुविथ
शुशुव शुशुविम
आ० वक्षीष्ट
वक्षीष्ठाः
वक्षीय
शिश्वियतुः
शिश्वियुः
Page #276
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
259
· शिश्वाय/शिश्वय शिश्वियिव शिश्वियिम आ० शुयात् शुयास्ताम् शुयासुः
शुयाः शुयास्तम् शुयास्त
शुयासम् शुयास्व शुयास्म श्व० श्वयिता श्वयितारौ श्वयितार:
श्वयितासि श्वयितास्थः श्वयितास्थ
श्वयितास्मि श्वयितास्वः श्वयितास्मः भ० श्वयिष्यति श्वयिष्यतः श्वयिष्यन्ति
श्वयिष्यसि श्वयिष्यथः श्वयिष्यथ
श्वयिष्यामि श्वयिष्याव: श्वयिष्यामः क्रि० अश्वयिष्यत् अश्वयिष्यताम् अश्वयिष्यन्
अश्वयिष्यः अश्वयिष्यतम् अश्वयिष्यत अश्वयिष्यम् अश्वयिष्याव अश्वयिष्याम
९९८. वद (वद्) व्यक्तायां वाचि। व० वदति
वदतः
वदन्ति वदसि वदथ:
वदथ वदामि वदावः
वदामः स० वदेत् वदेताम्
वदेयुः
उद्याः उद्यास्तम् उद्यास्त उद्यासम् उद्यास्व
उद्यास्म श्व० वदिता वदितारौ वदितारः
वदितासि वदितास्थ: वदितास्थ
वदितास्मि वदितास्व: वदितास्मः भ० वदिष्यति वदिष्यतः वदिष्यन्ति
वदिष्यसि वदिष्यथ: वदिष्यथ
वदिष्यामि वदिष्याव: वदिष्यामः क्रि० अवदिष्यत् अवदिष्यताम् अवदिष्यन्
अवदिष्यः अवदिष्यतम् अवदिष्यत अवदिष्यम् अवदिष्याव अवदिष्याम
९९९. वसं (वस्) निवासे। व० वसति वसतः
वसन्ति वससि वसथ:
वसथ वसामि वसाव:
वसामः स० वसेत्
वसेताम्
वसेयुः वसेतम् वसेत वसेयम् वसेव वसेम प० वसतु/वसतात् वसताम् वसन्तु वस/वसतात् वसतम्
वसत वसानि वसाव
वसाम ह्य० अवसत् अवसताम्
अवसन् अवस: अवसतम् अवसत अवसम् अवसाव
अवसाम अ० अवात्सीत् अवात्ताम् अवात्सुः
अवात्सी: अवात्तम् अवात्त अवात्सम् अवात्स्व
अवात्स्म प०
उवास उवस्थ/उवसिथ ऊषथुः ऊष उवास उवस ऊषिव
ऊषिम आ० उष्यात् उष्यास्ताम् उष्यासुः
उष्याः उष्यास्तम् उष्यास्त
उष्यासम् उष्यास्व उष्यास्म श्व० वस्ता वस्तारौ
वस्तारः
वसे:
वदेः
वदेतम्
वदेत
वदेम
वदेव वदताम् वदतम्
वदन्तु
वदत
वदाव
वदाम
अवदताम्
अवदन्
अवदत
वदेयम् प० वदतु/वदतात्
वद/वदतात्
वदानि ह्य० अवदत्
अवदः
अवदम् अ० अवादीत्
अवादी:
अवादिषम् प० उवाद
उवदिथ
उवाद/उवद आ० उद्यात्
अवदतम् अवदाव अवादिष्टाम् अवादिष्टम् अवादिष्व
अवदाम अवादिषुः अवादिष्ट अवादिष्म
ऊषतुः
ऊषुः
ऊदतुः ऊदथुः
ऊदुः ऊद
ऊदिव
ऊदिम उद्यासुः
उद्यास्ताम्
Page #277
--------------------------------------------------------------------------
________________
260
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
घटसे
घटे
वस्तासि वस्तास्थः वस्तास्थ
घटितासे घटितासाथे घटिताध्वे वस्तास्मि वस्तास्वः वस्तास्मः
घटिताहे घटितास्वहे घटितास्मिहे भ० वत्स्यति वत्स्यतः वत्स्यन्ति
भ० घटिष्यते घटिष्येते घटिष्यन्ते वत्स्यसि वत्स्यथः वत्स्यथ
घटिष्यसे घटिष्येथे घटिष्यध्वे वत्स्यामि वत्स्यावः वत्स्यामः
घटिष्ये घटिष्यावहे घटिष्यामहे क्रि० अवत्स्यत् अवत्स्यताम् अवत्स्यन्
क्रि० अघटिष्यत
अघटिष्येताम्
अघटिष्यन्त अवत्स्यः अवत्स्यतम् अवत्स्यत
अघटिष्यथाः अघटिष्येथाम् अघटिष्यध्वम् अवत्स्यम् अवत्स्याव अवत्स्याम
अघटिष्ये अघटिष्यावहि अघटिष्यामहि अथ घटादयो वर्णक्रमणाभ्वादिसमाप्तेवेक्ष्यन्ते। तत्र घटे:
अथ जान्तः। पूर्वाचार्यप्रसिद्ध्या पूर्वनिर्देशः। घटादित्वफलं तु घटयतीत्यादौ। ह्रस्वादिकम्। क्षज्यादेः स्वरस्यानुपान्त्यत्वेऽपि पाठसामर्थ्या
१००१. क्षजुङ् (क्षज) गतिदानयोः। द्विभाषादी? भवत्येव। अक्षञ्जि अक्षाञ्जि इह
| व० क्षञ्जते
क्षञ्जन्ते क्षजेते
क्षजेथे
क्षजसे १०००. घटिष् (घट्) चेष्टायाम्। चेष्टेहा।
क्षञ्जध्वे
क्षजे क्षजावहे क्षजामहे व० घटते घटेते
घटन्ते
| स० क्षञ्जत क्षजेयाताम् क्ष घटध्वे
रन् घटेथे
क्षजेथाः क्षजेयाथाम् क्षजेध्वम् घटावहे घटामहे
क्षञ्जय क्षजेवहि क्ष महि स० घटेत घटेयाताम् घटेरन्
प० क्षञ्जताम् क्षजेताम् क्षञ्जन्ताम् घटेथाः घटेयाथाम् घटेध्वम्
क्षजस्व क्षजेथाम् क्षजध्वम् घटेय घटेवहि घटेमहि
क्षजै
क्षजावहै क्षजामहै घटताम् घटेताम
ह्य० अक्षजत अक्षजेताम् अक्षजन्त घटस्व घटेथाम घटध्वम्
अक्षजथाः अक्षजेथाम् अक्षजध्वम् घटावहै घटामहै
अक्षजे अक्षजावहि अक्षजामहि ह्य० अघटत अघटेकाल अघटन्त
अ० अक्षञ्जिष्ट अक्षञ्जिषाताम् अक्षञ्जिषत अघटथाः अघटेथाम अघटध्वम्
अक्षञ्जिष्ठाः अक्षञ्जिषाथाम् अक्षञ्जिड्ढ्वम्/ध्वम् अघटे अघटावहि अघटामहि
अक्षञ्जिषि अक्षञ्जिष्वहि अक्षञ्जिष्महि अ० अघटिष्ट अघटिषाताम् अघटिषत
प० चक्षजे चक्षजाते चक्षञ्जिरे अघटिष्ठाः अघटिषाथाम् अघटिड्ढवम्/ध्वम्
चक्षञ्जिषे चक्षञ्जाथे चक्षञ्जिध्वे/वे अघटिषि अघटिष्वहि अघटिष्महि
चक्षजे चक्षञ्जिवहे चक्षञ्जिमहे जघटे जघटाते जघटिरे
आ० क्षञ्जिषीष्ट क्षञ्जिषीयास्ताम् क्षञ्जिषीरन् जघटिषे जघटाथे जघटिध्वे
क्षञ्जिषीष्ठाः क्षञ्जिषीयास्थाम् क्षञ्जिषीध्वम् जघटे जघटिवहे जंघटिमहे
क्षञ्जिषीय क्षञ्जिषीवहि क्षञ्जिषीमहि आ० घटिषीष्ट घटिषीयास्ताम् घटिषीरन् श्व० क्षञ्जिता क्षञ्जितारौ क्षञ्जितारः
घटिषीष्ठाः घटिषीयास्थाम् घटिषीध्वम् घटिषीय घटिषीवहि घटिषीमहि
१. क्षजुण कृच्छूजीवने इति पठिष्यमाणत्वेऽपि गतिदानयोः श्व० घटिता घटितारौ घटितार:
घटादिकार्यार्थमात्मनेपदार्थ णिचूरहितशत्प्रत्ययार्थञ्चात्र पाठः।
घटन्ताम्
घटै
प०
Page #278
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
क्षञ्जितासे
क्षञ्जितासाथे
क्षजिताहे
क्षञ्जितास्वहे
भ० क्षञ्जिष्यते क्षञ्जिष्येते
क्षञ्जिष्यसे
क्षञ्जिष्येथे
क्षञ्जिष्ये
क्षञ्जिष्याव
क्रि० अक्षञ्जिष्यत
व० व्यथते
व्यथसे
व्यथे
स० व्यथेत
प०
ह्य०
अ०
प०
अक्षञ्जिष्येताम्
अक्षञ्जिष्यथाः अक्षञ्जिष्येथाम्
अक्षञ्जिष्ये
go
॥अथ थान्तौ ॥
१००२. व्यथिषू (व्यथ्) भयचलनयोः ।
दुःखेऽप्यन्ये ।
व्यथेथाः
व्यथेय
व्यथताम्
व्यथस्व
व्यथै
अव्यथत
अव्यथेाम्
अव्यथथाः
अव्यथेथाम
अव्यथे
अव्यथावहि
अव्यथिष्ट अव्यथिषाताम्
अव्यथिष्ठाः अव्यथिषाथाम्
अव्यथिड्वम् / ध्वम् अव्यथिष्महि
अव्यथिषि अव्यथिष्वहि
विव्यथे विव्यथाते
विव्यथिरे
विव्यथिषे
विव्यथाथे
विव्यथिध्वे
विव्यथे
विव्यथिवहे
विव्यथिमहे
आ० व्यथिषीष्ट
व्यथिषीयास्ताम् व्यथिषीरन्
व्यथिषीयास्थाम् व्यथिषीध्वम्
व्यथिषीमहि
व्यथितारः
व्यथिताध्वे
क्षञ्जिताध्वे
क्षञ्जितास्मिहे
क्षञ्जिष्यन्ते
क्षञ्जिष्यध्वे
क्षञ्जिष्यामहे
अक्षञ्जिष्यन्त
अक्षञ्जिष्यध्वम्
अक्षञ्जिष्यावहि अक्षञ्जिष्यामहि
व्यथिषीष्ठाः
व्यथिषीय
व्यथिता
व्यथितासे
व्यथेते
व्यथे
व्यथाव
व्यथेयाताम्
व्यथेयाथाम्
व्यथेवहि
व्यम्
व्यथेथाम्
व्यथा है
व्यथन्ते
व्यथध्वे
व्यथामहे
व्यथेरन्
व्यथेध्वम्
व्यथेमहि
व्यथिषीवहि
व्यथितारौ
व्यथितासाथे
व्यथन्ताम्
व्यथध्वम्
व्यथामहै
अव्यथन्त
अव्यथध्वम्
अव्यथामहि
अव्यथिषत
व्यथितास्वहे व्यथितास्मिहे
व्यथिष्येते
व्यथिष्यन्ते
व्यथिष्येथे
व्यथिष्यध्वे
व्यथिष्यसे व्यथिष्ये व्यथिष्यावहे व्यथिष्यामहे
क्रि० अव्यथिष्यत अव्यथिष्येताम् अव्यथिष्यन्त
अव्यथिष्यथाः अव्यथिष्येथाम्
अव्यथिष्ये
अव्यथिष्यावहि
व्यथिताहे
भ० व्यथिष्यते
व० प्रथते
स० प्रथेत
प० प्रथताम्
ह्य० अप्रथत
अ० अप्रथिष्ट
प०
प्र
आ० प्रथिषीष्ट
श्व० प्रथिता
भ० प्रथिष्यते
क्रि० अप्रथिष्यत
प्रदते
प्रदसे
प्रदे
स० प्रदेत
व०
प्रदेथाः
प्रदेय
१००३. प्रथिषू (प्रथ्) प्रख्याने । प्रख्यानं प्रसिद्धिः ।
प्रथेते
प० म्रदताम्
प्रदस्व
म्रदै
ह्य० अम्रदत
प्रथेातम्
प्रथेम्
अप्रताम्
अप्रथताम्
पप्रथाते
अव्यथिष्यध्वम्
अव्यथिष्यामहि
प्रथिषीयास्ताम्
प्रथितारौ
प्रथिष्येते
अप्रथिष्येताम्
॥ अथ दान्ताः पञ्च ।।
१००४. प्रदिषू (म्रद्) मर्दने ।
प्रदन्ते
प्रदध्वे
प्रदेते
प्रदे
प्रदावहे
प्रदेयाताम्
प्रदेयाथाम्
प्रदेवहि
प्रदेताम्
प्रदेथाम्
प्रदावहै
अम्रताम्
प्रथन्ते
न्
प्रथन्ताम्
अप्रथन्त
अप्रथिषत
पप्रथिरे
प्रथिषीरन्
प्रथितार:
प्रथिष्यन्ते
अप्रथिष्यन्त
प्रदाम
प्रदेरन्
प्रदेध्वम्
महि
261
म्रदन्ताम्
म्रदध्वम्
प्रदामह
अम्रदन्त
१. प्रथण् प्रख्याने इति पठिष्यमाणत्वेऽपि घटादिकार्यार्थमात्मने
पदार्थणिचूरहितशप्रत्ययार्थं चात्र पाठः ।।
Page #279
--------------------------------------------------------------------------
________________
262
अम्रदथा:. अम्रदेथाम्
अम्रदे
अम्रदावहि
अ० अम्रदिष्ट
अम्रदिषाताम्
अम्रदिष्ठाः
अम्रदिषाथाम् अम्रदिड्ढ्वम्/ध्वम्
अम्रदिषि
अप्रदिष्वहि
अप्रदिष्महि
मम्रदाते
मम्रदाथे
मम्रदिवहे
मम्रदे
मम्रदिषे
प्रदे
आ० प्रदिषीष्ट
प०
왕ᄋ
प्रदिषीष्ठाः
प्रदिषीय
प्रदिता
प्रदितासे
प्रदिताहे
प्रदिष्यते
प्रदिष्यसे
प्रदिष्ये
भ०
प्रदितार:
प्रदितासाथे
प्रदिताध्वे
प्रदितास्वहे
प्रदितास्मिहे
प्रदिष्येते
प्रदिष्यन्ते
प्रदिष्येथे
प्रदिष्यध्वे
प्रदिष्यावहे
प्रदिष्यामहे
क्रि० अम्रदिष्यत अम्रदिष्येताम्
अप्रदिष्यन्त
अम्रदिष्यथाः अम्रदिष्येथाम्
अम्रदिष्यध्वम्
अम्रदिष्ये अम्रदिष्यावहि अम्रदिष्यामहि
१००५. स्खदिषू (स्खद्) खदने ।
खदनं विदारणम्।
स्खदेते
स्खदेयाताम्
खताम्
अखताम्
अस्खदिषाताम्
चखदाते
व० स्खदते
स०
स्खदेत
मदिरे
मम्रदिध्वे
मदम
प्रदिषीयास्ताम् प्रदिषीरन्
प्रदिषीयास्थाम् प्रदिषीध्वम्
प्रदिषीमहि
प्रदिषीवहि
प्रदितारौ
अम्रदध्वम्
अम्रदामहि
अप्रदिषत
प० स्खदताम्
ह्य० अस्खदत
अ० अस्खदिष्ट
To
चस्खदे
आ० स्खदिषीष्ट
व० स्खदिता
स्खदितारौ
भ० स्खदिष्यते स्खदिष्येते
क्रि० अस्खदिष्यत अस्खदिष्येताम्
स्खदन्ते
स्खदेरन्
स्खदन्ताम
अस्खदन्त
अस्खदिषत
चस्खदिरे
स्खदिषीयास्ताम् स्खदिषीरन्
स्खदितार:
स्खदिष्यन्ते
अस्खदिष्यन्त
व० कन्दते
स०
कन्देत
प० कन्दताम्
ह्य० अकन्दत
अ० अकन्दिष्ट
१००६. कदुङ् (कन्द्) वैक्लव्ये । १ कन्देते
प० चकदे
आ० कन्दिषीष्ट
श्व० कन्दिता
भ० कन्दिष्यते
क्रि० अकन्दिष्यत अकन्दिष्येताम्
प० क्रन्दताम्
ह्य०
अक्रन्दत
अ० अक्रन्दिष्ट
प०
चक्रन्दे
आ० क्रन्दिषीष्ट
व० क्रन्दते क्रन्देते
स० क्रन्देत
कन्दन्ते
कन्देरन्
कन्दन्ताम्
अकन्दन्त
अकन्दिषत
चकन्दिरे
कन्दिषीयास्ताम् कन्दिषीरन्
कन्दितारः
कन्दिष्यन्ते
अकन्दिष्यन्त २
कन्देयाताम्
कन्देताम्
अकन्देताम्
अकन्दिषाताम्
चकन्दाते
१००७. ऋदुङ् (क्रन्द्) वैक्लव्ये । ३
कन्दितारौ
कन्दिष्येते
व० क्लन्दते
स०
क्लन्देत
प० क्लन्दताम्
ह्य० अक्लन्दत
अ० अक्लन्दिष्ट
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
멍ᄋ क्रन्दिता
भ० क्रन्दिष्यते
क्रि० अक्रन्दिष्यत अक्रन्दिष्येताम्
क्रन्देयाताम्
क्रन्देताम्
क्रन्दन्ताम्
अक्रन्देाम्
अक्रन्दन्त
अक्रन्दिषाताम् अक्रन्दिषत चक्रन्दाते चक्रन्दिरे क्रन्दिषीयास्ताम् क्रन्दिषीरन्
क्रन्दितारौ
क्रन्दितारः
क्रन्दिष्येते
क्रन्दिष्यन्ते
अक्रन्दिष्यन्त ४
१००८. क्लदूङ् (क्लन्द्) वैक्लव्ये ।
क्लन्दे
क्लदन्ते
क्लन्देरन्
क्लन्दन्ताम्
अक्लन्दन्त
अक्लन्दिषत
क्याम्
क्लन्देताम्
क्रन्दन्ते
क्रन्देरन्
अक्लन्ताम्
अक्लन्दिषाताम्
१. विक्लवः कातरस्तस्य भावः कर्म वा वैक्लव्यम् ।
२. कदु रोदानाह्वानयोरिति पठितत्वेऽपि वैक्लव्ये घटादि
कार्यार्थमात्मनेपदार्थञ्चात्राधीतः ।
३. विक्लवः कातरस्तस्य भावः कर्म वा वैक्लव्यम् ।
४. ऋदु रोदनाह्वानयोरिति पठित्वेऽपि वैकुव्ये घटादिकार्यार्थमात्मनेपदार्थश्चेहाधीतः ।
Page #280
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
प० चक्लन्दे
आ० क्लन्दिषीष्ट
श्व० क्लन्दिता
भ० क्लन्दिष्यते
क्रि० अक्लन्दिष्यत अक्लन्दिष्येताम् अक्लन्दिष्यन्त
क्रपते
ऋपसे
क्रपे
स० क्रपेत
व०
प०
ह्य०
॥ अथ पान्तः ॥
१००९. ऋपि (क्रप्) कृपायाम् ।।
क्रपेते
ऋपन्ते
पेथे
क्रपध्वे
क्रपामहे
क्रपेरन्
क्रपेथाः
क्रपेय
ऋपताम्
ऋपस्व
क्रपै
अक्रपत
अक्रपथाः
अक्रपे
अ० अक्रपिष्ट
अक्रपिष्ठाः
अक्रपिषि
प०
वक्रपे
वक्रपिषे
वक्र
आ० क्रपिषीष्ट
चक्लन्दाते चक्लन्दिरे
क्लन्दिषीयास्ताम् क्लन्दिषीरन् क्लन्दितारौ क्लन्दितार: क्लन्दिष्यन्ते
क्लन्दिष्येते
श्व० क्रपिता
पावहे
पेयाताम्
पेयाथाम्
वहि
क्रपेताम्
पेथाम्
पाव है
अक्रपेताम्
अक्रपथाम्
अक्रपावहि
अक्रपिषाताम्
अक्रपिषाथाम्
अक्रपिष्वहि
वक्रपाते
वक्रपाथे
वक्रपिवहे
पेध्वम्
पेमहि
ऋपन्ताम्
क्रपध्वम्
क्रपामहै
अक्रपन्त
वक्रपिरे
वक्रपिध्वे
वक्रपिमहे
ऋपिषीयास्ताम्
ऋपिषीरन्
ऋपिषोष्ठाः
ऋपिषीयास्थाम् क्रपिषीध्वम्
ऋपिषीय ऋपिषीवहि ऋपिषीमहि
ऋपितारौ
ऋपितासे
ऋपितासाथे
ऋपिताहे ऋपितास्वहे
भ० क्रपिष्यते क्रपिष्येते
अक्रपध्वम्
अक्रपामहि
अक्रपिषत
अक्रपिड्वम्/ध्वम्
अक्रपिष्महि
ऋपितार:
ऋपिताध्वे
ऋपितास्मिहे
ऋपिष्यन्ते
ऋपिष्यध्वे
क्रपिष्यसे ऋपिष्येथे क्रपिष्ये ऋपिष्यावहे क्रपिष्यामहे
क्रि० अक्रपिष्यत अक्रपिष्येताम् अक्रपिष्यन्त अक्रपिष्यथाः अक्रपिष्येथाम् अक्रपिष्यध्वम् अक्रपिष्ये अक्रपिष्यामहि
अक्रपिष्यावहि
व० त्वरते
त्वरसे
त्वरे
स० त्वरेत
॥ अथ रान्तः ॥
१०१०. ञित्वरिप् (त्वर्) संभ्रमे । १
त्वरेते
त्वरन्ते
त्वरेथे
त्वरध्वे
त्वरावहे
त्वरामहे
त्वरेयाताम्
त्वरेरन्
त्वरेयाथाम्
त्वरेध्वम्
त्वरेवहि
त्वरेमहि
त्वरेताम्
त्वरेयाथाम्
त्वरा है
प०
त्वरताम्
त्वरस्व
त्वरै
ह्य० अत्वरत
त्वरेथाः
त्वरेय
अत्वरथाः
अत्वरे
अ० अत्वरिष्ट
अत्वरिष्ठाः
अत्वरिषि
प०
तत्वरे
तत्वरिषे
तत्वरे
आ० त्वरिषीष्ट
त्वरिषीष्ठाः
त्वरिषीय
श्व० त्वरिता
त्वरितासे
त्वरिताहे
१. संभ्रमोत्राशुकारिता ।
अत्वरेताम्
अत्वरेथाम्
अत्वरावहि
त्वरन्ताम्
त्वरेध्वम्
त्वराम है
अत्वरन्त
अत्वरध्वम्
अत्वरामहि
अत्वरिषाताम् अत्वरिषत
अत्वरिषाथाम्
अत्वरिष्वहि
तत्वराते
तत्वरा
तत्वरिवहे
263
अत्वरिड्ढ्वम्/ध्वम्
अत्वरिष्महि
तत्वरिरे
तत्वरिध्वे
तत्वरिमहे
त्वरिषीयास्ताम्
त्वरिषीरन्
त्वरिषीयास्थाम् त्वरिषीध्वम्
त्वरिषीवहि त्वरिषीमहि
त्वरितारौ
त्वरितारः
त्वरितासाथे
त्वरिताध्वे
त्वरितास्वहे
त्वरितास्मिहे
Page #281
--------------------------------------------------------------------------
________________
264
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
भ० प्रसिष्यते प्रसिष्येते प्रसिष्यन्ते
प्रसिष्यसे प्रसिष्येथे प्रसिष्यध्वे
प्रसिष्ये प्रसिष्यावहे प्रसिष्यामहे क्रि० अप्रसिष्यत अप्रसिष्येताम् अप्रसिष्यन्त
अप्रसिष्यथाः अप्रसिष्येथाम् अप्रसिष्यध्वम् अप्रसिष्ये अप्रसिष्यावहि अप्रसिष्यामहि
॥अथ क्षान्तः।। १०१२. दक्षि (दक्ष) हिंसागत्योः।
॥अथ परस्मैपदिनः॥ १०१३. श्रां (झै श्रा) पाकेर
॥अथ ऋदन्ताः ॥ १०१४. स्मृ (स्मृ) आध्याने।३
॥अथ ऋदन्तौ॥
१०१५ दृ भये। व० दरति
दरन्ति
दरतः
दरसि
दरथः
दरथ
भ० त्वरिष्यते त्वरिष्येते त्वरिष्यन्ते त्वरिष्यसे त्वरिष्येथे
त्वरिष्यध्वे त्वरिष्ये त्वरिष्यावहे त्वरिष्यामहे क्रि० अत्वरिष्यत अत्वरिष्येताम् अत्वरिष्यन्त
अत्वरिष्यथाः अत्वरिष्येथाम् अत्वरिष्यध्वम् अत्वरिष्ये अत्वरिष्यावहि अत्वरिष्यामहि
॥ अथ सान्तः॥
१०११. प्रसिधू (प्रस्) विस्तारे। व० प्रसते प्रसेते
प्रसन्ते प्रससे प्रसेथे
प्रसध्वे प्रसे प्रसावहे प्रसामहे स० प्रसेत प्रसेयाताम् प्रसेरन्
प्रसेथाः प्रसेयाथाम् प्रसेध्वम्
प्रसेय प्रसेवहि प्रसेमहि प० प्रसताम् प्रसेताम् प्रसन्ताम्
प्रसस्व प्रसेथाम् प्रसध्वम्
प्रसै प्रसावहै प्रसामहै ह्य० अप्रसत अप्रसेताम् अप्रसन्त अप्रसथाः अप्रसेथाम्
अप्रसध्वम् अप्रसे अप्रसावहि अप्रसामहि अ० अप्रसिष्ट अप्रसिषाताम् अप्रसिषत
अप्रसिष्ठाः अप्रसिषाथाम् अप्रसिड्दवम्/ध्वम्
अप्रसिषि अप्रसिष्वहि अप्रसिष्महि प० पप्रसे पप्रसाते पप्रसिरे
पप्रसिषे पप्रसाथे पप्रसिध्वे
पप्रसे पप्रसिवहे पप्रसिमहे आ० प्रसिषीष्ट प्रसिषीयास्ताम्
प्रसिषीरन् प्रसिषीष्ठाः प्रसिषीयास्थाम् प्रसिषीध्वम्
प्रसिषीय प्रसिषीवहि प्रसिषीमहि श्व० प्रसिता प्रसितारौ प्रसितारः
प्रसितासे प्रसितासाथे प्रसिताध्वे प्रसिताहे प्रसितास्वहे प्रसितास्मिहे
दरावः
दरामः
दरामि दरेत्
दरेताम्
दरेयुः
दरेः
दरेतम्
दरेत
दरेव
दरेम
दरेयम् दरतु/दरतात् दर/दरतात् दराणि
दरताम् दरतम् दराव
दरत
दराम
ह्य०
अदरत्
अदरताम्
अदरन्
अदरः
अदरतम्
अदरत
१. दक्षि शैघ्रय च इत्यस्यैवार्थभेदाद् घटादिकार्यार्थं पुनरिह पाठः।
एतदूपाणि च दक्षि शैघ्रये च ८७५ इति वज्ज्ञेयानि। २. भै पाके इति पठितस्य श्रांक् पाके इति पठिष्यमाणस्य चेह
घटादिकार्यार्थ पाठः। ततोऽस्य रूपाणि एकदा 8 पाके ४६ इति
वत्, एकदा च श्रांक पाके १०६५ इति वज्ज्ञेयानि। ३. आध्यानमुत्कण्ठा। अन्यत्रोक्तस्यार्थविशेषे घटादिकार्यार्थमिह पाठः।
एतद्रूपाणि चव स्मृचिन्तायाम् १८ इति वज्ज्ञेयानि।
Page #282
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
265
अदराम
अदरम् अ० अदारीत्
अदारी:
अदारिषम् प० ददार
ददरिथ
अदराव अदारिष्टाम् अदारिष्टम् अदारिष्व
अदारिषुः अदारिष्ट अदारिष्म
ददार/ददर आ० दीर्यात्
दीर्याः
दीर्यासम् श्व० दरीता
दरीतासि दरीतास्मि
ददरतुः/दद्रतुः ददरथुः/दद्रथुः ददरिव/दद्रिव दीर्यास्ताम् दीर्यास्तम् दीर्यास्व दरीतारौ दरीतास्थः दरीतास्वः
तथा दरितारौ दरितास्थः दरितास्वः दरीष्यतः दरीष्यथ: दरीष्याव:
ददरु:/दुः ददर दद्र ददरिम/दद्रिम दीर्यासुः दीर्यास्त दीर्यास्म दरीतारः दरीतास्थ दरीतास्मः
दरिता दरितासि
दरितास्मि भ० दरीष्यति
दरीष्यसि दरीष्यामि
दरितारः दरितास्थ दरितास्मः दरीष्यन्ति दरीष्यथ दरीष्यामः
दृश् विदारणे इति पठिष्यमाणत्वेऽपि भये घटादिकार्यार्थं
शव्यत्यार्थञ्च पाठः॥ १०१६ नृ नये। त्रयादेघटादिकार्यार्थं विरलोऽस्य पाठः। एतद्रूपाणि च नृश् नये १५३७ इति वदवसेयानि।।
१०१७. ष्टक (स्तक) प्रतीपाते। व० स्तकति स्तकतः स्तकन्ति
स्तकसि स्तकथः स्तकथ
स्तकामि स्तकाव: स्तकामः स० स्तकेत् स्तकेताम् स्तकेयुः स्तके: स्तकेतम्
स्तकेत स्तकेयम् स्तकेव स्तकेम प० स्तकतु/स्तकतात् स्तकताम् स्तकन्तु स्तक/स्तकतात् स्तकतम्
स्तकत स्तकानि स्तकाव
स्तकाम ह० अस्तकत् अस्तकताम् अस्तकन् अस्तकः अस्तकतम्
अस्तकत अस्तकम् अस्तकाव अस्तकाम अ० अस्तकिष्ट अस्तकिषाताम अस्तकिषत
अस्तकिष्ठाः अस्तकिषाथाम अस्तकिड्ढवम्/ध्वम् अस्तकिषि
अस्तकिष्महि प० तस्ताक तस्तकतुः तस्तकुः तस्तकिथ तस्तकथुः
तस्तक तस्ताक तस्तकिव तस्तकिम आ० स्तक्यात् स्तक्यास्ताम् स्तक्यासुः
स्तक्या: स्तक्यास्तम् स्तक्यास्त
स्तक्यासम् स्तक्यास्व स्तक्यास्म श्व० स्तकिता स्तकितारौ स्तकितारः
स्तकितासि स्तकितास्थः स्तकितास्थ
स्तकितास्मि स्तकितास्वः स्तकितास्मः भ० स्तकिष्यति स्तकिष्यतः स्तकिष्यन्ति
स्तकिष्यसि स्तकिष्यथः स्तकिष्यथ
स्तकिष्यामि स्तकिष्याव: स्तकिष्यामः क्रि० अस्तकिष्यत् अस्तकिष्यताम् अस्तकिष्यन्
अस्तकिष्यः अस्तकिष्यतम् अस्तकिष्यत
तथा
दरिष्यति दरिष्यसि
दरिष्यामि क्रि० अदरीष्यत्
अदरीष्यः
दरिष्यतः दरिष्यथ: दरिष्याव: अदरीष्यताम् अदरीष्यतम् अदरीष्याव
दरिष्यन्ति दरिष्यथ दरिष्यामः अदरीष्यन् अदरीष्यत अदरीष्याम
अदरीष्यम्
तथा
अदरिष्यत् अदरिष्यः अदरिष्यम्
अदरिष्यताम् अदरिष्यतम् अदरिष्याव
अदरिष्यन् अदरिष्यत अदरिष्याम
Page #283
--------------------------------------------------------------------------
________________
266
धातुरलाकर प्रथम भाग
चेकुः
प०
अस्तकिष्यम् अस्तकिष्याव अस्तकिष्याम १० १८. स्तक (स्तक्) प्रतीघाते। एतद्रूपाणि च ष्टक
प्रतीधाते। १०१७ इतिवज्ज्ञेयानि। उभयपाठस्तु तिष्टकयिषति तिस्तकयिषतीति षत्वविकल्पार्थः। १० १९. चक (चकू) तृप्तौ च। चकारात्प्रतीघाते॥ व० चकति चकत:
चकन्ति स० चकेत् चकेताम् चकेयुः प० चकतु/चकतात् चकताम् चकन्तु ह्य० अचकत् अचकताम् अचकन् अ० अचाकीत अचाकिष्टाम् अचकिषुः अ० अचकीत् अचकिष्टाम्
अचकिषुः प० चचाक चेकतुः आ० चक्यात् चक्यास्ताम् चक्यासुः श्व० चकिता चकितारौ चकितारः भ० चकिष्यति चकिष्यतः चकिष्यन्ति क्रि० अचकिष्यत् अचकिष्यताम् अचकिष्यन्
१०२० अक (अक्) कुटिलायां गतौ। व० अकति अकत:
अकन्ति स० अकेत् अकेताम् अकेयुः प० अकतु/अकतात् अकताम् अकन्तु ह्य० आकत् आकताम्
आकन् अ० आकीत् आकिष्टाम्
आकिषुः प० आक आकतुः
आकुः आ० अक्यात् अक्यास्ताम् अक्यासुः श्व० अकिता अकितारौ अकितारः भ० अकिष्यति अकिष्यतः अकिष्यन्ति क्रि० आकिष्यत् आकिष्यताम् आकिष्यन्
॥अथ खान्तः।।
१०२१. कखे (कख) हसने। व० कखति कखतः कखन्ति कखसि कखथः
कखथ कखामि कखाव:
कखामः
स० कखेत् कखेताम् कखेयुः कखे: कखेतम्
कखेत कखेयम् कखेव कखेम प० कखतु/कखतात् कखताम् कखन्तु कख/कखतात् कखतम्
कखत कखानि कखाव
कखाम ह्य० अकखत् अकखताम् अकखन्
अकखः अकखतम् अकखत
अकखम् अकखाव अकखाम अ० अकखीत् अकखिष्टाम् अकखिषुः
अकखी: अकखिष्टम् अकखिष्ट अकखिषम् अकखिष्व अकखिष्म चकाख चकखतुः चकखुः चकखिथ चकखथुः
चकख चकाख/चकख चकखिव चकखिम आ० कख्यात् कख्यास्ताम् कख्यासुः
कख्या: कख्यास्तम् कख्यास्त
कख्यासम् कख्यास्व कख्यास्म ० कखिता कखितारौ कखितार:
कखितासि कखितास्थः कखितास्थ
कखितास्मि कखितास्व: कखितास्मः भ० कखिष्यति कखिष्यतः कखिष्यन्ति
कखिष्यसि कखिष्यथ: कखिष्यथ
कखिष्यामि कखिष्याव: कखिष्याम: क्रि० अकखिष्यत् अकखिष्यताम् अकखिष्यन्
अकखिष्यः अकखिष्यतम् अकखिष्यत अकखिष्यम् अकखिष्याव अकखिष्याम
॥ अथ गान्ता नव सेटच।।
१०२२. अग (अग) अकवतार व० अगति अगतः
अगन्ति अगथ:
अगथ
अगसि
पठितत्वेऽपि
१. चकि तृप्तिप्रतीपातयोरिति
परस्मैपदार्थञ्नेह पाठः।
घटादिकार्यार्थं | २. अक गुटिलायां गतौ पठितोऽयमपि तदर्थो लाघवार्थ तथा ।
निर्दिश्यते।
Page #284
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
267
अगामः
स०
अगेयुः
रग्यासुः
अगामि अगाव: अगेत् अगेताम् अगे: अगेतम्
अगेव अगतु/अगतात् अगताम् अग/अगतात् अगतम् अगानि अगाव
अगेत अगेम
अगेयम्
प०
अगन्तु
अगत
अगाम
ह्य०
आगत्
आगताम्
आगन
लगेयुः
आगतुः
आगुः
आग: आगतम्
आगत आगम् आगाव
आगाम अ० आगीत् आगिष्टाम् आगिषुः
आगी: आगिष्टम् आगिष्ट आगिषम् आगिष्व
आगिष्म प० आग आगिथ आगथुः
आग आग आगिव
आगिम आ० अग्यात् अग्यास्ताम् अग्यासुः अग्या : अग्यास्तम्
अग्यास्त अग्यासम् अग्यास्व
अग्यास्म श्व० अगिता अगितारौ अगितारः
अगितासि अगितास्थ: अगितास्थ
अगितास्मि अगितास्वः अगितास्मः भ० अगिष्यति अगिष्यतः अगिष्यन्ति
अगिष्यसि अगिष्यथ: अगिष्यथ
अगिष्यामि अगिष्याव: अगिष्यामः क्रि० आगिष्यत् आगिष्यताम् आगिष्यन्
आगिष्यः आगिष्यतम् आगिष्यत आगिष्यम् आगिष्याव आगिष्याम
१०२३. रगे (रग) शङ्कायाम्। व० रगति रगतः
रगन्ति स० रगेत्
रगताम् प० रगतु/रगतात् रगताम्
रगन्तु ह्य० अरगत् अरगताम
अरगन्
अ० अरगीत् अरगिष्टाम् अरगिषुः प० रराग रेगतुः रेगुः आ० रग्यात् रग्याअरम् ० रगिता रगितारौ रगितार: भ० रगिष्यति रगिष्यतः रगिष्यन्ति क्रि० अरगिष्यत् अरगिष्यताम् अरगिष्यन्
१०२४. लगे (लग) सङ्गे। व० लगति लगत: लगन्ति स० लगेत् लगेताम् प० लगतु/लगतात् लगताम्
लगन्तु ह्य० अलगत् __ अलगताम् अलगन् अ० अलगीत् अलगिष्टाम् अलगिषुः प० ललाग
लेगतुः लेगुः आ० लग्यात् लग्यास्ताम्
लग्यासुः श्व० लगिता लगितारौ लगितारः | भ० लगिष्यति लगिष्यतः लगिष्यन्ति क्रि० अलगिष्यत् अलगिष्यताम् अलगिष्यन्
लगण आस्वादने इति पठिष्यमाणत्वेऽपि अर्थविशेषे घटादिकार्यार्थ णिच् रहितशव्यत्ययार्थ चात्र पाठः। १०२५. ह्रगे (ह्रग) संवरणे।
संवरणमाच्छादनम्। व० ह्रगति हगतः
हगन्ति स० हगेत् हगेताम् हगेयुः प० ह्रगतु/हगतात् हगताम् ह्रगन्तु ह्य० अहगत् अह्रगताम् अहगन् अ० अहगीत् अहगिष्टाम् अहगिषु: प० जहाग
जगतुः आ० हग्यात् हृग्यास्ताम् हग्यासुः श्व० हगिता हगितारौ हगितार: भ० हगिष्यति हगिष्यतः हगिष्यन्ति क्रि० अहगिष्यत् अहगिष्यताम् अहगिष्यन्
जहगुः
रगेयुः
१. रगण आस्वादने इति पठिष्यमाणत्वेऽपि अर्थविशेषे घटादिकार्यार्थं
णिचहितशत्प्रत्ययार्थं चेह पाठः।
Page #285
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
१०२६. हगे (ह्रग) संवरणे।
संवरणमाच्छादनम्। व० ह्रगति ह्रगतः लगन्ति स० हगेत् हृगेताम् ह्रगेयुः प० ह्रगतु/हृगतात् हृगताम् ह्रगन्तु ह्य० अलगत् अह्रगताम् अहूगन् अ० अहगीत् अलगिष्टाम् , अगिषुः प० जह्लाग जगतुः जलगुः आ० ह्रग्यात् हग्यास्ताम्
ह्रग्यासुः श्व० हगिता हगितारौ हगितार: भ० हगिष्यति हगिष्यत: हगिष्यन्ति क्रि० अहगिष्यत् अगिष्यताम् अहगिष्यन्
१०२७. षगे (सग) संवरणे।
संवरणमाच्छादनम्। व० सगति सगत:
सगन्ति स० सगेत्
सगेयुः प० सगतु/सगतात् सगताम् सगन्तु ह्य० असगत् असगताम् असगन् अ० असगीत् असगिष्टाम् असगिषुः प० ससाग
सेगुः आ० सग्यात् सग्यास्ताम् सग्यासुः श्व० सगिता सगितारौ सगितार: भ० सगिष्यति सगिष्यतः सगिष्यन्ति क्रि० असगिष्यत् असगिष्यताम् असगिष्यन्
१०२८. ष्ठगे (स्थग) संवरणे।
संवरणमाच्छादनम्। व० स्थगति स्थगतः
स्थगन्ति स० स्थगेत् स्थगेताम् स्थगेयुः प० स्थगतु/स्थगतात् स्थगताम् स्थगन्तु ह्य० अस्थगत् अस्थगताम्
अस्थगन् अ० अस्थगीत् अस्थगिष्टाम् अस्थगिषुः
सगेताम्
आ० स्थग्यात् स्थग्यास्ताम् स्थग्यासुः श्व० स्थगिता स्थगितारौ स्थगितारः भ० स्थगिष्यति स्थगिष्यतः स्थगिष्यन्ति क्रि० अस्थगिष्यत् अस्थगिष्यताम् अस्थगिष्यन्
१०३०. स्थगे (स्थम्) संवरणे।
संवरणमाच्छादनम्। एतद्रूपाणि तु ष्ठगे संवरणे १०२९ इतिवदवसेयानि। उभयपाठस्तु तिष्ठगयिषति तिस्थगयिषतीति षत्वविकल्पार्थः।
॥ अथ टान्तास्त्रयः सेटच।।
१०३१. वट (वट्) परिभाषणे। वट वेष्टने इति पठितत्वेऽपि वटणू ग्रन्थे इति पठिष्यमाणत्वेऽपि अर्थविशेषे घटादिकायार्थमस्य पाठः। एतद्रूपाणि च वट वेष्टने। १७६ इतिवज्ज्ञेयानि।
१०३२. भट (भटू) परिभाषणे। भट भृतौ इति पठितत्वेऽपि घटादिकायार्थमिह पाठः। एतदूपाणि च भट भृतौ १८४ इतिवदवसेयानि।
१०३३. णट (नट) नृत्तौ। नट नृत्तौ इति पठितत्वेऽपि नटणू अवस्यन्दने इति पठिष्यमाणत्वेऽपि अर्थविशेषे घटादिकार्यार्थमिह पाठः। एतद्रूपाणि च नट नृत्तौ १८७ इतिवज्ज्ञेयानि।
॥अथ डान्तास्त्रयः सेटश्च।।
१०३४. गड (गड्) सेचने। व० गडति गडतः
गडन्ति गडसि
गडथ गामि गडावः
गडाम: स० गड़ेत् गडेताम् गडेयुः
गडे: गडेतम्
गडेयम् गडेव गडेम प० गडतु/गडतात् गडताम्
गडन्तु
सेगतुः
गडथ:
गडेत
प० तस्थाग
तस्थगतुः
तस्थगुः
Page #286
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
269
अगडन्
हेडेताम्
AN ७
अहेडन्
गड/गडतात् गडतम्
गडत गडानि गडाव
गडाम ह्य० अगडत् अगडताम् अगड:
अगडतम् अगडत अगडम् अगडाव
अगडाम अ० अगाडीत् अगाडिष्टाम् अगाडिषुः अगाडी: अगाडिष्टम् अगाडिष्ट
तथा अगाडिषम् अगाडिष्व अगाडिष्म अ० अगडीत् अगडिष्टाम् अगडिषुः, इत्यादि। प० जगाड जगडतुः
जगडुः जगडिथ जगडथुः जगड
जगाड/जगड जगडिव जगडिम आ० गड्यात् गड्यास्ताम् गड्यासुः गड्याः गड्यास्तम्
गड्यास्त गड्यासम् गड्यास्व गड्यास्म श्व० गडिता गडितारौ
गडितार: गडितासि गडितास्थः गडितास्थ
गडितास्मि गडितास्व: गडितास्मः भ० गडिष्यति गडिष्यतः गडिष्यन्ति
गडिष्यसि गडिष्यथ: गडिष्यथ
गडिष्यामि गडिष्याव: गडिष्यामः क्रि० अगडिष्यत् अगडिष्यताम् अगडिष्यन्
अगडिष्यः अगडिष्यतम् अगडिष्यत अगडिष्यम् अगडिष्याव अगडिष्याम
डकारस्य लत्वे। व० गलति गलत:
गलन्ति स० गलेत् गलेताम् गलेयुः प० गलतु/गलतात् गलताम् गलन्तु ह्य० अगलत् अगलताम् अगलन् अ० अगालीत् अगालिष्टाम् अगालिषुः प० जगाल जगलतुः
जगलुः आ० गल्यात् गल्यास्ताम्
गल्यासुः
श्व० गलिता गलितारौ गलितार: भ० गलिष्यति गलिष्यतः गलिष्यन्ति क्रि० अगलिष्यत् अगलिष्यताम् अगलिष्यन्
१०३५. हेड (हेड्) वेष्टने। हेडुङ् अनादरे इति पठितत्वेऽपि अर्थविशेषे घटादिकार्यार्थ
___ परस्मैपदार्थञ्चात्र पाठः। व० हेडति हेडतः हेडन्ति स० हेडेत्
हेडेयुः प० हेडतु/हेडतात् हेडताम् हेडन्तु
अहेडत् अहेडताम्
अहेडीत् अहेडिष्टाम् अहेडिषुः प० जिहेड जिहेडतुः जिहेडुः आ० हेड्यात् हेड्यास्ताम्
हेड्यासुः श्व० हेडिता हेडितारौ हेडितार: भ० हेडिष्यति हेडिष्यतः हेडिष्यन्ति क्रि० अहेडिष्यत् अहेडिष्यताम् अहेडिष्यन्
१०३६. लड (लड्) जिह्वोन्मथने।
जिह्वाया उन्मथनं जिह्वोन्मथनम्। लडयति जिह्वां कुक्कुरः। लत्वे जिह्वाशतान्युल्ललयत्यभिक्ष्णम्। जिह्वोन्मथनयोरित्येके। तन्मते संग्रहार्थं जिह्वा च जिह्वाविषया क्रिया उन्मथनञ्चेति समाहारः। लडयति जिह्वाम् । ललयति दधि। लडण उपसेवायाम। लाडयति। लड विलासे इत्यस्यैवार्थविशेषे घटादिकार्यार्थमिह पाठः। लडयति जिह्वामित्यादिलक्ष्यानुरोधात् णिप्रत्यये एव जिह्वोन्मथनरूपार्थो भवति तेन जिह्वोन्मथनार्थस्यास्य रूपाणि लडयतीत्यादीनि वक्ष्यमाणानि ज्ञेयानि नातु लडतीत्यादीनि।
॥अथ णान्ताः षट् सेटश्च।।
१०३७. फण (फण) गतौ। व० फणति फणत:
फणन्ति फणसि फणथः
फणथ फणामि
फणाव:
फणामः
Page #287
--------------------------------------------------------------------------
________________
270
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
फणेयम्
स० फणेत् फणेताम् फणेः फणेतम्
फणेव प० फणतु/फणतात् फणताम्
फण/फणतात् फणतम्
फणानि फणाव ह्य० अफणत् अफणताम्
अफणः अफणतम्
अफणतम् अफणाव अ० अफणीत् अफणिष्टाम्
अफणी: अफणिष्टम्
अफणिषम् अफणिष्व अ० अफाणीत् अफाणिष्टाम्
अफाणी: अफाणिष्टम् अफाणिषम् अफाणिष्व
फणेयुः फणेत फणेम फणन्तु फणत फणाम अफणन् अफणत अफणाम अफणिषुः अफणिष्ट अफणिष्म अफाणिषुः अफाणिष्ट अफाणिष्म
तथा
प०
पफाण फेणिथ पफाण/पफण
फेणतुः फेणथुः
फेणुः
फेण
१०३८. कण (कण्) गतौ। कण शब्दे इति पठितत्वेऽपि फणण् निमीलने इति पठिष्यमाणत्वेऽपि अर्थविशेषे घटादिकार्यार्थमिह पाठः। अस्य रूपाणि फण शब्दे २७० इतिवज्ज्ञेयानि।
१०३९. रण (रण) गतौ। रण शब्द इति पठितोऽपि अर्थविशेष घटादिकार्यार्थमिह पठितः। रूपाणि चास्य रण शब्दे २६० इतिवज्ज्ञेयानि।
१०४०. चण (चण) हिंसादानयोश्च। हिंसायां दाने काराद्गतौ। चण शब्द इति पठितोऽपि अर्थविशेषे घटादिकार्यार्थमिह पठितः। एतदूपाणि चण शब्दे २७२ इतिवज्ज्ञेयानि।
१०४१. शण (शण) दाने। व० शणति शणतः शणन्ति स० शणेत् शणेताम् शणेयुः प० शणतु/शणतात् शणताम् शणन्तु ह्य० अशणत् अशणताम् अशणन् अ० अशाणीत् अशाणिष्टाम् अशाणिषुः
अशणीत् अशणिष्टाम् अशणिषुः प० शशाण आ० शण्यात् शण्यास्ताम् शण्यासुः श्व० शणिता शणितारौ शणितार: भ० शणिष्यति शणिष्यतः शणिष्यन्ति क्रि० अशणिष्यत् अशणिष्यताम् अशणिष्यन्
१०४२. श्रण (श्रण) दाने। व० श्रणति श्रणतः स० श्रणेत् श्रणेताम् श्रणेयुः प० श्रणतु/श्रणतात् श्रणताम् श्रणन्तु ह्य० अश्रणत् अश्रणताम् अश्रण अ० अश्राणीत् अश्राणिष्टाम् अश्राणिषुः
अश्रणीत् अश्रणिष्टाम् अश्रणिषुः प० शश्राण शश्रणतुः शश्रणुः आ० श्रण्यात् श्रण्यास्ताम् श्रण्यासुः श्व० श्रणिता श्रणितारौ श्रणितार: भ० श्रणिष्यति श्रणिष्यतः श्रणिष्यन्ति क्रि० अश्रणिष्यत् अश्रणिष्यताम् अश्रणिष्यन्
फेणिव
फेणिम
शेणतुः
शेणुः
तथा
पफणुः
फण्या:
श्रणन्ति
प० पफाण पफणतुः
पफणिथ - पफणथुः
पफाण/पफण पफणिव आ० फण्यात् फण्यास्ताम्
फण्यास्तम् फण्यासम्
फण्यास्व श्व० फणिता फणितारौ
फणितासि फणितास्थः
फणितास्मि फणितास्वः भ० फणिष्यति फणिष्यतः
फणिष्यसि फणिष्यथ:
फणिष्यामि फणिष्याव: क्रि० अफणिष्यत् अफणिष्यताम्
अफणिष्यः अफणिष्यतम् अफणिष्यम् अफणिष्याव
पफण पफणिम फण्यासुः फण्यास्त फण्यास्म फणितार: फणितास्थ फणितास्मः फणिष्यन्ति फणिष्यथ फणिष्यामः अफणिष्यन् अफणिष्यत अफणिष्याम
मामि
Page #288
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
271
स्नथेताम्
॥अथ थान्ताश्चत्वारः सेटश्च।।
१०४३. स्नथ (स्नथ्) हिंसार्थः। व० स्नथति स्नथतः
स्नथन्ति स्नथसि स्नथथ:
स्नथथ स्नथामि स्नथाव: स्नथाम: स० स्नथेत्
स्नथेयुः स्नथे: स्नथेतम् स्नथेत स्नथेयम् स्नथेव
स्नथेम स्नथतु/स्नथतात्स्नथताम्
स्नथन्तु स्नथ/स्नथतात् स्नथतम् स्नथत स्नथानि स्नथाव
स्नथाम ह्य० अस्नथत् अस्नथताम् अस्नथन्
अस्नथ: अस्नथतम् अस्नथत
अस्नथतम् अस्नथाव अस्नथाम अ० अस्नाथीत् अस्नाथिष्टाम् अस्नाथिषुः
अस्नाथी: अस्नाथिष्टम् अस्नाथिष्ट अस्नाथिषम् अस्नाथिष्व अस्नाथिष्म
तथा अस्नथीत् अस्नथिष्टाम् अस्नथिषुः इत्यादि। प० सस्नाथ सस्नथतुः सस्नथुः
सस्नथिथ सस्नथथुः सस्नथ
सस्नाथ/सस्नथ सस्नथिव सस्नथिम आ० स्नथ्यात् स्नथ्यास्ताम्
स्नथ्यासुः स्नथ्या:
स्नथ्यास्तम् स्नथ्यास्त स्नध्यासम् स्नथ्यास्व स्नथ्यास्म श्व० स्नथिता स्नथितारौ स्नथितार:
स्नथितासि स्नथितास्थ: स्नथितास्थ
स्नथितास्मि स्नथितास्वः स्नथितास्मः भ० स्नथिष्यति स्नथिष्यतः स्नथिष्यन्ति
स्नथिष्यसि स्नथिष्यथ: स्नथिष्यथ
स्नथिष्यामि स्नथिष्याव: स्नथिष्यामः क्रि० अस्नथिष्यत् अस्नथिष्यताम् अस्नथिष्यन्
अस्नथिष्यः अस्नथिष्यतम् अस्नथिष्यत अस्नथिष्यम् अस्नथिष्याव अस्नथिष्याम
१०४४. क्नथ (क्नथ्) हिसार्थः। व० क्नथति क्नथतः
क्नथन्ति स० क्नथेत् क्नथेताम्
क्नथेयुः प० क्नथतु/क्नथतात् क्नथताम्
क्नथन्तु ह्य० अक्नथत् अक्नथताम् अक्नथन् अ० अक्नाथीत् अक्नाथिष्टाम् अक्नाथिषुः प० चक्नाथ चक्नथतुः चक्नथुः आ० क्नथ्यात् क्नथ्याक्ताम् क्नथ्यासुः श्व० क्नथिता नथितारौ क्नथितारः भ० क्नथिष्यति नथिष्यतः क्नथिष्यन्ति क्रि० अक्नथिष्यत् अक्नथिष्यताम् अक्नथिष्यन्
१०४५. ऋथ (ऋथ्) हिंसायाम्। व० ऋथति ऋथतः क्रथन्ति स० क्रथेत् क्रथेताम् ऋथेयुः प० क्रथतु/क्रथतात् क्रथताम् क्रथन्तु ह्य० अक्रथत् अक्रथताम् अक्रथन् अ० अक्राथीत् अक्राथिष्टाम् अक्राथिषुः प० चक्राथ चक्रथतुः आ० ऋथ्यात् ऋथ्याक्ताम् क्रथ्यासुः श्व० ऋथिता ऋथितारौ क्रथितार: भ० ऋथिष्यति ऋथिष्यतः ऋथिष्यन्ति क्रि० अक्रथिष्यत अक्रथिष्यताम् अक्रथिष्यन
१०४६. क्लथ (क्लथ्) हिंसार्थः। व० क्लथति क्लथतः क्लथन्ति स० क्लथेत् क्लथेताम्
क्लथेयुः प० क्लथतु/क्लथतात् क्लथताम्
क्लथन्तु ह्य० अक्लथत् अक्लथताम् अक्लथन् अ० अक्लाथीत् अक्लाथिष्टाम् अक्लाथिषुः प० चक्लाथ चक्लथतुः आ० क्लथ्यात्
क्लथ्यास्ताम् क्लथ्यासुः श्व० क्लथिता क्लथितारौ क्लथितार: भ० क्लथिष्यति क्लथिष्यतः क्लथिष्यन्ति क्लि० अक्लथिष्यत् अक्लथिष्यताम् अक्लथिष्यन्
चक्रथुः
चक्लथुः
Page #289
--------------------------------------------------------------------------
________________
272
धातुरलाकर प्रथम भाग
ज्वरन्ति
ज्वरथ
ज्वराम: ज्वरेयुः ज्वरेत ज्वरेम ज्वरन्तु ज्वरत
प०
ज्वराम
अज्वरन् अज्वरत अज्वराम अज्वारिषुः अज्वारिष्ट अज्वारिष्म
अथ दान्तौ सेटौ च।
व० ज्वरति ज्वरतः १०४७. छद (छद्) ऊर्जने। ऊर्जनं प्राणनं बलनञ्चार ज्वरसि ज्वरथः
ज्वरामि
ज्वराव: १०४८. मदै (मद्) हर्षग्लपनयोः।२
स० ज्वरेत् ज्वरेताम् १०४९. ष्ठन (स्तन्) शब्दे।
ज्वरेः ज्वरेतम् एतदूपाणि च स्तन शब्दे ३२३ इति वज्ज्ञेयानि षोपदेशत्वाता |
ज्वरेयम् ज्वरेव तिष्टनयिषति।
ज्वरतु/ज्वरतात् ज्वरताम् १०५०. स्तन (स्तन्) शब्द।
ज्वर/ज्वरतात् ज्वरतम् स्तन शब्दे इति पठितत्वेऽपि स्तनण् गर्ने इति | ज्वरानि
ज्वराव पठिष्यमाणत्वेऽपि घटादिकायार्थमस्य पाठः। एतद्रूपाणि च | ह्य० अज्वरत् अज्वरताम् स्तन शब्दे ३२३ इतिवज्ज्ञेयानि, अघोपदेशत्वात्।। अज्वरः अज्वरतम् तिस्थनयिषति।
अज्वरम् अज्वराव १०५१. ध्वन (ध्वन्) शब्दे।
अ० अज्वारीत् अज्वारिष्टाम् ध्वन शब्दे इति पठितत्वेऽपि ध्वनण शब्दे इति अज्वारीः अज्वारिष्टम् पठिष्यमाणत्वेऽपि घटादिकार्यार्थमिह पाठः। रूपाणि चास्य
अज्वारिषम् अज्वारिष्व ध्वन शब्दे ३२५ इतिवज्ज्ञेयानि।
प० जज्वार
जज्वरतुः
जज्वरिथ जज्वरथुः १०५२. स्वन (स्वन्) अवतंसे।
जज्वार/जज्वर जज्वरिव पूर्वपठितस्यापि घटादिकार्यार्थमिह पाठः। एतद्रूपाणि च स्वन |
आ० ज्वर्यात् ज्वर्यास्ताम् शब्दे ३२७ इतिवज्ज्ञेयानि।
ज्वर्याः ज्वर्यास्तम् १०५३. चन (चन्) हिंसायाम।
ज्वर्यासम् ज्वर्यास्व पूर्वपठितस्यापि घटादिकार्याथमर्थविशेषे पाठः। चन शब्दे | श्व० ज्वरिता ज्वरितारौ ३२६ इतिवदूपाणि ।
ज्वरितासि ज्वरितास्थः अथ रान्तः सेट् च।
ज्वरितास्मि ज्वरितास्व: १०५४. ज्वर (ज्वर) रोगे।
भ० ज्वरिष्यति ज्वरिष्यतः
ज्वरिष्यसि ज्वरिष्यथ: १. छदण संवरणे इति पठिष्यमाणोऽप्यूर्जने घटादिकार्यार्थमिह पठितः
ज्वरिष्यामि ज्वरिष्याव: छदयत्यग्निः स्वार्थे णिच् छादयन्त प्रयुडक्ते इति णिग् वा।। क्रि० अज्वरिष्यत् अज्वरिष्यताम् छदयत्यग्निरित्यादि लक्ष्या नुरोधात् णिप्रत्यये एव ऊर्जनार्थो भवति अज्वरिष्यः अज्वरिष्यतम् तेन ऊर्जनार्थस्यास्य रूपाणि छदयतीत्यादीनि वक्ष्यमाणानि नतु | अज्वरिष्यम् अज्वरिष्याव
छदतीत्यादीनि। २. मदेच। हर्षे इत्थयमनयोरर्थयोघटादिकार्यार्थमिह पठितः। एतद्रूपाणि __च हर्षार्थे मदैच। हर्षे इतिवज्ज्ञेयानि ग्लपनर्थेतु मदतीत्यादीनि।
जज्वरः जज्वर जज्वरिम ज्वर्यासुः ज्वर्यास्त ज्वर्यास्म ज्वरितारः ज्वरितास्थ ज्वरितास्मः ज्वरिष्यन्ति ज्वरिष्यथ ज्वरिष्यामः अज्वरिष्यन् अज्वरिष्यत अज्वरिष्याम
Page #290
--------------------------------------------------------------------------
________________
भ्वादिगण
273
ह्वले:
हलेत
अह्वलन्
__ १०५५. चल (चल्) कम्पने।
१०५७. ह्यल (ह्मलू) चलने। चल कम्पने इति पठितत्वेऽपि चलत् विलसने इति चलण् | व० ह्यलति हलतः ह्मलन्ति भृतौ इति च पठिष्यमाणत्वेऽपि घटादिकायार्थमस्येह पाठः।।
लेताम् ह्मलेयुः रूपाणि चास्य चल कम्पने ९७२ इतिवज्ज्ञेयानि।
ह्मलतु/ह्मलतात् ह्मलताम्
लन्तु १०५६. ह्वले (ह्वल्) चलने।
ह्य० अह्मलत् अह्मलताम् अझलन्
अ० अझालीत् अह्मालिष्टाम् व० ह्वलति
अह्मालिषुः ह्वलन्ति ह्वलतः
प० जमाल जह्मलतुः ह्वलसि
जह्मलुः ह्वलथ: ह्वलथ
आ० हल्यात् झल्यास्ताम् ह्मल्यासुः बलामि ह्वलाव:
ह्वलाम:
श्व० ह्मलिता ह्मलितारौ ह्मलितारः स० हृलेत् ह्वलेताम् ह्वलेयुः
भ० मलिष्यति मलिष्यतः मलिष्यन्ति ह्वलेतम्
क्रि० अह्मलिष्यत् अह्मलिष्यताम् अह्मलिष्यन् ह्वलेयम् ह्वलेव ह्वलेम
१०५८. ज्वल (ज्वल) दीप्तौ च। प० ह्वलतु/ह्वलतात् ह्वलताम् ह्वलन्तु
चकाराच्चलने ज्वलादौ पठितोऽप्ययं घटादिह्वल/ह्वलतात् हलतम्
ह्वलत
कार्यार्थमिहाधीतः। एतद्रूपाणि च ज्वल दीप्तौ ९६० बलानि ह्वलाव ह्वलाम
इतिवज्ज्ञेयानि। केचित्तु दलिवलिस्खलिक्षपित्रपीणामपि ह्य० अह्वलत् अह्वलताम्
घटादित्वमिच्छन्ति। तन्मते दलयति स्खलयति क्षपयति अह्वल: अह्वलतम्
अह्वलत
त्रपयतीत्यपि भवति। अह्वलम् अहलाव
अह्वलाम अ० अह्वालीत् अह्वालिष्टाम् अह्वालिषुः
अह्वाली: अह्वालिष्टम् अह्वालिष्ट
अह्वालिषम् अह्वालिष्व अह्वालिष्म प० जह्वाल
जह्वलतुः जह्वलिथ जह्वलथुः जह्वल
जह्वाल/जह्वल जह्वलिव जह्वलिम आ० हल्यात् ह्वल्यास्ताम् ह्वल्यासुः
ढल्याः ह्वल्यास्तम् ह्वल्यास्त
ह्वल्यासम् ह्वल्यास्व ह्वल्यास्म व० हलिता हलितारौ हलितारः
हलितासि ह्वलितास्थः हलितास्थ
ह्वलितास्मि ह्वलितास्वः हलितास्मः भ० ह्वलिष्यति हलिष्यतः हलिष्यन्ति
ह्वलिष्यसि ह्वलिष्यथ: ह्वलिष्यथ
ह्वलिष्यामि ह्वलिष्याव: ह्वलिष्यामः क्रि० अह्वलिष्यत् अह्वलिष्यताम् अह्वलिष्यन्
अह्वलिष्यः अह्वलिष्यतम् अह्वलिष्यत अह्वलिष्यम् अह्वलिष्याव अह्वलिष्याम
जह्वलुः
Page #291
--------------------------------------------------------------------------
________________
274
व०
प०
॥ अथ अदादिः ॥
इहाविकरणेषु वर्णक्रमेण धातुषु पठितेषु पूर्वाचार्यप्रसिद्ध्यनुसरणेनादेरादावुपन्यासः ।
१०५९. अदंक् (अद्) भक्षणे ।
स० अद्यात्
अद्या:
अत्ति
अत्सि
अद्मि
अद्याम्
अत्तु / अत्तात्
अद्धि / अत्तात्
अदानि
ह्य० आदत्
आदः
आदम्
अ० अघसत्
अघसः
अघसम्
go
प० जघास
जघसिथ
जघास/जघस
आद
आदिथ
आद
आ० अद्यात्
अद्या:
अद्यासम्
अत्ता
अतासि
अत्तास्मि
भ० अत्स्यति
अत्स्यसि
अत्स्यामि
क्रि० आत्स्यत्
अत्तः
अत्थः
अद्वः
अद्याताम्
अद्यातम्
अद्याव
अत्ताम्
अत्तम्
अदाव
आसाम्
आत्तम्
आद्व
अघसताम्
अघसतम्
अघसाव
जक्षतुः
जक्षथुः
जक्षिव
तथा
आदतुः
आदधुः
आदिव
अद्यास्ताम्
अद्यास्तम्
अद्यास्व
अत्तारौ
अत्तास्थः
अत्तास्वः
अत्स्यतः
अत्स्यथः
अत्स्यावः
आत्स्यताम्
अदन्ति
अत्थ
अद्म:
अधुः
अद्यात
अद्याम
अदन्तु
अत्त
अदाम
आदन्
आत्त
आद्म
अघसन्
अघसत
अघसाम
जक्षुः
जक्ष
जक्षिम
आदुः
आद
आदिम
अद्यासुः
अद्यास्त
अद्यास्म
अत्तारः
अत्तास्थ
अत्तास्मः
अत्स्यन्ति
अत्स्यथ
अत्स्यामः
'आत्स्यन्
व० प्साति
प्सासि
सामि
स० प्सायात्
प्सायाः
प०
आत्स्यः
आत्स्यम्
ह्य० अप्सात्
अप्सा:
प्सायाम्
प्सातु / प्सातात्
प्साहि / प्सातात्
प्सानि
अप्साम्
अ० अप्सासीत्
अप्सासीः
अप्सासिषम्
प० पप्सौ
श्व०
आत्स्यतम्
आत्स्याव
।। अथादन्ताश्चतुर्दशानिटच
१०६० प्सांक (प्सा) भक्षणे।
पप्सौ
आ० सेयात्
प्सेयाः
सेयासम्
प्सायात्
प्सायाः
प्सायासम्
प्साता
सातास
प्सातास्मि
भ० प्सास्यति
सास्यसि
प्लास्यामि
पप्सतुः
पप्सिथ/पप्साथ पप्सथुः
पप्सिव
प्सात:
प्साथ:
प्सावः
प्सायाताम्
प्सायातम्
प्सायाव
प्साताम्
प्सातम्
प्साव
अप्साताम्
अप्सातम्
अप्साव
अप्सासिष्टाम्
अप्सासिष्टम्
अप्सासिष्व
प्यास्ताम्
प्यास्तम्
सेयास्व
तथा
प्सायास्ताम्
प्सायास्तम्
प्सायास्व
प्सातारौ
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प्सातास्थः
सातास्वः
प्सास्यतः
प्सास्यथः
प्सास्यावः
आत्स्यत
आत्स्याम
सान्ति
प्साथ
प्सामः
प्सायुः
प्सायात
प्सायाम
सान्तु
प्सात
प्साम
अप्सान
अप्सात
अप्साम
अप्सासिषुः
अप्सासिष्ट
अप्सासिष्म
पप्सुः
पप्स
पप्सिम
सेयासुः
प्यास्त
प्यास्म
प्सायासुः
प्सायासुः
प्सायास्म
प्सातारः
प्सातास्थ
प्सातास्मः
प्सास्यन्ति
प्सास्यथ
प्सास्यामः
Page #292
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
क्रि० अप्सास्यत्
अप्सास्यः
अप्सास्यम्
व० भाति
भासि
भामि
स० भायात्
भाया:
प०
ह्य० अभात्
अभा:
भायाम्
भातु / भातात्
भाहि/ भातात्
भानि
अभाम्
अ० अभासीत्
अभासी:
अभासिषम्
प० बभौ
अप्सास्यताम्
अप्सास्यतम्
अप्सास्याव
१०६१. भांक् (भा) दीप्तौ ।
श्व०
आ० भायात्
भायाः
भायासम्
भाता
भातासि
भातास्मि
भ० भास्यति
भास्यसि
भास्यामि
भात:
भाथः
भावः
भायाताम्
भायातम्
भायाव
भाताम्
भातम्
भाव
अभाताम्
अभातम्
अभाव
बभतुः
बभिE / भाथ बभथुः
बभौ
बभिव
अभासिष्टाम्
अभासिष्टम्
अभासिष्व
अप्सास्यन्
अप्सास्यत
अप्सास्याम
भायास्ताम्
भायास्तम्
भायास्व
-ग़तारौ
भातास्थः
भातास्वः
भास्यतः
भास्यथः
भास्यावः
भान्ति
भाथ
भामः
भायुः
भायात
भायाम
भान्तु
भात
भाम
अभुः / अभान्
अभात
अभाम
अभासिषुः
अभासिष्ट
अभासिष्म
बभुः
बभ
बभिम
भायासुः
भायास्त
भायास्म
भातार:
भातास्थ
भातास्मः
भास्यन्ति
भास्यथ
भास्यामः
क्रि० अभास्यत्
अभास्यः
अभास्यम्
व० याति
स० यायात्
प०
०
अ०
प० ययौ
ययतुः
आ० यायात्
यायास्ताम्
श्व०
याता
यातारौ
भ० यास्यति
यास्यतः
क्रि० अयास्यत् अयास्यताम्
यातः
यायाताम्
यातु/यातात्
याताम्
अयात्/ अयाताम् अयुः
अयासीत्
अभास्याव
१०६२. यांक् (या) प्रापणे।
ब० वाति
स० वायात्
प० वातु/वातात्
ह्य० अवात्
अ० अवासीत्
प० ववौ
आ० बायात्
अभास्यताम्
अभास्यतम्
go वाता
भ० वास्यति
क्रि० अवास्यत्
व० स्नाति
स० स्नायात्
प०
स्नातु / स्नातात्
ह्य०
अस्नात्
अ० अस्नासीत्
अयासिष्टाम्
१०६३. वाक् (वा) गतिगन्धनयोः ।
अभास्यन्
अभास्यत
अभास्याम
वात:
वायाताम्
वाताम्
अवाताम्
अवासिष्टाम्
यान्ति
यायुः
यान्तु
अयान्
अयासिषुः
स्नातः
स्नायाताम्
स्नाताम्
अस्नाताम्
अस्नासिष्टाम्
ययुः
यायासुः
यातार:
यास्यन्ति
अयास्यन्
वान्ति
वायुः
बान्तु
ववतुः
वायास्ताम्
वातारौ
वास्यतः
अवास्यताम्
१०६४. ष्णांक् (स्ना) शौचे।
अवान्
अवासिषुः
ववुः
वायासुः
वातार:
वास्यन्ति
अवास्यन्
स्नान्ति
स्नायुः
स्नान्तु
अस्नान्
अस्नासिषुः
275
Page #293
--------------------------------------------------------------------------
________________
276
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
क्रि० अद्रास्यत् अद्रास्यताम् .. ४... अद्रास्यन्
१०६७. पांक (पा) रक्षणे।
स्नेयासुः
व० पाति
पात:
पान्ति स० पायात् पायाताम् पायुः प० पातु/पातात्
पाताम्
पान्तु ह्य० अपात् अपाताम्
अपुः अपान् अ० अपासीत् अपासिष्टाम् अपासिषुः प० पपौ आ० पायात् पायास्ताम्
पायासुः श्व० पाता पातारौ पातारः भ० पास्यति पास्यतः
पास्यन्ति क्रि० अपास्यत् अपास्यताम् अपास्यन्
१०६८. लांक् (ला) आदाने।
पपतुः
पपुः
शश्रुः श्रेयासुः
प० सस्नौ सस्नतुः सस्नुः आ० स्नेयात्
स्नेयास्ताम् स्नायात्
स्नायास्ताम् स्नायासुः इत्यादि श्व० स्नाता स्नातारौ स्नातारः भ० स्नास्यति स्नास्यत: स्नास्यन्ति क्रि० अस्नास्यत्
अस्नास्यताम् अस्नास्यन्
१०६५. श्रांकू (श्रा) पाके। व० श्राति
श्रात:
श्रान्ति स० श्रायात् श्रायाताम्
श्रायुः प० श्रातु/श्रातात् श्राताम्
श्रान्तु ह्य० अश्रात्/अश्राताम् अश्रुः
अश्रान् अ० अश्रासीत् अश्रासिष्टाम् अश्रासिषुः प० शौ
शश्रतुः आ० श्रेयात् श्रेयास्ताम्
तथा श्रायात् श्रायास्ताम् श्रायासुः इत्यादि। श्व० श्राता श्रातारौ
श्रातार: भ० श्रास्यति श्रास्यत. श्रास्यन्ति क्रि० अश्रास्यत्
अश्रास्यताम् अश्रास्यन् १०६६. द्राक् (द्रा) कुत्सितगतौ।
कुत्सिता गतिः पलायनं स्वप्नश्च। व० द्राति
द्रात:
द्रान्ति स० द्रायात् द्रायाताम्
द्रायुः प० द्रातु/द्रातात् द्राताम्
द्रान्तु ह्य० अद्रात् अद्राताम् अद्रान् अ० अद्रासीत् अद्रासिष्टाम् अद्रासिषुः
द्रद्रौ द्रद्रतुः आ० द्रायात् द्रायास्ताम् द्रायासुः
तथा
द्रेयास्ताम् द्रेयासुः इत्यादि। श्व० द्राता द्रातारौ द्रातारः भ० दास्यति
द्रास्यतः
द्रास्यन्ति
ललुः
व० लाति
लात:
लान्ति स० लायात् लायाताम्
लायुः प० लातु/लातात् लाताम्
लान्तु ह्य० अलात् अलाताम् अलान् अ० अलासीत् अलासिष्टाम् अलासिषुः प० ललौ ललतुः आ० लायात् लायास्ताम् लायासुः श्व० लाता लातारौ लातारः भ० लास्यति लास्यतः लास्यन्ति क्रि० अलास्यत् अलास्यताम् अलास्यन्
१०६९. रांक् (रा) दाने। व० राति रातः
रान्ति स० रायात् रायाताम् प० रातु/रातात् राताम्
रान्तु ह्य० अरात् अराताम् अरान् अ० अरासीत् अरासिष्टाम् अरासिषुः प० ररौ
ररुः आ० रायात् रायास्ताम् रायासुः
रायुः
देयात्
Page #294
--------------------------------------------------------------------------
________________
दात:
दान्तु
दातारौ
277 अदादिगण श्व० राता
रातारौ रातारः अ० अप्रासीत् अप्रासिष्टाम्
अप्रासिषुः भ० रास्यति रास्यतः
रास्यन्ति प० पप्रौ
पप्रतुः
पपुः क्रि० अरास्यत्
प्रेयास्ताम् आ० प्रेयात् अरास्यन् अरास्यताम्
प्रेयासुः प्रायात्
प्रायास्ताम् १०७०. दां वक (दा) लवने।
प्रायासुः श्व० प्राता प्रातारौ
प्रातारः व० दाति
दान्ति
भ० प्रास्यति प्रास्यत: प्रास्यन्ति स० दायात् दायाताम्
दायुः
क्रि० अप्रास्यत् अप्रास्यताम् अप्रास्यन् प० दातु/दातात् दाताम्
१०७३. मांक (मा) माने। ह्य० अदात्/अदाताम् अवु अदान्
मानं वर्तनम्। अ० अदासीत् अदासिष्टाम् अदासिषुः
व० माति माप्तः
मान्ति प० ददौ ददतुः
स० मायात् मायाताम् मायुः आ० दायात् दायास्ताम् दायासुः
प० मातु/मातात् माताम्
मान्तु श्व० दाता
दातार:
ह्य० अमात् अमाताम् अमान्/अमुः भ० दास्यति
दास्यतः दास्यन्ति
अ० अमासीत् अमासिष्टाम् अमासिषुः क्रि० अदास्यत् अदास्यताम् अदास्यन्
प० ममौ
ममतुः १०७१. ख्यांक (ख्या) प्रथने।
आ० मेयात मेयास्ताम् व० ख्याति ख्यातः
ख्यान्ति श्व० माता मातारौ
मातारः स० ख्यायात् ख्यायाताम्
ख्यायुः
भ० मास्यति मास्यतः मास्यन्ति प० ख्यातु/ख्यातात् ख्याताम्
क्रि० अमास्यत् अमास्यताम् अमास्यन् ह्य० अख्यात्/अख्याताम् अख्युः अख्यान्
॥अदेथेन्तावनिटौ च॥ अ० अख्यत् अख्यताम्
अख्यन्
१०७४. इंक् (इ) स्मरणे प० चख्यौ चख्यतुः
इडिकावधिनैव प्रयुज्यते। आ० ख्येयात् ख्येयास्ताम् ख्येयासुः
| व० अध्येति अधीतः अधियन्ति/अधीयन्ति ख्यायात् ख्यायास्ताम् ख्यायासुः, इत्यादि
अध्येषि अधीथः अधीथ श्व० ख्याता ख्यातारौ ख्यातार:
अध्येमि अधीवः अधीमः भ० ख्यास्यति
ख्यास्यतः ख्यास्यन्ति
स० अधीयात् अधीयाताम् अधीयुः क्रि० अख्यास्यत् अख्यास्यताम् अख्यास्यन्
अधीयाः अधीयातम् अधीयात १०७२. प्रांकू (प्रा) पूरणे।
अधीयाम् अधीयाव अधीयाम व० प्राति प्रातः
प्रान्ति
प० अध्येतु/अधीतात् अधीताम् अधियन्तु/अधीयन्तु स० प्रायात् प्रायाताम् प्रायुः
अधीहि/अधीतात् अधीतम् अधीत प० प्रातु/प्रातात् प्राताम् प्रान्तु
अध्ययानि अध्ययाव अध्ययाम ह्य० अप्रात् अप्राताम् अप्रान्/अतः ह्य० अध्येत् अध्यैताम् अध्यैयन्/अध्यायन्
मेयासुः
ख्यान्तु
चख्युः
Page #295
--------------------------------------------------------------------------
________________
278
अध्यैः
अध्यायम्
अ० अध्यगात्
अध्यगाः
प०
영ᄋ
आ० अधीयात्
अधीयाः
भ०
व०
अध्यगाम्
अधीयाय
अधीयेr / अधीययिथ अधीयथुः
अधीयाय / अधीयय अधीयिव
क्रि० अध्यैष्यत् अध्यैष्यः
अध्यैष्यम्
प०
अधीयास्ताम्
अधीयास्तम्
अधीयासम्
अधीयास्व
अध्येता
अध्येतारौ
अध्येतासि
अध्येतास्थः
अध्येतास्मि अध्येतास्वः
अध्येष्यति
अध्येष्यतः
अध्येष्यसि अध्येष्यथः
अध्येष्यामि अध्येष्यावः
अध्येष्यताम्
अध्यैष्यतम्
अध्यैष्याव
१०७५. ईण्क् (इ) गतौ ।
एति
སྠཽ སྠཱ སྠ སྠཽ ནྲྀ
एषि
एमि
स० इयात्
इयाम्
एतु / इतात्
इहि / इतात्
अयानि
ह्य० ऐत्
अध्यैव
अध्यगाताम् अध्यगुः
अध्यगातम्
अध्यगात
अध्यगाव
अधीयतुः
अध्यैत
अध्यैम
इतः
इथ:
इव:
इयाताम्
इयातम्
इयाव
इताम्
इतम्
अयाव
ऐताम्
ऐतम्
अध्यगाम
अधीयुः
अधीय
अधीयिम
अधीयासुः
अधीयास्त
अधीयास्म
अध्येतारः
अध्येतास्थ
अध्येतास्मः
अध्येष्यन्ति
अध्येष्यथ
अध्येष्यामः
अध्येष्यन्
अध्यैष्यत
अध्यैष्याम
यन्ति
इथ
ལྤ ླ སྠཱ སྠཽ ཨྠ སྦ ཝཿ
इयुः
इयात
इयाम
इत
अयाम
आयन्
ऐत
आयम्
अ० अगात्
अगाः
अगाम्
इयाय
इययिथ /इयेथ
प०
इयाय / इयय
आ० ईयात्
ईया:
ईयासम्
핑이
एता
एतासि
एतास्मि
भ० एष्यति
एष्यसि
एष्यामि
क्रि० ऐष्यत्
ऐष्यः
ऐष्यम्
व० वेति
वेषि
वेमि
स० वीयात्
वीया:
वीयाम्
प० वेतु/वीतात्
वीहि/वीतात्
वयानि
ह्य अत्
ऐव
अगाताम्
अगातम्
अगाव
ईयतुः
ईयथुः
ईवि
ईयास्ताम्
ईयास्तम्
ईयास्व
एतारौ
एतास्थः
एतास्वः
एष्यतः
एष्यथः
एष्यावः
ऐष्यताम्
ऐष्यतम्
ऐष्याव
॥अथेदन्तोऽनिट् च ॥
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ऐम
१०७६. वींक् (वी) प्रजनकान्त्यसनखादनेषु । चकाराद्गतौ ।
प्रजनः प्रथमगर्भग्रहणम् । असनं क्षेपः ।
वीत:
वीथ:
वीव:
वीयताम्
वीयाम्
वीयाव
वीताम्
वीतम्
वयाव
अवेताम्
अगुः
अगात
अगाम
ईयुः
ईय
ईयम
ईयासुः
ईयास्त
ईयास्म
एतार:
एतास्थ
एतास्मः
एष्यन्ति
एष्यथ
एष्यामः
ऐष्यन्
ऐष्यत
ऐष्याम
वियन्ति
वीथ
वीम:
वीयुः
वीयात
वीयाम
वियन्तु
वीत
वयाम
अवियन्
Page #296
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
279
अवैषुः
द्युतः
धुवन्ति
द्यौषि द्यौमि
द्युमः
विव्यतुः
विव्युः
धुयुः
वीयासुः
वीयास्तम्
द्युत
वीयास्म.
वेतास्थ
अद्युताम्
वेष्यतः
अद्युम
अवे: अवेतम्
अवीत अवयम् अवीव
अवीम अ० अवैषीत् अवैष्टाम्
अवैषीः अवैष्टम् अवैष्ट अवैषम् अवैष्व
अवैष्म प० विवाय विवयिथ/विवेथ विव्यिव
विव्यिम विवाय/विवय विव्यथु विव्य आ० वीयात्
वीयास्ताम् वीयाः
वीयास्त वीयासम् वीयास्व श्व० वेता
वेतारौ
वेतारः वेतासि
वेतास्थः वेतास्मि वेतास्वः
वेतास्मः भ० वेष्यति
वेष्यन्ति वेष्यसि वेष्यथ:
वेष्यथ वेष्यामि
वेष्यामः क्रि० अवेष्यत्
अवेष्यताम् अवेष्यः अवेष्यतम् अवेष्यत अवेष्यम् अवेष्याव अवेष्याम
१०७६. वीक् (वी) ईंक इति।
धात्वन्तरप्रश्लेष इति केचित्। व० एति ईत:
इयन्ति स० ईयात् ईयाताम् प० एतु/ईतात्
ईयन्तु ह्य० ऐत् ऐताम्
आयन् अ० ऐषीत् ऐष्टाम् प० अयाञ्चकार अयाञ्चक्रतुः अयाञ्चक्रुः आ० ईयात् ईयास्ताम् ईयासुः श्व० एता एतारौ
एतारः भ० एष्यति एष्यत:
एष्यन्ति क्रि० ऐष्यत् ऐष्यताम् ऐष्यन्
वेष्याव:
॥अथोदन्ता दश॥
१०७७. धुंक् (धु) अभिगमने। व० द्यौति
धुथः
धुथ
धुवः स० द्युयात् धुयाताम् धुयाः धुयातम्
धुयात धुयाम् धुयाव
धुयाम प० द्यौतु/द्युतात्
घुताम्
धुवन्तु धुहि/धुतात द्युतम् द्यवानि द्यवाव
द्यवाम ह्य० अद्यौत्
अधुवन् अद्यौः अद्युतम् अद्युत
अद्यवम् अधुव अ० अद्यौषीत्
अद्यौष्टाम्
अद्यौषुः अद्यौषीः अद्यौष्टम् अद्यौष्ट अद्यौषम्
अद्यौष्व अद्यौष्म प० दुद्याव दुधुवतुः दुधुवुः
दुधविथ/दुद्योथ दुधुवथुः
दुद्याव/दुधव दुधुविव आ० घूयात् द्यूयास्ताम् द्यूयासुः
यूयाः घूयास्तम् यूयास्त
धूयासम् घूयास्व यूयास्म श्व० द्योता द्योतारौ द्योतार:
द्योतासि द्योतास्थ: द्योतास्थ
द्योतास्मि द्योतास्वः द्योतास्मः भ० द्योष्यति
द्योष्यतः
द्योष्यन्ति द्योष्यसि द्योष्यथ: द्योष्यथ
धोष्यामि द्योष्याव: द्योष्यामः क्रि० अद्योष्यत् अद्योष्यताम्
अद्योष्यन् अद्योष्यः अद्योष्यतम् अद्योष्यत अद्योष्यम् अद्योष्याव अद्योष्याम
अवेष्यन्
EFFEE EFFEE FREEEEEEEEEEEEE
दुधुव दुधुविम
ईयुः
ईताम्
ऐषुः
Page #297
--------------------------------------------------------------------------
________________
280
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
१०७८. पुंक् (सु) प्रसवैश्वर्ययोः।
व० सौति
सौषि
सुतः सुथः
सुवन्ति सुथ सुमः
१०७९. तुंक् (तु) वृत्तिहिंसापूरणेषु। व० तवीति/तौति तुतः
तुवन्ति तवीषि/तौषि तुथः
तुथ तवीमितौमि
सौमि
तुवः
तुम:
स० सुयात्
सुवः सुयाताम् सुयातम्
सुयुः
स०
तुयुः
सुयाः
तुयात
सुयाव
तुयाम
सुयात सुयाम सुवन्तु सुत
तुवन्तु
तुत
सवाम
तवाम
असुवन् असुत
अतुव
असुम असाविषुः असाविष्ट असाविष्म
सुयाम् प० सौतु/सुतात् सुताम्
सुहि/सुतात् सुतम्
सवानि सवाव ह्य० असौत् असुताम् असौः
असुतम् असवम् असुव अ० असावीत् असाविष्टाम्
असावी: असाविष्टम्
असाविषम् असाविष्व प० सुषाव सुषुवतुः
सुषविथ/सुषोथ सुषुवथुः
सुषाव/सुषव सुषुविव आ० सूयात् सूयास्ताम्
सूयाः सूयास्तम्
सूयासम् ... श्व० सोता
सोतारौ सोतासि सोतास्थः
सोतास्मि सोतास्वः भ० सोष्यति सोष्यतः
सोष्यसि सोष्यथ: सोष्यामि
सोष्याव: क्रि० असोष्यत् असोष्यताम्
असोष्यः असोष्यतम् असोष्यम् असोष्याव
अतुवन् अतुत अतुम अतौषुः अतौष्ट अतौष्म तुतुवुः तुतुव
तुयात् तुयाताम् तुयाः तुयातम्
तुयाम् तुयाव प० तवीतु/तौतु/तुतात् तुताम्
तुहि/तुतात् तुतम्
तवानि तवाव ह्य० अतवीत्/अतौत् अतुताम्
अतवी:/अतौः अतुतम्
अतवम् अ० अतौषीत् अतौष्टाम्
अतोषी: अतौष्टम्
अतौषम् अतौष्व | प० तुताव तुतुवतुः
तुतविथ/तुतोथ तुतुवथुः
तुताव/तुतव तुतुविव आ० तूयात् तूयास्ताम्
तूयाः तूयास्तम्
तूयासम् तूयास्व श्व० तोता तोतारौ
तोतासि तोतास्थः
तोतास्मि तोतास्वः भ० तोष्यति तोष्यतः
तोष्यसि तोष्यथ:
तोष्यामि तोष्याव: क्रि० अतोष्यत्
अतोष्यताम् अतोष्यः अतोष्यतम् अतोष्यम् अतोष्याव
तुतुविम
सुषुवुः सुषुव सुषुविम सूयासुः सूयास्त सूयास्म सोतार: सोतास्थ
तूयासुः
तूयास्त
सूयास्व
सोतास्मः
सोष्यन्ति सोष्यथ
तूयास्म तोतारः तोतास्थ तोतास्मः तोष्यन्ति तोष्यथ तोष्यामः अतोष्यन् अतोष्यत अतोष्याम
सोष्यामः
असोष्यन् असोष्यत असोष्याम
Page #298
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
281
१०८०. युंक् (यु) मिश्रणे।
युतः
युवन्ति
व० यौति
यौषि
नुवन्ति नुयुः
युथः
युथ
यौमि
युमः
स० युयात्
अनुवन्
युयुः युयात
युयाः
युव: युयाताम् युयातम् युयाव युताम् युतम्
युयाम
युवन्तु युत
यवाव
यवाम
अयुवन्
अयुत
युयाम् प० यौतु/युतात्
युहि/युतात्
यवानि ह्य० अयौत्
अयौः
अयवम् अ० अयावीत्
अयावी: अयाविषम् युयाव युयविथ
युयाव/युयव आ० यूयात्
अयुताम् अयुतम् अयुव अयाविष्टाम् अयाविष्टम् अयाविष्व
अयुम अयाविषुः अयाविष्ट अयाविष्म
१०८१. गुंक् (नु) स्तुतौ। व० नौति
नुतः स० नुयात् नुयाताम् प० नौतु/नुतात् नुताम्
नुवन्तु ह्य० अनौत् अनुताम् अ० अनावीत् अनाविष्टाम् अनाविषुः प० नुनाव नुनुवतुः
नुनुवुः आ० नूयात् नूयास्ताम् नूयासुः श्व० नविता नवितारौ नवितारः भ० नविष्यति नविष्यतः नविष्यन्ति क्रि० अनविष्यत् अनविष्यताम् अनविष्यन्
१०८२. क्ष्णुक् (क्षु) तेजने। व० क्ष्णौति क्ष्णुतः
क्ष्णुवन्ति स० क्ष्णुयात् क्ष्णुताम् । क्ष्णुयुः प० क्ष्णौतु/क्ष्णुतात् क्ष्णुताम्
क्ष्णुवन्तु ह्य० अक्ष्णौत् अक्ष्णुताम् अक्ष्णुवन् अ० अक्ष्णावीत् अक्षणाविष्टाम् अक्षणाविषुः प० चुक्ष्णाव चुक्ष्णुवतुः चुक्ष्णुवुः आ० क्ष्णूयात् क्ष्णूयास्ताम् क्ष्णूयासुः श्व० क्ष्णविता क्ष्णवितारौ क्ष्णवितारः भ० क्षणविष्यति क्षणविष्यत: क्ष्णविष्यन्ति क्रि० अक्ष्णविष्यत् अक्षणविष्यताम् अक्षणविष्यन्
१०८३. सुंक् (स्नु) प्रस्रवणे।
प्रस्रवणं क्षरणम्। व० स्नौति
स्नुतः
स्नुवन्ति | स० स्नुयात् स्नुयाताम् स्नुयुः | प० स्नौतु/स्नुतात् स्नुताम् स्नुवन्तु ह्य० अस्नौत् अस्नुताम् । अस्नुवन् अ० अस्नानीत् अस्नाविष्टाम् अस्नाविषुः प० सुस्नाव सुस्नुवतुः सुस्नुवुः |आ० स्नूयात् स्नूयास्ताम् स्नूयासुः
यूयाः
यूयासम् श्व० यविता
यवितासि
यवितास्मि भ० यविष्यति
यविष्यसि
यविष्यामि क्रि० अयविष्यत्
अयविष्यः
युयुवतुः युयुवथुः युयुविव यूयास्ताम् यूयास्तम् यूयास्व यवितारौ यवितास्थः यवितास्वः यविष्यतः यविष्यथ: यविष्याव: अयविष्यताम् अयविष्यतम् अयविष्याव
युयुवुः युयुव युयुविम यूयासुः यूयास्त यूयास्म यवितारः यवितास्थ यवितास्मः यविष्यन्ति यविष्यथ
यविष्यामः
अयविष्यन् अयविष्यत अयविष्याम
Page #299
--------------------------------------------------------------------------
________________
282
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
श्व० सविता स्दवितारौ स्नवितारः भ० स्नविष्यति स्नविष्यतः स्नविष्यन्ति क्रि० अस्नविष्यत् अस्नविष्यताम् अस्नविष्यन्
१०८४. टुक्षुक (क्षु) शब्दे।
क्षुतः
रोदाम
व० क्षौति
क्षुवन्ति स० क्षुयात् क्षुयाताम् क्षुयुः प० क्षौतु/क्षुतात् क्षुताम् क्षुवन्तु ह्य० अक्षौत् अक्षुताम् अक्षुवन् अ० अक्षावीत् अक्षाविष्टाम् अक्षाविषुः प० चुक्षाव चुक्षुवतुः चुक्षुवुः आ० स्यात् झूयास्तान् झ्यासुः श्व० क्षविता क्षवितारौ क्षवितार: भ० क्षविष्यति क्षविष्यतः क्षविष्यन्ति क्रि० अक्षविष्यत् अक्षविष्यताम् अक्षविष्यन्
१०८५. रुक् (स) शब्दे। व० रौति रवीति रुतः स० रुयात् रुयाताम् प० रौतु/रवीतु/रुतात् रुताम् रुवन्तु ह्य० अरौत/अरवीत् अरुताम् अरुवन् अ० अरावीत् अराविष्टाम् अराविषुः प० रुराव रुरुवतुः रुरुवुः आ० रूयात् रूयास्ताम्
रूयासुः श्व० रविता रवितारौ रवितारः भ० रविष्यति रविष्यतः रविष्यन्ति क्रि० अरविष्यत् अरविष्यताम् अरविष्यन्
१०८६. कुंक् (कु) शब्दे। व० कौति
कुतः
कुवन्ति स० कुयात्
कुयाताम् ५० कौतु/कुतात् कुताम् कुवन्तु ह्य० अकौत् अकुताम् अकुवन् अ० अकौषीत् अकौष्टाम् अकौषुः
प० चुकाव चुकुवतुः चुकुवुः आ० कूयात् कूयास्ताम् कूयासुः श्व० कोता कोतारौ कोतार: भ० कोष्यति कोष्यतः कोष्यन्ति क्रि० अकोष्यत् अकोष्यताम् अकोष्यन्
॥अथान्तर्गणो रुदादिपञ्चकः॥
२०८७. रुदृक् (रुद्) अश्रुविमोचने। व० रोदिति रुदितः
रुदिन्ति रोदिषि रुदिथः
रुदिथ रोदिमि रुदिवः
रुदिमः स० रुद्यात्
रुद्याताम् रुद्याः रुद्यातम्
रुद्यात रुधाम रुद्याव
रुद्याम प० रोदितु/रुदितात् रुदिताम् रुदन्तु
रुदिहि/रुदितात् रुदितम् रुदित
रोदानि रोदाव ह्य० अरोदीत्/अरोदत् अरुदिताम्
अरुदन् अरोदी:/अरोदः अरुदितम् अरुदित
अरोदम् अरुदिव अरुदिम अ० अरुदत् अरुदताम्
अरुदन अरुदः अरुदतम्
अरुदत अरुदम् अरुदाव
अरुदाम
तथा अरोदीत् अरोदिष्टाम् अरोदिषुः अरोदी: अरोदिष्टम् अरोदिष्ट
अरोदिषम् अरोदिष्व अरोदिष्म प० रुरोद
रुरुदतुः
रुरुदुः रुरोदिथ रुरुदथुः रुरुद
रुरोद रुरुदिव रुरुदिम आ० रुद्यात् रुद्यास्ताम् रुद्यासुः
रुद्याः रुद्यास्तम् रुद्यास्त रुद्यासम् रुद्यास्व
रुद्यास्म श्व० रोदिता रोदितारौ
रोदितासि रोदितास्थः
कुयुः
रोदितार: रोदितास्थ
Page #300
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
रोदितास्मि
भ० रोदिष्यति
रोदिष्यसि
रोदिष्यामि
क्रि० अरोदिष्यत्
अरोदिष्यः
अरोदिष्यम्
व० स्वपिति
स्वपिषि
स्वपिमि
स० स्वप्यात्
स्वप्याः
अरोदिष्यताम्
अरोदिष्यन्
अरोदिष्यतम् अरोदिष्यत
अरोदिष्याव
अरोदिष्याम
१०८८. त्रिष्वपंक (स्वप्) शये।
स्वप्याताम्
स्वप्यातम्
स्वप्याम्
स्वप्याव
प० स्वपितु / स्वपतात् स्वपिताम्
स्वपिहि / स्वपतात् स्वपितम् स्वपानि स्वपाव
हा० अस्वपत् / अस्वपीत् अस्वपिताम्
अस्वपी: / अस्वप: अस्वपितम्
अस्वपिव
अस्वपतम्
अ० अस्वाप्सीत्
अस्वाप्सी:
प० सुष्वाप
अस्वाप्सम्
왕이
रोदितास्वः
रोदिष्यतः
रोदिष्यथः
रोदिष्यावः
आ० सुप्यात्
सुप्याः
सुप्यासम्
स्वप्ता
स्वप्तासि
स्वप्तास्मि
स्वपितः
स्वपिथः
स्वपिव:
सुषुपतुः
सुष्वपिध/ सुष्वप्थ सुषुपथुः
सुष्वाप / सुष्वप
सुषुपिव
अस्वाप्ताम्
अस्वाप्तम्
अस्वाप्स्व
सुप्यास्ताम्
सुप्यास्तम्
सुप्यास्व
स्वप्तारौ
रोदितास्मः
रोदिष्यन्ति
रोदिष्यथ
रोदिष्यामः
स्वप्तास्थः
स्वप्तास्वः
स्वपन्ति
स्वपिथ
स्वपिमः
स्वप्युः
स्वप्यात
स्वप्याम
स्वपन्तु
स्वपित
स्वपाम
अस्वपन्
अस्वपित
अस्वपिम
अस्वाप्सुः
अस्वाप्त
अस्वाप्स्म
सुषुपुः
सुष्वप
सषुपिम
सुप्यासुः
सुप्यास्त
सुप्यास्म
स्वप्तारः
स्वप्तास्थ
स्वप्तास्मः
भ० स्वप्स्यति
स्वप्स्यसि
स्वप्स्यामि
क्रि० अस्वप्स्यत्
अस्वप्स्यः
अस्वप्स्यम्
स्वप्स्यतः
स्वप्स्यथः
स्वप्स्यावः
अस्वप्स्यताम्
अस्वप्स्यतम्
अस्वप्स्याव
१०८९. अनक् (अन्) प्राणने।
प्राणनं जीवनम् । वर्णक्रमस्य प्रतिज्ञानात्स्वपः प्रागेव निर्देशे प्राप्तेऽपि लाघवार्थमिह पाठः ।
व० अनिति
अनिषि
अनिमि
स० अन्यात्
अन्याः
अन्याताम्
अन्यातम्
अन्याम्
अन्याव
प० अनितु / अनितात् अनिताम्
अनिहि / अनितात् अनितम् अनानि
अनाव
हा० आनत्/आनीत् आनिताम्
आन: / आनी:
आनितम्
आनिव
आनम्
अ० आनीत्
आनी:
आनिषम्
आन
आनिथ
आन
आ० अन्यात्
अन्याः
अन्यासम्
प०
श्व० अनिता
अनित
अनिथः
अनिवः
अनितासि
अनितास्मि
आनिष्टाम्
आनिष्टम्
आनिष्व
आनतुः
आनथुः
आनिव
अन्यास्ताम्
अन्यास्तम्
अन्यास्व
अनितारौ
स्वप्स्यन्ति
स्वप्स्यथ
स्वप्स्यामः
अस्वप्स्यन्
अस्वप्स्यत
अस्वप्स्याम
अनितास्थः
अनितास्वः
अनन्ति
अनिथ
अनिमः
अन्युः
अन्यात
अन्याम
अनन्तु
अनित
अनाम
आनन्
आनित
आनिम
आनिषुः
आनिष्ट
आनिष्म
आनुः
आन
आनिम
अन्यासुः
अन्यास्त
283
अन्यास्म
अनितार:
अनितास्थ
अनितास्मः
Page #301
--------------------------------------------------------------------------
________________
284
भ० अनिष्यति
अनिष्यसि
अनिष्यामि
क्रि० आनिष्यत्
आनिष्यः
आनिष्यम्
व०
श्वसिति
श्वसिषि
श्वसिमि
स०
श्वस्यात्
श्वस्याताम्
श्वस्या:
श्वस्यातम्
श्वस्याम्
श्वस्याव
प० श्वसितु / श्वसितात् श्वसिताम्
श्वसिहि / श्वसितात् श्वसितम् श्वसानि
श्वसाव
ह्य० अश्वसत्/अश्वसीत् अश्वसिताम्
अश्वस/अश्वसी अश्वसितम् अश्वसिव
अश्वसम्
अ० अश्वासीत्
अश्वासी:
अश्वासिषम्
अनिष्यतः
अनिष्यथः
अनिष्यावः
आनिष्यताम्
आनिष्यतम्
आनिष्याव
१०९०. श्वसक् (श्वस्) प्राणने।
प्राणनं जीवनम् ।
अ० अश्वसीत्
प०
शश्वास
शश्वसिथ
शश्वास / शश्वास
आ० श्वस्यात्
श्वस्या:
श्वस्यासम्
멍ᄋ श्वसिता
श्वसितः
श्वसिथ:
श्वसिव:
शश्वसतुः
शश्वसथुः
शश्वसिव
अनिष्यन्ति
अनिष्यथ
अनिष्यामः
आनिष्यन्
आनिष्यत
आनिष्याम
श्वस्युः
श्वस्यात
श्वस्याम
श्वसन्तु
श्वसित
श्वसाम
अश्वसन्
अश्वसित
अश्वसिम
अश्वासिष्टाम् अश्वासिषुः
अश्वासिष्टम्
अश्वासिष्ट
अश्वासिष्व
अश्वासिष्म
अश्वसिष्टाम्
अश्वसिषुः, इत्यादि
शश्वसुः
शश्वस
शश्वसिम
श्वस्यास्ताम्
श्वस्यास्तम्
श्वस्यास्व
श्वसितारौ
श्वसितासि श्वसितास्थः
श्वसितास्मि
श्वसितास्वः
श्वसन्ति
श्वसिथ
श्वसिम:
श्वस्यासुः
श्वस्यास्त
श्वस्यास्म
श्वसितार:
श्वसितास्थ
श्वसितास्मः
भ०
क्रि० अश्वसिष्यत्
अश्वसिष्यः
अश्वसिष्यम्
व०
श्वसिष्यति श्वसिष्यतः
श्वसिष्यसि श्वसिष्यथः श्वसिष्यामि
श्वसिष्यावः
१०९१. जक्षक् (जक्ष) भक्षहसनयोः ।
अयं रुत्पञ्चकस्य पञ्चमो जक्षपञ्चकस्य त्वाद्य
इत्युभयकार्यभाक् ॥
जक्षिति
जक्षिषि
जक्षिमि
स० जक्ष्यात्
जक्ष्याः
जक्ष्याम्
प०
जक्ष्याताम्
जक्ष्यातम्
जक्ष्याव
प० जक्षितु/जक्षितात् जक्षिताम्
क्षिहि/जक्षितात् जक्षितम्
जक्षाव
अजक्षम
अ० अक्षीत्
अजक्षी:
अजक्षिषम्
जक्षाणि
ह्य० अजक्षत् / अजक्षीत् अजक्षिताम्
अजक्ष: / अजक्षी: अजक्षितम्
अजक्षिव
जजक्ष
जजक्षिथ
जजक्ष
आ० जक्ष्यात्
जक्ष्याः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
श्वसिष्यन्ति
श्वसिष्यथ
श्वसिष्यामः
अश्वसिष्यताम्
अश्वसिष्यन्
अश्वसिष्यतम् अश्वसिष्य
अश्वसिष्याव अश्वसिष्याम
जक्ष्यासम्
श्व० जक्षिता
जक्षितासि
जक्षितास्मि
जक्षितः
जक्षिथः
जक्षिवः
अक्षिष्टम्
अजक्षिष्टम्
अजक्षिष्व
जजक्षतुः
जजक्षथुः
जजक्षिव
जक्षति
जक्षिथ
जक्षिमः
जक्षितास्थः
जक्षितास्वः
जक्ष्युः
जक्ष्यात
जक्ष्याम
जक्षतु
जक्षित
जक्षाम
अजक्षुः
अजक्षित
अजक्षिम
अजक्षिषुः
अजक्षिष्ट
अजक्षिष्म
जजक्षुः
जजक्ष
जजक्षिम
जक्ष्यास्ताम् जक्ष्यासुः
जक्ष्यास्तम्
जक्ष्यास्त
जक्ष्यास्व
जक्षितारौ
जक्ष्यास्म
जक्षितार:
जक्षितास्थ
जक्षितास्मः
Page #302
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
285
दरिद्रतु
अदरिदुः
भ० जक्षिष्यति जक्षिष्यतः जक्षिष्यन्ति
दरिद्रितासि दरिद्रितास्थ: दरिद्रितास्थ जक्षिष्यसि जक्षिष्यथ: जक्षिष्यथ
दरिद्रितास्मि दरिद्रितास्वः दरिद्रितास्मः जक्षिष्यामि जक्षिष्याव: जक्षिष्यामः
भ० दरिद्रिष्यति दरिद्रिष्यतः दरिद्रिष्यन्ति क्रि० अजक्षिष्यत् अजक्षिष्यताम् अजक्षिष्यन्
दरिद्रिष्यसि दरिद्रिष्यथ: दरिद्रिष्यथ अजक्षिष्यः अजक्षिष्यतम् अजक्षिष्यत
दरिद्रिष्यामि दरिद्रिष्याव: दरिद्रिष्यामः
क्रि० अदरिद्रिष्यत् अजक्षिष्यम् अजक्षिष्याव
अदरिद्रिष्यन् अजक्षिष्याम
अदरिद्रिष्यः अदरिद्रिष्यतम् अदरिद्रिष्यत १०९२. दरिद्राक् (दरिद्रा) दुर्गतौ।
अदरिद्रिष्यम् अदरिद्रिष्याव अदरिद्रिष्याम व० दरिद्राति दरिद्रितः दरिद्रति
१०९३. जागृक् (जागृ) निद्राक्षये। दरिद्रासि दरिद्रिथः दरिद्रिथ
व० जागति दरिद्रामि
जाग्रति
जागृतः दरिद्रिवः दरिद्रिमः स० दरिद्रियात्
जागर्षि दरिद्रियाताम् दरिद्रियुः
जागृथ:
जागृथ दरिद्रियाः दरिद्रियातम् दरिद्रियात
जागर्मि जागृव: जागृमः दरिद्रियाम् दरिद्रियाव दरिद्रियाम | स० जागृयात् जागृयाताम् जागृयुः प० दरिद्रातु/दरिद्रितात् दरिद्रिताम्
जागृयाः जागृयातम् जागृयात दरिदिहि/दरिद्रितात् दरिद्रितम् दरिद्रित
जागृयाम् जागृयाव जागृयाम दरिद्राणि दरिद्राव दरिद्राम
प० जागर्तु/जागृतात् जागृताम् जागृतु ह्य० अदरिद्रात् अदरिदिताम्
जागृहि/जागृतात् जागृतम्
जागत अदरिद्राः अदरिद्रितम् अदरिद्रित
जागराणि जागराव
जागराम अदरिद्राम् अदरिद्रिव अदरिद्रिम
ह्य० अजागः अजागृताम् अजागरु: अ० अदरिद्रीत् अदरिद्रिष्टाम् अदरिद्रिषुः
अजागः अदरिद्रीः
अजागृतम् अजागृत अदरिद्रिष्टम् अदरिद्रिष्ट अदरिद्रिषम् अदरिद्रिष्व अदरिद्रिष्म
अजागरम् अजागृव अजागृम
अ० अजागरीत् अजागरिष्टाम् तथा
अजागरिषुः अदरिद्रासीत् अदरिद्रासिष्टाम् अदरिद्रासिषुः इत्यादि।
अजागरी: अजागरिष्टम् अजागरिष्ट प० दरिद्राञ्चकार दरिद्राञ्चक्रतु दरिद्राञ्चक्रुः
अजागरिषम् अजागरिष्व अजागरिष्म दरिद्राञ्चकर्थ दरिद्राञ्चकथुः दरिद्राञ्चक्र
प० जजागार जजागरतुः जजागरुः दरिद्राञ्चकार/चकर दरिद्राञ्चकृव दरिद्राञ्चकम
जजागरिथ जजागरथुः
जजागर दरिद्राम्बभूव/दरिद्रामास
जजागार/जजागर जजागरिव जजागरिम ददरिद्रौ ददरिद्रतुः
जागरांचकार जागरामास जागराम्बभूव। ददरिद्रिथ ददरिद्रथुः ददरिद्र
आ० जागर्यात जागर्यास्ताम् जागर्यासुः ददरिद्रौ ददरिद्रिव ददरिद्रिम
जागर्याः जागर्यास्तम् जागर्यास्त आ० दरिद्रयात् दरिद्र्यास्ताम् दरिद्र्यासुः
जागर्यासम् जागर्यास्व जागर्यास्म दरिद्रयाः दरिद्र्यास्तम् दरिद्र्यास्त
श्व० जागरिता जागरितारौ जागरितार: दरिद्रयासम् दरिद्रयास्व दरिद्रयास्म
जागरितासि जागरितास्थः जागरितास्थ श्व० दरिद्रिता दरिद्रितारौ दरिद्रितारः
जागरितास्मि जागरितास्व: जागरितास्मः
ददरिदुः
Page #303
--------------------------------------------------------------------------
________________
286
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शिष्ट
शिष्युः
शिष्याम्
भ० जागरिष्यति जागरिष्यतः जागरिष्यन्ति भ० चकासिष्यति चकासिष्यतः चकासिष्यन्ति जागरिष्यसि जागरिष्यथः जागरिष्यथ
चकासिष्यसि चकासिष्यथ: चकासिष्यथ जागरिष्यामि जागरिष्याव: जागरिष्यामः
चकासिष्यामि चकासिष्याव: चकासिष्यामः क्रि० अजागरिष्यत् अजागरिष्यताम् अजागरिष्यन् क्रि० अचकासिष्यत् अचकासिष्यताम् अचकासिष्यन् अजागरिष्यः अजागरिष्यतम् अजागरिष्यत
अचकासिष्यः अचकासिष्यतम् अचकासिष्यत अजागरिष्यम् अजागरिष्याव अजागरिष्याम
अचकासिष्यम् अचकासिष्याव अचकासिष्याम १०९४. चकासृक् (चकास्) दीप्तौ।
१०९५. शासूक् (शासू) अनुशिष्टौ। व० चकास्ति चकास्त: चकासति
अनुशिष्टिर्नियोगः। चकास्सि चकास्थः
चकास्थ व० शास्ति
शास्त:
शासति चकास्मि चकास्वः
चकास्मः
शास्सि
शिष्टः स० चकास्यात् चकास्याताम् चकास्युः
शास्मि शिष्वः
शिष्मः चकास्याः चकास्यातम् चकास्यात स० शिष्यात्
शिष्याताम् चकास्याम् चकास्याव
चकास्याम
शिष्याः शिष्यातम् शिष्यात प० चकास्तु/चकास्तात् चकास्ताम् चकास्तु
शिष्याव शिष्याम चकासतु/चकाद्धि चकाधि
चकास्तम्/चकास्त | प० शास्तु/शिष्टात् । शिष्टाम् शासतु चकासानि चकासाव
चकासाम शाधि/शिष्टात् शिष्टम्
शिष्ट ह्य० अचकात् अचकास्ताम्
अचकासुः शासानि शासाव
शासाम अचकाः/अचकात्()अचकास्तम् अचकास्त
ह्य० अशात् अशिष्टाम् अशासुः अचकासम् अचकास्व अचकास्म
अशासत् अशिष्टम् अशिष्ट अ० अचकासीत् अचकासिष्टाम् अचकासिषुः
अशासम् अशिष्व अशिष्म अचकासी: अचकासिष्टम् अचकासिष्ट
अ० अशिषत् अशिषताम् अशिषन्
अशिषतम् अशिषः
अशिषत अचकासिषम्
अचकासिष्म अचकासिष्व
अशिषम् अशिषाव अशिषाम प० चकासाञ्चकार चकासाञ्चक्रतुः चकासाञ्चक्रुः
प० शशास
शशासतुः
शशासुः चकासाञ्चकर्थ चकासाञ्चक्रथुः चकासाञ्चक्र
शशासिथ शशासथुः शशास चकासाञ्चकार/चकर चकासाञ्चकृव । चकासाञ्चकृम
शशास/शशस शशासिव शशासिम आ० चकास्यात् चकास्यास्ताम् चकास्यासुः
आ० शिष्यात् शिष्यास्ताम्
शिष्यासुः चकास्याः चकास्यास्तम् चकास्यास्त
शिष्याः शिष्यास्तम् शिष्यास्त चकास्यासम् चकास्यास्व चकास्यास्म
शिष्यासम् शिष्यास्व शिष्यास्म श्व० चकासिता चकासितारौ चकासितार:
श्व० शासिता शासितारौ शासितारः चकासितासि चकासितास्थः चकासितास्थ
शासितासि शासितास्थ: शासितास्थ चकासितास्मि चकासितास्वः चकासितास्मः
शासितास्मि शासितास्वः शासितास्मः
Page #304
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
भ० शासिष्यति
शासिष्यसि
शासिष्यामि
क्रि० अशासिष्यत्
अशासिष्यः
अशासिष्यम्
व० वक्ति
बक्षि
वच्मि
स० वच्यात्
वच्या:
वच्याम्
प० वक्तु/वक्तात्
वग्धि/वक्तात्
वचानि
हा० अवक ग्
अवक, ग्
अवचम्
अ० अवोचत्
अवोचः
अवोचम्
प० उवाच
आ० उच्यात्
उच्या:
उच्यासम्
शासिष्यन्ति
शासिष्यथ
शासिष्यामः
अशासिष्यताम् अशासिष्यन्
अशासिष्यतम् अशासिष्यत
अशासिष्याव
अशासिष्याम
अथ चान्तः ।
१०९६. वर्धक (वच्) भाषणे।
श्व० वक्ता
वक्तासि
वक्तास्मि
शासिष्यतः
शासिष्यथः
शासिष्यावः
ऊचतुः
उवचिथ उवक्थ ऊचधुः
उवाच / उवच
ऊचिव
वचन्ति
वक्थ
वच्मः
वच्युः
वच्यात
वच्याम
बचन्तु
वक्त
वचाम
अवक्ताम्
अवचन्
अवक्तम्
अवक्त
अवच्च
अवच्म
अवोचताम्
अवाचन्
अवोचतम् अवोचत
अवोचाव
अवोचाम्
वक्त:
वक्थः
वच्चः
वच्याताम्
वच्यातम्
वच्याव
वक्ताम्
वक्तम्
वचाव
उच्यास्ताम्
उच्यास्तम्
उच्यास्व
वक्तारौ
वक्तास्थः
वक्तास्वः
ऊचुः
ऊच
ऊचिम
उच्यासुः
उच्यास्त
उच्यास्म
वक्तारः
वक्तास्थ
वक्तास्मः
भ० वक्ष्यति
वक्ष्यसि
वक्ष्यामि
क्रि० अवक्ष्यत्
अवक्ष्य:
अवक्ष्यम्
व० माष्टि
माक्षिं
मार्जिम
सं०] मृज्यात्
मृज्याः
मृज्याम्
प० माटु/मृष्टात्
मृद / मृष्टात् मार्जानि
ह्य० अमा-ड्
अमार्ट-ड्
अमार्जम्
अ० अमाक्षत्
अमाक्षः
अमार्क्षम्
अमार्जीत्
प० ममार्ज
मार्जि
ममार्ज
आ० मृज्यात्
मृज्या:
मृज्यासम्
४० मा
माष्टसि
माष्टस्मि
मार्जिता
भ० मायति
अथ मान्तः
१०९७. मृजीक् (मृज्) भुद्धी।
मृष्टः
मृष्टः
मृज्वः
वक्ष्यतः
वक्ष्यथः
वक्ष्यावः
अवक्ष्यताम्
अवक्ष्यतम्
अवक्ष्याव
मृज्याताम्
मृज्यातम्
मृज्याव
मृष्टाम्
मृष्टम्
मार्जाव
अमृष्टाम्
अमृष्टम्
अमृज्व
अम्
अमाष्टम्
तथा
अमाव
अमार्जिष्टाम्
ममार्जतुः /ममृजतुः ममार्जथुः/ममृजथुः
ममार्जिव / ममृजिव
मृज्यास्ताम्
मृज्यास्तम्
मृज्यास्व
माष्टरौ
माष्टस्थ:
मार्शस्व
वक्ष्यन्ति
वक्ष्यथ
वक्ष्यामः
अवक्ष्यन्
अवक्ष्यत
अवक्ष्याम
तथा
मार्जितारी
मार्क्ष्यतः
287
मृजन्ति / मार्जन्ति
मृष्ट
मृज्म:
मृज्युः
मृज्यात
मृज्याम
मृजन्तु/मार्जन्तु
मृष्ट
मार्जाम
अमार्जन्/अमृजन्
अमृष्ट
अमृज्म
अक्षुः
अमाष्ट
अमाम अमार्जिषुः इत्यादि ममार्जुः /ममृजुः ममार्ज/ममृज
मार्जिम / मृजिम
मृज्यासुः
मृज्यास्त
मृज्यास्म
माष्टरः
मास्थ
मास्मः
मार्जितारः इत्यादि
मार्क्ष्यन्ति
Page #305
--------------------------------------------------------------------------
________________
288
धातुरलाकर प्रथम भाग
तथा
तथा
विविदुः विद्यासुः
संस्तन्तु संस्त
हंसि
हन्वः
.
हन्म:
मायसि माय॑थः माग्रंथ
ह्य० अवेत्-द्
अवित्ताम् अविदुः मायामि मायाव: मााम:
अवे:/अवेत्-द् अवित्तम् अवित्त
अवेदम् अविद्व अविद्य मार्जिष्यति मार्जिष्यतः मार्जिष्यन्ति इ० अ० अवेदीत् अवेदिष्टाम् अवेदिषुः क्रि० अमार्थ्यत् अमाय॑ताम् अमाय॑न्
अवेदी: अवेदिष्टम् अवेदिष्ट अमायः अमाय॑तम् अमाद्यंत
अवेदिषम् अवेदिष्व अवेदिष्म अमाय॑म् अमााव अमायाम
प० विदाञ्चकार विदाञ्चक्रतुः
विदाञ्चक्रुः इत्यादि
तथा अमार्जिष्यत् अमार्जिष्यताम् अमार्जिष्यन् इत्यादि। प० विवेद
विविदतुः अथ तान्तः।
आ० विद्यात्
विद्यास्ताम् १०९८. सस्तुक् (संस्त्) स्वप्ने।
श्व० वेदिता वेदितारौ वेदितारः
भ० वेदिष्यति वेदिष्यतः वेदिष्यन्ति व० संस्ति/संस्त्ति संस्त:/संस्तः संस्तन्ति
क्रि० अवेदिष्यत् ___ अवेदिष्यताम् अवेदिष्यन् संस्मिस/संस्त्सि संस्थः/संस्थः संस्त्थ/संस्थ
अथ नान्तोऽनिट् च। संस्त्मि संस्त्व:
संस्त्मः
११००. हनंक् (हन्) हिंसागत्योः । स० संस्त्यात् संस्त्याताम्
संस्त्युः व० हन्ति हतः
हनन्ति प० संस्तु/तु/संस्तात्/त्तात् संस्ताम्
हथ: संन्धि/द्धि/संस्तात्/त्तात् संस्तम्
हन्मि संस्तानि संस्ताव संस्ताम
स० हन्यात्
हन्याताम् हन्युः ह्य० असन् असंस्ताम्/स्ताम् असंस्तन्
हन्याः
हन्यातम् हन्यात अ० असंस्तीत् असंस्तिष्टाम् असंस्तिषुः
हन्याम् हन्याव
हन्याम प० ससंस्त ससंस्ततुः ससंस्तुः
प० हन्तु/हतात्
हताम्
हनन्तु आ० संस्त्यात् संस्त्यास्ताम्
जहि/हतात्
हत श्व० संस्तिता संस्तितारौ संस्तितारः
हनानि हनाव
हनाम भ० संस्तिष्यति संस्तिष्यतः संस्तिष्यन्ति
ह्य० अहन्
अहताम्
अहनन् क्रि० असंस्तिष्यत् असंस्तिष्यताम् असंस्तिष्यन्
अहतम्
अहत अथ दान्तः।
अहनतम् अहन्व
अहन्म
अ० अवधीत् अवधिष्टाम् अवधिषुः . १०९९. विदक् (विद्) ज्ञाने।
अवधी: अवधिष्टम् अवधिष्ट व० वेत्ति वित्तः
अवधिषम् अवधिष्व अवधिष्म व० वेद
विदुः स० विद्यात् विद्याताम्
प० जघान
जघ्नतु
जनुः प० वेत्तु/वित्तात्
वित्ताम् विदन्तु
जघनिथ/जघन्य जघ्नथुः जघ्न विद्धि/वित्तात् वित्तम् वित्त
जघान/जघन जघ्निव
जनिम वेदाम
आ० वध्यात् वध्यास्ताम् वध्यासुः विदाङ्करोतु/कुरुताम् विदाङ्कुर्वन्तु विदाङ्कुरुतात् इ० |
Bाए २० वध्या : वध्यास्तम्
वध्यास्त
संस्त्यासुः
हतम्
अहन्
विदन्ति
विदतुः
विद्युः
वेदानि
वेदाव
Page #306
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
वध्यासम्
श्व० हन्ता
हन्तासि
हन्तास्मि
भ० हनिष्यति
हनिष्यसि
हनिष्यामि
क्रि० अहनिष्यत्
अहनिष्यः
अहनिष्यम्
व० वष्टि
वक्षि
वश्मि
वध्यास्म
हन्तार:
हन्तास्थ
हन्तास्मः
हनिष्यन्ति
हनिष्यथ
हनिष्यामः
अहनिष्यताम् अहनिष्यन्
अहनिष्यतम् अहनिष्यत अहनिष्याम
अहनिष्याव
अथ शान्तः सेट् च ।
११०१. वशक् (वश्) कान्तिरिच्छा ।
स० उश्यात्
उश्या:
उश्याम्
प० वष्टु / उष्टात्
उड्ढि / उष्टात्
वशानि
हा० अवटू / ड्
अवट् / ड्
अवशम्
अ० अवाशीत्
अवाशी:
अवाशिषम्
अवशीत्
अवशी:
अवशिषम्
प० उवाश
उवशिथ
उवाश / उवश
वध्यास्व
हन्तारौ
हन्तास्थः
हन्तास्वः
हनिष्यतः
हनिष्यथः
हनिष्यावः
उष्टः
उष्ट:
उश्व:
उश्याताम्
उश्यातम्
उश्याव
उष्टाम्
उष्टम्
वशाव
औष्टाम्
औष्टम्
औश्व
अवाशिष्टाम्
अवशिष्टम्
अवाशिष्व
तथा
अवशिष्टाम्
अवशिष्टम्
अवशिष्व
ऊशतुः
ऊशथुः
ऊशिव
उशन्ति
उष्ट
उश्मः
उश्युः
उश्यात
उश्याम
उशन्तु
उष्ट
वशाम
औशन्
औष्ट
औश्म
अवाशिषुः
अवाशिष्ट
अवाशिष्म
अवशिषुः
अवशिष्ट
अवशिष्म
ऊशुः
ऊश
ऊशिम
आ० उश्यात्
उश्या:
उश्यासम्
श्व० वशिता
वशितासि
वशितास्मि
भ० वशिष्यति
वशिष्यसि
वशिष्यामि
क्रि० अवशिष्यत्
अवशिष्यः
अवशिष्यम्
व० अस्ति
स० स्यात्
प० अस्तु / स्तात्
एधि/स्तात्
असानि
ह्य० आसीत्
अ० अभूत्
प० बभूव
आ० भूयात्
श्व० भविता
भ० भविष्यति
क्रि० अभविष्यत्
ह्य० असत्-द्
अ० असासीत्
अससीत्
व० सस्ति
स० सस्यात्
प० सस्तु / सस्तात्
उश्यास्ताम्
उश्यास्तम्
उश्यास्व
वशितारौ
वशितास्थः
वशितास्वः
वशिष्यतः
वशिष्यथः
वशिष्यावः
अवशिष्यताम्
अवशिष्यतम्
अवशिष्याव
अथ सान्तौ द्वौ सेटौ च ।
११०२. असक् (अय्) भुवि ।
भूः सत्ता।
भवनं
स्तः
स्याताम्
स्ताम्
स्तम्
असाव
उश्यासुः
उश्यास्त
उश्यास्म
वशितार:
वशितास्थ
वशितास्मः
वशिष्यन्ति
सस्तः
सस्याताम्
सस्ताम्
असस्ताम्
असासिष्टाम्
अससिष्टाम्
वशिष्यथ
वशिष्यामः
अवशिष्यन्
अवशिष्यत
अवशिष्याम
आस्ताम्
अभूताम्
बभूवतुः
भूयास्ताम्
भवितारौ
भविष्यतः
अभविष्यताम्
११०३. षसक् (सस्) स्वप्ने।
सन्ति
स्युः
सन्तु
स्त
असाम
आसन्
अभूवन्
बभूवुः
भूयासुः
भवितारः
भविष्यन्ति
अभविष्यन्
ससन्ति
सस्युः
ससन्तु
अससन्
असासिषुः
अससिषुः
289
Page #307
--------------------------------------------------------------------------
________________
290
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
सेसुः
जन
शथे
प० ससास सेसतुः
श्व० अध्येता अध्येतारौ अध्येतारः आ० सस्यात् सस्यास्ताम् सस्यासुः
अध्येतासे अध्येतासाथे अध्येताध्वे श्व० ससिता ससितारौ ससितार:
अध्येताहे अध्येतास्वहे अध्येतास्मिहे भ० ससिष्यति ससिष्यतः ससिष्यन्ति
भ० अध्येष्यते अध्येष्येते अध्येष्यते क्रि० अससिष्यत् अससिष्यताम् अससिष्यन्
अध्येष्यसे
अध्येष्यध्वे
अध्येष्येथे ॥अथात्मनेपदिनः।।
अध्येष्ये अध्येष्यावहे अध्येष्यामहे
क्रि० अध्यगीष्यत अध्यगीष्येताम् अध्यगीष्यत ११०४. ईङ् (इ) अध्ययने।
अध्यगीष्यथाः अध्यगीष्येथाम् अध्यगीष्यध्वम् इडिकोरधिनावश्यंभावी योगः। यदाह- कश्चित्तमनुवर्तते। अध्यगीष्ये
अध्यगीष्यामहि व० अधीते
अधीते
अधीयते क्रि० अध्यैष्यत अध्यैष्यताम् अध्यैष्यन्त,इत्यादि अधीषे अधीथे अधीध्वे
११०५. शिङ् (शि) स्वप्ने। अधीये अधीवहे अधीमहे
|व० शेते
शेयाते
शेयते स० अधीयीत अधीयीयाताम् अधीयीरन्
शेषे
शेध्वे अधीयीथाः अधीयीयाथाम् अधीयीध्वम् अधीयीय अधोयीवहि अधीयीमहि
शेये शेवहे
शेमहे प० अधीताम् अधीयाताम् अधीयताम
स० शयीत शयीयाताम् शयीरन् अधीष्व अधीयाथाम अधीध्वम
शयीथाः शयीयाथाम् शयीध्वम् अध्ययैः अध्यायवहै अध्यायमहै
शयीय
शयीवहि शयीमहि ह्य० अध्यैत
अध्ययाताम् अध्ययत
प० शेताम् शयाताम् शेरताम अध्यैथा: अध्यैयाथाम अध्यध्वम्
शयाथाम शेध्वम अध्यैयि अध्यैवहि अध्यैमहि
शयावहै शयामहै अ० अध्यगीष्ट अध्यगीषाताम् अध्यगीषत
अशयाताम् अशेरत अध्यगीष्ठाः
ह्य० अशेत अध्यगीषाथाम् अध्यगीड्डवम्/ध्वम् अध्यगीषि अध्यगीष्वहि अध्यगीष्महि
अशेथाः अशयाथाम अशेध्वम् तथा
अशयि अशेवहि अशेमहि अध्यैष्ट अध्यैषाताम् अध्यैषत
अ० अशयिष्ट अशयिषाताम् अशयिषत अध्यैष्ठाः अध्यैषाथाम् अध्यैड्ढवम्/ध्वम् अशयिष्ठाः अशयिषाथाम् अशयिड्ढवम्/ध्वम् अध्यैषि अध्यैष्वहि अध्यैष्महि
अशयिषि अशयिष्वहि अशयिष्यहि प० अधिजगे अधिजगाते अधिजगिरे
| प० शिशाय अधिजगिषे अधिजगाथे अधिजगिध्वे
शियिथ शिश्यथः
शिश्य अधिजगे अधिजगिवहे अधिजगिमहे
शिशाय/शिशय शिश्यिव अध्येषीयास्ताम् आ० अध्येषीष्ट अध्येषीरन्
शिश्यिम अध्येषीष्ठाः अध्येषीयास्थाम् अध्येषीध्वम्
आ० शयिषीष्ट शयिषीयास्ताम् शयिषीरन् अध्येषीय अध्येषीवहि अध्येषीमहि
शयिषीष्ठाः शयिषीयास्थाम शयिषीध्वम्
शयिषीय शयिषीवहि शयिषीमहि १. यङ्लुक च। सर्वे धातवो यङ्लुबन्ताः कित्करणाददादौ | श्व० शयिता शयितारौ शयितार: परस्मैपदिनश्च विज्ञेयाः। तेषां रूपाणि च प्रक्रियाप्रकरणे प्रकटिष्यन्ते
शयितासे
शयितासाथे शयिताध्वे इति अदादौ परस्मैभाषाः।।
शेष्व
शयैः
शिश्यतुः
शिश्युः
Page #308
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
291
Thor
हृध्वे हुमहे
सुषुविरे
शयिताहे शयितास्वहे शयितास्मिहे भ० शयिष्यते शयिष्येते शयिष्यते
शयिष्यसे शयिष्येथे शयिष्यध्वे
शयिष्ये शयिष्यावहे शयिष्यामहे - क्रि० अशयिष्यत अशयिष्येताम् अशयिष्यत
अशयिष्यथाः अशयिष्येथाम् अशयिष्यध्वम् अशयिष्ये अशयिष्यावहि अशयिष्यामहि दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः। वेवीड्वीसमानार्थ एतावपि
केचित्पठन्ति। छान्दसत्वादुपेक्षितौ। ११०६. हुडक् (ह) अपनयने।
अपनयनमपलापः। व० हृते
हृवाते हृवते हृवाथे
हृवहे स० ह्ववीत हुवीयाताम् हुवीरन्
हुवीथाः हृवीयाथाम् ह्ववीध्वम्
हृवीय हृवीवहि हुवीमहि प० हृताम् हृवाताम् हुवताम्
हृवाथाम्
हृध्वम ह्रवावहै
हवामहै ह्य० अद्भुत अझुवाताम् अह्ववत अह्रथाः अढवाथाम् अहृध्वम्
अह्ववहि अढमहि अ० अह्रोष्ट अहोषाताम् अह्रोषत अह्रोयिष्ठाः अह्रोषाथाम् अह्रोड्ढवम्/ध्वम्
अह्रोष्वहि अहोष्महि प० जुहुवे जुङवाते जुहुविरे जुङविषे जुङवाथे जुहुविढ्वे/जुहुविध्वे
जुङमिहे आ० होषीष्ट होषीयास्ताम् होषीरन्
होषीष्ठाः होषीयास्थाम् ह्रोषीध्वम्
होषीय होषीवहि होषीमहि श्व० होता होतारौ होतारः
होतासे होतासाथे होताध्वे
होताहे होतास्वहे होतास्मिहे भ० ह्रोष्यते ह्रोष्येते
होष्यते
होष्यसे ह्रोष्येथे ह्रोष्यध्वे
ह्रोष्ये ह्रोष्यावहे ह्रोष्यामहे क्रि० अह्रोष्यत अह्रोष्येताम् अह्रोष्यत
अह्रोष्यथा: अह्रोष्येथाम् अह्रोष्यध्वम् अह्रोष्ये अह्रोष्यावहि अह्रोष्यामहि
अतः परमूदन्तः सेट् च। ११०७. षूडोक् (सु) प्राणिगर्भविमोचने। व० सूते
सूवाते सूवते स० सूवीत सूवीयाताम् सूवीरन् प० सूताम् सूवाताम् सूवताम् ह्य० असूत असूवाताम् असूवत अ० असविष्ट असविषाताम् असविषत असोष्ट
असोषाताम् असोषत प० सुषुवे सुषुवाते आ० सविषीष्ट सविषीयास्ताम् सविषीरन्
सोषीष्ट सोषीयास्ताम् सोषीरन् श्व० सविता सवितारौ सवितारः
सोता सोतारौ सोतारः भ० सविष्यते सविष्येते सविष्यते सोष्यते सोष्येते
सोष्यते क्रि० असविष्यत असविष्येताम् असविष्यत असोष्यत असोष्येताम् असोष्यत
अथ चान्त: सेट् च। ११०८. पृचैङ् (पृच्) सम्पर्चने
सम्पर्चनं मिश्रणम्। व० पृक्ते स० पृचीत पृचीयाताम् प० पृक्ताम् पृचाताम् पृचताम ह्य० अपृक्त
अपृचाताम्
अपृचत अ० अपर्चिष्ट अपर्चिषाताम् अपर्चिषत प० पपृचे पपृचाते पपृचिरे आ० पर्चिषीष्ट पर्चिषीयास्ताम् पर्चिषीरन् श्व० पर्चिता पर्चितारौ पर्चितारः भ० पर्चिष्यते पर्चिष्येते पर्चिष्यते क्रि० अपर्चिष्यत अपर्चिष्येताम् अपर्चिष्यत
अद्भुवि
अहोषि
पृचाते
प्रचते
पृचीरन्
जुहुवे
जुह्वविहे
Page #309
--------------------------------------------------------------------------
________________
292
व० पृङ्क्ते ० पृञ्ज
पृ० पृङ्क्ताम्
ह्य० अपृङ्क्त
अ० अपृञ्जिष्ट
अथ जान्तः सेट् ।
११०९. पृजुडक् (पृञ्ज्) सम्पचने ।
मिश्रण इत्यर्थः ।
प० पृपृञ्जे
आ० पृञ्जिषीष्ट
श्व० पृञ्जिता
भ० पृञ्जिष्यते
क्रि० अपृञ्जिष्यत
व० वृक्ते
वृक्षे
वृजे
स० वृजीत
व० पिङ्क्ते
स० पिञ्जीत
पि० पिङ्क्ताम्
ह्य० अपिङ्क्त
अ० अपिञ्जिष्ट
प० पिपिञ्जे
आ० पिञ्जिषीष्ट
श्व० पिञ्जिता
भ० पिञ्जिष्यते
क्रि० अपिञ्जिष्यत
वृजीथा:
वृजीय
पृञ्जते
पृञ्जते
पृञ्जीयाताम्
पृञ्जीरन्
पृञ्जाताम्
पृञ्जताम्
अपृञ्जाताम्
अपृञ्जत
अपृञ्जिषाताम् अञ्ज
पृपृञ्जाते
पृपृञ्जिरे
पृञ्जिषीयास्ताम्
पृञ्जिषीरन्
पृञ्जितार:
पृञ्जिष्यते
पृञ्जितारौ
पृञ्जिष्ये
१११०. पिजुक् (पिज्) सम्पचने ।
मिश्रण इत्यर्थः ।
पिञ्जाते
पिञ्जते
पिञ्जीयाताम्
पिञ्जीरन्
पिञ्जाताम् पिञ्जताम्
अपिञ्जत
अपृञ्जष्येताम् अपृञ्जष्
अपिञ्जाताम्
अपिञ्जिषाताम् अपिञ्जिषत
पिपिञ्जाते
पिपिञ्जिरे
पिञ्जिषीयास्ताम् पिञ्जिषीरन्
पिञ्जितारौ
पिञ्जितार:
पिञ्जिष्येते
पिञ्जिष्यते
अपिञ्जिष्यत
अपिञ्जिष्येताम्
११११. वृजैकि (वृज्) वर्जने ।
वृजाते
वृजाथे
वृज्वहे
वृजीयाताम्
वृजीयाथाम्
वृजीवहि
वृजते
वृग्ध्वे
वृज्महे
वृजीरन्
वृजीध्वम्
वृजीमहि
प० वृक्ताम्
वृक्ष्व
वर्जे
ह्य० अवृक्त
अवृक्थाः
अवृि
अ० अवर्जिष्ट
अवर्जियिष्ठाः
अवर्जिषि
० वजे
वृि
वृजे
आ० वर्जिषीष्ट
वर्जिषीष्ठाः
वर्जिषीय
श्व० वर्जिता
वर्जितासे
वर्जिताहे
भ० वर्जिष्यते
वर्जिष्यसे
वर्जिष्ये
क्रि० अवर्जिष्यत
अवर्जिष्यथाः
अवर्जिष्ये
व० निङ्क्ते
स० निञ्जीत
नि० निङ्क्ताम्
० अनिङ्क्त
अ० अनिञ्जिष्ट
प० निनिञ्जे
धातुरत्नाकर प्रथमं भाग
वृजताम्
वृग्ध्वम
वर्जामहै
अवृजत
अवृग्ध्वम्
वृ
अवृि
अवर्जिषाताम् अवर्जिषत
अवर्जिषाथाम्
अवर्जिष्वहि
वृजाताम्
वृजाथाम्
वर्जा है
अवृजाताम्
अवृजाथाम्
अवर्जिडूवम्/ध्वम्
अवर्जिष्महि
ववृजिरे
ववृजिध्वे
वृजम
वर्जिषीयास्ताम् वर्जिषीरन्
वर्जीयास्थाम्
वर्जिषीध्वम्
वर्जिषीवहि
वर्जिषीमहि
वर्जितारौ
वर्जितार:
वर्जितासाथे
वर्जिताध्वे
वर्जितास्वहे
वर्जितास्मिहे
वर्जिष्येते
वर्जिष्यते
वर्जिष्येथे
वर्जिष्यध्वे
वर्जिष्यावहे
वर्जिष्यामहे
अवर्जिष्येताम्
अवर्जिष्यत
अर्जष्येथाम्
अवर्जिष्यध्वम्
अवर्जिष्यावहि अवर्जिष्यामहि
१११२. णिजुकि (निज्) शुद्धौ ।
वृजा
ववृजाथे
वृजिव
निञ्जाते निञ्जते निञ्जीयाताम् निञ्जीरन् निञ्जाताम् निञ्जताम्
अनिञ्जाताम् अनिञ्जत
अनिञ्जिषाताम्
अनिञ्जिषत
निनिञ्जाते
निनिञ्जिरे
Page #310
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
293
ईडितारः
आ० निञ्जिषीष्ट निञ्जिषीयास्ताम् निञ्जिषीरन् श्व० निञ्जिता निञ्जितारौ निञ्जितारः भ० निञ्जिष्यते निञ्जिष्येते निञ्जिष्यते क्रि० अनिञ्जिष्यत अनिञ्जिष्येताम् अनिञ्जिष्यत
१११३. शिजुकि (शि) अव्यक्ते शब्दे। व० शिङ्क्ते शिजाते शिजते स० शिजीत शिजीयाताम् शिजीरन् प० शिङ्क्ताम्
शिजाताम्
शिजताम् ह्य० अशिङ्क्त अशिजाताम् अशिजत अ० अशिञ्जिष्ट अशिञ्जिषाताम् अशिञ्जिषत प० शिशिजे शिशिजाते शिशिञ्जिरे आ० शिञ्जिषीष्ट शिञ्जिषीयास्ताम् शिञ्जिषीरन् श्व० शिञ्जिता शिञ्जितारौ शिञ्जितारः भ० शिञ्जिष्यते शिञ्जिष्येते शिञ्जिष्यते क्रि० अशिञ्जिष्यत
॥अथ डान्तः सेट् च॥
१११४. ईडिक् (ईड्) स्तुतौ। व० ईटठे ईडाते ईडते ईडिषे ईडाथे ईडिध्वे
ईड्वहे ईड्महे स० ईडीत ईडीयाताम् ईडीरन्
ईडीथाः ईडीयाथाम् ईडीध्वम्
ईडीय ईडीवहि ईडीमहि प० ईट्टाम् ईडाताम् ईडिष्व ईडाथाम् ईडिध्वम्
ईडावहै ईडामहै ह्य० ऐड्डु ऐडाताम् ऐडत ऐडाथाम्
ऐडूवम् ऐडिषि ऐडिष्वहि ऐडिष्महि अ० ऐडिष्ट ऐडिषाताम् ऐडिषत ऐडिष्ठाः
ऐडिषाथाम् ऐडिड्ढ्व म्/ध्वम् ऐडिषि
ऐडिष्वहि ऐडिष्महि
प० ईडाचक्रे ईडाञ्चक्राते ईडाश्चक्रिरे
ईडाञ्चकृषे ईडाञ्चक्राथे ईडाञ्चकृट्वे ईडाञ्चके ईडाञ्चकृवहे ईडाञ्चकृमहे
इडाम्बभूव/इडामास आ० ईडिषीष्ट ईडिषीयास्ताम् ईडिषीरन्
ईडिषीष्ठाः ईडिषीयास्थाम् ईडिषीध्वम्
ईडिषीय ईषिषीवहि ईडिषीमहि श्व० ईडिता ईडितारौ
ईडितासे ईडितासाथे ईडिताध्वे
इंडिताहे ईडितास्वहे ईडितास्मिहे भ० ईडिष्यते ईडिष्येते ईडिष्यन्ते
ईडिष्यसे ईडिष्येथे ईडिष्यध्वे
ईडिष्ये ईडिष्यावहे ईडिष्यामहे क्रि० ऐडिष्यत ऐडिष्येताम् ऐडिष्यन्त ऐडिष्यथाः ऐडिष्येथाम् ऐडिष्यध्वम्
ऐडिष्यावहि ऐडिष्यामहि
॥अथ रान्तः सेट् च।
१११४. ईरिक् (ई) गतिकम्पनयोः। व० ईत्ते
ईरते
ईचे ईर्वहे ईरीयाताम्
ईरीरन् ईरीथाः ईरीयाथाम् ईरीध्वम् ईरीय ईरीवहि ईरीमहि ईराताम्
ईरताम् ईराथाम् ईर्ध्वम ईरावहै ईरामहै ऐराताम् ऐरत
ऐवम्
ऐमहि अ० ऐरिष्ट
ऐरिषाताम्
ऐरिषत ऐरिष्ठाः
ऐरिषाथाम् ऐरिड्ढ्वम्/ध्वम् ऐरिषि ऐरिष्वहि ऐरिष्महि
ईराते
ईराथे
ईडताम्
प० ईम्ि
44
ऐटुाः
।
ऐराथाम् ऐवहि
ऐरि
Page #311
--------------------------------------------------------------------------
________________
294
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ऐशिष्ये
प० ईराञ्चक्रे ईराञ्चक्राते ईराञ्चक्रिरे
ईराञ्चकृषे ईराञ्चक्राथे ईराञ्चकृढ्वे ईराञ्चक्रे ईराञ्चकृवहे ईराञ्चकृमहे
ईरांबभूव/ईरामास आ० ईरिषीष्ट ईरिषीयास्ताम् ईरिषीरन्
ईरिषीष्ठाः ईरिषीयास्थाम् ईरिषीध्वम्
ईरिषीय ईषिषीवहि ईरिषीमहि श्व० ईरिता ईरितारौ ईरितारः
ईरितासे ईरितासाथे ईरिताध्वे
ईरिताहे ईरितास्वहे ईरितास्मिहे भ० ईरिष्यते ईरिष्येते ईरिष्यन्ते
ईरिष्यसे ईरिष्येथे ईरिष्यध्वे
ईरिष्ये ईरिष्यावहे ईरिष्यामहे क्रि० ऐरिष्यत ऐरिष्येताम् ऐरिष्यन्त
ऐरिष्यथाः ऐरिष्येथाम् ऐरिष्यध्वम् ऐरिष्ये ऐरिष्यावहि ऐरिष्यामहि
॥अथ शान्तः सेट् च।।
१११४. ईशिक (ईश्) स्तुतौ। व० ईष्टे
ईशाते
ईशते ईशिषे
ईशिध्वे
ईश्वहे स० ईशीत
ईशीयाताम्
ईशीरन् ईशीथाः ईशीयाथाम् ईशीध्वम्
ईशीय ईशीवहि ईशीमहि प० ईष्टाम् ईशाताम् ईशताम् ईशिष्व ईशाथाम् ईशिध्वम्
ईशावहै ईशामहै " ह्य० ऐष्ट
ऐशाताम्
ऐशत ऐष्ठाः ऐशाथाम ऐश्ड्ढ्व म्
ऐश्वहि ऐश्महि अ० ऐशिष्ट ऐशिषाताम् ऐशिषत
ऐशिष्ठाः ऐशिषाथाम् ऐशिड्ढवम्/ध्वम् ऐशिषि ऐशिष्वहि ऐशिष्महि
प० ईशाञ्चक्रे ईशाञ्चक्राते ईशाञ्चक्रिरे
ईशाञ्चकृषे ईशाञ्चक्राथे ईशाञ्चकृढ्वे ईशाञ्चके ईशाञ्चकृवहे ईशाञ्चकृमहे
ईशांबभूव/ईशामास आ० ईशिषीष्ट ईशिषीयास्ताम् ईशिषीरन् ईशिषीष्ठाः ईशिषीयास्थाम्
ईशिषीध्वम् ईशिषीय ईषिषीवहि ईशिषीमहि श्व० ईशिता ईशितारौ ईशितार:
ईशितासे ईशितासाथे ईशिताध्वे
ईशिताहे ईशितास्वहे ईशितास्मिहे भ० ईशिष्यते ईशिष्येते ईशिष्यन्ते
ईशिष्यसे ईशिष्येथे ईशिष्यध्वे
ईशिष्ये ईशिष्यावहे ईशिष्यामहे क्रि० ऐशिष्यत
ऐशिष्येताम्
ऐशिष्यन्त ऐशिष्यथाः ऐशिष्येथाम् ऐशिष्यध्वम्
ऐशिष्यावहि ऐशिष्यामहि
॥अथ सान्ताः पञ्च सेटश्च।। . १११७. वसिक् (वस्) आच्छादने। व० वस्ते वसाते
वसते वस्से
वसाथे वद्ध्वे/ध्वे वसे वसहे
वस्महे स० वसीत वसीयाताम् वसीरन्
वसीथाः वसीयाथाम् वसीध्वम्
वसीय वसीवहि वसीमहि प० वस्ताम् वसाताम् वसताम् वस्स्व
वसाथाम् वद्ध्वम्/ध्वम्
वसावहै वसामहै ह्य० अवस्त
अवसाताम्
अवसत अवस्थाः अवसाथाम अवद्ध्वम्/ध्वम् अवसि
अवस्वहि अवस्महि अ० अवसिष्ट अवसिषाताम् अवसिषत
अवसिष्ठाः अवसिषाथाम् अवसिड्ढ्वम्/ध्वम् . अवसिषि अवसिस्वहि अवसिस्महि
ईशाथे
ईशे
ईश्महे
वसैः
ऐशि
Page #312
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
295
प० ववसे ववसाते ववसिरे
ववसिषे ववसाथे ववसिध्वे
ववसे ववसिवहे ववसिमहे आ० वसिषीष्ट वसिषीयास्ताम् वसिषीरन्
वसिषीष्ठाः वसिषीयास्थाम् वसिषीध्वम्
वसिषीय वसिषीवहि वसिषीमहि श्व० वसिता वसितारौ वसितारः
वसितासे वसितासाथे जसिताध्वे
वसिताहे वसितास्वहे वसितास्मिहे भ० वसिष्यते वसिष्येते वसिष्यते
वसिष्यसे वसिष्येथे वसिष्यध्वे
वसिष्ये वसिष्यावहे वसिष्यामहे क्रि० अवसिष्यत अवसिष्येताम् अवसिष्यत
अवसिष्यथाः अवसिष्येथाम् अवसिष्यध्वम् अवसिष्ये अवसिष्यावहि अवसिष्यामहि
१११८. आङः शासूकि (आ-शास्) इच्छायाम्। आङ् इत्याङ्यूर्व एवायं प्रयोज्यो न केवलो नाप्यन्योपसर्गपूर्व
इत्येवमर्थम् व० आशास्ते आशासाते आशासते
आशास्से आशासाथे आशाद्ध्वे/ध्वे
आशासे आशास्वहे आशास्महे स० आशासीत आशासीयाताम् आशासीरन्
आशासीथाः आशासीयाथाम् आशासीध्वम्
आशासीय आशासीवहि आशासीमहि प० आशास्ताम् आशासाताम् आशासताम्
आशास्स्व आशासाथाम् आशाद्ध्वम्/ध्वम्
आशासै आशासावहै आशासामहै ह्य० आशास्त आशासाताम् आशासत
आशास्थाः आशासाथाम् आशाद्ध्वम्/ध्वम्
आशासि आशास्वहि आशास्महि अ० आशासिष्ट आशासिषाताम् आशासिषत
आशासिष्ठाः आशासिषाथाम् आशासिड्ढ्वम्/ध्वम् आशासिषि आशासिष्यहि आशासिष्महि
प० आशसासे आशसासाते आशसासिरे
आशसासिषे आशसासाथे आशसासिध्वे
आशसासे आशसासिवहे आशसासिमहे आ० आशासिषीष्ट आशासिषीयास्ताम् आशासिषीरन्
आशासिषीष्ठाः आशासिषीयास्थाम् आशासिषीध्वम्
आशासिषीय आशासिषीवहि आशासिषीमहि श्व० आशासिता आशासितारौ आशासितारः
आशासितासे आशासितासाथे आशासिताध्वे
आशासिताहे आशासितास्वहे आशासितास्मिहे भ० आशासिष्यते आशासिष्येते आशासिष्यते ___आशासिष्यसे आशासिष्येथे आशासिष्यध्वे
आशासिष्ये आशासिष्यावहे आशासिष्यामहे क्रि० आशासिष्यत आशासिष्येताम् आशासिष्यत
आशासिष्यथाः आशासिष्येथाम् आशासिष्यध्वम् आशासिष्ये आशासिष्यावहि आशासिष्यामहि
१११९. आसिक् (आस्) उपवेने। व० आस्ते
आसाते आसते स० आसीत आसीयाताम् आसीरन् प० आस्ताम् आसाताम्
आसताम् ह्य० आस्त आसाताम् आसत अ० आसिष्ट
आसिषाताम्
आसिषत प० आसांचके आसांचक्राते आसांचक्रिरे आ० आसिषीष्ट आसिषीयास्ताम् आसिषीरन् श्व० आसिता आसितारौ आसितारः भ० आसिष्यते आसिष्येते आसिष्यते क्रि० आसिष्यत आसिष्येताम् आसिष्यत
११२०. कसुकि (कंस्) गतिशातनयोः। व० कंस्ते कंसाते कंसते स० कंसीत
कंसीयाताम्
कंसीरन प० कंस्ताम्
कंसताम् ह्य० अकंस्त अकंसाताम्
अकसत अ० अकंसिष्ट अकंसिषाताम् अकसिषत
कंसाताम्
Page #313
--------------------------------------------------------------------------
________________
296
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
निस्से
प० चकंसे चकंसाते चकंसिरे
श्व० निसिता निसितारौ निसितार: आ० कंसिषीष्ट कंसिषीयास्ताम् कंसिषीरन्
निसितासे निसितासाथे निसिताध्वे श्व० कंसिता कंसितारौ कंसितारः
निसिताहे निसितास्वहे निसितास्मिहे भ० कंसिष्यते कंसिष्येते कंसिष्यते
भ० निसिष्यते निसिष्येते निसिष्यते क्रि० अकंसिष्यत अकंसिष्येताम् असिष्यत
निसिष्यसे निसिष्येथे निसिष्यध्वे अनुदित्पक्षे (कस्)।
निसिष्ये निसिष्यावहे निसिष्यामहे व० कस्ते कसाते कसते, इत्यादि।
क्रि० अनिसिष्यत अनिसिष्येताम् अनिसिष्यत तालव्यान्तोऽपीति पक्षे (कथ्)।
अनिसिष्यथाः अनिसिष्येथाम् अनिसिष्यध्वम् कशाते कशते, इत्यादि।
अनिसिष्ये अनिसिष्यावहि अनिसिष्यामहि ११२१. णिसुकि (निस्) चुम्बने।
११२४. ष्टंग्क् (स्तु) स्तुतौ। व० निस्ते निसाते
निंसते व० स्तौति/स्तवीति स्तुतः
स्तुवन्ति निसाथे निवे/ध्वे
स्तौषि/स्तवीषिः स्तुथ:
स्तथ निसे निस्वहे निस्महे
स्तौमि/स्तवीमि स्तुवः
स्तुमः स० निंसीत निसीयाताम्
निसीरन्
स० स्तुयात् स्तुयाताम् स्तुयायुः निसीथाः निसीयाथाम् निसीध्वम् स्तुयाः स्तुयातम्
स्तुयात निसीय निसीवहि निसीमहि
स्तुयाम् स्तुयाव स्तुयाम प० निस्ताम् निसाताम्
प० स्तवीतु/स्तुतात् स्तुताम्/स्तुवन्तु स्तौतु निस्स्व निसाथाम् निंद्ध्वम्/ध्वम्
स्तुहि/स्तुतात् स्तुतम् स्तुत
स्तवानि निसैः
स्तवाव
स्तवाम निसावहै निसामहै
ह्य० अस्तीत्/अस्तवीत् अस्तुताम् अस्तुवन् ह्य० अनिस्त अनिसाताम् अनिंसत
अस्तौः/अस्तवीः अस्तुतम्
अस्तुत अनिंस्थाः अनिसाथाम् अनिंद्ध्वम्/ध्वम्
अस्तवम् अस्तुव अस्तुम - अनिसि अनिस्वहि अनिस्महि
अ० अस्तावीत् अस्ताविष्टाम् अस्ताविषुः अ० अनिसिष्ट अनिसिषाताम् अनिसिषत
अस्तावी: अस्ताविष्टम् अस्ताविष्ट अनिसिष्ठाः अनिसिषाथाम्
अनिसिङ्कवम्/ध्वम्
अस्ताविषम् अस्ताविष्व अस्ताविष्म अनिसिषि अनिसिष्वहि अनिसिष्यहि | प० तुष्टाव तुष्टुवतुः तुष्टुवुः प० निनिसे निनिंसाते निनिसिरे
तुष्टोथ तुष्टुवथुः
तुष्टुव निनिसिषे निनिसाथे निनिसिध्वे
तुष्टाव/तुष्टुव तुष्टुव
तुष्टुम निनिसे निनिसिवहे. निनिसिमहे
आ० स्तूयात् स्तूयास्ताम् स्तूयासुः आ० निसिषीष्ट निसिषीयास्ताम निसिषीरन
स्तूयाः स्तूयास्तम् स्तूयास्त निसिषीष्ठाः
स्तूयासम् स्तूयास्व स्तूयास्म निसिषीयास्थाम् निसिषीध्वम्
श्व० स्तोता स्तोतारौ स्तोतार: निसिषीय निसिषीवहि निसिषीमहि ।
स्तोतासि स्तोतास्थः स्तोतास्थ
निंसताम्
Page #314
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
297
स्तोतास्वः स्तोष्यतः स्तोष्यथ: स्तोष्याव: अस्तोष्यताम् अस्तोष्यतम् अस्तोष्याव
स्तोतास्मः स्तोष्यन्ति स्तोष्यथ स्तोष्यामः अस्तोष्यन् अस्तोष्यत अस्तोष्याम
स्तोतास्मि भ० स्तोष्यति
स्तोष्यसि
स्तोष्यामि क्रि० अस्तोष्यत्
अस्तोष्यः
अस्तोष्यम् व० स्तुते
स्तुषे स्तुवे स० स्तुवीत
स्तुवीथाः
स्तुवीय प० स्तुताम्
स्तुष्व
स्तुवाते
स्तुवते स्तुध्वे
ब्रूया:
ब्रवाव
स्तवै
अब्रूताम्
अब्रूवन्
ह्य० अस्तुत
अस्तुथा:
अस्तुवि अ० अस्तोष्ट
अस्तोष्ठाः
स्तुवाथे स्तुवहे स्तुवीयाताम् स्तुवीयाथाम् स्तुवीवहि स्तुवाताम् स्तुवाथाम् स्तवावहै अस्तुवाताम् अस्तुवाथाम् अस्तुवहि अस्तोषाताम् अस्तोषाथाम् अस्तोष्वहि तुष्टुवाते तुष्टुवाथे तुष्टुवहे स्तोषीयास्ताम् स्तोषीयास्थाम् स्तोषीवहि स्तोतारौ स्तोतासाथे स्तोतास्वहे स्तोष्येते स्तोष्येथे स्तोष्यावहे
क्रि० अस्तोष्यत अस्तोष्येताम् अस्तोष्यन्त
अस्तोष्यथाः अस्तोष्येथाम् अस्तोष्यध्वम् अस्तोष्ये अस्तोष्यावहि अस्तोष्यामहि
अथादन्तोऽनिट् च। ११२५. बूंग्क् (बू) व्यक्तायां वाचि। व० ब्रवीति/आह ब्रूत:/आहतुः ब्रुवन्ति/आहुः
ब्रवौषि/आत्य ब्रूथ:/आहथुः ब्रूथ ब्रवीमि ब्रूवः
ब्रूमः स० ब्रूयात्
ब्रूयाताम् ब्रूयायुः
ब्रूयातम् ब्रूयात ब्रूयाम् ब्रूयाव
ब्रूयाम प० ब्रवीतु/ब्रूतात् ब्रूताम्
ब्रूवन्तु ब्रूहि/ब्रूतात् ब्रूतम्
ब्रूत ब्रवाणि
ब्रवाम ह्य० अब्रवीत् अब्रवी: अब्रूतम्
अब्रूत अब्रवम् अब्रूव
अब्रूम अ० अवोचत् अवोचताम् अवोचन् अवोचः
अवोचतम् अवोचत अवोचम् अवोचाव अवोचाम प० उवाच ऊचतुः
ऊचुः उवचिथ/उवथ ऊचथुः उवाच/उवच ऊचिव
ऊचिम आ० उच्यात्
उच्यास्ताम् उच्याः
उच्यास्तम् उच्यास्त उच्यासम् उच्यास्व
उच्यास्म श्व० वक्ता वक्तारौ
वक्तार: वक्तासि वक्तास्थ: वक्तास्थ
वक्तास्मि वक्तास्वः वक्तास्मः भ० वक्ष्यति वक्ष्यतः
वक्ष्यन्ति वक्ष्यसि वक्ष्यथ:
वक्ष्यथ वक्ष्यामि वक्ष्याव:
वक्ष्यामः
स्तुमहे स्तुवीरन् स्तुवीध्वम् स्तुवीमहि स्तुवताम् स्तुध्वम् स्तवामहै अस्तुवत अस्तुध्वम् अस्तुमहि अस्तोषत अस्तोडूवम्/ध्वम् अस्तोष्पहि तुष्टुविरे तुष्टुविध्वे-ढवे तुष्टुमहे स्तोषीरन् स्तोषीध्वम् स्तोषीमहि स्तोतारः स्तोताध्वे स्तोतास्मिहे स्तोष्यन्ते स्तोष्यध्वे स्तोष्यामहे
अस्तोषि
प० तुष्टुवे
ऊच
तुष्टुविषे
उच्यासुः
तुष्टुवे आ० स्तोषीष्ट
स्तोषीष्ठाः
स्तोषीय श्व० स्तोता
स्तोतासे
स्तोताहे भ० स्तोष्यते
स्तोष्यसे स्तोष्ये
Page #315
--------------------------------------------------------------------------
________________
298
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अवक्ष्यताम्
अवक्ष्यन्
अवक्ष्यतम्
अवक्ष्यत
क्रि० अवक्ष्यत्
अवक्ष्यः
अवक्ष्यम् व० ब्रूते
अवक्ष्याव
अवक्ष्याम ब्रुवते
ब्रूवाते ब्रूवाथे
बूध्वे
द्विष्टः
द्विष्टः
स० ब्रवीत
ब्रूवीथाः
ब्रूवीय
ब्रूवहे ब्रुवीयाताम् ब्रूवीयाथाम् ब्रूवीवहि ब्रूवाताम् ब्रूवाथाम् ब्रवावहै
प० ब्रूताम्
द्विष्ट
ह्य० अब्रूत
अब्रूथाः
अब्रूवि अ० अवोचत
अवोचथाः
अवोचे प० ऊचे
अब्रूवाताम् अब्रूवाथाम् अब्रूवहि अवोचेताम् अवोचेथाम् अवोचावहि ऊचाते ऊचाथे
ब्रूमहे ब्रूवीरन् ब्रूवीध्वम् ब्रूवीमहि ब्रूवताम् ब्रूध्वम ब्रवामहै अब्रूवत अब्रूध्वम् अब्रूमहि अवोचन्त अवोचध्वम् अवोचामहि ऊचिरे ऊचिध्वे ऊचिमहे वक्षीरन् वक्षीध्वम् वक्षीमहि
अवक्ष्यथाः अवक्ष्येथाम् अवक्ष्यध्वम् अवक्ष्ये
अवक्ष्यावहि अवक्ष्यामहि ॥अथ षान्तोऽनिट् च॥
११२६. द्विषींक् (द्विष्) अप्रीतौ। व० द्वेष्टि
द्विषन्ति द्वेक्षि
द्विष्ट द्वेष्मि द्विष्वः द्विष्मः स० द्विष्यात् द्विष्याताम् द्विष्यायुः
द्विष्याः द्विष्यातम् द्विष्यात
द्विष्याम् द्विष्याव द्विष्याम प० द्वेष्टु/द्विष्टात् द्विष्टाम् द्विषन्तु
विड्डि/द्विष्टात् द्विष्टम्
द्वेषाणि द्वेषाव द्वेषाम ह्य० अद्वेट्/अद्वेड् अद्विष्टाम् अद्विषु:/अद्विषन्
अद्वेट/अद्वेड् अद्विष्टम् अद्विष्ट
अद्वेषम् अद्विष्व अद्विष्म अ० अद्विक्षत अद्विक्षताम् अद्विक्षन्
अद्विक्षः अद्विक्षतम् अद्विक्षत
अद्विक्षम् अद्विक्षाव अद्विक्षाम प० दिद्वेष दिद्विषतुः दिद्वेषिथ दिद्विषथुः
दिद्विष दिद्विषिव दिद्विषिम आ० द्विष्यात् द्विष्यास्ताम् द्विष्यासुः
द्विष्या: द्विष्यास्तम् द्विष्यास्त
द्विष्यासम् द्विष्यास्व द्विष्यास्म श्व० द्वेष्टा द्वेष्टारौ द्वेष्टारः
द्वेष्टासि द्वेष्टास्थ: द्वेष्टास्थ ___ द्वेष्टास्मि द्वेष्टास्वः द्वेष्टास्मः भ० द्वेक्ष्यति
द्वेक्ष्यन्ति द्वेक्ष्यसि द्वेक्ष्यथ: द्वेक्ष्यथ
द्वेक्ष्यामि द्वेक्ष्याव: द्वेक्ष्यामः क्रि० अद्वेक्ष्यत्
अद्वेक्ष्यताम् अद्वेक्ष्यन् अद्वेक्ष्यः अद्वेक्ष्यतम् अद्वेक्ष्यत अद्वेक्ष्यम् अद्वेक्ष्याव अद्वेक्ष्याम
दिद्विषुः
ऊचिषे
दिद्वेष
ऊचे
आ० वक्षीष्ट
वक्षीष्ठाः वक्षीय
श्व० वक्ता
वक्तासे
ऊचिवहे वक्षीयास्ताम् वक्षीयास्थाम् वक्षीवहि वक्तारौ वक्तासाथे वक्तास्वहे वक्ष्येते वक्ष्येथे
द्वेक्ष्यतः
वक्ताहे भ० वक्ष्यते
वक्ष्यसे
वक्तारः वक्ताध्वे वक्तास्महे वक्ष्यन्ते वक्ष्यध्वे वक्ष्यामहे
वक्ष्ये
वक्ष्यावहे अवक्ष्येताम्
क्रि० अवक्ष्यत
अवक्ष्यन्त
Page #316
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
299
दुग्धः
दुग्ध
धोक्षि दोमि
दुह्वः
द्विषे
दुह्याताम् दुह्यातम्
दुह्मः दुह्यायुः दुह्यात
दुह्याव
दुह्याम
दुहन्तु
दुग्धाम् दुग्धम् दोहाव
दुग्ध
स० दुह्यात्
दुह्याः
दुह्याम् प० दोग्धु/दुग्धात्
दुग्धि/दुग्धात्
दोहानि ह्य० अधोक्/ग्
अधोक्/ग्
अदोहम् अ० अधुक्षत
अधुक्ष:
अधुक्षम् प० दुदोह
दोहाम अदुहन् अदुग्ध अदुह्म अधुक्षन् अधुक्षत अधुक्षाम
दुदुहुः
व० द्विष्टे द्विषाते द्विषते द्विक्षे द्विषाथे द्विवे
द्विष्वहे द्विष्महे स० द्विषीत द्विषीयाताम् द्विषीरन् द्विषीथाः द्विषीयाथाम्
द्विषीध्वम् द्विषीय द्विषीवहि द्विषीमहि प० द्विष्टाम् द्विषाताम् द्विषताम द्विश्व द्विषाथाम् द्विड्डूवम
दवेषावहै द्वेषामहै ह्य० अद्विष्ट अद्विषाताम् अद्विषत अद्विष्ठाः अद्विषाथाम्
अद्विड्डूवम् अद्विषि अद्विष्वहि अद्विष्महि अ० अद्विक्षतः अद्विक्षताम् अद्विक्षन्त
अद्विक्षथाः अद्विक्षाथाम् अद्विक्षध्वम्
अद्विक्षि अद्विक्षावहि अद्विक्षामहि प० दिद्विषे दिद्विषाते दिद्विषिरे
दिद्विषिषे दिद्विषाथे दिद्विविध्वे
दिद्विषे दिद्विषिवहे दिद्विषिमहे आ० द्विक्षीष्ट द्विक्षीयास्ताम् द्विक्षीरन्
द्विक्षीष्ठाः द्विक्षीयास्थाम् द्विक्षीध्वम्
द्विक्षीय द्विक्षीवहि द्विक्षीमहि श्व० द्वेष्टा
द्वेष्टारौ द्वेष्टासे द्वेष्टासाथे द्वेष्टाध्वे
द्वेष्टाहे द्वेष्टास्वहे द्वेष्टास्महे भ० द्वेक्ष्यते
द्वेक्ष्यन्ते द्वेक्ष्यसे द्वेक्ष्येथे द्वेक्ष्यध्वे
द्वेक्ष्ये द्वेक्ष्यावहे द्वेक्ष्यामहे क्रि० अद्वेक्ष्यत अद्वेक्ष्येताम् अद्वेक्ष्यन्त
अद्वेक्ष्यथा: अद्वेक्ष्येथाम् अद्वेक्ष्यध्वम् अद्वेक्ष्ये अद्वेश्यावहि अद्वेश्यामहि
॥अथ हान्तास्त्रयोऽनिटश्च॥
११२७. दुहीक् (दुह्) क्षरणे। व० दोग्धि दुग्धः
दुदुहिथ
दुदुह
दुदोह
अदुग्धताम् अदुग्धम् अदुह्व अधुक्षताम् अधुक्षतम् अधुक्षाव दुदुहतु दुदुहथुः दुदुहिव दुह्यास्ताम् दुह्यास्तम् दुह्यास्व दोग्धारौ दोग्धास्थः दोग्धास्वः धोक्ष्यतः धोक्ष्यथ: धोक्ष्याव: अधोक्ष्यताम् अधोक्ष्यतम् अधोक्ष्याव
द्वेष्टारः
आ० दुह्यात्
दुह्याः
दुह्यासम् श्व० दोग्धा
दोग्धासि
दोग्धास्मि भ० धोक्ष्यति
धोक्ष्यसि
धोक्ष्यामि क्रि० अधोक्ष्यत्
अधोक्ष्यः
अधोक्ष्यम् व० दुग्धे
दुदुहिम दुह्यासुः दुह्यास्त दुह्यास्म दोग्धारः दोग्धास्थ दोग्धास्मः धोक्ष्यन्ति धोक्ष्यथ
द्वेक्ष्येते
धोक्ष्यामः
अधोक्ष्यन् अधोक्ष्यत अधोक्ष्याम
दुहाते
दुहाथे
दुहते धुग्ध्वे दुह्महे
दुहन्ति
दुह्वहे
Page #317
--------------------------------------------------------------------------
________________
300
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
दुहीय
अधिक्षन् दिदिहुः
देग्धारः
दिहते
दिहीरन्
दुदुहिरे
दुदुहिषे
दुदुहाथे दुदुहिवहे
स० दुहीत दुहीयाताम् दुहीरन् दुहीथाः दुहीयाथाम् दुहीध्वम्
दुहीवहि दुहीमहि प० दुग्धाम् दुहाताम् दुहताम् धुक्ष्व
दुहाथाम् दुहड्डूवम् - दोहै दोहावहै दोहामहै ह्य० अदुग्ध अदुहाताम् अदुहत
अदुग्धाः अदुहाथाम अधुग्ध्वम्
अदुहि अदुह्वहि अदुह्यहि अ० अदुग्ध/अधुक्षत अधुक्षताम् अधुक्षन्त
अधुक्षथाः अधुक्षाथाम् अधुक्षध्वम्
अधुक्षि अधुक्षावहि अधुक्षामहि प० दुदुहे दुहाते
दुदुहिढ्वे/ध्वे दुदुहे
दुदुहिमहे आ० धुक्षीष्ट धुक्षीयास्ताम् धुक्षीरन्
धुक्षीष्ठाः धुक्षीयास्थाम् धुक्षीध्वम्
धुक्षीय धुक्षीवहि धुक्षीमहि श्व० दोग्धा दोग्धारौ दोग्धारः
दोग्धासे दोग्धासाथे दोग्धाध्वे
दोग्धाहे दोग्धास्वहे दोग्धास्महे भ० धोक्ष्यते धोक्ष्येते धोक्ष्यन्ते
धोक्ष्यसे धोक्ष्येथे धोक्ष्यध्वे धोक्ष्ये
धोक्ष्यावहे धोक्ष्यामहे क्रि० अधोक्ष्यत अधोक्ष्येताम् अधोक्ष्यन्त
अधोक्ष्यथाः अधोक्ष्येथाम् अधोक्ष्यध्वम् अधोक्ष्ये अधोक्ष्यावहि अधोक्ष्यामहि
११२८. दिहीक् (दिह्) लेपे। व० देग्धि
दिग्धः दिहन्ति स० दिह्यात् दिह्याताम्
प० देग्धि/दिग्धात् दिग्धाम् दिहन्तु ह्य० अधेक्/ग् अदिग्धाम् अदिहन् अ० अधिक्षत अधिक्षताम् प० दिदेह दिदिहतु आ० दिह्यात् दिह्यास्ताम् दिह्यासुः श्व० देग्धा देग्धारौ भ० धोक्ष्यति धोक्ष्यतः धोक्ष्यन्ति क्रि० अधोक्ष्यत् अधोक्ष्यताम् अधोक्ष्यन् व० दिग्धे दिहाते स० दिहीत दिहीयाताम् प० दिग्धाम् दिहाताम्
दिहताम ह्य० अदिग्ध
अदिहाताम्
अदिहत अ० अदिग्ध/अधिक्षत अधिक्षताम् अधिक्षन्त प० दिदिहे दिहाते दिदिहिरे आ० धिक्षीष्ट धिक्षीयास्ताम् धिक्षीरन् श्व० देग्धा
देग्धारौ देग्धारः भ० धोक्ष्यते धोक्ष्येते धोक्ष्यन्ते क्रि० अधोक्ष्यत अधोक्ष्येताम् अधोक्ष्यन्त
११२९. लिहीक् (लिह्) आस्वादने। व० लेढि लिढः लिहन्ति लेक्षि
लीढः लेसि
लिमः स० लिह्यात् लिह्याताम्
लिह्याः लिह्यातम् लिह्यात
लिह्याम् लिह्याव लिह्याम प० लेदु/लिढात्
लीहन्तु लीढि/लीढात लीढम्
लीढ लेहानि लेहाव
लेहाम ह्य० अलेड्/ट् अलीढाम्
अलिहन् अलेड्/ट अलीढम् अलीढ अलेहम् अलिह्व
अलिम
लीढ
लिह्वः
लियुः
लीढाम्
दिहयुः
Page #318
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
301
अलिक्षन् अलिक्षत अलिक्षाम
लिलिहुः
लिलिहतु लिलिहथुः
लिलिह लिलिहिम
लिह्यासुः
लिह्यास्त लिह्यास्म
लेढारः
लेक्ष्ये
'अ० अलिक्षत
अलिक्षताम् अलिक्षः
अलिक्षतम् अलिक्षम्
अलिक्षाव प० लिलेह
लिलिहिथ लिलेह लिलिहिव आ० लिह्यात् लिह्यास्ताम् लिह्याः लिह्यास्तम्
लिह्यासम् लिह्यास्व श्व० लेढा लेढारौ
लेढासि लेढास्थः
लेढास्मि लेढास्वः भ० लेक्ष्यति लेक्ष्यतः
लेक्ष्यसि लेक्ष्यथ:
लेक्ष्यामि लेक्ष्याव: क्रि० अलेक्ष्यत् अलेक्ष्यताम्
अलेक्ष्यः अलेक्ष्यतम्
अलेक्ष्यम् अलेक्ष्याव व० लीढे
लिहाते लिक्षे
लिहाथे लिहे लिह्वहे स० लिहीत लिहीयाताम्
लिहीथाः लिहीयाथाम्
लिहीय लिहीवहि प० लीढाम् लिहाताम् लिक्ष्व लिहाथाम् लेहै
लिहावहै ह्य० अलीढ अलिहाताम्
अलीढाः अलिहाथाम
अलिहि अलिहि अ० अलीढ/अलिक्षत अलिक्षाताम्
लेढास्थ लेढास्मः लेक्ष्यन्ति लेक्ष्यथ लेक्ष्यामः अलेक्ष्यन् अलेक्ष्यत अलेक्ष्याम लिहते लिग्ध्वे लिरहे लिहीरन् लिहीध्वम् लिहीमहि लिहताम् लिहरडूवम लिहामहै
अलीढाः अलिक्षाथाम् अलिक्षध्वम्
अलिक्षि अलिक्षावहि अलिक्षामहि प० लिलिहे लिहाते लिलिहिरे
लिलिहिषे लिलिहाथे लिलिहिदवे/ध्वे
लिलिहे लिलिहिवहे लिलिहिमहे आ० लिक्षीष्ट लिलीयास्ताम् लिक्षीरन्
लिक्षीष्ठाः लिक्षीयास्थाम् लिक्षीध्वम्
लिक्षीय लिक्षीवहि लिक्षीमहि श्व० लेढा
लेढारी
लेढार: लेढासे लेढासाथे लेढाध्वे
लेढाहे लेढास्वहे लेढास्महे भ० लेक्ष्यते लेक्ष्येते
लेक्ष्यन्ते लेक्ष्यसे लेक्ष्येथे लेक्ष्यध्वे
लेक्ष्यावहे लेक्ष्यामहे क्रि० अलेक्ष्यत अलेक्ष्येताम् अलेक्ष्यन्त
अलेक्ष्यथाः अलेक्ष्येथाम् अलेक्ष्यध्वम् अलेक्ष्ये अलेक्ष्यावहि अलेक्ष्यामहि
॥अथादाद्यन्तर्गणो हादिः।। ११३०. हुक् (हु) दानादनयोः।
दानमत्र हविप्रक्षेपः। अदनं भक्षणम्। | व० जुहोति जुहुतः
जुहुथ:
जुहुथ जुहोमि जुहुव:
जुहुमः स० जुहुयात् जुहुयाताम् जुहुयायुः
जुहुयाः जुहुयातम् जुहुयात
जुहुयायम् जुहुयाव जुहुयाम जु० जुहोतु/जुहुतात् जुहुताम् जुह्वतु जुहुधि/जुहुतात् जुहुतम्
जुहुत जुहुवानि जुहवाव
जुहवाम ह्य० अजुहोत् अजुहुताम् अजुहवुः ____ अजुहोः अजुहुतम् अजुहुत
अजुहवम् अजुहुव अजुहुम | अ० अहौषीत् अहौष्टाम् अहौषुः
जुह्वन्ति
जुहोषि
अलिहत अलिग्ध्वम् अलिह्महि अलिक्षन्त
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
302
अहौषी:
अहौषम्
प० जुहवाञ्चकार जुहवाञ्चकर्थ
जुहवाञ्चक्रतुः
जुहवाञ्चक्रथुः
जुहवाञ्चकार/चकर जुहवाञ्चकृव
जुहवाबभूव/जुहवामास
जुहाव
आ० हूयात्
हूया :
हूयासम्
व० होता
होतासि
होतास्मि
भ० होष्यति
होष्यसि
होष्यामि
क्रि० अहष्यत्
अहोष्यः
अहोम्
व० जहाति
जहासि
जहामि
स० जह्यात्
जह्या:
ह्य० अजहात्
अजहा:
अष्टम्
अहौष्व
अजहाम्
अ० अहासीत्
तथा
जुहुवतुः
हूयास्ताम्
हूयास्तम्
हूयास्व
होतारौ
होतास्थः
होतास्वः
होष्यतः
होष्यथः
होष्यावः
अष्
अहौष्ट
अहौष्म
जुहवाञ्चक्रिरे
जुहवाञ्चक्र
जुहवाञ्चकृम
जह्याताम्
जह्यातम्
जह्याव
जुहुवुः,
हूयासुः
हूयास्त
हूयास्म
होतार:
अम्
अहोष्याव
अथादन्तोऽनिट् च ।
११३१. ओहांक् (हा) त्यागे।
जहित: जहीत:
जहिथः / जहीथः
जहिव: /जहीव:
इत्यादि ।
स्थ
होतास्मः
होष्यन्ति
होष्यथ
होष्यामः
अहोष्यन्
अहोष्यत
अहोष्याम
जह्यायम् प० जहातु / जहितात्/जहिताम् जहीतात्/जहीताम् जहतु जहाहि / जहीहि / जहिहि जहितम् / जहीतम् जहित / जहीत जहानि
जहाव
जहाम अजहिताम / अजहीताम् अजहुः अजहीतम्/अजहितम् अजहीत / अजहित
अजहिव/अजहीव अजहिम / अजहीम अहासिष्टाम्
अहासिषुः
जहति
जहिथ / जहीथ
जहिम: / जहीम:
जह्यायुः
जह्यात
जह्याम
अहासी:
अहासिष
ज० जहौ
जहिथ / जहाथ
जहौ
आ० यात्
हेया:
हेयासम्
श्व० हाता
हातास
हातास्मि
भ० हास्यति
हास्यसि
हास्यामि
क्रि० अहास्यत्
अहास्यः
अहास्यम्
व० बिभेति/बिभीत:
बिभेषि
बिभेमि
स० बिभियात्
बिभियाः
बिभियाम्
अहासष्टम्
अहासिष्व
ह्य० अबिभेत् (द्) अबिभे
जहतुः
जहथुः
जहिव
हेयास्ताम्
हेयास्तम्
हेयास्व
हातारौ
हातास्हः
हातास्वः
हास्यतः
हास्यथ: :
हास्याव:
तथा
बिभीयात्
बिभीयाताम्
बिभीयाः
बिभीयातम्
बिभीयाम्
बिभीयाव
प० बिभेतु/ बिभितात् बिभिताम्
बिभीतात् बिभीताम् बिभिहि / बिभितात् बिभितम् बिभीहि/बिभीतात् बिभीतम् बिभयानि
बिभयाव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अहासिष्ट
अहासिष्म
अहास्यताम्
अहास्यतम्
अहास्याव
अथेदन्तावनिटयै च ।
११३२. ञिभींक् (भी) भये ।
बिभित बिभिथ: / बिभीथः बिभिव: / बिभीवः बिभियाताम्
बिभियातम्
बिभियाव
जहुः
जह
जहिम
हेयासुः
हेयास्त
हेयास्म
हातार:
हातास्ह
हातास्मः
हास्यन्ति
हास्यथ
हास्यामः
अहास्यन्
अहास्यत
अहास्याम
बिभ्यति बिभिथ/बिभीथ
बिभिमः/बिभीमः
बिभियायुः
बिभियात
भयाम
बिभीयायुः
बिभीयात
बिभीयाम
बिभ्यतु
बिभित
बिभीत
बिभयाम
अबिभिताम् / अबिभीताम् अबिभयुः अबिभितम् अबिभित अबिभीतम्
अबिभीत
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
303
हीयासुः
भेतारः
भेष्यतः
अबिभयम् अबिभिव अबिभिम
अबिभीव अबिभीम अ० अभैषीत् अभैष्टाम् अभैषुः
अभैषीः अभैष्टम् अभैष्ट अभैषम् अभैष्व
अभैष्म प० बिभयाञ्चकार बिभयाञ्चक्रतुः बिभयाञ्चक्रिरे
बिभयाञ्चकर्थ बिभयाञ्चक्रथः बिभयाञ्चक्र बिभयाञ्चकार/चकर बिभयाञ्चकृव बिभयाञ्चकम
तथा बिभाय बिभ्यतुः बिभ्युः इत्यादि। आ० भीयात् भीयास्ताम्
भीयासुः भीयाः भीयास्तम्
भीयास्त भीयासम् भीयास्व भीयास्म श्व० भेता
भेतारौ भेतासि भेतास्थ:
भेतास्थ भेतास्मि भेतास्वः
भेतास्मः भ० भेष्यति
भेष्यन्ति भेष्यसि भेष्यथ::
भेष्यथ भेष्यामि भेष्याव:
भेष्यामः क्रि० अभेष्यत् अभेष्यताम् अभेष्यन् अभेष्यः
अभेष्यतम् अभेष्यत अभेष्यम् अभेष्याव अभेष्याम
११३३. ह्रींक (ह्री) लज्जायाम्। व० जिह्वेति जिह्रीतः जिहियति जिहेषि जिह्रीथः
जिहीथ जिहेमि जिह्रीवः जिहीमः स० जिहीयात् जिहीयाताम्
जिहीयायुः जिहीयाः जिहीयातम् जिहीयात
जिह्रीयम् जिहीयाव जिहीयाम प० जिहेतु/जिह्रीतात् जिह्रीताम् जिह्वतु
जिह्रीहि/जिहीतात् जिह्रीतम् जिहीत
जिह्वयाणि जियाव जिह्वयाम ह्य० अजिहेत् अजिह्रीताम् अजिहवुः
अजिह्वे: अजिह्रीतम् अजिहीत
अजिह्वयम् अजिह्रीव अजिहीम अ० अद्वैषीत्
अह्रष्टाम्
अद्वैषुः अद्वैषीः अहैष्टम् अद्वैष्ट
अद्वैषम् अह्रष्व
अद्वैष्म प० जिह्रयाञ्चकार जिह्रयाश्चक्रतुः जिह्रयाश्चक्रिरे
जिह्वयाञ्चकर्थ जियाञ्चक्रथुः जिह्वयाञ्चक जिह्रयाञ्चकार/चकर जिह्वयाञ्चकृव जिह्वयाञ्चकृम जिह्रयांबभूव/जिह्वयामास
तथा जिह्वाय
जिहियतुः जिहियुः, इत्यादि। आ० हीयात् ह्रीयास्ताम्
हीयाः हीयास्तम् ह्रीयास्त
हीयासम् हीयास्व हीयास्म श्व० हेता
रातारौ हेतारः हेतासि हृतास्हः
हृतास्ह हृतास्मि हेतास्वः हृतास्मः भ० हेष्यति हृष्यतः
हृष्यन्ति हेष्यसि हृष्यथः हृष्यथ
हेष्यामि हृष्यावः हृष्यामः क्रि० अहेष्यत्
अहेष्यताम् अहेष्यन् अहेष्यः अहेष्यतम् अहेष्यत अहेष्यम् अहृष्याव अहृष्याम
अथ ऋदन्तावनिटौ च।
११३४. पुंक् (पृ) पालनपूरणयोः। व० पिपर्ति पिपृतः
पिप्रति पिपर्षि पिपृथः पिपृथ
पिपर्मि पिपृवः स० पिपृयात् पिपृयाताम् पिपृयायुः
पिपृयाः पिपृयातम् पिपृयात
पिपृयम् पिपृयाव पिपृयाम प० पिपर्तु पिपृतात् पिताम् पिप्रतु पिपृहि/पिपृतात् पिपृतम्
पिपृत पिपराणि पिपराव पिपराम ह्य० अपिपः
अपिपृताम्
अपिपरुः अपिपः अपिपृतम् अपिपृत
पिपृमः
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
304
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अ० अपारीत्
अपारी:
अपारिषम् प० पपार
पपरिथ
पपार/पपर आ० पूर्यात्
पूर्याः
परितार:
पूर्यासम् श्व० परिता
परितासि
परितास्मि भ० परिष्यति
परिष्यसि परिष्यामि
अपिपरम् अपिपृव अपिपृम अ० अपार्षीत् अपार्टाम् अपार्षुः
अपार्षीः अपाटम् अपाष्ट
अपार्षम् अपार्श्व अपाम प० पपार
पप्रतुः पपर्थ
पप्रथुः पपार/पपर पप्रिव
पप्रिम आ० प्रियात् प्रियास्ताम् प्रियासुः
प्रियाः प्रियास्तम् प्रियास्त
प्रियासम् प्रियास्व प्रियास्म श्व० पर्ता पर्तारौ
पत्रः पर्तासि पस्थि : पस्थि
पर्तास्म पर्तास्वः पस्मिः भ० परिष्यति परिष्यतः परिष्यन्ति
परिष्यसि परिष्यथः परिष्यथ
परिष्यामि परिष्याव: परिष्यामः क्रि० अपरिष्यत् अपरिष्यताम् अपरिष्यन्
अपरिष्यः अपरिष्यतम् अपरिष्यत अपरिष्यम्
अपरिष्याम ऋदन्तोऽयं सेट् इत्येके (प) व० पिपर्ति पिपूर्तः पिपुरति
पिपर्षि पिपूर्थः पिपूर्थ
पिपर्मि पिपूर्वः पिपूर्मः स० पिपूर्यात् पिपूर्याताम् पिपूर्युः
पिपूर्याः पिपूर्यातम् पिपूर्यात
पिपूर्याम् पिपूर्याव पिपूर्याम प० पिपर्तु/पिपूर्तात् पिपूर्ताम्
पिपूर्हि/पिपूर्तात् पिपूर्तम् पिपूर्त पिपराणि पिपराव पिपराम ह्य० अपिपः अपिपूर्ताम् अपिपरुः
अपिपः अपिपूर्तम् अपिपूर्त अपिपरम् अपिपूर्व अपिपूर्म
1.} AFFAIRS 1 1 1 1 3 3. 4. 1 ३.३.३
अपारिष्टाम् अपारिषुः अपारिष्टम् अपारिष्ट अपारिष्व अपारिष्म पप्रतुः/पपरतुः पप्रुः/पपरु: पप्रथुः/पपरथुः पप्र/पपर पपरिव/पप्रिव पपरिम/पप्रिम पूर्यास्ताम् पूर्यासुः पूर्यास्तम् पूर्यास्त पूर्यास्व पूर्यास्म परितारौ परितास्थः परितास्थ परितास्वः
परितास्मः परिष्यतः परिष्यन्ति परिष्यथ:
परिष्यथ परिष्याव: परिष्यामः
तथा परीष्यतः, इत्यादि। अपरिष्यताम् अपरिष्यन् अपरिष्यतम् अपरिष्यत अपरिष्याव अपरिष्याम
परीष्यति क्रि० अपरिष्यत्
अपरिष्यः अपरिष्यम्
तथा
अपरीष्यत्
अपरीष्यताम्, इत्यादि। ११३५. 5क् (ऋ) गतौ।
व० इयर्ति
इयर्षि
इयूति इयर्थ इय॒मः इय॒युः इययात
पिपरतु
इयतः इयथः इयवः इयूयाताम् इय्यातम् इय्याव इयताम् इय॒तम् इयराव ऐयताम्
इयर्मि स० इययात्
इययाः
इय्याम् प० इयर्तु/इय॒तात्
इयहि/इयतात्
इयराणि ह्य० ऐयः
इययाम
इयत
इयराम
ऐयरु:
Page #322
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
ऐयः ऐयरम्
अ० आरत्
आर:
आरम्
आर्षीत्
आर्षीः
आर्षम्
प० आर
आरिथ
आर
आ० अर्यात्
अर्याः
अर्यासम्
श्व० अर्त्ता
अर्त्तासि
अर्त्तास्म
भ० अरिष्यति
अरिष्यसि
अरिष्यामि
क्रि० आरिष्यत्
आरिष्यः
आरिष्यम्
व० जिहीते
जिहीषे
जिहे
स० जिहीत
जिहीथा:
जिहीय
प० जिहीताम्
ऐयूतम्
ऐयूव
आरताम्
आरतम्
आराव
तथा
आम्
आष्टम्
आ
आरतुः
आरथुः
आरिव
अर्यास्ताम्
अर्यास्तम्
अर्यास्व
अर्त्तारौ
अर्त्तास्थः
अर्त्तास्वः
अरिष्यतः
अरिष्यथः
अरिष्यावः
आरिष्यताम्
आरिष्यतम्
आरिष्याव
।। अथात्मनेपदिनावादन्तावनिटौ च ।।
११३६. ओहांड्क् (हा) गतौ ।
ऐयृत
ऐयम
आरन्
आरत
आराम
जिहाते
जिहाथे
जिहीवहे
आर्षुः
आष्ट
आम
आरुः
आर
आरिम
अर्यासुः
अर्यास्त
अर्यास्म
अर्त्तारः
अर्त्तास्थ
अर्त्तास्मः
अरिष्यन्ति
अरिष्यथ
अरिष्यामः
आरिष्यन्
आरिष्यत
आरिष्याम
जिहते
जिहीध्वे
जिहीमहे
जिहीयाताम् जिहीरन्
जिहीयाथाम् जिहीध्वम्
जिहीवहि
जिहीमहि
जिहीताम्
जिहीन्ताम
जिहीस्व
जिहै
ह्य० अजिहीत
अजिहीथाः
अजिही
अ० अहास्त
अहास्थाः
अहासि
प० जहे
जहि
जहे
आ० हासीष्ट
हासीष्ठाः
हासीय
श्व० हाता
हाता
हाता
भ० हास्यते
हास्यसे
हास्ये
क्रि० अहास्यत
अहास्यथाः
अहास्ये
व० मिमीते
स० मिमीत
प० मिमीताम्
ह्य० अमिमीत
अ० आमास्त
प० ममे
आ० मासीष्ट
श्व० माता
जिहीथाम
जिहा है
अजिहीताम्
अजिहीथाम
अजिहीवहि
अहासाताम्
अहासाथाम्
अहास्वहि
जहाते
जहा
जहिवहे
हासीयास्ताम्
हासीयास्थाम्
हासीवहि
हातारौ
हातासाथे
हातास्व
हास्ये
हास्येथे
जिहीध्वम
जिहाम है
हातार:
हाताध्वे
हातास्मि
हास्यन्ते
हास्यध्वे
हास्यव
हास्यामहे
अहास्येताम्
अहास्यन्त
अस्था
अहास्यध्वम्
अहास्यावहि अहास्यामहि
११३७. माक् (मा) मानशब्दयोः ।
मिमाते.
मिमीयाताम्
मिमिताम्
अमिमाताम्
अमासाताम्
ममाते
अजिहीन्त
अजिहीध्वम्
अजिहीमहि
अहासत
मासीयास्ताम्
मातारौ
अहाध्वम्/अहाध्ववम्
अहम
जहिरे
जहिध्वे / वे
हिम
हासीरन्
हासी ध्वम्
हासमिहि
मिमते
मिमीरन्
मिमताम्
अमिमन
305
अमासत
ममिरे
मासीरन्
मातार:
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
306
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अदास्यतम्
अदास्यत
अदास्यः
अदास्यम् व० दत्ते
अदास्याव
अदास्याम
ददाते
दत्से
ददाथे दद्वहे
ददते ददध्ये दद्महे
ददति
दे
दत्थ
स० ददीत
ददीथाः
ददीयाताम् ददीयाथाम् ददीवहि
ददीरन् ददीध्वम् ददीमहि
दद्युः
ददीय
प० दत्ताम्
ददाताम्
दत्स्व
ददताम् दद्ध्वम् ददामहै
ददतु
ददाथाम् ददावहै
ददै
दत्त
ह्य० अदत्त
अददाताम्
अददत
अदत्थाः
अदद्ध्वम् अदद्महि
अददि
भ० मास्यते मास्येते
मास्यन्ते क्रि० अमास्यत अमास्येताम् अमास्यन्त
अथोभयपदिन: षडनिटश्च तत्रादन्तौ।
११३८. डुदांग्क् (दा) दाने। व० ददाति
दत्तः ददासि
दत्थः ददामि
दद्यः स० दद्यात्
दद्याताम् दद्याः दद्यातम्
दद्यात दद्याम् दद्याव
दद्याम प० ददातु/दत्तात् दत्ताम् देहि/दत्तात्
दत्तम् ददानि ददाव
ददाम ह्य० अददात्
अदत्ताम्
अददुः अददाः अदत्तम्
अदत्त अददाम् अदद्व
जदद्म अ० अदात्
अदाताम् अदुः अदा: अदातम्
अदात अदाम् अदाव
अदाम प० ददौ
ददतुः ददुः ददिथ/ददाथ
ददथुः दद/ददौ ददिव आ० देयात्
देयास्ताम् देयास्तम् देयास्त
देयास्व देयास्म श्व० दाता
दातारौ दातारः दातासि दातास्वः
दातास्ह दातास्मि दातास्वः दातास्मः भ० दास्यति दास्यतः दास्यन्ति दास्यसि दास्यथः:
दास्यथ दास्यामि
दास्याव: दास्यामः क्रि० अदास्यत्
अदास्यताम् अदास्यन्
अ० अदित
अदिथाः
अददाथाम् अदद्वहि अदिषाताम् अदिषाथाम् अदिष्वहि
अदिषत् अदिड्डूवम्/वम् अदिष्महि
अदिषि
ददाते
ददिरे
प० ददे
ददिषे
दद
ददिम देयासुः
आ० दासीष्ट दासीष्ठाः दासीय
ददिध्वे ददिमहे दासीरन् दासीध्वम् दासीमहि
देयाः
देयासम्
दातार:
श्व० दाता
दातासे
दाताहे भ० दास्यते
दास्यसे
ददाथे ददिवहे दासीयास्ताम् दासीयास्थाम् दासीवहि दातारौ दातासाथे दातास्वहे दास्येते दास्येथे दास्यावहे अदास्येताम्
दाताध्वे दातास्मिहे दास्यन्ते
दास्यध्वे
दास्ये
दास्यामहे
क्रि० अदास्यत
अदास्यन्त
Page #324
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
307
बिभ्यात बिभृयाम
बिभ्रतु
बिभृत
धत्तः
बिभृयाः बिभृयातम्
बिभृयम् बिभृयाव प० बिभर्तु/बिभृतात् बिभृताम्
बिभृहि/बिभृतात् बिभृतम्
बिभराणि बिभराव ह्य० अबिभः अबिभृताम्
अबिभः अबिभृतम् अबिभरम्
अबिभृव अ० अभार्षीत् अभाष्र्टाम्
अभार्षीः अभाटम्
अभार्षम् अभा@ प० बिभराञ्चकार बिभराञ्चकतुः
बिभराम अबिभरुः अबिभृत अबिभृम अभार्षः अभाट अभाग़ बिभराञ्चक्रुः, इ०
दधुः धेयासुः
धेयास्ताम्
तथा
बभ्रतुः
बभ्रुः बभ्र
अधास्यन्
बभ्रथुः
अदास्यथाः अदास्येथाम् अदास्यध्वम् अदास्ये अदास्यावहि अदास्यामहि ११३९. डुधांग्क् (धा) धारणे च।
चकाराद्दाने। व० दधाति
दधति स० दध्यात् दध्याताम् दध्यायुः प० दधातु/धत्तात् धत्ताम्
दधतु ह्य० अदधात् अधत्ताम्
अदधुः अ० अधात् अधाताम् अधुः प० दधौ
दधतुः आ० धेयात् श्व० धाता
धातारौ
धातारः भ० धास्यति
धास्यतः धास्यन्ति क्रि० अधास्यत्
अधास्यताम् व० दधत्ते दधाते
दधते स० दधीत दधीयाताम् दधीरन् प० धत्ताम्
दधाताम्
दधताम् ह्य० अधत्त अदधाताम् अदधत अ० अधित अधिषाताम् अधिषत् प० दधे
दधाते
दधिरे आ० धासीष्ट धासीयास्ताम् धासीरन श्व० धाता
धातारौ
धातार: भ० धास्यते धास्येते
धास्यन्ते क्रि० अधास्यत अधास्येताम् अधास्यन्त
अथ ऋदन्तः। ११४०. टुडुभृग्क् (भ) भोषणे च।
चकाराद्धारणे। व० बिभर्ति
बिभ्रति बिभर्षि बिभृथ: बिभृथ
बिभर्मि बिभृवः बिभृमः स० बिभृयात् बिभृयाताम् बिभृयुः
बभृम भ्रियासुः भ्रियास्त
बभार बभर्थ
बभार/बभर आ० भ्रियात्
भ्रियाः
भ्रियासम् श्व० भर्ता
भर्त्तासि
भर्त्तास्म भ० भरिष्यति
भरिष्यसि
भरिष्यामि क्रि० अभरिष्यत्
अभरिष्यः
अभरिष्यम् व० बिभृते
बिभृषे
बभृव भ्रियास्ताम् भ्रियास्तम् भ्रियास्व भर्तारौ भर्तास्थः भर्तास्वः भरिष्यतः
भरिष्यथ:
भरिष्याव: अभरिष्यताम् अभरिष्यतम् अभरिष्याव बिभ्राते बिभ्राथे बिभृवहे बिभ्रीयाताम् बिभ्रीयाथाम् बिभ्रीवहि
भ्रियास्म भर्तारः भर्तास्थ भस्मिः भरिष्यन्ति भरिष्यथ भरिष्यामः अभरिष्यन् अभरिष्यत अभरिष्याम बिभ्रते बिभृध्वे बिभृमहे बिभ्रीरन् बिभ्रीध्वम् बिभ्रीमहि
बिभृतः
बिभ्रे
स० बिभ्रीत
बिभ्रीथाः बिभ्रीय
Page #325
--------------------------------------------------------------------------
________________
308
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
नेनिज्याम नेनिजतु नेनिक्त नेनिजाम अनेनिजुः अनेनिक्त अनेनिज्म अनिजन् अनिजत अनिजाम
अभृषि
नेनिज्याम् नेनिज्याव | प० नेनेक्तु/नेनिक्तात् नेनिक्ताम्
नेनिग्धि/नेनिक्तात् नेनिक्तम्
नेनिजानि नेनिजाव ह्य० अनेनेक्/अनेनेग् अनेनिक्ताम्
अनेनेक्/अनेनेग् अनेनिक्तम्
अनेनिजम् अनेनिज्व अ० अनिजत् अनिजताम्
अनिजः अनिजतम् अनिजम् अनिजाव
तथा अ० अनैक्षीत् अनक्ताम्
अनैक्षीः अनैक्तम्
अनैक्षम् अनैक्ष्व प० निनेज निनेजिथ
निनिजथुः निनेज
निनिजिव आ० निज्यात् निज्यास्ताम्
निज्याः निज्यास्तम्
निज्यासम् निज्यास्व श्व० नेक्ता नेक्तारौ
नेक्तासि नेक्तास्थः
नेक्तास्मि नेक्तास्वः भ० नेक्ष्यति नेक्ष्यतः
नेक्ष्यसि नेक्ष्यथ:
बभ्रे
प० बिभृताम् बिभ्राताम् बिभ्रताम्
बिभृष्व बिभ्राथाम् बिभृध्वम्
बिभरै बिभरावहै बिभरामहै ह्य० अबिभत अबिभ्राताम् अबिभ्रत
अबिभृथाः अबिभ्राथाम अबिभृध्वम्
अबिभ्रि अबिभृवहि अबिभृमहि अ० अभृत अभृषाताम् अभृषत अभृथाः अभृषाथाम् अभृडूवम्/ध्वम्
अभृष्वहि अभृष्महि प० बिभराञ्चके बिभराञ्चक्राते बिभराञ्चक्रिरे, इ०
बभ्राते
बभ्रिरे बभृषे बभ्राथे बभृट्वे
बभृवहे बभृमहे आ० भृषीष्ट भृषीयास्ताम् भृवीरन्
भृषीष्ठाः भृषीयास्थाम् भृषीध्वम्
भृषीय भृषीवहि भृषीमहि श्व० भर्ता भर्तारौ भर्तारः भर्त्तासे
भर्त्तासाथे भर्त्ताध्वे भर्ताहे
भर्तास्वहे भर्तास्महे भ० भरिष्यते भरिष्येते भरिष्यन्ते
भरिष्यसे भरिष्येथे भरिष्यध्वे
भरिष्ये भरिष्यावहे भरिष्यामहे क्रि० अभरिष्यत अभरिष्येताम् अभरिष्यन्त
अभरिष्यथाः अभरिष्येथाम् अभरिष्यध्वम् अभरिष्ये अभरिष्यावहि अभरिष्यामहि
अथ जान्तौ ११४१. णिजुकी (निज्) शौचे च चकारात्पोषणे। व० नेनेक्ति नेनिक्तः नेनिजति
नेनेक्षि नेनिक्थ: नेनज्मि
नेनिज्मः स० नेनिज्यात्
नेनिज्याताम्
नेनिज्युः नेनिज्याः नेनिज्यातम्
निनिजतुः
अनेक्षुः अनैक्त अनैक्ष्म निनिजुः निनिज निनिजिम निज्यासुः निज्यास्त निज्यास्म नेक्तारः नेक्तास्थ नेक्तास्मः नेक्ष्यन्ति नेक्ष्यथ नेक्ष्यामः अनेक्ष्यन् अनेक्ष्यत अनेक्ष्याम नेनिजते नेनिग्ध्वे नेनिज्महे नेनिजीरन् नेजीनिग्ध्वम् नेनिजीमहि नेनिजताम्
नेक्ष्यामि
नेक्ष्याव:
क्रि० अनेक्ष्यत्
अनेक्ष्यः
अनेक्ष्यम् व० नेनिक्ते
नेनिक्षे
नेनिजे स० नेनिजीत
नेनिजीथाः
नेनिजीय | प० नेनिक्ताम्
अनेक्ष्यताम् अनेक्ष्यतम् अनेक्ष्याव नेनिजाते नेनिजाथे नेनिज्वहे नेनिजीयाताम् नेनिजीयाथाम् नेनिजीवहि नेनिजाताम्
नेनिक्थ
नेनिज्वः
नेनिज्यात
Page #326
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
309
वेविक्त
वेविजाम अवेविजुः
ह्य०
अवविक्त अवेविज्म अविजन अविजत अविजाम
अविजः
म्
अवैक्षुः अवैक्त अवैक्ष्म
विविजुः
विवेज
नेनिक्ष्व नेनिजाथाम्
नेनिग्ध्वम् नेनिजै नेनिजावहै नेनिजामहै ह्य० अनेनिक्त अनेनिजाताम् अनेनिजत
अनेनिक्थाः अनेनिजाथाम् अनेनिग्ध्वम्
अनेनिजि अनेनिज्वहि अनेनिज्महि अ० अनिक्त अनिक्षाताम् अनिक्षत
अनिक्थाः अनिक्षाथाम् अनिग्ध्वम्/ग्ड्ढ्व
अनिक्षि अनिश्वहि अनिक्ष्महि प० निनिजे निनिजाते निनिजिरे
निनिजिषे निनिजाथे निनिजिध्वे
निनिजे निनिजिवहे निनिजिमहे आ० निक्षीष्ट निक्षीयास्ताम् निक्षीरन् निक्षीष्ठाः
निक्षीयास्थाम् निक्षीध्वम् निक्षीय निक्षीवहि निक्षीमहि श्व० नेक्ता . नेक्तारौ नेक्तारः
नेक्तासे नेक्तासाथे नेक्ताध्वे
नेक्ताहे नेक्तास्वहे नेक्तास्मिहे भ० नेक्ष्यते नेक्ष्येते
नेक्ष्यन्ते नेक्ष्यसे नेक्ष्येथे नेक्ष्यध्वे
नेक्ष्यावहे नेक्ष्यामहे क्रि० अनेक्ष्यत अनेक्ष्येताम् अनेक्ष्यन्त
अनेक्ष्यथाः अनेक्ष्येथाम् अनेक्ष्यध्वम् अनेक्ष्ये अनेक्ष्यावहि अनेक्ष्यामहि
११४२. विजुकी (विज्) पृथग्भावे। व० वेविक्ति वेविक्तः वेविजति वेवेक्षि
वेविक्थः वेविक्थ वेवज्मि
वेवज्मिः स० वेविज्यात्
वेविज्याताम् वेविज्याः वेविज्यातम्
वेविज्यात वेविज्याम् वेविज्याव
वेविज्याम प० वेवेक्तु/वेविक्तात् वेविक्ताम् वेविजतु
वेविग्धि/वेविक्तात् वेविक्तम् वेविजानि वेविजाव अवेवेक्/अवेवेग् अवेविक्ताम् अवेवेक्/अवेवेग अवेविक्तम्
अवेविजम् अवेविज्व अ० अविजत् अविजताम्
अविजतम् अविजम् अविजाव
तथा अ० अवैक्षीत् अवक्ताम् अवैक्षीः
अवैक्तम् अवैक्षम् अवैश्व प० विवेज विविजतुः विवेजिथ विविजथुः
विविजिव आ० विज्यात् विज्यास्ताम्
विज्या: विज्यास्तम्
विज्यासम् विज्यास्व श्व० वेक्ता
वेक्तारौ वेक्तासि वेक्तास्थः
वेक्तास्मि वेक्तास्व: भ० वेक्ष्यति
वेक्ष्यसि
वेक्ष्यामि वेक्ष्याव: क्रि० अवेक्ष्यत्
अवेक्ष्यताम् अवेक्ष्यः
अवेक्ष्यतम् अवेक्ष्यम् अवेक्ष्याव व० वेविक्ते वेविजाते
वेविजाथे वेविजे वेविज्वहे स० वेविजीत वेविजीयाताम्
वेविजीथाः वेविजीयाथाम्
वेविजीय वेविजीवहि प० वेविक्ताम्
वेविजाताम् वेविश्व वेविजाथाम्
वेक्ष्यतः वेक्ष्यथः
नेक्ष्ये
विविज विविजिम विज्यासुः विज्यास्त विज्यास्म वेक्तारः वेक्तास्थ वेक्तास्मः वेक्ष्यान्त वेक्ष्यथ वेक्ष्यामः अवेक्ष्य अवेक्ष्यत अवेक्ष्याम वेविजते वेविग्ध्वे वेविज्महे वेविजीरन् वेविजीग्ध्वम् वेविजीमहि वेविजताम्
वेविक्षे
वेवज्वः
वेविज्युः
वेविग्ध्वम्
F
Page #327
--------------------------------------------------------------------------
________________
310
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अविषतम्
विविषतुः
वेक्तार:
____ वेविजै वेविजावहै वेविजामहै
वेविड्डि/ष्टात् वेविष्टम् ह्य० अवविक्त अवेविजाताम अवेविजत
वेविषाणि वेविषाव अवेविक्थाः अवेविजाथाम् अवेविग्ध्वम्
| ह्य० अवेवेट्/अवेवेड् अवेविष्टाम्
अवेवेट्/अवेवेड् अवेविष्टम् अवेविजि अवेविज्वहि अवेविज्महि
अवेविषम् अवेविष्व अ० अविक्त अविक्षाताम् अविक्षत
| अ० अविषत् अविषताम् अविक्था: अविक्षाथाम् अविग्ध्वम्/ड्ढ्वम्
अविषः अविक्षि अविश्वहि अविक्ष्महि
अविषम अविषाव प० विविजे विविजाते विविजिरे प० विवेष विविजिषे विविजाथे विविजिध्वे
विवेषिथ विविषथुः विविजे विविजिवहे विविजिमहे
विवेष विविषिव आ० विक्षीष्ट विक्षीयास्ताम् विक्षीरव्
आ० विष्यात्
विष्यास्ताम्
विष्याः विष्यास्तम् विक्षीष्ठाः विक्षीयास्थाम् विक्षीध्वम्
विष्यासम् विष्यास्व विक्षीय विक्षीवहि विक्षीमहि
श्व० वेष्टा
वेष्टारौ श्व० वेक्ता वेक्तारौ
वेष्टासि वेष्टास्थः वेक्तासे वेक्तासाथे वेक्ताध्वे
वेष्टास्मि वेष्टास्वः वेक्ताहे वेक्तास्वहे वेक्तास्मिहे भ० वेक्ष्यति भ० वेक्ष्यते वेक्ष्येते वेक्ष्यन्ते
वेक्ष्यसि वेक्ष्यथ: वेक्ष्यसे वेक्ष्येथे वेक्ष्यध्वे
वेक्ष्यामि वेक्ष्यावः वेक्ष्ये वेक्ष्यावहे वेक्ष्यामहे
क्रि० अवेक्ष्यत्
अवेक्ष्यताम्
अवेक्ष्यतम् क्रि० अवेक्ष्यत अवेक्ष्येताम् अवेक्ष्यन्त
अवेक्ष्यम् अवेक्ष्याव अवेक्ष्यथाः अवेक्ष्येथाम् अवेक्ष्यध्वम्
व० वेविष्टे वेविषाते अवेक्ष्ये अवेक्ष्यावहि अवेक्ष्यामहि
वेविक्षे वेविषाथे अथा पान्तः।
वेविषे वेविष्वहे ११४३. विष्लूकी (विष्) व्याप्तौ।
स० वेविषीत व० वेवेष्टि वेविष्टः वेविषति
वेषीविथाः
वेविषीयाथाम् वेवेक्षि वेविष्टः वेविष्ट
वेविषीय वेविषीवहि वेवेष्मि वेविष्वः वेविष्मः
प० वेविष्टाम् वेविषाताम् स० वेविष्यात् वेविष्याताम्
वेविश्व वेविषाथाम् वेविष्याः वेविष्यातम् वेविष्यात
वेविषावहै वेविष्याम् वेविष्याव वेविष्याम
ह्य० अवेविष्ट अवेविषाताम् प० वेवेष्टु/वेविष्टात् वेविष्टाम्
अवेविष्ठाः अवेविषाथाम् .
वेविष्ट वेविषाम अवेविषुः अवेविष्ट अवेविष्म अविषन् अविषत अविषाम विविषुः विविष विविषिम विष्यासुः
यास्त विष्यास्म वेष्टारः वेष्टास्थ वेष्टास्मः वेक्ष्यन्ति वेक्ष्यथ वेक्ष्यामः अवेक्ष्यन् अवेक्ष्यत अवेक्ष्याम वेविषते वेविड्दवे वेविष्महे वेविषीरन् वेविषिध्वम् वेविषीमहि वेविषताम् वेविड्ढ्वम् वेविषामहै अवेविषत अवेविड्ढ्वम्
वेक्ष्यतः
अवेक्ष्यः
वेविषीयाताम्
वेविष्युः
वेविषै
वेविषतु
Page #328
--------------------------------------------------------------------------
________________
अदादिगण
311
-
जघ्रतुः
जघुः
जघ्रथुः
घ्रियास्म
अवेविषि अवेविष्वहि अवेविष्महि
अजिघः अजिघृतम् अजिघृत अ० अविक्षत अविक्षाताम् अविक्षन्त
अजिघरम् अजिघृव अजिघृम अविक्षथाः अविक्षाथाम् अविक्षध्वम्
अ० अघार्षीत् अघाटाम् अघार्षः अविक्षि अविक्षावहि अविक्षामहि
अघार्षीः अघाटम्
अघाट प० विविषे विविषाते विविषिरे
अघार्षम् अघार्च
अघाम विविषिधे विविषाथे विविषिध्वे
प० जघार विविषे विविषिवहे विविषिमहे
जघर्थ
जघ्र आ० विक्षीष्ट विक्षीयास्ताम् विक्षीरन् विक्षीष्ठाः
जघार/जघर जघ्रिव
जघ्रिम विक्षीयास्थाम् विक्षीध्वम् विक्षीय विक्षीवहि विक्षीमहि
| आ० घ्रियात् घ्रियास्ताम् घ्रियासुः श्व० वेष्टा वेष्टारौ वेष्टारः
घ्रियाः घ्रियास्तम्
घ्रियास्त वेष्टासे वेष्टासाथे वेष्टाध्वे
घ्रियासम् घ्रियास्व वेष्टाहे वेष्टास्वहे वेष्टास्महे श्व० घर्ता घारौ
घरिः भ० वेक्ष्यते वेक्ष्येते वेक्ष्यन्ते
धर्तासि घर्तास्थः घर्तास्थ वेक्ष्यसे वेक्ष्येथे वेक्ष्यध्वे
घस्मि घर्त्तास्वः घस्मिः वेक्ष्ये वेक्ष्यावहे वेक्ष्यामहे
भ० घरिष्यति घरिष्यतः घरिष्यन्ति क्रि० अवेक्ष्यत अवेक्ष्येताम् अवेक्ष्यन्त
घरिष्यसि घरिष्यथ: घरिष्यथ अवेक्ष्यथाः अवेक्ष्येथाम् अवेक्ष्यध्वम्
घरिष्यामि घरिष्यावः अवेक्ष्ये अवेक्ष्यावहि अवेक्ष्यामहि
क्रि० अघरिष्यत् अघरिष्यताम् अघरिष्यन् इत्युभयपदिनः। वृत् ह्वादयः। समाप्ता इत्यर्थः। केचित्तु | परानपि एकादश धातूनत्राभिदधति। अलौकित्वाल्लोकोत्तमै
अघरिष्यः अघरिष्यतम् अघरिष्यत रुपेक्षितानामप्येषां विनेयानुग्रहार्थं रूपाणि नामग्राहं दर्श्यन्ते। अघरिष्यम् अघरिष्याव अघरिष्याम ११४३-२. ग्रंक् (घ) क्षरणदीप्त्योः ।
११४३-३. हंक (ह) प्रसाकरणे। व० जिघर्ति
जिघ्रति .
व जिहति जिहृतः जिहति जिघर्षि जिघृथः . जिघृथ
स० जिहयात् जिहयाताम् जिहयुः जिघर्मि जिघृवः
प० जिहर्तु/जिहतात् जिहताम् स० जिघृयात् जिघृयाताम्
ह्य० अजिहः अजिहताम् अजिहरु: जिघृयाः जिघृयातम् जिघृयात
अ० अहार्षीत् अहाम् अहार्युः जिघृयाम् जिघृयाव जिघृयाम
प० जहार प० जिघर्तु जिघृतात् जिघृताम्
आ० हियात् ह्रियास्ताम् ह्रियासुः
श्व० हर्ता हर्तारौ - जिघृहि/जिघृतात् जिघृतम्
हरिः जिघराणि जिघराव जिघराम
भ० हरिष्यति हरिष्यतः हरिष्यन्ति ह्य० अजिघः अजिघृताम् अजिघरुः
क्रि० अहरिष्यत् अहरिष्यताम् अहरिष्यन्
mell1111rrrtt It!
घरिष्यामः
जिघृतः
जिहतु
जिघृमः जिघृयुः
जहतुः
जहुः
जिघ्रतु जिघृत .
Page #329
--------------------------------------------------------------------------
________________
312
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कीयासुः
चिकिततुः
चिकितुः
बप्स्युः बप्सतु
११४३-४. संक् (स) गतौव० ससति ससृतः
सस्त्रति स० सहयात् सहयाताम् ससृयुः प० ससर्तु/ससृतात् ससृताम् सस्रतु ह्य० असस: अससृताम् अससरु: अ० असार्षीत् असाष्टीम् असाएः प० ससार सस्रतुः सस्रुः आ० स्त्रियात् स्रियास्ताम् स्रियासुः श्व० सर्ता सर्तारौ सतरः भ० सरिष्यति सरिष्यतः सरिष्यन्ति क्रि० असरिष्यत् असरिष्यताम् असरिष्यन्
११४३-५. भसक् (भस्) भर्त्सनदीप्त्योः । व० बभस्ति बब्धः
बप्सति स० बप्स्यात् बप्स्याताम् प० बभस्तु/बब्धात् बब्धाम् ह्य० अबभत् अबब्धाम् अबप्सुः अ० अभासीत् अभासिष्टाम् अभासिषुः
तथा अभसीत् अभसिष्टाम् अभसिषुः प० बभास बप्सतुः बप्सुः आ० भप्स्यात् भप्स्यास्ताम् भप्स्यासुः श्व० भसिता भसितारौ भसितार: भ० भसिष्यति भसिष्यतः भसिष्यन्ति क्रि० अभसिष्यत् अभसिष्यताम् अभसिष्यन्
११४३-६. किंक् (कि) ज्ञाने। व० चिकेत्ति चिकित्तः चिक्तिति स० चिकियात् चिकियाताम् चिकियुः प० चिकेतु चिकितात्
चिकिताम् चिक्यतु ह्य० अचिकेत् अचिकिताम् अचिकयुः अ० अकैषीत् अकैष्टाम् प० चिकाय
आ० कीयात् कीयास्ताम् श्व० केता केतारौ
केतारः भ० केष्यति केष्यतः केष्यन्ति क्रि० अकेष्यत् अकेष्यताम् अकेष्यन्
११४३-७. कितक् (कित्) ज्ञाने। व० चिकेत्ति चिकित्तः चिकितति स० चिकित्यात् चिकित्याताम् चिकित्युः प० चिकेत्तु/चिकित्तात् चिकित्ताम् चिक्तितु ह्य० अचिकेत् अचिकित्ताम् अचितिकतुः अ० अकेतीत् अकेतिष्टाम्
अकेतिषुः प० चिकेत आ० कित्यात् कित्यास्ताम्
कित्यासुः श्व० केतिता केतारौ केतितारः भ० केतिष्यति केतिष्यतः केतिष्यन्ति क्रि० अकेतिष्यत् अकेतिष्यताम् अकेतिष्यन्
११४३-८. तुरक् (तुर) त्वरणे। व० तुतोर्ति तुतूतः तुतुरति स० तुतूर्यात् तुतूर्याताम् तुतूयुः प० तुतोर्तु तुतूर्तात्/तुतूर्ताम् तुतुरतु ह्य० अतुतोः अतुतूर्ताम् अतुतुरुः अ० अतोरीत् अतोरिष्टाम् अतोरिषुः प० तुतोर तुतुरतुः तुतुरुः आ० तूर्यात् तूर्यास्ताम् तूर्यासुः श्व० तोरिता तोरितारौ तोरितारः भ० तोरिष्यति तोरिष्यत: तोरिष्यन्ति क्रि० अतोरिष्यत् अतोरिष्यताम् अतोरिष्यन्
११४३-९. धिषक् (धिष्) शब्दे। व० दिधेष्टि दिधिष्टः . दिधिषति स० दिधिष्यात् दिधिष्याताम् दिधिष्युः प० दिधेष्टु/दिधिष्टात् दिधिषाम् दिधिषतु ह्य० अदिधेट
अदिधिष्टाम्
अकैषुः चिक्युः
चिक्यतुः
धेड्
Page #330
--------------------------------------------------------------------------
________________
313
अदादिगण
अजानी: अजानिषम्
अजानिष्ट अजानिष्म
दिधिषुः
अ० अधेषीत अधेषिष्टाम् अधेषिषुः प० दिधेष
दिधिषतुः आ० धिष्यात् धिष्यास्ताम्
धिष्यासुः श्व० धेषिता धेषितारौ धेषितारः भ० धेषिष्यति धेषिष्यतः धेषिष्यन्ति क्रि० अधेषिष्यत् अधेषिष्यताम् अधेषिष्यव्
११४३-१०. धनक् (धन्न्) धनन्ये। व० दधन्ति दधन्तः दधनति स० दधन्यात् दधन्याताम्
दधन्युः प० दधन्तु/दधन्तात् दधन्ताम् दधनतु ह्य० अदधत् अदधन्ताम्
अदधनुः अ० अधानीत् अधानिष्टाम् अधानिषुः
अजनिषुः अजनिष्ट अजनिष्म
अजानिष्टम् अजानिष्व
तथा अजनिष्टाम् अजनिष्टम् अजनिष्व जज्ञतुः जज्ञथुः जज्ञिव
अजनीत् अजनी:
अजनिषम् प० जजान
जजनिथ जजान/जजन
जजुः
जज्ञ
जज्ञिम
आ० जन्यात्
जन्यास्ताम्
जन्यासुः
जन्याः
जन्यास्तम्
जन्यास्त
तथा
दधनुः
अधनीत् अधनिष्टाम् अधनिषुः प० दधान
दधनतुः आ० धन्यात् धन्यास्ताम्
धन्यासुः श्व० धनिता धनितारौ धनितारः भ० धनिष्यति धनिष्यतः धनिष्यन्ति क्रि० अधनिष्यत् अधनिष्यताम् अधनिष्यन
११४३-११. जनक् (जन्) जनने। व० जजन्ति
जजात:
जजज्ञति जजंसि जजाथ:
जजाथ जजन्मि जजन्वः
जजन्म: स० जजन्यात् जजन्याताम् जजन्युः ज्जन्याः
जजन्यातम् जजन्यात जजन्याम् जजन्याव
जजन्याम प० जजन्तु/जजातात् जजाताम् जज्ञतु
जजाहि/जजातात् जजातम् जजात जजनानि जजनाव
जजनाम ह्य० अजजन् अजजाताम् अजजुः अजजन्
अजजातम् अजजात अजजनम् अजजन्व अजजन्म अ० अजानीत् अजानिष्टाम् अजानिषुः
जन्यासम् जन्यास्व
जन्यास्म श्व० जनिता जनितारौ जनितारः
जनितासि जनितास्थः जनितास्थ
जनितास्मि जनितास्वः जनितास्मः भ० जनिष्यति जनिष्यतः जनिष्यन्ति
जनिष्यसि जनिष्यथ: जनिष्यथ
जनिष्यामि जनिष्याव: जनिष्यामः क्रि० अजनिष्यत् अजनिष्यताम् अजनिष्यन्
अजनिष्यः अजनिष्यतम् अजनिष्यत अजनिष्यम् अजनिष्याव अजनिष्याम
११४३-१२. गांक् (गा) स्तुतौ। व० जिगाति जिगीत: जिगति
जिगासि जिगीथः जिगीथ जिगामि जिगीवः
जगीमः स० जिगीयात् जिगीयाताम्
जिगीयाः जिगीयातम् जिगीयात
जिगीयाम् जिगीयाव जिगीयाम प० जिगीतु/जिगीतात् जिगीताम् जिगतु
जिगीहि/जिगीतात् जिगीतम् जिगीत
जिगानि जिगाव जिगाम ह्य० अजिगात् अजिगीताम् अजिगुः
अजिगाः अजिगीतम् अजिगीत
अजिगाम् अजिगीव अजिगीम अ० अगासीत् अगासिष्टाम् अगासिषुः
जिगीयुः
Page #331
--------------------------------------------------------------------------
________________
314
अगासी:
अगासम् प० जगौ
जगिथ / जगाथ
जगौ
आ० गेयात्
गेयाः
गेयासम्
श्व० गाता
गातासि
गातास्मि
भ० गास्यति
गास्यसि
गास्यामि
क्रि० अगास्यत् अगास्यः
अगास्यम्
अगासष्टम्
अगासिष्व
जगतुः
जगथुः
जगिव
अगासिष्ट
अगासिष्म
जगुः
जग
जगिम
गेयासुः
गेयास्त
गेयास्म
गातारः
गातास्थ
गातास्मः
गास्यन्ति
गास्यथ
गास्यामः
अगास्यन्
अगास्यत
अगास्याम
गेयास्ताम्
गेयास्तम्
गेयास्व
गातारौ
गातास्थः
गातास्वः
गास्यतः
गास्यथः
गास्यावः
अगास्यताम्
अगास्यतम्
अगास्याव
इति ह्रादयः ।
॥ समाप्ता निरनुबन्धा अदादयः ॥
* * *
॥ अथ दिवादिः ॥
अथ श्यविकरणादिवादयो वर्णक्रमेण निर्दिश्यन्तेतत्रापि पूर्वाचार्यप्रसिद्ध्यनुरोधेनादौ जयेच्छा विजिगीषा । पणिर्व्यवहारः क्रयादिः ।
११४४. दिवुच् (दिव्) क्रीडाजयेच्छापणिद्युतिस्तुतिगतिषु ।
व० दीव्यति
दीव्यसि
दीव्यामि
स० दीव्येत्
दीव्येः
प० दिदेव
दीव्यम्
प० दीव्यतु / दीव्यतात् दीव्यताम्
दीव्य / दीव्यतात्
दीव्यतम्
दीव्यानि
दीव्याव
० अदीव्यत्
अदीव्यः
अदीव्यम्
अ० अदेवत्
अदेवी:
अदेविषम्
दिदेविथ
दिदेव
० दीव्यत्
दीव्याः
दीव्यासम्
श्व० देविता
देवितासि
देवितास्मि
भ० देविष्यति
देविष्यसि
देविष्यामि
क्रि० अदेविष्यत्
अदेविष्यः
अदेविष्यम्
दीव्यतः
दीव्यथः
दीव्याव:
दीव्येताम्
दीव्यतम्
दीव्येव
अदीव्यताम्
अदीव्यतम्
अदीव्याव
अदेविष्टाम्
अदेविष्टम्
अदेविष्व
दिदिवतुः
दिदिवथुः
दिदिविव
दीव्यास्ताम्
दीव्याम्
दीव्यास्व
देवितारौ
देवितास्थः
देवितास्वः
देविष्यतः
देविष्यथः
देविष्यावः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अदेविष्यताम्
अदेविष्यतम्
अदेविष्याव
दीव्यन्ति
दीव्यथ
दीव्यामः
दीव्येयुः
दीव्यत
दीव्येम
दीव्यन्तु
दीव्यत
दीव्याम
अदीव्यन्
अदीव्यत
अदीव्याम
अदेविषुः
अदेविष्ट
अदेविष्म
दिदिवुः
दिदिव
दिदिविम
दीव्यासुः
दीव्यास्त
दीव्यास्म
देवितारः
देवितास्थ
देवितास्मः
देविष्यन्ति
देविष्यथ
देविष्यामः
अदेविष्यन्
अदेविष्यत
अदेविष्याम
Page #332
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
315
जरीता जरीतासि जरीतास्मि
जरीतारौ जरीतास्थः जरीतास्वः जरिष्यतः जरिष्यथ: जरिष्याव:
जरीतार: जरीतास्थ जरीतास्मः जरिष्यन्ति जरिष्यथ जरिष्यामः
भ० जरिष्यति
जरिष्यसि
जरिष्यामि
जीर्येतम्
तथा
अथ ऋदन्तौ सेटौ च।
११४५. जृष् (ज) जरसि। व० जीर्यति जीर्यतः जीर्यन्ति
जीर्यसि जीर्यथः जीर्यथ जीर्यामि जीर्याव:
जीर्यामः स० जीर्येत् जीर्येताम् जीर्येयुः जीर्ये:
जीर्येत जीर्येयम् जीर्येव
जीर्येम प० जीर्यतु/जीर्यतात् जीर्यताम्
जीर्य/जीर्यतात् जीर्यतम् जीर्यत
जीर्याणि जीर्याव जीर्याम ह्य० अजीर्यत् अजीर्यताम् अजीर्यन्
अजीर्यः अजीर्यतम् अजीर्यत
अजीर्यम् अजीर्याव अजीर्याम अ० अजरत् अजरताम्
अजरन् अजर: अजरतम्
अजरत
जरीष्यन्ति
जीर्यन्तु
भ० जरीष्यति
जरीष्यसि
जरीष्यामि क्रि० अजरिष्यत्
अजरिष्यः अजरिष्यम्
जरीष्यतः जरीष्यथ: जरीष्याव: अजरिष्यताम् अजरिष्यतम् अजरिष्याव
जरीष्यथ जरीष्यामः अजरिष्यन्
अजरिष्यत अजरिष्याम
क्रि० अजरीष्यत्
अजरीष्यः अजरीष्यम्
तथा अजरीष्यताम् अजरीष्यतम् अजरीष्याव
अजरीष्यन् अजरीष्यत अजरीष्याम
अजरम्
अजराव
अजराम
११४६. झष्च् (झ) जरसिार
अजारिषुः अजारिष्ट अजारिष्म जजरु:/जेरु:
व० झीर्यति
झीर्यतः
झीर्यन्ति
स० झीर्येत्
झीर्येताम्
तथा अजारिष्टाम् अजारिष्टम् अजारिष्व जजरतुः/जेस्तु जजरथु/जेरथुः जजरिव/जजरिम जीर्यास्ताम् जीर्यास्तम् जीर्यास्व जरितारौ जरितास्थः
अजारीत् अजारी:
अजारिषम् प० जजार
जजरिथ/जेरिथ
जजार/जजर आ० जीर्यात्
जीर्याः
जीर्यासम् श्व० जरिता
जरितासि जरितास्मि
झीर्येयुः झीर्यन्तु अझीर्यन्
प० झीर्यतु/झीर्यतात् झीर्यताम् ह्य० अझीर्यत् अझीर्यताम् अ० अझारीत् अझारिष्टाम्
अझारिषुः
प० जझार
जझरु:
जेरिव/जेरिम जीर्यासुः जीर्यास्त जीर्यास्म जरितारः जरितास्थ जरितास्मः
आ० झीर्यात् श्व० झरिता
जझरतुः झीर्यास्ताम् झरितारौ
झीर्यासुः झरितार:
तथा
जरितास्वः
झरीता
झरीतारौ
झरीतारः
तथा
१. वयोहानावित्यर्थः।
२. झरा वपोहानिः।
Page #333
--------------------------------------------------------------------------
________________
316
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
भ० झरिष्यति
झरिष्यतः
झरिष्यन्ति
तथा
भ० झरीष्यति
झरीष्यतः
झरीष्यन्ति
ददौ
|
देयाः
देयास्म
श्व० दाता
क्रि० अझरिष्यत् अझरिष्यताम् अझरिष्यन्
तथा क्रि० अझरीष्यत् अझरीष्यताम् अझरीष्यन्
अथोदन्ताश्चत्वारोऽनिटश्च। ११४७. शोच् (शो) तक्षणे। तनुकरणे इत्यर्थः। व० श्यति श्यतः
श्यन्ति स० श्येत्
श्येताम् श्येयुः प० श्यतु/श्यतात्
श्यताम्
श्यन्तु ह्य० अश्यत्
अश्यताम्
अश्यन् अ० अशात् । अशाताम् अशुः अ० अशासीत् अशासिष्टाम् अशासिषुः प० शशौ
शशतुः आ० शायात् शयास्ताम्
शयासुः श्व० शाता
शातारौ
शातार: भ० शास्यति शास्यतः शास्यन्ति क्रि० अशास्यत् अशास्यताम् अशास्यन्
११४८. दोच् (दो) छेदने। व० द्यति
द्यत:
द्यन्ति द्यसि
द्यथः द्यामि
द्यावः स. येत्
घेताम्
शशुः
अदाः अदातम्
अदात अदाम् अदाव
अदाम प० ददौ
ददतुः
ददुः ददिथ/ददाथ ददथुः
दद ददिव
ददिम - आ० देयात्
देयास्ताम्
देयासुः देयास्तम्
देयास्त देयासम्
देयास्व दातारौ
दातार: दातासि दातास्थ:
दातास्थ दातास्मि दातास्वः दातास्मः भ० दास्यति दास्यतः
दास्यन्ति दास्यसि दास्यथ:
दास्यथ दास्यामि दास्याव: दास्यामः क्रि० अदास्यत्
अदास्यताम् अदास्यन् अदास्यः अदास्यतम् अदास्यत अदास्यम्
अदास्याव अदास्याम
११४९. छोंच् (छो) छेदने। व० छ्यति
छ्यत:
छ्यन्ति स० छयेत
छ्येताम् प० छ्यतु/छ्यतात् छ्यताम्
छ्यन्तु ह्य० अछ्यत् अछ्यताम्
अछ्यन् अ० अच्छात् अच्छाताम् अच्छु:
अच्छासीत् अच्छासिष्टाम् अच्छासिषुः प० चच्छौ चच्छतुः चच्छु: आ० छायात् छायास्ताम्
छायासुः श्व० छाता
छातारौ
छातार: भ० छास्यति छास्यत:
छास्यन्ति क्रि० अछास्यत् अछास्यताम् अछास्यन्
११५०. षोंच् (सो) अन्तकर्मणि, विनाश इत्यर्थः। व० स्यति
स्यत:
स्यन्ति स० स्येत्
स्येताम्
स्येयुः प० स्यतु/स्यतात् स्यताम्
स्यन्तु
छ्येयुः
द्यथ
द्यामः
द्येयुः
घेतम्
द्येव
द्येम
द्यन्तु
धेयम् प० द्यतु/द्यतात्
द्य/द्यतात् द्यानि
द्यताम् द्यतम्
द्यत
द्याव
द्याम
ह्य० अद्यत्
अद्यताम्
अद्यन्
अद्यः
अद्यत
अद्यतम् अद्याव
अद्याम
अद्यम् अ० अदात्
अदाताम्
अदुः
Page #334
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
317
ससतुः
अवीडिषुः
ह्य० अस्यत्
अस्यताम्
अस्यन् अ० असात् असाताम् असुः अ० असासीत् असासिष्टाम् असासिषुः प० ससौ
ससुः आ० सेयात् सेयास्ताम्
सेयासुः श्व० साता
सातारौ
सातारः भ० सास्यति सास्पतः सास्यन्ति क्रि० असास्यत् असास्यताम् असास्यन्
अथ डान्तः सेट् च।
११५ १. व्रीड (व्रीड्च्) लज्जायाम्। व० वीड्यति वीड्यतः वीडयन्ति स० वीडयेत् व्रीड्येताम् व्रीड्येयुः प० वीड्यतु/व्रीड्यतात् व्रीड्यताम् व्रीड्यन्तु ह्य० अव्रीड्यत् अव्रीड्यताम् अव्रीड्यन् अ० अव्रीडीत् अवीडिष्टाम् प० विव्रीड विव्रीडतुः
विव्रीडुः आ० वीड्यात् व्रीड्यास्ताम् व्रीड्यासुः श्व० वीडिता वीडितारौ वीडितारः भ० वीडिष्यति वीडिष्यत: वीडिष्यन्ति क्रि० अव्रीडिष्यत् अव्रीडिष्यताम् अव्रीडिष्यन्
ऋफिडादित्वाल्लत्वे वील्यति।
अथ तान्त: सेट् च। ११५२. नृतैच् (नृत्) नर्त्तने।
नर्तनं नाट्यम्। व० नृत्यति नृत्यतः नृत्यसि नृत्यथः
नृत्यथ
नृत्यावः नृत्यामः स० नृत्येत् नृत्येताम् नृत्येयुः नृत्ये:
नृत्येतम् नृत्येयम् नृत्येव नृत्येम प० नृत्यतु/नृत्यतात् नृत्यताम्
नृत्य/नृत्यतात् नृत्यतम् नृत्यत नृत्यानि नृत्याव
नृत्याम ह्य० अनृत्यत् अनृत्यताम् अनृत्यन्
अनृत्यः
अनृत्यतम् अनृत्यत अनृत्यम् अनृत्याव अनृत्याम अ० अनर्तीत् अनतिष्टाम् अनर्तिषुः
अनीः अनतिष्टम् अनत्तिष्ट
अनतिषम् अनतिष्व अनतिष्म प० ननर्त नगृततुः
ननतुः ननर्तिथ ननृतथुः ननृत
ननर्त्त नतिव ननृतिम आ० नृत्यात् नृत्यास्ताम् नृत्यासुः
नृत्याः नृत्यास्तम् नृत्यास्त नृत्यासम् नृत्यास्व
नृत्यास्म श्व० नर्त्तिता नर्त्तितारौ नर्तितारः
नर्तितासि नर्त्तितास्थः नर्त्तितास्थ
नर्त्तितास्मि नर्त्तितास्वः नर्त्तितास्मः भ० नय॑ति नत्य॑तः नय॑न्ति नय॑सि नय॑थः नत्य॑थ नामि नाव: नामः
तथा भ० नतिष्यति नतिष्यतः नतिष्यन्ति
नतिष्यसि नतिष्यथ: नतिष्यथ
नतिष्यामि नतिष्याव: नतिष्यामः क्रि० अनतिष्यत् अनतिष्यताम् अनतिष्यन्
अनतिष्यः अनतिष्यतम् अनतिष्यत अनतिष्यम् अनतिष्याव अनतिष्याम
तथा क्रि० अनत्य॑त् अनत्य॑ताम् अनय॑न्
अनत्यः अनत्य॑तम् अनयंत अनय॑म् अनाव अनाम
अथ थान्तौ सेटौ च। ११५३. कुथच् (कुथ्) पूतिभावे।
पूतिभावो दुर्गधः क्लेदः। व० कुथ्यति कुथ्यतः कुथ्यन्ति स० कुथ्येत् कुथ्येताम् कुथ्येयुः प० कुथ्यतु/कुथ्यतात् कुथ्यताम् कुथ्यन्तु
नृत्यन्ति
नृत्यामि
नृत्येत
नृत्यन्तु
Page #335
--------------------------------------------------------------------------
________________
318
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
११५६. राधंच् (राध्) वृद्धौ।' व० राध्यति
राध्यतः
राध्यन्ति स. राध्येत् राध्येताम् राध्येयुः प० राध्यतु/राध्यतात् राध्यताम् राध्यन्तु ह्य० अराध्यत् अराध्यताम् अराध्यन् अ० अरात्सीत् अराद्धाम् अरात्सुः प० रराध
रराधतुः आ० राध्यात् राध्यास्ताम् राध्यासुः श्व० राद्धा राद्धारौ
राद्धारः भ० रात्स्यति रात्स्यतः रात्स्यन्ति क्रि० अरात्स्यत्
अरात्स्यताम् अरात्स्य न् ११५७. व्यधंच (व्यथ) ताडने।
रराधुः
ह्य० अकुथ्यत् अकुथ्यताम् अकुथ्यन् अ० अकोथीत् अकोथिष्टाम् अकोथिषुः प० चुकोथ चुकुथतुः चुकुथुः आ० कुथ्यात् कुथ्यास्ताम् कुथ्यासुः श्व० कोथिता कोथितारौ कोथितार: भ० कोथिष्यति कोथिष्यतः कोथिष्यन्ति क्रि० अकोथिष्यत् अकोथिष्यताम् अकोथिष्यन्
११५४. पुथच् (पुथ्) हिंसायाम्। व० पुथ्यति पुथ्यतः
पुथ्यन्ति स० पुथ्येत् पुथ्येताम् पुथ्येयुः प० पुथ्यतु/पुथ्यतात् पुथ्यताम् पुथ्यन्तु ह्य० अपुथ्यत् अपुथ्यताम् अपुथ्यन् अ० अपोथीत् अपोथिष्टाम् अपोथिषुः प० पुपोथ पुपुथतुः
पुपुथुः आ० पुथ्यात् पुथ्यास्ताम् पुथ्यासुः श्व० पोथिता पोथितारौ पोथितारः भ० पोथिष्यति पोथिष्यतः पोथिष्यन्ति क्रि० अपोथिष्यत् अपोथिष्यताम् अपोथिष्यन्
अध धान्तास्त्रयः।
११५५. गुधच् (गुध्) परिवेष्टने। व० गुध्यति गुध्यतः गुध्यन्ति स० गुध्येत् गुध्येताम् गुध्येयुः प० गुध्यतु/गुध्यतात् गुध्यताम् गुध्यन्तु ह्य० अगुध्यत् अगुध्यताम् अगुध्यन् अ० अगोधीत् अगोधिष्टाम् अगोधिषुः प० जुगोध जुगुधतुः जुगुधुः आ० गुध्यात् गुध्यास्ताम् गुध्यासुः श्व० गोधिता गोधितारौ गोधितार: भ० गोधिष्यति गोधिष्यतः गोधिष्यन्ति क्रि० अगोधिष्यत् अगोधिष्यताम् अगोधिष्यन्
विविधुः
व० विध्यति विध्यतः विध्यन्ति स० विध्येत् विध्येताम् विध्येयुः प० विध्यतु/विध्यतात् विध्यताम् विध्यन्तु ह्य० अविध्यत् अविध्यताम् अविध्यन् अ० अव्यात्सीत् अव्याद्धाम् अव्यात्सुः प० विव्याध विविधतुः आ० विध्यात् विध्यास्ताम् विध्यासुः श्व० व्यद्धा व्यद्धारौ व्यद्धारः भ० व्यत्स्यति व्यत्स्यतः व्यत्स्यन्ति क्रि० अव्यत्स्यत् अव्यत्स्यताम् अव्यत्स्यन्
११५८. क्षिपंच् (क्षिप्) प्ररणे। व० क्षिप्यति क्षिप्यतः क्षिप्यन्ति स० क्षिप्येत् क्षिप्येताम् क्षिप्येयुः प० क्षिप्यतु/क्षिप्यतात् क्षिप्यताम् क्षिप्यन्तु ह्य० अक्षिप्यत् अक्षिप्यताम् अक्षिप्यन् अ० अक्षैप्सीत् अक्षैप्ताम् अक्षैप्सुः प० चिक्षेप
चिक्षिपतुः आ० क्षिप्यात् क्षिप्यास्ताम् क्षिप्यासुः
चिक्षिपुः
१. स्वादिषु पठिष्यमाणस्याप्यस्येहपाठो वृद्धावेव श्यविकरणार्थः।
Page #336
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
श्व० क्षप्ता
भ० क्षेप्स्यति
क्रि० अक्षेप्स्यत्
क्षप्तारौ
क्षेप्स्वतः
अक्षेप्स्याम्
११५९. पुष्पच् (पुष्प) विकसने ।
व० पुष्यति
स० पुष्येत्
प० पुष्प्यतु / पुष्प्यतात् पुष्प्यताम्
ह्य० अपुष्प्यत्
अ० अपुष्पीत्
प० पुपुष्प
आ० पुष्प्यात्
श्व० पुष्पिता
भ० पुष्पिष्यति
क्रि० अपुष्पिष्यत्
० तियात्
श्व० तेमिता
पुष्प्यतः
पुष्येताम्
व० तिम्यति
तिम्यतः
स० [तिम्येत्
तिम्येताम्
प० तिम्यतु/तिम्यतात् तिम्यताम्
० अतिम्यत्
अ० अमीत्
प० तितेम
भ० तेमिष्यति
क्रि० अतेमिष्यत्
अपुष्प्यताम्
अपुष्पिष्टाम्
पुपुष्पतुः
पुष्प्यास्ताम्
पुष्पितारौ
पुष्पिष्यतः
अपुष्पिष्यताम्
अथ मान्ताश्चत्वारः सेट।
११६०. तिमच् (तिम्) आर्द्रभावे ।
अतिम्यताम्
अमिष्टाम्
क्षेप्तारः
क्षेप्स्यन्ति
तितिमतुः
तिम्यास्ताम्
तेमितारौ
तेमिष्यतः
अक्षेप्स्यन्
पुष्प्यन्ति
पुष्येयुः
पुष्यन्तु
अपुष्प्यन्
अपुष्पिषुः
पुपुष्पुः
पुष्प्यासुः
पुष्पितारः
पुष्पिष्यन्ति
अपुष्पिष्यन्
तिम्यन्ति
तिम्येयुः
तिम्यन्तु
अतिम्यन्
अतेमिषुः
तितिमुः
तिम्यासुः
तेमितारः
तेमिष्यन्ति
अमिष्यताम् अमिष्यन्
११६१. तीमच् (तीम्) आर्द्रभावे ।
व० तीम्यति
तीम्यतः
स० तीम्येत्
तीयेताम्
प० तीम्यतु/तीम्यतात् तीम्यताम्
ह्य० अतीम्यत्
अतीम्यताम्
तीम्यन्ति
तीम्येयुः
म्यन्तु
अतीम्यन्
अ० अतीमीत्
प० तितीम
० तीम्यात्
श्व० तीमिता
भ० तीमिष्यती
क्रि० अतीमिष्यत्
० अस्तिम्यत्
अ० अस्मीत्
प० तिष्टेम
आस्तित्
श्व० स्तेमिता
भ० स्तेमिष्यति
क्रि० अस्तेमिष्यत्
११६३
११६२. ष्टिमच् (स्तिम्) आर्द्रभावे ।
व० स्तिम्यति स्तिम्यतः
स० [स्तिम्येत्
स्तिम्येताम्
प० स्तिम्यतु / स्तिम्यतात् स्तिम्यताम्
० अस्तीत्
अ० अस्तीमीत्
प० तिष्टीम
अतीमिष्टाम् अतीमिषुः
तितीमुः
आ० स्तीम्यात्
श्व० स्तीमिता
भ० स्तीमिष्यती
क्रि० अस्तीमिष्यत्
तितीमतुः
तीम्यास्ताम्
तीमितारौ
तीमिष्यतः
व० सीव्यति
सीव्यसि
तीम्यासुः
तीमितार:
तीमिष्यन्ति
भतीपिष्यताम् अतीमिष्यन्
व० स्तीम्यति
स्तीम्यतः
स० [स्तीम्येत्
तीयेताम्
प० स्तीम्यतु/स्तीम्यतात् स्तीम्यताम्
अस्तीम्यताम्
अस्तमिष्टाम्
तिष्टीमतुः
स्तिम्यन्ति
स्तिम्येयुः
स्तिम्यन्तु
अस्तिम्यन्
अस्तेमिषुः
तिष्टिमतुः तिष्टिमुः
स्तिम्यास्ताम्
स्तेमितारौ
स्तेमिष्यतः
अस्तिम्यताम्
अस्तेमिष्टाम्
अस्तेमिष्यताम् ष्टीमच् (तिस्तीम् ) आर्द्रभावे ।
म्यास्ताम्
स्तिम्यासुः
स्तेमितार:
मिष्यन्ति
अस्ते मिष्यन्
स्तीमितारौ
स्तीमिष्यतः
अस्तीमिष्यताम्
अथ वान्ता श्चत्वारः सेटच ।
११६४. षिवूच् (सिव्) उतौ डतिर्वानम् । तन्तुसन्तान
इत्यर्थः ।
सीव्यतः
सीव्यथः
स्तीम्यन्ति
स्तम्येयुः
स्तीम्यन्तु
अस्तीम्यन्
अस्तीमिषुः
तिष्टीमुः
स्तीम्यासुः
स्तीमितारः
स्तीमिष्यन्ति
अस्तमिष्यन्
सीव्यन्ति
सीव्यथ
319
Page #337
--------------------------------------------------------------------------
________________
320
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
श्रीव्यासुः
असेविषुः
सिषिवतुः
सिषिवुः
टिष्ठिवुः
सीव्यामि सीव्याव: सीव्यामः स० सीव्येत् सीव्येताम्
सीव्येयुः सीव्ये: सीव्येतम् सीव्येत
सीव्येयम् सीव्येव सीव्येम प० सीव्यतु/सीव्यतात् सीव्यताम्
सीव्यन्तु सीव्य:/सीव्यतात् सीव्यतम् सीव्यत
सीव्यानि सीव्याव सीव्याम ह्य० असीव्यत् असीव्यताम् असीव्यन्
असीव्यः असीव्यतम् असीव्यत
असीव्यम् असीव्याव असीव्याम अ० असेवीत् असेविष्टाम्
असेवीः असेविष्टम् असेविष्ट असेविषम्
असेविष्व असेविष्म प० सिषेव सिषिविथ सिषिवथुः
सिषिव सिषेव सिषिविव सिषिविम आ० सीव्यात् सीव्यास्ताम्
सीव्यासुः सीव्याः सीव्यास्तम् सीव्यास्त सीव्यासम् सीव्यास्व
सीव्यास्म श्व० सेविता सेवितारौ
सेवितार: सेवितासि सेवितास्थ:
सेवितास्थ सेवितास्मि सेवितास्वः
सेवितास्मः भ० सेविष्यति सेविष्यतः सेविष्यन्ति
सेविष्यसि सेविष्यथ: सेविष्यथ
सेविष्यामि सेविष्याव: सेविष्याम: क्रि० असेविष्यत् असेविष्यताम् असेविष्यन्
असेविष्यः असेविष्यतम् असेविष्यत असेविष्यम् असेविष्याव असेविष्याम
११६५. श्रिवूच् (श्रिव्) गतिशोषणयोः। व० श्रीव्यति श्रीव्यतः श्रीव्यन्ति स० श्रीव्येत् श्रीव्येताम् श्रीव्येयुः प० श्रीव्यतु/श्रीव्यतात् श्रीव्यताम् ह्य० अश्रीव्यत् अश्रीव्यताम्, अश्रीव्यन्
अ० अश्रेवीत् अश्रेविष्टाम्
अश्रेविषुः प० शिश्रव
शिश्रिवतुः
शिश्रिवुः आ० श्रीव्यात् श्रीव्यास्ताम् श्व० श्रेविता श्रेवितारौ
श्रेवितारः भ० श्रेविष्यति
श्रेविष्यतः
श्रेविष्यन्ति क्रि० अश्रेविष्यत् अश्रेविष्यताम् अश्रेविष्यन्
११६६. ष्ठिवूच् (ष्ठिव्) निरसने। व० ष्ठीव्यति ष्ठीव्यतः ष्ठीव्यन्ति स० ष्ठीव्येत् ष्ठीव्येताम् ष्ठीव्येयुः प० ष्ठीव्यतु/ष्ठीव्यतात् ष्ठीव्यताम्
ष्ठीव्यन्तु ह्य० अष्ठीव्यत् अष्ठीव्यताम् अष्ठीव्यन् अ० अष्ठेवीत् अष्ठेविष्टाम्
अष्ठेविषुः प० टिष्ठेव टिष्ठिवतुः आ० ष्ठीव्यात् ष्ठीव्यास्ताम्
ष्ठीव्यासुः श्व० ष्ठेविता ष्ठेवितारौ ष्ठेवितारः भ० ष्ठेविष्यति ष्ठेविष्यतः ष्ठेविष्यन्ति क्रि० अष्ठेविष्यत् अष्ठेविष्यताम् अष्ठेविष्यन
११६७. क्षिवूच् (क्षि) निरसने। व० क्षीव्यति क्षीव्यतः क्षीव्यन्ति स० क्षीव्येत्
क्षीव्येताम् प० क्षीव्यतु/क्षीव्यतात् क्षीव्यताम् ह्य० अक्षीव्यत् अक्षीव्यताम् अक्षीव्यन् अ० अक्षेवीत् अक्षेविष्टाम् अक्षेविषुः प० चिक्षेव चिक्षिवतुः चिक्षिवुः आ० क्षीव्यात् क्षीव्यास्ताम् श्व० क्षेविता क्षेवितारौ क्षेवितारः भ० क्षेविष्यति क्षेविष्यतः क्षेविष्यन्ति क्रि० अक्षेविष्यत् ___ अक्षेविष्यताम् अक्षेविष्यन्
॥अथ षान्तः सेट् च।।
११६८. इष्च् (इष्) गतौ। व० इष्यति
इष्यतः
इष्यन्ति
क्षीव्येयुः क्षीव्यन्तु
क्षीव्यासुः
श्रीव्यन्तु
इष्यसि
इष्यथ:
इष्यथ
Page #338
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
321
स्नस्यामि स्नस्यावः . स० स्नस्येत् स्नस्येताम्
स्नस्यः स्नस्येतम्
स्नस्येयम् स्नस्येव प० स्नस्यतु/स्नस्यतात् स्नस्यताम्
स्नस्य:/स्नस्यतात् स्नस्यतम् स्नस्यानि
स्नस्याव ह्य० अस्नस्यत् अस्नस्यताम्
अस्नस्यः अस्नस्यतम्
अस्नस्यम् अस्नस्याव अ० अस्नासीत् अस्नासिष्टाम्
अस्नासी: अस्नासिष्टम् अस्नासिषम् अस्नासिष्व
स्नस्यामः स्नस्येयुः स्नस्येत स्नस्येम स्नस्यन्तु स्नस्यत स्नस्याम
इष्यन्तु
अस्नस्यन्
ऐष्यत
अस्नस्यत
अस्नस्याम
ऐषी:
ऐषिष्टम्
अस्नासिषुः अस्नासिष्ट अस्नासिष्म
ईषतुः ईषथुः
इष्यामि इष्याव: इष्यामः स० इष्येत् इष्येताम् इष्येयुः
इष्ये: इष्येतम् इष्येत इष्येयम् इष्येव
इष्येम प० इष्यतु/इष्यतात् इष्यताम्
इष्य:/इष्यतात् इष्यतम् इष्यत इष्याणि इष्याव
इष्याम ह्य० ऐष्यत् ऐष्यताम् ऐष्यन्
ऐष्यः ऐष्यतम्
ऐष्यम् ऐष्याव ऐष्याम अ० ऐषीत्
ऐषिष्टाम् ऐषिषुः
ऐषिष्ट ऐषिषम् ऐषिष्व ऐषिष्म प० इयेष
इयेषिथ इयेष ईषिव
ईषिम आ० इष्यात्
इष्यास्ताम् इष्या:
इष्यास्तम् इष्यास्त इष्यासम् इष्यास्व
इष्यास्म श्व० एषिता एषितारौ एषितार:
एषितासि एषितास्थः एषितास्थ
एषितास्मि एषितास्वः एषितास्मः भ० एषिष्यति एषिष्यतः एषिष्यन्ति
एषिष्यसि एषिष्यथ: एषिष्यथ
एषिष्यामि एषिष्यावः एषिष्यामः क्रि० ऐषिष्यत्
ऐषिष्यताम् ऐषिष्यः ऐषिष्यतम् ऐषिष्यत
ऐषिष्याव ऐषिष्याम ॥अथ सान्ताश्चत्वारः सेटश्च।।
११६९. ष्णसूच् (स्नस्) निरसने। व० स्नस्यति स्नस्यत: स्नस्यन्ति स्नस्यसि स्नस्यथः
स्नस्यथ
111111111111 १ २ ३ ४ ३ ४ 4 4 1 1 1 1 1 3 3 |
तथा अस्नसीत् अस्नसिष्टाम् अस्नसी: अस्नसिष्टम्
अस्नसिषम् अस्नसिष्व प० सस्नास सस्नसतुः
सस्नसिथ सस्नसथुः सस्नास/सस्नस सस्नसिव
अस्नसिषुः अस्नसिष्ट अस्नसिष्म
इष्यासुः
सस्नसुः सस्नस सस्नसिम
आ० स्नस्यात्
स्नस्यास्ताम्
स्नस्यासुः
स्नस्याः
स्नस्यास्तम्
स्नस्यास्त
स्नस्यासम् श्व० स्नसिता
स्नसितासि
स्नसितास्मि भ० स्नसिष्यति स्नसिष्यसि मिष्यामि
स्नस्यास्व स्नसितारौ स्नसितास्थः स्नसितास्वः स्नसिष्यतः स्नसिष्यथ:
ऐषिष्यन्
स्नस्यास्म स्नसितारः स्नसितास्थ स्नसितास्मः स्नसिष्यन्ति स्नसिष्यथ स्नसिष्यामः अस्नसिष्यन् अस्नसिष्यत अस्नसिष्याम
ऐषिष्यम्
स्नसिष्याव:
क्रि० अस्नसिष्यत्
अस्नसिष्यः अस्नसिष्यम्
अस्नसिष्यताम् अस्नसिष्यतम् अस्नसिष्याव
1
Page #339
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
११७०. नसूच् (क्नस्) हृतिदीप्त्योः ।
हृतिः कौटिल्यम्। व० क्नस्यति क्नस्यतः क्नस्यन्ति स० क्नस्येत् क्नस्येताम् क्नस्येयुः प० क्नस्यतु/क्नस्यतात् क्नस्यताम्
क्नस्यन्तु ह्य० अक्नस्यत् अक्नस्यताम् अक्नस्यन् अ० अक्नासीत् अक्नासिष्टाम् अक्नासिषुः
अक्नसीत् अक्नसिष्टाम् अक्नसिषुः प० चकनास चकनसतुः चकनसुः आ० क्नस्यात् क्नस्यास्ताम् क्नस्यासुः श्व० क्नसिता क्नसितारौ क्नसितारः भ० मसिष्यति क्नसिष्यतः क्नसिष्यन्ति क्रि० अक्नसिष्यत् अक्नसिष्यताम् अक्नसिष्यन
सोः
सोम
प० पुप्योस पुप्युसतुः पुप्युसुः आ० प्युस्यात् प्युस्यास्ताम् प्युस्यासुः श्व० प्योसिता प्योसितारौ प्योसितारः भ० प्योसिष्यति प्योसिष्यतः प्योसिष्यन्ति क्रि० अप्योसिष्यत् अप्योसिष्यताम् अप्योसिष्यन्
॥अथ हान्तौ सेटौ च।
११७३. पहच् (सह) शक्तौ। व० सह्यति सह्यतः
सह्यन्ति सह्यसि सह्यथ:
साथ सह्यामि सह्याव:
सह्यामः | स० सह्येत् सह्येताम् सह्येयुः
सोतम् सह्येत सह्येयम् सह्येव प० सह्यतु/सह्यतात् सह्यताम्
सह्यन्तु सह्य:/सह्यतात् सह्यतम्
सात सह्यानि सह्याव
सह्याम ह्य० असह्यत्
असह्यताम्
असान् असह्यः असह्यतम्
असह्यत असह्यम् असह्याव असह्याम अ० असहीत् असहिष्टाम् असहिषुः
असही: असहिष्टम् असहिष्ट
असहिषम् असहिष्व असहिष्म प० ससाह
सेहुः सेहिथ
ससाह/ससह सेहिव आ० सह्यात् सह्यास्ताम् सह्यासुः सह्याः
सह्यास्तम् सह्यास्त सह्यासम् सह्यास्व
सह्यास्म श्व० सहिता सहितारौ सहितारः
सहितासि सहितास्थः सहितास्थ
सहितास्मि सहितास्वः सहितास्मः भ० सहिष्यति सहिष्यतः सहिष्यन्ति
सहिष्यसि सहिष्यथ: सहिष्यथ
सहिष्यामि सहिष्याव: सहिष्यामः क्रि० असहिष्यत् असहिष्यताम् असहिष्यन्
११७ १. त्रसूच् (त्रस्) भये। व० त्रस्यति त्रस्यतः
त्रस्यन्ति त्रसति त्रसतः
त्रसन्ति स० त्रस्येत् त्रस्येताम् त्रस्येयुः
त्रसेत् त्रसेताम् त्रसेयुः प० त्रस्यतु/त्रस्यतात् त्रस्यताम् त्रस्यन्तु त्रसतु/त्रसतात् त्रसताम्
वसन्तु ह्य० अत्रस्यत् अत्रस्यताम् अत्रस्यन् अत्रसत् अत्रसताम्
अत्रसन् अ० अत्रासीत् अत्रासिष्टाम् अत्रासिषुः
अत्रसीत् अत्रसिष्टाम् अत्रसिषुः प० तत्रास
त्रेसतुः/तत्रसतुः त्रेसुः/तत्रसुः आ० त्रस्यात् त्रस्यास्ताम् त्रस्यासुः श्व० त्रसिता त्रसितारौ त्रसितारः भ० त्रसिष्यति त्रसिष्यतः त्रसिष्यन्ति क्रि० अत्रसिष्यत् अत्रसिष्यताम् अत्रसिष्यन्
११७२. प्युसूच् (प्युस्) दाहे। व० प्युस्यति प्युस्यत: प्युस्यन्ति स० प्युस्येत् प्युस्येताम् प्युस्येयुः प० प्युस्यतु/प्युस्यतात् प्युस्यताम् प्युस्यन्तु ह्य० अप्युस्यत् अप्युस्यताम् अप्युस्यन् अ० अप्योसीत् अप्योसिष्टाम् अप्योसिषुः
सेहतुः सेहथुः
सेहिम
www.jaineltbrary.org
Page #340
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
323
औचन्
सुषुहुः
असहिष्यः असहिष्यतम् असहिष्यत असहिष्यम् असहिष्याव असहिष्याम
११७४. Jहच् (सुह्) शक्तौ। व० सुह्यति सुह्यतः सुह्यन्ति स० सुह्येत् सुह्येताम् सुह्येयुः प० सुह्यत्/सुह्यतात् सुह्यताम् सुह्यन्तु ह्य० असुह्यत् असुह्यताम् असुह्यन् अ० असोहीत् असोहिष्टाम् असोहिषुः प० सुषोह सुषुहतुः आ० सुह्यात् सुह्यास्ताम् सुह्यासुः श्व० सोहिता सोहितारौ सोहितारः भ० सोहिष्यति सोहिष्यतः सोहिष्यन्ति क्रि० असोहिष्यत् असोहिष्यताम् असोहिष्यन् ॥अथ दिवाद्यन्तर्गणः पुषादिः परस्मैपद्येत्। तत्रापि
प्रसिद्ध्यनुरोधादादौ॥ ११७५. पुषंच् (पुष्) पुष्टौ। अर्कमकोऽयम्। व० पुष्यति पुष्यतः पुष्यन्ति स० पुष्येत् पुष्येताम् पुष्येयुः प० पुष्यतु/पुष्यतात् पुष्यताम् पुष्यन्तु ह्य० अपुष्यत् अपुष्यताम् अपुष्यन् अ० अपुषत् अपुषताम् अपुषन् प० पुपोष पुपुषतुः आ० पुष्यात् पुष्यास्ताम् पुष्यासुः श्व० पोष्टा पोष्टारौ पोष्टारः भ० पोक्ष्यति पोक्ष्यतः पोक्ष्यन्ति क्रि० अपोक्ष्यत् अपोक्ष्यताम् अपोक्ष्यन्
अथ चान्तः सेट् च।
ह्य० औच्यत् औच्यताम् औच्यन् अ० औचत् औचताम् प० उवोच ऊचतुः ऊचुः आ० उच्यात् उच्यास्ताम् उच्यासुः श्व० ओचिता 'ओचितारौ ओचितार: भ० ओचिष्यति ओचिष्यतः ओचिष्यन्ति क्रि० औचिष्यत् औचिष्यताम् औचिष्यन्
अथ टान्त: सेट च।
११७७. लुटच् (लुट्) विलोटने। व० लुट्यति लुट्यतः लुट्यन्ति स० लुट्येत् लुट्येताम् लुट्येयुः प० लुट्यतु/लुट्यतात् लुट्यताम् लुट्यन्तु ह्य० अलुट्यत् अलुट्यताम् अलुट्यन् अ० अलुटत अलुटताम् अलुटन् प० लुलोट लुलुटतुः लुलुटुः आ० लुट्यात् लुट्यास्ताम् लुट्यासुः ० लोटिता लोटितारौ लोटितारः भ० लोटिष्यति
लोटिष्यन्ति क्रि० अलोटिष्यत् अलोटिष्यताम् अलोटिष्यन्
अथ दान्ताश्चत्वारः। ११७८. विदांच् (स्विद्) गात्रप्रक्षरणे। गात्रप्रक्षरणं
धर्मस्रुतिः। | व० स्विद्यति स्विद्यतः स्विद्यन्ति
स्विद्यसि स्विद्यथः । स्विद्यथ
स्विद्यामि स्विद्यावः स्विद्यामः स० स्विद्येत् स्विद्येताम्
स्विद्येयुः स्विोः स्विद्येतम् स्विद्येत स्विद्येयम् स्विद्येव स्विद्येम प० स्विद्यतु/स्विद्यतात् स्विद्यताम् स्विद्यन्तु
स्विद्यः/स्विधतात् स्विद्यतम् स्विद्यत स्विद्यानि स्विद्याव स्विद्याम ह्य० अस्विद्यत् अस्विद्यताम्
अस्विद्यन्
११७६ उचच् (उच) समवाये।
व० उच्यति
उच्यतः स० उच्येत् उच्येताम् प० उच्यतु/उच्यतात् उच्यताम्
उच्यन्ति उच्येयुः
उच्यन्तु
१. समवाय ऐक्यम्।
Page #341
--------------------------------------------------------------------------
________________
324
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मेद्यताम्
मेद्येयुः
मेद्यन्तु अमेद्यन्
मिमिदतुः
मिमिदुः मिद्यासुः
अस्विद्यः अस्विद्यतम् अस्विद्यत
अस्विद्यम् अस्विद्याव अस्विद्याम अ० अस्विदत
अस्विदताम्
अस्विदटन् अस्विदः अस्विदतम् अस्विदटत
अस्विदम अस्विदाव अस्विदाम प० सिष्वेद सिष्विदतुः
सिष्विदुः सिष्विदिथ सिष्विदथु:
सिष्विद सिष्वेद सिष्विदिव सिष्विदिम आ० स्विद्यात् स्विद्यास्ताम् स्विद्यासुः स्विद्या: स्विद्यास्तम्
स्विद्यास्त स्विद्यासम् स्विद्यास्व स्विद्यास्म श्व० स्वेत्ता स्वेत्तारौ स्वेत्तारः
स्वेत्तासि स्वेत्तास्थः स्वेत्तास्थ
स्वेत्तास्म स्वेत्तास्वः स्वेत्तास्मः भ० स्वेत्स्यति स्वेत्स्यतः स्वेत्स्यन्ति
स्वेत्स्यसि स्वेत्स्यथः स्वेत्स्यथ
स्वेत्स्यामि स्वेत्स्याव: स्वेत्स्यामः क्रि० अस्वेत्स्यत् अस्वेत्स्यताम् अस्वेत्स्यन्
अस्वेत्स्यः अस्वेत्स्यतम् अस्वेत्स्यत अस्वेत्स्यम् अस्वेत्स्याव अस्वेत्स्याम
११७९. क्लिदौच् (क्लिद्) आर्द्रभावे। व० क्लिद्यति क्लिद्यतः क्लिद्यन्ति स० क्लिद्येत् क्लिद्येताम् क्लिद्येयुः प० क्लिद्यतु/क्लिद्यतात् क्लिद्यताम् क्लिद्यन्तु ह्य० अक्लिद्यत् अक्लिद्यताम् अक्लिद्यन् अ० अक्लिदत अक्लिदताम् अक्लिदन प० चिक्लेद चिक्लिदतुः
चिक्लिदुः आ० क्लिद्यात् क्लिद्यास्ताम् क्लिद्यासुः श्व० क्लेदिता क्लेदितारौ क्लेदितार:
भ० क्लेत्स्यति क्लेत्स्यतः क्लेत्स्यन्ति क्रि० अक्लेदिष्यत् अक्लेदिष्यताम् अक्लेदिष्यन्
तथा क्रि० अक्लेत्स्यत् अक्लेत्स्यताम् अक्लेत्स्यन्
११८०. जिमिदाच् (मिद्) स्नेहने। व० मेद्यति मेद्यतः
मद्यन्ति स० मेद्येत् प० मेद्यतु/मेद्यतात् मेद्यताम् ह्य० अमेद्यत् अमेद्यताम् अ० अमिदत् अमिदताम् अमिदन् प० मिमेद आ० मिद्यात् मिद्यास्ताम् श्व० मेदिता मेदितारौ मेदितारः भ० मेदिष्यति मेदिष्यतः
मेदिष्यन्ति क्रि० अमेदिष्यत् अमेदिष्यताम् अमेदिष्यन्
११८१. लिक्ष्विदाच् (विद) मोचने च। चकारात्स्नेहने। व० क्ष्विद्यति क्ष्विद्यतः क्ष्विद्यन्ति स० क्ष्विद्येत् क्ष्विद्येताम् श्विद्येयुः प० क्ष्विद्यतु/क्ष्विद्यतात् क्ष्विद्यताम् क्ष्विद्यन्तु ह्य० अश्विद्यत् अश्विद्यताम् । अश्विद्यन् अ० अश्विदत् अश्विदताम्
अक्ष्विदन् प० चिक्ष्वेिद चिक्ष्वेिदतुः चिक्ष्वेिदुः आ० क्ष्विद्यात् क्ष्विद्यास्ताम्
क्ष्विद्यासुः श्व० श्वेदिता क्ष्वेदितारौ क्ष्वेदितार: भ० क्ष्वेदिष्यति क्ष्वेदिष्यतः क्ष्वेदिष्यन्ति क्रि० अक्ष्वेदिष्यत् अक्ष्वेदिष्यताम् अक्ष्वेदिष्यन्
अथ धान्ता: सप्त।
११८२. क्षुधंच् (क्षुध्) बुभुक्षायाम्। व० क्षुध्यति क्षुध्यतः क्षुध्यन्ति
क्षुध्यथः क्षुध्यथ
क्षुध्याव: क्षुध्यामः स० क्षुध्येत् क्षुध्येताम् क्षुध्येयु:
तथा
श्व० क्लेत्ता भ० क्लेदिष्यति
क्लेत्तारौ क्लेदिष्यतः
तथा
क्लेत्तारः क्लेदिष्यन्ति
क्षुध्यसि क्षुध्यामि
Page #342
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
क्षुध्येः
क्षुध्येयम्
प० क्षुध्यतु / क्षुध्यतात् क्षुध्यताम्
क्षुध्यः / क्षुध्यतात्
क्षुध्यतम्
क्षुध्यानि
क्षुध्याव
ह्य० अक्षुध्यत्
अक्षुध्यताम्
अक्षुध्यः
अक्षुध्यतम्
अक्षुध्यम्
अक्षुध्याव
अ० अक्षुधत्
अक्षुधाम्
अक्षुधः
अक्षुधतम्
अक्षुधम्
अक्षुधाव
चुक्षुधतुः
चुक्षुधथुः
चुक्षुधिव
प० चुक्षो
चुक्षोधि
चुक्षोध
आ० क्षुध्यात्
क्षुध्या:
क्षुध्यासम्
श्र० क्षोद्धा
क्षोद्धासि
क्षोद्धास्म
भ० क्षोत्स्यति
क्षुध्येतम्
क्षुध्व
क्षुध्यास्ताम्
क्षुध्यास्तम्
क्षुध्यास्व
क्षोद्धारौ
क्षोद्धास्थः
क्षोद्धास्वः
क्षोत्स्यतः
क्षोत्स्यथः
क्षोत्स्यावः
व० शुध्यति
० शुध्येत्
म्
प० शुध्यतु / शुध्यतात् शुध्यताम्
ह्य० अशुध्यत्
अशुध्यताम्
क्षुध्ये
क्षुध्ये
क्षुध्यन्तु
क्षुध्यत
क्षुध्याम
अक्षुध्यन्
अक्षुध्यत
अक्षुध्याम
अक्षुधन्
अक्षुध
अक्षुधाम
चुक्षुधुः
चुक्षुध
चुक्षुधिम
क्षुध्यासुः
क्षुध्यास्त
क्षोत्स्यसि
क्षोत्स्यामि
क्रि० अक्षोत्स्यत्
अक्षोत्स्वताम्
अक्षोत्स्यन्
अक्षोत्स्यः
अक्षोत्स्यम्
अक्षोत्स्यत
अक्षोत्स्यम्
अक्षोत्स्याव
अक्षोत्स्याम
११८३. शुधंच् (शुध्) शौचे । शौचं नैर्मल्यम् ।
शुध्यतः
क्षुध्यास्म
क्षोद्धारः
क्षोद्धास्थ
क्षोद्धास्मः
क्षोत्स्यन्ति
क्षोत्स्यथ
क्षोत्स्यामः
शुध्यन्ति
शुध्येयुः
शुध्यन्तु
अशुध्यन्
अ० अशुधत्
प० शुशोध
० शुध्यात्
श्व० शोद्धा
भ० शोत्स्यति
क्रि० अशोत्स्यत्
व० क्रुध्यति
० क्रुध्येत्
प० क्रुध्यतु/ क्रुध्यतात् क्रुध्यताम्
ह्य० अक्रुध्यत्
अक्रुध्यताम्
अ० अक्रुधत्
अक्रुधताम्
प० चुक्रोध
चुक्रुधतुः
क्रुध्यास्ताम्
क्रोद्धारौ
त्रोत्स्यतः
आ० क्रुध्यात्
श्व० क्रोद्धा
भ० क्रोत्स्यति
क्रि० अक्रोत्स्यत्
क्रुध्यन्ति
क्रुध्येयुः
क्रुध्यन्तु
अक्रुध्यन्
अक्रुधन्
चुक्रुधुः
क्रुध्यासुः
क्रोद्धारः
त्रोत्स्यन्ति
अत्स्याम्
अक्रोत्स्यन्
१९८५. षिधंच् (सिध्) संराद्धौ । संराद्धिर्निष्पत्तिः ।
व० सिध्यति
०ध्ये
अशुधताम्
शुशुधतुः
शुध्यास्ताम्
शोद्धारौ
शोत्स्यतः
० असिध्यत्
अ० असिधत्
प० सिषेध
आ० सिध्यात्
श्व० सेद्धा
भ० सेत्स्यति
क्रि० असेत्स्यत्
सिध्यतः
सिध्येताम्
प० सिध्यतु/सिध्यतात् सिध्यताम्
असिध्यताम्
असिधताम्
सिषिधतुः
सिध्यास्ताम्
सेद्धारौ
सेत्स्यत:
व० ऋध्यति
स० ऋध्येत्
अशोत्स्यताम्
११८४. क्रुधंच् (क्रुष्) कोपे ।
क्रुध्यतः
क्रुध्येताम्
अशुधन्
शुशुधुः
शुध्यासुः
शोद्धारः
शोत्स्यन्ति
अशोत्स्यन्
ऋध्यतः
ऋध्येताम्
सिध्यन्ति
सिध्येयुः
सिध्यन्तु
असिध्यन्
असिधन्
सिषिधुः
सिध्यासुः
सेद्धारः
सेत्स्यन्ति
असेत्स्यन्
असेत्स्यताम्
११८६. ऋधंच् (ऋध्) वृद्धौ ।
ऋध्यन्ति
ऋध्येयुः
325
Page #343
--------------------------------------------------------------------------
________________
326
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
क्रि० अरधिष्यत्
अरधिष्यताम् अरधिष्यन्
तथा अरत्स्यताम् अरत्स्यन् अथ पान्ता नव सेटचा
क्रि० अरत्स्यत्
ऋध्यासुः
तृप्यसि तृप्यामि
गृध्यतः
तृप्येत
प० ऋध्यतु/ऋध्यतात् ऋध्यताम् ऋध्यन्तु ह्य० आय॑त् आय॑ताम् आय॑न् अ० आर्धत् आर्धताम् आर्धन् प० आनर्ध
आनृधतुः आन्धुः आ० ऋध्यात् ऋध्यास्ताम् श्व० अर्धिता अर्धितारौ अर्धितार: भ० अर्धिष्यति अर्धिष्यतः अर्धिष्यन्ति क्रि० आर्धिष्यत् आर्धिष्यताम् आर्धिष्यन्
११८७. गृध्च् (गृथ्) अभिकांक्षायाम्। व० गृध्यति
गृध्यन्ति स० गृध्येत् गृध्येताम् गृध्येयुः प० गृध्यतु/गृध्यतात् गृध्यताम् गृध्यन्तु ह्य० अगृध्यत् अगृध्यताम् अगृध्यन् अ० अगृधत् अगृधताम् अगृधन् प० जगई
जगृधतुः जगृधुः आ० गृध्यात् गृध्यास्ताम् गृध्यासुः श्व० गर्धिता गर्धितारौ गर्धितारः भ० गर्धिष्यति गर्धिष्यतः गर्धिष्यन्ति क्रि० अगर्धिष्यत् अगर्धिष्यताम् अगर्धिष्यन्
११८८. रधोच् (रथ्) हिंसासंराद्ध्योः । संसद्धिः पाकः। व० रध्यति रध्यतः रध्यन्ति स० रध्येत् रध्येताम् रध्येयुः प० रध्यतु/रध्यतात् रध्यताम्
रध्यन्तु ह्य० अरध्यत् अरध्यताम् अरध्यन् अ० अरधत्
अरधताम् प० ररन्ध ररन्धतुः ररन्धुः आ० रध्यात् रध्यास्ताम्
रध्यासुः श्व० रद्धा
रद्धारौ
रद्धार:
११८९. तृपौच (तृप्) प्रीतौ। तृप्तिः सौहित्यम्। व० तृप्यति तृप्यतः तृप्यन्ति
तृप्यथ:
तृप्यथ तृप्याव:
तृप्याम: स० तृप्येत् तृप्येताम् तृप्येयुः
तृप्ये: तृप्येतम्
तृप्येयम् तृप्येव तृप्येम प० तृप्यतु/तृप्यतात् तृप्यताम् तृप्यन्तु
तृप्य:/तृप्यतात् तृप्यतम् तृप्यत तृप्यानि तृप्याव
तृप्याम ह्य० अतृप्यत् अतृप्यताम् अतृप्यन्
अतृप्यः अतृप्यतम् अतृप्यत
अतृप्यम् अतृप्याव अतृप्याम अ० अतृपत् अतृपताम् अतृपन्
अतृपः अतृपतम् अतृपत अतृपतम् अतृपाव अतृपाम
तथा
अतीत् अतीः अतर्पिषम् अत्राप्सीत् अत्राप्सी:
अतर्पिष्टाम् अतर्पिष्टम् अतर्पिष्व
अतर्पिषुः अतर्पिष्ट अतर्पिष्म अत्राप्सुः अत्राप्त
अरधन्
अत्राप्सम्
अत्राप्स्म
अत्राप्ताम् अत्राप्तम् अत्राप्स्व
तथा अताप्र्ताम् अताप्तम् अतापर्व
तथा
रधितारौ
श्व० रधिता भ० रधिष्यति भ० रत्स्यति
अतार्सीत् अतासः
अतासम् प० ततर्प
ततर्पिथ
रधितारः रधिष्यन्ति रत्स्यन्ति
अताप्सुः अतात अताम ततृपुः ततृप
रधिष्यतः
ततपतुः ततृपथुः
रत्स्यतः
Page #344
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
327
ततर्प
ततपिव
ततृपिम तृप्यासुः तृप्यास्त तृप्यास्म
आ० तृप्यात्
तृप्याः
तृप्यासम् श्व० त्रप्ता
त्रप्तासि त्रप्तास्मि
तृप्यास्ताम् तृप्यास्तम् तृप्यास्व त्रप्तारौ
त्रप्तारः
त्रप्तास्थ:
त्रप्तास्थ
त्रप्तास्वः
त्रप्तास्मः
तथा
तप्र्ता तप्र्तासि तप्तस्म
तप्तरः तप्र्तास्थ तस्मिः
तर्पिता
तर्पितासि ... तर्पितास्मि भ० त्रप्स्यति
त्रप्स्यसि त्रप्स्यामि
तर्पितारः तर्पितास्थ तर्पितास्मः त्रप्स्यन्ति त्रप्स्यथ
अतर्पिष्यः अतर्पिष्यतम् अतर्पिष्यत अतर्पिष्यम् अतर्पिष्याव अतर्पिष्याम
११९०. दुपौच (दृप्) हर्षमोहनयोः। मोहनं गर्वः। व० दृप्यति दृप्यतः
दृप्यन्ति स० दृप्येत् दृप्येताम् दृप्येयुः प० दृप्यतु/दृप्यतात् दृप्यताम् दृप्यन्तु ह्य० अदृप्यत् अदृप्यताम्
अदृष्यन् अ० अदृपत् अदृपताम् अदृपन्
अदीत् अदर्पिष्टाम् अदर्पिषुः अद्राप्सीत् अद्राप्ताम् अद्राप्सुः
अदासीत् अदाप्र्ताम् अदाप्र्मुः प० ददर्प
ददृपतुः
ददृपुः आ० दृप्यात् दृप्यास्ताम् दृप्यासुः श्व० द्रप्ता
द्रप्तारौ
द्रप्तारः दर्ता दर्तारौ दप्तरः ... दर्पिता दर्पितारौ दर्पितारः भ० द्रप्स्यति
द्रप्स्यतः द्रप्स्यन्ति दय॑ति दय॑तः दय॑न्ति
दर्पिष्यति दर्पिष्यतः दर्पिष्यन्ति क्रि० अद्रप्स्यत् अद्रप्स्यताम् अद्रप्स्यन्
अदय॑त् अदय॑ताम् अदय॑न् अदर्पिष्यत् अदर्पिष्यताम् ___अदर्पिष्यन्
११९१. कुपच् (कुप्) कोपे। व० कुप्यति कुप्यतः कुप्यन्ति स० कुप्येत् कुप्येताम् कुप्येयुः प० कुप्यतु/कुप्यतात् कुप्यताम् कुप्यन्तु ह्य० अकुप्यत् अकुप्यताम् अकुप्यन् अ० अकुपत् अकुपताम् अकुपन् प० चुकोप चुकुपतुः चुकुपुः आ० कुप्यात् कुप्यास्ताम् कुप्याः श्व० कोपिता कोपितारौ कोपितारः भ० कोपिष्यति कोपिष्यतः कोपिष्यन्ति क्रि० अकोपिष्यत् अकोपिष्यताम् अकोपिष्यन्
त्रप्स्यामः
तप्र्तारौ तस्थिः तस्विः
तथा तर्पितारौ तर्पितास्थः तर्पितास्वः त्रप्स्यतः त्रप्स्यथः त्रप्स्यावः
तथा तय॑तः तय॑थः ताव: तर्पिष्यतः तर्पिष्यथः तर्पिष्याव: अत्रप्स्यताम् अत्रप्स्यतम् अत्रप्स्याव
तथा अतय॑ताम् अतय॑तम् अताव
तय॑ति तय॑सि तामि तर्पिष्यति तर्पिष्यसि
तर्पिष्यामि क्रि० अत्रप्स्यत्
अत्रप्स्य :
तय॑न्ति तय॑थ तामः तर्पिष्यन्ति तर्पिष्यथ तर्पिष्यामः अत्रप्स्यन् अत्रप्स्यत
अंत्रप्स्यम्
अत्रप्स्याम
अतय॑त् अतर्व्यः अतय॑म्
अतय॑न् अतयंत अताम
तथा
अतर्पिष्यत्
अतर्पिष्यताम्
अतर्पिष्यन्
Page #345
--------------------------------------------------------------------------
________________
328
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
लुप्यन्ति
लुलुपुः
डिप्यतः
११९२. गुपच् (गुप्) व्याकुलत्वे। व० गुप्यति गुप्यतः गुप्यन्ति स० गुप्येत् गुप्येताम् गुप्येयुः प० गुप्यतु/गुप्यतात् गुप्यताम् गुप्यन्तु ह्य० अगुप्यत् अगुप्यताम् अगुप्यन् अ० अगुपत् अगुपताम् अगुपन् प० जुगोप जुगुपतुः जुगुपुः आ० गुप्यात् गुप्यास्ताम् गुप्यासुः श्व० गोपिता गोपितारौ गोपितारः भ० गोपिष्यति गोपिष्यत: गोपिष्यन्ति क्रि० अगोपिष्यत् अगोपिष्यताम् अगोपिष्यन्
११९३. युपच् (युए) विमोहने। व० युप्यति
युप्यतः
युप्यन्ति स० युप्येत् युप्येताम् युप्येयुः प० युप्यतु/युप्यतात् युप्यताम् युप्यन्तु ह्य० अयुप्यत् अयुप्यताम् अयुप्यन् अ० अयुपत् अयुपताम् अयुपन् प० युयोप युयुपतुः युयुपुः आ० युप्यात् युप्यास्ताम् युप्यासुः श्व० योपिता योपितारौ योपितारः भ० योपिष्यति योपिष्यतः योपिष्यन्ति क्रि० अयोपिष्यत् अयोपिष्यताम् अयोपिष्यन्
११९४. रुपच् (रुप्) विमोहने। व० रुप्यति रुप्यतः रुप्यन्ति स० रुप्येत् रुप्येताम् प० रुप्यतु/रुप्यतात् रुप्यताम् ह्य० अरुप्यत् अरुप्यताम् अरुप्यन् अ० अरुपत् अरुपताम् अरुपन् प० रुरोप
रुरुपतुः आ० रुप्यात् रुप्यास्ताम् श्व० रोपिता रोपितारौ रोपितारः भ० रोपिष्यति रोपिष्यतः रोपिष्यन्ति क्रि० अरोपिष्यत् अरोपिष्यताम् अरोपिष्यन्
११९५. लुपच् (लुए) विमोहने। व० लुप्यति लुप्यतः स० लुप्येत् लुप्येताम् लुप्येयुः प० लुप्यतु/लुप्यतात् लुप्यताम् लुप्यन्तु ह्य० अलुप्यत् अलुप्यताम् अलुप्यन् अ० अलुपत् अलुपताम् अलुपन् प० लुलोप लुलुपतुः आ० लुप्यात् लुप्यास्ताम् लुप्यासुः श्व० लोपिता लोपितारौ लोपितारः भ० लोपिष्यति लोपिष्यतः लोपिष्यन्ति क्रि० अलोपिष्यत् अलोपिष्यताम् अलोपिष्यन्
११९६. डिपच् (डिप्) क्षेपे। व० डिप्यति
डिप्यन्ति स० डिप्येत् डिप्येताम् डिप्येयुः प० डिप्यतु/डिप्यतात् डिप्यताम् डिप्यन्तु ह्य० अडिप्यत् अडिप्यताम् अडिप्यन् अ० अडिपत् अडिपताम् अडिपन् प० डिडेप डिडिपतुः आ० डिप्यात्
डिप्यास्ताम् श्व० डेपिता डेपितारौ भ० डेपिष्यति डेपिष्यतः डेपिष्यन्ति क्रि० अडेपिष्यत् अडेपिष्यताम् अडेपिष्यन्
११९७. ष्टुपच् (स्तुप) समुच्छाये। व० स्तुप्यति स्तुप्यतः स्तुप्यन्ति स० स्तुप्येत् स्तुप्येताम् स्तुप्येयुः प० स्तुप्यतु/स्तुप्यतात् स्तुप्यताम् स्तुप्यन्तु ह्य० अस्तुप्यत् अस्तुप्यताम् अस्तुप्यन् अ० अस्तुपत् अस्तुपताम् अस्तुपन् प० तुष्टोप तुष्टुपतुः तुष्टुपुः
आ० स्तुप्यात् स्तुप्यास्ताम् स्तुप्यासुः । श्व० स्तोपिता स्तोपितारौ स्तोपितारः
भ० स्तोपिष्यति स्तोपिष्यतः स्तोपिष्यन्ति क्रि० अस्तोपिष्यत् अस्तोपिष्यताम् अस्तोपिष्यन्
डिडिपुः डिप्यासुः डेपितारः
EFFEEEEEEEER
रुप्येयुः रुप्यन्तु
रुरुपुः रुप्यासुः
Page #346
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
329
लुभ्यामि
लुभ्यत
अथ भान्ताश्चत्वारः सेटश्च। ११९८. लुभच् (लुभ्) गायें।
गाय॑मभिकाङ्क्षा। व० लुभ्यति लुभ्यतः लुभ्यन्ति लुभ्यसि
लुभ्यथ: लुभ्यथ
लुभ्यावः लुभ्यामः स० लुभ्येत् लुभ्येताम् लुभ्येयुः
लुभ्यः लुभ्येतम् लुभ्येत
लुभ्येयम् लुभ्येव लुभ्येम प० लुभ्यतु/लुभ्यतात् लुभ्यताम् लुभ्यन्तु
लुभ्यः/लुभ्यतात् लुभ्यतम् लुभ्यानि
लुभ्याव लुभ्याम ह्य० अलुभ्यत् अलुभ्यताम् अलुभ्यन्
अलुभ्यः अलुभ्यतम् अलुभ्यत
अलुभ्यम् अलुभ्याव अलुभ्याम अ० अलुभत् अलुभताम् अलुभन्
अलुभः अलुभतम् अलुभत
अलुभतम् अलुभाव अलुभाम प० लुलोभ लुलुभतुः लुलुभुः लुलोभिथ
लुलुभथुः लुलुभ
लुलुभिव लुलुभिम आ० लुभ्यात् लुभ्यास्ताम् लुभ्यासुः
लुभ्याः लुभ्यास्तम् लुभ्यास्त
लुभ्यासम् लुभ्यास्व लुभ्यास्म श्व० लोभिता लोभितारौ लोभितारः
लोभितासि लोभितास्थः लोभितास्थ लोभितास्मि लोभितास्वः लोभितास्म:
तथा लोब्धा
लोब्धारौ लोब्धारः लोब्धासि लोब्धास्थः लोब्धास्थ
लोब्धास्मि लोब्धास्वः भ० लोभिष्यति लोभिष्यतः लोभिष्यन्ति
लोभिष्यसि लोभिष्यथ: लोभिष्यथ
लोभिष्यामि लोभिष्याव: लोभिष्यामः क्रि० अलोभिष्यत् अलोभिष्यताम् अलोभिष्यन्
अलोभिष्यः अलोभिष्यतम् अलोभिष्यत अलोभिष्यम् अलोभिष्याव अलोभिष्याम
११९९. क्षुभच् (क्षुभ्) सञ्चलने
संचलनं रूपान्यथात्वम्। व० क्षुभ्यति क्षुभ्यतः क्षुभ्यन्ति स० क्षुभ्येत् क्षुभ्येताम् क्षुभ्येयुः प० क्षुभ्यतु/क्षुभ्यतात् क्षुभ्यताम् क्षुभ्यन्तु ह्य० अक्षुभ्यत् अक्षुभ्यताम् अक्षुभ्यन् अ० अक्षुभत् अक्षुभताम्
अक्षुभन् प० चुक्षोभ चुक्षुभतुः चुक्षुभुः आ० क्षुभ्यात् क्षुभ्यास्ताम् क्षुभ्यासुः श्व० क्षोभिता क्षोभितारौ क्षोभितार: भ० क्षोभिष्यति क्षोभिष्यतः क्षोभिष्यन्ति क्रि० अक्षोभिष्यत् अक्षोभिष्यताम् अक्षोभिष्यन्
द्यतादिपठितेनवाशुभदिति सिद्धम् श्यविकरणार्थं तु दिवादावयमवश्यं पठितव्य इति पुषादावपि पठति
१२००. णभच् (नभ्) हिंसायाम्। व० नभ्यति नभ्यतः
नभ्यन्ति स० नभ्येत्
नभ्येताम्
नभ्येयुः प० नभ्यतु/नभ्यतात् नभ्यताम् नभ्यन्तु ह्य० अनभ्यत् अनभ्यताम् अनभ्यन् अ० अनभत् अनभताम्
अनभन् प० ननाभ नेभतुः आ० नभ्यात् नभ्यास्ताम् नभ्यासुः श्व० नभिता नभितारौ नभितारः भ० नभिष्यति नभिष्यतः नभिष्यन्ति क्रि० अनभिष्यत् अनभिष्यताम् अनभिष्यन् - १२०१. तुभच् (तुभ्) हिंसायाम्। व० तुभ्यति तुभ्यतः तुभ्यन्ति स० तुभ्येत् तुभ्येताम् तुभ्येयुः प० तुभ्यतु/तुभ्यतात् तुभ्यताम् तुभ्यन्तु ह्य० अतुभ्यत् अतुभ्यताम् अतुभ्यन् अ० अतुभत् अतुभताम् अतुभन्
लुलोभ
नेभुः
लोब्धास्मः
Page #347
--------------------------------------------------------------------------
________________
330
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प० तुतोभ तुतुभतुः तुतुभुः आ० तुभ्यात् तुभ्यास्ताम् तुभ्यासुः श्व० तोभिता तोभितारौ तोभितारः भ० तोभिष्यति तोभिष्यतः तोभिष्यन्ति क्रि० अतोभिष्यत् अतोभिष्यताम् अतोभिष्यन्
अथ शान्ताः षट् सेटश्च। १२०२. नशौच् (नश्) अदर्शने। अदर्शनमनुपलब्धिः । व० नश्यति
नश्यतः
नश्यन्ति नश्यसि नश्यथः
नश्यथ नश्यामि नश्यावः नश्यामः स० नश्येत् नश्येताम् नश्येयुः . नश्ये: नश्येतम् नश्येत - नश्येयम् नश्येव
नश्येम प० नश्यतु/नश्यतात् नश्यताम् नश्यन्तु
नश्य:/नश्यतात् नश्यतम् नश्यत नश्यानि नश्याव
नश्याम ह्य० अनश्यत् अनश्यताम् अनश्यन् अनश्यः
अनश्यतम् अनश्यत अनश्यम् अनश्याव अनश्याम अ० अनेशत् अनेशताम् अनेशन्
अनेश: अनेशतम् अनेशत अनेशम् अनेशाव अनेशाम
तथा अनशत्
अनशताम् अनशन् अनश: अनशतम्
अनशत अनशम् अनशाव
अनशाम प० ननाश नेशिथ
नेशथुः ननाश/ननश नेशिव आ० नश्यात्
नश्यास्ताम् नश्यासुः नश्याः नश्यास्तम्
नश्यास्त नश्यासम्
नश्यास्व नश्यास्म श्व० नशिता नशितारौ
नशितारः नशितासि नशितास्थः नशितास्थ नशितास्मि नशितास्वः नशितास्मः
तथा नंष्टारौ
नंष्टासि नंष्टास्थः नंष्टास्थ
नंष्टास्मि नंष्टास्वः नंष्टास्मः भ० नशिष्यति
नशिष्यतः
नशिष्यन्ति नशिष्यसि नशिष्यथ: नशिष्यथ नशिष्यामि नशिष्याव: नशिष्यामः
तथा नक्ष्यति नझ्यत: नक्ष्यन्ति नक्ष्यसि नक्ष्यथ: नक्ष्यथ
नक्ष्यामि नक्ष्याव: नक्ष्यामः क्रि० अनशिष्यत् अनशिष्यताम् अनशिष्यन्
अनशिष्यः अनशिष्यतम् अनशिष्यत अनशिष्यम् अनशिष्याव अनशिष्याम
तथा अनझ्यत् अनक्ष्यताम् अनझ्यन् अनक्ष्यः अनझ्यतम् अनक्ष्यत अनक्ष्यम् अनझ्याव अनझ्याम
१२०३. कुशच् (कुश्) श्लेषणे। व० कुश्यति कुश्यत: कुश्यन्ति स० कुश्येत् कुश्येताम् कुश्येयुः प० कुश्यतु/कुश्यतात् कुश्यताम् कुश्यन्तु ह्य० अकुश्यत् अकुश्यताम् अकुश्यन् अ० अकुशत् अकुशताम् अकुशन् प० चुकोश चुकुशतुः चुकुशुः आ० कुश्यात् कुश्यास्ताम् कुश्यासुः श्व० कोशिता कोशितारौ कोशितार: भ० कोशिष्यति कोशिष्यतः कोशिष्यन्ति क्रि० अकोशिष्यत् अकोशिष्यताम् अकोशिष्यन्
१२०४. भृशूच् (भृश्) अधःपतने। व० भृश्यति भृश्यतः
भृश्यन्ति स० भृश्येत् भृश्येताम् भृश्येयुः प० भृश्यतु/भृश्यतात् भृश्यताम् भृश्यन्तु ह्य० अभृश्यत् अभृश्यताम् अभृश्यन् अ० अभृशत् अभृशताम् अभृशन् प० बभर्श बभृशतुः बभृशुः
नेशतुः
नेशुः नेश
नेशिम
नंष्टा
नंष्टारः
Page #348
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
331
शुष्यसि शुष्यामि
शुष्याव:
आ० भृश्यात् भृश्यास्ताम् भृश्यासुः श्व० भर्शिता भर्शितारौ भर्शितारः भ० भर्शिष्यति भर्शिष्यतः भर्शिष्यन्ति क्रि० अभर्शिष्यत् अभर्शिष्यताम् अभर्शिष्यन्
१२०५. भ्रंशूच् (भ्रंश) अधःपतने। व० भ्रश्यति भ्रश्यत:
भ्रश्यन्ति स० भ्रश्येत्
भ्रश्येताम्
भ्रश्येयुः प० भ्रश्यतु/भ्रश्यतात् भ्रश्यताम् भ्रश्यन्तु ह्य० अभ्रश्यत्
अभ्रश्यताम्
अभ्रश्यन् अ० अभ्रशत् अभ्रशताम् अभ्रशन् प० बभ्रंश बभ्रंशतुः बभ्रंशुः आ० भ्रश्यात् भ्रश्यास्ताम् भ्रश्यासुः श्व० भ्रंशिता भ्रंशितारौ भ्रंशितारः भ० भ्रंशिष्यति भ्रंशिष्यतः भ्रंशिष्यन्ति क्रि० अभ्रंशिष्यत् अभ्रंशिष्यताम् अभ्रंशिष्यन्
१२०६. वृशूच् (वृश्) वरणे। व० वृश्यति वृश्यतः स० वृश्येत् वृश्येताम् वृश्येयुः • प० वृश्यतु/वृश्यतात् वृश्यताम्
वृश्यन्तु ह्य० अवृश्यत् अवृश्यताम् अवृश्यन् अ० अवृशत् अवृशताम्
अवृशन् प० ववर्श
ववृशतु: ववृशुः आ० वृश्यात् वृश्यास्ताम् वृश्यासुः श्व० वर्शिता वर्शितारौ वर्शितारः भ० वर्शिष्यति वशिष्यतः वर्शिष्यन्ति क्रि० अवशिष्यत् अवशिष्यताम्। अवशिष्यन्
१२०७. कंशूच् (कंश) तनुत्वे। व० कृश्यति कृश्यतः
कृश्यन्ति स० कृश्येत् कृश्येताम् कृश्येयुः प० कृश्यतु/कृश्यतात् कृश्यताम् कृश्यन्तु ह्य० अकृश्यत् अकृश्यताम् अकृश्यन्
अ० अकृशत् अकृशताम् अकृशन् प० चकर्श चकृशतुः चकृशुः आ० कृश्यात् कृश्यास्ताम् कृश्यासुः श्व० कर्शिता कर्शितारौ कर्शितार: भ० कर्शिष्यति कर्शिष्यतः कर्शिष्यन्ति क्रि० अकर्शिष्यत् अकर्शिष्यताम् अकर्शिष्यन्
अथ पान्ता नव
१२०८. शुषंच् (शुष्) शोषणे। व० शुष्यति शुष्यतः शुष्यन्ति
शुष्यथ: शुष्यथ
शुष्यामः स० शुष्येत् शुष्येताम् शुष्येयुः
शुष्ये: शुष्येतम् शुष्येत शुष्येयम् शुष्येव
शुष्येम प० शुष्यतु/शुष्यतात् शुष्यताम् शुष्यन्तु शुष्य:/शुष्यतात् शुष्यतम्
शुष्यत
शुष्याव शुष्याम ह्य० अशुष्यत् अशुष्यताम् अशुष्यन्
अशुष्यः अशुष्यतम् अशुष्यत
अशुष्यम् अशुष्याव अशुष्याम अ० अशुषत् अशुषताम् अशुषन् अशुषः
अशुषतम् अशुषत अशुषम् अशुषाव
अशुषाम | प० शुशोष शुशुषतुः शुशुषुः शुशोषिथ
शुशुषथुः शुशुष • शुशोष शुशुषिव शुशुषिम आ० शुष्यात् शुष्यास्ताम् शुष्यासुः
शुष्याः शुष्यास्तम् शुष्यास्त
शुष्यासम् शुष्यास्व शुष्यास्म श्व० शोष्टा शोष्टारौ शोष्टारः
शोष्टासि शोष्टास्थ: शोष्टास्थ शोष्टास्मि शोष्टास्वः शोष्टास्मः
13113111
शुष्याणि
वृश्यन्ति
111114
Page #349
--------------------------------------------------------------------------
________________
332
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तृष्यन्ति
प० प्लुष्यतु/प्लुष्यतात् प्लुष्यताम् प्लुष्यन्तु ह्य० अप्लुष्यत् अप्लुष्यताम् अप्लुष्यन् अ० अप्लुषत् अप्लुषताम् अप्लुषन् प० पुप्लोष पुप्लुषतुः पुप्लुषुः आ० प्लुष्यात् प्लुष्यास्ताम् प्लुष्यासुः श्व० प्लोषिता प्लोषितारौ प्लोषितारः भ० प्लोषिष्यति प्लोषिष्यतः प्लोषिष्यन्ति क्रि० अप्लोषिष्यत् अप्लोषिष्यताम् अप्लोषिष्यन्
१२१२. जितृषच् (तृष्) पिपासायाम्। व० तृष्यति तृष्यतः स० तृष्येत् तृष्येताम् तृष्येयुः प० तृष्यतु/तृष्यतात् तृष्यताम् ह्य० अतृष्यत् अतृष्यताम् अतृष्यन् अ० अतृषत् अतृषताम् अतृषन् प० ततर्ष
ततृषतुः
ततृषुः आ० तृष्यात् तृष्यास्ताम् तृष्यासुः श्व० तर्षिता तर्षितारौ तर्षितारः भ० तर्षिष्यति तर्षिष्यतः तर्षिष्यन्ति क्रि० अतर्षिष्यत् अतर्षिष्यताम् अतर्षिष्यन्
_१२१३. तुषच् (तुष्) तुष्टौ। तुष्टिः प्रोप्तिः।
अदुषन्
भ० शोक्ष्यति शोक्ष्यतः शोक्ष्यन्ति
शोक्ष्यसि शोक्ष्यथः शोक्ष्यथ
शोक्ष्यामि शोक्ष्याव: शोक्ष्यामः क्रि० अशोक्ष्यत् अशोक्ष्यताम् अशोक्ष्यन् अशोक्ष्यः अशोक्ष्यतम्
अशोक्ष्यत अशोक्ष्यम् अशोक्ष्याव अशोक्ष्याम
१२०९. दुषंच् (दुष्) वैकृत्ये। रूपभङ्ग इत्यर्थः। व० दुष्यति दुष्यतः दुष्यन्ति स० दुष्येत् दुष्येताम् दुष्येयुः प० दुष्यतु/दुष्यतात् दुष्यताम् दुष्यन्तु ह्य० अदुष्यत् अदुष्यताम् अदुष्यन् अ० अदुषत् अदुषताम् प० दुदोष दुदुषतुः दुदुषुः आ० दुष्यात् दुष्यास्ताम् दुष्यासुः श्व० दोष्टा दोष्टारौ
दोष्टारः भ० दोक्ष्यति
दोक्ष्यन्ति क्रि० अदोक्ष्यत् अदोक्ष्यताम् अदोक्ष्यन्
१२१०. श्लिषंच् (श्लिष्) आलिङ्गने। व० श्लिष्यति श्लिष्यतः श्लिष्यन्ति स० श्लिष्येत् श्लिष्येताम् श्लिष्येयुः प० श्लिष्यतु/श्लिष्यतात् श्लिष्यताम् श्लिष्यन्तु ह्य० अश्लिष्यत् अश्लिष्यताम् अश्लिष्यन् अ० अश्लिक्षत् अश्लिक्षताम् अश्लिक्षन् अश्लिषत्
अश्लिषताम् अश्लिषन् प० शिश्लेष शिश्लिषतुः आ० श्लिष्यात् श्लिष्यास्ताम् श्लिष्यासुः श्व० श्लेष्टा श्लेष्टारौ श्लेष्टारः भ० श्लेक्ष्यति श्लेक्ष्यतः श्लेक्ष्यन्ति क्रि० अश्लेक्ष्यत् अश्लेक्ष्यताम् अश्लेक्ष्यन्
१२११. प्लुषूच् (प्लुष्) दाहे। व० प्लुष्यति प्लुष्यतः प्लुष्यन्ति स० प्लुष्येत् प्लुष्येताम् प्लुष्येयुः
तृष्यन्तु
दोक्ष्यतः
तुष्यन्ति
तुष्येयुः
शिश्लिषुः
तुष्यन्तु अतुष्यन् अतुषन्
व० तुष्यति
तुष्यतः स० तुष्येत् तुष्येताम् प० तुष्यतु/तुष्यतात् तुष्यताम् ह्य० अतुष्यत् अतुष्यताम् अ० अतुषत् अतुषताम् प० तुतोष
तुतुषतुः आ० तुष्यात् तुष्यास्ताम् श्व० तोष्टा तोष्टारौ भ० तोक्ष्यति तोक्ष्यतः क्रि० अतोक्ष्यत् अतोक्ष्यताम्
तुतुषुः तुष्यासुः तोष्टारः तोक्ष्यन्ति अतोक्ष्यन्
Page #350
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
333
१२१४. हृषच् (हष्) तुष्टौ। तुष्टिः प्रीतिः। व० हृष्यति हृष्यतः
हृष्यन्ति स० हृष्येत् हृष्येताम् हृष्येयुः प० हृष्यतु/हृष्यतात् हृष्यताम्
हृष्यन्तु ह्य० अहृष्यत् अहृष्यताम् अहृष्यन् अ० अहषत् अहषताम्
अहृषन् प० जहर्ष जहषतुः जहषुः आ० हृष्यात् हृष्यास्ताम् हृष्यासुः श्व० हर्षिता हर्षितारौ हर्षितार: भ० हर्षिष्यति हर्षिष्यतः हर्षिष्यन्ति क्रि० अहर्षिष्यत् अहर्षिष्यताम् अहर्षिष्यन्
१२१५. रुषच् (रुष्) रोषे। व० रुष्यति रुष्यतः
रुष्यन्ति स० रुष्येत् रुष्येताम् रुष्येयुः प० रुष्यतु/रुष्यतात् रुष्यताम्
रुष्यन्तु ह्य० अरुष्यत् अरुष्यताम् अरुष्यन् अ० अरुषत् अरुषताम् अरुषन् प० रुरोष
रुरुषतुः रुरुषुः आ० रुष्यात् रुष्यास्ताम् रुष्यासुः श्व० रोष्टा
रोष्टारौ
रोष्टारः रोषिता रोषितारौ रोषितारः भ० रोषिष्यति रोषिष्यतः रोषिष्यन्ति क्रि० अरोषिष्यत् अरोषिष्यताम् अरोषिष्यन्
__ १२१६. प्युषूच् (प्युष्) विभागे। व० प्युष्यति प्युष्यतः प्युष्यन्ति स० प्युष्येत् प्युष्येताम् प्युष्येयुः प० प्युष्यतु/प्युष्यतात् प्युष्यताम् प्युष्यन्तु ह्य० अप्युष्यत् अप्युष्यताम् अप्युष्यन् अ० अप्युषत् अप्युषताम् अप्युषन् प० पुप्योष
पुप्युषतुः पुप्युषुः आ० प्युष्यात् प्युष्यास्ताम् .. प्युष्यासुः श्व० प्योषिता प्योषितारौ . प्योषितार:
| भ० प्योषिष्यति प्योषिष्यतः प्योषिष्यन्ति क्रि० अप्योषिष्यत् अप्योषिष्यताम अप्योषिष्यन
अथ सान्तास्त्रयोदश सेटश्च।
१२ १७. प्युषूच् (प्युष्) विभागे। व० प्युस्यति प्युस्यतः प्युस्यन्ति
प्युस्यसि प्युस्यथः प्युस्यथ
प्युस्यामि प्युस्याव: प्युस्याम: स० प्युस्येत् प्युस्येताम् प्युस्येयुः
प्युस्ये: प्युस्येतम् प्युस्येत
प्युस्येयम् प्युस्येव प्युस्येम प० प्युस्यतु/प्युस्यतात् प्युस्यताम् प्युस्यन्तु
प्युस्यः/प्युस्यतात् प्युस्यतम् प्युस्यत
प्युस्यानि प्युस्याव प्युस्याम ह्य० अप्युस्यत् अप्युस्यताम् अप्युस्यन्
अप्युस्यः अप्युस्यतम् अप्युस्यत
अप्युस्यम् अप्युस्याव अप्युस्याम अ० अप्युसत् अप्युसताम् अप्युसन्
अप्युसः अप्युसतम् अप्युसत
अप्युसम् अप्युसाव अप्युसाम प० पुप्योस पुप्युसतुः पुप्युसुः पुप्योसिथ पुप्युसथुः
पुप्योसिव पुप्योसिम आ० प्युस्यात् प्युस्यास्ताम् प्युस्यासुः
प्युस्याः प्युस्यास्तम् प्युस्यास्त
प्युस्यासम् प्युस्यास्व प्युस्यास्म श्व० प्योसिता प्योसितारौ प्योसितारः
प्योसितासि प्योसितास्थ: प्योसितास्थ
प्योसितास्मि प्योसितास्वः प्योसितास्मः भ० प्योसिष्यति प्योसिष्यतः प्योसिष्यन्ति
प्योसिष्यसि प्योसिष्यथ: प्योसिष्यथ प्योसिष्यामि प्योसिष्याव: प्योसिष्यामः
पुप्युस
पुप्योस
Page #351
--------------------------------------------------------------------------
________________
334
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
यस्येताम्
यसेत्
यसेयुः
अयसन्
अस्येयुः
अयसन्
येसतुः
येसुः
क्रि० अप्योसिष्यत् अप्योसिष्यताम् अप्योसिष्यन् यसति यसतः
यसन्ति अप्योसिष्यः अप्योसिष्यतम् अप्योसिष्यत । स० यस्येत्
यस्येयुः अप्योसिष्यम् अप्योसिष्याव अप्योसिष्याम
यसेताम् १२१८. पुषूच् (पुष्) विभागे। | प० यस्यतु/यस्यतात् यस्यताम्
यस्यन्तु व० पुस्यति पुस्यतः पुस्यन्ति, इत्यादि। । यसतु/यसतात् यसताम् यसन्तु १२१९. विसच् (विस्) प्रेरणे।
ह्य० अयस्यत् अयस्यताम् अयस्यन् व० विस्यति विस्यतः विस्यन्ति, इत्यादि अयसत् अयसताम् १२२०. कुसच् (कुस्) श्लेषे।
__ अन्योपसर्गपूर्वस्तु नित्यं श्यभाक्, यथाव० कुस्यति कुस्यतः कुस्यन्ति, इत्यादि।
व० प्रयस्यति
प्रयस्यतः प्रयस्यन्ति
प्रयस्येताम्
स० प्रयस्येत् १२२१. असूच (अस्) क्षेपणे।
प्रयस्येयुः
प० प्रयस्यतु/प्रयस्यतात् प्रयस्यताम् प्रयस्यन्तु व० अस्यति अस्यतः
अस्यन्ति
ह्य० प्रायस्यत् प्रायस्यताम् प्रायस्यन् स० अस्येत् अस्येताम्
अ० अयसत्
अयसताम् प० अस्यतु/अस्यतात् अस्यताम्
अस्यन्तु
प० ययास ह्य० आस्यत् आस्यताम् आस्यन् अ० आस्थत्
यस्यास्ताम् आ० यस्यात् आस्थन् आस्थताम्
यस्यासुः
यसितारौ
श्व० यसिता प० आस
यसितारः आसतुः आसुः भ० यसिष्यति
यसिष्यन्ति आ० अस्यात् अस्यास्ताम् अस्यासुः
यसिष्यत: श्व० असिता असितारौ असितारः
क्रि० अयसिष्यत् अयसिष्यताम अयसिष्यन भ० असिष्यति असिष्यतः असिष्यन्ति
१२२३. जसूच् (जस्) मोक्षणे। क्रि० आसिष्यत् आसिष्यताम् आसिष्यन् व० जस्यति
जस्यतः
जस्यन्ति संपूर्वस्यानुपसर्गस्य च वा श्यः।
स० जस्येत् जस्येताम् जस्येयुः १२२२. यसूच् (यस्) प्रयत्ने।
प० जस्यतु/जस्यतात् जस्यताम् जस्यन्तु व० संयस्यति संयस्यतः संयस्यन्ति ह्य० अजस्यत् अजस्यताम् अजस्यन् संयसति संयसतः संयसन्ति
अ० अजसत् अजसताम् अजसन् स० संयस्येत् संयस्येताम् संयस्येयु: प० जजास जेसतुः संयसेत् संयसेताम् संयसेयुः
आ० जस्यात् जस्यास्ताम् जस्यासुः प० संयस्यतु/संयस्यतात् संयस्यताम् संयस्यन्तु श्व० जसिता जसितारौ जसितारः संयसतु/संयसतात् संयसताम् संयसन्तु
भ० जसिष्यति जसिष्यतः जसिष्यन्ति ह्य० समयस्यत् समयस्यताम् समयस्यन्
क्रि० अजसिष्यत् . अजसिष्यताम् अजसिष्यन् समयसत् समयसताम् समयसन्
१२२४. तसू (तस्च्) उपक्षये। . व० यस्यति
यस्यतः यस्यन्ति | व० तस्यति तस्यतः
तस्यन्ति
स्यतः
जेसुः
Page #352
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
स तस्येत्
तस्येताम्
प० तस्यतु / तस्यतात् तस्यताम्
ह्य० अतस्यत्
अतस्यताम्
अ० अतसत्
अतसताम्
प० ततास
तेसतुः
आ० तस्यात् श्व० तसिता
भ० तसिष्यति
क्रि० अतसिष्यत्
व० दस्यति
सदस्येत्
तस्यास्ताम्
तसितारौ
तसिष्यतः
दस्यतः
दस्ताम्
प० दस्यतु/दस्यतात् दस्यताम्
ह्य० अदस्यत्
अदस्यताम्
अ० अदसत्
अदसताम्
प० ददास
देसतुः
आ० दस्यात्
श्व० दसिता
भ० दसिष्यति
क्रि० अदसिष्यत्
अतसिष्यताम्
१२२५. दसूच् (दस्) उपक्षये ।
दस्यास्ताम्
दसितारौ
दसिष्यतः
तस्येयुः
तस्यन्तु
अतस्यन्
व० वस्यति
० वस्त्
ताम्
प० वस्यतु/ वस्यतात् वस्यताम्
ह्य० अवस्यत्
अवस्यताम्
अ० अवसत्
अवसताम्
प० ववास
ववसतुः
आ० वस्यात्
वस्यास्ताम्
श्व० वसिता
वसितारौ
भ० वसिष्यति
वसिष्यतः
क्रि० अवसिष्यत्
अवसिष्यताम्
अतसन्
तेसुः
तस्यासुः
तसितार:
तसिष्यन्ति
अतसिष्यन्
दस्यन्ति
दस्युः
दस्यन्तु
अदस्यन्
अदसन्
देसुः
दस्यासुः
दसितार:
दसिष्यन्ति
अदसिष्यन्
अदसिष्यताम्
१२२६. वसूच् (वस्) स्तम्भे ।
वस्यतः
वस्यन्ति
वस्येयुः
वस्यन्तु
अवस्यन्
अवसन्
ववसुः
वस्यासुः
वसितार:
वसिष्यन्ति
अवसिष्यन्
१२२७. वुसच् (वुस्) उत्सर्गे । उत्सर्गस्त्यागः ।
व० वस्यति
स० वुस्येत्
ताम्
प० वुस्यतु/ वुस्यतात् वुस्यताम्
ह्य० अवस्यत्
अ० अवसत्
प० वुवोस
आ० वुस्यात्
श्व० वोसिता
भ० वोसिष्यति
क्रि० अवोसिष्यत्
व० मुस्यति
समस्येत्
अ० अमुसत्
प० मुमोस
मुस्यतः
मुम्
प० मुस्यतु/मुस्यतात् मुस्यताम्
ह्य० अमुस्यत्
अमुस्यताम्
अमुसताम्
मुमुसतुः
मुस्यास्ताम्
मोसितारौ
मोसिष्यतः
आ० मुस्यात्
श्व० मोसिता
भ० मोसिष्यति
. क्रि० अमोसिष्यत्
वुस्यतः
अवस्यताम्
अवुसताम्
वुवुसतुः
वुस्यास्ताम्
वोसितारौ
वोसिष्यतः
व० शाम्यति
शाम्यसि
शाम्यामि
सo शाम्येत्
अवोसिष्यताम्
१२२८. मुसच् (मुस्) खण्डने ।
वस्यन्ति
वस्येयुः
वुस्यन्तु
अवस्यन्
अवुसन्
वुवुसुः
वुस्यासुः
वोसितार:
वोसिष्यन्ति
अवोसिष्यन्
अमोसिष्यताम्
अमोसिष्यन्
१२२९. मसैच् (मस्) परिणामे । परिणामो विकारः ।
व० मस्यति
मस्यतः
मस्यन्ति, इत्यादि । अथ शमादीनां सेट सप्तकं श्ये दीर्घार्थं मदैच्पर्यन्तं चाष्टकं घिनार्थं प्रदर्श्यते । तत्र च बहुत्वा । मान्ताः षडादौ
१२३०. शमूच् (शम्) उपशमे।
शाम्यतः
शाम्यथ:
शाम्यावः
शाम्यताम्
मुस्यन्ति
मुस्येयुः
मुस्यन्तु
अमुस्यन्
अमुसन्
मुमुसुः
मुस्यासुः
मोसितार:
मोसिष्यन्ति
335
शाम्यन्ति
शाम्यथ
शाम्यामः
शाम्येयुः
Page #353
--------------------------------------------------------------------------
________________
336
शाम्येः
शाम्येयम्
प० शाम्यतु / शाम्यतात् शाम्यताम्
शाम्य: / शाम्यतात् शाम्यतम्
शाम्यानि
शाम्याव
हा० अशाम्यत्
अशाम्य:
अशाम्यम्
अ० अशमत्
अशम:
अशमम्
प० शशाम
शेमिथ
शशाम / शशम
आ० शम्यात्
शम्याः
शम्यासम्
श्व० शसिता
शमितासि
शमितास्मि
भ० शमिष्यति
शमिष्यसि
. शमिष्यामि
क्रि० अशमिष्यत्
शाम्तम्,
शाम्येव
अशाम्यताम्
अशाम्यतम्
अशाम्याव
अशमताम्
अशमतम्
अशमाव
शेमतुः
शेमथुः
शेमिव
शम्यास्ताम्
शम्यास्तम्
शम्यास्व
शमितारी
शमितास्थः
शमितास्वः
शमिष्यतः
शमिष्यथः
शमिष्यावः
अशमिष्यताम्
अशमिष्य: अशमिष्यतम्
अशमिष्यम् अशमिष्याव
व० दाम्यति
स० [दाम्येत्
प० दाम्यतु / दाम्यतात् दाम्यताम्
ह्य० अदाम्यत्
अदाम्यताम्
शाम्यत
शाम्येम
दाम्यतः
दाम्येताम्
शाम्यन्तु
शाम्यत
शाम्याम
अशाम्यन
अशाम्यत
अशाम्याम
अशमन्
अशमत
अशमाम
शेमुः
शेम
शेमिम
शम्यासुः
शम्यास्त
शम्यास्म
शमितार:
शमितास्थ
१२३१. दमूच् (दम्) उपशमे ।
शमितास्मः
शमिष्यन्ति
शमिष्यथ
शमिष्यामः
अशमिष्यन्
अशमिष्यत
अशमिष्याम
दाम्यन्ति
दाम्येयुः
दाम्यन्तु
अदाम्यन्
अ० अदमत्
प० ददाम
आ० दम्यात्
श्व० दमिता
भ० दमिष्यति
क्रि० अदमिष्यत्
व० श्राम्यति
व० ताम्यति
साम्येत्
प० ताम्यतु / ताम्यतात् ताम्यताम्
डा० अताम्यत्
अताम्यताम्
अ० अतमत्
अतमताम्
प० तताम
तेमतुः
आ० तम्यात्
श्व० तमिता
भ० तमिष्यति
क्रि० अतमिष्यत्
व० भ्राम्यति
भ्राम्यसि
भ्राम्यामि
भ्रमति
भ्रमसि
अदमताम्
देमतुः
१२३२. तमूच् (तम्) काङ्क्षायाम्।
दम्यास्ताम्
दम्यासुः
दमितारौ
दमितार:
दमिष्यतः
दमिष्यन्ति
अदमिष्यताम् अदमिष्यन्
भ्रमामि
स० [भ्राम्येत्
भ्राम्येः
भ्राम्येयम्
ताम्यतः
ताम्येताम्
तम्यास्ताम्
तमितारौ
तमिष्यतः
अतमिष्यताम्
१२३३. श्रमूच् (श्रम्) खेदतपसो : ।
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अदमन्
देमुः
श्राम्यतः,
१२३४. भ्रमूच् (भ्रम्) अनवस्थानम् । १
भ्राम्यन्ति
भ्राम्यथ
भ्राम्यामः
भ्राम्यतः
भ्राम्यथः
भ्राम्यावः
तथा
भ्रमतः
भ्रमथः
भ्रमावः
भ्राम्येताम्
भ्राम्येम्
भ्राम्येव
१. अनवस्थानं देशान्तरगमनं ।
ताम्यन्ति
ताम्येयुः
ताम्यन्तु
अताम्यन्
अतमन्
तेमुः
तथा
तम्यासुः
तमितार:
तमिष्यन्ति
अतमिष्यन्
श्राम्यन्ति इत्यादि
भ्रमन्ति
भ्रमथ
भ्रमावः
भ्राम्येयुः
भ्राम्येत
भ्राम्येम
Page #354
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
337
भ्रमेयुः
भ्रमेत् भ्रमः भ्रमेयम्
भ्रमेताम् भ्रमेतम्
भ्रमेव प० भ्राम्यतु/भ्राम्यतात् भ्राम्यताम्
भ्राम्य:/भ्राम्यतात् भ्राम्यतम् भ्राम्याणि भ्राम्याव
भ्रमेत भ्रमम भ्राम्यन्तु भ्राम्यत भ्राम्याम
तथा
भ्रमताम् भ्रमतम्
भ्रमन्तु भ्रमत
भ्रमाव
भ्रमाम
भ्रमतु/भ्रमतात् भ्रम/भ्रमतात्
भ्रमाणि ह्य० अभ्राम्यत्
अभ्राम्यः अभ्राम्यम्
क्षन्ता
अभ्राम्यताम् अभ्राम्यतम्
अभ्राम्यन् अभ्राम्यत
अभ्राम्याव
अभ्राम्याम
तथा
अभ्रमताम्
अभ्रमतम्
अभ्रमाव अभ्रमताम् अभ्रमतम् अभ्रमाव
अभ्रमन् अभ्रमत अभ्रमाम अभ्रमन् अभ्रमत अभ्रमाम
अभ्रमिष्यम् अभ्रमिष्याव अभ्रमिष्याम
१२३५. क्षमौच (क्षम्) सहने। व० क्षाम्यति क्षाम्यतः क्षाम्यन्ति स० क्षाम्येत् क्षाम्येताम् क्षाम्येयुः प० क्षाम्यतु/क्षाम्यतात् क्षाम्यताम् क्षाम्यन्तु ह्य० अक्षाम्यत् अक्षाम्यताम् अक्षाम्यन् अ० अक्षमत् अक्षमताम्
अक्षमन् प० चक्षाम चक्षमतुः चक्षमुः आ० क्षम्यात् क्षम्यास्ताम् क्षम्यासुः श्व० क्षमिता क्षमितारौ क्षमितारः
क्षन्तारौ क्षन्तार: भ० क्षमिष्यति क्षमिष्यतः क्षमिष्यन्ति क्षस्यति क्षस्यतः
क्षस्यन्ति क्रि० अक्षमिष्यत् अक्षमिष्यताम् अक्षमिष्यन् अक्षस्यत् अक्षस्यताम् अक्षस्यन्
अथ दान्तः।
१२३६. मदैच् (मद्) हर्षे। व० माद्यति माद्यतः माद्यन्ति माद्यसि माद्यथ:
माद्यथ माद्याम माद्यावः
माद्यामः स० माद्येत् माद्येताम
माद्यः माद्यतम् माद्येत माद्येयम् माद्येव
माद्येम प० माद्यतु/माद्यतात् माद्यताम् माद्यन्तु माद्य:/माद्यतात् माद्यतम्
माद्यत माद्यानि माद्याव
माद्याम ह्य० अमाद्यत् अमाद्यताम् अमाद्यन् अमाद्यः अमाद्यतम्
अमाद्यत अमाद्यम् अमाद्याव
अमाद्याम अ० अमदत्
अमदताम्
अमदन् अमदः
अमदतम् अमदत अमदम् अमदाव
अमदाम प० ममाद
मेदथुः
बभ्रमतुः
माद्येयुः
बभ्रमः बभ्रम
बभ्रमथुः
अभ्रमत् अभ्रमः
अभ्रमम् अ० अभ्रमत्
अभ्रमः
अभ्रमम् प० बभ्राम
बभ्रमिथ भ्रमिथ
बभ्राम/बभ्रम आ० भ्रम्यात्
भ्रम्या:
भ्रम्यासम् श्व० भ्रमिता
भ्रमितासि
भ्रमितास्मि भ० भ्रमिष्यति
भ्रमिष्यसि
भ्रमिष्यामि क्रि० अभ्रमिष्यत्
अभ्रमिष्यः
भ्रेमिथुः
बभ्रमिव भ्रम्यास्ताम् भ्रम्यास्तम् भ्रम्यास्व भ्रमितारौ भ्रमितास्थः भ्रमितास्वः भ्रमिष्यतः भ्रमिष्यथः भ्रमिष्याव: अभ्रमिष्यताम् अभ्रमिष्यतम्
बभ्रमिम भ्रम्यासुः भ्रम्यास्त भ्रम्यास्म भ्रमितारः भ्रमितास्थ भ्रमितास्मः भ्रमिष्यन्ति भ्रमिष्यथ भ्रमिष्यामः अभ्रमिष्यन् अभ्रमिष्यत .
मेदतुः
मेदिथ
मेद
Page #355
--------------------------------------------------------------------------
________________
338
ममाद
आ० मद्यात्
मद्या:
मद्यासम्
मद्यास्व
मदितारौ
मदितासि
मदितास्थः
मदितास्मि मदितास्वः
मदिष्यतः
मदिष्यथः
मदिष्यावः
श्व० मदिता
भ० मदिष्यति
मदिष्यसि
मदिष्याम
क्रि० अमदिष्यत्
अमदिष्यः
अमदिष्यम्
व० क्लाम्यति
क्लाम्यसि
क्लाम्यामि
सक्लाम्येत्
क्लाम्येः
१२३७. क्लमूच् (क्लम्) ग्लानौ ।
क्लाम्यानि
ह्य० अक्लाम्यत्
अक्लाम्यः
अक्लाम्यम्
अ० अक्लमत्
अक्लमः
अक्लमम्
प० चक्लाम
मेदिव
मद्यास्ताम्
मद्यास्तम्
क्लाम्येव
प० क्लाम्यतु/ क्लाम्यतात् क्लाम्यताम्
क्लाम्यः/क्लाम्यतात् क्लाम्यतम्
मद्यास्म
मदितार:
मदितास्थ
मदितास्मः
मदिष्यन्ति
मदिष्यथ
मदिष्यामः
अमदिष्यताम् अमदिष्यन्
अमदिष्यतम् अमदिष्यत
अमदिष्याव अमदिष्याम
आ० क्लम्यात्
क्लाम्यतः
क्लाम्यथः
क्लाम्यावः
क्लाम्येताम्
चक्लमतुः
चक्लमिथ
चक्लमथुः
चक्लाम/ चक्लम चक्लमिव
मेदिम
मद्यासुः
मद्यास्त
अक्लमताम्
अक्लमतम्
अक्लमाव
क्लाम्यन्तु
क्लाम्यत
क्लाम्याम
क्लाम्याव अक्लाम्यताम् अक्लाम्यन्
अक्लाम्यतम् अक्लाम्यत
अक्लाम्याव
अक्लाम्याम
अक्लमन्
अक्लमत
अक्लमाम
चक्लमुः
चक्लम
चक्लमिम
क्लम्यासुः
क्लम्यास्ताम्
क्लाम्यन्ति
क्लाम्यथ
क्लाम्यामः
क्लाम्येयुः
क्लाम्येत
क्लाम्येम
क्लम्याः क्लम्यासम्
श्व० क्लमिता
क्लमितासि
क्लमितास्मि
भ० क्लमिष्यति
क्लमिष्यसि
क्लमिष्यामि
क्रि० अक्लमिष्यत्
अक्लमिष्यः
अक्लमिष्यम्
व० मुह्यति
मुह्यसि
मुह्याम
समुह्येत्
मुह्ये:
मुह्येयम्
प० मुह्यतु / मुह्यतात्
मुह्य:/मुह्यतात्__
मुह्यानि
ह्य० अमुह्यत्
अमुह्यः
अमुह्यम्
अ० अमुहत्
अमुहः
अमुहम्
प० मुमोह
१२३८. मुहौच् (मुह) वैचित्ये । वैचित्त्यमविवेकः
अथ प्रकृतवर्णक्रमेण हान्तश्चत्वारः ।
मोहिथ
मोह
क्लम्यास्तम्
क्लम्यास्व
क्लमिता
आ० मुह्यात्
मुह्या:
मुह्यासम्
क्लम्यास्त
क्लम्यास्म
क्लमितार:
क्लमितास्थः
क्लमितास्थ
क्लमितास्वः क्लमितास्मः
क्लमिष्यतः
क्लमिष्यन्ति
क्लमिष्यथः क्लमिष्यथ
क्लमिष्यावः
क्लमिष्यामः
अक्लमिष्यताम् अक्लमिष्यन् अक्लमिष्यतम् अक्लमिष्यत
अक्लमिष्याव अक्लमिष्याम
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मुह्यतः
मुह्यथः
मुह्याव:
मुह्येताम्
मुह्येतम्
मुह्येव
मुह्यताम्
मुह्यतम्
मुह्याव
अमुह्यताम्
अमुह्यतम्
अमुह्याव
अमुहताम्
अमुहतम्
अमुहाव
मुमुहतुः
मुमुहथुः
मुमुहि
मुह्यास्ताम्
मुह्यास्तम्
मुह्यास्व
मुह्यन्ति
मुह्यथ
मुह्यामः
मुह्येयुः
मुह्येत
मुम
मुह्यन्तु
मुह्यत
मुह्याम
अमुह्यन्
अमुह्यत
अमुह्याम
अमुहन्
अमुहत
अमुहाम
मुमुहुः
मुमुह
मुमुहिम
मुह्यासुः
मुह्यास्त
मुह्यास्म
Page #356
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
339
श्व० मोग्धा
मोग्धासि मोग्धास्म
मोग्धारौ मोग्धास्थः मोग्धास्व:
मोग्धारः मोग्धास्थ मोग्धास्मः
ध्रोक्ष्यतः
तथा
मोढा
स्नोहिता
मोढारौ मोढारः मोढासि
मोढास्थः मोढास्थ मोढास्मि मोढास्वः मोढास्मः
तथा मोहिता मोहितारौ मोहितारः मोहितासि मोहितास्थ:
मोहितास्थ मोहितास्मि मोहितास्वः मोहितास्मः भ० मोहिष्यति मोहिष्यतः मोहिष्यन्ति
मोहिष्यसि मोहिष्यथः.. मोहिष्यथ मोहिष्याम मोहिष्याव: मोहिष्यामः
तथा मोक्ष्यति मोक्ष्यतः मोक्ष्यन्ति मोक्ष्यसि मोक्ष्यथ: मोक्ष्यथ मोक्ष्याम
मोक्ष्याव: मोक्ष्यामः क्रि० अमोहिष्यत् अमोहिष्यताम्
अमोहिष्यन् अमोहिष्यः अमोहिष्यतम् अमोहिष्यत अमोहिष्यम् अमोहिष्याव अमोहिष्याम
तथा अमोक्ष्यत् अमोक्ष्यताम् अमोक्ष्यन् अमोक्ष्यः अमोक्ष्यतम् अमोक्ष्यत अमोक्ष्यम् अमोक्ष्याव अमोक्ष्याम
१२३९. दुहौच (दुह) जिघांसायाम्। व० दुह्यति दुह्यतः स० दुह्येत् दुह्येताम् दुह्येयुः प० दुह्यतु/दुह्यतात् दुह्यताम् द्रुह्यन्तु ह्य० अदुह्यत् अदुह्यताम् अदुह्यन् अ० अदुहत् अदुहताम्
अदुहन् प० दुद्रोह
दुदुहतुः दुदुहुः आ० दुह्यात् द्रुह्यास्ताम् दुह्यासुः श्व० द्रोग्धा द्रोम्धारौ द्रोग्धारः द्रोढा
द्रोढारः
द्रोहिता द्रोहितारौ द्रोहितारः भ० द्रोहिष्यति द्रोहिष्यतः द्रोहिष्यन्ति ध्रोक्ष्यति
ध्रोक्ष्यन्ति क्रि० अद्रोहिष्यत् अद्रोहिष्यताम् अद्रोहिष्यन् अध्रोक्ष्यत् अध्रोक्ष्यताम् अध्रोक्ष्यन्
१२४०. ष्णुहौच (स्नुह) उद्गिरणे। व० स्नुह्यति स्नुह्यतः स्नुह्यन्ति स० स्नुह्येत् स्नुह्येताम् स्नुह्येयुः प० स्नुह्यतु/स्नुह्यतात् स्नुह्यताम् स्नुह्यन्तु ह्य० अस्नुह्यत् अस्नुह्यताम् अस्नुह्यन् अ० अस्नुहत् अस्नुहताम् अस्नुहन् प० सुष्णोह सुष्णुहतुः सुष्णुहुः आ० स्नुह्यात् स्नुह्यास्ताम् स्नुह्यासुः श्व० स्नोग्धा स्नोग्धारौ स्नोग्धारः
. तथा स्नोढा स्नोढारौ स्नोढार:
स्नोहितारौ स्नोहितारः भ० स्नोहिष्यति स्नोहिष्यतः स्नोहिष्यन्ति
स्नोक्ष्यति स्नोक्ष्यतः स्नोक्ष्यन्ति क्रि० अस्नोहिष्यत् अस्नोहिष्यताम् अस्नोहिष्यन् __ अस्नोक्ष्यत् अस्नोक्ष्यताम् अस्नोक्ष्यन्
१२४१. ष्णिहोच् (सिह) प्रीतौ। ब० स्निह्यति स्निह्यतः स्निह्यन्ति स० स्निह्येत् स्निह्येताम् प० स्निह्यतु/स्निह्यतात् स्निह्यताम् स्निह्यन्तु ह्य० अस्निह्यत् अस्निह्यताम् अस्निह्यन् अ० अस्निहत् अस्निहताम् अस्निहन् प० सुष्णेह सुष्णिहतुः सुष्णिहुः आ० स्निह्यात् स्निह्यास्ताम् स्निह्यासुः श्व० स्नोग्धा स्नोग्धारौ स्नोग्धारः
स्नोढा स्नोढारौ स्नोढार: स्नोहिता स्नोहितारौ
स्नोहितार: भ० स्नोहिष्यति स्नोहिष्यतः स्नोहिष्यन्ति
स्नेक्ष्यति स्नेक्ष्यतः स्नेक्ष्यन्ति
स्निह्येयुः
दुह्यन्ति
द्रोढारौ
Page #357
--------------------------------------------------------------------------
________________
340
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अदमिषुः
क्रि० अस्नोहिष्यत् अस्नोहिष्यताम अस्नोहिष्यन्
अस्नेक्ष्यत् अस्नेक्ष्यताम् अस्नेक्ष्यन् केचित्तु शमू-दमू-तमू श्रमू-भ्रमू-क्षमौ-मदै-असू-यसू-जसू-दसूवसू-प्युष-प्युस-पुस-प्लुषू-विस-कुस-कुश-वुस-मुस-मसै-लुटउच-भृशू-भ्रशू-वृश-कृश-जितृष-हष-रुष-डिप-ष्टूप-कुप-गुपयुप-रुप-लुप-लुभ-णभ-तुभ-क्लिदौ-त्रिमिदा-लिक्ष्विदा-ऋधूगृधूनां-पुष्यादित्वं नेच्छन्ति। तन्मते पुषाद्यडभावे सिचिअ० अशमीत् अशमिष्टाम् अशमिषुः
अशमी: अशमिष्टम् अशमिष्ट अशमिषम् अशमिष्व अशमिष्म अदमीत् अदमिष्टाम् अदमी: अदमिष्टम् अदमिष्ट अदमिषम् अदमिष्व अदमिष्म अतमीत् अतमिष्टाम् अतमिषुः अतमी: अतमिष्टम् अतमिष्ट अतमिषम् अतमिष्व अतमिष्म अश्रमीत् अश्रमिष्टाम् अश्रमिषुः अश्रमी: अश्रमिष्टम् अश्रमिष्ट अश्रमिषम् अश्रमिष्व अश्रमिष्म अभ्रमीत् अभ्रमिष्टाम् अभ्रमिषुः अभ्रमीः अभ्रमिष्टम् अभ्रमिष्ट अभ्रमिषम् अभ्रमिष्व अभ्रमिष्म अक्षमीत् अक्षमिष्टाम् अक्षमिषुः अक्षमी: अक्षमिष्टम्
अक्षमिष्ट अक्षमिष्व अक्षमिष्म अक्षांसीत् अक्षांस्ताम्
अक्षांसुः अक्षांसी: अक्षांस्तम् अक्षांस्त अक्षांसम् अक्षांस्व
अक्षांस्म अमादीत् अमादिष्टाम् अमादिषुः अमादी:
अमादिष्टम् अमादिष्ट अमादिषम् अमादिष्व अमादिष्म अमदीत् अमदिष्टाम्
अमदिषुः अमदी: अमदिष्टम् अमदिष्ट
अमदिषम् आसीत् आसी: आसिषम् अयासीत् अयासी: अयासिषम् अयसीत् अयसी: अयसिषम् अजासीत् अजासी: अजासिषम् अजसीत् अजसी: अजसिषम् अदासीत् अदासी: अदासिषम् अदसीत् अदसी: अदसिषम् अवासीत् अवासी: अवासिषम् अवसीत् अवसी: अवसिषम् अप्योषीत् अप्योषी: अप्योषिषम् अप्योसीत्
अमदिष्व आसिष्टाम् आसिष्टम् आसिष्व अयासिष्टाम् अयासिष्टम् अयासिष्व अयसिष्टाम् अयसिष्टम् अयसिष्व अजासिष्टाम् अजासिष्टम् अजासिष्व अजसिष्टाम् अजसिष्टम् अजसिष्व अदासिष्टाम् अदासिष्टम अदासिष्व अदसिष्टाम् अदसिष्टम् अदसिष्व अवासिष्टाम् अवासिष्टम् अवासिष्व अवसिष्टाम् अवसिष्टम् अवसिष्व अप्योषिष्टाम् अप्योषिष्टम् अप्योषिष्व अप्योसिष्टाम्
अमदिष्म आसिषुः आसिष्ट आसिष्म अयासिषुः अयासिष्ट अयासिष्म अयसिषुः अयसिष्ट अयसिष्म अजासिषुः अजासिष्ट अजासिष्म अजसिषुः अजसिष्ट अजसिष्म अदासिषुः अदासिष्ट अदासिष्म अदसिषुः अदसिष्ट अदसिष्म अवासिषुः अवासिष्ट अवासिष्म अवसिषुः अवसिष्ट अवसिष्म अप्योषिषुः अप्योषिष्ट अप्योषिष्म अप्योसिषुः
अक्षमिषम्
Page #358
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
अप्योसीः
अप्योसिषम्
अपोसीत्
अपोसी:
अपोषि
अप्लोसीत्
अप्लोसीः
अप्लोसिषम्
अवेसीत्
अवेसी:
असिषम्
अकोसीत्
अकोसी:
अकोसिषम्
अकोशीत्
अकोशी:
अकोशिषम्
अ० अवोसीत्
अवोसी:
अवोसिषम्
अमोस
अमोसी:
अमोसिषम्
अमासीत्
अमासी:
अमसिषम्
अलोटीत्
अलोटी:
अलोटिषम्
अप्योसिष्टम्
अप्योसिष्व
अपोसिष्टाम्
अपोसिष्टम्
अपोसिष्व
अप्लोसिष्टाम्
अप्लोसिषुः
अप्लोसिष्टम् अप्लोसिष्ट
अप्लोसिव अप्लोसिष्म
असिष्टाम्
असिषुः
असिष्टम्
अवेसिष्ट
अवेसिष्व
अवेसिष्म
अकोसिष्टाम् अकोसिषुः
अकोसिष्टम् अकोसिष्ट
अकोसिष्व
अकोसिष्म
अकोशिष्टाम्
अकोशिष्टम्
अकोशिष्व
अष्टम्
अमोसिष्टम्
अमोसिष्व
असिष्ट
अमासिष्टम्
अमासिषम् अमासिष्व
अमसीत् अमसिष्टाम्
अमसी:
असिष्टम्
अमसिष्व
अप्योसिष्ट
अप्योसिष्म
अपोसिषुः
अपोसिष्ट
अपोसिष्म
अकोशिषुः
अकोशिष्ट
अकोशिष्म
अवोसिष्टाम् अवोसिषुः
अवसिष्टम्
अवसिष्ट
अवोसिष्व
अवोसिष्म
अमोसिषुः
अमोसिष्ट
अमोसिष्म
अमासिषुः
अमासिष्ट
अमासिष्म
अमसिषुः
अमसिष्ट
अमसिष्म
अलोटिष्टाम्
अलोटिषुः
अलोटिष्टम् अलोटिष्ट
अलोटिव
अलोटिष्म
औचीत्
औची:
औचिषम
अभर्शीत्
अभर्शी:
अम्ि
अभ्रंशीत्
अभ्रंशी:
अभ्रंशिषम्
अर्शी
अवर्शी:
अवर्शिषम्
अकर्शीत्
अकर्शी:
अकशैिषम्
अत्
अतर्षीः
अतर्षिषम्
अहर्षीत्
अतीर्ष
अतर्षिषम्
अहर्षीत्
अहर्षीः
अहर्षिषम्
अहषीत्
अरोषी:
रोषम्
अषीत्
अडेषी:
अषिषम्
अस्तूपीत्
अस्तूपी:
औचिषुः
औचिष्ट
औचिष्म
अशिष्टाम् अभर्शिषुः
अष्टिम् अभर्शिष्ट
अभर्शिष्व
अभर्शिष्म
चष्म्
औचिष्टम्
औचिष्व
अभ्रंशिष्टाम् अभ्रंशिषुः
अभ्रंशिष्टम्
अभ्रंशिष्ट
अभ्रंशिष्व
अभ्रंशिष्म
अवशिष्टाम् अवर्शिषुः
अवशिष्टम् अवशिष्ट
अवशिष्व
अवर्शिष्म
अकर्शिष्टाम्
अकर्शिषुः
अष्टिम् अकर्शिष्ट
अकर्शिष्व
अकर्शिष्म
अतर्षिष्टाम्
अतर्षिषुः
अतर्विष्टम्
अतर्षिष्ट
अतर्षिष्व
अतर्षिष्म
अहर्षिषुः
अहर्षिष्ट
अतर्षिष्म
अहर्षिषुः
अहर्षिष्ट
अहर्षिष्म
अहर्षिष्टाम्
अष्टिम्
अतर्षिष्व
अहर्षिष्ट
अहर्षिष्टम्
अहर्षिष्व
अरोषिष्टाम्
अरोषिष्टम्
अरोषिष्व
अडेषिष्टाम्
अडेषिष्टम्
अडेषिष्व
अस्तूपिष्टाम्
अस्तूपिष्टम्
अरोषिषुः
अरोषिष्ट
अरोषिष्म
अडेषिषुः
अडेषिष्ट
अडेषिष्म
अस्तूपिषुः
अस्तूपिष्ट
341
Page #359
--------------------------------------------------------------------------
________________
342
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अस्तूपिषम् अकोपीत् अकोपीः अकोपिषम् अगोपीत् अगोपी: अगोपिषम् अयोपीत् अयोपी: अयोपिषम् अरोपीत् अरोपी: अरोपिषम् अलोपीत् अलोपी: अलोपिषम् अलोभीत् अलोभी: अलोभिषम् अनाभीत् अनाभी: अनाभिषम् अनभीत् अनभी: अनभिषम् अतोभीत् अतोभीः अतोभिषम् अक्लेदीत् अक्लेदी: अक्लेदिषम् अक्लैत्सीत्
अस्तूपिष्व अकोपिष्टाम् अकोपिष्टम् अकोपिष्व अगोपिष्टाम् अगोपिष्टम् अगोपिष्व अयोपिष्टाम् अयोपिष्टम् अयोपिष्व अरोपिष्टाम् अरोपिष्टम् अरोपिष्व अलोपिष्टाम् अलोपिष्टम् अलोपिष्व अलोभिष्टाम् अलोभिष्टम् अलोभिष्व अनाभिष्टाम् अनाभिष्टम् अनाभिष्व अनभिष्टाम् अनभिष्टम् अनभिष्व अतोभिष्टाम् अतोभिष्टम् अतोभिष्व अक्लेदिष्टाम् अक्लेदिष्टम् अक्लेदिष्व अक्लैत्ताम्
HATTENTA
अस्तूपिष्म अकोपिषुः अकोपिष्ट अकोपिष्म अगोपिषुः अगोपिष्ट अगोपिष्म अयोपिषुः अयोपिष्ट अयोपिष्म अरोपिषुः अरोपिष्ट अरोपिष्म अलोपिषुः अलोपिष्ट अलोपिष्म अलोभिषुः अलोभिष्ट अलोभिष्म अनाभिषुः अनाभिष्ट अनाभिष्म अनभिषुः अनभिष्ट अनभिष्म अतोभिषुः अतोभिष्ट अतोभिष्म अक्लेदिषुः अक्लेदिष्ट अक्लेदिष्म अक्लैत्सुः
अक्लैत्सी: अक्लैत्तम् अक्लैत्त अक्लैत्सम् अक्लैत्स्व अक्लैत्स्म अमेदीत् अमेदिष्टाम् अमेदिषुः अमेदी: अमेदिष्टम् अमेदिष्ट अमेदिषम् अमेदिष्व अमेदिष्म अक्ष्वेदीत् अक्ष्वेदिष्टाम् अक्ष्वेदिषुः अक्ष्वेदी: अक्ष्वेदिष्टम् अक्ष्वेदिष्ट अक्ष्वेदिषम् अक्ष्वेदिष्व अक्ष्वेदिष्म आर्धीत् आर्धिष्टाम् आर्धिषुः आर्धीः आर्धिष्टम आर्धिष्ट आर्धिषम् आर्धिष्व आर्धिष्म अगर्धीत् अगर्धिष्टाम् अगर्धिषुः अगी : अगर्धिष्टम् अगर्धिष्ट
अगर्धिषम् अगर्धिष्व अगर्धिष्म वृत पुषादिः। पुषादिर्दिवाद्यन्तर्गणो वर्तितः सम्पूर्ण; इत्यर्थः। अथात्मनेपदिषु सूयत्यादिर्नवकः क्तयोस्तस्य नत्वार्थ प्रदर्श्यते।
तत्र लाघवार्थमादावूदन्तौ सेटौ चा
१२४१. घूडौच (सू) प्राणिप्रसवे। व० सूयते सूयेते
सूयन्ते
सूयसे
सूयध्वे
सूयेथे सूयावहे
सूये
स० सूयेत
सूयेथाः
सूयेय प० सूयताम्
सूयस्व
सूयै
सूयामहे सूयेरन् सूर्यध्वम् सूयेमहि सूयन्ताम् सूयध्वम् सूयामहै असूयन्त असूयध्वम् असूयामहि असविषत असविड्डूवम्/ध्वम् असविष्महि
सूयेयाताम् सूयेयाथाम् सूयेवहि सूयेताम् सूयेथाम् सूयावहै असूयेताम् असूयेथाम् असूयावहि असविषाताम् असविषाथाम् असविष्वहि
तथा
ह्य० असूयत
असूयथाः
असूये अ० असविष्ट
असविष्ठाः
. असविषि
Page #360
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
असोष्ट
असोष्ठाः
असोषि
प० सुषुवे सुषुविषे
आ० सविषीष्ट
सविषीष्ठाः
सविषीय
सोषिष्ट
सोषीष्ठाः
सोषीय
श्व० सविता
सवितासे
सविताहे
सोता
सोतासे
सोताहे
भ० सविष्यते
सविष्यसे
सविष्ये
सोष्यते
सोष्यसे
सोष्ये
क्रि० असविष्यत
असविष्यथाः
असविषये
असोष्यत
असोष्यथाः
असोष्ये
असो
असोषत
असोषाथाम् असोढ्वम् / ड्वम्/ध्वम्
असोष्वहि
असोष्महि
सुषुविरे
सुषुवा
व
सुषुविडूवे/विवे
सुषुविव
सुषुविमहे
सविषयास्ताम् सविषीरन्
सविषीयास्थाम् सविषीध्वम्
सविषीवहि
सविषीमहि
तथा
सोषीयास्ताम्
सोषीरन्
सोषीयास्थाम् सोषीढ्वम्
सोषीवहि
सोषीमहि
सवितारौ
सवितासाथे
सवितास्वहे,
तथा
सोतारौ
सोतासाथे
सोतास्व
सविष्येते
सविष्येथे
सविषयाव
तथा
सोष्येते
सोष्येथे
सोष्यावहे
सवितारः
सविताध्वे
सवितास्मिहे
सोतारः
सोताध्वे
सोतास्महे
सविष्यन्ते
सविष्यध्वे
सविष्यामहे
सोष्यन्ते
सोष्यध्वे
सोष्यामहे
असविष्येताम्
असविष्यन्त
अविष्येथाम् असविष्यध्वम्
असविष्यावहि
असविष्यामहि
तथा
असोष्येताम् असोष्यन्त
असोष्येथाम्
असोष्यध्वम्
असोष्यावहि
असोष्यामहि
१२४३. दूड्च् (दू) परितापे । खेदे इत्यर्थः ।
दूयेते
दूयेयाताम्
दूताम्
अदूताम्
अदविषाताम्
दुदुवा
दविषीयास्ताम्
दवितारौ
विष्
व० दूयते
० दूत
प० दूयताम्
ह्य० अदूयत
अ० अदविष्ट
प० दुदुवे
आ० दविषीष्ट
श्व० दविता
भ० दविष्यते
क्रि० अदविष्यत
व० दीयते
दीयसे
ये
स० दीयेत
दीयेथाः
दीयेय
प० दीयताम्
दीयस्व
दीयै
० अदीयत
अदीयथाः
अदीये
अ० अदास्त
अदास्था:
अदासि
प० दिदीये
दिदीयिषे
दिदीये
आ० दासीष्ट
दासीष्ठाः
दासीय
श्व० दाता
दातासे
अविष्येताम्
अथेदन्ताः सप्त डीडोऽन्येऽनिय्क्ष ।
१२४४. दींड्य् (दी) क्षये ।
दीयेते
दीयेथे
दीयावहे
दीयेयाताम्
दीयेयाथाम्
दीयेवहि
ताम्
दीयेथाम्
दीया है
अदीयेताम्
अदीयेथाम
अदीयावहि
अदासाताम्
अदासाथाम्
अदास्वहि
दिदीयाते
दिदीयाथे
दिदीयिवहे
दासीयास्ताम्
दासीयास्थाम्
दूयन्ते
दूयेरन्
दूयन्ताम्
अदूयन्त
अदविषत
दासीवहि
दातारौ
दातासाथे
दुदुविरे
दविषीरन्
दवितारः
दविष्यन्ते
अदविष्यन्त
दीयन्ते
दीयध्वे
दीयामहे
दीयेरन्
दीध्वम्
दीयेमहि
दीयन्ताम्
दीयध्वम्
दीयामहै
अदीयन्त
अदीयध्वम्
अदीयामहि
अदासत
अदाध्वम्/द्ध्वम्
अदास्महि
दिदीयिरे
343
दिदीयिध्वे /यिढ्वे
दिदीयिमहे
दासीरन्
दासीध्वम्
दासीमहि
दातारः
दाताध्वे
Page #361
--------------------------------------------------------------------------
________________
344
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
दास्ये
अदास्ये
रेतारः
रेतारौ रेष्येते
धीयेरन् धीयन्ताम्
धीयेताम्
धेषीरन् धेतारः
लेषीरन्
दाताहे दातास्वहे दातास्मिहे भ० दास्यते दास्येते
दास्यन्ते दास्यसे दास्येथे दास्यध्वे
दास्यावहे दास्यामहे क्रि० अदास्यत अदास्येताम् अदास्यन्त अदास्यथाः अदास्येथाम् अदास्यध्वम्
अदास्यावहि अदास्यामहि
१२४५. धीड्च् (धी) अनादरे। व० धीयते धीयेते
धीयन्ते स० धीयेत धीयेयाताम् प० धीयताम् ह्य० अधीयत अधीयेताम् अधीयन्त अ० अधेष्ट अधेषाताम् अधेषत प० दिध्ये दिध्याते दिध्यिरे आ० धेषीष्ट
धेषीयास्ताम् श्व० घेता धेतारौ भ० धेष्यते धेष्येते
धेष्यन्ते क्रि० अधेष्यत अधेष्येताम् अधेष्यन्त
१२४६. मीड्च् (मी) हिंसायाम्। व० मीयते
मीयेते
मीयन्ते स० मीयेत
मीयेयाताम्
मीयेरन् प० मीयताम्
मीयन्ताम् ह्य० अमीयत अमीयेताम् अमीयन्त अ० अमेष्ट अमेषाताम् अमेषत प० मिम्ये मिम्याते मिम्यिरे आ० मेषीष्ट मेषीयास्ताम् श्व० मेता
मेतारौ मेतारः भ० मेष्यते । मेष्येते मेष्यन्ते क्रि० अमेष्यत अमेष्येताम् अमेष्यन्त
१२४७. रीड्च् (री) स्रवणे। व० रीयते
रीयेते
रीयन्ते स० रीयेत
रीयेयाताम्
प० रीयताम् रीयेताम् रीयन्ताम ह्य० अरीयत अरीयेताम् अरीयन्त अ० अरेष्ट अरेषाताम् अरेषत प० रियें
रिते रियरे आ० रेषीष्ट रेषीयास्ताम् रेषीरन श्व० रेता भ० रेष्यते
रेष्यन्ते क्रि० अरेष्यत अरेष्येताम् __ अरेष्यन्त
१२४८. लीड्च् (ली) श्लवणे। व० लीयते लीयेते
लीयन्ते स० लीयेत लीयेयाताम् लीयेरन् प० लीयताम् लीयेताम् लीयन्ताम् ह्य० अलीयत अलीयेताम् अलीयन्त अ० अलास्त अलासाताम् अलासत प० अलेष्ट अलेषाताम् अलेषत आ० लिल्ये लिल्यिाते लिल्यिरे श्व० लेषीष्ट लेषीयास्ताम् ____ लासीष्टाः लासीयास्ताम् लाषीरन् भ० लेष्यते लेष्येते
लेष्यन्ते ____ लास्यते लास्येते लास्यन्ते क्रि० अलेष्यत अलेष्येताम् अलेष्यन्त
अलास्यत अलास्येताम् अलास्यन्त - १२४९. डीड्च् (डी) गतौ। विहायसा गतावित्यन्ये। व० डीयते डीयेते
डीयन्ते स० डीयेत
डीयेयाताम्
डीयेरन् प० डीयताम् डीयेताम् डीयन्ताम् ह्य० अडीयत अडीयेताम् अडीयन्त अ० अडयिष्ट अडयिषाताम् अडयिषत प० डिड्ये डिड्याते डिडियरे आ० डयिष्ट डयिषीयास्ताम् डयिषीरन् श्व० डयिता डयितारौ डयितारः भ० डयिष्यते डयिष्येते डयिष्यन्ते क्रि० अडयिष्यत अडयिष्येताम् अडयिष्यन्त
मीयेताम्
मेषीरन्
रीयेरन्
Page #362
--------------------------------------------------------------------------
________________
पेषीरन्
दिवादिगण
345 १२५०. बीड्च् (बी) वरणे।
पिप्ये
पिप्यिवहे पिप्यिमहे व० व्रीयते व्रीयेते
व्रीयन्ते
आ० पेषीष्ट पेषीयास्ताम् स. वीयेत व्रीयेयाताम् व्रीयेरन्
पेषीष्ठाः पेषीयास्थाम् पेषीध्वम् प० वीयताम् तीयेताम्
व्रीयन्ताम्
पेषीय पेषीवहि पेषीमहि ह्य० अव्रीयत अव्रीयेताम् अव्रीयन्त
श्व० पेता
पेतारौ
पेतारः अ० अरोष्ट अवेषाताम् अरोषत
पेतासे पेतासाथे पेतावे प० विविये विव्रियाते विवियिरे
पेताहे पेतास्वहे पेतास्मिहे आ० वेषीष्ट
वेषीयास्ताम् वेषीरन् भ० पेष्यते
पेष्येते
पेष्यन्ते श्व० वेता
वेतारौ वेतारः पेष्यसे पेष्येथे
पेष्यध्वे भ० वेष्यते वेष्येते वेष्यन्ते
पेष्यावहे पेष्ये
पेष्यामहे अनेष्येताम् क्रि० अवेष्यत
अवेष्यन्त वृत् स्वादिः। सूयत्यादिर्दिवाद्यन्तर्गणो नवको वर्तितः सम्पूर्ण | क्रि० अपेष्यत अपेष्येताम् अपेष्यन्त इत्यर्थः।
अपेष्यथाः अपेष्येथाम् अपेष्यध्वम् अथेदन्तास्त्रयोऽनिटश्च।
अपेष्ये अपेष्यावहि अपेष्यामहि १२५१. पींड्च् (पी) पाने।
१२५२. ईंड्च् (ई) गतौ। व० पीयते पीयेते
व० ईयते
ईयेते
ईयेथे पीयसे
ईयध्वे पीयेथे
ईयसे पीयध्वे
ईयावहे ईयामहे पीये पीयावहे पीयामहे
स० ईयेत ईयेयाताम् ईयेरन् स० पीयेत पीयेयाताम् पीयेरन्
ईयेयाथाम्
ईयेध्वम् पीयेथाः पीयेयाथाम् पीयेध्वम्
ईयेवहि ईयेमहि पीयेय पीयेवहि पीयेमहि
प० ईयताम्
ईयन्ताम् प० पीयताम् पीयेताम्
ईयस्व ईयेथाम्
ईयध्वम् पीयस्व पीयेथाम् पीयध्वम्
ईयावहै पीयै पीयावहै पीयामहै
ह्य० ऐयत ऐयेताम् ऐयन्त ह्य० अपीयत अपीयेताम् अपीयन्त
ऐयथाः ऐयेथाम् ऐयध्वम् अपीयथाः अपीयेथाम् अपीयध्वम्
| ऐये
ऐयावहि ऐयामहि अपीये
अपीयावहि अपीयामहि अ० ऐष्ट ऐषाताम् ऐषत अ० अपेष्ट अपेषाताम् अपेषत | ऐष्ठाः ऐषाथाम् ऐड्डवम्/ध्वम् अपेष्ठाः अपेषाथाम् अपेडूवम्, ध्वम् - ऐषि ऐष्वहि
ऐष्पहि अपेषि अपेष्वहि अपेष्महि
प० अयाञ्चक्रे अयाञ्चक्राते अयाञ्चक्रिरे प० पिप्ये पिप्याते पिप्यिरे
अयाञ्चकृषे अयाञ्चक्राथे अयाञ्चकृध्वे पिप्यिषे पिप्याथे पिप्यिड्वे/ध्वेि
अयाञ्चके अयाञ्चकृवहे अयाञ्चकृमहे
पीयन्ते
ईयन्ते
ईयेथाः
ईयेय
ईयेताम्
पीयन्ताम्
ईयामहै
Page #363
--------------------------------------------------------------------------
________________
346
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
युज्येथाः
युज्येय प० युज्यताम्
युज्यस्व
युज्येयाथाम् युज्येवहि युज्येताम् युज्येथाम् युज्यावहै अयुज्येताम् अयुज्येथाम् अयुज्यावहि अयुक्षाताम् अयुक्षाथाम् अयुक्ष्वहि युयुजाते
युज्येध्वम् युज्येमहि युज्यन्ताम् युज्यध्वम् युज्यामहै अयुज्यन्त अयुज्यध्वम् अयुज्यामहि
अयुक्षत अयुग्ध्वम्/अयुग्डूवम्
अयुक्ष्महि
ह्य० अयुज्यत
अयुज्यथाः
अयुज्ये अ० अयुक्त
अयुक्थाः
अयुक्षि प० युयुजे
एष्येथे
एष्यध्वे
युयुजिरे युयुजिध्वे
युयुजिषे
युयुजाथे
अपेष्ये
युयुजे
अयाम्बभूव/अयामास, इत्यादि आ० एषीष्ट
एषीयास्ताम् एषीरन् एषीष्ठाः एषीयास्थाम् एषीध्वम् एषीय
एषीवहि एषीमहि श्व० एता
एतारौ एतारः एतासे एतासाथे एताध्वे
एताहे एतास्वहे एतास्मिहे भ० एष्यते एष्येते
एष्यन्ते एष्यसे
एष्ये एष्यावहे एष्यामहे क्रि० ऐष्यत ऐष्येताम् ऐष्यन्त
ऐष्यथाः ऐष्येथाम् ऐष्यध्वम् ऐष्ये
ऐष्यावहि ऐष्यामहि
अपेष्यावहि अपेष्यामहि
१२५३. प्रींच् (प्री) प्रीतौ। व० प्रीयते प्रीयेते
प्रीयन्ते स० प्रीयेत प्रीयेयाताम् प्रीयेरन् प० प्रीयताम् प्रीयेताम् प्रीयन्ताम् ह्य० अप्रीयत अप्रीयेताम् अप्रीयन्त अ० अप्रेष्ट
अप्रेषाताम्
अप्रेषत प० पिप्रिये पिप्रियाते पिशियिरे आ० प्रेषीष्ट प्रेषीयास्ताम् प्रेषीरन् श्व० प्रेता
प्रेतारौ भ० प्रेष्यते प्रेष्येते
प्रेष्यन्ते क्रि० अप्रेष्यत अप्रेष्येताम् अप्रेष्यन्त
अथ जान्तावनिटौ च।
१२५४. युजिंच् (युज्) समाधौ।' व० युज्यते युज्यसे युज्येथे युज्यावहे
युज्यामहे स० युज्येत युज्येयाताम् युज्येरन्
युक्षीवहि
प्रेतारः
युयुजिवहे युयुजिमहे आ० युक्षीष्ट युक्षीयास्ताम् युक्षीरन्
युक्षीष्ठाः युक्षीयास्थाम् युक्षीध्वम् युक्षीय
युक्षीमहि श्व० योक्ता योक्तारौ
योक्तारः योक्तासे योक्तासाथे योक्ताध्वे
योक्ताहे योक्तास्वहे योक्तास्महे भ० योक्ष्यते योक्ष्येते योक्ष्यन्ते
योक्ष्यसे योक्ष्येथे योक्ष्यध्वे
योक्ष्ये योक्ष्यावहे योक्ष्यामहे क्रि० अयोक्ष्यत अयोक्ष्येताम् अयोक्ष्यन्त अयोक्ष्यथाः अयोक्ष्येथाम् अयोक्ष्यध्वम्
अयोक्ष्यावहि अयोक्ष्यामहि
१२५५. सृजिंच् (सृज्) विसर्गे। व० सृज्यते स० सृज्येत सृज्येयाताम् सृज्येरन् प० सृज्यताम् सृज्येताम् सृज्यन्ताम् ह्य० असृज्यत . असृज्येताम् असृज्यन्त अ० असृष्ट असृक्षाताम् असृक्षत
अयोध्ये
युज्येते
सृज्येते
सृज्यन्ते
युज्यन्ते युज्यध्वे
युज्ये
१. समाधिश्चित्तवृत्तिनिरोधः।
Page #364
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
347
स्रक्ष्येते
वृत्यन्ते
प्र० ससृजे ससृजाते ससृजिरे
अवावर्त्तिषि अवावर्त्तिष्वहि अवावर्तिष्महि आ० सृक्षीष्ट सृक्षीयास्ताम् सूक्षीरन् प० वावृञ्चिक्रे वावृताञ्चक्राते वावृताञ्चक्रिरे श्व० स्रष्टा स्रष्टारौ स्रष्टारः
वावृताञ्चकृषे वावृताञ्चक्राथे वावृताञ्चकृढ्वे भ० स्रक्ष्यते
स्रक्ष्यन्ते
वावृताञ्चक्रे वावृताञ्चकृवहे वावृताञ्चकृमहे क्रि० अस्रक्ष्यत अस्रक्ष्येताम् अस्रक्ष्यन्त
वावताम्बभूव वावतामास, इत्यादि। अथ तान्त: सेट् च।
आ० वावर्तिषीष्ट वावर्तिषीयास्ताम् वावर्तिषीरन् १२५६. वृतूचि (वृत्) वरणे।
वावर्तिषीष्ठाः वावर्तिषीयास्थाम् वावर्तिषीध्वम् व० वृत्यते वृत्येते
वावर्तिषीय वावर्तिषीवहि वावर्तिषीमहि स० वृत्येत
वृत्येरन् वृत्येयाताम्
वावर्तितारौ श्व० वावर्तिता
वावर्तितारः प० वृत्यताम्
वावर्त्तिताध्वे वृत्येताम्
वावर्त्तितासाथे
वावर्त्तितासे वृत्यन्ताम्
वावर्तिताहे वावर्त्तितास्वहे वावर्त्तितास्मिहे ह्य० अवृत्यत अवृत्येताम् अवृत्यन्त
भ० वावर्तिष्यते अ० अवर्त्तिष्ट
वावर्तिष्यन्ते अवतिषाताम्
वावर्तिष्येते अवर्तिषत
वावर्तिष्यसे वावर्तिष्येथे वावर्तिष्यध्वे प० ववृते ववृताते ववृतिरे
वावर्तिष्ये वावर्तिष्यावहे वावर्त्तिष्यामहे आ० वर्तिषीष्ट वर्तिषीयास्ताम्
वर्तिषीरन्
क्रि० अवावर्तिष्यत अवावर्तिष्येताम् अवावर्तिष्यन्त श्व० वर्त्तिता वर्तितारौ वर्त्तितार:
अवावर्तिष्यथाः अवावर्तिष्येथाम् अवावर्तिष्यध्वम् भ० वर्तिष्यते वर्तिष्येते वर्तिष्यन्ते
अवावर्तिष्ये अवावर्तिष्यावहि अवावर्तिष्यामहि क्रि० अवर्तिष्यत अवर्तिष्येताम् अवर्तिष्यन्त वावृतू इति केचित् तन्मते।
॥ अथ दान्तास्त्रयोऽनिटच॥
१२५७. पदिच् (पद्) गतौ। व० वावृत्यते वावृत्येते वावृत्यन्ते .
गतिर्यानं ज्ञान। वावृत्यसे
वावृत्यध्वे वावृत्ये वावृत्यावहे वावृत्यामहे
व० पद्यते
पद्येते
पद्यन्ते स० वावृत्येत वावृत्येयाताम् वावृत्येरन्
पद्यसे पद्येथे
पद्यध्वे वावृत्येथाः वावृत्येयाथाम् वावृत्येध्वम्
पद्यावहे पद्यामहे वावृत्येय वावृत्येवहि वावृत्येमहि
पद्येयाताम्
पोरन् प० वावृत्यताम् वावृत्येताम् वावृत्यन्ताम्
पद्येथाः पद्येयाथाम् पद्येध्वम् वावृत्यस्व वावृत्येथाम् वावृत्यध्वम्
पद्येय पद्येवहि पद्येमहि वावृत्यै वावृत्यावहै वावृत्यामहै प० पद्यताम्
पद्यन्ताम् ह्य० अवावृत्यत अवावृत्यताम् अवावृत्यन्त
पद्यस्व
पद्यध्वम् अवावृत्यथाः अवावृत्येथाम् अवावृत्यध्वम्
पद्यावहै पद्यामहै अवावृत्ये अवावृत्यावहि अवावृत्यामहि ह्य० अपद्यत अपघेताम् अपद्यन्त अ० अवावर्त्तिष्ट अवावर्तिषाताम् अवावर्तिषत
अपद्यथा: ' अपद्यथाम् अपद्यध्वम् अवावर्त्तिष्ठाः अवावर्तिषाथाम् अवावर्तिडूवम्/ध्वम् | अपद्ये अपद्यावहि अपद्यामहि
वावृत्येथे
- पद्ये
स० पद्येत
पद्येताम् पद्येथाम्
पद्यै
Page #365
--------------------------------------------------------------------------
________________
348
अ० अपादि
अपत्या:
अपत्सि
प० पेदे
पेदिषे
पेदे
आ० पत्सीष्ट
पत्सीष्ठाः
पत्सीय
श्व० पत्ता
पत्तासे
पत्ताहे
भ० पत्स्यते
पत्स्यसे
पत्स्ये
क्रि० अपत्स्यत
अपत्स्यथाः
अपत्स्ये
व० विद्यते
स० विद्येत
प० विद्यताम्
ह्य० अविद्यत
अ० अवित्त
प० विविदे
आ० वित्सीष्ट
श्व० वेत्ता
भ० वेत्स्यते
क्रि० अवेत्स्यत
व० खिद्यते
अपत्साताम्
अपत्साथाम्
अपत्स्वहि
पेदाते
पेदा
पेदिव
पत्सीवहि
पत्तारौ
पत्तासाथे
पत्तास्वहे
पत्स्ये
पत्स्येथे
पत्सीयास्ताम् पत्सीरन्
पत्सीयास्थाम्
पत्सीध्वम्
पत्सीमहि
पत्स्याव
अपत्स्येताम्
अपत्स्येथाम्
अपत्स्यावहि
अपत्सत
सत्ता भावः ।
अपद्ध्वम्/ध्वम्
अपत्स्महि
पेदिरे
पेदिध्वे
पेदिमहे
१२५८. विदिच् (विद्) सत्तायाम् ।
विद्येते
पत्तारः
पत्ताध्वे
पत्तास्महे
पत्स्यते
पत्स्यध्वे
पत्स्यामहे
अपत्स्यत
अपत्स्यध्वम्
अपत्स्यामहि
विद्यन्ते
विद्येयाताम्
विद्येरन्
विद्येताम्
विद्यन्ताम्
अविद्येताम् अविद्यन्त
अवित्साताम्
विविदाते
वित्सीयास्ताम्
वेत्तारौ
वेत्स्येते
अवित्स्त
विविदिरे
वित्सीरन्
वेत्तारः
वेत्स्यन्ते
अवेत्स्येताम् अवेत्स्यन्ते
१२५९. खिदिच् (खिद्) दैन्ये ।
खिद्यते
खिद्यन्ते
स० खिद्येत
प० खिद्यताम्
ह्य० अखिद्यत
अ० अखित्त
प० चिखिदे
आ० खित्सीष्ट
व० खेत्ता
भ० खेत्स्यते
क्रि० अखेत्स्यत
व० युध्यते
युध्यसे
युध्ये
सo युध्येत
युध्येथाः
यु
प० युध्यताम्
युध्यस्व
युध्यै
ह्य० अयुध्यत
अयुध्यथा:
अयुध्ये
अ० अयुद्ध
अयुद्धाः
अयुत्सि
प० युयुधे
युधिषे
युयुधे
आ० युत्सीष्ट
खिद्येयाताम्
खिद्येताम्
अखिद्येताम्
अखित्साताम्
चिखिदाते
खित्सीयास्ताम्
खेत्तारौ
खेत्स्येते
अखेत्स्येताम्
अथ धान्तास्त्रयोsनिटच ।
१२६०. युधिंच् (ग्रुघ्) सम्प्रहारे
सम्प्रहारो हननम् ।
युत्सीष्ठाः
येथे
युध्यावहे
युध्येयाताम्
युध्येयाथाम्
युव
म्
युध्येथाम्
युध्यावहै
अध्
येथ
अध्य
अयुत्साताम्
अयुत्साथाम्
अस्व
युयुधाते
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
खिद्येरन्
खिद्यन्ताम्
अखिद्यन्त
युयुधा
युधि
युत्सीयास्ताम्
युत्सीयास्थाम्
अखित्सत
चिखिदिरे
खित्सीरन्
खेत्तारः
खेत्स्यन्ते
अखेत्स्यन्ते
युध्यन्ते
युध्यध्वे
युध्यामहे
युध्येरन्
युध्येध्वम्
युध्यन्ताम्
युध्यध्वम्
युध्याम
अयुध्यन्त
अयुध्यध्वम्
अयुध्यामहि
अयुत्सत
अयुद्ध्वम्/ध्वम्
अयुत्स्महि
युयुधिरे
युयुधि
युधि
युत्सीरन्
युत्सीध्वम्
Page #366
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
349
युत्सीय
बुध्येते
अनुरुध्येते
युत्सीवहि युत्सीमहि श्व० योद्धा योद्धारौ योद्धारः
योद्धासे योद्धासाथे योद्धाध्वे योद्धाहे योद्धास्वहे
योद्धास्महे भ० योत्स्यते योत्स्येते योत्स्यन्ते
योत्स्यसे योत्स्येथे योत्स्यध्वे योत्स्ये
योत्स्यावहे योत्स्यामहे क्रि० अयोत्स्यत अयोत्स्येताम अयोत्स्यन्ते
अयोत्स्यथाः अयोत्स्येथाम् अयोत्स्यध्वम् अयोत्स्ये अयोत्स्यावहि अयोत्स्यामहि
१२६१. अनोरुधिंच् (अनु-स्थ्) कामे।
काम इच्छा। अनुपूर्वो रुधिः कामे दिवादिः। व० अनुरुध्यते
अनुरुध्यन्ते अनुरुध्यसे अनुरुध्येथे अनुरुध्यध्वे
अनुरुध्ये अनुरुध्यावहे अनुरुध्यामहे स० अनुरुध्येत अनुरुध्येयाताम् अनुरुध्येरन्
अनुरुध्येथाः अनुरुध्येयाथाम् अनुरुध्येध्वम्
अनुरुध्येय अनुरुध्येवहि अनुरुध्येमहि प० अनुरुध्यताम् अनुरुध्येताम् अनुरुध्यन्ताम् अनुरुध्यस्व अनुरुध्येथाम् अनुरुध्यध्वम्
अनुरुध्यावहै अनुरुध्यामहै ह्य० अन्वरुध्यत अन्वरुध्येताम् अन्वरुध्यन्त
अन्वरुध्यथाः अन्वरुध्येथाम् अन्वरुध्यध्वम्
अन्वरुध्ये अन्वरुध्यावहि अन्वरुध्यामहि अ० अन्वरुद्ध अन्वरुत्साताम् अन्वरुत्सत
अन्वरुद्धाः अन्वरुत्साथाम् अन्वरुध्वम्/ध्वम्
अन्वरुत्सि अन्वरुत्स्वहि अन्वरुत्स्महि प० अनुरुरुधे अनुरुरुधाते अनुरुरुधिरे
अनुरुरुधिषे अनुरुरुधाथे अनुरुरुधिध्वे
अनुरुरुधे अनुरुरुधिवहे अनुरुरुधिमहे आ० अनुरुत्सीष्ट अनुरुत्सीयास्ताम् अनुरुत्सीरन्
अनुरुत्सीष्ठाः अनुरुत्सीयास्थाम् अनुरुत्सीध्वम्
अनुरुत्सीय अनुरुत्सीवहि अनुरुत्सीमहि श्व० अनुरोद्धा अनुरोद्धारौ अनुरोद्धारः अनुरोद्धासे
अनुरोद्धासाथे अनुरोद्धाध्वे __ अनुरोद्धाहे अनुरोद्धास्वहे अनुरोद्धास्महे भ० अनुरोत्स्य ते अनुरोत्स्येते अनुरोत्स्यन्ते
अनुरोत्स्यसे अनुरोत्स्येथे अनुरोत्स्यध्वे
अनुरोत्स्ये अनुरोत्स्यावहे अनुरोत्स्यामहे क्रि० अन्वरोत्स्यत अन्वरोत्स्येताम् अन्वरोत्स्यन्ते
अन्वरोत्स्यथाः अन्वरोत्स्येथाम् अन्वरोत्स्यध्वम् अन्वरोत्स्ये अन्वरोत्स्यावहि अन्वरोत्स्यामहि
१२६२. बुधिंच् (बुध्) ज्ञाने। व० बुध्यते
बुध्यन्ते स० बुध्येत बुध्येयाताम् बुध्येरन् प० बुध्यताम् बुध्येताम् बुध्यन्ताम् ह्य० अबुध्यत अबुध्येताम् अबुध्यन्त अ० अबुद्ध/अबोधि अभुत्साताम् अभुत्सत प० बुबुधे
बुबुधिरे आ० भुत्सीष्ट भुत्सीयास्ताम् भुत्सीरन् श्व० बोद्धा बोद्धारौ बोद्धारः भ० भोत्स्यते भोत्स्येते भोत्स्यन्ते क्रि० अभोत्स्यत अभोत्स्येताम् अभोत्स्यन्ते
१२६३. मनिच् (मन्) ज्ञाने। व० मन्यते मन्येते
मन्यन्ते मन्यसे मन्येथे
मन्यध्वे मन्ये
मन्यावहे मन्यामहे स० मन्येत मन्येयाताम् मन्येरन्
मन्येथाः मन्येयाथाम् मन्येध्वम्
मन्येय मन्येवहि मन्येमहि प० मन्यताम् मन्येताम् मन्यन्ताम् मन्यस्व
मन्येथाम् मन्यध्वम् मन्यावहै मन्यामहै
बुबुधाते
अनुरुध्यै
Page #367
--------------------------------------------------------------------------
________________
350
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
जायन्ताम्
मेने
मन्ताहे
ह्य० अमन्यत अमन्येताम् अमन्यन्त
अमन्यथाः अमन्येथाम् अमन्यध्वम्
अमन्ये अमन्यावहि अमन्यामहि अ० अमंस्त अमंसाताम् अमंसत्
अमंस्थाः अमंसाथाम् अमन्द्ध्व म्/ध्वम् अमंसि
अमंस्वहि अमंस्महि प० मेने
मेनाते
मेनिरे मेनिषे मेनाथे मेनिध्वे
मेनिवहे मेनिमहे आ० मंसीष्ट मंसीयास्ताम् मंसीरन्
मंसीष्ठाः मंसीयास्थाम् मंसीध्वम्
मंसीय मंसीवहि मंसीमहि श्व० मन्ता मन्तारौ
मन्तार: मन्तासे मन्तासाथे मन्ताध्वे
मन्तास्वहे मन्तास्मिहे भ० मंस्यते मंस्येते मंस्यन्ते
मंस्यसे मंस्येथे मंस्यध्वे मंस्ये
मंस्यावहे मस्यामहे क्रि० अमंस्यत अमस्येताम् अमंस्यन्त
अमंस्यथाः अमस्येथाम् अमस्यध्वम् अमस्ये
अमस्यावहि अमंस्यामहि
१२६४. अनिच् (अन्) प्राणने। व० अन्यते अन्येते
अन्यन्ते स० अन्येत
अन्येयाताम्
अन्येरन प० अन्यताम् अन्येताम् अन्यन्ताम् ह्य० आन्यत आन्येताम् आन्यन्त अ० आनिष्ट
आनिषाताम्
आनिषत प० आने
आनाते
आनिरे आ० अनिषीष्ट अनिषीयास्ताम् अनिषीरन् श्व० अनिता अनितारौ अनितारः भ० अनिष्यते अनिष्येते अनिष्यन्ते
क्रि० आनिष्यत आनिष्येताम् आनिष्यन्त
१२६५. जनैच् (जन्) प्रादुर्भावे
प्रादुर्भाव उत्पत्तिः। व० जायते
जायेते
जायन्ते | स० जायेत जायेयाताम् जायेरन् प० जायताम् जायेताम् ह्य० अजायत अजायेताम् अजायन्त अ० अजनिष्ट अजनिषाताम् अजनिषत प० जज्ञे
जज्ञाते
जज्ञिरे आ० जनिषीष्ट जनिषीयास्ताम् जनिषीरन् श्व० जनिता जनितारौ जनितार: भ० जनिष्यते जनिष्येते जनिष्यन्ते क्रि० अजनिष्यत अजनिष्येताम् अजनिष्यन्त
अथ पान्तौ।
१२६६. दीपैचि (दीए) दीप्तौ। व० दीप्यते दीप्यते दीप्यन्ते दीप्यसे दीप्येथे
दीप्यध्वे दीप्ये
दीप्यावहे दीप्यामहे स० दीप्येत दीप्येयाताम् दीप्येरन्
दीप्येथाः दीप्येयाथाम् दीप्येध्वम्
दीप्येय दीप्येवहि दीप्येमहि प० दीप्यताम् दीप्येताम्
दीप्यन्ताम् दीप्यस्व दीप्येथाम् दीप्यध्वम् दीप्यै
दीप्यावहै दीप्यामहै ह्य० अदीप्यत अदीप्येताम् अदीप्यन्त
अदीप्यथाः अदीप्येथाम् अदीप्यध्वम् अदीप्ये
अदीप्यावहि अदीप्यामहि अ० अदीपिष्ट अदीपिषाताम् अदीपिषत
अदीपिष्ठाः अदीपिषाथाम् अदीपिड्डवम्/ध्वम्
अदीपिषि अदीपिष्वहि अदीपिष्महि प० दिदीपे दिदीपाते दिदीपिरे
दिदीपिषे दिदीपाथे दिदीपि वे
Page #368
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
351
पुपुराते
पूरिष्येते
पूरिष्यन्ते
दिदीपे दिदीपिवहे दिदीपिमहे आ० दीपिषीष्ट दीपिषीयास्ताम् दीपिषीरन्
दीपिषीष्ठाः दीपिषीयास्थाम् दीपिषीध्वम्
दीपिषीय दीपिषीवहि दीपिषीमहि श्व० दीपिता
दीपितारौ दीपितारः दीपितासे दीपितासाथे दीपिताध्वे
दीपिताहे दीपितास्वहे दीपितास्मिहे भ० दीपिष्यते दीपिष्येते दीपिष्यन्ते
दीपिष्यसे दीपिष्येथे दीपिष्यध्वे
दीपिष्ये दीपिष्यावहे दीपिष्यामहे क्रि० अदीपिष्यत अदीपिष्येताम् अदीपिष्यन्त
अदीपिष्यथाः अदीपिष्येथाम् अदीपिष्यध्वम् अदीपिष्ये अदीपिष्यावहि अदीपिष्यामहि
१२६७. तपिच् (तप्) ऐश्वर्ये वा। तपं धूप संतापे इत्यस्यैवैश्वर्येऽर्थे दिवादित्वमात्मनेपदं च वा
विधीयते। पक्षे ऐश्वर्येऽपि भ्वादित्वात, प्रतपति। व० तप्यते तप्यते स० तप्येत तप्येयाताम् तप्येरन् प० तप्यताम् तप्येताम् तप्यन्ताम् ह्य० अतप्यत अतप्येताम् अतप्यन्त अ० अतप्त
अतप्साताम् अतप्सत प० तेपे
तेपाते
तेपिरे आ० तप्सीष्ट तप्सीयास्ताम् तप्सीरन् श्व० तप्ता
तप्तारौ
तप्तारः भ० तप्स्यते तप्स्येते. तप्स्यन्ते क्रि० अतप्स्यत अतप्स्येताम् अतप्स्यन्त
अथ रान्ता अष्टौ सेटश्च।
१२६८. पूरैचि (पुर) आप्यायने:१। व० पूर्यते स० पूर्येत पूर्येयाताम् पूर्वरन् प० पूर्यताम् पूर्येताम् पूर्यन्ताम्
घूरितारौ
ह्य० अपूर्यत अपूर्येताम् अपूर्यन्त अ० अपूरि/अपूरिष्ट अपूरिषाताम् अपूरिषत प० पुपुरे
पुपुरिरे आ० पूरिषीष्ट पूरिषीयास्ताम् पूरिषीरन् श्व० पूरिता पूरितारौ पूरितारः भ० पूरिष्यते क्रि० अपूरिष्यत अपरिष्येत अपरिष्यन्त
१२६९. घरैड्च (घूर) गतौ। व० घूर्यते घूर्येते घूर्यन्ते स० घूर्यंत
घूर्येयाताम् पूर्वरन् प० घूर्यताम् घूर्येताम् घूर्यन्ताम् ह्य० अघूर्यत अघूर्येताम् अघूर्यन्त अ० अघूरिष्ट अघूरिषाताम् अघूरिषत प० जुघुरे जुघुराते जुघुरिरे आ० घूरिषीष्ट घूरिषीयास्ताम्
घूरिषीरन् श्व० घूरिता
घूरितार: भ० घूरिष्यते घूरिष्येते क्रि० अघूरिष्यत अघूरिष्येताम् अघूरिष्यन्त
१२७०. गूरैचि (गूर) गतौ। व० गूर्यते गूर्येते गूर्यन्ते स० गूर्येत गूर्येयाताम् गूर्येरन् १० गूर्यताम् गूर्येताम् गर्यन्ताम् ह्य० अगूर्यत अगूर्येताम् अगूर्यन्त अ० अगूरिष्ट
अगूरिषाताम् अगूरिषत प० जुगुरे
जुगुरिरे आ० गूरिषीष्ट गूरिषीयास्ताम् गरिषीरन् श्व० गूरिता गूरितारौ गूरितारः भ० गूरिष्यते
गरिष्येते
गूरिष्यन्ते क्रि० अगूरिष्यत अगूरिष्येताम् अगूरिष्यन्त
१२७१. शूरैचि (शूर) स्तम्भे।। व० शूर्यते शूर्येते शूर्यन्ते | स० शूर्येत शूर्येयाताम् । शूर्येरन्
घूरिष्यन्ते
तप्यन्ते
जुगुराते
पूर्यते
पूर्यन्ते
१. वृद्धावित्यर्थः।
Page #369
--------------------------------------------------------------------------
________________
352
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शुशूराते
शूरिष्यन्ते
तुतूराते
तुतूरिरे
प० शूर्यताम् शूर्येताम् शूर्यन्ताम् ह्य० अशूर्यत अशूर्येताम्
अशूर्यन्त अ० अशूरिष्ट अशूरिषाताम् अशूरिषत प० शुशूरे
शुशूरिरे आ० शूरिषीष्ट शूरिषीयास्ताम् शूरिषीरन् श्व० शूरिता शूरितारौ शूरितारः भ० शूरिष्यते शूरिष्येते क्रि० अशूरिष्यत अशूरिष्येताम् अशूरिष्यन्त
१२७२. जूरैचि (जूर्) जरायाम्? व० जूर्यते जूर्येते जूर्यन्ते स० जूर्येत जूर्येयाताम् जूर्येरन् प० जूर्यताम् जूर्येताम् जूर्यन्ताम् ह्य० अजूयंत
अजूर्येताम् अजूर्यन्त अ० अजूरिष्ट अजूरिषाताम् अजूरिषत प० जुजूरे जुजूराते जुजूरिरे आ० जूरिषीष्ट जूरिषीयास्ताम् जूरिषीरन् श्व० जूरिता जूरितारौ जूरितारः भ० जूरिष्यते जूरिष्येते जूरिष्यन्ते
अजूरिष्येताम् अजूरिष्यन्त
१२७३. धूरैड्च् (धूर) गतौ। व० धूर्यते धूर्येते धूर्यन्ते स० धूर्येत
धूर्येयाताम् धूर्येरन् प० धूर्यताम् धूर्येताम् धूर्यन्ताम् ह्य० अधूर्यत अधूर्येताम् अधूर्यन्त अ० अधूरिष्ट अधूरिषाताम् अधूरिषत प० दुधूरे दुधूराते आ० धूरिषीष्ट धूरिषीयास्ताम् धूरिषीरन् श्व० धूरिता
धूरितारः भ० धूरिष्यते धूरिष्येते धूरिष्यन्ते क्रि० अधूरिष्यत अधूरिष्येताम् अधूरिष्यन्त
१२७४. तूरैचि (तूर) त्वरायाम्। | व० तूर्यते तूर्येते तूर्यन्ते | स० तूर्येत तूर्येयाताम् तूर्येरन् | प० तूर्यताम् तूर्येताम् तूर्यन्ताम्
ह्य० अतूर्यत अतूर्येताम् अतूर्यन्त अ० अतूरिष्ट अतूरिषाताम् अतूरिषत प० तुतूरे आ० तूरिषीष्ट तूरिषीयास्ताम् तूरिषीरन् श्व० तूरिता तूरितारौ तूरितारः भ० तूरिष्यते तूरिष्येते तूरिष्यन्ते क्रि० अतूरिष्यत अतूरिष्येताम् अतूरिष्यन्त
तान्येवोदाहरणानि।
१२७५. चूरैचि (चूर) दाहे। व० चूर्यते चूर्येते
चूर्यन्ते स० चूर्येत चूर्येयाताम् चूर्येरन् प० चूर्यताम् चूर्येताम् चूर्यन्ताम् ह्य० अचूर्यत अचूर्येताम् अचूर्यन्त अ० अचूरिष्ट अचूरिषाताम् अचूरिषत प० चुचूरे चुचूराते आ० चूरिषीष्ट चूरिषीयास्ताम् चूरिषीरन् श्व० चूरिता . चूरितारौ चूरितारः भ० चूरिष्यते क्रि० अचूरिष्यत अचूरिष्येताम् अचूरिष्यन्त
अथ शान्ताश्चत्वारी लिशिंच्; वर्जा सेटश्च।
१२७६. क्लिशिच् (क्लिश्) उपतापे। व० क्लिश्यते क्लिश्येते क्लिश्यन्ते
क्लिश्यसे क्लिश्येथे क्लिश्यध्वे
क्लिश्ये क्लिश्यावहे क्लिश्यामहे स० क्लिश्येत क्लिश्येयाताम् क्लिश्येरन्
क्लिश्येथाः क्लिश्येयाथाम् क्लिश्येध्वम् क्लिश्येय क्लिश्येवहि क्लिश्येमहि
चुचूरिरे
चूरिष्येते
चूरिष्यन्ते
दुधूरिरे
धूरितारौ
१. जरा वयोहानिः।
Page #370
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
353
प० क्लिश्यताम् _ क्लिश्येताम् क्लिश्यन्ताम् आ० लिक्षीष्ट लिक्षीयास्ताम् लिक्षीरन् 'क्लिश्यस्व क्लिश्येथाम् क्लिश्यध्वम् श्व० लेष्टा लेष्टारौ लेष्टार: क्लिश्यै क्लिश्यावहै क्लिश्यामहै भ० लेक्ष्यते लेक्ष्येते
लेक्ष्यन्ते ह्य० अक्लिश्यत अक्लिश्येताम् अक्लिश्यन्त क्रि० अलेक्ष्यत अलेक्ष्येताम् अलेक्ष्यन्त अक्लिश्यथाः अक्लिश्येथाम अक्लिश्यध्वम्
१२७८. काशिच् (काश) दीप्तौ। अक्लिश्ये अक्लिश्यावहि अक्लिश्यामहि व० काश्यते काश्येते काश्यन्ते अ० अक्लेशिष्ट अक्लेशिषाताम् अक्लेशिषत स० काश्येत काश्येयाताम्
काश्येरन् अक्लेशिष्ठाः अक्लेशिषाथाम् अक्लेशिड्डूवम्/ध्वम् | प० काश्यताम् काश्येताम् काश्यन्ताम्
अक्लेशिषि अक्लेशिष्वहि अक्लेशिष्महि | ह्य० अकाश्यत अकाश्येताम् अकाश्यन्त प० चिक्लिशे चिक्लिशाते चिक्लिशिरे अ० अकाशिष्ट अकाशिषाताम् अकाशिषत
चिक्लिशिषे चिक्लिशाथे चिक्लिशिध्वे/वे प० चकाशे चकाशाते चकाशिरे
चिक्लिशे चिक्लिशिवहे चिक्लिशिमहे आ० काशिषीष्ट काशिषीयास्ताम् काशिषीरन् आ० क्लेशिषीष्ट क्लेशिषीयास्ताम् क्लेशिषीरन् श्व० काशिता काशितारौ काशितारः
क्लेशिषीष्ठाः क्लेशिषीयास्थाम् क्लेशिषीध्वम् भ० काशिष्यते काशिष्येते काशिष्यन्ते क्लेशिषीय क्लेशिषीवहि क्लेशिषीमहि
क्रि० अकाशिष्यत अकाशिष्येताम् अकाशिष्यन्त श्व० क्लेशिता क्लेशितारौ क्लेशितारः
१२७९. वाशिच् (वाश्) शब्द। क्लेशितासे क्लेशितासाथे क्लेशिताध्वे
व० वाश्यते वाश्येते वाश्यन्ते क्लेशिताहे क्लेशितास्वहे क्लेशितास्मिहे
स० वाश्येत वाश्येयाताम् वाश्येरन् भ० क्लेशिष्यते क्लेशिष्येते क्लेशिष्यन्ते
प० वाश्यताम् वाश्येताम् वाश्यन्ताम् क्लेशिष्यसे क्लेशिष्येथे क्लेशिष्यध्वे
ह्य० अवाश्यत
अवाश्येताम् अवाश्यन्त क्लेशिष्ये क्लेशिष्यावहे क्लेशिष्यामहे
अ० अवाशिष्ट अवाशिषाताम् अवाशिषत क्रि० अक्लेशिष्यत अक्लेशिष्येताम् अक्लेशिष्यन्त
प० ववाशे ववाशाते ववाशिरे अक्लेशिष्यथाः अक्लेशिष्येथाम् अक्लेशिष्यध्वम्
आ० वाशिषीष्ट वाशिषीयास्ताम् वाशिषीरन् अक्लेशिष्ये अक्लेशिष्यावहि अक्लेशिष्यामहि
श्व० वाशिता वाशितारौ वाशितार: १२७७. लिशिच् (लिश्) अल्पत्वे।
भ० वाशिष्यते वाशिष्यते वाशिष्यन्ते व० लिश्यते लिश्यते लिश्यन्ते क्रि० अवाशिष्यत अवाशिष्येताम् अवाशिष्यन्त स० लिश्येत लिश्येयाताम् लिश्येरन्
अथोभयपदिषु कान्तोऽनिट्च प० लिश्यताम् लिश्येताम् लिश्यन्ताम्
१२८०. शकींच् (शक्) मर्षणे, मषणं क्षमा। ह्य० अलिश्यत अलिश्येताम् अलिश्यन्त
व० शक्यते
शक्यते
शक्यन्ते अ० अलिक्षत अलिक्षाताम् अलिक्षन्त स० शक्येत शक्येयाताम् शक्येरन् प० लिलिशे लिलिशाते लिलिशिरे
प० शक्यताम् शक्येताम् शक्यन्ताम्
Page #371
--------------------------------------------------------------------------
________________
354
ह्य० अशक्यत
अ० अशक्तत
प० शेके
आ० शक्षीष्ट
श्व० शक्ता
भ० शक्ष्यते
क्रि० अशक्ष्यत
व० शक्यति
० शक्त्
० शुच्यते
स० शुच्येत
प० शुच्यताम्
अशक्ष्ाम्
शक्यतः
शक्येताम्
प० शक्यतु/शक्यतात् शक्यताम्
ह्या० अशक्यत्
अशक्यताम्
अ० अशाक्षीत्
अशाक्ताम्
प० शशाक
शेकतुः
आ० शक्यात्
व० शक्ता
भ० शक्ष्यति
क्रि० अशक्ष्यत्
ह्य० अशुच्यत अ० अशोचिष्ट
अशक्येताम्
अशक्षाताम्
शेकाते
प० शशुचे
आ० शोचिषीष्ट
श्व० शोचिता
भ० शोचिष्यते
क्रि० अशोचिष्यत
क्षीयास्ताम्
शक्तारौ
शक्ष्येते
अशक्ष्यताम्
अथ चान्तः सेट् च ।
१२८१. शुचृगैच् (शुच्) पूतिभावे । पूतिभावः क्लेदः ।
शक्यास्ताम्
शक्तारौ
शक्ष्यतः
शुच्येते
शुच्येयाताम्
शुच्येताम्
अशुच्येताम्
अशोचिषाताम्
शशुचाते
अशक्यन्त
अशक्षत
शेकिरे
शक्षीरन्
शक्तार:
शक्ष्यन्ते
शोचितारौ
शोचिष्येते
अशोचिष्येताम्
व० शुच्यति
शुच्यतः
० शुच्येत्
शुच्येताम्
प० शुच्यतु/शुच्यतात् शुच्यताम्
अशक्ष्यन्त
शक्यन्ति
शक्येयुः
शक्यन्तु
अशक्यन्
अशाक्षुः
शेकुः
शक्यासुः
शक्तार:
शक्ष्यन्ति
अशक्ष्यन्
शशुचिरे
शोचिषीयास्ताम् शोचिषीन्
शोचितार:
शोचिष्यन्ते
अशोचिष्यन्त
शुच्यन्ते
शुच्येरन्
शुच्यन्ताम्
अशुच्यन्त
अशोचिषत
शुच्यतः
शुच्येयुः
शुच्यन्तु
ह्य० अशुच्यत्
अ० अशोचीत्
अशुचत्
प० शुशोच
आ० शुच्यात्
श्व० शोचिता
भ० शोचिष्यति
क्रि० अशोचिष्यत्
व० रज्यते
स० रज्येत
प० रज्यताम्
ह्य० अरज्यत
अ० अरङ्क्त
प० ररञ्जे
आ० रक्षीष्ट
श्व० रङ्क्ता
भ० रक्ष्यते
क्रि० अरक्ष्यत
व० रज्यति
सज्येत्
प० रज्यतु / रज्यतात्
ह्य० अरज्यत्
अ० अराङ्क्षीत्
प० ररञ्ज
व० शप्यते
आ० रज्यात्
श्व० रङ्क्ता
भ० रक्ष्यति
क्रि० अरक्ष्यत्
अशुच्यताम्
अशोचिष्टाम्
अशुचताम्
शुशुचतुः
शुच्यास्ताम्
शोचितारौ
शोचिष्यतः
अशोचिष्यताम्
अथ जान्तोऽनिट् च ।
१२८२. रञ्जींच् (रज्) रागे।
रज्येते
रज्येयाताम्
ज्येताम्
अरज्येताम्
अरङ्क्षाताम्
ररञ्जाते
रङ्क्षीयास्ताम्
रङ्क्तारौ
रक्ष्येते
अरक्ष्येताम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अशुच्यन्
अशोचिषुः
अशुचन्
शुशुचुः
शुच्यासुः
शोचितार:
शोचिष्यन्ति
अशोचिष्यन्
रज्यतः
रज्येताम्
रज्यताम्
अरज्यताम्
अङ्क्तम्
रज्यन्ते
रज्येरन्
रज्यन्ताम्
अरज्यन्त
अरङ्क्षत
ररञ्जिरे
रङ्क्षीरन्
रङ्क्तारः
रक्ष्यन्ते
अरङ्क्ष्यन्त
रज्यन्ति
रज्येयुः
रज्यन्तु
अरज्यन्
अराक्षुः
ररज्जुः
रज्यासुः
रङ्क्तारः
रक्ष्यन्ति
अरक्ष्यन्
ररञ्जतुः
रज्यास्ताम्
रङ्क्तारौ
रक्ष्यतः
अरक्ष्यताम्
अथ पान्तोऽनिट् च ।
१२८३. शपींच् (शप्) आक्रोशे ।
शप्येते
शप्यन्ते
Page #372
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवादिगण
355
स० शप्येत शप्येयाताम् शप्येरन् प० शप्यताम्
शप्येताम्..
शप्यन्ताम् ह्य० अशप्यत अशप्येताम् अशप्यन्त अ० अशप्त
अशप्साताम् अशप्सत प० शेपे
शेपाते
शेपिरे आ० शप्सीष्ट शप्सीयास्ताम् शप्सीरन् श्व० शप्ता
शप्तारौ
शप्तारः भ० शप्स्यते शप्स्येते शप्स्यन्ते क्रि० अशप्स्यत अशप्स्येताम् अशप्स्यन्त व० शप्यति
शप्यतः
शप्यन्ति स० शप्येत् शप्येताम् शप्येयुः प० शप्यतु/शप्यतात् शप्यताम् शप्यन्तु ह्य० अशप्यत् अशप्यताम् अशप्यन् अ० अशाप्सीत् अशाप्ताम् अशाप्सुः प० शशाप
शेपतुः आ० शप्यात् शप्यास्ताम् शप्यासुः श्व० शप्ता
शप्तारौ
शप्तारः भ० शप्स्यति शप्स्यत: शप्स्यन्ति क्रि० अशप्स्यत् अशप्स्यताम् अशप्स्यन्
अथ षान्तः सेट् च। १२८४. मृषींच (मृए) तितिक्षायाम्। तितिक्षा क्षमा।। व० मृष्यते मृष्येते मृष्यन्ते
मृष्यसे मष्येथे मृष्ये
मृष्यावहे मृष्यामहे स० मृष्येत मृष्येयाताम् मृष्येरन्
मृष्येथाः मृष्येयाथाम् मृष्येध्वम्
मृष्येय मृष्येवहि मृष्येमहि प० मृष्यताम् मृष्येताम् मृष्यन्ताम्
मृष्येथाम् मृष्यध्वम्
मृष्यावहै मृष्यामहै ह्य० अमृष्यत अमृष्येताम् अमृष्यन्त
शेपुः
अमृष्यथाः अमृष्येथाम् अमृष्ये
अमृष्यावहि अ० अमर्षिष्ट अमर्षिषाताम्
अमर्षिष्ठाः अमर्षिषाथाम्
अमर्षिषि अमर्षिष्वहि प० ममर्षे ममृषाते ममृषिषे
ममृषाथे ममृषे ममृषिवहे आ० मर्षिषीष्ट मर्षिषीयास्ताम्
मर्षिषीष्ठाः मर्षिषीयास्थाम्
मर्षिषीय मर्षिषीवहि श्व० मर्षिता मर्षितारौ
मर्षितासे मर्षितासाथे
मर्षिताहे मर्षितास्वहे भ० मर्षिष्यते मर्षिष्येते
मर्षिष्यसे मर्षिष्येथे
मर्षिष्ये मर्षिष्यावहे क्रि० अमर्षिष्यत अमर्षिष्येताम्
अमर्षिष्यथाः अमर्षिष्येथाम्
अमर्षिष्ये अमर्षिष्यावहि व० मृष्यति मृष्यतः मृष्यसि मृष्यथ:
मृष्याव: | स० मृष्येत् मृष्येताम्
मृष्येतम् मृष्येयम् मृष्येव प० मृष्यतु/मृष्यतात् मृष्यताम्
मृष्य:/मृष्यतात् मृष्यतम् -
मृष्याणि मृष्याव ह्य० अमृष्यत् अमृष्यताम्
अमृष्यः अमृष्यतम् अमृष्यम् अमृष्याव
अमृष्यध्वम् अमृष्यामहि अमर्षिषत अमर्षिड्ढवम्/ध्वम् अमर्षिष्महि ममृषिरे ममृषिध्वे ममृषिमहे मर्षिषीरन् मर्षिषीध्वम् मर्षिषीमहि मर्षितारः मर्षिताध्वे मर्षितास्मिहे मर्षिष्यन्ते मर्षिष्यध्वे मर्षिष्यामहे अमर्षिष्यन्त अमर्षिष्यध्वम् अमर्षिष्यामहि मष्यन्ति
मृष्यथ
मृष्यामि
मृष्यध्वे
मृष्ये:
मृष्यामः मृष्येयुः मृष्येत मृष्येम मृष्यन्तु मृष्यत
मृष्याम
मृष्यस्व
मृष्यै
अमृष्यन् अमृष्यत अमृष्याम
Page #373
--------------------------------------------------------------------------
________________
I
356
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अनह्ये
अ० अनद्ध
अनह्यामहि अनत्सत अनद्ध्वम्/द्ध्वम् अनत्स्महि
ममृषुः
नेहिरे
मृष्याः
नेहिवे/ध्वे नेहिमहे नत्सीरन् नत्सीध्वम् नत्सीमहि
अ० अमर्षीत् अमर्षिष्टाम् अमर्षिषुः
अमर्षीः अमर्षिष्टम् अमर्षिष्ट
अमर्षिषम् अमर्षिष्व अमर्षिष्म प० ममर्ष ममृषतुः
ममर्षिथ ममृषथुः ममृष ममर्ष
ममृषिव ममृषिम आ० मृष्यात् मृष्यास्ताम् मृष्यासुः
मृष्यास्तम् मृष्यास्त मृष्यासम् मृष्यास्व
मृष्यास्म श्व० मर्षिता मर्षितारौ मर्षितारः
मर्षितासि मर्षितास्थः मर्षितास्थ
मर्षितास्मि मर्षितास्वः मर्षितास्मः भ० मर्षिष्यति मर्षिष्यतः मर्षिष्यन्ति
मर्षिष्यसि मर्षिष्यथ: मर्षिष्यथ
मर्षिष्यामि मर्षिष्याव: मर्षिष्यामः क्रि० अमर्षिष्यत् अमर्षिष्यताम अमर्षिष्यन्
अमर्षिष्यः अमर्षिष्यतम् अमर्षिष्यत अमर्षिष्यम् अमर्षिष्याव अमर्षिष्याम
अथ हान्तोऽनिट् च।
१२८५. णहींच् (नह) बन्धने। व० नाते नह्येते नह्यन्ते नासे नोथे
नह्यध्वे नह्ये
नह्यावहे नह्यामहे स० नयेत
नोरन् नह्येथाः नह्येयाथाम्
न ध्वम् नह्येय नोवहि नोमहि प० नह्यताम् नह्येताम्
नह्यन्ताम् नह्यस्व नह्येथाम् नह्यध्वम्
नह्यावहै नह्यामहै । ह्य० अनह्यत अनह्येताम् अनह्यन्त
अनाथाः अनह्येथाम् अनह्यध्वम्
lli111111
अनद्धाः
अनात्सि प० नेहे
नेहिषे ___ नेहे आ० नत्सीष्ट
नत्सीष्ठाः
नत्सीय श्व० नद्धा
नद्धासे
नद्धाहे भ० नत्स्य ते
नत्स्य से
नत्स्ये क्रि० अनत्स्यत
अनत्स्यथाः
अनत्स्ये व० नाति
नह्यसि
नह्यामि स० नह्येत्
नह्येः
नह्येयम् प० नातु/नह्यतात्
नह्य:/नह्यतात्
नह्यानि ह्य० अनात्
अनह्यः
अनह्यम् अ० अनात्सीत्
अनात्सी: अनात्सम्
अनह्यावहि अनत्साताम् अनत्सताम् अनत्स्वहि नेहाते नेहाथे नेहिवहे नत्सीयास्ताम् नत्सीयास्थाम् नत्सीवहि नद्धारौ नद्धासाथे नद्धास्वहे नत्स्ये ते नत्स्येथे नत्स्यावहे अनत्स्येताम् अनत्स्येथाम् अनत्स्यावहि नह्यतः नह्यथः नह्याव:
नद्धारः नद्धाध्वे नद्धास्महे नत्स्यन्ते नत्स्यध्वे नत्स्यामहे
अनत्स्यन्त
अनत्स्यध्वम् अनत्स्यामहि नह्यन्ति नाथ नह्याम: नह्येयुः नह्येत नोम नह्यन्तु नह्यत
नह्येताम्
नह्येयाताम्
नोतम् नह्येव नह्यताम् नह्यतम् नह्याव अनह्यताम् अनह्यतम्
नी
अनह्याव
नह्याम अनान् अनात अनह्याम अनात्सुः अनाद्ध अनात्स्म
अनाद्धाम् अनाद्धम् अनात्स्व
Page #374
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वादिगण
357
नेहतुः नेहथुः
असाविष्ट असाविष्म
नेहिव
नेहिम
प० ननाह
नेहुः
असावीः असाविष्टम् नेहिथ/ननद्ध
असाविषम् असाविष्व ननाह/ननह
प० सुषाव सुषुवतुः आ० नह्यात् नह्यास्ताम् नह्यासुः
सुषविथ/सुषोथ सुषुवथुः नह्याः
नह्यास्तम् नह्यास्त नह्यासम् नह्यास्व
नह्यास्म
सुषाव/सुषव सुषुविव श्व० नद्धा
नद्धारौ नद्धारः
आ० सूयात् सूयास्ताम् नद्धासि नद्धास्थः नद्धास्थ
सूया: सूयास्तम् नद्धास्म नद्धास्वः नद्धास्मः
सूयासम् सूयास्व भ० नत्स्यति नत्स्यतः
नत्स्यन्ति
श्व० सोता सोतारौ नत्स्यसि नत्स्यथः
नत्स्य थ
सोतासि सोतास्थ: नत्स्यामि नत्स्यावः
नत्स्यामः क्रि० अनत्स्यत् अनत्स्यताम् अनत्स्यन्
सोतास्मि सोतास्वः अनत्स्यः अनत्स्यतम् अनत्स्य त
भ० सोष्यति सोष्यतः अनत्स्यम् अनत्स्याव अनत्स्याम
सोष्यसि सोष्यथः इति उभयतो भाषा।।
सोष्यामि
सोष्याव: ॥इति दिवादयश्चितो धातवः।।
क्रि० असोष्यत् असोष्यताम् अथ स्वादयो वर्णक्रमेण निर्दिश्यन्ते।
असोष्यः असोष्यतम् तत्रापि प्रसिद्ध्यनुरोधेनादौ
असोष्यम् असोष्याव १२८६. डुंगट (सु) अभिषवे। अभिषवः क्लेदनं सन्धनाख्यं | व० सुनुते सुन्वाते
पीडनं मन्थनं वा। स्नानमिति चान्द्राः। 'व० सुनोति सुन्वन्ति
सुनुवहे/सुन्वहे सुनुतः
स० सुन्वीत सुन्वीयाताम् सुनुथ: सुनुथ सुनोमि सुनुवः/सुन्वः सुनुमः/सुन्म:
सुन्वीथाः सुन्वीयाथाम् स० सुनुयात् सुनुयाताम् सुनुयुः
सुन्वीय सुनुयातम् सुनुयात
प० सुनुताम् सुन्वताम् सुनुयाम् सुनुयाम
सुन्वाथाम् प० सुनोतु/सुनुतात् सुनुताम् सुन्वन्तु
सुनवावहै सुनु/सुनुतात् सुनुतम्
सुनुत
ह्य० असुनुत असुन्वाताम् सनवानि सनवाव सनवाम
असुनुथाः असुन्वाथाम् ह्य० असुनोत् असुनुताम् असुन्वन्
असुन्वि असुनुवहि/न्वहि असुनोः असुनुतम् असुनुत
अ० असोष्ट असोषाताम् असवम् असुनुव, न्व असुनुम, न्म
असोष्ठाः असोषाथाम् अ० असावीत् असाविष्टाम् असाविषुः
असोषि असोष्वहि
सुषुवुः सुषुव सुषुविम सूयासुः सूयास्त सूयास्म सोतारः सोतास्थ सोतास्मः सोष्यन्ति सोष्यथ सोष्यामः असोष्यन् असोष्यत असोष्याम
सुन्वते
सुनुषे
सुन्वाथे
सुनोषि
सुन्वीवहि
सुनुयाः
सुनुयाव
सुनुष्व
सुनुध्वे सुनुमहे/सुन्महे सुन्वीरन् सुन्वीध्वम् सुन्वीमहि सुन्वताम् सुनुध्वम् सुनवामहै असुवन्त असुनुध्वम् असुनुमहि/न्महि असोषत असोडूवम्/ध्वम् असोष्महि
सुनुवै
Page #375
--------------------------------------------------------------------------
________________
358
प० सुषुवे
सुषुविषे
सुषुवे
आ० सोषीष्ट
सोषीष्ठाः
सोषीय
श्व० सोता
सोतासे
सोताहे
भ० सोष्यते
सोष्यसे
सोष्ये
क्रि० असोष्यत
असोष्यथाः
असोये
व० स
स० सिनुयात्
प० सिनोतु / सिनुतात्
ह्य० असिनोत्
अ० असैषीत्
प० सिषाय
आ० सीयात्
श्व० सेता
भ० सेष्यति
क्रि० असेष्यत्
व० सिनु
स० सिन्वीत
प० सिनुताम्
ह्यo असिनुत
सुषुवा
सुषुवा
सुषुविव
सोषीयास्ताम्
सोषीयास्थाम्
सोषीवहि
सोतारौ
सोतासाथे
सोतास्वहे
सोष्येते
सोष्येथे
सोष्यावहे
असोष्येताम्
असोष्येथाम्
असोष्यावहि
अथेदन्ताश्चत्वारोऽनिटच ।
१२८७. विंगट् (सि) बन्धने ।
सिनुतः
सिनुयाताम्
सिनुताम्
असिनुताम्
अष्टाम्
सिष्यतुः
सियास्ताम्
सेतारौ
सेष्यतः
सुषुविरे
सुषुविवे/वे
सुषुविम
सोन्
असेष्यताम्
सिन्वाते
सोषीध्वम्
सोषीमहि
सोतार:
सोताध्वे
सोतास्महे
सोष्यन्ते
सोष्यध्वे
सोया
असोष्यन्त
असोष्यध्वम्
असोष्यामहि
सिन्वन्ति
सिनुयुः
सिन्वन्तु
असिन्वन्
असैषुः
सिष्युः
सियासुः
सेतारः
सेष्यन्ति
असेष्यन्
सिन्वते
सिन्वीयाताम् सिन्वीरन्
सिन्वताम्
सिन्वताम्
असिन्वाताम्
असिवन्त
व० शिनुते
शिनुषि
शिन्वे
अ० असेष्ट
प० सिष्ये
आ० सेषीष्ट
श्व० सेता
भ० सेष्यते
क्रि० असेष्यत
असेष्येताम्
असेष्यन्त
१२८८. शिंग्ट् (शि) निशाने । निशानं तनूकरणम् ।
स० शिन्वीत
शिन्वीथा:
शिन्वीय
प० शिनुताम्
शिनुष्व
शिनुवै
० अशिनुत
अशिनुथाः
अशिन्वि
अ० अशेष्ट
अशेष्ठाः
अशेषि
प० शिश्ये
शिश्यिषे
शिश्ये
आ० शेषीष्ट
शेषीष्ठाः
शेषीय
श्व० शेता
शेतासे
शेताहे
भ० शेष्यते
असेषाताम्
सिष्याते
सेषीयास्ताम्
सेतारौ
सेष्येते
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
असेषत
सिष्यिरे
शिवाते:
शिन्वाथे:
शिनुवहे / व
शिन्वीयाताम् शिन्वीयाथाम्
शिवीवहि
शिन्वताम्
शिन्वाथाम्
शिनवावहै
अशिन्वाताम्
शिवाथाम्
अशिनुवहि / न्वहि
अशेषाताम्
अशेषाथाम्
अशेष्वहि
शिश्याते
शिश्याथे
शिश्यिवहि
शेषीयास्ताम्
शेषीयास्थाम्
शेषीवहि
शेता
शेतासाथे
शेतास्वहे
शेष्येते
सेषीरन्
सेतारः
सेष्यन्ते
शिन्वन्ते
शिनुथ
शिनुमहे / महे
शिन्वीरन्
शिवीध्वम्
शिन्वीमहि
शिन्वताम्
शिनुध्वम्
शिनवामहै
अशिवन्त
अशिनुध्वम्
अशिनुमहि
अशेषत
अशेडूवम्
अशेष्महि
शिशिरे
शिश्यध्वे
शिश्यिमहि
शेषीरन्
शेषीध्वम्
शेषीमहि
शेतारः
शेताध्वे
शेतास्मि
शेष्यन्ते
Page #376
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वादिगण
359
शेष्यसे
शेष्ये
अशेष्यध्वम्
असे
शिनुध्वे
अमिन्वन्
क्रि० अशेष्यत
अशेष्यथाः
अशेष्ये व० शिनुते
शिनुषे
शिन्वे स० शिन्वीत
शिन्वीथाः
शिन्वीय प० शिनुताम्
शिनुष्व शिनुवै ह्य० अशिनुत
अशिनुथाः अशिन्वि
मिम्युः
शेष्येथे
शेष्यध्वे शेष्यावहे शेष्यामहे अशेष्येताम् अशेष्यन्त अशेष्येथाम् अशेष्यावहि अशेष्यामहि शिन्वाते शिन्वते शिन्वाथे शिनुवहे/शिन्वहे शिनुमहे/शिन्महे शिन्वीयाताम् शिन्वीरन् शिन्वीयाथाम् शिन्वीध्वम् शिन्वीवहि शिन्वीमहि शिन्वताम्
शिन्वताम् शिन्वाथाम् शिनुध्वम् शिनवावहै
शिनवामहै अशिन्वाताम् अशिवन्त अशिन्वाथाम् अशिनुध्वम् अशिनुवहि/न्वहि अशिनुमहि/न्महि
अशेषत अशेषाथाम्
अशेड्डूवम् अशेष्वहि अशेष्महि शिश्याते शिश्यिरे शिश्याथे शिश्यध्वे/वे शिश्यिवहि . शिश्यिमहि शेषीयास्ताम् शेषीयास्थाम् शेषीध्वम् शेषीवहि शेषीमहि शेतारौ शेतारः शेतासाथे शेतावे शेतास्वहे शेतास्मिहे शेष्येते
शेष्यन्ते शेष्येथे
शेष्यध्वे
शेष्ये शेष्यावहे शेष्यामहे क्रि० अशेष्यत अशेष्येताम् अशेष्यन्त
अशेष्यथाः अशेष्येथाम् अशेष्यध्वम् अशेष्ये अशेष्यावहि अशेष्यामहि
१२८९. डुमिंग्ट् (मि) प्रेक्षेपणे। व० मिनोति मिनुतः
मिन्वन्ति स० मिनुयात् मिनुयाताम् मिनुयुः प० मिनोतु/मिनुतात् मिनुताम् मिन्वन्तु ह्य० अमिनोत् अमिनुताम् अ० अमासीत् अमासिष्टाम् अमासिषुः प० ममौ
मिम्यतुः आ० मीयात्
मीयास्ताम् मीयासुः श्व० माता मातारौ
मातारः भ० मास्यति मास्यतः मास्यन्ति क्रि० अमास्यत् अमास्यताम् अमास्यन् व० मिनुते
मिन्वाते मिन्वते स० मिन्वीत मिन्वीयाताम् मिन्दीरन् प० मिनुताम्
मिन्वताम ह्य० अमिनुत अमिन्वाताम् अमिवन्त अ० अमास्त अमासाताम् अमासत प० मिम्ये मिम्याते मिम्यिरे आ० मासीष्ट मासीयास्ताम् मासीरन् श्व० माता
मातारौ
मातारः भ० मास्यते मास्येते मास्यन्ते क्रि० अमास्यत अमास्येताम् अमास्यन्त
१२९०. विंगट् (चि) चयने। व० चिनोति चिनुतः चिन्वन्ति
चिनोषि चिनुथः चिनुथ
चिनोमि चिनुवः/चिन्च: चिनुमः/चिन्म: स० चिनुयात् चिनुयाताम् चिनुयुः
चिनुयाः चिनुयातम् । चिनुयात
अ० अशेष्ट
अशेषाताम्
मिन्वताम्
अशेष्ठाः
अशेषि प० शिश्ये
शिश्यिषे
शिश्ये
आ० शेषीष्ट
शेषीरन्
शेषीष्ठाः
शेषीय श्व० शेता
शेतासे
शेताहे भ० शेष्यते
शेष्यसे
Page #377
--------------------------------------------------------------------------
________________
360
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चिनुयाम
अचैष्व
चिक्युः
चिनुयाम् चिनुयाव प० चिनोतु/चिनुतात् चिनुताम् चिन्वन्तु
चिनु/चिनुतात् चिनुतम् चिनुत
चिनवानि चिनवाव चिनवाम ह्य० अचिनोत् अचिनुताम् अचिन्वन्
अचिनोः अचिनुतम् अचिनुत अचिनवम्
अचिनुव/न्व अचिनुम/न्म अ० अचैषीत् अचेष्टाम् अचैषुः
अचैषीः अचैष्टम् अचैष्ट अचैषम्
अचैष्म प० चिचाय चिचयतुः चिचयुः
चिचयिथ/चिचेथ चिचयथुः चिचय चिचाय/चिचय चिच्यिव चिच्यिम
तथा चिकाय चिक्यतुः चिकयिथ/चिकेथ चिक्यथुः चिक्य
चिकाय/चिकय चिक्यिव चिक्यिम आ० चीयात् चीयास्ताम् चीयाः
चीयास्तम् चीयास्त चीयासम्
चीयास्व चीयास्म श्व० चेता चेतारौ चेतासि
चेतास्थ चेतास्मि चेतास्वः
चेतास्मः भ० चेष्यति
चेष्यन्ति चेष्यसि चेष्यथ: चेष्यथ
चेष्यामि चेष्याव: चेष्यामः क्रि० अचेष्यत्
अचेष्यताम्
अचेष्यन् अचेष्यः अचेष्यतम् अचेष्यत
अचेष्यम् अचेष्याव अचेष्याम व० चिनुते चिन्वाते चिन्वते
चिनुषे चिन्वाथे चिनुध्वे
चिन्वे चिनुवह/चिन्वहे चिनुमहे/चिन्महे स० चिन्वीत चिन्वीयाताम्
चिन्वीरन् चिन्वीथाः चिन्वीयाथाम् चिन्वीध्वम्
चिन्वीय चिन्वीवहि चिन्वीमहि प० चिनुताम् चिन्वताम् चिन्वताम्
चिनुष्व चिन्वाथाम् चिनुध्वम्
चिनुवै चिनवावहै चिनवामहै ह्य० अचिनुत अचिन्वाताम् अचिवन्त
अचिनुथाः अचिन्वाथाम् अचिनुध्वम्
अचिन्वि अचिनुवहि/न्वहि अचिनुमहि/न्महि अ० अचेष्ट अचेषाताम् अचेषत
अचेष्ठाः अचेषाथाम् अचेडूवम्
अचेषि अचेष्वहि अचेष्महि प० चिच्ये चिच्याते चिच्यिरे
चिच्यिषे चिच्याथे चिच्यध्वे/वे चिच्ये चिच्यिवहि चिच्यिमहि
तथा चिक्ये चिक्याते चिक्यिरे चिक्यिषे चिक्याथे चिक्यध्वे/दवे चिक्ये चिक्यिवहे चिक्यिमहे आ० चेषीष्ट चेषीयास्ताम् चेषीरन् चेषीष्ठाः
चेषीयास्थाम् चेषीय
चेषीवहि चेषीमहि श्व० चेता चेतारौ
चेतासे चेतासाथे चेतावे
चेताहे चेतास्वहे चेतास्मिहे भ० चेष्यते चेष्येते
चेष्यन्ते चेष्यसे चेष्येथे
चेष्यध्वे
चेष्यावहे चेष्यामहे क्रि० अचेष्यत अचेष्येताम्
अचेष्यथाः अचेष्येथाम् अचेष्यध्वम् अचेष्ये अचेष्यावहि अचेष्यामहि
अथोदन्तः सेट् च।
१२९१. धूगड् (धू) कम्पने। | व० धूनुते धूवाते
चीयासुः
चेषीध्वम्
चेतारः
चेतारः
चेतास्थः
चेष्यतः
चेष्ये
अचेष्यन्त
धूचते
___ धूनुषे
धून्वाथे
धनुध्वे
Page #378
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वादिगण
.361
धून्वे स० धून्वीत
धून्वीथाः
धून्वीय प० धूनुताम्
धोतासाथे धोतास्वहे धविष्येते धविष्येथे धविष्यावहे
धोताध्वे धोतास्मिहे धविष्यन्ते धविष्यध्वे धविष्यामहे
धूनुष्व
धूनुवह/धून्वहे धून्वीयाताम् धून्वीयाथाम् धून्वीवहि धून्वताम् धूवाथाम् धूनवावहै अधून्वाताम् अधून्वाथाम् अधूनुवहि/न्वहि अधविषाताम् अधविषाथाम्
धूनुमहे/धून्महे धोतासे धून्वीरन्
धोताहे धूवीध्वम् भ० धविष्यते धून्वीमहि
धविष्यसे धून्वताम्
धविष्ये धूनुध्वम् धूनवामहै
धोष्यते अधूवन्त
धोष्यसे अधूनुध्वम्
धोष्ये अधूनुमहि/न्महि । क्रि० अधविष्यत अधविषत
अधविष्यथाः अधविड्डूवम्/ध्वम्
अधविष्ये
धूनुवै ह्य० अधूनुत
अधूनुथा:
अधून्वि अ० अधविष्ट
अधविष्ठा:
धोष्यन्ते धोष्यध्वे धोष्यामहे अधविष्यन्त अधविष्यध्वम् अधविष्यामहि
अधविषि अधोष्ट अधोष्ठाः
अधोषि प० दुधुवे
तथा अधविष्वहि अधोषाताम् अधोषाथाम् अधोष्वहि
दुधुवाते
धूनोषि धूनोमि
तथा धोष्येते धोयेथे धोष्यावहे अधविष्येताम् अधविष्येथाम् अधविष्यावहि
तथा अधोष्येताम् अधोष्येथाम् अधोष्यावहि धूनुतः धूनुथ: धूनुवः/धून्वः धूनुयाताम् धूनुयातम् धूनुयाव धूनुताम् धूनुतम् धूनवाव अधूनुताम् अधूनुतम् अधूनुव/न्व अधाविष्टाम् अधाविष्टम् अधाविष्व
अधविष्महि
... अधोष्यत अधोषत
अधोष्यथाः
अधोष्ये अधोड्डूवम, ध्वम् । अधोष्महि
व० धूनोति दुधुविरे दुधुविवे/ध्वे
स० धूनुयात् दुधुविमहे
धूनुयाः धविषीरन्
धूनुयाम् धविषीध्वम्
प० धूनोतु/धूनुतात् धविषीमहि
धूनु/धूनुतात्
अधोष्यन्त अधोष्यध्वम् अधोष्यामहि धुन्वन्ति धूनुथ धूनुमः/धून्म: धूनुयुः धूनुयात धूनुयाम धून्वन्तु
दुधुविषे
दुधुवे
दुधुवाथे दुधुविवहे धविषीयास्ताम् धविषीयास्थाम् धविषीवहि
आ० धविषीष्ट
धविषीष्ठाः धविषीय
धूनुत
तथा
धूनवानि
धोषीष्ट धोषीष्ठाः
धोषीय श्व० धोविता
धोवितासे धोविताहे
धोषीयास्ताम् धोषीयास्थाम् धोषीवहि धोवितारौ धोवितासाथे धोवितास्वहे
धोषीरन् धोषीध्वम् धोषीमहि धोवितार: धोविताध्वे धोवितास्मिहे
ह्य० अधूनोत्
अधूनोः
अधूनवम् अ० अधावीत्
अधावीः
अधाविषम् | प० दुधाव
धूनवाम अधून्वन् अधूनुत अधूनुम/न्म अधाविषुः अधाविष्ट अधाविष्म
तथा धोतारौ
धोता
धोतारः
दुधुवतुः
दुधुवुः
Monitorinhindi
Page #379
--------------------------------------------------------------------------
________________
362
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
दुधविथ
दुधुव दुधुविम धूयासुः
स्तर्तारौ
धयास्त
दुधाव/दुधव आ० धूयात् . धूया:
धूयासम् श्व० धविता
धवितासि धवितास्मि
दुधुवथुः दुधुविव धूयास्ताम् धूयास्तम् धूयास्व धोतारौ धवितास्थ: धवितास्वः
स्तृण्वाते
धूयास्म धवितार: धवितास्थ धवितास्मः
धोता
धोतासि
धोतास्मि भ० धविष्यति
धविष्यसि धविष्यामि
तथा धोतारौ धोतास्थः धोतास्वः धविष्यतः धविष्यथः धविष्यावः
धोतारः धोतास्थ धोतास्मः धविष्यन्ति धविष्यथ धविष्यामः
तथा
धोष्यतः
धोष्यति धोष्यसि
धोष्यामि क्रि० अधविष्यत्
अधविष्यः अधविष्यम्
धोष्यथ: धोष्याव:
प० तस्तार तस्तरतुः तस्तरुः आ० स्तर्यात् स्तर्यास्ताम् स्तर्यासुः श्व० स्तर्ता
स्तारः भ० स्तरिष्यति स्तरिष्यतः स्तरिष्यन्ति क्रि० अस्तरिष्यत् अस्तरिष्यताम् अस्तरिष्यन् व० स्तणुते
स्तृण्वते स० स्तृण्वीत
स्तृण्वीयाताम् स्तृण्वीरन् प० स्तृणुताम् स्तृण्वाताम् स्तृण्वताम ह्य० अस्तृणुत अस्तृण्वाताम् अस्तृवण्त अ० अस्तृत अस्तृषाताम्
अस्तृषत प० तस्तरे तस्तराते तस्तरिरे आ० स्तृषीष्ट स्तृषीयास्ताम् स्तृषीरण श्व० स्तर्ता स्तर्तारौ स्तर्तारः भ० स्तरिष्यते स्तरिष्येते स्तरिष्यण्ज्ञते क्रि० अस्तरिष्यत अस्तरिष्येताम् अस्तरिष्यण्ज्ञत
१२९३. कंग्ट् (क) हिंसायाम्। व० कृणोति कृणुतः कृण्वन्ति स० कृणुयात् कृणुयाताम् कृणुयुः प० कृणोतु कृणुतात्/कृणुताम् कृण्वन्तु ह्य० अकृणोत् अकृणुताम् अकृण्वन् अ० अकार्षीत् अकार्टाम् अकार्षुः प० चकार चक्रतुः चक्रुः आ० क्रियात् क्रियास्ताम् श्व० कर्ता कर्तारौ कर्तारः भ० करिष्यति करिष्यतः करिष्यन्ति क्रि० अकरिष्यत् अकरिष्यताम् अकरिष्यन् व० कृणुते कृण्वाते कृण्वते स० कृण्वीत कृण्वीयाताम् कृण्वीरण प० कृणुताम् कृण्वाताम् कृण्वताम ह्य० अकृणुत अकृण्वाताम् अकृवण्त अ० अकृत अकृषाताम् अकृषत प० चक्रे
चक्राते
चक्रिरे आ० कृषीष्ट कृषीयास्ताम् कृषीरण श्व० कर्ता कत्तारौ
कत्तारः भ० करिष्यते करिष्येते करिष्यन्ते | क्रि० अकरिष्यत अकरिष्येताम् अकरिष्यन्ते
धोष्यन्ति धोष्यथ धोष्यामः अधविष्यन् अधविष्यत अधविष्याम
अधविष्यताम् अधविष्यतम् अधविष्याव
क्रियासुः
तथा अधोष्यत् अधोष्यताम् अधोष्यन् अधोष्यः अधोष्यतम् अधोष्यत अधोष्यम् अधोष्याव अधोष्याम .. अथ ऋदन्तास्त्रयो वग्वर्जा अनिटश्च।
१२९२. स्तुंग्ट् (स्तृ) आच्छादने। व० स्तृणोति स्तृणुतः स्तृण्वन्ति स० स्तृणुयात् स्तृणुयाताम् स्तृणुयुः प० स्तृणोतु स्तृणुतात्/स्तृणुताम् स्तृण्वन्तु ह्य० अस्तुणोत् अस्तृणुताम् अस्तृण्वन् अ० अस्तार्षीत् अस्तााम् अस्ताएः
Page #380
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वादिगण
363
वृण्वन्ति
हिनवाव
वनुः
जिघ्युः
जिध्यिम
१२९४. वृंग्ट् (वृ) वरणे। व० वृणोति वृणुतः स० वृणुयात् वृणुयाताम्
वृणुयुः प० वृणोतु/वृणुतात् वृणुताम् वृण्वस्तु ह्य० अवृणोत् अवृणुताम् अवृण्वन् अ० अवारीत् अवारिष्टाम् अवारिषुः प० ववार
वव्रतुः आ० क्रियात् ब्रियास्ताम् व्रियासुः श्व० वरिता वरितारौ वरितार:
वरीता वरीतारौ वरीतार: इ० भ० वरिष्यति वरिष्यतः वरिष्यन्ति क्रि० अवरिष्यत् अवरिष्यताम् अवरिष्यन
अवरीष्यत् अवरीष्यताम् अवरीष्यन् इ० व० वृणुते वृण्वाते वृण्वते स० वृण्वीत वृण्वीयाताम् वृण्वीरण प० वृणुताम् वृण्वाताम् वृण्वताम ह्य० अवृणुत अवृण्वाताम् अवृवण्त अ० अवृत अवृषाताम् अवृषत
अवरिष्ट अवरिषाताम् अवरिषत् इत्यादि।
अवरीष्ट अवरीषाताम् अवरीषत् इत्यादि। प० वने
वव्राते
वतिरे आ० वरिषीष्ट वरिषीयास्ताम् वरिषीरण वृषीष्ट
वृषीयास्ताम् वृषीरन् इ० श्व० वरिता वरितारौ वरितार: भ० वरिष्यते वरिष्येते वरिष्यण्ज्ञते क्रि० अवरिष्यत अवरिष्येताम् अवरिष्यण्जत अवरिष्यत अवहीष्येताम् अवरीष्यन्त इ०
॥इत्युभयपदिनः॥ अथ परस्मैपदिष्विदन्तोऽनिट् च।
१२९५. हिंट (हि) गतिवृद्ध्योः । व० हिनोति हिनुतः हिन्वन्ति
हिनोषि हिनुथः हिनुथ हिनोमि हिनुवः/न्वः हिनुमः/न्म:
हिनुयात् हिनुयाताम् हिनुयुः हिनुयाः हिनुयातम् हिनुयात
हिनुयाम् हिनुयाव हिनुयाम प० हिनोतु हिनुतात् हिनुताम् हिनुवन्तु हिनु/हिनुतात् हिनुतम्
हिनुत हिनवानि
हिनवाम ह्य० अहिनोत् अहिनुताम्
अहिनुवन् अहिनोः अहिनुतम् अहिनुत
अहिनवम् अहिनुव/न्व अहिनुम/न्म अ० अहैषीत् अहैष्टाम् अहैषुः
अहैषीः अहैष्टम् अहैष्ट अहैषम् अहैष्व
अहैष्म प० जिघाय जिध्यतुः
जिघयिथ/जिघेथ जिघ्यथुः जिघ्य
जिघाय/जिघय जिध्यिव आ० हीयात् हीयास्ताम् हीयासुः हीयाः हीयास्तम् हीयास्त
हीयास्व हीयास्म श्व० हेता
हेतारौ हेतार: हेतासि हेतास्थः हेतास्थ
हेतास्मि हेतास्वः हेतास्मः भ० हेष्यति
हेष्यन्ति हेष्यसि हेष्यथ: हेष्यथ
हेष्यामि हेष्याव: हेष्यामः क्रि० अहेष्यत् अहेष्यताम् अहेष्यन् अहेष्यः अहेष्यतम् अहेष्यत
अहेष्याव अहेष्याम
अथोदन्तावनिटौ च। १२९६. श्रुट् (श्रु) श्रवणे। गतावित्यन्ये। व० शृणोति शृणुतः शृण्वन्ति शृणोषि शृणुथ:
शृणुथ शृणुव:/ण्वः शृणुम:/मः
हीयासम्
हेष्यतः
अहेष्यम्
शृणोमि
Page #381
--------------------------------------------------------------------------
________________
364
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
स० शृणुयात्
शृणुयाताम् शृणुयुः शृणुयाः शृणुयातम् शृणुयात
शृणुयाम् शृणुयाव शृणुयाम प० शृणोतु/शृणुतात् शृणुताम् शृणुवन्तु
शृणु/शृणुतात् शृणुतम् शृणुत
शृणवानि शृणवाव शृणवाम ह्य० अशृणोत् अशृणुताम् अशृणुवन्
अशृणोः अशृणुतम् अशृणुत अशृणवम्
अशृणुव/ग्व अशृणुम/म अ० अश्रौषीत् अश्रौष्टाम् अश्रौषुः
अश्रौषी: अश्रौष्टम् अश्रौष्ट
अश्रौषम् अश्रौष्व अश्रौष्म प० शुश्राव शुश्रवतुः शुश्रवुः
शुश्रोथ शुश्रवथुः शुश्रुव शुश्राव/शुश्रव शुश्रुव
शुश्रुम आ० श्रूयात् श्रूयास्ताम् श्रूयासुः श्रूयाः
श्रूयास्तम् श्रूयास्त श्रूयासम् श्रूयास्व श्रूयास्म श्व० श्रोता श्रोतारौ श्रोतारः
श्रोतासि श्रोतास्थः श्रोतास्थ
श्रोतास्मि श्रोतास्वः श्रोतास्मः भ० श्रोष्यति श्रोष्यतः श्रोष्यन्ति श्रोष्यसि श्रोष्यथः
श्रोष्यथ श्रोष्यामि श्रोष्याव: श्रोष्यामः क्रि० अश्रोष्यत् अश्रोष्यताम्
अश्रोष्यन् अश्रोष्यः अश्रोष्यतम् अश्रोष्यत अश्रोष्यम् अश्रोष्याव अश्रोष्याम
१२९७. टुढुंट (दु) उपतापे। व० दुनोति दुनुतः
दुन्वन्ति दुनोषि दुनुथः
दुनुवः/न्वः दुनुमः/न्मः . स० दुनुयात् दुनुयाताम् दुनुयुः
दुनुयाः
दुनुयातम् दुनुत दुनुयाम् 'दुनुयाव
दुनुयाम प० दुनोतु/दुनुतात् दुनुताम् दुनुवन्तु दुनु/दुनुतात् दुनुतम्
दुनुत दुनवानि दुनवाव दुनवाम ह्य० अदुनोत् अदुनुताम्
अदुनुवन् अदुनोः अदुनुतम् अदुनुत
अदुनवम् अदुनुव/न्व अदुनुम/न्म अ० अदौषीत् अदौष्टाम् अदौषुः
अदोषी: अदौष्टम् अदौष्ट
अदौषम् अदौष्व अदौष्म प० दुदाव दुदुवतुः दुदुवुः
दुदविथ/दुदोथ दुदुवथुः दुदुव
दुदाव/दुदव दुदुविव दुविम आ० यात् दूयास्ताम् दूयासुः दूयाः
दूयास्तम् दूयास्त दूयासम् दूयास्व दूयास्म श्व० दोता
दोतारौ दोतारः दोतासि दोतास्थः दोतास्थ
दोतास्मि दोतास्वः दोतास्मः भ० दोष्यति दोष्यतः दोष्यन्ति दोष्यसि
दोष्यथ दोष्यामि दोष्याव: दोष्यामः क्रि० अदोष्यत्
अदोष्यताम्
अदोष्यन् अदोष्यः अदोष्यतम् अदोष्यत अदोष्यम् अदोष्याव अदोष्याम
अथ ऋदन्तावनिटौ च।
१२९८. पृट् (पृ) प्रीती। व० पृणोति पृणुतः पृण्वन्ति पृणोषि पृणुथः
पृणुथ पृणुवः/ण्वः पृणुमः/प्रमः
दोष्यथ:
दुनुथ
दुनोमि
पृणोमि
Page #382
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वादिगण
365
पृणुत
पृणवानि
अपृणुम/म
स० पृणुयात् पृणुयाताम् पृणुयुः
पृणुयाः पृणुयातम् पृणुयात
पृणुयाम् पृणुयाव पृणुयाम प० पृणोतु/पृणुतात् पृणुताम् पृणुवन्तु पृणु/पृणुतात पृणुतम् पृणवाव
पृणवाम ह्य० अपृणोत् अपृणुताम् अपृणुवन् अपृणोः अपृणुतम्
अपृणुत अपृणवम् अपृणुव/ण्व अ० अपार्षीत् अपार्टाम् अपार्षः
अपार्षी: अपार्टम् अपार्ट अपार्षम् अपार्श्व
अपार्म प० पपार
पप्रतुः
पप्रुः पपर्थ पप्रथुः
पप्र पपार/पपर पप्रिव
पप्रिम आ० प्रियात् प्रियास्ताम् प्रियासुः प्रियाः
प्रियास्त प्रियासम् प्रियास्व
प्रियास्म श्व० पर्ता
पर्तारौ
पर्तारः पर्तासि पर्तास्थः पर्तास्थ
पर्तास्मि पर्तास्वः पर्तास्मः भ० परिष्यति परिष्यतः परिष्यन्ति
परिष्यसि परिष्यथ: परिष्यथ
परिष्यामि परिष्याव: परिष्यामः क्रि० अपरिष्यत् अपरिष्यताम् अपरिष्यन्
अपरिष्यः अपरिष्यतम् अपरिष्यत अपरिष्यम् अपरिष्याव अपरिष्याम
१२९९. स्मृट (स्मृ) पालने च।
चकारात्प्रीतौ। जीवनेऽप्यन्ये। व० स्मृणोति स्मृणुतः स्मृण्वन्ति स० स्मृणुयात् स्मृणुयाताम् स्मृणुयुः प० स्मृणोतु/स्मृणुतात् स्मृणुताम् स्मृणुवन्तु
ह्य० अस्मृणोत् अस्मृणुताम् अस्मृणुवन् अ० अस्मार्षीत् अस्मार्टाम् अस्मार्घः प० सस्मार सस्मरतुः सस्मरुः आ० स्मर्यात् स्मर्यास्ताम् । स्मर्यासुः श्व० स्मर्त्ता स्मर्तारौ स्मारः भ० स्मरिष्यति सरिष्त: स्मरिष्यन्ति क्रि० अस्मरिष्यत् अस्मरिष्यताम् अस्मरिष्यन्
अथ कान्तौ। १३००. शक्लृट् (शक्) शक्तौ। व० शक्नोति शक्नुतः
शक्नुवन्ति शक्नोषि शक्नुथ: शक्नुथ
शक्नोमि शक्नुवः/न्वः शक्नुमः/न्म: स० शक्नुयात् शक्नुयाताम् शक्नुयुः
शक्नुयाः शक्नुयातम् शक्नुयात
शक्नुयाम् शक्नुयाव शक्नुयाम प० शक्नोतु/शक्नुतात् शक्नुताम् शक्नुवन्तु
शक्नुहि/शक्नुतात् शक्नुतम् शक्नुत
शक्नवानि शक्नवाव शक्नवाम ह्य० अशक्नोत्
अशक्नुताम् अशक्नुवन् अशक्नोः अशक्नुतम् अशक्नुत
अशक्नवम् अशक्नुव अशक्नुम अ० अशकत् अशकताम् अशकन् अशक: अशकतम्
अशकत अशकम् अशकाव
अशकाम प० शशाक
शेकिथ/शशक्थ शेकथुः शशाक/शशक शेकिव
शेकिम आ० शक्यात् शक्यास्ताम् शक्यासुः शक्या :
शक्यास्तम् शक्यास्त शक्यासम् शक्यास्व शक्यास्म श्व० शक्ता
शक्तारौ
शक्तारः शक्तासि शक्तास्थः शक्तास्थ
शक्तास्मि शक्तास्वः शक्तास्मः भ० शक्ष्यति शक्ष्यतः
शक्ष्यन्ति
प्रियास्तम्
शेकतुः
शेकुः शेक
Page #383
--------------------------------------------------------------------------
________________
366
धातुरलाकर प्रथम भाग
सेघतुः
तितिकु:
शक्ष्यसि शक्ष्यथ:
शक्ष्यथ | क्रि० अतेगिष्यत् अतेगिष्यताम् अतेगिष्यन् शक्ष्यामि शक्ष्याव: शक्ष्यामः
अथ घान्तः सेट् च। क्रि० अशक्ष्यत् अशक्ष्यताम् अशक्ष्यन्
१३०३. षघट् (सम्) हिंसायाम्। अशक्ष्यः अशक्ष्यतम् अशक्ष्यत
व० सघ्नोति सनुतः सध्नुवन्ति अशक्ष्यम् अशक्ष्याव अशक्ष्याम
| स० सघ्नुयात् सध्नुयाताम् सध्नुयुः ये तु शक्यतेः पुषादित्वं प्रतिपन्नास्तेषां पुषादित्वादेवाङि सिद्धे
प० सघ्नोतु/सघ्नुतात् सध्नुताम् सध्नुवन्तु लृदित्वमात्मनेपदेऽप्यडर्थम्। तेन क्रियाव्यतिहार इत्यात्मने
ह्य० असघ्नोत् असघ्नुताम् असघ्नुवन् देऽङि व्यत्यशकत- .
अ० असाघीत् असाघिष्टाम् असाघिषुः १३०१. तिकट् (तिक्) हिंसायाम्।
असघीत् असघिष्टाम् असघिषुः इत्यादि। आस्कन्दने ऽपीत्येके। प० ससाव
सेघुः व० तिक्नोति
तिक्नुतः तिन्वन्ति
आ० सध्यात् सध्यास्ताम् सध्यासुः स० तिक्नुयात् तिक्नुयाताम् तिक्नुयुः श्व० सघिता सघितारौ सघितार: प० तिनोतु/तिक्नुतात् तिक्नुताम् । तिक्नुवन्तु भ० सघिष्यति सघिष्यतः सघिष्यन्ति ह्य० अतिक्नोत् अतिक्नुताम् अतिक्नुवन् क्रि० असघिष्यत् असघिष्यताम् असघिष्यन् अ० अतेकीत् अतेकिष्टाम् अतेकिषुः
अथ धान्तास्त्रयः प० तितेक तितिकतुः
१३०४. राधंट् (राध्) संसिद्धौ। संसिद्धिः फलनिष्पत्तिः। आ० तिक्यात् तिक्यास्ताम्
तिक्यासुः
व० राध्नोति राध्नुतः राध्नुवन्ति श्व० तेकिता तेकितारौ तेकितारः
राध्नोषि राभुथः राध्नुथ भ० तेकिष्यति तेकिष्यतः तेकिष्यन्ति
राध्नोमि रानुवः राध्नुमः क्रि० अतेकिष्यत् अतेकिष्यताम् अतेकिष्यन् स० राध्नुयात् राध्नुयाताम्
राध्नुयुः अथ गान्त: सेट् च।
राध्नुयाः रानुयातम् राध्नुयात १३०२. तिगट् (तिम्) हिंसायाम्।
रानुयाम् राध्नुयाव राध्नुयाम
प० राध्नोतु/राध्नुतात् राध्नुताम् राध्नुवन्तु आस्कदनेऽपि केचित्।
राध्नोहि/राध्नुतात् रानुतम् राध्नुत व० तिग्नोति तिग्नुतः तिग्नुवन्ति
राध्नवानि राध्नवाव राध्नवाम स० तिग्नुयात् तिग्नुयाताम्
ह्य० अराध्नोत् अराधभुताम् अराध्रुवन् प० तिग्नोतु/तिग्नुतात् तिग्नुताम्
तिग्नुवन्तु
अराधनोः अराध्भुतम् अराध्भुत ह्य० अतिग्नोत् अतिग्नुताम् अतिग्नुवन्
अराधनवम् अराधभुव
अराध्नुम
अ० अरात्सीत् अ० अतेगीत् अतेगिष्टाम्
अराद्धाम् अरात्सुः अतेगिषुः अरात्सी: अराद्धम्
अराद्ध प० तितेग तितिगतुः
अरात्सम् अरात्स्व
अरात्स्म आ० तिग्यात् तिग्यास्ताम् तिग्यासुः
प० रराध
राधतुः
रराधुः श्व० तेगिता तेगितारौ तेगितारः
रराधिथ
राधथुः भ० तेगिष्यति तेगिष्यतः तेगिष्यन्ति
रराध रराधिव
रराधिम
तिग्नुयुः
तितिगुः
रराध
Page #384
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वादिगण
अपरराध
अपरेधिथ
अपरराध
आ० राध्यात्
राध्याः
राध्यासम्
श्व० राद्धा
राद्धासि
राद्धास्म
भ० रात्स्यति
रात्स्यसि
रात्स्यामि
क्रि० अरात्स्यत्
अरात्स्यः
अरात्स्यम्
हिंसार्थत्वे
आ० साध्यात्
श्व० साद्धा
भ० सात्स्यति
क्रि० असात्स्यत्
अपरेधतुः
अपरेधथुः
अपरेधिव
राध्यास्ताम्
राध्यास्तम्
राध्यास्व
राद्धारौ
राद्धास्थः
राद्धास्वः
रात्स्यतः
रात्स्यथः
रात्स्यावः
अरात्स्यताम्
अरात्स्यतम्
अरात्स्याव
व० साध्नोति
साध्नुतः स० साध्नुयात् साध्नुयाताम्
प० साध्नोतु/ साध्नुतात् साध्नुताम् ० असाध्नोत् असाध्नुताम्
अ० असात्सीत्
असाद्धाम्
प० ससाध
ससाधतुः
साध्यास्ताम्
साद्धारौ
सात्स्यत:
१३०५. साधं (साधू) संसिद्धौ
संसिद्धिः फलनिष्पत्तिः । सोपदेशोऽयमित्येके तन्मतेऽपि नात्र विशेष:, अपि तु सिषाधयिषतीत्यत्र ।
अपरेधुः
अपरेध
अपरेधिम
व० ऋध्नोति
ऋध्नुतः स० ऋध्नुयात् ऋध्नुयाताम् प० ऋध्नोतु / ऋध्नुतात् ऋध्नुताम् ० आर्ध्वोत्
राध्यासुः
राध्यास्त
राध्यास्म
राद्धारः
राद्धास्थ
राद्धास्मः
रात्स्यन्ति
रात्स्यथ
रात्स्यामः
अरात्स्यन्
अरात्स्यत
अरात्स्याम
साध्नुवन्ति
साध्नुयुः
साध्नुवन्तु
असाध्नुवन्
असात्स्यताम्
१३०६. ऋधूट् (ऋध्) वृद्धौ
असात्सुः
ससाधुः
साध्यासुः
साद्धारः
सात्स्यन्ति
असात्स्यन्
ऋध्नुवन्ति
ऋध्नुयुः
ऋध्नुवन्तु
आर्ध्नुवन्
अ० आर्धीत्
प० आनर्ध
आ० ऋध्यात्
श्व० अर्धिता
भ० अर्धिष्यति
क्रि० आर्धिष्यत्
आ० आप्यात्
श्व० आप्ता
भ० आप्स्यति
क्रि० आप्स्यत्
अथ पान्तौ ।
१३०७. आप्लंट् (आप्) व्याप्तौ ।
व० तृप्नोति
स० तृप्नुयात्
प० तृप्नोतु / तृप्नुतात्
अतृप्
अ० अतर्पीत
प० ततर्प
आ० तृप्यात्
श्व० तर्पिता
व० आप्नोति
आप्नुतः
स० आप्नुयात्
आप्नुयाताम्
प० आप्नोतु / आप्नुतात् आप्नुताम्
ह्य० आत्
आप्नुताम्
अ० आपत्
आपताम्
प० आप
आपतुः
आप्यास्ताम्
आप्तारौ
आप्स्यतः
आप्स्यताम्
आप्स्यन्
१३०८. तृपट् (तृप्) प्रीणने। क्षुभ्नादित्वाण्णत्वाभावः ।
भ० तर्पिष्यति
क्रि० अतर्पिष्यत्
आर्धिष्टाम्
आनृधतुः
ऋध्यास्ताम्
अर्धितारौ
अर्धिष्यतः
आर्धिष्यताम्
व० दभ्नोति
स० दभ्नुयात्
तृप्नुतः
तृप्नुयाताम्
तृप्नुताम्
अतृप्नुताम्
अतर्पिष्टाम्
आर्धिषुः
आनृधुः
ऋध्यासुः
अर्धितार:
अर्धिष्यन्ति
आर्धिष्यन्
ततृपतुः
तृप्यास्ताम्
तर्पितारौ
तर्पिष्यतः
आप्नुवन्ति
आप्नुयुः
आप्नुवन्तु
आप्नुवन्
दभ्नुतः
दभ्नुयाताम्
आपन्
आपुः
आप्यासुः
आप्तारः
आप्स्यन्ति
तृप्नुवन्ति
तृप्नुयुः
तृप्नुवन्तु
अतृप्नुवन्
अतर्पिषुः
ततृपुः
तृप्यासुः
तर्पितार:
तर्पिष्यन्ति
अतर्पिष्यन्
अतर्पिष्यताम्
अथ भान्तः सेट् च ।
१३०९. दम्भुट् (दम्भू) दम्भे ।
367
दनुवन्ति
दभ्नुयुः
Page #385
--------------------------------------------------------------------------
________________
368
प० दभ्नोतु/दभ्नुतात् दभ्नुताम्
ह्य० अदभ्नोत्
अदभ्नुताम्
अ० अदम्भीत
अदम्भिष्टाम्
प० ददम्भ
देभतुः
दभ्यास्ताम्
आ० दभ्यात् श्व० दम्भिता
दम्भितारौ
दम्भिष्यतः
अदम्भिष्यताम् अथ वान्तौ सेटौ च ।
१३१०. कृंव्ट् (कृन्व्) हिंसाकरणयोः ।
भ० दम्भिष्यति
क्रि० अदम्भिष्यत्
व० कृणोति
स० कृणुयात् प० कृणोतु / कृणुतात्
ह्य० अकृणोत्
अ० अकृण्वत्
प० चकृण्व
आ० कृण्व्यात्
श्व० कृण्विता
भ० कृण्विष्यति
क्रि० अकृविष्यत्
व० धिनोति
धिनोषि
धिनोमि
स० धिनुयात्
धिनुयाः
धिनुयाम्
० अधि
अधिनो:
अधिनवम्
कृणुतः
कृणुयाताम्
कृणुताम्
धिन्वन्ति
धिनुथ
धिनुमः
धिनुयाताम् धिनुयुः
धनुयातम्
धनुयाव
प० धिनोतु/धिनुतात् धिनुताम्
धिनु/धिनुतात् धिनुतम्
धिनवानि
धिनवाव
कृण्वन्ति
कृणुयुः
कृण्वन्तु
अकृणुताम्
अकृण्वन्
अकृविष्टाम् अकृविषुः
चकृण्वतुः
चकृण्वः
कृण्व्यास्ताम्
कृण्व्यासुः
कृण्वतारौ
कृण्वितारः
कृण्वष्यतः
कृविष्यन्ति
अकृण्विष्यताम् अकृण्विष्यन्
दभ्नुवन्तु
अदभ्नुवन्
अदम्भिषुः
देभुः
१३११. घिवुट् (धिन्व्) गतौ ।
प्रीणनेऽप्यन्ये ।
दभ्यासुः
दम्भितार:
दम्भिष्यन्ति
अभिष्यन्
धिनुतः
धिनुथः
धिनुवः
अधिनुताम्
अधिनुतम्
अधिनुव
धिनुयात
धिनुयाम
धिनुवन्तु
धिनुत
धिनवाम
अधिनुवन्
अधित
अधिनुम
अ० अधिन्वीत्
अधिवी:
अधिन्विषम्
प० दिधिन्व
दिधिन्वुः
दिधिन्व
दिधिन्विम
धिन्व्यासुः
धिन्व्यास्त
धिन्व्यास्म
धिन्वितार:
धिन्वितासि
धिन्वितास्थः
धिन्वितास्थ
धिन्वितास्मि
धिन्वितास्वः
धिन्वितास्मः
भ० धिन्विष्यति
धिन्विष्यतः
धिन्विष्यन्ति
धिविष्यसि
धिन्विष्यथः
धिन्विष्यथ
धिन्विष्यामि
धिन्विष्यामः
क्रि० अधिन्विष्यत्
धिन्विष्यावः अधिन्विष्यताम् अधिन्विष्यन् अधिन्विष्यतम् अधिन्विष्यत
अधिन्विष्य:
अधिन्विष्यम् अधिन्विष्याव अधिन्विष्याम येऽन्यैरिहाष्टौ पठिता अव्याप्तौ दघ घातने ऋक्षि चिरि जिरि दास दु हिंसायामित्युदाहृताश्च अड्णोति दध्नोति ऋक्ष्णोति । केचित्तु ऋक्षिं छिन्दन्ति ऋणोति क्षिणोति चिरिणोति जिरिणोति इति ते लौकिका इत्यस्माभिरुपेक्षिताः ।
अथ षान्तः सेट च
१३१२. ञिधृषाट् प्रागल्भ्ये |
दिधिन्विथ
दिधिन्व
आ० धिन्व्यात्
धिन्व्याः
धिन्व्यासम्
श्व० धिन्विता
अधिन्विष्टाम्
अन्विष्टम्
अधिन्विष्व
दिधिन्वतुः
दिधिन्वथुः
दिधिन्विव
धिन्व्यास्ताम्
धिन्व्यास्तम्
धिन्व्यास्व
धिन्वितारौ
व० धृष्णोति
धृष्णोषि
धृष्णोमि
स० धृष्णुयात्
धृष्णुयाताम्
धृष्णुयाः
धृष्णुयातम्
धृष्णुयाम्
धृष्णुयाव
प० धृष्णोत / धृष्णुतात् धृष्णुताम्
धृष्णुहि / धृष्णुतात् धृष्णुतम्
धृष्णवानि
धृष्णवाव
ह्य० अधृष्णोत्
अधृष्णुताम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अधिन्विषुः
अधिन्विष्ट
अधिन्विष्म
धृष्णुतः
धृष्णुथः
धृष्णुवः
धृष्णुवति
धृष्णुमः
धृष्णुयुः
धृष्णुयात
धृष्णुयाम
धृष्णुवन्तु
धृष्णुत
धृष्णवाम
अधृष्णुवन्
Page #386
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वादिगण
अधृष्णोः
अधृष्णवम्
अ० अधर्षीत्
अधर्षीः
प० दधर्ष
दधर्षिथ
दधर्ष
आ० धृष्यात्
धृष्याः
धृष्यासम्
श्व० धर्षिता
धर्षितासि
धर्षितास्मि
भ० धर्षिष्यति
धर्षिष्यसि
धर्षिष्यामि
क्रि० अधर्षिष्यत्
अधर्षिष्यः
अधर्षिष्यम्
व० स्ति
तिनुषे
स्तिघ्नुवे
स० स्तिघ्नुवीत
स्तिघ्नुवीथा:
स्तिघ्नुवीय
प० स्तिघ्नुताम्
स्तिघ्नुष्व
स्तिघ्नुवै ह्य० अस्तिघ्नुत
अधृष्णुतम्
अधृष्णुत
अधृष्णुव
अधृष्णुम
अधर्षिष्टाम् अधर्षिषुः
अधर्षिष्टम्
अधर्षिष्ट
अधर्षिष्व
अधर्षिष्म
दधृषतुः
दधृषथुः
दधृषिव
धृष्यास्ताम्
धृष्यास्तम्
धृष्यास्व
धर्षितारौ
॥ इति परस्मैपदिनः ||
॥ अथात्मनेपदिनौ सेटौ च ॥
१३१३. ष्टिघिट् (स्तिघ्) आस्कन्दने ।
धृष्यास्म
धर्षितारः
धर्षितास्थ
धर्षितास्मः
धर्षिष्यन्ति
धर्षिष्यथ
धर्षिष्यामः
अधर्षिष्यताम् अधर्षिष्यन् अधर्षिष्यतम् अधर्षिष्यत
अधर्षिष्याव
अधर्षिष्याम
धर्षितास्थः
धर्षितास्वः
धर्षिष्यतः
धर्षिष्यथः
धर्षिष्यावः
स्तिघ्नुवाते
स्तिघ्नवाथे
स्तिघ्नुवहे
दधृषुः
दधृष
दधृषिम
स्तिघ्नुवीवहि
स्तनुताम्
धृष्यासुः
धृष्यास्त
स्तिघ्नुवाथाम्
स्तिवावहै
स्तिघ्नुवीयाताम् स्तिघ्नुवीरन्
स्तिघ्नुवीयाथाम् स्तिघ्नुवीध्वम्
स्तिघ्नुवीमहि
स्तिघ्नुवताम्
स्तिघ्नुध्वम्
स्तनुवाम
अस्तिघ्नुथाः अस्तिवाथाम्
स्तिघ्नुवते
स्तिघ्नुध्वे
स्तिघ्नुमहे
अस्तिघ्नुवाताम् अस्तित
अस्तिघ्नुध्वम्
अस्तिघ्नुवि अ० अस्तेघिष्ट
अस्तेघिष्ठाः
अस्तेधिषि
प० तिष्टिघे
तिष्टिघिषे
तिष्टिघे
आ० स्तेविषीष्ट
स्तेधिषीष्ठाः
स्तेघषीय
श्व० स्तेषिता
स्तेषितासे
घा
भ० स्तेधिष्यते
स्तेधिष्यसे
स्तेषिष्ये
क्रि० अस्तेधिष्यत
व० अश्नुते
सo अश्नुवीत
प० अश्नुताम्
ह्य० आश्नुत
अ० आशिष्ट
आष्ट
प० आनशे
आ० अशिषीष्ट
अक्षीष्ट
श्व० अष्टा
अशिता
भ० अशिष्यते
क्रि० आशिष्यत
आक्ष्यत
तिष्टिघाते
तिष्टिघा
तिष्टिघिवहे
अस्तिघ्नुवहि
अस्तेधिषाताम्
अस्तेघिषाथाम् अस्तेघिडूवम्/ध्वम्
अस्तेषिष्वहि
अस्तेघिष्महि
तिष्टिघिरे
तिष्टिघिध्वे
तिष्टिघिम
स्तेघिषीयास्ताम् स्तेघिषीरन्
स्तेघिषीयास्थाम्
स्तेघिषीध्वम्
घषीमहि
स्तेघषीवहि
स्तेधितारौ
स्तेषितासाथे
स्तेषितास्वहे
स्तेघिष्येते
स्तेघिष्येथे
स्तेघष्यावहे
अस्तेघष्येताम्
अस्तेघष्येथाम्
अस्तेघिष्यावहि
अस्तेघिष्यथाः
अस्तेघिष्यध्वम्
अस्तेघिष्ये
अघिष्यामहि
१३१४. अशौटि (अश्) व्याप्तौ । संघातेऽप्यन्ये।
अस्ति महि
अस्तेघिषत
अशिषीयास्ताम्
अक्षीयास्ताम्
स्तेषितार:
स्तेषिताध्वे
स्तेघतास्मिहे
स्तेधिष्यन्ते
स्तेधिष्यध्वे
अष्टारौ
अशितारौ
अशिष्येते
शिष्
आक्ष्येताम्
धिष्यामहे
अस्तेधिष्यन्त
अश्नुवाते अनुव
अश्नुवीयताम्
अश्वताम्
आश्नुवाताम्
आशिषाताम्
आक्षाताम्
आनशा
अश्नुवीरन्
अश्नुवताम्
369
आश्नुवत
आशिषत
आक्षात, इत्यादि
आनशिरे
अशिष
अक्षीरन् इत्यादि ।
अष्टारः
अशितारः इत्यादि
अशिष्यन्ते
आशिष्यन्त
॥ स्वादिगणश्नुविकरणः सम्पूर्णः ||
आक्ष्यन्त, इत्यादि
Page #387
--------------------------------------------------------------------------
________________
370
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तुदन्ति
बभर्जे
तुदन्ते
भारी
॥अथ तुदादयस्तितो वर्णक्रमेण प्रदर्श्यन्ते।
बभर्ज बभर्जतु बभजु, इत्यादि। तत्र प्रसिद्ध्यनुरोधेनादौ।। .
आ० भृज्ज्यात् भृज्ज्यास्ताम् भृज्ज्यासुः
भष्टारौ श्व० भग
भारः १३१५. तुदीत् (तुद्) व्यथने।
भ० भक्ष्यति भय॑तः भयन्ति व० तुदति तुदतः
क्रि० अभय॑त् अभयंताम् अभयन् स० तुदेत् तुदेताम् तुदेयुः
अभ्रक्ष्यत अभ्रक्ष्यताम् अभ्रक्ष्यन्, इत्यादि प० तुदतु/तुदतात् तुदताम् तुदन्तु
व० भृज्जते भृज्जेते भृज्जन्ते ह्य० अतुदत् अतुदताम् अतुदन्
स० भृज्जेत भृज्जेयाताम् भृज्जेरन् अ० अतौत्सीत् अतौत्ताम् अतौत्सुः
प० भृज्जताम् भृज्जेताम् भृज्जन्ताम् प० तुतोद तुतुदतुः तुतुदुः
ह्य० अभृज्जत अभृज्जेताम् अभृज्जन्त आ० तुद्यात् तुद्यास्ताम्
तुद्यासुः
अ० अभट अभाताम् अभर्फत् श्व० तोत्ता तोत्तारौ तोत्तारः
अभ्रष्ट अभ्रक्षाताम् अभ्रक्षत, इत्यादि। भ० तोत्स्यति तोत्स्यतः तोत्स्यन्ति प० बभ्रज्जे बभ्रज्जाते बभ्रज्जिरे क्रि० अतोत्स्यत् अतोत्स्यताम् अतोत्स्यन्
बभर्जाते बभजिरे, इत्यादि।
आ० भीष्ट भीयास्ताम् भीरन् व० तुदते तुदेते
भ्रक्षीष्ट भ्रक्षीयास्ताम् भ्रक्षीरन्, इत्यादि। स० तुदेत तुदेयाताम् तुदेरन् श्व० भा
भारः प० तुदताम् तुदेताम् तुदन्ताम्
भ्रष्टारौ
भ्रष्टारः, इत्यादि ह्य० अतुदत अतुदेताम् अतुदन्स
भ० भक्ष्यते भक्ष्येते भय॑न्ते अ० अतुत्त अतुत्साताम् . अतुत्सत
भ्रक्ष्यते भ्रक्ष्येत भ्रक्षयन्ते, इ० तुतुदाते
क्रि० अभयंत प० तुतुदे
अभयन्त अभयताम्
अभ्रक्ष्यत अभ्रक्ष्येताम् अभ्रक्ष्यन्त, इ० आ० तुत्सीष्ट तुत्सीयास्ताम् तुत्सीरन्
१३१७. क्षिपीत् (क्षिप्) प्रेरणे।१ श्व० तोत्ता
तोत्तारौ तोत्तारः भ० तोत्स्यते तोत्स्येते तोत्स्यन्ते
व० क्षिपति
क्षिपन्ति
क्षिपतः क्रि० अतोत्स्यत अतोत्स्येताम् अतोत्स्यन्त
स० क्षिपेत् क्षिपेताम् क्षिपेयुः अथ जान्तोऽनिट् च।
प० क्षिपतु/क्षिपतात् क्षिपताम् क्षिपन्तु
ह्य० अक्षिपत् अक्षिपताम् १३१६.भ्रस्जीत् (भ्रस्ज्) पाके।२
अक्षिपन्
अ० अक्षैप्सीत् अक्षप्ताम् व० भृज्जति भृज्जतः भृज्जन्ति
चिक्षिपतुः
प० चिक्षेप स० भृज्जेत्
भृज्जेयुः
भृज्जेताम् प० भृज्जतु/भृज्जतात् भृज्जताम् भृज्जन्तु
आ० क्षिप्यात् क्षिप्यास्ताम्
क्षिप्यासुः ह्य० अभृज्जत् अभृज्जताम् अभृज्जन्
श्व० क्षेप्ता क्षेप्तारौ क्षेप्तारः अ० अभाीत् अभाष्ाम् अभाभुः
भ० क्षेप्स्यति क्षेप्स्यतः क्षेप्स्यन्ति अभ्राक्षीत् अभ्राष्टाम्
अभ्राक्षुः, इत्यादि। क्रि० अक्षेप्यतु अक्षेप्स्यताम् अक्षेप्स्यन् प० बभ्रज्ज बभ्रज्जतुः
व० क्षिपते क्षिपेते
क्षिपन्ते
तुतुदिरे
अझैप्सुः चिक्षिपुः
बभ्रज्जुः
Page #388
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
371
क्षिपेरन्
क्षिपेताम्
अक्राक्षुः
कृषेते
कृषन्ते
स० क्षिपेत क्षिपेयाताम् प० क्षिपताम्
क्षिपन्ताम् ह्य० अक्षिपत अक्षिपेताम् अक्षिपन्त अ० अक्षिप्त अक्षिप्साताम् अक्षिसत प० चिक्षिपे चिक्षिपाते चिक्षिपिरे आ० क्षिप्सीष्ट क्षिप्सीयास्ताम् क्षिप्सीरन् श्व० क्षेप्ता क्षेप्तारौ क्षेप्तारः भ० क्षेप्स्यते क्षेप्स्येते क्षेप्स्यन्ते क्रि० अक्षेप्स्यत अक्षेप्येताम् अक्षेप्स्यन्त
अथ शान्तोऽनिट् च। १३१८. दिशीत् (दिश्) अतिसर्जने। अतिसर्जनं त्यागः। व० दिशति दिशतः दिशन्ति स० दिशेत् दिशेताम् दिशेयुः प० दिशतु/दिशतात् दिशताम् दिशन्तु ह्य० अदिशत् अदिशताम् अदिशन् अ० अदिक्षत् अदिक्षताम्
अदिक्षन् प० दिदेश दिदिशतुः दिदिशुः आ० दिश्यात् दिश्यास्ताम् श्व० देष्टा
देष्टारौ भ० दक्ष्यति दक्ष्यतः
दक्ष्यन्ति क्रि० अदक्ष्यत्
अदक्ष्यताम् अदक्ष्यन् व० दिशते दिशेते
दिशन्ते स. दिशेत दिशेयाताम् दिशेरन् प० दिशताम् दिशेताम्
दिशन्ताम् ह्य० अदिशत अदिशेताम् अदिशन्त अ० अदिक्षत अदिक्षाताम् अदिक्षन्त प० दिदिशे
दिदिशाते दिदिशिरे आ० दिक्षीष्ट दिक्षीयास्ताम् श्व० देष्टा देष्टारौ देष्टारः भ० देक्ष्यते देक्ष्यते
देक्ष्यन्ते क्रि० अदेक्ष्यत अदेक्ष्येताम् अदेक्ष्यन्त
अथ षान्तोऽनिट् च। १३१९. कृषीत् (कृष्) विलेखने। ५ व० कृषति कृषतः कृषन्ति स० कृषेत् कृषेताम् कृषेयुः प० कृषतु/कृषतात् कृषताम् कृषन्तु ह्य० अकृषत् अकृषताम् अकृषन् अ० अक्राक्षीत् अक्राष्टाम्
अकारक्षीत् अकारष्टाम् अकारक्षुः, इत्यादि
अकृक्षत् अकृक्षताम् अकृक्षन्, इत्यादि। प० चकर्ष चकृषतुः चकृषुः आ० कृष्यात् कृष्यास्ताम् कृष्यासुः श्व० का कारौ कारः भ० कर्त्यति कमंतः
कयन्ति क्रि० अकय॑त् अकय॑ताम् अकय॑न्
अक्रक्ष्यत् अक्रक्ष्यताम् अक्रक्ष्यन्, इत्यादि व० कृषते स० कृषेत कृषेयाताम् कृषेरन् प० कृषताम् कृषेताम् कृषन्ताम ह्य० अकृषत अकृषेताम् अकृषन्त अ० अकृष्ट अकृक्षाताम् अकृक्षन्त
अकृक्षत अकृक्षाताम् अकृक्षन्त, इत्यादि प० चकृषे चकृषाते
चकृषिरे आ० कृषीष्ट कृक्षीयास्ताम् कृक्षीरन् श्व० क्रा
ऋष्टारौ क्रारः भ० क्रयते क्रयेते क्रयन्ते कक्षये
कयेते कय॑न्ते, इ० क्रि० अक्रय॑त अक्रयेताम् अक्रय॑न्त ___अकयत . अकयेताम् अकयन्त, इ० अथ मुचादयोऽष्टी, तत्राद्याः पञ्चानिट उभयपदिनश्च तत्र त्रयः परस्मैपदिनः खिदंवर्जाः सेटच। तत्र चान्तौ।
१३२०. मुचलंती (मुच्) मोक्षणे। ६ व० मुञ्चति मुञ्चतः स० मुश्चेत् मुश्चेताम् मुञ्चेयुः प० मुञ्चतु/मुञ्चतात् मुञ्चताम् मुश्चन्तु
दिश्यासुः देष्टारः
दिक्षीरन्
मुञ्चन्ति
Page #389
--------------------------------------------------------------------------
________________
372
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मुञ्चन्ते
विन्दतः विन्देताम्
विन्देयुः विन्दन्तु
मुमुचाते
ह्य० अमुञ्चत् अमुञ्चताम् अमुञ्चन् अ० अमुचत् अमुचताम् अमुचन् प० मुमोच मुमुचतु: मुमुचुः आ० मुच्यात् मुच्यास्ताम् मुच्यासुः श्व० मोक्ता मोक्तारौ मोक्तारः भ० मोक्ष्यति मोक्ष्यतः मोक्ष्यन्ति क्रि० अमोक्ष्यत् अमोक्ष्यताम् अमोक्ष्यन् व० मुञ्चते मुञ्चेते स० मुञ्चेत मुञ्चेयाताम् मुञ्चरन् प० मुञ्चताम् मुञ्चेताम् मुञ्चन्ताम् ह्य० अमुञ्चत अमुञ्चेताम् अमुञ्चन्त अ० अमुक्तत अमुक्षाताम् अमुक्षत प० मुमुचे
मुमुचिरे आ० मुक्षीष्ट मुक्षीयास्ताम् मुक्षीरन् श्व० मोक्ता
मोक्तारौ भोक्तारः भ० मोक्ष्यते मोक्ष्येते मोक्ष्यन्ते क्रि० अमोक्ष्यत अमोक्ष्येताम् अमोक्ष्यन्त
१३२१. षिचीत् (सिच्) क्षरणे। ६ व० सिञ्चति सिञ्चतः सिञ्चन्ति स० सिञ्चेत् सिञ्चेताम् सिञ्चेयुः प० सिञ्चतु/सिञ्चतात् सिञ्चताम् सिञ्चन्तु ह्य० असिञ्चत् असिञ्चताम् अ० असिचत् असिचताम् असिचन् प० सिषेच सिषिचतुः सिषिचुः आ० सिच्यात् सिच्यास्ताम् श्व० सेक्ता सेक्तारौ भ० सेक्ष्यति सेक्ष्यतः सेक्ष्यन्ति क्रि० असेक्ष्यत् असेक्ष्यताम् असेक्ष्यन् व० सिञ्चते सिश्चेते
सिञ्चन्ते स० सिञ्चेत सिञ्चयाताम्
सिञ्चरन् । प० सिञ्चताम् सिञ्चेताम्
ह्य० असिञ्चत असिञ्चेताम् असिञ्चन्त अ० असिचत असिचेताम् असिचन्त
असिक्त असिक्षाताम् असिक्षत, इत्यादि। प० सिषिचे सिषिचाते सिषिचिरे आ० सिक्षीष्ट सिक्षीयास्ताम् सिक्षीरन् श्व० सेक्ता
सेक्तारौ सेक्तारः भ० सेक्ष्यते सेक्ष्येते सेक्ष्यन्ते क्रि० असेक्ष्यत
असेक्ष्येताम् असेक्ष्यन्त
अथ दान्तः १३२२. विद्रोंती (विद्) लाभे। ८ व० विन्दति
विन्दन्ति स० विन्देत् प० विन्दतु/विन्दतात् विन्दताम् ह्य० अविन्दत् अविन्दताम् अविन्दन् अ. अविदतु
अविदताम् अविदन् प० विवेद
विविदतुः आ० विद्यात् विद्यास्ताम् श्व० वेत्ता वेत्तारौ भ० वेत्स्यति वेत्स्यतः वेत्स्यन्ति क्रि० अवेत्स्यत् अवेत्स्यताम् अवेत्स्यन् वेत्तेः किदिति परोक्षायां वा विन्दतेरप्येके। तन्मते विदाञ्चकार विवेद- इत्यादि व० विन्दते विन्देते विन्दन्ते स० विन्देत विन्देयाताम्
विन्देरन् प० विन्दताम् विन्देताम्
विन्दन्ताम् ह्य० अविन्दत अविन्देताम् अविन्दन्त अ० अवित्त अवित्साताम् अवित्सत प० विविदे विविदाते विविदिरे आ० वित्सीष्ट वित्सीयास्ताम् वित्सीरन् श्व० वेत्ता
वेत्तारः भ० वेत्स्यते वेत्स्येते वेत्स्यन्ते क्रि० अवेत्स्यत अवेत्स्येताम् अवेत्स्यन्त
विविदुः विद्यासुः वेत्तारः
असिञ्चन्
सिच्यासुः सेक्तारः
वेत्तारौ
सिञ्चन्ताम्
Page #390
--------------------------------------------------------------------------
________________
_373
लुम्पेते
तुदादिगण
अथ पान्तौ। १३२३. लुप्लुंती (लुप्) छेदने। ९ व० लुम्पति लुम्पतः
लुम्पन्ति स० लुम्पेत्
लुम्पेताम्
लुम्पेयुः प० लुम्पतु/लुम्पतात् लुम्पताम् लुम्पन्तु ह्य० अलुम्पत् अलुम्पताम् अलुम्पन् अ० अलुपत् अलुपताम् अलुपन् प० लुलोप लुलुपतुः लुलुपुः आ० लुप्यात् लुप्यास्ताम् लुप्यासुः श्व० लोप्ता . लोप्तारौ लोप्तारः भ० लोप्स्यति लोप्स्यतः लोप्स्यन्ति क्रि० अलोप्स्यत् अलोप्स्यताम् अलोप्स्यन् व० लुम्पते
लुम्पन्ते स० लुम्पेत लुम्पेयाताम् लुम्पेरन् प० लुम्पताम् लुम्पेताम् लुम्पन्ताम् ह्य० अलुम्पत अलुम्पेताम् अलुम्पन्त अ० अलुप्त अलुप्साताम् अलुसत प० लुलुपे लुलुपाते लुलुपिरे आ० लुप्सीष्ट लुप्सीयास्ताम् लुप्सीरन् श्व० लोप्ता लोप्तारौ लोप्तारः भ० लोप्स्यते लोप्स्येते लोप्स्यन्ते क्रि० अलोप्स्यत अलोप्स्येताम् अलोप्स्यन्त ___ १३२४. लिपीत् (लिए) उपदेहे। उपदेहो वृद्धिः। १० व० लिम्पति लिम्पतः लिम्पन्ति स० लिम्पेत् लिम्पेताम् लिम्पेयुः प० लिम्पतु/लिम्पतात् लिम्पताम् लिम्पन्तु ह्य० अलिम्पत् अलिम्पताम् अलिम्पन् अ० अलिपत् अलिपताम् अलिपन् प० लिलेप लिलिपतुः आ० लिप्यात् लिप्यास्ताम्
लिप्यासुः श्व० लेप्ता
लेप्तारौ लेप्तारः
भ० लेप्स्यति
लेप्स्यतः
लेप्स्यन्ति क्रि० अलेप्स्यत् अलेप्स्यताम् अलेप्स्यन् व० लिम्पते लिम्पेते लिम्पन्ते स० लिम्पेत लिम्पेयाताम् लिम्पेरन् प० लिम्पताम् लिम्पेताम् लिम्पन्ताम् ह्य० अलिम्पत अलिम्पेताम् अलिम्पन्त अ० अलिपत अलिपेताम् अलिपन्त
अलिप्त अलिप्साताम् अलिप्सत इ० प० लिलिपे लिलिपाते लिलिपिरे आ० लिप्सीष्ट लिप्सीयास्ताम् लिप्सीरन् श्व० लेप्ता लेप्तारौ लेप्तार: भ० लेप्स्यते लेप्स्येते लेप्स्यन्ते क्रि० अलेप्स्यत अलेप्स्येताम् अलेप्स्यन्त
अथ परस्मैपदिषु तान्तः। __ १३२५. कृतेत् (कृत्) छेदने। ११ व० कृन्तति
कृन्ततः
कृन्तन्ति स० कृन्तेत् कृन्तेताम् कृन्तेयुः प० कृन्ततु/कृन्ततात् कृन्तताम् कृन्तन्तु ह्य० अकृन्तत् अकृन्तताम् अकृन्तन् अ० अकर्तीत् अकर्तिष्टाम् अकर्त्तिषु प० चकर्त
चकृततुः
चकृतुः आ० कृत्यात् कृत्यास्ताम् कृत्यासुः श्व० कर्त्तिता कर्त्तितारौ कर्त्तितारः भ० कतिष्यति कतिष्यतः कतिष्यन्ति क्रि० अकतिष्यत् अकतिष्यताम् अकतिष्यन्
अथ दान्तः। १३२६. खिदंत् (खिद्) परिघाते। परितापे केचित्। १२ व० खिन्दति खिन्दतः खिन्दन्ति स० खिन्देत्
खिन्देताम् खिन्देयुः प० खिन्दतु खिन्दतात् खिन्दताम् ह्य० अखिन्दत् अखिन्दताम्। अखिन्दन्
लिलिपुः
खिन्दन्तु
Page #391
--------------------------------------------------------------------------
________________
374
चिखिदुः खिद्यासुः खेत्तारः
पियेयुः पियन्तु
पिप्यतुः
पिप्युः पीयासुः
पिंशेताम्
पिंशेयुः
अपेशिषुः
पिपेशुः
अ० अखैत्सीत् अखैत्ताम् अखैत्सुः प० चिखेद चिखिदतुः आ० खिद्यात् खिद्यास्ताम् श्व० खेत्ता
खेत्तारौ भ० खेत्स्यति खेत्स्यतः खेत्स्यन्ति क्रि० अखेत्स्यत् अखेत्स्यताम् अखेत्स्यन्
अथ शान्तः। १३२७. पिशत् (पिश) अवयवे। १३ व० पिंशति पिंशतः । पिंशन्ति स० पिंशेत् प० पिंशतु/पिंशतात् पिंशताम् पिंशन्तु ह्य० अपिंशत् अपिंशताम् अपिंशन् अ० अपेशीत् अपेशिष्टाम् प० पिपेश
पिपेशतुः आ० पिश्यात् पिश्यास्ताम् पिश्यासुः श्व० पेशिता पेशितारौ पेशितार: भ० पेशिष्यति पेशिष्यतः पेशिष्यन्ति क्रि० अपेशिष्यत् अपेशिष्यताम् अपेशिष्यन्
॥वृत् मुचादिः॥ मुचादिस्तुदाद्यन्तर्गणोऽष्टकः सम्पूर्णः। अथ प्रकृतवर्णक्रमेणेदन्ताश्चत्वारोऽनिटच।
__ १३२८. रित् (रि) गतौ। १४ व० रियति रियत: रियन्ति स० रियेत् प० रियतु/रियतात् रियताम् ह्य० अरियत् अरियताम् अरियन् अ० अरैषीत प० रिराय रिर्यतुः आ० रीयात् रीयास्ताम् श्व० रेता
रेतारौ भ० रेष्यति क्रि० अरेष्यत् अरेष्यताम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग ___ १३२९. पित् (पि) गतौ। १५ व० पियति पियतः पियन्ति स० पियेत्
पियेताम् प० पियतु/पियतात् पियताम् ह्य० अपियत् अपियताम् अपियन् अ० अपैषीत् अपैष्टाम् अपैषुः प० पिपाय आ० पीयात् पीयास्ताम् श्व० पेता
पेतारौ पेतारः भ० पेष्यति पेष्यतः पेष्यन्ति क्रि० अपेष्यत् अपेष्यताम् अपेष्यन्
१३३०. चित् (धि) धारणे। १६ व० धियति
धियतः
धियन्ति स० धियेत् धियेताम् धियेयुः प० धियतु/धियतात् धियताम् धियन्तु ह्य० अधियत् । अधियताम् अ० अर्धेषीत् अधैष्टाम् अर्धेषुः प० दिधाय दिध्यतुः आ० धीयात् धीयास्ताम् श्व० घेता
धेतारौ भ० धेष्यति धेष्यतः धेष्यन्ति क्रि० अधेष्यत् अधेष्यताम्
१३३१. क्षित् (क्षि) निवासगत्योः। १७ व० क्षियति
क्षियन्ति स० क्षियेत् क्षियेताम् क्षियेयुः प० क्षियतु/क्षियतात् क्षियताम् क्षियन्तु ह्य० अक्षियत् अक्षियताम् अक्षियन् अ० अक्षैषीत् अक्षैष्टाम् अक्षैषुः प० चिक्षाय
चिक्षियुः आ० क्षीयात् क्षीयास्ताम् क्षीयासुः श्व० क्षेता क्षेतारौ
क्षेतारः
अधियन्
दिध्युः धीयासुः
धेतारः
अधेष्यन्
रियेताम्
रियेयुः रियन्तु
क्षियतः
अरैष्टाम्
अरैषुः
रीयासुः रेतारः
चिक्षियतुः
रेष्यतः
रेष्यन्ति अरेष्यन् ,
Page #392
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
375
मम्र
सुवन्ति
मर्तारः
मासे माहे
भ० क्षेष्यति क्षेष्यतः क्षेष्यन्ति क्रि० अक्षेष्यत् अक्षेष्यताम् अक्षेष्यन्
अथोदन्तः सेट् च।
१३३२. घूत् (सू) प्रेरणे।१८ व० सुवति सुवतः स० सुवेत्
सुवेताम् सुवेयुः प० सुवतु/सुवतात् सुवताम् सुवन्तु ह्य० असुवत् असुवताम् असुषन् अ० असावीत् असाविष्टाम् असाविषुः प० सुषाव सुषुवतुः सुषुवुः आ० सूयात्
सूयास्ताम् सूयासुः श्व० सविता सवितारौ सवितारः भ० सविष्यति सविष्यतः सविष्यन्ति क्रि० असविष्यत् असविष्यताम् असविष्यन्
अथ ऋदन्तोऽनिट् च।
१३३३. मृत् (म) प्राणत्यागे। १९ व० म्रियते नियेते नियन्ते
म्रियसे म्रियेथे म्रियध्वे
प्रिये म्रियावहे म्रियामहे स० म्रियेत प्रियेयाताम्
नियेथाः म्रियेयाथाम् नियेय
प्रियेवहि म्रियेमहि प० म्रियताम् नियेताम्
म्रियन्ताम् म्रियस्व
प्रियध्वम् म्रियावहै म्रियामहै ह्य० अम्रियत अम्रियेताम् अम्रियन्त
अम्रियथाः अम्रियेथाम् अम्रियध्वम् अम्रिये
अम्रियावहि अम्रियामहि अ० अमृत अमृषाताम् अमृषत
अमृथाः अमृषाथाम् अमृडूवम्/ध्वम्
अमृषि अमृष्वहि अमृष्महि प० ममार
मम्रतुः
ममर्थ
मम्रथुः ममार/ममर मम्रिव
मम्रिम । आ० मृषीष्ट मृषीयास्ताम् मृषीरन्
मृषीष्ठाः मृषीयास्थाम् मृषीध्वम्
मृषीय मृषीवहि मृषीमहि श्व० मर्ता
मर्तारौ मर्तासाथे माध्वे
मर्तास्वहे मर्तास्महे भ० मरिष्यति मरिष्यतः मरिष्यन्ति
मरिष्यसि मरिष्यथ: मरिष्यथ
मरिष्यामि मरिष्याव: मरिष्यामः क्रि० अमरिष्यत् अमरिष्यताम् अमरिष्यन् .
अमरिष्यः अमरिष्यतम् अमरिष्यत अमरिष्यम् अमरिष्याव अमरिष्याम
अथ ऋदन्तौ सेटौ च। . १३३४. कृत् (कृ) निक्षेपे। २० व. किरति किरतः किरन्ति किरसि
किरथ किरामि किराव: किराम: स० किरेत् किरेताम् किरे:
किरेत किरेयम् किरेव
किरेम प० किरतु/किरतात् किरताम् किरन्तु किर:/किरतात् किरतम् किरत
किराव किराम ह्य० अकिरत् अकिरताम्
अकिरन् अकिरः अकिरतम् अकिरत अकिरम्
अकिराव अकिराम अ० अकारीत् अकारिष्टाम् अकारिषुः
अकारी: अकारिष्टम् अकारिष्ट | अकारिषम् अकारिष्व अकारिष्म | प० चकार चकरतुः
चकरु: चकरिथ चकरथुः चकर
किरथः
किरेयुः
म्रियेरन् म्रियेध्वम्
किरेतम्
नियेथाम्
किराणि
नियै
मम्रः
Page #393
--------------------------------------------------------------------------
________________
376
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चकार/चकर आ० कीर्यात्
कीर्याः
कीर्यासम् श्व० करिता
करितासि करितास्मि
चकरिव , कीर्यास्ताम् कीर्यास्तम् कीर्यास्व करितारौ करितास्थः करितास्वः
चकरिम कीर्यासुः कीर्यास्त कीर्यास्म करितारः करितास्थ करितास्मः
तथा
करीता भ० करिष्यति
करिष्यसि करिष्यामि
करीष्यति क्रि० अकरिष्यत्
अकरिष्यः अकरिष्यम्
करीतारौ करिष्यतः करिष्यथ: करिष्याव: करिष्यतः अकरिष्यताम् अकरिष्यतम् अकरिष्याव
करीतारः, इत्यादि करिष्यन्ति करिष्यथ करिष्यामः करीष्यन्ति, इ० अकरिष्यन् अकरिष्यत अकरिष्याम
तथा
श्व० गरिता गरितारौ गरितारः श्व० गलिता गलितारौ गलितारः भ० गरिष्यति गरिष्यतः
गरिष्यन्ति भ० गलिष्यति गलिष्यतः गलिष्यन्ति
गरोष्यति गलीष्यतः गलिष्यन्ति इ० क्रि० अगरिष्यत् अगरिष्यताम् अगरिष्यन् क्रि० अगलिष्यत् अगलिष्यताम् अगलिष्यन् __अगलीष्यत् अगलीष्यताम् अगलीष्यन् इ०
अथ लान्त: सेट् च। १३३६. लिखत् (लिख) अक्षरविन्यासे। २२ व० लिखति लिखतः लिखन्ति
लिखसि लिखथः लिखथ लिखामि लिखावः लिखामः स० लिखेत् लिखेताम् लिखेयुः लिखे: लिखेतम् लिखेत
लिखेयम् लिखेव लिखेम प० लिखतु/लिखतात् लिखताम् लिखन्तु
लिखः/लिखतात् लिखतम् लिखत
लिखानि लिखाव लिखाम ह्य० अलिखत् अलिखताम् अलिखन्
अलिखः अलिखतम् अलिखत
अलिखम् अलिखाव अलिखाम अ० अलेखीत् अलेखिष्टाम्
अलेखिषुः अलेखी: अलेखिष्टम् अलेखिष्ट
अलेखिषम् अलेखिष्व अलेखिष्म प० लिलेख लिलिखतुः लिलिखुः
लिलेखिथ लिलिखथुः लिलिख लिलेख लिलिखिव लिलिखिम आ० लिख्यात् लिख्यास्ताम् लिख्यासुः लिख्याः लिख्यास्तम् लिख्यास्त लिख्यासम् लिख्यास्व
लिख्यास्म श्व० लेखिता लेखितारौ लेखितार:
अकरीष्यत् अकरीष्यताम् अकरीष्यन्, ३०
१३३५. गृत् (ग) निगरणे। निगरणं भोजनम्। २१ व० गिरति गिरतः गिरन्ति व० गिलति
गिलन्ति स० गिरेत् गिरेताम् गिरेयुः स० गिलेत गिलेताम् प० गिरतु/गिरतात् गिरताम् प० गिलतु/गिलतात् गिलताम् ह्य० अगिरत्
अगिरताम्
अगिरन् ह्य० अगिलत् अगिलताम् अ० अगारीत् अगारिष्टाम् अ० अगालीत् अगालिष्टाम् अगालिषुः प० जगार जगरतुः
जगरु: प० जगाल जगलतुः
जगलुः आ० गीर्यात् गीर्यास्ताम्
गीर्यासुः
गिलतः
गिलेयुः गिरन्तु गिलन्तु
अगिलन् अगारिषुः
Page #394
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
377
लेखितास्मः
झर्चतः
जर्चेयुः
जर्चेम
लेखितासि लेखितास्थः लेखितास्थ
लेखितास्मि लेखितास्वः भ० लेखिष्यति लेखिष्यतः लेखिष्यन्ति
लेखिष्यसि लेखिष्यथ: लेखिष्यथ
लेखिष्यामि लेखिष्याव: लेखिष्यामः क्रि० अलेखिष्यत् अलेखिष्यताम् अलेखिष्यन्
अलेखिष्यः अलेखिष्यतम् अलेखिष्यत अलेखिष्यम् अलेखिष्याव अलेखिष्याम
___ अथ चान्तः पञ्च सेट्श्च। १३३७. जर्च (ज) परिभाषणे। तर्जनेऽपीत्येके। २३ व० जर्चति जर्चतः जर्चन्ति जर्चसि
जर्चथः जर्चथ जामि जीवः जीमः स० जर्चेत जर्चेताम् जर्चेः
जर्चेतम् जर्चेत जर्चेयम जर्चेव प० जर्चत/जर्चतात् जर्चताम् जर्चन्तु
जर्च:/जर्चतात् जर्चतम् जर्चत
जानि जर्चाव जर्चाम ह्य० अजर्चत् अजर्चताम् अजर्चन्
अजर्च: अजर्चतम् अजर्चत
अजर्चम् अजर्चाव अजर्चाम अ० अजर्चीत् अजर्चिष्टाम् अजर्चिषुः
अजी: अजर्चिष्टम् अजर्चिष्ट
अजर्चिषम् अजर्चिष्व अजर्चिष्म प० जजर्च जजर्चतुः जजचुः जजर्चिथ जजर्चथुः
जजर्च जजर्च जजर्चिव जजर्चिम आ० जात् जास्ताम् जासुः
जाः जास्तम् जास्त
जासम् जास्व जास्म श्व० जर्चिता जर्चितारौ जर्चितार:
जर्चितासि जर्चितास्थः जर्चितास्थ
जर्चितास्मि जर्चितास्व: जर्चितास्मः भ० जर्चिष्यति जर्चिष्यतः जर्चिष्यन्ति
जर्चिष्यसि जर्चिष्यथ: जर्चिष्यथ
जर्चिष्यामि जर्चिष्याव: जर्चिष्यामः क्रि० अजर्चिष्यत् अजर्चिष्यताम् अजर्चिष्यन्
अजर्चिष्यः अजर्चिष्यतम् अजर्चिष्यत अजर्चिष्यम् अजर्चिष्याव अजर्चिष्याम १३३८. झर्च (झ) परिभाषणे। तझनेऽपीत्येके। २४ व० झर्चति
झर्चन्ति स० झर्चेत् झर्चेताम् झर्चेयुः प० झर्चतु/झर्चतात् झर्चताम् झर्चन्तु ह्य० अझर्चत् अझर्चताम् अझर्चन् अ० अझर्चीत् अझर्चिष्टाम् अझर्चिषुः प० जझर्च जझर्चतुः जझर्चुः आ० झर्व्यात् झास्ताम् झासुः श्व० झर्चिता झर्चितारौ झर्चितार: भ० झर्चिष्यति झर्चिष्यतः झर्चिष्यन्ति क्रि० अझर्चिष्यत् अझर्चिष्यताम् अझर्चिष्यन्
१३३९. त्वचत् (त्वच्) संवरणे। संवरणमाच्छादनम्।२५ व० त्वचति त्वचतः त्वचन्ति स० त्वचेत् त्वचेताम् प० त्वचतु/त्वचतात् त्वचताम् त्वचन्तु ह्य० अत्वचत् अत्वचताम् अत्वचन् अ० अत्वचीत् अत्वचिष्टाम् अत्वचिषुः
अत्वाचीत् अत्वाचिष्टाम् अत्वाचिषुः, इ० प० तत्वाच तत्वचतुः तत्वचुः आ० त्वच्यात् त्वच्यास्ताम् त्वच्यासुः श्व० त्वचिता त्वचितारौ त्वचितारः भ० त्वचिष्यति त्वचिष्यतः त्वचिष्यन्ति क्रि० अत्वचिष्यत् अत्वचिष्यताम् अत्वचिष्यन्
त्वचेयुः
Page #395
--------------------------------------------------------------------------
________________
378
धातुरलाकर प्रथम भाग
१३४०. ऋचत् (ऋच्)
ऋचेयुः
अ० आच्छीत् प० आनछे आ० ऋच्च्यात् श्व० ऋच्छिता भ० ऋच्छिष्यति क्रि० अऋच्छिष्यत्
आसष्टाम् आर्णीषुः आनर्छतुः आनच्र्छः ऋच्छ्यास्ताम् ऋच्छ्यासुः ऋच्छितारौ ऋच्छितारः ऋच्छिष्यतः ऋच्छिष्यन्ति अऋच्छिष्यताम् अऋच्छिष्यन्
व० ऋचति ऋचत:
ऋचन्ति स० ऋचेत् ऋचेताम् प० ऋचतु/ऋचतात् ऋचताम् ऋचन्तु ह्य० आर्चत् आर्चताम् आर्चन् अ० आर्चीत् आर्चिष्टाम् आर्चिषुः प० आनर्च आनृचतुः
आनृचुः आ० ऋच्यात् ऋच्यास्ताम् ऋच्यासुः श्व० अर्चिता अर्चितारौ अर्चितारः भ० अर्चिष्यति अर्चिष्यतः अर्चिष्यन्ति क्रि० आर्चिष्यत् आर्चिष्यताम् आर्चिष्यन
१३४१. औव्रश्चौत् (व्रश्च-व्रश्च) छेदने। २७ व० वृश्चति वृश्चतः वृश्चन्ति स० वृश्चेत् वृश्चेताम् वृश्चेयुः प० वृश्चतु/वृश्चतात् वृश्चताम् वृश्चन्तु ह्य० अवृश्चत् अवृश्चताम्
अवृश्चन् अ० अवश्चीत् अव्रश्चिष्टाम् अवश्चिषुः प० अवाक्षीत् अव्राष्टाम् अव्राक्षु, इत्यादि आ० वृश्च्यात् वृश्च्यास्ताम् वृश्च्यासुः श्व० व्रश्चिता व्रश्चितारौ व्रश्चितारः भ० वश्चिष्यति व्रश्चिष्यतः व्रश्चिष्यन्ति व्रक्ष्यति व्रक्ष्यतः
व्रक्ष्यन्ति, इत्यादि। क्रि० अब्रक्ष्यत्
अव्रक्ष्यताम् अव्रक्ष्यन् अवश्चिष्यत् अवश्चिष्यताम् अव्रश्चिष्यन्, इ०
अथ छान्ताः षट् मच्छंवर्जाः सेटश्च। १३४२. ऋछत् (ऋच्छ्) इन्द्रियप्रलयमूर्तिभावयोः।
इन्द्रियाणां प्रलये मोहे मूर्तिभावे च। २८ व० ऋच्छति ऋच्छतः ऋच्छन्ति स० ऋच्छेत् ऋच्छेताम् प० ऋच्छतु/ऋच्छतात् ऋच्छताम् ऋच्छन्तु ह्य० आर्च्छत् आर्च्छताम् आर्छन्
१३४३. विछत् (विच्छ) गतौ। २९ व० विच्छायति विच्छायत: विच्छायन्ति स० विच्छायेत् विच्छायेताम् विच्छायेयुः प० विच्छायतु/विच्छायतात् विच्छायताम् विच्छायन्तु ह्य० अविच्छायत् अविच्छायताम् अविच्छायन् अ० अविच्छायीत् अविच्छायिष्टाम् अविच्छायिषुः
अविच्छीत् अविच्छीष्टाम् अविच्छिषुः इ० प० विच्छायाञ्चकार विच्छायाञ्चक्रतुः ।। विच्छायाञ्चक्रुः
विविच्छ विविच्छतुः विविच्छुः इत्यादि। आ० विच्छाय्यात् विच्छाय्यास्ताम् विच्छाय्यासुः
विच्छ्यात् विच्छ्यास्ताम् विच्छ्यासुः इ० श्व० विच्छिता विच्छितारौ विच्छितारः भ० विच्छिष्यति विच्छिष्यतः विच्छिष्यन्ति क्रि० अविच्छिष्यत् अविच्छिष्यताम अविच्छिष्यन्
१३४४. उछत् (उच्छ्) विवासे। विवासोऽतिक्रमः। ३० व० उच्छति उच्छतः उच्छन्ति स० उच्छेत् उच्छेताम् उच्छेयुः प० उच्छतु/उच्छतात् उच्छताम् उच्छन्तु ह्य० औच्छत् औच्छताम् औच्छन् अ० औच्छीत् औच्छिष्टाम् औच्छिषुः प० उच्छाञ्चकार उच्छाञ्चक्रतुः उच्छाञ्चक्रुः आ० उच्छयात् उच्छ्यास्ताम् उच्छ्यासुः श्व० उच्छिता उच्छितारौ उच्छितारः भ० उच्छिष्यति उच्छिष्यतः उच्छिष्यन्ति क्रि० औच्छिष्यत् औच्छिष्यताम् औच्छिष्यन्, इ०
ऋच्छेयुः
Page #396
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
379
मिच्छन्तु
उब्जेयुः
औब्जन्
१३४५. मिछत् (मिच्छ) उत्क्लेशे उत्क्लेशो बाधनतम्। ३१ | भ० प्रक्ष्यति प्रक्ष्यतः
प्रक्ष्यन्ति व० मिच्छति मिच्छतः
मिच्छन्ति
क्रि० अप्रक्ष्यत् अप्रक्ष्यताम् अप्रक्ष्यन् स० मिच्छेत मिच्छेत्ताम् मिच्छेयुः
अथ जान्ताः षट्। प० मिच्छतु/मिच्छतात् मिच्छताम्
१३४८. उब्जत् (उब्ज्) आर्जवे। ३४ ह्य० अमिच्छत् अमिच्छताम्
अमिच्छन् व० उब्जति
उब्जतः
उब्जन्ति अ० अमिच्छीत् अमिच्छिष्टाम् अमिच्छिषुः स० उब्जेत् उब्जेताम् प० मिमिच्छ मिमिच्छतुः मिमिच्छुः प० उब्जतु/उब्जतात् उब्जताम् उब्जन्तु आ० मिच्छ्यात् मिच्छ्यास्ताम् मिच्छ्यासुः ह्य० औब्जत् औब्जताम् श्व० मिच्छिता मिच्छितारौ मिच्छितारः
अ० औब्जीत् औब्जिष्टाम् औब्जिषुः भ० मिच्छिष्यति मिच्छिष्यतः मिच्छिष्यन्ति
प० उब्जाञ्चकार उब्जाश्चक्रतुः उब्जाञ्चक्रुः क्रि० अमिच्छिष्यत् अमिच्छिष्यताम् अमिच्छिष्यन्
आ० उब्ज्यात् उब्ज्यास्ताम् उब्ज्यासुः
श्व० उब्जिता १३४६. उछुत् (उच्छ्) उच्छे। उच्छ उञ्चयः। ३२
उब्जितारौ उब्जितारः
भ० उब्जिष्यति उब्जिष्यतः उब्जिष्यन्ति व० उञ्छति उञ्छतः उञ्छन्ति
क्रि० औब्जिष्यत् औब्जिष्यताम् औब्जिष्यन् स० उञ्छेत् उञ्छेताम् उञ्छेयुः
१३४९. सृजत् (सज्) विसर्गे।३५ प० उञ्छतु/उञ्छतात् उञ्छताम् उञ्छन्तु ह्य० औञ्छत् औञ्छताम्
व० सृजति सृजतः अ० औञ्छीत् औञ्छिष्टाम्
स० सृजेत् सृजेताम्
- सृजेयुः प० उञ्छाञ्चकार
उञ्छाञ्चक्रतुः उञ्छाञ्चक्रुः
प० सृजतु/सृजतात् सृजताम् सृजन्तु आ० उञ्छ्यात् उञ्छ्यास्ताम् उञ्छ्यासुः
ह्य० असृजत् असृजताम् असृजन् श्व० उञ्छिता उञ्छितारौ उञ्छितारः अ० अस्राक्षीत् अस्त्राष्टाम् अस्राक्षुः भ० उच्छिष्यति उञ्छिष्यतः उञ्छिष्यन्ति
प० ससर्ज ससृजतुः ससृजुः क्रि० औञ्छिष्यत् औञ्छिष्यताम् औञ्छिष्यन्
आ० सृज्यात् सृज्यास्ताम् सृज्यासुः श्व० स्रष्टा
स्रष्टारः १३४७. प्रछंत् (प्रच्छ्) ज्ञीप्सायाम्। ज्ञीप्सा जिज्ञासा। ३३ ।
स्रष्टारौ
भ० स्रक्ष्यति स्रक्ष्यतः स्रक्ष्यन्ति व० पृच्छति
पृच्छतः पृच्छन्ति क्रि० अस्रक्ष्यत्
अस्रक्ष्यताम् अस्त्रक्ष्यन् स० पृच्छेत् पृच्छेताम् पृच्छेयुः
१३५०. रुजीत् (रुज्) भड़े। ३६ प० पृच्छतु/पृच्छतात् पृच्छताम् पृच्छन्तु
व० रुजति रुजतः
रुजन्ति ह्य० अपृच्छत् अपृच्छताम्
अपृच्छन्
स० रुजेत् रुजेताम् अ० अप्राक्षीत् अप्राष्टाम्
प० रुजतु/रुजतात् रुजताम् रुजन्तु प० पप्रच्छ पप्रच्छतुः पप्रच्छुः
ह्य० अरुजत्
अरुजताम् आ० पृच्छ्यात् पृच्छयास्ताम् पृच्छयासुः
अ० अरौक्षीत् अरौक्ताम् अरौक्षुः श्व० प्रष्टा
प्रष्टारौ प्रष्टारः
प० रुरोज रुरुजतुः रुरुजुः
सृजन्ति
औञ्छन् औञ्छिषुः
रुजेयुः
अप्राक्षुः
अरुजन्
Page #397
--------------------------------------------------------------------------
________________
380
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
रोक्ष्यतः
झर्झत:
अभुजताम्
आ० रुज्यात् रुज्यास्ताम् रुज्यासुः श्व० रोक्ता
रोक्तारौ रोक्तारः भ० रोक्ष्यति
रोक्ष्यन्ति क्रि० अरोक्ष्यत् अरोक्ष्यताम् अरोक्ष्यन्
१३५१. भुजीत् (भुज्) कौटिल्ये। ३७ व० भुजति भुजतः भुजन्ति स० भुजेत् भुजेताम् भुजेयुः प० भुजतु/भुजतात् भुजताम् भुजन्तु ह्य० अभुजत्
अभुजन् अ० अभौक्षीत अभौक्ताम् अभौक्षुः प० बुभोज बुभुजतुः बुभुजुः आ० भुज्यात् भुज्यास्ताम् भुज्यासुः श्व० भोक्ता
भोक्तारौ भोक्तार: भ० भोक्ष्यति भोक्ष्यतः भोक्ष्यन्ति क्रि० अभोक्ष्यत् अभोक्ष्यताम् अभोक्ष्यन् १३५२. टुमस्जीत् (मस्ज्-मज्ज्) शुद्धौ। शुद्ध्यां स्नानं
बुडनं च लक्ष्यते। ३८ व० मज्जति मज्जतः
मज्जन्ति स० मज्जेत् मज्जेताम् मज्जेयुः प० मज्जतु/मज्जतात् मज्जताम् मज्जन्तु ह्य० अमज्जत् अमज्जताम् अमज्जन् अ० अमाक्षीत् अमाङ्क्ताम् अमाक्षुः प० ममज्ज ममज्जतुः ममज्जुः आ० मज्ज्यात् मज्ज्यास्ताम् मज्ज्यासुः श्व० मङ्क्ता मङ्क्तारौ मङ्क्तार: भ० मक्ष्यति मक्ष्यतः मक्ष्यन्ति क्रि० अमक्ष्यत् अमक्ष्यताम् अमझ्यन्
१३५३. जर्जत् (ज) परिभाषणे। ३९ व० जर्जति जर्जतः जर्जन्ति स० जर्जेत् । जर्जेताम् जर्जेयुः प० जर्जतु/जर्जतात् जर्जताम् जर्जन्तु ह्य० अजर्जत् अजर्जताम् . अजर्जन्
अ० अजीत् अजर्जिष्टाम् अजर्जिषुः प० जजर्ज जजर्जतुः जजर्जुः आ० जात् जास्ताम् जासुः श्व० जर्जिता जर्जितारौ जर्जितारः भ० जर्जिष्यति जर्जिष्यतः जर्जिष्यन्ति क्रि० अजर्जिष्यत् अजर्जिष्यताम् अजर्जिष्यन्
१३५४. झर्झ (झर्झ) परिभाषणे। ४० व० झर्झति
झर्झन्ति स० झझेत् झझेताम् झज्ञेयुः प० झर्झतु/झझतात् झझताम् झर्झन्तु ह्य० अझर्झत् अझर्झताम् अझर्झन् अ० अझझीत् अझझिंष्टाम् अझझिंषुः प० जझर्झ जझर्झतुः जझझुः आ० झर्यात् झास्ताम् झासुः श्व० झझिता झझिंतारौ झम्रितारः भ० झझिष्यति झर्झिष्यतः झझिष्यन्ति क्रि० अझर्झिष्यत् अझझ्ष्यिताम् अझर्झिष्यन्
१३५५. उद्झत् (उज्झ्) उत्सर्गे। ४१ व० उज्झति उज्झतः उज्झन्ति स० उज्झेत् उज्झेताम् उज्झेयुः प० उज्झतु/उज्झतात् उज्झताम् उज्झन्तु ह्य० औज्झत् औज्झताम् औज्झन् अ० औज्झीत् औज्झिष्टाम् प० उझाञ्चकार उञ्झाञ्चक्रतुः उझाञ्चक्रुः आ० उज्झ्यात् उज्झ्यास्ताम् उज्झ्यासुः श्व० उज्झिता उज्झितारौ उज्झितारः . भ० उज्झिष्यति उज्झिष्यतः उज्झिष्यन्ति क्रि० औज्झिष्यत् औज्झिष्यताम् औज्झिष्यन्
अथ डान्ताश्चत्वारः सेटचा
१३५६. जुडत् (जुड) गतौ। ४२ व० जुडति जुडतः जुडन्ति स० जुडेत् जुडेताम् जुडेयुः
औज्झिषुः
For Private & Personal use only
Page #398
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
381
चकडुः
पपृडुः
प० जुडतु/जुडतात् जुडताम् जुडन्तु ह्य० अजुडत् अजुडताम् अजुडन् अ० अजोडीत् अजोडिष्टाम् अजोडिषुः प० जुजोड जुजुडतुः जुजुडुः आ० जुड्यात्
जुड्यास्ताम् जुड्यासुः श्व० जोडिता जोडितारौ जोडितार: भ० जोडिष्यति जोडिष्यतः जोडिष्यन्ति क्रि० अजोडिष्यत् अजोडिष्यताम् अजोडिष्यन्
१३५७. पृडत् (पृड्) सुखने। ४३ व० पृडति पृडतः
पृडन्ति स० पृडेत् पृडेताम् पृडेयु: प० पृडतु/पृडतात् पृडताम्
पृडन्तु ह्य० अपृडत् अपडताम् अपृडन् अ० अपर्डीत् अपर्डिष्टाम् अपर्डिषुः प० पपर्ड पपृडतुः आ० पृड्यात् पृड्यास्ताम् पृड्यासुः श्व० पर्डिता पर्डितारौ पर्डितारः भ० पर्डिष्यति पर्डिष्यतः पर्डिष्यन्ति क्रि० अपर्डिष्यत् अपर्डिष्यताम् अपर्डिष्यन्
१३५८. मृडत् (मृड्) सुखने। ४४ व० मृडति
मृडतः
मृडन्ति स० मृडेत् मृडेताम् मृडेयुः प० मृडतु/मृडतात् मृडताम् मृडन्तु ह्य० अमृडत् अमृडताम् अमृडन् अ० अमर्डीत् अमर्डिष्टाम् अमर्डिषुः प० ममर्ड ममृडतुः ममृडुः आ० स्मृड्यात् मृड्यास्ताम् मृड्यासुः श्व० मर्डिता मर्डितारौ मर्थितार: भ० मर्डिष्यति
मर्डिष्यतः
मर्डिष्यन्ति क्रि० अमर्डिष्यत् अमर्डिष्यताम् अमर्डिष्यन्
१३५९. कडत् (कड्) मदे। भक्षणेऽपीत्येके। ४५
व० कडति कडतः
कडन्ति स० कडेत् कडेताम् कडेयुः प० कडतु/कडतात् कडताम् कडन्तु ह्य० अकडत् अकडताम्
अकडन् अ० अकडीत् अकडिष्टाम् अकडिषुः
अकाडीत् अकाडिष्टाम् अकाडिषु, इत्यादि प० चकाड चकडतुः आ० कड्यात् कड्यास्ताम् कड्यासुः व० कड़िता कडितारौ कडितार: भ० कडिष्यति कडिष्यतः कडिष्यन्ति क्रि० अकडिष्यत् अकडिष्यताम् अकडिष्यन्
अथ णान्ता नव सेटश्च।
१३६०. पृणत् (पृण) प्रीणने। ४६ व० पृणति पृणतः
पृणन्ति स० पृणेत् प्रणेताम् पृणेयुः प० पृणतु/पृणतात् पृणताम् पृणन्तु ह्य० अपृणत् अपृणताम् अपृणन् अ० अपर्णीत् अपर्णिष्टाम् अपर्णिषुः प० पपर्ण
पपृणतुः पपृणुः आ० पृण्यात् पृण्यास्ताम् पृण्यासुः श्व० पर्णिता पर्णितारौ पर्णितारः भ० पर्णिष्यति पर्णिष्यतः पर्णिष्यन्ति क्रि० अपर्णिष्यत् अपर्णिष्यताम् अपर्णिष्यन्
१३६१. तुणत् (तुण्) कौटिल्ये। ४७ व० तुणति
तुणत:
तुणन्ति स० तुणेत् तुणेताम् प० तुणतु/तुणतात् तुणताम् तुणन्तु ह्य० अतुणत् अतुणताम् अतुणन् अ० अतोणीत् अतोणिष्टाम्
अतोणिषुः प० तुतोण तुतुणतुः तुतुणुः
आ० तुण्यात् तुण्यास्ताम् तुण्यासुः | श्व० तोणिता तोणितारौ तोणितार:
तुणेयुः
Page #399
--------------------------------------------------------------------------
________________
382
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
पोणितारः
मृणन्ति
मुणन्ति
ममृणतुः
भ० तोणिष्यति तोणिष्यतः तोणिष्यन्ति क्रि० अतोणिष्यत् अतोणिष्यताम् अतोणिष्यन्
१३६२. मृणत् (मृण) हिंसायाम्। ४८ व० मृणति मृणतः स० मृणेत् मृणेताम् मृणेयुः १० मृणतु/मृणतात् मृणताम् मृणन्तु ह्य० अमृणत् अमृणताम् अमृणन् अ० अमीत् अमर्णिष्टाम् अमर्णिषुः म० ममर्ण
ममृणुः आ० मृण्यात् मृण्यास्ताम् मृण्यासुः ० मर्णिता मर्णितारौ मर्णितारः भ० मर्णिष्यति मर्णिष्यतः मर्णिष्यन्ति क्रि० अमर्णिष्यत् अमर्णिष्यताम् अमर्णिष्यन् १३६३. दुणत् (दुण्) गतिकौटिल्ययोश्च।
चकाराद्धिंसायाम्। ४९ व० दुणति
दुणत:
दुणन्ति स० दुणेत् दुणेताम् । दुणेयुः प० दुणतु/दुणतात् दुणताम् दुणन्तु ह्य० अदुणत् अदुणताम् अदुणन् अ० अद्रोणीत् अद्रोणिष्टाम्
अद्रोणिषुः प० दुद्रोण दुगुणतुः दुदुणुः आ० दुण्यात् दुण्यास्ताम् दुण्यासुः श्व० द्रोणिता द्रोणितारौ द्रोणितार: भ० द्रोणिष्यति द्रोणिष्यतः द्रोणिष्यन्ति क्रि० अद्रोणिष्यत् अद्रोणिष्यताम् अद्रोणिष्यन्
१३६४. पुणत् (पुण) शुभे।
शुभं शुभविषया क्रिया। ५० व० पुणति पुणत: स० पुणेत् पुणेताम् पुणेयुः प० पुणतु/पुणतात् पुणताम् पुणन्तु ह्य० अपुणत् अपुणताम्
अपुणन्
अ० अपोणीत् अपोणिष्टाम् अपोणिषुः प० पुपोण पुपुणतुः पुपुणुः आ० पुण्यात् पुण्यास्ताम् पुण्यासुः श्व० पोणिता पोणितारौ भ० पोणिष्यति
पोणिष्यतः
पोणिष्यन्ति क्रि० अपोणिष्यत् अपोणिष्यताम् अपोणिष्यन्
१३६५. मुणत् (मुण) प्रतिज्ञाने। ५१ व० मुणति
__ मुणतः स० मुणेत् मुणेताम् मुणेयुः म० मुणतु/मुणतात् मुणताम् मुणन्तु ह्य० अमुणत् अमुणताम् अमुणन् अ० अमोणीत् अमोणिष्टाम् अमोणिषुः म० मुमोण मुमुणतुः मुमुणुः आ० मुण्यात् मुण्यास्ताम् मुण्यासुः श्व० मोणिता मोणितारौ मोणितारः भ० मोणिष्यति मोणिष्यतः मोणिष्यन्ति क्रि० अमोणिष्यत् अमोणिष्यताम् अमोणिष्यन्
१३६६. कुणत् (कुण्) शब्दोपकरणयोः। ५२ व० कुणति स० कुणेत् कुणेताम् कुणेयुः क० कुणतु/कुणतात् कुणताम् कुणन्तु ह्य० अकुणत्
अकुणताम्
अकुणन् अ० अकोणीत् अकोणिष्टाम् अकोणिषुः प० चुकोण चुकुणतुः चुकुणुः आ० कुण्यात् कुण्यास्ताम् कुण्यासुः श्व० कोणिता कोणितारौ
कोणितारः भ० कोणिष्यति कोणिष्यतः कोणिष्यन्ति क्रि० अकोणिष्यत् अकोणिष्यताम् अकोणिष्यन्
१३६७. घुणत् (घुण) भ्रमणे। ५३ व० घुणति ।
घुणत: स० घुणेत् घुणेताम् घुणेयुः
कुणत:
कुणन्ति
कुणता
पुणन्ति
घुणन्ति
Page #400
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
घ० घुणतु / घुणतात् घुणताम्
ह्य० अघुणत्
अघुणताम्
अ० अघोणीत्
अघोणिष्टाम्
प० जुघोण
आ० घुण्यात् श्व० घोणिता
भ० घोणिष्यति
क्रि० अघोणिष्यत्
व० घूर्णत
०घूर्णेत्
घ० घूर्णतु / घूर्णतात्
ह्य० अघूर्णत्
अ० अघूर्णीत्
प० जुघूर्ण
अघोष्यिताम्
१३६८. घूर्णत् (घूर्ण) भ्रमणे । ५४
०घूत्
श्व० घूर्णिता
भ० घूर्णिष्यति
क्रि० अघूर्णिष्यत्
To
स० चृतेत्
प० चृततु / चृततात्
ह्य० अचृतत्
अ० अर्तीत्
म० चचर्त
जुघुणतुः
घुण्यास्ताम्
घोणितारौ
घोणिष्यतः
आ० नृत्यात् श्व० चर्तिता
भ० चर्तिष्यति
क्रि० अचर्तिष्यत्
घूर्णत:
घूर्णेताम्
घूर्णताम्
अघूर्णताम्
घूर्ण
जुघूर्णतुः
घूर्यास्ताम्
घूर्णितारौ
घूर्णिष्यतः
घूर्णिताम्
अथ तान्तः सेद् च। ५५
१३६९. चृतैत् (चृत्) हिंसाग्रन्थयोः ।
घुणन्तु
अघुणन्
अघोणिषुः
चूततः
चृतेताम्
चृतताम्
अचृतताम्
अर्तिष्टाम्
जुघुणुः
घुण्यासुः
घोणितार:
घोणिष्यन्ति
अघोणिष्यन्
चचृततुः
नृत्यास्ताम्
चर्तितारौ
चर्तिष्यतः
अचर्तिष्यताम्
घूर्णन्ति
घूर्णेयुः
घूर्णन्तु
अघूर्णन्
अघूर्णिषुः
जुघूर्णः
घूर्ण्यासुः
घूर्णितार:
घूर्णिष्यन्ति
अघूर्णिष्यन्
तन्ति
चृतेयुः
चृतन्तु
अचतन्
अचर्तिषुः
चचतुः
नृत्यासुः
चर्तितारः
चर्तिष्यन्ति
अचर्तिष्यन्
व० नुदति
नुदसि
नुदामि
स० नुदेत्
नुदेः
नुदेयम्
प० नुदतु / नुदतात्
अथ दान्तावनिटयै च ।
१३७०. णुदंत् (नुद्) प्रेरणे । ५६
नुदः / नुदतात्
नुदानि
ह्य० अनुदत्
अनुदः
अनुदम्
अ० अनौत्सीत्
अनौत्सीः
अनौत्सम्
प० नुनोद
नोदि
नुनोद
आ० नुद्यात्
नुद्या:
नुद्यासम्
श्व० नोत्ता
नोत्तासि
नोत्तास्म
भ० नोत्स्यति
नोत्स्यसि
नोत्स्यामि
क्रि० अनोत्स्यत्
अनोत्स्यः
अनोत्स्यम्
नुदतः
नुदथः
नुदाव:
नुदेताम्
नुदेतम्
देव
नुदताम्
नुदतम्
नुदाव
अनुदताम्
अनुदतम्
अनुदाव
अनौत्ताम्
अनौत्तम्
अनौत्स्व
नुनुदतुः
नुनुदथुः
नुनुदिव
नुद्यास्ताम्
नुद्यास्तम्
नुद्यास्व
नोत्तारौ
नोत्तास्थः
नोत्तास्वः
नोत्स्यतः
नोत्स्यथः
नोत्स्याव:
अनोत्स्यताम्
अनोत्स्यतम्
अनोत्स्याव
नुदन्ति
नुदथ
नुदामः
नुदेयुः
दे
नुदेम
नुदन्तु
नुदत
नुदाम
अनुदन्
अनुदत
अनुदाम
अनौत्सुः
अनौत
अनौत्स्म
नुनुदुः
नुनुद
नुनुदिम
नुद्यासुः
नुद्यास्त
नुद्यास्म
नोत्तारः
नोत्तास्थ
नोत्तास्मः
नोत्स्यन्ति
नोत्स्यथ
नोत्स्यामः
अनोत्स्यन्
अनोत्स्यत
अनोत्स्याम
383
Page #401
--------------------------------------------------------------------------
________________
384
१३७१. षद्कृंत् (सद्) अवसादने । ५७
सीदन्ति
सीदथ
व० सीदति
सीदसि
सीदामि
स० सीदेत्
सीदेः
सीदेयम्
प० सीदतु / सीदतात्
सीद:/सीदतात्
सीदानि
ह्य० असीदत्
असीद:
असीम्
अ० असदत्
असदः
असदम्
प० ससाद
सेदिथ / ससत्थ
ससाद/ ससद
आ० सद्यात्
सद्या:
सद्यासम्
श्व० सत्ता
सत्तासि
सत्तास्म
भ० सत्स्यति
सत्स्यसि
सत्स्यामि
क्रि० असत्स्यत्
असत्स्यः
सीदतः
सीदथः
सीदाव:
सीदेताम्
सीदेतम्
सीदेव
सीदताम्
सीदतम्
सीदाव
असीदताम्
असीदतम्
असीदाव
असदताम्
असदतम्
असदाव
सेदतुः
सेदथुः
सेदिव
सद्यास्ताम्
सद्यास्तम्
सद्यास्व
सत्तारौ
सीदाम:
सीदेयुः
सीदेत
सीदेम
सीदन्तु
सीदत
सीदाम
असीदन्
असीदत
असीदाम
असदन्
असदत
असदाम
सेदुः
सेद
सेदिम
सत्तास्थः
सत्तास्वः
सत्स्यतः
सत्स्यथः
सत्स्यावः
असत्स्यताम्
असत्स्यतम्
असत्स्यम्
असत्स्याव
असत्स्याम
ज्वलादिपठितेनैव सिद्धे इहास्य पाठोऽवर्णादश्न इति वान्तादेशार्थ : ; सीदती सीदन्ती स्त्री कुले वा। ज्वालादिपाठोऽपि णविकल्पार्थः सदः सादः । शदलंत् शातने इति तु न पठितव्य एव शित्यात्मनेपदित्वेन शतुरभावेऽन्तादेशविकल्प प्राप्तेः । अशददित्यादेस्तु तेनैव सिद्धेः ।
सद्यासुः
सद्यास्त
सद्यास्म
सत्तार:
सत्तास्थ
सत्तास्मः
सत्स्यन्ति
सत्स्यथ
सत्स्यामः
असत्स्यन्
असत्स्यत
व० विधति
विधसि
विधामि
सo विधेत्
विधेः
विधेयम्
प० विधतु / विधतात्
विध/विधतात्
अथ धान्तः सेट् च ।
१३७२. विधत् (विघ्) विधाने । ५८
विधन्ति
विधथ
विधाम:
विधेयुः
विधेत
विधेम
विधन्तु
विधत
विधाम
विधानि
० अविधत्
अविधः
अविधम्
अ० अवेधीत्
अवेधी:
अवेधषम्
प० विवेध
विवेधिथ
विवेध
आ० विध्यात्
विध्याः
विध्यासम्
श्व० वेधिता
वेधितासि
वेधितास्मि
भ० वेधिष्यति
वेधष्यसि
वेधिष्यामि
क्रि० अवेधिष्यत्
अवेधिष्यः
अवेधष्यम्
विधतः
विधथः
विधावः
विधेताम्
विधेतम्
विधेव
विधताम्
विधतम्
विधाव
अविधताम्
धम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अविधाव
अधिष्टाम्
अवेधिष्टम्
अवेधिष्व
विविधतुः
विविधथुः
विविधिव
अविधन्
अविधत
अविधाम
अवेधिषुः
अवेधिष्ट
अवेधिष्म
विविधु:
विविध
विविधिम
विध्यास्ताम्
विध्यासुः
विध्यास्तम्
विध्यास्त
विध्यास्व
विध्यास्म
वेधितारौ
वेधितार:
वेधितास्थः
वेधितास्थ
वेधितास्वः
वेधितास्मः
वेधिष्यतः
वेधिष्यन्ति
वेधिष्यथः
वेधिष्यथ
वेधिष्यावः
वेधष्यामः
अवेधिष्यताम्
अवेधिष्यन्
अवेधिष्यतम् अवेधिष्यत
अवेधिष्याव
अवेधिष्याम
Page #402
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
385
शुनन्ति
जुनसि
जुनेः
जुनेत
प. जनत/जनतात
जनताम्
छुपन्ति
अथ नान्तौ सेटौ च।
१३७३. जुनत् (जुन्) गतौ। ५९ व० जुनति जुनत:
जुनन्ति जुनथ:
जुनथ जुनामि जुनावः
जुनाम: स० जुनेत् जुनेताम् जुनेयुः
जुनेतम् - जुनेयम् जुनेव जुनेम
जुनन्तु जुनः/जुनतात् जुनतम् जुनत जुनानि जुनाव
जुनाम ह्य० अजुनत् अजुनताम् अजुनन्
अजुनः अजुनतम् अजुनत
अजुनतम् अजुनाव अजुनाम अ० अजोनीत् अजोनिष्टाम् अजोनिषुः
अजोनी: अजोनिष्टम् अजोनिष्ट
अजोनिषम् अजोनिष्व अजोनिष्म प० जुजोन जुजुनतुः जुजुनुः
जुजोनिथ जुजुनथुः जुजुन
जुजोन जुजुनिव जुजुनिम आ० जुन्यात् जुन्यास्ताम् जुन्यासुः
जुन्याः जुन्यास्तम् जुन्यास्त
जुन्यासम् जुन्यास्व जुन्यास्म श्व० जोनिता जोनितारौ जोनितारः
जोनितासि जोनितास्थः जोनितास्थ जोनितास्मि जोनितास्वः
जोनितास्मः भ० जोनिष्यति
जोनिष्यतः
जोनिष्यन्ति जोनिष्यसि जोनिष्यथ: जोनिष्यथ
जोनिष्यामि जोनिष्याव: जोनिष्यामः क्रि० अजोनिष्यत् अजोनिष्यताम् अजोनिष्यन्
अजोनिष्यः अजोनिष्यतम् अजोनिष्यत अजोनिष्यम् अजोनिष्याव अजोनिष्याम
१३७४. शुनत् (शुन्) गतौ। ६० व० शुनति शुनतः स० शुनेत्
शुनेताम् शुनेयुः प० शुनतु/शुनतात् शुनताम् शुनन्तु ह्य० अशुनत् अशुनताम् अशुनन् अ० अशोनीत् अशोनिष्टाम् अशोनिषुः प० शुशोन शुशुनतुः शुशुनुः आ० शुन्यात् शुन्यास्ताम् शुन्यासुः श्व० शोनिता शोनितारौ शोनितार: भ० शोनिष्यति शोनिष्यतः शोनिष्यन्ति क्रि० अशोनिष्यत् अशोनिष्यताम् अशोनिष्यन्
अथ पान्तोऽनिट् च।
१३७५. छुपंत् (छुए) स्पर्शे। ६१ व० छुपति
छुपत: स० छुपेत्
छुपेताम् छुपेयुः प० छुपतु/छुपतात् छुपताम् छुपन्तु ह्य० अच्छुपत् अच्छुपताम् अच्छुपन् अ० अच्छौप्सीत् अच्छौप्ताम् अच्छौप्सुः प० चुच्छोप चुच्छुपतुः चुच्छुपुः आ० छुप्यात् छुप्यास्ताम् छुप्यासुः श्व० छोप्ता
छोप्तारौ छोप्तारः भ० छोप्स्यति छोप्स्यतः छोप्स्यन्ति क्रि० अछोप्स्यत् अछोप्स्यताम् अछोप्स्यन्
अथ फान्ता नव सेटश्च। १३७६. रिफत् (रिफ्) कथनयुद्धहिंसादानेषु। ६२ व० रिफति रिफतः रिफन्ति
रिफसि रिफथ: रिफथ
रिफामि रिफावः रिफामः स० रिफेत् रिफेताम्
रिफेः रिफेतम् रिफेयम् रिफेव रिफेम
1114 1
रिफेयुः रिफेत
Page #403
--------------------------------------------------------------------------
________________
386
प० रिफतु/रिफतात् रिफताम्
रिफ / रिफतात्
रिफतम्
रिफाणि
रिफाव
० अरिफत्
अरिफ:
अरिफतम्
अ० अरेफीत्
अरेफी:
अरेफषम्
प० रिरेफ
रिरेफिथ
रिरेफ
आ० रिफ्यात्
रिफ्या
रिफ्यासम्
श्व० रेफिता
रेफितासि
रेफितास्मि
भ० रेफिष्यति
रेफिष्यसि
रेफिष्यामि
क्रि० अरेफिष्यत्
अरेफिष्यः
अरेफष्यम्
अरिफताम्
अरिफतम्
अरिफाव
अरेफष्टाम्
अरेफष्टम्
अरेफिष्व
रिरिफतुः
रिरिफथुः
रिरिफिव
रिफ्यास्ताम्
रिफ्यास्तम्
रिफ्यास्व
रेफतारौ
रेफितास्थः
रेफितास्वः
रेफिष्यतः
रेफिष्यथः
रेफिष्याव:
व० ऋफति
स० ऋत्
प० ऋतु/ ऋफतात् ऋफताम्
० आर्फत्
आर्फताम्
अ० आर्फीत्
आर्फिष्टाम्
प० आनफ
आ० ऋफ्यात्
अरेफष्यताम्
अरेफष्यतम्
अरे फिष्याव
१३७६-२. ऋफत् (ऋफ) पक्षे।
ऋफतः
ऋफेताम्
रिफन्तु
रिफत
रिफाम
अरिफन्
अरिफत
अरिफाम
अरेफषुः
अरेफिष्ट
अरेफिष्म
रिरिफुः
रिरिफ
रिरिफिम
रिफ्यासुः
रिफ्यास्त
रिफ्यास्म
रेफितार:
रेफितास्थ
रेफितास्मः
रेफिष्यन्ति
रेफिष्यथ
रेफिष्यामः
आनृफतुः
ऋफ्यास्ताम्
अरेफिष्यन्
अरेफिष्यत
अरेफिष्याम
ऋफन्ति
ऋफेयुः
ऋफन्तु
आफन्
आर्किषुः
आनृफुः
ऋफ्यासुः
श्व० अर्पिता
भ० अर्फिष्यति
क्रि० आर्फिष्यत्
व० तृम्फति
स० तृम्फेत्
अर्फितारौ
अर्फिष्यतः
आर्कष्यताम्
अथ फान्ता नव सेटक्ष।
१३७७. तृफत् (तृफ्) तृप्तौ । ६३
आ० तृफ्यात्
श्व० तर्फिता
भ० तर्फिष्यति
क्रि० अतर्फिष्यत्
प० तृम्फतु / तृम्फतात् तृम्फताम्
ह्य० अतृम्फत्
अ० अतर्फीत्
प० ततर्फ
व० तृफति
स० [तृत्
प० तृफतु/ तृफतात्
ह्य० अतृफत्
अ० अतृम्फीत्
प० ततृम्फ
तृम्फतः
तृम्फेताम्
तृम्फन्ति
तृम्फेयुः
तृम्फन्तु
अतृम्फन्
अतर्फिषुः
ततृफुः
तृफ्यासुः
तर्फितार:
तर्फिष्यन्ति
अतर्फिष्यताम् अतर्फिष्यन्
आ० तृफ्यात्
श्व० तृम्फिता
भ० तृम्फिष्यति
क्रि० अतृम्फिष्यत्
१३७८. तृम्फत् (तृम्फ्) तृप्तौ । ६४
अतृम्फताम्
अतर्फिष्टाम्
ततृफतुः
तृफ्यास्ताम्
तर्फितारौ
तर्फिष्यतः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अर्फितारः
अफिष्यन्ति
आर्किष्यन्
तृफत:
ताम्
तृफताम्
तृफन्तु
अतृफताम्
अतृफन्
अतृम्फिष्टाम्
अतृफिषुः
ततृम्फतुः
ततृम्फुः
तृफ्यास्ताम्
तृफ्यासुः
तृम्फितारौ
तृम्फितार :
तृम्फिष्यतः
तृम्फिष्यन्ति
अतृफिष्यताम् अतृफिष्यन्
पान्ताविमाविति केचित् शेनलुकं नेच्छान्ति ||
१३७९. ऋफत् (ऋफ्) हिंसायाम्। ६५
व० ऋफति
ऋफतः
स० ऋफेत्
ऋफेताम्
प० ऋफतु / ऋफतात् ऋफताम्
तृफन्ति
तृफेयुः
ऋफन्ति
ऋफेयुः
ऋफन्तु
Page #404
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
387
आर्फिषुः
ऋफन्तु
ह्य० आर्फत् आर्फताम् आर्फन् अ० आर्फीत् आर्फिष्टाम् प० आनर्फ आनृफतुः
आनृफुः - आ० ऋफ्यात् ऋफ्यास्ताम् ऋफ्यासुः
० अर्फिता अर्फितारौ अर्फितार: भ० अर्फिष्यति अर्फिष्यतः अर्फिष्यन्ति क्रि० आर्फिष्यत्
आर्फिष्यन् १३८०. ऋम्फत् (ऋम्प) हिंसायाम्। ६९ व० ऋफति ऋफतः ऋफन्ति स० ऋफेत् ऋफेताम् ऋफेयुः प० ऋफतु/ऋफतात् ऋफताम् ह्य० आर्फत् आर्फताम् आन् अ० आम्र्फीत् आम्र्फिष्टाम्
आर्फिषुः प० ऋम्फायाञ्चकार । ऋम्फायाञ्चक्रतुः ऋम्फायाञ्चक्रुः
ऋम्फायाञ्चकर्थ ऋम्फायाञ्चक्रथः ऋम्फायाञ्चक्र ऋम्फायाञ्चकार/चकर ऋम्फायाञ्चकृव ऋम्फायाञ्चकम
ऋम्फायाम्बभूव। ऋम्फायामास। आ० ऋफ्यात् ऋफ्यास्ताम् ऋफ्यासुः । श्व० ऋम्फिता ऋम्फितारौ ऋम्फितारः भ० ऋम्फिष्यति ऋम्फिष्यतः ऋम्फिष्यन्ति क्रि० आर्फिष्यत् आर्फिष्यताम् आर्फिष्यन् अनात इत्यात्वे ने चे आनृम्फ नुलकं नेच्छन्त्येके रिफ इति केचित्।
१३८१. दृफत् (दृफ्) उत्क्ले शे। ६७ व० दृम्फति दृम्फतः दृम्फन्ति स० दृम्फेत् दृम्फेताम् दृम्फेयुः प० दृम्फतु/दृम्फतात् दृम्फताम् दृम्फन्तु ह्य० अदृम्फत् अदृम्फताम् अदृम्फन् अ० अदीत् अदर्फिष्टाम् अदर्फिषुः प० ददर्फ ददृफतुः ददृफुः आ० दृफ्यात् दृफ्यास्ताम् दृपयासुः श्व० दर्फिता दर्फितारौ दर्फितारः
भ० दर्फिष्यति दर्फिष्यतः दर्फिष्यन्ति क्रि० अदर्फिष्यत् अदर्फिष्यताम् अदर्फिष्यन्
१३८२. दृम्फत् (दृम्फ) उत्क्ले शे। ६८ व० दृफति दृफतः
दृफन्ति स० दृफेत् दृफेताम् दृफेयुः प० दृफतु/दृफतात् दृफताम्
दृफन्तु ह्य० अदृफत् अदृफताम् अदृफन् अ० अदृम्फीत् अदृम्फिष्टाम् अदृम्फिषुः प० ददृम्फ ददृम्फतुः ददृम्फुः आ० दृफ्यात् दृफ्यास्ताम् दृफ्यासुः श्व० दृम्फिता दृम्फितारौ दृम्फितार: भ० दृम्फिष्यति दृम्फिष्यतः दृम्फिष्यन्ति क्रि० अदृम्फिष्यत् अदृम्फिष्यताम् अदृम्फिष्यन्
१३८३. गुफत् (गुफ्) उत्क्ले शे। ६७ व० गुम्फति गुम्फतः गुम्फन्ति स० गुम्फेत् गुम्फेताम् गुम्फेयुः प० गुम्फतु/गुम्फतात् गुम्फताम् गुम्फन्तु ह्य० अगुम्फत् अगुम्फताम् अगुम्फन् अ० अगोफीत् अगोफिष्टाम् अगोफिषुः प० जुगोफ जुगुफतुः आo गुफ्यात् गुफ्यास्ताम् गुफ्यासुः श्व० गोफिता गोफितारौ गोफितारः भ० गोफिष्यति गोफिष्यतः गोफिष्यन्ति क्रि० अगोफिष्यत् अगोफिष्यताम् अगोफिष्यन्
१३८४. गुम्फत् (गुम्फ) ग्रन्थने। ७० व० गुफति गुफतः स० गुफेत् गुफेताम् गुफेयुः प० गुफतु/गुफतात् गुफताम् । गुफन्तु ह्य० अगुफत् अगुफताम् अगुफन् अ० अगुम्फीत् अगुम्फिष्टाम् अगुम्फिषुः प० जुगुम्फ जुगुम्फतुः जुगुम्फुः
जुगुफुः
गुफन्ति
Page #405
--------------------------------------------------------------------------
________________
388
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मष्यामि
ओभिष्यन्
उभेताम्
उभन्तु औभन्
औभताम्
औम्भन्
आ० गुफ्यात् गुफ्यास्ताम् गुफ्यासुः श्व० गुम्फिता गुम्फितारौ गुम्फितारः भ० गुम्फिष्यति गुम्फिष्यतः गुम्फिष्यन्ति क्रि० अगुम्फिष्यत् अगुम्फिष्यताम् अगुम्फिष्यन्
अथ भान्ताः षट् सेटश्चः
१३८५. उभत् (उभ्) पूरणे। ७१ व० उम्भति उम्भतः
उम्भन्ति उम्भसि उम्भथ:
उम्भथ उम्भामि उम्भावः
उम्भाम: स० उम्भेत् उम्भेताम् उम्भेयुः
उम्भे: उम्भेतम् उम्भेत उम्भेयम् उम्भेव
उम्भेम प० उम्भतु/उम्भतात् उम्भताम् उम्भन्तु उम्भ/उम्भतात् उम्भतम्
उम्भत उम्भाणि उम्भाव
उम्भाम ह्य० औम्भत् औम्भताम् औम्भः औम्भतम् औम्भत
औम्भाव औम्भाम अ० औभीत्
औभिष्टाम् औभी: औभिषम् औभिष्व
औभिष्म प० उवोभ ऊभतुः उवोभिथ
ऊभथुः ऊभ उवोभ ऊभिव
ऊभिम आ० उभ्यात् उभ्यास्ताम् उभ्यासुः उभ्याः
उभ्यास्तम् उभ्यास्त उभ्यासम् उभ्यास्व उभ्यास्म श्व० ओभिता ओभितारौ ओभितारः
ओभितासि ओभितास्थः ओभितास्थ
ओभितास्मि ओभितास्वः ओभितास्मः भ० ओभिष्यति ओभिष्यतः ओभिष्यन्ति
ओभिष्यसि ओभिष्यथ: ओभिष्यथ
ओभिष्यामि ओभिष्याव: ओभिष्यामः क्रि० ओभिष्यत् ओभिष्यताम्. ओभिष्यः ओभिष्यतम्
ओभिष्यत ओभिष्यम् ओभिष्याव ओभिष्याम
। १३८२. उम्भत् (उम्भ) पूरणे। ७२ व० उभति
उभतः
उभन्ति स० उभेत्
उभेयुः प० उभतु/उभतात् उभताम् ह्य० औभत् अ० औम्भीत्
औम्भिष्टाम् औम्भिषुः प० उम्भाञ्चकार उम्भाञ्चक्रतुः उम्भाञ्चक्रुः
उम्भाञ्चकर्थ उम्भाञ्चक्रथुः उम्भाञ्चक्र उम्भाञ्चकार/चकर उम्भाञ्चकृव उम्भाञ्चकृम
उम्भाम्बभूव/उम्भामास। आ० उभ्यात् उभ्यास्ताम् उभ्यासुः श्व० उम्भिता उम्भितारौ उम्भितार: भ० उम्भिष्यति उम्भिष्यतः उम्भिष्यन्ति क्रि० औम्भिष्यत् औम्भिष्यताम् औम्भिष्यन्
१३८७. शुभत् (शुभ) शोभार्थे। ७३ व० शुम्भति शुम्भतः शुम्भन्ति स० शुम्भेत् शुम्भेताम् शुम्भेयुः प० शुम्भतु/शुम्भतात् शुम्भताम् शुम्भन्तु ह्य० अशुम्भत् अशुम्भताम् अशुम्भन् अ० अशोभीत् अशोभिष्टाम् अशोभिष: प० शुशोभ शुशुभतुः शुशुभुः आ० शुभ्यात् शुभ्यास्ताम् शुभ्यासुः व० शोभिता शोभितारौ शोभितारः भ० शोभिष्यति शोभिष्यतः शोभिष्यन्ति क्रि० अशोभिष्यत् अशोभिष्यताम् अशोभिष्यन्
१३८८. शुम्भत् (शुम्भ) शोभार्थे। ७४ व० शुभति शुभतः
औम्भतम्
औभिषुः
औभिष्टम्
औभिष्ट
ऊभुः
शुभन्ति
Page #406
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
स० शुभेत्
प० शुभतु / शुभतात्
ह्य० अशुभत्
अ० अशुम्भीत्
प० शुशुम्भ
आ० शुभ्यात्
श्व० शुम्भिता
भ० शुम्भिष्यति
क्रि० अशुम्भिष्यत्
व० दृति
स० [दृभेत्
प० दृभतु / दृभतात्
ह्य० अदृभत्
अ० अदर्भीत्
प० ददर्भ
आ० दृभ्यात् श्व० दर्भिता
शुभेम्
शुभताम्
अशुभताम्
अशुम्भिष्टाम्
शुशुम्भतुः
शुभ्यास्ताम्
शुभ
शुम्भिष्यतः
अशुम्भिष्यताम्
१३८९. दृभैत् (दृभ्) ग्रन्थने । ७५
भ० दर्भिष्यति
क्रि० अदर्भिष्यत्
व० लुभति
लुभसि
लुभामि
सo लुभेत्
लुभेः
लुभेयम्
दृभतः
दृभेताम्
दृभताम्
अदृभताम्
अदर्भिष्टाम्
ददृभतुः
दृभ्यास्ताम्
दर्भितारौ
दर्भिष्यतः
अदर्भिष्यताम्
शुभेयुः
शुभन्तु
अशुभन्
अशुम्भिषुः
शुशुम्भुः
शुभ्यासुः
शुम्भितार:
शुम्भिष्यन्ति
अशुम्भिष्यन्
लुभतः
लुभथ:
लुभावः
लुभेताम्
लुभेतम्
लुभेव
प० लुभतु/लुभतात् लुभताम्
लुभ/लुभतात् लुभतम्
लुभान
लुभाव
१. विमोहनं व्याकुलीकरणतम् ।
१३९०. लुभत् (लुभ्) विमोहने । १
दृभन्ति
दृभेयुः
दृभन्तु
अदृभन्
अदर्भिषुः
ददृभुः
दृभ्यासुः
दर्भितार:
दर्भिष्यन्ति
दर्भि
७६
लुभन्ति
लुभथ
लुभामः
लुभेयुः
लुभेत
लुभे
लुभन्तु
लुभत
लुभाम
ह्य० अलुभत्
अलुभः
अलुभतम्
अ० अलोभीत्
अलोभीः
अलोभिषम्
प० लुलोभ
लुलोभिथ
लुलोभ
आ० लुभ्यात्
लुभ्याः
लुभ्यासम्
श्व० लोभिता
लोभितासि
लोभितास्मि
लोब्धा
भ० लोभिष्यति
लोभिष्यसि
लोभिष्यामि
क्रि० अलोभिष्यत्
अलोभिष्यः
अलोभिष्यम्
व० कुरति
कुरसि
कुरामि
स० कुरेत्
कुरे:
कुरेयम्
प० कुरतु / कुरतात्
कुर/ कुरतात्
कुराणि
अलुभताम्
अलुभन्
अलुभतम्
अलुभत
अलुभाव
अलुभाम
अलोभिष्टाम् अलोभिषुः
अलोभिष्टम् अलोभिष्ट
अलोभिष्व
अलोभिष्म
लुलुभतुः
लुलुभथुः
लुलुभिव
लुभ्यास्ताम्
लुभ्यास्तम्
लुभ्यास्व
लोभितारौ
लोभितास्थः
लोभितास्वः
लोधारौ
लोभिष्यतः
लोभिष्यथः
लोभिष्यावः
लुलुभुः
लुलुभ
लुलुभिम
अथ रान्ता अष्टौ सेवा |
• १३९१. कुरत् (कुर्) शब्दे । ७७
लुभ्यासुः
लुभ्यास्त
कुरत:
कुरथ:
कुराव:
कुताम्
कुम्
कुरेव
कुरताम्
कुरतम्
कुराव
लुभ्यास्म
लोभितार:
लोभितास्थ
लोभितास्मः
लोब्धारः, इत्यादि
लोभिष्यन्ति
लोभिष्यथ
लोभिष्यामः
अलोभिष्यन्
अलोभिष्यताम् अलोभिष्यतम् अलोभिष्यत
अलोभिष्याव अलोभिष्याम
कुरन्ति
कुरध
कुराम:
कुरेयुः
389
कुत
कुरेम
कुरन्तु
कुरत
कुराम
Page #407
--------------------------------------------------------------------------
________________
390
ह्य० अकुरत्
अकुरः
अकुरम्
अ० अकोरीत्
अकोरी:
अकोरिषम्
प० चुकोर
कोरिथ
० कुर्यात्
कूर्या:
कूर्यासम्
श्व० कोरिता
करितास
कोरितास्मि
भ० कोरिष्यति
कोरिष्यसि
कोरिष्यामि
क्रि० अकोरिष्यत्
अकोरिष्यः
To
० क्षुत्
प० क्षुरतु/ क्षुरतात्
ह्य० अक्षुरत्
अ० अक्षोत्
प० चुक्षोर
आ० सूर्यात्
श्व० क्षोरिता
भ० क्षोरिष्यति
अकुरताम्
अकुरतम्
अकुराव
अकोरिष्टाम्
अकोरिष्टम्
अकोरिष्व
चुकुरतुः
चुकुरथुः
चुकुरिव
कूर्यास्ताम्
कूर्यास्तम्
कूर्यास्व
कोरितारौ
कोरितास्थः
कोरितास्वः
कोरिष्यतः
कोरिष्यथः
कोरिष्यावः
अकोरिष्यताम्
अकोरिष्यतम्
अकोरिष्यम् अकोरिष्याव अकोरिष्याम
कुरुच्छुर इत्यत्र कृग एव ग्रहणाद् भ्वादेरिति दीर्घे कूर्यते;
आशिषि कुर्यात् अस्यापि न दीर्घ इत्येके; कुर्यात् ।
१३९२. क्षुरत् (क्षुर्) विखनने । ७८
क्षुरतः
क्षुताम्
क्षुरताम्
अक्षुरताम्
अक्षरष्टाम्
अकुरन्
अकुरत
अकुराम
चुक्षुरतुः
क्षूर्यास्ताम्
क्षोरितारौ
क्षोरिष्यतः
अकोरिषुः
अकोरिष्ट
अकोरिष्म
चुकुरु:
चुकुर
चुकुरिम
कूर्यासुः
कूर्यास्त
कूर्यास्म
कोरितारः
कोरितास्थ
कोरितास्मः
कोरिष्यन्ति
करिष्यथ
कोरिष्यामः
अकोरिष्यन्
अकोरिष्यत
क्षुरन्ति
क्षुरेयुः
क्षुरन्तु
अक्षुरन्
अक्षोरिषुः
चुक्षुरु:
क्षूर्यासुः
क्षोरितारः
क्षोरिष्यन्ति
क्रि० अक्षोरिष्यत्
अक्षोरिष्यताम्
१३९३. खुरत् (खुर्) छेदने च । १ ७९
० खुरति
स० खुरेत्
प० खुरतु / खुरतात्
ह्य० अखुरत्
अ० अखोरीत्
प० चुखोर
आ० खूर्यात्
श्व० खोरिता
भ० खोरिष्यति
क्रि० अखोरिष्यत्
व० घुरति
स० घुरेत्
प० घुरतु / घुरतात्
चुखुरु:
खूर्यासुः
खोरितारः
खोरिष्यन्ति
अखोरिष्यताम्
अखोरिष्यन्
१३९४. घुरत् (घुर्) भीमार्थ । शब्दयोः । ८०
ह्य० अघुरत्
अ० अघोरीत्
प० जुघोर
आ० घूर्यात्
श्व० घोरिता
भ० घोरिष्यति
क्रि० अघोरिष्यत्
व० पुरति
स० पुरेत्
प० पुरतु/ पुरतात्
खुरतः
खुरेताम्
खुरताम्
अखुरताम्
अखोरिष्टाम्
ह्य० अपुरत्
अ० अपोरीत्
चुखुरतुः
खूर्यास्ताम्
खोरितारौ
खोरिष्यतः
घुरतः
घुरेताम्
घुरताम्
अघुरताम्
अघोरष्टाम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अक्षोरिष्यन्
पुरतः
पुरेताम्
पुरताम्
अपुरताम्
अपोरिष्टाम्
१. छेदनं विलेखनतम् चकाराद् विखनने
खुरन्ति
खुरेयुः
खुरन्तु
अखुरन्
अखोरिषुः
जुघुरतुः
घूर्यास्ताम्
घोरितारौ
घोरिष्यतः
अघोरिष्यताम्
१३९५. पुरत् (पुर्) अग्रगमने । ८१
घुरन्ति
घुरेयुः
घुरन्तु
अघुरन्
अघोरिषुः
जुघुरु:
घूर्यासुः
घोरितारः
घोरिष्यन्ति
अघोरिष्यन्
पुरन्ति
पुरेयुः
पुरन्तु
अपुरन्
अपोरिषुः
Page #408
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
391
मुरन्ति
मुरेयुः
प० पुपोर पुपुरतुः
पुपुरुः आ० पूर्यात् पूर्यास्ताम् पूर्यासुः श्व० पोरिता पोरितारौ पोरितार: भ० पोरिष्यति पोरिष्यतः पोरिष्यन्ति क्रि० अपोरिष्यत् अपोरिष्यताम् अपोरिष्यन्
१३९६. मुरत् (मुर्) संवेष्टने। ८२ व० मुरति मुरतः स० मुरेत् मुरेताम् प० मुरतु/मुरतात् मुरताम्
मुरन्तु ह्य० अमुरत् अमुरताम् अमुरन् अ० अमोरीत् अमोरिष्टाम् अमोरिषुः प० मुमोर मुमुरतुः मुमुरुः आ० मूर्यात् मूर्यास्ताम् मूर्यासुः श्व० मोरिता मोरितारौ मोरितारः भ० मोरिष्यति मोरिष्यतः मोरिष्यन्ति क्रि० अमोरिष्यत् अमोरिष्यताम अमोरिष्यन
१३९७. सुरत् (सुर) ऐश्वर्यदीत्योः। ८३ व० सुरति
सुरत:
सुरन्ति स० सुरेत् सुरेताम् सुरेयुः प० सुरतु/सुरतात् सुरताम् सुरन्तु ह्य० असुरत् असुरताम् असुरन् अ० असोरीत् असोरिष्टाम्
असोरिषुः ५० सुसोर सुसुरतुः सुसुरु: आ० सूर्यात् सूर्यास्ताम् श्व० सोरिता सोरितारौ सोरितारः भ० सोरिष्यति सोरिष्यतः सोरिष्यन्ति क्रि० असोरिष्यत् असोरिष्यताम् असोरिष्यन्
षोपदेशोषऽयमिति केचित्। १३९८. स्फरत् (स्फर) स्फुरणे। चलने इत्यके। ८४ व० स्फरति
स्फरतः
स्फरन्ति स० स्फरेत् स्फरेताम् स्फरेयुः
प० स्फरतु/स्फरतात् स्फरताम् स्फरन्तु ह्य० अस्फरत् अस्फरताम् अस्फरन् अ० अस्फारीत् अस्फारिष्टाम् अस्फारिषुः प० पस्फार पस्फरतुः पस्फरु: आ० स्फर्यात् स्फर्यास्ताम् स्फर्यासुः श्व० स्फरिता
स्फरितारौ
स्फरितारः भ० स्फरिष्यति स्फरिष्यतः स्फरिष्यन्ति क्रि० अस्फरिष्यत् अस्फरिष्यताम् अस्फरिष्यन्
अथ लान्तास्रयोदश सेटच। १३९९. स्फलत् (स्फल्) स्फुरणे। ८५ व० स्फलति स्फलतः स्फलन्ति स० स्फलेत् स्फलेताम् स्फलेयुः प० स्फलतु/स्फलतात् स्फलताम् स्फलन्तु ह्य० अस्फलत् अस्फलताम् अस्फलन् अ० अस्फालीत् अस्फालिष्टाम् अस्फालिषुः प० पस्फाल पस्फलतुः
पस्फलुः आ० स्फल्यात् स्फल्यास्ताम् स्फल्यासुः श्व० स्फलिता स्फलितारौ स्फलितारः भ० स्फलिष्यति स्फलिष्यतः स्फलिष्यन्ति क्रि० अस्फलिष्यत् अस्फलिष्यताम् अस्फलिष्यन्
१४००. किलत् (किल्) खैत्यक्रीडनयोः। ८६ व० किलति
किलन्ति स० किलेत् किलेताम् प० किलतु/किलतात् किलताम् ह्य० अकिलत् अकिलताम् अकिलन् अ० अकेलीत् अकेलिष्टाम्
अकेलिषुः प० चिकेल चिकिलतुः आ० किल्यात् किल्यास्ताम् किल्यासुः श्व० केलिता केलितारौ भ० केलिष्यति केलिष्यतः केलिष्यन्ति क्रि० अकेलिष्यत् अकेलिष्यताम् अकेलिष्यन्
किलतः
किलेयुः किलन्तु
सूर्यासुः
चिकिलुः
केलितारः
Page #409
--------------------------------------------------------------------------
________________
392
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ऐलन्
ऐलिषुः ईलुः
ईलतुः
सिलन्तु असिलन् असेलिषुः
सिसिलतुः
सिल्यासुः सेलितारः
१४०१. इलत् (इल्) गतिस्वप्नक्षेपणेषु। ८७ व० इलति इलत:
इलन्ति स० इलेत् इलेताम् इलेयुः प० इलतु/इलतात् इलताम्
इलन्तु ह्य० ऐलत् ऐलताम् अ० ऐलीत् ऐलिष्टाम् प० इयेल आ० इल्यात् इल्यास्ताम् इल्यासुः ० एलिता एलितारौ एलितार: भ० एलिष्यति एलिष्यतः एलिष्यन्ति क्रि० ऐलिष्यत् ऐलिष्यताम् ऐलिष्यन्
१४९२. हिलत् (हिल्) हावहरणे। ८८ व० हिलति हिलतः हिलन्ति स० हिलेत् हिलेताम्
हिलेयुः प० हिलतु/हिलतात् हिलताम् हिलन्तु ह्य० अहिलत् अहिलताम् अहिलन् अ० अहेलीत् अहेलिष्टाम् अहेलिषुः प० जिहेल जिहिलतुः जिहिलुः आ० हिल्यात् हिल्यास्ताम्
हिल्यासुः श्व० हेलिता हेलितारौ हेलितारः भ० हेलिष्यति हेलिष्यतः हेलिष्यन्ति क्रि० अहेलिष्यत् अहेलिष्यताम् अहेलिष्यन्
१४०३. शिलत् (शिल्) उच्छे। ८९ व० शिलति
शिलन्ति स० शिलेत् शिलेताम् शिलेयुः प० शिलतु/शिलतात् शिलताम् शिलन्तु ह्य० अशिलत् अशिलताम् अशिलन् अ० अशेलीत् अशेलिष्टाम् अशेलिषुः प० शिशेल आ० शिल्यात् शिल्यास्ताम् शिल्यासुः श्व० शेलिता शेलितारौ शेलितारः
भ० शेलिष्यति शेलिष्यतः शेलिष्यन्ति क्रि० अशेलिष्यत् अशेलिष्यताम् अशेलिष्यन्
१४०४. सिलत् (सिल्) उच्छे। ९० षिलत् इति केचित्, तन्मते परोक्षायां विसेषः, सिषेल
इत्यादि। व० सिलति सिलतः सिलन्ति स० सिलेत् सिलेताम् सिलेयुः प० सिलतु/सिलतात् सिलताम् ह्य० असिलत् असिलताम् अ० असेलीत् असेलिष्टाम् प० सिसेल
सिसिलुः आ० सिल्यात् सिल्यास्ताम् श्व० सेलिता सेलितारौ भ० सेलिष्यति सेलिष्यतः सेलिष्यन्ति क्रि० असेलिष्यत् असेलिष्यताम् असेलिष्यन्
१४०५. तिलत् (तिल्) स्नेहने। ९१ व० तिलति तिलतः तिलन्ति स० तिलेत् तिलेताम्
तिलेयुः प० तिलतु/तिलतात् तिलताम् तिलन्तु ह्य० अतिलत् अतिलताम् अतिलन् अ० अतेलीत् अतेलिष्टाम् अतेलिषुः प० तितेल तितिलतुः आ० तिल्यात् तिल्यास्ताम् तिल्यासुः श्व० तेलिता तेलितारौ तेलितारः भ० तेलिष्यति तेलिष्यतः
तेलिष्यन्ति क्रि० अतेलिष्यत् अतेलिष्यताम् अतेलिष्यन्
__१४०६. चलत् (चल्) विलसने। ९२ व० चलति
चलतः
चलन्ति स० चलेत् चलेताम् प० चलतु/चलतात् चलताम् ह्य० अचलत् अचलताम् अचलन्
तितिलुः
शिलत:
चलेयुः
शिशिलतुः
शिशिलुः
चलन्तु
Page #410
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
393
अचेलिषुः
अनिलन् अनेलिषुः निनिलुः
निनिलतुः
अ० अचालीत् अचालिष्टाम् अचालिषुः प० चचाल
चेलतुः
चेलुः आ० चल्यात् चल्यास्ताम्
चल्यासुः श्व० चलिता चलितारौ
चलितार: भ० चलिष्यति चलिष्यतः चलिष्यन्ति क्रि० अचलिष्यत् अचलिष्यताम् अचलिष्यन्
१४०७. चिलत् (चिल्) वसने। ९३ व० चिलति चिलतः चिलन्ति स० चिलेत् चिलेताम्
चिलेयुः प० चिलतु/चिलतात् चिलताम् चिलन्तु ह्य० अचिलत् अचिलताम् अचिलन् अ० अचेलीत् अचेलिष्टाम् प० चिचेल चिचिलतुः चिचिलुः आ० चिल्यात् चिल्यास्ताम् चिल्यासुः श्व० चेलिता चेलितारौ चेलितारः भ० चेलिष्यति चेलिष्यतः चेलिष्यन्ति क्रि० अचेलिष्यत् अचेलिष्यताम् अचेलिष्यन्
१४०८. विलत् (विल्) वरणे। ९४ व० विलति विलतः विलन्ति स० विलेत् विलेताम्
विलेयुः प० विलतु/विलतात् विलताम् ह्य० अविलत् अविलताम् अविलन् अ० अवेलीत् अवेलिष्टाम्
अवेलिषुः प० विवेल
विविलतुः आ० विल्यात् विल्यास्ताम्
विल्यासुः श्व० वेलिता वेलितारौ वेलितारः भ० वेलिष्यति वेलिष्यतः वेलिष्यन्ति क्रि० अवेलिष्यत् अवेलिष्यताम् अवेलिष्यन्
. १४०९. बिलत् (बिल्) भेदने। ९५ व० बिलति बिलतः बिलन्ति स० बिलेत् बिलेताम् बिलेयुः
प० बिलतु/बिलतात् बिलताम्
बिलन्तु ह्य० अबिलत् अबिलताम् अबिलन् अ० अबेलीत्
अबेलिष्टाम्
अबेलिषुः प० बिबेल बिबिलतुः
बिबिलुः आ० बिल्यात् बिल्यास्ताम्
बिल्यासुः श्व० बेलिता बेलितारौ बेलितार: भ० बेलिष्यति बेलिष्यतः बेलिष्यन्ति क्रि० अबेलिष्यत् अबेलिष्यताम् अबेलिष्यन्
१४१०. णिलत् (निल्) गहने। ९६ व० निलति निलतः निलन्ति स० निलेत् निलेताम् निलेयुः प० निलतु/निलतात् निलताम् निलन्तु ह्य० अनिलत् अनिलताम् अ० अनेलीत्
अनेलिष्टाम् प० निनेल आ० निल्यात्
निल्यास्ताम् निल्यासुः श्व० नेलिता नेलितारौ भ० नेलिष्यति नेलिष्यतः नेलिष्यन्ति क्रि० अनेलिष्यत् अनेलिष्यताम् अनेलिष्यन्
१४११. मिलत् (मिल्) श्लेषणे। ९७ व० मिलति मिलतः मिलन्ति स० मिलेत् मिलेताम्
मिलेयुः प० मिलतु/मिलतात् मिलताम् मिलन्तु ह्य० अमिलत् अमिलताम् अमिलन् अ० अमेलीत् अमेलिष्टाम् प० मिमेल मिमिलतुः
मिमिलुः आ० मिल्यात् मिल्यास्ताम् श्व० मेलिता मेलितारौ मेलितारः भ० मेलिष्यति मेलिष्यतः मेलिष्यन्ति क्रि० अमेलिष्यत्
अमेलिष्यताम् अमेलिष्यन्
नेलितारः
विलन्तु
विविलुः
अमेलिषुः
मिल्यासुः
Page #411
--------------------------------------------------------------------------
________________
394
अथ शान्ताः षडनिटच ।
१४१२. स्पृशत् (स्पृश्) स्पर्शे । ९८
व० स्पृशति
सo स्पृशेत्
प० स्पृशतु / स्पृशतात् स्पृशताम्
ह्य० अस्पृशत् अक्ष
अ० अस्प्राक्षीत्
अस्पृक्षत्
प० पस्पर्श
आ० स्पृश्यात्
व० स्प्रष्टा
स्पष्ट
भ० स्प्रक्ष्यति
स्पर्श्यति
क्रि० अस्प्रक्ष्यत्
अस्पत्
व० रुशति
स० रुशेत्
प० रुशतु / रुशतात्
प० रुरोश
ह्य० अरुशत्
अ० अरुक्षत्
अरुक्षत्
आ० रुश्यात् श्व० रोष्टा
भ० रोक्ष्यति
क्रि० अरोक्ष्यत्
स्पृशत:
स्पृशेताम्
व० रिशति
सo रिशेत्
प० रिशतु / रिशतात्
अस्पृशताम्
अस्पष्टम्
अस्प्रक्ष्यताम्
अस्पत
१४१३ रुशत् (रुशू) हिंसायाम् । ९९
अस्प्राष्टाम्
अस्पृक्षताम्
पस्पृशतुः
स्पृश्यास्ताम्
स्प्रष्टारौ
स्पष्टरौ
स्प्रक्ष्यतः
स्पर्श्यतः
रुशतः
शेताम्
रुशताम्
अरुशताम्
अरुक्षताम्
अरुक्षताम्
रुरुशतुः
रुश्यास्ताम्
रोष्टारौ
रोक्ष्यतः
स्पृशन्ति
स्पृशेयुः
स्पृशन्तु
अस्पृशन्
अस्पार्क्षः, इत्यादि
अस्प्राक्षुः
अस्पृक्षन्, इ०
पस्पृशुः
स्पृश्यासुः
स्प्रष्टारः
स्पष्टरः, इत्यादि ।
स्प्रक्ष्यन्ति
स्पर्श्यन्ति इत्यादि
रिशतः
रिशेताम्
रिशताम्
अस्प्रक्ष्यन्
अस्पयन् इ०
अरोक्ष्यताम् अरोक्ष्यन्
१४१४. रिशत् (रिश्) हिंसायाम् । १००
रुशन्ति
रुशेयुः
रुशन्तु
अरुशन्
अरुक्षन्
अरुक्षन्
रुरुशुः
रुश्यासुः
रोष्टारः
रोक्ष्यन्ति
रिशन्ति
रिशेयुः
रिशन्तु
ह्य० अरिशत्
अ० अरिक्षत्
प० रिरेश
आरश्यात्
श्व० रेष्टा
भ० रेक्ष्यति
क्रि० अरेक्ष्यत्
व० विशति
स० विशेत्
प० विशतु / विशतात्
ह्य० अविश
अ० अविक्षत्
प० विवेश
अरेक्ष्यताम्
अरेक्ष्यन्
१४१५. विशंत् (विश्) प्रवेशने । १०१
विश्यात्
श्व० वेष्टा
भ० वेक्ष्यति
क्रि० अवेक्ष्यत्
व० मृशति
समृशेत्
प० मृशतु / मृशतात्
ह्य० अमृशत्
अ० अम्राक्षीत्
अमात्
अमृक्षत्
प० ममर्श
आ० मृश्यात्
श्व० म
भ० मर्क्ष्यति
क्रि० अम
अम्रक्ष्यत्
अरिशताम्
अरिक्षताम्
रिरिशतुः
रिश्यास्ताम्
रेष्टारौ
रेक्ष्यतः
विशतः
विशेताम्
विशताम्
अविशाम्
अविक्षताम्
विविशतुः
विश्यास्ताम्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अरिशन्
अरिक्षन्
रिरिशुः
रिश्यासुः
रेष्टारः
रेक्ष्यन्ति
मृशत:
मृशेताम्
मृशताम्
अमृशताम्
अम्राष्टाम्
अम्
अमृक्षताम्
ममृशतुः
मृश्यास्ताम्
मरौ
मर्क्ष्यतः
अमर्क्ष्याम्
अम्रक्ष्यताम्
विशन्ति
विशेयुः
विशन्तु
वेष्टारौ
वेक्ष्यतः
अवेक्ष्यताम्
१४१६. मृशंत् (मृश्) आमर्शने ।
आमर्शनं स्पर्शः । १०२
अविशन्
अविक्षन्
विविशुः
विश्यासुः
वेष्टारः
वेक्ष्यन्ति
अवेक्ष्यन्
मृशन्ति
मृशेयुः
मृशन्तु
अमृशन्
अम्राक्षुः
अमाक्षुः इत्यादि ।
अमृक्षन्, इत्यादि ।
ममृशुः
मृश्यासुः
मटर:
मन्ति
अन्
अम्रयन्, इत्यादि
Page #412
--------------------------------------------------------------------------
________________
395
लिशन्तु
लेष्टारः
मिमिषुः मिष्यासुः
तुदादिगण
१४१७. लिशंत् (लिश्) गतौ। १०३ व० लिशति
लिशत:
लिशन्ति स० लिशेत् लिशेताम् लिशेयुः प० लिशतु/लिशतात् लिशताम् ह्य० अलिशत् अलिशताम् अलिशन् अ० अलिक्षत् अलिक्षताम् अलिक्षन् प० लिलेशं लिलिशतुः लिलिशुः आ० लिश्यात् लिश्यास्ताम्
लिश्यासुः श्व० लेष्टा लेष्टारौ भ० लेक्ष्यति लेक्ष्यतः लेक्ष्यन्ति क्रि० अलेक्ष्यत् अलेक्ष्यताम् अलेक्ष्यन्
अथ षान्तास्त्रयः सेटचा
१४१८. ऋषैत् (ऋष्) गतौ। १०४ व० ऋषति ऋषतः
ऋषन्ति स० ऋषेत्
ऋषेताम् ऋषेयुः प० ऋषतु/ऋषतात् ऋषताम् ऋषन्तु ह्य० आर्षत् आर्षताम् अ० आर्षीत् आर्षिष्टाम् आर्षिषुः प० आनर्ष
आनृषतुः आनृषुः आ० ऋष्यात् ऋष्यास्ताम् श्व० अर्षिता अर्षितारौ अर्षितार: भ० अर्षिष्यति अर्षिष्यतः अर्षिष्यन्ति क्रि० आर्षिष्यत् आर्षिष्यताम् आर्षिष्यन्
१४१९. इषत् (इष्) इच्छायाम्। १०५ व० इच्छति इच्छतः
इच्छन्ति स० इच्छेत् इच्छेताम् इच्छेयुः प० इच्छतु/इच्छतात् इच्छताम्
इच्छन्तु ह्य० ऐच्छत् ऐच्छताम् अ० ऐषीत् ऐषिष्टाम् प० इयेष ईषतुः आ० इष्यात् इष्यास्ताम् इष्यासुः श्व० एष्टा
एष्टारौ
एष्टार:
भ० एषिष्यति एषिष्यतः एषिष्यन्ति क्रि० ऐषिष्यत् ऐषिष्यताम् ऐषिष्यन्
१४२०. मिषत् (मिष्) स्पर्घायाम्। १०६ व० मिति मिषतः मिषन्ति स० मिषेत् मिषेताम्
मिषेयुः प० मिषतु/मिषतात् मिषताम् मिषन्तु ह्य० अमिषत् अमिषताम् अमिषन् अ० अमेषीत्
अमेषिष्टाम्
अमेषिषुः प० मिमेष
मिमिषतुः आ० मिष्यात् मिष्यास्ताम् श्व० मेषिता मेषितारौ मेषितार: भ० मेषिष्यति मेषिष्यतः मेषिष्यन्ति क्रि० अमेषिष्यत् अमेषिष्यताम् अमेषिष्यन्
१४२१. वृहीत् (वह) उद्यमे। उद्यम उद्धरणम्। १०७
अथ हान्ताः पञ्च सेटश। व० वृहति
वृहतः
वृहन्ति स० वृहेत् वृहेताम् वृहेयुः प० वृहतु/वृहतात् वृहताम् वृहन्तु ह्य० अवृहत् अवृहताम् अवृहन् अ० अवृक्षत् अवृक्षताम् अवृक्षन्
अवीत् अवर्हिष्टाम् अवर्हिषुः, इत्यादि प० ववर्ह
ववृहतुः ववृहुः आ० वृह्यात् वृह्यास्ताम्
वृह्मासुः श्व० वर्हिता वर्हितारौ वर्हितारः भ० वय॑ति वय॑तः वयन्ति ____ वर्हिष्यति वर्हिष्यतः वर्हिष्यन्ति, इ० क्रि० अवय॑त् अवय॑ताम् अवय॑न् ___ अवर्हिष्यत् अवर्हिष्यताम् अवर्हिष्यन्
१४२२. तृहौत् (तृह्) हिंसायाम्। १०८ व. तृहति तृहतः तृहन्ति | स० तृहेत् तृहेताम् तृहेयुः
आर्षन्
ऋष्यासुः
ऐच्छन्
ऐषिषुः
Page #413
--------------------------------------------------------------------------
________________
396
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तस्तृहुः
तहा
प० तृहतु/तृहतात् तृहताम् तृहन्तु | अ० अस्तीत् अस्तर्हिष्टाम् अस्तर्हिषुः ह्य० अतृहत् अतृहताम् अतृहन् | अस्तृक्षत् अस्तृक्षताम् अस्तृक्षन्, इत्यादि अ० अतीत् अतर्हिष्टाम् अतर्हिषुः प० तस्तह तस्तृहतुः
अतृक्षत् अतृक्षताम् अतृक्षन्, इत्यादि। | आ० स्तृह्यात् स्तृह्यास्ताम् स्तृह्यासुः प० ततह ततृहतुः ततृहुः
श्व० स्तर्हिता स्तर्हितारौ स्तर्हितारः आ० तृह्यात् तृह्यास्ताम् तृह्यासुः
स्ता स्तारौ स्तारः, इत्यादि। श्त० तर्हिता तर्हितारौ तर्हितार:
भ० स्तर्हिष्यति स्तर्हिष्यतः स्तर्हिष्यन्ति तारौ तारः, इत्यादि। स्तयति स्तय॑तः स्तयन्ति, इत्यादि भ० तर्हिष्यति तर्हिष्यतः तर्हिष्यन्ति क्रि० अस्तर्हिष्यत् अस्तर्हिष्यताम् अस्तर्हिष्यन्
तमंति तय॑तः तयन्ति, इत्यादि। अस्तय॑त् अस्तय॑ताम् अस्तय॑न् इत्यादि क्रि० अतर्हिष्यत् अतर्हिष्यताम् अतर्हिष्यन्
१४२५. स्तूंहौत् (स्तूंह) हिंसायाम्। १११ अतय॑त् अतयंताम् अतय॑न्, इत्यादि। | व० स्तूंहति स्तुंहतः स्तृहन्ति
१४२३. तूंहौत् (तुंह) हिंसायाम्। १०९ | स० स्तूंहेत् स्तंहेताम् स्तूंहेयुः व० तुंहति तुंहतः तूंहन्ति
प० स्तुंहतु/स्तुंहतात् स्तूंहताम् । स्त॒हन्तु स० तुंहेत् तुंहेताम् तुंहेयुः
ह्य० अस्तृहत् अस्तुंहताम् अस्तूंहन् प० तुंहतु/तूंहतात् तुंहताम् स॒हन्तु
अ० अस्तूंहीत् अस्तूंहिष्टाम् अस्तूंहिषुः ह्य० अर्तृहत् अतुंहताम् अतुंहन्
अस्ताीत् अस्तार्कीम् अस्ताक्षुः, इ० अ० अर्तृहीत् अहिष्टाम् अतृहिषुः प० तस्तुंह तस्तुंहतुः तस्त॒हुः
अतार्षीत् अताराम् अताक्षुः, इत्यादि आ० स्तुंह्यात् स्तूंद्यास्ताम् स्तुह्यासुः प० ततुंह ततूंहतुः ततूंहुः
श्व० स्तूंहिता स्तूंहितारौ स्तूंहितार: आ० गुंह्यात् तुंह्यास्ताम् तुंह्यासुः
स्तृण्ढा
स्तृण्डारः, इत्यादि श्त० तूंहिता तूंहितारौ तूंहितारः भ० स्तंहिष्यति स्तूहिष्यतः स्तूंहिष्यन्ति
तण्ढा तण्डारौ तण्ढारः, इत्यादि। स्तृक्ष्यति स्तृङ्ख्यत: स्तृश्यन्ति, इ० भ० तूंहिष्यति हिष्यत: तूंहिष्यन्ति | क्रि० अस्तूंहिष्यत् अस्तूंहिष्यताम् अस्तूंहिष्यन्
तृक्ष्यति तृझ्यतः तृक्ष्यन्ति, इ० अस्तृङ्ख्यत् अस्तृझ्यताम् अस्तृझ्यन्, इ० क्रि० अतूंहिष्यत् अतुंहिष्यताम् अह॒हिष्यन्
अथ तुदाद्यन्तगण: कुटादिस्तत्र प्रसिद्ध्यनुरोधेनादौ। अतृझ्यत् अतृह्यताम् अतृझ्यन्, इ०
१४२६. कुटत् (कुट्) कौटिल्ये। ११२ १४२४. स्तृहौत् (स्तृह्) हिंसायाम्। ११०
व० कुटति कुटतः
कुटन्ति व० स्तृहति स्तृहतः
स० कुटेत् कुटेताम् कुटेयुः स० स्तृहेत् स्तृहेताम् स्तृहेयुः प० कुटतु/कुटतात् कुटताम् कुटन्तु प० स्तृहतु/स्तृहतात् स्तृहताम् स्तृहन्तु
ह्य० अकुटत् अकुटताम् अकुटन् ह्य० अस्तृहत् अस्तृहताम् अस्तृहन्
अ० अकुटीत् अकुटिष्टाम् अकुटिषुः
स्तृण्ढारौ
स्तृहन्ति
Page #414
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
प० चुकोट
आ० कुट्यात्
श्व० कुटिता
भ० कुट
क्रि० अकुटिष्यत्
व० गुवति
स० [गुवेत्
प० गुवतु / गुवतात्
ह्य० अगुवत्
अ० अगुषीत्
प० जुगाव
आ० ग्यात्
अकुटिष्यताम्
१४२७. गुंतू (गु) पुरिषोत्सर्गे । ११३
श्व० गुता
भ० गुष्यति
क्रि० अगुष्यत्
व० ध्रुवति
स० ध्रुवेत्
प० ध्रुवतु / ध्रुवतात्
ह्य० अध्रुवत्
अ० अध्रुषीत्
प० दुधाव
आ० श्रूयात्
श्व० श्रुता भ० ध्रुष्यति
क्रि० अध्रुष्यत्
चुकुटतुः
कुट्यास्ताम्
कुटितारौ
कुटिष्यतः
व० नुवति
० त्
प० नुवतु / नुवतात्
ह्य० अनुवत्
गुवतः
वेताम्
गुवताम्
अगुवताम्
अगुष्टाम्
जुगुवतुः
गूयास्ताम्
तारौ
गुष्यतः
अगुष्यताम्
अगुष्यन्
१४२८. घुंत् (धु) गतिस्थैर्ययोः । ११४
चुकुटुः
कुट्यासुः
कुटितार:
अकुटिष्यन्
नुवतः
वेताम्
नुवताम्
अनुवताम्
गुवन्ति
गुवेयुः
गुवन्तु
अगुवन्
अगुषुः
जुगुवुः
ध्रुवतः
ध्रुवेताम्
ध्रुवताम्
अध्रुवताम्
अध्रुताम्
दुध्रुवतुः
धूयास्ताम्
श्रुतारौ
ध्रुष्यतः
अध्रुष्यताम्
१४२९. णूत् (णु) स्तवने ११५
गूयासुः
गुतारः
गुष्यन्ति
ध्रुवन्ति
ध्रुवेयुः
ध्रुवन्तु
अध्रुवन्
अध्रुषुः
दुध्रुवुः
धूयासुः
ध्रुतार:
ध्रुष्यन्ति
अध्रुष्यन्
नुवन्ति
नुवेयुः
नुवन्तु
अनुवन्
अ० अनुवीत्
प० नुनाव
आ० नूयात्
व० नुविता
भ० नुविष्यति
क्रि० अनुविष्यत्
व० धुवति
० धुवेत्
प० धुवतु / धुवतात्
ह्य० अधुवत्
अ० अधुवीत्
प० दुधाव
आ० धूयात्
श्व० धुविता
अनुष्यिताम्
१४३०. धूत् (धू) विधूनने । ११६
भ० धुविष्यति
क्रि० अधुविष्यत्
व० कुचति
स० कुचेत्
प० कुचतु / कुचतात्
ह्य० अकुचत्
अ० अकुचीत्
प० चुकोच
अनुविष्टाम्
नुनुवतुः
नूयास्ताम्
नुवितारौ
नुविष्यतः
आ० कुच्यात्
श्व० कुचिता
भ० कुचिष्यति
क्रि० अकुचिष्यत्
धुवतः
धुवेताम्
धुवताम्
अधुवताम्
अधुविष्टाम्
दुधुवतुः
धूयास्ताम्
धुवितारौ
धुविष्यतः
अविष्यताम्
१४३१. कुचत् (कुच्) संकोचने । ११७
अनुविषुः
नुनुवुः
नूयासुः
नुवितारः
नुविष्यन्ति
अनुविष्यन्
कुचतः
कुम्
कुचताम्
अकुचताम्
अकुचिष्टाम्
चुकुचतुः
कुच्यास्ताम्
चिरौ
व० विचति
विचत:
स० विचेत्
विचेताम्
प० विचतु / विचतात् विचताम्
धुवन्ति
धुवेयुः
धुवन्तु
अधुवन्
अधुविषुः
दुधुवुः
धूयासुः
धुवितारः
धुविष्यन्ति
अधुविष्यन्
चुकुचुः
कुच्यासुः
कुचितार:
कुचिष्यतः
कुचिष्यन्ति
अकुचिष्यताम् अकुचिष्यन्
१४३२. व्यचत् (व्यच्) व्याजीकरणे । ११८
कुचन्ति
कुचेयुः
कुचन्तु
अकुचन्
अकुचिषुः
विचन्ति
विचेयुः
विचन्तु
397
Page #415
--------------------------------------------------------------------------
________________
398
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चुटतः
विविचुः विच्यासुः
गुजन्ति
छुटतः
छुटन्ति
ह्य० अविचत् अविचताम् अविचन अ० अविचीत् अविचिष्टाम् अविचिषुः प० विव्याच विविचतुः आ० विच्यात् विच्यास्ताम् श्व० विचिता विचितारौ विचितार: भ० विचिष्यति विचिष्यतः विचिष्यन्ति क्रि० अविचिष्यत् अविचिष्यताम् अविचिष्यन्
अथ गान्तः सेट् च
१४३३. गुजत् (गुज्) शब्दे। ११८ व० गुजति गुजतः स० गुजेत् गुजेताम् गुजेयुः प० गुजतु/गुजतात् गुजताम् गुजन्तु ह्य० अगुजत् अगुजताम् अगुजन् अ० अगुजीत् अगुजिष्टाम् अगुजिषुः प० जुगोज जुगुजतुः जुगुजुः आ० गुज्यात् गुज्यास्ताम् गुज्यासुः श्व० गुजिता गुजितारौ गुजितारः भ० गुजिष्यति गुजिष्यतः गजिष्यन्ति क्रि० अगुजिष्यत् अगुजिष्यताम् अगुजिष्यन्
__ अथ टान्ता अष्टौ सेटश्च। १४३४. घुटत् (घुट) प्रतीघाते।
गुडत् इति केचित्। १२० व० घुटति
घुटन्ति स० घुटेत् घुटेताम् घुटेयुः प० घुटतु/घुटतात् घुटताम् घुटन्तु ह्य० अघुटत् अघुटताम् अघुटन् अ० अघुटीत् अघुटिष्टाम् अघुटिषुः प० जुघोट जुघुटतुः जुघुटुः आ० घुट्यात् घुट्यास्ताम् घुट्यासुः श्व० घुटिता
घुटितार: भ० घुटिष्यति धुटिष्यतः घुटिष्यन्ति क्रि० अघुटिष्यत् अघुटिष्यताम् अघुटिष्यन्
१४३५. चुटत् (चुट्) छेदने। १२१ व० चुटति
चुटन्ति स० चुटेत्
चुटेताम् चुटेयुः प० चुटतु/चुटतात्
चुटताम्
चुटन्तु ह्य० अचुटत् अचुटताम् अचुटन् अ० अचुटीत् अचुटिष्टाम् अचुटिषु: प० चुचोट चुचुटतुः चुचुटुः
आ० चुट्यात् चुट्यास्ताम् चुट्यासुः श्व० चुटिता चुटितारौ चुटितारः भ० चुटिष्यति चुटिष्यतः चुटिष्यन्ति क्रि० अचुटिष्यत् अचुटिष्यताम् अचुटिष्यन्
१४३६. छुटत् (छुट्) छेदने। १२२ व० छुटति स० छुटेत् छुटेताम् छुटेयुः प० छुटतु/छुटतात् छुटताम् छुटन्तु ह्य० अच्छुटत् अच्छुटताम् अच्छुटन् अ० अच्छुटीत् अच्छुटिष्टाम् अच्छुटिषु: प० चुच्छोट चुच्छुटतुः चुच्छुटुः आ० छुट्यात् छुट्यास्ताम् छुट्यासुः श्व० छुटिता
छुटितारः भ० छुटिष्यति छुटिष्यतः छुटिष्यन्ति क्रि० अछुटिष्यत् अछुटिष्यताम् अछुटिष्यन्
१४३७. त्रुटत् (त्रुट) छेदने। १२३ व० त्रुटति
त्रुटतः
त्रुटन्ति स० त्रुटेत् त्रुटेताम्
त्रुटेयुः प० त्रुटतु/त्रुटतात् त्रुटताम्
त्रुटन्तु ह्य० अत्रुटत् अत्रुटताम् अत्रुटन् अ० अत्रुटीत् अत्रुटिष्टाम् अत्रुटिषुः प० तुत्रोट तुत्रुटतुः तुत्रुटुः आ० त्रुट्यात् त्रुट्यास्ताम् त्रुट्यासुः श्व० त्रुटिता त्रुटितारौ त्रुटितारः भ० त्रुटिष्यति त्रुटिष्यतः त्रुटिष्यन्ति क्रि० अत्रुटिष्यत् अत्रुटिष्यताम् अत्रुटिष्यन्
छुटितारौ
घुटतः
घुटितारौ
Page #416
--------------------------------------------------------------------------
________________
399
तुदादिगण
तुटन्ति
पुटन्ति पुटेयुः
तुतुटुः
पुटितारौ
१४३८. तुटत् (तुट्) कलहकर्मणि। १२४ व० तुटति तुटतः स० तुटेत् तुटेताम् तुटेयुः प० तुटतु/तुटतात् तुटताम्
तुटन्तु ह्य० अतुटत् अतुटताम् अतुटन् अ० अतुटीत् अतुटिष्टाम् अतुटिषुः प० तुतोट तुतुटतुः आ० तुट्यात् तुट्यास्ताम् तुट्यासुः श्व० तुटिता तुटितारौ तुटितारः भ० तुटिष्यति तुटिष्यतः तुटिष्यन्ति क्रि० अतुटिष्यत् अतुटिष्यताम् अतुटिष्यन्
१४३९. मुटत् (मुट्) आक्षेपप्रमर्दनयोः। १२५ व० मुटति मुटतः
मुटन्ति स० मुटेत् मुटेताम् मुटेयुः प० मुटतु/मुटतात् मुटताम् मुटन्तु ह्य० अमुटत् अमुटताम् अ० अमुटीत् अमुटिष्टाम् अमुटिषुः प० मुमोट मुमुटतुः मुमुटुः आ० मुट्यात् मुट्यास्ताम् मुट्यासुः श्व० मुटिता
मुटितारः भ० मुटिष्यति मुटिष्यतः मुटिष्यन्ति क्रि० अमुटिष्यत् अमुटिष्यताम् अमुटिष्यन्
१४४०. स्फुटत् (स्फुट) विकसने। १२६ व० स्फुटति स्फुटतः स्फुटन्ति स० स्फुटेत्
स्फुटेताम् स्फुटेयुः प० स्फुटतु/स्फुटतात् स्फुटताम् स्फुटन्तु
स्फुटानि स्फुटाव स्फुटाम ह्य० अस्फुटत् अस्फुटताम् अस्फुटन् अ० अस्फुटीत् अस्फुटिष्टाम् अस्फुटिषुः प० पुस्फोट पुस्फुटतुः पुस्फुटुः आ० स्फुट्यात् स्फुट्यास्ताम् स्फुट्यासुः श्व० स्फुटिता स्फुटितारौ स्फुटितारः
अमुटन्
भ० स्फुटिष्यति स्फुटिष्यतः स्फुटिष्यन्ति क्रि० अस्फुटिष्यत् अस्फुटिष्यताम् अस्फुटिष्यन्
१४४१. पुटत् (पुट्) संश्लेषणे। १२७ व० पुटति
पुटतः स० पुटेत् पुटेताम् प० पुटतु/पुटतात् पुटताम् पुरन्तु ह्य० अपुटत् अपुटताम् अपुटन् अ० अपुटीत् अपुटिष्टाम् अपुटिषुः प० पुपोट पुपुटतुः पुपुटुः आ० पुट्यात् पुट्यास्ताम् पुट्यासुः श्व० पुटिता
पुटितारः भ० पुटिष्यति पुटिष्यतः पुटिष्यन्ति क्रि० अपुटिष्यत् अपुटिष्यताम् अपुटिष्यन् १४४२. लुठत् (लु) संश्लेषणे। १२८
डान्तोऽयमित्यन्ये व० लुठति लुठतः स० लुठेत् लुठेताम् लुठेयुः प० लुठतु/लुठतात् लुठताम् लुठन्तु ह्य० अलुठत् अलुठताम् अलुठन् अ० अलुठम् अलुठिष्टाम् अलुठिषुः प० लुलोठ लुलुठतुः लुलुटुः आ० लुठ्यात् लुठ्यास्ताम् लुठ्यासुः श्व० लुठिता
लुठितारः भ० लुठिष्यति लुठिष्यतः लुठिष्यन्ति क्रि० अलुठिष्यत् अलुठिष्यताम् अलुठिष्यन्
अथ डान्ता श्चतुर्दश सेटचा १४४३. कृडत् (कृ) घसने। १२९ घसने भक्षणम्। घनत्वे इति केचित् घनत्वं सान्द्रता। व० कृडति कृडतः
कृडन्ति कृडथ:
कडथ __ कृडामि
कृडाव:
कृडाम: | स० कृडेत् कृडेताम् कृडेयुः
लुठन्ति
मुटितारौ
लुठितारौ
कृडसि
Page #417
--------------------------------------------------------------------------
________________
400
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कृडे:
गुडन्ति
कृडेतम् कृडेत कृडेयम् कृडेव कृडेम प० कृडतु/कृडतात् कृडताम् कृडन्तु कृड/कृडतात् कृडतम्
कृडत कृडानि कृडाव
कृडाम ह्य० अकृडत् अकृडताम् अकृडन्
अकृडः अकृडतम् अकृडत
अकृडम् अकृडाव अकृडाम अ० अकृडीत् अकृडिष्टाम् अकृडिषुः
अकृडी: अकृडिष्टम् अकृडिष्ट
अकृडिषम् अकृडिष्व अकृडिष्म प० चकर्ड चकृडतुः चकृडुः
चकृडिथ चकृडथुः चकृड
चकर्ड/चकृड चकृडिव चकृडिम आ० कृड्यात् कृड्यास्ताम् कृड्यासुः
कृड्याः कृड्यास्तम् कृड्यास्त
कृड्यासम् कृड्यास्व कृड्यास्म श्व० कृडिता कृडितारौ कृडितारः
कृडितासि कृडितास्थः कृडितास्थ कृडितास्मि
कृडितास्वः कृडितास्मः भ० कृडिष्यति कृडिष्यत: कृडिष्यन्ति
कृडिष्यसि कृडिष्यथ: कृडिष्यथ
कृडिष्यामि कृडिष्याव: कृडिष्यामः क्रि० अकृडिष्यत् अकृडिष्यताम् अकृडिष्यन्
अकृडिष्यः अकृडिष्यतम् अकृडिष्यत अकृडिष्यम्
अकृडिष्याम १४४४. कुडत् (कुड्) बाल्ये च।
चकाराद् घसने। १३० व० कुडति कुडतः कुडन्ति स० कुडेत् कुडेताम् कुडेयुः प० कुडतु/कुडतात् कुडताम् कुडन्तु ह्य० अकुडत् अकुडताम् अकुडन्
अ० अकुडीत् अकुडिष्टाम् अकुडिषुः प० चुकोड चुकुडतुः चुकुडुः आ० कुड्यात् कुड्यास्ताम् कुड्यासुः श्व० कुडिता
कुडितारौ
कुडितारः भ० कुडिष्यति कुडिष्यतः कुडिष्यन्ति क्रि० अकुडिष्यत् अकुडिष्यताम् अकुडिष्यन्
१४४५. गुडत् (गुड्) रक्षायाम्। १३१ व० गुडति गुडतः स० गुडेत् गुडेताम् गुडेयुः प० गुडतु/गुडतात् गुडताम् गुडन्तु ह्य० अगुडत् अगुडताम् अगुडन् अ० अगुडीत् अगुडिष्टाम् अगुडिषुः प० जुगोड जुगुडतुः जुगुडुः आ० गुड्यात् गुड्यास्ताम् गुड्यासुः श्व० गुडिता
गुडितारौ
गुडितारः भ० गुडिष्यति गुडिष्यतः गुडिष्यन्ति क्रि० अगुडिष्यत् अगुडिष्यताम् अगुडिष्यन्
१४४६. जुडत् (जुड्) बन्धे। १३२ व० जुडति
जुडतः
जुडन्ति स० जुडेत् जुडेताम् जुडेयुः प० जुडतु/जुडतात् जुडताम् जुडन्तु ह्य० अजुडत् अजुडताम् अजुडन् अ० अजुडीत् अजुडिष्टाम् अजुडिषुः प० जुजोड जुजुडतुः
जुजुडुः आ० जुड्यात् जुड्यास्ताम् जुड्यासुः श्व० जुडिता जुडितारौ जुडितारः भ० जुडिष्यति जुडिष्यतः जुडिष्यन्ति क्रि० अजुडिष्यत् अजुडिष्यताम् अजुडिष्यन्
१४४७. तुडत् (तुड्) तोडने।
तोडनं भेदः। १३३ व० तुडति
तुडतः स० तुडेत् तुडेताम् तुडेयुः
तुडन्ति
Page #418
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
प० तुडतु/तुडतात् तुडताम्
ह्य० अतुडत्
अतुडताम्
अ० अतुडीत्
अडिष्टाम्
प०
तोड
आ० तुड्यात्
श्व० तुडिता
भ० तुडिष्यति
क्रि० अतुडिष्यत्
To s
स० लुडेत्
प० लुडतु/लुङतात् लुडताम्
ह्य० अलुडत्
अलुडताम्
अ० अलुडीत्
अलुडिष्टाम्
प० लुलोड
आ० लुड्यात्
श्व० लुडिता
भ० लुडिष्यति
क्रि० अलुडिष्यत्
व० थुडति
सo थुडेत्
प० थुडतु / थुडतात्
ह्य० अथुडत्
अ० अथुडीत्
प० तुथोड
तुतुडतुः
तुड्यास्ताम्
To
१४४८. लुडत् (लुड्) संवरणे । १३४
आ० थुड्यात्
श्व० थुडिता
तुडिष्यतः
अतुडिष्यताम् अतुडिष्यन्
लुडतः
लुडेताम्
लुलुडतुः
लुड्यास्ताम्
लुडितारौ
लुडिष्यतः
तुडतु
अतुडन्
अतुडिषुः
तुतुडुः
तुड्यासुः
तुडितार:
डिष्यन्ति
अलुडिष्यताम्
१४४९. थुडत् (थुड्) संवरणे । १३५
थुडतः
थुताम्
थुडताम्
अथुडताम्
अष्टिम्
स्थुडतः
लुडन्ति
लुडेयुः
लुडन्तु
अलुडन्
अलुडिषुः
लुलुडुः
लुड्यासुः
लुडितार:
लुडिष्यन्ति
अलुडिष्यन्
तुथुडतुः
थुड्यास्ताम्
थुडित
भ० डि
थुडिष्यतः
अडियन्
क्रि० अथुडिष्यत् अथुडिष्यताम् १४५०. स्थुडत् (स्थुड्) संवरणे । १३६
स्थुडन्ति
थुडन्ति
थुडेयुः
थुडन्तु
अथुडन्
अषुः
तुथुडुः
थुड्यासुः
थुडितार:
थुडिष्यन्ति
स० स्थुडेत्
थुम्
स्थडेयुः
प० स्थुडतु/स्थुडतात् स्थुडताम्
स्थुडन्तु
ह्य० अस्थुडत्
अस्थुडताम्
अस्थुडन्
अ० अस्थुडत्
अस्थुष्टाम् अस्थुडिषुः
प० तुस्थोड
आ० स्थुड्यात्
श्व० स्थुडिता
भ० स्थुडिष्यति
क्रि० अस्थुडिष्यत्
व० वुडति
स० वुडेत्
प० वुडतु/वुडतात्
ह्य० अवुडत्
अ० अवुडीत्
प० वुवोड
अस्थुडिष्यताम्
अस्थुडिष्यन्
१४५१. वुडत् (वुड्) उत्सर्गे च । १३७ चकारात्संवरणे ।
आ० वुड्यात्
श्व० वुडिता
भ० वुडिष्यति
क्रि० अवुडिष्यत्
व० ब्रुडति
० त्रुत्
प० ब्रुडतु / ब्रुडतात्
ह्य० अवुडत्
अ० अनुडीत्
प० ब्रोड
तुस्थुडतुः
स्थुड्यास्ताम्
स्थडितारौ
स्थुडिष्यतः
आ० व्रुड्यात्
श्व० ब्रुडिता
भ० ब्रुडिष्यति
क्रि० अनुडिष्यत्
वुडतः
ताम्
वुडताम्
अवुडताम्
अष्टाम्
वुवुडतुः
वुड्यास्ताम्
वुड
वुडष्यतः
अवुडिष्यताम्
१४५२. वुडत् (वुड्) संघाते । १३८
तुस्थुडुः
स्थुड्यासुः
थुडितार:
स्थडिष्यन्ति
ब्रुडतः
ताम्
वुडताम्
अनुडताम्
अब्रुडिष्टाम्
वुब्रुडतुः
व्रुड्यास्ताम्
ब्रुडितारौ
ब्रुडिष्यतः
अब्रुडिष्यताम्
वुडन्ति
वुडेयुः
वुडन्तु
अवुडन्
अवुडिषुः
वुवुडुः
वुड्यासुः
वुडतार:
वुडष्यन्ति
अवुडिष्यन्
वुडन्ति
ब्रुडेयुः
401
ब्रुडन्तु
अब्रुडन्
अब्रुडिषुः
वुब्रुडुः
ब्रुड्यासुः
ब्रुडितार:
वुडष्यन्ति
अडियन्
Page #419
--------------------------------------------------------------------------
________________
402
अभ्रुडिषुः
भ्रडितारौ
त्रुडितारः
दुडतः
१४५३. भ्रुडत् (भृड्) संघाते। १३९ व० भ्रडति भ्रुडतः भ्रडन्ति स० भ्रुडेत् ध्रुडेताम् भ्रडेयुः प० भ्रुडतु/भ्रडतात् भ्रडताम् ध्रुडन्तु ह्य० अर्बुडत् अभ्रुडताम् अभ्रुडन् अ० अर्बुडीत् अभ्रुडिष्टाम् प० बुभ्रोड बुभ्रुडतुः बुभ्रुडुः आ० भ्रड्यात् भ्रड्यास्ताम् भ्रड्यासुः श्व० भ्रुडिता
भ्रडितारः भ० भ्रूडिष्यति भ्रुडिष्यतः
भ्रुडिष्यन्ति क्रि० अभ्रुडिष्यत् अभ्रुडिष्यताम् अभ्रुडिष्यन्
१४५४. दुडत् (दुङ्) निमज्जने। १४१ व० दुडति
दुडन्ति स० दुडेत् दुडेताम् दुडेयुः प० दुडतु/दुडतात् दुडताम् दुडन्तु ह्य० अदुडत् अदुडताम् अदुडन् अ० अदुडीत् अदुडिष्टाम् अदुडिषुः प० दुदोड दुदुडतुः दुदुडुः आ० दुड्यात् दुड्यास्ताम् दुड्यासुः श्व० दुडिता दुडितारौ दुडितारः भ० दुडिष्यति दुडिष्यतः दुडिष्यन्ति क्रि० अदुडिष्यत् अदुडिष्यताम् अदुडिष्यन्
१४५५. हुडत् (हुड्) निमज्जने। १४१ व० हुडति हुडतः स० हुडेत् हुडेताम् हुडेयुः प० हुडतु/हुडतात् हुडताम् हुडन्तु ह्य० अहुडत् अहुडताम् अहुडन् अ० अहुडीत् अहुडिष्टाम् अहुडिषुः प० जुहोड जुहुडतुः जुहुडुः आ० हुड्यात् हुड्यास्ताम् हुड्यासुः श्व० हुडिता हुडितारौ हुडितारः भ० हुडिष्यति हुडिष्यतः हुडिष्यन्ति
धातुरत्नाकर प्रथम भाग क्रि० अहुडिष्यत् अहुडिष्यताम् अहुडिष्यन्
१४५६. त्रुडत् (त्रुड्) निमज्जने। १४२ व० त्रुडति त्रुडतः त्रुडन्ति स० त्रुडेत् त्रुडेताम् त्रुडेयुः प० त्रुडतु/त्रुडतात् त्रुडताम् त्रुडन्तु ह्य० अत्रुडत् अत्रुडताम् अत्रुडन् अ० अत्रुडीत् अत्रुडिष्टाम् अत्रुडिषुः प० तुत्रोड तुत्रुडतुः तुत्रुडुः आ० त्रुड्यात् त्रुड्यास्ताम् त्रुड्यासुः श्व० त्रुडिता त्रुडितारौ भ० त्रुडिष्यति त्रुडिष्यतः त्रुडिष्यन्ति क्रि० अत्रुडिष्यत् अत्रुडिष्यताम् अत्रुडिष्यन्
॥अथ णान्तः सेट् च।। १४५७. चुणत् (चुण) छेदने। १४३ व० चुणति चुणत:
चुणन्ति स० चुणेत् चुणेताम् चुणेयुः प० चुणतु/चुणतात् चुणताम् चुणन्तु ह्य० अचुणत् अचुणताम् अचुणन् अ० अचुणीत् अचुणिष्टाम् अचुणिषुः प० चुचोण चुचुणतुः चुचुणुः आ० चुण्यात् चुण्यास्ताम् चुण्यासुः श्व० चुणिता चुणितारौ चुणितारः भ० चुणिष्यति चुणिष्यतः चुणिष्यन्ति क्रि० अचुणिष्यत् अचुणिष्यताम् अचुणिष्यन्
अथ पान्तः सेट्छ।
१४५८. डिपत् (डिए) क्षेपे १४४ व. डिपति डिपतः डिपन्ति स० डिपेत् डिपेताम् डिपेयुः प० डिपतु/डिपतात् डिपताम् । ह्य० अडिपत् अडिपताम् अडिपन् अ० अडिपीत् अडिपिष्टाम् अडिपिषुः प० डिडेप डिडिपतुः
हुडन्ति
डिपन्तु
डिडिपुः
Page #420
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
आ० डिप्यात्
श्व० डिपिता
भ० डिपिष्यति
क्रि० अडिपिष्यत्
व० छुरति
स० छुरेत्
प० छुरतु / छुरतात्
ह्य० अच्छुरत्
अडिपिष्यताम्
१४५९. छुरत् (छुर्) छेदने । १४५
अ० अच्छुत्
प० चुच्छोर
आ० छुर्यात्
श्व० छुरिता
भ० छुरिष्यति
क्रि० अच्छुरिष्यत्
डिप्यास्ताम्
डिपितारौ
डिपिष्यतः
ह्य० अस्फुरत्
अ० अस्फुरीत्
प० पुस्फोर
आस्फूर्यात्
छुरतः
छुरेताम्
छुरताम्
श्व० स्फुरिता
भ० स्फुरिष्यति
क्रि० अस्फुरिष्यत्
अच्छुरताम्
अच्छुरिष्टाम्
To स्फुरति
स्फुरतः
स० [स्फुरेत्
स्फुरेताम्
प० स्फुरतु / स्फुरतात् स्फुरताम्
अस्फुरताम्
अस्रष्टाम्
चुच्छुरतुः
छुर्यास्ताम्
छुरितारौ
छुरिष्यतः
डिप्यासुः
डिपितार:
डिपिष्यन्ति
डिपिष्यन्
व० फुलि
स्फुलतः
सस्फुत्
स्फुताम्
प० स्फुलतु / स्फुलतात् स्फुलताम्
अच्छुरिष्यताम्
१४६०. स्फुरत् (स्फुर्) स्फुरणे । १४६
छुरन्ति
छुरेयुः
छुरन्तु
अच्छुरन्
अच्छुरिषुः
चुच्छुरुः
छुर्यासुः
छुरितारः
छुरिष्यन्ति
अच्छुरिष्यन्
पुस्फुरतुः
स्फूर्यास्ताम्
स्फुरितारौ
स्फुरिष्यतः
अस्फुरिष्यताम्
॥ अथ लान्तः सेटक्ष॥
१४६१. स्फुलत् (स्फुल) संचये च । १४७
चकारात्स्फुरणे । चलने केचित् ।
स्फुरन्ति
स्फुरेयुः
स्फुरन्तु
अस्फुरन्
अस्फुरिषुः
पुस्फुरु:
स्फूर्यासुः
स्फुरितारः
स्फुरिष्यन्ति
अस्फुरिष्यन्
स्फुलन्ति
स्फुलेयुः
स्फुलन्तु
ह्य० अस्फुलत्
अ० अस्फुलीत्
प० पुस्फोल
आ० स्फुल्यात्
श्व० स्फुलिता
भ० स्फुलि
क्रि० अस्फुलिष्यत्
व० कु
० कुवेत
प० कुवताम्
ह्य० अकुवत
अ० अकुत
प० चुकुवे
आ० कुषीष्ट
श्व० कुता
भ० कुष्यते
क्रि० अकुष्यत
व० कुव
अथात्मनेपदिषूदन्तोऽनिट् च ।
१४६२. कुड्त् (कु) शब्दे । १४८
० कुवेत
प० कुवताम्
अस्फुलताम् अस्फुलन्
अस्फुलिष्टाम् अस्फुलिषुः
पुस्फुलतुः
स्फुल्यास्ताम्
स्फुलितारौ
स्फुलिष्यतः
अस्फुलिष्यताम्
ह्य० अकुवत
अ० अकुविष्ट
प० चुकुवे
आ० कुविषीष्ट
श्व० कुविता
भ० कुविष्यते
क्रि० अकुविष्यत
कुवे
कुवेयाताम्
कुवेताम्
अकुवेताम्
अकुषाताम्
चुकुवा
कुषीयास्ताम्
कुतारौ
कुष्
अकुष्येताम्
पुस्फुलुः
स्फुल्यासुः
स्फुलितार:
स्फुलिष्यन्ति
अस्फुलिष्यन्
अथोदन्तः सेट् च ।
१४६३. कुड्त् (कु) शब्दे । १४९
कुवे
कुवेयाताम्
कुवेताम्
अकुवेताम्
कुव
कुवेरन्
कुवन्ताम्
अकुवन्त
अकुत
चुकुविरे
कुषीरन्
कुवितारौ
कुविषये
अविष्येताम्
कुतार:
कुष्यन्ते
अकुष्यन्त
कुवन्ते
कुवेरन्
कुवन्ताम्
अकुवन्त
अकुविषाताम् अकुविषत
चुकुवाते
चुकुविरे
कुविषीयास्ताम् कुविषीरन्
कुवितारः
कुविष्यन्ते
अकुविष्यन्त
403
Page #421
--------------------------------------------------------------------------
________________
404
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
गुरन्ते
गुरसे
प्रियेरन्
गुरेरन्
प्रियेताम्
पप्रिरे
गुरस्व
आ० पृषीष्ट
पृषीरन्
गुरावहै
पर्तारौ
अथ रान्तः सेट् च।
१४६४. गुरैति (गुर) उद्यमे। १५० व० गुरते
गुरेते गुरेथे
गुरध्वे गरे गुरावहे
गुरामहे स० गुरेत गुरेयाताम्
गुरेथाः गुरेयाथाम् गुरेध्वम्
गुरेय गुरेवहि गुरेमहि प० गुरताम् गुरेताम् गुरन्ताम्
गुरेथाम् गुरध्वम्
गुरामहै ह्य० अगुरत अगुरेताम् अगुरन्त
अगुरथाः अगुरेथाम् अगुरध्वम् अगुरे
अगुरावहि अगुरामहि अ० अगुरिष्ट अगुरिषाताम् अगुरिषत अगुरिष्ठाः अगुरिषाथाम् अगुरिड्डूवम्/वम्
अगुरिष्वहि अगुरिष्महि प० जुगुरे
जुगुरिरे जुगुराथे
जुगुरिध्वे
जुगुरिवहे जुगुरिमहे आ० गुरिषीष्ट गुरिषीयास्ताम् गुरिषीरन्
गुरिषीष्ठाः गुरिषीयास्थाम् गुरिषीध्वम्
गुरिषीय गुरिषीवहि गुरिषीमहि श्व० गुरिता गुरितारौ गुरितारः गुरितासे
गुरितासाथे गुरिताध्वे गुरिताहे गुरितास्वहे
गुरितास्मिहे भ० गुरिष्यते गुरिष्येते गुरिष्यन्ते गुरिष्यसे गुरिष्येथे गुरिष्यध्वे
गुरिष्यावहे गुरिष्यामहे क्रि० अगुरिष्यत अगुरिष्येताम् अगुरिष्यन्त
अगुरिष्यथाः अगुरिष्येथाम् अगुरिष्यध्वम् अगुरिष्ये अगुरिष्यावहि अगुरिष्यामहि
अथ प्रकृतवर्णक्रमेण ऋदन्तास्त्रयोऽनिटश्च। १५१
१४६५. पंड्त् (प) व्यायामे।
प्रायेणायं व्याङ्यूर्वः। व्यायाम उद्योगः। व० प्रियते प्रियेते प्रियन्ते स० प्रियेत प्रियेयाताम् प० प्रियताम्
प्रियन्ताम् ह्य० अप्रियत अप्रियेताम् अप्रियन्त अ० अपृत
अपृषाताम् अपृषत प० पप्रे
पप्राते
पृषीयास्ताम् श्व० पर्ता
पर्तारः भ० परिष्यते परिष्येते परिष्यन्ते क्रि० अपरिष्यत अपरिष्येताम् अपरिष्यन्त
१४६५. दृड्त् (द) आदरे। १५२ व० द्रियते द्रियेते
द्रियन्ते | स० द्रियेत द्रियेयाताम् प० द्रियताम् द्रियेताम् द्रियन्ताम् ह्य० अद्रियत अद्रियेताम् अद्रियन्त अ० अदृत अदृषाताम् अदृषत प० दद्रे
दद्राते आ० दृषीष्ट दृषीयास्ताम् दृषीरन् श्व० दर्ता दर्तारौ दर्तारः भ० दरिष्यते दरिष्येते दरिष्यन्ते क्रि० अदरिष्यत अदरिष्येताम् अदरिष्यन्त
१४६७. धृड्त् (ध) स्थाने।
धारणेन्ये॥ १५३ व० ध्रियते ध्रियेते ध्रियन्ते स० ध्रियेत ध्रियेयाताम् प० ध्रियताम् ध्रियेताम् ध्रियन्ताम् ह्य० अध्रियत अध्रियेताम् अध्रियन्त अ० अधृत
अधृषाताम् अधृषत
द्रियेरन्
अगुरिषि
जुगुराते
जुगुरिषे
जुगुरे
दद्रिरे
ध्रियेरन्
गुरिष्ये
|
Page #422
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुदादिगण
प० द
आ० धृषीष्ट
श्व० धर्ता
भ० धरिष्यते
क्रि० अधरिष्यत
व० विजते
विजसे
विजे
स० विजेत
॥ अथ जान्ताश्चत्वारः ॥
१४६८. औविजैति (विज्) भवचलनयोः ।
विजेथाः
विजेय
प० विजताम्
विजस्व
विजै
ह्य० अविजत
अविजथा:
अविजे
अ० अविजिष्ट
अविजिष्ठाः
अविजिषि
प० विविजे
विविजिषे
विविजे
आ० विजिषीष्ट
विजिषीष्ठाः
विजिषीय
श्व० विजिता
विजितासे
विजिताहे
दधाते
धृषीयास्ताम्
धर्तारौ
धरिष्येते
अधरिष्येताम्
प्रायेणायमुत्पूर्वः । १५४
विजेते
विजेथे
विजावहे
विजेयाताम्
विजेयाथाम्
विजेवहि
विजेताम्
विजेथाम्
विजावहै
दधिरे
धृषीरन्
धर्तारः
धरिष्यन्ते
अधरिष्यन्त
अविजेताम्
अविजेथाम
अविजावहि
अविजिषाताम्
अविजिषाथाम्
अविजिष्वहि
विविजाते
विविजाथे
विविजिवहे
विजन्ते
विजध्वे
विजामहे
विजेरन्
विजेध्वम्
विजेमहि
विजन्ताम्
विजध्वम्
विजामहै
अविजन्त
अविजध्वम्
अविजामहि
अविजिषत
भ० विजिष्यते
विजिष्यसे
विजिष्ये
विजिष्यन्ते
विजिष्यध्वे
विजिष्यामहे
अविजिष्येताम् अविजिष्यन्त
अविजिष्येथाम्
अविजिष्यावहि
१४६९. ओलजैङ् (लज्) व्रीडे । १५५
लजेते
लजेयाताम्
ताम्
अजेताम्
अलजिषाताम्
लेजाते
अविजिष्महि
विविजिरे
विविजिध्वे
विविजिम
विजिषीयास्ताम् विजिषीरन्
विजिषीयास्थाम् विजिषीध्वम्
विजिषीवहि
विजिषीमहि
विजितारौ
विजितार:
विजितासाथे
विजिताध्वे
विजितास्वहे
विजितास्मिहे
क्रि० अविजिष्यत
अविजिष्यथाः
अविजिष्ये
व० लजते.
स० लजेत
प० लजताम्
ह्य० अलजत
अ० अलजिष्ट
प० लेजे
आ० लजिषीष्ट
श्व० लजिता
भ० लजिष्यते
क्रि० अलजिष्यत
व० लज्जते
स० लज्जेत
अविजिडूवम्/ध्वम् प० लज्जताम्
ह्य० अलज्जत
अ० अलज्जिष्ट
प० ललज्जे
आ० लज्जिषीष्ट
श्व० लज्जिता
भ० लज्जिष्यते
क्रि० अलज्जिष्यत
विजिष्येते
विजिष्येथे
विजिष्याव
व० स्वजते
स्वजसे
लजिषीयास्ताम्
लजितारौ
लजिष्येते
अलजिष्येताम्
वादी युक्त पाठोऽपि प्रसिद्ध्यनुरोधादिहपठितः
१४७०. ओलस्जै (लज्ज्) व्रीडे। १५६
लज्जितारौ
लज्जिष्येते
अविजिष्यध्वम्
अविजिष्यामहि
लजन्ते
लजेरन्
लजन्ताम्
अलजन्त
अलजिषत
लेजिरे
लजिषीरन्
लजितार:
लजिष्यन्ते
अलजिष्यन्त
१४७१. ष्वचिंत् (स्वज्) सड्गे । १५७
स्वजेते
स्वजेथे
लज्जेते
लज्जन्ते
लज्जेयाताम्
लज्जेरन्
लज्जेम्
लज्जन्ताम्
अलज्जन्त
अलज्जेताम् अलज्जिषाताम् अलज्जिषत
ललज्जाते
ललज्जिरे
लज्जिषीयास्ताम् लज्जिषीरन्
लज्जितार:
लज्जिष्यन्ते
अलज्जिष्येताम् अलज्जिष्यन्त
405
स्वजन्ते
स्वजध्वे
Page #423
--------------------------------------------------------------------------
________________
406
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
जुषन्ते
जुषसे जुषे
जुषामहे
जुषेत
जुषेयाताम्
___जुषेय
जुषस्व
अजुषे
जुजुषिरे
स्वजे स्वजावहे स्वजामहे
व० जुषते जुषेते स० स्वजेत स्वजेयाताम् स्वजेरन्
जुषेथे जुषध्वे स्वजेथाः स्वजेयाथाम् स्वजेध्वम्
जुषावहे स्वजेय स्वजेवहि स्वजेमहि
जुषेरन् प० स्वजताम् स्वजेताम् स्वजन्ताम्
जुषेथाः जुषेयाथाम् जुषेध्वम् स्वजस्व स्वजेथाम् स्वजध्वम
जुषेवहि जुषेमहि स्वजै स्वजावहै स्वजामहै प० जुषताम् जुषेताम् जुषन्ताम् ह्य० अस्वजत अस्वजेताम् अस्वजन्त
जुषेथाम् जुषध्वम् अस्वजथाः अस्वजेथाम् अस्वजध्वम्
जुषावहै जुषामहै अस्वजे अस्वजावहि अस्वजामहि ह्य० अजुषत अजुषेताम् अजुषन्त अ० अस्वञ्जिष्ट अस्वञ्जिषाताम् अस्वञ्जिषत
अजुषथाः अजुषेथाम् अजुषध्वम् अस्वञ्जिष्ठाः अस्वञ्जिषाथाम् अस्वञ्जिड्डूवम्/ध्वम्
अजुषावहि अजुषामहि अस्वञ्जिषि अस्वञ्जिष्वहि अस्वञ्जिष्महि अ० अजोषिष्ट अजोषिषाताम् __ अजोषिषत प० सस्वजे सस्वजाते सस्वजिरे
अजोषिष्ठाः अजोषिषाथाम् अजोषिड्डूवम्/ध्वम् सस्वजिषे सस्वजाथे सस्वजिध्वे
अजोषिषि अजोषिष्वहि अजोषिष्महि सस्वजे सस्वजिवहे सस्वजिमहे | प० जुजुषे जुजुषाते तथा
जुजुषाथे जुजुषिध्वे सस्वजे सस्वजाते सस्वञ्जिरे, इत्यादि
जुजुषिवहे जुजुषिमहे आ० स्वरीष्ट स्वक्षीयास्ताम् स्वक्षीरन् आ० जोषिषीष्ट जोषिषीयास्ताम् जोषिषीरन् स्वङ्क्षीष्ठाः स्वङ्क्षीयास्थाम् स्वङ्क्षीध्वम्
जोषिषीष्ठाः जोषिषीयास्थाम् जोषिषीध्वम् स्वङ्क्षीय स्वङ्क्षीवहि स्वङ्क्षीमहि
जोषिषीय जोषिषीवहि जोषिषीमहि श्व० स्वक्ता स्वङ्क्तारौ स्वङ्क्तारः श्व० जोषिता जोषितारौ जोषितार: स्वङ्क्तासे स्वङ्क्तासाथे स्वङ्क्ताध्वे
जोषितासे जोषितासाथे जोषिताध्वे स्वङ्क्ताहे स्वङ्क्तास्वहे स्वङ्क्तास्महे
जोषिताहे जोषितास्वहे जोषितास्मिहे भ० स्वक्ष्यते स्वक्ष्येते स्वक्ष्यन्ते भ० जोषिष्यते जोषिष्येते जोषिष्यन्ते स्वक्ष्यसे स्वक्ष्येथे स्वक्ष्यध्वे
जोषिष्यसे जोषिष्येथे जोषिष्यध्वे स्वक्ष्ये स्वझ्यावहे स्वक्ष्यामहे
जोषिष्ये जोषिष्यावहे जोषिष्यामहे क्रि० अस्वक्ष्यत अस्वक्ष्येताम् अस्वक्ष्यन्त क्रि० अजोषिष्यत अजोषिष्येताम् अजोषिष्यन्त
अस्वक्ष्यथाः अस्वक्ष्येथाम् अस्वक्ष्यध्वम् अजोषिष्यथाः अजोषिष्येथाम् अजोषिष्यध्वम् अस्वक्ष्ये अस्वक्ष्यावहि अस्वक्ष्यामहि अजोषिष्ये अजोषिष्यावहि अजोषिष्यामहि १४७२. जुषैति (जुष) प्रीतिसेवनयोः।
॥इति आत्मनेभाषाः। इति तदादयस्तितो धातवः।। अथ षान्त: सेट् च। १५८
॥तुदादिगण: सम्पूर्णः॥
जुजुषिषे जुजुषे
Page #424
--------------------------------------------------------------------------
________________
407
रुधादिगण ॥अथ स्धादयः श्नविकरणा वर्णक्रमेण प्रदर्श्यन्ते॥
१४७३. स्थूपी (स्थ्) आवरणे।' व० रुणद्धि
रुन्धन्ति रुणत्सि रुणध्मि रुन्ध्वः
रुन्ध्मः
क्रि० अरोत्स्यत्
अरोत्स्यः
अरोत्स्यम् व० रुन्द्धे
रुन्त्से
स० रुन्ध्यात्
रुन्ध्याताम्
रुन्ध्युः
रुन्ध्या :
रुन्ध्यातम्
रुन्ध्यात
रुन्ध्याम
स० रुन्धीत
रुन्धीथाः
रुन्धीय प० रुन्द्धाम्
रुन्धन्तु
रुणधै
रुन्ध्याम्
रुन्ध्याव प० रुणधुरुन्द्धात् रुन्द्धाम्
रुन्द्धि/रुन्द्धात् रुन्द्धम्
रुणधानि रुणधाव ह्य० अरुणत्/णद् अरुन्ताम्
अरुण:/अरुणत्(ण) अरुन्द्धम्
अरुणधम् अरुन्ध्व अ० अरुधत् अरुधताम् अरुधः
अरुधतम्
अरोत्स्यताम् अरोत्स्यतम् अरोत्स्याव रुन्धाते रुन्धाये रुन्ध्व हे रुन्धीयाताम् रुन्धीयाथाम् रुन्धीवहि रुन्धाताम् रुन्धाथाम् रुणधावहै अरुन्धाताम् अरुन्द्धाथाम् अरुन्ध्वहि अरुत्साताम् अरुत्साथाम् अरुत्स्वहि रुरुधाते रुरुधाथे रुरुधिवहे रुत्सीयास्ताम् रुत्सीयास्थाम् रुत्सीवहि रोद्धारौ रोद्धासाथे नद्धास्वहे रोत्स्येते रोत्स्येथे रोत्स्यावहे अरोत्स्येताम् अरोत्स्येथाम् अरोत्स्यवहि
अरोत्स्यन् अरोत्स्यत अरोत्स्याम रुन्धते रुन्द्ध्वे रुन्ध्महे रुन्धीरन् रुन्धीध्वम् रुन्धीमहि रुन्धताम् रुन्द्ध्व म् रुणधामहै अरुन्धत अरुन्द्ध्व म् अरुन्ध्महि अरुत्सत अरुद्ध्वम्/ध्वम् अरुत्स्महि रुरुधिरे रुरुधिध्वे रुरुधिमहे रुत्सीरन् रुत्सीध्वम् रुत्सीमहि रोद्धारः रोद्धाध्वे रोद्धास्महे रोत्स्यन्ते रोत्स्यध्वे रोत्स्यामहे अरोत्स्यन्त अरोत्स्यध्वम् अरोत्स्यामहि
अरुधम्
अरुधाव
अरौत्सीत्
रुणधाम अरुन्धन्
ह्य० अरुन्द्ध अरुन्द्ध
अरुन्धाः अरुन्ध्म
अरुन्धि अरुधन्
अ० अरुद्ध अरुधत
अरुद्धा: अरुधाम
अरुत्सि
प० रुरुधे अरौत्सुः, इत्यादि। रुरुधिषे रुरुधुः
रुरुधे रुरुध
आ० रुत्सीष्ट रुरुधिम
रुत्सीष्ठाः रुध्यासुः
रुत्सीय रुध्यास्त
श्व० रोद्धा रुध्यास्म
रोद्धासे रोद्धारः
रोद्धाहे रोद्धास्थ
भ० रोत्स्यते
रोत्स्य से रोद्धास्मः
रोत्स्ये रोत्स्यन्ति
| क्रि० अरोत्स्यत रोत्स्यथ
अरोत्स्यथा: रोत्स्यामः
अरोत्स्ये
प० रुरोध
रुरोधिथ रुरोध
तथा अरौद्धाम् रुरुधतुः रुरुधथुः रुरुधिव रुध्यास्ताम् रुध्यास्तम् रुध्यास्व रोद्धारौ रोद्धास्थ: रोद्धास्वः रोत्स्यतः रोत्स्यथः रोत्स्यावः
आ० रुध्यात्
रुध्या:
रुध्यासम् श्व० रोद्धा
रोद्धासि
रोद्धास्म भ० रोत्स्यति
रोत्स्यसि रोत्स्यामि
१. आवरणं व्यापित्वम् पित्त्वं रुधादित्वज्ञापनार्थम्
Page #425
--------------------------------------------------------------------------
________________
408
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
रिङ्क्तः रिक्थः
रिचयुः
रिश्चन्तु रिक्त
नामिति बहुवचनाण्णत्वापवादे रुद्ध।
अथ चान्तावनिटौ च। १४७४. रिचूंपी (रिच्) विरेचने। २
विरेचनं निःसारणम्। व० रिणक्ति
रिञ्चन्ति रिणक्षि
रिक्थ रिणच्मि रिञ्च्वः
रिज्मः स० रिचयात् रिचयाताम् रिश्चयाः रिश्चयातम्
रिश्चयात रिचयाम् रिञ्चयाव
रिश्चयाम प० रिणक्तु/रिङ्क्तात् रिङ्क्ताम्
रिङ्ग्धिः/रिङ्क्तात् रिङ्क्तम्
रिणचानि रिणवाव रिणवाम ह्य० अरिणक्/अरिणग् अग्ङ्क्तिाम् अरिञ्चन्
अरिणक/अरिणग् अरिङ्क्तम् अरिङ्क्त अरिणचम् उकञ्च्व
अरिज्म अ० अरिचत्
अरिचताम्
अरिचन् अरिचः
अरिचतम् अरिचत अरिचम् अरिचाव
अरिचाम प० रिरेच
रिरिचुः रिरेचिथ रिरेच रिरिचिव
रिरिचिम आ० रिच्यात् रिच्यास्ताम् रिच्यास्तम्
रिच्यास्त रिच्यासम्
रिच्यास्व रिच्यास्म श्व० रेक्ता
रेक्तारौ रेक्तासि रेक्तास्थः रेक्तास्मि
रेक्तास्वः रेक्तास्मः भ० रेक्ष्यति
रेक्ष्यन्ति रेक्ष्यसि
रेक्ष्यथ: रेक्ष्यथ रेक्ष्यामि
रेक्ष्यामः क्रि० अरेक्ष्यत् अरेक्ष्यताम्
अरेक्ष्य:
अरेक्ष्यम् व० रिङ्क्ते रिझे
रिञ्चे स० रिश्चीत
रिञ्जीथाः
रिश्चीय प० रिङ्क्ताम्
रिश्व
रिणचै ह्य० अरिङ्क्तम्
अरिक्थाः
अरिञ्चि अ० अरिक्त
अरिक्थाः
अरिक्षि प० रिरिचे
रिरिचिषे
रिरिचे आ० रिक्षीष्ट रिक्षीष्ठाः
रिक्षीय श्व० रेक्ता
रेक्तासे
रेक्ताहे भ० रेक्ष्यते
रेक्ष्यसे
अरेक्ष्यतम् अरेक्ष्याव रिचाते रिश्चाथे रिञ्चवहे रिश्चीयाताम् रिञ्चीयाथाम् रिश्चीवहि रिश्चाताम् रिश्चाथाम् रिणचावहै अरिश्चाताम् अरिश्चाथाम् अरिञ्वहि अरिक्षाताम् अरिक्षाथाम् अरिक्ष्वहि रिरिचाते रिरिचाथे रिरिचिवहे रिक्षीयास्ताम् रिक्षीयास्थाम् रिक्षीवहि रेक्तारौ रेक्तासाथे रेक्तास्वहे रेक्ष्येते रेक्ष्येथे रेक्ष्यावहे अरेक्ष्येताम् अरेक्ष्येथाम् अरेक्ष्यावहि
अरेक्ष्यत अरेक्ष्याम रिञ्चते रिध्वे रिञ्चमहे रिश्चीरन् रिञ्चीध्वम् रिश्चीमहि रिञ्चताम् रिग्ध्व म् रिणचामहै अरिञ्चत अरिङ्गध्वम् अरिञ्च्महि अरिक्षत अरिग्ध्वम् अरिक्ष्महि रिरिचिरे रिरिचिध्वे रिरिचिमहे रिक्षीरन् रिक्षीध्वम् रिक्षीमहि रेक्तारः रेक्ताध्वे रेक्तास्मिहे रेक्ष्यन्ते रेक्ष्यध्वे रेक्ष्यामहे अरेक्ष्यन्त अरेक्ष्यध्वम् अरेक्ष्यामहि
रिरिचतुः रिरिचथुः
रिरिच
रिच्यासुः
रिच्या:
रेक्तारः
रेक्तास्थ
रेक्ष्यतः
रेक्ष्ये
रेक्ष्याव:
क्रि० अरेक्ष्यत
अरेक्ष्यथाः अरेक्ष्ये
अरेक्ष्यन्
n Education International
Page #426
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुधादिगण
409
विञ्च्युः विश्चन्तु
युनजाम अयुञ्जन् अयुङ्क्त अयुज्म अयुजन् अयुजत अयुजाम
विच्यासुः
१४७५. विचूंपी (विच्) पृथग्भावे। ३ व० विनक्ति विङ्क्तः विश्चन्ति स० विञ्च्यात् विञ्च्याताम् प० विनक्तु/विक्तात् विङ्क्ताम् ह्य० अविनक्/अविनम् अविङ्क्ताम् अविञ्च अ० अविचत् अविचताम् अविचन् अवैक्षीत् अवैक्ताम्
अवैक्षुः प० विवेच विविचतुः विविचुः आ० विच्यात् विच्यास्ताम् २० वेक्ता
वेक्तारौ
वेक्तारः भ० वेक्ष्यति वेक्ष्यतः वेक्ष्यन्ति क्रि० अवेक्ष्यत्
अवेक्ष्यताम्
अवेक्ष्यन् व० विङ्क्ते विचाते
विञ्चते स० विञ्चीत विञ्चीयाताम्
विश्चीरन् प० विङ्क्ताम् विश्चाताम् विञ्चताम् ह्य० अविङ्क्त
अविश्चाताम् अविञ्चत अ० अविक्त अविक्षाताम् अविक्षत प० विविचे विविचाते विविचिरे आ० विक्षीष्ट विक्षीयास्ताम्
विक्षीरन् व० वेक्ता वेक्तारौ भ० वेक्ष्यते वेक्ष्येते वेक्ष्यन्ते क्रि० अवेक्ष्यत अवेक्ष्येताम् अवेक्ष्यन्त
अथ जान्तोऽनिट् च।
१४७६. युपी (युज्) योगे। ४ व० युनक्ति युङ्क्तः
युनक्षि युक्थः युक्थ
युनज्मि युज्वः युज्म: स० युज्यात् युज्याताम् युज्युः
युज्या: युज्यातम् युज्यात
युज्याम् युज्याव युज्याम प० युनक्तु/युक्तात् युङ्क्ताम् युञ्जन्तु
युङ्ग्धि/युक्तात् युक्तम् युक्त
युनजानि युनजाव ह्य० अयुनक/अयुनग् अयुङ्क्ताम्
अयुनक/अयुनग् अयुक्तम्
अयुनजम् अयुज्व अ० अयुजत् अयुजताम्
अयुजः अयुजतम् अयुजम् अयुजाव
तथा अयौक्षीत् अयोक्ताम् प० युयोज युयुजतुः
युयोजिथ युयुजथुः
युयोज युयुजिव आ० युज्यात् युज्यास्ताम्
युज्याः युज्यास्तम् युज्यासम्
युज्यास्व श्व० योक्ता योक्तारौ
योक्तासि योक्तास्थः
योक्तास्मि योक्तास्वः भ० योक्ष्यति योक्ष्यतः
योक्ष्यसि योक्ष्यथ:
योक्ष्यामि योक्ष्याव: क्रि० अयोक्ष्यत् अयोक्ष्यताम्
अयोक्ष्यः अयोक्ष्यतम्
अयोक्ष्यम् अयोक्ष्याव व० युङ्क्ते युञ्जाते
युझे युञ्जाथे
युञ्ज युज्वहे स० युजीत युञ्जीयाताम्
युञ्जीयाथाम् युञ्जीय
युञ्जीवहि प० युङ्क्ताम् युजाताम् युश्व
युञ्जाथाम्
FFFFFFFFFEEEEEEE
अयोक्षुः, इत्यादि। युयुजुः युयुज युयुजिम युज्यासुः युज्यास्त युज्यास्म योक्तार: योक्तास्थ योक्तास्मः योक्ष्यन्ति योक्ष्यथ योक्ष्यामः अयोक्ष्यन् अयोक्ष्यत अयोक्ष्याम
वेक्तारः
युञ्जन्ति
युञ्जते
युध्वे
युज्महे
युञ्जीथाः
SITET
युञ्जीरन् युञ्जीध्वम् युञ्जीमहि युञ्जताम् युग्ध्वम्
Page #427
--------------------------------------------------------------------------
________________
410
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
युन
युनजामहै
अभिन्दन्
अभिन्त
अभिदम्
युयुजिरे
युयुजाते युयुजाथे
युयुजिषे
अभिन्दम अभिदन् अभिदत अभिदाम अभैत्सुः इ० बिभिदुः बिभिद बिभिदिम भिद्यासुः भिद्यास्त भिद्यास्म भेत्तारः भेत्तास्थ
युयुजे
युक्षीय
भेत्तास्मः
युनजावहै ह्य० अयुक्त अयुजाताम् अयुञ्जत
अयुक्थाः अयुञ्जाथाम् अयुगध्वम् अयुञ्जि अयुवहि
अयुज्महि अ० अयुक्त अयुक्षाताम् अयुक्षत
अयुक्थाः अयुक्षाथाम अयुग्ध्वम्/अयुग्डूवम्
अयुक्षि अयुक्ष्वहि अयुक्ष्महि प० युयुजे
युयुजिध्वे युयुजिवहे युयुजिमहे आ० युक्षीष्ट युक्षीयास्ताम् युक्षीरन् युक्षीष्ठाः युक्षीयास्थाम् युक्षीध्वम्
युक्षीवहि युक्षीमहि श्व० योक्ता योक्तारौ योक्तारः
योक्तासे योक्तासाथे योक्ताध्वे
योक्ताहे योक्तास्वहे योक्तास्मिहे भ० योक्ष्यते योध्येते योक्ष्यन्ते
योक्ष्यसे योक्ष्येथे योक्ष्यध्वे
योक्ष्ये योक्ष्यावहे योक्ष्यामहे क्रि० अयोक्ष्यत अयोक्ष्येताम् अयोक्ष्यन्त
अयोक्ष्यथाः अयोक्ष्येथाम् अयोक्ष्यध्वम् अयोक्ष्ये अयोक्ष्यावहि अयोक्ष्यामहि
१४७७. भिदंपी (भिद्) विदारणे। ५ व० भिनत्ति भिन्तः भिन्दन्ति
भिनत्सि भिन्त्थः भिन्त्थ
भिननि स० भिन्द्यात् भिन्द्याताम्
भिन्द्युः भिन्द्याः भिन्धातम्
भिन्द्यात भिन्द्याम् भिन्द्याव भिन्द्याम प० भिनत्तु/भिन्तात् भिन्ताम्
भिन्द्धिः/भिन्तात् भिन्तम् भिन्त भिनदानि भिनदाव भिनदाम
ह्य० अभिनत्-नद् अभिन्ताम्
अभिनत्/नद/अभिनः अभिन्तम्
अभिन्दम् अभिन्दव अ० अभिदत् अभिदताम् अभिदः अभिदतम्
अभिदाव अभैत्सीत्
अभैत्ताम् प० बिभेद बिभिदतुः
बिभेदिथ बिभिदथुः बिभेद बिभिदिव आ० भिद्यात् भिद्यास्ताम् भिद्याः
भिद्यास्तम् भिद्यासम् भिद्यास्व श्व० भत्ता
भेत्तारौ भेत्तासि
भेत्तास्थः भेत्तास्मि भेत्तास्वः भ० भेत्स्यति भेत्स्यतः भेत्स्यसि
भेत्स्यथः भेत्स्यामि
भेत्स्याव: क्रि० अभेत्स्यत् अभेत्स्यताम्
अभेत्स्य: अभेत्स्यतम्
अभेत्स्यम् अभेत्स्याव व० भिन्ते भिन्दाते
भिन्त्से भिन्दाथे भिन्दे
भिन्द्वहे स० भिन्दीत भिन्दीयाताम्
भिन्दीथाः भिन्दीयाथाम्
भिन्दीय भिन्दीवहि प० भिन्ताम् भिन्दाताम् भिन्त्स्व
भिन्दाथाम् भिनदै भिनदावहै ह्य० अभिन्त अभिन्दाताम्
भेत्स्यन्ति
भेत्स्यथ
भेत्स्यामः अभेत्स्यन् अभेत्स्यत अभेत्स्याम भिन्दते भिन्द्ध्वे भिन्ग्रहे भिन्दीरन् भिन्दीध्वम् भिन्दीमहि भिन्दताम् भिन्द्ध्वम् भिनदामहै अभन्दत
भिन्द्वः
भिन्मः
भिन्दन्तु
Page #428
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुधादिगण
अभिन्त्थाः
अभिन्दि
अ० अभित्त
अभित्थाः
अभित्स
प० बिभिदे
बिभिदिषे
बिभिदे
आ० भित्सीष्ट
भित्सीष्ठाः
भित्सीय
श्व० भेत्ता
भेत्तासे
भेत्ताहे
भ० भेत्स्यते
भेत्स्यसे
भेत्स्ये
क्रि० अभेत्स्यत
अभेत्स्यथाः
अभेत्स्ये
व० छिनत्ति
स० [छिन्द्यात्
प० छिनतु/छिन्तात्
ह्य० अच्छिनत्/नद्
अ० अच्छिदत्
अच्छैत्सीत्
प० चिच्छेद
आ० छिद्यात्
श्व० छेत्ता
भ० छेत्स्यति
अभिन्द्ध्वम् अभिन्द्महि
अभित्साताम्
अभित्सत
अभित्साथाम् अभिद्ध्वम् / अभिद्ध्वम्
अभित्स्वहि
अभित्स्महि
बिभिदाते
बिभिदिरे
बिभिदाथे
बिभिदिध्वे
बिभिदिवहे
बिभिदिमहे
अभिन्दाथाम्
अभिन्द्वहि
भित्सीयास्ताम्
भित्सीरन्
भित्सीयास्थाम् भित्सीध्वम्
भित्सीवहि
भित्सीमहि
भेत्तारौ
भेत्तारः
भेत्ताध्वे
भेत्तास्महे
भेत्स्यन्ते
भेत्स्यध्वे
भेत्तासाथे
भेत्तास्वहे
भेत्स्येते
भेत्स्येथे
भेत्स्यावहे
अभेत्स्येताम्
अभेत्स्येथाम्
अभेत्स्यावहि
१४७८. छिपी (छिद्) द्वैधीकरणे । ६
अद्वैधस्य पृथक्त्वे
छिन्तः
छिन्द्याताम्
छिन्ताम्
भेत्स्यामहे
अभेत्स्यन्त
अभेत्स्यध्वम्
अभेत्स्यामहि
अच्छिन्ताम्
अच्छिदताम्
अच्छैत्ताम्
छिन्दन्ति
छिन्द्युः
छिन्दन्तु
अच्छिन्दन्
अच्छिदन्
अच्छेत्सुः, इत्यादि
चिच्छिदतुः
चिच्छिदुः
छिद्यास्ताम् छिद्यासुः
छेत्तारौ
छेत्तारः
छेत्स्यतः
छेत्स्यन्ति
क्रि० अच्छेत्स्यत्
व० छिन्ते
स० छिन्दीत
प० छिन्ताम्
० अच्छिन्त
अ० अच्छित्त
प० चिच्छिदे
आ० छित्सीष्ट
श्व० छेत्ता
भ० छेत्स्यते
क्रि० अच्छेत्स्यत
व० क्षुणत्ति
स० क्षुन्द्यात्
क्षुणत्तु / क्षुन्तात्
अक्षुणत् / णद्
प०
ह्य०
अ० अक्षुदत्
अक्षौत्स
प० चुक्षोद
अच्छेत्स्येताम्
१४७९. क्षुपी (क्षुद्) संपेषे । ७
आ० क्षुद्यात्
श्व० क्षत्ता
भ० क्षोत्स्यति
क्रि० अक्षोत्स्यत्
व० क्षुते
स० क्षुदीत
प० क्षुन्ताम्
ह्य० अक्षुन्त
अ० अक्षुत्त
प० चुक्षुदे
आष्ट
श्व० क्षोत्ता
भ० क्षोत्स्यते
क्रि० अक्षोत्स्यत
अच्छेत्स्यन्
अच्छेत्स्यताम् छिन्दाते
छिन्दते
छिन्दीयाताम्
छिन्दीरन्
छिन्दाताम्
छिन्दताम्
अच्छिन्दाताम् अच्छिन्दत
अच्छित्साताम् अच्छित्सत
चिच्छिदा
चिच्छिदिरे
छित्सीयास्ताम् छित्सीरन्
छेत्तारः
छेत्स्यन्ते
अच्छेत्स्यन्त
छेत्तारौ
छेत्स्येते
क्षुन्त:
क्षुद्याताम्
क्षुन्ताम्
अक्षुन्ताम्
अक्षुदताम्
अक्षौत्ताम्
चुक्षुदतुः
क्षुद्यास्ताम्
क्षोत्तारौ
क्षोत्स्यतः
अक्षोत्स्यताम्
क्षुदीयाताम्
क्षुन्दाताम्
अक्षुन्दाताम्
अक्षुत्साताम्
चुक्षुदाते
क्षोत्तारौ
क्षोत्स्येते
अक्षोत्स्येताम्
क्षुदन्ति
क्षुन्धुः
क्षुन्दन्तु
अक्षुन्दन्
अक्षुदन्
अक्षौत्सुः, इत्यादि
चुक्षुदुः
क्षुद्यासुः
क्षोत्तारः
क्षोत्स्यन्ति
अक्षोत्स्यन्
क्षुद
क्षुदीरन्
क्षुन्दताम्
अक्षुन्दत
अक्षुत्सत
चुक्षुदिरे
क्षुत्सीयास्ताम् क्षुत्सीरन्
क्षोत्तारः
क्षोत्स्यन्ते
अक्षोत्स्यन्त
411
Page #429
--------------------------------------------------------------------------
________________
छ्न्दन्ति
ततृदतुः
412
धातुरत्नाकर प्रथम भाग १४८०. ऊछदृपी (छद्) दीप्तिदेवनयोः। वमनेऽपीत्यन्ये। ८ | अतर्दीत् अतर्दिष्टाम् अतर्दिषुः, इत्यादि व० छुणत्ति छ्न्तः
प० ततर्द
ततृदुः स० छ्न्द्यात् छुन्द्याताम् छ्न्धुः
आ० तृद्यात् तृधास्ताम् तृद्यासुः प० छ्णत्तु/छृन्तात् छ्न्ताम्
श्व० तर्दिता तर्दितारौ तर्दितारः ह्य० अच्छृणत्/णद् अच्छृन्ताम् अच्छृन्दन्
भ० तर्दिष्यति तर्दिष्यतः तर्दिष्यन्ति अ० अच्छृदत् अच्छृदताम् अच्छृदन्
तर्व्यति तय॑तः तय॑न्ति, इत्यादि अच्छीत् अच्छर्दिष्टाम् अच्छर्दिषुः, इ०
क्रि० अतर्दिष्यत् अतर्दिष्यताम् अतर्दिष्यन् प० चच्छर्द चच्छृदतुः
चच्छृदुः
अतय॑त् अतयंताम् अतय॑न्, इत्यादि आ० छुद्यात् छ्यास्ताम् द्यासुः
व० तृन्ते तृन्दाते श्व० छर्दिता छर्दितारौ छर्दितारः स० तृन्दीत तृन्दीयाताम् तृन्दीरन् भ० छर्दिष्यति छर्दिष्यतः छर्दिष्यन्ति प० तृन्ताम् तृन्दाताम् तृन्दताम छय॑ति छत्य॑तः छय॑न्ति, इत्यादि
| ह्य० अतृन्त
अतृन्दाताम् अतृन्दत क्रि० अच्छर्दिष्यत् अच्छर्दिष्यताम् अच्छर्दिष्यन्
अ० अतर्दिष्ट अतर्दिषाताम् अतर्दिषत अछय॑त् अछय॑ताम् अछय॑न्, इ० प० ततृदे ततृदाते ततृदिरे व० छ्न्ते छून्दाते छून्दते
आ० तर्दिषीष्ट तर्दिषीयास्ताम् तर्दिषीरन् स० छून्दीत छ्न्दीयाताम् छून्दीरन्
श्व० तर्दिता तर्दितारौ तर्दितारः प० छन्ताम् छ्न्दाताम् छ्न्दताम्
भ० तर्दिष्यते तर्दिष्येते तर्दिष्यन्ते ह्य० अछ्न्त अछ्न्दाताम् अछ्न्दत
तस्य॑ते
तत्स्येंते तय॑न्ते, इत्यादि। अ० अच्छर्दिष्ट अच्छर्दिषाताम् अच्छर्दिषत
क्रि० अतर्दिष्यत अतर्दिष्येताम् अतर्दिष्यन्त प० चच्छ्रदे चच्छृदाते चच्छृदिरे
अतय॑त् अतयंताम् अतय॑न्त, इ० आ० छर्दिषीष्ट छर्दिषीयास्ताम् छर्दिषीरन्
अथ परस्मैपदिषु चान्तास्त्रयः सेटश्च। श्व० छर्दिता छर्दितारौ छर्दितारः
१४८२. पृचैप् (पृच्) सम्पर्के। १० भ० छर्दिष्यते छर्दिष्येते छर्दिष्यन्ते व० पृणक्ति पृङ्क्तः
पृञ्चन्ति छय॑ते छत्स्र्ये ते छय॑न्ते, इत्यादि।
पृञ्च्याताम् पृञ्च्युः क्रि० अच्छर्दिष्यत अच्छर्दिष्येताम् अच्छर्दिष्यन्त । प० पृणक्तु/पृक्तात् पृङ्क्ताम् पृञ्चन्तु
अछय॑त् अछय॑ताम् अछय॑न्त, इ० ह्य० अपृणक्/अपृणग् अग्ङ्क्तिाम् अपृञ्चन्
१४८१. ऊतृदृपी (तृद्) हिंसानादरयोः। ९ अ० अपर्चीत् अपर्चिष्टाम् अपर्चिषुः व० तृणत्ति
तृन्दन्ति
प० पपर्च पपृचतुः पपृचुः स० तृन्द्यात् तृन्द्याताम् तृन्धुः
आ० पृच्यात् पृच्यास्ताम् पृच्यासुः प० तृणत्तु/तृन्तात् तृन्ताम्
श्व० पर्चिता पर्चितारौ पर्चितार: ह्य० अतृणत् अतृन्ताम् अतृन्दन्
भ० पर्चिष्यति पर्चिष्यतः
पर्चिष्यन्ति अ० अतृदत् अतृदताम् अतृदन्
क्रि० अपर्चिष्यत् अपर्चिष्यताम् अपर्चिष्यन्
तृन्तः
Page #430
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुधादिगण
413
१४८३. वृचैप्। (वृच्) वरणे। ११
आ० तज्यात् तज्यास्ताम् तज्यासुः व० वृणक्ति वृङ्क्तः वृञ्चन्ति
श्व० तञ्जिता तञ्जितारौ तञ्जितारः स० वृञ्च्यात् वृञ्च्याताम् वृञ्च्युः
भ० तञ्जिष्यति तञ्जिष्यतः तञ्जिष्यन्ति प० वृणक्तु/वृक्तात् वृङ्क्ताम् वृञ्चन्तु
तक्ष्यति तक्ष्यतः तक्ष्यन्ति, इ० ह्य० अवृणक्/अवृणम् अग्ङ्क्तिाम् अवृञ्चन्
क्रि० अतञ्जिष्यत् अतञ्जिष्यताम् अतञ्जिष्यन् अ० अवर्चीत् अवर्चिष्टाम् अवर्चिषुः
अतक्ष्यत् अतक्ष्यताम् अतक्ष्यन्, इ० व० ववर्च ववृचतुः ववृचुः
१४८६. भञ्जोंप (भज्) आमर्दने। १४ ववर्च ववृचिव ववृचिम
व० भनक्ति भक्तः भञ्जन्ति आ० वृच्यात् वृच्यास्ताम् वृच्यासुः
स० भञ्ज्यात् भज्याताम्
भञ्ज्युः श्व० वर्चिता वर्चितारौ वर्चितारः
प० भनक्तु/भक्तात् भक्ताम्
भञ्जन्तु भ० वर्चिष्यति वर्चिष्यत: वर्चिष्यन्ति
ह्य० अभक्/अभग् अभक्ताम्
अभञ्जन् क्रि० अवर्चिष्यत् अवर्चिष्यताम् अवर्चिष्यन् अ० अभाङ्क्षीत् अभाङ्क्ताम् अभाङ्क्षः
१४८४. तञ्चू (तञ्च्) संकोचने। १२ प० बभञ्ज बभञ्जतुः बभञ्जः व० तनक्ति तङ्क्तः तञ्चन्ति
आ० भज्यात् भज्यास्ताम् भज्यासुः स० तञ्च्यात् तञ्च्याताम् तञ्च्युः
श्व० भक्ता भक्तारौ भक्तारः प० तनक्तु/तङ्क्तात् तङ्क्ताम् तञ्चन्तु
भ० भक्ष्यति भक्ष्यतः भक्ष्यन्ति ह्य० अतनक्/अतनग अग्ङ्क्तिाम् अतञ्चन्
क्रि० अभक्ष्यत् अभक्ष्यताम् अभक्ष्यन् अ० अतञ्चीत् अतञ्चिष्टाम् अतञ्चिषुः
१४८७. भुजंपू (भुज्) पालनाभ्यवहारयोः। प० ततञ्च ततञ्चतुः ततञ्चुः
अभ्यवहारो भोजनम्। तत्र पालने। १५ आ० तच्यात् तच्यास्ताम् तच्यासुः व० भुनक्ति
भुङ्क्तः भुञ्जन्ति श्व० तञ्चिता तञ्चितारौ तञ्चितारः
स० भुज्यात् भुज्याताम् भुज्युः भ० तञ्चिष्यति तञ्चिष्यतः तञ्चिष्यन्ति
प० भुनक्तु/भुङ्क्तात् भुङ्क्ताम् भुञ्जन्तु क्रि० अतञ्चिष्यत् अतञ्चिष्यताम् अतञ्चिष्यन् ह्य० अभुनक्/अभुनग् अभुङ्क्ताम् अथ जान्ताः पञ्च।
अ० अभौक्षीत् अभौक्ताम् अभौक्षुः १४८५. तजौप् (त) संकोचने १३ प० बुभोज बुभुजतुः बुभुजुः व० तनक्ति तङ्क्तः तञ्जन्ति
आ० भुज्यात् भुज्यास्ताम् भुज्यासुः स० तज्यात् तज्याताम् ततः
श्व० भोक्ता भोक्तारौ भोक्तार: प० तनक्तु/तङ्क्तात् तङ्क्ताम् तञ्जन्तु
भ० भोक्ष्यति भोक्ष्यतः भोक्ष्यन्ति ह्य० अतनक/अतनग अतङ्क्ताम्
अतञ्जन्
क्रि० अभोक्ष्यत् अभोक्ष्यताम् अभोक्ष्यन् अ० अतञ्जीत् अतञ्जिष्टाम् अतञ्जिषुः
त्राणादन्यत्र भुनज इत्यात्मनेपदे। अताङ्क्षीत् अताङ्क्ताम् अताक्षुः, इत्यादि | व० भुङ्क्ते भुजाते भुजते प० ततज ततञ्जतुः तत ः
स० भुञ्जीत भुञ्जीयाताम् भुञ्जीरन्
अभुञ्जन्
Page #431
--------------------------------------------------------------------------
________________
414
धातुरलाकर प्रथम भाग
अञ्जितासि अञ्जितास्मि
अञ्जितास्थ: अञ्जितास्वः
अजितास्थ अञ्जितास्मः
तथा
प० भुङ्क्ताम् भुजाताम् भुजताम् ह्य० अभुङ्क्त अभुजाताम् अभुञ्जत अ० अभुक्त अभुक्षाताम् अभुक्षत प० बुभुजे बुभुजाते बुभुजिरे आ० भुक्षीष्ट भुक्षीयास्ताम् भुक्षीरन् श्व० भोक्ता भोक्तारौ भोक्तारः भ० भोक्ष्यते भोक्ष्येते भोक्ष्यन्ते क्रि० अभोक्ष्यत अभोक्ष्येताम् अभोक्ष्यन्त १४८८. अञ्जौप् (अ) व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु।
व्यक्तिः प्रकटता, प्रक्षणं घृतादिसेकः।। व० अनक्ति अङ्क्तः अञ्जन्ति
अनक्षि अक्थः अक्थ अनज्मि अज्वः
अज्मः स० अङ्ग्यात् अज्याताम् अज्अ: अज्या: अज्यातम्
अञ्ज्यात अज्याम् अज्याव अज्याम प० अनक्तु/अङ्क्तात् अङ्क्ताम् अञ्जन्तु
अङिग्ध/अङ्क्तात् अङ्क्तम् अङ्क्त अनजानि अनजाव
अनजाम ह्य० आनक्/आनग् आङ्क्ताम् आञ्जन्
आनक्/आनग् आङ्क्तम् आङ्क्त आनजम् आज्व
आज्म अ० आञ्जीत् आञ्जिष्टाम् आञ्जिषुः
आजी: आञ्जिष्टम् आञ्जिष्ट
आञ्जिषम् आञ्जिष्व आञ्जिष्म प० आनञ्ज
आन ः आनञ्जिथ आनञ्जथुः
आनञ्ज आनञ्ज आनञ्जिव आनञ्जिम आ० अज्यात् अज्यास्ताम्
अज्यासुः अज्या :
अज्यास्तम् अज्यास्त अज्यासम् अज्यास्व
अज्यास्म श्व० अञ्जिता अञ्जितारौ अञ्जितार:
अङ्क्ता अङ्क्तारौ अङ्क्तारः, इत्यादि भ० अञ्जिष्यति अञ्जिष्यतः अञ्जिष्यन्ति
अञ्जिष्यसि अञ्जिष्यथ: अञ्जिष्यथ
अञ्जिष्यामि अञ्जिष्याव: अञ्जिष्यांमः क्रि० आञ्जिष्यत् आञ्जिष्यताम् आञ्जिष्यन्
आञ्जिष्यः आञ्जिष्यतम् आञ्जिष्यत आञ्जिष्यम् आञ्जिष्याव आञ्जिष्याम आक्ष्यत् आक्ष्यताम् आक्ष्यन्, इत्यादि
१४८९. ओविजप् (विज्) भयजलनयोः। १७ व० विनक्ति विङ्क्तः विञ्जन्ति स० विद्ध्यात् विज्याताम् विज्युः प० विनक्तु/विक्तात् विक्ताम् ।
विजन्तु ह्य० अविनक्/अविनम् अविङ्क्ताम् अविञ्जन अ० अविजीत् अविजिष्टाम् अविजिषुः प० विवेज विविजतुः
विविजुः आ० विज्यात् विज्यास्ताम् श्व० विजिता विजितारौ विजितार: भ० विजिष्यति विजिष्यतः विजिष्यन्ति क्रि० अविजिष्यत् अविजिष्यताम् अविजिष्यन्
अथ तान्त: सेट् च।
१४९०. कृतैप् (कृत्) वेष्टने। १८ व० कृणत्ति
कृन्तः
कृन्तन्ति कृणत्सि कृन्त्थ:
कृन्थ कृणत्मि कृन्त्व:
कृन्तमः स० कृन्त्यात् कृन्त्याताम्
कृन्त्युः कृन्त्याः कृन्त्यातम् कृन्त्यात
कृन्त्याम् कृन्त्याव कृन्त्याम प० कृणत्तु/कृन्तात् कृन्ताम् कृन्तन्तु कृन्द्धि/कृन्तात् कृन्तम्
कृन्त
विज्यासुः
आनञ्जतुः
Page #432
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुधादिगण
कृि
ह्य० अकृणत्/णद्
अकृणत् / णद्
अकृणतम्
अ० अकर्ती
अकर्ती:
अकर्तिषम्
प० चकर्त
चकर्तिथ
चकर्त
आ० कृत्यात्
कृत्याः
कृत्यासम्
श्व० कर्तिता
कर्तितासि
कर्तितास्मि
भ० कर्तिष्यति
कर्तिष्यसि
कर्तिष्यामि
क्रि० अकर्तिष्यत्
अकर्तिष्यः
अकर्तिष्यम्
अकर्त्स्यत्
व० उनत्ति
उनत्सि
उनद्मि
स० उन्द्यात्
उन्द्याः
उन्द्याम्
प० उनत्तु / उन्तात्
कृणताव
कृणताम
अकृन्ताम्
अकृन्तन्
अकृन्तम्
अकृन्त
अकृत्व
अकृन्तम
अकर्तिष्टाम्
अकर्तिषुः
अकर्तिष्टम् अकर्तिष्ट
अकर्तिष्व
अकर्तिष्म
चकृततुः
चकृतथुः
चकृतिव
कर्तितास्थ
कर्तितास्मः
कर्तिष्यन्ति
कर्तिष्यथ
कर्तिष्यामः
अकर्तिष्यताम्
अकर्तिष्यन्
अकर्तिष्यतम् अकर्तिष्यत
अकर्तिष्याव
अकर्तिष्याम
अकर्त्स्यताम्
अकर्त्स्यन्, इ०
अथ दान्तः सेट् च
१४९१. उन्दैर् (उन्द्) क्लेदने । १९
उन्दन्ति
उन्त्थ
उन्म:
उन्धुः
उन्द्यात
उन्धाम
उन्दन्तु
कृत्यास्ताम्
कृत्यास्तम्
कृत्यास्व
कर्तितारौ
कर्तितास्थः
कर्तितास्वः
कर्तिष्यतः
कर्तिष्यथः
'कर्तिष्याव:
उन्तः
उन्त्थ:
उन्द्वः
चकृतुः
चकृत
चकृतिम
कृत्यासुः
कृत्यास्त
उन्द्याताम्
उन्द्यातम्
उन्द्याव
उन्ताम्
कृत्यास्म
कर्तितार:
उन्द्धि / उन्तात्
उनदानि
ह्य० औनत्/नद्
उन्तम्
उनदाव
औन्ताम्
औनत् / औनद् / औन : औन्तम्
औन्दम्
औन्द्व
अ० औन्दीत्
औन्दिष्टाम्
औन्दिष्टम्
औन्दिष्व
औन्दीः
औन्दिषम्
प० उन्दाञ्चकार
उन्दाञ्चक्रतुः
उदाञ्चकर्थ
उन्दाञ्चक्रथुः
उन्दाञ्चकार/ कर उन्दाञ्चकृव
उन्दाम्बभूव / उन्दामास ।
आ० उद्यात्
उद्या:
उद्यासम्
श्व० उन्दिता
उन्दितासि
उन्दितास्मि
भ० उन्दिष्यति
उन्दिष्यसि
उन्दिष्यामि
क्रि० औन्दिष्यत्
औन्दिष्यः
औन्दिष्यम्
व० शिनष्टि
शिनक्षि
शिनष्मि
० शिष्यत्
शिष्याः
उद्यास्ताम्
उद्यास्तम्
उद्यास्व
उन्दितारौ
उन्दितास्थः
उन्दितास्वः
उन्दिष्यतः
उन्दिष्यथः
उन्दिष्यावः
औन्दिष्यताम्
औन्दिष्यतम्
औन्दिष्याव
शिष्टः
शिष्ठः
शिष्वः
उन्त
उनदाम
औन्दन्
औन्त
औन्द्म
शिंष्याताम्
शिष्यातम्
औन्दिषुः
औन्दिष्ट
औन्दिष्म
उन्दाञ्चक्रुः
उन्दाञ्चक्र
उन्दाञ्चकृम
अथ षान्तावनिटयै च ।
१४९२. शिष्लृप् (शिष्) विशेषणे । २०
विशेषणं गुणान्तरोत्पादनम् ।
उद्यासुः
उद्यास्त
उद्यास्म
उन्दितार:
उन्दितास्थ
उन्दितास्मः
उन्दिष्यन्ति
उन्दिष्यथ
उन्दिष्यामः
औन्दिष्यन्
औन्दिष्यत
औन्दिष्याम
शिषन्ति
शिष्ठ
शिंष्मः
शिष्यः
शिष्यात
415
Page #433
--------------------------------------------------------------------------
________________
416
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शिषन्तु
शिशिषुः
शिशिषतुः शिशिषथुः
हिंस्यासुः
शिष्यासुः
शिंष्याम् शिंष्याव शिंष्याम प० शिनष्टु/शिंष्टात् शिंष्टाम् शिडिण्ड/शिण्ढि शिष्टम्
शिष्ट शिनषाणि शिनषाव शिनषाम ह्य० अशिन/नड्
अशिंष्टाम्
अशिंषन् अशिनट/नड् अशिंष्टम् अशिंष्ट अशिनषम् अशिंष्व
अशिंष्म अ० अशिषत् अशिषताम् अशिषन्
अशिषः अशिषतम् अशिषत
अशिषम् अशिषाव अशिषाम प० शिशेष शिशेषिथ
शिशिष शिशेष
शिशिषिव शिशिषिम आ० शिष्यात् शिष्यास्ताम्
शिष्याः शिष्यास्तम् शिष्यास्त
शिष्यासम् शिष्यास्व शिष्यास्म श्व० शेष्टा
शेष्टारौ शेष्टार: शेष्टासि शेष्टास्थः शेष्टास्थ
शेष्टास्म शेष्टास्वः शेष्टास्मः भ० शेक्ष्यति शेक्ष्यतः शेक्ष्यन्ति शेक्ष्यसि शेक्ष्यथः
शेक्ष्यथ शेक्ष्यामि
शेक्ष्याव: शेक्ष्यामः क्रि० अशेक्ष्यत् अशेक्ष्यताम अशेक्ष्यन्
अशेक्ष्यः अशेक्ष्यतम् अशेक्ष्यत अशेक्ष्यम अशेक्ष्याव अशेक्ष्याम
१४९३. पिल्लूप् (पिष्) संचूर्णने। २१ व० पिनष्टि
पिंषन्ति स० पिंष्यात्
पिंष्याताम् प० पिनष्टु/पिंष्टात् पिंष्टाम् पिंषन्तु ह्य० अपिनट/नड् अपिंष्टाम् अपिंषन् अ० अपिषत् अपिषताम्
अपिषन् प० पिपेष पिपिषतुः
आ० पिष्यात् पिष्यास्ताम्
पिष्यासुः श्व० पेष्टा
पेष्टारौ
पेष्टार: भ० पेक्ष्यति पेक्ष्यतः पेक्ष्यन्ति क्रि० अपेक्ष्यत् अपेक्ष्यताम् अपेक्ष्यन्
अथ सान्त: सेट् च। १४९४. हिसुप् (हिस्) हिंसायाम्। २२ व. हिनस्ति हिंस्तः हिंसन्ति स० हिंस्यात् हिंस्याताम् ह० हिंनस्तु/हिंस्तात् हिंस्ताम् हिंषन्तु ह्य० अहिनत्/नद् अहिंस्ताम् अहिंसन् अ० अहिंसीत् अहिंसिष्टाम् अहिंसिषुः प० जिहिंस जिहिंसतुः जिहिंसुः आ० हिंस्यात् हिंस्यास्ताम् श्व० हिंसिता हिंसितारौ हिंसितारः भ० हिंसिष्यति हिंसिष्यतः हिंसिष्यन्ति क्रि० अहिंसिष्यत् अहिंसिष्यताम् अहिंसिष्यन्
.. |॥अथ हान्तः सेट् च।।
१४९५ तृहप् (तृह) हिंसायाम्। २३ व० तृणेढि तृण्ढः
तूंहन्ति तृणेक्षि तृण्ठः
तृण्ठ तृणेरि तृह्वः
तूंमः स० गुंह्यात् तृह्यास्ताम् सुंयुः तृह्याः
तूंह्यातम् तुंह्यात तुंह्याम् तूंडाव तुंह्याम प० तृण्दु/तृण्ढात्
त॒हन्तु तृण्डि/तृण्डात् तृण्ढाम् तृण्ढ
तृणहानि तृणहाव तृणहाम ह्य० अतृणेट/णेड अतृण्ढाम् अतुंहन्
अतृणेटणेड् अतृण्ढम् अतृण्ड
अतृणहम् अतुंह अतुंझ अ० अतीत् अतर्हिष्टाम् अतर्हिषु
अतीः अतर्हिष्टम् अतर्हिष्ट
तिण्दात तण्ढाम्
पिंष्टः
पिंष्युः
पिपिषुः
Page #434
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुधादिगण
417
ततृहुः
तृह्यास्व
तृह्यास्म
अतर्हिषम् अतिर्हिष्व अतहिष्म प० ततह
ततृहतुः ततर्हिथ ततर्हिष्टम् ततर्हिष्ट
ततर्हिषम् ततर्हिष्व ततर्हिष्म आ० तृह्यात्
तृह्यास्ताम् तृह्यासुः तृह्याः
तृह्यास्तम् तृह्यास्त तृह्यासम् श्व० तर्हिता तर्हितारौ तर्हितारः
तर्हितासि तर्हितास्थः तर्हितास्थ
तर्हितास्म तर्हितास्वः तर्हितास्मः भ० तर्हिष्यति तर्हिष्यतः तर्हिष्यन्ति
तर्हिष्यसि तर्हिष्यथ: तर्हिष्यथ
तर्हिष्यामि तर्हिष्याव: तर्हिष्यामः क्रि० अतर्हिष्यत् अतर्हिष्यताम् अतर्हिष्यन्
अतर्हिष्यः अतर्हिष्यतम् अतर्हिष्यत अतर्हिष्यम् अतर्हिष्याव अतर्हिष्याम
॥ इति परस्मैपदिनः।। ॥अथात्मनेपदिषु दान्तावनिटौ च।।
१४९६ खिदिप् (खिद्) दैन्य।२४ व० खिन्ते खिन्दाते खिन्दते
खिन्त्से खिन्दाथे खिन्दध्वे
खिन्दे खिन्द्वहे खिन्व्हे स० खिन्दीत् खिन्दीयाताम् खिन्दीरन्
खिन्दीथाः खिन्दीयाथाम् खिन्दीध्वम्
खिन्दीय खिन्दीवहि खिन्दीमहि प० खिन्ताम् खिन्दाताम्
खिन्दताम् खिन्त्स्व खिन्दाथाम्
खिन्द्ध्वम् खिनदै खिनदावहै खिनदामहै ह्य० अखिन्त अखिन्दाताम् अखिन्दत
अखिन्थाः अखिन्दाथाम् अखिन्द्ध्वम्
अखिन्दि अखिन्द्वहि अखिन्यहि अ० अखित्त अखित्साताम् अखित्सत
अखित्थाः अखित्साथाम् अखिद्ध्वम्
अखित्सि अखित्स्वहै अखिस्महि प० चिखिदे चिखिदाते चिखिदिरे
चिखिदिषे चिखिदाथे चिखिदिध्वे
चिखिदे चिखिदिवहे चिखिदिमहे आ० खित्सीष्ट खित्सीयास्ताम् खित्सीरन् खित्सीष्ठाः
खित्सीयास्थाम् खित्सीध्वम् खित्सीय. खित्सीवहि खित्सीमहि श्व० खेत्ता खेत्तारौ खेत्तारः खेत्तासे
खेत्तासाथे खेत्ताध्वे खेत्ताहे खेत्तास्वहे खेत्तास्महे भ० खत्स्यते खेत्स्ये ते खेत्स्यन्ते
खेत्स्य से खेत्स्ये थे: खेत्स्यध्वे खेत्स्ये
खेत्स्यावहे खेत्स्यामहे क्रि० अखेत्स्यत् अखेत्स्येताम् अखेत्स्यन्त
अखेत्स्यथा अखेत्स्येथाम् अखेत्स्यध्वम् अखेत्स्ये अखेत्स्यावहि अखेत्स्यामहि
१४७९ विदिप् (विद्) विचारणे। २५ व० विन्ते विन्दातेः विन्दते विन्से
विन्दाथे: विन्ध्वे विन्दे विन्द्वहे विन्यो स० विन्दीत विन्दीयाताम् विन्दीरन् विन्दीथाः विन्दीयाथाम्
विन्दीध्वम् विन्दीय विन्दीवहि विन्दीमहि प० विन्ताम् विन्दाताम् विन्दताम् विन्त्स्व विन्दाथाम्
विन्द्ध्वम् विनदै विनदावहै विनदामहै ह्य० अविन्त अविन्दाताम् अविन्दत
अविन्थाः अविन्दाथाम् अविन्द्ध्व म्
अविन्दि अविन्द्वहि अविन्यहि अ० अवित्त अवित्साताम्
अवित्सत अवित्थाः अवित्साथाम् अविद्ध्वम्/द्ध्वम्
Page #435
--------------------------------------------------------------------------
________________
418
अवित्सि
प० विविदे
विविदिषे
विविदे
आ० वित्सीष्ट
वित्सीष्ठाः
वित्सीय
श्र० वेत्ता
वेत्तासे
वेत्ताहे
भ० वेत्स्यते
वेत्स्यसे
वेत्स्ये
क्रि० अवेत्स्यत
अवेत्स्यथाः
अवेत्स्ये
व० इन्धे
इन्से
इन्धे
स० इन्धीत
इन्धीथा:
इन्धीय
प० इन्द्वाम्
इन्स्व
ह्य० ऐन्ध
ऐन्द्धाः,
ऐन्धि
अ० ऐन्धिष्ट
अवेत्स्येताम्
अवेत्स्येथाम्
अवेत्स्यावहि
॥अथ धान्तः सेट् च ।।
१४९८ ञिइन्धैपि (इन्थ्) दीप्तौ । २६
इन्धाते:
इन्धाथे:
इन्व
एन्धिष्ठाः
अवित्स्वहे
विविदाते
विविदाथे
विविदिवहे
अविस्महि
विविदिरे
विविदिध्वे
विविदि
वित्सीयास्ताम् वित्सीरन्
वित्सीयास्थाम् वित्सीध्वम्
वित्सीवहि
वित्सीमहि
वेत्तारौ
वेत्तारः
वेत्तासाथे
वेत्ताध्वे
वेत्तास्वहे
वेत्स्येते
वेत्स्येथे:
वेत्स्याव
वेत्तास्महे
वेत्स्यन्ते
वेत्स्यध्वे
वेत्स्यामहे
अवेत्स्यन्त
अत्स्यध्वम्
अवेत्स्यामहि
इन्ध
इन्वे
इन्ध्महे
इन्धीयाताम् इन्धीरन्
इन्धीयाथाम्
इन्धीवहि
इन्धाताम्,
इन्धाथाम्
इध
ऐन्धाताम्
ऐन्तध
ऐन्धाथाम्
ऐन्द्ध्वम्
ऐवहि
ऐन्महि
ऐन्धिषाताम्
ऐन्धिषत
ऐन्धिषाथाम् ऐन्धिवम् / ऐन्धिध्वम्
इन्धीध्वम्
इन्धीमहि
इन्धताम्
इन्द्ध्वम्
धाम
ऐन्धिषि
प० इन्धाञ्चक्रे
इन्धाञ्चक
इन्धाञ्चक्रे
इन्धाम्बभूव / इन्धामास
इन्धिषीष्ठाः
इन्धिषीय
श्व० इन्धिता
इन्धित
इन्धिताहे
भ० इन्धिष्यते
इन्से
इन्धिष्ये
क्रि० ऐन्धिष्यध
सम्पूर्वकस्य तु वा
समिन्धांचक्रे समिन्धांचक्राते समिन्धांचक्रिरे, इत्यादि ।
समिन्धाम्बभूव । समिन्धामास
आ० इन्धिषीष्ट
ऐन्धिष्यथाः
ऐन्धिष्ये
ऐन्धिषाथाम्
इन्धाञ्चक्राते
व० तनोति
तनोषि
तनोमि
इन्धाञ्चक्रा
इन्धाञ्चकृवहे
स० तनुयात्
तनुयाः
तनुयाम्
प० तनोतु /तनुतात्
इन्धितास्वहे
इन्धिष्येते
इन्धिष्येथेः
इन्धिष्यावहे
ऐधधम्
ऐन्धिष्येथाम्
ऐन्धिष्यावहि
॥ रुधादिगण: सम्पूर्णः ||
॥ अथ तनादय उविकरणा वर्णक्रमेण प्रदर्श्यन्ते ॥
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ऐन्धिमहि
इन्धाञ्चक्रिरे
इन्धाञ्चकृदवे
इ
इन्धिषीयास्थाम् इन्धिषीरन्
इन्धिषीयास्थाम् इन्धिषीध्वम्
इन्धिषीवहि
धीमहि
इन्धितारौ
इन्ध
इन्धितार:
इन्धिताध्वे
तोभयपदिष्वादौ नान्ताः सप्त सेटच ||
१४९९. तनूपी (तन्) विस्तारे ।
यित्त्वं तनादित्वज्ञापनार्थम् ।
तनुतः
तनुथः
तन्वः / तनुवः
तनुयाताम्
तनुयातम्
तनुयाव
तनुताम्
इन्धितास्महे
इन्धिष्यन्ते
इन्धिष्यध्वे
इन्धिष्यामहे
ऐन्धिष्यन्ध
ऐन्धिष्यध्वम्
ऐन्धिष्यामहि
तन्वन्ति
तनुथ
तन्म: / तनुमः
तनुयुः
तनुयात
तनुयाम
तन्वन्तु
Page #436
--------------------------------------------------------------------------
________________
तनादिगण
419
तनुतम्
तनुत
तनवाम
तनुष्व
तनु/तनुतात्
तनवानि ह्य० अतनोत्
अतनोः
अतनवम् अ० अतानीत्
अतानी: अतानिषम्
तनवाव अतनुताम् अतनुतम् अतन्व/अतनुव अतानिष्टाम् अतानिष्टम् अतानिष्व
तथा अतनिष्टाम् अतनिष्टम् अतनिष्व
अतन्वन् अतनुत अतन्म/अतनुम अतानिषुः अतानिष्ट अतानिष्म
अतनीत् अतनीः
अतनिषम् प० ततान
तेनिथ
अतनिषुः अतनिष्ट अतनिष्म
तेनतुः तेनथुः
तेन
ततान/ततन
तेनिम
आ० तन्यात्
तेनिव तन्यास्ताम् तन्यास्तम्
तन्यासुः तन्यास्त
तन्वीय तन्वीवहि तन्वीमहि प० तनुताम् तन्वाताम् तन्वताम्
तन्वाथाम् तनुध्वम् तनुवै तनवावहै तनवामहै ह्य० अतनुत अतन्वाताम् अतवन्त
अतनुथाः अतन्वाथाम् अतनुध्वम्
अतन्वि __ अतनुवहि/न्वहि अतनुमहि/न्महि अ० अतत/अतनिष्ट अतनिषाताम् अतनिषत
अतथा:/अतनिष्ठा: अतनिषाताम् अतनिड्ढवम/ध्वम्
अतनिषि अतनिष्वहि अतनिष्महि | प० तेने
तेनाते
तेनिरे तेनिषे तेनाथे
तेनिध्वे तेने तेनिवहे
तेनिमहे आ० तनिषीष्ट तनिषीयास्ताम् तनिषीरन्
तनिषीष्ठाः तनिषीयास्थाम् तनिषीध्वम्
तनिषीय तनिषीवहि तनिषीमहि श्व० तनिता तनितारौ तनितार:
तनितासे तनितासाथे तनिताध्वे
तनिताहे तनितास्वहे तनितास्मिहे भ० तनिष्यते तनिष्येते तनिष्यन्ते
तनिष्यसे तनिष्येथे तनिष्यध्वे
तनिष्ये तनिष्यावहे तनिष्यामहे क्रि० अतनिष्यत अतनिष्येताम् अतनिष्यन्त
अतनिष्यथाः अतनिष्येथाम् अतनिष्यध्वम् अतनिष्ये अतनिष्यावहि अतनिष्यामहि
१५००. षणुयी (सन्) दाने। २ व. सनोति सनुतः
सन्वन्ति स० सनुयात् सनुयाताम्
सनुयुः प० सनोतु/सनुतात् सनुताम् सन्वन्तु ह्य० असनोत् असनुताम् असन्वन् अ० असानीत् असानिष्टाम् असानिषुः
असनीत् असनिष्टाम् असनिषुः
तन्या:
तन्यास्म
तनितार:
तन्यासम् श्व० तनिता
तनितासि
तनितास्मि भ० तनिष्यति
तनिष्यसि
तनिष्यामि क्रि० अतनिष्यत्
अतनिष्यः
अतनिष्यम् व० तनुते
तन्यास्व तनितारौ तनितास्थ: तनितास्वः तनिष्यतः तनिष्यथ: तनिष्याव: अतनिष्यताम् अतनिष्यतम् अतनिष्याव तन्वाते तन्वाथे तनुवहे/तन्वहे तन्वीयाताम् तन्वीयाथाम्
तनितास्थ तनितास्मः तनिष्यन्ति तनिष्यथ तनिष्यामः अतनिष्यन् अतनिष्यत अतनिष्याम तन्वते तनुध्वे तनुमहे/तन्महे तन्वीरन् तन्वीध्वम्
तनुषे
तन्वे स० तन्वीत
तन्वीथाः
Page #437
--------------------------------------------------------------------------
________________
420
प० ससान
आ० सन्यात्
श्व० सनिता
भ० सनिष्यति
क्रि० असनिष्यत्
व० सनुते
स० सन्वीत
प० सनुताम्
ह्य० असनुत
अ० असात
प० सेने
आ० सनिषीष्ट
श्व० सनिता
भ० सनिष्यते
क्रि० असनिष्यत
व० क्षणोति
स० क्षणुयात्
प० क्षणोतु / क्षणुतात्
ह्य० अक्षणोत्
अ० अक्षणीत्
प० चक्षाण
आ० क्षण्यात्
श्व० क्षणिता
भ० क्षणिष्यति
क्रि० अक्षणिष्यत्
व० क्षणुते
स० क्षण्वीत
प० क्षणुताम्
ह्य० अक्षणुत
अ० अक्षत अक्षणिषि
सेनतुः
सन्यास्ताम्
सनितारौ
सनिष्यतः
असनिष्यताम्
सन्वाते
सन्वीयाताम्
सन्वाताम्
असन्वाताम्
असत
सेनाते
असनिष्येताम्
१५०१. क्षणूयी (क्षण) हिंसायाम्। ३
भण्वन्ति
क्षणुयुः
क्षण्वन्तु
अक्षण्वन्
अक्षणिषुः
चक्षणुः
सनिषीयास्ताम्
सनितारौ
सनिष्येते
क्षणुतः
क्षणुयाताम्
क्षणुताम्
अक्षणुताम्
अक्षणिष्टाम्
सेनुः
सन्यासः
सनितार:
सनिष्यन्ति
असनिष्यन्
सन्वते
सवीरन्
सन्वताम
चक्षणतुः
क्षण्यास्ताम्
क्षणितारौ
क्षणिष्यतः
असन्वत
असनिष्ट
सेनिरे
सनिषीरन्
सनितार:
सनिष्यन्ते
असनिष्यन्त
क्षण्यासुः
क्षणितार:
क्षणिष्यन्ति
अक्षणिष्यताम् अक्षणि
क्षण्वाते
क्षण्वते
क्षण्वीयाताम् क्षण्वीरन्
क्षण्वाताम्
क्षण्वताम
अक्षण्वाताम्
अक्षवण्त
अक्षणिष्ट
अक्षणिषाताम्
अक्षणिष्वहि
अक्षणिष्महि
प० चक्षणे
० क्षणिष्ट
श्व० क्षणिता
भ० क्षणिष्यते
क्रि० अक्षणिष्यत
व० क्षेणोति
अक्षणिष्येताम्
१५०२. क्षिणी (क्षिण) हिंसायाम् । ४
० क्षेणुयात्
प० क्षेणोतु / क्षेणुतात्
० अक्षेणोत्
अ० अक्षेणीत्
प० चिक्षेण
आ० क्षिण्यात्
श्व० क्षेणिता
भ० क्षेणिष्यति
क्रि० अक्षेणिष्यत्
व० क्षे
स० क्षेण्वीत
प० क्षेणुताम्
० अक्षेत
अ० अक्षित
अक्षेणिषत्
प० चिक्षिणे
चक्षणाते
क्षणिषीयास्ताम्
क्षणितारौ
क्षणिष्येते
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चक्षणिरे
क्षणिषीरण्
क्षणितार:
क्षणिष्यन्ते
अक्षणिष्यन्त
क्षेण्वीयाताम्
क्षेण्वाताम्
अक्षेताम्
अक्षेणिष्ट
अक्षेणिष्ठाः
चिक्षिणाते
क्षेणुतः
क्षेणुयाताम्
क्षेणुताम्
क्षेत
अन्
अक्षेणिष्टाम्
अणिषुः
चिक्षिणतुः
चिक्षिणुः
क्षिण्यास्ताम् क्षिण्यासुः
क्षेणितारौ
क्षेणितार:
क्षेणिष्यतः
क्षेणिष्यन्ति
अक्षेणिष्यताम्
अक्षेणिष्यन्
क्षेण्वाते
क्षेवते
क्षेणिषीयास्ताम्
क्षेणितारौ
क्षेणिष्येते
व० अर्णोति
स० अर्णुयात्
याताम्
प० अर्णोतु / अर्णुतात् अर्णुताम्
क्षेण्वन्ति
क्षेणुयुः
क्षेण्वन्तु
क्षेण्वीरन्
क्षेण्वताम्
आ० क्षेणिषीष्ट
श्व० क्षेणिता
भ० क्षेणिष्यते
क्रि० अक्षेणिष्यत
अक्षेणिष्येताम्
अक्षेणिष्यन्त
संज्ञापूर्वको विधिरनित्य इति उनिमत्तं गुणं नेच्छन्त्येके ।
१५०३. ऋणूयी (ऋण) गतौ । ५
अत:
अक्षेवत
अक्षेणिषाताम्
अक्षिथा:
चिक्षिणिरे
क्षेणिषीरन्
क्षेणितार:
क्षेणिष्यन्ते
अन्ति
अर्जुयुः
अन्तु
Page #438
--------------------------------------------------------------------------
________________
तनादिगण
० आर्णोत्
अ० आर्णीत्
प० आनर्ण
आ० ऋण्यात् श्व० अर्णिता
भ० अर्णिष्यति
क्रि० आर्णिष्यत्
व० अ स० अवत
प० अणुताम्
० आ
अ० आर्ण/आर्णिष्ट
प० आनृणे
आ० अर्णिषीष्ट
श्व० अर्णिता
भ० अर्णिष्यते
क्रि० आणिष्यत
व० तर्णोति
तर्णोषि
तर्णोमि
स० तयात्
तर्णुयाः
याम्
प० तर्णोतु /तर्णुतात्
तर्णवानि
ह्य० अतर्णोत्
अतर्णोः
अतर्णवम्
अ० अतर्णीत्
आर्णुताम्
आर्णिष्टाम्
आनृणतुः
ऋण्यास्ताम्
अर्णितारौ
अर्णिष्यतः
आर्णिष्यताम्
अवते
अर्णीयाताम्
ताम्
आताम्
आर्णिषाताम्
आत
आर्णिषत्
आनृणा
आनृणिरे
अर्णिषीयास्ताम् अर्णिषीरन्
अर्णितारौ
अर्णितारः
अर्णिष्येते
अर्णिष्यन्ते
आर्णिष्येताम्
आर्णिष्यन्त
१५०४. तृणूयी (तृण्) अदने ।
अदाने इत्यन्ये। ६
तर्जुयाव
तर्णुताम्
तर्णुहि/तर्णुतात् तर्णुतम्
तर्णवाव
आन्
आर्णिषुः
आनृणुः
ऋण्यासुः
अर्णितारः
अर्णिष्यन्ति
आर्णिष्यन्
अर्श्वते
अवरन्
अर्श्वताम
अर्णुताम्
अतर्गुतम्
अर्णव,
अष्टिम्
ततः
तर्णुथः
तर्णुवः
तर्जुमः
तर्णुयाताम् तर्णुयुः
तर्णुयातम्
तर्णुयात
तणुयाम
तु
तन्ति
तर्णवाम
अतन्
अतर्जुम
अर्णषुः
अतर्णी: अतर्णिषम्
प० ततर्ण
ततर्णिथ
ततर्ण
आ० तृण्यात्
तृण्या:
तृण्यासम्
श्व० तर्णिता
तर्णितासि
तर्णितास्मि
भ० तर्णिष्यति
तर्णिष्यसि
तर्णिष्यामि
क्रि० अतर्णिष्यत्
अतर्णिष्यः
अर्णम्
व० तर्जु
स० तवत
तथा:
तवय
प० तर्णुताम्
० अत
तथा:
अतवि
अतर्णिष्टम्
अतर्णिष्व
ततृणतुः
ततृणथुः
ततृणिव
तृण्यास्ताम्
तृण्यास्तम्
तृण्यास्व
तर्णितारौ
त
तथे
व
तयाताम्
तवयाथाम्
तववहि
तर्वाताम्
तथाम् तर्णुध्वम्
तर्णवावहै
तर्णवामहै
अतर्वाताम् अतर्वत
अथा
अर्णुध्वम्
अहि
अहि
अ० अतृत/अतर्णिष्ट अतर्णिषाताम्
अतर्णिषत
अतृथाः / अतर्णिष्ठाः अतर्णिषाथाम् अतर्णिषि
अतर्णिष्वहि
तर्णितास्थः
तर्णितास्वः
तर्णिष्यतः
तर्णिष्यथः
तर्णिष्याव:
अतर्णिष्यताम्
अतर्णिष्यतम्
अतर्णिष्याव
अतर्णिष्ट
अतर्णिष्म
ततृणुः
ततृण
ततृणिम
तृण्यासुः
तृण्यास्त
तृण्यास्म
तर्णितार:
तर्णितास्थ
तर्णितास्मः
तर्णिष्यन्ति
तर्णिष्यथ
तर्णिष्यामः
अतर्णिष्यन्
अतर्णिष्यत
अतर्णिष्याम
तते
वे
तर्जुम
तवी॑रन्
तध्वम्
तवमहि
तर्वताम्
421
अतर्णिध्वम्/डूवम्
अतर्णिष्महि
Page #439
--------------------------------------------------------------------------
________________
422
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ततृणाते
ततृणिरे ततणिध्वे
ततृणिषे
प० ततृणे
ततृणाथे ततृणे ततृणिवहे ततृणिमहे आ० तर्णिषीष्ट तर्णिषीयास्ताम्
तर्णिषीरन् तर्णिषीष्ठाः तर्णिषीयास्थाम् तर्णिषीध्वम्
तर्णिषीय तर्णिषीवहि तर्णिषीमहि श्व० तर्णिता तर्णितारौ तर्णितारः
तर्णितासे तर्णितासाथे तर्णिताध्वे
तर्णिताहे तर्णितास्वहे तर्णितास्मिहे भ० तर्णिष्यते तर्णिष्येते तर्णिष्यण्ज्ञते
तर्णिष्यसे तर्णिष्येथे तर्णिष्यध्वे तर्णिष्ये
तर्णिष्यावहे तर्णिष्यामहे क्रि० अतर्णिष्यत अतर्णिष्येताम् अतर्णिष्यन्त
अतर्णिष्यथाः अतर्णिष्येथाम् अतर्णिष्यध्वम् अतर्णिष्ये अतर्णिष्यावहि अतर्णिष्यामहि
१५०५. घृणूयी (घृण) दीप्तौ। व० घर्णोति घणुतः घवन्ति स० घर्गुयात् घणुयाताम् घणुयुः प० घर्णोतु/घणुतात् घणुताम्
घव॑न्तु ह्य० अघोत् अघणुताम् अघव॑न् अ० अघीत् अघर्णिष्टाम् अघर्णिषुः प० जघर्ण . जघृणतुः आ० घृण्यात् घृण्यास्ताम्
घृण्यासुः श्व० घर्णिता घर्णितारौ घर्णितारः भ० घर्णिष्यति घर्णिष्यतः घर्णिष्यन्ति क्रि० अघर्णिष्यत् अघर्णिष्यताम् अघर्णिष्यन् व० घणुते घाते घव॑ते स० घीत घीयाताम् घवीरन् प० घणुताम् घाताम् घवताम ह्य० अघणुत अघाताम् अघवंत अ० अघृत अघर्णिष्ट अघर्णिषाथाम् प० जघृणे जघृणाते
आ० घर्णिषीष्ट घर्णिषीयास्ताम् घर्णिषीरण व० घर्णिता घर्णितारौ घर्णितार: भ० घर्णिष्यते घर्णिष्येते घर्णिष्यण्ज्ञते क्रि० अघर्णिष्यत अघर्णिष्येताम अघर्णिष्यन्त
णान्तोऽयमित्येके। तन्मते 'तकि घृण्टि।
अकारोपान्त्यो णान्तश्चायमिति शिवः। क्षणू क्षिणू ऋणू तृणू घृणू धातूनां नकारस्थाने रषवर्णादिति णकारं कृत्वा णकारो दत्तः। इतरथा क्षनू इत्यादिः नकारवान् पाठो वक्तव्यो भवेत्, अत एव-रघुवर्णादिति नस्य णत्वे क्षणुते क्षिणुते अर्णोति तर्णोति घर्णोति तिक्कृताविति तिकि न तिकीति दीर्घनलुकोरभावे म्नामिति णत्वापवादे नस्य ने क्षन्तिः क्षिन्तिः तृन्तिः घृन्तिः। सन्ययिर। इति रस्य प्रतिषेधः स्वरादेरिति। नेरेव द्वित्वे अर्णिनिषति इति धातुपारायणसङ्गति
अत एव "र्षाट्टवर्गस्तवर्गजः' इत्यभियुक्ता अभिदधति। | उविकरणे ऋणू तृणू घृणू धातूनां गुणं नेच्छन्त्येके। ऋणुते ऋणोति तृणुते तृणोति घृणुते घृणोति।
इत्युभयता भाषाः। अथात्मनेपदिनौ नान्तौ सेटौ चः
१५०६. वनूयि (वन्) याचने। ४ व० वनुते वन्वाते
वनुषे वन्वाथे वनुध्वे
वन्वे/वनुवहे वन्वहे/वनुमहे वन्महे स० वन्वीत वन्वीयाताम् वन्वीरन्
वन्वीथाः वन्वीयाथाम् वन्वीध्वम्
वन्वीय वन्वीवहि वन्वीमहि | प० वनुताम् वन्वाताम् वन्वताम् वनुष्व
वन्वाथाम् वनुध्वम्
वनवावहै वनवामहै ह्य० अवनुत अवन्वाताम् अवन्वत
अवनुथाः अवन्वाथाम् अवनुध्वम्
अवन्वि अवनुवहि/अवन्वहि अवनुमहि/अवन्महि अ० अवत/अवनिष्ट अवनिषाताम् अवनिषत
वन्वते
जघृणुः
वनवै
जघृणिरे
Page #440
--------------------------------------------------------------------------
________________
423
वनिषीरन्
क्रीणीयुः
यादिगण
अवथाः/अवनिष्ठाः अवनिषाथाम् अवनिडूवम्/ध्वम् । अथ ऋयादयः श्नाविकरणा वर्णक्रमेण प्रस्तूयन्ते। तत्रादौ
अवनिषि अवनिष्वहि अवनिष्महि १५०८. डुक्रींगश् (क्री) द्रव्यविनिमये। विनिमयः परिवर्त प० ववने ववनाते ववनिरे
इत्यर्थः। शित्त्वं क्रयादित्वज्ञापनार्थम्।। ववनिषे ववनाथे ववनिध्वे
| व. क्रीणाति क्रीणीतः क्रीणन्ति ववने ववनिवहे ववनिमहे
क्रीणासि क्रीणीथः क्रीणीथ आ० वनिषीष्ट वनिषीयास्ताम्
क्रीणामि क्रीणीवः क्रीणीमः वनिषीष्ठाः वनिषीयास्थाम् वनिषीध्वम्
स० क्रीणीयात् क्राणीयाताम् वनिषीय वनिषीवहि वनिषीमहि
क्रीणीयाः क्रीणीयातम् क्रीणीयात श्व० वनिता वनितारौ वनितारः
क्रीणीयाम् क्रीणीयाव क्रीणीयाम वनितासे वनितासाथे वनिताध्वे
| प० क्रीणातु/क्रीणीतात् क्रीणीताम् क्रीणन्तु वनिताहे वनितास्वहे वनितास्मिहे
क्रीणीहि/क्रीणीतात् क्रीणीतम् क्रीणीत भ० वनिष्यते वनिष्येते वनिष्यन्ते
क्रीणानि क्रीणाव क्रीणाम वनिष्यसे वनिष्येथे वनिष्यध्वे ह्म० अक्रीणात् अक्रीणीताम् अक्रीणन् वनिष्ये वनिष्यावहे वनिष्यामहे
अक्रीणाः अक्रीणीतम् अक्रीणीत क्रि० अवनिष्यत अवनिष्येताम् अवनिष्यन्त
अक्रीणाम् अक्रीणीव अक्रीणीम अवनिष्यथाः अवनिष्येथाम् अवनिष्यध्वम् अ० अषीत् अष्टाम् अषुः अवनिष्ये अवनिष्यावहि अवनिष्यामहि अझैषीः अष्टम् अष्ट १५०७. मनूयि (मन्) बोधने। ९
अक्रैषम् अष्व अऊष्म मन्वाते प० चिक्राय
चिक्रियः मन्वते व० मनुते
चिक्रियतुः
चिक्रयिथ/चिक्रथ चिक्रियथुः चिक्रिय स० मन्वीत मन्वीयाताम् मन्वीरन्
चिक्राय/चिक्रय चिक्रियिव चिक्रियिम प० मनुताम् मन्वाताम् मन्वताम्
आ० क्रीयात् क्रीयास्ताम् क्रीयासुः ह्य० अमनुत अमन्वाताम् अमन्वत
क्रीयाः क्रीयास्तम्
क्रीयास्त अ० अमत/अमनिष्ट अमनिषाताम् अमनिषत
क्रीयासम् क्रीयास्व क्रीयास्म प० मेने
मेनाते मेनिरे श्व० क्रेता क्रेतारौ
क्रेतारः आ० मनिषीष्ट मनिषीयास्ताम् मनिषीरन्
क्रेतासि क्रेतास्थ: क्रेतास्थ श्व० मनिता मनितारौ मनितारः
क्रेतास्मि क्रेतास्वः
क्रेतास्मः भ० मनिष्यते मनिष्येते मनिष्यन्ते
भ० क्रेष्यति क्रेष्यतः क्रेष्यन्ति क्रि० अमनिष्यत अमनिष्येताम् अमनिष्यन्त
क्रेष्यसि ऋष्यथ:
ऋष्यथ ॥इति आत्मनेपदिनौ॥
ऋष्यामि
ऋष्यामः ॥तनादिगणः सम्पूर्णः॥
क्रि० अक्रेष्यत्
अक्रेष्यताम्
अक्रेष्यन् अक्रेष्यः अक्रेष्यतम् अक्रेष्यत अक्रेष्यम् अऋष्याव अक्रेष्याम
ऋष्याव:
Page #441
--------------------------------------------------------------------------
________________
424
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
सिनन्तु
क्रीणताम्
सीयासुः
सात
व० क्रीणीते क्रीणाते
क्रीणते
व० सिनाति सिनीतः सिनन्ति क्रीणीषे क्रीणाथे क्रीणीध्वे स० सिनीयात् सिनीयाताम् - सिनीयुः क्रीणे
क्रीणीवहे क्रीणीमहे प० सिनातु/सिनीतात् सिनीताम् । स० क्रीणीत क्रीणीयाताम् क्रीणीरन् ह्य० असिनात् असिनीताम् असिनन्
क्रीणीथाः क्रीणीयाथाम् क्रीणीध्वम् अ० असैषीत् असैष्टाम् असैषुः क्रीणीय क्रीणीवहि क्रीणीमहि
प० सिषाय सिष्यतुः सिष्युः प० क्रीणीताम् क्रीणाताम्
आ० सीयात् सीयास्ताम् क्रीणीष्व क्रीणाथाम् क्रीणीध्वम् श्व० सेता
सेतारौ
सेतारः क्रीणै क्रीणावहै क्रीणामहै
भ० सेष्यति सेष्यतः सेष्यन्ति ह्य० अक्रीणीत अक्रीणाताम् अक्रीणत क्रि० असेष्यत्
असेष्यताम्
असेष्यन् अक्रीणीथाः अक्रीणाथाम् अक्रीणीध्वम् व० सिनीते सिनाते सिनते
अक्रीणि अक्रीणीवहि अक्रीणीमहि स० सिनीत सिनीयाताम् सिनीरन् अ० अक्रेष्ट अवेषाताम् अक्रेषत्
प० सिनीताम् सिनाताम् सिनताम अक्रेष्ठाः अकेषाथाम अक्रेध्वम्/अक्रेडूवम् ह्य० असिनीत असिनाताम् असिनत
अक्रेषि अक्रेष्वहि अक्रेष्महि अ० असेष्ट असेषाताम् असेषत् प० चिक्रिये चिक्रियाते चिक्रियिरे प० सिष्ये सिष्याते सिष्यिरे
चिक्रियिषे चिक्रियाथे चिक्रियिध्वे/चिक्रियिदवे | आ० सेषीष्ट सेषीयास्ताम् चिक्रिये चिक्रियिवहे चिक्रियिमहे श्व० सेता
सेतारौ
सेतारः आ० ऋषीष्ट क्रेषीयास्ताम् ऋषीरन्
भ० सेष्यते सेष्येते
सेष्यन्ते ऋषीष्ठा: ऋषीयास्थाम् ऋषीध्वम्
क्रि० असेष्यत असेष्येताम् असेष्यन्त ऋषीय ऋषीवहि ऋषीमहि
अथेदन्तास्त्रयोऽनिटश्च। श्व० क्रेता क्रेतारौ क्रेतारः
१५१०. प्रींगूश् (प्री) तृप्तिकान्त्योः । क्रेतासाथे क्रेताध्वे
कान्तिरभिलापः। ३ क्रेताहे क्रेतास्वहे क्रेतास्मिहे
व० प्रीणाति प्रीणीतः प्रीणन्ति भ० क्रेष्यते क्रेष्येते क्रेष्यन्ते
स० प्रीणीयात् प्रीणीयाताम् प्रीणीयुः ऋष्यसे ऋष्येथे ऋष्यध्वे
प० प्रीणातु/प्रीणीतात् प्रीणीताम्
प्रीणन्तु ऋष्ये ऋष्यावहे ऋष्यामहे ह्य० अप्रीणात् अप्रीणीताम्
अप्रीणन् क्रि० अक्रेष्यत अक्रेष्येताम् अक्रेष्यन्त
अ० अप्रैषीत् अप्रैष्टाम् अक्रष्यथाः अक्रेष्येथाम् अक्रेष्यध्वम्
प० पिप्राय पिप्रियतुः अक्रेष्ये अक्रेष्यावहि अक्रेष्यामहि
आ० प्रीयात् प्रीयास्ताम् अथेदन्तोऽनिट् च।
श्व० प्रेता प्रेतारौ प्रेतारः १५०९. पिंग्श् (सि) बन्धने। २
भ० प्रेष्यति प्रेष्यतः प्रेष्यन्ति
सेषीरन्
क्रेतासे
अप्रैषुः पिप्रियुः प्रीयासुः
Page #442
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रयादिगण
प्रि० अप्रेष्यत् व० प्रीणीते
स० प्रीणीत
प० प्रीणीताम्
० अप्रीणीत
अ० अप्रेष्ट
प० पिप्रिये
आ० प्रेषीष्ट
श्व० प्रेता
भ० प्रेष्यते
क्रि० अप्रेष्यत
व० श्रीणाति
आ० श्रीयात्
श्व० श्रुता
भ० श्रेष्यति
क्रि० अश्रेष्यत् व० श्रीणीते
स० श्रीणीत
प० श्रीणीताम्
ह्य० अश्रीणीत
अ० अश्रेष्ट
प० शिश्रिये
आ० श्रेषीष्ट
श्व० ता
भ० श्रेष्यते
क्रि० अश्रेष्यत
अप्रेष्यताम्
प्रीणाते
प्रीणीयाताम्
प्रीणाताम्
प्रीणाताम्
अप्रेषाताम्
पिप्रियाते
प्रेषीयास्ताम्
प्रेतारौ
प्रेष्येते
अप्रेष्येताम्
१५११. श्रीगूश् (श्री) पाके । ४
श्रीणीतः
० श्रीणीयात्
श्रीणीयाताम्
प० श्रीणातु / श्रीणीतात् श्रीणीताम्
श्री
श्री
अ अत्रैषीत् अष्टम्
प० शिश्राय
शिश्रियतुः
श्रीयास्ताम्
श्रेतारौ
श्रेष्यतः
अश्रेष्यताम्
श्रीणाते
श्रीणीयाताम्
श्रीणाताम्
श्रीणाताम्
श्रेष
शिश्रियाते
अप्रेष्यन्
प्रीणते
श्रेषीयास्ताम्
श्रेतारौ
श्रेष्येते
अश्रेष्येताम्
प्रीणीरन्
प्रीणताम
अप्रीणत
अप्रेषत्
पिप्रियिरे
प्रेषीरण्
प्रेतारः
प्रेष्यन्ते
अप्रेष्यन्त
श्रीणन्ति
श्रीणीयुः
श्रीणन्तु
अश्रीणन्
अश्रैषुः
शिश्रियुः
श्रीयासुः
श्रेतारः
श्रेष्यन्ति
अश्रेष्यन्
श्रीणते
श्रीणीरन्
श्रीणताम
अश्रीणत
अषत्
शिश्रियिरे
श्रेषीरन्
श्रेतारः
श्रेष्यन्ते
अश्रेष्यन्त
१५१२. मींग्श् (मी) हिंसायाम् । ५
मीनन्ति
मीनीयुः
मीनन्तु
व० मीनाति
मीनीतः
स० मीनीयात्
मीनीयाताम्
प० मीनातु/मीनीतात् मीनीताम्
ह्य० अमीनात्
अमीनीताम्
अमासिष्टाम्
अ० अमात्
प० ममौ
आ० मीयात्
श्व० माता
भ० मास्यति
क्रि० अमास्यत्
व० मीनीते
स० मीनीत
प० मीनीताम्
० अमीनीत
अ० अमास्त
प० मिम्ये
आ० मासीष्ट
श्व० माता
भ० मास्यते
क्रि० अमास्यत
व० युनाति
सनीयात्
प० युनातु / युनीतात्
ह्य० अयुनात्
अ० अौषत्
प० युयाव
आ० यूयात्
श्व० योता
भ० योष्यति
मिम्यतुः
मीयास्ताम्
मातारौ
मास्यतः
अमास्यताम्
मीनाते
मीनीयाताम्
मीनाताम्
अमीनाताम्
अमासाताम्
मिम्याते
मासीयास्ताम्
मातारौ
मास्येते
युनीतः
युनीयाताम्
युनीताम्
अयुनीताम्
अष्टाम्
अमीनन्
अमासिषुः
मिम्युः
मीयासुः
युयुवतुः
यूयास्ताम्
योतारौ
योष्यतः
मातार:
मास्यन्ति
अमास्यन्
मीनते
मीनीरन्
मीनताम
अमीनत
अमास्येताम् अथोदन्तावनि च ।
१५१३. युंग्श् (यु) बन्धने ।
अमासत
मिम्यिरे
मासीरन्
मातार:
मास्यन्ते
अमास्यन्त
युनन्ति
युनीयुः
युनन्तु
अयुणन्
अयौषुः
युयुवुः
यूयासुः
योतारः
योष्यन्ति
425
Page #443
--------------------------------------------------------------------------
________________
426
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
युनाते
युनते
अयोषत्
युयुविरे
योषीरन्
क्नूमासि
स्कुनन्ति
क्रि० अयोष्यत् अयोष्यताम् अयोष्यन्
स्कुनुताम् स्कुन्वाताम् स्कुन्वताम् व० युनीते
ह्य० अस्कुनीत अस्कुनाताम् अस्कुनत स० युनीत युनीयाताम् युनीरन् ____ अस्कुनुत अस्कुन्वाताम् अस्कुन्वत प० युनीताम् युनाताम् युनताम
अ० अस्कोष्ट अस्कोषाताम् अस्कोषत् ह्य० अयुनीत अयुनाताम् अयुनत प० चुस्कुवे चुस्कुवाते चुस्कुविरे अ० अयोष्ट अयोषाताम्
आ० स्कोषीष्ट स्कोषीयास्ताम् स्कोषीरन् प० युयुवे युयुवाते
श्व० स्कोता स्कोतारौ स्कोतारः आ० योषीष्ट योषीयास्ताम्
भ० स्कोष्यते स्कोष्येते स्कोष्यन्ते श्व० योता योतारौ योतारः
क्रि० अस्कोष्यत अस्कोष्येताम् अस्कोष्यन्त भ० योष्यते योष्येते योष्यन्ते
अथोदन्तौ सेटौ च। क्रि० अयोष्यत अयोष्येताम् अयोष्यन्त
१५१५. नूग्श् (क्नु) शब्द। ८ १५१४. स्कुंग्श् (स्कु) आप्रवणे।
व० क्नूनाति क्नूनीतः क्नूनन्ति आप्रवणमुद्धरणतम्। ७
क्नूनीथः क्नूनीथ व० स्कुनाति स्कुनीतः
क्नूनामि क्नूनीवः क्नूनीमः स्कुनोति स्कुनुतः स्कुन्वन्ति, इत्यादि | स० क्नूनीयात् । क्नूनीयाताम् क्नूनीयुः स० स्कुनीयात् स्कुनीयाताम् स्कुनीयुः
क्नूनीयाः क्नूनीयातम् क्नूनीयात स्कुनुयात् स्कुनुयाताम् स्कुनुयुः, इत्यादि। नूनीयाम् नूनीयाव क्नूनीयाम प० स्कुनातु/स्कुनीतात् स्कुनीताम् स्कुनन्तु
प० क्नूनातु/क्नूनीतात् क्नूनीताम् क्नूनन्तु स्कुनोतु स्कुनुतात् स्कुनुताम्, इत्यादि । क्नूनीहि/क्नूनीतात् क्नूनीतम् | क्नूनीत ह्य० अस्कुनात् अस्कुनीताम् अस्कुनन्
क्नूनाव
क्नूनाम अस्कुनोत् अस्कुनुताम् अस्कुन्वन, इ०
तथा अ० अस्कौषीत् अस्कौष्टाम् अस्कौषुः
क्नूनोतु क्नूनुतात्
क्नूनुताम्, इत्यादि प० चुस्काव चुस्कुवतुः चुस्कुवुः
ह्य० अक्तूनात् अक्नूनीताम् अनून् आ० स्कूयात् स्कूयास्ताम् स्कूयासुः
अक्तूनाः अक्नूनीतम् अक्नूनीत श्व० स्कोता स्कोतारौ स्कोतारः
अक्सूनाम् अक्नूनीव अक्नूनीम भ० स्कोष्यति स्कोष्यतः स्कोष्यन्ति
अ० अक्नावीत् अक्नाविष्टाम् अक्नाविषुः क्रि० अस्कोष्यत् अस्कोष्यताम् अस्कोष्यन्
अक्नावी: अक्नाविष्टम् अक्नाविष्ट व० स्कुनीते
स्कुनते
अक्नाविषम् अक्नाविष्व अक्नाविष्म स्कुनुते
स्कुन्वते
प० चुक्नाव चुक्नुवतुः चुक्नवुः स० स्कुनीत स्कुनीयाताम् स्कुनीरन्
चुक्नुवथुः चुक्नुव स्कुन्वीयाताम् स्कुन्वीरन्
चुक्नाव/चुक्नव चुक्नुविव
चुक्नुविम प० स्कुनीताम् स्कुनाताम् स्कुनताम्
आ० क्नूयात् क्नूयास्ताम् क्नूयासुः
क्नूनानि
स्कुनाते स्कुन्वाते
चुक्नविथ
स्कुन्वीत
Page #444
--------------------------------------------------------------------------
________________
47
क्रयादिगण
क्नूयाः
क्नूयासम् श्व० क्नविता
क्नवितासि
क्नवितास्मि भ० क्नविष्यति
क्नविष्यसि
क्नविष्यामि क्रि० अक्नविष्यत्
अक्नविष्यः
अक्नविष्यम् व० क्नूनीते
क्नूनते
क्नूनीषे
क्नूनाथे क्नूनीवहे
क्नूनीमहे
क्मूने स० क्नूनीत
क्नूनीथाः
क्नूनीय प० नूनीताम्
क्नूनीष्व
क्नून ह्य० अक्नूनीत
अक्नूनीथाः
अनूनि अ० अक्मविष्ट
अक्नविष्ठाः
क्नूयास्तम् क्नूयास्त
क्नविषीय क्नविषीवहि क्नविषीमहि क्नूयास्व क्नूयास्म श्व० नविता क्नवितारौ क्नवितार: क्नवितारौ क्नवितारः
क्नवितासे क्नवितासाथे क्नविताध्वे क्नवितास्थ: क्नवितास्थ
क्नविताहे क्नवितास्वहे क्नवितास्मिहे क्नवितास्व: क्नवितास्मः भ० क्नविष्यते क्नविष्येते क्नविष्यन्ते क्नविष्यतः क्नविष्यन्ति
क्नविष्यसे क्नविष्येथे क्नविष्यध्वे क्नविष्यथ: क्नविष्यथ
क्नविष्ये क्नविष्यावहे क्नविष्यामहे क्नविष्याव: क्नविष्यामः क्रि० अक्नविष्यत अक्मविष्येताम् अक्नविष्यत अक्नविष्यताम् अक्नविष्यन्
अक्नविष्यथाः अक्मविष्येथाम् अक्नविष्यध्वम् अक्नविष्यतम् अक्नविष्यत
अक्नविष्ये अक्नविष्यावहि अक्नविष्यामहि अक्नविष्याव अक्नविष्याम
१५१६. दूंगश् (दू) हिंसायाम्। ९ क्नूनाते
व० दूणाति दूणीत: दूणन्ति क्नूनीध्वे
स० दूणीयात् दूणीयाताम् दूणीयुः
प० दूणातु/दूणीतात् दूणीताम् दूणन्तु क्नूनीयाताम् क्नूनीरन्
ह्य० अदूणात् अदूणीताम् अदूणन् क्नूनीयाथाम् क्नूनीध्वम्
अ० अद्रावीत् अद्राविष्टाम् अद्राविषुः क्नूनीवहि क्नूनीमहि
प० द्राव दुद्रुवतुः क्नूनाताम् क्नूनताम्
आ० दूयात् दूयास्ताम् दूयासुः नाथाम् क्नूनीध्वम्
श्व० द्रविता द्रवितारौ द्रवितार: क्नूनावहै क्नूनामहै
भ० द्रविष्यति द्रविष्यतः द्रविष्यन्ति अक्नूनाताम् अक्नूनत
क्रि० अद्रविष्यत् अद्रविष्यताम् अद्रविष्यन् अक्नूनाथाम् अक्नूनीध्वम् अक्नूनीवहि अक्नूनीमहि
दूणते व० दूणीते अक्नविषाताम् अक्नविषत्
स० दूणीत दूणीयाताम् दूणीरन् अक्नविषाताम् अक्नविध्वम्/ | प० दूणीताम् दूणाताम्
दूणताम अक्नविडवम्/वम् । ह्य० अदूणीत अदूणाताम्
अदूणत अक्नविष्वहि अक्नविष्महि अ० अद्रविष्ट अद्रविषाताम् अद्रविषत् चुक्नुवाते प० दुदुवे
दुदुविरे चुक्नुवाथे चुक्नुविढ्वे विध्वे
आ० द्रविषीष्ट द्रविषीयास्ताम् द्रविषीरन् चुक्नुविवहे चुक्नुविमहे
श्व० द्रविता
द्रवितारौ
द्रवितार: क्मविषीयास्ताम् नविषीरन्
भ० द्रविष्यते द्रविष्येते द्रविष्यन्ते क्नविषीयास्थाम् क्मविषीध्वम्
क्रि० अद्रविष्यत अद्रविष्येताम् अद्रविष्यन्त
दूणाते
चुक्मुविरे
दुदुवाते
अक्नविषि प० चुक्नुवे
चुक्नुविषे
चुक्नुवे आ० क्नविषीष्ट
क्नविषीष्ठाः
Page #445
--------------------------------------------------------------------------
________________
428
व० गृह्णाति
गृह्णासि
गृह्णामि
स गृह्णीयात्
गृह्णीया:
गृह्णीयाम्
प० गृह्णातु / गृह्णीतात्
गृह्णीयाताम्
गृह्णीयातम्
गृह्णीयाव
गृह्णीताम्
गृह्णीहि/गृह्णीतात् गृह्णीतम्
गृह्णाव
अगृह्णीताम्
अगृह्णीतम्
अगृह्णीव
अग्र
गृह्णानि
ह्य० अगृह्णात्
अगृह्णाः
अथ हान्तः सेट् च ।
१५१७. ग्रहीश् (ग्रह) उपादाने ।
उपादानं स्वीकारः ।
गृह्णीत:
गृह्णीथ:
गृह्णीव:
अगृह्णाम्
अ० अग्रहीत्
अग्रही:
अग्रहीषम्
प० जग्राह
जग्रहिथ
जग्राह / जग्रह
आ० गृह्यात्
गृह्याः
गृह्यासम्
श्व० ग्रहीता
ग्रहीतासि
ग्रहीतास्मि
भ० ग्रहीष्यति
ग्रहीष्यसि
ग्रहीष्यामि
क्रि० अग्रहीष्यत् अग्रहीष्यः
अग्रहीष्टम्
अग्रहीष्व
जगृहतुः
जगृहथुः
जगृहिव
गृह्यास्ताम्
गृह्यास्तम्
गृह्यास्व
ग्रहीतारौ
ग्रहीतास्थः
ग्रहीतास्वः
ग्रहीष्यतः
ग्रहीष्यथः
ग्रहीष्यावः
अग्रहीष्यताम्
अग्रहीष्यतम्
गृह्णन्ति
गृह्णीथ
गृह्णीम:
गृह्णीयुः
गृह्णीयात
गृह्णीयाम
गृह्णन्तु
गृह्णीत
गृह्णाम
अगृह्णन्
अगृह्णीत
अगृह्णीम
अग्रहीषुः
अग्रहीष्ट
अग्रहीष्म
जगृहु:
जगृह
जगृहि
गृह्यासुः
गृह्यास्त
गृह्यास्म
ग्रहीतारः
ग्रहीतास्थ
ग्रहीतास्मः
ग्रहीष्यन्ति
ग्रहीष्यथ
ग्रहीष्यामः
अग्रहीष्यन्
अग्रहीष्यत
अग्रहीष्यम्
व० गृह्णी
गृह्णीषे
गृह्ण
स गृह्णीत
गृह्णीथा:
गृह्णीय
प० गृह्णीताम्
गृह्णीष्व
गृह्ण
ह्य० अगृह्णीत
अगृह्णीथा:
अगृह्ण
अ० अग्रहीष्ट
अग्रहीष्ठाः
अग्रहीषि
प० जगृहे
गृहि
गृहे
आ० ग्रहीषीष्ट
ग्रहीषीष्ठाः
ग्रहीषीय
श्व० ग्रहीता
ग्रहीतासे
ग्रहीताहे
भ० ग्रहीष्यते
ग्रहीष्यसे
ग्रहीष्ये
क्रि० अग्रहीष्यत
अग्रहीष्यथाः
अग्रहीष्ये
अग्रहीष्याव
गृह्णाते
गृह्णाथे
गृह्णी
गृह्णीयाताम्
गृह्णीयाथाम्
गृह्णीवहि
गृह्णाताम्
गृह्णाथाम्
गृह्णाव
गृह्णताम्
गृह्णीध्वम्
गृह्णाम
अगृह्णत
अगृह्णीध्वम्
अगृह्ण
अग्रहीषाताम्
अग्रहीषत्
अग्रहीषाथाम् अग्रहीध्वम्/अग्रहीड्डूवम्
अग्रहीष्वहि
अग्रहीष्महि
अगृह्णाताम्
अगृह्णाथाम्
अगृह्णी
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अग्रहीष्याम
गृह्णते
गृह्णीध्वे
गृह्णी
गृह्णीरन्
गृह्णीध्वम्
गृह्णीमहि
गृह
गृह
गृहि
जगृहिरे
जगृहिवे / वे
गृहम
ग्रहीयास्ताम् ग्रहीषीरन्
ग्रहीयास्थाम्
ग्रहीषीध्वम्
ग्रहीषीवहि
ग्रहीषीमहि
ग्रहीतारौ
ग्रहीतासाथे
ग्रहीतास्वहे
ग्रहीष्येते
ग्रहीष्येथे
ग्रहीष्यावहे
ग्रहीतार:
ग्रहीताध्वे
ग्रहीतास्मिहे
ग्रहीष्यन्ते
ग्रहीष्यध्वे
ग्रहीष्यामहे
ग्रहीयेताम्
अग्रहीष्यन्त
अग्रहीष्येथाम्
अग्रहीष्यध्वम्
अग्रहीष्यावहि अग्रहीष्यामहि
अथ ऋयाद्यन्तर्गणः प्वादिः "प्वादेर्हस्व इति र्हस्वप्रयोजन:
प्रदर्श्यते ।
Page #446
--------------------------------------------------------------------------
________________
ऋयादिगण
पुनाते
पुनते
पुनीषे
पुनीमहे
पुनासि
पुनामहै
पुनीत
पुनाव
अपुनाः
तत्रोदन्तास्त्रय सेटच। १५१८. पूग्श् (पू) पवने। पवनं शुद्धिः । व० पुनाति पुनीतः
पुनन्ति पुनीथ: पुनीथ पुनामि पुनीवः पुनीमः स० पुनीयात् पुनीयाताम् पुनीयुः
पुनीयाः पुनीयातम् पुनीयात
पुनीयाम् पुनीयाव पुनीयाम प० पुनातु/पुनीतात् पुनीताम् पुनन्तु
पुनीहि/पुनीतात् पुनीतम् पुनानि
पुनाम ह्य० अपुनात् अपुनीताम् अपुनन्
अपुनीतम् अपुनीत अपुनाम् अपुनीव अपुनीम अ० अपावीत् अपाविष्टाम् अपाविषुः
अपावी: अपाविष्टम् अपाविष्ट
अपाविषम् अपाविष्व अपाविष्म प० पुपाव
पुपुवतुः पुपुवु: पुपविथ पुपुवथुः पुपुव
पुपाव/पुपव पुपुविव पुपुविम आ० पूयात् पूयास्ताम् पूयासुः पूयाः
पूयास्तम् पूयास्त पूयासम् पूयास्व
पूयास्म ० पविता पवितारौ पवितार:
पवितासि पवितास्थः पवितास्थ
पवितास्मि पवितास्वः पवितास्मः भ० पविष्यति पविष्यतः पविष्यन्ति
पविष्यसि पविष्यथ: पविष्यथ
पविष्यामि पविष्यावः पविष्यामः क्रि० अपविष्यत् अपविष्यताम् अपविष्यन्
अपविष्यः अपविष्यतम् अपविष्यत अपविष्यम् अपविष्याव अपविष्याम
| व० पुनीते
पुनाथे पुनीध्वे
पुनीवहे स० पुनीत पुनीयाताम् पुनीरन्
पुनीथाः पनीयाथाम् पुनीध्वम्
पुनीय पुनीवहि पुनीमहि प० पुनीताम् पुनाताम् पुनताम्
पुनीष्व पुनाथाम् पुनीध्वम् पुनै
पुनावहै ह्य० अपुनीत अपुनाताम् अपुनत
अपुनीथाः अपुनाथाम् अपुनीध्वम्
अपुनि अपुनीवहि अपुनीमहि अ० अपविष्ट अपविषाताम् अपविषत्
अपविष्ठाः अपविषाथाम् अपविध्वम्/अपविढ्वम्
अपविषि अपविष्वहि अपविष्महि प० पुपुवे
पुपुविढ्वे/विध्वे पुपुविवहे पुपुविमहे आ० पविषीष्ट पविषीयास्ताम् पविषीरन्
पविषीष्ठाः पविषीयास्थाम पविषीध्वम/पविषीदवम्
पविषीय पविषीवहि पविषीमहि श्व० पविता पवितारौ पवितारः
पवितासे पवितासाथे पविताध्वे
पविताहे पवितास्वहे पवितास्मिहे भ० पविष्यते पविष्येते पविष्यन्ते
पविष्यसे पविष्येथे पविष्यध्वे
पविष्ये पविष्यावहे पविष्यामहे क्रि० अपविष्यत अपविष्येताम् अपविष्यन्त
अपविष्यथाः अपविष्येथाम् अपविष्यध्वम्
अपविष्ये अपविष्यावहि अपविष्यामहि अथ प्वाद्यन्तर्गगोः ल्वादिः। ऋ ल्वादेरिति नत्वार्थः प्रदर्श्यते।
पुपुवाते
पुपुविरे
पुपुवाथे
पुपुविषे पुपुवे
Page #447
--------------------------------------------------------------------------
________________
430
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
लुनाथे
लुनीषे लुने
लुनीथ
लुनासि लुनामि
लुनीष्व
लुनन्तु
लुनै
लुनावहै
लुनाम
अलुनि
१५१९. लूग्श् (लू) छेदने। १२ व० लुनाति लुनीतः लुनन्ति
लुनीथः
लुनीवः लुनीमः स० लुनीयात् लुनीयाताम् लुनीयुः
लुनीयाः लुनीयातम् लुनीयात
लुनीयाम् लुनीयाव लुनीयाम प० लुनातु/लुनीतात् लुनीताम् लुनीहि/लुनीतात् लुनीतम्
लुनीत लुनानि
लुनाव ह्य० अलुनात् अलुनीताम् अलुनन्
अलुनाः अलुनीतम् अलुनीत
अलुनाम् अलुनीव अलुनीम अ० अलावीत् अलाविष्टाम् अलाविषुः
अलावी: अलाविष्टम् अलाविष्ट
अलाविषम् अलाविष्व अलाविष्म प० लुलाव लुलुवतुः लुलुवुः
लुलविथ लुलुवथुः लुलुव
लुलाव/लुलव लुलुविव लुलुविम आ० लूयात्
लूयास्ताम् लूयासुः लूयाः
लूयास्तम् लूयास्त लूयासम् लूयास्व लूयास्म श्व० लविता लवितारौ लवितारः
लवितासि लवितास्थः लवितास्थ
लवितास्मि लवितास्वः लवितास्मः भ० लविष्यति लविष्यतः लविष्यन्ति
लविष्यलु लविष्यथ: लविष्यथ
लविष्यामि लविष्याव: लविष्यामः क्रि० अलविष्यत् अलविष्यताम् अलविष्यन्
अलविष्यः अलविष्यतम् अलविष्यत
अलविष्यम् अलविष्याव अलविष्याम व० लुनीते लुनाते
111111111111111111
लुनीध्वे
लुनीवहे लुनीमहे स० लुनीत लुनीयाताम् लुनीरन्
लुनीथाः लुनीयाथाम् लुनीध्वम्
लुनीय लुनीवहि लुनीमहि प० लुनीताम् लुनाताम् लुनताम्
लुनाथाम् लुनीध्वम्
लुनामहै ह्य० अलुनीत अलुनाताम् अलुनत अलुनीथाः अलुनाथाम् अलुनीध्वम्
अलुनीवहि अलुनीमहि अ० अलविष्ट अलविषाताम् अलविषत् अलविष्ठाः अलविषाथाम् अलविध्वम्/
अलविड्डवम्/अलिविढ्वम् अलविषि
अलविष्वहि अलविष्महि प० लुलुवे लुलुवाते लुलुविरे
लुलुविषे लुलुवाथे लुलुविढ्वे/विध्वे
लुलुवे लुलुविवहे आ० लविषीष्ट लविषीयास्ताम् लविषीरन्
लविषीष्ठाः लविषीयास्थाम् लविषीध्वम
लविषीय लविषीवहि लविषीमहि श्व० लविता लवितारौ लवितार:
लवितासे लवितासाथे लविताध्ये
लविताहे लवितास्वहे लवितास्मिहे भ० लविष्यते लविष्येते लविष्यन्ते
लविष्यसे लविष्येथे लविष्यध्वे
लविष्ये लविष्यावहे लविष्यामहे क्रि० अलविष्यत अलविष्येताम् अलविष्यन्त
अलविष्यथाः अलविष्येथाम् अलविष्यध्वम् अलविष्ये अलविष्यावहि अलविष्यामहि
१५२०. धूगूशू (धू) कम्पने। १३ | व० धुनाति धुनीतः धुनन्ति
लुलुविमहे
लुनते
Page #448
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रयादिगण
धुनासि
धुनामि
स० धुनीयात्
धुनीयाः
धुनीयाम्
प० धुनातु / धुनीतात्
धुनीहि / धुनीतात्
धुनानि
ह्य० अधुनात्
अधुनाः
अधुनाम्
अ० अधावीत्
अधावी:
अधाविषम्
प० दुधाव दुधवि
दुधाव / दुधव
आ० धूयात्
धूया:
धूयासम्
श्व० धविता
धुनीथः
धुनीव:
अधविष्यम्
अधोष्यत
धुनीयाताम्
धुनीयातम्
धुनीयाव
धुनीताम्
धुनीतम्
धुनाव
अधुनीताम्
अधुनीतम्
अधुनीव
धवितासि
धवितास्मि
धोता
भ० धविष्यति
धविष्यसि
धविष्यामि धविष्यावः
धोष्यति
धोष्यतः
क्रि० अधविष्यत्
दुधुवतुः
दुधुवथुः
दुधुविव
धूयास्ताम्
धूयास्तम्
धूयास्व
धवितारौ
धवितास्थः
धवितास्वः
धोतारौ
धविष्यतः
धविष्यथः
धुनीथ
धुनीमः
धुनीयुः
धुनीयात
धुनीयाम
अधाविष्टाम् अधाविषुः
अधाविष्टम्
अधाविष्ट
अधाविष्व
अधाविष्म
धुनन्तु
धुनीत
धुनाम
अधुनन्
अधुनीत
अधुनीम
दुधुवुः
दुधुव
दुधुविम
धूयासुः
धूयास्त
धविष्यामः
धोष्यन्ति इत्यादि ।
अधविष्यताम्
अधविष्यन्
अधविष्य: अधविष्यतम् अधविष्यत
अधविष्याव
अधविष्याम
अधोष्यताम्
अधोष्यन्, इत्यादि
धूयास्म
धवितारः
धवितास्थ
धवितास्मः
धोतारः, इत्यादि ।
धविष्यन्ति
धविष्यथ
व० धुनीते
धुनीषे
धुने
स० धुनीत
धुनीथा:
धुनीय
प० धुनीताम्
धुनीष्व
धुनै
० अधुनीत
अधुनीथा:
अधुनि
अ० अधविष्ट
अधविष्ठाः
अधविषि
अधोष्ट
दुधु
दुधुविषे
दु
आ० धविषीष्ट
धविषीष्ठाः
धविषीय
धोषीष्ट
श्व० धविता
धवितासे
धविताहे
धोता
भ० धविष्यते
धुनाते
धुनाथे
धुनीवहे
धुनीयाताम्
धुनीयाथाम्
धुनी वहि
धुनाताम्
धुनाथाम्
धुनाव है
धुनताम्
धुनीध्वम्
धुनाम है
अधुनाताम्
अधुनत
अधुनाथाम्
अधुनीध्वम्
अधुनीवहि
अधुनीमहि
अधविषाताम्
अधविषत्
अधविषाथाम् अधविध्वम् /
अधविडूवम्/दवम् अधविष्महि
अधविष्वहि
तथा
अधोषाताम्
दुधुवा
दुधुवाथे
दुधुविवहे
धविषीयास्ताम्
धविषीयास्थाम्
धविषीवहि
तथा
धोषीयास्ताम्
धवितारौ
धवितासाथे
धवितास्वहे
तथा
धुनते
धुनीवे
धुनीमहे
धुनीरन्
धुनीध्वम्
धुनीमहि
धोतारौ
धविष्येते
431
अधोषत, इत्यादि ।
दुधुविरे
दुधुविदवे / विध्वे
दुधुविमहे
धविषीरन् धविषीध्वम्/ढ्वम्
धविषीमहि
धीषीरन्, इत्यादि ।
धवितारः
धविताध्वे
धवितास्मिहे
धोतारः, इत्यादि ।
धविष्यन्ते
Page #449
--------------------------------------------------------------------------
________________
432
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
स्तृणे
स्तरितारौ स्तरितारः स्तरितास्थ: स्तरितास्थ स्तरितास्वः स्तरितास्मः स्तरिष्यतः स्तरिष्यन्ति स्तरिष्यथ: स्तरिष्यथ स्तरिष्याव: स्तरिष्यामः अस्तरिष्यताम् अस्तरिष्यन् अस्तरिष्यतम् अस्तरिष्यत अस्तरिष्याव अस्तरिष्याम अस्तरीष्यताम् अस्तरीष्यन्, इ० स्तृणाते स्तृणते स्तृणाथे
स्तृणीध्वे स्तृणीवहे स्तृणीयाताम् स्तृणीरन् स्तृणीयाथाम् स्तृणीध्वम् स्तृणीवहि स्तृणीमहि स्तृणाताम् स्तृणताम् स्तृणाथाम् स्तृणीध्वम् स्तृणावहै
स्तृणामहै अस्तृणाताम् अस्तृणत अस्तृणाथाम् अस्तृणीध्वम् अस्तृणीवहि अस्तृणीमहि अस्तरिषाताम् अस्तरिषत् अस्तरिषाथाम् अस्तरिध्वम्/अस्तरिड्डूवम् अस्तरिष्वहि अस्तरिष्महि
स्तृणीमहे
धविष्यसे धविष्येथे धविष्यध्वे श्व० स्तरिता धविष्ये धविष्यावहे धविष्यामहे
स्तरितासि तथा
स्तरितास्मि धोष्यते धोष्येते
धोष्यन्ते, इत्यादि। - भ० स्तरिष्यति क्रि० अधविष्यत अधविष्येताम् अधविष्यन्त
स्तरिष्यसि अधविष्यथाः अधविष्येथाम् अधविष्यध्वम्
स्तरिष्यामि अधविष्ये अधविष्यावहि अधविष्यामहि क्रि० अस्तरिष्यत् तथा
अस्तरिष्यः अधोष्यत अधोष्येताम अधोष्यन्त, इ०
अस्तरिष्यम् ॥अथ ऋदन्तास्त्रयः सेटच॥
अस्तरीष्यत् १५२१. स्तृग्शू (स्तृ) आच्छादने। १४
व० स्तृणीते व० स्तृणाति स्तृणीत:
स्तृणीषे
स्तृणन्ति स्तृणासि स्तृणीथः स्तृणीथ
स० स्तृणीत स्तृणामि स्तृणीवः स्तृणीमः स० स्तृणीयात् स्तृणीयाताम् स्तृणीयुः
स्तृणीथाः स्तृणीयाः स्तृणीयातम् स्तृणीयात स्तृणीयाम्
प० स्तृणीताम् स्तृणीयाव स्तृणीयाम
स्तृणीष्व प० स्तृणातु/स्तृणीतात् स्तृणीताम् स्तृणन्तु स्तृणीहि/स्तृणीतात स्तृणीतम् स्तृणीत
स्तृणै स्तृणानि स्तृणाव
ह्य० अस्तृणीत स्तृणाम
अस्तृणीथाः ह्य० अस्तृणात् अस्तृणीताम् अस्तृनन्
अस्तृणि अस्तृणाः अस्तृणीतम्
अस्तृणीत
अ० अस्तरिष्ट अस्तृणाम् अस्तृणीव अस्तृणीम अ० अस्तारीत् अस्तारिष्टाम्
अस्तरिष्ठाः अस्तारिषुः
अस्तरिषि अस्तारी: अस्तारिष्टम् अस्तारिष्ट अस्तारिषम् अस्तारिष्व अस्तारिष्म
अस्तरीष्ट प० तस्तार तस्तरतुः
तस्तरुः तस्तरिथ तस्तरथुः
तस्तर
अस्तीष्ट तस्तार/तस्तर तस्तरिव तस्तरिम
प० तस्तरे आ० स्तीर्यात् स्तीर्यास्ताम् स्तीर्यासुः
तस्तरिषे स्तीर्याः स्तीर्यास्तम् स्तीर्यास्त
तस्तरे स्तीर्यासम् स्तीर्यास्व स्तीर्यास्म
स्तृणीय
तथा
अस्तरीषाताम्
अस्तरीषत, इ०
तथा अस्तीर्षाताम् तस्तराते तस्तराथे तस्तरिवहे
अस्तीर्षत, इत्यादि तस्तरिरे तस्तरिध्वे/तस्तरिदवे तस्तरिमहे
Page #450
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रयादिगण
433
कृणाते
आ० स्तरिषीष्ट स्तरिषीयास्ताम् स्तरिषीरन् क्रि० अकरिष्यत् अकरिष्यताम् अकरिष्यन्
स्तरिषीष्ठाः स्तरिषीयास्थाम् स्तरिषीध्वम्/वम् | अकरीष्यत् अकरीष्यताम् अकरीष्यन्, इ० स्तरिषीय स्तरिषीवहि स्तरिषीमहि
व० कृणीते
कृणते तथा
स० कृणीत कृणीयाताम् कृणीरन् स्तीर्षीष्ट स्तीर्षीयास्ताम् स्तीर्षीरन, इत्यादि
प० कृणीताम् कृणाताम् कृणताम् श्व० स्तरिता स्तरितारौ स्तरितारः
ह्य० अकृणीत अकृणाताम् अकृणत स्तरितासे स्तरितासाथे स्तरिताध्वे अ० अकरिष्ट अकरिषाताम्
अकरिषत् स्तरिताहे स्तरितास्वहे स्तरितास्मिहे
अकरीष्ट अकरीषाताम् अकरीषत, इत्यादि तथा
अकीट अकीर्षाताम् अकीर्षत, इत्यादि। स्तरीता स्तरीतारौ स्तरीतारः, इत्यादि प० चकरे चकराते चकतिरे भ० स्तरिष्यते स्तरिष्येते स्तरिष्यन्ते
आ० करिषीष्ट करिषीयास्ताम् करिषीरन् स्तरिष्यसे स्तरिष्येथे स्तरिष्यध्वे
कीर्षीष्ट कीर्षीयास्ताम् कीर्षीरन्, इत्यादि। स्तरिष्ये स्तरिष्यावहे स्तरिष्यामहे श्व० करिता
करितारौ करितारः तथा
करीता करीतारौ करीतारः, इत्यादि। स्तरीष्यते स्तरीष्येते स्तरीष्यन्ते, इ० भ० करिष्यते करिष्येते करिष्यन्ते क्रि० अस्तरिष्यत अस्तरिष्येताम् अस्तरिष्यन्त
करीष्यते
करीष्येते करीष्यन्ते, इत्यादि अस्तरिष्यथाः अस्तरिष्येथाम् अस्तरिष्यध्वम् क्रि० अकरिष्यत अकरिष्येताम् अकरिष्यन्त अस्तरिष्ये अस्तरिष्यावहि अस्तरिष्यामहि अकरीष्यत् अकरीष्येताम् अकरीष्यन्त, इ० तथा
१५२३. वृग्शू (व) वरणे। १६ अस्तरीष्यत् अस्तरीष्येताम् अस्तरीष्यन्त, इ०
| व० वृणाति वृणीतः वृणन्ति १५२२. कृपशू (कृ) हिंसायाम्। १५
स० वृणीयात् वृणीयाताम् वृणीयु: व० कृणाति कृणीतः कृणन्ति
प० वृणातु/वृणीतात् वृणीताम् स० कृणीयात् कृणीयाताम् कृणीयुः
ह्य० अवृणात् अवृणीताम् अवृणन् प० कृणातु/कृणीतात् कृणीताम् कृणन्तु
अ० अवारीत् अवारिष्टाम् अवारिषुः ह्य० अकृणात् अकृणीताम् अकृणन्
प० ववार ववरतुः
ववरु: अ० अकारीत् अकारिष्टाम् अकारिषुः
आ० वूर्यात् वूर्यास्ताम् वूर्यासुः प० चकार
चकरतुः चकरुः
श्व० वरिता वरितारौ वरितारः आ० कीर्यात् कीर्यास्ताम्
वरीता वरीतारौ वरीतारः, इत्यादि। श्व० करिता करितारौ करितारः
भ० वरिष्यति वरिष्यतः वरिष्यन्ति करीता करीतारौ करीतारः, इत्यादि। वरीष्यति
वरीष्यतः वरीष्यन्ति, इत्यादि भ० करिष्यति करिष्यतः करिष्यन्ति
क्रि० अवरिष्यत् अवरिष्यताम् अवरिष्यन् करीष्यति करीष्यतः करीष्यन्ति, इ०
अवरीष्यत् अवरीष्यताम् अवरीष्यन्, इ०
वृणन्तु
सान
कृणा
कीर्यासुः
Page #451
--------------------------------------------------------------------------
________________
434
व० वृणीते
स० वृणीत
प० वृणीताम्
० अवृणीत
अ० अवरिष्ट
अवरीष्ट
अवृष्ट
प० ववरे
आ० वरिषीष्ट
वृर्षीष्ट
श्व० वरिता
वरीता
भ० वरिष्यते
वरीष्यते
क्रि० अवरिष्यत
अवष्यत्
वृणाते
वृणीयाताम्
वृणाताम्
अवृणाताम्
अवरिषाताम्
अवरीषाताम्
अवृर्षाताम्
ववराते
ह्य० अजिनात्
अ० अज्यासीत्
प० जिज्यौ
आ० जीयात्
श्व० ज्याता
भ० ज्यास्यति
क्रि० अज्यास्यत्
वरिषीयास्ताम्
वृर्षीयास्ताम्
वरितारौ
वतारौ
वरिष्येते
वरीष्येते
व० जिनाति
जिनीत:
स० [जिनीयात्
जिनीयाताम्
प० जिनातु/जिनीतात् जिनीताम्
अजिनीताम्
अज्यासिष्टाम्
वृणते
वृणीरन्
वृणताम
अवृणत
अवरिषत्
अवरीषत, इत्यादि
अवृत, इत्यादि ।
ववतिरे
अवरिष्येताम्
अवरीष्येताम् अथ परस्मैपदिष्वादन्तोऽनिट् च ।
१५२४. ज्यांश् (ज्या) हानौ । १७
॥वयोहानावित्येके ।
वरिषीरन्
वृर्षीरन्, इत्यादि ।
वरितारः
वतारः, इत्यादि ।
वरिष्यन्ते
वरीष्यन्ते, इत्यादि
अवरिष्यन्त
अवरीष्यन्त, इ०
जिनन्ति
जिनीयुः
जिनन्तु
अजिणन्
अज्यासिषुः
जिज्यु:
जीयासुः
ज्यातार:
ज्यास्यन्ति
जिज्यतुः
जीयास्ताम्
ज्यातारौ
ज्यास्यतः
अज्यास्यताम् अज्यास्यन् अथेदन्ताश्चत्त्वारोऽनिटश्च ।
१५२५. रीशू (री) गतिरेषणयोः । रेषणं हिंसा । १८
व० रिणाति
रिणीत:
रिणन्ति
स० रिणीयात्
रिणीयाताम्
प० रिणातु/रिणीतात् रिणीताम्
अरिणीताम्
अष्टम्
रिर्यतुः
रीयास्ताम्
रेतारौ
रेष्यतः
ह्य० अरिणात्
अ० अरैषीत्
प० रिराय
ह्य० अलिनात्
अ० अलैषीत्
आ० यात्
श्व० रेता
भ० रेष्यति
अरेष्यताम्
अरेष्यन्
क्रि० अरेष्यत् योsनेकस्वरस्येति यत्वस्य बहिरङ्गत्त्वेन भ्वादेरिति दीर्घमन्तरङ्ग प्रत्यसिद्धत्वात्पूर्वस्य दीर्घाभावे, रिर्यतुः ।
१५२६. लींश् (ली) श्लेषणे । १९
व० लिनाति
लिनीतः
स० लिनीयात्
लिनीयाताम्
प० लिनातु/लिनीतात् लिनीताम्
अलिनीता
अष्टाम्
अलासिष्टाम्
लिल्यतुः
लिल्यिव
अलासीत्
प० लिलाय / ललौ
लौ
आ० लीयात्
श्व० लाता
लेता
भ० लेष्यति
लास्यति
क्रि० अलेष्यत्
अलास्यत्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
रिणीयुः
रिणन्तु
अरिणन्
अरैषुः
व० व्लिनाति
व्लिनीतः
० व्लिनीयात् व्लिनीयाताम्
प० व्लिनातु/व्लिनीतात् व्लिनीताम्
अलिनात्
अलिनीताम्
रिर्युः
रीयासुः
रेतारः
रेष्यन्ति
लिनन्ति
लिनीयुः
लिनन्तु
अलिनन्
अलैषुः
अलासिषुः, इ०
लिल्युः
लिलियम
लीयासुः
लातार:
लेतारः, इत्यादि ।
लेष्यन्ति
लीयास्ताम्
लातारौ
तारौ
लेष्यतः
लास्यतः
अष्यताम्
अलास्यताम्
१५२७. क्लींश् (व्ली) वरणे । २०
लास्यन्ति, इत्यादि
अलेष्यन्
अलास्यन्, इत्यादि
व्लिनन्ति
व्लिनीयुः
व्लिनन्तु
अव्लिनन्
Page #452
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रयादिगण
अ० अव्लषीत्
प० विव्लाय
आ० व्लीयात् श्व० व्लेता
भ० व्लेष्यति
क्रि० अव्लेष्यत्
व० ल्विनाति
विनीतः
स० विनीयात्
विनीयाताम्
प० ल्विनातु/ल्विनीतात् ल्विनीताम्
ह्य० अल्विनात्
अल्विनीताम्
अ० अल्वैषीत्
प० लिल्वाय
आ० ल्वीयात्
श्व० ल्वेता
भ० ल्वेष्यति
क्रि० अल्वेष्यत्
अष्टाम्
विव्लियतुः
व्लीयास्ताम्
व्लेतारौ
व्लेष्यतः
अलेष्यताम्
१५२८. ल्वींश् (ल्वी) गतौ । २१
आ० प्लीयात्
श्व० प्लेता
ह्य० अप्लिनात्
अ० अप्लैषीत्
प० पिप्लाय
व० प्लिनाति
प्लिनीत:
स० प्लिनीयात्
प्लिनीयाताम्
प० प्लिनातु/प्लिनीतात् प्लिनीताम्
अप्लिनीताम्
अप्लैष्टाम्
पिप्लियतुः
० कृणाति
अष्टाम्
लिल्वियतुः
वीयास्ताम्
भ० प्लेष्यति
क्रि० अप्लेष्यत्
ल्वेतारौ
ल्वेष्यतः
अव्लैषुः
विव्लियुः
व्लीयासुः
व्लेतारः
व्लेष्यन्ति
अल्वेष्यताम्
१५२८- २. प्लीश् (प्ली) गतौ ।
श्लेषणे इत्येके पठन्ति ।
अव्लेष्यन्
ल्विनन्ति
विनीयुः
ल्विनन्तु
अल्विनन्
अल्वैषुः
लिल्वियुः
ल्वीयासुः
ल्वेतारः
ल्वेष्यन्ति
अल्वेष्यन्
प्यास्ताम्
प्लेतारौ
प्लेष्यतः
अप्लेष्यताम्
॥ अथ ऋदन्ता एकादश सेट् ||
१५२९. कृश् (कृ) हिंसायाम्। २२
कृणीत
कृणन्ति
प्लिनन्ति
प्लिनीयुः
प्लिनन्तु
अप्लिनन्
अप्लैषुः
पिप्लियुः
प्लीयासुः
प्लेतारः
प्लेष्यन्ति
अप्लेष्यन्
० कृणीयात्
कृणीयाताम्
प० कृणातु / कृणीतात् कृणीताम्
ह्य० अकृणात्
अ० अकारीत्
प० चकार
आ० कीर्यात्
श्व० करिता
करीता
भ० करिष्यति
करीष्यति
क्रि० अकरिष्यत्
अकरीष्यत्
व० मृणाति
० मृणीयात्
प० मृणातु / मृणीतात्
ह्य० अमृणात्
अ० अमात्
प० ममार
आ० मूर्यात्
श्व० मरिता
मरीता
भ० मरिष्यति
मरीष्यति
क्रि० अमरिष्यत्
अमष्यत्
० शृण
० शृणीयात्
प० शृणातु / शृणीतात्
अकृणीतम्
अकारिष्टाम्
ह्य० अशृणात्
अ० अशारीत्
चकरतुः
कीर्यास्ताम्
करतारौ
करीतारौ
करिष्यतः
करीष्यतः
अकरिष्यताम्
अष्यताम्
१५३०. मृश् (म्) हिंसायाम् । २३
मृणीत:
मृणीयाताम्
मृणीताम्
मृणीतम्
अमारिष्टाम्
ममरतुः
मूर्यास्ताम्
मरितारौ
मरीतारौ
मरिष्यतः
मरीष्यतः
कृणीयुः
कृणन्तु
अकृनन्
अकारिषुः
चकरुः
कीर्यासुः
करतारः
शृणीत:
शृणीयाताम्
शृणीताम्
अशृणीताम्
शारिष्टाम्
करतारः, इत्यादि ।
करिष्यन्ति
करीष्यन्ति, इ०
अकरिष्यन्
अकरीष्यन्, इ०
अमरिष्यताम्
अमरीष्यताम्
१५३१. शृश् (श्) हिंसायाम् । २४
मृणन्ति
मृणीयुः
मृणन्तु
अमृणन्
अमारिषुः
ममरुः
मूर्यासुः
मरितारः
435
मतारः, इत्यादि ।
मरिष्यन्ति
मरीष्यन्ति, इत्यादि
अमरिष्यन्
अमरीष्यन्, इ०
शृणन्ति
शृणीयुः
शृणन्तु
अशृणन्
अशारिषुः
Page #453
--------------------------------------------------------------------------
________________
436
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
जान
जर
भृणीयु:
पपरतुः
प० शशार शशरतुः शशरु:
श्व० बरिता बरितारौ बरितारः शशार
शश्रतुः शश्रुः, इत्यादि। बरीता बरीतारौ बरीतारः, इत्यादि। आ० शीर्यात् शीर्यास्ताम् शीर्यासुः भ० बरिष्यति बरिष्यतः बरिष्यन्ति श्व० शरिता शरितारौ शरितारः
बरीष्यति बरीष्यतः बरीष्यन्ति, इत्यादि शरीता शरीतारौ शरीतारः, इत्यादि। क्रि० अबरिष्यत् अबरिष्यताम् अबरिष्यन् भ० शरिष्यति शरिष्यतः शरिष्यन्ति
अबरीष्यत् अबरीष्यताम् अबरीष्यन्, इ० शरीष्यति शरीष्यतः शरीष्यन्ति, इ०
१५३४. भृश् (भ) भर्जने च। क्रि० अशरिष्यत् अशरिष्यताम् अशरिष्यन्
चकाराद्भरणे भर्जनं पाकः। २७ अशरीष्यत् अशरीष्यताम् अशरीष्यन्, इ०
व० भृणाति भृणीतः भृणन्ति १५३२. पृश् (प) पालनपूरणयोः। २५
स० भृणीयात् भृणीयाताम् व० पृणाति पृणीतः पृणन्ति प० भृणातु/भृणीतात् भृणीताम् भृणन्तु स० पृणीयात् पृणीयाताम् पृणीयुः
ह्य० अभृणात् अभृणीताम् अभृणन् प० पृणातु/पृणीतात् पृणीताम् पृणन्तु
अ० अभारीत् अभारिष्टाम् अभारिषुः ह्य० अपृणात् अपृणीताम् अपृणन्
प० बभार
बभरतुः बभरु: अ० अपारीत् अपारिष्टाम्
अपारिषुः
आ० भूर्यात् भूर्यास्ताम् भूर्यासुः प० पपार
पपरुः
श्व० भरिता भरितारौ भरितारः पपार पप्रतुः
पपुः, इत्यादि। भरीता भरीतारौ भरीतारः, इत्यादि। आ० पूर्यात् पूर्यास्ताम् पूर्यासुः
भ० भसिष्यति भरिष्यतः भरिष्यन्ति श्व० परिता परितारौ परितारः
भरीष्यति भरीष्यतः भरीष्यन्ति, इत्यादि परीता परीतारौ परीतारः, इत्यादि। | क्रि० अभरिष्यत . अभरिष्यताम अभरिष्यन भ० परिष्यति परिष्यतः परिष्यन्ति
अभरीष्यत् अभरीष्यताम् अभरीष्यन्, इ० परीष्यति परीष्यतः परीष्यन्ति, इत्यादि
१५३५. दृश् (द) विदारणे। २८ क्रि० अपरिष्यत् अपरिष्यताम् अपरिष्यन्
व० दृणाति . दृणीतः दृणन्ति अपरीष्यत् अपरीष्यताम् अपरीष्यन्, इ०
दृणीयाताम् दृणीयुः १५३३. वृश् (ब) भरणे। वरणे इत्यन्ये। २६
प० दृणातु/दृणीतात् दृणीताम् दृणन्तु व० बृणाति बृणीतः बृणन्ति
ह्य० अदृणात् अदृणीताम् अदृणन् स० बृणीयात् बृणीयाताम् बृणीयुः अ० अदारीत् अदारिष्टाम् अदारिषुः प० बृणातु/बृणीतात् बृणीताम् बृणन्तु
प० ददार
ददरतुः
ददरु: ह्य० अबृणात् अबृणीताम् अबृणन्
ददार
ददुः, इत्यादि। अ० अबारीत् अबारिष्टाम् अबारिषुः
आ० दीर्यात् दीर्यास्ताम् दीर्यासुः प० बबार
बबरुः
श्व० दरिता दरितारौ दरितारः आ० बूर्यात् बूर्यास्ताम् बूर्यासुः
दरीता दरीतारौ दरीतारः, इत्यादि।
दद्रतुः
बबरतुः
Page #454
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रयादिगण
437
गणीत:
जृणन्तु
गरिष्यतः
भ० दरिष्यति दरिष्यतः दरिष्यन्ति
दरीष्यति दरीष्यतः दरीष्यन्ति, इत्यादि क्रि० अदरिष्यत् अदरिष्यताम् अदरिष्यन् अदरीष्यत् अदरीष्यताम् अदरीष्यन्, इ०
१५३६. जश् (ज) वयोहानौ। २९ व० जृणाति जृणीतः ऋणन्ति स० जृणीयात् जृणीयाताम् ऋणीयुः प० तृणातु/जृणीतात् तृणीताम् ह्य० अजृणात् अजृणीताम् अजृणन् अ० अजारीत् अजारिष्टाम् अजारिषुः
अजरत् अजरताम् अजरन्, इत्यादि। प० जजार/जजरतुः जेरतुः
ज्जरु: आ० जीर्यात् जीर्यास्ताम् जीर्यासुः श्व० जरिता जरितारौ जरितारः
जरीता जरीतारौ जरीतारः, इत्यादि। भ० जरिष्यति जरिष्यतः जरिष्यन्ति
जरीष्यति जरीष्यतः जरीष्यन्ति, इत्यादि क्रि० अजरिष्यत् अजरिष्यताम् अजरिष्यन् अजरीष्यत् अजरीष्यताम् अजरीष्यन्, इ०
_१५३७. नृश् (न) नये। ३० व० नृणाति नृणीतः नृणन्ति स० नृणीयात् नृणीयाताम् नृणीयुः प० नृणातु/नृणीतात् नृणीताम् । नृणन्तु ह्य० अनृणात् अनृणीताम् अनृणन् अ० अनारीत् अनारिष्टाम् अनारिषुः प० ननार ननरतुः ननरुः आ० नीर्यात् श्व० नरिता नरितारौ नरितारः
नरीता नरीतारौ नरीतारः, इत्यादि। भ० नरिष्यति
नरिष्यन्ति नरीष्यति नरीष्यतः नरीष्यन्ति, इत्यादि क्रि० अनरिष्यत् अनरिष्यताम् अनरिष्यन्
अनरीष्यत् अनरीष्यताम् अनरीष्यन, इ०
१५३९. गृश् (ग) शब्दे। ३१ व० गृणाति
गृणन्ति स० गृणीयात् गृणीयाताम् गृणीयु: प० गृणातु/गृणीतात् गृणीताम् गृणन्तु ह्य० अगृणात् अगृणीताम् अगृणन् अ० अगारीत् अगारिष्टाम् अगारिषुः प० जगार जगरतुः
जगरुः आ० गीर्यात् गीर्यास्ताम्
गीर्यासुः श्व० गरिता गरितारौ गरितारः
गरीता गरीतारौ गरीतारः, इत्यादि। भ० गरिष्यति
गरिष्यन्ति गरीष्यति गरीष्यतः गरीष्यन्ति, इत्यादि क्रि० अगरिष्यत् अगरिष्यताम् अगरिष्यन् अगरीष्यत् अगरीष्यताम् अगरीष्यन, इ०
१५३९. ऋश् (ऋ) गतौ। ३२ व० ऋणाति ऋणीतः ऋणन्ति स० ऋणीयात् ऋणीयाताम् ऋणीयुः प० ऋणातु/ऋणीतात् ऋणीताम् ऋणन्तु ह्य० आर्णात् आर्णीताम् आर्णन् अ० आरीत् आरिष्टाम् आरिषुः प० आर
आरतुः
आरुः यद्यपि गुरुर्नाम्येति सूत्रवृत्तौ श्रीमद्गिः हेमचन्द्रसूरीश्वरैः, इडस्तु व्यपदेशिवद्भावद्भवति। अयाञ्चक्र इत्यभ्यधायि तदनुसारेणात्रापि अयाचक्रे इत्यादिना भवितव्यम्, तथापि, तैरेव स्वोपज्ञपारायणे आर इत्यादीनि रूपाण्यभिहितानि। तत्रेदं भावयामि एवं विधस्थले व्यपदेशिवदभावो नेष्टः पारायणकृताम्, अत एवायाञ्चक्रे इत्यत्र न्यासकृतोक्तम्, पारायणकृतां व्यपदेशिवभावो नेष्टस्तन्मते ईये इत्येव भवति। सूत्रवृत्तौ तु अयाञ्चके इति प्रदर्शनं मतान्तरसंग्रहादिति निमित्तकमिति। आ० ईर्यात् ईर्यास्ताम् ईर्यासुः
नीर्यास्ताम्
नीर्यासुः
नरिष्यतः
Page #455
--------------------------------------------------------------------------
________________
438
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
श्व० अरिता अरितारौ अरितारः
तथा अरीता अरीतारौ अरीतार:
ज्ञेयात् ज्ञेयास्ताम् ज्ञेयासः, इत्यादि। भ० अरिष्यति अरिष्यतः अरिष्यन्ति
श्व० ज्ञाता
ज्ञातारौ
ज्ञातार: अरीष्यति अरीष्यतः अरीष्यन्ति
ज्ञातासि ज्ञातास्थः
ज्ञातास्थ क्रि० आरिष्यत् आरिष्यताम् आरिष्यन्
ज्ञातास्मि ज्ञातास्वः
ज्ञातास्मः आरीष्यत् आरीष्यताम् आरीष्यन् भ० ज्ञास्यति ज्ञास्यत:
ज्ञास्यन्ति आशिषि क्ययडाशीय इत्यत्र ह्रस्वस्य ऋधातोर्ग्रहणान्न गुणः,
ज्ञास्यसि ज्ञास्यथः
ज्ञास्यथ अत एव धातुपारायणे क्ये, ईर्यते।
ज्ञास्यामि ज्ञास्यावः
ज्ञास्यामः प्लादिादिश्च वृत् वर्त्तितः, सम्पूर्ण इत्यर्थः, अथ परस्मैपदिषु | क्रि० अज्ञास्यत् अज्ञास्यताम् अज्ञास्यन् एवादन्तोऽनिट् च।
अज्ञास्यः अज्ञास्यतम् अज्ञास्यत १५४०. ज्ञांश् (ज्ञा) अवबोधने। ३३
अज्ञास्यम् अज्ञास्याव अज्ञास्याम ब० जानाति जानीतः जानन्ति
अथेदन्तोऽनिट् च। जानासि जानीथः जानीथ
१५४१. क्षिषश् (क्षि) हिंसायाम्। ३४ जानामि जानीवः जानीमः
व० क्षिणाति क्षिणीतः क्षिणन्ति स० जानीयात् जानीयाताम् जानीयुः
क्षिणासि क्षिणीथः क्षिणीथ जानीयाः जानीयातम् जानीयात
क्षिणामि क्षिणीवः क्षिणीम: जानीयाम जानीयाव जानीयाम स० क्षिणीयात् क्षिणीयाताम् प० जानातु/जानीतात् जानीताम् जानन्तु
क्षिणीयाः क्षिणीयातम् क्षिणीयात जानीहि/जानीतात् जानीतम् जानीत
क्षिणीयाम् क्षिणीयाव क्षिणीयाम जानानि जानाव
जानाम
प० क्षिणातु/क्षिणीतात् क्षिणीताम् क्षिणन्तु ह्य० अजानात् अजानीताम् अजाणन्
क्षिणीहि/क्षिणीतात् क्षिणीतम् क्षिणीत अजानाः अजानीतम् अजानीत
क्षिणानि क्षिणाव
क्षिणाम अजानाम् अजानीव अजानीम
ह्य० अक्षिणात् अक्षिणीताम् अ० अज्ञासीत् अज्ञासिष्टाम् अज्ञासिषुः
अक्षिणाः अक्षिणीतम् अक्षिणीत अज्ञासीः अज्ञासिष्टम् अज्ञासिष्ट
अक्षिणाम् अक्षिणीव अक्षिणीम अज्ञासिषम् अज्ञासिष्व अज्ञासिष्म अ० अक्षैषीत् अक्षैष्टाम् अक्षैषुः प० जज्ञौ जज्ञतुः
अक्षैषीः
अक्षैष्ट जज्ञिथ/जज्ञाथ जज्ञथुः
जज्ञ अक्षैषम् अक्षैष्व
अक्षैष्म जज्ञौ जज्ञिव जज्ञिम
प० चिक्षाय चिक्षियतुः आ० ज्ञायात् ज्ञायास्ताम् ज्ञायासुः
चिक्षयिथ/ चिक्षेथ चिक्षियथुः
चिक्षिय ज्ञाया: ज्ञायास्तम् ज्ञायास्त
चिक्षाय/चिक्षय चिक्षियिव चिक्षियिम ज्ञायासम् ज्ञायास्व
आ. क्षीयात् क्षीयास्ताम्
क्षिणीयुः
अक्षिणन्
जजुः
अक्षैष्टम्
चिक्षियः
ज्ञायास्म
क्षीयासुः
Page #456
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रयादिगण
क्षीयाः
क्षीयासम् श्व० क्षेता
क्षेतासि
क्षेतास्मि
भ० क्षेष्यति
क्षेष्यसि
क्षेष्यामि
क्रि० अक्षेष्यत्
अक्षेष्यः
अक्षेष्यम्
व० व्रीणाति
व्रीणासि
व्रीणामि
ह्य० अन्रीणात्
अत्रीणाः
अत्रीणाम्
अ० अत्रैषीत्
अत्रैषीः
स० व्रीणीयात्
व्रीणीयाताम्
व्रीणीयाः
व्रीणीयातम्
व्रीणीयाम्
व्रीणीयाव
प० व्रीणातु / व्रीणीतात् व्रीणीताम्
व्रीहि/ व्रणीतात् व्रणीतम्
व्रीणानि
व्रीणाव
अत्रैषम्
क्षेष्यतः
क्षेष्यथः
क्षेष्यावः
अक्षेष्यताम्
अक्षेष्यतम्
अक्षेष्याव
१५४२. व्रींश् (व्री) वरणे । ३५
प० वित्राय
क्षीयास्तम्
क्षीयास्व
क्षेतारौ
० यात्
व्रीयाः
क्षेतास्थः
क्षेतास्वः
व्रीणीतः
व्रीणीथः
व्रीणीव:
विव्रियतुः
वित्रयिथ / विब्रेथ
विव्रियथुः
वित्राय/ वित्रय विव्रियिव
क्षीयास्त
क्षीयास्म
क्षेतारः
क्षेतास्थ
क्षेतास्मः
क्षेष्यन्ति
क्षेष्यथ
क्षेष्यामः
अक्षेष्यन्
अक्षेष्यत
अक्षेष्याम
व्रीयास्ताम्
व्रीयास्तम्
व्रीणन्ति
व्रीणीथ
व्रीणीमः
व्रीणीयुः
व्रीणीयात
व्रीणीयाम
अव्रीणीताम् अव्रीणन्
अव्रीणीतम्
अत्रीणीत
अत्रीणीव
अत्रीणीम
अष्टम्
अत्रैषुः
अष्टम्
अप्रैष्ट
अत्रैष्व
अत्रैष्म
व्रीणन्तु
व्रीणीत
व्रीणाम
वित्रियुः
विव्रिय
विव्रियिम
व्रीयासुः
व्रीयास्त
व्रीयासम्
श्व० त्रेता
प्रेतासि
त्रेतास्मि
भ० व्रेष्यति
व्रेष्यसि
व्रेष्यामि
क्रि० अवेष्यत्
अव्रेष्यः
अब्रेष्यम्
व० श्रीणाति
श्रीणासि
श्रीणामि
स० श्रीणीयात्
श्रीणीयाः
ह्य० अभ्रीणात्
अभ्रीणाः
अव्रेष्यताम्
अब्रेष्यतम्
अव्रेष्याव
१५४३. श्रींश् (श्री) भरणे । ३६
अश्रीणाम्
अ० अप्रैषीत्
अभैषीः
श्रीणीयाताम्
श्रीणीयातम्
श्रीणीयाम्
श्रीणीयाव
प० श्रीणातु / श्रीणीतात् श्रीणीताम्
श्रीणीहि / श्रीणीतात् श्रीणीतम्
श्रीणानि
श्रीणाव
म्
प० बिभ्राय
बियिथ / बिभ्रथ
बिभ्राय / बिभ्रय
व्रीयास्व
त्रेतारौ
आ० श्रीयात्
श्रीयाः
श्रीयासम्
त्रेतास्थः
त्रेतास्वः
व्रेष्यतः
व्रेष्यथः
व्रेष्यावः
श्रीणीतः
श्रीणीथः
श्रीणीवः
अभ्रीणीताम्
अभ्रीणीतम्
अभ्रीणीव
अष्टाम्
अष्टम्
अप्रैष्व
बिभ्रियतुः
बिभ्रियथुः
बिभ्रियिव
व्रीयास्म
त्रेतारः
व्रतास्थ
त्रेतास्मः
व्रेष्यन्ति
व्रेष्यथ
वेष्यामः
श्रीयास्ताम्
श्रीयास्तम्
श्रीयास्व
अत्रेष्यन्
अव्रेष्यत
अत्रेष्याम
श्रीणन्ति
श्रीणीथ
श्रीणीमः
श्रीणीयुः
श्रीणीयात
श्रीणीयाम
श्रीणन्तु
श्रीणीत
श्रीणाम
अभ्रीणन्
अभ्रीणीत
अभ्रीणीम
अप्रैषुः
अप्रैष्ट
अप्रैष्म
बिभ्रियुः
बिभ्रिय
बिभ्रियिम
श्रीयासुः
श्रीयास्त
श्रीयास्म
439
Page #457
--------------------------------------------------------------------------
________________
440
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
श्रथ्नन्तु
श्व० भ्रता भ्रेतारौ
भ्रेतारः भ्रेतासि भ्रेतास्थः
भ्रेतास्थ भ्रेतास्मि भ्रेतास्वः
भ्रेतास्मः भ० भ्रष्यति भ्रेष्यतः भ्रष्यन्ति
भ्रष्यसि भ्रष्यथ: भ्रष्यथ भ्रेष्यामि भ्रेष्यावः
भ्रेष्यामः क्रि० अभ्रेष्यत्
अभ्रेष्यताम्
अभ्रेष्यन् अभ्रेष्यः अभ्रेष्यतम् अभ्रेष्यत अभ्रेष्यम् अभ्रेष्याव अभ्रेष्याम
॥अथ ठान्त: सेट् च॥ १५४४. हेठश् (हे) भूतप्रादुर्भावे।
भूतप्रादुर्भावोऽतिक्रान्तोत्पत्तिः। ३७ व० हेह्णाति हेणीतः हेणन्ति स० हेणीयात् हेणीयाताम् । हेणीयुः प० हेह्णातु/हेणीतात् हेणीताम् हेतृणन्तु ह्य० अहेतृणात् अहेतृणीताम् अहेतृणन् अ० अहेठीत् अहेठिष्टाम् अहेठिषुः प० जिहेठ जिहेठतुः आ० हेठ्यात् हेठ्यास्ताम् हेठ्यासुः श्व० हेठिता हेठितारौ हेठितारः भ० हेठिष्यति हेठिष्यतः हेठिष्यन्ति क्रि० अहेठिष्यत् अहेठिष्यताम् अहेठिष्यन्
॥अथ डान्तः सेट् च॥
१५४५. मृड्श् (मृड्) सुखने। ३८ व० मृड्णाति मृड्णीतः
मृड्णन्ति स० मृड्णीयात् मृड्णीयाताम् मृड्णीयुः प० मृड्णातु/मृड्णीतात् मृड्णीताम् मृड्णन्तु ह्य० अमृड्णात् अमृड्णीताम् । अमृड्णन् अ० अमर्डीत् अमर्डिष्टाम् अमर्डिषुः प० ममर्ड
ममृडतुः
ममृडुः आ० मृड्यात् मृड्यास्ताम् मृड्यासुः श्व० मर्डिता मर्डितारौ मर्डितारः
भ० मर्डिष्यति मर्डिष्यतः मर्डिष्यन्ति क्रि० अमर्डिष्यत् अमर्डिष्यताम् अमर्डिष्यन्
___ अथ थान्ताश्चत्वारः सेट्छ। १५४६. अन्यश् (अन्य्) मोचनप्रतिहर्षणयोः। ३९ व० श्रध्नाति श्रथ्नीत: श्रथ्नन्ति स० श्रथ्नीयात् श्रथ्नीयाताम् श्रर्थनीयुः प० श्रध्नातु/अनीतात् श्रथ्नीताम् ह्य० अश्रथनात् अश्रनीताम् अश्रथ्णन् अ० अश्रन्थीत् अश्रन्थिष्टाम् अश्रन्थिषुः प० शश्रन्थ शश्रन्थतु:/श्रेथतु शश्रन्थु:/श्रेथुः आ० अथ्यात् श्रथ्यास्ताम् श्रथ्यासुः श्व० श्रन्थिता श्रन्थितारौ श्रन्थितारः भ० श्रन्थिष्यति श्रन्थिष्यतः श्रन्थिष्यन्ति
अश्रन्थिष्यताम् अश्रन्थिष्यन् १५४७. मन्थश् (मन्थ्) विलोडने। ४० व० मध्नाति मथ्नीतः मनन्ति स० मथ्नीयात् मथ्नीयाताम् मथ्नीयुः प० मथ्नातु/मथ्नीतात् मथ्नीताम् ह्य० अमथ्नात् अमनीताम् अमथ्णन् अ० अमन्थीत् अमन्थिष्टाम्
अमन्थिषुः प० ममन्थ ममन्थतुः ममन्थुः आ० मथ्यात् मथ्यास्ताम् मथ्यासुः श्व० मन्थिता मन्थितारौ मन्थितारः भ० मन्थिष्यति मन्थिष्यतः मन्थिष्यन्ति क्रि० अमन्थिष्यत् अमन्थिष्यताम् अमन्थिष्यन्
१५४८. ग्रन्थश् (ग्रन्थ्) संदर्भे। संदर्भो बन्धनम्। ४१ व० ग्रनाति ग्रथ्नीतः ग्रनन्ति स० ग्रथ्नीयात्
ग्रथ्नीयुः प० ग्रथ्नातु/ग्रथ्नीतात् ग्रनीताम् ग्रथ्नन्तु ह्य० अग्रथ्नात् अग्रथ्नीताम् अग्रथ्णन्
अ० अग्रन्थीत् अग्रन्थिष्टाम् अग्रन्थिषुः | प० जग्रन्थ/जग्रन्थतुः ग्रेथतु
जग्रन्थुः
जिहेछुः
मथ्नन्तु
Page #458
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रयादिगण
आ० ग्रथ्यात्
श्व० ग्रन्थिता
ग्रथ्यासुः
ग्रन्थितारः
ग्रन्थिष्यन्ति
अग्रन्थिष्यताम्
अग्रन्थिष्यन्
१५४९. कुन्यश् (कुन्थ्) सङ्क्लेशे । ४२
भ० ग्रन्थिष्यति
क्रि० अग्रन्थिष्यत्
ह्य० अकुथ्नात्
अ० अकुन्धीत्
प० चुकुन्थ
व० कुथ्नाति
कुथ्नीतः
सकुनीयात् कुथ्नीयाताम्
प० कुथ्नातु / कुथ्नीतात् कुथ्नीताम्
अनीता
अकुन्थिष्टाम्
चुकुन्धतुः
आ० कुथ्यात्
कुथ्यास्ताम्
श्व० कुन्थिता कुन्तारौ
भ० कुन्थिष्यति
क्रि० अकुन्थिष्यत्
ग्रथ्यास्ताम्
ग्रन्थितारौ
ग्रन्थिष्यतः
कुन्थिष्यतः अकुन्थिष्यताम्
॥ अथ दान्ताः सेटच ॥
१५५०. मृदश् (मृद्) क्षौदे । ४३
व० मृद्नाति
मृद्नीतः
स० मृद्नीयात्
मृद्नीयाताम्
प० मृद्नातु / मृद्नीतात् मृद्नीताम्
ह्य० अमृद्नात्
अ० अमर्दीत्
प० ममर्द
आ० मृद्यात्
श्व० मर्दिता
भ० मर्दिष्यति
क्रि० अमर्दिष्यत्
अमृद्नीताम्
अमर्दिष्टाम्
ममृदतुः
मृद्यास्ताम्
मर्दितारौ
मर्दिष्यतः
अमर्दिष्यताम्
कुनन्ति
कुथ्नीयुः
कुनन्तु
अकुथ्णन्
अकुन्थिषुः
चुकुन्थुः
कुथ्यासुः
कुन्थितार:
कुन्थिष्यन्ति
अकुन्थिष्यन्
व० गुनाति
गुध्नीतः
सo गुध्नीयात्
गुना
प० गुध्नातु/गुध्नीतात् गुध्नीताम्
॥अथ धान्तौ ॥
१५५१. गुघ्श् (गुघ्) रोषे । ४४
मृद्नन्ति
मृद्नीयुः
मृद्नन्तु
अमृद्णन्
अमर्दिषुः
ममृदुः
मृद्यासुः
मर्दितारः
मर्दिष्यन्ति
अमर्दिष्यन्
गुनन्ति
गुध्नीयुः
गुध्नन्तु
ह्य० अगुध्नात्
अ० अगोधीत्
प० जुगोध
जुगुधतुः
गुध्यास्ताम्
गोधितारौ
गोधिष्यतः
अगोधिष्यताम्
१५५२. बन्धश् (बन्धु) बन्धने । ४५
आ० गुध्यात्
श्व० गोधिता
भ० गोधिष्यति
क्रि० अगोधिष्यत्
व० बध्नाति
बध्नीतः
स० बध्नीयात्
बध्नीयाताम्
प० बध्नातु / बध्नीतात् बध्नीताम्
अनीता
ह्य० अबध्नात्
अ० अभान्त्सीत्
प० बबन्ध
आ० बध्यात्
श्व० बन्द्धा
भ० भन्त्स्यति
क्रि० अभन्त्स्यत्
व० क्षुभ्नाति
अम् अगुध्णन्
अगोधिष्टाम्
अगोधिषुः
ह्य० अक्षुभ्नात्
अ० अक्षोभीत्
प० चुक्षोभ
अभन्त्स्यताम्
॥ अथ भान्तास्त्रयः सेटच ।।
१५५३. क्षुभश् (क्षुभ) सञ्चलने । ४६
आ० क्षुभ्यात्
श्व० क्षोभिता
भ० क्षोभिष्यति
क्रि० अक्षोभिष्यत्
व० नभ्नाति
अबाद्धाम्
बबन्धतुः
बध्यास्ताम्
बन्द्धारौ
भन्त्स्यतः
क्षुभ्नीत:
० क्षुभ्नीयात्
क्षुभ्नीयाताम्
प० क्षुभ्नातु / क्षुभ्नीतात् क्षुभ्नीताम्
अक्षुनीताम्
अक्षोभिष्टाम्
चुक्षुभतुः
क्षुभ्यास्ताम्
क्षोभितारौ
क्षोभिष्यतः
अक्षोभिष्यताम्
१५५४. णभश् (नभ्) हिंसायाम् । ४७
नभ्नीतः
नभ्नन्ति
जुगुधुः
गुध्यासुः
गोधितारः
गोधिष्यन्ति
अगोधिष्यन्
बध्नन्ति
बध्नीयुः
बध्नन्तु
अबध्णन्
अभान्त्सुः
बबन्धुः
बध्यासुः
बन्द्धारः
भन्त्स्यन्ति
अभन्त्स्यन्
क्षुभ्नन्ति
क्षुभ्नीयुः
क्षुभ्नन्तु
अक्षुभ्णन्
अक्षोभिषुः
चुक्षुभुः
क्षुभ्यासुः
क्षोभितार:
क्षोभिष्यन्ति
अक्षोभिष्यन्
441
Page #459
--------------------------------------------------------------------------
________________
442
सo नभ्नीयात्
ननीयाताम्
प० नभ्नातु / नभ्नीतात् नभ्नीताम्
अनीताम्
ह्य० अनभ्नात्
अ० अनाभीत्
अनभीत्
प० ननाभ
आ० नभ्यात् श्व० नभिता
भ० नभिष्यति
क्रि० अनभिष्यत्
अनभिष्यताम्
१५५५. तुभश् (तुभ) हिंसायाम् । ४८
व० तुभ्नाति
तुभ्नीतः
स० तुभ्नीयात् तुभ्नीयाताम्
प० तुभ्नातु / तुभ्नीतात् तुभ्नीताम्
ह्य० अतुभ्नात् अतुनीताम्
अ० अतोभीत्
अतोभिष्टाम्
प० तुतोभ
आ० तुभ्यात्
श्व० तोभिता
अनाभिष्टाम्
अनभिष्टाम्
भतुः
नभ्यास्ताम्
नभितारौ
नभिष्यतः
भ० तोभिष्यति
क्रि० अतोभिष्यत्
तुतुभतुः
तुभ्यास्ताम्
तोभितारौ
तोभिष्यतः
अतोभिष्यताम्
॥अथ वान्तः सेट् च ॥
१५५६. खवश् (खव्) हेठश्वत्। ४९
व० खौनाति
खौनीतः
स० खौनीयात्
खौनीयाताम्
प० खौनातु/खौनीतात् खौनीताम्
० अखत्
अखनीताम्
अ० अखावीत्
अखवीत्
प० चखाव
नभ्नीयुः
नभ्नन्तु
अनभ्णन्
अनाभिषुः
अनभिषुः, इत्यादि
भुः
नभ्यासुः
नभितार:
नभिष्यन्ति
अनभिष्यन्
यथा श् भूतप्रादुर्भावे तथाऽयमपि वर्णक्रमानुरोधेन तु तत्रैव
न पठितः
तुभ्नन्ति
तुभ्नीयुः
तुभ्नन्तु
अतुभ्नन्
. अतोभिषुः
अखाविष्टाम्
अखविष्टाम्
चखवतुः
तुतुभुः
तुभ्यासुः
तोभितार:
तोभिष्यन्ति
अतोभिष्यन्
खौनन्ति
खौनीयुः
खौनन्तु
अखन्
अखाविषुः
अखविषुः, इत्यादि
चखवुः
आ० खव्यात्
श्व० खविता
भ० खविष्यति
क्रि० अखविष्यत्
व० क्लिश्नाति
अखविष्यताम्
॥अथ शान्तौ सेटौ च ।। ५०
१५५७. क्लिशौश् (क्लिश्) विबाधने ।
०क्लिश्नीयात्
प० क्लिश्नातु/तात्
ह्य० अक्लिश्नात्
अ० अक्लेशी
अक्लिक्षत्
प० चिक्लेश
आ० क्लिश्यात्
श्व० क्लेशिता
क्लेष्टा
भ० क्लेशिष्यति
क्लेक्ष्यति
क्रि० अक्लेशष्यत्
अलेक्ष्यत्
व० अश्नाति
अश्नासि
अश्नामि
खव्यास्ताम्
खवितारौ
खविष्यतः
ह्य० आश्नात्
आश्ना
क्लिश्नीतः
क्लिश्नीयाताम्
क्लिश्नीताम्
अक्लिश्नीताम्
अक्लेशिष्टाम्
अक्लिक्षताम्
चिक्लिशतुः
क्लिश्यास्ताम्
क्लेशिता
क्लेष्टारौ
क्लेशिष्यतः
क्लेक्ष्यतः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
खव्यासुः
खवितारः
खविष्यन्ति
अखविष्यन्
अक्लेशष्यताम्
अलेक्ष्यताम्
सo अश्नीयात्
अश्नीयाताम्
अश्नीयाः
अश्नीयातम्
अश्नीयाम्
अश्नीयाव
प० अश्नातु / अश्नीतात् अश्नीताम्
अश्नीहि / अश्नीतात् अश्नीतम् अश्नानि
१५५८. अशश् (अश्) भोजने । ५१
अश्नीतः
अश्नीथः
अश्नीव:
अश्नाव
आश्नीताम्
आम्
क्लिश्नन्ति
क्लिश्नीयुः
क्लिश्नन्तु
अक्लिश्णन्
अक्लेशषुः
अक्लिन्, इ०
चिक्लिशुः
क्लिश्यासुः
क्लेशितार:
क्लेष्टारः, इत्यादि
क्लेशिष्यन्ति
क्लेक्ष्यन्ति, इ
अक्लेशष्यन्
अलेक्ष्यन् इ०
अश्नन्ति
अश्नीथ
अश्नीमः
अश्नीयुः
अश्नीयात
अश्नीयाम
अश्नन्तु
अश्नीत
अश्नाम
आश्णन्
आश्नीत
Page #460
--------------------------------------------------------------------------
________________
443
क्रयादिगण
आशिष्टम्
आशुः
विविषुः
आश्नाम् आश्नीव आश्नीम अ० आशीत् आशिष्टाम् आशिषुः आशी:
आशिष्ट आशिषम् आशिष्व
आशिष्म प० आश
आशतुः आशिथ आशथुः
आश आश आशिव
आशिम आ० अश्यात्
अश्यास्ताम्
अश्यासुः अश्याः
अश्यास्तम् अश्यास्त अश्यासम् अश्यास्व
अश्यास्म श्व० अशिता अशितारौ अशितार:
अशितासि अशितास्थ: अशितास्थ अशितास्मि अशितास्वः
अशितास्मः भ० अशिष्यति अशिष्यतः अशिष्यन्ति
अशिष्यसि अशिष्यथ: अशिष्यथ
अशिष्यामि अशिष्याव: अशिष्यामः क्रि० आशिष्यत् आशिष्यताम् आशिष्यन्
आशिष्यः आशिष्यतम् आशिष्यत आशिष्यम् आशिष्याव आशिष्याम
अथ षान्ताः सप्त सेटच। १५५९. इषश (इष) आभीक्ष्ण्ये।
आभीक्ष्ण्यं पौनःपुन्यम्। ५२ व० इष्णाति इष्णीतः इष्णन्ति स० इष्णीयात् इष्णीयाताम् इष्णीयुः प० इष्णातु/इष्णीतात् इष्णीताम् इष्णन्तु ह्य० ऐष्णात् ऐष्णीताम् अ० ऐषीत् प० इयेष ईषतुः ईषुः आ० इष्यात्
इष्यास्ताम् इष्यासुः श्व० ऐषिता ऐषितारौ ऐषितारः भ० ऐषिष्यति
ऐषिष्यन्ति क्रि० ऐषिष्यत् ऐषिष्यताम् ऐषिष्यन्
१५६०. विषश् (विष्) विप्रयोगे। ५३ व० विष्णाति विष्णीत: विष्णन्ति स० विष्णीयात् विष्णीयाताम् विष्णीयुः प० विष्णातु/विष्णीतात् विष्णीताम् विष्णन्तु ह्य० अविष्णात् अविष्णीताम् अविष्णन् अ० अवेषीत अवेषिष्टाम् अवेषिषुः प० विवेष विविषतुः आ० विष्यात् विष्यास्ताम्
विष्यासुः श्व० वेषिता वेषितारौ वेषितार: भ० वेषिष्यति
वेषिष्यतः
वेषिष्यन्ति क्रि० अवेषिष्यत् अवेषिष्यताम् अवेषिष्यन्
१५६१. प्रुषश् (पुष्) स्नेहसेचनपूरणेषु। ५४ व० पुष्णाति पुष्णीतः पुष्णन्ति स० पुष्णीयात् पुष्णीयाताम् पुष्णीयुः प० पुष्णातु/पुष्णीतात् पुष्णीताम् पृष्णन्तु ह्य० अप्रुष्णात् अप्रुष्णीताम्
अप्रुष्णन् अ० अप्रोषीत् अप्रोषिष्टाम् अप्रोषिषुः प० प्रप्रोष पुपुषतु आ० पुष्यात् पुष्यास्ताम् पुष्यासुः श्व० प्रोषिता प्रोषितारौ प्रोषितारः भ० प्रोषिष्यति प्रोषिष्यतः प्रोषिष्यन्ति क्रि० अप्रोषिष्यत् अप्रोषिष्यताम् अप्रोषिष्यन्
१५६२. प्लुषश् (प्लुए) स्नेहसेचनपूरणेषु। ५५ व० प्लुष्णाति प्लुष्णीतः प्लुष्णन्ति स० प्लुष्णीयात् प्लुष्णीयाताम् प्लुष्णीयुः प० प्लुष्णातु/तात् प्लुष्णीताम् । प्लुष्णन्तु ह्य० अप्लुष्णात् अप्लुष्णीताम् अप्लुष्णन् अ० अप्लोषीत् अप्लोषिष्टाम् अप्लोषिषुः प० पुप्लोष पुप्लुषतु पुप्लुषुः आ० प्लुष्यात् प्लुष्यास्ताम् प्लुष्यासुः श्व० प्लोषिता प्लोषितारौ प्लोषितारः भ० प्लोषिष्यति प्लोषिष्यतः प्लोषिष्यन्ति क्रि० अप्लोषिष्यत् ___ अप्लोषिष्यताम् अप्लोषिष्यन्
ऐष्णन् ऐषिषुः
ऐषिष्टाम्
ऐषिष्यतः
Page #461
--------------------------------------------------------------------------
________________
444
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मुष्णामि
पुपुषतु
मुष्णाव
१५६३. मुषश् (मुष्) स्तेये। ५६ व० मुष्णाति मुष्णीतः मुष्णन्ति मुष्णासि
मुष्णीथः मुष्णीथ मुष्णीवः
मुष्णीमः स० मुष्णीयात् मुष्णीयाताम् मुष्णीयुः
मुष्णीयाः मुष्णीयातम् मुष्णीयात
मुष्णीयाम् मुष्णीयाव मुष्णीयाम प० मुष्णातु/मुष्णीतात् मुष्णीताम् मुष्णन्तु
मुषाण/मुष्णीतात् मुष्णीतम् मुष्णीत मुष्णानि
मुष्णाम ह्य० अमुष्णात् अमुष्णीताम् अमुष्णन्
अमुष्णाः अमुष्णीतम् अमुष्णीत
अमुष्णाम् अमुष्णीव अमुष्णीम अ० अमोषीत् अमोषिष्टाम् अमोषिषुः
अमोषी: अमोषिष्टम् अमोषिष्ट
अमोषिषम् अमोषिष्व अमोषिष्म प० मुमोष
मुमुषतु
मुमुषुः मुमोषिथ मुमुषथुः मुमुष
मुमोष आ० मुष्यात् मुष्यास्ताम् मुष्यासुः
मुष्याः मुष्यास्तम् मुष्यास्त
मुष्यासम् मुष्यास्व मुष्यास्म श्व० मोषिता मोषितारौ मोषितारः
मोषितासि मोषितास्थः मोषितास्थ
मोषितास्मि मोषितास्वः मोषितास्मः भ० मोषिष्यति मोषिष्यतः मोषिष्यन्ति
मोषिष्यसि मोषिष्यथः मोषिष्यथ
मोषिष्यामि मोषिष्याव: मोषिष्यामः क्रि० अमोषिष्यत् अमोषिष्यताम् अमोषिष्यन
अमोषिष्यः अमोषिष्यतम् अमोषिष्यत अमोषिष्यम अमोषिष्याव अमोषिष्याम
१५६४. पुषश् (पुष्) पुष्टौ। ५७
व० पुष्णाति पुष्णीतः
पुष्णन्ति स० पुष्णीयात् पुष्णीयाताम् । पुष्णीयुः प० पुष्णातु/पुष्णीतात् पुष्णीताम् | पुष्णन्तु ह्य० अपुष्णात् अपुष्णीताम् अपुष्णन् अ० अपोषीत् अपोषिष्टाम् अपोषिषुः प० पुपोष
पुपुषुः आ० पुष्यात् पुष्यास्ताम् पुष्यासुः श्व० पोषिता पोषितारौ पोषितारः भ० पोषिष्यति पोषिष्यतः पोषिष्यन्ति क्रि० अपोषिष्यत् अपोषिष्यताम् अपोषिष्यन्
१५६५. कुषश् (कुष्) निष्कर्षे।
निष्कर्षो बहिष्कर्षणतम्। ५८ व० कुष्णाति कुष्णीतः कुष्णन्ति स० कुष्णीयात् कुष्णीयाताम् कुष्णीयुः क० कुष्णातु/कुष्णीतात् कुष्णीताम् कुष्णन्तु ह्य० अकुष्णात् अकुष्णीताम् अकुष्णन् अ० अकोषीत् अकोषिष्टाम् अकोषिषुः क० कुकोष कुकुषतु कुकुषुः आ० कुष्यात् कुष्यास्ताम् कुष्यासुः श्व० कोषिता कोषितारौ कोषितारः भ० कोषिष्यति कोषिष्यतः कोषिष्यन्ति क्रि० अकोषिष्यत् अकोषिष्यताम् अकोषिष्यन् निष्पूर्वस्य तु स्त्यादौ वेट भवति। निरकोषीत् निरकुक्षत
इत्यादि। ॥अथ सान्तः सेट् च।।
१५६६. ध्रसूश् (ध्रस्) उच्छे। ५९ व० ध्रस्नाति ध्रस्नीत: ध्रस्नन्ति ध्रस्नासि ध्रस्नीथः
ध्रस्नीथ ध्रस्नामि ध्रस्नीवः ध्रस्नीमः स० ध्रस्नीयात् ध्रस्नीयाताम् ध्रस्नीयुः
ध्रस्नीयाः ध्रस्नीयातम् ध्रस्नीयात
मुमुषिव
मुमुषिम
Page #462
--------------------------------------------------------------------------
________________
ऋयादिगण
445
वृणीष्व
वृणै
ध्रस्यासुः
ध्रस्नीयाम् ध्रस्नीयाव ध्रस्नीयाम प० ध्रस्नातु/ध्रस्नीतात् ध्रस्नीताम् ध्रस्नन्तु ध्रसान/ध्रस्नीतात् ध्रस्नीतम्
ध्रस्नीत ध्रस्नानि ध्रस्नाव
ध्रस्नाम ह्य० अध्रस्नात् अध्रस्नीताम् अध्रस्णन्
अध्रस्नाः अध्रस्नीतम् अध्रस्नीत
अध्रस्नाम् अध्रस्नीव अध्रस्नीम अ० अध्रसीत् अध्रसिष्टाम् अध्रसिषुः
अध्रसी: अध्रसिष्टम् अध्रसिष्ट अध्रसिषम् अध्रसिष्व अध्रसिष्म
अध्रासीत् अध्रासिष्टाम् अध्रासिषुः, इ० प० दध्रास
दध्रसतुः
दध्रसुः दध्रसिथ दध्रसथुः दध्रस
दध्रास/दध्रस दध्रसिव दध्रसिम आ० ध्रस्यात् ध्रस्यास्ताम् ध्रस्याः
ध्रस्यास्तम् ध्रस्यास्त ध्रस्यासम् ध्रस्यास्व
ध्रस्यास्म १० ध्रसिता ध्रसितारौ ध्रसितारः
भ्रसितासि ध्रसितास्थः ध्रसितास्थ
ध्रसितास्मि ध्रसितास्वः ध्रसितास्मः भ० ध्रसिष्यति ध्रसिष्यतः ध्रसिष्यन्ति
ध्रसिष्यसि ध्रसिष्यथ: ध्रसिष्यथ
ध्रसिष्यामि ध्रसिष्याव: ध्रसिष्यामः क्रि० अध्रसिष्यत् अध्रसिष्यताम् अध्रसिष्यन्
अध्रसिष्यः अध्रसिष्यतम् अध्रसिष्यत अध्रसिष्यम् अध्रसिष्याव अध्रसिष्याम
॥इति परस्मैपदिनः।
॥अथात्मनेपदी ऋदन्तः सेट् च॥ १५६७. वृश् (वृ) सम्भक्तौ। ६० संभक्तिः संसेवा। व० वृणीते वृणाते
वृणीध्वे वृणीवहे
स० वृणीत वृणीयाताम् वृणीरण वृणीथाः वृणीयाथाम्
वृणीध्वम् वृणीय ।
वृणीवहि वृणीमहि प० वृणीताम् वृणाताम् वृणताम्
वृणाथाम् वृणीध्वम्
वृणावहै वृणामहै ह्य० अवृणीत अर्पणाताम् अवृणत
अवृणीथाः अवृणाथाम् अवृणीध्वम्
अवृणि अवृणीवहि अवृणीमहि अ० अवरिष्ट अवरिषाताम् अवरिषत्, इत्यादि
अवरीष्ट अवरीषाताम् अवरीषत्, इत्यादि अवृत
अवृषाताम् अवृषत्, इत्यादि। प० वने
वव्राते
वतिरे ववृषे वव्राथे ववृदवे ववे
ववृवहे ववृमहे आ० वरिषीष्ट वरिषीयास्ताम् वरिषीरण
वरिषीष्ठाः वरिषीयास्थाम् वरिषीध्वम्
वरिषीय वरिषीवहि वरिषीमहि श्व० वरिता वरितारौ वरितारः
वरितासे वरितासाथे वरिताध्वे
वरिताहे वरितास्वहे वरितास्मिहे भ० वरिष्यते वरिष्येते वरिष्यन्ते
वरिष्यसे वरिष्येथे वरिष्यध्वे
वरिष्ये वरिष्यावहे वरिष्यामहे क्रि० अवरिष्यत अवरिष्येताम् अवरिष्यन्त
अवरिष्यथाः अवरिष्येथाम् अवरिष्यध्वम् अवरिष्ये अवरिष्यावहि अवरिष्यामहि अवरीष्यत् अवरीष्येताम् अवरीष्यन्त, इ०
॥क्रयादिगणः सम्पूर्णः॥
वृणते
वृणीषे
वृणाथे
वृणे
वृणीमहे
Page #463
--------------------------------------------------------------------------
________________
446
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चोरयाञ्चक्रुः
॥अथ णितश्शुरादयो वर्णक्रमेण प्रस्तूयन्ते।
अचूचुरम् अचूचुराव अचूचुराम तत्रादौ- १५६८. चुरण (चुर्) स्तेये।
प० चोरयाञ्चकार चोरयाञ्चक्रतुः णित्त्वं चुरादित्वख्यापनार्थम्। स्वार्थिकत्वेनान्तरङ्गत्वाद्विशेष- चोरयाञ्चकर्थ चोरयाञ्चक्रथु: चोरयाञ्चक्र विधानाच्च कादिकाराकापेक्षत्वेन बहिरङ्गेभ्यः सामान्य- चोरयाञ्चकार/चकर चोरयाञ्चकृव चोरयाञ्चकृम विहितेभ्यश्च तिवादिभ्यः प्रागेव "चुरादिभ्य इति स्वार्थे णिचि।। चोरयाम्बभूव/चोरयामास। णिजन्तस्यापि क्रियार्थत्वाद्धातुत्वे 'शेषादिति' परस्मैपदे | आ० चोर्यात् चोर्यास्ताम् चोर्यासुः चोरयति। णिचो गित्त्वाभावात्फलवत्कर्त्तर्यात्मनेपदं नास्ति। |
चोर्याः चोर्यास्तम् चोर्यास्त चन्द्रस्तु णिच्यपि उभयपदित्वमाम्नासीत् णिज्विकल्पञ्ञ् |
चोर्यासम् चोर्यास्व चोर्यास्म चोरयन्तं प्रायुक्तेति णिजन्तात् प्रयोक्तृव्यापारे इति णिगि | १० चोरयिता चोरयितारौ चोरयितारः णेरनिटि'' इति णिचो लुक्यपि णिजात्याश्रयणात्समान
चोरयितासि चोरयितास्थः चोरयितास्थ लोपित्वाभावादुपान्त्यस्येति ह्रस्वे लघोदीर्घ इति पूर्वस्य दीर्घ
चोरयितास्मि चोरयितास्वः चोरयितास्मः च अचूचुरत्। इह प्रचुण चितुण्प्रभृतीनां सनकारनिर्देशमकृत्वा |
भ० चोरयिष्यति चोरयिष्यतः चोरयिष्यन्ति उदित्करणं चुरादिणिचोऽनित्यत्वज्ञापकं न च चिन्त्यते इत्यादौ |
चोरयिष्यसि चोरयिष्यथ: चोरयिष्यथ नलोपाभावार्थम्। ततो णिज्लुकः स्थानित्वेनोपान्त्यत्वाभावान्न |
चोरयिष्यामि चोरयिष्याव:
चोरयिष्यामः लुकोऽप्रसङ्गात्। तेन चोरति चिन्ततीत्यादि सिद्धमिदं च ज्ञापकं घुषेरविशब्दे इति विशब्दनप्रतिषेधः। अयं हि विशब्दने घुषेरिट | क्रि० अचोरयिष्यत्
अचोरयिष्यताम् अचोरयिष्यन् प्रतिषेणभावार्थः, स च णिचोऽनित्यत्वेऽनेकस्वरत्वादेव
अचोरयिष्यः अचोरयिष्यतम् अचोरयिष्यत सिद्धः। तेन, 'महीपालवचः श्रुत्वा जुधुषुः पुष्पमाणवाः
अचोरयिष्यम् अचोरयिष्याव अचोरयिष्याम इत्यपि सिद्धम्।
अथ ऋदन्तौ। व० चोरयति
चोरयतः चोरयन्ति
१५६९. पृण् (पृ) पूरणे। २ चोरयसि चोरयथः चोरयथ
व० पारयति पारयत:
पारयन्ति चोरयामि चोरयावः चोरयामः
पारयसि पारयथः
पारयथ स० चोरयेत् चोरयेताम् चोरयेयुः
पारयामि पारयावः पारयाम: चोरये:
चोरयेत
स० पारयेत् पारयेताम् पारयेयुः चोरयेयम् चोरयेव
चोरयेम
पारयः पारयेतम् पारयेत प० चोरयतु/चोरयतात् चोरयताम्
पारयेयम् पारयेव पारयेम चोरय/चोरयतात् चोरयतम्
चोरयत
प० पारयतु/पारयतात् पारयताम् पारयन्तु चोरयानि चोरयाव चोरयाम
पारय/पारयतात् पारयतम्
पारयत ह्य० अचोरयत्
अचोरयताम् अचोरयन् पारयाणि पारयाव
पारयाम अचोरयः अचोरयतम् अचोरयत ह्य० अपारयत् अपारयताम् अपारयन् अचोरयम् अचोरयाव अचोरयाम
अपारयः अपारयतम् अपारयत अ० अचूचुरत् अचूचुरताम् अचूचुरन्
अपारयम्
अपारयाव अपारयाम अचूचुरतम् अचूचुरः
अचूचुरत
अ० अपीपरत् अपीपरताम् अपीपरन्
चोरंयेतम्
चोरयन्तु
Page #464
--------------------------------------------------------------------------
________________
447
चुरादिगण
अपीपर: अपीपरतम् अपीपरत
अपीपरम् अपीपराव अपीपराम प० पारयाञ्चकार पारयाञ्चक्रतुः पारयाञ्चक्रुः
पारयाञ्चकर्थ पारयाञ्चक्रथुः पारयाञ्चक्र पारयाञ्चकार/चकर पारयाञ्चकृव पारयाञ्चकम
पारयाम्बभूव/पारयामास। आ० पार्यात् पार्यास्ताम्
पार्यासुः पार्याः पार्यास्तम् पार्यास्त
पार्यासम् पार्यास्व पार्यास्म श्व० पारयिता पारयितारौ पारयितारः
पारयितासि पारयितास्थः पारयितास्थ
पारयितास्मि पारयितास्वः पारयितास्मः भ० पारयिष्यति पारयिष्यतः पारयिष्यन्ति
पारयिष्यसि पारयिष्यथ: पारयिष्यथ
पारयिष्यामि पारयिष्याव: पारयिष्यामः क्रि० अपारयिष्यत् अपारयिष्यताम् अपारयिष्यन् अपारयिष्यः अपारयिष्यतम्
अपारयिष्यत अपारयिष्यम् अपारयिष्याव अपारयिष्याम
१५७०. घृण (घ) स्रवणे। ३ व० घारयति घारयत: घारयन्ति स० घारयेत् घारयेताम् घारयेयुः प० घारयतु/घारयतात् घारयताम् घारयन्तु ह्य० अघारयत् अघारयताम् अघारयन् अ० अजीघरत् अजीघरताम् अजीघरन् प० घारयाञ्चकार घारयाञ्चक्रतुः घारयाञ्चक्रुः आ० घार्यात् घार्यास्ताम् घार्यासुः श्व० घारयिता घारयितारौ घारयितारः भ० घारयिष्यति घारयिष्यतः घारयिष्यन्ति क्रि० अघारयिष्यत् अघारयिष्यताम्। अघारयिष्यन्
॥अथ कान्ता अष्टौ।। १५७१. श्वल्कण (श्वल्क्) भाषणे। ४ व० श्वल्कयति श्वल्कयतः श्वल्कयन्ति
स० श्वल्कयेत् श्वल्कयेताम् श्वल्कयेयुः प० श्वल्कयतु श्वल्कयतात् श्वल्कयताम् ह्य० अश्वल्कयत् अश्वल्कयताम् अश्वल्कयन् अ० अशश्वल्कत् अशश्वल्कताम् अशश्वल्कन् प० श्वल्कयाञ्चकार श्वल्कयाञ्चक्रतुः श्वल्कयाञ्चक्रुः आ० श्वल्क्यात् श्वल्क्यास्ताम् श्वल्क्यासुः श्व० श्वल्कयिता श्वल्कयतारौ श्वल्कयितारः भ० श्वल्कयिष्यति श्वल्कयिष्यतः श्वल्कयिष्यन्ति क्रि० अश्वल्कयिष्यत् अश्वल्कयिष्यताम् अश्वल्कयिष्यन्
१५७२. वल्कण (वल्क्) भाषणे। ५ व० वल्कयति वल्कयतः वल्कयन्ति स० वल्कयेत् वल्कयेताम् वल्कयेयुः प० वल्कयतु वल्कयतात् वल्कयताम् ह्य० अवल्कयत् अवल्कयताम् अवल्कयन् अ० अववल्कत् अववल्कताम् अववल्कन् प० वल्कयाञ्चकार वल्कयाञ्चक्रतुः वल्कयाञ्चक्रुः आ० वल्कयात् वल्कयास्ताम् वल्कयासुः श्व० वल्कयिता वल्कयितारौ वल्कयितार: भ० वल्कयिष्यति वल्कयिष्यतः वल्कयिष्यन्ति क्रि० अवल्कयिष्यत् अवल्कयिष्यताम् अवल्कयिष्यन्
१५७३. नक्कण (नक्क्) नाशने। ६ व० नक्कयति नक्कयतः नक्कयन्ति स० नक्कयेत् नक्कयेताम् नक्कयेयः प० नक्कयतु नक्कयतात् नक्कयताम् ह्य० अनक्कयत् अनक्कयताम् अनक्कयन् अ० अननक्कत् अननक्कताम् अननक्कन् प० नक्कयाञ्चकार नक्कयाञ्चक्रतुः नक्कयाञ्चक्रुः आ० नक्कयात् नक्कयास्ताम् नक्कयासुः श्व० नक्कयिता नक्कयितारौ नक्कयितार: भ० नक्कयिष्यति नक्कयिष्यतः नक्कयिष्यन्ति क्रि० अनक्कयिष्यत् अनक्कयिष्यताम् अनक्कयिष्यन्
Page #465
--------------------------------------------------------------------------
________________
448
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
टङ्कयेयुः
१५७४. धक्कण् (धक्क्) नाशने। ७ व० धक्कयति धक्कयत: धक्कयन्ति स० धक्कयेत् धक्कयेताम् धक्कयेयुः प० धक्कयतु
धक्कयतात् धक्कयताम् ह्य० अधक्कयत् अधक्कयताम् अधक्कयन् अ० अदधक्कत् अदधक्कताम् अदधक्कन् प० धक्कयाञ्चकार धक्कयाञ्चक्रतुः धक्कयाञ्चक्रुः आ० धक्कयात् धक्कयास्ताम् धक्कयासुः श्व० धक्कयिता धक्कयितारौ धक्कयितारः भ० धक्कयिष्यति धक्कयिष्यतः धक्कयिष्यन्ति क्रि० अधक्कयिष्यत् अधक्कयिष्यताम् अधक्कयिष्यन्
१५७५. चक्कण (चक्क) व्यथने। ८ व० चक्कयति चक्कयतः चक्कयन्ति स० चक्कयेत् चक्कयेताम् चक्कयेयुः प० चक्कयतु चक्कयतात् चक्कयताम् ह्य० अचक्कयत् अचक्कयताम् अचक्कयन् अ० अचचक्कत् अचचक्कताम् अचचक्कन् प० चक्कयाञ्चकार चक्कयाञ्चक्रतुः चक्कयाञ्चक्रुः आ० चक्कयात् चक्कयास्ताम् चक्कयासुः श्व० चक्कयिता चक्कयितारौ चक्कयितार: भ० चक्कयिष्यति चक्कयिष्यतः चक्कयिष्यन्ति क्रि० अचक्कयिष्यत् अचक्कयिष्यताम् अचक्कयिष्यन्
१५७६. चुक्कण (चुक्क्) व्यथने। ९ व० चुक्कयति चुक्कयतः चुक्कयन्ति स० चुक्कयेत्
चुक्कयेताम्
चुक्कयेयुः प० चुक्कयतु चुक्कयतात् चुक्कयताम् ह्य० अचुक्कयत् अचुक्कयताम् अचुक्कयन् अ० अचुचुक्कत् अचुचुक्कताम् अचुचुक्कन् प० चुक्कयाञ्चकार चुक्कयाञ्चक्रतुः चुक्कयाञ्चक्रुः आ० चुक्कयात् चुक्कयास्ताम् चुक्कयासुः श्व० चुक्कयिता चुक्कयितारौ चुक्कयितार: भ० चुक्कयिष्यति चुक्कयिष्यतः ।
चुक्कयिष्यन्ति
क्रि० अचुक्कयिष्यत् अचुक्कयिष्यताम् अचुक्कयिष्यन्
१५७७. टकुण् (टड्क्) बन्धने। १० व० टङ्कयति टङ्कयतः टङ्कयन्ति स० टङ्कयेत् टङ्कयेताम् प० टङ्कयतु/टङ्कयतात् टङ्कयताम् धक्कयन्तु ह्य० अटङ्कयत् अटङ्कयताम् अटङ्कयन् अ० अटटङ्कत् अटटङ्कताम् अटटङ्कन् प० टङ्कयाञ्चकार टङ्कयाञ्चक्रतुः टङ्कयाञ्चक्रुः आ० टङ्कयात् टङ्ख्यास्ताम् टङ्कयासुः श्व० टङ्कयिता टङ्कयितारौ टङ्कयितारः भ० टङ्कयिष्यति टङ्कयिष्यतः टङ्कयिष्यन्ति क्रि० अटङ्कयिष्यत् अटङ्कयिष्यताम् अटङ्कयिष्यन्
१५७८. अर्कण् (अ) स्तवने। ११ व० अर्कयति अर्कयतः अर्कयन्ति स० अर्कयेत् अर्कयेताम् अर्कयेयुः प० अर्कयतु अर्कयतात् अर्कयताम् ह्य० आर्कयत् आर्कयताम् अ० आर्चिकत् आर्चिकताम् आर्चिकन् प० अर्कयाञ्चकार अर्कयाञ्चक्रतुः
अर्कयाञ्चक्रुः आ० अर्कयात् अर्कयास्ताम् अर्कयासुः श्व० अर्कयिता अर्कयितारौ अर्कयितारः भ० अर्कयिष्यति अर्कयिष्यतः अर्कयिष्यन्ति क्रि० आर्कयिष्यत आर्कयिष्यताम आर्कयिष्यन्
१५७९. पिच्चण् (पिच्च्) कुटने। १२ व० पिच्चयति पिच्चयत: पिच्चयन्ति स० पिच्चयेत् पिच्चयेताम् पिच्चयेयुः प० पिच्चयतु पिच्चयतात् पिच्चयताम् ह्य० अपिच्चयत् अपिच्चयताम् अपिच्चयन् अ० अपिपिच्चत् अपिपिच्चताम् अपिपिच्चन् प० पिच्चयाञ्चकार पिच्चयाञ्चक्रतुः पिच्चयाञ्चक्रुः आ० पिच्चयात् पिच्चयास्ताम् पिच्चयासुः श्व० पिच्चयिता पिच्चयितारौ पिच्चयितार:
आर्कयन्
Page #466
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
449
और्जयतम्
और्जिजन्
भ० पिच्चयिष्यति पिच्चयिष्यतः पिच्चयिष्यन्ति क्रि० अपिच्चयिष्यत् अपिच्चयिष्यताम् अपिच्चयिष्यन्
१५८०. पचुण (पञ्च्) विस्तारे। १३ व० प्रपञ्चयति प्रपञ्चयतः प्रपञ्चयन्ति स० प्रपञ्चयेत् प्रपञ्चयेताम् प्रपञ्चयेयुः प० प्रपञ्चयतु/प्रपञ्चयतात् प्रपञ्चयताम् प्रपञ्चयन्तु ह्य० प्रापञ्चयत् प्रापञ्चयताम् प्रापञ्चयन् अ० प्रापपञ्चत् प्रापपञ्चताम् प्रापपञ्चन् प० प्रपञ्चयाञ्चकार प्रपञ्चयाञ्चक्रतुः प्रपञ्चयाञ्चक्रुः आ० प्रपञ्च्यात् प्रपञ्च्यास्ताम् प्रपञ्च्यासुः श्व० प्रपञ्चयिता प्रपञ्चयितारौ प्रपञ्चयितारः भ० प्रपञ्चयिष्यति प्रपञ्चयिष्यतः प्रपञ्चयिष्यन्ति क्रि० अप्रपञ्चयिष्यत् अप्रपञ्चयिष्यताम् अप्रपञ्चयिष्यन् . १५८१. म्लेच्छण् (म्लेच्छ्) म्लेच्छने।
म्लेच्छनमव्यक्ता वाक्। १४ व० म्लेच्छयति म्लेच्छयतः म्लेच्छयन्ति स० म्लेच्छयेत् म्लेच्छयेताम् म्लेच्छयेयुः प० म्लेच्छयतु/म्लेच्छयतात् म्लेच्छयताम् म्लेच्छयन्तु ह्य० अम्लेच्छयत् अम्लेच्छयताम अम्लेच्छयन् अ० अमिम्लेच्छत् अमिम्लेच्छताम् अमिम्लेच्छन् प० म्लेच्छयाञ्चकार म्लेच्छयाञ्चक्रतुः म्लेच्छयाञ्चक्रुः आ० म्लेच्छ्यात् म्लेच्छयास्ताम् । म्लेच्छयासुः श्व० म्लेच्छयिता म्लेच्छयितारौ म्लेच्छयितारः भ० म्लेच्छयिष्यति म्लेच्छयिष्यतः म्लेच्छयिष्यन्ति क्रि० अम्लेच्छयिष्यत् अम्लेच्छयिष्यताम् अम्लेच्छयिष्यन्
___अथ जान्ता एकादश। १५८२. ऊर्जण् (क) बलप्राणनयोः।
प्राणनं जीवनम्। १५ व० ऊर्जयति ऊर्जयत: ऊर्जयन्ति
ऊर्जयसि ऊर्जयथः ऊर्जयथ
ऊर्जयामि ऊर्जयाव: ऊर्जयामः स० ऊर्जयेत्
ऊर्जयेताम्
ऊर्जये: ऊर्जयेतम् ऊर्जयेत
ऊर्जयेयम् ऊर्जयेव ऊर्जयेम | प० ऊर्जयतु/ऊर्जयतात् ऊर्जयताम् ऊर्जयन्तु
ऊर्जय/ऊर्जयतात् ऊर्जयतम् ऊर्जयत
ऊर्जयाणि ऊर्जयाव ऊर्जयाम ह्य० और्जयत् और्जयताम् और्जयन् और्जयः
और्जयत और्जयम्
और्जयाव और्जयाम अ० और्जिजत और्जिजताम् और्जिजः और्जिजतम्
और्जिजत आर्जिजम्
और्जिजाव और्जिजाम ऊर्जयाञ्चक्रतुः
ऊर्जयाञ्चक्रुः ऊर्जयाञ्चकर्थ ऊर्जयाञ्चक्रथुः ऊर्जयाञ्चक्र ऊर्जयाञ्चकार/कर ऊर्जयाञ्चकृव ऊर्जयाञ्चकृम
ऊर्जयाम्बभूव/ऊर्जयामास। आ० ऊर्ध्यात् ऊर्यास्ताम् ऊर्ध्यासुः
ऊाः ऊर्ध्यास्तम् ऊयास्त
ऊासम् ऊास्व ऊयास्म श्व० ऊर्जयिता ऊर्जयितारौ ऊर्जयितार:
ऊर्जयितासि ऊर्जयितास्थः ऊर्जयितास्थ
ऊर्जयितास्मि ऊर्जयितास्व: ऊर्जयितास्मः भ० ऊर्जयिष्यति ऊर्जयिष्यतः ऊर्जयिष्यन्ति
ऊर्जयिष्यसि ऊर्जयिष्यथ: ऊर्जयिष्यथ
ऊर्जयिष्यामि ऊर्जयिष्याव: ऊर्जयिष्यामः क्रि० और्जयिष्यत् और्जयिष्यताम् और्जयिष्यन्
और्जयिष्यः और्जयिष्यतम् और्जयिष्यत और्जयिष्यम् और्जयिष्याव और्जयिष्याम १५८३. तुजुण (तुज्) हिंसाबलदाननिकेतनेषु।
निकेतनं गृहम्। १६ व० तुञ्जयति तुञ्जयतः तुञ्जयन्ति तुञ्जयसि
तुञ्जयथः तुञ्जयथ तुञ्जयामि
तुञ्जयावः तुञ्जयाम:
ऊर्जयेयुः
Page #467
--------------------------------------------------------------------------
________________
450
स० [तुञ्जयेत्
तुञ्जये:
तुञ्जयेयम्
प० तुञ्जयतु तुञ्जयतात् तुञ्जयताम्
तुञ्जय/तुञ्जयतात् तुञ्जयतम्
तुञ्जयाव
तुञ्जयानि
ह्य० अतुञ्जयत्
अतुञ्जयताम्
अतुञ्जयः
अतुञ्जयतम्
अतुञ्जयम्
अतुञ्जयाव
अ० अतुतुञ्जत्
अतुतुञ्जताम्
अतुतुञ्जः
अतुतुञ्जतम्
अतुतुञ्जम् अतुतुञ्जाव
प० तुञ्जयाञ्चकार तुञ्जयाञ्चकर्थ
तुञ्जयाञ्चक्रतुः
तुञ्जयाञ्चक्रथुः
तुञ्जयाञ्चकार/कर तुञ्जयाञ्चकृव
तुञ्जयाम्बभूव/तुञ्जयामास ।
आ० तुञ्ज्यात्
तुञ्ज्या:
तुज्यासम्
श्व० तुञ्जयिता
तुञ्जयेताम्
तुञ्जतम्
तुञ्जयेव
व० पिञ्जयति
स० [पिञ्जयेत्
तुज्यास्ताम्
तुज्यास्तम्
तुञ्जयितासि
तुञ्जयितास्थः
तुञ्जयितास्मि तुञ्जयितास्वः
तुज्यास्व
तुञ्जयितारौ
तुञ्जयेयुः
तुञ्जयेत
तुञ्जयेम
भ० तुञ्जयिष्यति तुञ्जयिष्यतः
तुञ्जयिष्यसि तुञ्जयिष्यथः तुञ्जयिष्यामि तुञ्जयिष्यावः
तुञ्जयिष्यामः
क्रि० अतुञ्जयिष्यत् अतुञ्जयिष्यताम् अतुञ्जयिष्यन्
अतुञ्जयिष्यः अतुञ्जयिष्यतम् अतुञ्जयिष्यत अतुञ्जयिष्यम् अतुञ्जयिष्याव अतुञ्जयिष्याम १५८४. पिजुण् (पिञ्ज्) हिसाबलदाननिकेतनेषु।
निकेतनं गृहम्। १७
पिञ्जयतः
पिञ्जयेताम्
तुञ्जयन्तु
तुञ्जयत
तुञ्जयाम
अतुञ्जयन्
अतुञ्जयत
अतुञ्जयाम
अतुतुञ्जन्
अतुतुञ्जत
अतुतुञ्जाम
तुञ्जयाञ्चक्रुः
तुञ्जयाञ्चक्र
तुञ्जयाञ्चकृम
तुज्यासुः
तुज्यास्त
तुज्यास्म
तुञ्जयितार:
तुञ्जयितास्थ
तुञ्जयितास्मः
तुञ्जयिष्यन्ति
तुञ्जयिष्यथ
पिञ्जयन्ति
पिञ्जयेयुः
प० पिञ्जयतु/तात्
० अपिञ्जयत्
अ० अपिपिञ्जत्
प० पिञ्जयाञ्चकार
पिञ्जयाञ्चक्रतुः पिञ्जयाञ्चक्रुः
आ० पिञ्ज्यात्
पिञ्ज्यास्ताम्
पिञ्ज्यासुः
श्व० पिञ्जयिता
पिञ्जयितारौ पिञ्जयितार:
भ० पिञ्जयिष्यति
पिञ्जयिष्यतः पिञ्जयिष्यन्ति
क्रि० अपिञ्जयिष्यत् अपिञ्जयिष्यताम् अपिञ्जयिष्यन्
१५८५. क्षजुण् (क्ष) कृच्छ्रजीवने । १८
व० क्षञ्जयति
० क्षञ्जयेत्
प० क्षञ्जयतु /तात्
ह्य० अक्षञ्जयत्
अ० अचक्षञ्जत्
प० क्षञ्जयाञ्चकार
आ० क्षञ्ज्यात्
श्व० क्षञ्जयिता
भ० क्षञ्जयिष्यति
क्रि० अक्षञ्जयिष्यत्
व० पूजयति
० पूजयेत्
१५८६. पूजण् (पूज्) पूजायाम् । १९
प० पूजयाञ्चकार
आ० पूज्यात्
श्व० पूजयिता
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
पिञ्जयताम्
पिञ्जयन्तु
अपिञ्जयताम् अपिञ्जयन् अपिपिञ्जताम् अपिपिञ्जन्
भ० पूजयिष्यति
क्रि० अपूजयिष्यत्
क्षञ्जयतः
क्षञ्जयन्ति
क्षञ्जयेताम्
क्षञ्जयेयुः
क्षञ्जयताम्
क्षञ्जयन्तु
अक्षञ्जयताम्
अक्षञ्जयन्
अचक्षञ्जताम्
अचक्षञ्जन्
क्षञ्जयाञ्चक्रतुः
क्षञ्जयाञ्चक्रुः
क्षञ्ज्यास्ताम्
क्षञ्ज्यासुः
क्षञ्जयितारौ
क्षञ्जयितारः
क्षञ्जयिष्यतः क्षञ्जयिष्यन्ति
व० गाजयति
० गाज
अक्षञ्जयिष्यताम् अक्षञ्जयिष्यन्
जम्
प० पूजयतु / पूजयतात् पूजयताम्
ह्य० अपूजयत्
अ० अपुपूजत्
पूजयन्ति
पूजयेयुः
पूजयन्तु
अपूजयन्
अजन्
पूजयाञ्चक्रुः
पूज्यासुः
पूजयितार:
पूजयिष्यन्ति
पूजयिष्यताम् अपूजयिष्यन्
पूजयतः
अपूजयताम्
अपुपूजताम्
१५८७. गजण् (गज्) शब्दे । २०
गाजयतः
पूजयाञ्चक्रतुः
पूज्यास्ताम्
पूजयितारौ
पूजयिष्यतः
जम्
गाजयन्ति
गाजयेयुः
Page #468
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
451
माासुः
प० गाजयतु/गाजयतात् गाजयताम् गाजयन्तु ह्य० अगाजयत् अगाजयताम् अगाजयन् अ० अजीगजत् अजीगजताम्
अजीगजन् प० गाजयाञ्चकार गाजयाञ्चक्रतुः गाजयाञ्चक्रुः आ० गाज्यात् गाज्यास्ताम् गाज्यासुः श्व० गाजयिता गाजयितारौ गाजयितारः भ० गाजयिष्यति गाजयिष्यतः गाजयिष्यन्ति क्रि० अगाजयिष्यत् अगाजयिष्यताम अगाजयिष्यन
१५८८. मार्जण् (मा) शब्दे। २१ व० मार्जयति मार्जयतः मार्जयन्ति स० मार्जयेत् मार्जयेताम् मार्जयेयुः प० मार्जयतु/तात् मार्जयताम् मार्जयन्तु ह्य० अमार्जयत् अमार्जयताम् अमार्जयन् अ० अममार्जत् अममार्जताम् अममार्जन प० मार्जयाञ्चकार मार्जयाञ्चक्रतुः
मार्जयाञ्चक्रुः आ० माात् माास्ताम् श्व० मार्जयिता मार्जयितारौ मार्जयितार: भ० मार्जयिष्यति मार्जयिष्यतः मार्जयिष्यन्ति क्रि० अमार्जयिष्यत् अमार्जयिष्यताम् अमार्जयिष्यन्
१५८९. तिजण् (तिज्) निशाने। २२ व० तेजयति
तेजयतः
तेजयन्ति स० तेजयेत् प० तेजयतु/तेजयतात् तेजयताम् तेजयन्तु ह्य० अतेजयत्
अतेजयताम्
अतेजयन् अ० अतीतिजत् अतीतिजताम् अतीतिजन् प० तेजयाञ्चकार तेजयाञ्चक्रतुः
तेजयाञ्चक्रुः आ० तेज्यात् तेज्यास्ताम् ० तेजयिता तेजथितारौ तेजयितारः भ० तेजयिष्यति तेजयिष्यतः तेजयिष्यन्ति क्रि० अतेजयिष्यत् अतेजयिष्यताम अतेजयिष्यन्
१५९०. वजण (वज्) मार्वणसंस्कारगत्योः। मार्वणो बाणस्तस्य संस्कारे गतौ च। २३
व० वाजयति वाजयतः वाजयन्ति स० वाजयेत् वाजयेताम् वाजयेयुः प० वाजयतु/वाजयतात् वाजयताम् वाजयन्तु ह्य० अवाजयत् अवाजयताम् अवाजयन् अ० अवीवजत् अवीवजताम् अवीवजन् प० वाजयाञ्चकार वाजयाञ्चक्रतुः वाजयाञ्चक्रुः आ० वाज्यात् वाज्यास्ताम् वाज्यासुः व० वाजयिता वाजयितारौ वाजयितारः भ० वाजयिष्यति वाजयिष्यतः वाजयिष्यन्ति क्रि० अवाजयिष्यत् अवाजयिष्यताम् अवाजयिष्यन् १५९१. व्रजण (व्रज) मार्गणसंस्कारगत्योः। मार्गणो
बाणस्तस्य संस्कारे गतौ च। २३ व० वाजयति वाजयतः व्राजयन्ति स० वाजयेत् व्राजयेताम्
व्राजयेयुः प० वाजयतु व्राजयतात् वाजयताम् वाजयन्तु ह्य० अव्राजयत् अव्राजयताम् अवाजयन् अ० अविव्रजत् अविव्रजताम् अविव्रजन् प० वाजयाञ्चकार वाजयाञ्चक्रतुः व्राजयाञ्चक्रुः
वाजयाम्बभूव/वाजयामास। आ० व्राज्यात् व्राज्यास्ताम् व्राज्यासुः श्व० वाजयिता वाजयितारौ वाजयितार: भ० वाजयिष्यति वाजयिष्यतः व्राजयिष्यन्ति क्रि० अव्राजयिष्यत् अवाजयिष्यताम् अवाजयिष्यन्
१५९२. रुजण् (रुज्) हिंसायाम्। २५ व० रोजयति रोजयतः रोजयन्ति स० रोजयेत् रोजयेताम् रोजयेयुः प० रोजयतु/रोजयतात् रोजयताम् ह्य० अरोजयत् अरोजयताम् अरोजयन् अ० अरुरुजत् अरुरुजताम् अरुरुजन् प० रोजयाञ्चकार रोजयाञ्चक्रतुः रोजयाञ्चक्रुः
रोजयाम्बभूव/रोजयामास आ० रोज्यात् रोज्यास्ताम्
तेजयेताम्
तेजयेयुः
तेज्यासुः
रोजयन्तु
रोज्यासुः
Page #469
--------------------------------------------------------------------------
________________
452
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
चोट्यासुः
श्व० रोजयिता रोजयितारौ रोजयितारः भ० रोजयिष्यति रोजयिष्यतः रोजयिष्यन्ति क्रि० अरोजयिष्यत् अरोजयिष्यताम् अरोजयिष्यन्
अथ टान्तास्त्रयोविंशतिः। १५९३. नटण् (नट्) अवस्यन्दने। २६ व० नाटयति नाटयतः नाटयन्ति स० नाटयेत् नाटयेताम् नाटयेयुः प० नाटयतु/नाटयतात् नाटयताम् नाटयन्तु ह्य० अनाटयत् अनाटयताम् अनाटयन् अ० अनीनटत् अनीनटताम् अनीनटन् प० नाटयाञ्चकार नाटयाशक्रतुः नाटयाञ्चक्रुः
नाटयाम्बभूव/नाटयामास। आ० नाट्यात् नाट्यास्ताम् नाट्यासुः श्व० नाटयिता नाटयितारौ नाटयितारः भ० नाटयिष्यति नाटयिष्यतः नाटयिष्यन्ति क्रि० अनाटयिष्यत् अनाटयिष्यताम् अनाटयिष्यन्
१५९४. तुटण् (तुट्) छेदने। २७ व० तोटयति तोटयतः तोटयन्ति स० तोटयेत् तोटयेताम् तोटयेयुः प० तोटयतु/तोटयतात् तोटयताम् । तोटयन्तु ह्य० अतोटयत् अतोटयताम् अतोटयन् अ० अतुतुटत् अतुतुटताम् अतुतुटन् प० तोटयाञ्चकार तोटयाञ्चक्रतुः तोटयाञ्चक्रुः
तोटयाम्बभूव/तोटयामास। आ० तोट्यात् तोट्यास्ताम् तोट्यासुः श्व० तोटयिता तोटयितारौ तोटयितारः भ० तोटयिष्यति तोटयिष्यतः तोटयिष्यन्ति क्रि० अतोटयिष्यत् अतोटयिष्यताम् अतोटयिष्यन्
१५९५. चुटण (चुट्) छेदने। २८ व० चोटयति चोटयतः चोटयन्ति स० चोटयेत् चोटयेताम् प० चोटयतु/चोटयतात् चोटयताम् चोटयन्तु
ह्य०. अचोटयत् अचोटयताम् अचोटयन् अ० अचुचुटत् अचुचुटताम् अचुचुटन् प० चोटयाञ्चकार चोटयाञ्चक्रतुः
चोटयाञ्चक्रुः ___ चोटयाम्बभूव/चोटयामास। आ० चोट्यात् चोट्यास्ताम् श्व० चोटयिता चोटयितारी चोटयितारः भ० चोटयिष्यति चोटयिष्यतः चोटयिष्यन्ति क्रि० अचोटयिष्यत् अचोटयिष्यताम् अचोटयिष्यन्
१५९६. चुटुण् (चुण्ट्) छेदने। २९ व० चुण्टयति चुण्टयतः
चुण्टयन्ति स० चुण्टयेत् चुण्टयेताम् चुण्टयेयुः प० चुण्टयतु/तात् चुण्टयताम् चुण्टयन्तु ह्य० अचुण्टयत् अचुण्टयताम् अचुण्टयन् अ० अचुचुण्टत् अचुचुण्टताम् अचुचुण्टन् प० चुण्टयाञ्चकार चुण्टयाञ्चक्रतुः चुण्टयाञ्चक्रुः
चुण्टयाम्बभूव/चुण्टयामास। आ० चुण्ट्यात् चुण्ट्यास्ताम् चुण्ट्यासुः श्व० चुण्टयिता चुण्टयितारौ चुण्टयितार: भ० चुण्टयिष्यति चुण्टयिष्यतः चुण्टयिष्यन्ति क्रि० अचुण्टयिष्यत् अचुण्टयिष्यताम् अचुण्टयिष्यन्
१५९७. छुटण् (छुट्) छेदने। ३० व० छोटयति छोटयतः छोटयन्ति स० छोटयेत् छोटयेताम् छोटयेयुः प० छोटयतु/छोटयतात् छोटयताम् ह्य० अच्छोटयत् अच्छोटयताम् अच्छोटयन् अ० अचुच्छुटत् अचुच्छुटताम् अचुच्छुटन् प० छोटयाञ्चकार छोटयाञ्चक्रतुः छोटयाञ्चक्रुः ____ छोटयाम्बभूव/छोटयामास।
आ० छोट्यात् छोट्यास्ताम् श्व० छोटयिता छोटयितारौ छोटयितार: भ० छोटयिष्यति छोटयिष्यतः छोटयिष्यन्ति क्रि० अच्छोटयिष्यत् अच्छोटयिष्यताम् अच्छोटयिष्यन्
छोटयन्तु
छोट्यासुः
चोटयेयुः
Page #470
--------------------------------------------------------------------------
________________
453
चुरादिगण
_१५९७-२. छुटण् (छुट्) इतिपाठे। व० छुण्टयति छुण्टयतः छुण्टयन्ति स० छुण्टयेत् छुण्टयेताम् छुण्टयेयुः प० छुण्टयतु/छुण्टयतात् छुण्टयताम् छुण्टयन्तु ह्य० अच्छुण्टयत् अच्छुण्टयताम् अच्छुण्टयन् अ० अचुच्छुण्टत् अचुच्छुण्टताम् अचुच्छुण्टन् प० छुण्टयाञ्चकार छुण्टयाञ्चक्रतुः छुण्टयाञ्चक्रुः
छुण्टयाम्बभूव/छुण्टयामास। आ० छुण्ट्यात् छुण्ट्यास्ताम् छुण्ट्यासुः श्व० छुण्टयिता छुण्टयितारौ छुण्टयितार: भ० छुण्टयिष्यति छुण्टयिष्यतः छुण्टयिष्यन्ति क्रि० अच्छुण्टयिष्यत् अच्छुण्टयिष्यताम् अच्छुण्टयिष्यन्
१५९८. कुट्टण् (कुट्ट) कुत्सने च।
|चकाराच्छेदने।। ३१ व० कुट्टयति कुट्टयतः कुट्टयन्ति स० कुट्टयेत् कुट्टयेताम् कुट्टयेयुः प० कुट्टयतु/कुट्टयतात् कुट्टयताम् कुट्टयन्तु ह्य० अकुट्टयत् अकुट्टयताम् अकुट्टयन् अ० अचुकुट्टत् अचुकुट्टताम् अचुकुट्टन् प० कुट्टयाञ्चकार कुट्टयाञ्चक्रतुः कुट्टयाञ्चक्रुः
कुट्टयाम्बभूव/कुट्टयामास। आ० कुट्ट्यात् कुट्ट्यास्ताम् कुट्यासुः श्व० कुट्टयिता कुट्टयितारौ कुट्टयितार: भ० कुट्टयिष्यति कुट्टयिष्यतः कुट्टयिष्यन्ति क्रि० अकुट्टयिष्यत् अकुट्टयिष्यताम् अकुट्टयिष्यन्
१५९९. पुट्टण् (पुट्ठ) अल्पीभावे। ३२ व० पुट्टयति पुट्टयतः । पुट्टयन्ति स० पुट्टयेत् पुट्टयेताम् पुट्टयेयुः प० पुट्टयतु/पुट्टयतात् पुट्टयताम् पुट्टयन्तु ह्य० अपुट्टयत् अपुट्टयताम् अपुट्टयन् अ० अपुपुट्टत् अपुपुट्टताम्
अपुपुट्टन् प० पुट्टयाञ्चकार पुट्टयाञ्चक्रतुः पुट्टयाञ्चक्रुः
पुट्टयाम्बभूव/पुट्टयामास। आ० पुट्ट्यात् पुट्ट्यास्ताम् । पुट्ट्यासुः श्व० पुट्टयिता पुट्टयितारौ पुट्टयितारः भ० पुट्टयिष्यति पुट्टयिष्यतः पुट्टयिष्यन्ति क्रि० अपुट्टयिष्यत् अपुट्टयिष्यताम् अपुट्टयिष्यन्
१६००. चुट्टण (चुट्) अल्पीभावे। ३३ व० चुट्टयति चुट्टयतः चुट्टयन्ति स० चुट्टयेत् चुट्टयेताम् चुट्टयेयुः प० चुट्टयतु/चुट्टयतात् चुट्टयताम् चुट्टयन्तु ह्य० अचुट्टयत् अचुट्टयताम् अचुट्टयन् अ० अचुचुट्टत् अचुचुट्टताम् अचुचुट्टन् प० चुट्टयाञ्चकार चुट्टयाञ्चक्रतुः चुट्टयाश्चक्रुः
चुट्टयाम्बभूव/चुट्टयामास। आ० चुट्ट्यात् चुट्ट्यास्ताम् चुट्यासुः श्व० चुट्टयिता चुट्टयितारौ चुट्टयितारः भ० चुट्टयिष्यति चुट्टयिष्यतः चुट्टयिष्यन्ति क्रि० अचुट्टयिष्यत् अचुट्टयिष्यताम् अचुट्टयिष्यन्
१६०१. पुट्टण (सु) अल्पीभावे। ३४ व० सुट्टयति सुट्टयतः सुट्टयन्ति स० सुट्टयेत् सुट्टयेताम् सुट्टयेयुः प० सुट्टयतु/सुट्टयतात् सुट्टयताम् सुट्टयन्तु ह्य० असुट्टयत् असुट्टयताम् असुट्टयन् अ० असुषुट्टत् असुषुट्टताम्
असुषुट्टन् प० सुट्टयाञ्चकार सुट्टयाञ्चक्रतुः सुट्टयाञ्चक्रुः
सुट्टयाम्बभूव/सुट्टयामास। आ० सुट्ट्यात् सुट्ट्यास्ताम् सुट्यासुः श्व० सुट्टयिता
सुट्टयितारौ
सुट्टयितार: भ० सुट्टयिष्यति सुट्टयिष्यतः सुट्टयिष्यन्ति क्रि० असुट्टयिष्यत् असुट्टयिष्यताम् असुट्टयिष्यन्
१६०२. पुटण (पुट्) संपूर्णने। ३५ व० पोटयति
पोटयन्ति स० पोटयेत् पोटयेताम्
पोटयेयुः
पोटयत:
Page #471
--------------------------------------------------------------------------
________________
454
प० पोटयतु / पोटयतात् पोटयताम्
ह्य० अपोटयत्
अपोटयताम्
अ० अपुपुटत्
प० पोटयाञ्चकार
पोटयाम्बभूव/पोटयामास ।
आ० पोट्यात्
व० पोटयिता
भ० पोटयिष्यति
क्रि० अपोटयिष्यत्
पोट्यास्ताम्
पोटतिरौ
पोटयिष्यतः
अपोटयिष्यताम्
१६०३. मुटण् (मुद्) संपूर्णने । ३६
व० मोटयति
मोटयतः
० मोट
मोम्
प० मोटयतु / मोटयतात् मोटयताम्
० अमोटयत्
अमोयताम्
अ० अमुमुटत्
प० मोटयाञ्चकार
अपुपुटताम्
पोटयाञ्चक्रतुः
मोटयाम्बभूव/मोटयामास ।
अमुमुटताम्
मोटयाञ्चक्रतुः
० मोट्यात्
श्व० मोटयिता
भ० मोटयिष्यति
क्रि० अमोयिष्यत् अमोयिष्यताम्
हा० आट्टयत्
अ० आट्टित्
प० अट्टयाञ्चकार
मोट्यास्ताम्
मोयितारौ
मोटयिष्यतः
आ० अट्टयात्
श्र० अट्टयिता भ० अट्टयिष्यति
व० अट्टयति
अट्टयतः
० अट्टयेत्
अट्टाम्
प० अट्टयतु / अट्टयतात् अट्टयताम्
अट्टयाम्बभूव/अट्टयामास ।
पोटयन्तु
अपोटयन्
१६०४. अट्टण् (अट्टू) अनादरे । ३७
अट्टयाञ्चक्रतुः
अपुपुटन्
पोटयाञ्चक्रुः
पोट्यासुः
पोटयितार:
पोटयिष्यन्ति
अपोटयिष्यन्
अट्ट
अट्टयिष्यतः
मोटयन्ति
मोटयेयुः
मोटयन्तु
अमोटयन्
अन्ति
अयेयुः
अट्टयन्तु
आट्टयताम्
आट्टयन्
आट्टताम् आट्टिटन्
अट्टयाञ्चक्रुः
अमुमुटन्
मोटयाञ्चक्रुः
मोट्यासुः
मोटयितारः
मोटयिष्यन्ति
अमोयिष्यन्
अट्ट्यास्ताम् अट्ट्यासुः
अट्टयितार:
अट्टयिष्यन्ति
क्रि० आट्टयिष्यत्
१६०५. स्मिटण् (स्मिट) अनादरे। ३८
व० स्मेटयति
स्मेटयतः
स्मेटयन्ति
स० [स्मेटयेत्
स्टाम्
स्पेटयेयुः
प० स्मेटयतु/स्मेटयतात् स्मेटयताम्
स्मेयन्तु
० अस्मेयत्
अस्याम्
अस्मेटयन्
अ० असिस्मिटत्
असिस्मिटताम् असिस्मिटन्
प० स्मेटयाञ्चकार
स्मेटयाञ्चक्रतुः
स्मेटयाञ्चक्रुः
स्मेटयाम्बभूव/स्मेटयामास ।
आ० स्यात्
श्व० स्मेटयिता
भ० स्मेटयिष्यति
क्रि० अस्मेटयिष्यत्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग आट्टयिष्यताम् आट्टयिष्यन्
आ० लुण्ट्यात्
श्व० लुण्टयिता
१६०६. लुटुण् (लुण्ट्) स्तेये । ३९
लुण्टयतः
भ० लुटयिष्यति
क्रिं० अलुण्टयिष्यत्
मेट्यास्ताम्
स्मेटयितारौ
स्मेटयिष्यतः
स्पेट्यासुः
स्मेटयितार:
स्मेटयिष्यन्ति
अस्मेटयिष्यताम् अस्मेटयिष्यन्
व० लुण्टयति
o लुत्
ताम्
प० लुण्टयतु / लुण्टयतात् लुण्टयताम्
ह्य० अलुण्टयत्
अलुण्टयताम्
अ० अलुलुण्टत्
अलुलुण्टताम्
प० लुण्टयाञ्चकार लुण्टयाञ्चक्रतुः
लुण्टयाम्बभूव/लुण्टयामास ।
लुटयन्ति
लुण्येयुः
लुण्टयन्तु
अलुण्टयन्
अलुलुण्टन्
लुण्टयाञ्चक्रुः
लुण्ट्यास्ताम् लुण्ट्यासुः
लुटतारौ
लुण्टयितार:
लुण्टयिष्यतः लुटयिष्यन्ति
अलुण्टयिष्यताम् अलुण्टयिष्यन्
१६०७. स्निटण् (स्निट्) स्नेहने । ४०
व० स्नेटयति
स्नेटयतः
सस्ने
स्टाम्
प० स्नेटयतु / स्नेटयतात् स्नेटयताम्
० अस्नेटयत्
अस्याम्
अ० असिस्निटत्
असिस्निटताम्
प० स्नेटयाञ्चकार
नेटयाञ्चक्रतुः
स्नेटयन्ति
'नेटयेयुः
स्नेयन्तु
अस्नेटयन्
असिस्निटन्
स्नेटयाञ्चक्रुः
Page #472
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
455
स्नेटयाम्बभूव/स्नेटयामास। आ० स्नेट्यात् स्नेट्यास्ताम्
स्नेट्यासुः श्व० स्नेटयिता स्नेटयितारौ स्नेटयितारः भ० स्नेटयिष्यति स्नेटयिष्यतः क्रि० अस्नेटयिष्यत् अस्नेटयिष्यताम् अस्नेटयिष्यन्
१६०८. घट्टण (घट्ट) चलने। ४१ व० घट्टयति घट्टयतः घट्टयन्ति स० घट्टयेत् घट्टयेताम् घट्टयेयुः प० घट्टयतु/घट्टयतात् घट्टयताम् घट्टयन्तु ह्य० अघट्टयत् अघट्टयताम् अघट्टयन् अ० अजघट्टत् अजघट्टताम् अजघट्टन् प० घट्टयाञ्चचकार घट्टयाञ्चक्रतुः
घट्टयाश्चक्रुः घट्टयाम्बभूव/घट्टयामास। आ० घट्ट्यात् घट्ट्यास्ताम् घड्यासुः । श्व० घट्टयिता घट्टयितारौ घट्टयितारः भ० घट्टयिष्यति घट्टयिष्यतः घट्टयिष्यन्ति क्रि० अघट्टयिष्यत् अघट्टयिष्यताम् अघट्टयिष्यन्
१६०९. खट्टण् (खट्ट) संवरणे। ४२ व० खट्टयति खट्टयतः खट्टयन्ति स० खट्टयेत् खट्टयेताम् खट्टयेयुः प० खट्टयतु/खट्टयतात् खट्टयताम् खट्टयन्तु ह्य० अखट्टयत् अखट्टयताम् अखट्टयन् अ० अचखट्टत् . अचखट्टताम् अचखट्टन् प० खट्टयाञ्चकार खट्टयाञ्चक्रतुः खट्टयाञ्चक्रुः
खट्टयाम्बभूव/खट्टयामास। आ० खट्ट्यात् खट्ट्यास्ताम् खट्यासुः १० खट्टयिता खयितारौ खट्टयितारः भ० खट्टयिष्यति खट्टयिष्यतः खट्टयिष्यन्ति क्रि० अखट्टयिष्यत् . अखट्टयिष्यताम् अखट्टयिष्यन्
१६१०. षट्टण (सट्ट) हिंसायाम्। ४३ व० सट्टयति सट्टयतः सट्टयन्ति स० सट्टयेत् सट्टयेताम्
प० सट्टयतु/सट्टयतात् सट्टयताम् सट्टयन्तु ह्य० असट्टयत् असट्टयताम् असट्टयन् अ० अससट्टत् अससट्टताम् अससट्टन् प० सट्टयाञ्चकार सट्टयाञ्चक्रतुः सट्टयाञ्चक्रुः
सट्टयाम्बभूव/सट्टयामास। आ० सट्ट्यात् सट्ट्यास्ताम् सट्ट्यासः श्व० सट्टयिता
सट्टयितारी
सट्टयितार: भ० सट्टयिष्यति सट्टयिष्यतः सट्टयिष्यन्ति क्रि० असट्टयिष्यत् असट्टयिष्यताम् असट्टयिष्यन्
१६११. स्फिटण् (स्फिट) हिंसायाम्। ४४ व० स्फेटयति स्फेटयतः स्फेटयन्ति स० स्फेटयेत् स्फेटयेताम् स्फेटयेयुः प० स्फेटयतु/स्फेटयतात् स्फेटयताम् स्फेटयन्तु ह्य० अस्फेटयत् अस्फेटयताम् अस्फेटयन् अ० अपिस्फिटत् अपिस्फिटताम् । अपिस्फिटन् प० स्फेटयाञ्चकार स्फेटयाञ्चक्रतुः स्फेटयाञ्चक्रुः
स्फेटयाम्बभूव/स्फेटयामास। आ० स्फेट्यात् स्फेट्यास्ताम् स्फेट्यासुः श्व० स्फेटयिता स्फेटयितारौ स्फेटयितारः भ० स्फेटयिष्यति स्फेटयिष्यतः स्फेटयिष्यन्ति क्रि० अस्फेटयिष्यत् अस्फेटयिष्यताम् अस्फेटयिष्यन्
१६१२. स्फुटण् (स्फुट) परिहासे। ४५ व० स्फोटयति स्फोटयतः स्फोटयन्ति स० स्फोटयेत् स्फोटयेताम् स्फोटयेयुः प० स्फोटयतु/स्फोटयतात् स्फोटयताम् स्फोटयन्तु ह्य० अस्फोटयत् अस्फोटयताम् । अस्फोटयन् अ० अपुस्फुटत् अपुस्फुटताम् अपुस्फुटन् प० स्फोटयाञ्चकार स्फोटयाञ्चक्रतुः स्फोटयाञ्चक्रुः
स्फोटयाम्बभूव/स्फोटयामास। आ० स्फोट्यात् स्फोट्यास्ताम् स्फोट्यासुः श्व० स्फोटयिता स्फोटयितारौ स्फोटयितारः भ० स्फोटयिष्यति स्फोटयिष्यतः स्फोटयिष्यन्ति
सट्टयेयुः
Page #473
--------------------------------------------------------------------------
________________
456
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
क्रि० अस्फोटयिष्यत् अस्फोटयिष्यताम् अस्फोटयिष्यन्
१६१३. कीटण (कीट) वर्णने। बन्धने इत्यपरे। ४६ व० कीटयति कीटयतः कीटयन्ति स० कोटयेत् कीटयेताम् कीटयेयुः प० कोटयत्/कोटयतात् कीटयताम् कीटयन्तु ह्य० अकीटयत् अकीटयताम् अकीटयन् अ० अचीकिटत् अचीकिटताम् अचीकिटन् प० कीटयाञ्चकार कीटयाञ्चक्रतुः
कीटयाञ्चक्रुः कीटयाम्बभूव/कीटयामास। आ० कोट्यात् कीट्यास्ताम्
कोट्यासुः श्व० कीटयिता कीटयितारौ कीटयितारः भ० कीटयिष्यति कीटयिष्यतः कीटयिष्यन्ति क्रि० अकीटयिष्यत् अकीटयिष्यताम् अकीटयिष्यन्
१६१४. वटुण् (वण्ट्) विभाजने। ४७ व० वण्टयति वण्टयतः वण्टयन्ति स० वण्टयेत् वण्टयेताम् वण्टयेयुः प० वण्टयतु/वण्टयतात् वण्टयताम् वण्टयन्तु ह्य० अवण्टयत् अवण्टयताम् अवण्टयन् अ० अववण्टत् अववण्टताम् अववण्टन् प० वण्टयाञ्चकार वण्टयाञ्चक्रतुः वण्टयाञ्चक्रुः
वण्टयाम्बभूव/वण्टयामास। आ० वण्ट्यात् वण्ट्यास्ताम् वण्ट्यासुः श्व० वण्टयिता वण्टयितारौ वण्टयितारः भ० वण्टयिष्यति वण्टयिष्यतः वण्टयिष्यन्ति क्रि० अवण्टयिष्यत् अवण्टयिष्यताम् अवण्टयिष्यन्
१६१५. रुटण् (रुट्) रोषे ४८ व० रोटयति रोटयतः रोटयन्ति स० रोटयेत् रोटयेताम् प० रोटयतु/रोटयतात् रोटयताम् रोटयन्तु ह्य० अरोटयत् अरोटयताम्
अरोटयन् अ० अरुरुटत् अरुरुटताम् अरुरुटन् ए० रोटयाञ्चकार रोटयाञ्चक्रतुः । रोटयाञ्चक्रुः
रोटयाम्बभूव/रोटयामास। | आ० रोट्यात् रोट्यास्ताम् रोट्यासुः श्व० रोटयिता रोटयितारौ रोटयितार: भ० रोटयिष्यति रोटयिष्यतः रोटयिष्यन्ति क्रि० अरोटयिष्यत् अरोटयिष्यताम् अरोटयिष्यन्
१६१६. शठण् (श) संस्कारगत्योः। ४९ व० शाठयति शाठयत: शाठयन्ति स० शाठयेत् शाठयेताम् शाठयेयुः प० शाठयतु/शाठयतात् शाठयताम् शाठयन्तु ह्य० अशाठयत् अशाठयताम् अशाठयन् अ० अशीशठत् अशीशठताम् अशीशठन् प० शाउयाञ्चकार शाठयाञ्चक्रतुः शाठयाञ्चक्रुः
शाठयाम्बभूव/शाठयामास। आ० शाठ्यात् शाठ्यास्ताम् शाठ्यासुः श्व० शाठयिता शाठयितारौ शाठयितारः भ० शाठयिष्यति शाठयिष्यतः शाठयिष्यन्ति क्रि० अशाठयिष्यत् अशाठयिष्यताम् अशाठयिष्यन्
१६१७. श्वठण (श्व) संस्कारगत्योः। ५० व० श्वाठयति श्वाठयतः श्वाठयन्ति स० श्वाठयेत् श्वाठयेताम् श्वाठयेयुः प० श्वाठयतु/श्वाठयतात् श्वाठयताम् श्वाठयन्तु ह्य० अश्वाठयत् अश्वाठयताम् अश्वाठयन् अ० अशिश्वठत् अशिश्वठताम् अशिश्वठन् प० श्वाठयाञ्चकार श्वाठयाञ्चक्रतुः श्वाठयाञ्चक्रुः
श्वाठयाम्बभूव/श्वाठयामास। आ० श्वाठ्यात् श्वाठ्यास्ताम् श्वाठ्यासुः श्व० श्वाठयिता श्वाठयितारौ श्वाठयितार: भ० श्वाठयिष्यति श्वाठयिष्यतः श्वाठयिष्यन्ति क्रि० अश्वाठयिष्यत् अश्वाठयिष्यताम् अश्वाठयिष्यन्
१६१८. श्वठुण (श्वण्ठ) संस्कारगत्योः। ५० व० श्वण्ठयति श्वण्ठयतः श्वण्ठयन्ति स० श्वण्ठयेत् श्वण्ठयेताम् श्वण्ठयेयुः
रोटयेयुः
Page #474
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
प० श्वण्ठयतु / श्वण्ठयतात् श्वण्ठयताम्
ह्य० अश्वण्ठयत्
अश्वण्ठयताम्
अ० अशश्वण्ठत्
अशश्वण्ठताम्
प० श्वण्ठयाञ्चकार
श्वण्ठयाञ्चक्रतुः
श्वण्ठयाम्बभूव / श्वण्ठयामास ।
आ० श्वण्ठ्यात्
व० श्वण्ठयिता
- भ० श्वण्ठयिष्यति
क्रि० अश्वण्ठयिष्यत्
१६१९. शुठण् (शुव्) आलस्ये । ५२
व० शोठयति
शोठयतः
स० शोठयेत्
शोठताम्
प० शोठयतु / शोठयतात् शोठयताम्
ह्य० अशोठयत्
अशोठयताम्
अ० अशुशुठत्
प० शोठयाञ्चकार
आ० शोठ्यात्
श्व० शोठयिता
शोठयाम्बभूव/शोठयामास ।
श्वण्ठ्यास्ताम्
श्वण्ठ्यासुः
श्वण्ठयितारौ
श्वण्ठयितारः
श्वण्ठयिष्यतः
श्वण्ठयिष्यन्ति
अश्वण्ठयिष्यताम् अश्वण्ठयिष्यन्
भ० शोठयिष्यति
क्रि० अशोठयिष्यत्
अशुशुठताम्
शोठयाञ्चक्रतुः
आ० शुण्ठ्यात्
श्व० शुण्ठयिता
भ० शुण्ठयिष्यति
व० शुण्ठयति शुण्ठयतः ० शुण्ठयेत्
प० शुण्ठयतु / शुण्ठयतात् शुण्ठयताम्
ह्य० अशुण्ठयत् अशुण्ठयताम् अ० अशुशुण्ठत् अशुशुण्ठताम्
प० शुण्ठयाञ्चकार शुण्ठयाञ्चक्रतुः
शुण्ठयाम्बभूव / शुण्ठयामास ।
शोठ्यास्ताम्
शोठयितारौ
शोठयिष्यतः
अशोठयिष्यताम्
१६२०. शुठुण् (शुद्) शोषणे । ५३
श्वण्ठयन्तु
अश्वण्ठयन्
अशश्वण्ठन्
श्वण्ठयाञ्चक्रुः
शुण्ठ्यास्ताम्
शुण्ठयिष्यतः
शोठयन्ति
शोठयेयुः
शोठयन्तु
अशोठयन्
अशुशुठन्
शोठयाञ्चक्रुः
शोठ्यासुः
शोठयितार:
शोठयिष्यन्ति
अशोठयिष्यन्
शुण्ठयन्ति
शुण्ठयेयुः
शुण्ठयन्तु
अशुण्ठयन्
अशुशुण्ठन्
शुण्ठयाञ्चक्रुः
शुण्ठ्यासुः
शुण्ठता:
शुण्ठयिष्यन्ति
क्रि० अशुण्ठयिष्यत्
१६२१ गुठुण् (गुण्ठ्) वेष्टने । ५४
गुण्ठयतः
व० गुण्ठयति
स० गुण्ठयेत्
म्
प० गुण्ठयतु / गुण्ठयतात् गुण्ठयताम्
ह्य० अगुण्ठयत्
अगुण्ठताम्
अ० अजुगुण्ठत्
अजुगुण्ठताम्
प० गुण्ठयाञ्चकार गुण्ठयाञ्चक्रतुः
गुण्ठयाम्बभूव / गुण्ठयामास ।
आ० गुण्ठ्यात्
श्व० गुण्ठयिता
भ० गुण्ठयिष्यति
क्रि० अगुण्ठयिष्यत्
अशुण्ठयिष्यताम् अशुण्ठयिष्यन्
गुण्ठ्यास्ताम्
गुण्ठयितारौ
गुण्ठयिष्यतः
आ० लाड्यात्
श्व० लाडयिता
भ० लाडयिष्यति
क्रि० अलाडयिष्यत्
व० लाडयति
स० लाडयेत्
प० लाडयतु / लाडयतात् लाडयताम्
ह्य० अलाडयत् अलाडयताम्
अ० अलीलड
अलीलडाम्
प० लाडयाञ्चकार
अथ डान्ताः सप्तदश ।
१६२१. लडण् (लड) उपसेवायाम् । ५५
लाडयन्ति
लाडयेयुः
लाडयन्तु
अलाडयन्
अलीलडन्
लाडयाञ्चक्रुः
गुण्ठ्यासुः
गुण्ठयितार:
गुण्ठयिष्यन्ति
अगुण्ठयिष्यताम् अगुण्ठयिष्यन्
लाडयतः
__लाडयेताम्
लाडयाम्बभूव / लाडयामास ।
लाडयाञ्चक्रतुः
गुण्ठयन्ति
येयुः
गुण्ठयन्तु
अगुण्ठयन्
अजुगुण्ठन्
गुण्ठयाञ्चक्रुः
लाड्यास्ताम्
लाडयितारौ
लाडयिष्यतः
लाड्यासुः
लाडयितार:
लाडयिष्यन्ति
अलाडयिष्यताम् अलाडयिष्यन्
१६२३. स्फुडुण् (स्फुण्ड्) परिहासे । ५६
To स्फुण्डयति
स्फुण्डयतः स्फुण्डयन्ति सo स्फुण्डयेत् स्फुण्डताम् स्फुण्डयेयुः
प० स्फुण्डयतु / स्फुण्डयतात् स्फुण्डयताम् स्फुण्डयन्तु
ह्य० अस्फुण्डयत्
अस्फुण्डयताम्
अस्फुण्डयन्
457
Page #475
--------------------------------------------------------------------------
________________
458
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अ० अपुस्फुण्डत् अपुस्फुण्डताम् अपुस्फुण्डन् प० स्फुण्डयाञ्चकार स्फुण्डयाञ्चक्रतुः स्फुण्डयाञ्चक्रुः
स्फुण्डयाम्बभूव/स्फुण्डयामास। आ० स्फुण्ड्यात् स्फुण्ड्यास्ताम् स्फुण्ड्यासुः श्व० स्फुण्डयिता स्फुण्डयितारौ स्फुण्डयितार: भ० स्फुण्डयिष्यति स्फुण्डयिष्यतः स्फुण्डयिष्यन्ति क्रि० अस्फुण्डयिष्यत् अस्फुण्डयिष्यताम् अस्फुण्डयिष्यन्
१६२४. ओलडुण् (ओलण्ड्) उत्पेक्षे। ५७ व० ओलण्डयति ओलण्डयतः ओलण्डयन्ति स० ओलण्डयेत् ओलण्डयेताम् ओलण्डयेयुः प० ओलण्डयतु/ओलण्डयतात् ओलण्डयताम् ओलण्डयन्तु ह्य० औलण्डयत् औलण्डयताम् औलण्डयन् अ० औललण्डत् औललण्डताम् औललण्डन् प० ओलण्डयाञ्चकार ओलण्डयाञ्चक्रतुः ओलण्डयाञ्चक्रुः
ओलण्डयाम्बभूव/ओलण्डयामास। आ० ओलण्ड्यात् ओलण्ड्यास्ताम् ओलण्ड्यासुः श्व० ओलण्डयिता ओलण्डयितारौ ओलण्डयितार: भ० ओलण्डयिष्यति ओलण्डयिष्यतः ओलण्डयिष्यन्ति क्रि० औलण्डयिष्यत् औलण्डयिष्यताम् औलण्डयिष्यन्
१६२५. पीडण् (पीड्) गहने।
गहनं बाधा। ५८
क्रि० अपीडयिष्यत् अपीडयिष्यताम् अपीडयिष्यन्
१६२६. तडण (तड्) आघाते। ५९ व० ताडयति ताडयतः ताडयन्ति स० ताडयेत् ताडयेताम् ताडयेयुः प० ताडयतु/ताडयतात् ताडयताम् ताडयन्तु ह्य० अताडयत् अताडयताम् अताडयन् अ० अतीतडत् अतीतडताम् अतीतडन् प० ताडयाञ्चकार ताडयाञ्चक्रतुः ताडयाञ्चक्रुः
ताडयाम्बभूव/ताडयामास। आ० ताड्यात् ताड्यास्ताम् ताड्यासुः श्व० ताडयिता ताडयितारौ ताडयितारः भ० ताडयिष्यति ताडयिष्यतः ताडयिष्यन्ति क्रि० अताडयिष्यत् अताडयिष्यताम् अताडयिष्यन्
१६२७. खडण् (खड्) भेदे। ६० व० खाडयति खाडयतः खाडयन्ति स० खाडयेत् खाडयेताम् खाडयेयुः प० खाडयतु/खाडयतात् खाडयताम् खाडयन्तु ह्य० अखाडयत् अखाडयताम् अखाडयन् अ० अचीखडत् अचीखडताम् अचीखडन् प० खाडयाञ्चकार खाडयाञ्चक्रतुः खाडयाञ्चक्रुः
खाडयाम्बभूव/खाडयामास। आ० खाड्यात् खाड्यास्ताम् खाड्यासुः श्व० खाडयिता खाडयितारौ खाडयितार: भ० खाडयिष्यति खाडयिष्यतः खाडयिष्यन्ति क्रि० अखाडयिष्यत् अखाडयिष्यताम् अखाडयिष्यन्
१६२८. खडुण् (खण्ड्) भेदे। ६१ व० खण्डयति खण्डयतः खण्डयन्ति स० खण्डयेत् खण्डयेताम् खण्डयेयुः प० खण्डयतु/खण्डयतात् खण्डयताम् खण्डयन्तु ह्य० अखण्डयत् अखण्डयताम् अखण्डयन् अ० अचखण्डत् अचखण्डताम् अचखण्डन् प० खण्डयाञ्चकार खण्डयाञ्चक्रतुः खण्डयाञ्चक्रुः
पीडयन्ति
पीडयेयुः
व० पीडयति पीडयतः स० पीडयेत् पीडयेताम् प० पीडयतु/पीडयतात् पीडयताम् ह्य० अपीडयत् अपीडयताम् अ० अपिपीडत् अपिपीडताम्
अपीपिडत् अपीपिडताम् प० पीडयाञ्चकार पीडयाञ्चक्रतुः
पीडयाम्बभूव/पीडयामास। आ० पीड्यात् पीड्यास्ताम् श्व० पीडयिता पीडयितारौ भ० पीडयिष्यति पीडयिष्यतः
पीडयन्तु अपीडयन् अपिपीडन् अपीपिडन्, इ० पीडयाञ्चक्रुः
पीड्यासुः पीडयितार: पीडयिष्यन्ति
Page #476
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
459
चण्डया
पत
खण्डयाम्बभूव/खण्डयामास। आ० खण्ड्यात् खण्ड्यास्ताम् खण्ड्यासुः श्व० खण्डयिता खण्डयितारौ खण्डयितार: भ० खण्डयिष्यति खण्डयिष्यतः खण्डयिष्यन्ति क्रि० अखण्डयिष्यत् अखण्डयिष्यताम् अखण्डयिष्यन्
१६२९. कडुण् (कण्ड्) खण्डने च।
चकाराद्भेदने। ६२ व० कण्डयति कण्डयतः कण्डयन्ति स० कण्डयेत् कण्डयेताम् कण्डयेयुः प० कण्डयतु/कण्डयतात् कण्डयताम् कण्डयन्तु ह्य० अकण्डयत् अकण्डयताम् अकण्डयन् अ० अचकण्डत् अचकण्डताम् अचकण्डन् प० कण्डयाञ्चकार कण्डयाञ्चक्रतुः कण्डयाञ्चक्रुः
कण्डयाम्बभूव/कण्डयामास। आ० कण्ड्यात् कण्ड्यास्ताम् कण्ड्यासुः श्व० कण्डयिता कण्डयितारौ कण्डयितारः भ० कण्डयिष्यति कण्डयिष्यतः कण्डयिष्यन्ति क्रि० अकण्डयिष्यत् अकण्डयिष्यताम् अकण्डयिष्यन्
१६३०. कुडुण् (कुण्ड्) रक्षणे। ६३ व० कुण्डयति कुण्डयतः कुण्डयन्ति स० कुण्डयेत् कुण्डयेताम् कुण्डयेयुः प० कुण्डयतु/कुण्डयतात् कुण्डयताम् कुण्डयन्तु ह्य० अकुण्डयत् अकुण्डयताम् । अकुण्डयन् अ० अचुकुण्डत् अचुकुण्डताम् अचुकुण्डन् प० कुण्डयाञ्चकार कुण्डयाञ्चक्रतुः कुण्डयाञ्चक्रुः
कुण्डयाम्बभूव/कुण्डयामास। आ० कुण्ड्यात् कुण्ड्यास्ताम् कुण्ड्यासुः श्व० कुण्डयिता कुण्डयितारौ कुण्डयितारः भ० कुण्डयिष्यति कुण्डयिष्यतः कुण्डयिष्यन्ति क्रि० अकुण्डयिष्यत् अकुण्डयिष्यताम् अकुण्डयिष्यन् १६३१. गुडुण् (गुण्ड्) वेष्टने च। ६४
चगाराद्रक्षणे। व० गुण्डयति गुण्डयत:
गुण्डयन्ति
स० गुण्डयेत् गुण्डयेताम् गुण्डयेयुः प० गुण्डयतु/गुण्डयतात् गुण्डयताम् गुण्डयन्तु ह्य० अगुण्डयत् अगुण्डयताम् अगुण्डयन् अ० अजुगुण्डत् अजुगुण्डताम् अजुगुण्डन् प० गुण्डयाञ्चकार गुण्डयाञ्चक्रतुः गुण्डयाञ्चक्रुः
गुण्डयाम्बभूव/गुण्डयामास। आ० गुण्ड्यात् गुण्ड्यास्ताम् गुण्ड्यासुः श्व० गुण्डयिता गुण्डयितारौ गुण्डयितार: भ० गुण्डयिष्यति गुण्डयिष्यतः गुण्डयिष्यन्ति क्रि० अगुण्डयिष्यत् अगुण्डयिष्यताम् अगुण्डयिष्यन्
१६३२. चुडुण् (चुण्ड्) रक्षणे। ६३ व० चुण्डयति चुण्डयतः चुण्डयन्ति स० चुण्डयेत् चुण्डयेताम् चुण्डयेयुः प० चुण्डयतु/चुण्डयतात् चुण्डयताम् चुण्डयन्तु ह्य० अचुण्डयत् अचुण्डयताम् अचुण्डयन् अ० अचुचुण्डत् अचुचुण्डताम् अचुचुण्डन् प० चुण्डयाञ्चकार चुण्डयाञ्चक्रतुः धुण्डयाञ्चक्रुः
चुण्डयाम्बभूव/चुण्डयामास। आ० चुण्ड्यात् चुण्ड्यास्ताम् चुण्ड्यासुः श्व० चुण्डयिता चुण्डयितारौ चुण्डयितार: भ० चुण्डयिष्यति चुण्डयिष्यतः चुण्डयिष्यन्ति क्रि० अचुण्डयिष्यत् अचुण्डयिष्यताम् अचुण्डयिष्यन्
१६३३. मडुण् (मण्ड्) भूषायाम्। ६६ व० मण्डयति मण्डयतः मण्डयन्ति स० मण्डयेत् मण्डयेताम् मण्डयेयुः प० मण्डयतु/मण्डयतात् मण्डयताम् मण्डयन्तु ह्य० अमण्डयत् अमण्डयताम् अमण्डयन् अ० अममण्डत् अममण्डताम् अममण्डन् प० मण्डयाञ्चकार मण्डयाञ्चक्रतुः मण्डयाञ्चक्रुः
मण्डयाम्बभूव/मण्डयामास। आ० मण्ड्यात् मण्ड्यास्ताम् मण्ड्यासुः श्व० मण्डयिता मण्डयितारौ मण्डयितारः
Page #477
--------------------------------------------------------------------------
________________
460
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
भ० मण्डयिष्यति मण्डयिष्यतः मण्डयिष्यन्ति क्रि० अमण्डयिष्यत् अमण्डयिष्यताम् अमण्डयिष्यन्
१६३४. भडुण् (भण्ड्) कल्याणे। ६७ ।। व० भण्डयति भण्डयतः भण्डयन्ति स० भण्डयेत् भण्डयेताम्
भण्डयेयुः प० भण्डयतु/भण्डयतात् भण्डयताम्
भण्डयन्तु ह्य० अभण्डयत् अभण्डयताम् अभण्डयन् अ० अबभण्डत् अबभण्डताम् अबभण्डन् प० भण्डयाञ्चकार भण्डयाञ्चक्रतुः भण्डयाञ्चक्रुः
भण्डयाम्बभूव/भण्डयामास। आ० भण्ड्यात् भण्ड्यास्ताम् भण्ड्यासुः श्व० भण्डयिता भण्डयितारौ भण्डयितारः भ० भण्डयिष्यति भण्डयिष्यतः भण्डयिष्यन्ति क्रि० अभण्डयिष्यत् अभण्डयिष्यताम् अभण्डयिष्यन्
१६३५. पिडुण (पिण्ड्) संघाते। ६८ व० पिण्डयति पिण्डयतः पिण्डयन्ति स० पिण्डयेत् पिण्डयेताम् पिण्डयेयुः प० पिण्डयतु/पिण्डयता- पिण्डयताम् पिण्डयन्तु ह्य० अपिण्डयत् अपिण्डयताम् अपिण्डयन् अ० अपिपिण्डत् अपिपिण्डताम् अपिपिण्डन् प० पिण्डयाञ्चकार पिण्डयाञ्चक्रतुः । पिण्डयाञ्चक्रुः
पिण्डयाम्बभूव/पिण्डयामास। आ० पिण्ड्यात् पिण्ड्यास्ताम् २० पिण्डयिता पिण्डयितारौ पिण्डयितार: भ० पिण्डयिष्यति पिण्डयिष्यतः पिण्डयिष्यन्ति क्रि० अपिण्डयिष्यत् अपिण्डयिष्यताम् अपिण्डयिष्यन्
१६३६. ईडुण् (ईड्) स्तुतौ। ६९ व० ईडयति ईडयतः ईडयन्ति स० ईडयेत् ईडयेताम् प० ईडयतु/ईडयतात् ईडयताम् ह्य० ऐडयत् ऐडयताम् ऐडयन् अ० ऐडिडत् ऐडिडताम् प० ईडयाञ्चकार ईडयाञ्चक्रतुः
ईडयाञ्चक्रुः
| ईडयाम्बभूव/ईडयामास।
आ० ईड्यात् ईड्यास्ताम् ईड्यासुः श्व० ईडयिता ईडयितारौ ईडयितारः पि० ईडयिष्यति ईडयिष्यतः ईडयिष्यन्ति क्रि० ऐडयिष्यत् ऐडयिष्यताम् ऐडयिष्यन्
१६३७. चडुण् (चण्ड्) कोपे। ७० व० चण्डयति चण्डयतः चण्डयन्ति स० चण्डयेत् चण्डयेताम् चण्डयेयुः प० चण्डयतु/चण्डयतात् चण्डयताम् । चण्डयन्तु ह्य० अचण्डयत् अचण्डयताम् अचण्डयन् अ० अचचण्डत् अचचण्डताम् अचचण्डन् प० चण्डयाञ्चकार चण्डयाञ्चक्रतुः चण्डयाञ्चक्रुः
चण्डयाम्बभूव/चण्डयामास। आ० चण्ड्यात् चण्ड्यास्ताम् चण्ड्यासुः श्व० चण्डयिता चण्डयितारो चण्डयितार: च० चण्डयिष्यति चण्डयिष्यतः चण्डयिष्यन्ति क्रि० अचण्डयिष्यत् अचण्डयिष्यताम् अचण्डयिष्यन्
१६३८. जुडण् (जुड्) प्रेरणे। प्रेरणं दलनम्। ७१ व० जोडयति जोडयतः जोडयन्ति स० जोडयेत् जोडयेताम् जोडयेयुः प० जोडयतु/जोडयतात् जोडयताम् जोडयन्तु ह्य० अजोडयत् अजोडयताम् अजोडयन् अ० अजुजुडत् अजुजुडताम् अजुजुडन् प० जोडयाञ्चकार जोडयाञ्चक्रतुः जोडयाञ्चक्रुः
जोडयाम्बभूव/जोडयामास। आ० जोड्यात् जोड्यास्ताम् जोड्यासुः ० जोडयिता जोडयितारौ जोडयितारः भ० जोडयिष्यति जोडयिष्यतः जोडयिष्यन्ति क्रि० अजोडयिष्यत् अजोडयिष्यताम् अजोडयिष्यन्
अथ णान्ताः षट्। १६३९. चूर्णण् (चूर्ण) प्रेरणे। प्रेरणं दलनम्। ७२ व० चूर्णयति चूर्णयतः चूर्णयन्ति | स० चूर्णयेत् चूर्णयेताम् चूर्णयेयुः
पिण्ड'
पिण्ड्यासुः
ईडयेयुः ईडयन्तु
ऐडिडन्
Page #478
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
461
तूणयितारौ
तूणयितार:
वर्णयेयुः
प० चूर्णयतु/चूर्णयतात् चूर्णयताम् चूर्णयन्तु ह्य० अचूर्णयत् अचूर्णयताम् अचूर्णयन् अ० अचुचूर्णत् अचुचूर्णताम् अचुचूर्णन् प० चूर्णयाञ्चकार चूर्णयाञ्चक्रतुः चूर्णयाञ्चक्रुः
चूर्णयाम्बभूव/चूर्णयामास। आ० चूर्ध्यात् चूर्यास्ताम् चूासुः श्व० चूर्णयिता चूर्णयितारौ चूर्णयितारः भ० चूर्णयिष्यति चूर्णयिष्यतः चूर्णयिष्यन्ति क्रि० अचूर्णयिष्यत् अचूर्णयिष्यताम् अचूर्णयिष्यन्
१६४०. वर्णण् (वर्ण) प्रेरणे।
प्रेरणं दलनतम्। ७३ व० वर्णयति वर्णयतः वर्णयन्ति स० वर्णयेत् वर्णयेताम् प० वर्णयतु/वर्णयतात् वर्णयताम् वर्णयन्तु ह्य० अवर्णयत् अवर्णयताम् अवर्णयन् अ० अववर्णत् अववर्णताम् अववर्णन् प० वर्णयाञ्चकार वर्णयाञ्चक्रतुः वर्णयाञ्चक्रुः
वर्णयाम्बभूव/वर्णयामास। आ० वर्ध्यात्
वास्ताम् वासुः श्व० वर्णयिता वर्णयितारौ वर्णयितारः भ० वर्णयिष्यति वर्णयिष्यतः वर्णयिष्यन्ति क्रि० अवर्णयिष्यत् अवर्णयिष्यताम् अवर्णयिष्यन्
१६४१. चूणण (चूण) संकोचने। ७४ व० चूणयति चूणयतः स० चूणयेत् चूणयेताम् चूणयेयुः प० चूणयतु/चूणयतात् चूणयताम् चूणयन्तु ह्य० अचूणयत् अचूणयताम् अचूणयन् अ० अचूचुणत् अचूचुणताम् अचूचुणन् प० चूणयाञ्चकार चूणयाञ्चक्रतुः चूणयाञ्चक्रुः
चूणयाम्बभूव/चूणयामास। आ० चूण्यात् चूण्यास्ताम् चूण्यासुः श्व० चूणयिता
चूणयितारौ
चूणयितारः
भ० चूणयिष्यति चूणयिष्यतः चूणयिष्यन्ति क्रि० अचूणयिष्यत् अचूणयिष्यताम् अचूणयिष्यन्
१६४२. तूणण (तूण) संकोचने। ७५ व० तूणयति तूणयतः तूणयन्ति स० तूणयेत् तूणयेताम् तूणयेयुः ए० तूणयतु/तूणयतात् तूणयताम् तूणयन्तु ह्य० अतूणयत् अतूणयताम् अतूणयन् अ० अतूतुणत् अतूतुणताम् अतूतुणन् प० तूणयाञ्चकार तूणयाञ्चक्रतुः तूणयाञ्चक्रुः
तूणयाम्बभूव/तूणयामास। आ० तूण्यात् तूण्यास्ताम् तूण्यासुः श्व० तूणयिता भ० तूणयिष्यति तूणयिष्यतः तूणयिष्यन्ति क्रि० अतूणयिष्यत् अतूणयिष्यताम् अतूणयिष्यन्
१६४३. श्रणण् (श्रण) दाने। ७६ व० श्राणयति श्राणयतः श्राणयन्ति स० श्राणयेत् श्राणयेताम् श्राणयेयुः प० श्राणयतु/श्राणयतात् श्राणयताम् श्राणयन्तु ह्य० अश्राणयत् अश्राणयताम् अश्राणयन् अ० अशिश्रणत् अशिश्रणताम् अशिश्रणन्
अशश्राणत् अशश्राणताम् अशश्राणन् इ० प० श्राणयाञ्चकार श्राणयाञ्चक्रतुः श्राणयाञ्चक्रुः
श्राणयाम्बभूव/श्राणयामास। आ० श्राण्यात् श्राण्यास्ताम् श्राण्यासुः श्व० श्राणयिता श्राणयितारौ श्राणयितारः भ० श्राणयिष्यति श्राणयिष्यतः श्राणयिष्यन्ति क्रि० अश्राणयिष्यत् अश्राणयिष्यताम् अश्राणयिष्यन्
१६४४. पूणण (पूण) संघाते। ७७ व० पूणयति
पूणयन्ति स० पूणयेत् पूणयेताम् पूणयेयुः प० पूणयतु/पूणयतात् पूणयताम् पूणयन्तु | ह्य० अपूणयत् अपूणयताम् अपूणयन्
चूणयन्ति
पूणयतः
Page #479
--------------------------------------------------------------------------
________________
462
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
१६४७. बुस्तण (बुस्त्) आदरानादरयोः। ८०
मुस्तयन्ति
अ० अपूपुणत् अपूपुणताम् अपूपुणन् प० पूणयाञ्चकार पूणयाञ्चक्रतुः । पूणयाञ्चक्रुः
पूणयाम्बभूव/पूणयामास। आ० पूण्यात् पूण्यास्ताम् पूण्यासुः श्व० पूणयिता
पूणयितारौ
पूणयितारः भ० पूणयिष्यति पूणयिष्यतः पूणयिष्यन्ति क्रि० अपूणयिष्यत् अपूणयिष्यताम् अपूणयिष्यन्
अथ तान्ताः षट्। १६४५. चिन्तण (चिन्त्) स्मृत्याम्। ७८ व० चिन्तयति चिन्तयतः चिन्तयन्ति स० चिन्तयेत् चिन्तयेताम् चिन्तयेयुः प० चिन्तयतु/चिन्तयतात् चिन्तयताम् चिन्तयन्तु ह्य० अचिन्तयत् अचिन्तयताम् अचिन्तयन् अ० अचिचिन्तत् अचिचिन्ताम् अचिचिन्तन् प० चिन्तयाञ्चकार चिन्तयाञ्चक्रतुः चिन्तयाञ्चक्रुः
चिन्तयाम्बभूव/चिन्तयामास। आ० चिन्त्यात् चिन्त्यास्ताम् चिन्त्यासुः श्व० चिन्तयिता चिन्तयितारौ चिन्तयितार: भ० चिन्तयिष्यति चिन्तयिष्यतः चिन्तयिष्यन्ति क्रि० अचिन्तयिष्यत् अचिन्तयिष्यताम् अचिन्तयिष्यन्
१६४६. पुस्तण् (पुस्त्) आदरानादरयोः। ७९ व० पुस्तयति पुस्तयतः पुस्तयन्ति स० पुस्तयेत् पुस्तयेताम् पुस्तयेयुः प० पुस्तयतु/पुस्तयतात् पुस्तयताम् पुस्तयन्तु ह्य० अपुस्तयत् अपुस्तयताम्
अपुस्तयन् अ० अपुपुस्तत् अपुपुस्ताम् अपुपुस्तन् प० पुस्तयाञ्चकार पुस्तयाञ्चक्रतुः पुस्तयाञ्चक्रुः
पुस्तयाम्बभूव/पुस्तयामास। आ० पुस्त्यात् पुस्त्यास्ताम् पुस्त्यासुः श्व० पुस्तयिता
पुस्तयितारौ
पुस्तयितारः भ० पुस्तयिष्यति पुस्तयिष्यतः पुस्तयिष्यन्ति क्रि० अपुस्तयिष्यत् अपुस्तयिष्यताम् अपुस्तयिष्यन्
व० बुस्तयति बुस्तयतः बुस्तयन्ति स० बुस्तयेत् बुस्तयेताम् बुस्तयेयुः प० बुस्तयतु/बुस्तयतात् बुस्तयताम् बुस्तयन्तु ह्य० अबुस्तयत् अबुस्तयताम् अबुस्तयन् अ० अबुबुस्तत् अबुबुस्ताम् अबुबुस्तन् प० बुस्तयाञ्चकार बुस्तयाञ्चक्रतुः बुस्तयाञ्चक्रुः
बुस्तयाम्बभूव/बुस्तयामास। आ० बुस्त्यात् बुस्त्यास्ताम् बुस्त्यासुः श्व० बुस्तयिता बुस्तयितारौ बुस्तयितार: भ० बुस्तयिष्यति बुस्तयिष्यतः बुस्तयिष्यन्ति क्रि० अबुस्तयिष्यत् अबुस्तयिष्यताम् अबुस्तयिष्यन्
१६४८. मुस्तण् (मुस्त्) संघाते। ८१ व० मुस्तयति मुस्तयतः स० मुस्तयेत् मुस्तयेताम् मुस्तयेयुः प० मुस्तयतु/मुस्तयतात् मुस्तयताम् मुस्तयन्तु ह्य० अमुस्तयत् अमुस्तयताम् अमुस्तयन् अ० अमुमुस्तत् अमुमुस्ताम् अमुमुस्तन् प० मुस्तयाञ्चकार मुस्तयाञ्चक्रतुः । मुस्तयाञ्चक्रुः
मुस्तयाम्बभूव/मुस्तयामास। आ० मुस्त्यात् मुस्त्यास्ताम् मुस्त्यासुः श्व० मुस्तयिता मुस्तयितारौ मुस्तयितारः भ० मुस्तयिष्यति मुस्तयिष्यतः मुस्तयिष्यन्ति क्रि० अमुस्तयिष्यत् अमुस्तयिष्यताम् अमुस्तयिष्यन्
१६४९. कृत्ण् (कृत्) संशब्दने।
संशब्दनं ख्यातिः। ८२ व० कीर्तयति कीर्तयतः कीर्तयन्ति स० कीर्तयेत् कीर्तयेताम् कीर्तयेयुः प० कीर्तयतु/कीर्तयतात् कीर्तयताम्
कीर्तयन्तु ह्य० अकीर्तयत् अकीर्तयताम् अकीर्तयन् अ० अचीकृतत् अचीकृतताम् अचीकृतन् प० कीर्तयाञ्चकार कीर्तयाञ्चक्रतुः कीर्तयाञ्चक्रुः
कीर्तयाम्बभूव/कीर्तयामास।
Page #480
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
463
आ० कीर्त्यात् कीास्ताम् कीर्त्यासुः श्व० कीर्तयिता कीर्तयितारौ कीर्तयितारः भ० कीर्तयिष्यति कीर्तयिष्यतः कीर्तयिष्यन्ति क्रि० अकीर्तयिष्यत् अकीर्तयिष्यताम् अकीर्तयिष्यन्
१६५०. स्वर्तण (स्वत्) गतौ। ८३ व० स्वर्तयति स्वर्तयतः स्वर्तयन्ति स० स्वर्तयेत् स्वर्तयेताम् स्वर्तयेयुः प० स्वर्तयतु/स्वर्तयतात् स्वर्तयताम् स्वर्तयन्तु ह्य० अस्वर्तयत् अस्वर्तयताम अस्वर्तयन् अ० असस्वर्तत् असस्वर्तताम् असस्वर्तन् प० स्वर्तयाञ्चकार स्वर्तयाञ्चक्रतुः स्वर्तयाञ्चक्रुः
स्वर्तयाम्बभूव/स्वर्तयामास। आ० स्वात् स्वास्ताम् स्वासुः श्व० स्वर्तयिता स्वर्तयितारौ स्वर्तयितार: भ० स्वर्तयिष्यति स्वर्तयिष्यतः स्वर्तयिष्यन्ति क्रि० अस्वर्तयिष्यत् अस्वर्तयिष्यताम अस्वर्तयिष्यन
अथ थान्ताश्चत्वारः।
१६५१. पथुण (पन्थ्) गतौ। ८४ व० पन्थयति पन्थयतः पन्थयन्ति स० पन्थयेत् पन्थयेताम् पन्थयेयुः प० पन्थयतु/पन्थयतात् पन्थयताम्
पन्थयन्तु ह्य० अपन्थयत् अपन्थयताम् अपन्थयन् अ० अपपन्थत् अपपन्थताम् अपपन्थन् प० पन्थयाञ्चकार पन्थयाञ्चक्रतुः पन्थयाञ्चक्रुः
पन्थयाम्बभूव/पन्थयामास। आ० पन्थ्यात् पन्थ्यास्ताम् पन्थ्यासुः श्व० पन्थयिता पन्थयितारौ पन्थयितार: भ० पन्थयिष्यति पन्थयिष्यतः पन्थयिष्यन्ति क्रि० अपन्थयिष्यत् अपन्थयिष्यताम् अपन्थयिष्यन्
१६५२. श्रथण् (श्रथ्) प्रतिहर्षे। ८५ व० श्राथयति
श्राथयत:
श्राथयन्ति
स० श्राथयेत् श्राथयेताम् श्राथयेयुः प० श्राथयतु/श्राथयतात् श्राथयताम्
श्राथयन्तु ह्य० अश्राथयत् अश्राथयताम् अश्राथयन् अ० अशिश्रथत् अशिश्रथताम् अशिश्रथन् प० श्राथयाञ्चकार श्राथयाञ्चक्रतुः श्राथयाञ्चक्रुः
श्राथयाम्बभूव/श्राथयामास। आ० श्राध्यात् श्राथ्यास्ताम् श्राध्यासुः श्व० श्राथयिता श्राथयितारौ श्राथयितार: भ० श्राथयिष्यति श्राथयिष्यतः श्राथयिष्यन्ति क्रि० अश्राथयिष्यत् अश्राथयिष्यताम् अश्राथयिष्यन्
१६५३. पृथण् (पृथ्) प्रक्षेपणे। ८६ व० पर्थयति पर्थयतः पर्थयन्ति स० पर्थयेत् पर्थयेताम् पर्थयेयुः प० पर्थयतु/पर्थयतात् पर्थयताम् पर्थयन्तु ह्य० अपर्थयत् अपर्थयताम् अपर्थयन अ० अपीपृथत् अपीपृथताम् अपीपृथन्
अपपर्थत् अपपर्थताम् अपपर्थन् इ० प० पर्थयाञ्चकार पर्थयाञ्चक्रतुः पर्थयाञ्चक्रुः ___ पर्थयाम्बभूव/पर्थयामास। आ० पर्थ्यात् पास्ताम् पर्थ्यासुः श्व० पर्थयिता पर्थयितारौ पर्थयितार: भ० पर्थयिष्यति पर्थयिष्यतः पर्थयिष्यन्ति क्रि० अपर्थयिष्यत् अपर्थयिष्यताम् अपर्थयिष्यन्
पर्थण् इति केचित्। पार्थण् इत्यपरे।
१६५४. प्रथण् (प्रथ्) प्रख्याने। ८७ व० प्राथयति प्राथयतः प्राथयन्ति स० प्राथयेत् प्राथयेताम् प्राथयेयुःप० प्राथयतु/प्राथयतात् प्राथयताम् प्राथयन्तु ह्य० अप्राथयत् अप्राथयताम् अप्राथयन् अ० अपप्रथत् अपप्रथताम् अपप्रथन् प० प्राथयाञ्चकार प्राथयाञ्चक्रतुः प्राथयाञ्चक्रुः
प्राथयाम्बभूव/प्राथयामास।
Page #481
--------------------------------------------------------------------------
________________
464
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आ० प्राथ्यात् प्राथ्यास्ताम् प्राथ्यासुः श्व० प्राथयिता प्राथयितारौ प्राथयितारः भ० प्राथयिष्यति प्राथयिष्यतः प्राथयिष्यन्ति क्रि० अप्राथयिष्यत् अप्राथयिष्यताम् अप्राथयिष्यन्
॥अथ दान्ताः पञ्च॥ १६५५. छदण् (छद्) संवरणे। ८८ व० छादयति छादयत: छादयन्ति स० छादयेत् छादयेताम् छादयेयुः प० छादयतु/छादयतात् छादयताम् छादयन्तु ह्य० अच्छादयत् अच्छादयताम् अच्छादयन् अ० अचिच्छदत् अचिच्छदताम् अचिच्छदन् प० छादयाञ्चकार छादयाञ्चक्रतुः छादयाञ्चक्रुः
छादयाम्बभूव/छादयामास। आ० छाद्यात् छाद्यास्ताम् छाद्यासुः श्व० छादयिता छादयितारौ छादयितारः भ० छादयिष्यति छादयिष्यतः छादयिष्यन्ति क्रि० अच्छादयिष्यत् अच्छादयिष्यताम् अच्छादयिष्यन्
१६५६. चुदण् (चुद्) संचोदने।
संचोदनं प्रेरणम्। ८९ व० चोदयति
चोदयत:
चोदयन्ति स० चोदयेत् चोदयेताम् चोदयेयुः प० चोदयतु/चोदयतात् चोदयताम् चोदयन्तु ह्य० अचोदयत् अचोदयताम्
अचोदयन् अ० अचूचुदत् अचूचुदताम् अचूचुदन् प० चोदयाञ्चकार चोदयाञ्चक्रतुः चोदयाञ्चक्रुः
चोदयाम्बभूव/चोदयामास। आ० चोद्यात् चोद्यास्ताम् श्व० चोदयिता चोदयितारौ चोदयितारः भ० चोदयिष्यति चोदयिष्यतः चोदयिष्यन्ति क्रि० अचोदयिष्यत् अचोदयिष्यताम् अचोदयिष्यन्
१६५७. मिदुण् (मिन्द्) स्नेहने। ९०
व० मिन्दयति मिन्दयतः मिन्दयन्ति स० मिन्दयेत् मिन्दयेताम् मिन्दयेयुः प० मिन्दयतु/मिन्दयतात् मिन्दयताम् मिन्दयन्तु ह्य० अमिन्दयत् अमिन्दयताम् अमिन्दयन् अ० अमिमिन्दत् अमिमिन्दताम् अमिमिन्दन् प० मिन्दयाञ्चकार मिन्द्रयाञ्चक्रतुः मिन्दयाञ्चक्रुः
मिन्दयाम्बभूव/मिन्दयामास। आ० मिन्द्यात् मिन्द्यास्ताम् मिन्द्यासुः श्व० मिन्दयिता मिन्दयितारौ मिन्दयितार: भ० मिन्दयिष्यति मिन्दयिष्यतः मिन्दयिष्यन्ति क्रि० अमिन्दयिष्यत् अमिन्दयिष्यताम् अमिन्दयिष्यन् १६५८. गुर्दण् (गुर्द) निकेतने। पूर्वनिकेतने इति केचित्।
पूर्वनिकेतनमाद्यो वासः। ९१ व० गूर्दयति गर्दयतः गूर्दयन्ति स० गूर्दयेत् गूर्दयेताम् गूर्दयेयुः प० गूर्दयतु/गूर्दयतात् गूर्दयताम् गूर्दयन्तु ह्य० अगूर्दयत् अगूर्दयताम् अगूर्दयन् अ० अजुगूर्दत् अजुगूर्दताम् अजुगूर्दन् प० गूर्दयाञ्चकार गूर्दयाञ्चक्रतुः गूर्दयाञ्चक्रुः ___गूर्दयाम्बभूव/गूर्दयामास।
आ० गूर्यात् गूर्यास्ताम् गूर्यासुः श्व० गूर्दयिता गर्दयितारौ गर्दयितारः भ० गूर्दयिष्यति गर्दयिष्यतः गूर्दयिष्यन्ति क्रि० अगूर्दयिष्यत् अगूर्दयिष्यताम् अगूर्दयिष्यन्
___१६५९. छर्दण् (छर्द) वमने। ९२ व० छर्दयति छर्दयतः छर्दयन्ति स० छर्दयेत् छर्दयेताम् छर्दयेयुः प० छर्दयतु/छर्दयतात् छर्दयताम् छर्दयन्तु ह्य० अछर्दयत् अछर्दयताम् अछर्दयन् अ० अचच्छर्दत् अचच्छर्दताम् अचच्छर्दन् प० छर्दयाञ्चकार छर्दयाञ्चक्रतुः छर्दयाञ्चक्रुः
छर्दयाम्बभूव/छर्दयामास।
चोद्यासुः
Page #482
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
आ० छर्द्यात्
श्व० छर्दयिता
भ० छर्दयिष्यति
क्रि० अछर्दयिष्यत् अछर्दयिष्यताम्
अछर्दयिष्यन्
१६५९ - २. गर्दण् (गर्द) शब्दे इत्येके पेठुः ।
व० गर्दयति
गर्दयतः
स० [गर्दयेत्
गर्दम्
प० गर्दयतु/गर्दयतात् गर्दयताम्
० अगर्दयत्
अगर्दयताम्
अ० अजगर्दत्
अजगर्दताम्
प० गर्दयाञ्चकार
गर्दयाञ्चक्रतुः
छर्धास्ताम्
छर्दयितारौ
छर्दयिष्यतः
गर्दयाम्बभूव/गर्दयामास ।
आ० र्धात्
श्व० गर्दयिता
भ० गर्दयिष्यति
क्रि० अगर्दयिष्यत्
To बुन्धयति
बुध
गर्द्यास्ताम्
गर्दयितारौ
गर्दयिष्यतः
अगर्दयिष्यताम्
॥ अथ धान्ताः पञ्च ॥
१६६०. बुधुण् (बुन्घ्) हिंसायाम् । ९३
बुन्धयन्ति
बुधयेयुः
बुन्धयन्तु
अबुन्धयन्
अबुन्धयताम् अबुबुन्धताम् अबुबुन्धन्
बुन्धयाञ्चक्रतुः बुन्धयाञ्चक्रुः
बुन्धयतः
बुन्धयेताम्
प० बुन्धयतु/बुन्धयतात् बुन्धयताम्
ह्य० अबुन्धयत्
अ०, अबुबुन्धत्
प० बुन्धयाञ्चकार
बुन्धयाम्बभूव/बुन्धयामास ।
व० वर्धयति
स० वर्धयेत्
छर्द्यासुः
छर्दयितारः
छर्दयिष्यन्ति
गर्दयन्ति
गर्दयेयुः
गर्दयन्तु
अगर्दयन्
अजगर्दन्
गर्दयाञ्चक्रुः
आ० बुन्ध्यात्
बुन्ध्यास्ताम्
बुन्ध्यासुः
श्व० बुन्धयिता
बुधयितारौ
बुधयितारः
बुन्धयिष्यतः बुधयिष्यन्ति
भ० बुधयिष्यति क्रि० अबुन्धयिष्यत् अबुन्धयिष्यताम् अबुन्धयिष्यन्
१६६१. वर्धण् (वर्स्) छेदनपूरणयोः । ९४
वर्धयतः
वर्धम्
गर्द्यासुः
गर्दयितारः
गर्दयिष्यन्ति
अर्दयिष्यन्
वर्धयन्ति
वर्धयेयुः
प०
वर्धयतु / वर्धयतात् वर्धयताम्
वर्धयन्तु
ह्य० अवर्धयत्
अवर्धयाम्
अवर्धयन्
अ० अववर्धत् अववर्धताम् अववर्धन्
प० वर्धयाञ्चकार वर्धयाञ्चक्रतुः
वर्धयाञ्चक्रुः
वर्धयाम्बभूव / वर्धयामास ।
आ० वर्ध्यात्
श्व० वर्धयिता
भ० वर्धयिष्यति
क्रि० अवर्धयिष्यत्
अवर्धयिष्यन्
१६६२. गर्धण् (ग) अभिकाङ्क्षायाम्। ९५
व० गर्धयति
गर्धयतः
० गर्धयेत्
गर्धयेताम्
० गर्धयतु/गर्धयतात् गर्धयताम्
ह्य० अगर्धयत्
अगर्धयताम्
अवगर्धताम्
गर्धयाञ्चक्रतुः
अ० अवगत्
प० गर्धयाञ्चकार
गर्धयाम्बभूव/गर्धयामास ।
आ० गर्ध्यात्
श्व० गर्धयिता
वर्ध्याताम्
वर्धयित
वर्धयिष्यतः
अवर्धयिष्यताम्
भ० गर्धयिष्यति
क्रि० अगर्धयिष्यत्
गर्ध्यास्ताम्
गर्धयितारौ
गर्धयिष्यतः
व० बन्धयति
बन्धयतः
० बन्धयेत् बन्धयेताम्
आ० बन्ध्यात्
श्व० बन्धयिता
भ० बन्धयिष्यति
क्रि० अबन्धयिष्यत्
प० बन्धयतु / बन्धयतात् बन्धयताम्
ह्य० अबन्धयत्
अबन्धयताम्
अ० अबबन्धत्
अबबन्धताम्
प० बन्धयाञ्चकार बन्धयाञ्चक्रतुः
बन्धयाम्बभूव/बन्धयामास ।
वर्ध्यासुः
वर्धयितारः
वर्धयिष्यन्ति
अगर्धयिष्यताम्
१६६३ . बन्धण् (बन्ध) संयमने । ९६
गर्धयन्ति
गर्धयेयुः
गर्धयन्तु
अर्धयन्
अवगर्धन्
गर्धयाञ्चक्रुः
गर्ध्यासुः
गर्धयितारः
गर्धयिष्यन्ति
अगर्धयिष्यन्
बन्धयन्ति
बन्धयेयुः
बन्धयन्तु
अबन्धयन्
अबबन्धन्
बन्धयाञ्चक्रुः
बन्ध्यास्ताम् बन्ध्यासुः
बन्धयिता
बन्धयितारः
बन्धयिष्यतः
बन्धयिष्यन्ति
अबन्धयिष्यताम् अबन्धयिष्यन्
465
Page #483
--------------------------------------------------------------------------
________________
466
१६६४. बघण् (बध्) संयमने। ९७
व० बाधयति
स० [बाधयेत्
आ० बाध्यात्
श्र० बाधयिता
भ० बाधयिष्यति
क्रि० अबाधयिष्यत्
प० बाधयतु / बाधयतात् बाधयताम्
हा० अबाधयत्
अबाधयताम्
अ० अवीबधत्
अबीबधताम्
प० बाधयाञ्चकार बाधयाञ्चक्रतुः बाधयाञ्चक्रुः
बाधयाम्बभूव/बाधयामास ।
बाधयतः
बाधयेताम्
व० छम्पयति
छम्पयतः
० छम्पयेत्
छम्पयेताम्
प० छम्पयतु / छम्पयतात् छम्पयताम्
ह्य० अच्छम्पयत्
अच्छम्पयताम्
अ० अचच्छम्पत्
प० छम्पयाञ्चकार
व० क्षम्पयति
० क्षम्पयेत्
बाध्यास्ताम्
बाधयितारौ
बाधयिष्यतः
अबाधयिष्यताम् अथ पान्ता अष्टौ ।
१६६५. छपुण् (छम्प्) गतौ । ९८
छम्पयाम्बभूव / छम्पयामास ।
बाधयन्ति
बाधयेयुः
छम्पयन्ति
छम्पयेयुः
छम्पयन्तु
अच्छम्पयन्
अचच्छम्पताम् अचच्छम्पन्
छम्पयाञ्चक्रतुः
छम्पयाञ्चक्रुः
छम्प्यास्ताम्
छम्पयितारौ
छम्पयिष्यतः
आ० छम्प्यात्
छम्प्यासुः
श्व० छम्पयिता
छम्पयितारः
भ० छम्पयिष्यति
छम्पयिष्यन्ति
क्रि० अछम्पयिष्यत् अछम्पयिष्यताम् अछम्पयिष्यन्
१६६६. क्षपुण् (क्षम्प्) क्षान्तौ । ९९
बाधयन्तु
अबाधयन्
अबीबधन्
क्षम्पयतः
क्षम्पयेताम्
प० क्षम्पयत्तु / क्षम्पयतात् क्षम्पयताम्
ह्य० अक्षम्पयत्
अक्षम्पयताम्
अ० अचक्षम्पत्
अचक्षम्पताम्
प० क्षम्पयाञ्चकार
क्षम्पयाञ्चक्रतुः
बाध्यासुः
बाधयितारः
बाधयिष्यन्ति
अबाधयिष्यन्
क्षम्पयन्ति
क्षम्पयेयुः
क्षम्पयन्तु
अक्षम्पयन्
अचक्षम्पन्
क्षम्पयाञ्चक्रुः
क्षम्पयाम्बभूव / क्षम्पयामास ।
आ० क्षम्प्यात्
श्व० क्षम्पयिता
भ० क्षम्पयिष्यति
क्रि० अक्षम्पयिष्यत्
व० स्तूपयति
० स्तूपत्
१६६७. ष्टुपण् (स्तूप्) समुच्छ्राये । १००
स्तूपयतः
स्तूपयेताम्
प० स्तूपयतु / स्तूपयतात् स्तूपयताम्
ह्य० अस्तूपयत्
अस्तूपयताम्
अ० अतुष्टुपत्
अतुष्टुपताम्
प० स्तूपयाञ्चकार
स्तूपयाञ्चक्रतुः
आ० स्तूप्यात्
श्व० स्तूपयिता
स्तूपयाम्बभूव / स्तूपयामास ।
भ० स्तूपयिष्यति
क्रि० अस्तूपयिष्यत्
क्षम्प्यास्ताम्
क्षम्पयितारौ
अ० अडीडिपत्
प० डेपयाञ्चकार
व० डेपयति
डेपयतः
स० डेपयेत्
डेपयेताम्
प० डेपयतु / डेपयतात् डेपयताम्
० अडेपत्
अपाम्
अडीपिताम्
डेपयाञ्चक्रतुः
० प्या
श्व० डेपयिता
क्षम्पयिष्यतः क्षम्पयिष्यन्ति
अक्षम्पयिष्यताम् अक्षम्पयिष्यन्
भ० डेपयिष्यति
क्रि० अडेपयिष्यत्
१६६८. डिपण् (डिप्) क्षेपे । १०१
डेपयाम्बभूव/डेपयामास ।
व० ह्लापयति
सह्रापयेत्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
क्षम्प्यासुः
क्षम्पयितारः
स्तूप्यास्ताम्
स्तूप्यासुः
स्तूपयिता
स्तूपयितार:
स्तूपयिष्यतः
स्तूपयिष्यन्ति
अस्तूपयिष्यताम् अस्तूपयिष्यन्
डेप्यास्ताम्
डेपयितारौ
डेपयिष्यतः
स्तूपयन्ति
स्तूपयेयुः
स्तूपयन्तु
अस्तूपयन्
अतुष्टुपन्
स्तूपयाञ्चक्रुः
ताम्
अडेपयिष्यताम् अडेपयिष्यन्
१६६९. हृपण् (हृप्) व्यक्तायां वाचि । १०२
ह्रापयतः
डेपयन्ति
डेपयेयुः
डेपयन्तु
अडेपयन्
अडीडिपन्
डेपयाञ्चक्रुः
डेप्यासुः
डेपयितार:
डेपयिष्यन्ति
ह्रापयन्ति
ह्रापयेयुः
Page #484
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
467
मायता
प० ह्रापयतु/ह्लापयतात् ह्रापयताम् ह्लापयन्तु ह्य० अापयत् अह्लापयताम् अलापयन् अ० अजिह्नपत् अजिह्नपताम् अजिह्लपन् प० ह्रापयाञ्चकार ह्रापयाञ्चक्रतुः ह्लापयाञ्चक्रुः
ह्लापयाम्बभूव/हापयामास। आ० हाप्यात् ह्लाप्यास्ताम् ह्लाप्यासुः श्व० ह्लापयिता ह्लापयितारौ ह्लापयितार: भ० लापयिष्यति . ह्रापयिष्यतः ह्लापयिष्यन्ति क्रि० अह्लापयिष्यत् अह्लापयिष्यताम् अह्लापयिष्यन्
१६७०. डपुण (डम्प) संघाते।
अभिमर्दने इति केचित्। १०३ व० डम्पयति डम्पयतः डम्पयन्ति स० डम्पयेत् डम्पयेताम् डम्पयेयुः प० डम्पयतु/डम्पयतात् डम्पयताम् डम्पयन्तु ह्य० अडम्पयत् अडम्पयताम् अडम्पयन् अ० अडडम्पत् अडडम्पताम् अडडम्पन् प० डम्पयाञ्चकार डम्पयाञ्चक्रतुः डम्पयाश्चक्रुः
डम्पयाम्बभूव/डम्पयामास। आ० डम्प्यात् डम्प्यास्ताम्
डम्प्यासुः श्व० डम्पयिता डम्पयितारौ डम्पयितार: भ० डम्पयिष्यति डम्पयिष्यतः डम्पयिष्यन्ति क्रि० अडम्पयिष्यत् अडम्पयिष्यताम् अडम्पयिष्यन्
१६७१. डिपुण (डिम्प) संघाते।
अभिमर्दने इति केचित्। १०४ व० डिम्पयति डिम्पयतः डिम्पयन्ति स० डिम्पयेत् डिम्पयेराम् डिम्पयेयुः प० डिम्पयत/डिम्पयतात डिम्पयताम
डिम्पयन्तु ह्य० अडिम्पयत् अडिम्पयताम्
अडिम्पयन् अ० अडिडिम्पत् अडिडिम्पताम्
अडिडिम्पन् प० डिम्पयाञ्चकार डिम्पयाञ्चक्रतुः डिम्पयाञ्चक्रुः
डिम्पयाम्बभूव/डिम्पयामास।
आ० डिम्प्यात् डिम्प्यास्ताम् डिम्प्यासुः श्व० डिम्पयिता डिम्पयितारौ डिम्पयितारः भ० डिम्पयिष्यति डिम्पयिष्यतः डिम्पयिष्यन्ति क्रि० अडिम्पयिष्यत् अडिम्पयिष्यताम् अडिम्पयिष्यन्
१६७२. शर्पण (श) माने। १०५ व० शूर्पयति शूर्पयतः शूर्पयन्ति स० शूर्पयेत् शूर्पयेताम् शूर्पयेयुः प० शूर्पयतु/शूर्पयतात् शूर्पयताम् शूर्पयन्तु ह्य० अशूर्पयत् अशूर्पयताम् अशूर्पयन् अ० अशुशूर्पत् अशुशूर्पताम् अशुशूर्पन् प० शूर्पयाञ्चकार शूर्पयाञ्चक्रतुः । शूर्पयाञ्चक्रुः
शूर्पयाम्बभूव/शूर्पयामास। आ० शूर्ध्यात् शूर्यास्ताम् शूर्पासुः श्व० शूर्पयिता
शूर्पयितारौ
शूर्पयितारः भ० शूर्पयिष्यति शूर्पयिष्यतः शूर्पयिष्यन्ति क्रि० अशूर्पयिष्यत् अशूर्पयिष्यताम् अशूर्पयिष्यन्
॥अथ बान्ता अष्टौ।। १६७३. शुल्बण (शुल्ब्) सर्जने च।
चकारान्माने। १०६ व० शुल्बयति शुल्बयतः शुल्बयन्ति स० शुल्बयेत् शुल्बयेताम् । शुल्बयेयुः प० शुल्बयतु/शुल्बयतात् शुल्बयताम् शुल्बयन्तु ह्य० अशुल्बयत् अशुल्बयताम् अशुल्बयन् अ० अशुशुल्बत् अशुशुल्बताम् अशुशुल्बन् प० शुल्बयाञ्चकार शुल्बयाञ्चक्रतुः शुल्बयाञ्चक्रुः
शुल्बयाम्बभूव/शुल्बयामास। आ० शुल्ब्यात् शुल्ब्यास्ताम् शुल्ब्यासुः श्व० शुल्बयिता शुल्बयितारौ शुल्बयितारः
भ० शुल्बयिष्यति शुल्बयिष्यतः शुल्बयिष्यन्ति | क्रि० अशुल्बयिष्यत् अशुल्बयिष्यताम् अशुल्बयिष्यन्
Page #485
--------------------------------------------------------------------------
________________
468
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
१६७४. डबुण (डम्ब्) क्षेपे। १०७ व० डम्बयति डम्बयतः डम्बयन्ति स० डम्बयेत् डम्बयेताम् डम्बयेयुः प० डम्बयतु/डम्बयतात् डम्बयताम् डम्बयन्तु ह्य० अडम्बयत् अडम्बयताम् अडम्बयन् अ० अडडम्बत् अडडम्बताम् । अडडम्बन् प० डम्बयाञ्चकार डम्बयाञ्चक्रतुः डम्बयाञ्चक्रुः
डम्बयाम्बभूव/डम्बयामास। आ० डम्ब्यात् डम्ब्यास्ताम् डम्ब्यासुः श्व० डम्बयिता डम्बयितारौ डम्बयितार: भ० डम्बयिष्यति डम्बयिष्यतः डम्बयिष्यन्ति क्रि० अडम्बयिष्यत् अडम्बयिष्यताम् अडम्बयिष्यन्
१६७५. डिबुण् (डिम्ब्) क्षेपे। १०८ व० डिम्बयति डिम्बयतः डिम्बयन्ति स० डिम्बयेत् डिम्बयेताम् डिम्बयेयुः प० डिम्बयतु/डिम्बयतात् डिम्बयताम् डिम्बयन्तु ह्य० अडिम्बयत् अडिम्बयताम् अडिम्बयन् अ० अडिडिम्बत् अडिडिम्बताम् अडिडिम्बन् प० डिम्बयाञ्चकार डिम्बयाचक्रतुः डिम्बयाञ्चक्रुः
डिम्बयाम्बभूव/डिम्बयामास। आ० डिम्ब्यात् डिम्ब्यास्ताम् डिम्ब्यासुः श्व० डिम्बयिता डिम्बयितारौ डिम्बयितार: भ० डिम्बयिष्यति डिम्बयिष्यतः डिम्बयिष्यन्ति क्रि० अडिम्बयिष्यत् अडिम्बयिष्यताम् अडिम्बयिष्यन् १६७५-२. दभण् (दभ्)। केचित्तु दभदभुदिभूनपि
भान्तानिहाधीयते।
दाभयाम्बभूव/दाभयामास। आ० दाभ्यात् दाभ्यास्ताम् दाभ्यासुः श्व० दाभयिता दाभयितारौ दाभयितार: भ० दाभयिष्यति दाभयिष्यतः दाभयिष्यन्ति क्रि० अदाभयिष्यत् अदाभयिष्यताम् अदाभयिष्यन
१६७५-३. दभुण (दम्भ)। व० दम्भयति दम्भयतः दम्भयन्ति स० दम्भयेत् दम्भयेताम् दम्भयेयुः प० दम्भयतु/दम्भयतात् दम्भयताम् दम्भयन्तु ह्य० अदम्भयत् अदम्भयताम् अदम्भयन् अ० अददम्भत् अददम्भताम् अददम्भन् प० दम्भयाञ्चकार दम्भयाञ्चक्रतुः दम्भयाञ्चक्रुः
दम्भयाम्बभूव/दम्भयामास। आ० दम्भ्यात् दम्भ्यास्ताम् दम्भ्यासुः श्व० दम्भयिता दम्भयितारौ दम्भयितारः भ० दम्भयिष्यति दम्भयिष्यतः दम्भयिष्यन्ति क्रि० अदम्भयिष्यत् अदम्भयिष्यताम् अदम्भयिष्यन्
१६७५. दिभण् (दिम्भ)। व० दिम्भयति दिम्भयतः दिम्भयन्ति स० दिम्भयेत् दिम्भयेताम् दिम्भयेयुः प० दिम्भयतु/दिम्भयतात् दिम्भयताम् दिम्भयन्तु ह्य० अदिम्भयत् अदिम्भयताम् अदिम्भयन् अ० अदिदिम्भत् अदिदिम्भताम् अदिदिम्भन् प० दिम्भयाञ्चकार दिम्भयाञ्चक्रतुः दिम्भयाञ्चक्रुः
दिम्भयाम्बभूव/दिम्भयामास। आ० दिम्भ्यात् दिम्भ्यास्ताम्
दिम्भ्यासुः श्व० दिम्भयिता दिम्भयितारौ दिम्भयितार: भ० दिम्भयिष्यति दिम्भयिष्यतः दिम्भयिष्यन्ति क्रि० अदिम्भयिष्यत् अदिम्भयिष्यताम् अदिम्भयिष्यन्
१६७६. सम्बण् (सम्ब्) सम्बन्थे। १०९ व० सम्बयति सम्बयतः सम्बयन्ति स० सम्बयेत् सम्बयेताम् सम्बयेयुः
॥५मपत्
व० दाभयति दाभयतः स० दाभयेत् दाभयेताम् प० दाभयतु/दाभयतात् दाभयताम् ह्य० अदाभयत् अदाभयताम् अ० अदीदभत् अदीदभताम् प० दाभयाञ्चकार दाभयाञ्चक्रतुः
दाभयन्ति दाभयेयुः दाभयन्तु अदाभयन् अदीदभन् दाभयाञ्चक्रुः
Page #486
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
469
असा
पूर्बयतः
प० सम्बयतु/सम्बयतात् सम्बयताम् सम्बयन्तु ह्य० असम्बयत् असम्बयताम् असम्बयन् अ० अससम्बत् अससम्बताम् अससम्बन् प० सम्बयाञ्चकार सम्बयाञ्चक्रतुः सम्बयाञ्चक्रुः
सम्बयाम्बभूव/सम्बयामास। आ० सम्ब्यात् सम्ब्यास्ताम् सम्ब्यासुः श्व० सम्बयिता सम्बयितारौ सम्बयितारः भ० सम्बयिष्यति सम्बयिष्यतः सम्बयिष्यन्ति क्रि० असम्बयिष्यत् असम्बयिष्यताम् असम्बयिष्यन्
१६७७. कुबुण (कुम्ब) आच्छादने। ११० व० कुम्बयति कुम्बयतः
कुम्बयन्ति स० कुम्बयेत् कुम्बयेताम् कुम्बयेयुः प० कुम्बयतु/कुम्बयतात् कुम्बयताम् कुम्बयन्तु ह्य० अकुम्बयत् अकुम्बयताम् अकुम्बयन् अ० अचुकुम्बत् अचुकुम्बताम् अचुकुम्बन् प० कुम्बयाञ्चकार कुम्बयाञ्चक्रतुः कुम्बयाञ्चक्रुः
कुम्बयाम्बभूव/कुम्बयामास। आ० कुम्च्यात् कुम्ब्यास्ताम् कुम्ब्यासुः श्व० कुम्बयिता कुम्बयितारौ कुम्बयितारः भ० कुम्बयिष्यति कुम्बयिष्यतः कुम्बयिष्यन्ति क्रि० अकुम्बयिष्यत् अकुम्बयिष्यताम् अकुम्बयिष्यन्
१६७८. लुबुण (लुम्ब्) अर्दने। १११ व० लुम्बयति लुम्बयतः लुम्बयन्ति स० लुम्बयेत् लुम्बयेताम् लुम्बयेयुः प० लुम्बयतु/लुम्बयतात् लुम्बयताम् लुम्बयन्तु ह्य० अलुम्बयत् अलुम्बयताम् अलुम्बयन् अ० अलुलुम्बत् अलुलुम्बताम् ___ अलुलुम्बन् प० लुम्बयाञ्चकार लुम्बयाञ्चक्रतुः लुम्बयाञ्चक्रुः
लुम्बयाम्बभूव/लुम्बयामास। आ० लुम्ब्यात् लुम्ब्यास्ताम् लुम्ब्यासुः श्व० लुम्बयिता लुम्बयितारौ लुम्बयितार: भ० लुम्बयिष्यति लुम्बयिष्यतः
लुम्बयिष्यतः लुम्बयिष्यन्ति क्रि० अलुम्बयिष्यत् अलुम्बयिष्यताम् अलुम्बयिष्यन्
__ १६७९. तुबुण (तुम्ब्) अर्दने। ११२ व० तुम्बयति तुम्बयतः
तुम्बयन्ति स० तुम्बयेत् तुम्बयेताम् तुम्बयेयुः प० तुम्बयतु/तुम्बयतात् तुम्बयताम् तुम्बयन्तु ह्य० अतुम्बयत् अतुम्बयताम् अतुम्बयन् अ० अतुतुम्बत् अतुतुम्बताम् अतुतुम्बन् प० तुम्बयाञ्चकार तुम्बयाञ्चक्रतुः तुम्बयाञ्चक्रुः
तुम्बयाम्बभूव/तुम्बयामास। आ० तुम्ब्यात्
तुम्ब्यास्ताम् तुम्ब्यासुः श्व० तुम्बयिता तुम्बयितारौ तुम्बयितारः भ० तुम्बयिष्यति तुम्बयिष्यतः तम्बयिष्यन्ति क्रि० अतुम्बयिष्यत् अतुम्बयिष्यताम् अतुम्बयिष्यन्
. १६८०. पुर्वण (पुर्व) निकेतने। ११३ व० पूर्बयति
पूर्बयन्ति स० पूर्बयेत् पूर्वयेताम् पूर्बयेयुः प० पूर्बयतु/पूर्वयतात् पूर्बयताम् । पूर्वयन्तु ह्य० अपूर्बयत् अपूर्बयताम् अपूर्वयन् अ० अपुपूर्बत् अपुपूर्वताम् अपुपूर्बन् प० पूर्बयाञ्चकार पूर्बयाञ्चक्रतुः
पूर्बयाञ्चक्रुः पूर्बयाम्बभूव/पूर्बयामास। आ० पूात् पूास्ताम् पूासुः श्व० पूर्बयिता पूर्वयितारौ पूर्बयितार: भ० पूर्बयिष्यति पूर्वयिष्यतः पूर्बयिष्यन्ति क्रि० अपूर्वयिष्यत् अपूर्बयिष्यताम् अपूर्बयिष्यन्
अथ मान्तः।। १६८१. यमण् (यम्) परिवेषणे। ११४ व० यामयति यामयत: यामयन्ति स. यामयेत् यामयेताम् यामयेयुः प० यामयतु/यामयतात् यामयताम् ह्य० अयामयत् अयामयताम् अयामयन् अ० अयीयमत् अयीयमताम् अयोयमन् प० यामयाञ्चकार यामयाञ्चक्रतुः यामयाचक्रुः
यामयन्तु
Page #487
--------------------------------------------------------------------------
________________
470
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
यामयाम्बभूव/यामयामास। आ० यामयात् यामयास्ताम्
यामयासुः श्व० यामयिता यामयितारौ
यामयितारः भ० यामयिष्यति यामयिष्यतः यामयिष्यन्ति क्रि० अयामयिष्यत् अयामयिष्यताम् अयामयिष्यन्
॥अथ यान्तः॥ १६८२. व्ययण (व्यय) क्षये। ११५ व० व्याययति व्याययतः व्याययन्ति स० व्याययेत् व्याययेताम् व्याययेयुः प० व्याययतु/व्याययतात् व्याययताम् व्याययन्तु ह्य० अव्याययत् अव्याययताम् अव्याययन् अ० अविव्ययत् अविव्ययताम् अविव्ययन् प० व्याययाञ्चकार व्याययाञ्चक्रतुः व्याययाञ्चक्रुः
व्याययाम्बभूव/व्यायव्यायास् आ० व्याय्यात् व्याय्यास्ताम् व्याय्यासुः श्व० व्याययिता व्याययितारौ व्याययितारः भ० व्याययिष्यति व्याययिष्यतः व्याययिष्यन्ति क्रि० अव्याययिष्यत् अव्याययिष्यताम् अव्याययिष्यन्
॥अथ रान्तास्त्रयः।। १६८३. यत्रुण (यन्त्र्) संकोचने। ११६ व० यन्त्रयति यन्त्रयतः यन्त्रयन्ति स० यन्त्रयेत् यन्त्रयेताम् यन्त्रयेयुः प० यन्त्रयतु/यन्त्रयतात् यन्त्रयताम् यन्त्रयन्तु ह्य० अयन्त्रयत् अयन्त्रयताम् अयन्त्रयन् अ० अययन्त्रत् अययन्त्रताम् अययन्त्रन् प० यन्त्रयाञ्चकार यन्त्रयाञ्चक्रतुः यन्त्रयाञ्चक्रुः
यन्त्रयाम्बभूव/यन्त्रयामास। आ० यन्त्र्यात् यन्त्र्यास्ताम् यन्त्र्यासुः श्व० यन्त्रयिता यन्त्रयितारौ यन्त्रयितारः भ० यन्त्रयिष्यति यन्त्रयिष्यतः यन्त्रयिष्यन्ति क्रि० अयन्त्रयिष्यत् अयन्त्रयिष्यताम् अयन्त्रयिष्यन्
१६८४. कुद्रण (कुन्द्र) अनृतभाषणे। ११७
व० कुन्द्रयति कुन्द्रयत:
कुन्द्रयन्ति स० कुन्द्रयेत् कुन्द्रयेताम् कुन्द्रयेयुः प० कुन्द्रयतु/कुन्द्रयतात् कुन्द्रयताम् कुन्द्रयन्तु ह्य० अकुन्द्रयत् अकुन्द्रयताम् अकुन्द्रयन् अ० अचुकुन्द्रत् अचुकुन्द्रताम् अचुकुन्द्रन् प० कुन्द्रयाञ्चकार कुन्द्रयाञ्चक्रतुः कुन्द्रयाञ्चक्रुः
कुन्द्रयाम्बभूव/कुन्द्रयामास। आ० कुन्द्यात् कुन्द्यास्ताम् कुन्द्यासुः श्व० कुन्द्रयिता
कुन्द्रयितारौ
कुन्द्रयितारः भ० कुन्द्रयिष्यति कुन्द्रयिष्यतः कुन्द्रयिष्यन्ति क्रि० अकुन्द्रयिष्यत् अकुन्द्रयिष्यताम् अकुन्द्रयिष्यन्
१६८५.श्वभ्रण (श्वभू) गतौ। ११८ व० श्वभ्रयति श्वभ्रयतः श्वभ्रयन्ति स० श्वभ्रयेत् श्वभ्रयेताम् श्वभ्रयेयुः प० श्वभ्रयतु/श्वभ्रयतात् श्वभ्रयताम् श्वभ्रयन्तु ह्य० अश्वभ्रयत् अश्वभ्रयताम् अश्वभ्रयन् अ० अशश्वभ्रत् अशश्वभ्रताम् अशश्वभ्रन् प० श्वभ्रयाञ्चकार श्वभ्रयाञ्चक्रतुः श्वभ्रयाञ्चक्रुः
श्वभ्रयाम्बभूव/श्वभ्रयामास। आ० श्वभ्रयात्
श्वभ्रयास्ताम् श्वभ्रयासुः श्व० श्वभ्रयिता श्वभ्रयितारौ श्वभ्रयितारः भ० श्वभ्रयिष्यति श्वभ्रयिष्यतः श्वभ्रयिष्यन्ति क्रि० अश्वभ्रयिष्यत् अश्वभ्रयिष्यताम् अश्वभ्रयिष्यन्
॥अथ लान्ताः षोडश॥
१६८६. तिलण् (तिल्) स्नेहने। ११९ व० तेलयति तेलयतः । तेलयन्ति स० तेलयेत् तेलयेताम् तेलयेयुः प० तेलयतु/तेलयतात् तेलयताम्। तेलयन्तु ह्य० अतेलयत् अतेलयताम् अतेलयन् अ० अतीतिलत् अतीतिलताम् अतीतिलन् प० तेलयाञ्चकार तेलयाश्चक्रतुः तेलयाञ्चक्रुः
तेलयाम्बभूव/तेलयामास।
Page #488
--------------------------------------------------------------------------
________________
471
तेल्यासुः
बेलयन्तु
चुरादिगण आ० तेल्यात् तेल्यास्ताम् श्व० तेलयिता तेलयितारौ तेलयितार: भ० तेलयिष्यति तेलयिष्यतः तेलयिष्यन्ति क्रि० अतेलयिष्यत् अतेलयिष्यताम् अतेलयिष्यन्
१६८७. जलण् (जल्) अपवारणे। १२० व० जालयति जालयतः जालयन्ति स० जालयेत् जालयेताम्
जालयेयुः प० जालयतु/जालयतात् जालयताम् जालयन्तु ह्य० अजालयत् अजालयताम् अजालयन् अ० अजीजलत् अजीजलताम् अजीजलन् प० जालयाञ्चकार जालयाञ्चक्रतुः
जालयाञ्चक्रुः जालयाम्बभूव/जालयामास। आ० जाल्यात् जाल्यास्ताम् जाल्यासुः श्व० जालयिता जालयितारौ जालयितारः भ० जालयिष्यति जालयिष्यतः जालयिष्यन्ति क्रि० अजालयिष्यत् अजालयिष्यताम् अजालयिष्यन्
१६८८. क्षलण् (क्षल्) शौचे।
शौचं शौचकर्म। १२१ व० क्षालयति क्षालयतः क्षालयन्ति स० क्षालयेत् क्षालयेताम् क्षालयेयुः प० क्षालयतु/क्षालयतात् क्षालयताम् क्षालयन्तु ह्य० अक्षालयत् अक्षालयताम् अक्षालयन् अ० अचिक्षलत् अचिक्षलताम् अचिक्षलन् प० क्षालयाञ्चकार क्षालयाञ्चक्रतुः क्षालयाश्चक्रुः
क्षालयाम्बभूव/क्षालयामास। आ० क्षाल्यात् क्षाल्यास्ताम् क्षाल्यासुः व० क्षालयिता क्षालयितारौ क्षालयितारः भ० क्षालयिष्यति क्षालयिष्यतः क्षालयिष्यन्ति क्रि० अक्षालयिष्यत् अक्षालयिष्यताम् अक्षालयिष्यन्
१६८९. पुलण् (पुल्) समुच्छ्राये। १२२ व० पोलयति पोलयतः पोलयन्ति स० पोलयेत् पोलयेताम् पोलयेयुः
प० पोलयतु/पोलयतात् पोलयताम् पोलयन्तु ह्य० अपोलयत् अपोलयताम् अपोलयन् अ० अपूपुलत् अपूपुलताम्
अपूपुलन् प० पोलयाञ्चकार पोलयाञ्चक्रतुः पोलयाश्चक्रुः
पोलयाम्बभूव/पोलयामास। आ० पोल्यात् पोल्यास्ताम् पोल्यासुः श्व० पोलयिता पोलयितारौ पोलयितार: भ० पोलयिष्यति पोलयिष्यतः पोलयिष्यन्ति क्रि० अपोलयिष्यत् अपोलयिष्यताम् अपोलयिष्यन्
१६९०. बिलण् (बिल्) भेदे। १२३ व० बेलयति बेलयतः बेलयन्ति स० बेलयेत् बेलयेताम् बेलयेयुः प० बेलयतु/बेलयतात् बेलयताम् ह्य० अबेलयत् अबेलयताम् अबेलयन् अ० अबीबिलत् अबीबिलताम् अबीबिलन् प० बेलयाञ्चकार बेलयाञ्चक्रतुः बेलयाञ्चक्रुः
बेलयाम्बभूव/बेलयामास। आ० बेल्यात्
बेल्यास्ताम् श्व० बेलयिता बेलयितारौ बेलयितार: भ० बेलयिष्यति बेलयिष्यतः बेलयिष्यन्ति क्रि० अबेलयिष्यत् अबेलयिष्यताम् अबेलयिष्यन्
१६९१. तलण् (तल्) प्रतिष्ठायाम्। १२४ व० तालयति तालयतः तालयन्ति स० तालयेत् तालयेताम् तालयेयुः प० तालयतु/तालयतात् तालयताम् तालयन्तु ह्य० अतालयत् अतालयताम् अतालयन् अ० अतीतलत् अतीतलताम् अतीतलन् प० तालयाञ्चकार तालयाञ्चक्रतुः तालयाञ्चक्रुः
तालयाम्बभूव/तालयामास। आ० ताल्यात् ताल्यास्ताम् ताल्यासुः श्व० तालयिता तालयितारौ तालयितार: भ० तालयिष्यति तालयिष्यतः तालयिष्यन्ति क्रि० अतालयिष्यत् अतालयिष्यताम् अतालयिष्यन्
बेल्यासुः
Page #489
--------------------------------------------------------------------------
________________
472
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मूलयन्ति
१६९२. तुलण् (तुल्) उन्माने। १२५ व० तोलयति तोलयतः तोलयन्ति स० तोलयेत् तोलयेताम्
तोलयेयुः प० तोलयतु/तोलयतात् तोलयताम् तोलयन्तु ह्य० अतोलयत् अतोलयताम् । अतोलयन् अ० अतूतुलत् अतूतुलताम् अतूतुलन् प० तोलयाञ्चकार तोलयाञ्चक्रतुः तोलयाञ्चक्रुः
तोलयाम्बभूव/तोलयामास। आ० तोल्यात् तोल्यास्ताम् तोल्यासुः श्व० तोलयिता तोलयितारौ तोलयितारः भ० तोलयिष्यति तोलयिष्यतः तोलयिष्यन्ति क्रि० अतोलयिष्यत् अतोलयिष्यताम् अतोलयिष्यन्
१६९३. दुलण् (दुल्) उत्क्षेपे। १२६ व० दोलयति दोलयतः दोलयन्ति स० दोलयेत् दोलयेताम् दोलयेयुः प० दोलयतु/दोलयतात् दोलयताम् दोलयन्तु ह्य० अदोलयत् अदोलयताम् अदोलयन् अ० अदूदुलत् अदूदुलताम् अदूदुलन् प० दोलयाञ्चकार दोलयाञ्चक्रतुः दोलयाञ्चक्रुः ____दोलयाम्बभूव/दोलयामास। आ० दोल्यात् दोल्यास्ताम् दोल्यासुः श्व० दोलयिता दोलयितारौ दोलयितार: भ० दोलयिष्यति दोलयिष्यत: दोलयिष्यन्ति क्रि० अदोलयिष्यत् अदोलयिष्यताम् अदोलयिष्यन्
१६९४. बुलण् (बुल्) निमज्जने। १२७ व० बोलयति बोलयत: बोलयन्ति स० बोलयेत् बोलयेताम् बोलयेयुः प० बोलयतु/बोलयतात् बोलयताम् बोलयन्तु ह्य० अबोलयत् अबोलयताम् अबोलयन अ० अबूबुलत् अबूबुलताम् अबूबुलन् प० बोलयाञ्चकार बोलयाञ्चक्रतुः बोलयाञ्चक्रुः
बोलयाम्बभूव/बोलयामास।
आ० बोल्यात्
बोल्यास्ताम्
बोल्यासुः श्व० बोलयिता बोलयितारौ बोलयितारः भ० बोलयिष्यति बोलयिष्यतः बोलयिष्यन्ति क्रि० अबोलयिष्यत् अबोलयिष्यताम् अबोलयिष्यन्
१६९५. मूलण् (मूल्) रोहणे। १२८ व० मूलयति मूलयतः स० मूलयेत् मूलयेताम् मूलयेयुः प० मूलयतु/मूलयतात् मूलयताम् मूलयन्तु ह्य० अमूलयत् अमूलयताम् अमूलयन् अ० अमूमुलत् अमूमुलताम् अमूमुलन् प० मूलयाञ्चकार मूलयाञ्चक्रतुः मूलयाञ्चक्रुः
मूलयाम्बभूव/मूलयामास। आ० मूल्यात् मूल्यास्ताम् मूल्यासुः श्व० मूलयिता मूलयितारौ मूलयितारः भ० मूलयिष्यति मूलयिष्यतः मूलयिष्यन्ति क्रि० अमूलयिष्यत् अमूलयिष्यताम् अमूलयिष्यन्
१६९६. कलण् (कल्) क्षेपे। १२९ - व० कालयति कालयत: कालयन्ति स० कालयेत् कालयेताम् कालयेयुः प० कालयतु/कालयतात् कालयताम् कालयन्तु ह्य० अकालयत् अकालयताम् अकालयन् अ० अचीकलत् अचीकलताम् अचीकलन प० कालयाञ्चकार कालयाञ्चक्रतुः कालयाञ्चक्रुः
कालयाम्बभूव/कालयामास। आ० काल्यात् काल्यास्ताम् काल्यासुः श्व० कालयिता कालयितारौ कालयितारः भ० कालयिष्यति कालयिष्यतः कालयिष्यन्ति क्रि० अकालयिष्यत् अकालयिष्यताम् अकालयिष्यन्
१६९७. किलण् (किल्) क्षेपे। १३० व० केलयति केलयतः केलयन्ति स० केलयेत् केलयेताम् केलयेयुः प० केलयतु केलयतात् केलयताम् केलयन्तु
बालय
Page #490
--------------------------------------------------------------------------
________________
4
.
चुरादिगण ह्य० अकेलयत् अकेलयताम्
अकेलयन् अ० अकीकिलत् अकीकिलताम् अकीकिलन् प० केलयाञ्चकार केलयाञ्चक्रतुः केलयाञ्चक्रुः ___केलयाम्बभूव/केलयामास। आ० केल्यात् केल्यास्ताम् केल्यासुः २० केलयिता केलयितारौ केलयितारः भ० केलयिष्यति केलयिष्यतः केलयिष्यन्ति क्रि० अकेलयिष्यत् अकेलयिष्यताम् अकेलयिष्यन्
१६९८. पिलण् (पिल्) क्षेपे। १३१ व० पेलयति पेलयतः पेलयन्ति स० पेलयेत्
पेलयेताम्
पेलयेयुः प० पेलयतु/पेलयतात् पेलयताम् । पेलयन्तु ह्य० अपेलयत् अपेलयताम् अपेलयन् अ० अपीपिलत् अपीपिलताम्
अपीपिलन् प० पेलयाञ्चकार पेलयाञ्चक्रतुः पेलयाञ्चक्रुः
पेलयाम्बभूव/पेलयामास। आ० पेल्यात्
पेल्यास्ताम् श्व० पेलयिता पेलयितारौ पेलयितारः भ० पेलयिष्यति पेलयिष्यतः पेलयिष्यन्ति क्रि० अपेलयिष्यत् अपेलयिष्यताम् अपेलयिष्यन्
१६९९. पालण् (पाल्) रक्षणे। १३२ व. पालयति पालयतः पालयन्ति स० पालयेत् पालयेताम् पालयेयुः प० पालयतु/पालयतात् पालयताम् पालयन्तु ह्य० पोलयत् पोलयताम् अ० अपीपलत् अपीपलताम् अपीपलन् प० पालयाञ्चकार पालयाञ्चक्रतुः पालयाञ्चक्रुः
पालयाम्बभूव/पालयामास। आ० पाल्यात् पाल्यास्ताम् पाल्यासुः श्व० पालयिता पालयितारौ पालयितारः भ० पालयिष्यति पालयिष्यतः पालयिष्यन्ति क्रि० पोलयिष्यत् पोलयिष्यताम् पोलयिष्यन्
१७००. एलण् (एल्) प्रेरणे। १३३ व० एलयति एलयतः एलयन्ति स० एलयेत् एलयेताम् एलयेयुः प० एलयतु/एलयतात् एलयताम् एलयन्तु ह्य० ऐलयत् ऐलयताम् ऐलयन् अ० ऐलिलत् ऐलिलताम् ऐलिलन् प० एलयाञ्चकार एलयाञ्चक्रतुः एलयाञ्चक्रुः
एलयाम्बभूव/एलयामास। आ० एल्यात् एल्यास्ताम् एल्यासुः श्व० एलयिता एलयितारौ एलयितारः भ० एलयिष्यति एलयिष्यतः एलयिष्यन्ति क्रि० ऐलयिष्यत् ऐलयिष्यताम् ऐलयिष्यन्
१७०१. चलण् (चल्) भृतौ। १३४ व० चालयति चालयतः चालयन्ति स० चालयेत् चालयेताम् . चालयेयुः प० चालयतु/चालयतात् चालयताम् चालयन्तु ह्य० अचालयत् अचालयताम्
अचालयन् प० अचीचलत् अचीचलताम् । अचीचलन् प० चालयाञ्चकार चालयाञ्चक्रतुः चालयाञ्चक्रुः
चालयाम्बभूव/चालयामास। आ० चाल्यात् चाल्यास्ताम् चाल्यासुः श्व० चालयिता चालयितारौ चालयितारः भ० चालयिष्यति चालयिष्यतः चालयिष्यन्ति क्रि० अचालयिष्यत् अचालयिष्यताम् अचालयिष्यन्
॥अथ वान्ता:।। १७०२. सान्त्वण (सान्त्व्) सामप्रयोगे। १३५ व० सान्त्वयति सान्त्वयतः सान्त्वयन्ति स० सान्त्वयेत् सान्त्वयेताम् सान्त्वयेयुः प० सान्त्वयतु/तात् सान्त्वयताम् सान्त्वयन्तु ह्य० असान्त्वयत् असान्त्वयताम् असान्त्वयन् प० सान्त्वयाञ्चकार सान्त्वयाञ्चक्रतुः सान्त्वयाञ्चक्रुः
सान्त्वयाम्बभूव/सान्त्वयामास।
पेल्यासुः
पोलयन्
Page #491
--------------------------------------------------------------------------
________________
474
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
लूषयन्ति
आ० सान्त्व्यात् सान्त्व्यास्ताम् सान्त्व्यासुः श्व० सान्त्वयिता सान्त्वयितारौ सान्त्वयितारः भ० सान्त्वयिष्यति सान्त्वयिष्यतः सान्त्वयिष्यन्ति क्रि० असान्त्वयिष्यत् असान्त्वयिष्यताम् असान्त्वयिष्यन्
॥अथ शान्तः ।।
लूपयामि
१७०३. धूशण (धूश्) कान्तीकरणे। १३६ व० धूशयति धूशयतः धूशयन्ति स० धूशयेत् _धूशयेताम् धूशयेयुः प० धूशयतु/धूशयतात् धूशयताम् धूशयन्तु ह्य० अधूशयत् अधूशयताम् अधूशयन् अ० अदूधुशत् अदूधुशताम् अदूधुशन् प० धूशयाञ्चकार धूशयाञ्चक्रतुः धूशयाञ्चक्रुः
धूशयाम्बभूव/धूशयामास। आ० धूश्यात् धूश्यास्ताम् धूश्यासुः श्व० धूशयिता
धूशयितारौ
धूशयितारः भ० धूशयिष्यति धूशयिष्यतः धूशयिष्यन्ति क्रि० अधूशयिष्यत् अधूशयिष्यताम् अधूशयिष्यन्
॥अथ षान्ताश्चत्वारः।। १७०४. श्लिषण् (श्लिष्) श्लेषणे। १३७ व० श्लेषयति श्लेषयतः श्लेषयन्ति स० श्लेषयेत् श्लेषयेताम् श्लेषयेयुः प० श्लेषयतु/तात् श्लेषयताम् श्लेषयन्तु ह्य० अश्लेषयत् अश्लेषयताम् अश्लेषयन् अ० अशिश्लिषत् अशिश्लिषताम् अशिश्लिषन् प० श्लेषयाञ्चकार श्लेषयाञ्चक्रतुः श्लेषयाञ्चक्रुः
श्लेषयाम्बभूव/श्लेषयामास। आ० श्लेष्यात् श्लेष्यास्ताम्
श्लेष्यासुः श्व० श्लेषयिता श्लेषयितारौ श्लेषयितारः भ० श्लेषयिष्यति श्लेषयिष्यतः श्लेषयिष्यन्ति क्रि० अश्लेषयिष्यत् अश्लेषयिष्यताम् अश्लेषयिष्यन्
१७०५. लूषण (लूए) हिंसायाम्। १३८ | व० लूषयति लूषयतः लूषयसि लूषयथ: लूषयथ लूषयावः
लूषयामः स० लूषयेत् लूषयेताम् लूषयेयुः
लूपयेः लूषयेतम् लूषयेत
लूषयेयम् लूषयेव लूषयेम प० लूषयतु/लूषयतात् लूषयताम् लूषयन्तु लूषय
लूषयतम् लूषयत लूषयानि लूषयाव लूषयाम ह्य० अलूषयत् अलूषयताम् अलूषयन्
अलूषयः अलूषयतम् अलूषयत
अल्षयम् अलूषयाव अलूषयाम अ० अलूलुषत् अलूलुषताम् अलूलुषन्
अलूलुषः अलूलुषतम् अलूलुषत
अलूलुषम् अलूलुषाव अलूलुषाम प० लूषयाञ्चकार लूषयाञ्चक्रतुः लूषयाञ्चक्रुः लूषयाञ्चकर्थ
लूषयाञ्चक्रथुः लूषयाञ्चक्र लूषयाञ्चकार/कर लूषयाञ्चकृव लूषयाञ्चकृम
लूषयाम्बभूव/लूषयामास। आ० लूष्यात् लूष्यास्ताम् लूष्यासुः
लूष्याः लूष्यास्तम् लूष्यास्त
लूष्यासम् लुष्यास्व लूष्यास्म श्व० लूषयिता लूषयितारौ लूषयितारः लूषयितासि
लूषयितास्थः लूषयितास्थ लूषयितास्मि लषयितास्व:
लूषयितास्मः भ० लूषयिष्यति ___लूषयिष्यतः लूषयिष्यन्ति
लूषयिष्यसि लूषयिष्यथ: लूषयिष्यथ
लूषयिष्यामि लूषयिष्याव: लूषयिष्यामः क्रि० अलूषयिष्यत् अलूषयिष्यताम् अलूषयिष्यन्
अलूषयिष्यः अलूषयिष्यतम् अलूषयिष्यत अलूषयिष्यम् अलूषयिष्याव अलूषयिष्याम
Page #492
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
१७०६. रुषण् (रुष्) रोषे । १३९
व० रोषयति
रोषयतः
स० [रोषयेत्
रोषताम्
प० रोषयतु / रोषयतात् रोषयताम्
० अरोषयत्
अरोषताम्
अ० अरुरुषत्
प० रोषयाञ्चकार
रोषयाम्बभूव / रोषयामास ।
आ० रोष्यात्
श्व० रोषयिता
भ० रोषयिष्यति
क्रि० अरोषयिष्यत्
अरुरुषताम्
रोषयाञ्चक्रतुः
रोष्यास्ताम्
रोषयितारौ
रोषयिष्यतः
व० प्योषयति
प्योषयतः
स० [प्योषयेत्
प्योषयेताम्
प० प्योषयतु / प्योषयतात् प्योषयताम्
० अप्योषयत् अप्योषयताम्
अ० अपुप्युषत्
अपुप्युषताम् प० प्योषयाञ्चकार प्योषयाञ्चक्रतुः
प्योषयाम्बभूव/प्योषयामास ।
० असत्
अ० अपपंसत् प० पंसयाञ्चकार
अरोषयिष्यताम्
१७०७. प्युषण् (प्युष्) उत्सर्गे । १४०
व० पंसयति
पंसयत:
० पंसत्
पंसयेताम्
प० पंसयतु / पंसंयतात् पंसयताम्
अपंसयताम्
रोषयन्ति
रोषयेयुः
रोषयन्तु
अपपंसताम्
पंसयाञ्चक्रतुः
पंसयाम्बभूव / पंसयामास ।
रोषयन्
अरुरुषन्
रोषयाञ्चक्रुः
रोष्यासुः
रोषयितार:
रोषयिष्यन्ति
आ० प्योष्यात्
प्योष्यास्ताम्
प्योष्यासुः
श्र० प्योषयिता प्योषयितारौ
प्योषयितारः
प्योषयिष्यतः
प्योषयिष्यन्ति
भ० प्योषयिष्यति क्रि० अप्योषयिष्यत् अप्योषयिष्यताम् अप्योषयिष्यन्
१७०८. पसुण् (पंस्) नाशने । १४१
अरोषयिष्यन्
प्योषयन्ति
प्योषयेयुः
प्योषयन्तु
अप्योषयन्
अपुप्युषन्
प्योषयाञ्चक्रुः
पंसयन्ति
पंसयेयुः
पंसयन्तु
अपंसयन्
अपपंसन्
पंसयाञ्चक्रुः
० स्यात्
श्व० पंसयिता
भ० पंसयिष्यति
क्रि० अपंसयिष्यत्
अपंसयिष्यताम्
१७०९. जसुण् (जंस्) रक्षणे । १४२
व० जंसयति
जंसयत:
स॰ जंसयेत्
जंसयेताम्
प० जंसयतु / जंसयतात् जंसयताम्
ह्य० अजंसयत्
अजंसयताम्
अ० अज्जंसत्
अज्जसताम्
प० जंसयाञ्चकार जंसयाञ्चक्रतुः
जंसयाम्बभूव / जंसयामास ।
पंस्यास्ताम्
पंसयितारौ
पंसयिष्यतः
आ० जंस्यात्
श्व० जंसयिता
जंस्यास्ताम्
जंस्यासुः
जंसयितारौ
जंसयितारः
भ० जंसयिष्यति
जंसयिष्यतः
जंसयिष्यन्ति
क्रि० अजंसयिष्यत् अजंसयिष्यताम् अजंसयिष्यन्
१७१०. पुंसुण् (पुंस्) अभिमर्दने । १४३
व० पुंसयति
पुंसयत:
० पुंसत्
पुंसयेताम्
प० पुंसयतु/पुंसयतात् पुंसयताम्
अपुंसयताम्
अपुपुंसताम्
पुंसयाञ्चक्रतुः
ह्य० अपुंसत्
अ० अपुपुंसत्
प० पुंसयाञ्चकार
पुंसयाम्बभूव / पुंसयामास ।
पंस्यासुः
पंसयितार:
पंसयिष्यन्ति
अपंसयिष्यन्
पुंस्यास्ताम्
पुंसयितारौ
पुंसयिष्यतः
व० ब्रूसयति
ब्रूसयत:
स० ब्रूसयेत्
ब्रूसयेताम्
प० ब्रूसयतु / ब्रूसयतात् ब्रूसयताम्
जंसयन्ति
जंसयेयुः
जंसयन्तु
अजंसयन्
अज्जंसन्
जंसयाञ्चक्रुः
आ० पुंस्यात्
पुंस्यासुः
श्व० पुंसयिता
पुंसयितार:
भ० पुंसयिष्यति
पुंसयिष्यन्ति
क्रि० अपुंसयिष्यत् अपुंसयिष्यताम् अपुंसयिष्यन्
१७११. ब्रूसण् (ब्रस्) हिंसायाम् । १४४
पुंसयन्ति
पुंसयेयुः
पुंसयन्तु
अपुंसयन्
अपुपुंसन्
पुंसयाञ्चक्रुः
ब्रूसयन्ति
ब्रूसयेयुः
ब्रूसयन्तु
475
Page #493
--------------------------------------------------------------------------
________________
476
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ह्य० अब्रूसयत् अब्रूसयताम् अब्रूसयन् अ० अबुब्रुसत् अबुब्रुसताम् अबुब्रुसन् प० ब्रूसयाञ्चकार ब्रूसयाञ्चक्रतुः ब्रूसयाञ्चक्रुः
ब्रूसयाम्बभूव/ब्रूसयामास। आ० ब्रूस्यात् ब्रूस्यास्ताम् ब्रूस्यासुः श्व० ब्रूसयिता ब्रूसयितारौ ब्रूसयितारः भ० ब्रूसयिष्यति ब्रूसयिष्यतः ब्रूसयिष्यन्ति क्रि० अब्रूसयिष्यत् अब्रूसयिष्यताम् अब्रूसयिष्यन्
१७१२. पिसण् (पिस्) हिंसायाम्। १४५ व० पेसयति पेसयतः पेसयन्ति स० पेसयेत् पेसयेताम् पेसयेयुः प० पेसयतु/पेसयतात् पेसयताम् पेसयन्तु ह्य० अपेसयत् अपेसयताम् अपेसयन् अ० अपीपिसत् अपीपिसताम् । अपीपिसन् प० पेसयाञ्चकार पेसयाञ्चक्रतुः
पेसयाञ्चक्रुः पेसयाम्बभूव/पेसयामास। आ० पेस्यात् पेस्यास्ताम् श्व० पेसयिता पेसयितारौ पेसयितारः भ० पेसयिष्यति पेसयिष्यतः पेसयिष्यन्ति क्रि० अपेसयिष्यत् अपेसयिष्यताम् अपेसयिष्यन्
१७१३. जसण (जस्) हिंसायाम्। १४६ व० जासयति जासयतः जासयन्ति स० जासयेत् जासयेताम् जासयेयुः प० जासयतु/जासयतात् जासयताम् जासयन्तु ह्य० अजासयत् अजासयताम् अजासयन् अ० अजीजसत् अजीजसताम् अजीजसन् प० जासयाञ्चकार जासयाञ्चक्रतुः जासयाञ्चक्रुः
जासयाम्बभूव/जासयामास। आ० जास्यात् जास्यास्ताम् जास्यासुः २० जासयिता जासयितारौ जासयितारः भ० जासयिष्यति जासयिष्यतः जासयिष्यन्ति क्रि० अजासयिष्यत् अजासयिष्यताम् अजासयिष्यन्
॥अथ हान्तौ। १७१४. बर्हण (बई) हिंसायाम्। १४७ व० बर्हयति बर्हयतः बर्हयन्ति स० बर्हयेत् बर्हयेताम् बर्हयेयुः प० बर्हयतु/बर्हयतात् बर्हयताम् बर्हयन्तु ह्य० अबर्हयत् अबर्हयताम् अबर्हयन् अ० अबबर्हत् .. अबबर्हताम् अबबर्हन् प० बर्हयाञ्चकार बर्हयाञ्चक्रतुः बर्हयाञ्चक्रुः
बर्हयाम्बभूव/बर्हयामास। आ० बात् बास्ताम् बासुः श्व० बर्हयिता बर्हयितारौ बर्हयितारः भ० बर्हयिष्यति बर्हयिष्यतः बर्हयिष्यन्ति क्रि० अबर्हयिष्यत् अबर्हयिष्यताम् अबर्हयिष्यन्
१७१५. लिहण् (स्निह्) स्नेहने। १४८ व० स्नेहयति स्नेहयतः स्नेहयन्ति स० स्नेहयेत् स्नेहयेताम् स्नेहयेयुः प० स्नेहयतु/स्नेहयतात् स्नेहयताम् स्नेहयन्तु ह्य० अस्नेहयत् अस्नेहयताम् । अस्नेहयन् अ० असिष्णिहत् असिष्णिहताम् असिष्णिहन् प० स्नेहयाञ्चकार स्नेहयाञ्चक्रतुः स्नेहयाञ्चक्रुः
स्नेहयाम्बभूव/स्नेहयामास। आ० स्नेह्यात्
स्नेह्यास्ताम् श्व० स्नेहयिता स्नेहयितारौ स्नेहयितार: भ० स्नेहयिष्यति स्नेहयिष्यतः स्नेहयिष्यन्ति क्रि० अस्नेहयिष्यत् अस्नेहयिष्यताम् अस्नेहयिष्यन्
॥अथ क्षान्तास्त्रयः॥ १७१६. प्रक्षण (प्रक्ष) म्लेच्छने। १४९ व० म्रक्षयति म्रक्षयत: म्रक्षयन्ति स० प्रक्षयेत् म्रक्षयेताम् म्रक्षयेयुः प० म्रक्षयतु/म्रक्षयतात् म्रक्षयताम् म्रक्षयन्तु ह्य० अम्रक्षयत् अम्रक्षयताम् अम्रक्षयन्
पेस्यासुः
स्नेह्यासुः
Page #494
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
अ० अमम्रक्षत्
प० प्रक्षयाञ्चकार
प्रक्षयाम्बभूव / प्रक्षयामास ।
आ० प्रक्ष्यात्
श्व० प्रक्षयिता
भ० प्रक्षयिष्यति
क्रि० अम्रक्षयिष्यत्
प्रक्ष्यास्ताम्
प्रक्षयितारौ
प्रक्षयिष्यतः
अम्रक्षयिष्यताम्
१७१७. भक्षण (भक्षू) अदने । १५०
भक्षयन्ति
भक्षयेयुः
व० भक्षयति
० भक्षयेत्
प० भक्षयतु भक्षयतात् भक्षयताम्
ह्य० अभक्षयत्
अभक्षयताम्
अ० अबभक्षत्
अबभक्षताम्
प० भक्षयाञ्चकार भक्षयाञ्चक्रतुः
भक्षयाम्बभूव/भक्षयामास ।
आ० भक्ष्यात् श्व० भक्षयिता
भ० भक्षयिष्यति
क्रि० अभक्षयिष्यत्
अमम्रक्षताम्
प्रक्षयाञ्चक्रतुः
व० पक्षयति
स० पक्षयेत्
आ० पक्ष्यात्
श्र० पक्षयिता
भ० पक्षयिष्यति
क्रि० अपक्षयिष्यत्
भक्षयतः
भक्षयेताम्
पक्षयतः
पक्षयेताम्
प० पक्षयतु / पक्षयतात् पक्षयताम्
ह्य० अपक्षयत्
अपक्षयताम्
अ० अपपक्षत्
अपपक्षताम्
प० पक्षयाञ्चकार पक्षयाञ्चक्रतुः
पक्षयाम्बभूव/पक्षयामास ।
भक्ष्यास्ताम्
भक्षयितारौ
भक्षयिष्यतः
१७१८. पक्षण (पक्ष) परिग्रहे । १५१
पक्षयन्ति
पक्षयेयुः
पक्षयन्तु
अपक्षयन्
अपपक्षन्
पक्षयाञ्चक्रुः
अमम्रक्षन्
प्रक्षयाञ्चक्रुः
भक्ष्यासुः
भक्षयितारः
भक्षयिष्यन्ति
अभक्षयिष्यताम् अभक्षयिष्यन्
प्रक्ष्यासुः
प्रक्षयितारः
प्रक्षयिष्यन्ति
अम्रक्षयिष्यन्
पक्ष्यास्ताम्
पक्षयितारौ
पक्षयिष्यतः
भक्षयन्तु
अभक्षयन्
अबभक्षन्
भक्षयाञ्चक्रुः
पक्ष्यासुः
पक्षयितार:
पक्षयिष्यन्ति
अपक्षयिष्यताम् अपक्षयिष्यन्
॥अथोभयलदी क्षान्तः ॥
१७१९. लक्षीण (लक्ष्) दर्शनाङ्कयोः । अङ्कनं चिह्नम् । १५२
व० लक्षयति
लक्षयतः
स० लक्षयेत्
लक्षयेताम्
प० लक्षयतु / लक्षयतात् लक्षयताम्
ह्य० अलक्षयत्
अलक्षयताम्
अ० अललक्षत्
अललक्षताम्
प० लक्षयाञ्चकार
लक्षयाञ्चक्रतुः
लक्षयाम्बभूव / लक्षयामास ।
आ० लक्ष्यात्
श्व० लक्षयिता
भ० लक्षयिष्यति
क्रि० अलक्षयिष्यत्
व० लक्षयते
स० लक्षयेत
प० लक्षयताम्
ह्य० अलक्षयत
लक्ष्यास्ताम्
लक्षयितारौ
लक्षयिष्यतः
अलक्षयिष्यताम्
व० ज्ञपयति
ज्ञपयसि
लक्ष्यासुः
लक्षयितारः
लक्षयिष्यन्ति
अलक्षयिष्यन्
लक्षयन्ते
लक्षयेरन्
लक्षयन्ताम
अलक्षयन्त
अललक्षन्त
लक्षयाञ्चक्रिरे
लक्षयिषीयास्ताम् लक्षयिषीरन्
लक्षयितारः
लक्षयिष्यन्ते
लक्षयेते
लक्षयेयाताम्
लक्षयेताम्
अक्षम्
अललक्षेताम्
लक्षयाञ्चक्राते
अ० अललक्षत
प० लक्षयाञ्चक्रे
आ० लक्षयिषीष्ट
श्व० लक्षयिता
भ० लक्षयिष्यते
क्रि० अलक्षयिष्यत
अलक्षयिष्येताम् अलक्षयिष्यन्त
इतोऽर्थविशेषे आलक्षिणः। इतः परमर्थविशेषे चुरादयो
लक्षिपर्यन्ताः
लक्षयन्ति
लक्षयेयुः
लक्षयन्तु
अलक्षयन्
अललक्षन्
लक्षयाञ्चक्रुः
लक्षयितारौ
लक्षयिष्येते
१७२० ज्ञाण् (ज्ञा) मारणादिनियोजनेषु । मारणादयो मारणतोषणानि शाने ज्ञश्चेति सूत्रोक्तास्तेषु नियोजने चार्थे
जानातिश्चरादिः । १५३
तत्र मारणतोषणनिशाने
477
ज्ञपयतः
ज्ञपयथ:
ज्ञपयन्ति
ज्ञपयथ
Page #495
--------------------------------------------------------------------------
________________
478
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ज्ञपयामि स० ज्ञपयेत्
ज्ञपये:
ज्ञपयावः ज्ञपयेताम् ज्ञपयेतम् ज्ञपयेव
ज्ञपयाम: ज्ञपयेयुः ज्ञपयेत ज्ञपयेम
ज्ञपयेयम्
ज्ञपयन्तु
ज्ञपयत
ज्ञपयाम
अज्ञपयन्
अज्ञपयत
अज्ञपयाम अजिज्ञपन् अजिज्ञपत अजिज्ञपाम
ज्ञपयाञ्चक्रुः
ज्ञपयाञ्चक्र
ज्ञपयाञ्चकम
प० ज्ञपयतु/ज्ञपयतात् ज्ञपयताम्
ज्ञपय/ज्ञपयतात् ज्ञपयतम्
ज्ञपयानि ज्ञपयाव ह्य० अज्ञपयत् अज्ञपयताम् अज्ञपयः
अज्ञपयतम् अज्ञपयम् अज्ञपयाव अ० अजिज्ञपत् अजिज्ञपताम्
अजिज्ञपः अजिज्ञपतम्
अजिज्ञपतम् अजिज्ञपाव प० ज्ञपयाञ्चकार ज्ञपयाञ्चक्रतुः
ज्ञपयाञ्चकर्थ ज्ञपयाञ्चक्रथुः ज्ञपयाञ्चकार/कर ज्ञपयाञ्चकृव
ज्ञपयाम्बभूव/ज्ञपयामास। आ० ज्ञप्यात्
ज्ञप्यास्ताम् ज्ञप्याः
ज्ञप्यास्तम् ज्ञप्यासम् ज्ञप्यास्व श्व० ज्ञपयिता ज्ञपयितारौ
ज्ञपयितासि ज्ञपयितास्थः
ज्ञपयितास्मि ज्ञपयितास्वः भ० ज्ञपयिष्यति ज्ञपयिष्यतः
ज्ञपयिष्यसि ज्ञपयिष्यथः
ज्ञपयिष्यामि ज्ञपयिष्याव: क्रि० अज्ञपयिष्यत् अज्ञपयिष्यताम्
अज्ञपयिष्यः अज्ञपयिष्यतम् अज्ञपयिष्यम् अज्ञपयिष्याव
॥अथादन्तः॥
च्यावयसि च्यावयथ: च्यावयथ
च्यावयामि च्यावयावः च्यावयामः स० च्यावयेत् च्यावयेताम् च्यावयेयुः
च्यावये: च्यावयेतम् च्यावयेत
च्यावयेयम् च्यावयेव च्यावयेम प० च्यावयतु/च्यावयतात् च्यावयताम् च्यावयन्तु
च्यावय/च्यावयतात् च्यावयतम् च्यावयत
च्यावयानि च्यावयाव च्यावयाम ह्य० अच्यावयत् अच्यावयताम् अच्यावयन्
अच्यावयः अच्यावयतम् अच्यावयत
अच्यावयम् अच्यावयाव अच्यावयाम अ० अचुच्यवत् अचुच्यवताम् अचुच्यवन्
अचुच्यवः अचुच्यवतम् अचुच्यवत
अचुच्यवम् अचुच्यवाव अचुच्यवाम प० च्यावयाञ्चकार च्यावयाञ्चक्रतुः च्यावयाञ्चक्रुः
च्यावयाञ्चकर्थ च्यावयाञ्चकथुः च्यावयाञ्चक च्यावयाञ्चकार/कर च्यावयाञ्चकृव च्यावयाञ्चकम
च्यावयाम्बभूव/च्यावयामास। आ० च्याव्यात् च्याव्यास्ताम् च्याव्यासुः
च्याव्या: च्याव्यास्तम् च्याव्यास्त
च्याव्यासम् च्याव्यास्व च्याव्यास्म श्व० च्यावयिता च्यावयितारौ च्यावयितारः
च्यावयितासि च्यावयितास्थ: च्यावयितास्थ
च्यावयितास्मि च्यावयितास्वः च्यावयितास्मः भ० च्यावयिष्यति च्यावयिष्यतः च्यावयिष्यन्ति
च्यावयिष्यसि च्यावयिष्यथ: च्यावयिष्यथ
च्यावयिष्यामि च्यावयिष्याव: च्यावयिष्यामः क्रि० अच्यावयिष्यत् अच्यावयिष्यताम् अच्यावयिष्यन्
अच्यावयिष्यः अच्यावयिष्यतम् अच्यावयिष्यत अच्यावयिष्यम् अच्यावयिष्याव अच्यावयिष्याम १७२२. भूण् (भू) अवकल्कने। मीश्रीकरणे इत्यर्थः।
विकल्कने इति नन्दी। अवकल्पने इत्यन्ये। १५५ व० भावयति भावयतः भावयन्ति
ज्ञप्यासुः ज्ञप्यास्त ज्ञप्यास्म ज्ञपयितारः ज्ञपयितास्थ ज्ञपयितास्मः ज्ञपयिष्यन्ति ज्ञपयिष्यथ ज्ञपयिष्यामः अज्ञपयिष्यन् अज्ञपयिष्यत अज्ञपयिष्याम
१७२१. च्युण (च्यु) सहने। १५४ व० च्यावयति च्यावयत: च्यावयन्ति
Page #496
--------------------------------------------------------------------------
________________
479
चुरादिगण
स० भावयेत् भावयेताम् भावयेयुः | श्व० राकयिता राकयितारौ राकयितारः प० भावयतु/भावयतात् भावयताम् भावयन्तु भ० राकयिष्यति राकयिष्यतः राकयिष्यन्ति ह्य० अभावयत् अभावयताम् अभावयन् क्रि० अराकयिष्यत् अराकयिष्यताम् अराकयिष्यन् अ० अवीभवत् अवीभवताम् अवीभवन
१७२५. लकण् (लक्) आस्वादने। १५८ प० भावयाञ्चकार भावयाञ्चक्रतुः भावयाञ्चक्रुः
व० लाकयति लाकयतः लाकयन्ति भावयाम्बभूव/भावयामास।
स० लाकयेत् लाकयेताम् लाकयेयुः आ० भाव्यात् भाव्यास्ताम् भाव्यासुः
प० लाकयतु/लाकयतात् लाकयताम् लाकयन्तु श्व० भावयिता भावयितारौ भावयितारः
ह्य० अलाकयत् अलाकयताम् अलाकयन् भ० भावयिष्यति भावयिष्यतः भावयिष्यन्ति
अ० अलीलकत् अलीलकताम् अलीलकन् क्रि० अभावयिष्यत् अभावयिष्यताम् अभावयिष्यन्
प० लाकयाञ्चकार लाकयाञ्चक्रतुः लाकयाञ्चक्रुः ॥अथ कान्तास्त्रयः॥
लाकयाम्बभूव/लाकयामास। १७२३. बुक्क (बुक्क्) भषणे। आभाषणे इत्यन्ये। १५६
आ० लाक्यात् लाक्यास्ताम् लाक्यासुः व० बुक्कयति बुक्कयतः बुक्कयन्ति
श्व० लाकयिता लाकयितारौ लाकयितार: स० बुक्कयेत् बुक्कयेताम् बुक्कयेयुः
भ० लाकयिष्यति लाकयिष्यतः लाकयिष्यन्ति प० बुक्कयतु/तात् बुक्कयताम् बुक्कयन्तु
क्रि० अलाकयिष्यत् अलाकयिष्यताम् अलाकयिष्यन् ह्य० अबुक्कयत् अबुक्कयताम् अबुक्कयन्
॥अथ गान्तास्त्रयः।। अ० अबुबुक्कत् अबुबुक्कताम् अबुबुक्कन्
१७२६. रगण (रग्) आस्वादने। १५९ प० बुक्कयाञ्चकार बुक्कयाञ्चक्रतुः बुक्कयाञ्चक्रुः
व० रागयति रागयतः रागयन्ति बुक्कयाम्बभूव/बुक्कयामास।
स० रागयेत् रागयेताम् रागयेयुः आ० बुक्क्यात् बुक्क्यास्ताम् बुक्क्यासुः
प० रागयतु/रागयतात् रागयताम् श्व० बुक्कयिता बुक्कयितारौ बुक्कयितार:
ह्य० अरागयत् अरागयताम् अरागयन् भ० बुक्कयिष्यति बुक्कयिष्यतः बुक्कयिष्यन्ति
अ० अरीरगत् अरीरगताम् अरीरगन् क्रि० अबुक्कयिष्यत् अबुक्कयिष्यताम् अबुक्कयिष्यन्
प० रागयाञ्चकार रागयाञ्चक्रतुः रागयाञ्चक्रुः १७२४. रक (र) आस्वादने। १५७
रागयाम्बभूव/रागयामास। व० राकयति राकयतः राकयन्ति
आ० राग्यात् राग्यास्ताम् राग्यासुः स० राकयेत् राकयेताम् राकयेयुः श्व० रागयिता रागयितारौ रागयितारः प० राकयतु/राकयतात् राकयताम् राकयन्तु
भ० रागयिष्यति रागयिष्यतः रागयिष्यन्ति ह्य० अराकयत् अराकयताम् अराकयन् क्रि० अरागयिष्यत् अरागयिष्यताम् अरागयिष्यन् अ० अरीरकत् अरीरकताम् अरीरकन्
अन्यत्र रगे शङ्कायां, रगति। प० राकयाञ्चकार राकयाञ्चक्रतुः राकयाञ्चक्रुः
१७२७. लगण् (लग्) आस्वादने। १६० राकयाम्बभूव/राकयामास।
व० लागयति लागयतः लागयन्ति आ० राक्यात् राक्यास्ताम् राक्यासुः
स० लागयेत् लागयेताम् लागयेयुः
रागयन्तु
Page #497
--------------------------------------------------------------------------
________________
480
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
भ० चर्चयिष्यति चर्चयिष्यतः चर्चयिष्यन्ति क्रि० अचर्चयिष्यत् अचर्चयिष्यताम् अचर्चयिष्यन् १७३०. अञ्चण (अञ्च्) विशेषणे। १६३
विशेषण मतिशयः।
अलिङ्गयन्
प० लागयतु/लागयतात् लागयताम् लागयन्तु ह्य० अलागयत् अलागयताम् अलागयन् अ० अलीलगत् अलीलगताम् अलीलगन् प० लागयाञ्चकार लागयाञ्चक्रतुः लागयाञ्चक्रुः
लागयाम्बभूव/लागयामास। आ० लाग्यात् लाग्यास्ताम् लाग्यासुः श्व० लागयिता लागयितारौ लागयितारः भ० लागयिष्यति लागयिष्यतः लागयिष्यन्ति क्रि० अलागयिष्यत् अलागयिष्यताम् अलागयिष्यन्
१७२८. लिगुण (लिङ्ग्) चित्रीकरणे। १६१ व० लिङ्गयति लिङ्गयतः लिङ्गयन्ति स० लिङ्गयेत् लिङ्गयेताम् लिङ्गयेयुः प० लिङ्गयतु/लिङ्गयतात् लिङ्गयताम् लिङ्गयन्तु ह्य० अलिङ्गयत् अलिङ्गयताम् । अ० अलिलिङ्गत् अलिलिङ्गताम् । अलिलिङ्गन् प० लिङ्गयाञ्चकार लिङ्गयाञ्चक्रतुः लिङ्गयाञ्चक्रुः
लिङ्गयाम्बभूव/लिङ्गयामास। आ० लिङ्गयात् लिङ्गयास्ताम् लिङ्गयासुः श्व० लिङ्गयिता लिङ्गयितारौ लिङ्गयितारः भ० लिङ्गयिष्यति लिङ्गयिष्यतः लिङ्गयिष्यन्ति क्रि० अलिङ्गयिष्यत् अलिङ्गयिष्यताम् अलिङ्गयिष्यन्
॥अथ चान्तास्त्रयः॥ १७२९. चर्चण् (च) अध्ययने। १६२ व० चर्चयति चर्चयतः चर्चयन्ति स० चर्चयेत् चर्चयेताम् चर्चयेयु: प० चर्चयतु/चर्चयतात् चर्चयताम् चर्चयन्तु ह्य० अचर्चयत् अचर्चयताम् अचर्चयन् अ० अचचर्चत् अचचर्चताम् अचचर्चन् प० चर्चयाञ्चकार चर्चयाञ्चक्रतुः चर्चयाञ्चक्रुः
चर्चयाम्बभूव/चर्चयामास। आ० चात् चास्ताम् चासुः श्व० चर्चयिता चर्चयितारौ चर्चयितार:
व० अञ्चयति अञ्चयतः अञ्चयन्ति स० अञ्चयेत् अञ्चयेताम् अञ्चयेयुः प० अञ्चयतु/अञ्चयतात् अञ्चयताम् । अञ्चयन्तु ह्य० आञ्चयत् आञ्चयताम् आञ्चयन् अ० आञ्चिचत् आञ्चिचताम् आञ्चिचन् प० अञ्चयाञ्चकार अञ्चयाञ्चक्रतुः । अञ्चयाञ्चक्रुः
अञ्चयाम्बभूव/अञ्चयामास। आ० अञ्च्यात् अञ्च्यास्ताम् अञ्च्यासुः श्व० अञ्चयिता अञ्चयितारौ अञ्चयितारः भ० अञ्चयिष्यति अञ्चयिष्यतः अञ्चयिष्यन्ति क्रि० आञ्चयिष्यत् आञ्चयिष्यताम् आञ्चयिष्यन् अञ्चयत्यर्थं व्यक्तीकरोतीत्यर्थः। अन्यत्र अञ्चू गतौ च, अञ्चति। १७३१. मुचण् (मुच्) प्रमोचने। प्रयोजने इत्येके।
मोचयति कुण्डले प्रयोजयतीत्यर्थः। १६४ व० मोचयति मोचयतः मोचयन्ति स० मोचयेत् मोचयेताम् मोचयेयुः प० मोचयतु/मोचयतात् मोचयताम् मोचयन्तु ह्य० अमोचयत् अमोचयताम् अमोचयन् अ० अमूमुचत् अमूमुचताम् अमूमुचन् प० मोचयाञ्चकार मोचयाञ्चक्रतुः । ___मोचयाम्बभूव/मोचयामास। आ० मोच्यात् मोच्यास्ताम् ।
मोच्यासुः व० मोचयिता मोचयितारौ मोचयितार: भ० मोचयिष्यति मोचयिष्यतः मोचयिष्यन्ति क्रि० अमोचयिष्यत् अमोचयिष्यताम् अमोचयिष्यन्
अन्यत्र मुचि कल्कने इत्येके, मोचते, मुच्रोंती मोक्षणे। | मुञ्चति मुञ्चते।
मोचयाञ्चक्रुः
Page #498
--------------------------------------------------------------------------
________________
481
चुरादिगण
॥अथ जान्तौ। १७३२. अर्जण (अर्ज) प्रतियत्ने।
प्रतियत्नः संस्कारः। १६५ व० अर्जयति अर्जयतः अर्जयन्ति स० अर्जयेत् अर्जयेताम् अर्जयेयुः प० अर्जयतु/अर्जयतात् अर्जयताम् अर्जयन्तु ह्य० आर्जयत् आर्जयताम् आर्जयन अ० आर्जिजत् आर्जिजताम् आर्जिजन् प० अर्जयाञ्चकार अर्जयाञ्चक्रतुः अर्जयाञ्चक्रुः
अर्जयाम्बभूव/अर्जयामास। आ० अर्ध्यात् अास्ताम् अासुः श्व० अर्जयिता अर्जयितारौ अर्जयितारः भ० अर्जयिष्यति अर्जयिष्यतः अर्जयिष्यन्ति क्रि० आर्जयिष्यत् आर्जयिष्यताम् आर्जयिष्यन् अर्जयति हिरण्यं निवेशयतीत्यर्थः। अन्यत्र त अर्ज अर्जने। अर्जति।
__ १७३४. भजण् (भज्) विश्राणने। १६७ व० भाजयति भाजयतः भाजयन्ति स० भाजयेत् भाजयेताम् भाजयेयुः प० भाजयतु/भाजयतात् भाजयताम् भाजयन्तु ह्य० अभाजयत् अभाजयताम् अभाजयन् अ० अबीभजत् अबीभजताम्
अबीभजन् प० भाजयाञ्चकार भाजयाञ्चक्रतुः भाजयाञ्चक्रुः
भाजयाम्बभूव/भाजयामास। आ० भाज्यात् भाज्यास्ताम्
भाज्यासुः श्व० भाजयिता भाजयितारौ भाजयितारः भ० भाजयिष्यति भाजयिष्यतः भाजयिष्यन्ति क्रि० अभाजयिष्यत् अभाजयिष्यताम् अभाजयिष्यन्२
१७३५. स्फुटण् (स्फुट्) भेदे। १६८ व० स्फोटयति स्फोटयतः स्फोटयन्ति स० स्फोटयेत् स्फोटयेताम् स्फोटयेयु: प० स्फोटयतु/स्फोटयतात् स्फोटयताम् स्फोटयन्तु ह्य० अस्फोटयत् अस्फोटयताम् अस्फोटयन् अ० अपुस्फुटत् अपुस्फुटताम् अपुस्फुटन् प० स्फोटयाश्चकार स्फोटयाश्चक्रतुः स्फोटयाश्चक्रुः
स्फोटयाम्बभूव/स्फोटयामास। आ० स्फोट्यात् स्फोट्यास्ताम् स्फोट्यासुः श्व० स्फोटयिता स्फोटयितारौ स्फोटयितारः भ० स्फोटयिष्यति स्फोटयिष्यतः स्फोटयिष्यन्ति क्रि० अस्फोटयिष्यत् अस्फोटयिष्यताम् अस्फोटयिष्यन्
३१७३६. घटण् (घट्) संघाते। १६९ व० घाटयति घाटयतः घाटयन्ति स० घाटयेत् घाटयेताम् प० घाटयतु/घाटयतात् घाटयताम् घाटयन्तु ह्य० अघाटयत् अघाटयताम् अघाटयन्
॥अथ टान्तास्त्रयः॥
१७३३. चटण् (चट्) भेदे। १६६ व० चाटयति चाटयतः चाटयन्ति स० चाटयेत् चाटयेताम् चाटयेयुः प० चाटयतु/चाटयतात् चाटयताम्
चाटयन्तु ह्य० अचाटयत् अचाटयताम् अचाटयन् अ० अचीचटत् अचीचटताम् अचीचटन् प० चाटयाञ्चकार चाटयाञ्चक्रतुः चाटयाञ्चक्रुः
चाटयाम्बभूव/चाटयामास। आ० चाट्यात् चाट्यास्ताम् चाट्यासुः श्व० चाटयिता चाटयितारौ चाटयितारः भ० चाटयिष्यति चाटयिष्यतः चाटयिष्यन्ति क्रि० अचाटयिष्यत् अचाटयिष्यताम् अचाटयिष्यन्
घाटयेयुः
२. अन्यत्र भजी सेयायाम भजति भजने ३. अन्यत्र तु स्फुट्ट विसरणे स्फोटति स्फुटि विकसने स्फोटते स्फुटत
पिकाले स्फुटति
१. णिचोऽनित्यत्वाच्चटति।
Page #499
--------------------------------------------------------------------------
________________
482
अ० अजीघटत् अजीघटताम्
प० घाटयाञ्चकार
घाटयाञ्चक्रतुः
घाटयाम्बभूव / घाटयामास ।
आ० घाट्यात्
श्व० घाटयिता
घाट्यासुः
घाटयितार:
भ० घाटयिष्यति
घाटयिष्यन्ति
क्रि० अघाटयिष्यत् अघाटयिष्यताम् अघाटयिष्यन् ' १७३६-२. हनंक् (हन्) हिंसागत्योः तत्र हिंसायाम् ।
घातयन्ति
घातयेयुः
घातयन्तु
अघातयताम्
अघातयन्
ह्य० अघातयत् अ० अजघत् अजीघतताम् अजीघतन्
प० घातयाञ्चकार
घातयाञ्चक्रुः
व० घातयति
घातयतः
० घातयेत्
घातयेताम्
प० घातयतु / घातयतात् घातयताम्
घाट्यास्ताम्
घाटयितारौ
घाटयिष्यतः
आ० घात्यात्
श्व० घातयिता
घातयाम्बभूव / घातयामास ।
घातयाञ्चक्रतुः
घात्यास्ताम्
घातयितारौ
भ० घातयिष्यति
घातयिष्यतः
क्रि० अघातयिष्यत् अघातयिष्यताम्
व० हिंसयति
सo हिंसयेत्
अजीघटन्
घाटयाञ्चक्रुः
१७३६-३. हिसुप् (हिंस्) हिंसायाम् ।
हिंसयत:
हिंसयेताम्
घात्यासुः
घातयितारः
घातयिष्यन्ति
अघातयिष्यन्
हिंसयन्ति
हिंसयेयुः
१. अर्थान्तरे तु घटिषु चेष्टायां घटते । हन्त्यर्थाश्च । येऽन्यत्र हन्त्यर्था हिंसार्थाः पठ्यन्ते तेऽप्यत्र चुरादौ वेदितव्याः । हनंक् हिंसागत्योः । घातयति । हिंसु तृहप् हिंसायाम् हिंसयति तर्हयति । तत्तद्गणपाठसामर्थ्यात्तु हन्ति हिनस्ति तृणेढीत्यादयोऽपि अनेनैव च सिद्धेऽन्येषां हिंसार्थानां चुरादौ पाठ आत्मनेपदादिगतरूपभेदार्थः । अन्ये तु चटास्फुटौ घट च हन्त्यर्था इत्याद्यं पाठं मन्यन्ते । अस्यार्थः चट इत्ययं धातु आङ्पूर्वश्च स्फुट इति घट इत्ययं च त्रयोऽप्येते हन्त्यर्था हिंसार्थाः सन्तक्षुरादौ भवन्ति चाटयति आस्फोटयति घाटयति हन्तीत्यर्थः । अर्थान्तरे तु न चुरादित्वम् चटति आस्फुटति घटते। अपरे तु अन्यथा व्याचक्षते । चटास्फुटौ आस्फुटत्यर्थे चुरादिः । चाटयति । घट च। अयंचास्फुटत्यर्थे चुरादिः घाटयति अन्यत्र चटति घटते ।
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प० हिंसयतु / हिंसयतात् हिंसयताम्
हिंसयन्तु अहिंसयन्
ह्य० अहिंसयत्
अहिंसयताम्
अ० अजिहिंसत्
अजिहिंसताम् अजिहिंसन्
प० हिंसयाञ्चकार
हिंसयाञ्चक्रतुः हिंसयाञ्चक्रुः
हिंसयाम्बभूव/हिंसयामास ।
आ० हिंस्यात्
श्व० हिंसयिता
भ० हिंसयिष्यति
क्रि० अहिंसयिष्यत्
१७३६-४. तृहप् (तृह्) तहीयाम् ।
व० तर्हयति
तर्हयतः
तर्हयन्ति
सत्
तर्हयेताम्
तर्हयेयुः
प० तर्हयतु/तर्हयतात् तर्हयताम्
तर्हयन्तु
अर्हत्
अर्हतम्
अतर्हयन्
अ० अतीतृहत्
अतीतृहाम्
अतीतृहन्
प० तर्हयाञ्चकार तर्हयाञ्चक्रतुः तर्हयाञ्चक्रुः
तर्हयाम्बभूव/तर्हयामास ।
आ
श्व० तर्हयिता
भ० तर्हयिष्यति
क्रि० अतर्हयिष्यत्
तर्ह्यास्ताम्
तर्हयितारौ
तर्हयिष्यतः
अतर्हयिष्यताम्
॥ अथ णान्तः ॥
१७३७. कणण् (कण्) निमीलने । १७०
काणयतः
काणयन्ति
काणयेयुः
हिंस्यासुः
हिंसयितार:
हिंसयिष्यन्ति
अहिंसयिष्यताम् अहिंसयिष्यन् .
प०
ह्य० अकाणयत्
अ० अचिकणत्
प० काणयाञ्चकार
हिंस्यास्ताम्
हिंसयितारौ
हिंसयिष्यतः
व० काणयति
०
कात्
काणयतु / काणयतात् काणयताम्
आ० काण्यात्
श्व० काणयिता
कायाम्बभूव / काणयामास ।
अकाणयताम्
अचिकणताम्
काणयाञ्चक्रतुः
काण्यास्ताम्
काणयितारौ
तर्ह्यासुः
तर्हयितार:
तयिष्यन्ति
अर्हष्यन्
काणयन्तु
अकाणयन्
अचिकणन्
'काणयाञ्चक्रुः
काण्यासुः
काणयितार:
Page #500
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
भ० काणयिष्यति
क्रि० अकाणयिष्यत्
अन्यत्र तु कण शब्दे, कणति ।
१७३८. यतण् (यत्) निकारोपस्कारयोः । निकारः खेदनम् । निरश्च प्रतिदाने निरः परो यति: प्रतिदानार्थं चुरादि; निर्यातयति ऋणं शोधयतीत्यर्थः । १७१
व० यातयति
स० [यातयेत्
प० यातयतु/यातयतात् यातयताम्
ह्य० अयातयत्
अ० अयीयतत्
प० यातयाञ्चकार
काणयिष्यतः
अकाणयिष्यताम्
आ० यात्यात्
श्व० यातयिता
भ० यातयिष्यति
क्रि० अयातयिष्यत्
स० शब्दयेत्
शब्दयेः
शब्दयेयम्
यातयतः
यातयेताम्
यातयाम्बभूव / यातयामास ।
अयातयताम्
अयीयतताम्
यातयाञ्चक्रतुः
यात्यास्ताम्
यातयितारौ
यातयिष्यतः
अयातयिष्यताम्
अथ दान्ताः षट ।
काणयिष्यन्ति
अकाणविष्यन्
१७३९. शब्दण् (शब्द) उपसर्गाद् भाषाविष्कारयोः । १
व० शब्दयति
शब्दयन्ति
शब्दयसि
शब्दयथ
शब्दयामि
शब्दयामः
शब्दयेयुः
शब्दयेत
शब्दयेम
शब्दयतः
शब्दयथ:
शब्दयावः
शब्दयेताम्
शब्दयेतम्
शब्दयेव
प० शब्दयतु / शब्दयतात् शब्दयताम्
शब्दय/शब्दयतात् शब्दयतम् शब्दयानि
शब्दयाव
यातयन्ति
यातयेयुः
यातयन्तु
अयातयन्
अयीयतन्
यातयाञ्चक्रुः
यात्यासुः
यातयितारः
यातयिष्यन्ति
अयातयिष्यन्
शब्दयन्तु
शब्दयत
शब्दयाम
१. भाषा भाषणतम् भाषे आविष्कारे चायं शब्द इत्यर्थे धातुरूप सर्गात्परशुरादिः योगविभागोऽत्रेति नन्दी शब्द उपसगांदित्येकः भाषाविष्कारयोरित्यपरः । अनुपसर्गार्थोऽयमारम्भः । भाषाविष्करणार्थः १७२
पूर्वस्तु
डा० अशब्दयत्
अशब्दयः
अशब्दयम्
अ० अशशब्दत्
अशशब्दः
अशशब्दम्
प० शब्दयाञ्चकार
शब्दयाज्ञकर्थ
ॐ० शब्दयात्
शब्दया:
शब्दयाञ्चकार / कर शब्दयाकृव
शब्दयाम्बभूव / शब्दयामास ।
शब्दयासम्
४० शब्दयिता
शब्दयितासि
शब्दयितास्मि
भ० शब्दयिष्यति
शब्दयिष्यसि
शब्दयिष्यामि
शब्दवास्ताम्
शब्दयास्तम्
शब्दयास्व
शब्दयास्म
शब्दयितारौ
शब्दयितार:
शब्दयितास्थः
शब्दयितास्थ
शब्दयितास्वः
शब्दयितास्मः
शब्दयिष्यतः
शब्दयिष्यन्ति
शब्दयिष्यथः शब्दयिष्यथ शब्दयिष्यावः शब्दयिष्यामः
अशब्दयिष्यताम् अशब्दयिष्यन् अशब्दयिष्यः अशब्दयिष्यतम् अशब्दयिष्यत अशब्दयिष्यम् अशब्दयिष्याव अशब्दयिष्याम
१७४०. पूदण् (सूद्) आश्रवणे १७३
क्रि० अशब्दयिष्यत्
अशब्दयन्
अशब्दयत
अशब्दयाम
अशशब्दताम् अशशब्दन्
अशशब्दतम् अशशब्दत
अशशब्दाव
अशशब्दाम
अशब्दयताम्
अशब्दयतम्
अशब्दयाव
शब्दयाञ्चक्रतुः शब्दयाञ्चक्रुः
शब्दयाञ्चक्रथुः शब्दयाञ्चक्र
शब्दयाञ्चकृम
आ० सूदयात्
व० सूदयिता
व० सूदयति
सूदयतः
स० [सूदयेत्
सूदताम्
प० सूदयतु / सूदयतात् सूदयताम्
ह्य० असूदयत्
असूदयताम्
अ० असूषुदत्
असूषुदताम्
प० सूदयाञ्चकार
सूदयाम्बभूव/सूदयामास ।
सूदयाञ्चक्रतुः
शब्दयासुः
शब्दयास्त
सूदयन्ति
सूदयेयुः
सूदयन्तु
असूदयन्
असूषुदन्
सूदयाञ्चक्रुः
483
सूयास्ताम् सूयासुः
सूदयितारौ
सूदयितार:
Page #501
--------------------------------------------------------------------------
________________
484
धातुरत्नाकर प्रथम भाग भ० सूदयिष्यति सूदयिष्यतः सूदयिष्यन्ति । १७४३. आस्वादः सकर्मकात्। आयूर्वात्स्वदतेः क्रि० असदयिष्यत असदयिष्यताम असदयिष्यन । सकर्मकाण्णि ज्भवति; आस्वादयति यवागूम्। १७६ १७४१. आङ क्रन्दण् (आ-क्रन्द्) सातत्ये। आङ:परःक्रन्द व० आस्वादयति आस्वादयतः आस्वादयन्ति इत्ययं धातुः सातत्यार्थे चुरादिः। १७४
स० आस्वादयेत् आस्वादयेताम् आस्वादयेयुः
प० आस्वादयतु/तात् आस्वादयताम् आस्वादयन्तु व० आक्रन्दयति आक्रन्दयतः आक्रन्दयन्ति
ह्य० आस्वादयत् आस्वादयताम् आस्वादयन् स० आक्रन्दयेत् आक्रन्दयेताम् आक्रन्दयेयुः
अ० आसिस्वदत् आसिस्वदताम् आसिस्वदन् प० आक्रन्दयतु/तात् आक्रन्दयताम् आक्रन्दयन्तु
प० आस्वादयाञ्चकार आस्वादयाञ्चक्रतुः आस्वादयाञ्चक्रुः ह्य० आक्रन्दयत् आक्रन्दयताम् आक्रन्दयन्
आस्वादयाम्बभूव/आस्वादयामास। अ० आचक्रन्दत् आचक्रन्दताम् आचक्रन्दन्
आ० आस्वाद्यात् आस्वाद्यास्ताम् आस्वाद्यासुः प० आक्रन्दयाञ्चकार आक्रन्दयाञ्चक्रतुः आक्रन्दयाञ्चक्रुः
श्व० आस्वादयिता आस्वादयितारौ आस्वादयितारः आक्रन्दयाम्बभूव/आक्रन्दयामास।
भ० आस्वादयिष्यति आस्वादयिष्यतः आस्वादयिष्यन्ति आ० आक्रन्द्यात् आक्रन्द्यास्ताम् आक्रन्द्यासुः
क्रि० आस्वादयिष्यत् आस्वादयिष्यताम् आस्वादयिष्यन् श्व० आक्रन्दयिता आक्रन्दयितारौ आक्रन्दयितारः
१७४४. मुदण् (मुद्) संसर्गे। १७७ भ० आक्रन्दयिष्यति आक्रन्दयिष्यतः आक्रन्दयिष्यन्ति
व० मोदयति मोदयत: मोदयन्ति क्रि० आक्रन्दयिष्यत् आक्रन्दयिष्यताम् आक्रन्दयिष्यन्
स० मोदयेत् मोदयेताम् मोदयेयुः अन्यत्र तु क्रदु रोदनाह्वानयोः। आक्रन्दति।
प० मोदयतु/मोदयतात् मोदयताम् मोदयन्तु १७४२. ष्वदण् (स्वद्) आस्वादने। ह्य० अमोदयत् अमोदयताम् । अमोदयन् संवरे केचित्। १७५
अ० अमूमुदत् अमूमुदताम् । अमूमुदन् व० स्वादयति स्वादयतः स्वादयन्ति प० मोदयाञ्चकार मोदयाञ्चक्रतुः मोदयाञ्चक्रुः स० स्वादयेत् स्वादयेताम् स्वादयेयुः
मोदयाम्बभूव/मोदयामास। प० स्वादयतु/स्वादयतात् स्वादयताम् स्वादयन्तु
आ० मोद्यात् मोद्यास्ताम् ह्य० अस्वादयत् अस्वादयताम् अस्वादयन्
श्व० मोदयिता मोदयितारौ मोदयितारः अ० असिष्वदत् असिष्वदताम् असिष्वदन्
भ० मोदयिष्यति मोदयिष्यतः मोदयिष्यन्ति प० स्वादयाञ्चकार स्वादयाञ्चक्रतुः स्वादयाञ्चक्रुः
क्रि० अमोदयिष्यत् अमोदयिष्यताम् अमोदयिष्यन्
॥अथ धान्तः।। स्वादयाम्बभूव/स्वादयामास।
१७४५. शृधण् (शृथ्) प्रसहने। प्रसहनमभिभवः। १७८ आ० स्वाद्यात् स्वाद्यास्ताम् स्वाद्यासुः श्व० स्वादयिता
शर्धयन्ति स्वादयितारौ स्वादयितारः
व० शर्धयति शर्धयतः भ० स्वादयिष्यति स्वादयिष्यतः स्वादयिष्यन्ति
स० शर्धयेत् शर्धयेताम् शर्धयेयुः
प० शर्धयतु/शर्धयतात् शर्धयताम् शर्धयन्तु क्रि० अस्वादयिष्यत् अस्वादयिष्यताम् अस्वादयिष्यन्
ह्य० अशर्धयत् । अशर्धयताम् । अशर्धयन्
अ० अशीशृधत् अशीशृधताम् अशीशृधन् १. अर्थान्तरे तु षूदि क्षरणे। सूदत्ते।
मोद्यासुः
Page #502
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
प० शर्धयाञ्चकार शर्धयाञ्चक्रतुः
शर्धयाम्बभूव / शर्धयामास ।
आ० शर्ध्यात्
श्व० शर्धयिता
भ० शर्धयिष्यति
क्रि० अशर्धयिष्यत्
शर्ध्याताम्
शर्धयितारौ
शर्धयिष्यतः
व० कल्पयति
स० कल्पयेत्
प० कल्पयतु / कल्पयतात् कल्पयताम्
ह्य० अकल्पयत् अकल्पयताम्
अ० अचीवलृपत्
अचीवलृपताम्
प० कल्पयाञ्चकार
कल्पयाञ्चक्रतुः
आ० कल्प्यात्
श्व० कल्पयिता
भ० कल्पयिष्यति
क्रि० अकल्पयिष्यत्
अशर्धयिष्यताम्
॥ अथ पान्तः ॥
१७४६. कृपण् (कृप्) अवकल्कने । १७९
कल्पयन्ति
कल्पयेयुः
कल्पयन्तु
अकल्पयन्
अचीवलृपन्
कल्पयाञ्चक्रुः
कल्पयाम्बभूव/ कल्पयामास ।
कल्पयतः
कल्पयेताम्
आ० जम्भ्यात्
श्व० जम्भयिता
कल्प्यास्ताम्
कल्पयितारौ
कल्पयिष्यतः
व० जम्भयति
० जम्भयेत्
भम्
प० जम्भयतु / जम्भयतात् जम्भयताम्
ह्य० अजम्भयत् अजम्भयताम्
अ० अज्जम्भत्
अज्जम्भताम्
प० जम्भयाञ्चकार
जम्भयाञ्चक्रतुः
अर्थान्तरे तु कृपीङ् सामर्थ्ये कल्पते ।
शर्धयाञ्चक्रुः
अकल्पयिष्यताम् अकल्पयिष्यन्
॥ अथ मान्तः ।।
१७४७. जभुण् (जम्भ्) नाशने । १८०
जम्भयन्ति
जम्भयेयुः
जम्भयन्तु
अजम्भयन्
अज्जम्भन्
जम्भयाञ्चक्रुः
जम्भयाम्बभूव/जम्भयामास ।
शर्ध्यासुः
शर्धयितारः
शर्धयिष्यन्ति
अशर्धयिष्यन्
जम्भयतः
कल्प्यासुः
कल्पयितारः
कल्पयिष्यन्ति
जम्भ्यास्ताम्
जम्भयितारौ
जम्भ्यासुः जम्भयितारः
१. अवकल्कनं मिश्रीकरणं सामर्थ्यञ्च, अवकल्पन मित्यपरे ।
भ० जम्भयिष्यति जम्भयिष्यतः जम्भयिष्यन्ति
क्रि० अजम्भयिष्यत्
अजम्भयिष्यताम् अजम्भयिष्यन् अन्यत्र जभुङ् गात्रविनामे; जम्भते ।
॥ अथ मान्तः ।
१७४८. अमण् (अम्) रोगे । १८१
व० आमयति
आमयतः
० आत्
अमताम्
प० आमयतु / आमयतात् आमयताम्
ह्य० आमयत्
आमयताम्
अ० आमित्
आमिमताम्
प० आमयाञ्चकार
आमयाम्बभूव/आमयामास ।
आ० आम्यात्
श्व० आमयिता
भ० आमयिष्यति
क्रि० आमयिष्यत्
आमयाञ्चक्रतुः
व० विचारयति
स० विचारयेत्
प० विचारयतु/तात्
ह्य० व्यचारयत्
अ० व्यचिचरत्
प० विचारयाञ्चकार
आम्यास्ताम्
आमयितारौ
आमयिष्यतः
आमयिष्यताम् अन्यत्र अम गतौ अमति ।
आ० विचार्यात्
श्व० विचारयिता
१७४९. चरण (चर्) असंशये ।
निश्चये इत्यर्थः । संशये इति केचित् । विचारणा हि संशये
सति भवतीत्याहुः । १८२
विचारयतः
विचारयेताम्
विचारयताम्
विचारयाम्बभूव/विचारयामास ।
व्यचारयताम्
व्यचिचरताम्
विचारयाञ्चक्रतुः
आमयन्ति
आमयेयुः
आमयन्तु
आमयन्
आमिमन्
आमयाञ्चक्रुः
आम्यासुः
आमयितारः
आमयिष्यन्ति
आमयिष्यन्
485
विचारयन्ति
विचारयेयुः
विचारयन्तु
व्यचारयन्
व्यचिचरन्
विचारयाञ्चक्रुः
विचार्यास्ताम्
विचार्यासुः
विचारयितारौ
विचारयितारः
भ० विचारयिष्यति
विचारयिष्यतः
विचारयिष्यन्ति
क्रि० अविचारयिष्यत् अविचारयिष्यताम् अविचारयिष्यन्
अन्यत्र चर भक्षणे च ; चरति ।
Page #503
--------------------------------------------------------------------------
________________
486
१७५०. पूरण (पूर्) आप्यायने । १८३
पूरयन्ति
पूरयेयुः
पूरयन्तु
अपूरयन्
अपूपुरन्
पूरयाञ्चक्रुः
व० पूरयति
पूरयतः
स पूरयेत्
पूरयेताम्
प० पूरयतु / पूरयतात् पूरयताम्
ह्य० अपूरयत्
अपूरयताम्
अ० अपूपुरत्
अपूपुरताम्
प० पूरयाञ्चकार
पूरयाञ्चक्रतुः
पूरयाम्बभूव / पूरयामास ।
आपूर्यात्
श्व० पूरयिता
भ० पूरयिष्यति
क्रि० अपूरयिष्यत्
पूर्यास्ताम्
पूरयितारौ
पूरयिष्यतः
अपूरयिष्यताम् अन्यत्र पूरैचि आप्यायने; पूर्यते ।
॥ अथ लान्ताः ।
१७५१. दल (दल) विदारणे । १८४
व० दालयति
दालयतः
० दालयेत्
दालम्
प० दालयतु/ दालयतात् दालयताम्
ह्य० अदालयत्
अदालयताम्
अ० अदीदलत्
अदीदलताम्
प० दालयाञ्चकार
आ० दाल्यात्
श्व० दालयिता
दालयाम्बभूव/दालयामास ।
भ० दालयिष्यति
क्रि० अदालयिष्यत्
दालयाञ्चक्रतुः
पूर्यासुः
पूरयितार:
पूरयिष्यन्ति
अपूरयिष्यन्
दाल्यास्ताम्
दालयितारौ
दालयिष्यतः
दालयन्ति
दालयेयुः
दालयन्तु
अदालयन्
अदीदलन्
दालयाञ्चक्रुः
दाल्यासुः
दालयितार:
दालयिष्यन्ति
अदालयिष्यताम् अदालयिष्यन्
अन्यत्र दल विशरणे; दलति ।
व० देवयति
देवयतः
स० [देवयेत्
देवयेताम्
प० देवयतु/देवयतात् देवयताम्
॥ अथ वान्ताः ॥
१७५२. दिवण् (दिव्) अर्दने १८५
देवयन्ति
देवयेयुः
देवयन्तु
ह्य० अदेवयत्
अ० अदीदिवत्
प० देवयाञ्चकार
देवयाम्बभूव / देवयामास ।
आ० देव्यात्
श्व० देवयिता
भ० देवयिष्यति
क्रि० अदेवयिष्यत्
अदेवयताम्
अदीदिवताम्
देवयाञ्चक्रतुः
व० पाशयति
० पात्
प० पाशयतु / पाशयतात् पाशयताम्
ह्य० अपाशयत्
अपाशयताम्
अ० अपीपशत्
अपीपशताम्
प० पाशयाञ्चकार
आ० पाश्यात्
श्व० पाशयिता
अदेवयिष्यताम्
अन्यत्र दिवूच् क्रीडादौ; दीव्यति ।
॥ अथ शान्ताः ॥
१७५३. पशण् (पश्) बन्धने । १८६
देव्यास्ताम्
देवयितारौ
देवयिष्यतः
भ० पाशयिष्यति
क्रि० अपाशयिष्यत्
पाशयाम्बभूव / पाशयामास ।
व० पाषयति
स० पाषयेत्
पाशयतः
पाशयेताम्
पाशयाञ्चक्रतुः
पाश्यास्ताम्
पाशयितारौ
पाशयिष्यतः
अपाशयिष्यताम् अन्यत्र दिवच् क्रीडादौ दीव्यति ।
पाषयतः
पाषयेताम्
प० पाषयतु / पाषयतात् पाषयताम्
ह्य० अपाषयत्
अ० अपीपषत्
प० पाषयाञ्चकार
॥अथ षान्ताश्चत्वारः ॥
१७५४. पषण् (पष्) बन्धने । १८७
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अदेवयन्
अदीदिवन्
देवयाञ्चक्रुः
अपाषयताम्
अपीपषताम्
देव्यासुः
देवयितार:
देवयिष्यन्ति
अदेवयिष्यन्
पाषयाञ्चक्रतुः
पाषयाम्बभूव / पाषयामास ।
पाशयन्ति
पाशयेयुः
पाशयन्तु
अपाशयन्
अपीपशन्
पाशयाञ्चक्रुः
पाश्यासुः
पाशयितारः
पाशयिष्यन्ति
अपाशयिष्यन्
पाषयन्ति
पाषयेयुः
पाषयन्तु
अपाषयन्
अपीपषन्
पाषयाञ्चक्रुः
Page #504
--------------------------------------------------------------------------
________________
487
घोषन्तु
चुरादिगण आ० पाष्यात् पाध्यास्ताम् पाष्यासुः | क्रि० अघोषयिष्यत् अघोषयिष्यताम् अघोषयिष्यन् ० पाषयिता पाषयितारौ पाषयितारः
ऋदित्करणं चुरादिणिचो नित्यत्वे लिङ्गम् तेन। भ० पाषयिष्यति पाषयिष्यतः पाषयिष्यन्ति व० घोषति घोषतः घोषन्ति क्रि० अपाषयिष्यत् अपाषयिष्यताम् अपाषयिष्यन् । स० घोषेत
घोषेताम्
घोषेयुः पसण् इत्यपि केचित्। अन्यत्र पषी वाधनस्पर्शनयोः। इति | प० घोषत/घोषतात् घोषताम् मूर्धन्यान्तस्तालव्यान्तो दन्त्यान्तश्चाचार्यभेदेन; पशति, पशते।
ह्य० अघोषत् अघोषताम् अघोषन् पषति, पषते। पसति, पसते।
अ० अघुषत् अघुषताम् अघुषन् ___ १७५५. पुषण (पुष्) धारणे। १८८
प० जुघोष जुघुषतुः जुघुषुः व० पोषयति पोषयतः पोषयन्ति
आ० घुष्यात् घुष्यास्ताम् घुष्यासुः स० पोषयेत् पोषयेताम् पोषयेयुः
श्व० घोषिता घोषितारौ घोषितार: प० पोषयतु/पोषयतात् पोषयताम्
पोषयन्तु
भ० घोषिष्यति घोषिष्यतः घोषिष्यन्ति ह्य० अपोषयत् अपोषयताम् अपोषयन्
क्रि० अघोषिष्यत् अघोषिष्यताम् अघोषिष्यन् अ० अपूपुषत् अपूपुषताम् अपूपुषन्
आड: क्रन्दे आपोषयति, आकन्दत इत्यर्थः। अन्ये प० पोषयाञ्चकार पोषयाञ्चक्रतुः
पोषयाश्चक्रुः
त्वाङक्रन्दः सातत्ये इति पठन्ति। आक्रन्दयति नित्यम्। अन्यत्र पोषयाम्बभूव/पोषयामास।
आक्रन्दति। आ० पोष्यात् पोष्यास्ताम् पोष्यासुः
१७५७. भूषण (भूए) अलङ्कारे। १९० श्व० पोषयिता पोषयितारौ पोषयितारः
व० भूषयति भूषयतः भूषयन्ति भ० पोषयिष्यति पोषयिष्यतः पोषयिष्यन्ति स० भूषयेत् भूषयेताम् भूषयेयुः क्रि० अपोषयिष्यत् अपोषयिष्यताम् अपोषयिष्यन्'
प० भूषयतु/भूषयतात् भूषयताम् भूषयन्तु १७५६. घुषण (घुष्) विशब्दने।
ह्य० अभूषयत् अभूषयताम् अभूषयन् विशिष्टशब्दकरणे नानाशब्दकरणे वा। १८९
अ० अबूभुषत् अबूभुषताम् अबूभुषन् व० घोषयति घोषयतः घोषयन्ति प० भूषयाञ्चकार भूषयाञ्चक्रतुः भूषयाश्चक्रुः स० घोषयेत् .. घोषयेताम् घोषयेयुः
भूषयाम्बभूव/भूषयामास। प० घोषयतु/घोषयतात् घोषयताम्
आ० भूष्यात् भूष्यास्ताम् भूष्यासुः ह्य० अघोषयत् अघोषयताम् अघोषयन् श्व० भूषयिता
भूषयितारौ
भूषयितारः अ० अजूघुषत् अजूघुषताम् अजूघुषन् भ० भूषयिष्यति भूषयिष्यतः भूषयिष्यन्ति प० घोषयाञ्चकार घोषयाञ्चक्रतुः घोषयाञ्चक्रुः क्रि० अभूषयिष्यत् अभूषयिष्यताम् अभूषयिष्यन् घोषयाम्बभूव/घोषयामास।
भूष अलङ्कारे; भूषति॥ आ० घोष्यात् घोष्यास्ताम् घोष्यासुः
॥अथ सान्ताः सप्त॥ श्व० घोषयिता घोषयितारौ
घोषयितारः
१७५८. तसुण (तंस्) अलङ्कारे। १९१ भ० घोषयिष्यति घोषयिष्यतः घोषयिष्यन्ति
व. तंसयति तंसयतः तंसयन्ति १. अन्यत्र तु पुष पुषच पुषश् पुष्टौ, पोषति पुष्यति पुष्णाति।
| स० तंसयेत्
तंसयेताम्
तंसयेयुः
ज
घोषयन्तु
Page #505
--------------------------------------------------------------------------
________________
488
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तस्यासुः
प० तंसयतु/तंसयतात् तंसयताम् तंसयन्तु ह्य० अतंसयत् । अतंसयताम् अतंसयन् अ० अततंसत् अततंसताम् अततंसन् प० तंसयाञ्चकार तंसयाञ्चक्रतुः तंसयाञ्चक्रुः
तंसयाम्बभूव/तंसयामास। आ० तस्यात्
तस्यास्ताम् श्व० तंसयिता तंसयितारौ तंसयितारः भ० तंसयिष्यति तंसयिष्यतः तंसयिष्यन्ति क्रि० अतंसयिष्यत् अतंसयिष्यताम् अतंसयिष्यन्
तसु अलङ्कारे; तंसति। १७५९. जसुण (जस्) ताडने। १९२ व० जासयति जासयतः जासयन्ति
जासयन्ति स० जासयेत् जासयेताम् जासयेयुः प० जासयतु/जासयतात् जासयताम् जासयन्तु ह्य० अजासयत् अजासयताम् अजासयन् अ० अजीजसत् अजीजसताम् अजीजसन् प० जासयाञ्चकार जासयाञ्चक्रतुः जासयाञ्चक्रुः
जासयाम्बभूव/जासयामास। आ० जास्यात् जास्यास्ताम् जास्यासुः श्व० जासयिता जासयितारौ जासयितारः भ० जासयिष्यति जासयिष्यतः जासयिष्यन्ति क्रि० अजासयिष्यत् अजासयिष्यताम् अजासयिष्यन्
___अन्यत्र जसूच् मोक्षणे; जस्यति। .. १७६०. सण (त्रस्) वारणे। धारणे इति नन्दी। १९३ व० त्रासयति त्रासयतः त्रासयन्ति स० त्रासयेत् त्रासयेताम् त्रासयेयुः प० त्रासयतु/त्रासयतात् त्रासयताम् त्रासयन्तु ह्य० अत्रासयत् अत्रासयताम् अत्रासयन् अ० अतित्रसत् अतित्रसताम् अतित्रसन् प० त्रासयाञ्चकार त्रासयाञ्चक्रतुः त्रासयाञ्चक्रुः
त्रासयाम्बभूव/त्रासयामास। आ० त्रास्यात् त्रास्यास्ताम् त्रास्यासुः
श्व० त्रासयिता. त्रासयितारौ त्रासयितार: भ० त्रासयिष्यति त्रासयिष्यतः त्रासयिष्यन्ति क्रि० अत्रासयिष्यत् अत्रासयिष्यताम् अत्रासयिष्यन्
अन्यत्र त्रसैच् भये; त्रस्यति, वसति। १७६१. वसण (वस्) स्नेहच्छेदावहरणेषु। अवहरणं
मारणम्। १९४ व. वासयति वासयतः वासयन्ति स० वासयेत् वासयेताम् वासयेयुः प० वासयतु/वासयतात् वासयताम् वासयन्तु ह्य० अवासयत् अवासयताम् अवासयन्
अ० अवीवसत् अवीवसताम् अवीवसन् । प० वासयाञ्चकार वासयाञ्चक्रतुः वासयाञ्चक्रुः
वासयाम्बभूव/वासयामास। आ० वास्यात् वास्यास्ताम् वास्यासुः श्व० वासयिता वासयितारौ वासयितार: भ० वासयिष्यति वासयिष्यतः वासयिष्यन्ति क्रि० अवासयिष्यत् अवासयिष्यताम् अवासयिष्यन्?
१७६२. ध्रसण (ध्रस्) उत्क्षेपे। उच्छे केचित्। १९५ व० ध्रासयति ध्रासयतः ध्रासयन्ति |
स० ध्रासयेत् ध्रासयेताम् ध्रासयेयुः प० ध्रासयतु/ध्रासयतात् ध्रासयताम् ध्रासयन्तु ह्य० अध्रासयत् अध्रासयताम् अध्रासयन् अ० अदिध्रसत् अदिध्रसताम्
अदिध्रसन् प० ध्रासयाञ्चकार ध्रासयाञ्चक्रतुः ध्रासयाश्चक्रुः
ध्रासयाम्बभूव/ध्रासयामास। आ० ध्रास्यात् ध्रास्यास्ताम् ध्रास्यासुः श्व० ध्रासयिता ध्रासयितारौ ध्रासयितारः भ० ध्रासयिष्यति ध्रासयिष्यतः ध्रासयिष्यन्ति क्रि० अध्रासयिष्यत् अध्रासयिष्यताम् अध्रासयिष्यन
॥अन्यत्र ध्रसूश् उज्छे।।
१. अन्यत्र वसं निवासे वसति। वसिक आच्छादने वस्ते
Page #506
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
१७६३. ग्रसण् (ग्रस्) ग्रहणे । १९६
ग्रासयन्ति
ग्रासयेयुः
ग्रासयन्तु
अग्रासयन्
अजिग्रसन्
ग्रासयाञ्चक्रुः
व० ग्रासयति
० ग्रासयेत्
ग्रासयतः
ग्रासयेताम्
प० ग्रासयतु / ग्रासयतात् ग्रासयताम्
ह्य० अग्रासयत्
अग्रासयताम्
अ० अग्रि
अजिग्रसताम्
प० ग्रासयाञ्चकार
ग्रासयाञ्चक्रतुः
ग्रासयाम्बभूव / ग्रासयामास ।
आ० ग्रास्यात्
श्व० ग्रासयिता
भ० ग्रासयिष्यति
क्रि० अग्रासयिष्यत्
॥ अन्यत्र ग्रसूङ् अदने; ग्रसते ॥
१७६४. लसण् (लस्) शिल्पयोगे । १९७
व० लासयति
लासयतः
स० लासयेत् लासयेताम्
प० लासयतु / लासयतात् लासयताम्
ह्य० अलासयत् अलासयताम् अ० अलीलसत् अलीलसताम्
प० लासयाञ्चकार लासयाञ्चक्रतुः लासयाञ्चक्रुः
लासयाम्बभूव/लासयामास ।
आ० लास्यात्
श्व० लासयिता
भ० लासयिष्यति
क्रि० अलासयिष्यत्
ग्रास्यास्ताम्
ग्रास्यासुः
ग्रासयितारौ
ग्रासयितारः
ग्रासयिष्यतः
ग्रासयिष्यन्ति
अग्रासयिष्यताम् अग्रासयिष्यन्
व० अर्हयति
अर्हसि
अर्हयामि
स० अर्हयेत्
अन्यत्र लस श्लेषण क्रीडतयो:; लसनि
लासयन्ति
लासयेयुः
लासयन्तु
अलासयन्
अलीलसन्
लास्यास्ताम् लास्यासुः
लासयितारौ
लासयितारः
लासयिष्यतः
लासयिष्यन्ति
अलासयिष्यताम् अलासयिष्यन्
।। अथ हान्तः ॥
१७६५. अर्हण् (अर्ह) पूहायाम् १९८
अर्हन्ति
अर्हयथ
अर्हयामः
अर्हयेयुः
अर्हयतः
अर्हयथः
अर्हयावः
अर्हतम्
अर्हये:
अर्हम्
अर्हम्
अर्हयेव
प० अर्हयतु / अर्हयतात् अर्हयताम्
अर्हय / अर्हयतात् अर्हयतम्
अर्हयानि
अर्हयाव
ह्य० आर्हयत्
आर्हयः
आर्हयम्
अ० आर्जिहत्
आर्जिह:
आर्जिहम्
प० अर्हयाञ्चकार
अर्हयाञ्चक्रतुः
अर्हयाञ्चकर्थ
अर्हयाञ्चक्रथुः
अर्हयाञ्चकार कर अर्हयाञ्चकृव
अर्हयाम्बभूव/अर्हयामास ।
आ० अर्ध्यात्
अर्ह्याः
अर्ध्यासम्
श्व० अर्हयिता
अर्हयितासि
अर्हयितास्मि
भ० अर्हयिष्यति
अर्हयिष्यसि
अर्हयिष्यामि
क्रि० आर्हयिष्यत्
आर्हयिष्यः
आर्हयिष्यम्
आर्हयताम्
आर्हतम्
आर्हयाव
आर्जिहताम्
आर्जिहतम्
आर्जिहाव
व० मोक्षयति
० मोक्षयेत्
अर्ह्यास्ताम्
अर्धास्तम्
अह्यस्व
अर्हयितारौ
अर्हयेत
अर्हम
अर्हयन्तु
अर्हयत
अर्हयाम
आर्हयन्
आर्हयत
आर्हयाम
आर्जिहन्
आर्जिहत
आर्जिहाम
अर्हयाञ्चक्रुः
अर्हयाञ्चक्र
अर्हयाञ्चकृम
मोक्षयतः
मोक्षयेताम्
अर्ह्यासुः
अह्यस्त
अर्ह्यास्म
अर्हयितार:
अर्हयितास्थ
अर्हयितास्मः
अर्हयिष्यन्ति
अर्हयिष्यथ
अर्हयिष्यामः
आर्हयिष्यन्
आर्हयिष्यत
अर्हयितास्थः
अर्हयितास्वः
अर्हयिष्यतः
अर्हयिष्यथः
अर्हयिष्यावः
आर्हयिष्यताम्
आर्हयिष्यतम्
अअर्हयिष्याव आर्हयिष्याम्
अन्यत्र अर्ह पूजायाम्; अर्हति ।
॥ अथ क्षान्तः ॥
१७६६. मोक्षण् (मोक्ष) असने । १९९
मोक्षयन्ति
मोक्षयेयुः
489
Page #507
--------------------------------------------------------------------------
________________
490
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मोक्ष्यासुः
प० मोक्षयतु/मोक्षयतात् मोक्षयताम् मोक्षयन्तु ह्य० अमोक्षयत् अमोक्षयताम् अमोक्षयन् अ० अमुमोक्षत् अमुमोक्षताम् अमुमोक्षन् प० मोक्षयाञ्चकार मोक्षयाञ्चक्रतुः मोक्षयाश्चक्रुः
मोक्षयाम्बभूव/मोक्षयामास। आ० मोक्ष्यात् मोक्ष्यास्ताम् श्व० मोक्षयिता मोक्षयितारौ मोक्षयितारः भ० मोक्षयिष्यति मोक्षयिष्यतः मोक्षयिष्यन्ति क्रि० अमोक्षयिष्यत् अमोक्षयिष्यताम् अमोक्षयिष्यन्
अन्यत्र मोक्षति। अथ वर्णक्रमेण भासार्थाः। तत्र कान्तौ
१७६७. लोकृण् (लोक) भासार्थः। २०० व० लोकयति लोकयतः लोकयन्ति स० लोकयेत् लोकयेताम् लोकयेयुः प० लोकयतु/लोकयतात् लोकयताम् लोकयन्तु ह्य० अलोकयत् अलोकयताम् अलोकयन् अ० अलुलोकत् अलुलोकताम् अलुलोकन् प० लोकयाञ्चकार लोकयाञ्चक्रतुः । लोकयाञ्चक्रुः
लोकयाम्बभूव/लोकयामास। आ० लोक्यात् लोक्यास्ताम्
लोक्यासुः व० लोकयिता लोकयितारौ लोकयितारः भ० लोकयिष्यति लोकयिष्यतः लोकयिष्यन्ति क्रि० अलोकयिष्यत् अलोकयिष्यताम् अलोकयिष्यन्
अन्यत्र लोकङ् दर्शने; लोकते।
१७६८. तर्कण (तर्क) भासार्थः। २०१ व० तर्कयति तर्कयतः तर्कयन्ति स० तर्कयेत् तर्कयेताम् तर्कयेयुः प० तर्कयतु/तर्कयतात् तर्कयताम् तर्कयन्तु ह्य० अतर्कयत् अतर्कयताम् अतर्कयन् अ० अततर्कत् अततर्कताम् अततर्कन् प० तर्कयाञ्चकार तर्कयाञ्चक्रतुः
तर्कयाञ्चक्रुः तर्कयाम्बभूव/तर्कयामास।
आ० तर्कयात् तकयास्ताम्
तर्कयासुः श्व० तर्कयिता तर्कयितारौ तर्कयितार: भ० तर्कयिष्यति तर्कयिष्यतः तर्कयिष्यन्ति क्रि० अतर्कयिष्यत् अतर्कयिष्यताम् अतर्कयिष्यन्
१७६९. रघुण (रङ्घ) भासार्थः। २०२ व० रवयति रवयतः रवयन्ति स० रवयेत् रवयेताम् रवयेयुः प० रयतु/रयतात् रङ्घयताम् रवयन्तु ह्य० अरवयत् अरङ्घयताम् अरङ्घयन् अ० अररवत् अररङ्घताम् अररवन् प० रङ्घयाञ्चकार रङ्घयाञ्चक्रतुः रङ्घयाञ्चक्रुः
रङ्घयाम्बभूव/रचयामास। आ० रवयात् रवयास्ताम् रचयासुः श्व० रचयिता
रचयितारौ
रचयितारः भ० रयिष्यति रयिष्यतः रयिष्यन्ति क्रि० अरयिष्यत् अरवयिष्यताम् अरवयिष्यन्
___अन्यत्र रघुङ् गतौ; रहते।
१७७०. लघुण (लङ्क) भासार्थः। २०३ व० लङ्घयति लङ्घयतः लङ्घयन्ति स० लङ्घयेत् लङ्घयेताम् लवयेयुः प० लङ्घयतु/लङ्घयतात् लङ्घयताम् लङ्घयन्तु ह्य० अलङ्घयत् अलङ्घयताम् अलङ्घयन् अ० अललङ्घत् अललङ्घताम् अललङ्घन् प० लङ्घयाञ्चकार लङ्घयाञ्चक्रतुः लङ्घयाञ्चक्रुः
लङ्घयाम्बभूव/लयामास। आ० लच्यात् लझ्यास्ताम् लझ्यासुः श्व० लङ्घयिता लवयितारौ लङ्घयितार: भ० लवयिष्यति लयिष्यतः लङ्घयिष्यन्ति क्रि० अलङ्घयिष्यत् अलङ्घयिष्यताम् अलङ्घयिष्यन्
अन्यत्र लघुङ्गतौ; लड़ते।
१. गणान्तरेष्वपठिता अप्यत्र दण्डके पाठाद्धातव एव इत्यर्थान्तरे
तर्कति।
Page #508
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
491
॥अथ चान्तः। १७७१. लोचूण् (लोच्) भासार्थः। २०४ व० लोचयति लोचयतः लोचयन्ति स० लोचयेत् लोचयेताम्
लोचयेयुः प० लोचयतु/लोचयतात् लोचयताम लोचयन्तु ह्य० अलोचयत् अलोचयताम् अलोचयन् अ० अलुलोचत् अलुलोचताम् अलुलोचन् प० लोचयाञ्चकार लोचयाञ्चक्रतुः लोचयाञ्चक्रुः ____लोचयाम्बभूव/लोचयामास। आ० लोच्यात् लोच्यास्ताम्
लोच्यासुः श्व० लोचयिता लोचयितारौ लोचयितारः भ० लोचयिष्यति लोचयिष्यतः लोचयिष्यन्ति क्रि० अलोचयिष्यत् अलोचयिष्यताम् अलोचयिष्यन् __ अन्यत्र लोचङ् दर्शने; लोचते।
॥अथ छान्तः॥ १७७२. विछण् (विच्छ) भासार्थः। २०५ व० विच्छयति विच्छयतः विच्छयन्ति स० विच्छयेत् विच्छयेताम् विच्छयेयुः प० विच्छयतु/विच्छयतात् विच्छयताम् । विच्छयन्तु ह्य० अविच्छयत् अविच्छयताम् अविच्छयन अ० अविविच्छत् अविविच्छताम् अविविच्छन् प० विच्छयाञ्चकार विच्छयाञ्चक्रतुः विच्छयाञ्चक्रुः
विच्छयाम्बभूव/विच्छयामास। आ० विच्छ्यात् विच्छ्यास्ताम् विच्छ्यासुः श्व० विच्छयिता विच्छयितारौ विच्छयितारः भ० विच्छयिष्यति विच्छयिष्यतः विच्छयिष्यन्ति क्रि० अविच्छयिष्यत् अविच्छयिष्यताम् अविच्छयिष्यन् अन्यत्र विछत् गतौ। अशवि ते वेति वाये, विच्छायति
विच्छति। १७७३. अजुण (अ) भासार्थः। २०६ व० अञ्जयति अञ्जयतः अञ्जयन्ति स० अञ्जयेत् अञ्जयेताम् अञ्जयेयुः
प० अञ्जयतु/अञ्जयतात् अञ्जयताम् अञ्जयन्तु ह्य० आञ्जयत् आञ्जयताम् आञ्जयन् अ० आञ्जिजत् आञ्जिजताम् आञ्जिजन् प० अञ्जयाञ्चकार अञ्जयाञ्चक्रतुः अञ्जयाञ्चक्रुः
अञ्जयाम्बभूव/अञ्जयामास। आ० अङ्ग्यात् अञ्ज्यास्ताम् अज्यासुः श्व० अञ्जयिता अञ्जयितारौ अञ्जयितार: भ० अञ्जयिष्यति अञ्जयिष्यतः अञ्जयिष्यन्ति क्रि० आञ्जयिष्यत् आञ्जयिष्यताम् आञ्जयिष्यन्
अन्यत्र अजौप व्यक्त्यादौ व्यनक्ति। १७७४. तुजुण् (तुङ्ग्) भासार्थः। २०७ व० तुञ्जयति तुञ्जयतः तुञ्जयन्ति स० तुञ्जयेत् तुञ्जयेताम् तुञ्जयेयुः प० तुञ्जयतु/तुञ्जयतात् तुञ्जयताम् तुञ्जयन्तु ह्य० अतुञ्जयत् अतुञ्जयताम् । अतुञ्जयन् अ० अतुतुजत् अतुतुञ्जताम् अतुतुञ्जन् प० तुञ्जयाञ्चकार तुञ्जयाश्चक्रतुः तुञ्जयाञ्चक्रुः
तुञ्जयाम्बभूव/तुञ्जयामास। आ० तुज्यात् तुज्यास्ताम् तुज्यासुः श्व० तुञ्जयिता तुञ्जयितारौ तुञ्जयितार: भ० तुञ्जयिष्यति तुञ्जयिष्यतः तुञ्जयिष्यन्ति क्रि० अतुञ्जयिष्यत् अतुञ्जयिष्यताम् अतुञ्जयिष्यन्
__ अन्यत्र तुजु वलने च; तजति।
१७७५. पिजुण (पिज्) भासार्थः। २०८ व० पिञ्जयति पिञ्जयतः पिञ्जयन्ति स० पिञ्जयेत् पिञ्जयेताम् पिञ्जयेयुः प० पिञ्जयतु/पिञ्जयतात् पिञ्जयताम् पिञ्जयन्तु ह्य० अपिञ्जयत् अपिञ्जयताम् अपिञ्जयन् अ० अपिपिञ्जत् अपिपिञ्जताम् अपिपिञ्जन् प० पिञ्जयाञ्चकार पिञ्जयाश्चक्रपिः पिञ्जयाञ्चक्रुः
पिञ्जयाम्बभूव/पिञ्जयामास। आ० पिज्यात् पिज्यास्ताम् पिञ्ज्यासुः
छायतारा
पा
Page #509
--------------------------------------------------------------------------
________________
492
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
| प० भञ्जयतु/भञ्जयतात् भञ्जयताम् भञ्जयन्तु
ह्य० अभञ्जयत् अभञ्जयताम् अभञ्जयन् अ० अबभञ्जत् अबभञ्जताम् अबभजन् प० भञ्जयाञ्चकार भञ्जयाञ्चक्रभः भञ्जयाञ्चक्रुः
भञ्जयाम्बभूव/भञ्जयामास। आ० भज्यात् भञ्ज्यास्ताम् भञ्ज्यासुः श्व० भञ्जयिता भञ्जयितारौ भञ्जयितारः भ० भञ्जयिष्यति भञ्जयिष्यतः भञ्जयिष्यन्ति क्रि० अभञ्जयिष्यत् अभञ्जयिष्यताम् अभञ्जयिष्यन्
अन्यत्र भजोप् आमर्दने; भनक्ति।
॥अथ टान्ताः पञ्च।।
१७७९. पटण (पट) भासार्थः। २१२
श्व० पिञ्जयिता पिञ्जयितारौ पिञ्जयितारः भ० पिञ्जयिष्यति पिञ्जयिष्यतः पिञ्जयिष्यन्ति क्रि० अपिञ्जयिष्यत् अपिञ्जयिष्यताम् अपिञ्जयिष्यन्
१७७६. लजुण (लज्) भासार्थः। २०९ व० लञ्जयति लञ्जयतः लञ्जयन्ति स० लञ्जयेत् लञ्जयेताम् लञ्जयेयु: प० लञ्जयतु/लञ्जयतात् लञ्जयताम् लजयन्तु ह्य० अलञ्जयत् अलजयताम् अलजयन् अ० अललञ्जत् अललञ्जताम् अललञ्जन् प० लजयाञ्चकार लञ्जयाञ्चक्रल: लञ्जयाञ्चक्रुः
लञ्जयाम्बभूव/लञ्जयामास। आ० लज्यात् लज्यास्ताम् लज्यासुः श्व० लजयिता लजयितारौ लजयितारः भ० लजयिष्यति लजयिष्यत: लञ्जयिष्यन्ति क्रि० अलजयिष्यत् अलजयिष्यताम् अलजयिष्यन्
अन्यत्र लजु भर्त्सने; लञ्जति। १७७७. लुजुण (लुङ्ग्) भासार्थः। २१० व० लुञ्जयति लुञ्जयतः लुञ्जयन्ति स० लुञ्जयेत् लुञ्जयेताम् लुञ्जयेयुः प० लुञ्जयतु/लुञ्जयतात् लुञ्जयताम् लुञ्जयन्तु ह्य० अलुञ्जयत् अलुञ्जयताम् __ अलुञ्जयन् अ० अलुलुञ्जत् अलुलुञ्जताम् अलुलुञ्जन् प० लुञ्जयाञ्चकार लुञ्जयाञ्चक्रलुः लुञ्जयाञ्चक्रुः
लुञ्जयाम्बभूव/लुञ्जयामास। आ० लुज्यात् लुज्यास्ताम् लुज्यासुः श्व० लुञ्जयिता लुञ्जयितारौ लुञ्जयितारः भ० लुञ्जयिष्यति लुञ्जयिष्यतः लुञ्जयिष्यन्ति क्रि० अलुञ्जयिष्यत् अलुञ्जयिष्यताम् अलुञ्जयिष्यन्
अन्यत्र लुञ्जति। १७७८. भजुण (भ) भासार्थः। २११ व० भञ्जयति भञ्जयतः भञ्जयन्ति स० भञ्जयेत् भञ्जयेताम् भञ्जयेयुः
व० पाटयति पाटयतः पाटयन्ति स. पाटयेत् पाटयेताम् पाटयेयुः प० पाटयतु/पाटयतात् पाटयताम् पाटयन्तु ह्य० अपाटयत् अपाटयताम् अपाटयन् अ० अपीपटत् अपीपटताम् अपीपटन् प० पाटयाञ्चकार पाटयाञ्चक्रतुः पाटयाञ्चक्रुः
पाटयाम्बभूव/पाटयामास। आ० पाट्यात् पाट्यास्ताम् पाट्यासुः श्व० पाटयिता पाटयितारौ पाटयितार: भ० पाटयिष्यति पाटयिष्यतः पाटयिष्यन्ति क्रि० अपाटयिष्यत् अपाटयिष्यताम् अपाटयिष्यन्
अन्यत्र पट गतौ; पटति। अदन्त:-पटयति।।
१७८०. पुटण (पुट) भासार्थः। २१३ व० पोटयति पोटयतः पोटयन्ति स० पोटयेत्
पोटयेताम्
पोटयेयुः प० पोटयतु/पोटयतात् पोटयताम् पोटयन्तु ह्य० अपोटयत् अपोटयताम् अपोटयन् अ० अपूपुटत् अपूपुटताम् अपूपुटन्
प० पोटयाञ्चकार पोटयाञ्चक्रतुः पोटयाश्चक्रुः | पोटयाम्बभूव/पोटयामास।
Page #510
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
493
लोट्यासुः
आ० पोट्यात् पोट्यास्ताम् पोट्यांसुः व० पोटयिता पोटयितारौ पोटयितार: भ० पोटयिष्यति पोटयिष्यतः पोटयिष्यन्ति क्रि० अपोटयिष्यत् अपोटयिष्यताम् अपोटयिष्यन्
अन्यत्र पुटत् संश्लेषणे; पुटति।
१७८१. लुटण् (लुट्) भासार्थः। २१४ व० लोटयति लोटयतः लोटयन्ति स० लोटयेत् लोटयेताम् लोटयेयुः प० लोटयतु/लोटयतात् लोटयताम् लोटयन्तु ह्य० अलोटयत् अलोटयताम् अलोटयन् अ० अलूलुटत् अलूलुटताम् अलूलुटन् प० लोटयाञ्चकार लोटयाञ्चक्रतुः लोटयाञ्चक्रुः
लोटयाम्बभूव/लोटयामास। आ० लोट्यात् लोट्यास्ताम् श्व० लोटयिता लोटयितारौ लोटयितारः भ० लोटयिष्यति लोटयिष्यतः लोटयिष्यन्ति क्रि० अलोटयिष्यत् अलोटयिष्यताम् अलोटयिष्यन्
अन्यत्र लुटत् संश्लेषणे लुटति।
१७८२. घटण् (घट्) भासार्थः। २१५ व० घाटयति घाटयतः घाटयन्ति स० घाटयेत् घाटयेताम् घाटयेयुः प० घाटयतु/घाटयतात् घाटयताम् घाटयन्तु ह्य० अघाटयत् अघाटयताम् अघाटयन् अ० अजीघटत् अजीघटताम् अजीघटन् प० घाटयाञ्चकार घाटयाञ्चक्रतुः घाटयाश्चक्रुः
घाटयाम्बभूव/घाटयामास। आ० धाट्यात् घाट्यास्ताम् घाट्यासुः श्व० घाटयिता घाटयितारौ घाटयितार: भ० घाटयिष्यति घाटयिष्यतः घाटयिष्यन्ति क्रि० अघाटयिष्यत् अघाटयिष्यताम् अघाटयिष्यन्
अन्यत्र घटिष चेष्टायां; घटते। १७८३. घटुण् (घण्ट्) भासार्थः। २१६
व० घण्टयति घण्टयतः घण्टयन्ति स० घण्टयेत् घण्टयेताम् घण्टयेयुः प० घण्टयतु/घण्टयतात् घण्टयताम् घण्टयन्तु ह्य० अघण्टयत् अघण्टयताम् अघण्टयन् अ० अजघण्टत् अजघण्टताम् अजघण्टन् प० घण्टयाञ्चकार घण्टयाञ्चक्रतुः घण्टयाञ्चक्रुः
घण्टयाम्बभूव/घण्टयामास। आ० घण्ट्यात् घण्ट्यास्ताम् घण्ट्यासुः श्व० घण्टयिता घण्टयितारौ घण्टयितारः भ० घण्टयिष्यति घण्टयिष्यतः घण्टयिष्यन्ति क्रि० अघण्टयिष्यत् अघण्टयिष्यताम् अघण्टयिष्यन्
अन्यत्र; घण्टति।
॥अथ तान्तः।। १७८४. वृतण (वृत्) भासार्थः। २१७ व० वर्तयति वर्तयतः वर्तयन्ति स० वर्तयेत् वर्तयेताम् वर्तयेयुः प० वर्तयतु/वर्तयतात् वर्तयताम् वर्तयन्तु ह्य० अवर्तयत् अवर्तयताम् अवर्तयन् अ० अवीवृतत् अवीवृतताम् अवीवृतन्
अववर्तत् अववर्तताम् अववर्तन्, इत्यादि प० वर्तयाञ्चकार वर्तयाञ्चक्रतुः वर्तयाञ्चक्रुः
वर्तयाम्बभूव/वर्तयामास। आ० वात् वास्ताम् श्व० वर्तयिता वर्तयितारौ वर्तयितारः भ० वर्तयिष्यति वर्तयिष्यतः वर्तयिष्यन्ति क्रि० अवर्तयिष्यत् अवर्तयिष्यताम् अवर्तयिष्यन्
अन्यत्र वृतङ्व र्णने; वर्तते।
॥अथ थान्तः॥ १७८५. पुथुण (पुथ्) भासार्थः। २१८ व० पोथयति पोथयतः पोथयन्ति स० पोथयेत् पोथयेताम्
पोथयेयुः | प० पोथयतु/पोथयतात् पोथयताम्
वासुः
पोथयन्तु
Page #511
--------------------------------------------------------------------------
________________
494
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
पोथ्यासुः
गोपयेयुः गोपयन्तु
गोप्यासुः
ह्य० अपोथयत् अपोथयताम् अपोथयन अ० अपुपुथत् अपुपुथताम् अपुपुथन् प० पोथयाञ्चकार पोथयाञ्चक्रतुः पोथयाञ्चक्रुः
पोथयाम्बभूव/पोथयामास। आ० पोथ्यात् पोथ्यास्ताम् श्व० पोथयिता पोथयितारौ पोथयितार: भ० पोथयिष्यति पोथयिष्यतः पोथयिष्यन्ति क्रि० अपोथयिष्यत् अपोथयिष्यताम् अपोथयिष्यन्
अन्यत्र पुथच् हिंसायां; पुतति।
॥अथ दान्तः॥ १७८६. नदण् (नद्) भासार्थः। २१९ व० नादयति नादयतः नादयन्ति स० नादयेत् नादयेताम् नादयेयुः प० नादयतु/नादयतात् नादयताम् नादयन्तु ह्य० अनादयत् अनादयताम् अनादयन् अ० अनीनदत्
अनीनदताम् अनीनदन् प० नादयाञ्चकार नादयाञ्चक्रतुः नादयाश्चक्रुः
नादयाम्बभूव/नादयामास। आ० नाद्यात् नाद्यास्ताम् नाद्यासुः श्व० नादयिता नादयितारौ नादयितारः भ० नादयिष्यति नादयिष्यतः नादयिष्यन्ति क्रि० अनादयिष्यत् अनादयिष्यताम् अनादयिष्यन्
अन्यत्र नद अव्यक्ते शब्दे; नदति।
॥अथ धान्तः।। १७८७. वर्धण् (वर्ध) भासार्थः। २२० व० वर्धयति वर्धयत: वर्धयन्ति स० वर्धयेत् वर्धयेताम प० वर्धयतु/वर्धयतात् वर्धयताम्
वर्धयन्तु ह्य० अवर्धयत् अवर्धयताम् अवर्धयन् अ० अवीवृधत् अवीवृधताम् अवीवृधन् प० वर्धयाञ्चकार वर्धयाञ्चक्रतुः वर्धयाञ्चक्रुः
वर्धयाम्बभूव/वर्धयामास।
आ० वर्ध्यात् वास्ताम् वासुः श्व० वर्धयिता वर्धयितारौ वर्धयितारः भ० वर्धयिष्यति वर्धयिष्यतः वर्धयिष्यन्ति क्रि० अवर्धयिष्यत् अवर्धयिष्यताम् अवर्धयिष्यन्
अन्यत्र वृघङ् वृद्धौ; वर्धते।
॥अथ पान्तास्त्रयः।। १७८८. गुपण (गुप्) भासार्थः। २२१ व० गोपयति गोपयतः गोपयन्ति स० गोपयेत्
गोपयेताम् प० गोपयतु/गोपयतात् गोपयताम् ह्य० अगोपयत् अगोपयताम् अगोपयन् अ० अजूगुपत् अजूगुपताम् अजूगुपन् प० गोपयाञ्चकार गोपयाञ्चक्रतुः गोपयाञ्चक्रुः
गोपयाम्बभूव/गोपयामास। आ० गोप्यात्
गोप्यास्ताम् श्व० गोपयिता गोपयितारौ गोपयितारः भ० गोपयिष्यति गोपयिष्यतः गोपयिष्यन्ति क्रि० अगोपयिष्यत् अगोपयिष्यताम् अगोपयिष्यन
___ अन्यत्र गुपौ रक्षति; गोपयति।
१७८९. धूपण (धूप)। २२२ व० धूपयति धूपयतः धूपयन्ति स० धूपयेत् । धूपयेताम् धूपयेयुः प० धूपयतु/धूपयतात् धूपयताम् धूपयन्तु ह्य० अधूपयत् अधूपयताम् अधूपयन् अ० अदूधुपत् अदूधपताम् अदूधपन् प० धूपयाञ्चकार धूपयाञ्चक्रतुः धूपयाञ्चक्रुः ___धूपयाम्बभूव/धूपयामास। आ० धूप्यात् धूप्यास्ताम् धूप्यासुः श्व० धूपयिता धूपयितारौ धूपयितारः भ० धूपयिष्यति धूपयिष्यतः धूपयिष्यन्ति क्रि० अधूपयिष्यत् अधूपयिष्यताम् अधूपयिष्यन्
अन्यत्र धूप संताने; धूपायति।
वर्धयेयुः
Page #512
--------------------------------------------------------------------------
________________
495
दंश्यासुः
चुरादिगण
१७९० . कुपण (कुप्) भासार्थः। २२३ व० कोपयति कोपयत: कोपयन्ति स० कोपयेत् कोपयेताम् कोपयेयुः प० कोपयतु/कोपयतात् कोपयताम् कोपयन्तु ह्य० अकोपयत् अकोपयताम् अकोपयन् अ० अचूकुपत् अचूकुपताम् अचूकुपन् प० कोपयाञ्चकार कोपयाञ्चक्रतुः कोपयाञ्चक्रुः
कोपयाम्बभूव/कोपयामास। आ० कोप्यात्
कोप्यास्ताम् कोप्यासुः श्व० कोपयिता कोपयितारौ कोपयितारः भ० कोपयिष्यति कोपयिष्यत: कोपयिष्यन्ति क्रि० अकोपयिष्यत् अकोपयिष्यताम अकोपयिष्यन - अन्यत्र कुपच् कोपे; कुप्यति।
॥अथ वान्तः।। १७९१. चीवण (चीव) भासार्थः। २२४ व० चीवयति चीवयतः चीवयन्ति स० चीवयेत् चीवयेताम् चीवयेयुः प० चीवयतु/चीवयतात् चीवयताम् चीवयन्तु ह्य० अचीवयत् अचीवयताम् अचीवयन् अ० अचीचिवत् अचीचिवताम्
अचीचिवन् प० चीवयाञ्चकार चीवयाञ्चक्रतुः चीवयाञ्चक्रुः
चीवयाम्बभूव/चीवयामास। आ० चीव्यात् चीव्यास्ताम् श्व० चीवयिता चीवयितारौ चीवयितारः भ० चीवयिष्यति चीवयिष्यतः चीवयिष्यन्ति क्रि० अचीवयिष्यत् अचीवयिष्यताम् अचीवयिष्यन्
अन्यत्र चीवृग् झपीवत्; चीवते, चीवति।
१७९२. दशुण (दंश) भासार्थ: २२५ व० दंशयति दंशयतः दंशयन्ति स० दंशयेत् दंशयेताम् दंशयेयुः प० दंशयतु/दंशयतात् दंशयताम् दंशयन्तु ह्य० अदंशयत् अदंशयताम् अदंशयन्
अ० अददंशत् अददंशताम् अददंशन प० दंशयाञ्चकार दंशयाञ्चक्रतुः दंशयाञ्चक्रुः
दंशयाम्बभूव/दंशयामास। आ० दंश्यात् दंश्यास्ताम् श्व० दंशयिता दंशयितारौ दंशयितारः भ० दंशयिष्यति दशयिष्यतः दंशयिष्यन्ति क्रि० अदंशयिष्यत् अदंशयिष्यताम् अदंशयिष्यन्
अन्यत्र दंश दंशने; दंशति। १७९३. कुशण (कुंश) भासार्थः। २२६ व० कुंशयति कुंशयतः कुंशयन्ति स० कुंशयेत् कुंशयेताम्
कुंशयेयुः प० कुंशयतु/कुंशयतात् कुंशयताम् कुंशयन्तु ह्य० अकुंशयत् अकुंशयताम् अकुंशयन् अ० अचुकुंशत् अचुकुंशताम् अचुकुंशन् प० कुंशयाञ्चकार कुंशयाञ्चक्रतुः । कुंशयाञ्चक्रुः ___ कुंशयाम्बभूव/कुंशयामास। आ० कुंश्यात् कुंश्यास्ताम् कुंश्यासुः श्व० कुंशयिता
कुंशयितारौ
कुंशयितार: भ० कुंशयिष्यति कुंशयिष्यतः कुंशयिष्यन्ति क्रि० अकुंशयिष्यत् अकुंशयिष्यताम् अकुंशयिष्यन्
अन्यत्र कुंशति। ॥अथ सान्ताश्चत्वार उदितश्च।।
१७९४. त्रसुण (स्) भासार्थः। २२७ व० सयति त्रंसयतः त्रंसयन्ति स० सयेत्
त्रंसयेताम् प० त्रंसयतु/त्रंसयतात् त्रंसयताम् ह्य० अभंसयत् अत्रंसयताम् अ० अतत्रंसत् अतत्रंसताम् अतत्रंसन् प० सयाञ्चकार त्रंसयाञ्चक्रतुः त्रंसयाञ्चक्रुः
त्रंसयाम्बभूव/त्रंसयामास। आ० स्यात् त्रस्यास्ताम्
स्यासुः श्व० त्रंसयिता त्रंसयितारौ त्रंसयितार:
चीव्यासुः
त्रंसयेयुः त्रंसयन्तु अत्रंसयन्
Page #513
--------------------------------------------------------------------------
________________
496
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
पिंसयेयुः
दंस्यासुः
पिस्यासुः
भ० त्रंसयिष्यति त्रंसयिष्यतः त्रंसयिष्यन्ति क्रि० अत्रंसयिष्यत् अप्रंसयिष्यताम् अत्रंसयिष्यन्
अन्यत्र सति। १७९५. पिसुणं (पिस्) भासार्थः। २२८ व० पिंसयति पिंसयतः पिंसयन्ति स० पिंसयेत् पिंसयेताम् प० पिंसयतु/पिंसयतात् पिंसयताम्
पिंसयन्तु ह्य० अपिंसयत् अपिंसयताम् अपिंसयन् अ० अपिपिंसत् अपिपिंसताम् अपिपिसन् प० पिंसयाञ्चकार पिंसयाञ्चक्रतुः
पिंसयाञ्चक्रुः पिंसयाम्बभूव/पिंसयामास। आ० पिस्यात् पिस्यास्ताम् श्व० पिंसयिता पिंसयितारौ पिंसयितारः भ० पिंसयिष्यति पिंसयिष्यत: पिंसयिष्यन्ति क्रि० अपिंसयिष्यत् अपिंसयिष्यताम् अपिंसयिष्यन्
अन्यत्र पिंसति। १७९६. कुंसुण (कुंस्) भासार्थः। २२९ व० कुंसयति कुंसयतः कुंसयन्ति स० कुंसयेत् कुंसयेताम् कुंसयेयुः प० कुंसयतु/कुंसयतात् कुंसयताम् । कुंसयन्तु ह्य० अकुंसयत् अकुंसयताम् अकुंसयन् अ० अचुकुंसत् अचुकुंसताम् अचुकुंसन् प० कुंसयाञ्चकार कुंसयाञ्चक्रतुः । कुंसयाश्चक्रुः
कुंसयाम्बभूव/कुंसयामास। आ० कुंस्यात् कुंस्यास्ताम् कुंस्यासुः श्व० कुंसयिता कुंसयितारौ कुंसयितारः भ० कुंसयिष्यति कुंसयिष्यतः कुंसयिष्यन्ति क्रि० अकुंसयिष्यत् अकुंसयिष्यताम् अकुंसयिष्यन्
अन्यत्र कुंसति। १७९७. दसुण (दंस्) भासार्थः। २३० व० दंसयति दंसयत: दंसयन्ति स० दंसयेत् दंसयेताम् दंसयेयुः
प० दंसयतु/दंसयतात् दंसयताम् दंसयन्तु ह्य० अदंसयत् अदंसयताम् अदंसयन् अ० अददंसत् अददंसताम् अददंसन् प० दंसयाञ्चकार दंसयाश्चक्रतुः दंसयाञ्चक्रुः
दंसयाम्बभूव/दंसयामास। आ० दंस्यात्
दंस्यास्ताम् श्व० दंसयिता दंसयितारौ दंसयितार: भ० दंसयिष्यति दंसयिष्यतः दंसयिष्यन्ति क्रि० अदंसयिष्यत् अदंसयिष्यताम् अदंसयिष्यन्
अन्यत्र दंसति अथ हान्ताः षट् वर्हवल्हौ मुक्तौदितश्च।
१७९८. वर्हण (वह) भासार्थः। २३१ व० वर्हयति वर्हयतः वर्हयन्ति स० वर्हयेत् वर्हयेताम् वर्हयेयुः प० वर्हयतु/वर्हयतात् वर्हयताम् वर्हयन्तु ह्य० अवहयत् अवर्हयताम् अवर्हयन् अ० अववर्हत् अववर्हताम् अववर्हन् प० वर्हयाञ्चकार वर्हयाञ्चक्रतुः वहयाञ्चक्रुः ___वर्हयाम्भूव/वर्हयामास। आ० वात् वास्ताम् वासुः श्व० वर्हयिता वर्हयितारौ वर्हयितारः भ० वर्हयिष्यति वर्हयिष्यत: वहयिष्यन्ति क्रि० अवर्हयिष्यत् अवर्हयिष्यताम् अवर्हयिष्यन्
__ अन्यत्र वर्हि प्राधान्ये; वर्हते।
१७९९. वृंहण् (वह) भासार्थः। २३२ व० हयति हयतः वृहयन्ति स० वृंहयेत् वृहयेताम् वृंहयेयुः प० वृंहयतु/हयतात् वृंहयताम् वृंहयन्तु ह्य० अर्बुहयत् अव॒हयताम् अवृंहयन् अ० अववृहत् अवहताम् अवहन् | प० हयाञ्चकार हयाञ्चक्रतुः हयाञ्चक्रुः . हयाम्वृंभूव/हयामास।
कंसरात
Page #514
--------------------------------------------------------------------------
________________
497
महयन्तु
चुरादिगण आ० ह्यात् वृंह्यास्ताम् वृंह्यासुः श्व० वृंहयिता वृंहयितारौ वृंहयितारः भ० वृंहयिष्यति वृहयिष्यतः वृंहयिष्यन्ति क्रि० अवृंहयिष्यत् अहयिष्यताम् अहयिष्यन्
अन्यत्र वृहु शब्दे च; वृंहति। १८००. वल्हण (वल्ह) भासार्थः। २३३ व० वल्हयति वल्हयतः वल्हयन्ति स० वल्हयेत् वल्हयेताम् वल्हयेयुः प० वल्हयतु/वल्हयतात् वल्हयताम् वल्हयन्तु ह्य० अवल्हयत् अवल्हयताम् अवल्हयन् अ० अववल्हत् अववल्हताम् अववल्हन् प० वल्हयाञ्चकार वल्हयाञ्चक्रतुः वल्हयाञ्चक्रुः
वल्हयाम्वभूव/वल्हयामास। आ० वल्ह्यात् वल्ह्यास्ताम् वल्ह्यासुः श्व० वल्हयिता वल्हयितारौ वल्हयितारः भ० वल्हयिष्यति वल्हयिष्यतः वल्हयिष्यन्ति क्रि० अवल्हयिष्यत् अवल्हयिष्यताम् अवल्हयिष्यन्
अन्यत्र वल्हि प्राधान्ये; वल्हते।
१८०१. अंहुण् (अंह्) भासार्थः। २३४ व० अंहयति अंहयतः अंहयन्ति स० अंहयेत्
अंहयेयुः प० अंहयतु/अंहयतात् अंहयताम् ह्य० आहयत् आहयताम् अ० आजिहत्
आजिहताम्
आजिहन् प० अंहयाञ्चकार अंहयाञ्चक्रतुः अंहयाञ्चक्रुः
अंहयाम्बभूव/अंहयामास। आ० अंह्यात् अंह्यास्ताम् श्व० अंहयिता अंहयितारौ अंहयितारः भ० अंहयिष्यति अंहयिष्यतः अंहयिष्यन्ति क्रि० आहयिष्यत् हयिष्यताम् आहयिष्यन्
अन्यत्र अहुङ् गतौ; अंहते। १८०२. वहुण् (वंह) भासार्थः। २३५
व० वंहयति वंहयतः वंहयन्ति स० वंहयेत् वंहयेताम् वंहयेयुः प० वंहयतु/वंहयतात् वंहयताम् वंहयन्तु ह्य० अवंहयत् अवंहयताम् अवंहयन् अ० अववंहत् अवरोहताम् अववंहन् प० वंहयाञ्चकार वंहयाञ्चक्रतुः वंहयाञ्चक्रुः
वंहयाम्वंभूव/वंहयामास। आ० वंद्यात् वंह्यास्ताम् वंह्यासुः श्व० वंहयिता वंहयितारौ वंहयितारः भ० वंहयिष्यति वंहयिष्यतः वंहयिष्यन्ति क्रि० अवंहयिष्यत् अवंहयिष्यताम् अवंहयिष्यन्
१८०३. महुण् (मंह) भासार्थः। २३६ व० मंहयति मंहयतः मंहयन्ति स० मंहयेत् मंहयेताम् मंहयेयुः प० मंहयतु/मंहयतात् मंहयताम् ह्य० अमंहयत् अमंहयताम् अमंहयन् अ० अममहत् अममंहताम् अममंहन् प० मंहयाञ्चकार मंहयाञ्चक्रतुः मंहयाश्चक्रुः ___मंहयाम्बभूव/मंहयामास। आ० मंह्यात् मंह्यास्ताम् मंह्यासुः श्व० मंहयिता मंहयितारौ मंहयितारः भ० मंहयिष्यति मंहयिष्यतः मंहयिष्यन्ति क्रि० अमंहयिष्यत् अमंहयिष्यताम् अमंहयिष्यन्
अन्यत्र महुङ् वृद्धौ; मंहते।। लोकतर्कादयः स्वार्थे णिचमुत्पादयन्ति भासार्थाश्चेति पारायणम्। भासयति दिशः दीपयति इन्धयति प्रकाशयति। गणान्तरपाठस्त्वेषामात्मनेपदादिकार्यार्थः।।
अथात्मनेपदिनः। तत्रोदन्तः। १८०४. युणि (यु) जुगुप्सायाम्। २३७ व० यावयते यावयेते यावयन्ते स. यावयेत यावयेयाताम् यावयेरन् प० यावयताम् यावयेताम् यावयन्ताम
अंहयेताम्
अंहयन्तु आहयन्
अंह्यासुः
Page #515
--------------------------------------------------------------------------
________________
498
ह्य० अयावयत अयावयेताम्
अ० अयीयवत
अयावयन्त
अययवेताम्
अयीयवन्त
प० यावयाञ्चक्रे यावयाञ्चक्राते यावयाञ्चक्रिरे
यावयाम्बभूव/यावयामास ।
आ० यावयिषीष्ट
श्व० यावयिता
भ० यावयिष्यते
क्रि० अयावयिष्यत
० गाय
सo गारयेत
प० गारयताम्
ह्य० अगारयत
अ० अजीगरत
प० गारयाञ्चक्रे
अयावयिष्येताम्
॥ अथ ऋदन्तः ॥
१८०५. गृणि (गृ) विज्ञाने । २३८
गारयेते
गारयन्ते
गारयेरन्
गारयन्ताम
आ० गारयिषीष्ट
श्व० गारयिता
भ० गारयिष्यते
क्रि० अगारयिष्यत
व० वञ्चयते
स० वञ्चयेत
गारयाम्बभूव / गारयामास ।
यावयिषीयास्ताम् यावयिषीरन्
यावयितारः
यावयिष्यन्ते
अयावयिष्यन्त
यावयितारौ
यावयिष्येते
प० वञ्चयताम्
ह्य० अवञ्चयत
अ० अववञ्चत प० वञ्चयाञ्चक्रे
गारयेयाताम्
गारयेताम्
अगारयेताम्
अजीगरेताम्
गारयाञ्चक्राते
गारयितारौ
गारयिष्येते
अगर
अगारयिष्यन्त
अन्यत्र गृत् निगरणे; गिरति । गृश् शब्दे । गृणाति ।
|| अथ चान्तः ॥
१८०६. वञ्चिण् (वञ्च् ) प्रलम्भने ।
प्रलम्भनं मिथ्याफलाख्यानम् । २३९
वञ्चयन्ते
वञ्चयेरन्
गारयिषीयास्ताम् गारयिषीरन्
गारयितारः
गारयिष्यन्ते
अगारयन्त
अजीगरन्त
गारयाञ्चक्रिरे
वञ्चयेते
वञ्चयेयाताम्
वञ्चयेताम्
अवञ्चताम्
अववञ्चेताम्
वञ्चयाञ्चक्राते
वञ्चयाम्बभूव/ वञ्चयामास ।
वञ्चयन्ताम्
अवञ्चयन्त
अववञ्चन्त
वञ्चयाञ्चक्रिरे
आ० वञ्चयिषीष्ट
श्व० वञ्चयिता
भ० वञ्चयिष्यते
क्रि० अवञ्चयिष्यत
व० कोटयते
स० कोटयेत
प० कोटयताम्
० अकोटयत
॥ अथ हान्तः ॥
१८०७. कुटिण (कुट्) प्रतापने । २४०
कोटयेते
कोटयन्ते
कोटयाताम्
कोटयेताम्
अ० अचूकुटत
प० कोटयाञ्चक्रे
आ० कोटयिषीष्ट
श्व० कोटयिता
भ० कोटयिष्यते
क्रि० अकोटयिष्यत
कोयाम्बभूव / कोटयामास ।
व० मादयते
स० मादयेत
प० मादयताम्
ह्य० अमादयत
अ० अमीमदत
प० मादयाञ्चक्रे
वञ्चयिषीयास्ताम् वञ्चयिषीरन्
वञ्चयितारौ
वञ्चयितार:
वञ्चयिष्येते
वञ्चयिष्यन्ते
अवञ्चयिष्येताम् अवञ्चयिष्यन्त अन्यत्र वञ्चू गतौ वञ्चति ।
अकोटताम्
अचूकुटेताम्
कोटयाञ्चक्राते
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आ० मादयिषीष्ट
श्व० मादयिता
भ० मादयिष्यते
क्रि० अमादयिष्यत
अकोटयिष्येताम्
| अन्यत्र कुटत् कौटिल्ये, कुटति ।
॥ अथ दान्तौ
१८०८. मदिण् (मद्) तृप्तियोगे । २४१
मादयेते
मादयेयाताम्
मादयेताम्
मादयाम्बभूव/मादयामास ।
कोटयेरन्
कोटयन्ताम्
अकोटयन्त
अचूकत
कोटयाञ्चक्रिरे
कोटयिषीयास्ताम् कोटयिषीरन्
कोटयितारौ कोटयितार:
कोट
कोटयिष्यन्ते
अकोटयिष्यन्त
मादयन्ते
मादयेरन्
मादयन्ताम
अमादा
अमादयन्त
अमीमदन्त
अमीमदेताम् मादयाञ्चक्राते मादयाञ्चक्रिरे
मादयिषीयास्ताम् मादयिषीरन् मादयितारौ मादयितार:
मादयिष्यन्ते
मादयिष्येते अमादयिष्येताम्
अमादयिष्यन्त
| अन्यत्र मदैच् हर्षे, माद्यति ।
Page #516
--------------------------------------------------------------------------
________________
499
वेदयेरन्
वेदयेताम्
चुरादिगण
॥अथ दान्तौ॥ १८०९. विदिण् (विद्) चेननाख्याननिवासेषु। २४२ व० वेदयते वेदयेते
वेदयन्ते स० वेदयेत वेदयेयाताम् प० वेदयताम्
वेदयन्ताम ह्य० अवेदयत अवेदयेताम् अवेदयन्त अ० अवीवदत अवीवदेताम् अवीवदन्त प० वेदयाञ्चके वेदयाञ्चक्राते वेदयाञ्चक्रिरे
वेदयाम्बभूव/वेदयावेस् आ० वेदयिषीष्ट वेदयिषीयास्ताम् वेदयिषीरन् श्व० वेदयिता वेदयितारौ वेदयितारः भ० वेदयिष्यते वेदयिष्येते वेदयिष्यन्ते क्रि० अवेदयिष्यत अवेदयिष्येताम् अवेदयिष्यन्त अन्यत्र विदक ज्ञाने; वेत्ति विदिच सत्तायां, विद्यते। विदलन्ती लाभे, विन्दते विन्दति, विदिप विचारणे, वित्ते।
॥अथ नान्तः। १८१०. मनिण् (मन्) स्तम्भे। २४३
स्तम्भो गर्वः। व० मानयते मानयेते मानयन्ते स० मानयेत मानयेयाताम् मानयेरन प० मानयताम् मानयेताम् मानयन्ताम् ह्य० अमानयत अमानयेताम् अमानयन्त अ० अमीमनत अमीमनेताम् अमीमनन्त प० मानयाञ्चके मानयाञ्चक्राते मानयाञ्चक्रिरे
मानयाम्बभूव/मानयामास। आ० मानयिषीष्ट मानयिषीयास्ताम् मानयिषीरन् श्व० मानयिता मानयितारौ मानयितारः भ० मानयिष्यते मानयिष्येते मानयिष्यन्ते क्रि० अमानयिष्यत अमानयिष्येताम् अमानयिष्यन्त अन्यत्र मनिच् ज्ञाने, मन्यते। मनु विबोधने मनुते।
॥अथ लान्तौ॥
१८११. बलिण् (बल्) आभण्डने।
आभण्डनं निरूपणम्। २४४ व० बालयते बालयेते बालयन्ते स० बालयेत बालयेयाताम् बालयेरन् प० बालयताम् बालयेताम् बालयन्ताम् ह्य० अबालयत अबालयेताम् अबालयन्त अ० अबीबलत अबीबलेताम् अबीबलन्त प० बालयाञ्चके बालयाश्चक्राते बालयाञ्चक्रिरे
बालयाम्बभूव/बालयामास। आ० बालयिषीष्ट बालयिषीयास्ताम् बालयिषीरन् श्व० बालयिता बालयितारौ बालयितारः भ० बालयिष्यते बालयिष्येते बालयिष्यन्ते क्रि० अबालयिष्यत अबालयिष्येताम् अबालयिष्यन्त
अन्यत्र बलि संवरणे; बलते। १८१२. भलिण् (भल्) आभण्डने।
आभण्डनं निरूपणम्। २४५ व० भालयते भालयेते भालयन्ते स० भालयेत भालयेयाताम् भालयेरन् प० भालयताम् भालयेताम् भालयन्ताम् ह्य० अभालयत अभालयेताम् अभालयन्त अ० अबीभलत अबीभलेताम् अबीभलन्त प० भालयाञ्चक्रे भालयाञ्चक्राते भालयाञ्चक्रिरे
भालयाम्बभूव/भालयामास। आ० भालयिषीष्ट भालयिषीयास्ताम् भालयिषीरन् श्व० भालयिता भालयितारौ भालयितार: भ० भालयिष्यते भालयिष्येते भालयिष्यन्ते क्रि० अभालयिष्यत अभालयिष्येताम् अभालयिष्यन्त
अन्यत्र भलि संवरणे; भलते।
॥अथ वान्तः।। १८१३. दिविण् (दिव्) परिकूजने। २४६ व० देवयते देवयेते देवयन्ते स० देवयेत देवयेयाताम् देवयेरन्
Page #517
--------------------------------------------------------------------------
________________
500
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प० देवयताम् देवयेताम् देवयन्ताम् ह्य० अदेवयत अदेवयेताम् अदेवयन्त अ० अदीदिवत अदीदिवेताम् अदीदिवन्त प० देवयाञ्चके देवयाञ्चक्राते देवयाञ्चक्रिरे
देवयाम्बभूव/देवयामास। आ० देवयिषीष्ट देवयिषीयास्ताम् देवयिषीरन् श्व० देवयिता देवयितारौ देवयितारः भ० देवयिष्यते देवयिष्येते देवयिष्यन्ते क्रि० अदेवयिष्यत अदेवयिष्येताम् अदेवयिष्यन्त
अन्यत्र दिवूच् क्रीडादौ; दीव्यति।
॥अथ षान्तः॥ १८१४. वृषिण (वृष्) शक्तिबन्धे। २४७ व० वर्षयते
वर्षयेते
वर्षयन्ते स० वर्षयेत वर्षयेयाताम् वर्षयेरन् प० वर्षयताम् वर्षयेताम् वर्षयन्ताम् ह्य० अवर्षयत अवर्षयेताम् अवर्षयन्त अ० अवीवृषत अवीवृषेताम् अवीवृषन्त प० वर्षयाञ्चके वर्षयाञ्चक्राते वर्षयाञ्चक्रिरे
वर्षयाम्बभूव/वर्षयामास। आ० वर्षयिषीष्ट वर्षयिषीयास्ताम् वर्षयिषीरन् श्व० वर्षयिता वर्षयितारौ वर्षयितारः भ० वर्षयिष्यते वर्षयिष्येते वर्षयिष्यन्ते क्रि० अवर्षयिष्यत अवर्षयिष्येताम् अवर्षयिष्यन्त
अन्यत्र वृषु सेचने; वर्षति।
॥अथ सान्तः।। १८१५. कुत्सिण (कुत्स्) अवक्षेपे। २४८ व० कुत्सयते
कुत्सयेते
कुत्सयन्ते स० कुत्सयेत कुत्सयेयाताम् कुत्सयेरन् प० कुत्सयताम् कुत्सयेताम् कुत्सयन्ताम् ह्य० अकुत्सयत अकुत्सयेताम् अकुत्सयन्त अ० अचुकुत्सत अचुकुत्सेताम् अचुकुत्सन्त प० कुत्सयाञ्चक्र कुत्सयाञ्चक्राते कुत्सयाञ्चक्रिरे
कुत्सयाम्बभूव/कुत्सयामास। आ० कुत्सयिषीष्ट कुत्सयिषीयास्ताम् कुत्सयिषीरन् श्व० कुत्सयिता कुत्सयितारौ कुत्सयितार: भ० कुत्सयिष्यते कुत्सयिष्येते कुत्सयिष्यन्ते क्रि० अकुत्सयिष्यत अकुत्सयिष्येताम् अकुत्सयिष्यन्त
॥अथ क्षान्ताः ॥ १८१६. लक्षिण (लक्ष्) आलोचने। २४९ व० लक्षयते लक्षयेते लक्षयन्ते स० लक्षयेत लक्षयेयाताम् लक्षयेरन् प० लक्षयताम् लक्षयेताम् लक्षयन्ताम् ह्य० अलक्षयत अलक्षयेताम् अलक्षयन्त अ० अललक्षत अललक्षेताम् अललक्षन्त प० लक्षयाञ्चक्रे लक्षयाञ्चक्राते लक्षयाञ्चक्रिरे
लक्षयाम्बभूव/लक्षयामास। आ० लक्षयिषीष्ट लक्षयिषीयास्ताम् लक्षयिषीरन् श्व० लक्षयिता लक्षयितारौ लक्षयितारः भ० लक्षयिष्यते लक्षयिष्येते लक्षयिष्यन्ते क्रि० अलक्षयिष्यत अलक्षयिष्येताम् अलक्षयिष्यन्त अन्यत्र लक्षीण् दर्शनाङ्कनयोः। लक्षयति लक्षयते।
णिचोऽनित्यवात्; लक्षते। अथात्मनेपदिन एवार्थान्तरेऽपि चुरादयः।
अथ कान्तास्त्रयः। १८ १७. हिष्किण् (हिष्क्) हिंसायाम्। २५० व० हिष्कयते हिष्कयेते हिष्कयन्ते स० हिष्कयेत हिष्कयेयाताम् हिष्कयेरन् प० हिष्कयताम् हिष्कयेताम् हिष्कयन्ताम् ह्य० अहिष्कयत अहिष्कयेताम् अहिष्कयन्त अ० अजिहिष्कत अजिहिष्केताम् अजिहिष्कन्त प० हिष्कयाञ्चक्रे हिष्कयाञ्चक्राते . हिष्कयाञ्चक्रिरे ___ हिष्कयाम्बभूव/हिष्कयामास। आ० हिष्कयिषीष्ट हिष्कयिषीयास्ताम् हिष्कयिषीरन् | श्व० हिष्कयिता हिष्कयितारौ हिष्कयितार:
Page #518
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
501
भ० हिष्कयिष्यते हिष्कयिष्येते हिष्कयिष्यन्ते क्रि० अहिष्कयिष्यत अहिष्कयिष्येताम् अहिष्कयिष्यन्त
१८१८. किष्किण (किष्क्) हिंसायाम्। २५१ व० किष्कयते किष्कयेते किष्कयन्ते स० किष्कयेत किष्कयेयाताम् किष्कयेरन् प० किष्कयताम् किष्कयेताम् किष्कयन्ताम् ह्य० अकिष्कयत अकिष्कयेताम् अकिष्कयन्त अ० अचिकिष्कत अचिकिष्केताम् अचिकिष्कन्त प० किष्कयाञ्चक्रे किष्कयाञ्चक्राते किष्कयाञ्चक्रिरे
किष्कयाम्बभूव/किष्कयामास। आ० किष्कयिषीष्ट किष्कयिषीयास्ताम् किष्कयिषीरन् श्व० किष्कयिता किष्कयितारौ किष्कयितार: भ० किष्कयिष्यते किष्कयिष्येते किष्कयिष्यन्ते क्रि० अकिष्कयिष्यत अकिष्कयिष्येताम् अकिष्कयिष्यन्त
१८१९. निष्किण (निष्क) परिमाणे। २५२ व० निष्कयते निष्कयेते निष्कयन्ते स० निष्कयत निष्कयेयाताम् निष्कयेरन् प० निष्कयताम् निष्कयेताम् निष्कयन्ताम् ह्य० अनिष्कयत अनिष्कयेताम् अनिष्कयन्त अ० अनिनिष्कत अनिनिष्केताम् अनिनिष्कन्त प० निष्कयाञ्चक्रे निष्कयाञ्चक्राते निष्कयाञ्चक्रिरे
निष्कयाम्बभूव/निष्कयामास। आ० निष्कयिषीष्ट निष्कयिषीयास्ताम् निष्कयिषीरन् श्व० निष्कयिता निष्कयितारौ निष्कयितार: भ० निष्कयिष्यते निष्कयिष्येते निष्कयिष्यन्ते क्रि० अनिष्कयिष्यत अनिष्कयिष्येताम् अनिष्कयिष्यन्त
॥अथ जान्तः॥ १८२०. तर्जिण् (त) सन्तर्जने। २५३ व० तर्जयते तर्जयेते तर्जयन्ते स० तर्जयेत तर्जयेयाताम् तर्जयेरन् प० तर्जयताम् तर्जयेताम् तर्जयन्ताम् ह्य० अतर्जयत अतर्जयेताम् अतर्जयन्त
अ० अततर्जत अततर्जेताम् अततर्जन्त प० तर्जयाञ्चके तर्जयाञ्चक्राते तर्जयाश्चक्रिरे
तर्जयाम्बभूव/तर्जयामास। आ० तर्जयिषीष्ट तर्जयिषीयास्ताम् तर्जयिषीरन् श्व० तर्जयिता
तर्जयितारौ
तर्जयितार: भ० तर्जयिष्यते तर्जयिष्येते तर्जयिष्यन्ते क्रि० अतर्जयिष्यत अतर्जयिष्येताम् अतर्जयिष्यन्त
॥अथ टान्तौ। १८२१. कूटिण् (कुट्) अप्रमादे। २५४ व० कूटयते
कूटयेते कूटयन्ते स० कूटयेत कूटयेयाताम् कूटयेरन् प० कूटयताम् कूटयेताम् कूटयन्ताम् ह्य० अकूटयत अकूटयेताम् अकूटयन्त अ० अचूकुटत अवूकुटेताम् अचूकुटन्त प० कूटयाञ्चक्रे कूटयाञ्चक्राते कूटयाञ्चक्रिरे
कूटयाम्बभूव/कूटयामास। आ० कूटयिषीष्ट कूटयिषीयास्ताम् कूटयिषीरन् श्व० कूटयिता कूटयितारौ कूटयितारः भ० कूटयिष्यते कूटयिष्येते कूटयिष्यन्ते क्रि० अकूटयिष्यत अकूटयिष्येताम् अकूटयिष्यन्त
१८२२. बेटिण् (त्रुट) छेदने। २५५ व० त्रोटयते त्रोटयेते त्रोटयन्ते स० त्रोटयेत त्रोटयेयाताम् त्रोटयेरन् प० त्रोटयताम् त्रोटयेताम्
त्रोटयन्ताम् ह्य० अत्रोटयत अत्रोटयेताम् अत्रोटयन्त अ० अतुत्रुटत अतुत्रुटेताम् अतुत्रुटन्त प० त्रोटयाञ्चक्रे त्रोटयाञ्चक्राते त्रोटयाञ्चक्रिरे
त्रोटयाम्बभूव/त्रोटयामास। आ० त्रोटयिषीष्ट त्रोटयिषीयास्ताम् त्रोटयिषीरन् श्व० त्रोटयिता त्रोटयितारौ त्रोटयितारः भ० त्रोटयिष्यते त्रोटयिष्येते त्रोटयिष्यन्ते क्रि० अत्रोटयिष्यत अत्रोटयिष्येताम अत्रोटयिष्यन्त
Page #519
--------------------------------------------------------------------------
________________
502
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कूणयेते
कूणयन्ते
१८२३. शठिण (श) श्लाघायाम्। २५६ व० शाठयते शाठयेते शाठयन्ते स० शाठयेत शाठयेयाताम् शाठयेरन् प० शाठयताम् शाठयेताम् शाठयन्ताम् ह्य० अशाठयत
अशाठयेताम् अशाठयन्त अ० अशीशठत अशीशठेताम् अशीशठन्त प० शाठयाञ्चके शाठयाञ्चक्राते शाठयाञ्चक्रिरे
शाठयाम्बभूव/शाठयामास। आ० शाठयिषीष्ट शाठयिषीयास्ताम् शाठयिषीरन् श्व० शाठयिता शाठयितारौ शाठयितार: भ० शाठयिष्यते शाठयिष्येते शाठयिष्यन्ते क्रि० अशाठयिष्यत अशाठयिष्येताम अशाठयिष्यन्त
॥अथ णान्तास्त्रयः।। १८२४. कूणिण (कूण) संकोचने। २५७ व० कूणयते स० कूणयेत कूणयेयाताम् कूणयेरन् प० कूणयताम् कूणयेताम् कूणयन्ताम् ह्य० अकूणयत अकूणयेताम् अकूणयन्त अ० अचूकुणत अचूकुणेताम् अचूकुणन्त प० कूणयाञ्चक्रे कूणयाञ्चक्राते कूणयाञ्चक्रिरे
कूणयाम्बभूव/कूणयामास। आ० कूणयिषीष्ट कूणयिषीयास्ताम् कूणयिषीरन् श्व० कूणयिता कूणयितारौ कूणयितारः भ० कूणयिष्यते कूणयिष्येते कूणयिष्यन्ते क्रि० अकूणयिष्यत अकूणयिष्येताम् अकूणयिष्यन्त
१८२५. तूणिण (तूण) पूरणे। २५८ व० तूणयते
तूणयन्ते स० तूणयेत तूणयेयाताम् तूणयेरन् प० तूणयताम् तूणयेताम् तूणयन्ताम् ह्य० अतूणयत अतूणयेताम् अतूणयन्त अ० अतूतुणत अतूतुणेताम् अतूतुणन्त प० तूणयाञ्चक्रे तूणयाञ्चक्राते तूणयाञ्चक्रिरे
तूणयाम्बभूव/तूणयामास। आ० तूणयिषीष्ट तूणयिषीयास्ताम् तूणयिषीरन् श्व० तूणयिता तूणयितारौ तूणयितार: भ० तूणयिष्यते तूणयिष्येते तूणयिष्यन्ते क्रि० अतूणयिष्यत अतूणयिष्येताम् अतूणयिष्यन्त
१८२६. भूणिण (भ्रूण) आशायाम्। २५९ व० भ्रूणयते भ्रूणयेते भ्रूणयन्ते स० भ्रूणयेत भ्रूणयेयाताम् भ्रूणयेरन् प० भ्रूणयताम् भ्रूणयेताम् भ्रूणयन्ताम् ह्य० अभ्रूणयत अभ्रूणयेताम् अभ्रूणयन्त अ० अबुभ्रुणत अबुभ्रणेताम् अबुभ्रुणन्त प० भ्रूणयाञ्चक्रे भ्रूणयाञ्चक्राते भ्रूणयाञ्चक्रिरे
भ्रूणयाम्बभूव/भ्रूणयामास। आ० भ्रूणयिषीष्ट भ्रूणयिषीयास्ताम् भ्रूणयिषीरन् श्व० भ्रूणयिता भ्रूणयितारौ भ्रूणयितार: भ० भ्रूणयिष्यते भ्रूणयिष्येते भ्रूणयिष्यन्ते क्रि० अभ्रूणयिष्यत अभ्रूणयिष्येताम् अभ्रूणयिष्यन्त
॥अथ तान्तौ। १८२७. चितिण (चित्) संवेदने। २६० व० चेतयते चेतयेते चेतयन्ते स० चेतयेत चेतयेयाताम् प० चेतयताम् चेतयेताम् चेतयन्ताम् ह्य० अचेतयत अचेतयेताम् अचेतयन्त अ० अचीचितत अचीचितेताम् अचीचितन्त प० चेतयाञ्चके चेतयाञ्चक्राते चेतयाञ्चक्रिरे
चेतयाम्बभूव/चेतयामास। आ० चेतयिषीष्ट चेतयिषीयास्ताम् चेतयिषीरन् श्व० चेतयिता चेतयितारौ चेतयितारः भ० चेतयिष्यते चेतयिष्येते चेतयिष्यन्ते क्रि० अचेतयिष्यत अचेतयिष्येताम् अचेतयिष्यन्त
१८२८. वस्तिण (वस्त्) अर्दने। २६१ व० वस्तयते वस्तयेते वस्तयन्ते स. वस्तयेत वस्तयेयाताम् वस्तयेरन्
चेतयेरन्
तूणयेते
Page #520
--------------------------------------------------------------------------
________________
चरादिगण
503
प० वस्तयताम् वस्तयेताम् वस्तयन्ताम् ह्य० अवस्तयत अवस्तयेताम् अवस्तयन्त अ० अववस्तत अववस्तेताम् अववस्तन्त प० वस्तयाञ्चक्रे वस्तयाञ्चक्राते वस्तयाञ्चक्रिरे
वस्तयाम्बभूव/वस्तयामास। आ० वस्तयिषीष्ट वस्तयिषीयास्ताम् वस्तयिषीरन् श्व० वस्तयिता वस्तयितारौ वस्तयितार: भ० वस्तयिष्यते वस्तयिष्येते वस्तयिष्यन्ते क्रि० अवस्तयिष्यत अवस्तयिष्येताम अवस्तयिष्यन्त
१८२९. गन्धिण् (गन्थ्) अर्दने। २६२ व० गन्धयते गन्धयेते गन्धयन्ते स० गन्धयेत गन्धयेयाताम् गन्धयेरन् प० गन्धयताम् गन्धयेताम् गन्धयन्ताम् ह्य० अगन्धयत अगन्धयेताम् अगन्धयन्त अ० अजगन्धत अजगन्धेताम् अजगन्धन्त प० गन्धयाञ्चके गन्धयाञ्चक्राते गन्धयाञ्चक्रिरे
गन्धयाम्बभूव/गन्धयामास। आ० गन्धयिषीष्ट गन्धयिषीयास्ताम् गन्धयिषीरन् श्व० गन्धयिता गन्धयितारौ गन्धयितारः भ० गन्धयिष्यते गन्धयिष्यते गन्धयिष्यन्ते क्रि० अगन्धयिष्यत अगन्धयिष्येताम अगन्धयिष्यन्त
॥अथ पान्ताश्चत्वारः। १८३०. डपिण् (डप्) संघाते। २६३ व० डापयते डापयेते डापयन्ते स० डापयेत डापयेयाताम् डापयेरन् प० डापयताम् डापयेताम् डापयन्ताम् ह्य० अडापयत अडापयेताम् अडापयन्त अ० अडीडपत अडीडपेताम् अडीडपन्त प० डापयाञ्चके डापयाञ्चक्राते डापयाञ्चक्रिरे
डापयाम्बभूव/डापयामास। आ० डापयिषीष्ट डापयिषीयास्ताम् डापयिषीरन् श्व० डापयिता डापयितारौ डापयितार:
| भ० डापयिष्यते डापयिष्येते डापयिष्यन्ते क्रि० अडापयिष्यत अडापयिष्येताम अडापयिष्यन्त
१८३१. डिपिण् (डिप्) संघाते। २६४ व० डेपयते डेपयेते डेपयन्ते स. डेपयेत
डेपयेयाताम् डेपयेरन् प० डेपयताम् डेपयेताम् डेपयन्ताम् ह्य० अडेपयत अडेपयेताम् अडेपयन्त अ० अडीडिपत अडीडिपेताम् अडीडिपन्त प० डेपयाञ्चक्रे डेपयाञ्चक्राते डेपयाञ्चक्रिरे ___डेपयाम्बभूव/डेपयामास।
आ० डेपयिषीष्ट डेपयिषीयास्ताम् डेपयिषीरन् श्व० डेपयिता डेपयितारौ डेपयितार: भ० डेपयिष्यते डेपयिष्येते डेपयिष्यन्ते क्रि० अडेपयिष्यत अडेपयिष्येताम् अडेपयिष्यन्त
१८३२. डम्पि (डम्प) संघाते। २६५ व० डम्पयते डम्पयेते डम्पयन्ते स० डम्पयेत डम्पयेयाताम् डम्पयेरन प० डम्पयताम् डम्पयेताम् डम्पयन्ताम् ह्य० अडम्पयत अडम्पयेताम् अडम्पयन्त
अ० अडडम्पत अडडम्पेताम् अडडम्पन्त | प० डम्पयाञ्चके डम्पयाञ्चक्राते डम्पयाञ्चक्रिरे
डम्पयाम्बभूव/डम्पयामास। आ० डम्पयिषीष्ट डम्पयिषीयास्ताम् डम्पयिषीरन् श्व० डम्पयिता डम्पयितारौ डम्पयितार: भ० डम्पयिष्यते डम्पयिष्येते डम्पयिष्यन्ते क्रि० अडम्पयिष्यत अडम्पयिष्येताम् अडम्पयिष्यन्त
१८३३. डिम्पिण (डिम्प) संघाते। २६६ व० डिम्पयते डिम्पयेते डिम्पयन्ते स० डिम्पयेत डिम्पयेयाताम् डिम्पयेरन् प० डिम्पयताम् डिम्पयेताम् डिम्पयन्ताम् ह्य० अडिम्पयत अडिम्पयेताम् अडिम्पयन्त अ० अडिडिम्पत अडिडिम्पेताम् अडिडिम्पन्त
Page #521
--------------------------------------------------------------------------
________________
504
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प० डिम्पयाञ्चक्रे डिम्पयाञ्चक्राते डिम्पयाञ्चक्रिरे
डिम्पयाम्बभूव/डिम्पयामास। आ० डिम्पयिषीष्ट डिम्पयिषीयास्ताम् डिम्पयिषीरन् २० डिम्पयिता डिम्पयितारौ डिम्पयितार: भ० डिम्पयिष्यते डिम्पयिष्येते डिम्पयिष्यन्ते क्रि० अडिम्पयिष्यत अडिम्पयिष्येताम् अडिम्पयिष्यन्त
१८३४. डम्भि (डम्भ) संघाते। २६७ व० डम्भयते डम्भयेते डम्भयन्ते स० डम्भयेत डम्भयेयाताम् डम्भयेरन् प० डम्भयताम् डम्भयेताम् डम्भयन्ताम् ह्य० अडम्भयत अडम्भयेताम् अडम्भयन्त अ० अडडम्भत अडडम्भेताम् अडडम्भन्त प० डम्भयाञ्चक्रे डम्भयाञ्चक्राते डम्भयाञ्चक्रिरे
डम्भयाम्बभूव/डम्भयामास । आ० डम्भयिषीष्ट डम्भयिषीयास्ताम् डम्भयिषीरन् श्व० डम्भयिता डम्भयितारौ डम्भयितारः भ० डम्भयिष्यते डम्भयिष्येते डम्भयिष्यन्ते क्रि० अडम्भयिष्यत अडम्भयिष्येताम् अडम्भयिष्यन्त
१८३५. डिम्भिण् (डिम्भ) संघाते। २६८ व० डिम्भयते डिम्भयेते डिम्भयन्ते स० डिम्भयत डिम्भयेयाताम् डिम्भयेरन् प० डिम्भयताम् डिम्भयेताम् डिम्भयन्ताम् ह्य० अडिम्भयत अडिम्भयेताम् अडिम्भयन्त अ० अडिडिम्भत अडिडिम्भेताम् अडिडिम्भन्त प० डिम्भयाञ्चक्रे डिम्भयाञ्चक्राते डिम्भयाञ्चक्रिरे
डिम्भयाम्बभूव/डिम्भयामास। आ० डिम्भयिषीष्ट डिम्भयिषीयास्ताम डिम्भयिषीरन् ० डिम्भयिता डिम्भयितारौ डिम्भयितार: भ० डिम्भयिष्यते डिम्भयिष्येते डिम्भयिष्यन्ते क्रि० अडिम्भयिष्यत अडिम्भयिष्येताम् अडिम्भयिष्यन्त
॥अथ मान्तास्त्रयः॥ १८३६. स्यमिण (स्यम्) वितर्के। २६९
व० स्यामयते स्यामयेते स्यामयन्ते स० स्यामयेत स्यामयेयाताम् स्यामयेरन् प० स्यामयताम् स्यामयेताम् स्यामयन्ताम् ह्य० अस्यामयत अस्यामयेताम् अस्यामयन्त अ० असिस्यमत असिस्यमेताम् असिस्यमन्त प० स्यामयाञ्चक्रे स्यामयाञ्चक्राते स्यामयाञ्चक्रिरे
स्यामयाम्बभूव/स्यामयामास। आ० स्यामयिषीष्ट स्यामयिषीयास्ताम् स्यामयिषीरन् श्व० स्यामयिता स्यामयितारौ स्यामयितारः भ० स्यामयिष्यते स्यामयिष्येते स्यामयिष्यन्ते क्रि० अस्यामयिष्यत अस्यामयिष्येताम् अस्यामयिष्यन्त
१८३७. शमिण (शम्) आलोचने। २७० व० शामयते शामयेते शामयन्ते स० शामयेत शामयेयाताम् शामयेरन् प० शामयताम् शामयेताम् शामयन्ताम् ह्य० अशामयत अशामयेताम् अशामयन्त अ० अशीशमत अशीशमेताम् अशीशमन्त प० शामयाञ्चके शामयाञ्चक्राते शामयाञ्चक्रिरे
शामयाम्बभूव/शामयामास। आ० शामयिषीष्ट शामयिषीयास्ताम् शामयिषीरन् श्व० शामयिता शामयितारौ शामयितार: भ० शामयिष्यते शामयिष्येते शामयिष्यन्ते क्रि० अशामयिष्यत अशामयिष्येताम् अशामयिष्यन्त
१८३८. कुस्मिण (कुस्म्) कुस्मयने।
कुत्सितं स्मयनं कुस्मयनम्। २७१ व० कुस्मयते कुस्मयेते कुस्मयन्ते स० कुस्मयेत कुस्मयेयाताम् कुस्मयेरन् प० कुस्मयताम्
कुस्मयेताम्
कुस्मयन्ताम् ह्य० अकुस्मयत अकुस्मयेताम् अकुस्मयन्त | अ० अचुकुस्मत अचुकुस्मेताम् अचुकुस्मन्त प० कुस्मयाञ्चक्रे कुस्मयाञ्चक्राते कुस्मयाञ्चक्रिरे
कुस्मयाम्बभूव/कुस्मयामास।
Page #522
--------------------------------------------------------------------------
________________
4
चुरादिगण
आ० कुस्मयिषीष्ट
श्र० कुस्मयिता
भ० कुस्मयिष्यते
क्रि० अकुस्मयिष्यत
व० गूरयते
स० [गूरयेत
प० गूरयताम्
ह्य० अगूरयत
अ० अजूगुरत
प० गूरयाञ्चक्रे
अकुस्मयिष्येताम् अकुस्मयिष्यन्त
॥ अथ रान्तास्त्रयः ॥
१८३९. गूरिण (गूर्) उद्यमे । २७२
गूरयन्ते
गूरयेरन्
गूरयन्ताम्
अगूरयन्त
अजूगुरन्त
गूरयाञ्चक्रिरे
कुस्मयिषीयास्ताम् कुस्मयिषीरन्
कुस्मयितार:
कुस्मयिष्यन्ते
आ० गूरयिषीष्ट
श्व० गूरयिता
भ० गूरयिष्यते
क्रि० अगूरयिष्यत
कुस्मयितारौ
कुस्मयिष्ये
गूरयाम्बभूव / गूरयामास ।
म्
गूरयेताम्
अगूरयेताम्
अजूगुरेताम्
गूरयाञ्चक्राते
गूरयिषीयास्ताम्
गूरयितारौ
गूरयिषीरन्
गूरयितार:
गूरयिष्यन्ते
अगूरयिष्यन्त
अगूरयिष्येताम्
१८४०. तन्त्रिण (तन्त्र्) कुटुम्बचारणे ।
कुटुम्बः परिवारः । उपलक्षणञ्चैतत् । २७३
व० तन्त्रयते
तन्त्रयेते
तन्त्रयन्ते
स० तन्त्रयेत
तन्त्रयेयाताम्
तन्त्रयेरन्
प० तन्त्रयताम्
तन्त्रताम्
तन्त्रयन्ताम
ह्य० अतन्त्रयत
अतन्त्रयेताम्
अतन्त्रयन्त
अ० अततन्त्रत
अततन्त्रेताम् अततन्त्रन्त
प० तन्त्रयाञ्चक्रे तन्त्रयाञ्चक्राते तन्त्रयाञ्चक्रिरे
तन्त्रयाम्बभूव/तन्त्रयामास ।
आ० तन्त्रयिषीष्ट तन्त्रयिषीयास्ताम् तन्त्रयिषीरन्
व० तन्त्रयिता
तन्त्रयितारौ
तन्त्रयितारः
भ० तन्त्रयिष्यते
तन्त्रयिष्यन्ते
तन्त्रयिष्येते क्रि० अतन्त्रयिष्यत अतन्त्रयिष्येताम् अतन्त्रयिष्यन्त
१८४१. मन्त्रिण (मन्त्र) गुप्तभाषणे । २७४ व० मन्त्रयते
मन्त्रयेते
मन्त्रयन्ते
स० मन्त्रयेत
प० मन्त्रयताम्
ह्य० अमन्त्रयत
अ० अममन्त्रत
प० मन्त्रयाञ्चक्रे
आ० मन्त्रयिषीष्ट
श्व० मन्त्रयिता
भ० मन्त्रयिष्यते
क्रि० अमन्त्रयिष्यत
मन्त्रयाम्बभूव / मन्त्रयामास ।
मन्त्रयेयाताम्
मन्त्रयेताम्
अमन्त्रयेताम्
आ० लालयिषीष्ट
श्व० लालयिता
भ० लालयिष्यते
क्रि० अलालयिष्यत
अममन्त्रेताम्
मन्त्रयाञ्चक्राते
व० स्पाशयते
स० स्पाशयेत
प० स्पाशयताम्
ह्य० अस्पाशयत
अ० अपस्पशत
प० स्पाशयाञ्चक्रे
लालयाम्बभूव/लालयामास ।
मन्त्रयितारौ
मन्त्रयिष्येते
अमन्त्रयिष्येताम्
|| अथ लान्तः ।
१८४२ . ललिण् (लल्) ईप्सायाम् । २७५
व० लालय
लालयेते
लालयन्ते
स० लालयेत
लालयेयाताम्
लालयेरन्
प० लालयताम्
लालयेताम्
लालयन्ताम्
हा० अलालयत
अलालयेताम्
अलालयन्त
अ० अलीललत
अलीललेताम् अलीललन्त
प० लालयाञ्चक्रे लालयाञ्चक्राते लालयाञ्चक्रिरे
मन्त्रयिषीयास्ताम् मन्त्रयिषीरन्
मन्त्रयितारः
मन्त्रयिष्यन्ते
अमन्त्रयिष्यन्त
मन्त्रयेरन्
मन्त्रयन्ताम्
अमन्त्रयन्त
लालयिषीयास्ताम् लालयिषीरन् लालयितारौ लालयितारः
लालयिष्येते लालयिष्यन्ते अलालयिष्येताम् अलालयिष्यन्त ॥ अथ शान्तौ ।।
१८४३. स्पशिण (स्पश्) ग्रहणश्लेषणयोः । २७६
स्पाशयेते स्पाशयन्ते स्पाशयेयाताम् स्पाशयेरन्
स्पाशयेताम् स्पाशयन्ताम्
अस्पाशयन्त
अममन्त्रन्त
मन्त्रयाञ्चक्रिरे
अस्पाशयेताम्
अपस्पशेताम्
स्पाशयाञ्चक्राते
स्पाशयाम्बभूव / स्पाशयामास ।
505
अपस्पशन्त
स्पाशयाञ्चक्रिरे
Page #523
--------------------------------------------------------------------------
________________
506
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आ० स्पाशयिषीष्ट स्पाशयिषीयास्ताम् स्पाशयिषीरन् श्व० स्पाशयिता स्पाशयितारौ स्पाशयितारः भ० स्पाशयिष्यते स्पाशयिष्येते स्पाशयिष्यन्ते क्रि० अस्पाशयिष्यत अस्पाशयिष्येताम् अस्पाशयिष्यन्त
१८४४. दंशिण (दंश्) दर्शने। २७७ व० दंशयते दंशयेते दंशयन्ते स० दंशयेत दंशयेयाताम दंशयेरन् प० दंशयताम् दंशयेताम्
दंशयन्ताम् ह्य० अदंशयत अदंशयेताम् अदंशयन्त अ० अददंशत अददंशेताम् अददंशन्त प० दंशयाञ्चके दंशयाञ्चक्राते दंशयाञ्चक्रिरे
दंशयाम्बभूव/दंशयामास। आ० दंशयिषीष्ट दंशयिषीयास्ताम् दंशयिषीरन् श्व० दंशयिता दंशयितारौ दंशयितार: भ० दंशयिष्यते दंशयिष्येते दंशयिष्यन्ते क्रि० अदंशयिष्यत अदंशयिष्येताम् अदंशयिष्यन्त
॥अथ सान्तौ।। १८४५. दंसिण (दंस्) दर्शने च।
चकाराबंसने। २७८ व० दंसयते दंसयेते दंसयन्ते स० दंसयेत दंसयेयाताम् दंसयेरन् प० दंसयताम् दंसयेताम् दंसयन्ताम् ह्य० अदंसयत अदंसयेताम् अदंसयन्त अ० अददंसत अददंसेताम अददंसन्त प० दंसयाञ्चके दंसयाञ्चक्राते दंसयाञ्चक्रिरे
दंसयाम्बभूव/दंसयामास। आ० दंसयिषीष्ट दंसयिषीयास्ताम् दंसयिषीरन् श्व० दंसयिता दंसयितारौ दंसयितारः भ० दंसयिष्यते दंसयिष्येते दंसयिष्यन्ते क्रि० अदंसयिष्यत अदंसयिष्येताम् अदंसयिष्यन्त
१८४६. भर्त्सिण (भ) संतर्जने। २७९ व० भर्त्सयते भर्त्सयेते भर्क्सयन्ते
स० भर्ल्सयेत भर्त्सयेयाताम् भर्त्सयेरन् प० भर्त्सयताम् भर्त्सयेताम् भर्त्सयन्ताम् ह्य० अभर्त्सयत अभर्स्येताम् अभर्त्सयन्त अ० अबभर्त्सत अबभर्सेताम् अबभर्त्सन्त प० भर्त्सयाञ्चके भर्त्सयाञ्चक्राते भर्त्सयाञ्चक्रिरे
भर्त्सयाम्बभूव/भर्त्सयामास। आ० भर्त्सयिषीष्ट भर्त्सयिषीयास्ताम् भर्त्सयिषीरन् श्व० भर्त्सयिता भर्त्सयितारौ भर्त्सयितारः भ० भर्त्सयिष्यते भर्त्सयिष्येते भर्त्सयिष्यन्ते क्रि० अभर्त्सयिष्यत अभर्त्सयिष्येताम अभर्त्सयिष्यन्त
॥अथ क्षान्तः।। १८४७. यक्षिण (यक्ष) पूजायाम्। २८० व० यक्षयते यक्षयेते यक्षयन्ते स० यक्षयेत यक्षयेयाताम् यक्षयेरन् प० यक्षयताम् यक्षयेताम् यक्षयन्ताम् ह्य० अयक्षयत अयक्षयेताम् अयक्षयन्त अ० अययक्षत अययक्षेताम् अययक्षन्त प० यक्षयाञ्चके यक्षयाञ्चक्राते यक्षयाञ्चक्रिरे
यक्षयाम्बभूव/यक्षयामास। आ० यक्षयिषीष्ट यक्षयिषीयास्ताम् यक्षयिषीरन् श्व० यक्षयिता यक्षयितारौ यक्षयितारः भ० यक्षयिष्यते यक्षयिष्येते यक्षयिष्यन्ते क्रि० अयक्षयिष्यत अयक्षयिष्येताम् अयक्षयिष्यन्त
इत्यात्मनेभाषा:। इतोऽदन्ताः॥ इत ऊर्ध्वं युजादेः प्रागदन्तत्वं धातूनां विधीयते। ततश्च अत इत्यल्लुकः स्थानिवत्त्वात् गुणवृद्ध्योः समानलोपित्वाच्च सन्वद्भावदीर्घोपान्त्यह्रस्वानामभावः। यथा सुखयति रचयति। अत्र अत इत्यल्लुकः स्वरादेशत्वेन पूर्वविधिं प्रति स्थानित्वाद् गुणवृद्ध्यभावः। अररचत्, असुसुखत्। अत्र समानलोपित्वादसमानलोपे इति पूर्वस्य सन्वद्भादो लघोर्दीर्घ इति दीर्घश्च न भवति; असुसूचत्। अत्रोपान्त्यह्रस्वाभावः। अङ्कादीनां तूक्तफलाभावेऽपि पूर्वाचार्यानुरोधेनादन्तेषु पाठः। णिजभावेऽनेकस्वत्वाद्
Page #524
--------------------------------------------------------------------------
________________
507
सुखयन्ति
चुरादिगण यड्निवृत्यर्थं इत्येके। दुमिलास्तु एवं | भ० ब्लेष्कयिष्यति ब्लेष्कयिष्यतः ब्लेष्कयिष्यन्ति प्रकाराणामत्त्वविधानसामर्थ्यादल्लोपाभावं मन्यन्ते; ततश्च | क्रि० अब्लेष्कयिष्यत् अब्लेष्कयिष्यताम् अब्लेष्कयिष्यन् णिति इति वृद्धौ प्वागमे च दुःखापयति, लजापयति, णिजभावेऽप्यदन्तत्वार्थोऽस्य पाठः। वेण्टापयति, रंहापयति, अर्थापयते, सत्रापयते, गर्वापयते,
तेनानेकस्वरत्वाद् यङ् न भवति। एवं सूत्रिरुक्षिगविंप्रभृतीनां इत्युदाहरन्ति। ते हि णिति वृद्धिं स्वरमात्रस्येच्छन्ति।
पाठे प्रयोजनमुन्नेयम्। ॥अथ कान्तौ॥
॥अथ खान्ताः॥ १८४८. अङ्कण् (अड्क्) लक्षणे। २८१
१८५०. सुखण् (सुख) तक्रियायाम्। व० अङ्कयति अङ्कयतः अङ्कयन्ति
सुखनं तक्रिया। २८३ स० अङ्कयेत् अङ्कयेताम् अङ्कयेयुः
व० सुखयति सुखयतः प० अङ्कयतु/अङ्कयतात् अङ्कयताम् अङ्कयन्तु
स० सुखयेत् सुखयेताम् सुखयेयुः ह्य० आङ्कयत् आङ्कयताम् आङ्कयन्
प० सुखयतु/सुखयतात् सुखयताम् सुखयन्तु अ० आञ्चिकत् आञ्चिकताम् आञ्चिकन्
ह्य० असुखयत् असुखयताम् असुखयन् प० अङ्कयाञ्चकार अङ्कयाञ्चक्रतुः अङ्कयाञ्चक्रुः
अ० असुसुखत् असुसुखताम् असुसुखन् अङ्कयाम्बभूव/अङ्कयामास।
प० सुखयाञ्चकार सुखयाञ्चक्रतुः सुखयाञ्चक्रुः आ० अङ्कयात् अङ्ग्यास्ताम् अङ्कयासुः
सुखयाम्बभूव/सुखयामास। श्व० अङ्कयिता अङ्कयितारौ अङ्कयितारः
आ० सुख्यात् सुख्यास्ताम् सुख्यासुः भ० अङ्कयिष्यति अङ्कयिष्यतः अङ्कयिष्यन्ति
श्व० सुखयिता सुखयितारौ सुखयितारः क्रि० आङ्कयिष्यत् आङ्कयिष्यताम् आङ्कयिष्यन्
भ० सुखयिष्यति सुखयिष्यतः सुखयिष्यन्ति "ओर्जान्ते'' तिसूत्रे पयेवणे इति सिद्धे जान्तस्थापवर्गग्रहणं
क्रि० असुखयिष्यत् असुखयिष्यताम् असुखयिष्यन् ज्ञापयति णौ यत्कृतं कार्यं तत्सर्वं स्थानिवद्भवति। तेनान्तरङ्गत्वात्कृतेऽपि अल्लुकितस्य स्थानिवद्भावात् कशब्दस्य
१८५१. दुःखण् (दुःख) तक्रियायाम्। द्वित्त्वम् रूपातिदेशात् एतज्ज्ञापकमवणे एव। तेनाचिकीर्त्तत्
दुःखनं तक्रिया। २८४ इति सिद्धम्।
व० दु:खयति दु:खयतः दुःखयन्ति १८४९. ब्लेष्कण् (ब्लेष्क्) दर्शने। २८२ स० दु:खयेत् दुःखयेताम् दुःखयेयुः व० ब्लेष्कयति ब्लेष्कयतः ब्लेष्कयन्ति प० दु:खयतु दुःखयतात् दुःखयताम् स० ब्लेष्कयेत् ब्लेष्कयेताम् ब्लेष्कयेयुः ह्य० अदुःखयत् अदुःखयताम् अदुःखयन् प० ब्लेष्कयतु ब्लेष्कयतात् ब्लेष्कयताम् अ० अदुदुःखत् अदुदु:खताम् अदुदुःखन् ह्य० अब्लेष्कयत् अब्लेष्कयताम् अब्लेष्कयन् प० दुःखयाञ्चकार दुःखयाञ्चक्रतुः दुःखयाञ्चक्रुः अ० अबिब्लेष्कत् अबिब्लेष्कताम् अबिब्लेष्कन् दुःखयाम्बभूव/दुःखयामास। प० ब्लेष्कयाञ्चकार ब्लेष्कयाञ्चक्रतुः ब्लेष्कयाञ्चक्रुः आ० दुःख्यात् दुःख्यास्ताम् दुःख्यादुः: ब्लेष्कयाम्बभूव/ब्लेष्कयामास।
श्व० दुःखयिता दुःखयितारौ दुःखयितारः आ० ब्लेष्क्यात् ब्लेष्क्यास्ताम्
ब्लेष्क्यासुः
भ० दुःखयिष्यति दुःखयिष्यतः दुःखयिष्यन्ति श्व० ब्लेष्कयिता ब्लेष्कयितारौ ब्लेष्कयितार: क्रि० अदु:खयिष्यत् अदुःखयिष्यताम् अदुःखयिष्यन्
Page #525
--------------------------------------------------------------------------
________________
508
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
जनचात
१८५२. अङ्गण (अङ्ग्) पदलक्षणयोः। २८५ व० अङ्गयति अङ्गयतः अङ्गयन्ति स० अङ्गयत् अङ्गयेताम् अङ्गयेयुः प० अङ्गयतु/अङ्गयतात् अङ्गयताम् अङ्गयन्तु ह्य० आङ्गयत् आङ्गयताम् आङ्गयन् अ० आञ्जिगत् आञ्जिगताम् आञ्जिगन् प० अङ्गयाञ्चकार अङ्गयाञ्चक्रतुः । अङ्गयाञ्चक्रुः ___ अङ्गयाम्बभूव/अङ्गयामास। आ० अङ्गयात् अङ्गयास्ताम् अङ्गयासुः श्र० अङ्गयिता अङ्गयितारौ अङ्गयितारः भ० अङ्गयिष्यति अङ्गयिष्यतः अङ्गयिष्यन्ति क्रि० आङ्गयिष्यत् आङ्गयिष्यताम् __आङ्गयिष्यन्
॥अथ घान्तः।। १८५३. अघण् (अग) पापकरणे। २८६ व० अघयति अघयतः अघयन्ति स० अघयेत् अघयेताम् अघयेयुः प० अघयतु/अघयतात् अघयताम् अघयन्तु हा० आघयत् आघयताम् आघयन्अ० आजिघत् आजिघताम् आजिघन् प० अघयाञ्चकार अघयाञ्चक्रतुः अघयाञ्चक्रुः
अघयाम्बभूव/अघयामास। आ० अध्यात्
अध्यास्ताम् अध्यासुः श्व० अघयिता अघयितारौ अघयितारः भ० अघयिष्यति अघयिष्यतः अघयिष्यन्ति क्रि० आघयिष्यत् आघयिष्यताम् आघयिष्यन्
॥अथ चान्तौ।। १८५४. रचण् (रच्) प्रतियत्ने। २८७ व० रचयति रचयत:
रचयन्ति स० रचयेत् रचयेताम् रचयेयुः प० रचयतु/रचयतात् रचयताम् ह्य० अरचयत् अरचयताम् अरचयन् अ० अररचत् अररचताम् अररचन्
प० रचयाञ्चकार रचयाञ्चक्रतुः रचयाञ्चक्रुः
रचयाम्बभूव/रचयामास। आ० रच्यात्
रच्यास्ताम्
रच्यासुः श्व० रचयिता रचयितारौ रचयितार: भ० रचयिष्यति रचयिष्यतः रचयिष्यन्ति क्रि० अरचयिष्यत् अरचयिष्यताम् अरचयिष्यन्
१८५५. सूचण् (सूच्) पैशून्ये। २८८ व० सूचयति सूचयतः सूचयन्ति स० सूचयेत्
सूचयेताम् सूचयेयुः प० सूचयतु/सूचयतात् सूचयताम् सूचयन्तु ह्य० असूचयत् असूचयताम् असूचयन् अ० असुसूचत् असुसूचताम् असुसूचन् प० सूचयाञ्चकार सूचयाञ्चक्रतुः सूचयाञ्चक्रुः
सूचयाम्बभूव/सूचयामास। आ० सूच्यात् सूच्यास्ताम् सूच्यासुः श्व० सूचयिता
सूचयितारः भ० सूचयिष्यति सूचयिष्यतः सूचयिष्यन्ति क्रि० असूचयिष्यत् असूचयिष्यताम् असूचयिष्यन्
॥अथ जान्ताश्चत्वारः।। १८५६. भाजण् (भाज्) पृथक्कर्मणि। २८९ व० भाजयति भाजयतः भाजयन्ति स० भाजयेत् भाजयेताम् भाजयेयुः प० भाजयतु/भाजयतात् भाजयताम् भाजयन्तु ह्य० अभाजयत् अभाजयताम् अभाजयन् अ० अपिभाजत् अपिभाजताम् अपिभाजन् प० भाजयाञ्चकार भाजयाञ्चक्रपिः भाजयाञ्चक्रुः
भाजयाम्बभूव/भाजयामास। आ० भाज्यात् भाज्यास्ताम् भाज्यासुः श्व० भाजयिता भाजयितारौ भाजयितारः भ० भाजयिष्यति भाजयिष्यतः भाजयिष्यन्ति क्रि० अभाजयिष्यत् अभाजयिष्यताम् अभाजयिष्यन
सूचयितारौ
रचयन्तु
Page #526
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
509
कूटयाम्बभूव/कूटयामास। आ० कूट्यात् कूट्यास्ताम् कूटयासुः श्व० कूटयिता
कूटयितारौ
कूटयितारः भ० कूटयिष्यति कूटयिष्यतः कूटयिष्यन्ति क्रि० अकूटशिष्यत् अकूटयिष्यताम् अकूटयिष्यन्
१८६१. पटण् (पट) ग्रन्थे।
ग्रन्थो वेष्टनम्। २९४ व० पटयति पटयत:
पटयन्ति स० पटयेत् पटयेताम् प० पटयतु/पटयतात् पटयताम्
पटयन्तु ह्य० अपटयत् अपटयताम् अपटयन् अ० अपपटत् अपपटताम् अपपटन् प० पटयाञ्चकार पटयाञ्चक्रतुः पटयाञ्चक्रुः
पटयेयुः
पटयाम्बभूव/पटयामास।
१८५८. लजण् (लज्) प्रकाशने। २९१ व० लजयति लजयतः लजयन्ति स० लजयेत् लजयेताम् लजयेयुः प० लजयतु/लजयतात् लजयताम् लजयन्तु ह्य० अलजयत् अलजयताम्
अलजयन् अ० अललजत् अललजताम् अललजन् प० लजयाञ्चकार लजयाञ्चक्रतुः लजयाञ्चक्रुः
लजयाम्बभूव/लजयामास। आ० लज्यात् लज्यास्ताम् लज्यासुः श्व० लजयिता लजयितारौ लजयितारः भ० लजयिष्यति लजयिष्यतः लजयिष्यन्ति क्रि० अलजयिष्यत् अलजयिष्यताम् अलजयिष्यन्
१८५९. लजुण (लज्) प्रकाशने। २९२ व० लञ्जयति लञ्जयत: लञ्जयन्ति स० लञ्जयेत् लञ्जयेताम् लञ्जयेयुः प० लञ्जयतु/लञ्जयतात् लञ्जयताम् लञ्जयन्तु ह्य० अलञ्जयत् अलञ्जयताम् अलजयन् अ० अललञ्जत् अललञ्जताम् अललञ्जन् प० लजयाञ्चकार लञ्जयाञ्चक्रल: लजयाञ्चक्रुः
लजयाम्बभूव/लञ्जयामास। आ० लज्यात् लज्यास्ताम् लज्यासुः श्व० लञ्जयिता लजयितारौ लजयितारः भ० लञ्जयिष्यति लजयिष्यतः लञ्जयिष्यन्ति क्रि० अलजयिष्यत् अलजयिष्यताम् अलजयिष्यन्
॥अथ टान्ताः सप्त।
१८६०. कूटण् (कूट) दाहे। २९३ व० कूटयति कूटयतः कूटयन्ति स० कूटयेत् कूटयेताम् कूटयेयुः प० कूटयतु/कूटयतात् कूटयताम् कूटयन्तु ह्य० अकूटयत् अकूटयताम् अकूटयन् अ० अचुकूटत् अचुकूटताम् अचुकूटन् प० कूटयाञ्चकार कूटयाञ्चक्रतुः कूटयाञ्चक्रुः
ता
आ० पट्यात् पट्यास्ताम् पट्यासुः श्व० पटयिता पटयितारौ पटयितार: भ० पटयिष्यति पटयिष्यतः पटयिष्यन्ति क्रि० अपटयिष्यत् अपटयिष्यताम् अपटयिष्यन्
१८६२. वटण् (वट) ग्रन्थे।
ग्रन्थो वेष्टनम्। २९५ व० वटयति वटयत:
वटयन्ति स० वटयेत्
वटयेताम्
वटयेयुः व० वटयतु/वटयतात् वटयताम् वटयन्तु ह्य० अवटयत् अवटयताम् अवटयन् अ० अववटत् अववटताम् अववटन् व० वटयाञ्चकार वटयाञ्चक्रतुः
वटयाञ्चक्रुः वटयाम्बभूव/वटयामास। आ० वट्यात् वट्यास्ताम् वट्यासुः श्व० वटयिता वटयितारौ वटयितार: भ० वटयिष्यति वटयिष्यतः वटयिष्यन्ति क्रि० अवटयिष्यत् अवटयिष्यताम् अवटयिष्यन्
Page #527
--------------------------------------------------------------------------
________________
510
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
खेटयन्तु
पत्
खेट्यासुः
खोटयेयुः
१८६३. खेटण् (खेट्) भक्षणे। २९६ व० खेटयति खेटयत: खेटयन्ति स० खेटयेत्
खेटयेताम्
खेटयेयुः प० खेटयतु/खेटयतात् खेटयताम् ह्य० अखेटयत् अखेटयताम् अखेटयन् अ० अचिखेटत् अचिखेटताम् अचिखेटन प० खेटयाञ्चकार खेटयाञ्चक्रतुः खेटयाञ्चक्रुः
खेटयाम्बभूव/खेटयामास। आ० खेट्यात् खेट्यास्ताम् श्व० खेटयिता खेटयितारौ खेटयितारः भ० खेटयिष्यति खेटयिष्यतः खेटयिष्यन्ति क्रि० अखेटयिष्यत् अखेटयिष्यताम् अखेटयिष्यन
१८६४. खोटण् (खोट्) क्षेये। २९७ व० खोटयति खोटयतः खोटयन्ति स० खोटयेत् खोटयेताम् प० खोटयतु/खोटयतात् खोटयताम् खोटयन्तु ह्य० अखोटयत् अखोटयताम् । अखोटयन् अ० अचुखोटत् अचुखोटताम् अचुखोटन् प० खोटयाञ्चकार खोटयाञ्चक्रतुः खोटयाञ्चक्रुः
खोटयाम्बभूव/खोटयामास।। आ० खोट्यात् खोट्यास्ताम् श्व० खोटयिता खोटयितारौ खोटयितार: भ० खोटयिष्यति खोटयिष्यतः खोटयिष्यन्ति क्रि० अखोटयिष्यत् अखोटयिष्यताम् अखोटयिष्यन्
१८६५. पुटण् (पुट्) संसर्गे। २९८ व० पुटयति पुटयतः पुटयन्ति स० पुटयेत् पुटयेताम् पुटयेयुः प० पुटयतु/पुटयतात् पुटयताम् पुटयन्तु ह्य० अपुटयत् अपुटयताम् अपुटयन् अ० अपुपुटत् अपुपुटताम् अपुपुटन् प० पुटयाञ्चकार पुटयाञ्चक्रतुः पुटयाञ्चक्रुः
पुटयाम्बभूव/पुटयामास।
आ० पुट्यात् पुट्यास्ताम् पुट्यासुः श्व० पुटयिता पुटयितारौ पुटयितार: भ० पुटयिष्यति पुटयिष्यतः पुटयिष्यन्ति क्रि० अपुटयिष्यत् अपुटयिष्यताम् अपुटयिष्यन्
१८६६. वटुण् (वण्ट्) विभाजने। २९९ व० वण्टयति वण्टयतः वण्टयन्ति स० वण्टयेत् वण्टयेताम् वण्टयेयुः प० वण्टयतु/वण्टयतात् वण्टयताम् वण्टयन्तु ह्य० अवण्टयत् अवण्टयताम् अवण्टयन् अ० अववण्टत् अववण्टताम् अववण्टन् प० वण्टयाञ्चकार वण्टयाञ्चक्रतुः वण्टयाञ्चक्रुः
वण्टयाम्बभूव/वण्टयामास। आ० वण्ट्यात् वण्ट्यास्ताम् वण्ट्यासुः श्व० वण्टयिता वण्टयितारौ वण्टयितारः भ० वण्टयिष्यति वण्टयिष्यतः वण्टयिष्यन्ति क्रि० अवण्टयिष्यत् अवण्टयिष्यताम् अवण्टयिष्यन्
१८६७. शठण (श) सम्यग्भाषणे। ३०० व० शठयति शठयत: शठयन्ति स० शठयेत् शठयेताम् शठयेयुः प० शठयतु/शठयतात् शठयताम् शठयन्तु ह्य० अशठयत् अशठयताम् अशठयन् अ० अशशठत् अशशठताम् अशशठन् प० शठयाञ्चकार शठयाञ्चक्रतुः शठयाञ्चक्रुः
शठयाम्बभूव/शठयामास। आ० शठ्यात् शठ्यास्ताम् शठ्यासुः श्व० शठयिता शठयितारौ शठयितार: भ० शठयिष्यति शयिष्यतः शठयिष्यन्ति क्रि० अशठयिष्यत् अशठयिष्यताम् अशठयिष्यन्
१८६८. श्वठण (श्व) सम्यरभाषणे। ३०१ व० श्वठयति श्वठयतः श्वठयन्ति स० श्वठयेत् श्वठयेताम् श्वठयेयुः प० श्वठयतु/तात् श्वठयताम् श्वठयन्तु
खोट्यासुः
Jain Education Internatiohal
Page #528
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
ह्य० अश्वठयत्
अ० अशश्वठत्
प० श्वठयाञ्चकार
आ० श्वठ्यात् व० श्वठयिता
भ० श्वठयिष्यति
क्रि० अश्वठयिष्यत्
श्वठयाम्बभूव / श्वठयामास ।
व० दण्डयति
स० दण्डयेत्
अश्वठयताम्
अशश्वठताम्
श्वठयाञ्चक्रतुः
श्वठ्यास्ताम्
श्वठयितारौ
श्वठयिष्यतः
अश्वठयिष्यताम्
॥ अथ डान्तः ॥
१८६९. दण्डण् (दण्ड) दण्डनिपाते । ३०२
आ० दण्ड्यात्
व० दण्डयिता
भ० दण्डयिष्यति
क्रि० अदण्डयिष्यत्
प० दण्डयतु / दण्डयतात् दण्डयताम्
हा० अदण्डयत्
अदण्डयताम्
अ० अददण्डत्
अददण्डताम्
प० दण्डयाञ्चकार
दण्डयतः
दण्डताम्
दण्डयाम्बभूव / दण्डयामास ।
दण्डयाञ्चक्रतुः
अश्वठयन्
अशश्वठन्
श्वठयाञ्चक्रुः
व० व्रणयति
व्रणयतः
स० व्रणयेत्
व्रणाम्
प० व्रणयतु/ व्रणयतात् व्रणयताम्
ह्य० अव्रणयत्
अव्रणयताम्
अ० अवत्रणत्
अवव्रणताम्
प० व्रणयाञ्चकार
व्रणयाञ्चक्रतुः
श्वठ्यासुः
श्वठयितारः
श्वठयिष्यन्ति
अश्वठयिष्यन्
दण्ड्यास्ताम्
दण्ड्यासुः
दण्डयितारौ
दण्डयितार:
दण्डयिष्यतः दण्डयिष्यन्ति
अदण्डयिष्यताम् अदण्डयिष्यन्
दण्डादेर्नाम्नो णिचि दण्डयतीत्यादिसिद्धौ दण्डण्प्रभृतीनां पाठो यथाभिधानं णिचं विनापि प्रयोगार्थः । अत एवादन्तत्वमपि
अनेकस्वर कार्यार्थं फलवत् ॥ ॥ अथ णान्ता अष्टौ ||
१८७०. व्रणण् (व्रण्) गोत्रविचूर्णने । ३०३
दण्डयन्ति
दण्डयेयुः
दण्डयन्तु
अदण्डयन्
अददण्डन्
दण्डयाञ्चक्रुः
व्रणयन्ति
व्रणयेयुः
व्रणयन्तु
अव्रणयन्
अवव्रणन्
व्रणयाञ्चक्रुः
व्रणयाम्बभूव/ व्रणयामास ।
आ० व्रण्यात्
श्व० व्रणयिता
भ० व्रणयिष्यति
क्रि० अव्रणयिष्यत्
१८७१. वर्णण् (वर्ण) वर्णक्रयाविस्तारगुणवचनेषु । ३०४
व० वर्णयति
वर्णयतः
स० वर्णयेत्
वर्णयेताम्
प० वर्णयतु / वर्णयतात् वर्णयताम्
० अवर्णत्
अवर्णयताम्
अ० अववर्णत्
अववर्णताम्
प० वर्णयाञ्चकार
वर्णयाम्बभूव/वर्णयामास ।
आ० वर्ण्यात्
श्व० वर्णयिता
व्रण्यास्ताम्
व्रणयितारौ
व्रणयिष्यतः
अव्रणयिष्यताम्
ह्य० अपर्णयत्
अ० अपर्ण
प० पर्णयाञ्चकार
वर्णयाञ्चक्रतुः
वर्ण्यासुः
वर्णयितार:
भ० वर्णयिष्यति
वर्णयिष्यन्ति
अवर्णयिष्यताम् अवर्णयिष्यन्
क्रि० अवर्णीयष्यत् वर्णक्रिया वर्णनं वर्णकरणं वा । वर्णयति कथां सुवर्णम्।
विस्तारे वर्णनेयम् । गुणवचनं स्तुतिः शुक्लाद्युक्तिर्वा
१८७२. पर्णण् (पर्ण) हरितभावे । ३०५
पर्णयन्ति
पर्णयेयुः
पर्णयन्तु
अपर्णयन्
अपपर्णन्
पर्णयाञ्चक्रुः
व० पर्णयति
पर्णयतः
स० पर्णयेत्
पर्णाम्
प० पर्णयतु / पर्णयतात् पर्णयताम्
अपर्णयताम्
अपपर्णताम्
आपत्
श्व० पर्णयिता
भ० पर्णयिष्यति
क्रि० अपर्णयिष्यत्
वर्ण्यास्ताम्
वर्णयितारौ
वर्णयिष्यतः
पर्णयाम्बभूव / पर्णयामास ।
पर्णयाञ्चक्रतुः
व्रण्यासुः
व्रणयितार:
व्रणयिष्यन्ति
अव्रणयिष्यन्
पर्यास्ताम्
पर्णयितारौ
पर्णयिष्यतः
अपर्णयिष्यताम्
वर्णयन्ति
वर्णयेयुः
वर्णयन्तु
अवर्णयन्
अववर्णन्
वर्णयाञ्चक्रुः
511
पर्ण्यासुः
पर्णयितारः
पर्णयिष्यन्ति
अपर्णयिष्यन्
Page #529
--------------------------------------------------------------------------
________________
512
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कुणयिष्यतः
१८७३. कर्णण (कर्ण) भेदे। ३०६ व० कर्णयति कर्णयतः कर्णयन्ति स० कर्णयेत् कर्णयेताम् कर्णयेयुः प० कर्णयतु/कर्णयतात् कर्णयताम् कर्णयन्तु ह्य० अकर्णयत् अकर्णयताम् अकर्णयन् अ० अचकर्णत् अचकर्णताम् अचकर्णन् प० कर्णयाञ्चकार कर्णयाञ्चक्रतुः कर्णयाञ्चक्रुः
कर्णयाम्बभूव/कर्णयामास। आ० कर्म्यात् कयास्ताम् कासुः N० कर्णयिता कर्णयितारौ कर्णयितार: भ० कर्णयिष्यति कर्णयिष्यतः कर्णयिष्यन्ति क्रि० अकर्णयिष्यत् अकर्णयिष्यताम् अकर्णयिष्यन्
१८७४. तूणण् (तूण) संकोचने। ३०७ व० तूणयति तूणयतः तूणयन्ति स० तूणयेत् तूणयेताम् तूणयेयुः प० तूणयतु/तूणयतात् तूणयताम् तूणयन्तु ह्य० अतूणयत् अतूणयताम् अतूणयन् अ० अतूतुणत् अतूतुणताम् अतूतुणन् प० तूणयाञ्चकार तूणयाञ्चक्रतुः तूणयाञ्चक्रुः
तूणयाम्बभूव/तूणयामास। आ० तूण्यात् तूण्यास्ताम् तूण्यासुः N० तृणयिता तूणयितारौ
तूणयितारः भ० तूणयिष्यति तूणयिष्यतः तूणयिष्यन्ति क्रि० अतूणयिष्यत् अतूणयिष्यताम् अतूणयिष्यन्
१८७५. गणण् (गण) सङ्ख्याने। ३०८ व० गणयति गणयतः गणयन्ति स० गणयेत् गणयेताम गणयेयुः प० गणयतु/गणयतात् गणयताम् गणयन्तु ह्य० अगणयत् अगणयताम् अगणयन् अ० अजगणत् अजगणताम् अजगणन् प० गणयाञ्चकार गणयाञ्चक्रतुः गणयाञ्चक्रुः
गणयाम्बभूव गणयामास। आ० गण्यात् गण्यास्ताम्
गण्यासुः
श्व० गणयिता गणयितारौ गणयितार: भ० गणयिष्यति गणयिष्यतः गणयिष्यन्ति क्रि० अगणयिष्यत् अगणयिष्यताम् अगणयिष्यन्
१८७६. कुणण् (कुण्) आमन्त्रणे।
आमन्त्रा गूढोक्तिः। ३०९ व० कुणयति कुणयत:
कुणयन्ति स० कुणयेत् कुणयेताम् कुणयेयुः प० कुणयतु/कुणयतात् कुणयताम् कुणयन्तु ह्य० अकुणयत् अकुणयताम् अकुणयन् अ० अचुकुणत् अचुकुणताम् अचुकुणन् प० कुणयाञ्चकार कुणयाञ्चक्रतुः कुणयाञ्चक्रुः
कुणयाम्बभूव/कुणयामास। आ० कुण्यात् कुण्यास्ताम् कुण्यासुः श्व० कुणयिता कुणयितारौ कुणयितारः भ० कुणयिष्यति
कुणयिष्यन्ति क्रि० अकुणयिष्यत् अकुणयिष्यताम् अकुणयिष्यन्
१८७७. गुणण् (गुण) आमन्त्रणे।
आमन्त्रा गूढोक्तिः। ३१० व० गुणयति गुणयतः गुणयन्ति स० गुणयेत् गुणयेताम् गुणयेयुः प० गुणयतु/गुणयतात् गुणयताम् गुणयन्तु ह्य० अगुणयत् अगुणयताम् अगुणयन् अ० अजुगुणत् अजुगुणताम् अजुगुणन् प० गुणयाञ्चकार गुणयाञ्चक्रतुः । गुणयाञ्चक्रुः
गुणयाम्बभूव/गुणयामास। आ० गुण्यात् गुण्यास्ताम् गुण्यासुः श्व० गुणयिता गुणयितारौ गुणयितारः भ० गुणयिष्यति गुणयिष्यतः गुणयिष्यन्ति क्रि० अगुणयिष्यत् अगुणयिष्यताम् अगुणयिष्यन्
॥अथ तान्तास्त्रयः।। १८७८. केतण (केत्) आमन्त्रणे।
आमन्त्रणं गूढोक्तिः। ३११ व० केतयति केतयतः केतयन्ति
Page #530
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
केतयेयुः केतयन्तु
स० केतयेत् केतयेताम् प० केतयतु/केतयतात् केतयताम् ह्य० अकेतयत् अकेतयताम् अकेतयन् अ० अचिकेतत् अचिकेताम् अचिकेतन् प० केतयाञ्चकार केतयाञ्चक्रतुः केतयाञ्चक्रुः
केतयाम्बभूव/केतयामास। आ० केत्यात् केत्यास्ताम् केत्यासुः २० केतयिता केतयितारौ केतयितारः भ० केतयिष्यति केतयिष्यतः केतयिष्यन्ति क्रि० अकेतयिष्यत् अकेतयिष्यताम् अकेतयिष्यन्
अयं निश्रावणनिमन्त्रणयोरपीत्येके।
१८७९. पतण् (पत्) गतौ वा। ३१२ व० पतयति पतयतः पतयन्ति स० पतयेत् पतयेताम् पतयेयुः प० पतयतु/पतयतात् पतयताम् पतयन्तु ह्य० अपतयत् अपतयताम्
अपतयन् अ० अपपतत् अपपताम् अपपतन् प० पतयाञ्चकार पतयाञ्चक्रतुः पतयाञ्चक्रुः
पतयाम्बभूव/पतयामास। आ० पत्यात् पत्यास्ताम् पत्यासुः श्व० पतयिता पतयितारौ पतयितारः भ० पतयिष्यति पतयिष्यतः पतयिष्यन्ति क्रि० अपतयिष्यत् अपतयिष्यताम् अपतयिष्यन् वा शब्दो णिजदन्तत्वयोर्युगपद्विकल्पार्थः। पक्षे, पतति,
अपातीत्। अपतीत्। १८८०. वातण् (वात्) गतिसुखसेवनयोः। ३१३ व० वातयति वातयतः वातयन्ति स० वातयेत् वातयेताम् वातयेयुः प० वातयतु/वातयतात् वातयताम् वातयन्तु ह्य० अवातयत् अवातयताम् अवातयन् अ० अववातत् अववाताम् अववातन् प० वातयाञ्चकार वातयाञ्चक्रतुः वातयाञ्चक्रुः
वातयाम्बभूव/वातयामास।
आ० वात्यात् वात्यास्ताम् वात्यासुः श्व० वातयिता वातयितारौ वातयितारः भ० वातयिष्यति वातयिष्यतः वातयिष्यन्ति क्रि० अवातयिष्यत् अवातयिष्यताम् अवातयिष्यन् सुखसेवनयोरित्येके। वा इत्येके। तन्मते, वापयति।
॥अथ थान्तौ।। १८८१. कथण (कथ्) वाक्यप्रबन्थे। ३१४ व० कथयति कथयतः कथयन्ति स० कथयेत् कथयेताम् कथयेयुः प० कथयतु/कथयतात् कथयताम् कथयन्तु ह्य० अकथयत् अकथयताम् अकथयन् अ० अचकथत् अचकथताम् अचकथन् प० कथयाञ्चकर कथयाञ्चक्रतुः कथयाञ्चक्रुः
कथयाम्बभूव/कथयामास। आ० कथ्यात् कथ्यास्ताम् कथ्यासुः श्व० कथयिता कथयितारौ कथयितार: भ० कथयिष्यति कथयिष्यतः कथयिष्यन्ति क्रि० अकथयिष्यत् अकथयिष्यताम् अकथयिष्यन् वाक्यप्रतिबन्धे इत्यन्ये। प्रतिबन्धो विच्छेदोदीरणात्। वदने
इत्यपरे। १८८२. श्रथण् (श्रथ्) दौर्बल्ये। ३१५ व० श्रथयति श्रथयतः श्रथयन्ति स० श्रथयेत् श्रथयेताम्
श्रथयेयुः प० श्रथयतु/श्रथयतात् श्रथयताम् श्रथयन्तु ह्य० अश्रथयत् अश्रथयताम् अश्रथयन् अ० अशश्रथत् अशश्रथताम् अशश्रथन् प० श्रथयाञ्चकार श्रथयाञ्चक्रतुः श्रथयाञ्चक्रुः
श्रथयाम्बभूव/श्रथयामास। आ० श्रथ्यात् श्रथ्यास्ताम् श्रथ्यासुः श्व० श्रथयिता श्रथयितारौ श्रथयितारः भ० श्रथयिष्यति श्रथयिष्यतः श्रथयिष्यन्ति क्रि० अश्रथयिष्यत् अश्रथयिष्यताम् अश्रथयिष्यन्
लत्वे श्लथयतीत्यादि।
Page #531
--------------------------------------------------------------------------
________________
514
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
छेदयन्तु
छेद्यासुः
॥अथ दान्तौ॥ १८८३. छेदण् (छेद्) द्वैधीकरणे। ३१६ व० छेदयति छेदयतः छेदयन्ति स० छेदयेत् छेदयेताम्
छेदयेयुः प० छेदयतु/छेदयतात् छेदयताम् ह्य० अच्छेदयत् अच्छेदयताम् अच्छेदयन् अ० अचिच्छदत् अचिच्छदताम् अचिच्छदन् प० छेदयाञ्चकार छेदयाञ्चक्रतुः छेदयाञ्चक्रुः ___छेदयाम्बभूव/छेदयामास। आ० छेद्यात् छेद्यास्ताम् १० छेदयिता छेदयितारौ छेदयितारः भ० छेदयिष्यति छेदयिष्यतः छेदयिष्यन्ति क्रि० अच्छेदयिष्यत् अच्छेदयिष्यताम अच्छेदयिष्यन् ।
१८८४. गदण् (गद) गर्जे। गर्जो मेघशब्दः। व० गदयति गदयतः गदयन्ति स० गदयेत् गदयेताम् गदयेयुः प० गदयतु/गदयतात् गदयताम् गदयन्तु ह्य० अगदयत् अगदयताम् अगदयन् अ० अजगदत्
अजगदताम् अजगदन् प० गदयाञ्चकार गदयाञ्चक्रतुः गदयाञ्चक्रुः
गदयाम्बभूव/गदयामास। आ० गद्यात् गद्यास्ताम् गद्यासुः श्व० गदयिता गदयितारौ गदयितारः भ० गदयिष्यति गदयिष्यतः गदयिष्यन्ति क्रि० अगदयिष्यत् अगदयिष्यताम् अगदयिष्यन्
॥अथ धान्तः॥ १८८५. अन्धण् (अन्थ्) दृष्ट्युपसंहारे। ३१८ व० अन्धयति अन्धयतः अन्धयन्ति स० अन्धयेत् अन्धयेताम्
अन्धयेयुः प० अन्धयतु/अन्धयतात् अन्धयताम् अन्धयन्तु ह्य० आन्धयत् आन्धयताम् आन्धयन् अ० आन्दिधत् आन्दिधताम् आन्दिधन्
प० अन्धयाञ्चकार अन्धयाञ्चक्रतुः अन्धयाञ्चक्रुः
अन्धयाम्अभूव/अन्धयामास। आ० अन्ध्यात् अन्ध्यास्ताम् अन्ध्यासुः श्व० अन्धयिता अन्धयितारौ अन्धयितारः भ० अन्धयिष्यति अन्धयिष्यतः अन्धयिष्यन्ति क्रि० आन्धयिष्यत् आन्धयिष्यताम् आन्धयिष्यन्
१८८६. स्तनण् (स्तन्) गर्जे।
ग| मेघशब्दः। ३१९ व० स्तनयति स्तनयतः स्तनयन्ति स० स्तनयेत् स्तनयेताम् स्तनयेयुः प० स्तनयतु/स्तनयतात् स्तनयताम् स्तनयन्तु ह्य० अस्तनयत् अस्तनयताम् अस्तनयन् अ० अतस्तनत् अतस्तनताम् अतस्तनन् प० स्तनयाञ्चकार स्तनयाञ्चक्रतुः स्तनयाञ्चक्रुः
स्तनयाम्बभूव/स्तनयामास। आ० स्तन्यात् स्तन्यास्ताम् स्तन्यासुः श्व० स्तनयिता स्तनयितारौ स्तनयितारः भ० स्तनयिष्यति स्तनयिष्यतः स्तनयिष्यन्ति क्रि० अस्तनयिष्यत् अस्तनयिष्यताम् अस्तनयिष्यन्
१८८७. ध्वनण् (ध्वन्) शब्द। ३२० व० ध्वनयति ध्वनयतः ध्वनयन्ति स. ध्वनयेत् ध्वनयेताम् ध्वनयेयुः प० ध्वनयतु/ध्वनयतात् ध्वनयताम् ध्वनयन्तु ह्य० अध्वनयत् अध्वनयताम् अध्वनयन् अ० अदध्वनत् अदध्वनताम् अदध्वनन् प० ध्वनयाञ्चकार ध्वनयाञ्चक्रतुः ध्वनयाञ्चक्रुः
ध्वनयाम्बभूव/ध्वनयामास। आ० ध्वन्यात् ध्वन्यास्ताम् ध्वन्यासुः श्व० ध्वनयिता ध्वनयिता ध्वनयितार: भ० ध्वनयिष्यति ध्वनयिष्यतः ध्वनयिष्यन्ति क्रि० अध्वनयिष्यत् अध्वनयिष्यताम् अध्वनयिष्यन्
Page #532
--------------------------------------------------------------------------
________________
515
कृपयितारौ
स्तेनयेयुः स्तेनयन्तु
पयत्
चुरादिगण
__ १८८८. स्तेनण् (स्तेन्) चौर्ये। ३२१ व० स्तेनयति स्तेनयतः स्तेनयन्ति स० स्तेनयेत्
स्तेनयेताम् प० स्तेनयतु/स्तेनयतात् स्तेनयताम् ह्य० अस्तेनयत् अस्तेनयताम् अस्तेनयन् अ० अतिस्तेनत् अतिस्तेनताम् अतिस्तेनन् प० स्तेनयाञ्चकार स्तेनयाञ्चक्रतुः स्तेनयाञ्चक्रुः
स्तेनयाम्बभूव/स्तेनयापास। आ० स्तेन्यात् स्तेन्यास्ताम्
स्तेन्यासुः श्व० स्तेनयिता स्तेनयितारौ स्तेनयितारः भ० स्तेनयिष्यति स्तेनयिष्यतः स्तेनयिष्यन्ति क्रि० अस्तेनयिष्यत् अस्तेनयिष्यताम् अस्तेनयिष्यन्
१८८९. ऊनण् (ऊन्) परिहाणे। ३२२ व० ऊनयति ऊनयतः ऊनयन्ति स० ऊनयेत् ऊनयेताम् ऊनयेयुः प० ऊनयतु/ऊनयतात् ऊनयताम् ऊनयन्तु ह्य० औनयत् औनयताम्
औनयन् अ० औनिनत् औनिनताम् प० ऊनयाञ्चकार ऊनयाञ्चक्रतुः ऊनयाञ्चक्रुः
ऊनयाम्बभूव/ऊनयामास। आ० ऊन्यात्
ऊन्यास्ताम् ऊन्यासुः व० ऊनयिता ऊनयितारौ ऊनयितारः भ० ऊनयिष्यति ऊनयिष्यतः ऊनयिष्यन्ति क्रि० औनयिष्यत् औनयिष्यताम् औनयिष्यन्
॥अथ पान्तास्त्रयः।। १८९०. कृपण (कृप) दौर्बल्ये। ३२३ व० कृपयति कृपयतः कृपयन्ति स० कृपयेत् कृपयेताम् कृपयेयुः प० कृपयतु/कृपयतात् कृपयताम् कृपयन्तु ह्य० अकृपयत् अकृपयताम् अकृपयन् अ० अचकृपत् अचकृपताम् अचकृपन् प० कृपयाञ्चकार कृपयाञ्चक्रतुः कृपयाञ्चक्रुः
कृपयाबभूव/कृपयामास। आ० कृप्यात् कृप्यास्ताम् कृप्यासुः श्व० कृपयिता
कृपयितारः भ० कृपयिष्यति कृपयिष्यतः कृपयिष्यन्ति क्रि० अकृपयिष्यत् अकृपयिष्यताम् अकृपयिष्यन्
१८९२. क्षपण (क्षप्) प्रेरणे। ३२५ व० क्षपयति क्षपयतः क्षपयन्ति स० क्षपयेत् क्षपयेताम् क्षपयेयुः प० क्षपयतु/क्षपयतात् क्षपयताम् क्षपयन्तु ह्य० अक्षपयत् अक्षपयताम् अक्षपयन् अ० अचक्षपत् अचक्षपताम् अचक्षपन् प० क्षपयाञ्चकार क्षपयाञ्चक्रतुः क्षपयाञ्चक्रुः
क्षपयाबभूव/क्षपयामास। आ० क्षप्यात् क्षप्यास्ताम् क्षप्यासुः श्व० क्षपयिता क्षपयितारौ क्षपयितार: भ० क्षपयिष्यति क्षपयिष्यतः क्षपयिष्यन्ति क्रि० अक्षपयिष्यत् अक्षपयिष्यताम् अक्षपयिष्यन्
॥अथ भान्तः॥ १८९३. लाभण (लाभ) प्रेरणे। ३२६ व० लाभयति लाभयतः लाभयन्ति स० लाभयेत् लाभयेताम् लाभयेयुः प० लाभयतु/लाभयतात् लाभयताम् लाभयन्तु ह्य० अलाभयत् अलाभयताम् अलाभयन् अ० अललाभत् अललाभताम् अललाभन् प० लाभयाञ्चकार लाभयाञ्चक्रतुः लाभयाञ्चक्रुः
लाभयाम्बभूव/लाभयामास। आ० लाभ्यात् लाभ्यास्ताम् लाभ्यासुः श्व० लाभयिता लाभयितारौ लाभयितार: भ० लाभयिष्यति लाभयिष्यतः लाभयिष्यन्ति क्रि० अलाभयिष्यत् अलाभयिष्यताम् अलाभयिष्यन्
लभणित्यन्य।
औनिनन्
Page #533
--------------------------------------------------------------------------
________________
516
धातुरलाकर प्रथम भाग
॥अथ मान्ताः पञ्च।। १८९४. भामण् (भाम्) क्रोधे। ३२७ व० भामयति भामयतः भामयन्ति स० भामयेत् भामयेताम् भामयेयुः प० भामयतु/भामयतात् भामयताम् भामयन्तु ह्य० अभामयत् अभामयताम् अभामयन् अ० अबभामत् अबभामताम् अबभामन् प० भामयाञ्चकार भामयाञ्चक्रतुः । भामयाञ्चक्रुः
भामयाम्बभूव/भामयामास। आ० भाम्यात् भाम्यास्ताम् भाम्यासुः श्व० भामयिता भामयितारौ भामयितार: भ० भामयिष्यति भामयिष्यतः भामयिष्यन्ति क्रि० अभामयिष्यत् अभामयिष्यताम् अभामयिष्यन्
१८९५. गोमण (गोम्) उपलेपने। ३२८ व० गोमयति गोमयतः गोमयन्ति स० गोमयेत् गोमयेताम् प० गोमयतु/गोमयतात् गोमयताम् ह्य० अगोमयत् अगोमयताम्
अगोमयन् अ० अजुगोमत् अजुगोमताम् अजुगोमन् प० गोमयाञ्चकार गोमयाञ्चक्रतुः
गोमयाञ्चक्रुः गोमयाम्बभूव/गोमयामास। आ० गोम्यात् गोम्यास्ताम् श्व० गोमयिता गोमयितारौ गोमयितार: भ० गोमयिष्यति गोमयिष्यतः गोमयिष्यन्ति क्रि० अगोमयिष्यत् अगोमयिष्यताम् अगोमयिष्यन्
१८९६. सामण (साम्) सान्त्वने।
सान्त्वनं प्रीणनम्। ३२९ व० सामयति सामयतः सामयन्ति स० सामयेत् सामयेताम् सामयेयुः प० सामयतु/सामयतात् सामयताम् सामयन्तु ह्य० असामयत् असामयताम् असामयन् अ० अससामत् अससामताम् अससामन्
गोमयेयुः गोमयन्तु
प० सामयाञ्चकार सामयाञ्चक्रतुः सामयाञ्चक्रुः
सामयाम्बभूव/सामयामास। आ० साम्यात् साम्यास्ताम् साम्यासुः श्व० सामयिता सामयितारौ सामयितारः भ० सामयिष्यति सामयिष्यतः सामयिष्यन्ति क्रि० असामयिष्यत् असामयिष्यताम् असामयिष्यन्
१८९७. श्रामण (श्राम्) आमन्त्रणे। ३३० व० श्रामयति श्रामयत: श्रामयन्ति स० श्रामयेत् श्रामयेताम् श्रामयेयुः प० श्रामयतु/श्रामयतात् श्रामयताम् श्रामयन्तु ह्य० अश्रामयत् अश्रामयताम् अश्रामयन् अ० अशश्रामत् अशश्रामताम् अशश्रामन् प० श्रामयाञ्चकार श्रामयाञ्चक्रतुः श्रामयाञ्चक्रुः
श्रामयाम्बभूव/श्रामयामास। आ० श्राम्यात् श्राम्यास्ताम् श्राम्यासुः श्व० श्रामयिता श्रामयितारौ श्रामयितारः भ० श्रामयिष्यति श्रामयिष्यतः श्रामयिष्यन्ति क्रि० अश्रामयिष्यत् अश्रामयिष्यताम् अश्रामयिष्यन्
१८९८. स्तोमण (स्तोम्) श्लाघायाम्। ३३१ व० स्तोमयति स्तोमयत: स्तोमयन्ति स० स्तोमयेत् स्तोमयेताम् स्तोमयेयुः प० स्तोमयतु/स्तोमयतात् स्तोमयताम् स्तोमयन्तु ह्य० अस्तोमयत् अस्तोमयताम् अस्तोमयन् अ० अतुस्तोमत् अतुस्तोमताम् ____ अतुस्तोमन् प० स्तोमयाञ्चकार स्तोमयाञ्चक्रतुः स्तोमयाञ्चक्रुः
स्तोमयाम्बभूव/स्तोमयामास। आ० स्तोम्यात् स्तोम्यास्ताम् स्तोम्यासुः श्व० स्तोमयिता स्तोमयितारौ स्तोमयितार: भ० स्तोमयिष्यति स्तोमयिष्यतः स्तोमयिष्यन्ति क्रि० अस्तोमयिष्यत् अस्तोमयिष्यताम् अस्तोमयिष्यन्
१६८२. व्ययण (व्यय) क्षये। ११५ व० व्याययति व्याययतः व्याययन्ति | स० व्याययेत् व्याययेताम् व्याययेयुः
गोम्यासुः
Page #534
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
प० व्याययतु/ व्याययतात् व्याययताम्
ह्य० अव्याययत्
अव्याययताम्
अ० अविव्ययत्
अविव्ययताम्
प० व्याययाञ्चकार
व्याययाञ्चक्रतुः
व्याययाम्बभूव/व्यायव्यायास्
आ० व्याय्यात्
श्व० व्याययिता
भ० व्याययिष्यति
क्रि० अव्याययिष्यत्
१९०० सूत्रण (सूत्र) विमोचने । ३३३
विमोचनं मोचनाभावो ग्रन्थनमितियावत् ।
व० सूत्रयति
सूत्रयतः
० सूत् सूत्रयेताम्
प० सूत्रयतु / सूत्रयतात् सूत्रयताम्
ह्य० असूत्रयत्
असूत्रयताम्
अ० असुसूत्रत्
असुसूत्रताम्
प० सूत्रयाञ्चकार सूत्रयाञ्चक्रतुः
सूत्रयाम्बभूव / सूत्रयामास ।
व्याय्यास्ताम्
व्याय्यासुः
व्याययितारौ
व्याययितारः
व्याययिष्यतः
व्याययिष्यन्ति
अव्याययिष्यताम् अव्याययिष्यन् ॥अथ रान्तास्त्रयोदश ।।
व० मूत्रयति
स० मूत्रयेत्
प० मूत्रयतु / मूत्रयतात् मूत्रयताम्
ह्य० अमूत्रयत्
अमूत्रयताम्
अ० अमुमूत्रत्
अमुमूत्रताम्
प० मूत्रयाञ्चकार मूत्रयाञ्चक्रतुः
मूत्रयाम्बभूव / मूत्रयामास ।
आ० मूत्र्यात्
व्याययन्तु
अव्याययन्
अविव्ययन्
व्याययाञ्चक्रुः
आ० सूत्र्यात्
सूत्र्यास्ताम्
सूत्र्यासुः
श्व० सूत्रयिता
सूत्रयितारौ
सूत्रयितार:
भ० सूत्रयिष्यति
सूत्रयिष्यतः
सूत
क्रि० असूत्रयिष्यत् असूत्रयिष्यताम् असूत्रयिष्यन्
१९०१. मूत्रण (मूत्र) प्रस्रवणे । ३३४
मूत्रयतः
मूत्रयेताम्
मूत्र्यास्ताम्
सूत्रयन्ति
सूत्रयेयुः
सूत्रसूतु
असूत्रयन्
असुसूत्रन्
सूत्रयाञ्चक्रुः
मूत्रयन्ति
मूत्रयेयुः
मूत्रमूतु
अमूत्रयन्
अमुमूत्रन्
मूत्रयाञ्चक्रुः
मूत्र्यासुः
श्व० मूत्रयिता
भ० मूत्रयिष्यति
क्रि० अमूत्रयिष्यत्
व० पारयति
० पारयेत्
अमूत्रयिष्यताम्
अमूत्रयिष्यन्
१९०२. पारण् (पार्) कर्मसमाप्तौ । ३३५
प० पारयतु/पारयतात् पारयताम्
ह्य० अपारयत्
अपारयताम्
अ० अपपारत्
अपपारताम्
प० पारयाञ्चकार
पारयाञ्चक्रतुः
आ० पार्यात्
श्व० पारयिता
पारयाम्बभूव / पारयामास ।
भ० पारयिष्यति
क्रि० अपारयिष्यत्
मूत्रयितारौ
मूत्रयिष्यतः
० अतीरयत्
अ० अतितीरत्
प० तीरयाञ्चकार
पारयतः
पारयेताम्
व० तीरयति
तीरयतः
स० तीरयेत्
तीरयेताम्
प० तीरयतु / तीरयतात् तीरयताम्
आ० तीर्यात्
श्व० तीरयिता
भ० तीरयिष्यति
क्रि० अतीरयिष्यत्
पार्यास्ताम्
पारयितारौ
पारयिष्यतः
अपारयिष्यताम् अपारयिष्यन्
१९०३. तीरण् (तीर्) कर्मसमाप्तौ । ३३६
तीरयाम्बभूव/तीरयामास ।
अतीरयताम्
अतितीरताम्
तीरयाञ्चक्रतुः
मूत्रयितार:
मूत्रयिष्यन्ति
तीर्यास्ताम्
तीरयितारौ
तीरयिष्यतः
पारयन्ति
पारयेयुः
पारयन्तु
अपारयन्
अपपारन्
पारयाञ्चक्रुः
व० कत्रयति
कत्रयतः
० त्
कत्रयेताम्
प० कत्रयतु/ कत्रयतात् कत्रयताम्
ह्य० अकत्रयत्
अकत्रयताम्
पार्यासुः
पारयितार:
पारयिष्यन्ति
तीरयन्ति
तीरयेयुः
तीरयन्तु
तीर्यासुः
तीरयितार:
तीरयिष्यन्ति
अतीरयिष्यताम् अतीरयिष्यन्
अतीरयन्
अतितीरन्
तीरयाञ्चक्रुः
१९०४. कत्रण (कत्र्) शैथिल्ये । ३३७
कत्रयन्ति
कत्रयेयुः
कत्रकतु
अकत्रयन्
517
Page #535
--------------------------------------------------------------------------
________________
518
अ० अचकत्रत् अचकत्रताम् अचकत्रन् प० कत्रयाञ्चकार कत्रयाञ्चक्रतुः कत्रयाञ्चक्रुः
कत्रयाम्बभूव/कत्रयामास। आ० कत्र्यात् कत्र्यास्ताम् कत्र्यासुः श्व० कत्रयिता कत्रयितारौ कत्रयितार: भ० कत्रयिष्यति कत्रयिष्यतः कत्रयिष्यन्ति क्रि० अकत्रयिष्यत् अकत्रयिष्यताम् अकत्रयिष्यन्
१९०५. गात्रण (गा) शैथिल्ये। ३३८ व० गात्रयति गात्रयत: गात्रयन्ति स० गात्रयेत् गात्रयेताम् गात्रयेयुः प० गात्रयतु/गात्रयतात् गात्रयताम् ह्य० अगात्रयत् अगात्रयताम् अगात्रयन्
गावगातु
अ० अजगात्रत्
अजगात्रताम्
अजगात्रन्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग चित्रयति आलेख्यं करोति कदाचित्पश्यति वा वैचित्र्यकरणार्थोऽयं न चित्रक्रियार्थ इत्यन्ये।
१९०७. छिद्रण (छिद्र) भेदे। ३४० व० छिद्रयति छिद्रयतः छिद्रयन्ति स० छिद्रयेत् छिद्रयेताम् छिद्रयेयुः प० छिद्रयतु/छिद्रयतात् छिद्रयताम् छिद्रयन्तु ह्य० अच्छिद्रयत्
अच्छिद्रयन् अ० अचिच्छिद्रत् अचिच्छिद्रताम् । अचिच्छिद्रन् प० छिद्रयाञ्चकार छिद्रयाञ्चक्रतुः छिद्रयाञ्चक्रुः
छिद्रयाम्बभूव/छिद्रयामास। आ० छिद्रयात् छिद्र्यास्ताम् छिद्रयासुः श्व० छिद्रयिता छिद्रयितारौ छिद्रयितार: भ० छिद्रयिष्यति छिद्रयिष्यतः छिद्रयिष्यन्ति क्रि० अच्छिद्रयिष्यत् अच्छिद्रयिष्यताम् अच्छिद्रयिष्यन्
१९०८. मिश्रण (मिथ्र) सम्पर्चने।
सम्पर्चनं श्लेषः। ३४१ व० मिश्रयति मिश्रयत:
मिश्रयन्ति स० मिश्रयेत् मिश्रयेताम् मिश्रयेयुः प० मिश्रयतु/मिश्रयतात् मिश्रयताम् मिश्रयन्तु ह्य० अमिश्रयत् अमिश्रयताम् अमिश्रयन् अ० अमिमिश्रत अमिमिश्रताम् अमिमिश्रन् प० मिश्रयाञ्चकार मिश्रयाञ्चक्रतुः
मिश्रयाम्बभूव/मिश्रयामास। आ० मिश्रयात् मिश्रयास्ताम् मियासुः श्व० मिश्रयिता मिश्रयितारौ मिश्रयितारः भ० मिश्रयिष्यति मिश्रयिष्यतः मिश्रयिष्यन्ति क्रि० अमिश्रयिष्यत् अमिश्रयिष्यताम् अमिश्रयिष्यन्
१९०९. वरण (वर) ईप्सायाम्। ३४२ व० वरयति वरयत: वरयन्ति स० वरयेत् वरयेताम् प० वरयतु/वरयतात् वरयताम् वरयन्तु ह्य० अवरयत् अवरयताम् अवरयन
प० गात्रयाञ्चकार गात्रयाञ्चक्रतुः गात्रयाञ्चक्रुः
गात्रयाम्बभूव/गात्रयामास। आ० गात्र्यात्
गात्र्यास्ताम्
गात्र्यासुः श्व० गात्रयिता गात्रयितारौ गात्रयितारः भ० गात्रयिष्यति गात्रयिष्यतः गात्रयिष्यन्ति क्रि० अगायिष्यत् अगात्रयिष्यताम् अगात्रयिष्यन् १९०६. चित्रण (चित्र) चित्रक्रियाकदाचिदृष्ट्योः। ३३९ व० चित्रयति चित्रयत: चित्रयन्ति स० चित्रयेत् चित्रयेताम्
चित्रयेयुः प० चित्रयतु/चित्रयतात् चित्रयताम् चित्रचितु ह्य० अचित्रयत् अचित्रयताम् अचित्रयन् अ० अचिचित्रत् अचिचित्रताम् अचिचित्रन प० चित्रयाञ्चकार चित्रयाञ्चक्रतुः
चित्रयाञ्चक्रुः चित्रयाम्बभूव/चित्रयामास) आ० चित्र्यात् चित्र्यास्ताम्
चित्र्यासुः २० चित्रयिता चित्रयितारौ चित्रयितारः भ० चित्रयिष्यति चित्रयिष्यतः चित्रयिष्यन्ति क्रि० अचित्रयिष्यत् अचित्रयिष्यताम् अचित्रयिष्यन्
मिश्रयाञ्चक्रुः
वरयेयुः
Page #536
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
519
वर्यासुः
अ० अववरत् अववरताम् अववरन् प० वरयाञ्चकार वरयाञ्चक्रतुः वरयाञ्चक्रुः
वरयाम्बभूव/वरयामास। आ० वर्यात् वर्यास्ताम् श्व० वरयिता वरयितारौ वरयितारः भ० वरयिष्यति वरयिष्यतः वरयिष्यन्ति क्रि० अवरयिष्यत् अवरयिष्यताम् अवरयिष्यन्
१९१०. स्वरण (स्वर) आक्षेपे। ३४३ व० स्वरयति स्वरयत: स्वरयन्ति स० स्वरयेत् स्वरयेताम् स्वरयेयुः प० स्वरयतु/स्वरयतात् स्वरयताम् स्वरयन्तु ह्य० अस्वरयत् अस्वरयताम् अस्वरयन् अ० असस्वरत् असस्वरताम् असस्वरन् प० स्वरयाञ्चकार स्वरयाञ्चक्रतुः स्वरयाञ्चक्रुः
स्वरयाम्बभूव/स्वरयामास। आ० स्वर्यात् स्वर्यास्ताम् स्वर्यासुः श्व० स्वरयिता स्वरयितारौ स्वरयितारः भ० स्वरयिष्यति स्वरयिष्यतः स्वरयिष्यन्ति क्रि० अस्वरयिष्यत् अस्वरयिष्यताम् अस्वरयिष्यन्
१९११. शारण (शार्) दौर्बल्ये। ३४४ व० शारयति शारयतः शारयन्ति स० शारयेत् शारयेताम् शारयेयुः प० शारयतु/शारयतात् शारयताम्
शारयन्तु ह्य० अशारयत् अशारयताम् अशारयन् अ० अशशारत् अशशारताम् अशशारन् प० शारयाञ्चकार शारयाञ्चक्रतुः शारयाञ्चक्रुः
शारयाम्बभूव/शारयामास। आ० शार्यात् शार्यास्ताम् शार्यासुः श्व० शारयिता शारयितारौ शारयितार: भ० शारयिष्यति शारयिष्यतः शारयिष्यन्ति क्रि० अशारयिष्यत् अशारयिष्यताम् अशारयिष्यन्
शरेत्येके
१९१२. कुमारण् (कुमार) क्रीडायाम्। ३४५ व० कुमारयति कुमारयत: कुमारयन्ति स० कुमारयेत् कुमारयेताम् कुमारयेयुः प० कुमारयतु/कुमारयतात् कुमारयताम् कुमारयन्तु ह्य० अकुमारयत् अकुमारयताम् अकुमारयन् अ० अचुकुमारत् अचुकुमारताम् अचुकुमारन् प० कुमारयाञ्चकार कुमारयाञ्चक्रतुः कुमारयाञ्चक्रुः
कुमारयाम्बभूव/कुमारयामास। आ० कुमार्यात् कुमार्यास्ताम् कुमार्यासुः श्व० कुमारयिता कुमारयितारौ कुमारयितार: भ० कुमारयिष्यति कुमारयिष्यतः कुमारयिष्यन्ति क्रि० अकुमारयिष्यत् अकुमारयिष्यताम् अकुमारयिष्यन्
लान्तोऽय मित्येके।
॥अथ लान्ताः पञ्च॥ १९१३. कलण् (कल्) सङ्ख्यानगत्योः। ३४६ व० कलयति कलयतः कलयन्ति स० कलयेत् कलयेताम् कलयेयुः प० कलयतु/कलयतात् कलयताम् कलयन्तु ह्य० अकलयत् अकलयताम् अकलयन् अ० अचकलत् . अचकलताम् अचकलन् प० कलयाञ्चकार कलयाञ्चक्रतुः कलयाञ्चक्रुः
कलयाम्बभूव/कलयामास। आ० कल्यात् कल्यास्ताम् कल्यासुः श्व० कलयिता कलयितारौ कलयितारः भ० कलयिष्यति कलयिष्यतः कलयिष्यन्ति क्रि० अकलयिष्यत् अकलयिष्यताम् अकलयिष्यन्
क्षेपे तु; कालयति गाः। | १९१४. शीलण (शील्) उपधारणे। उपधारणमभ्यासः
परिचयो वा। ३४७ व० शीलयति शीलयतः शीलयन्ति स० शीलयेत् शीलयेताम् शीलयेयुः प० शीलयतु/शीलयतात् शीलयताम् शीलयन्तु
कलाम
Page #537
--------------------------------------------------------------------------
________________
520
वेलयेयुः वेलयन्तु
ह्य० अशीलयत् अशीलयताम् अशीलयन् अ० अशिशीलत् अशिशीलताम् अशिशीलन् प० शीलयाञ्चकार शीलयाञ्चक्रतुः शीलयाञ्चक्रुः
शीलयाम्बभूव/शीलयामास। आ० शील्यात् शील्यास्ताम् शील्यासुः श्व० शीलयिता शीलयितारौ शीलयितारः भ० शीलयिष्यति शीलयिष्यतः शीलयिष्यन्ति क्रि० अशीलयिष्यत् अशीलयिष्यताम अशीलयिष्यन्
१९१५. वेलण् (वेल्) उपदेशे। ३४८ व० वेलयति वेलयत: वेलयन्ति स० वेलयेत् वेलयेताम् प० वेलयतु/वेलयतात् वेलयताम् ह्य० अवेलयत् अवेलयताम्
अवेलयन् अ० अविवेलत् अविवेलताम् अविवेलन् प० वेलयाञ्चकार वेलयाञ्चक्रतुः वेलयाञ्चक्रुः ___वेलयाम्बभूव/वेलयामास। आ० वेल्यात् वेल्यास्ताम्
वेल्यासुः श्व० वेलयिता वेलयितारौ वेलयितारः भ० वेलयिष्यति वेलयिष्यतः वेलयिष्यन्ति क्रि० अवेलयिष्यत् अवेलयिष्यताम् अवेलयिष्यन्
वेलण् कालोपदेशे इत्येके। १९१६. कालण् (काल्) उपदेशे। ३४९ व० कालयति कालयतः कालयन्ति स० कालयेत् कालयेताम् कालयेयुः प० कालयतु/कालयतात् कालयताम् कालयन्तु ह्य० अकालयत् अकालयताम् अकालयन् अ० अचकालत् अचकालताम् अचकालन् प० कालयाञ्चकार कालयाञ्चक्रतुः कालयाञ्चक्रुः
कालयाम्बभूव/कालयामास। आ० काल्यात् काल्यास्ताम् काल्यासुः श्व० कालयिता कालयितारौ कालयितार: भ० कालयिष्यति कालयिष्यतः कालयिष्यन्ति क्रि० अकालयिष्यत् अकालयिष्यताम् अकालयिष्यन्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग १९१७. पल्यूलण् (पल्यूल्) लवनपवनयोः। ३५० व० पल्यूलयति पल्यूलयत: पल्यूलयन्ति स० पल्यूलयेत् पल्यूलयेताम् पल्यूलयेयुः प० पल्यूलयतु/तात् पल्यूलयताम् पल्यूलयन्तु ह्य० अपल्यूलयत् अपल्यूलयताम् अपल्यूलयन् अ० अपपल्यूलत् अपपल्यूलताम् अपपल्यूलन् प० पल्यूलयाञ्चकार पल्यूलयाञ्चक्रतुः पल्यूलयाञ्चक्रुः
पल्यूलयाम्बभूव/पल्यूलयामास। आ० पल्यूल्यात् पल्यूल्यास्ताम् पल्यूल्यासुः श्व० पल्यूलयिता पल्यूलयितारौ पल्यूलयितारः भ० पल्यूलयिष्यति पल्यूलयिष्यतः पल्यूलयिष्यन्ति क्रि० अपल्यूलयिष्यत् अपल्यूलयिष्यताम् अपल्यूलयिष्यन्
वल्यूलेत्यन्ये; पल्यूलयति क्षेत्रं सबुसधान्यं वा १९१८. अंशण (अंश) समाधाने।
समाधानो विभाजनम्। ३५१ व० अंशयति अंशयतः अंशयन्ति स० अंशयेत् अंशयेताम् अंशयेयुः प० अंशयतु/अंशयतात् अंशयताम् अंशयन्तु ह्य० आंशयत् आंशयताम् आंशयन् अ० आंशिशत्
आंशिशताम् आंशिशन् प० अंशयाञ्चकार अंशयाञ्चक्रतुः अंशयाञ्चक्रुः
अंशयाम्बभूव/अंशयामास। आ० अंश्यात्
अंश्यास्ताम्
अंश्यासुः श्व० अंशयिता अंशयितारौ अंशयितारः भ० अंशयिष्यति अंशयिष्यतः अंशयिष्यन्ति क्रि० आंशयिष्यत् आंशयिष्यताम् आंशयिष्यन्
॥अथ षान्तास्त्रयः॥ १९१९. पषण (पष्) अनुपसर्गः पष इत्ययं।
धातुरनुपसर्गोऽदन्तो णिचमुत्पादयति। ३५२ व० पषयति पषयतः पषयन्ति स० पषयेत् पषयेताम् पषयेयुः प० पषयतु/पषयतात् पषयताम्
पषयन्तु
Page #538
--------------------------------------------------------------------------
________________
द
हा० अपषयत्
अ० अपपषत्
प० पषयाञ्चकार
पषयाम्बभूव / पत्रयामास ।
आ० पष्यात् श्व० पषयिता
भ० पषयिष्यति
क्रि० अपयिष्यत्
अपषयताम्
अपपषताम्
पषयाञ्चक्रतुः
व० गवेषयति
गवेषयतः
० गवेषयेत्
गवेषयेताम्
प० गवेषयतु / गवेषयतात् गवेषयताम्
० अगवेषयत् अगवेषयताम्
अ० अजगवेषत्
अजवेषाम्
प० गवेषयाञ्चकार
गवेषयाञ्चक्रतुः
पष्यास्ताम्
पयितारौ
पषयिष्यतः
अप
१९२०. गवेषण् (गवेष्) मार्गणे । ३५३
गवेषयाम्बभूव/ गवेषयामास ।
आ० गवेष्यात्
गवेष्यास्ताम्
श्र० गवेषयिता गवेषयितारौ
गवेषयिष्यतः
भ० गवेषयिष्यति
क्रि० अगवेषयिष्यत्
व० मृषयति
मृषयतः
स० मृषयेत्
मृषयेताम्
प० मृषयतु / मृषयतात् मृषयताम्
ह्य० अमृषयत्
अमृषयताम्
अ० अममृषत्
अममृषताम्
मृ० मृषयाञ्चकार
मृषयाञ्चक्रतुः
आ० मृष्यात्
श्व० मृषयिता
भ० मृषयिष्यति क्रि० अमृषयिष्यत्
गवेष्यासुः
गवेषयितार:
गवेषयिष्यन्ति
अगवेषयिष्यताम् अगवेषयिष्यन्
१९२१. मृषण् (मृष्) क्षान्तौ । क्षान्तिस्तितिक्षा । ३५४
मृषयाम्बभूव / मृषयामास ।
अपषयन्
अपपषन्
पषयाञ्चक्रुः
पष्यासुः
पषयितार:
पषयिष्यन्ति
अपषयिष्यन्
मृष्यास्ताम्
मृषति
मृषयिष्यतः
गवेषयन्ति
गवेषयेयुः
गवेषयन्तु
अगवेषयन्
अजगवेषन्
गवेषयाञ्चक्रुः
मृषयन्ति
मृषयेयुः
मृषयन्तु
अमृषयन्
अममृषन्
मृषयाञ्चक्रुः
मृष्यासुः
मृषयितार:
मृषयिष्यन्ति
मृषयिष्याम् अमृषयिष्यन्
णिचोऽनित्यत्वाद् मृषति ।
॥ अथ सान्तास्त्रयः ॥
१९२२. रसण् (रस्) आस्वादनस्नेहनयोः । ३५५
व० रसयति
स० रसयेत्
रसयत:
रसताम्
प० रसयतु/रसयतात् रसयताम्
ह्य० अरसयत्
अरसयताम्
अ० अररसत्
अररसताम्
प० रसयाञ्चकार
रसयाञ्चक्रतुः
रसयाम्बभूव / रसयामास ।
आ० रस्यात्
श्व० रसयिता
भ० रसयिष्यति
क्रि० अरसयिष्यत्
व० वासयति
स० वासयेत्
प० वासयतु / वासयतात् वासयताम्
ह्य० अवासयत्
अवासयताम्
अ० अववासत्
अववासताम्
प० वासयाञ्चकार
वासयाञ्चक्रतुः
रस्यास्ताम्
रसयितारौ
रसयिष्यतः
आ० वास्यात्
श्व० वासयिता
अरसयिष्यताम् अरसयिष्यन्
१९२३. वासण् (वास्) उपसेवायाम्। ३५६
वासयाम्बभूव/ वासयामास ।
भ० वासयिष्यति
क्रि० अवासयिष्यत्
वासयतः
वासयेताम्
वास्यास्ताम्
वासयितारौ
वासयिष्यतः
रसयन्ति
रसयेयुः
व० निवासयति निवासयत :
स० [निवासयेत्
प० निवासयतु/तात्
ह्य० अनिवासयत् अ० अनिनिवासत्
रसयन्तु
अरसयन्
अररसन्
रसयाञ्चक्रुः
रस्यासुः
रसयितारः
रसयिष्यन्ति
वास्यासुः
वासयितार:
वासयिष्यन्ति
अवासयिष्यताम् अवासयिष्यन्
१९२४. निवासण् (निवास) आच्छादने। ३५७
निवासयेताम्
निवासयताम्
वासयन्ति
वासयेयुः
वासयन्तु
अवासयन्
अववासन्
वासयाञ्चक्रुः
521
निवासयन्ति
निवासयेयुः
स
अनिवासयताम् अनिवासयन् अनिनिवासताम्
अनिनिवासन्
Page #539
--------------------------------------------------------------------------
________________
522
प० निवासयाञ्चकार निवासयाञ्चक्रतुः निवासयाम्बभूव/निवासयामास । निवास्यास्ताम्
० निवास्यात्
श्व० निवासयिता निवासयितारौ
निवासयिष्यतः
निवास्यासुः
निवासयितारः
निवासयिष्यन्ति
भ० निवासयिष्यति क्रि० अनिवासयिष्यत् अनिवासयिष्यताम् अनिवासयिष्यन्
॥ अथ हान्ताः ॥
१९२५. चहण् (चह्) कल्कने ।
कल्कनं दम्भः । ३५८
व० चहयति
स० चहयेत्
प० चहयतु / चहयतात् चहयताम्
ह्य० अचहयत्
अचहयताम्
अ० अचचहत्
अचचहताम्
प० चहयाञ्चकार चहयाञ्चक्रतुः
चहयाम्बभूव/चहयामास ।
आ० चह्यात्
श्व० चहयिता
भ० चहयिष्यति
क्रि० अचहयिष्यत्
चहयतः
चहयेताम्
व० महयति
स० महयेत्
प० महयतु / महयतात् महयताम्
ह्य० अमहयत्
अमहयताम्
अ० अममहत्
अममहताम्
प० महयाञ्चकार महयाञ्चक्रतुः
महयाम्बभूव/महयामास ।
आ० मह्यात्
श्व० महयिता
भ० महयिष्यति
क्रि० अमहयिष्यत्
चह्यास्ताम्
चहयितारौ
चहयिष्यतः
अहयिष्याम्
१९२६. महणू (मह) पूजायाम्। ३५९
महयन्ति
महयेयुः
महयन्तु
अमहयन्
निवासयाञ्चक्रुः
महयतः
महयेताम्
चयन्ति
चहयेयुः
चहयन्तु
अचहयन्
अचचहन्
चहयाञ्चक्रुः
चह्यासुः
चहयितार:
चहयिष्यन्ति
अचहयिष्यन्
अममहन्
महयाञ्चक्रुः
मह्यास्ताम्
मह्यासुः
महयितारौ
महयितार:
महयिष्यन्ति
महयिष्यतः अमहयिष्यताम् अमहयिष्यन्
व० रहयति
स० रह
प० रहयतु / रहयतात् रहयताम्
ह्य० अरहयत्
अरहयताम्
अ० अररहत्
अररहताम्
प० रहयाञ्चकार रहयाञ्चक्रतुः
रहयाम्बभूव/रहयामास ।
आ० रह्यात्
श्व० रहयिता
१९२७. रहण् (रह्) त्यागे । ३९०
भ० रहयिष्यति
क्रि० अरहरिष्यत्
रहयत:
रहयेताम्
रह्यास्ताम्
रहयितारौ
रहयिष्यतः
व० रंहयति
रहयतः
सरंहयेत्
रंहयेताम्
प० रंहयतु / रंहयतात् रंहयताम्
ह्य० अरंहयत्
अरंहयताम्
अ० अररंहत्
अररंहताम्
प० रंहयाञ्चकार
रंहयाञ्चक्रतुः
रह्यासुः
रहयितार:
रहयिष्यन्ति
अहयिष्यताम् अरहयिष्यन्
हयाम्बभूव / रंहयामास ।
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
१९२८. रहुण् (रंह्) गतौ । ३६१
रंह्यास्ताम्
हयितारौ
हयिष्यतः
रहयन्ति
रहयेयुः
व० स्पृहयति
स्पृहयतः
० स्पृहयेत्
स्पृहयेताम्
प० स्पृहयतु / स्पृहयतात् स्पृहयताम्
ह्य० अस्पृहयत्
अस्पृहयताम्
अ० अपस्पृहत्
अपस्पृहताम्
प० स्पृहयाञ्चकार
स्पृहयाञ्चक्रतुः
स्पृहयाम्बभूव / स्पृहयामास ।
रहयन्तु
अरहयन्
अररहन्
रहयाञ्चक्रुः
रहयन्ति
रंहयेयुः
रहयन्तु
ह्य
श्व० रंहयिता
भ० रंहयिष्यति
हयिष्यन्ति
क्रि० अरंहयिष्यत् अहयिष्यताम् अरंहयिष्यन्
१९२९. स्पृहण् (स्पृह्) ईप्सायाम् । ३६२
अरंहयन्
अररहन्
रंहयाञ्चक्रुः
रंह्यासुः
रंहयितार:
स्पृहयन्ति
स्पृहयेयुः
स्पृहयन्तु
अस्पृहयन्
अपस्पृहन्
स्पृहयाञ्चक्रुः
Page #540
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
523
आ० स्पृह्यात् स्पृह्यास्ताम्
स्पृह्यासुः श्व० स्पृहयिता स्पृहयितारौ स्पृहयितारः भ० स्पृहयिष्यति स्पृहयिष्यतः स्पृहयिष्यन्ति क्रि० अस्पृहयिष्यत् अस्पृहयिष्यताम् अस्पृहयिष्यन्
॥अथ क्षान्तः। १९३०. स्क्षण (रुक्ष्) पारुष्ये। ३६३ व० रुक्षयति रुक्षयतः रुक्षयन्ति स० रुक्षयेत् रुक्षयेताम् रुक्षयेयुः प० रुक्षयतु/रुक्षयतात् रुक्षयताम् रुक्षयन्तु ह्य० अरुक्षयत् अरुक्षयताम् अरुक्षयन् अ० अरुरुक्षत् अरुरुक्षताम् अरुरुक्षन् प० रुक्षयाञ्चकार रुक्षयाञ्चक्रतुः ।
रुक्षयाञ्चक्रुः रुक्षयाम्बभूव/रुक्षयामास। आ० रुक्ष्यात् रुक्ष्यास्ताम् रुक्ष्यासुः श्व० रुक्षयिता रुक्षयितारौ रुक्षयितारः रु० रुक्षयिष्यति रुक्षयिष्यतः रुक्षयिष्यन्ति क्रि० अरुक्षयिष्यत् अरुक्षयिष्यताम् अरुक्षयिष्यन्
॥इत्यदन्ताः परस्मैपदिनः।। अथादन्तेष्वेव कुहणिमभिव्याप्यात्मने पदिनः। तत्र गान्तः
१९३१. मृग णि (मृग्) अन्वेषणे। ३६४ व० मृगयते
मृगयन्ते स० मृगयेत मृगयेयाताम् मृगयेरन् प० मृगयताम् मृगयेताम् मृगयन्ताम् ह्य० अमृगयत अमृगयेताम् अमृगयन्त अ० अमगत अममृगेताम् अममृगन्त प० मृगयाञ्चक्रे मृगयाञ्चक्राते मृगयाञ्चक्रिरे
मृगयाम्बभूव/मृगयामास। आ० मृगयिषीष्ट मृगयिषीयास्ताम् मृगयिषीरन् व० मृगयिता मृगयितारौ मृगयितारः भ० मृगयिष्यते
मृगयिष्येते
मृगयिष्यन्ते क्रि० अमृगयिष्यत अमृगयिष्येताम् अमृगयिष्यन्त
॥अथ थान्तः॥ १९३२. अर्थणि (अर्थ) उपयाचने। ३६५ व० अर्थयते अर्थयेते अर्थयन्ते स० अर्थयेत अर्थयेयाताम् अर्थयेरन् प० अर्थयताम् अर्थयेताम् अर्थयन्ताम् ह्य० आर्थयत आर्थयेताम् आर्थयन्त अ० आर्तिथत आतिथेताम् आर्तियन्त प० अर्थयाञ्चक्रे अर्थयाञ्चक्राते अर्थयाञ्चक्रिरे
अर्थयाम्बभूव/अर्थयामास। आ० अर्थयिषीष्ट अर्थयिषीयास्ताम् अर्थयिषीरन् श्व० अर्थयिता अर्थयितारौ अर्थयितारः भ० अर्थयिष्यते अर्थयिष्येते अर्थयिष्यन्ते क्रि० आर्थयिष्यत आर्थयिष्येताम् आर्थयिष्यन्त
॥अथ दान्तः। १९३३. पदणि (पद्) गतौ। ३६६ व० पदयते पदयेते
पदयन्ते स० पदयेत पदयेयाताम् पदयेरन् प० पदयताम् पदयेताम् पदयन्ताम् ह्य० अपदयत अपदयेताम् अपदयन्त अ० अपपदत अपपदेताम् अपपदन्त प० पदयाञ्चके पदयाञ्चक्राते पदयाञ्चक्रिरे
पदयाम्बभूव/पदयामास। आ० पदयिषीष्ट
पदायर्षायास्ताम् पदयिषीरन श्व० पदयिता पदयितारौ पदयितारः भ० पदयिष्यते पदयिष्येते पदयिष्यन्ते क्रि० अपदयिष्यत अपदयिष्येताम् अपदयिष्यन्त
॥अथ मान्ताः । १९३४. संग्रामणि (संग्राम्) युद्धे। ३६७ व० संग्रामयते संग्रामयेते संग्रामयन्ते स० संग्रामयेत संग्रामयेयाताम् संग्रामयेरन् प० संग्रामयताम् संग्रामयेताम् संग्रामयन्ताम् ह्य० असंग्रामयत असंग्रामयेताम् असंग्रामयन्त
२
मृगयेते
Page #541
--------------------------------------------------------------------------
________________
524
अ० अससंग्रामत अससंग्रामेताम् अससंग्रामन्त
प० संग्रामयाञ्चक्रे संग्रामयाञ्चक्राते
संग्रामयाञ्चक्रिरे
संग्रामयाम्बभूव / संग्रामयामास ।
आ० संग्रामयिषीष्ट
संग्रामयिषीयास्ताम् संग्रामयिषीरन्
श्व० संग्रामयिता
संग्रामयितारः
भ० संग्रामयिष्यते
संग्रामयिष्यन्ते
क्रि० असंग्रामयिष्यत असंग्रामयिष्येताम् असंग्रामयिष्यन्त
१९३५. शूरणि (शूर्) विक्रान्तौ । ३६८
शूरयेते
शूरयन्ते
शूरयेरन्
शूरयन्ताम्
अशूरयन्त
अशुशूरन्त
शूरयाञ्चक्रिरे
व० शूरयते
स० शूरयेत
प० शूरयताम्
ह्य० अशूरयत
अ० अशुशूरत
प० शूरयाञ्चक्रे
शूरयाम्बभूव / शूरयामास ।
व० वीरयते
स० वीरयेत
प० वीरयताम्
ह्य० अवीरयत
संग्रामयितारौ
संग्रामयिष्येते
आ० शूरयिषीष्ट
व० शूरयिता
भ० शूरयिष्यते
क्रि० अशूरयिष्यत शूरयिष्येताम्
अ० अविवीरत
प० वीरयाञ्चक्रे
शूरयेताम्
शूरयेताम्
अशुशूरेताम्
शूरयाञ्च
आ० वीरयिषीष्ट
श्व० वीरयिता
भ० वीरयिष्यते
क्रि० अवीरयिष्यत
१९३६. वीरणि (वीर्) विक्रान्तौ । ३६९
वीरयेते
वीरयन्ते
वीरयेयाताम्
वीरयेरन्
वीरयेताम्
वीरयन्ताम्
अवीरयेताम्
अवीरयन्त
अविवीरेताम्
अविवीरन्त
वीरयाञ्चक्राते
वीरयाञ्चक्रिरे
शूरयिषीयास्ताम्
शूरयितारौ
शूरयिष्येते
वीयाम्बभूव / वरयामास ।
शूरयिषीरन्
शूरयितार:
शूरयिष्यन्ते
अशूरयिष्यन्त
वीरयिषीयास्ताम् वीरयिषीरन्
वीरयितारौ
वीरयितार:
वीरयिष्येते
वीरयिष्यन्ते
अवीरयिष्येताम्
अवीरयिष्यन्त
व० सत्रयते
स० सत्रयेत
प० सत्रयताम्
ह्य० असत्रयत
अ० अससत्रत
प० सत्रयाञ्चक्रे
१९३७. सत्रणि (सत्र) संदानक्रियायाम् । ३७०
सत्रयेते
सत्रयन्ते
साम्
सत्रयेरन्
सम्
सत्रयन्ताम्
असताम्
असत्रयन्त
अससत्रेताम् अससत्रन्त
सत्रयाञ्चक्राते सत्रयाञ्चक्रिरे
सत्रयाम्बभूव/ सत्रयामास।
आ० सत्रयिषीष्ट
श्व० सत्रयिता
भ० सत्रयिष्यते
क्रि० असत्रयिष्यत
व० स्थूलते
० स्थूलत
प० स्थूलयताम्
ह्य० अस्थूलयत
अ० अतूस्थूलत
प० स्थूलयाञ्चक्रे
असत्रयिष्येताम् ॥ अथ लान्तः ॥
१९३८. स्थूलणि (स्थूल) परिबृंहणे ।
परिबृंहणं पीनत्वम् । ३७१
आ० स्थूलयिषीष्ट
श्व० स्थूलयिता
भ० स्थूलयिष्यते
क्रि० अस्थूलयिष्यत
सत्रयिषीयास्ताम् सत्रयिषीरन्
सत्रयितार:
सत्रयिष्यन्ते
असत्रयिष्यन्त
सत्रयितारौ
सत्रयिष्येते
स्थूलयाम्बभूव / स्थूलयामास ।
व० गर्वयते
स० गर्वयेत
प० गर्वयताम्
० अगर्वयत
स्थूल
स्थूलताम्
स्थूलताम्
अस्थूलताम्
अस्थूलताम्
स्थूलयाञ्चक्राते
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
स्थूलयिषीयास्ताम् स्थूलयिषीरन्
स्थूलयितारः स्थूलयिष्यन्ते
अस्थूलयिष्येताम् अस्थूलयिष्यन्त
॥ अथ वान्तः ॥
१९३९. गर्वणि (गर्व्) माने। ३७२
गर्वयेते
गर्वयन्ते
गर्वयेरन्
गर्वयन्ताम्
अगर्वयन्त
स्थूलयितारौ
स्थूलयिष्येते
गर्वयेयाताम्
गर्वताम्
अगर्वताम्
स्थूल
स्थूलयेरन्
स्थूलयन्ताम्
अस्थूलयन्त
अतूस्थूलन्त
स्थूलयाञ्चक्रिरे
Page #542
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
525
योजयेयुः
योज्यासुः
अ० अजगर्वत अजगर्वेताम् अजगर्वन्त प० गर्वयाञ्चके गर्वयाञ्चक्राते गर्वयाञ्चक्रिरे
गर्वयाम्बभूव/गर्वयामास। आ० गर्वयिषीष्ट गर्वयिषीयास्ताम् गर्वयिषीरन् श्व० गर्वयिता गर्वयितारौ गर्वयितार: भ० गर्वयिष्यते गर्वयिष्येते गर्वयिष्यन्ते क्रि० अगर्वयिष्यत अगर्वयिष्येताम् अगर्वयिष्यन्त
॥अथ हान्ता।। १९४०. गृहणि (गृह) ग्रहणे। ३७३ व० गृहयते गृहयेते गृहयन्ते स० गृहयेत गृहयेयाताम् गृहयेरन् प० गृहयताम् गृहयेताम् गृहयन्ताम् ह्य० अगृहयत अगृहयेताम् अगृहयन्त अ० अजगृहत अजगृहेताम् अजगृहन्त प० गृहयाञ्चक्रे गृहयाञ्चक्राते गृहयाञ्चक्रिरे
गृहयाम्बभूव/गृहयामास। आ० गृहायेषीष्ट गृहयिषीयास्ताम् गृहयिषीरन् श्व० गृहयिता
गृहयितारौ
गृहयितारः भ० गृहयिष्यते
गृहयिष्येते
गृहयिष्यन्ते क्रि० अगृहयिष्यत अगृहयिष्येताम् अगृहयिष्यन्त
१९४१. कुहणि (कुह) विस्मापने। ३७४ व० कुहयते कुहयेते कुहयन्ते स० कुहयेत कुहयेयाताम् कुहयेरन् प० कुहयताम् कुहयेताम् कुहयन्ताम् ह्य० अकुहयत अकुहयेताम् अकुहयन्त अ० अचुकुहत अचुकुहेताम् अचुकुहन्त प० कुहयाञ्चक्रे कुहयाञ्चक्राते कुहयाञ्चक्रिरे
कुहयाम्बभूव/कुहयामास। आ० कुहयिषीष्ट कुहयिषीयास्ताम् कुहयिषीरन् १० कुहयिता कुहयितारौ कुहयितारः भ० कुहयिष्यते कुहयिष्येते कुहयिष्यन्ते क्रि० अकुहयिष्यत अकुहयिष्येताम् अकुहयिष्यन्त
अथ विकल्पितणिचो युजादयः।
१९४२. युजण् (युज्) सम्पर्चने। ३७५ व० योजयति योजयतः
योजयन्ति स० योजयेत् योजयेताम् प० योजयतु/योजयतात् योजयताम् योजयन्तु ह्य० अयोजयत् अयोजयताम्
अयोजयन् अ० अयूयुजत् अयूयुजताम् अयूयुजन् प० योजयाञ्चकार योजयाञ्चक्रतुः: योजयाञ्चक्रुः
योजयाम्बभूव/योजयामास। आ० योज्यात् योज्यास्ताम् श्व० योजयिता योजयितारौ योजयितार: भ० योजयिष्यति योजयिष्यतः योजयिष्यन्ति क्रि० अयोजयिष्यत् अयोजयिष्यताम् अयोजयिष्यन्
पक्षे न्याविकरणः शव्। व० योजति योजतः योजन्ति स० योजेत्
योजेताम् प० योजतु/योजतात् योजताम् ह्य० अयोजत् अयोजताम् अयोजन् अ० अयोजीत् अयोजिष्टाम्
अयोजिषुः प० युयोज युयुजतुः
युयुजुः आ० युज्यात् युज्यास्ताम् युज्यासुः श्व० योजिता योजितारौ योजितारः भ० योजिष्यति योजिष्यतः योजिष्यन्ति क्रि० अयोजिष्यत् अयोजिष्यताम् अयोजिष्यन् इह युजादीनां नियतो णिज्विकल्पश्चरादीनां तु यथादर्शनं
णिजनित्य इत्युक्तमेव।
॥अथेदन्तास्त्रयः॥ १९४३. लीण् (ली) द्रवीकरणे। ३७६ व० लीनयति लीनयतः लीनयन्ति स० लीनयेत् लीनयेताम् लीनयेयुः प० लीनयतु/लीनयतात् लीनयताम्
लीनयन्तु ह्य० अलीनयत् अलीनयताम् अलीनयन्
योजेयुः योजन्तु
पाचक
Page #543
--------------------------------------------------------------------------
________________
526
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
माययन्तु अमाययन् अमीमयन् माययाञ्चक्रुः
अ० अलीलनत् अलीलनताम् अलीलनन् प० लीनयाञ्चकार लीनयाञ्चक्रतुः लीनयाञ्चक्रुः
लीनयाम्बभूव/लीनयामास। आ० लान्यात् लान्यास्ताम् लान्यासुः श्व० लीनयिता लीनयितारौ लीनयितार: भ० लीनयिष्यति लीनयिष्यतः लीनयिष्यन्ति क्रि० अलीनयिष्यत् अलीनयिष्यताम् अलीनयिष्यन् व० लाययति लाययत: लाययन्ति स० लाययेत् लाययेताम् लाययेयुः प० लाययतु/लाययतात् लाययताम् लाययन्तु ह्य० अलाययत् अलाययताम् अलाययन् अ० अलीलयत् अलीलयताम् अलीलयन् प० लाययाञ्चकार लाययाञ्चक्रतुः लाययाञ्चक्रुः
लाययाम्बभूव/लाययामास। आ० लाय्यात् लाय्यास्ताम् लाय्यासुः श्व० लाययिता लाययितारौ लाययितारः भ० लाययिष्यति लाययिष्यतः लाययिष्यन्ति क्रि० अलाययिष्यत् अलाययिष्यताम् अलाययिष्यन्
णिजभावे॥
प० माययतु/माययतात् माययताम् ह्य० अमाययत् अमाययताम् अ० अमीमयत् अमीमयताम् प० माययाञ्चकार माययाञ्चक्रतुः
माययाम्बभूव/माययामास। आ० माय्यात् माय्यास्ताम् श्व० माययिता माययितारौ भ० माययिष्यति माययिष्यतः क्रि० अमाययिष्यत् अमाययिष्यताम्
णिजभावे।।
माय्यासुः माययितार: माययिष्यन्ति अमाययिष्यन्
मिम्युः
व० मयति
मयतः
मयन्ति स० मयेत् मयेताम् मयेयुः प० मयतु/मयतात् मयताम् मयन्तु ह्य० अमयत् अमयताम् अमयन् अ० अमायीत् अमायिष्टाम् अपायिषुः प० मिमाय
मिभ्यतुः आ० मीयात् मीयास्ताम्
मीयासुः श्व० मयिता मयितारौ मयितारः भ० मयिष्यति मयिष्यतः मयिष्यन्ति क्रि० अमयिष्यत् अमयिष्यताम् अमयिष्यन्
१९४५. प्रीगण (प्री) तर्पणे। ३७८ व० प्रीणयति प्रीणयतः प्रीणयन्ति स० प्रीणयेत् प्रीणयेताम् प्रीणयेयुः प० प्रीणयत्/प्रीणयतात् प्रीणयताम्
प्रीणयन्तु ह्य० अप्रीणयत्
अप्रीणयताम्
अप्रीणयन् अ० अपिप्रिणत् अपिप्रिणताम्
अपिप्रिणन् प० प्रीणयाञ्चकार प्रीणयाञ्चक्रतुः
प्रीणयाञ्चक्रुः प्रीणयाम्बभूव/प्रीणयामास। आ० प्रीण्यात् प्रीण्यास्ताम् प्रीण्यासुः श्व० प्रीणयिता प्रीणयितारौ प्रीणयितारः भ० प्रीणयिष्यति प्रीणयिष्यतः प्रोणयिष्यन्ति क्रि० अप्रीणयिष्यत् अप्रीणयिष्यताम् अप्रीणयिष्यन्
लिल्यतुः
व० लयति
लयत:
लयन्ति स० लयेत् लयेताम् लयेयुः प० लयतु/लयतात् लयताम् लयन्तु ह्य० अलयत् अलयताम् अलयन् अ० अलायीत् अलायिष्टाम् अलायिषुः प० लिलाय आ० लीयात् लीयास्ताम् लीयासुः श्व० लयिता लयितारौ लयितारः भ० लयिष्यति लयिष्यतः लयिष्यन्ति क्रि० अलयिष्यत् अलयिष्यताम अलयिष्यन
१९४४. मीण (मी) मतौमतिर्मननम्। ३७७ व० माययति माययतः माययन्ति स० माययेत् माययेताम् माययेयुः
लिल्युः
Page #544
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
527
प्राययतीति केचित्।
॥णिजभावे॥
धवन्तु
पिप्रियतुः
पिप्रियुः प्रीयासुः
प्रयेरन्
व० प्रयति
प्रयत:
प्रयन्ति स० प्रयेत् प्रयेताम्
प्रयेयुः प० प्रयतु/प्रयतात् प्रयताम्
प्रयन्तु ह्य० अप्रयत् अप्रयताम्
अप्रयन् अ० अप्रायीत् अप्रायिष्टाम् अप्रायिषुः प० पिप्राय आ० प्रीयात् प्रीयास्ताम् श्व० प्रयिता प्रयितारौ प्रयितारः भ० प्रयिष्यति प्रयिष्यतः प्रयिष्यन्ति क्रि० अप्रयिष्यत्
अप्रयिष्यताम्
अप्रयिष्यन् व० प्रयते प्रयेते
प्रयन्ते स० प्रयेत प्रयेयाताम् प० प्रयताम्
प्रयेताम् प्रयन्ताम ह्य० अप्रयत अप्रयेताम् अप्रयन्त अ० अप्रयिष्ट अप्रयिषाताम् अप्रयिषत प० पिप्रिये पिप्रियाते पिप्रियिरे आ० प्रयिषीष्ट प्रयिषीयास्ताम्
प्रयिषीरन् श्व० प्रयिता प्रयितारौ प्रयितार: भ० प्रयिष्यते प्रयिष्येते प्रयिष्यन्ते क्रि० अप्रयिष्यत अप्रयिष्येताम् अप्रयिष्यन्त
॥अथ ऊदन्तः॥ १९४६. धूग्ण् (धू) कम्पने। ३७९ व० धूनयति धूनयतः धूनयन्ति स० धूनयेत् धूनयेताम् धूनयेयुः प० धूनयतु/धूनयतात् धूनयताम् धूनयन्तु ह्य० अधूनयत् अधूनयताम् अधूनयन् अ० अदूधुनत् अधुनताम् अदूधुनन् प० धूनयाञ्चकार धूनयाञ्चक्रतुः धूनयाञ्चक्रुः
धूनयाम्बभूव/धूनयामास। आ० धून्यात् धून्यास्ताम् धून्यासुः
श्व० धूनयिता धूनयितारौ धूनयितार: भ० धूनयिष्यति धूनयिष्यतः धूनयिष्यन्ति क्रि० अधूनयिष्यत् अधूनयिष्यताम् अधूनयिष्यन्
॥णिजभावे॥ व० धवति
धवत:
धवन्ति स० धवेत् धवेताम् धवेयुः प० धवतु/धवतात् धवताम् ह्य० अधवत् अधवताम् अधवन् अ० अधावीत् अधाविष्टाम् अधाविषुः प० दुधाव दुधुवतुः
दुधुवु आ० धूयात् धूयास्ताम् धूयासुः श्व० धविता धवितारौ
धवितारः भ० धविष्यति धविष्यतः धविष्यन्ति क्रि० अधविष्यत् अधविष्यताम् अधविष्यन् ____ अधोष्यत् अधोष्यताम् अधोष्यन, इत्यादि व० धवते
धवेते
धवन्ते स० धवेत धवेयाताम् धवेरन प० धवताम् धवेताम् धवन्ताम ह्य० अधवत अधवेताम् अधवन्त अ० अधविष्ट अधविषाताम् अधविषत ____ अधोष्ट अधोषाताम् अधोषत, इत्यादि। प० दुधुवे
दुधुविरे आ० धविषीष्ट धविषीयास्ताम् धविषीरन् श्व० धविता धवितारौ धवितारः
धोता धोतारौ धोतार: इ० भ० धविष्यते धविष्येते धविष्यन्ते धोष्यते धोष्येते
धोष्यन्ते इ० क्रि० अधविष्यत अधविष्येताम् अधविष्यन्त अधोष्यत् अधोष्येताम् अधोष्यन्त इ०
।।अथ ऋदन्तः॥ १९४७. वृग्ण (वृ) आवरणे। ३८० व० वारयति
वारयत:
वारयन्ति
दुधुवाते
धून
Page #545
--------------------------------------------------------------------------
________________
528
स० वारयेत्
वारयेताम्
प० वारयतु / वारयतात् वारयताम्
ह्य० अवारयत्
अ० अवीवरत्
प० वारयाञ्चकार
आ० वार्यात्
श्व० वारयिता
भ० वारयिष्यति
क्रि० अवारयिष्यत्
वारयाम्बभूव/ वारयामास ।
व० वरति
सवरेत्
प० वरतु / वरतात्
ह्य० अवरत्
अ० अवारीत्
प० ववार
आ० त्रियात्
श्र० वरिता
वरीता
भ० वरिष्यति
वरीष्यति
क्रि० अवरिष्यत्
अवष्यत्
व० वरते
स० वरेत
प० वरताम्
ह्य० अवरत
अ० अवरिष्ट
अवरीष्ट
प० वव्रे
आ० वरिषीष्ट
अवारयताम्
अवीवरताम्
वारयाञ्चक्रतुः
वार्यास्ताम्
वारयितारौ
वारयिष्यतः
अवारयिष्यताम्
॥णिजभावे ॥
वरतः
ताम्
वरताम्
अवरताम्
अवारिष्टाम्
वव्रतुः
त्रियास्ताम्
वरितारौ
वरीतारौ
वरिष्यतः
वरीष्यतः
अवरिष्यताम्
अवरीष्यताम्
वरेते
वरेयाताम्
वरेताम्
वारयेयुः
वारयन्तु
अवारयन्
अवीवरन्
वारयाञ्चक्रुः
वार्यासुः
वारयितार:
वारयिष्यन्ति
अवारयिष्यन्
वरन्ति
वरेयुः
वरन्तु
अवरन्
अवारिषुः
वव्रुः
त्रियासुः
वरितारः
वतारः, इत्यादि ।
वरिष्यन्ति
वरीष्यन्ति इत्यादि
अवरिष्यन्
अवरीष्यन्, इ०
वरन्ते
वरेन्
वरन्ताम
अवताम्
अवरन्त
अवरिषाताम् अवरिषत
अवरीषाताम्
वव्राते
वरिषीयास्ताम्
अवरीषत, इत्यादि
वविरे
रिषीन्
श्व० वरिता
वरीता
भ० वरिष्यते
वरीष्यते
क्रि० अवरिष्यत
अवष्यत्
व० जारयति
स० [जारयेत्
।। अथ ऋदन्तः ।
१९४८. ज्ण् (ज्) वयोहानौ । ३८१
जारयन्ति
जारयेयुः
जारयन्तु
अजारयताम्
अजारयन्
अजीजरताम् अजीजन्
आ० जार्यात्
श्व० जारयिता
भ० जारयिष्यति
क्रि० अजारयिष्यत्
प० जारयतु / जारयतात् जारयताम्
ह्य० अजारयत्
अ० अजीजरत्
प० जारयाञ्चकार
व० जरति
स० जरेत्
प० जरतु/जरतात्
वरितारौ
वरीतारौ
वरिष्येते
वरीष्येते
ह्य० अजरत्
अ० अजारीत्
अवरिष्येताम्
अवष्येताम्
जारयाम्बभूव/जारयामास ।
प० जजार
आ० जीर्यात्
श्व० जरिता
जरीता
भ० जरिष्यति
जरीष्यति
क्रि० अजरिष्यत
अजरीष्यत्
जारयतः
जारयेताम्
जारयाञ्चक्रतुः जारयाञ्चक्रुः
जार्यास्ताम्
जारयितारौ
जारयिष्यतः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
वरितारः
वतारः, इत्यादि ।
वरिष्यन्ते
वरीष्यन्ते इत्यादि
अवरिष्यन्त
अवरीष्यन्त, इ०
अजारयिष्यताम् ॥णिजभावे ॥
जरतः
जरेताम्
जरताम्
अजरताम्
अजारिष्टाम्
जजरतुः/जेरतुः
जीर्यास्ताम्
जरितारौ
जरीतारौ
जरिष्यतः
जरीष्यतः
अजरिष्यताम्
अजरीष्यताम्
जार्यासुः
जारयितारः
जारयिष्यन्ति
अजारयिष्यन्
जरन्ति
जरेयुः
जरन्तु
अजरन्
अजारिषुः
जजरु: /जेरु:
जीर्यासुः
जरितारः
जरीतारः, इत्यादि ।
जरिष्यन्ति
जरीष्यन्ति, इत्यादि
अजरिष्यन्
अजरीष्यन्, इ०
Page #546
--------------------------------------------------------------------------
________________
529
आ० शीक्यात् शीक्यास्ताम् शीक्यासुः श्व० शीकयिता शीकयितारौ शीकयितारः भ० शीकयिष्यति शीकयिष्यतः शीकयिष्यन्ति क्रि० अशीकयिष्यत् अशीकयिष्यताम अशीकयिष्यन
॥णिजभावे।
चीकयन्तु
शीकेयुः
शिशीकुः शोक्यासुः
चुरादिगण
॥अथ कान्तौ। १९४९. चीकण (चीक्) आमर्षणे। ३८२ व० चीकयति चीकयतः चीकयन्ति स० चीकयेत् चीकयेताम् चीकयेयुः प० चीकयतु/चीकयतात् चीकयताम् ह्य० अचीकयत् अचीकयताम् । अचीकयन् अ० अचीचिकत् अचीचिकताम् अचीचिकन् प० चीकयाञ्चकार चीकयाञ्चक्रतुः चीकयाञ्चक्रुः
चीकयाम्बभूव/चीकयामास। आ० चीक्यात्
चीक्यास्ताम् चीक्यासुः श्व० चीकयिता चीकयितारौ चीकयितारः भ० चीकयिष्यति चीकयिष्यतः चीकयिष्यन्ति क्रि० अचीकयिष्यत् अचीकयिष्यताम् अचीकयिष्यन्
॥णिजभावे॥ व० चीकति
चीकत:
चीकन्ति स० चीकेत् चीकेताम् प० चीकतु/चीकतात् चीकताम् ह्य० अचीकत् अचीकताम् अचीकन् अ० अचीकीत् अचीकिष्टाम् अचीकिषुः प० चिचीक चिचीकतुः
चिचीकु: आ० चोक्यात् चोक्यास्ताम् श्व० चीकिता चीकितारौ चीकितारः भ० चीकिष्यति चीकिष्यतः चीकिष्यन्ति क्रि० अचीकिष्यत् अचीकिष्यताम् अचीकिष्यन्
१९५०. शीकण् (शीक्) आमर्षणे। ३८३ व० शीकयति शीकयतः शोकयन्ति स० शीकयेत् शीकयेताम् शीकयेयुः प० शीकयतु/शीकयतात् शीकयताम् ह्य० अशीकयत् अशीकयताम् अशीकयन् अ० अशीशिकत् अशीशिकताम् अशीशिकन् प० शीकयाञ्चकार शीकयाञ्चक्रतुः शीकयाञ्चक्रुः
शीकयाम्बभूव/शीकयामास।
चीकेयुः
चीकन्तु
व० शीकति शीकत: शीकन्ति स० शीकेत् शीकेताम् प० शीकतु/शीकतात् शीकताम् शीकन्तु ह्य० अशीकत् अशीकताम्
अशीकन् अ० अशीकीत् अशीकिष्टाम् अशीकिषुः प० शिशीक शिशीकतुः आ० शोक्यात् शोक्यास्ताम् श्व० शीकिता शीकितारौ शीकितारः भ० शीकिष्यति शीकिष्यतः शीकिष्यन्ति क्रि० अशीकिष्यत् अशीकिष्यताम् अशीकिष्यन्
॥अथ गान्तः।। १९५१. मार्गण (मार्ग) अन्वेषणे। ३८४ व० मार्गयति मार्गयत: मार्गयन्ति स० मार्गयेत् मार्गयेताम् मार्गयेयुः प० मार्गयतु/मार्गयतात् मार्गयताम् ह्य० अमार्गयत् अमार्गयताम्
अमार्गयन् अ० अममार्गत् अममार्गताम् अममार्गन् प० मार्गयाञ्चकार मार्गयाञ्चक्रतुः मार्गयाञ्चक्रुः
मार्गयाम्बभूव/मार्गयामास। आ० मार्यात् मार्यास्ताम् श्व० मार्गयिता मार्गयितारौ
मार्गयितारः भ० मार्गयिष्यति मार्गयिष्यतः मार्गयिष्यन्ति क्रि० अमार्गयिष्यत् अमार्गयिष्यताम् अमार्गयिष्यन
॥णिजभावे। व० मार्गति मार्गत:
मार्गन्ति स० मार्गेत् मार्गेताम् प० मार्गतु/मार्गतात् मार्गताम् मार्गन्तु
मार्गयन्तु
चोक्यासुः
मार्यासुः
शीकयन्तु
मार्गेयुः
Page #547
--------------------------------------------------------------------------
________________
530
ह्य० अमार्गत्
अ० अमार्गीत् प० ममार्ग
आ० मार्ग्यात्
श्व० मार्गिता
भ० मार्गिष्यति
क्रि० अमार्गिष्यत्
ह्य० अपर्चयत्
अ० अपीपृचत्
व० पर्चयति
० पर्चयेत्
पर्चयेताम्
प० पर्चयतु / पर्चयतात् पर्चयताम्
अपर्चयताम्
अपीपृचताम्
अपपर्चताम्
अपपत्
प० पर्चयाञ्चकार
आ० पर्च्यात्
श्व० पर्चयिता
भ० पर्चयिष्यति
क्रि० अपर्चयिष्यत्
व० पर्चति
० पर्चेत्
प० पर्चतु / पर्चतात्
ह्य० अपर्चत्
अ० अपर्चीत्
प० पपर्च
॥ अथ चान्ताश्चत्वारः ॥
१९५२. पृचण् (पृच्) सम्पर्चने ।
पर्चयत:
पर्चयाम्बभूव/पर्चयामास ।
आ० पृच्यात्
श्व० पर्चिता
अमार्गताम्
अमार्गिष्टाम्
ममार्गतुः
मार्ग्यास्ताम्
मार्गितारौ
मार्गिष्यतः
अमार्गष्यताम्
भ० पर्चिष्यति
क्रि० अपर्चिष्यत्
पर्चयाञ्चक्रतुः
पर्च्यास्ताम्
पर्चयितारौ
पर्चयिष्यतः
अपर्चयिष्यताम्
॥णिजभावे ॥
पर्चतः
पर्चेताम्
पर्चताम्
अपर्चताम्
अर्चिष्टाम्
अमार्गन्
अमार्गिषुः
ममार्गः
पपृचतुः
पृच्यास्ताम्
पर्चितारौ
पर्चिष्यतः
अपर्चिष्यताम्
मार्ग्यासुः
मार्गितार:
मार्गिष्यन्ति
अमार्गिष्यन्
पर्चयन्ति
पर्चयेयुः
पर्चयन्तु
अपर्चयन्
अपीपृचन्
अपपर्चन्, इत्यादि
पर्चयाञ्चक्रुः
पर्च्यासुः
पर्चयितारः
पर्चयिष्यन्ति
अपर्चयिष्यन्
पर्चन्ति
पर्चेयुः
पर्चन्तु
अपर्चन्
अपर्चिषुः
पपृचुः
पृच्यासुः
पर्चितार:
पर्चिष्यन्ति
अपर्चिष्यन्
१९५३. रिचण् (रिच्) वियोजने । ३८६
व० रेचयति
रेचयतः
स० रेचयेत्
रेचयेताम्
प० रेचयतु / रेचयतात् रेचयताम्
ह्य० अरेचयत्
अरेचयताम्
अरेचयन्
अ० अरीरिचत्
अरीरिचताम् अरीरिचन्
प० रेचयाञ्चकार रेचयाञ्चक्रतुः
रेचयाञ्चक्रुः
रेचयाम्बभूव / रेचयामास ।
० च्या
श्व० रेचयिता
भ० रेचयिष्यति
क्रि० अरेचयिष्यत्
व० रेचति
स० [रेचेत्
प० रेचतु/रेचतात्
० अरेच
अ० अरेचीत्
प० रिरेच
आ० रिच्यात्
श्व० रेचिता
भ० रेचिष्यति
रेच्यास्ताम्
रेचयितारौ
रेचयिष्यतः
आ० अर्च्यात्
अरेचयिष्यताम् ॥ णिजभावे ॥
रेचतः
रेचेताम्
रेचताम्
क्रि० अरेचिष्यत् अरेचिष्यताम्
अरेचताम्
अरेचष्टाम्
रिरिचतुः
रिच्यास्ताम्
रेचितारौ
रेचिष्यतः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
व० अर्चयति
अर्चयतः
स० अर्चयेत्
अर्चयेताम्
अ० अर्चयतु / अर्चयतात् अर्चयताम्
ह्य० आर्चयत्
आर्चयताम्
अ० आर्चिचत्
आर्चिचताम्
अ० अर्चयाञ्चकार अर्चयाञ्चक्रतुः
अर्चयाम्बभूव / अर्चयामास ।
अर्च्यास्ताम्
रेचयन्ति
रेचयेयुः
रेचयन्तु
अचिन्
१९५५. अर्चिण् (अर्च्) पूजायाम् । ३८८
रेच्यासुः
रेचयितार:
रेचयिष्यन्ति
अरेचयिष्यन्
रेचन्ति
रेचेयुः
रेचन्तु
अरेचन्
अरेचिषुः
रिरिचुः
रिच्यासुः
रेचितार:
रेचिष्यन्ति
अर्चयन्ति
अर्चयेयुः
अर्चयन्तु
आर्चयन्
आर्चिचन्
अर्चयाञ्चक्रुः
अर्च्यासुः
Page #548
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
531
ववचतुः
ववचुः वच्यासुः वचितार:
श्व० अर्चयिता अर्चयितारौ अर्चयितारः भ० अर्चयिष्यति अर्चयिष्यतः अर्चयिष्यन्ति क्रि० आर्चयिष्यत् आर्चयिष्यताम् आर्चयिष्यन्
॥णिजभावे॥ व० अर्चते
अर्चेते
अर्चन्ते स० अर्चेत अर्चेयाताम्
अर्चेरन् प० अर्चताम् अर्चेताम् अर्चन्ताम् ह्य० आर्चत आर्चेताम् आर्चन्त अ० आर्चिष्ट आर्चिषाताम् आर्चिषत प० आनर्चे आनईते आनचिर आ० अर्चिषीष्ट अर्चिषीयास्ताम् अर्चिषीरन् श्व० अर्चिता अर्चितारौ अर्चितारः भ० अर्चिष्यते अर्चिष्येते अर्चिष्यन्ते क्रि० आर्चिष्यत आर्चिष्येताम् आर्चिष्यन्त
१९५४. वचण् (वच्) भाषणे ३८७ व० वाचयति वाचयतः वाचयन्ति स० वाचयेत् वाचयेताम् वाचयेयुः अ० वाचयतु/वाचयतात् वाचयताम् वाचयन्तु ह्य० अवाचयत् अवाचयताम् अवाचयन् अ० अवीवचत् अवीवचताम् अवीवचन् अ० वाचयाञ्चकार वाचयाशक्रतुः वाचयाञ्चक्रुः
वाचयाम्बभूव/वाचयामास। आ० वाच्यात् वाच्यास्ताम् वाच्यासुः श्व० वाचयिता वाचयितारौ वाचयितार: भ० वाचयिष्यति वाचयिष्यतः वाचयिष्यन्ति क्रि० अवाचयिष्यत् अवाचयिष्यताम् अवाचयिष्यन्
॥णिजभावे॥
अ० ववाच आ० वच्यात् वच्यास्ताम् ० वचिता वचितारौ भ० वचिष्यति वचिष्यतः वचिष्यन्ति क्रि० अवचिष्यत् अवचिष्यताम् अवचिष्यन्
॥अथ थान्ताश्चत्वारः।। १९५६. श्रन्थण् (श्रन्थ्) संदर्भ।
संदर्भो बन्धनम्। ३९२ व० श्रन्थयति श्रन्थयतः श्रन्थयन्ति स० श्रन्थयेत् श्रन्थयेताम् श्रन्थयेयुः प० श्रन्थयतु/श्रन्थयतात् श्रन्थयताम् श्रन्थयन्तु ह्य० अश्रन्थयत् अश्रन्थयताम् अश्रन्थयन् अ० अशश्रन्थत् अशश्रन्थताम् अशश्रन्थन् प० श्रन्थयाञ्चकार श्रन्थयाञ्चक्रतुः श्रन्थयाञ्चक्रुः
श्रन्थयाम्बभूव/श्रन्थयामास। आ० श्रन्थ्यात् श्रन्थ्यास्ताम् श्रन्थ्यासुः श्व० श्रन्थयिता श्रन्थयितारौ श्रन्थयितार: भ० श्रन्थयिष्यति श्रन्थयिष्यतः श्रन्थयिष्यन्ति क्रि० अश्रन्थयिष्यत् अश्रन्थयिष्यताम् अश्रन्थयिष्यन् व० श्रन्थति
श्रन्थतः
श्रन्थन्ति स० श्रन्थेत् श्रन्थेताम् श्रन्थेयुः प० श्रन्थतु/श्रन्थतात् श्रन्थताम् श्रन्थन्तु ह्य० अश्रन्थत् अश्रन्थताम् अश्रन्थन् अ० अश्रन्थीत् अश्रन्थिष्टाम् अश्रन्थिषुः प० शश्रन्थ शश्रन्थतुः आ० श्रथ्यात् श्रथ्यास्ताम् श्रथ्यासुः श्व० श्रन्थिता श्रन्थितारौ श्रन्थितार: भ० श्रन्थिष्यति श्रन्थिष्यतः श्रन्थिष्यन्ति क्रि० अश्रन्थिष्यत् अश्रन्थिष्यताम् अश्रन्थिष्यन्
१९५७. मृजौण (मृज्) शौचालङ्कारयोः। ३९० व० मार्जयति मार्जयतः मार्जयन्ति स० मार्जयेत् मार्जयेताम् मार्जयेयुः
शश्रन्थुः
वचतः
वचन्ति
वचेताम्
वचेयुः
व० वचति स० वचेत् अ० वचतु/वचतात् ह्य० अवचत् अ० अवाचीत्
वचताम् अवचताम् अवाचिष्टाम्
वचन्तु अवचन् अवाचिषुः
Page #549
--------------------------------------------------------------------------
________________
532
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मार्जन्तु
प० मार्जयतु/मार्जयतात् मार्जयताम् मार्जयन्तु | प० कण्ठयाञ्चकार कण्ठयाञ्चक्रतुः कण्ठयाञ्चक्रुः ह्य० अमार्जयत् अमार्जयताम् अमार्जयन्
कण्ठयाम्बभूव/कण्ठयामास। अ० अमीमृजत्
अमीमृजताम्
अमीमृजन् आ० कण्ठ्यात् कण्ठ्यास्ताम् कण्ठ्यासुः __ अममार्जत् अममार्जताम् अममार्जन्, इ० श्व० कण्ठयिता कण्ठयितारौ कण्ठयितार: प० मार्जयाञ्चकार मार्जयाञ्चक्रतुः
मार्जयाञ्चक्रुः
भ० कण्ठयिष्यति कण्ठयिष्यतः कण्ठयिष्यन्ति ___मार्जयाम्बभूव/मार्जयामास।
क्रि० अकण्ठयिष्यत् अकण्ठयिष्यताम् अकण्ठयिष्यन् आ० माात् माास्ताम् माासुः व० कण्ठति कण्ठतः कण्ठन्ति श्व० मार्जयिता मार्जयितारौ मार्जयितार: स० कण्ठेत् कण्ठेताम् कण्ठेयुः भ० मार्जयिष्यति मार्जयिष्यतः मार्जयिष्यन्ति प० कण्ठतु/कण्ठतात् कण्ठताम् कण्ठन्तु क्रि० अमार्जयिष्यत् अमार्जयिष्यताम् अमार्जयिष्यन् ह्य० अकण्ठत् अकण्ठताम् अकण्ठन् ॥णिजभावे।।
अ० अकण्ठीत् अकण्ठिष्टाम् अकण्ठिषु: व० मार्जति मार्जतः मार्जन्ति
प० चकण्ठ चकण्ठतुः चकण्ठः स० मात् मार्जेताम् मार्जेयुः
आ० कण्ठ्यात् कण्ठ्यास्ताम् कण्ठ्यासुः प० मार्जतु/मार्जतात् मार्जताम्
श्व० कण्ठिता कण्ठितारौ कण्ठितारः ह्य० अमात् अमार्जताम् अमार्जन्
भ० कण्ठिष्यति कण्ठिष्यतः कण्ठिष्यन्ति अ० अमार्जीत् अमार्जिष्टाम् अमार्जिषुः क्रि० अकण्ठिष्यत् अकण्ठिष्यताम् अकण्ठिष्यन् अमाीत् अमााम् अमाझुः, इत्यादि।
॥अथ जान्तौ।। प० ममार्ज ममार्जतु:/ममृजतुः ममार्जु:/ममृजुः
१९५९. वृजैण् (वृज्) वर्जने। ३८९ आ० मृज्यात् मृज्यास्ताम् मृज्यासुः | व० वर्जयति वर्जयतः वर्जयन्ति श्व० मार्जिता मार्जितारौ मार्जितारः स० वर्जयेत् वर्जयेताम्
माष्र्टारौ मार्टार: इ० प० वर्जयतु/वर्जयतात् वर्जयताम् वर्जयन्तु भ० मार्जिष्यति मार्जिष्यतः मार्जिष्यन्ति ह्य० अवर्जयत् अवर्जयताम् अवर्जयन्
मामंति मार्क्ष्यतः माय॑न्ति इ० अ० अवीवृजत् अवीवृजताम् अवीवृजन् क्रि० अमार्जिष्यत् अमार्जिष्यताम्
अमार्जिष्यन् प० वर्जयाञ्चकार वर्जयाञ्चक्रतुः
वर्जयाञ्चक्रुः अमाय॑त् अमाय॑ताम् अमायन इ० वर्जयाम्बभूव/वर्जयामास। ॥अथ ठान्तः॥
आ० वर्ध्यात् वास्ताम् वासुः १९५८. कठुण् (कण्ठ्) शोके। ३९१ श्व० वर्जयिता वर्जयितारौ वर्जयितारः व० कण्ठयति कण्ठयतः कण्ठयन्ति भ० वर्जयिष्यति वर्जयिष्यतः वर्जयिष्यन्ति स० कण्ठयेत् कण्ठयेताम् कण्ठयेयुः
क्रि० अवर्जयिष्यत् अवर्जयिष्यताम् अवर्जयिष्यन् प० कण्ठयतु/कण्ठयतात् कण्ठयताम् कण्ठयन्तु
॥णिजभावे।। ह्य० अकण्ठयत् अकण्ठयताम् अकण्ठयन् व० वर्जति वर्जतः
वर्जन्ति अ० अचकण्ठत् अचकण्ठताम् अचकण्ठन् | स० वर्जेत् वर्जेताम् वर्जेयुः
वर्जयेयुः
मार्टा
माम
Page #550
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
533
ववृजुः
• प० वर्जतु/वर्जतात् वर्जताम् वर्जन्तु
ह्य० अवर्जत् अवर्जताम् अवर्जन् अ० अवर्जीत् अवर्जिष्टाम् अवर्जिषुः प० ववर्ज ववृजतुः आ० वृज्यात् वृज्यास्ताम् वृज्यासुः श्व० वर्जिता वर्जितारौ वर्जितार: भ० वर्जिष्यति वर्जिष्यतः वर्जिष्यन्ति क्रि० अवर्जिष्यत् अवर्जिष्यताम् अवर्जिष्यन्
१९६०. ग्रन्थण (ग्रन्थ्) संदर्भे।
संदर्भो बन्धनम्। ३९३ व० ग्रन्थयति ग्रन्थयतः ग्रन्थयन्ति स० ग्रन्थयेत् ग्रन्थयेताम् ग्रन्थयेयुः प० ग्रन्थयतु/ग्रन्थयतात् ग्रन्थयताम् ग्रन्थयन्तु ह्य० अग्रन्थयत् अग्रन्थयताम्
अग्रन्थयन् अ० अजग्रन्थत् अजग्रन्थताम् अजग्रन्थन् प० ग्रन्थयाञ्चकार ग्रन्थयाञ्चक्रतुः ग्रन्थयाञ्चक्रुः
ग्रन्थयाम्बभूव/ग्रन्थयामास। आ० ग्रन्थ्यात् ग्रन्थ्यास्ताम् ग्रन्थ्यासुः श्व० ग्रन्थयिता ग्रन्थयितारौ ग्रन्थयितारः भ० ग्रन्थयिष्यति ग्रन्थयिष्यतः ग्रन्थयिष्यन्ति क्रि० अग्रन्थयिष्यत् अग्रन्थयिष्यताम् अग्रन्थयिष्यन् व० ग्रन्थति ग्रन्थतः ग्रन्थन्ति स० ग्रन्थेत् ग्रन्थेताम् ग्रन्थेयुः प० ग्रन्थतु/ग्रन्थतात् ग्रन्थताम् ग्रन्थन्तु ह्य० अग्रन्थत् अग्रन्थताम् अग्रन्थन् अ० अग्रन्थीत् अग्रन्थिष्टाम्
अग्रन्थिषुः प० जग्रन्थ
जग्रन्थतुः आ० ग्रथ्यात् ग्रथ्यास्ताम् ग्रथ्यासुः श्व० ग्रन्थिता ग्रन्थितारौ ग्रन्थितारः भ० ग्रन्थिष्यति ग्रन्थिष्यतः ग्रन्थिष्यन्ति क्रि० अग्रन्थिष्यत् अग्रन्थिष्यताम् अग्रन्थिष्यन्
_१९६१. ऋथणि (ऋथ्) हिंसायाम्। ३९४
| व० क्राथयति क्राथयतः क्राथयन्ति
स० क्राथयेत् क्राथयेताम् क्राथयेयुः प० क्राथयतु/क्राथयतात् क्राथयताम् क्राथयन्तु ह्य० अक्राथयत् अक्राथयताम् अक्राथयन् अ० अचिक्रथत् अचिक्रथताम् अचिक्रथन् प० क्राथयाञ्चकार क्राथयाञ्चक्रतुः क्राथयाञ्चक्रुः
क्राथयाम्बभूव/क्राथयामास। आ० क्राथ्यात् क्राथ्यास्ताम् क्राथ्यासुः श्व० क्राथयिता क्राथयितारौ क्राथयितारः भ० क्राथयिष्यति क्राथयिष्यतः क्राथयिष्यन्ति क्रि० अक्राथयिष्यत् अक्राथयिष्यताम् अक्राथयिष्यन्
णिजभावे।। व० क्रथते क्रथेते क्रथन्ते स० ऋथेत ऋथेयाताम् ऋथेरन् प० क्रथताम् क्रथेताम् क्रथन्ताम् ह्य० अक्रथत अक्रथेताम् अक्रथन्त अ० अक्रथिष्ट अक्रथिषाताम् अक्रथिषत् प० चक्रथे चक्रथाते आ० ऋथिषीष्ट ऋथिषीयास्ताम् ऋथिषीरन् व० ऋथिता ऋथितारौ ऋथितार: भ० ऋथिष्यते ऋथिष्येते ऋथिष्यन्ते क्रि० अक्रथिष्यत अक्रथिष्येताम् अक्रथिष्यन्त ___ अथ लाघवार्थं थान्तमध्ये एवार्थानुगुण्येन दान्तः।
१९६२. अर्दिण् (अ) हिंसायाम्। ३९५ व० अर्दयति अर्दयतः अर्दयन्ति स० अर्दयेत् अर्दयेताम् अर्दयेयुः अ० अर्दयतु/अर्दयतात् अर्दयताम् । अर्दयन्तु ह्य० आर्दयत् आर्दयताम्
आर्दयन् अ० आदित् आर्दिदताम्
आर्दिदन् अ० अर्दयाञ्चकार अर्दयाञ्चक्रतुः
अर्दयाञ्चक्रुः ___ अर्दयाम्बभूव/अर्दयामास। आ० अर्थात् अर्धास्ताम् अासुः
चक्रथिरे
जग्रन्थुः
ति
Page #551
--------------------------------------------------------------------------
________________
534
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
अश्राप
आर्दन्त
वादयेयुः
श्व० अर्दयिता अर्दयितारौ अर्दयितारः भ० अर्दयिष्यति अर्दयिष्यतः अर्दयिष्यन्ति क्रि० आर्दयिष्यत् आर्दयिष्यताम् आर्दयिष्यन्
॥णिजभावे॥ व० अर्दते
अर्देते
अर्दन्ते स० अर्देत अर्देयाताम् अरन् प० अर्दताम् अर्देताम् अर्दन्ताम् ह्य० आदत आर्देताम् अ० अर्दिष्ट आर्दिषाताम् आर्दिषत प० आनर्दे आनते आनदिरे आ० अर्दिषीष्ट अर्दिषीयास्ताम् अर्दिषीरन् श्व० अर्दिता अर्दितारौ अर्दितारः भ० अर्दिष्यते अर्दिष्येते अर्दिष्यन्ते क्रि० आर्दिष्यत आर्दिष्येताम् आर्दिष्यन्त
१९६३. श्राथण् (श्राथ्) संदर्भे।
संदर्भो बन्धनम्। ३९२ व० श्राथयति
श्राथयत:
श्राथयन्ति स० श्राथयेत् श्राथयेताम् श्राथयेयुः प० श्राथयतु/श्राथयतात् श्राथयताम् श्राथयन्तु ह्य० अश्राथयत् अश्राथयताम् अश्राथयन् अ० अशिश्रथत् अशिश्रथताम् अशिश्रथन् प० श्राथयाञ्चकार श्राथयाञ्चक्रतुः श्राथयाञ्चक्रुः
श्राथयाम्बभूव/श्राथयामास। आ० श्राथ्यात् श्राथ्यास्ताम् श्राध्यासुः श्व० श्राथयिता श्राथयितारौ श्राथयितार: भ० श्राथयिष्यति श्राथयिष्यतः श्राथयिष्यन्ति क्रि० अश्राथयिष्यत् अश्राथयिष्यताम् अश्राथयिष्यन् व० श्रथति
श्रथतः
श्रथन्ति स० श्रथेत् श्रथेताम् प० श्रथतु/श्रथतात् श्रथताम् ह्य० अश्रथत् अश्रथताम् अश्रथन् अ० अश्राथीत् अश्राथिष्टाम्
अश्रथीत् अश्रथिष्टाम् अश्रथिषुः, इ० प० शश्राथ
शश्रथतुः
शश्रथुः आ० अथ्यात्
श्रथ्यास्ताम् श्रथ्यासुः श्व० श्रथिता श्रथितारौ
श्रथितारः भ० श्रथिष्यति श्रथिष्यतः श्रथिष्यन्ति क्रि० अश्रथिष्यत् अश्रथिष्यताम् अश्रथिष्यन्
॥अथ दान्ताश्चत्वारः।। १९६४. वदिण् (वद्) भाषणे। ३९७ व० वादयति वादयत: वादयन्ति स० वादयेत् वादयेताम् अ० वादयतु/वादयतात् वादयताम् वादयन्तु ह्य० अवादयत् अवादयताम् अवादयन् अ० अवीवदत् अवीवदताम् अवीवदन् अ० वादयाञ्चकार वादयाञ्चक्रतुः वादयाञ्चक्रुः
वादयाम्बभूव/वादयामास। आ० वाद्यात् वाद्यास्ताम् वाद्यासुः श्व० वादयिता वादयितारौ वादयितारः भ० वादयिष्यति वादयिष्यत: वादयिष्यन्ति क्रि० अवादयिष्यत् अवादयिष्यताम् अवादयिष्यन्
॥णिजभावे॥ व० वदते वदेते
वदन्ते स० वदेत वदेयाताम् प० वदताम् वदेताम् वदन्ताम् ह्य० अवदत अवदेताम् अवदन्त अ० अवदिष्ट अवदिषाताम् अवदिषत् प० ववदे ववदाते ववदिरे आ० वदिषीष्ट वदिषीयास्ताम् वदिषीरन् श्व० वदिता वदितारौ वदितारः भ० वदिष्यते वदिष्येते वदिष्यन्ते क्रि० अवदिष्यत अवदिष्येताम् अवदिष्यन्त
१८६५. छदण् (छद्) अपवारणे। ३९८ व० छादयति छादयतः छादयन्ति
वदेरन्
श्रथेयुः श्रथन्तु
अश्राथिषुः
Page #552
--------------------------------------------------------------------------
________________
535
छदेयुः छदन्तु
चुरादिगण स० छादयेत् छादयेताम् छादयेयुः | क्रि० असादयिष्यत् असादयिष्यताम् असादयिष्यन् प० छादयतु/छादयतात् छादयताम्
छादयन्तु
व० आसीदति आसीदतः आसीदन्ति ह्य० अच्छादयत् अच्छादयताम् अच्छादयन् स० आसीदेत् आसीदेताम् आसीदेयुः अ० अचिच्छदत अचिच्छदताम
अचिच्छदन्
| प० आसीदतु/आसीदतात् आसीदताम् आसीदन्तु प० छादयाञ्चकार छादयाञ्चक्रतुः छादयाञ्चक्रुः ह्य० आसीदत् आसीदताम् आसीदन् छादयाम्बभूव/छादयामास।
अ० आसादीत् आसादिष्टाम् आसादिषुः आ० छाद्यात् छाद्यास्ताम् छाद्यासुः
आसदीत् आसदिष्टाम् आसदिषुः, इ०। श्व० छादयिता छादयितारौ छादयितार: प० आससाद आसेदतुः आसेदुः भ० छादयिष्यति छादयिष्यतः छादयिष्यन्ति आ० आसद्यात् आसद्यास्ताम् आसद्यासुः क्रि० अच्छादयिष्यत् अच्छादयिष्यताम् अच्छादयिष्यन् श्व० आसदिता आसदितारौ आसदितारः व० छदति
छदतः छदन्ति
भ० आसदिष्यति आसदिष्यतः आसदिष्यन्ति स. छदेत् छदेताम्
क्रि० आसदिष्यत् आसदिष्यताम् आसदिष्यन् प० छदतु/छदतात् छदताम्
१९६७. छदण् (छ्द) संदीपने। ४०० ह्य० अच्छदत् अच्छदताम् अच्छदन्
व० छर्दयति छर्दयतः छर्दयन्ति अ० अच्छादीत् अच्छादिष्टाम् अच्छादिषुः स० छर्दयेत् छर्दयेताम् छर्दयेयुः
अच्छदीत् अच्छदिष्टाम् अच्छदिषुः,इत्यादि | प० छर्दयतु/छर्दयतात् छर्दयताम् छर्दयन्तु प० चच्छाद चच्छदतुः चच्छदुः ह्य० अच्छर्दयत् अच्छर्दयताम् अच्छर्दयन् आ० छद्यात् छद्यास्ताम् छद्यासुः अ० अचच्छर्दत् अचच्छर्दताम् अचच्छर्दन् श्व० छदिता छदितारौ छदितार: प० छर्दयाञ्चकार छर्दयाञ्चक्रतुः छर्दयाञ्चक्रुः भ० छदिष्यति छदिष्यतः छदिष्यन्ति ____ छर्दयाम्बभूव/छर्दयामास। क्रि० अच्छदिष्यत् अच्छदिष्यताम् अच्छदिष्यन् आ० छात् छास्ताम् छासुः
१९६६. आङ:सदण (आ-सद्) गतौ। ३९९ श्व० छर्दयिता छर्दयितारौ छर्दयितार: व० सादयति सादयतः सादयन्ति भ० छर्दयिष्यति छर्दयिष्यतः छर्दयिष्यन्ति स० सादयेत् सादयेताम् सादयेयुः क्रि० अच्छर्दयिष्यत् अच्छर्दयिष्यताम अच्छर्दयिष्यन प० सादयतु/सादयतात् सादयताम् सादयन्तु
णिजभावे।। ह्य० असादयत् असादयताम् असादयन् व० छदति छर्दतः छदन्ति अ० असीसदत् असीसदताम् असीसदन स० छर्देत् । छर्देताम् प० सादयाञ्चकार सादयाञ्चक्रतुः सादयाञ्चक्रुः प० छर्दतु/छर्दतात् छर्दताम् छर्दन्तु सादयाम्बभूव/सादयामास।
ह्य० अच्छदत् अच्छर्दताम् अच्छर्दन आ० साद्यात् साधास्ताम् साधासुः अ० अच्छर्दीत् अच्छर्दिष्टाम् अच्छर्दिषुः श्व० सादयिता सादयितारौ सादयितारः प० चच्छर्द चच्छ्दतुः चच्छृदुः भ० सादयिष्यति सादयिष्यतः सादयिष्यन्ति आ० छूद्यात् छ्यास्ताम् छूद्यासुः
छर्देयुः
Page #553
--------------------------------------------------------------------------
________________
536
छर्दितार:
छर्दिष्यन्ति
अच्छर्दिष्यताम्
अच्छर्दिष्यन्
कृतचृतेत्यत्र तृदसाहचर्येण रुथादेरेव ग्रहणात् सादाविविकल्पभावेन, छर्दिष्यति ।
श्व० छर्दिता
भ० छर्दिष्यति
क्रि० अच्छर्दिष्यत्
॥ अथ धान्तः ॥
१९६८. शुधिण् (शुन्य्) शुद्धौ । ४०१
व० शुन्धयति
शुन्धयतः
० शुन्धयेत् शुन्धयेताम्
अ० शुन्धयतु / शुन्धयतात् शुन्धयताम्
ह्य० अशुन्धयत्
अशुन्धयताम्
अ० अशुशुन्धत्
अशुशुन्धताम्
अ० शुन्धयाञ्चकार शुन्धयाञ्चक्रतुः
शुन्धयाम्बभूव / शुन्धयामास ।
आ० शुन्ध्यात्
श्व० शुन्धयिता
भ० शुन्धयति
क्रि० अशुन्धयिष्यत्
० शुन्ध
स शुन्धेत
प० शुन्धताम्
ह्य० अशुन्धत
अ० अशुन्धिष्ट
प० शुशुन्धे
आ० शुन्धिषीष्ट
श्व० शुन्धिता
भ० शुन्धय
क्रि० अशुन्धिष्यत
छर्दिता
छर्दिष्यतः
व० तानयति
शुन्ध्यास्ताम्
शुन्ध्यासुः
शुन्धरौ
शुन्यता:
शुन्धयिष्यन्ति
शुन्धयिष्यतः अशुन्धयिष्यताम् अशुन्धयिष्यन्
||णिजभावे ॥
शु
शुन्यताम्
शुधेताम्
शुन्धयन्ति
शुन्धयेः
शुन्धयन्तु
अशुन्धयन्
अशुशुन्धन्
शुन्धयाञ्चक्रुः
शुन्धरौ
शुधिष्येते
शुन्धन्ते
शुन्धेरन्
शुन्धन्ताम्
अशुन्धन्त
शु अशुन्धिषाताम् अशुधत् शुशुधिरे
शुशुन्धा
शुन्धिषीयास्ताम् शुन्धिषीरन्
:
शुन्धिष्यन्ते
अशुन्धिष्यन्त
अशुधिष्येताम् ॥ अथ नान्तौ ॥
१९६९. तनूण् (तन्) श्रद्धाघाते । ४०२
तानयतः
तानयन्ति
० तानयेत्
तानताम्
प० तानयतु / तानयतात् तानयताम्
ह्य० अतानयत्
अ० अतीतनत्
प० तानयाञ्चकार तानयाञ्चक्रतुः
तानयाम्बभूव तानयामास ।
आ० तान्यात्
श्व० तानयिता
भ० तानयिष्यति
क्रि० अतानयिष्यत्
व० तनति
स० तत्
प० तनतु / तनतात्
ह्य० अतनत्
अ० अतानीत्
अतनीत्
वन श्रद्धोपहिंसनयोरिति चान्द्रं पारायणम ।
प० ततान
आ० तन्यात्
श्व० तनिता
भ० तनिष्यति
क्रि० अतनिष्यत्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तानयेयुः
तानयन्तु
अतानयन्
अतानयताम् अतीतताम् अतीतनन्
तानयाञ्चक्रुः
१९७०.
तान्यास्ताम्
तानयितारौ
तानयिष्यतः
अतानयिष्यताम्
आ० मान्यात्
श्व० मानयिता
तनतः
तताम्
तनताम्
अतनताम्
अतानिष्टाम्
अनिष्टाम्
तेनतुः
व० मानयति
मानयतः
समान
मानताम्
प० मानयतु / मानयतात् मानयताम्
ह्य० अमानयत्
अमानयताम्
अ० अमीन
अमीताम्
प० मानयाञ्चकार
मानयाम्बभूव / मानयामास ।
तेनुः
तन्यास्ताम्
तन्यासुः
नितारौ
तनितार:
तनिष्यतः
तनिष्यन्ति
अनिष्यताम्
अनिष्यन्
मानण् (मान्) पूजायाम्। ४०३
मानयन्ति
मानयेयुः
मानयन्तु
अमानयन्
अमीमनन्
मानयाञ्चक्रुः
मानयाञ्चक्रतुः
तान्यासुः
तानयितार:
तानयिष्यन्ति
अतानयिष्यन्
मान्यास्ताम्
मानयितारौ
तनन्ति
तनेयुः
तनन्तु
अतणन्
अतानिषुः
तनिषुः, इत्यादि
मान्यासुः
मानयितारः
Page #554
--------------------------------------------------------------------------
________________
चुरादिगण
भ० मानयिष्यति
क्रि० अमानयिष्यत्
व० मानति
मानतः
० मानेत्
माताम्
प० मानतु/मानतात् मानताम्
ह्य० अमानत्
अ० अमानीत्
अमानीत्
प० ममान
आ० मान्यात्
श्व० मानिता
भ० मानिष्यति
क्रि० अमानिष्यत्
मानयिष्यतः
अमानयिष्यताम्
॥णिजभावे ॥
आ० ताप्यात्
श्व० तापयिता
भ० तापयिष्यति
क्रि० अतापयिष्यत्
व० तपते
स० तपेत
प० तपताम्
ह्य० अतपत
अमानताम्
अतानिष्टाम्
अमानिष्टाम्
व० तापयति
स० तापयेत्
अ० तापयतु / तापयतात् तापयताम्
ह्य० अतापयत्
अतापयताम्
अ० अतीतपत्
अतीतपताम्
अ० तापयाञ्चकार तापयाञ्चक्रतुः
तापयाम्बभूव/तापयामास ।
ममानतुः
मान्यास्ताम्
मानितारौ
मानिष्यतः
अमानिष्यताम्
|| अथ पान्तास्त्रयः ॥
१९७१. तपिण् (तप्) दाहे । ४०४
तापयतः
तापयेताम्
ताप्यास्ताम्
तापयितारौ
तापयिष्यतः
अतापयिष्यताम्
॥णिजभावे ॥
मानयिष्यन्ति
अमानयिष्यन्
तपेते
तपेयाताम्
तपेताम्
अतताम्
मानन्ति
मानेयुः
मानन्तु
अमाणन्
अतानिषुः
अमानिषुः, इत्यादि
ममानुः
मान्यासुः
मानितार:
मानिष्यन्ति
अमानिष्यन्
तापयन्ति
तापयेयुः
तापयन्तु
अतापयन्
अतीतपन्
तापयाञ्चक्रुः
ताप्यासुः
तापयितारः
तापयिष्यन्ति
अतापयिष्यन्
तपन्ते
तपेरन्
तपन्ताम्
अतपन्त
अ० अतपिष्ट
० तेपे
आ० तपिषीष्ट
श्व० तपिता
भ० तपिष्यते
क्रि० अतपिष्यत
० तर्पयत्
अ० अतीतृपत्
अततर्पत्
प० तर्पयाञ्चकार
व० तर्पयति
तर्पयतः
० तर्पयेत्
तर्पयेताम्
प० तर्पयतु /तर्पयतात् तर्पयताम्
अतपिष्येताम्
१९७२. तर्पण (तृप्) प्रीणने । ४०५
आ० तत्
श्व० तर्पयिता
भ० तर्पयिष्यति
क्रि० अतर्पयिष्यत्
व० तर्पति
स तर्फेत्
प० तर्पतु/तर्पतात्
तर्पयाम्बभूव तर्पयामास ।
ह्य तत्
अ० अतपत्
प० ततर्प
आ० तृप्यात्
श्व० तर्पिता
अतपिषाताम् तेपाते
भ० तर्पिष्यति
क्रि० अतर्पिष्यत्
तपिषीयास्ताम्
तपितारौ
तपिष्येते
व० आपयति
अतर्पयताम्
अतीतृपताम्
अततर्पताम्
तर्पयाञ्चक्रतुः
तर्यास्ताम्
तर्पयितारौ
तर्पयिष्यतः
अतर्पयिष्यताम्
॥णिजभावे ॥
तर्पतः
तर्पेताम्
ताम्
अतर्पताम्
अतर्पिष्टम्
ततृपतुः
तृप्यास्ताम्
तर्पितारौ
तर्पिष्यतः
अतपिषत्
तेपिरे
तपिषीरन्
तपितार:
तपिष्यन्ते
अतपिष्यन्त
आपयतः
तर्पयन्ति
तर्पयेयुः
तर्पयन्तु
अतर्पयन्
अतीतृपन्
अततर्पन् इ०
तर्पयाञ्चक्रुः
तर्ष्यासुः
तर्पयितार:
तर्पयिष्यन्ति
अतर्पयिष्यन्
१९७२. आप्लृण् (आप्) लम्भने ।
लम्भनं प्राप्तिः । ४०६
तर्पन्ति
तर्पेयुः
तर्पन्तु
अतर्पन्
अतर्पिषुः
ततृपुः
तृप्यासुः
तर्पितार :
तर्पिष्यन्ति
अतर्पिष्यताम् अतर्पिष्यन्
आपयन्ति
537
Page #555
--------------------------------------------------------------------------
________________
538
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
दर्भताम्
अदर्भन्
आपन्तु
आपन्
स. आपयेत् आपयेताम् आपयेयुः अ० आपयतु/आपयतात् आपयताम् आफ्यन्तु ह्य० आपयत् आपयताम् आपयन् अ० आपिपत् आपिपताम् आपिपन् अ० आपयाञ्चकार आपयाञ्चक्रतुः आपयाञ्चक्रुः
आपयाम्बभूव/आपयामास। आ० आप्यात् आप्यास्ताम्
आप्यासुः श्व० आपयिता आपयितारौ आपयितारः भ० आपयिष्यति आपयिष्यतः आपयिष्यन्ति क्रि० आपयिष्यत् आपयिष्यताम् आपयिष्यन्
॥णिजभावे।। व० आपति
आपत:
आपन्ति स० आपेत् आपेताम् आपेयुः प० आपतु/आपतात् आपताम् ह्य० आपत्
आपताम्
आपन् अ० आपत्
आपताम् प० आप
आपतुः आ० आप्यात् आप्यास्ताम् आप्यासुः श्व० आपिता आपितारौ आपितारः भ० आपिष्यति आपिष्यतः आपिष्यन्ति क्रि० आपिष्यत् आपिष्यताम् आपिष्यन
॥अथ भान्तः। १९७४. भैत् (दृभ्) भये। ४०७ व० दर्भयति दर्भयतः दर्भयन्ति स० दर्भयेत् दर्भयेताम् दर्भयेयुः प० दर्भयतु/दर्भयतात् दर्भयताम् दर्भयन्तु ह्य० अदर्भयत् अदर्भयताम् अदर्भयन् अ० अदीदृभत् अदीदृभताम् अदीदृभन्
अददर्भत् अददर्भताम् अददर्भन् इ० प० दर्भयाञ्चकार दर्भयाञ्चक्रतुः दर्भयाञ्चक्रुः - दर्भयाम्बभूव/दर्भयामास।
आ० दात् दास्ताम् दासुः
श्व० दयिता दर्भयितारौ दर्भयितारः भ० दर्भयिष्यति दर्भयिष्यतः दर्भयिष्यन्ति क्रि० अदर्भयिष्यत् अदर्भयिष्यताम् अदर्भयिष्यन्
णिजभावे॥ व० दर्भति दर्भतः दर्भन्ति स० दर्भेत्
दर्भेयुः प० दर्भतु/दर्भतात् दर्भताम् दर्भन्तु ह्य० अदर्भत् अदर्भताम् अ० अदर्भीत्
अदर्भिष्टाम्
अदर्भिषुः प० ददर्भ
ददृभतुः
ततृपुः आ० दृभ्यात् दृभ्यास्ताम् दृभ्यासुः श्व० दर्भिता दर्भितारौ दर्भितार: भ० दर्भिष्यति दर्भिष्यतः दर्भिष्यन्ति क्रि० अदर्भिष्यत् अदर्भिष्यताम् अदर्भिष्यन्
॥अथ रान्ताः ॥
१९७५. ईरण (ईर्) क्षेपे। ४०८ व० ईरयति
ईरयन्ति स० ईरयेत् ईरयेताम् ईरयेयुः प० ईरयतु/ईरयतात् ईरयताम् ईरयन्तु ह्य० ऐरयत् ऐरयताम् ऐरयन् अ० ऐरिरत् ऐरिरताम् ऐरिरन् प० ईरयाञ्चकार ईरयाञ्चक्रतुः ईरयाञ्चक्रुः
ईरयाम्बभूव/ईरयामास। आ० ईर्यात् ईर्यास्ताम्
ईर्यासुः श्व० ईरयिता ईरयितारौ ईरयितारः भ० ईरयिष्यति ईरयिष्यतः ईरयिष्यन्ति क्रि० ऐरयिष्यत् ऐरयिष्यताम् ऐरयिष्यन्
॥णिजभावे॥ व० ईरति
ईरन्ति स० ईरेत्
ईरेयुः प० ईरतु/ईरतात् ईरताम् | ह्य० ऐरत्
आपुः
ईरयतः
ईरत: इरताम्
ईरन्तु
ऐरताम्
Page #556
--------------------------------------------------------------------------
________________
539
ऐरीत्
ईराञ्चक्रुः
ईर्यासुः
अशेषयन्
मर्षयेयुः
चुरादिगण अ० ऐरीत् ऐरिष्टाम् ऐरिषुः । क्रि० अमर्षिष्यत अमर्षिष्येताम् अमर्षिष्यन्त
अमानिष्टाम् अमानिषुः, इत्यादि १९७७. शिषण (शिष्) असर्वोपयोगे। प० ईराञ्चकार ईराञ्चक्रतुः
___ असर्वोपयोगोऽनुपयुक्तत्वम्। ४१० ईराम्बभूव/ईरामास।
व० शेषयति शेषयतः शेषयन्ति आ० ईर्यात् ईर्यास्ताम्
स० शेषयेत् शेषयेताम् शेषयेयुः श्व० ईरिता ईरितारौ ईरितारः प० शेषयतु/शेषयतात् शेषयताम् शेषयन्तु भ० ईरिष्यति ईरिष्यतः ईरिष्यन्ति ह्य० अशेषयत् अशेषयताम् क्रि० ऐरिष्यत् ऐरिष्यताम्
ऐरिष्यन्
अ० अशीशिषत् अशीशिषताम् अशीशिषन् ॥अथ षान्ताश्चत्वारः॥
प० शेषयाश्चकार शेषयाञ्चक्रतुः शेषयाञ्चक्रुः १९७६. मृषिण् (मृष्) तितिक्षायाम्। ४०९
शेषयाम्बभूव/शेषयामास। व० मर्षयति मर्षयतः मर्षयन्ति
आ० शेष्यात्
शेष्यास्ताम्
शेष्यासुः स० मर्षयेत् मर्षयेताम्
श्व० शेषयिता शेषयितारौ शेषयितारः प० मर्षयतु/मर्षयतात् मर्षयताम्
मर्षयन्तु
भ० शेषयिष्यति शेषयिष्यतः शेषयिष्यन्ति ह्य० अमर्षयत् अमर्षयताम् अमर्षयन् क्रि० अशेषयिष्यत् अशेषयिष्यताम् अशेषयिष्यन् अ० अमीमृषत् अमीमृषताम् अमीमृषन्
णिजभावे।। अममर्षत् अममर्षताम् अममर्षन्, इत्यादि | व० शेषति शेषतः
शेषन्ति प० मर्षयाञ्चकार मर्षयाञ्चक्रतुः
मर्षयाञ्चक्रुः
स० शेषेत् शेषेताम् मर्षयाम्बभूव/मर्षयामास।
प० शेषतु/शेषतात् शेषताम् आ० मात् मास्ताम् मासुः ह्य० अशेषत् अशेषताम् अशेषन् श्व० मर्षयिता मर्षयितारौ मर्षयितारः अ० अशेषीत् अशेषिष्टाम् अशेषिषुः भ० मर्षयिष्यति मर्षयिष्यतः मर्षयिष्यन्ति
अशेषिष्टाम् अमानिषुः, इत्यादि क्रि० अमर्षयिष्यत् अमर्षयिष्यताम् अमर्षयिष्यन् प० शिशेष शिशिषतुः शिशिषुः णिजभावे॥
आ० शिष्यात् शिष्यास्ताम् व० मर्षते मरेते
मर्षन्ते
श्व० शेषिता शेषितारौ शेषितारः स० मर्चेत मर्षेयाताम् मर्षेरन्
भ० शेषिष्यति
शेषिष्यन्ति प० मर्षताम् मरेताम् मर्षन्ताम् क्रि० अशेषिष्यत् अशेषिष्यताम् अशेषिष्यन् ह्य० अमर्षत अमर्षताम् अमर्षन्त
१९७८. जुषण (जुष्) परितर्कणे। ४११ अ० अमर्षिष्ट अमर्षिषाताम् अमर्षिषत् व० जोषयति जोषयतः जोषयन्ति प० ममृषे ममृषाते ममृषिरे
स० जोषयेत् जोषयेताम् जोषयेयुः आ० मर्षिषीष्ट मर्षिषीयास्ताम् मर्षिषीरन् प० जोषयतु/जोषयतात् जोषयताम् जोषयन्तु श्व० मर्षिता मर्षितारौ मर्षितारः ह्य० अजोषयत् अजोषयताम् अजोषयन् भ० मर्षिष्यते मर्षिष्येते मर्षिष्यन्ते
| अ० अजूजुषत् अजूजुषताम् अजूजुषन्
शेषेयुः शेषन्तु
अशेषीत्
शिष्यासुः
शेषिष्यतः
Page #557
--------------------------------------------------------------------------
________________
540
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
धर्षेयुः धर्षन्तु
जोष्यासुः
जोषन्तु
व० धर्षति धर्षतः
धर्षन्ति स० धर्षेत्
धर्षताम प० धर्षतु/धर्षतात् धर्षताम् ह्य० अधर्षत्
अधर्षताम्
अधर्षन् अ० अधर्षीत् अधर्षिष्टाम् अधर्षिषुः प० दधर्ष
दधृषतुः
दधृषुः आ० धृष्यात् धृष्यास्ताम् धृष्यासुः ० धर्षिता धर्षितारौ
धर्षितार: भ० धर्षिष्यति धर्षिष्यतः धर्षिष्यन्ति क्रि० अधर्षिष्यत् अधर्षिष्यताम अधर्षिष्यन्
॥अथ सान्तौ।। १९८०. हिसुण (हिंस्) हिंसायाम्। ४१३ व० हिंसयति हिंसयतः हिंसयन्ति स० हिंसयेत् हिंसयेताम् हिंसयेयुः प० हिंसयतु/हिंसयतात् हिंसयताम् ह्य० अहिंसयत् अहिंसयताम् अहिंसयन् अ० अजिहिंसत् अजिहिंसताम् अजिहिंसन् प० हिंसयाञ्चकार हिंसयाञ्चक्रतुः हिंसयाञ्चक्रुः
हिंसयाम्बभूव/हिंसयामास। आ० हिंस्यात् हिंस्यास्ताम् ० हिंसयिता हिंसयितारौ हिंसयितारः भ० हिंसयिष्यति हिंसयिष्यतः हिंसयिष्यन्ति क्रि० अहिंसयिष्यत् अहिंसयिष्यताम् अहिंसयिष्यन्
॥णिजभावे॥
पत्
प० जोषयाञ्चकार जोषयाञ्चक्रतुः जोषयाञ्चक्रुः ____ जोषयाम्बभूव/जोषयामास। आ० जोष्यात् जोष्यास्ताम् श्व० जोषयिता जोषयितारौ
जोषयितारः भ० जोषयिष्यति जोषयिष्यतः जोषयिष्यन्ति क्रि० अजोषयिष्यत् अजोषयिष्यताम् अजोषयिष्यन्
णिजभावे।। व० जोषति
जोषतः
जोषन्ति स० जोषेत्
जोषताम्
जोषयुः प० जोषतु जोषतात् जोषताम् ह्य० अजोषत् अजोषताम् अजोषन् अ० अजोषीत् अजोषिष्टाम् अजोषिषुः प० जुजोष जुजुषतुः जुजुषुः आ० जुष्यात् जुष्यास्ताम् जुष्यासुः श्व० जोषिता जोषितारौ जोषितारः भ० जोषिष्यति जोषिष्यतः जोषिष्यन्ति क्रि० अजोषिष्यत् अजोषिष्यताम् अजोषिष्यन्
१९७९. धृषण (धृष्) प्रसहने।
प्रसहनमभिभवः। ४१२ व० धर्षयति धर्षयतः धर्षयन्ति स० धर्षयेत् धर्षयेताम् धर्षयेयुः प० धर्षयतु/धर्षयतात् धर्षयताम् धर्षयन्तु ह्य० अधर्षयत् अधर्षयताम् अधर्षयन् अ० अदीधृषत् अदीधृषताम् अदीधृषन्
अदधर्षत् अदधर्षताम् अदधर्षन, इत्यादि प० धर्षयाञ्चकार धर्षयाञ्चक्रतुः धर्षयाञ्चक्रुः
धर्षयाम्बभूव/धर्षयामास। आ० धात् धास्ताम् धासुः श्व० धर्षयिता धर्षयितारौ धर्षयितार: भ० धर्षयिष्यति धर्षयिष्यतः धर्षयिष्यन्ति क्रि० अधर्षयिष्यत् अधर्षयिष्यताम् अधर्षयिष्यन्
॥णिजभावे।।
हिंसयन्तु
हिंस्यासुः
हिंसतः
हिंसन्ति हिंसेयुः
हिंसन्तु
व हिंसति स० हिंसेत् हिंसेताम् प० हिंसतु/हिंसतात् हिंसताम् ह्य० अहिंसत् अहिंसताम् अ० अहिंसीत् अहिंसिष्टाम् प० जिहिंस जिहिंसतुः आ० हिंस्यात् हिंस्यास्ताम् श्व० हिंसिता हिंसितारौ
अहिंसन् अहिंसिषुः जिहिंसुः हिंस्यासुः हिंसितारः
Page #558
--------------------------------------------------------------------------
________________
•
चुरादिगण
भ० हिंसिष्यति
क्रि० अहिंसिष्यत्
हिंसिष्यतः
अहिंसिष्यताम् ॥ अथ हान्तौ ॥
१९८१. गर्हण (गर्ह) विनिन्दने । ४१४
व० गर्हयति
गर्हयतः
स० [गर्हयेत्
गर्हयेताम्
प० गर्हयतु / गर्हयतात् गर्हयताम्
० अगर्हयत्
अ० अजगर्हत्
प० गर्हयाञ्चकार
गर्हयाम्बभूव/गर्हयामास ।
आ० ग
श्व० गर्हयिता
भ० गर्हयिष्यति
क्रि० अगर्हयिष्यत्
व० गर्हति
स० [गर्हेत्
प० गर्हतु/गर्हतात्
० अर्हत्
अ० अगत्
प० जगह
आ० गर्ह्यात् श्व० गर्हिता
भ० गर्हिष्यति
क्रि० अगर्हिष्यत्
गर्हयन्ति
गर्हयेयुः
गर्हयन्तु
अर्हतम्
अगर्हयन्
अर्हतम्
अजगर्हन्
गर्हयाञ्चक्रतुः गर्हयाञ्चक्रुः
गर्ह्यास्ताम्
गर्हयितारौ
गर्हयिष्यतः
अगर्हयिष्यताम् ॥णिजभावे ॥
गर्हतः
गर्हेताम्
गर्हताम्
अर्हताम्
अगर्हिष्टाम्
जगर्हतुः
गर्ह्यास्ताम्
गर्हितारौ
गर्हिष्यतः
हिंसिष्यन्ति
अहिंसिष्यन्
व० साहयति
स० [साहयेत्
प० साहयतु/ साहयतात् साहयताम्
ह्य० असाहयत् असाहयताम् अ० असीषहत्
असीषहाम्
साहयतः
साहयेताम्
गर्ह्यासुः
गर्हयितारः
गर्हयिष्यन्ति
अगर्हयिष्यन्
गर्हन्ति
गर्हेयुः
गर्हन्तु
अगर्हन्
अर्हिषुः
जगर्हः
अगर्हिष्यताम्
१९८२. पहण् (सह्) मर्षणे । ४१५
गर्ह्यासुः
गर्हितार:
गर्हिष्यन्ति
अगर्हिष्यन्
साहयन्ति
साहयेयुः
साहयन्तु
असाहयन्
असीषहन्
प० साहयाञ्चकार
साहयाम्बभूव / साहयामास ।
आ० साह्यात्
श्व० साहयिता
भ० साहयिष्यति
क्रि० असाहयिष्यत्
व० सहति
सत्
प० सहतु / सहतात्
ह्य० असहत्
अ० असत्
प० ससाह
साहयाञ्चक्रतुः
साह्यास्ताम्
साहयितारौ
साहयिष्यतः
जसा यिष्यताम्
॥ णिजभावे ॥
सहत:
सहेताम्
सहताम्
असहताम्
असहिष्टाम्
सेहतुः
सह्यास्ताम्
सहितारौ
सहिष्यतः
साहयाञ्चक्रुः
विच्छायीभवन्तीत्यर्थः ;
साह्यासुः
साहयितार:
साहयिष्यन्ति
असाहयिष्यन्
सहन्ति
सहेयुः
सहन्तु
असहन्
असहिषुः
सेहुः
सह्यासुः
सहितार:
सहिष्यन्ति
आ० सह्यात्
श्व० सहिता
भ० सहिष्यति
क्रि० असहिष्यत् असहिष्यताम् असहिष्यन् बहुलमेतन्निदर्शनम् यदेतद्भवत्यादिधातुपरिगणनं तद्बाहुल्येन निदर्शनत्वेन ज्ञेयम् । तेनात्रापठिता अपि क्लविप्रभृतयो लौकिकाः सतम्भूप्रभृतयः सौत्राचलुम्पादयश्च वाक्यकरणीया धातव उदाहार्याः । वर्धते हि धातुगणः । यल्लक्ष्यम् ।
मिलन्त्याशासु जीमूता विक्लवन्ते दिवि ग्रहाः । उपक्षपयति प्रावृट् क्षीयन्ते कामिविग्रहाः । इत्यादि । मुसुलक्षेपहुंकारस्तोभैः कलमखण्डिनि। कुचविष्कम्भमुत्तभ्नन्निस्कुनातीव ते स्मरः ॥ नीपानन्दोलयन्नेष प्रेङ्खोलयति मे मनः । पवनो वीजयन्नाशा ममाशामुच्चुलुम्पति ।।
तावत्खर: प्रखरमुल्ललयाञ्चकार ॥ विक्लवन्ते
आसन्नीभवन्तीत्यर्थः ।
541
उपक्षपयति
यद्वा भुवादिगणाष्टकोक्ताः स्वार्थणिजन्ता अपि बहुलं भवन्ति । चुरादिपाठस्तु निदर्शनार्थः । यदाहु:
Page #559
--------------------------------------------------------------------------
________________
542
निवृत्तप्रेषणाद्धातोः प्राकृतेऽर्थे णिजिष्यते ॥ यल्लक्ष्यम् । रामो राज्यमकारयत् । अकरोदित्यर्थः ।
रञ्जयति वस्त्रम्। रजतीत्यर्थः । भेदयति भूत्यान् । भिनत्तीत्यर्थः । तापयति वाचयति वाहयति घातयति तपति वक्ति वहति हन्तीर्त्यः । यद्वा प्रयोज्यव्यापारेऽपि प्रयोक्तृव्यापारानुप्रवेशो rिi विनापि बुद्ध्यारोपाद् बहुलं भवति ।
जान गर्भं मघवा इन्द्रः । अजीजनदित्यर्थः । एक द्वादशधा जज्ञे । जनितमित्यर्थः ।
षड्भिर्हलै : कृषति । कर्षयतीत्यर्थः । वान्ति पर्णशुषो वाता वान्ति पर्णमुचोऽपरे । वान्ति पर्णरुहोऽप्यन्ये ततो देवः प्रवर्षति । इति ।।
अथवा नाम्नो बहुलव सिद्धेस्तत्र सूत्रच्छिद्रान्धदण्डादय उदाहरणार्थाः । तेनादन्तेषु अनुक्ता अपि बहुलं द्रष्टव्याः । तेन स्कन्ध समाहारे, ऊष छुरणे, स्फुट प्रकटभावे, वसं निवासे, इत्यादयोऽपि भवन्ति । तथा
ओजयत्योजः ।
तडित्खचयतीवाशाः ।।
पांसुर्दिशां मुखमतुत्थयदुत्थितोद्रेः । इति ।।
॥ इति णिजन्तश्चुरादयो धातवः ||
|| चुरादिगण: सम्पूर्णः ||
नं नं नं
अथ सौत्रादिधातुरूपाणि
क्लविप्रभृतयो लौकिका इति रूपाणि दर्श्यन्ते
तत्र १९८३. क्लवि (क्लव) विच्छायीभवने इत्यस्य ।
व० क्लवते
क्लवसे
क्लवे
स० क्लवेत
क्लवेथाः
क्लवेय
प० क्लवताम्
क्लवस्व
क्लवै
ह्य० अक्लवत
अक्लवथाः
अक्लवे
अ० अक्लविष्ट
अक्लविष्ठाः
अक्लविषि
प० चक्लवे
चक्लविषे
चक्लवे
आ० क्लविषीष्ट
क्लविषीष्ठाः
क्लविषीय
श्व० क्लविता
क्लवितासे
क्लविताहे
भ० क्लविष्यते
क्लाविष्यसे
क्लाविष्ये
क्रि० अक्लविष्यत
अक्लविष्यथाः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
क्लवेते
क्लवेथे
क्लवन्ते
क्लवध्वे
क्लवाव
क्लवामहे
क्लवेयाताम्
क्लवेरन्
क्लवेयाथाम् क्लवेध्वम्
क्लवेवहि
क्लवेमहि
क्लवेताम्
क्लवेथाम्
क्लवावहै
अक्
अक्लवेथाम्
अक्लवावहि
क्लवन्ताम्
क्लवध्वम्
क्लवा है
अक्लवन्त
अक्लवध्वम्
अक्लवामहि
अक्लविषाताम् अक्लविषत्
अक्लविषाथाम्
अक्लविष्वहि
चक्लवाते
चक्लवाथे
चक्लविवहे
अक्लविङ्कध्वम्
अक्लविष्महि
चक्लविरे
चक्लविध्वे
चक्लविमहे
क्लविषीयास्ताम् क्लविषीरन्
क्लविषीयास्थाम् क्लविषीध्वम्
क्लविषीवहि क्लविषीमहि
क्लवितारौ
क्लवितासा
क्लवितास्वहे
क्लाविष्येते
क्लाविष्येथे
क्लवितारः
क्लविताध्वे
क्लवितास्मिहे
क्लाविष्यन्ते
क्लाविष्यध्वे
क्लाविष्यावहे क्लाविष्यामहे
अक्लविष्येताम् अक्लविष्यन्त
अक्लविष्येथाम्
अक्लविष्यध्वम्
Page #560
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
543
मृग्यसि
मृग्येत
अक्लविष्ये अक्लविष्यावहि अक्लविष्यामहि
प्रभृतिग्रहणात्।
१९८४. क्षीच् (क्षी) क्षये। - व. क्षीयते
क्षीयेते
क्षीयन्ते क्षीयसे क्षीयेथे
क्षीयध्वे क्षीये
क्षीयावहे क्षीयामहे स० क्षीयेत क्षीयेयाताम् क्षीयेरन् क्षीयेथाः क्षीयेयाथाम्
क्षीयेध्वम् क्षीयेय
क्षीयेवहि क्षीयेमहि प० क्षीयताम् क्षीयेताम् क्षीयन्ताम्
क्षीयस्व क्षीयेथाम् क्षीयध्वम् क्षीयै
क्षीयावहै क्षीयामहै ह्य० अक्षीयत अक्षीयेताम् अक्षीयन्त
अक्षीयथाः अक्षीयेथाम् अक्षीयध्वम्
अक्षीये अक्षीयावहि अक्षीयामहि अ० अक्षैष्ट
अक्षैषाताम् अक्षैषत अक्षैष्ठाः अक्षैषाथाम्
अड्डूवम्/ध्वम् अक्षैषि अक्षैष्वहि अक्षैष्महि प० चिक्षिये चिक्षियाते चिक्षियिरे
चिक्षिषे चिक्षियाथे चिक्षियिध्वे/चिक्षिायदवे
चिक्षिये चिक्षियिवहे चिक्षियिमहे आ० क्षेषीष्ट क्षेषीयास्ताम्
क्षेषीष्ठाः क्षेषीयास्थाम् क्षेषीध्वम् क्षेषीय
क्षेषीवहि क्षेषीमहि श्व० क्षेता क्षेतारौ
क्षेतारः क्षेतासे क्षेतासाथे क्षेताध्वे
क्षेताहे क्षेतास्वहे क्षेतास्मिहे भ० क्षेष्यते क्षेष्येते
क्षेष्यन्ते क्षेष्यसे क्षेष्येथे क्षेष्यध्वे क्षेष्ये
क्षेष्यावहे क्षेष्यामहे क्रि० अक्षेष्यत
अक्षेष्येताम् अक्षेष्यन्त अक्षेष्यथाः अक्षेष्येथाम् अक्षेष्यध्वम्
अक्षेष्ये अक्षेष्यावहि अक्षेष्यामहि
१९८५. मृगच् (मृग्) अन्वेषणे। व० मृग्यति मृग्यतः मृग्यन्ति
मृग्यथः मृग्यथ मृग्यामि मृग्यावः मृग्यामः स० मृग्येत् मृग्येताम् मृग्येयुः
मृग्ये: मृग्येतम्
मृग्येयम् मृग्येव मृग्येम प० मृग्यतु/मृग्यतात् मृग्यताम् मृग्यन्तु मृग्य/मृग्यतात् मृग्यतम्
मृग्यत मृग्याणि मृग्याव
मृग्याम ह्य० अमृग्यत् अमृग्यताम् अमृग्यन्
अमृग्यः अमृग्यतम् अमृग्यत
अमृग्यम् अमृग्याव अमृग्याम अ० अमर्गीत् अमर्गिष्टाम् अमर्गिषुः
अमर्गीः अमर्गिष्टम् अमर्गिष्ट
अमर्गिषम् अमर्गिष्व अमर्गिष्म प० ममर्ग मगतुः
ममृगुः ममर्गिथ
ममर्ग ममृगिव ममृगिम आ० मृग्यात् मृग्यास्ताम् मृग्यासुः मृग्या :
मृग्यास्तम् मृग्यास्त मृग्यासम् मृग्यास्व मृग्यास्म श्व० मर्गिता मन्तिारौ मर्गितारः
मन्तिासि मन्तिास्थ: मन्तिास्थ
मर्गितास्मि मर्गितास्वः मर्गितास्मः भ० मर्गिष्यति मर्गिष्यतः मर्गिष्यन्ति
मर्गिष्यसि मर्गिष्यथ: मर्गिष्यथ
मर्गिष्यामि मर्गिष्याव: मर्गिष्यामः क्रि० अमर्गिष्यत् अमर्गिष्यताम् अमर्गिष्यन्
अमर्गिष्यः अमर्गिष्यतम अमर्गिष्यत अमर्गिष्यम् अमर्गिष्याव अमर्गिष्याम
ममृगथुः
ममृग
क्षेषीरन्
Page #561
--------------------------------------------------------------------------
________________
544
स्तम्भूप्रभृतयः सौत्रा इति यदुक्तं तत्रादौ स्तम्भू स्तुम्भू स्कम्भू स्कुम्भू इति चत्वारो रोधनार्था: परस्मैपदिनश्च । प्रथमतृतीयौ स्तम्भार्थी द्वितीयो निष्कोषणार्थः । तुर्यो धारणार्थ इति माधवः । १९८६. स्तम्भू (स्तम्भ) रोधनार्थ: ।
व० स्तभ्नाति
स्तभ्नासि
स्तनामि
स्तनोति
० स्तभ्नीयात्
स्तनीयाः
स्तनीयाम्
स्तभ्नुतः
स्तनीयाताम्
स्तनीयातम्
स्तनीयाव
तथा
स्तभ्नुयात्
स्तभ्नुयाताम्
प० स्तभ्नातु / स्तभ्नीतात् स्तभ्नीताम्
स्तभान / स्तनीतात् स्तभ्नीतम्
स्तभ्नानि
स्तभ्नाव
तथा
स्तनोतु स्तनुतात् स्तभ्नुताम्
ह्य० अस्तभ्नात्
अस्तभ्नाः
अस्तभ्नाम्
अ० अस्तम्भीत्
अस्तम्भी:
प० तस्तम्भ
तस्तम्भिथ
तस्तम्भ
आ० स्तभ्यात्
स्तभ्याः
स्तनीतः
स्तनीथः
स्तनीवः
तथा
स्तभ्यासम्
श्व० स्तम्भिता
अस्तम्भष्टाम् अस्तम्भिषुः
अस्तम्भिष्टम्
अस्तम्भिष्ट
अस्तम्भिषम् अस्तम्भिष्व
अस्तम्भिष्म
स्तनन्ति
स्तनीथ
स्तनीमः
स्तभ्नुवन्ति, इ०
स्तनीयुः
स्तनीयात
स्तनीयाम
तस्तम्भतुः
तस्तम्भथुः
तस्तम्भिव
स्तभ्यास्ताम्
स्तभ्यास्तम्
स्तभ्यास्व
स्तम्भितारौ
स्तभ्नुयुः, इत्यादि ।
स्तभ्नन्तु
स्तनीत
स्तभ्नाम
स्तभ्नुवन्तु, इ०
अस्तनीताम्
अस्तभ्णन्
अस्तनीतम् अस्तनीत
अस्तभ्नीव
अस्तभ्नीम
तस्तम्भुः
तस्तम्भ
तस्तम्भिम
स्तभ्यासुः
स्तभ्यास्त
स्तभ्यास्म
स्तम्भितारः
स्तम्भितासि
स्तम्भितास्थः
स्तम्भितास्मि स्तम्भितास्वः
भ० स्तम्भिष्यति स्तम्भिष्यतः
स्तम्भष्यसि स्तम्भिष्यथः स्तम्भिष्यामि
स्तम्भिष्यावः
क्रि० अस्तम्भिष्यत्
अस्तम्भिष्यः
अस्तम्भिष्यताम्
अस्तम्भिष्यतम्
अस्तम्भिष्यम् अस्तम्भिष्याव
वस्तु
स्तुभ्नासि
स्तुभ्नामि
भ
० स्तुभ्नीयात्
स्तुभ्नीयाः
स्तुभ्नीयाम्
१९८७. स्तुम्भू (स्तुम्भ) रोधनार्थ: ।
ह्य० अस्तुभ्नात्
अस्तुभ्नाः
अस्तुभ्नाम्
अ० अस्तुम्भीत्
अस्तुम्भी:
अस्तुभम्
प० तुस्तुम्भ
स्तुभ्नुयात्
स्तुभ्नुयाताम् प० स्तुभ्नातु / स्तुभ्नीतात् स्तुभ्नीताम्
स्तुभान / स्तुभ्नीतात् स्तुभ्नीतम्
स्तुभ्नानि
स्तुभ्नाव तथा
स्तुभ्नोतु / स्तुभ्नुतात् स्तुभ्नुताम्
अस्तुनीताम्
अस्तुभ्नीतम्
अस्तुभ्नीव
तुस्तुम्भथ
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
स्तम्भितास्थ
स्तम्भितास्मः
स्तम्भिष्यन्ति
स्तम्भिष्यथ
स्तम्भिष्यामः
अस्तम्भिष्यन्
अस्तम्भिष्यत
तुनीतः
स्तुभ्नीथः
स्तुभ्नीव:
तथा
अस्तम्भिष्याम
अस्तुष्टाम्
अस्तुभिष्टम्
अस्तुभिष्व
तुस्तुम्भतुः
तुस्तुम्भथुः
स्तुभ्नुतः
स्तुभ्नीयाताम् स्तुभ्नीयुः
स्तुभ्याम्
स्तुभ्नीयात
स्तुनीयाव
स्तुभ्नीयाम
तथा
स्तुभ्नन्ति
तुनीथ
स्तुभ्नीमः
स्तुभ्नुवन्ति, इ०
स्तुभ्नुयुः, इत्यादि
स्तुभ्नन्तु
स्तुनीत
स्तुभ्नाम
स्तुभ्नुवन्तु, इत्यादि
अस्तुभ्णन्
अस्तुन
अस्तुभ्नीम
अस्तुभिषुः
अस्तुभिष्ट
अस्तुभिष्म
तुस्तुम्भुः
तुस्तुम्भ
Page #562
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
545
तुस्तुम्भ तुस्तुम्भिव तुस्तुम्भिम
अस्कम्भिषम् अस्कम्भिष्व अस्कम्भिष्म आ० स्तुभ्यात् स्तुभ्यास्ताम् स्तुभ्यासुः
प० चस्कम्भ चस्कम्भतुः चस्कम्भुः स्तुभ्याः स्तुभ्यास्तम् स्तुभ्यास्त
चस्कम्भिथ चस्कम्भथुः
चस्कम्भ स्तुभ्यासम् स्तुभ्यास्व स्तुभ्यास्म
चस्कम्भ चस्कम्भिव चस्कम्भिम श्व० स्तुम्भिता स्तुम्भितारौ स्तुम्भितार: आ० स्कभ्यात् स्कभ्यास्ताम् स्कभ्यासुः स्तुम्भितासि स्तुम्भितास्थ: स्तुम्भितास्थ
स्कभ्या: स्कभ्यास्तम् स्कभ्यास्त स्तुम्भितास्मि स्तुम्भितास्वः स्तुम्भितास्मः
स्कभ्यासम् स्कभ्यास्व स्कभ्यास्म भ० स्तुम्भिष्यति स्तुम्भिष्यतः स्तुम्भिष्यन्ति श्व० स्कम्भिता स्कम्भितारौ स्कम्भितार: स्तुम्भिष्यसि स्तुम्भिष्यथ: स्तुम्भिष्यथ
स्कम्भितासि स्कम्भितास्थ: स्कम्भितास्थ स्तुम्भिष्यामि स्तुम्भिष्याव: स्तुम्भिष्यामः स्कम्भितास्मि स्कम्भितास्वः स्कम्भितास्मः क्रि० अस्तुम्भिष्यत् अस्तुम्भिष्यताम् अस्तुम्भिष्यन् भ० स्कम्भिष्यति स्कम्भिष्यतः स्कम्भिष्यन्ति
अस्तुम्भिष्यः अस्तुम्भिष्यतम् अस्तुम्भिष्यत स्कम्भिष्यसि स्कम्भिष्यथ: स्कम्भिष्यथ अस्तुम्भिष्यम् अस्तुम्भिष्याव अस्तुम्भिष्याम स्कम्भिष्यामि
स्कम्भिष्यामः १९८८. स्कुम्भू (स्कुम्भ) रोधनार्थः। क्रि० अस्कम्भिष्यत् अस्कम्भिष्यताम् अस्कम्भिष्यन् व० स्कभ्नाति स्कभ्नीत: स्कभ्नन्ति
अस्कम्भिष्यः अस्कम्भिष्यतम् अस्कम्भिष्यत स्कभ्नासि स्कभ्नीथः स्कभ्नीथ
अस्कम्भिष्यम् अस्कम्भिष्याव अस्कम्भिष्याम स्कभ्नामि स्कभ्नीवः स्कभ्नीमः
१९८९. स्कुम्भू (स्कुम्भ) रोधनार्थः। स्कभनोति स्कभ्नुतः स्कभ्नुवन्ति, इ० व० स्कुभ्नाति स्कुभ्नीतः
स्कुभ्नन्ति स० स्कभ्नीयात् स्कभ्नीयाताम् स्कभ्नीयु:
स्कुभनोति स्कुभ्नुतः स्कुभ्नुवन्ति, इ० स्कभ्नीयाः स्कभ्नीयातम् स्कभ्नीयात
| स० स्कुभ्नीयात् स्कुभ्नीयाताम् स्कुभ्भीयुः स्कभ्नीयाम् स्कभ्नीयाव स्कभ्नीयाम
स्कुभ्नुयात् स्कुभ्नुयाताम् स्कुभ्नुयुः, इत्यादि स्कभ्नुयात् स्कभ्नुयाताम् स्कभ्नुयुः, इत्यादि | प० स्कभनात्/स्कुभ्नीतात् स्कुभ्नीताम् स्कुभनन्तु प० स्कभ्नातु/स्कभ्नीतात् स्कभ्नीताम् स्कभ्नन्तु
| स्कुनोतु/स्कुभ्नुतात् स्कुभ्नुताम् स्कुभ्नुवन्तु, इ० स्कभान/स्कभ्नीतात् स्कभ्नीतम् स्कभ्नीत
ह्य० अस्कुभ्नात् अस्कुभ्नीताम् अस्कुभ्णन् स्कभ्नानि स्कभ्नाव स्कभ्नाम
अ० अस्कुम्भीत् अस्कुम्भिष्टाम् अस्कुम्भिषुः
प० चस्कुम्भ चस्कुम्भतुः चस्कुम्भुः स्कभ्नोतु स्कभ्नुतात् स्कभ्नुताम् स्कभ्नुवन्तु,इत्यादि
आ० स्कुभ्यात् अस्कभ्नीताम्
स्कुभ्यासुः
स्कुभ्यास्ताम् ह्य० अस्कभ्नात्
अस्कभ्णन् अस्कभ्नीतम्
श्व० स्कुम्भिता स्कुम्भितारौ अस्कभ्नाः
स्कुम्भितारः अस्कभ्नीत अस्कभ्नीव अस्कभ्नाम्
अस्कभ्नीम
भ० स्कुम्भिष्यति स्कुम्भिष्यतः स्कुम्भिष्यन्ति अ० अस्कम्भीत् अस्कम्भिष्टाम् अस्कम्भिषुः
| क्रि० अस्कुम्भिष्यत् अस्कुम्भिष्यताम् अस्कुम्भिष्यन् अस्कम्भी: अस्कम्भिष्टम् अस्कम्भिष्ट
तथा
Page #563
--------------------------------------------------------------------------
________________
546
धातुरत्नाकर प्रथम भाग १९९०. जुं (जु) गतौ सौत्रः।
कण्डूयाम्बभूव/कण्डूयामास। व० जवति जवतः
जवन्ति
आ० कण्डूय्यात् कण्डूय्यास्ताम् कण्डूय्यासुः स० जवेत् जवेताम् जवेयुः
श्व० कण्डूयिता कण्डूयितारौ कण्डूयितारः प० जवतु/जवतात् जवताम् जवन्तु
भ० कण्डूयिष्यति कण्डूयिष्यतः कण्डूयिष्यन्ति ह्य० अजवत् अजवताम् अजवन्
क्रि० अकण्डूयिष्यत् अकण्डूयिष्यताम् अकण्डूयिष्यन् अ० अजौषीत् अजौष्टाम् अजौषुः
१९९२. कण्डूग् (कण्डू) गात्रविघर्षणे। प० जुजाव जुजवतुः
जुजवु:
व० कण्डूयते कण्डूयेते कण्डूयन्ते आ० जूयात् जूयास्ताम् जूयासुः
स० कण्डूयेत कण्डूयेयाताम् कण्डूयेरन् व० जोता
जोतारौ जोतार:
प० कण्डूयताम् कण्डूयेताम् कण्डूयन्ताम् भ० जोष्यति जोष्यतः जोष्यन्ति ह्य० अकण्डूयत अकण्डूयेताम् अकण्डूयन्त क्रि० अजोष्यत् अजोष्यताम् अजोष्यन् अ० अकण्डूयिष्ट अकण्डूयिषाताम् अकण्डूयिषत १९९१. कगे (कग्) सौत्रः।
प० कण्डयाञ्चके कण्डयाचक्राते कण्डयाञ्चक्रिरे क्रियासामान्यार्थोऽयमित्येके अनेकार्थोऽयमित्यन्ये। कण्डूयाम्बभूव/कण्डूयामास।
आ० कण्डूयिषीष्ट व० कगति कगन्ति
कण्डूयिषीयास्ताम् कण्डूयिषीरन् कगतः कगेताम्
श्व० कण्डूयिता
कगेयुः स० कगेत्
कण्डूयितारौ कण्डूयितार:
भ० कण्डूयिष्यते कण्डूयिष्येते कण्डूयिष्यन्ते प० कगतु/कगतात् कगताम् कगन्तु
क्रि० अकण्डूयिष्यत अकण्डूयिष्येताम् अकण्डूयिष्यन्त ह्य० अकगत् अकगताम् अकगन् अ० अकगीत् अकगिष्टाम्
१९९३. महीङ् (मही) वृद्धौ पूजायाञ्च।
अकगिषुः अकगीत् अकगिष्टाम् अमानिषुः, इत्यादि | व० महीयते महीयेते महीयन्ते प० चकाग चकगतुः चकगुः
स० महीयेत महीयेयाताम् महीयेरन् आ० कग्यात् कग्यास्ताम्
प० महीयताम् महीयेताम्
महीयन्ताम् श्रु० कगिता कगितारौ कगितार:
ह्य० अमहीयत अमहीयेताम् अमहीयन्त भ० कगिष्यति कगिष्यतः कगिष्यन्ति
अ० अमहीयिष्ट अमहीयिषाताम् अमहीयिषत क्रि० अकगिष्यत् अकगिष्यताम् अकगिष्यन् प० महीयाञ्चक्रे महीयाञ्चक्राते महीयाञ्चक्रिरे अथ धातोः कण्डवादेर्यक्-इतिसूत्रसूचिताः कण्डुप्रभृतयः सौत्रा | महीयाम्बभूव/महीयामास। उच्यन्ते।
आ० महीयिषीष्ट महीयिषीयास्ताम् महीयिषीरन् व० कण्डूयति कण्डूयत: कण्डूयन्ति
श्व० महीयिता महीयितारौ महीयितारः स० कण्डूयेत् कण्डूयेताम् कण्डूयेयुः
भ० महीयिष्यते महीयिष्येते महीयिष्यन्ते प० कण्डूयतु/कण्डूयतात् कण्डूयताम् कण्डूयन्तु
क्रि० अमहीयिष्यत अमहीयिष्येताम् अमहीयिष्यन्त ह्य० अकण्डूयत् अकण्डूयताम् अकण्डूयन्
१९९४. हृणीङ् (हणी) रोषलज्जयोः। अ० अकण्डूयीत् अकण्डूयिष्टाम् अकण्डूयिषुः व० हृणीयते हणीयेते प० कण्डूयाञ्चकार कण्डूयाञ्चक्रतुः कण्डूयाञ्चक्रुः स० हृणीयेत हणीयेयाताम् हृणीयेरन्
कग्यासुः
हृणीयन्ते
Page #564
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
प० हणीयताम् ० अहृणीयत
अ० अहणीयिष्ट
प० हणीयाञ्चक्रे
आ० हणीयिषीष्ट
श्व० हृणीयिता
भ० हणीयिष्यते
क्रि० अहणीयिष्यत
हणीयाम्बभूव/हणीयामास ।
व० वेयते
स० वेयेत
प० वेयताम्
ह्य० अवेयत
अ० अवेयिष्ट
प० वेयाञ्चक्रे
अहृणीयिष्येताम्
१९९५. वेङ् (वे) धौर्त्ये पूर्वभावे स्वच
वेयेते
आ० वेयिषीष्ट
श्व० वेयिता
हृणीयन्ताम्
हृणीतम्
अहणीयन्त
अहृणीयिषाताम्
अहणीयिषत
हणीयाञ्चक्राते हणीयाञ्चक्रिरे
हृणीयेताम्
व० लायते
स० लायेत
प० लायताम्
याम्बभूव/वेयामास ।
ह्य० अलायत
अ० अलायिष्ट
प० लायाञ्चक्रे
हृणीयिषीयास्ताम् हृणीयिषीरन्
हृणीयितार:
हणीयिष्यन्ते
अहृणीयिष्यन्त
हृणीयता
हृणीष्ये
आ० लायिषीष्ट
श्व० लायिता
भ० लायिष्यते
वेयिषीरन्
वेयितार:
वेयिष्यन्ते
अवेयिष्यन्त
१९९६. लाङ् (ला) धौर्त्य पूर्वभावे स्वने च ।
लायेते
लायेयाताम्
लायेताम्
अलायेताम्
वेयेयाताम्
वेताम्
अवेयेताम्
अवेयिषाताम्
वेयाञ्चक्राते
भ० वेयिष्यते
क्रि० अवेयिष्यत अवेयिष्येताम्
वेयिषीयास्ताम्
वेयितारौ
वेयिष्येते
लायाम्बभूव/लायामास ।
अलायिषाताम्
लायाञ्चक्राते
वेयन्ते
वेयेरन्
वेयन्ताम्
अवेयन्त
लायिषीयास्ताम्
लायितारौ
लायिष्येते
अवेयिषत
वेयाञ्चक्रिरे
लायन्ते
लायेरन्
लायन्ताम्
अलायन्त
अलायिषत
लायाञ्चक्रिरे
लायिषीरन्
लायितार:
लायिष्यन्ते
क्रि० अलायिष्यत
व० मन्तूयति समन्तूयेत्
मन्तूयतः
मन्तूयन्ति
मन्तूयेताम्
मन्तूयेयुः
प० मन्तूयतु / मन्तूयतात् मन्तूयताम्
मन्तूयन्तु
ह्य० अमन्तूयत् अमन्तूयताम् अमन्तूयन्
अ० अमन्तूयीत्
अमन्तूयिष्टाम्
अमन्तूयिषुः
प० मन्तूयाञ्चकार मन्तूयाञ्चक्रतुः
मन्तूयाञ्चक्रुः
मन्तूयाम्बभूव / मन्तूयामास ।
१९९७. मन्तु रोषवैमनस्ययोः ।
आ० मन्तूय्यात्
श्व० मन्तूयिता
भ० मन्तूयिष्यति
क्रि० अमन्तूयिष्यत्
अलायिष्येताम् अलायिष्यन्त
व० असूयति
०
आ० वल्गुय्यात्
श्व० वल्गूयिता
भ० वल्गयिष्यति
क्रि० अवल्गूयिष्यत्
मन्तूय्यास्ताम्
मन्तूयितारौ
मन्तूयिष्यतः
१९९८. वल्गु माधुर्यपूजयोः ।
वल्गुयतः
व० वल्गयति
सत्
ताम्
प० वल्गुयतु/ वल्गुयतात् वल्गूयताम्
ह्य० अवल्ग्यत् अवल्गूयताम्
अ० अवल्गुयीत्
अष्टाम्
प० वल्गुयाञ्चकार वल्गुयाञ्चक्रतुः
वल्याम्बभूव / वल्गुयामास ।
मन्तूय्यासुः
मन्तूयितार:
मन्तूयिष्यन्ति
अमन्तूयिष्यताम् अमन्तूयिष्यन्
वल्गुय्यास्ताम्
वल्गुय्यासुः
यता
वयिष्यतः
तार: वयिष्यन्ति अवल्गूयिष्यताम् अवल्गूयिष्यन्
१९९९. असु मानसोपतापे ।
असूयतः
असूताम्
प० असूयतु / असूयतात् असूयताम्
ह्य० आसूयत्
अ० आसूयीत्
प० असूयाञ्चकार
वयन्ति
वयेयुः
वल्गुयन्तु
अवल्गयन्
अवयिषुः
वल्गुयाञ्चक्रुः
आसूयताम्
आसूयिष्टाम्
असूयाञ्चक्रतुः
असूयन्ति
असूयेयुः
असूयन्तु
आसूयन्
आसूयिषुः
असूयाञ्चक्रुः
547
Page #565
--------------------------------------------------------------------------
________________
548
असूयाम्बभूव / असूयामास ।
आ० असूय्यात्
श्व० असूयिता
भ० असूयिष्यति
क्रि० आसूयिष्यत्
असूय्यास्ताम्
असूति
असूयिष्यतः
आसूयिष्यताम्
असू असू इत्येके । अन्ये तु असूङ दोषाविष्कृतौ रोगे
चेत्याहुः ।
२००० वेट् २०० लाट् वेड्वत् । यथा वेधातुः धौर्त्य पूर्वभावे स्वप्ने च वर्तते तथा इमावपि लाट् जीवन इत्येके । वेट् लाट् इत्यन्ये।
२०००. वेट् धौर्त्य पूर्वभावे स्वने च ।
व० वेट्टयति
वेट्यतः
स० [वेट्येत्
वेट्येताम्
प० वेट्यतु / वेट्यतात् वेट्यताम्
० अट्य
अवेट्यताम्
अ० अटी
प० वेटाञ्चकार
वेम्बभूव/वेटामास
० यात्
श्व० वेटिता
भ० वेटिष्यति
क्रि० अवेटिष्यत्
वेट्यास्ताम्
वेट्यासुः
वेटितारौ
वेटितार:
वेटिष्यतः
वेटिष्यन्ति
अवेटिष्यताम्
अवेटिष्यन्
२००१. लाट् धौर्त्य पूर्वभावे स्वप्ने च ।
व० लाट्यति
स० लाट्येत्
अष्टाम्
वेटाञ्चक्रतुः
प० लाट्यतु / लाट्यतात् लाट्यताम्
ह्य० अलाट्यत्
अलाट्यताम्
अ० अलाटीत्
अलाटिष्टाम्
प० लाटाञ्चकार
आ० लाट्यात्
श्व० लाटिता
लाट्यतः
लाट्येताम्
लाटाम्बभूव/लाटामास ।
लाटाञ्चक्रतुः
असूय्यासुः
असूयितारः
असूयिष्यन्ति
आसूयिष्यन्
लाट्यास्ताम्
लाटितारौ
वेट्यन्ति
वेट्येयुः
वेट्यन्तु
अट्यन्
अवेटिषुः
वेटाञ्चक्रुः
लाट्यन्ति
लाट्येयुः
लाटयन्तु
अलाट्यन्
अलाटिषुः
लाटाञ्चक्रुः
लाट्यासुः
लाटितार:
भ० लाटिष्यति
क्रि० अलाटिष्यत्
२००२. लिट् अल्पार्थे कुन्सायाञ्च ।
व० लिट्यति
लिट्यतः
स० लिट्येत्
लिट्येताम्
प० लिट्यतु/लिट्यतात् लिट्यताम्
० अलिट्यत्
अलिट्यताम्
अलिटिष्टाम्
लिटाञ्चक्रतुः
अ० अ
प० लिटाञ्चकार
लिटाम्बभूव/लिटामास ।
आ० लिट्यात्
श्व० लिटिता
भ० लिटिष्यति
क्रि० अलिटिष्यत्
अलोट्यम्
लाटिष्यतः
धातुरत्नाकर प्रथम भाग लाटिष्यन्ति अलाटिष्यताम् अलारिष्यन्
अ० अलोट
अलोटी:
अलोटिषम्
प० लोटाञ्चकार
व० लोटयति
लोट्यतः
० लो
लोट्येताम्
प० लोट्यतु / लोट्यतात् लोट्यताम्
अलोट
अलोट्याम्
अलोट्यः
अलोट्यतम्
अलोट्याव
० लो
श्व० लोटिता
भ० लोटिष्यति
क्रि० अलोटिष्यत्
लिट्यास्ताम्
लिटितारौ
लिटिष्यतः
लिट्यासुः
लिटितार:
लिटिष्यन्ति
अलिटिष्यताम् अलिटिष्यन्
२००३. लोट् दीप्तौ ।
अलोटिष्टाम्
अलोटिष्ट
अलोटिष्व
लोटाम्बभूव / लोटामास ।
लोटाञ्चक्रतुः
लिट्यन्ति
लिट्येयुः
लिट्यन्तु
अलिट्यन्
अलिटिषुः
लिटाञ्चक्रुः
लोट्यास्ताम्
लोटितारौ
लोटिष्यतः
लोटयन्ति
लोटयेयुः
लोटयन्तु
अलोट्यन्
अलोट्यत
अलोट्याम
अलोटिषुः
अलोटिष्ट
अलोटिष्म
लोटाञ्चक्रुः
लोट्यासुः
लोटितार:
लोटिष्यन्ति
अलोटिष्यताम् अलोटिष्यन्
लेट् लोट् धौर्त्य पूर्वभावे स्वप्ने चेत्येके ।
लेला दीप्ताविति केचित् ।
Page #566
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
549
२००४. उरस् ऐश्वर्ये। व० उरस्यति उरस्यतः उरस्यन्ति स० उरस्येत् उरस्येताम् उरस्येयुः प० उरस्यतु/उरस्यतात् उरस्यताम् उरस्यन्तु ह्य० औरस्यत्
औरस्यताम्
औरस्यन् अ० औरसीत्
औरसिष्टाम्
औरसिषुः प० उरसाञ्चकार उरसाञ्चक्रतुः उरसाञ्चक्रुः
उरसाम्बभूव/उरसामास। आ० उरस्यात् उरस्यास्ताम् उरस्यासुः श्व० उरसिता उरसितारौ उरसितार: भ० उरसिष्यति उरसिष्यत: उरसिष्यन्ति क्रि० औरसिष्यत् औरसिष्यताम् औरसिष्यन्
२००५. उषस् प्रभातीभावे। व० उषस्यति उषस्यतः उषस्यन्ति स० उषस्येत् उषस्येताम्
उषस्येयुः प० उषस्यतु/उषस्यतात् उषस्यताम् उषस्यन्तु ह्य० औषस्यत्
औषस्यताम् अ० औषसीत् औषसिष्टाम् प० उपसाञ्चकार उषसाञ्चक्रतुः उषसाञ्चक्रुः
उषसाम्बभूव/उषसामास। आ० उषस्यात् उषस्यास्ताम् उषस्यासुः श्व० उपसिता उषसितारौ उषसितारः भ० उपसिष्यति उषसिष्यतः उपसिष्यन्ति क्रि० औषसिष्यत् औषसिष्यताम् औषसिष्यन्
२००६. इरस् ईर्ष्यायाम्! व० इरस्यति इरस्यतः इरस्यन्ति स० इरस्येत् इरस्येताम् इरस्येयुः प० इरस्यतु/इरस्यतात् इरस्यताम् इरस्यन्तु ह्य० ऐरस्यत् ऐरस्यताम् ऐरस्यन् अ० ऐरसीत्
ऐरसिष्टाम्
ऐरसिषुः प० इरसाञ्चकार इरसाञ्चक्रतुः । इरसाञ्चक्रुः
इरसाम्बभूव/इरसामास।
आ० इरस्यात् इरस्यास्ताम् इरस्यासुः श्व० इरसिता इरसितारौ इरसितार: भ० इरसिष्यति इरसिष्यतः इरसिष्यन्ति क्रि० ऐरसिष्यत् ऐरसिष्यताम् ऐरसिष्यन्
२००७. तिरस् अन्तौं । व० तिरस्यति तिरस्यतः तिरस्यन्ति स० तिरस्येत् तिरस्येताम् तिरस्येयुः प० तिरस्यतु/तिरस्यतात् तिरस्यताम् तिरस्यन्तु ह्य० अतिरस्यत् अतिरस्यताम् अतिरस्यन् अ० अतिरसीत् अतिरसिष्टाम् अतिरसिषुः प० तिरसाञ्चकार तिरसाञ्चक्रतुः तिरसाञ्चक्रुः
तिरसाम्बभूव/तिरसामास। आ० तिरस्यात् तिरस्यास्ताम्
तिरस्यासुः श्व० तिरसिता तिरसितारौ तिरसितारः भ० तिरसिष्यति तिरसिष्यतः तिरसिष्यन्ति क्रि० अतिरसिष्यत् अतिरसिष्यताम् अतिरसिष्यन्
२००८. इयस् प्रसृतौ। व० इयस्यति इयस्यतः इयस्यन्ति स० इयस्येत् इयस्येताम् इयस्येयुः प० इयस्यतु/इयस्यतात् इयस्यताम् इयस्यन्तु ह्य० ऐयस्यत् ऐयस्यताम्
ऐयस्यन् अ० ऐयसीत् ऐयसिष्टाम्
ऐयसिषुः प० इयसाञ्चकार इयसाञ्चक्रतुः इयसाञ्चक्रुः
इयसाम्बभूव/इयसामास। आ० इयस्यात् इयस्यास्ताम् इयस्यासुः श्व० इयसिता इयसितारौ इयसितारः भ० इयसिष्यति इयसिष्यतः इयसिष्यन्ति क्रि० ऐयसिष्यत् ऐयसिष्यताम् ऐयसिष्यन्
२००९. इमस् प्रसृतौ। व० इमस्यति इमस्यतः । इमस्यन्ति स० इमस्येत् इमस्येताम् इमस्येयुः प० इमस्यतु/इमस्यतात् इमस्यताम् इमस्यन्तु
औषस्यन् औषसिषुः
Page #567
--------------------------------------------------------------------------
________________
550
० ऐमस्यत्
अ० ऐमसीत्
प० इमसाञ्चकार
आ० इमस्यात्
४० इमसिता
इमसाम्बभूव / इमसामास ।
भ० इमसिष्यति
क्रि० एमसिष्यत्
ऐमस्यताम्
ऐमसिष्टाम्
आ० अस्यात्
अस्याः
इमसाञ्चक्रतुः
व० अस्यति
अस्यसि
अस्यामि
स० [अस्येत्
अस्येः
अस्येयम्
प० अस्यतु / अस्यतात् अस्यताम्
अस्य / अस्यतात्
अस्यतम्
अस्यानि
अस्याव
हा आस्यत्
आस्यः
आस्यम्
अ० आसीत्
आसीः
आसिषम्
अस्यासम् ४० असिता
इमस्यास्ताम्
इमसितारौ
इमसिष्यतः
ऐमसिष्यताम्
२०१०. अस् प्रसृतौ ।
प० असाञ्चकार
असाञ्चकर्थ
असाञ्चकार/कर
असाम्बभूव / असामास ।
अस्यतः
अस्यथः
अस्यावः
अस्येताम्
अस्येतम्
अस्येव
आस्यताम्
आस्यतम्
आस्याव
आसिष्टाम्
आसिष्टम्
आसिष्व
असाञ्चक्रतुः
असाञ्चक्रथुः
असाञ्चकृब
अस्यास्ताम्
अस्यास्तम्
अस्यास्व
असितारौ
ऐमस्यन्
ऐमसिषुः
इमसाञ्चक्रुः
इमस्यासुः
इमसितार:
इमसिष्यन्ति
ऐमसिष्यन्
अस्यन्ति
अस्यथ
अस्यामः
अस्येयुः
अस्येत
अस्येम
अस्यन्तु
अस्यत
अस्याम
आस्यन
आस्यत
आस्याम
आसिषुः
आसिष्ट
आसिष्म
असाच कुः
असाञ्चक्र
असाञ्चकृम
अस्यासुः
अस्यास्त
अस्यास्म
असितारः
असितासि
असितास्मि
भ० असिष्यति
असिष्यसि
असिष्यामि
क्रि० आसिष्यत्
आसिष्यः
आसिष्यम्
व० पयस्यति
पयस्यसि
पयस्यामि
स० [पयस्येत्
पयस्येः
पयस्येयम्
ह्य० अपयस्यत्
अपयस्यः
प० पयस्यत/ पयस्यतात् पयस्यताम्
पयस्य / पयस्यतात् पयस्यतम् पयस्यानि
पयस्याव
अपयस्यम्
अ० अपयसीत्
अपयसीः
अपयसिषम्
प० पयसाञ्चकार
आ० पयस्यात्
पयस्याः
पयस्यासम्
श्व० पयसिता
असितास्थः
असितास्वः
असिष्यतः
असिष्यथः
असिष्यावः
आसिष्यताम्
आसिष्यतम्
आसिष्याव
२०११. पयस् प्रसृतौ ।
पयस्यतः
पयस्यथः
पयस्यावः
पयस्येताम्
पयस्येतम्
पयस्येव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
असितास्थ
असितास्मः
असिष्यन्ति
पयसाञ्चक्रतुः पयसाञ्चक्रुः
पाञ्च पयसाञ्चक्रथुः पयसाञ्चक्र पयसाकार कर पयसाञ्चकृव
पयसाञ्चकृम
पयसाम्बभूव/पयसामास ।
असिष्यथ
असिष्यामः
आसिष्यन्
आसिष्यत
आसिष्याम
पयस्यन्ति
पयस्यथ
पयस्यामः
पयस्येयुः
पयस्येत
पयस्येम
पयस्यास्व
पयसितारौ
पयस्यन्तु
पयस्यत
पयस्याम
अपयस्यन्
अपयस्यत
अपयस्यताम्
अपयस्यतम्
अपयस्याव
अपयस्याम
अपयसिष्टाम्
अपयसिषुः
अपयसिष्टम् अपयसिष्ट
अपयसिष्व
अपयसिष्म
पयस्यास्ताम् पयस्यासुः
पयस्यास्तम् पयस्यास्त
पयस्यास्म
पयसितार:
Page #568
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
551
पयसितासि पयसितास्थ: पयसितास्थ पयसितास्मि पयसितास्वः
पयसितास्मः भ० पयसिष्यति
पयसिष्यतः
पयसिष्यन्ति पयसिष्यसि पयसिष्यथ: पयसिष्यथ
पयसिष्यामि पयसिष्याव: पयसिष्यामः क्रि० अपयसिष्यत् अपयसिष्यताम् अपयसिष्यन्
अपयसिष्यः अपयसिष्यतम् । अपयसिष्यत अपयसिष्यम् अपयसिष्याव अपयसिष्याम
२०१२. सम्भूयस् सम्भूसृतभावो व० सम्भूयस्यति सम्भूयस्यतः सम्भूयस्यन्ति स० सम्भूयस्येत् सम्भूयस्येताम् सम्भूयस्येयुः प० सम्भूयस्यतु/सम्भूयस्यतात् सम्भूयस्यताम् सम्भूयस्यन्तु ह्य० असम्भूयस्यत् असम्भूयस्यताम् असम्भूयस्यन् अ० असम्भूयसीत् असम्भूयसिष्टाम् असम्भूयसिषुः प० सम्भूयसाञ्चकार सम्भूयसाञ्चक्रतुः सम्भूयसाञ्चक्रुः
सम्भूयसाम्बभूव/सम्भूयसामास। आ० सम्भूयस्यात् सम्भूयस्यास्ताम् सम्भूयस्यासुः श्व० सम्भूयसिता सम्भूयसितारौ सम्भूयसितार: भ० सम्भूयसिष्यति सम्भूयसिष्यतः सम्भूयसिष्यन्ति क्रि० असम्भूयसिष्यत् असम्भूयसिष्यताम् असम्भूयसिष्यन्
२०१३. दूवस् परितापपरिचरणयोः। व० दुवस्यति दुवस्यतः दुवस्यन्ति स० दुवस्येत् दुवस्येताम् दुवस्येयुः प० दुवस्यतु/दुवस्यतात् दुवस्यताम् दुवस्यन्तु ह्य० अदुवस्यत् अदुवस्यताम् अ० अदुवसीत् अदुवसिष्टाम् अदुवसिषुः प० दुवसाञ्चकार दुवसाञ्चक्रतुः दुवसाञ्चक्रुः
दुवसाम्बभूव/दुवसामास। आ० दुवस्यात् दुवस्यास्ताम् दुवस्यासुः श्व० दुवसिता दुवसितारौ दुवसितारः भ० दुवसिष्यति दुवसिष्यतः दुवसिष्यन्ति क्रि० अदुवसिष्यत् अदुवसिष्यताम् अदुवसिष्यन्
२०१४. दुरज् चिकित्सायाम्। व० दुरज्यति दुरज्यतः दुरज्यन्ति स० दुरज्येत् दुरज्येताम् दुरज्येयुः प० दुरज्यतु/दुरज्यतात् दुरज्यताम् दुरज्यन्तु ह्य० अदुरज्यत् अदुरज्यताम् अदुरज्यन् अ० अदुरजीत् अदुरजिष्टाम् अदुरजिषुः प० दुरजाञ्चकार दुरजाञ्चक्रतुः दुरजाञ्चक्रुः
दुरजाम्बभूव/दुरजामास। आ० दुरज्यात् दुरज्यास्ताम् दुरज्यासुः श्व० दुरजिता
दुरजितारौ
दुरजितारः भ० दुरजिष्यति दुरजिष्यतः दुरजिष्यन्ति क्रि० अदुरजिष्यत् अदुरजिष्यताम् अदुरजिष्यन्
२०१५. भिषज् चिकित्सायाम्। व० भिषज्यति भिषज्यतः भिषज्यन्ति स० भिषज्येत् भिषज्येताम् भिषज्येयुः प० भिषज्यतु/भिषज्यतात् भिषज्यताम् भिषज्यन्तु ह्य० अभिषज्यत् अभिषज्यताम् अभिषज्यन् अ० अभिषजीत् अभिषजिष्टाम् अभिषजिषः प० भिषजाञ्चकार भिषजाञ्चक्रतुः भिषजाञ्चक्रुः
भिषजाम्बभूव/भिषजामास। आ० भिषज्यात् भिषज्यास्ताम् भिषज्यासुः श्व० भिषजिता भिषजितारौ भिषजितारः भ० भिषजिष्यति भिषजिष्यतः भिषजिष्यन्ति क्रि० अभिषजिष्यत् अभिषजिष्यताम् अभिषजिष्यन्
__२०१६. भिष्णुक् उपसेवायाम्। व० भिष्णुक्यति भिष्णुक्यतः भिष्णुक्यन्ति स० भिष्णुक्येत् भिष्णुक्येताम् भिष्णुक्येयुः प० भिष्णुक्यतु/भिष्णुक्यतात् भिष्णुक्यताम् भिष्णुक्यन्तु ह्य० अभिष्णुक्यत् अभिष्णुक्यताम् अभिष्णुक्यन् अ० अभिष्णुकीत् अभिष्णुकिष्टाम् अभिष्णुकिषुः प० भिष्णुकाञ्चकार भिष्णुकाञ्चक्रतुः भिष्णुकाञ्चक्रुः
भिष्णुकाम्बभूव/भिष्णुकामास।
आभषा
अदुवस्यन्
Page #569
--------------------------------------------------------------------------
________________
552
आ० भिष्णुक्यात्
श्व० भिष्णुकिता
भ० भिष्णुकिष्यति
क्रि० अभिष्णुकिष्यत्
२०१७.
आ० रेखाय्यात्
श्व० रेखायिता
व० रेखायति
रेखायतः
स० रेखायेत्
रेखायेताम्
प० रेखायतु / रेखायतात् रेखायताम्
० अरेखायत्
अरेखायताम्
अ० अरेखायीत् अरेखायिष्टाम्
प० रेखायाञ्चकार रेखायाञ्चक्रतुः
रेखायाम्बभूव / रेखायामास ।
भ० रेखायिष्यति
क्रि० अरेखायिष्यत्
भिष्णुक्यास्ताम्
भिष्णुकिता
भिष्णुकिष्यतः
भिष्णुक्यासुः
भिष्णुकितार:
भिष्णुकिष्यन्ति
अभिष्णुकिष्यताम् अभिष्णुकिष्यन्
रेखा श्लाघासादनयोः ।
० लेखाय्यात्
श्व० लेखायिता
भ० लेखायिष्यति
क्रि० अलेखायिष्यत्
रेखाय्यास्ताम्
रेखायितारौ
रेखायिष्यतः
रेखायन्ति
रेखायेयुः
रेखायन्तु
२०१८. लेखा विलासस्खलनयोः ।
लेखायतः
लेखायेताम्
अरेखायन्
अरेखायिषुः
रेखायाञ्चक्रुः
अरेखायिष्यताम् अरेखायिष्यन्
रेखाय्यासुः
रेखायितार:
रेखायिष्यन्ति
व० लेखायति
स० [लेखायेत्
प० लेखायतु / लेखायतात् लेखायताम्
ह्य० अलेखायत् अलेखायताम्
अ० अलेखायीत् अलेखायिष्टाम्
अलेखायिषुः
प० लेखायाञ्चकार लेखायाञ्चक्रतुः लेखायाञ्चक्रुः
लेखायाम्बभूव/लेखायामास ।
व० एलायति
एलायत:
स० एलायेत्
एलायेताम्
प० एलायतु / एलायतात् एलायताम्
लेखायन्ति
लेखायेयुः
लेखायन्तु
अलेखायन्
लेखाय्यास्ताम् लेखाय्यासुः
लेखायितारौ
लेखायितार:
लेखायिष्यतः
लेखायिष्यन्ति
अलेखायिष्यताम् अलेखायिष्यन्
२०१९. ऐला विलासे
एलायन्ति
एलायेयुः
एलायन्तु
ह्य० ऐलायत्
अ० ऐलायीत्
प० एलायाञ्चकार
आ० एलाय्यात्
श्वo एलायिता
भ० एलायिष्यति
क्रि० ऐलायिष्यत्
एलायाम्बभूव / एलायामास ।
आ० वेलाय्यात्
श्व० वेलायिता
ऐलायताम्
ऐलाष्टि
भ० वेलायिष्यति
क्रि० अवेलायिष्यत्
एलायाञ्चक्रतुः
व० वेलायति
वेलायत:
स० वेलायेत्
वेलायेताम्
प० वेलायतु / वेलायतात् वेलायताम्
आ० केलाय्यात्
श्व० केलायिता
एलाय्यास्ताम्
एलायितारौ
एलायिष्यतः
० अ
अ० अवेलायीत्
प० वेलायाञ्चकार वेलायाञ्चक्रतुः
वेलायाम्बभूव / वेलायामास ।
२०२०. वेला विलासे ।
भ० केलायिष्यति
क्रि० अकेलायिष्यत्
ऐलायिष्यताम् ऐलायिष्यन्
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
ऐलायन्
ऐलायिषुः
एलायाञ्चक्रुः
अवेलायताम्
अवेलायिष्टाम्
वेलाय्यास्ताम्
वेलायितारौ
वेलायिष्यतः
व० केलायति
केलायत:
केलायेत्
केलायेताम्
प० केलायतु / केलायतात् केलायताम्
० अकेलायत्
अकेलायताम्
अ० अकेलायीत्
अकेलायिष्टाम्
प० केलायाञ्चकार केलायाञ्चक्रतुः
केलायाम्बभूव / केलायामास ।
२०२१. केला विलासे ।
एलाय्यासुः
एलायितार:
एलायिष्यन्ति
वेलायिष्यन्ति
अवेलायिष्यताम् अवेलायिष्यन्
वेलायन्ति
वेलायेयुः
वेलायन्तु
अवेलायन्
अवेलायिषुः
वेलायाञ्चक्रुः
वेलाय्यासुः
वेलायितार:
केलायन्ति
केलायेयुः
लायन्तु
अलायन्
अकेलायिषुः
केलायाञ्चक्रुः
केलाय्यास्ताम्
केलाय्यासुः
केलावितारौ
केलायितारः
केलायिष्यतः केलायिष्यन्ति
अकेलायिष्यताम् अकेलायिष्यन्
Page #570
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
553
२०२२. खेला विलासे। व० खेलायति खेलायत: खेलायन्ति स० खेलायेत् खेलायेताम् खेलायेयुः प० खेलायतु/खेलायतात् खेलायताम् खेलायन्तु ह्य० अखेलायत् अखेलायताम् अखेलायन् अ० अखेलायीत् अखेलायिष्टाम् अखेलायिषुः प० खेलायाञ्चकार खेलायाञ्चक्रतुः खेलायाञ्चक्रुः
खेलायाम्बभूव खेलायामास। आ० खेलाय्यात् खेलाय्यास्ताम् खेलाय्यासुः श्व० खेलायिता खेलायितारौ खेलायितार: भ० खेलायिष्यति खेलायिष्यतः खेलायिष्यन्ति क्रि० अखेलायिष्यत् अखेलायिष्यताम् अखेलायिष्यन्
२०२३. गोधा आशुग्रहणे। व० गोधायति गोधायतः गोधायन्ति स० गोधायेत् गोधायेताम् गोधायेयुः प० गोधायतु/गोधायतात् गोधायताम् गोधायन्तु ह्य० अगोधायत् अगोधायताम्
अगोधायन् अ० अगोधायीत् अगोधायिष्टाम् अगोधायिषुः प० गोधायाञ्चकार गोधायाञ्चक्रतुः गोधायाञ्चक्रुः ____ गोधायाम्बभूव/गोधायामास। आ० गोधाय्यात् गोधाय्यास्ताम् गोधाय्यासुः श्व० गोधायिता गोधायितारौ गोधायितारः भ० गोधायिष्यति गोधायिष्यतः गोधायिष्यन्ति क्रि० अगोधायिष्यत् अगोधायिष्यताम् अगोधायिष्यन्
२०२४. मेधा आशुग्रहणे। व० मेधायति मेधायतः मेधायन्ति स० मेधायेत्
मेधायेयुः प० मेधायतु/मेधायतात् मेधायताम् मेधायन्तु ह्य० अमेधायत् अमेधायताम् अमेधायन् अ० अमेधायीत् अमेधायिष्टाम् अमेधायिषुः प० मेधायाञ्चकार मेधायाञ्चक्रतुः । मेधायाञ्चक्रुः
मेधायाम्बभूव/मेधायामास।
आ० मेधाय्यात् मेधाय्यास्ताम् मेधाय्यासुः व० मेधायिता मेधायितारौ मेधायितार: भ० मेधायिष्यति मेधायिष्यत: मेधायिष्यन्ति क्रि० अमेधायिष्यत् अमेधायिष्यताम् अमेधायिष्यन
२०२५. मगध (मगध्) परिवेष्टने। नीचदास्य इत्यन्ये। व० मगध्यति मगध्यतः मगध्यन्ति स० मगध्येत् मगध्येताम् मगध्येयुः प० मगध्यतु/मगध्यतात् मगध्यताम् मगध्यन्तु ह्य० अमगध्यत् अमगध्यताम् अमगध्यन् अ० अमगधीत् अमगधिष्टाम् अमगधिषुः प० मगधाञ्चकार मगधाञ्चक्रतुः मगधाञ्चक्रुः
मगधाम्बभूव/मगधामास। आ० मगध्यात् मगध्यास्ताम् मगध्यासुः श्व० मगधिता मगधितारौ मगधितार: भ० मगधिष्यति मगधिष्यतः मगधिष्यन्ति क्रि० अमगधिष्यत् अमगधिष्यताम् अमगधिष्यन्
२०२६. इरथ (इरध्) शरधारणे। क. इरध्यति इरध्यतः इरध्यन्ति स० इरध्येत् इरध्येताम् इरध्येयुः प० इरध्यतु/इरध्यतात् इरध्यताम् इरध्यन्तु ह्य० ऐरध्यत् ऐरध्यताम् अ० ऐरधीत् ऐरधिष्टाम् प० इरधाञ्चकार इरधाञ्चक्रतुः इरधाञ्चक्रुः
इरधाम्बभूव/इरधामास। आ० इरध्यात् इरध्यास्ताम् इरध्यासुः श्व० इरधिता इरधितारौ इरधितारः भ० इरधिष्यति इरधिष्यतः इरधिष्यन्ति क्रि० ऐरधिष्यत् ऐरधिष्यताम् ऐरधिष्यन्
२०२७. इषुध (इषुध्) शरधारणे। व० इषुध्यति इषुध्यतः इषुध्यन्ति
स० इषुध्येत् इषुध्येताम् इषुध्येयुः | प० इषुध्यतु/इषुध्यतात् इषुध्यताम् इषुध्यन्तु
ऐरध्यन् ऐरधिषुः
मेधायेताम्
Page #571
--------------------------------------------------------------------------
________________
554
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
कुषुभ्यन्ति
ह्य० ऐषुध्यत् ऐषुध्यताम् ऐषुध्यन् अ० ऐषुधीत् ऐषुधिष्टाम् ऐषुधिषुः प० इषुधाञ्चकार इषुधाञ्चक्रतुः इषुधाञ्चक्रुः
इषुधाम्बभूव/इषुधामास। आ० इषुध्यात् इषुध्यास्ताम् इषुध्यासुः श्व० इषुधिता
इषुधितारौ
इषुधितारः भ० इषुधिष्यति इषुधिष्यतः इषुधिष्यन्ति क्रि० ऐषुधिष्यत् ऐषुधिष्यताम् ऐषुधिष्यन्
२०२८. कुषुभ क्षेपे। व० कुषुभ्यति कुषुभ्यतः स० कुषुभ्येत् कुषुभ्येताम् कुषुभ्येयुः प० कुषुभ्यतु/कुषुभ्यतात् कुषुभ्यताम् कुषुभ्यन्तु ह्य० अकुषुभ्यत् अकुषुभ्यताम् । अकुषुभ्यन् अ० अकुषुभीत् अकुषभिष्टाम् अकुषभिषुः प० कुषुभाञ्चकार कुषुभाञ्चक्रतुः । कुषुभाञ्चक्रुः
कुषुभाम्बभूव/कुषुभामास। आ० कुषुभ्यात् कुषुभ्यास्ताम् कुषुभ्यासुः श्व० कुषुभिता कुषुभितारौ कुषुभितारः भ० कुषुभिष्यति कुषुभिष्यतः कुषुभिष्यन्ति क्रि० अकुषुभिष्यत् अकुषुभिष्यताम् अकुषुभिष्यन् ___ श्रीहैमशब्दानुशासने (कुषुम्भ इति तद्रूपाणि कुषुम्भ्यति कुषुम्भ्यत इत्यादीनि। क्रियारत्नसमुच्चये तु (कुरुरु क्षेपे) इति
२०२९. सुख (सुख्) तक्रियायाम्। व० सुख्यति सुख्यतः सुख्यन्ति स० सुख्येत् सुख्येताम् सुख्येयुः प० सुख्यतु/सुख्यतात् सुख्यताम् सुख्यन्तु ह्य० असुख्यत् असुख्यताम् असुख्यन् अ० असुखीत् असुखिष्टाम् असुखिषुः प० सुखाञ्चकार सुखाञ्चक्रतुः सुखाञ्चक्रुः
सुखाम्बभूव/सुखामास। आ० सुख्यात् सुख्यास्ताम् सुख्यासुः २० सुखिता सुखितारौ सुखितारः
भ० सुखिष्यति सुखिष्यतः सुखिष्यन्ति क्रि० असुखिष्यत् असुखिष्यताम् असुखिष्यन्
२०३०. दुःख (दुःख्) तक्रियायाम्। व० दुःख्यति दुःख्यतः दुःख्यन्ति स० दुःख्येत् दुःख्येताम् दुःख्येयुः प० दुःख्यतु/दुःख्यतात् दुःख्यताम् दुःख्यन्तु ह्य० अदुःख्यत्
अदु:ख्यन् अ० अदुःखीत् अदुःखिष्टाम् अदुःखिषुः प० दुःखाञ्चकार दुःखाञ्चक्रतुः । दुःखाञ्चक्रुः
दुःखाम्बभूव/दुःखामास। आ० दुःख्यात् दुःख्यास्ताम् दुःख्यादुः: श्व० दुःखिता दुःखितारौ दुःखितारः भ० दुःखिष्यति दुःखिष्यतः दुःखिष्यन्ति क्रि० अदुःखिष्यत् अदुःखिष्यताम् अदुःखिष्यन्
२०३१. अगद (अगद्) निरोगत्वे। व० अगद्यति अगद्यत:
अगद्यन्ति स० अगद्येत् अगद्येताम् अगद्येयुः प० अगद्यतु/अगद्यतात् अगद्यताम् ह्य० आगद्यत् आगद्यताम् आगद्यन् अ० आगदीत् आगदिष्टाम् आगदिषुः प० अगदाञ्चकार अगदाञ्चक्रतुः अगदाञ्चक्रुः
अगदाम्बभूव/अगदामास। आ० अगद्यात् अगद्यास्ताम् अगद्यासुः व० अगदिता अगदितारौ अगदितार: भ० अगदिष्यति अगदिष्यतः अगदिष्यन्ति क्रि० आगदिष्यत् आगदिष्यताम् आगदिष्यन्
२०३२. गद्गद (गद्गद्) वाक्स्ख लने। व० गद्गद्यति गद्गद्यतः गद्गद्यन्ति स० गद्गद्येत् गद्गद्येताम् गद्गद्येयुः प० गद्गद्यतु/गद्गद्यतात् गद्गद्यताम् गद्गद्यन्तु ह्य० अगद्गद्यत् अगद्गद्यताम् अगद्गद्यन् अ० अगद्गदीत् अगद्गदिष्टाम् अगद्गदिषुः
अगद्यन्तु
Page #572
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
555
औरणिषुः
तुरण्यन्ति
प० गद्गदाञ्चकार गगदाञ्चक्रतुः गद्गदाञ्चक्रुः
गद्गदाम्बभूव/गद्दामास। आ० गद्गद्यात् गद्गद्यास्ताम्
गद्गद्यासुः श्व० गद्गदिता गद्गदितारौ गद्गदितार: भ० गद्रादिष्यति गद्गदिष्यत: गद्गदिष्यन्ति क्रि० अगद्गदिष्यत् अगद्गदिष्यताम्। अगद्गदिष्यन्
२०३३. तरण (तरण) गतौ। व० तरण्यति तरण्यतः तरण्यन्ति स० तरण्येत् तरण्येताम् तरण्येयुः प० तरण्यतु/तरण्यतात् तरण्यताम् तरण्यन्तु ह्य० अतरण्यत् अतरण्यताम् अतरण्यन् अ० अतरणीत् अतरणिष्टाम् अतरणिषुः प० तरणाञ्चकार तरणाञ्चक्रतुः तरणाञ्चक्रुः
तरणाम्बभूव/तरणामास। आ० तरण्यात् तरण्यास्ताम् तरण्यासुः श्व० तरणिता तरणितारौ तरणितारः भ० तरणिष्यति तरणिष्यतः तरणिष्यन्ति क्रि० अतरणिष्यत् अतरणिष्यताम् अतरणिष्यन्
२०३४. वरण (वरण) गतौ। व० वरण्यति वरण्यतः वरण्यन्ति स० वरण्येत् वरण्येताम् वरण्येयुः प० वरण्यतु/वरण्यतात् वरण्यताम् वरण्यन्तु ह्य० अवरण्यत् अवरण्यताम् अवरण्यन् अ० अवरणीत् अवरणिष्टाम् अवरणिषुः प० वरणाञ्चकार वरणाञ्चक्रतुः वरणाञ्चक्रुः
वरणाम्बभूव/वरणामास। आ० वरण्यात् वरण्यास्ताम् वरण्यासुः ० वरणिता वरणितारौ वरणितार: भ० वरणिष्यति वरणिष्यतः वरणिष्यन्ति क्रि० अवरणिष्यत् अवरणिष्यताम् अवरणिष्यन्
___ २०३५. उरण (उरण) त्वरायाम् व० उरण्यति उरण्यतः उरण्यन्ति
स० उरण्येत् उरण्येताम्
उरण्येयुः प० उरण्यतु/उरण्यतात् उरण्यताम् उरण्यन्तु ह्य० औरण्यत् औरण्यताम्
औरण्यन् अ० औरणीत् औरणिष्टाम् प० उरणाञ्चकार उरणाञ्चक्रतुः उरणाञ्चक्रुः
उरणाम्बभूव/उरणामास। आ० उरण्यात् उरण्यास्ताम् उरण्यासुः श्व० उरणिता उरणितारौ उरणितारः भ० उरणिष्यति उरणिष्यतः उरणिष्यन्ति क्रि० औरणिष्यत् औरणिष्यताम् औरणिष्यन्
२०३६. तुरण (तुरण) त्वरायाम्। व० तुरण्यति तुरण्यतः स० तुरण्येत् तुरण्येताम् तुरण्येयुः प० तुरण्यतु/तुरण्यतात् तुरण्यताम् तुरण्यन्तु ह्य० अतुरण्यत् अतुरण्यताम् अतुरण्यन् अ० अतुरणीत् अतुरणिष्टाम् अतुरणिषुः प० तुरणाञ्चकार तुरणाञ्चक्रतुः तुरणाञ्चक्रुः
तुरणाम्बभूव/तुरणामास। आ० तुरण्यात् तुरण्यास्ताम् तुरण्यासुः श्व० तुरणिता
तुरणितारौ
तुरणितारः भ० तुरणिष्यति तुरणिष्यतः तुरणिष्यन्ति क्रि० अतुरणिष्यत् अतुरणिष्यताम् अतुरणिष्यन्
२०३७. पुरण (पुरण) गतौ। व० पुरण्यति पुरण्यतः पुरण्यन्ति स० पुरण्येत् पुरण्येताम् पुरण्येयुः प० पुरण्यतु/पुरण्यतात् पुरण्यताम् पुरण्यन्तु ह्य० अपुरण्यत् अपुरण्यताम् अपुरण्यन् अ० अपुरणीत् अपुरणिष्टाम् अपुरणिषुः प० पुरणाञ्चकार पुरणाञ्चक्रतुः पुरणाञ्चक्रुः
पुरणाम्बभूव/पुरणामास। आ० पुरण्यात् पुरण्यास्ताम् पुरण्यासुः श्व० पुरणिता
पुरणितारः
पुरणितारौ
Page #573
--------------------------------------------------------------------------
________________
556
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
भ० पुरणिष्यति पुरणिष्यतः पुरणिष्यन्ति क्रि० अपुरणिष्यत् अपुरणिष्यताम् अपुरणिष्यन्
२०३८. भुरण (भुरण) धारणपोषणयुद्धेषु। व० भुरण्यति भुरण्यत: भुरण्यन्ति स० भुरण्येत् भुरण्येताम् भुरण्येयुः प० भुरण्यतु/भुरण्यतात् भुरण्यताम् भुरण्यन्तु ह्य० अभुरण्यत् अभुरण्यताम् अभुरण्यन् अ० अभुरणीत् अभुरणिष्टाम् अभुरणिषुः प० भुरणाञ्चकार भुरणाञ्चक्रतुः भुरणाञ्चक्रुः
भुरणाम्बभूव/भुरणामास। आ० भुरण्यात् भुरण्यास्ताम् भुरण्यासुः श्व० भुरणिता भुरणितारौ भुरणितारः भ० भुरणिष्यति भुरणिष्यतः भुरणिष्यन्ति क्रि० अभुरणिष्यत् अभुरणिष्यताम् अभुरणिष्यन् क्रियारत्नसमुच्चयकृन्मतानुसारेण निम्नलिखितरूपाणि-इति तत्थाने वुरण्यतीत्यादीनि लेख्यानि। पश्चात् चुरण्यतीत्याद्यपि केचिदिति लेख्यम्।
२०३९. चुरण (चुरण) मतिचौर्ययोः। व० चुरण्यति चुरण्यतः चुरण्यन्ति चुरण्यसि चुरण्यथः
चुरण्यथ चुरण्यामि
चुरण्यावः चुरण्यामः स० चुरण्येत् चुरण्येताम् चुरण्येयुः
चुरण्ये: चुरण्येतम् चुरण्येत चुरण्येयम् चुरण्येव
चुरण्येम प० चुरण्यतु/चुरण्यतात् चुरण्यताम् चुरण्यन्तु
चुरण्य/चुरण्यतात् चुरण्यतम् चुरण्यत चुरण्यानि चुरण्याव
चुरण्याम ह्य० अचुरण्यत् अचुरण्यताम् अचुरण्यन्
अचुरण्यः अचुरण्यतम् अचुरण्यत
अचुरण्यम् अचुरण्याव अचुरण्याम अ० अचुरणीत् अचुरणिष्टाम् अचुरणिषुः
अचुरणी: अचुरणिष्टम् अचुरणिष्ट
अचुरणिषम् अचुरणिष्व अचुरणिष्म प० चुरणाञ्चकार चुरणाञ्चक्रतुः चुरणाञ्चक्रुः
चुरणाञ्चकर्थ चुरणाञ्चक्रथुः चुरणाञ्चक्र चुरणाञ्चकार/चकर चुरणाञ्चकृव चुरणाञ्चकृम
चुरणाम्बभूव/चुरणामास। आ० चुरण्यात् चुरण्यास्ताम् चुरण्यासुः
चुरण्या : चुरण्यास्तम् चुरण्यास्त
चुरण्यासम् चुरण्यास्व चुरण्यास्म श्व० चुरणिता चुरणितारौ चुरणितारः
चुरणितासि चुरणितास्थः चुरणितास्थ
चुरणितास्मि चुरणितास्व: चुरणितास्मः भ० चुरणिष्यति चुरणिष्यतः चुरणिष्यन्ति
चुरणिष्यसि चुरणिष्यथ: चुरणिष्यथ चुरणिष्यामि चुरणिष्याव:
चुरणिष्यामः | क्रि० अचुरणिष्यत् अचुरणिष्यताम् अचुरणिष्यन्
अचुरणिष्यः अचुरणिष्यतम् अचुरणिष्यत
अचुरणिष्यम् अचुरणिष्याव अचुरणिष्याम हैमशब्दानुशासने तुरण इति। वुरण्यति वुरण्यतः इत्यादि।
२०४०. भरण (भरण्) प्रसिद्धार्थः। व० भरण्यति भरण्यत: भरण्यन्ति भरण्यसि भरण्यथ:
भरण्यथ भरण्यामि भरण्यावः भरण्याम: स० भरण्येत् भरण्येताम् भरण्येयुः
भरण्ये: भरण्येतम् भरण्येत
भरण्येयम् __ भरण्येव भरण्येम प० भरण्यतु/भरण्यतात् भरण्यताम् भरण्यन्तु
भरण्य/भरण्यतात् भरण्यतम् भरण्यत भरण्यानि भरण्याव
भरण्याम ह्य० अभरण्यत् अभरण्यताम् अभरण्यन्
अभरण्यः अभरण्यतम् अभरण्यत
अभरण्यम् अभरण्याव अभरण्याम अ० अभरणीत् अभरणिष्टाम् अभरणिषुः
Page #574
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
557
अभरणी: अभरणिष्टम् अभरणिष्ट
अभरणिषम् अभरणिष्व अभरणिष्म प० भरणाञ्चकार भरणाञ्चक्रतुः
भरणाञ्चक्रुः भरणाञ्चकर्थ भरणाञ्चक्रथुः भरणाञ्चक्र भरणाञ्चकार/चकर भरणाञ्चकृव भरणाञ्चकृम
भरणाम्बभूव/भरणामास। आ० भरण्यात् भरण्यास्ताम् भरण्यासुः भरण्या :
भरण्यास्तम् भरण्यास्त भरण्यासम् भरण्यास्व भरण्यास्म श्व० भरणिता भरणितारौ भरणितार:
भरणितासि भरणितास्थः भरणितास्थ
भरणितास्मि भरणितास्व: भरणितास्मः भ० भरणिष्यति भरणिष्यतः भरणिष्यन्ति
भरणिष्यसि भरणिष्यथ: भरणिष्यथ
भरणिष्यामि भरणिष्याव: भरणिष्यामः क्रि० अभरणिष्यत अभरणिष्यताम् अभरणिष्यन्
अभरणिष्यः अभरणिष्यतम् अभरणिष्यत अभरणिष्यम् अभरणिष्याव अारणिष्याम
२०४१. तपुस (तपुस्) दुःखार्थः। व० तपुस्यति तपुस्यतः तपुस्यन्ति तपुस्यसि
तपुस्यथ: तपुस्यथ तपुस्यामि तपुस्यावः तपुस्यामः स० तपुस्येत् तपुस्येताम् तपुस्येयु:
तपुस्ये: तएस्येतम् तपुस्येत
तपुस्येयम् तपुस्येव तपुस्येम प० तपुस्यतु/तपुस्यतात् तपुस्यताम् तपुस्यन्तु
तपुस्य/तपुस्यतात् तपुस्यतम् तपुस्यत
तपुस्यानि तपुस्याव तपुस्याम ह्य० अतपुस्यत् अतपुस्यताम् अतपुस्यन्
अतपुस्यः अतपुस्यतम् अतपुस्यत
अतपुस्यम् अतपुस्याव अतपुस्याम अ० अतपुसीत् अतपुसिष्टाम्
अतपुसिषुः
अतपुसी:
अतपुसिष्टम् अतपुसिष्ट अतपुसिषम् अतपुसिष्व अतपुसिष्म प० तपुसाञ्चकार तपुसाञ्चक्रतुः तपुसाञ्चक्रुः
तपुसाञ्चकर्थ तपुसाञ्चक्रथुः तपुसाञ्चक तपुसाञ्चकार/कर तपुसाञ्चकृव तपुसाञ्चकृम
तपुसाम्बभूव/तपुसामास। आ० तपुस्यात् तपुस्यास्ताम् तपुस्यासुः
तपुस्याः तपुस्यास्तम् तपुस्यास्त
तपुस्यासम् तपुस्यास्व तपुस्यास्म श्व० तपुसिता तपुसितारौ तपुसितारः
तपुसितासि तपुसितास्थः तपुसितास्थ
तपुसितास्मि तपुसितास्वः तपुसितास्मः भ० तपुसिष्यति तपुसिष्यतः
तपुसिष्यन्ति तपुसिष्यसि तपुसिष्यथ: तपुसिष्यथ
तपुसिष्यामि तपुसिष्याव: तपुसिष्यामः क्रि० अतपुसिष्यत्
अतपुसिष्यन् अतपुसिष्यः अतपुसिष्यतम् अतपुसिष्यत अतपुसिष्यम् अंतपुसिष्याव अतपुसिष्याम
२०४२. तम्पस (तम्पस्) दुःखार्थः। व० तम्पस्यति तम्पस्यत: तम्पस्यन्ति
तम्पस्यसि तम्पस्यथ: तम्पस्यथ
तम्पस्यामि तम्पस्याव: तम्पस्यामः स० तम्पस्येत् तम्पस्येताम् तम्पस्येयुः
तम्पस्ये: तम्पस्येतम् तम्पस्येत
तम्पस्येयम् तम्पस्येव तम्पस्येम प० तम्पस्यतु/तम्पस्यतात् तम्पस्यताम् तम्पस्यन्तु
तम्पस्य/तम्पस्यतात् तम्पस्यतम् तम्पस्यत
तम्पस्यानि तम्पस्याव तम्पस्याम ह्य० अतम्पस्यत् अतम्पस्यताम् अतम्पस्यन्
अतम्पस्यः अतम्पस्यतम् अतम्पस्यत
अतम्पस्यम् अतम्पस्याव अतम्पस्याम अ० अतम्पसीत् अतम्पसिष्टाम् अतम्पसिषुः
Page #575
--------------------------------------------------------------------------
________________
558
अतम्पसी:
अतम्पसिषम्
प० तम्पसाञ्चकार तम्पसाञ्चक्रतुः
तम्पसाञ्चकर्थ
आ० तम्पस्यात्
तम्पस्याः
तम्पसाञ्चक्रुः
तम्पसाञ्चक्रथुः तम्पसाञ्चक्र
तम्पसाञ्चकार/कर तम्पसाञ्चकृव तम्पसाञ्चकृम
तम्पसाम्बभूव/तम्पसामास ।
तम्पस्यासम्
श्र० तम्पसिता
अतम्पसिष्टम्
अतम्पसिष्व
क्रि० अतम्पसिष्यत्
तम्पसितासि तम्पसितास्थः
तम्पसितास्मि तम्पसितास्वः
भ० तम्पसिष्यति तम्पसिष्यतः
तम्पसिष्यसि तम्पसिष्यथः तम्पसिष्यामि
तम्पसिष्यावः
व० अरर्यति
अरर्यसि
अरर्यामि
स० अरर्येत्
अरर्येः
अरर्याणि
ह्य० आरर्यत्
आरर्यः
आरर्थम्
तम्पस्यास्ताम् तम्पस्यासुः
तम्पस्यास्तम् तम्पस्यास्त
तम्पस्यास्व
तम्पसितारौ
तम्पसितास्मः
तम्पसिष्यन्ति
तम्पसिष्यथ
तम्पसिष्यामः
अतम्पसिष्यताम् अतम्पसिष्यन्
अतम्पसिष्यः अतम्पसिष्यतम् अतम्पसिष्यत अतम्पसिष्यम् अतम्पसिष्याव अतम्पसिष्याम
तन्तस पस्पस इत्यन्यत्र ।
२०४३. अरर (अरर्) आराकर्मणि ।
अरर्यतः
अरर्यथः
अरर्याव:
अरर्येताम्
अम्
प० अरर्यतु / अरर्यतात् अरर्यताम्
अरर्य/अरर्यतात् अरर्यतम्
अरर्याव
अतम्पसिष्ट
अतम्पसिष्म
अम्
अरर्येव
आरर्यताम्
आरर्यतम्
आरर्याव
तम्पस्यास्म
तम्पसितारः
तम्पसितास्थ
अरर्यन्ति
अरर्यथ
अरर्यामः
अरर्येयुः
अरर्खेत
अरर्येम
अरर्यन्तु
अरर्यत
अरर्याम
आरर्यन्
आर्यत
आर्याम
अ० आररीत्
आररी:
आरम्
प० अरराञ्चकार
अरराञ्चकर्थ
अरराञ्चकार/कर
अरराम्बभूव / अररामास ।
आ० अरर्यात्
अरर्याः
अरर्यास्ताम्
अरर्यास्तम्
अरर्यास्व
अररितारौ
अररितास्थः
अररितास्वः
अररिष्यतः
अररिष्यथः
अररिष्यावः
आररिष्यताम्
आररिष्यतम्
आररिष्यः आररिष्यम् आररिष्याव
अरर्यासम्
श्व० अररिता
अररितासि
अररितास्मि
भ० अररिष्यति
अररिष्यसि
अररिष्यामि
क्रि० आररिष्यत्
व० सपर्यति
सपर्यसि
सपर्यामि
० सपर्येत्
सपर्ये:
आररिष्टाम्
आररिष्टम्
आररिष्व
अरराञ्चक्रतुः
अरराञ्चक्रथुः
अरराञ्चकृव
सपर्याणि
० असपर्यत्
असपर्यः
असपर्यम्
सपर्यतः
सपर्यथः
सपर्याव:
सपर्येयम्
प० सपर्यतु / सपर्यतात् सपर्यताम्
सपर्य/सपर्यतात् सपर्यतम्
सपर्याव
२०४४. सपर (सपर्) पूजायाम्
पर्येताम्
पर्येम्
सपर्येव
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आररिषुः
आररिष्ट
आररिष्म
असपर्यताम्
असपर्य
असपर्याव
अरराञ्चक्रुः
अरराञ्चक्र
अरराञ्चकृम
अरर्यासुः
अरर्यास्त
अरर्यास्म
अररितारः
अररितास्थ
अररितास्मः
अररिष्यन्ति
अररिष्यथ
अररिष्यामः
आररिष्यन्
आररिष्यत
आररिष्याम
सपर्यन्ति
सपर्यथ
सपर्यामः
सपर्येयुः
सपर्येत
सपर्येम
पर्यन्तु
सपर्यत
सपर्याम
असपर्यन्
असपर्यंत
असपर्याम
Page #576
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
559
अ० असपरीत् असपरिष्टाम् असपरिषुः
असपरी: असपरिष्टम् असपरिष्ट
असपरिषम् असपरिष्व असपरिष्म . प० सपराञ्चकार सपराञ्चक्रतुः सपराञ्चक्रुः
सपराञ्चकर्थ सपराञ्चक्रथुः सपराञ्चक्र सपराञ्चकार/कर सपराञ्चकृव सपराञ्चकृम
सपराम्बभूव/सपरामास। आ० सपर्यात् सपर्यास्ताम् सपर्यासुः
सपर्याः सपर्यास्तम् सपर्यास्त
सपर्यासम् सपर्यास्व सपर्यास्म श्व० सपरिता सपरितारौ सपरितारः
सपरितासि सपरितास्थः सपरितास्थ
सपरितास्मि सपरितास्वः सपरितास्मः भ० सपरिष्यति सपरिष्यतः सपरिष्यन्ति
सपरिष्यसि सपरिष्यथ: सपरिष्यथ
सपरिष्यामि सपरिष्याव: सपरिष्यामः क्रि० असपरिष्यत् असपरिष्यताम् असपरिष्यन्
असपरिष्यः असपरिष्यतम् असपरिष्यत असपरिष्यम् असपरिष्याव असपरिष्याम
२०४५. समर (समर) युद्धे। व० समर्यति समर्यतः समयन्ति स० समर्येत् समर्येताम् समर्येयुः प० समर्यतु/समर्यतात् समर्यताम् समर्यन्तु ह्य० असमर्यत् असमर्थताम् असमर्यन् अ० असमरीत् असमरिष्टाम् असमरिषुः प० समराञ्चकार समराञ्चक्रतुः समराञ्चक्रुः
समराम्बभूव/समरामास। आ० समर्यात् समर्यास्ताम् समर्यासुः श्व० समरिता समरितारौ समरितारः भ० समरिष्यति समरिष्यतः समरिष्यन्ति क्रि० असमरिष्यत् असमरिष्यताम् असमरिष्यन्
इति कण्वादयः।
__२०४६ अन्दोलण् २०४७ प्रेखोलण् अन्दोलने २०४८ वीजण वीजने। एते त्रयोऽप्यदन्ताः । बहुलवचनात्स्वार्थे णिच अन्दोलयति अन्दोलयेत अन्दोलयतु आन्दोलयत् आन्दुदोलत् अन्दोलयाञ्चकार अन्दोलयाम्बभूव अन्दोल्यात् अन्दोलयिता अन्दोलयिष्यति। आन्दोलयिष्यत्। प्रेढोलयति प्रेड्डोलयेत् प्रेडोलयतु अप्रेडोलयत् अपिप्रेडोलत् प्रेडोलयाञ्चकार प्रेढोलयाम्बभूव प्रेडोलयामास प्रेवोल्यात् प्रेडोलयिता प्रेडोलयिष्यति अप्रेजोलयिष्यत्। वीयजति वीजयेत् वीजयतु अवीजयत्। अविवीजत् वीजयाञ्चकार वीजयाम्बभूव। वीजयामास वीज्यात्, विजयिता वीजयिष्यति अवीजयिष्यत्।।
२०४९ रिरिर्लिखेः समानार्थः । रेखति चित्रकृत्। अरेखीत् २०५० लुल कम्पने। लोलति। अलोलीत्।।
२०५१ चुलुम्प चुलुम्पति, चुलुम्पेत् चुलुम्पतु अचुलुम्पत् अचुलुम्पीत् चुलुम्पाञ्चकार चुलुम्पाम्बभूव चुलुम्पामास चुलुम्प्यात् चुलुम्पिता चुलुम्पिष्यति, अचुलुम्पिष्यत्।
श्रीमत्तपोगणगगनाङ्गणगगनमणि सार्वसार्वज्ञशासनसार्वभौमतीर्थरक्षणपरायण-विद्यापीठादिप्रस्थानपञ्चकसमाराधक-संविग्न
शाखीय-आचार्यचूडामणि-अखण्ड विजयश्रीमद्रुराजश्रीविजयने मिसूरीश्वचरणेन्दिरामन्दिरेन्दिन्दि-रायमाणान्तिषन् मुनिलावण्य विजयविरचिते धातुरत्नाकरे नव-गणातिरिक्तलौकिकसौत्रवाक्यकरणीयधातनां रूपाणि समाप्तानि।।
Page #577
--------------------------------------------------------------------------
________________
560
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
॥सेट् अनिट्कारिकाः।।
एवं निम्ननिदर्शिता व्यञ्जनान्ता एकस्वरा अनुस्वारेतश्च यद्यपि धातूपाठेत्वेव सेटत्वानिटत्वज्ञापकानि | धातवोऽनिटः। तद्व्यतिरिक्ता व्यञ्जनान्ताः सेटच। इमे द्विविधा अनुबन्धविशेषरूपाणि चिह्नानि सङ्गतानि तथापि सामान्यतया | अपि धातवो ये औदितो न भवेयुस्ते ग्राह्याः तत्स्वरूपावगतये शिष्यबुद्धिवैशद्यकारिकाः कारिकाः
औदितानामनुबन्धफलप्रतिपादकप्रकरणे वेट्त्वाभिधानात्। पूर्वाचार्यायाः प्रतिपाद्यन्ते विवियन्ते च।
केभ्यः परे। विश्रिडीशीयुरुक्षुक्ष्णुस्नुज्यः वृगः वृङ: अथ सेट्त्वमनिट्त्वञ्च किं नामेति चेदुच्यते। इटा |
उदृदन्तयुजादिभ्यः। अत्र वृद्ध्यर्थत्वेन माङ्गलिकत्वादादौ टकारस्यानुबन्धत्वाद् इकारेण सह वर्तते इति सेट तस्य भावः
श्विघातोर्ग्रहणम्। ९९७ ट्वोश्वि (श्वि) गतिवृद्ध्योः । ८८३ सेट्त्वम् न विद्यते इट् इकारो यस्य सोऽनिट तस्य
श्रिग् (श्रि) सेवायाम्। ५८८ डीङ् (डी) विहायसां गतौ। भावोऽनिट्त्वम्।
१२४९ डीङ्च् (डी) गतौ। ११०५ शीक् (शी) स्वप्ने। अत्रायं निष्कर्षः-येभ्यो धातुभ्यः परतो विधीयमानाः
यु-इति सामान्यनिर्देशेऽपि रुक्षुप्रभृतिसाहचर्यात्। १०८० युक् शित्संज्ञकभिन्नत्रोणादिभिन्नसकारादितकारादिप्रत्यया
(यु) मिश्रणे इत्यस्यैव ग्रहणम् न तु १५१३ युंग्श् (यु) विशेषविधानं विहायादौ इकाररूपमिडागमं नित्यं गृह्णन्ति ते
| बन्धने इत्यस्यग् १८०४ युणि (यु) जुपुस्यायामित्यस्य तु सेटः। ये न गृह्णन्ति तेऽनिटः। सेट्त्वानिट्त्वे च यद्यपि
चौरादिकत्वादनेकस्वरत्वेन स्वत एव सेट्त्वम्। रु-इति स्ताद्यशितोऽत्रोणादेरिति प्रत्ययस्यादौ विधानत्प्रत्ययस्यैव
सामान्यनिर्देशेऽपि क्षुप्रभृतिसाहचर्यात् १०८५ रुक् (रु) शब्दे तथाप्युपचारेण धातोरपि। इह तावद्धातवो द्विधा स्वरान्ता
इत्यस्यैव ग्रहणं न तु ५९९ रुंङ् (रु) रेषणे च इत्यस्य् व्यञ्चनान्ताश्चेति। तव सूचिकटाहन्यायेनाल्पत्वादौ स्वरान्तानां |
१०८४ टुक्षुक् (क्षु) शब्दे। १०८२ क्ष्णुक (क्ष्णु) तेजने। सेट्त्वानिट्त्वे विवेच्य तदनु व्यञ्जनान्तानां विवेचयति तत्रपि |
१०८१ णुक (नु) स्तुतौ। १०८३ स्नुक् (स्नु) प्रस्नवने। ग्रन्थलाघवार्थं स्वरान्तेषु सेटधातुन् निर्दिश्य
१२९४ वृग्ट् (वृ) वरणे। १५६७ वृश् (वृ) सम्भक्तौ। तद्व्यतिरेकेणानिटो व्यञ्जनान्तेषु अनिट्वातून् निर्दिश्य
१९४५ वृग्ण (वृ) आवरणे इत्यस्य तु युजादिपाठे एव
समावेशः। ऊकार एव ऊत् ऋकार एव ऋत् ऊच्च ऋच्च तव्यतिरेकेण सेटश्च दर्शयति ।
ऊदृतौ तौ अन्ते एषामिति ऊदृदन्ताः ऊकारान्ता भूप्रभृतयः श्विश्रिडीशीयुरुक्षुक्ष्णु-णुस्नुभ्यश्च वृगो वृङाः।
ऋकारान्ता नप्रभृत्यः। युजादयो युजादिगणपठिता। इमेऊदृदन्तयुजादिभ्यः स्वरान्ता धातवः परे ।।१।।
१९४३ लीण् (ली) द्रवीकरणे। १९४४ (मीण) मतौ। पाठ एकस्वराः स्युर्येऽनुस्वारेत इमे स्मृताः।
१९४५ प्रीगण् (प्री) तर्पणे। १९४६ धूग्ण् (धू) कम्पने। ये पाठे धातुपाठे धातुपाठोपदेशावस्थायामित्यर्थः। न तु | अस्य ऊकारान्तत्वेनापि सेट्त्वम्। १९४७ वृगण (वृ) द्विर्भावादौ। एकस्वरा एक एव स्वरो येषु ते एकस्वराः। तथा | आवरणे। १९४८ जूण् (जू) वयोहानौ। अस्य अनुस्वारेतः एति अपगच्छतीति इत् प्रयोगकालेऽनव- ऋकारान्तत्वेनापि सेट्त्वम्। इमे सर्वेऽप्युक्ताः स्वरान्ता: सेटः । स्थायीत्यर्थः। अनुस्वार इत् येषु ते अनुस्वारेतः। तादृशा ये | तद्व्यतिरिक्ताः स्वरान्ता अनिटः। अथ व्यञ्जनान्ताननिटो धातवः स्युस्ते इमे अभ्यस्ततमतया बुद्धिस्थत्वेन प्रत्यक्षा | नामग्राहं दर्शयतिधातवः। अनिट इति पदमन्त्यकारिकान्तस्थमप्यत्र योज्यम्। |
द्विविधोऽपि शकिश्चैवं वचिर्विचिरिची पचिः॥२॥ स्मृताः। अर्थात्। धातुपाठोपदेशावस्थायां ये एकस्वरा |
सिञ्जतिर्मुचिरतोऽपि पृच्छतिभ्रंस्जिमस्जिश्रृजयो युजिर्यजिः। अनुस्वारेनश्च भवेयुस्तेऽनिटो धातवो विशेषाः। इदं च
प्वञ्जिरञ्जिरुजयो णिजिविजृषञ्जिभञ्जिभजयः सृजित्यजी॥३॥ स्वरान्तव्यञ्जनान्तसाधारणं लक्षणं तेनोभयत्र योज्यम्। परे
स्कन्दिविद्यविद्लविन्तयो नुदिः स्विद्यतिः शदिसदी भिदिच्छिदी। एतत्प्रथमकारिकोक्तेभ्योऽन्ये ये केचन स्वरान्ता एकस्वरा अनुस्वारेतश्च धातवस्ते सर्वेऽपि अनिटः। अस्यां कारिकायां
तुद्यदी पदिह्रदी स्विदीक्षुदी राधिसाधिशुधयो युधिव्यधी॥४॥ चोक्ता: स्वरान्ताः धातवः सर्वेऽपि सेटः।
बन्धबुध्यस्धयः क्रुधिक्षुधी सिध्यतिस्तदनु हन्तिमन्यती।
Page #578
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
561
आपिना तपिशपिक्षिपिच्छुपो लुम्पतिः सृपिलिपी वपिस्वपीः॥५। भयचलनयोरित्यस्य च। ननु अत्यन्तान्तिकस्थनिज्यभिरभिलभियमिरमिनमिगमयः
साहचर्यादभिमतस्यैव ग्रहणे किं पुनः ऋकारसहितनिर्देश इति क्रुशिलिशिरुशिदिशदिशितिदशयः
चेत्साहचर्यपरिभाषाया अनित्यत्वसूचनार्थमेतत्तेन स्पृशिमृशतिविशतिदृशिशिष्लशुष
शद्सहचारतासहचरितयोः सदोरत्र प्रकरणे ग्रहणम्। १७३ यस्त्विषियिषिविष्लुकृषितुषिदुषिपुषयः।।६।।
षंञ् (स) सङ्गे। १४६८ भोंप् (भञ्) आमर्दने। श्लिष्यतिर्द्विषिरतो घसिवसती रोहतिलहिरिही अनिड्गदितौ।
८९५ भजी (भज्) सेवायाम्। १७३४ भजण् (भज्)
विश्राणने। इत्यस्य तु चौरादिकत्वादनेकस्वत्वेन सेट्त्वमेव। देग्धिदोग्धिलिहयो मिहिवहतो नहतिर्दाहरितिस्फुटमनिटः॥७॥
१२५५ सृजिंच् (सृज्) विसर्गे। १३४९ सृजत् (सृज्) १२८० शकींच् (शक्) मर्षणे। १३०० शक्लंट (शक्)
विसर्गे। १७२ त्यजं (त्यज्) हानौ। ३१९ स्कन्दं (स्कन्द्) शक्तौ। अत्र शक्धातुरेव शकिः। इकिश्तिव् स्वरूपार्थे ।
गतिशोषणयोः। विद्य-इति श्यविकरणसहितग्रहणादनेन। ५/३/१३८॥ इति स्वरूपे इप्रत्यये किप्रत्यये वा रूपम्
१२५८ विदिंच् (विद्) सत्तायामित्यस्य ग्रहणम्। विद्लू-इति एवमग्रेतनधातुषु यथायोगं स्वरूपार्थे इप्रत्ययः किप्रत्ययः
लकारानुबन्धसहितग्रहणादनेन। १३२२ विद्रोंती (विद्) श्तिव्प्रत्यय इति ज्ञेयम्। १०९६ वचंक् (वच्) भाषणे।
लाभे इत्यस्य ग्रहणतम्। विन्ति-इति ११२५ बॅग्क् (ब्रू) व्यक्तायां वाचि इत्यस्य यो वच्
श्नविकरणसहितग्रहणादनेन। १४९७ विदिप् (विद्) आदेशस्तस्य लाक्षणिकत्वेऽपि अत्र ग्रहणम्। अत एवास्य |
विचारणे इत्यस्य ग्रहणम्। एषां विशेषणोपादानात्। १०९९ ब्रूधातोरूकारान्तत्वेन सेट्त्वप्राप्तावपि धातुपाठे
विदक् (विद्) ज्ञाने इत्यस्य न ग्रहणम्। १८०९ विदिण् सानुस्वारनिर्देशनानिटत्वं प्रतिपादितम्। १९५४ वचण् (वच्)
(विद्) चेतनाख्याननिवासेषु इत्यस्य तु पृथग्भावे।। १४७४ रिचूंपी (रिच्) विरेचने। १९५३ रिचण्
चौरादिकत्वादनेकस्वरत्वेन सेट्त्वं सिद्धमेव। (रिच्) वियोजने च इत्यस्य तु युजादिपाठात्सेटत्वमेव। ८९२
वेत्तेर्विदितं वित्तेर्विन्नं वित्तञ्च विद्यतेर्विन्नम्।। डुपचीष् (पच्) पाके। १३२१ किंचीत् (सिच्) क्षरणे। अस्य
वित्तं धने प्रतीते च विन्दतेर्विन्नमन्यत्र॥१।। स्वरूपश्तिव् प्रत्यये सिञ्चातिरिति रूपम्। १३२० मुच्लूती (मुच्) मोक्षणे। १७३१ मुचण् (मुच्) प्रमोचने इत्यस्य
१३७० णुदंत् (नुद्) प्रेरणे। स्विद्यतीति चौरादिकत्वादनेकस्वरत्वेन सेट्त्वमेव १३४७ प्रछंत् (प्रच्छ)
श्यविकरणसहितग्रहणादनेन। ११७८ ष्विदांच् (स्विद्) ज्ञीप्सायाम्। १३१६ भ्रस्जीत् (भ्रस्ज्) पाके। १३५२
गात्रप्रक्षरणे इत्यस्यैव ग्रहणं नतु ९४६ अिष्विदाङ् (स्विद्) टुमस्जीत् (मस्ज्-मज्ज्) शुद्धौ। १३५१ भुजीत् (भुज्)
मोचने च इत्यस्य। ९६७ शद्लू (शद्) शातने। ९६६ षद्लँ कौटिल्ये। १४८७ भुजंप (भुज्) पालनाभ्यवहारयोः । १२४८
(सद्) विशरणगत्यवसादनेषु। १३७१ षद्लूत् (सद्) युजिच् (युज्) समाधौ। १४७६ युनूं पी (युज्) योगे।१९४२
अवसादने। १४७७ भिदंपी (भिद्) विदारणे। १४७८ छिपी युजण (युज्) संपर्चने इत्यस्य तु युजादिपाठात्सेट्त्वमेव्
(छिद्) द्वैधीकरणे। १३१५ तुदीत् (तुद्) व्यथने। १०५७ ९९१ यजों (यज्) देवपूजासंगतिकरणदानेषु। १४७१ ष्वजित्
अदंक् (अद्) भक्षणे। १२५७ पदिंच् (पद्) गतौ। १९३३ (स्वञ्) सङ्गे। ८९६ रजी (रञ्) रागे।। १२८२ रञ्जींच्
पदिण् (पद्) गतौ। इत्यस्य तु चौरादिकत्वादनेकस्वरत्वेन (रञ्) रागे। १३५० रुजीत् (रुज्) भङ्गे। १५९२ रुजण्
सेट्त्वमेव। ७२८ हदिं (हद्) पुरीषोत्सर्गे। १२५९ खिदिंच् (रुज्) हिंसायाम् अस्य तु चौरादिकत्वादनेकस्वरत्वेन
(खिद्) दैन्ये। १३२६ खिदंत् (खिद्) परिघाते। १४७९ सेट्त्वमेव। ११४१ णिचूंकी निज् शौचे च। ११४२ विजूंकी |
| खिदिप (खिद्) दैन्ये। १४७९ क्षुदंपी (क्षुद्) संपेषे। ११५६ (विज्) पृथाभावे। विजृ इति ऋकारसहितग्रहणादस्यैव विज् |
| राधंच् (राध्) वृद्धौ। १३०४ राधंट (राध्) संसिद्धौ। १३०५ धातोर्ग्रहणम्। न तु १४६८ ओविजैति (विज्) |
| साधंट (साध्) संसिद्धौ। ११८३ शुधंच् (शुध्) शौचे। भयचलनयोरित्यस्य १४८९ औविजैप (विज्) | १२६० युधिंच् (युध्) सम्प्रहारे। ११५७ व्यधंच् (व्यध्)
| ताडने। १५५२ बन्धश् (बन्ध्) बन्धने। १६६३ बन्धण
Page #579
--------------------------------------------------------------------------
________________
562
धातुरत्नाकर प्रथम भाग (बन्ध्) संयमने इत्यस्य तु चौरादिकत्वादनेकस्वरत्वेन | लकारसहितग्रहणात् १४९२ शिष्लूप् (शिष्) विशेषणे सेट्त्वमेव। बुध्य-इति श्यविकरणसहितनिर्देशात् १२६२ / इत्यस्यैव ग्रहणं नतु ५०८ शिष (शिष्) हिंसायामित्यस्य। बुधिं (बुध्) ज्ञाने इत्यस्यैव ग्रहणं न तु ९१२ बुधृग् १९७७ शिषण् (शिष्) असर्वोपयोगे इत्यस्य तु (बुध्) बोधने ९६८ बुध् (बुध्) अवगमने इत्यस्य च। युजादिपाठात्सेट्त्वमेव। १२०८ शुषंच् (शुष्) शोषणे। ९३० १४७३ रुधुंपी (रुध्) आवरणे। १२६१ अनोरुधिंच् (अनु- | त्विषीं (त्विष्) दीप्तौ। १४९३ पिष्लूप् (पिष्) संचूर्णने। रुध्) कामे। ११८४ क्रुधंच् (क्रुध्) कोपे। ११८२ क्षुधंच् विष्ल-इति लकारसहितनिर्देशात् ११४३ विष्लंङ्की (विष्) (क्षुध्) बुभुक्षायाम्। सिध्यति-इति | व्याप्तौ इत्यस्यैव ग्रहणं न तु ५२३ विषू (विष्) सेचने श्यविकरणसहितनिर्देशात्। ११८५ षिधूच् (सिध्) संराद्धौ | इत्यस्य १५६० विषश् (विष्) विप्रयोगे इत्यस्य च। ५०६ इत्यस्यैव ग्रहणं न तु ३२० विध् (सिध्) गत्यामित्यस्य ३२१ / कुंष् (कुष्) विलेखने। १३१९ कृषीत् (कृष्) विलेखने। षिधौ (सिध्) शास्त्रमाङ्गल्ययोरित्यस्य च।
। १२१३ तुषंच् (तुष्) तुष्टौ १२०९ दुषंच् (दुष्) वैकृत्ये दुष्११०० हनंक (हन) हिंसागत्योः । मन्यति-इति | साहचर्यात् ११७५ पुषंच (पुष) पुष्टौ इत्यस्यैव ग्रहणं न तु। श्यविकरणसहितनिर्देशात् १२६३ मनिंच् (मन्) ज्ञाने | ५३६ पुष् (पुष्) पुष्टौ इत्यस्य। १५६४ पुषशू (पुष्) पुष्टौ इत्यस्यैव ग्रहणं नत् १५०७ मनयि (मन) बोधने इत्यस्य। | इत्यस्य च। १७५५ पुषण् (पुष्) धारणे इत्यस्य तु १८१० मनिण् (मन्) स्तम्भे इत्यस्य तु | चौरादिकत्वादनेकस्वरत्वेन सेट्त्वमेव। श्लिष्यति-इति चौरादिकत्वादनेकस्वस्त्वेन सेट्त्वमेव। १३०७ आप्लँट् | श्यविकरणसहितनिर्देशात्। १२१० श्लिषंच् (श्लिष्) (आप) व्याप्तौ। १९७३ आप्लृण (आप) लम्भने इत्यस्य तु आलिङ्गने इत्यस्यैव ग्रहणं न तु ५३१ श्लिषू (श्लिष्) दाहे युजादिपाठात्सेट्त्वमेव। ३३३ तपं (तप्) संतापे। १२६७ | इत्यस्य। १७०४ श्लिषण् (श्लिष्) श्लेषणे। इत्यस्य तु तपिंच (तप) ऐश्वर्ये वा। १९७६ तपिण (तप) दाहे इत्यस्य | चौरादिकत्वादनेकस्वरत्वेन सेट्त्वमेव। १६२६ द्विषींक् तु युजादिपाठात्सेट्त्वमेव। ९१६ शपी (शप्) आक्रोशे।। (द्विष्) अप्रीतौ। ५४४ घस्लुं (घस) अदने। वसति-इति १२८३ शपींच् (शप्) आक्रोशे। ११५८ क्षिपंच (क्षिप) | शव्विकरणसहितनिर्देशात्। ९९९ वसं (वस्) निवासे प्रेरणे। १३१७ क्षिपीत् (क्षिप्) प्रेरणे।
इत्यस्यैव ग्रहणं न तु १११७ वसिक् (वस्) आच्छादने __ १३७५ छुपंत् (छुप्) स्पर्श लुम्पति इति | इत्यस्य। १२२६ वसूच् (वस्) स्तम्भे इत्यस्य च। १७६१ मागमासहितनिर्देशात् १३२३ लुप्लंती (लुप) छेदने इत्यस्यैव | वसण् (वस्) स्नेहच्छेदावहरणेषु इत्यस्य तु
माहस्य ग्रहणं नतु ११९५ लुपच् (लुप्) विमोहने चौरादिकत्वेनानेकस्वरत्वात्सेट्त्वमेव। ९८८ (रुह) रु इत्यस्य। १३४१ सृप्लं (सृप्) गतौ। १३२४ लिपीत् (लिप्)
जन्मनि। अत्र रोहति-इति शद्रिकरणसहितनिर्देश: उपदेहे ९९५ डुबपी (वप्) बीजसंताने। १०८८ जिष्वपंक्
श्लोकरचनार्थः। लुहि रुही (लुह-रुह) इमौ धातुपाठेषु न (स्वप्) शपे। ३७८ यभं (यभ्) मैथुने। ७८५ रभिं (रभ्)
दृश्येते छान्दसौ मन्तान्तरीयौ वा संभाव्यते। देग्धीति। ११२८ राभस्य। ७८६ डुलभिंष् (लभ्) प्राप्तौ। ३८६ यमु (यम्) | दिहाक् (दिह) लप। दोग्धाति। ११२७ दुहाक् (दुह्) क्षरण। उपरमे। ९८९ रमिं (रम्) क्रीडायाम्। ३८८ णमं (नतम्)
११२९ लिहीक (लिह) आस्वादने। ५५१ मिहं (मिह) प्रह्वत्वे। ३९६ गम्लुं (गम्) गतौ। ९८६ क्रशं (क्रुश्) सेचने। ९९६ वहीं (वह्) प्रापणे। १२८५ णहींच् (नह) आह्वानरोदनयोः । १२७७ लिशिंच् (लिश्) अल्पत्वे। १४१७ / बन्धने। ५५२ दहं (दह्) भस्मीकरणे। इति स्फुटं यथा लिशंत् (लिश्) गतौ। १४१३ रुशंत् (रुश्) हिंसायाम्।
स्यात्तथा इमे व्यञ्जनान्ता धातवोऽनिट; तद्व्यतिरिक्ता १४१४ दिशत् (दिश्) हिंसायाम्। १३१८ दिशीत (दिश्)
व्यञ्जनान्ताः सेटः। इति स्वरान्तव्यञ्जनान्तधातूनां अतिसर्जने। ४९६ दंशं (दंश्) दशने। १४१२ स्पृशत्
सेट्त्वानिटत्वे प्रपञ्चिते।। (स्पृश्) स्पर्शे। १४१६ मृशंत् (मृश्) आमर्शने। १४१५
॥समाप्ता अनिट्कारिकाः।। विशत् (विश्) प्रवेशने। ४९५ दृशं (दृश) प्रेक्षणे। |
Page #580
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
563
॥अथ धातुप्रत्यानुबन्धफलप्रतिपादकाःश्लोकाः॥ । ऊश्चानयोः समाहार इति ऊः ततः क्लीबे इति ह्रस्वत्वे उ इति उच्चारणेऽस्त्यवर्णाद्य आः क्तयोरिण् निषेधने।
तत: च-उ-इति अकारस्य उकारस्य च सन्धौ चो इति जातम्।
तथा च चोशब्देन च उ: ऊः इति ज्ञेयम्। तत्र चकारः समुच्चये। इकारादात्मनेपद-मीकाराच्चोभयं भवेत्॥१॥
उः उकार उदितः स्वरान्नोऽन्त इत्यत्र विशेषणार्थः ऊ: ऊकार: उदित: स्वरान्नोन्तश्चो-त्तवादाविटो विकल्पनम्।
क्त्वादौ क्त्वाप्रत्ययस्य आदौ इड इकारस्य विकल्पनं करोतीति रूपान्त्ये डेयरेऽह्रस्व ऋकारादङ् विकल्पकः॥२॥
शेषः। अथवा-उ-उदितः स्वरान्नोऽन्तः च-ऊः इति लकारादङ् समायात्येः सिचि वृद्धिनिषेधकः।
ऊदितस्वरान्नोऽन्तः च-ऊः इति ऊदितस्वरान्नोऽन्तश्चोः इति ऐ: क्तयोरिनिषेधः स्या-दोः क्तयोस्तस्य नो भवेत्॥३॥
पाठो ज्ञेयः। तत्र प्रथमो य उशब्दस्तेन उरुपमक्षरमिति औकार इड्विकल्पार्थेऽनुस्वारोऽनिड्विशेषणे।
नपुंसकलिङ्गार्थं व्याख्येयम्। यथा ५२ तकु (तक्-तनक्लुकाराश्च विसर्गश्चा-नुबन्धो भवतो नहि॥४॥
तङ्) कृच्छ्रजीवने। अत्र उदित्त्वाद् उदितः स्वरान्नोऽन्त इति कोऽदादिर्न गुणी प्रोक्तो खे पूर्वस्य मुमागमः। नागमः। १०६ वञ्चू (वञ्च) गतौ। ऊदितो वा इति वेट। गे नोभयपदी प्रोक्तो घश्च चजोः कगौ कृतौ।।५।।
वक्त्वा। इति तु ऋत्तषेति क्त्वो वा कित्त्वे वचित्वा वञ्चित्वा ऋ आत्मने गुणरोधे ङ्-श्चो दिवादिगणो भवेत्।
उपान्त्ये इत्यवस्थायां सन्धौ रुपान्त्ये। डे परे ङप्रत्यये परे जो वृद्धौ वर्तमाने क्तः टः स्वादिष्ठाकारकः॥६॥ ङपरणौ प्रत्यये इति यावत् अह्रस्वो ह्रस्वाभावः। ङपरकणिप्रत्यये त्रिमगर्थो डकारः स्याण् णश्चुरादिश्च वृद्धिकृत्। परे सति ऋदितां धातूनामुपान्त्यस्य ह्रस्वो न भवति। यथा ५५ तस्तुदादौ नकारचेच्चापुंसीति विशेषणे।।७।।
ओख (ओख) शोषणालमर्थयोः। अत्र ऋदित्त्वाद् ङपरे णौ स्धादौ नागमे पोहि मो दामः सम्प्रदानके।
उपान्त्यस्येति न ह्रस्वः। मा भवानोचिखत्। ऋदित्त्वादेव चौतो यस्तनादौ रकारः स्यात् पुंवद्भावार्थसूचकः।।८।। नेत्संज्ञा प्रयोगित्वाच्च। एवं ५६ राख (राख) शोषणालमर्थयोः । स्त्रीलिङ्गार्थे लकारो हि उत और्विति वो भवेत्।
अरराखत्। ऋकाराद् अङ: विकल्प एव विकल्पकः। २८० शः क्रयादिः क्यः शिति प्रोक्तः षः षितोङ् विशेषणे।।९। च्युत (च्युत्) आसेचने। ऋदित्त्वाद् ऋदिच्छवीति वाङि पदत्वार्थे सकारो हि नोक्ता अत्र न सन्ति च।
अच्युतत् अच्योतीत्। लकाराद् अङ् समायाति ३९६ गम्लूं धातूनां प्रत्ययानाञ्चानुबन्धः कथितो मया।॥१०॥
(गम्) गतौ। लूदित्त्वाद् लुदिद्द्युतादित्यङि अगमत्। ए: एकार:
सिचि वृद्धिनिषेधकः। १७४ कटे (कट) वर्षावरणयोः। अत्र उच्चारणम् उच्चारणार्थं श्रुतिसुखदोच्चारणार्थमिति यावत्।
व्यञ्जनादेोपान्त्यस्येति। वृद्धेरेदित्त्वान्न श्विजाग्रिति प्रतिषेधे अवर्णाद्यः अवर्णस्तु अकार आकारश्च वर्णग्रहणे स्वसंज्ञकस्यापि
अकटीत्। ऐ: ऐकारो यदि भवेत्तर्हि क्तयोः क्तक्तवतुप्रत्ययोरादौ ग्रहणमिति न्यायात्। तत्राकारव्यवच्छेदार्थमाह-अवर्णस्य
इण्निषेणे भवति। २०० कटै (कट) गतौ। अत्रैदित्वात् अकाराकाररूपस्याद्यः प्रथम अकार इत्यर्थः। अस्ति। अकार:
डीयश्वैदितः क्तयोरिति क्तयोर्नेट् कट्टः कट्टवान्। ओः ओकारो श्रुतिसुखदोच्चारणार्थं धात्वादौ अनुबन्धतया योज्यत इत्यर्थः ।
यदि स्यात्तर्हि क्तयोः क्तक्तवतुप्रत्यययोस्तकारस्य नो नकारो यथा ५१ तक (तक्) हसने। एवम् आ आकारः क्तयोः
भवेत्। ४८ ओवै (वै) शोषणे। अत्र ओदित्त्वात् सूयत्यादीति क्तक्तवतु प्रत्यययोरादौ इनिषेण्ने इकारनिषेधार्थः। यथा १२५
क्तयोस्तस्य नत्वे वानः वानवान्। २१ औस्वृ (स्वृ) हुछा (हुर्छ) कौटिल्ये। अत्रादित्त्वात् आदित इति क्तयोरिडभावे
शब्दोपतापयोः। अत्रौदित्त्वाद् धूगौदित इति वेट्। स्वर्ता स्वरिता हूर्ण हूर्णवान्। इकाराद् आत्मनेपदं भवति। यथा ६१८ ककि
सुस्वर्षति सिस्वरिषति। अनुस्वारः बिन्दुरूपोऽनिविशेषणे (कक्) लौल्ये। अत्र इडित इत्यात्मनेपदे ककते। च: समुच्चये।
अनिट्त्वार्थ इत्यर्थः। ईकाराद् उभयमुभयपदं भवति। ८९५ भजी (भज्) सेवायाम्। अत्र ईदित्त्वात्फलवात्कर्तरि ईगित इत्यात्मनेपदम। अफलवति तु
२ पां (पा) पाने। अत्रानुस्वारेत्त्वात् स्ताद्यशित इति प्राप्तस्येट: शेषात्परस्मै इति परस्मैपदमेवोभयपदं भवति। चो-उश्च
एकस्वरादनुस्वारेत इति निषेधः। पाता पास्यति। लुकारो विसर्गश्चानुबन्धो न भवतः। ककारो यदि धातौ स्यात्तदा धातुः
Page #581
--------------------------------------------------------------------------
________________
564
धातुरत्नाकर प्रथम भाग धुरूपकार्यानुपलभ्भाच्च अतः टः स्वादिरथुकारकः इति पाठः सम्यक् टकारः स्वादिः (षिंगट्-सिनुते इति उकारविशिष्ट:टकारः अथुकारकः यथा टुवपीं बीजसन्ताने इति 'द्वितोऽथुः ' इति अथौ वपथुरिति । त्रिमगर्थो डकार इत्यग्रिमग्रन्थानुरोधेनउकारविशिष्ट इति अवश्याध्याहार्यम् इति तस्मिन् पाठे न कोऽपि दोष इति - त्रिमग् अर्थः प्रयोजनं यस्य तादृशो डकार: स्यात् अत्र डकारेण डकारोपलक्षितो डुंकारो ज्ञेयः । ८९२ डुपचष् (पच्) पाके । वित्त्वात्रिमकि पाकेन निर्वृत्तं पवित्रमम् । णो णकारो यदि स्यात्तदा चुरादिः धातुश्चुरादिगणीयो भवति एवं णकारो वृद्धिकृद् । अस्ति १५७२ बल्कण् (बल्क्) भाषणे। णित्वाच्चुरादित्वेन चुरादिभ्य इति णिचि वल्कयति । १२ दु (दु) गतौ णवि वृद्धौ दुदाव । १३१७ क्षिपत् (क्षिप्) प्रेरणे । तित्त्वात् तुदादेः श इति क्षिपति । नकारश्च इच्चापुंसोऽनित्क्याप्परे इत्यत्र विशेषणार्थः । खट्विका खट्वाका अनिदिति किम् । दुर्गका पकारो रुधादौ नागमार्थः । अर्थात् पकारेण रुधादित्वं भवति रुधादित्वाच्च नागमो भवति । १४७३ रिचृपी (रिच्) विरेचने रुधां स्वरादिति श्ने रिणक्ति किन्तु रुधादौ तागमे पोहि - इति पाठः सम्यक् तस्येयं व्याख्या पकारो रुधादिघटका: पकारानुबन्धेन धातूनां रुधादित्वं भवतीति भावः प्रत्ययस्थपकारानुबन्धः तागमप्रयोजक:-(दृवृग्-इत्यादिना क्यपि ‘ह्रस्वस्य तः पित्कृति' तागमे आदृत्य प्रावृत्य इति मो मकारः दामः सम्प्रदाने ऽधर्म्ये आत्मने च इत्यत्र विशेषणार्थः । दास्या सम्प्रयच्छते कामुकः । यो यकारः तनादेः सूचकः । १५०१ क्षणूयी (क्षण्) हिंसायाम् । यित्त्वात् कृग्तनादेरित्यौ च तनुते । रकारः पुंवद्भावरूपो योऽर्थस्तत्सूचकः । पट्वो प्रकारोऽस्याः पटुजातीया । प्रकारे जातीयरिति जातीयर प्रत्यये रितीति पुंवद्भावः । लकारो स्त्रीलिङ्गार्थः । जनानां समूहो जनता; अत्र तल्प्रत्ययस्य लित्त्वात् स्त्रीत्वम् । वकार उत अनु-अ-भू-ञिच् | और्वितिव्यञ्जनेऽद्वेरित्यत्र विशेषणार्थः । १०७७ घुंक् (द्यु) अभिगमने । द्यौति । शकारो यदि स्यात्तदा त्क्रयादिः स्यात् । १५०७ षिंगूश् (सि) बन्धने । शित्त्वात्क्रयादित्वेन क्रयादेरिति श्नाप्रत्यये सिनाति । क्यः शितीत्यत्र विशेषणार्थः । भूयते अत्र भावकर्मविहिते शिति क्यः । चकार :षितोऽङ् इत्यत्र विशेषणार्थः । ८९२ डुपचष् (पच्) पाके । पच्यतेऽसाविति पचा । सकारः पदत्वार्थे पदत्वप्रयोजकः । भवतोरिकणीयसौ इतीयसि नामसिद्यव्यञ्जने - इति पदत्वे घुटस्तृतीय इति दत्वे
अदादिर्भवति । एवं ककारो यदि प्रत्यये स्यात्तदा तस्मिन् प्रत्यये परे धातुर्गुणी गुणवान् न भवति । ११०० हनंक् ( हन्) हिंसागत्योः । कित्करणाददादित्वं तेन कर्तर्यनद्भ्यः शव् इत्यत्र अदादिवर्जनाच्छवभावे हन्ति । भूसत्तायाम् । भू-क्यात् - भूयात् अत्र कित्त्वेन नामिनो गुणोऽङ्कितीत्यत्र किद्वर्जनान्न गुणः खे पूर्वस्य-मुमागम इति मुम् - इति (म् ) इत्यस्य प्राचां संज्ञा तयाइद्व्यवहारः प्राचां - संज्ञाया व्यवहार इत्यत्र प्रमाणम् - यजादेः संप्रसारणमिति एवञ्च मुमागम इत्यस्य मागम इत्यर्थः । खे खिति पूर्वस्य म् आगमो भवति १२० मनिंच् (मन्) ज्ञाने कर्तुः खश् इति खशि खित्यनव्ययेति मागमे च पटुमात्मानं मन्यत इति पटुंमन्यः ।। ८८३ श्रिग् ( श्रि ) सेवायाम् । गित्त्वात्फलवति कर्तरि ईगित इत्यात्मनेपदेऽन्यत्र - शेषात्परस्मायिति परस्मैपदे चोभयपदं ज्ञेयम् । श्रयते श्रयति । घो घकारो यदि स्यात्तदा चजो: चकारजकारयोः कगौ क्रमेण ककारगकारौ कृतौ विहितौ ज्ञातव्यौ । भाविनि भूतोपचाराद् घकारे । इति चकारस्य ककारो जकारस्य गकारो भवतीत्यर्थः । ८९२ डुपचींष् (पच्) पाके । पचनं (पच्- घञ्) पाकः । ९९१ यजीं (यज्) देवपूजासंगतिकरणदानेषु । यजनं ( यज्- घञ्) यागः । अत्र चजः कगमिति चकारस्य कत्वं जकारस्य गत्वञ्च । आत्मने इति पदैकदेशे पदसमुदायोपचाराद् आत्मनेपदे आत्मनेपदार्थं गुणरोधे गुणनिषेणार्थञ्च ङो डकारो भवति । ५६८ गांङ् (गा) गतौ ङित्त्वाद् इङित इत्यात्मनेपदे गाते । ९३७ द्युति (द्युत्) दीप्तौ । द्युत्-अङ् अद्युतत् अत्र ङित्त्वेन - नामिन इत्यत्र द्विर्जनान्न गुणः । चः चकारो यदि स्यात्तदा दिवागणो भवेत् । दिवादिगणीयो धातुर्भवेदित्यर्थः । ११५३ कुथच् (कुथ्) पूतिभावे। अत्र चित्त्वाद्दिवादित्वेन दिवादेरिति श्ये कुथ्यति । जो ञकारो वृद्धौ वृद्ध्यर्थः ॥
एवं जी नाम ञकारोपलक्षितो ञिर्यदि भवेत्तदाः धातोर्वर्तमाने क्तप्रत्यो भवति । १ भू सत्तायाम् । अन्वभावि - अत्र ञित्त्वाद् णितीति वृद्धिः । ३०० ञिविदा (विद्) अव्यक्ते शब्दे । ञित्त्वाज्ज्ञानेच्छार्चेति सत्यर्थे क्तः । विद्यते क्ष्विण्णः । टकारो यदि स्यात्तदा स्वादिः स्यात् । १२८६ षिगट् (सि) अभिषवे। अत्र टित्त्वेन स्वादित्वात् स्वादेः श्नुरिति श्नौ सिनुते (टःस्वादिष्ठद्युकारक: ) अत्र ठद्यकारकः इति पाठो न समीचीनः ठानुबन्धानुपलम्भात् ठ- इत्यस्य निर्विभक्तिकत्वात् अयोग्यतया समासाभावात्
धुकारक
इत्यत्र
•
Page #582
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
565
भवदीय इति येऽनुबन्धतया नोक्तास्तेऽनुबन्धा न सन्ति। तदतिरिक्तमिदं ज्ञेयम्। ९५५ वृतूङ् (वृत्) वर्त्तने। अवृतत् अनुबन्धास्तु इयन्त एव। अपि तु अत्रानुबन्धानां यद्यत्फलमुक्तं अवर्तिष्ट। वद्भय इति स्यसनोर्विषये वात्मनेपदमात्मनेपदाभावे तेन प्रयोजनान्तराण्यप्युपलक्ष्यन्ते। यथा टकारस्य प्रयोजन च न वृद्भ्य इति नेट। वर्तिष्यते वय॑ति अवर्तिष्यत स्वादित्वमेवोक्तं तथापि २८ ट्धे (धे) पाने। अत्र टकारः | अवय॑त् सनि विवृत्सति विवर्तिषते। ज्वलादेर्णः प्रत्ययो शुनिंधयीत्यादौ यर्थः।
विकल्पेन भवति। ९६० ज्वल (ज्वल) दीप्तौ। वा ज्वलादीति एवं डकारस्यान्त्यस्वरलोपप्रभृतिप्रयोजनं स्वयमूह्यम्। णे ज्वालः। पक्षे ज्वलः। यजादेर्यजादिगणस्य फलं सम्प्रसारणं अत्रार्थेऽन्येऽपि कतिचित् श्लोकाः
यवृत। ९९१ यजी (यज्) देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु।
यजादिवशिति पूर्वस्य य्वृति इयाज यजादिवचेरिति वृति ईजे। अदादयः कानुबन्धाश्चानुबन्धा दिवादयः।
घटादीनां फलं तु णौ णिप्रत्यये परे ह्रस्वः। १००० घटिष (घट्) स्वादयष्टानुबन्धास्तानुबन्धास्तुदादयः॥१०॥
चेष्टायाम्। घटादेरितिहस्वे। घटयति। (णौ परेऽजीघटत् सदा) स्थादयः पानुबधा यानुबन्धास्तनादयः।
अयं भावः 'जासनाटक्राथपिषो हिंसायां इत्यत्र यादयः शानुबन्धा णानुबन्धाश्चरादयः॥२॥ क्राथेत्याकारोपान्त्यनिर्देशा-दाकारश्रुतावस्य
प्रवृत्तेः ॥इत्यनुबन्धफलप्रतिपादकप्रकरणतम्।।
चौरस्योत्क्राथयतीति घटादेह्रस्व इति ह्रस्वत्वाभावः। अद्यतन्यां ॥वृत्गणफलनिरुपणम्॥
तु ह्रस्वघटितमेव रूपं भवति इति अजीघटत्सदेत्यनेन द्युतादेरद्यतन्यां चाडात्मनेपदमिष्यते
सूचितमिति क्राथेरपि उदचिक्रथादिति 'उपान्त्यस्य' इति ह्रस्वस्तु वृदादिपञ्चकेभ्यो वा स्यसनोरात्मनेपदम्॥१॥
न निषिध्यते यस्मिन् प्राप्त एवेति न्यायादिति। पुषादित्वादद्यतन्यां ज्वलादेो विकल्पेन यजादेः संप्रसारणम्।
परस्मैपदेऽङ् भवति। दिवाद्यन्तर्गणपुषादिगणस्य फलं घटादीनां भवेद्ह्रस्वो णौ परेऽजीघटत् सदा॥२॥
परस्मैपदेऽद्यतन्यामङ् प्रत्ययभवनमित्यर्थः। ११७५ पुषंच्
(पुष्) पुष्टौ। लदिदिति अङि अपुषत्।स्वादित्वात् अद्यतन्यां पुषादित्वादङ् परस्मैपदे भवेत्।
दिवाद्यन्तर्गणस्वादिगणपठितत्वात् क्तयोस्क्तक्तवतुप्रत्यययोस्वादित्वाच्च क्तयोस्तस्य न कारः प्रकटो भवेत्॥३॥
स्तकारस्य नकारो भवति। १२४१ षूडौच् (सू) प्राणिप्रसवे। प्वादीनां भवेदह्रस्वो ल्वादेस्तयोश्च नो भवेत्।
सूयत्यादीति क्तयोस्तस्य नत्वे सूनः सूनवान्। प्वादीनां युजादयो विकल्पेन ज्ञेयाक्षुरादिके गणे।।४।।
क्रयाद्यन्तर्गणप्वादिगणपठितधातूनां ह्रस्वो गदितः । १५१८ पूरशू मुचादेर्नागमः शे च कुटादित्वात्सिचि परे।
(पू) पवने। प्वादेरिति प्हस्वे पुनाति पुनीते। ल्वादेः गुणवृद्धेरभावश्च कथितो हेमसूरिणा॥५॥
क्रयाद्यन्तर्गणप्वान्तर्गणल्वादिगणपठितधातोस्क्तयोस्तस्य नो अदन्तानां गुणो वृद्धिर्यङ् चुरादेच नो भवेत्।
भवेत्। १५१९ लूग्श् (लू) छेदने। ऋल्वादेरिति क्तक्तीनां तो संक्षेपेण फलञ्चैतज्ज्ञेयं सूत्रानुसारतः।।६।।
नत्वे लूनः लूनवान् लूतिः। युजादयो युजादिगणपठिता
धातवञ्चुरादिगणे विकल्पेन ज्ञेयाः। चुराद्यन्तगणयुजादिगणस्य वृत् गणानामान्तर्गणास्तेषामात्तर्गणकरणे यत्फलं तदुच्यते।
फलं विकल्पेन णिच्ग्रहणमित्यर्थः। १९४२ युजण् (युज) द्युतोदेचूतादिगणपठितधातोरद्यतन्यामङ् आत्मनेपदञ्च वा भवति।
सम्पर्चने। युजादेरिति वा णिचि योजयति। पक्षे न्यायविकरण: अर्थात्-धुतादिगणस्य फलमद्यतन्यां विकल्पेनाङात्मने
शव् योजति। मुचादेस्तुदाद्यर्तगणमुचादिगणस्य फलं शे पदभवनम्। ९३७ द्युति (द्युत्) दीप्तौ। युद्भ्योऽद्यतन्यामित्यात्मनेपदिनोऽपि विकल्पनात्पक्षे शेषात्परस्मायिति परस्मैपदे
शप्रत्यये नागमः। १३२० मुच्लुन्ती (मुच्) मोक्षणे मुचादीति
स्वरात्परे नेन्ते मुञ्चति मुञ्चते। कुटादित्वात् लृदियुतादीत्यङि: अद्युतत्। पक्षे अद्योतिष्ट वृदादिपञ्चकेभ्यो
तुदाद्यन्तर्गणकुटादिगणपठितत्वात् सिचि परे गुणवृद्ध्यभावः । वृदादेः पञ्चत: स्यसनोः स्यादौ प्रत्यये सनि च विषये आत्मनेपदं
यथा १४२६ कुटत् (कुट) कौटिल्ये। कटादेरिति ङित्त्वात् वा भवति। अयं वृदादिर्घताद्यन्तर्गणस्तेन धुतादिफलन्तु अत्येव
गुणाभावे सिचि अकुटीत्। १४२९ णूत् (णूत्) स्तवने।
Page #583
--------------------------------------------------------------------------
________________
566
कुटादेरिति ङित्त्वात् सिचि परस्मायिति वृद्ध्यभावे अनुवीत् । चुरादेरदन्तानां चुरादिगणपठितादन्तधातूनामित्यर्थः । गुणो वृद्धिश्च न भवेत् । सुखण् (सुख) तत्क्रियायाम् । १८५४ रचण् (रच्) प्रतियत्ने । रचयति । अत्रात इत्यल्लुकः स्वरादेशत्वेन स्थानिवत्त्वाद् गुणवृद्ध्यभावः । अररचत्। असुसुखत्। अत्र समानलोपित्वादसमानलोप इति पूर्वस्य सन्वद्भावो लघोर्दीर्घ इति दीर्घश्च न भवति । १८५५ सूचण् (सूच्) पैशून्ये अत्रोपान्त्यह्रस्वाभावः ।
॥ इति वृत्गणफलनिरूपणम् ॥ ॥ सकर्मकवाकर्मकत्वानिरूपणम् ।। फलव्यापारयोरेकनिष्ठतायाकर्मकः । धातुस्तयोर्धर्मिभेदे सकर्मक उदाहृतः ॥ १ ॥ फलस्य गतिनिवृत्त्यादिरूपस्य व्यापारस्य गतिनिवृत्त्यनुकूल - व्यापारादिरूपस्य च एकनिष्ठतायामेकाधिकरणवृत्तितायां सत्यां धातुरकर्मको भवति । फलसमानाधिकरणव्यापारबोधकत्वं समानाधिकरणफलावच्छिन्नव्यापारबोधकत्वं वाकर्मकत्वमिति फलितोऽर्थः । यथा पष्ठां (स्था) गतिनिवृत्तौ, अत्र फलं गतिनिवृत्तिः व्यापारस्तदनुकूल इति फलं व्यापारश्चोभयं देवदेत्तस्तिष्ठति इत्यत्र देवदत्तरूपैकाधिकरणे वर्त्तते । देवदत्तस्तिष्ठतीति कोऽर्थः ? गतिनिवृत्त्यनुकूलव्यापारवान् देवदत्तः । एवं तयोः फलव्यापारयोः धर्मिभेदेऽधिकरणभेदे भिन्नभिन्नाधिकरणवृत्तितायां सत्यां धातुः सकर्मको भवति । फलव्यधिकरणव्यापारबोधकत्वं व्यधिकरणफलावच्छिन्नव्यापार बोधकत्वं वा सकर्मकत्वमिति फलितोऽर्थः । यथा ८९२ डुपचष् (पच्) पाके। देवदत्तस्तूण्डुलान् पचति । कोऽर्थः ? तण्डुलनिष्ठविक्लृत्यनुकूलव्यापारवान् देवदत्तः । अत्र फलं विक्लृतिः, सा तण्डुलेषु वर्त्तते व्यापारस्तदनुकूलः स देवदत्ते वर्त्तते इति फलव्यापारयोर्भिन्नाधिकरता ।
अर्थान्तरे वर्त्तमानस्याकर्मकस्यापि सकर्मकत्वं भवति कालाध्वभावदेशापेक्षया च सर्व एव धातवः सकर्मकाः । मासमास्ते । क्रोशो गुडधानाभिर्भूयते । गोदो - स्वपिति । कुरून् शेते । अर्थान्तरवृत्त्यादिना च सकर्मकस्यापि अकर्मकत्वं भवति । यदाह
धातोरर्थान्तरे वृत्तेर्धात्वर्थेनोपसंग्रहात् । प्रसिद्धेरविवक्षात: कर्मणोऽकर्मिका क्रिया ॥ २ ॥
धातुरत्नाकर प्रथम भाग अर्थान्तरे वर्त्तमानाद्धातोः सकर्मकस्यापि अकर्मिका क्रिया भवति । यथा भारं वहति उद्यच्छतीत्यर्थः नदी वहती स्रवतीत्यर्थः । कर्मणो धात्वर्थान्तः प्रवेशादकर्मकत्वम् । यथा ४६५ जीव (जीव्) प्राणधारणे जीवति । ७२८ हदिं (हद्) पुरीषोत्सर्गे हदते । अत्र प्राणपुरीषाख्ये कर्मणी धात्वर्थेनैव क्रोडीकृते । कर्मणः प्रसिद्धत्वात् । यथा ५२७ वृषू (वृष्) सेचने। देवो वर्षति । न पुनरत्र रक्तं वर्षति । पार्थः शरान् वर्षति । कर्मणोऽविवक्षितत्वात्। यथा नेह पच्यते नेह भुज्यते । कर्माविवक्षा चौदासीन्थनिवृत्तिमात्रपरतया प्रयोगात् । यथा किं करोतीति प्रश्ने पचति पठतीत्यादि प्रत्यवस्थानं नतु भवति विद्यते वेत्यादि तेषामपर्यनुयोज्यत्वात् । यत्तु किं करोतीति प्रश्ने भवतीत्युत्तरं तत्क्रियाख्यकर्मनिबन्धनं नतु बाह्यकर्मापेक्षं भवनं करोतीत्यर्थावगमात्। क्रिया हि सर्वधातूनामान्तरं कर्म । अतएव क्रियाविशेषणानां कर्मत्वं स्मरन्ति । नन्वेवं क्रियाविशेषणादिति योगो व्यर्थः कर्मणीत्येव द्वितीयासिद्धेः । नैवम् । आन्तरकर्मणा सकर्मणोऽपि अकर्मककार्यप्रतिपत्त्यर्थत्वाद्योगस्य । तेन सुखं सुप्त इत्यादौ कर्त्तरि क्तः सिद्धः । सुखं स्थातेत्यादौ कृन्निमित्ता षष्ठी न भवतीति । अत एव सकर्मकाकर्मकव्यवहारो द्रव्यकर्मनिमित्त इत्युच्यते । यदाह
॥ सकर्मकाकर्मकत्वं द्रव्यकर्मनिबन्धनम् ।। ॥अथ द्विकर्मकगणनानिरूपणतम् ।। कृष ण्यन्तादुहिब्रूपृच्छिभिक्षिचिरुधिशास्वर्थाः । पचियाचिदण्डिकृग्रहमथिजिप्रमुखा द्विकर्माणः ॥ १ ॥ इमे सर्वे धातवो द्विकर्मका विज्ञेयाः । ८८४ णींग् (नी) प्रापणे। गाममजां नयति। ८८५ हंग् (ह) वरणे । निवासं हरति घासं । ९९६ वहीं (वहू) प्रापणे । ग्रामं भारं वहति । ५०६ कृषं (कृष्) विलेखने। १३१९ कृषींत् (कृष्) विलेखने। ग्रामं बलिवर्द कर्षाति । ण्यन्ता इति । ३ घ्रां (घ्रा ) गन्धोपादाने। जिनदासं पुष्पाणि घ्रापयति । दुहिब्रूपृच्छिभिक्षिचिरुचिशासूधातूनामर्था इव अर्था येषां ते तथा । दुहिप्रभृतीनां षण्णां धातूनां येऽर्थाः प्रतिपादिताः तादृशा अर्था येषां धातूनां भवन्ति तेऽपि धतवो द्विकर्मका विज्ञेयाः । ११२७ दुहींक् (दुह्) क्षरणे । गां दोग्धि पयः। ११२५ ब्रंग्क् (ब्रू) व्यक्तायां वाचि । भव्यान् धर्मं ब्रूते । १३४७ प्रच्छंत् (प्रच्छ्) ज्ञीप्सायाम् । जनं मार्गं पृच्छति । ८८० भिक्षि (भिक्षु) याञ्चायाम् । भिक्षते गां राजानम् । १२९० चिंग्ट् (चि) चयने । वृक्षं पुष्पाणि अवचिनोति । १४७३ रुधूंपी (रुध्)
T
Page #584
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
आवरणे । शंठ गृहमवरुणद्धि १०९५ शास्क । (शास्) अनुशिष्टा । मनुष्यं धर्मं शास्ति । ८९२ डुपचष् (पच्) पाके तण्डुलानोदनं पचति । याचिरत्रानुनयार्थस्तेन भिक्ष्यर्थाद्भेदः । ८९१ डुयाचग् (याच्) याञ्चायाम् । शठं धर्मं याचतेऽनुनयतीत्यर्थः । १८६९ दण्डण् ( दण्ड्) दण्डनिपाते। देवदत्तं शतं दण्डयति । ८८८ डुकृंग् (कृ) करणे । मृदं घटं करोति । १५१७ ग्रहीश् (ग्रह) उपादाने । द्रव्यं धान्यं प्रतिगृहात १५४७ मन्थश् (मन्थ्) विलोडने । समुद्रममृतमम्नात् । ८ जिं (जि) अभिभवे । देवदत्तं शतं जयति । प्रमुखग्रहणात् १५६३ मुषशू (मुष्) स्तेये। गोविन्दं शतं मुष्णाति । एतद्व्याख्या तु मतान्तरीयोक्तकारिकानुसारेण कृता । हेमचन्द्रसूरीशानैस्तु । तच्च (द्विविधं कर्म तु) द्विकर्मकेषु दुहिभिक्षिरुधिप्रच्छिचिग्ग्शास्वब्रूर्थेषु याचि जयप्रभृतिषु नीकृषवहेषु च भवति । अत्रोदाहरणानि तु निरुक्तान्येव । अत्रोक्तातिरिक्तधातूणामुपरि गणना कृता । सा अत्रैव समवसरति । इदं तस्या उपलक्षणं मतभेदो वेति स्वयमूह्यम् ।
॥ इति द्विकर्मकगणनानिरूपणम् ॥ ॥ अथ गौणमुख्यकर्मनिरूपणम् || न्यादीनां कर्मणो मुख्यं प्रत्ययो वक्ति कर्मजः । नीयते गौर्द्विजैर्ग्राम भारो ग्राममथोह्यते ॥ १ ॥ गौणं कर्म दुहादीनां प्रत्ययो वक्ति कर्मजः ।
पयो दुह्यतेऽनेन शिष्योऽर्थं गुरुणोच्यते ॥ २ ॥ कर्म द्विविधं मुख्यं गौणञ्च । तत्र यदर्थं क्रिया आरभ्यते तत्प्रधानम् । तत्सिद्ध्यै यत्क्रियया व्याप्यते गवादि तदप्रधानम् । अन्यत्सर्वं स्फुटम् । किञ्च गत्यर्थानामकर्मकाणां तु णिगन्तानां प्रधाने एष कर्मणि गम्यते मैत्रो ग्रामम् । आस्यते मासं मैत्रः । बोधाहारार्थशब्दकर्मकाणां तु णिगन्तानामुभयत्र बोध्यते शिष्यो धर्मम् । बोध्यते शिष्यं धर्मो वा भोज्यतेऽतिथिमोदनः । भोज्यतेऽतिथिरोदनम्। पाठ्यते शिष्यो ग्रन्थतम् । पाठ्यते शिष्यं ग्रन्थो वा ।
॥ इति गौणुख्यकर्मनिरूपणम् ।।
॥ अथ धातूपसर्गजन्यभेदप्रकाशनिरूपणम् ।। बीकालेषु सम्बद्धा यथा लाक्षारसादयः । वर्णादिपरिणामेन फलानामुपकुर्वते ॥ १॥ बुद्धिस्थादभिसम्बन्धात्तथा धातूपसर्गयोः । अभ्यन्तरीकृतो भेदः पदकाले प्रकाश्यते ॥ २ ॥
567
व्याख्या अथ किं धातुः पूर्वमुपसर्गेण युज्यते उत साधनेनेति ! साधनं हि क्रियां निवर्त्तयति (साध्यत्ववैशिष्ट्येन बोधयतीति तामुपसर्गो विशिनष्टि (स्वद्योत्यविशेषणवैशिष्ट्येन बोधयतीत्यर्थः ) अतः पूर्वं साधनेन साधनं कारकम् तदभिधायि कार्येण युज्यत इति तदयुक्तम् पूर्वं हि धातोः साधनेन सम्बन्धे आस्यते गुरुणा इत्यकर्मकः उपास्यते गुरुरिति सकर्मकः केन
स्यात् ।
नतु
यस्माद्विशिष्टैव क्रिया साधनेन साध्यते साधनाल्लब्धस्वरूपान्यतो विशेषं लभते तस्मात् पूर्वमुपसर्गेण युज्यते इति युक्तम् । न च प्रत्यय सम्बन्धमन्तरेण क्रियाविशेषस्यानभिव्यक्तेर्न धातोः पूर्वमुपसर्गेण सम्बन्धो युज्यते इति वाच्यम् ? यतः -
सम्बद्धाः
बीजकालेषु सम्बद्धा यथा लाक्षारसादयः । वर्णादिपरिणामेन फलानामुपकुर्वते ।। १ ।। बीज कालेषु - बीजोत्पत्तिसमयेषु सम्पृक्ताः ( बीजैरिति शेषः) लाक्षारसादयः - जतुरसप्रभृतयः फलानां वर्णादिपरिणामेन रूपरसादिपरिणमनद्वारा यथा उपकुर्वते । (बुद्धिस्थादभिसम्बन्धात्तथा धातूपसर्गयोः ।। अभ्यन्तरीकृतो भेदः पदकाले प्रकाशते ॥ | १ || ) तथा धातूपसर्गयोः बुद्धिस्थाद् (बुद्धिविषयीकृतात्) अभिसम्बन्धात् भेदः (उपसर्गार्थकृतो विशेषः) अभ्यन्तरीकृतः (बुद्धिस्थीकृत: धातु शेषः पदकाले उपसर्गसंज्ञकशब्दप्रयोगकाले प्रकाशते श्रोतुरिति शेषः । इति अङ्कुरोत्पत्तिसमये लाक्षारसादिसेकेन रूपरसादिवैलक्षण्यं भवति इति लोकप्रसिद्धिः तत्र यथा लाक्षारसादीनां पूर्वकालिकसम्बन्धेन जायमाना विलक्षणता फलकाले प्रकाशते तथा पूर्वकालिकोपसर्गसम्बन्धेन जायमानः उपसर्गार्थकृतौ विशेषः उपसर्गप्रयोगकाले प्रकाशते एवं च पूर्वमुपसर्गयोगो नाम तदर्थसम्बन्धः तत उपसर्गशब्दात् पूर्वं
फलानां
Page #585
--------------------------------------------------------------------------
________________
568
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
साधनकार्ययोगः तत उपसर्गसंज्ञकशब्दप्रयोग इति तात्पर्यम् एतद्व्यतिरिक्ता नकारादयः सर्वे गोपदेशाः यथा ६५ णख
इत्यलम् ।
(नख्) गतौ। गोपदेशफलन्तु प्रणखतीत्यादौ णत्वम् । ननु ६४ नख (नख्) गतौ । इत्यस्य अणोपदेशत्वात् कथमत्र न वर्जनमिति चेदुच्यते नख णख इति पाठसामर्थ्यादेव अणोपदेशत्वमेवान्यत्रापि ।
॥ अथ षोपदेशनिरूपणतम् ।। स्वरदन्त्यपरसकारादयः स्मिस्विदिस्वदिस्वञ्जिस्वपयश्च । षोपदेशा: सृपि सृजि स्त्या स्तृ स्तृ सृ सेकृवर्जम् ॥ १ ॥ स्वरा अवर्णादयो दन्त्या लवर्णतवर्गलसास्ते परा यस्मात्तादृशो यः सकार: स आदौ येषां स्वरदन्त्यपरसकारादयः स्वरपरसादयः दन्त्यपरसादयश्च धातवः पोपदेशा ज्ञेयाः उत्तरदलदर्शितान् विहाय । यथा ९९० हि (सह ) मर्षणे । ५ ष्ठां (स्था) गतिनिवृत्तौ । उक्तलक्षणेनाग्रहादाह-स्मीत्यादिस्मिप्रभृतयश्च षोपदेशा विज्ञेयाः । ५६७ ष्मिङ् (स्मि) ईषद्धसने । ९४६ ञिष्विदाङ् (स्विद् ) मांचने च । ११७८ ष्विदांच् (स्विद्) गात्रप्रक्षरणे । ७२९ ष्वदि (स्वद्) आस्वादने । १७४२ ष्वदण् (स्वद्) आस्वादने । ष्वचिंत् (स्व) सङ्गे । १०८८ ञिष्वपंक् (स्वप्) शये । सृपिप्रभृतीन् विहाय । ते चेमे । ३४१ सृप्लूं (सप्) गतौ। १२५५ सृजिंच् (सृज्) विसर्गे । १३४९ सृजंत् (सृज्) विसर्गे । ४० स्त्यै (स्त्यै) संघाते । १५२१ स्तृग्श् (स्तु) आच्छादने । १२९२ स्तॄंग्ट् (स्तृ) आच्छादने। २५ सृ (सृ) गतौ। ६३५ सेकङ् (सेक्) गतौ। षोपदेशफलं तु असीषहत् इत्यादौ षत्वकरणम् । स्मिप्रभृतिभिः साहचर्यादेकस्वराणामेव षोपदेशस्मृतिः । अत एव सूत्रसत्रसंग्रामसामसमाजस्थूलस्तनस्तेन स्तोमसुखानामषोपदेशत्वात् सोसुत्र्यते सिसत्रयिषते इत्यादौ षत्वं न भवति ।
।।इति षोपदेशप्रकरणम् ॥
॥ अथ णोपदेशनिरूपणम् ॥
सर्वे न नादयो णोपदेशा नृति नन्दि नर्दि नशि नाटि नक्चि नाधृ नाथू नृवर्जम्। येषां धातूनामादौ नकारो भवेत्ते णोपदेशा विज्ञेयाः नृतिप्रभृतीन् विहाय ते चेमे । ५२ नृतैच् (नृत्) नर्तने। ३१२ टुनदु (नन्द) समृद्धौ ३०२ नर्द (नर्द) शब्दे । १२०२ नशौच् (नश्) अदर्शने। नाटीति १५९३ नटण् (नट्) अवस्यन्दने इत्यस्यैवात्र वर्जनं नतु १८७ णट् लट् नृत्तौ । १०३३ गट (नट्) नतौ एतयोः । १५७३ नक्कण् (नक्क्) नाशने। ४४७ नाधृङ् (नाघ्) नाथवन् । ७१६ नाशृङ् ( नाथ् ) उपतापैश्वर्याशीःषु च। १०१६ नृ नये । १५३७ नृश् (नृ) नये ।
॥ इति णोपदेशप्रकरणम् ॥ ॥ अथ धात्वर्थविशेषनिरूपणम् ॥ उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते । विहाराहारसंहारप्रहारप्रतिहारवत् ॥ १॥ धात्वर्थं बाघ कश्चित् कश्चित्तमनुवर्त्तते । तमेव विशिष्ट्न्योऽनर्थकोऽन्यः प्रयुज्यते ॥ २ ॥ उपसर्गेण ॥
प्रपरापसमन्ववनिर्दुरभिव्यधिसूदतिनिप्रतिपर्यपयः । उप आडिति विंशतिरेष सखे! उपसर्गगणः कथितः कविभिः ॥ १॥
इत्याद्यन्यतमेन धात्वर्थो धातुपाठे य उक्तोऽर्थः स बलात्प्रतीतिसामर्थ्यादन्यत्रान्यस्मिन्नर्थे नीयते स्थाप्यते पर्यवसितो भवतीत्यर्थः । अत्र ये उपसर्गस्य द्योतकत्वमामनन्ति तन्मते तु अन्योऽप्यर्थस्तस्य धातोरेव ये तु वाचकत्वमाश्रयन्ति तन्मते धातुसम्बन्धात्तमन्यमर्थमुपसर्ग एवाभिधत्ते तदेवाह - ८८५ हंग्
(ह) वरणे । अस्य उदाहरणार्थत्वेऽपि विहार:
क्रीडासमीचीनगमनं वा । आहारो भोजनम्। संहारो विनाशः । प्रतिहार: प्रहारस्ताडनतम्। द्वाःस्थकर्म् इत्यादौ उक्तादिक्तविविधार्थावगतेः । कश्चिदुपसर्गो धात्वर्थं बाधते । यथा - ३२० षिध् (सिध्) गत्याम् । प्रतिषेधति । अत्र गत्यर्थं बाधित्वा निषेधार्थमभिदधति । कश्चित्तं मौलधात्वर्थमनुवर्त्तते, यथा अधीयते। अत्र ११०४ इङ्क् (इ) अध्ययने । अयमधिनाऽवश्यंभावी योगो न चार्थविशेषः । अन्य उपसर्गस्तमेव मूलधात्वर्थं विशिनष्टि विशिष्टतामापादयति । यथा ९९२ डुपचष् (पच्) पाके प्रपचति प्रकृष्टं प्रकर्षे वा पचतीत्यर्थः। अन्य उपसर्गोऽनर्थक एव प्रयुज्यते । ३९६ गम्लं (गम्) गतौ । अधिगच्छति । अत्र न धात्वर्थबाधो न वा धात्वर्थविशेषता न वा गम्-धातुनाऽवश्यंभावी योग इति । ॥ इति धात्वर्थविशेषनिरूपणम् ।।
Page #586
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौत्रादिगण
569
॥अथ अनुस्वारनिरूपणम्॥
एवमनेकधा योजना कार्या। एधते। अत्ति। दीव्यति। सुनोति। नकारजावनस्वारपञ्चमौ धुटि धातुषु।
तुदति। रुणद्धि। तनोति। क्रीणाति। सहति। सकारजः शकारश्चेर्षादवर्गस्तवर्गजः।।१।।
आयादिप्रत्ययान्तानामपि क्रियार्थत्वात् धातत्वम। गोपायति।
कामयते। ऋतीयते। जुगुप्सते। कण्डूयति। पापच्यते। चोरयति। धातुषु धुटि धुडादौ वर्णे परे सति योऽनुस्वारो |
कारयति। चिकीर्षति। पुत्रकाम्यति। पुत्रीयति। अति। श्येनायते। वर्गपञ्चमाक्षरो वा दृश्यते स नकारस्थाने जात इति वेदितव्यम्।।
हस्तयते। मुण्डयति। एवं जुस्तम्भूचुलुम्पादीनामपि। जवनः । ४९६ दंशं (दन्श्-दंश्) दशने दशति। अत्र यदि | नकारजोऽनुस्वारो न भेवत्तर्हि दंशसञ्ज इति लुग्न स्यात् १३७८
स्तभ्नाति। चुलुम्पाञ्चकार। प्रेखोलयति। ननु क्रियार्थे धातौ
शिश्ये इत्यादिषु भावे तदर्थप्रत्ययस्यापि धातुत्वप्रसङ्गः। तुम्फत (तुन्फ्-तुम्प) तृप्तौ। तृफति। अत्रापि नकारजो मकाररूपपञ्चमो वर्णो न स्यात्तर्हि नो व्यञ्जनस्येति लुग्न स्यात्।।
भावप्रत्ययो हि क्रियार्थे एवोत्पद्यते। ततश्चात्सन्ध्यक्षर-- एवं चे चकारे परे य: शकार: स सकारजः सकारस्थाने जातः।
स्येत्यात्वप्रसङ्गः। आत्वं हि धातोर्विहितमनैमित्तिकञ्चेति। अत:
प्रत्ययनिषेधार्थं क्रियाविशेषकं प्रथमग्रहणं कर्तव्यं व्याख्येयञ्च यथा। ६ षस्च (सस्च्-सश्च) गतौ। सश्चति। अत्र शकार:
प्रथमं यः क्रियामाहेति। प्राथम्यञ्चात्राभिधानापेक्षं ग्राह्यं तेन किं सकारस्थाने जातः । र्षात् रकारात् षकाराच्च परो यः टवर्गः स
सिद्धमन्येनानभिहितां क्रियां य आह स धातुः। अयमर्थःतवर्गो जातः । यथा ११२३ ऊर्गुग्क् (ऊर्नु-ऊणु) आच्छादने।
अन्येभ्यः क्रियाभिधायिभ्योः यः प्रथममाहेति। शिश्ये इत्यत्र तु ऊर्णनाव। अत्र रकारात्परो यो णकारः स नकारस्थाने जातः ।
शीत्यनेनाभिहितां क्रियां प्रत्यय आहेति न तस्य धातुसंज्ञा अन्यथा ऊर्णनाव। अत्र रकारात्परो यो णकारः स नकारस्थाने
प्रवृत्तिः। जातः। अन्यथा ऊर्गुणाव इत्येव स्यात्। ५ ष्ठां (स्था)
शब्दार्थापेक्षया प्राथम्यं घटते तत्र
शब्दतश्चेत्पुत्रीयतीत्यादावपि न प्राप्नोति। नात्र प्रथममुच्चार्यमाणः गतिनिवृत्तौ। अत्र षकारस्तु षोपदेशार्थस्तदन्तरं | ठकाररूपटवर्णस्थकार- रूपतवर्गजातः । एवं र्षाद् इत्यत्र पूर्वार्थे
पुत्रशब्दः क्रियामाह। अर्थतश्चत्पत्रीत्यादौ प्रथमा आधा क्रिया पञ्चमीविवक्षायां २५७ अद्ड (अद्ड्-अड्ड) अभियोगे अड्डति
अप्रथमेनापि क्येनाभिधीयते न तु द्वितीयेति सिद्ध्यति धातुसंज्ञा। इत्यादिकमपि भावनीयम्।
ननु प्रथमग्रहणे सति चिकीर्षतीत्यत्रापि न प्राप्नोति धातुसंज्ञा।
यतोऽत्रापि सन् प्रत्ययो न प्रथमं क्रियामाह अपि तु कृ इत्यनुस्वारादिनिरूपणम्॥
इत्यनेनाभिहिताम्। नैवम्। करोत्यर्थोपसर्जनामिच्छा॥अथ धातुत्वनिरूपणम्।।
मन्येनानभिहितां सन् प्रत्यय आहेति स्यादेव धातुसंज्ञेति। क्रियार्थो धातुः। क्रिया कृतिः प्रवृत्तिापार इति यावत्।
अत्रोच्यते। यथाऽत्र प्रथमग्रहणे कृते शिश्ये इत्यत्र धातुसंज्ञा न पूर्वापरीभूता साध्यमाना रूपा सार्थोऽभिधेयं यस्य स शब्दो
भवति तथा स्वार्थिकायादिप्रत्ययान्तानां न प्राप्नोति गोपायति धातुसंज्ञो भवति। पूर्वावयवयोगात्पूर्वाऽपरावयवयोगादपरा पूर्वा
कामयते इत्यादिषु अत्रापि अभिहिताया एव क्रियाया चासावपरा च पूर्वापरा अपूर्वापरा पूर्वापराभूता पूर्वापरीभूता तत्र
आयादिभिरभिहितात्वात्। तस्मादेव व्याख्येयं क्रियामेव पूर्वोऽवयवोऽधिश्रयणादिरपर उदकसेकादिस्तौ तौ द्वावपि भागौ
प्राधान्येन योऽभिधत्ते स क्रियार्थाभिधायी साधुसंज्ञा पाकक्रियायां स्तः। साह्यधिश्रयणोदकसेचनादिरूपा साध्यमानाः
गोपयतीत्यादावपि तदस्तीति सिद्धा धातुसंज्ञा। शिश्य इत्यादौ तु साधनायत्तस्वरूपा क्रियास्ति यथा पचति कश्चैत्रः कमोदनं कैः
भूतानद्यतनपरोक्षत्वादेरभिधानान्न धातुसंज्ञा। एतेन क्रियैवाभिधेया काष्ठैः क्व स्थाल्यां कुत: कुशूलात् कस्मै मैत्रायेति भावना। ननु
यस्य स धातुः। एवं च कृत्वा कर्तुमित्यादिषु साध्ये भावे पचतीत्यादिष्वस्तु क्रियात्वं भवत्यादिषु तु सत्ताया नित्यत्वेन
कृत्प्रत्ययान्तस्यापि न धातुसंज्ञा। किञ्चान्यदपि उत्तरमस्त्ि साध्यमानत्वाभावात् तदभावे च पूर्वापरविभागाभावात् तदभावे
अव्ययसंज्ञया धातुसंज्ञाया बाधितत्वात्। इकिस्तिव् स्वरूपार्थे च क्रियार्थत्वाभावे न प्राप्नोति धातसंज्ञा। सत्यम्। आधेयभेदेन
इति प्रत्ययान्तस्य सिद्धसाध्ययोरभेदोपचारेण सिद्धरूपत्वात्। सत्तापि पूर्वापरीभूता साध्यमाना। यथा देवदत्तसत्ता
कर्तव्यं भूयते इत्यादौ तु भावे त्याद्यन्तस्य क्रियार्थत्वेऽपि न क्वचिद्गमनयुक्ता क्वचिद्गोजनयुक्ता क्वचित्पठनयुक्ता।
धातुत्वं साहचर्यात्। यतोऽन्येषामलिङ्गसङ्घयानामपदसंज्ञकानां
Page #587
--------------------------------------------------------------------------
________________
570
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
धातुसंज्ञा प्रत्ययादि। अत्र लिङ्गसङ्ख्यानां विद्यमानत्वात्। कियासामान्यवचनाः कृभ्वस्तयः क्रियाविशेषवचनास्तु पचादय क्रियामेव प्राधान्येन योऽभिधत्ते स धातुरिति यल्लक्षणं कृतं इति सिद्धम्। यथा क्रियाशब्दस्य न करोत्यर्थः प्रवृत्तिनिमित्तं तस्य शिष्टधातुपाठानुसारित्वाद् आणपयतीत्यानिवृत्तिः। ननु । किन्तु कारकव्यापार विशेषस्तथा भावशब्दे न भवत्यर्थः यद्येवं शिष्टधातुपाठ एवास्तु किमनेन लक्षणेनेति चेन्मैवं | प्रवृतिनिमित्तमपि तु कारकव्यापारविशेष एवेत्यर्थः। यदाह पाठपठितानामपि क्रियार्थानामेव धातुत्वज्ञापनार्थत्वात्। अयं हरि:-आख्यातशब्दे भामाभ्यां साध्यसाधनवर्तिता। प्रकल्पिता भावः-लक्षणात्पृथक। पठिता अपि त एव शिष्टा धातवो ये यथा शास्त्रे सद्ययादिष्वपि क्रमः।।१।। साध्यत्वेन क्रिया तत्र क्रियार्थाः। तेन यावाप्रभृतीनां सर्वनामविकल्पाद्यर्थानां | धातुरूपनिबन्धना। सत्त्वभागस्तु यस्तस्याः स पाठाविसंवादित्वेऽपि लक्षणविसेवादित्वाद् आणपयतीत्यादीनां तु | घञादिनिबन्धनः।।२॥ तथा च भावे घञ् इत्युक्तवा पाक: क्रियार्थत्वेऽपि
पाठविसंवादित्वाद्धातुत्वाभावः। | कार इत्यादयोऽप्युदाह्रियन्ते। क्रियोपपदाद्धातोस्तुमित्युक्तवा अन्वयव्यतिरेकाभ्याञ्च धातोः क्रियार्थत्वापगमः। तथाहि- योद्धं धनुर्भवति द्रष्टुं चक्षुर्जातमित्याद्यपि उदाहरणं युक्तम्। पचतीत्यादौ धातुप्रत्ययसमुदाये संसृष्टक्रियाकालकार- यदाहुः-यत्रान्यक्रियात्पदं न श्रूयते तत्रास्तिर्भवन्तीपर: काद्यनेकार्थाभिधायिनि प्रयुज्यमाने धातोरवं प्रथमपुरुषे प्रयुज्यते। क्रिया च द्वेधा सिद्धसाध्यत्वभेदात्। तत्र क्रियार्थत्वमवगम्यतेऽन्वयव्यतिरेकाभ्यां नेतरेषाम्। पचतीति सिद्धस्वभावोपसंहृतक्रमा परितः परिच्छिन्ना सत्त्वभावमापन्ना प्रयोगे द्वयं श्रूयते पच् इति प्रकृतिः अति-इति प्रत्ययश्च। घञादिभिरभिधीयते। यदाह-कृदभिहितो भावो द्रव्यत्प्रकाशते अर्थोऽपि कश्चिद्गम्यते। विक्लित्तिः कर्तृत्वमेकत्वम्। पठतीत्युक्ते | इति। तुमादिभिस्तु सत्त्वभावमनापन्नेति विशेषः । कश्चित् शब्दो हीयते। कश्चिदुपजायते कश्चिदन्वयी। पच् शब्दो | साध्यमानावस्था पूर्वपरीभूतावयवा भूतभविष्यद्वर्तमानसदहीयते पठ् शब्द उपजायते अतिशब्दोऽन्वयी। अर्थोऽपि सदाद्यनेकावयवरूपाख्यातपदैरुच्यते। यदाह-पूर्वापरीभूतं कश्चिद्धीयते कश्चिदुपजायते कश्चिदन्वयी विक्लिक्तिीयते | भावमाख्यातेनाचष्टे। यथा च पचतीत्यत्र पूर्वापरीभूतभावस्तद्वदेव पठिरुपजायते एकत्वञ्चान्वयी। तेन मन्यामहे यः शब्दो हीयते जायते अस्ति विपरिणमते वर्धते अपक्षीयते विनश्यति भवति तस्यासावर्थो यो हीयते यश्च शब्द उपजायते तस्यासावर्थो य श्वेतते संयुज्यते समवैतीत्यादावपि। साध्यत्वाभिधानेन उपजायते यश्च शब्दोऽन्वयी तस्यासावर्थो योऽन्यवयीति। ननु क्रमरूपाश्रयणात् क्रियाव्यपदेशः सिद्धः। तदुत्तम्कृतिः करोत्यर्थः क्रिया तत्र युक्तं पचादीनां किं करोति पचति | यवत्सिद्धमसिद्ध वा साध्यत्वेनाभिधीयते। आश्रितक्रमरूपत्वात् किं करोति पठतीति करोतीत्यर्थगर्भितत्वात क्रियात्वम् अस्ति | तत क्रियेत्यभिधीयते।।१।। सिद्धं सत्तादि असिद्धं तु कटादि। नन विद्यते भवतीनां त न यक्तम नहि भवति किं करोति अस्ति । एवं तर्हि सत्तायाः साध्यमानता कया रीत्या। उच्यते। यथा भवति विद्यते चेति। तदयक्तम। न करोत्यर्थः क्रियाशब्दस्य प्रवृत्तिनिमित्तमपि तर्हि कारकव्यापार विशेषः। व्यापारश्च | कस्तूरिकामाहात्म्यात्पाषाणखण्डमपि सुगन्धि भवत्येवमत्रापि व्यापारान्तरादिद्यते इत्यस्त्याद्यर्थोऽपि क्रियैव। करोत्यर्थस्त | कस्मिंश्चिदेकस्मिन पिण्डे पाकक्रिया सत्ता च विद्यते. पाकक्रिया क्रियाशब्दस्य व्युत्पत्तिनिमित्तमेव। ननु पचतीत्यादिषु हि तदस्ति | च पूर्वापरीभूता ततस्तस्या माहात्म्यात्सत्तापि पूर्वापरीभूता इति धातुत्वं यतः पचती युक्ते न पठति न गच्छति न | भवतीति साध्यमानत्वम्। किं बहुनाख्यातपदेन उच्यमानः किञ्चिदन्यद्व्यापारान्तरं विधत्ते किन्तु पाकरूपविशेष एव | सिद्धभावोऽपि साध्यरूपतां भजति तन्माहात्म्यादित्यलं बहुना! गम्यते। अपि तु अस्त्यादीनां न प्राप्नोति क्रियात्वं सत्ताया
॥इति धात्वर्थनिरूपणम्॥ व्यापारविशेषाभावात् यतः सर्वोऽपि धात्वर्थोऽस्त्यादिभिर्व्याप्त
॥इति धातुरत्नाकरस्य प्रथमो विभागः॥ इति चेत्सत्यम् अस्त्यैवैतत्तथापि पाकादेर्विशेषात्सत्ताया अपि विशेषो ज्ञायते स्वरूपेण। नहि स एव पाक: सैव सत्ता। यथानेकघटाच्छादक एकः पटस्तेष्वनुस्यूतोऽपि तेभे भिद्यते। नहि स एव पटः स एव घटः। एवं प्रस्तुतेऽपि। एवं सति
Page #588
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वङ्क
1
2
3
4
5
6
780=
10
12
16
17
18
19
21
223
25
26
भू
पां
घ्रां
ध्मां
धातुनाम
शं
म्नां
दाम् जिं 9 जिं
क्षिं
इं (इतः परं
षडुदन्ताः )
दुं 13
15 खुं
6. C.
स्मृ
गृ 20 बृं
औस्वृ
लक्ष
दवृं
ध्वं 24 हवं
14 शुं
परिशिष्ट
क्रमानुसारधात्वर्थसूची
सत्तायाम्
पाने
गन्धोपादाने ।
शब्दाग्निसंयोगयोः ।
संस्कृतभाषार्थ
गतिनिवृत्तौ ।
अभ्यासे (अभ्यासः पारम्पर्येण
वृत्तिः )
दाने
अभिभवे
क्षये
गतौ
त
स्थैर्ये च। चकाराद्गतौ प्रसवैश्वर्ययोः । प्रसवोऽभ्यनुज्ञानम्। ऐश्वर्यमीशनक्रिया ।
चिन्तायाम्
सेचने
शब्दो पतापयोः
वरणे । वरणं स्थगनम्
कौटिल्ये
गतौ।
प्रापणे च । चकाराद्गतौ
अंग्रेजी अर्थ
To be
To drink
To smell
To blow
To stand
To behave like
ancestors
To give
To conquer
To decay
To go
To go
To be firm, to move
To have power
to cousent
To remember
To sprinkle To sound, to pain
To cover
To behave contrary
To go
To go, to carry
हिन्दी भाषार्थ
होना
पीना
सूँघना
शब्द करना, अग्नि
प्रज्वलित करने
किए फूँकन
रुक जाना
अभ्यास करना,
पूर्वजों के अनुकूल वृत्ति रखना ।
देना
जीतना
नष्ट होना
जाना
जाना
स्थिर होना, जाना
जानना, सम्मति
देना, ऐश्वर्य प्रकट
करना
स्मरण करना
छिड़कना
शब्द करना, कष्ट
देना
ढँकना
गलत व्यवहार
करना
जाना
जाना, ले जाना
Page #589
--------------------------------------------------------------------------
________________
572
27
28
29
30
31
333333
32
34
35
36
39
41
42
45
47
49
50
51
52
3555
54
58
60
62
63
तु
टूथें
दैव्
यै
ग्लै
म्लैं
背物
ौं
trপঠ
कैं 37 38 रैं
ष्ट्य 40 स्त्यै
खै
43 जैं 44 सैं
स्त्रे 46
पैं 48 ओवैं
ष्णं
फक्क
तक
तकु
शुक
बुक्क
ओख 56 राखू 57
लाख
द्राख 59 धा
शाख 61 लाख
कक्ख
उख 64 नख 65
प्लवनतरणयोः । प्लवनं मज्जनम्
तरणमुल्लङ्घनम्
पाने
शोधने
चिन्तायाम्।
हर्षक्षये । इह हर्षक्षयो
धात्व पचयः ।
गात्रविनामे । विनाः कान्तिक्षयः
न्यङ्गकरणे । कुत्सितमङ्गं न्यङ्गम्
स्वप्ने
तृप्तौ
शब्दे
संघाते
खदने । खदनं हिंसा स्थेयञ्च
क्षये
पाके
शोषणे
वेष्टने
नीचेर्गतौ। नीचैर्गतिर्मन्दगमन.
मसद्व्यवहार
हसने
कृच्छ्रजीवने
गतौ
भाषणे
शोषणालमर्थयोः
शोषणालमर्थयोः
व्याप्तौ
हसने
गौ
To swim, to bath in
water
To drink
To parify
To meditate upon
To be weak
To grow weary To disfigure
To sleep
To be satisfied
To sound
To be collectea in a
heap
To strike, to be
steady
To decrease
to boil
To wither
To coil around
To walk slowly
To behave falsely
To laugh
To live in distress
To go
To speak
To be dry, to be able
To dry, to be able
To pervade To laugh
To go
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
तैरना, पानी में खान
करना
पीना
शुद्ध करना
ध्यान लगाना
क्षीण होना
म्लान होना
खराब करना
सोना
तृप्त होना शब्द करना इकठ्ठा होकर
समुदाय बनाना हिंसा करना, स्थिर
होना
क्षीण होना
पकाना
सुकाना
लपेटना
धीरे चलना
गलत व्यवहार
करना
हँसना
दुखद अवस्था में
जीना
जाना
बोलना
सुखाना, समर्थ होना
सुखाना, समर्थ होना
व्याप्त करना
हँसना
जाना
.
Page #590
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
573
णख 66 वख 67 मख 68 रख 69 लख 70 मखु 71 रखु 72 लखु 73 रिखु 74 इख 75 इखु 76 ईखु 77 वल्ग 78 रेगु 79 लगु 80 तगु 81 श्रगु 82 श्लगु 83 अगु 84 वगु 85 मगु 86 स्वगु 87 इगु 88 उगु 89 रिगु 90 लिगु त्वगु
91
To tremble, to go
कम्पित होना, जाना
कम्पने च। चकाराद्गतौ स्थितस्यैव चलनं कम्पनम। गतिर्देशान्तर प्राप्तिहेतुः क्रिया वर्जने
92
To avoid
छोड देना
युगु 93 जगु 94 वुगु गग्घ दधु शिघु लघु
हसने पालने आघ्राणे। आघ्राणं गन्धोपादानाम्। शोषणे शोके शब्दे तारे। तार उच्च इत्यर्थः
शच
To laugh To protect To smell To dry To regret To cry out [be have contrary] To go, to be come small To become small, to behave contrary To throw off useless
101
क्रुञ्च
गतौ
हँसना रक्षा करना सूंघना सुखाना शोक जताना जोर से आवाज करना, जाना, लघुता प्रकट करना वक्रता करना, छोटा होना अनुपयुक्त को फेंक देना पूजा करना जाना, पूजा करना जाना
102
क्रुञ्च च
कौटिल्याल्पीभावयोः।
103
लुञ्च
अपनयने। अनुपयुक्तापासने
104
अर्च अञ्चू वञ्चू 107 चञ्चू 108 तञ्चू 109 त्वञ्चू 110 मञ्चू
पूजायाम् गतौ चा चकारात्पूजायाम् गतौ
To worship Togo, to worship To go
106
Page #591
--------------------------------------------------------------------------
________________
574
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
111 मुञ्चू 112 मुञ्चू 113 Zचू 114 म्लुचू 115 ग्लुञ्चू 116 षस्च ग्रुचू 118 ग्लुचू
117
119
म्लेछ
स्तेये अव्यक्तायां वाचि लक्षणे इच्छायाम् आयामे लज्जायाम् कौटिल्ये मोह समुच्छ्राययोः
120 लछ 121 लाछु 122 वाछु
आछु 124 ह्रीछ 125 हुर्छा 126 मुर्छा
To steal To speak cofusedly To mark To wish To extend To be ashamed To be crooked To faint
123
चोरी करना अनर्थक बोलना चिह्नित करना इच्छा करना लंबा करना शर्म करना वक्रता करना मूर्छित होना, बड़ा होना भूल जाना आलस करना
युछ
129 130
To forget To be idle To go
जाना
127 स्फुर्छा 128 स्मुर्छा विस्मृतौ
प्रमादे धृज 131 धृजु 132 गतौ ध्वज 133 ध्वजु 134 ध्रज 135 ध्रजु 136 वज 137 व्रज
138 षम्ज 139 अज
क्षेपणे च। चकाराद्गतौ 140
कुज् 141 खज् स्तेये 142 अर्ज 143 सर्ज अर्जने
Togo, to throw To steal To procure, to earn
144 145
कर्ज खर्ज
व्यथने मार्जने च। चकाराद् व्यथने
To distress To cleanse, to distress To churn To walk lame
जाना, फेंकना चोरी करना संग्रह करना, कमाना पीडा करना साफ करना, पीडा देना मंथन करना लंगडा होकर चलना कंपित होना अर्थहीन आस्पष्ट बोलना
146 147
खज खजु
मन्थे। मन्थो विलोडनम् । गतिवैकल्ये। गतवैकल्यं विकतत्वं।
149 ट्वोस्फूर्जा 150 क्षीज कूज 151
वज्रनिर्घोषे अव्यक्ते शब्दे
To treamble To speak in distinctly
152
152 गुज, 153 गुजु लज 155 लजु 156 भर्त्सने
154
To blame
दोष देना
Page #592
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
575
157
लाज 158 लाजु
भर्जने च। चकाराद् भर्त्सने
To blame, to fry
दोष देना, छौंक लगाना युद्ध करना
158
159 जज 160
युद्धे
To fight
जजु
161 162
हिंसायाम् बलने च, चकाराद्धिंसायाम्
To kill To kill, to breathe
तुजु
हिंसा करना हिंसा करना, श्वास लेना
शब्दे
To sound
शब्द करना
164 गजु 165 गृज 166 गृजु 167 मुज 168 मुजु 169 मृजु 170 मज गज
171
172
त्यजं षज
173
कटे
174 175
मदनेव। चकाराच्छब्दे।
To sound, to be
intoxicated हानौ। हानिस्त्यागमः
To abandon सङ्गे
To accompany वर्षावरणयोः। वृष्टावावरणे चार्थे To cover, to rain रुजाविशरणगत्यवशा तनेषु। To be sick, to चतुर्वर्थेषु।
disunite वेष्टने
To surround उत्तासे। उत्त्रासो भयोगतिरुत्साहनञ्च To fear, to give pain
शब्द करना, मदोन्मत्त होना त्याग करना मित्रता करना ढंकना, बरसना रोगी होना, सड जाना, पतला होना, लपेटना भय करना, दुःख
शट
वट 77 किट 178 खिट
देना
179
अवहेलना करना
181
शिट 180 पिट जट 182 झट पिट
अनादरे संघाते। शब्दे च। चकारात्संघाते।
मिलाना
183
To despise To combine To sound, to combine To feed, to serve
184
भट
भृतौ। भृतिर्वेतनं भरणञ्च।
शब्द करना, मिलाना पोषण करना, सेवा करना आगे बढना इच्छा करना
185 186
तट खट
To rise To wish
उच्छाये। काङ्क्ष। काङ्क्षास्यास्तीत्य भ्रादित्वादः काङ्क्षः। काङ्क्षाविशिष्टो धात्वर्थः।
णट
नृतौ
187 188 189 190
हट षट लुट
दीप्तौ। अवयवे विलोटने
To dance To shine To form a part To wallow
नृत्य करना चमकना भाग करना
लोटना
Page #593
--------------------------------------------------------------------------
________________
576
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प्रेष्ये। प्रैष्यं दासत्वम्।
शब्दे
To be slave To sound To injure To go
सेवक होना शब्द करना चोट पहुँचाना
हेट
विबाधायाम् गतौ
जाना
191 चिट 192 विट 193 194 अट 195 पट 196
इट 197 किट 198 कट 199 कटु 200
कट 201 कुटु 202 मुट 203 चुट 204 चुटु 205 वटु 206 रुटु 207 लुटु
स्फट 209 स्फुट् 210 लट 211 रट (अथ
ठान्ता:सप्तदश
सेटश्च) 212 212 रठ च
वैकल्ये प्रमर्दने अल्पीभावे विभाजने। विभाजनं विभागीकरणम् स्तेये विसरणे बाल्ये। बाल्यं बालक्रिया परिभाषणे।
To have a defect To turn forcibly To become small To part To steal To break To be childish, To speak
विकलांग होना मरोड़ना छोटा होना विभाजित करना चोरी करना तोड़ना बालचेष्टा करना बोलना
208
To speak
बोलना
213
पठ
चकारोलटानुकर्षणार्यस्तेन लटे रर्थद्वयं सिद्धम् व्यक्तायां वाचि स्थौल्ये मदनिवासयोश्च
214 215
मठ
To read To be fat To be fat, to dwell, to be proud of To live in distress
स्पष्ट उच्चारण करना मोटा होना मोटा होना, निवास करना, गर्वित होना कष्टमय जीवन बिताना हठ करना कष्ट देना
216
कठ
कृच्छ्रजीवने
217 218
बलात्कारे उपधाते
To be ravish To strike
उठ 219 रुठ 220
221
हिंसासंक्लेशनयोः
To kill, to quarrel
मारना, लड़ाई करना मूर्ख बनाना, मारना
222
शठ
To deceive, to kill
कैतवे च। चकाराद् हिंसासंक्लेशनयोः प्रतीघाते आलस्ये च। चकाराद गतिप्रतीघाते।
223 224
शुठ कुठु 225 लुठु
To strike To be idle, to strike
कष्ट देना आलस करना, मारना
226
शुलु
शोषणे
To dry
सुखाना
Page #594
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
577
अठ 228 रुतु
227 229 230
प्रमर्दने
To go To rub To cut a form, to rub
मुडु
खण्डने च। चकारात्प्रमर्दने
जाना रगड़ना खण्डित करना, रगड़ना शोभित करना शोभित करना
231 232
To decorate To decorate
233
234 235
To be proud To join To be mad
गर्व करना जोड़ना पागल होना
240
To dishonour
अनादर करना
To play To break
खेलना तोड़ना
244
जाना
247 249 251
To go To go To be lame
जाना लंगड़ा होना
मडु
भूषायाम् गडु
वदनैकदेशे। गण्डगतसंहत नक्रियायामित्यर्थः। गर्वे
सम्बन्धे। सम्बन्धः श्लेषः मेड 236 प्रेड 237 उन्मादे म्लेड 238 लोड 239 लौड 240 रोड 241 रोड अनादरे 242 तौड़ क्रीड
विहारे तुड 245 तूड 246 तोडने। तोडनं दारणम तोड हुड 248 हूड गतौ हुड २५० हौड खोड़
प्रतीघाते गतावित्यनवृत्ते-गतिविषये
प्रतीघाते विड
आक्रोशे। अड
उद्यमे
विलासे कडु कड
कार्कश्ये अड
अभियोगे चुद्ड (चुड्ड्) हावकरणे। हावीभाव सूचनम्।। अण 260 रण 261 शब्द। शब्दः शब्दक्रिया वण 262 व्रण 263
264 भण 265 भ्रण 266 म्रण 267 धण 268 ध्वण 269 ध्रण 270 कण 271 क्वण 272 चण।
252 253 254 255 256
लड
मदे
To be cry out loudly To exert To play To be proud To be hard To attack To show one's wish To sound
जोर से चिल्लाना उद्यम करना खेलना गर्व करना कठोर होना आक्रमण करना हावभाव दिखाना
257 258
259
शब्द करना
बण
Page #595
--------------------------------------------------------------------------
________________
578
273
274
275
277
281
278 चितै
279
280
284
285
286
287
288
294
295
296
297
298
299
301
302
ओणू
शोण
श्रोण 276 श्लो
पैण
308
309
अत
च्युतृ
चुतृ 282 स्चुत्
25
283 स्च्युतृ ।
जुतृ
अतु
कित
ऋत
कुथु 289 पुथु 290
लघु 291 मधु 292
मन्थ् 293 मान्थ
खादृ
बद
खद
गद
रद
गद 300 भिश्विदा
अर्द
गर्द 303 नर्द 304
गर्द
तर्द
305
306 कर्द
307
खर्द
अदु
इदु
अपनयने
वर्णगत्योः
संघाते
गतिप्रेरणश्लेषणेषु
संज्ञाने संज्ञानं संवित्ति:
सातत्यगमने सातत्योगमनं नित्यगतिः
आसेचने । आसेचनमीषत्सेकः
क्षरणे क्षरणं स्रवणम्।
भासनं
बन्धने
निवासे
धृणागतिस्पर्धेषु
हिंसासंक्लेशयोः । हिंसा प्राण्युपघातः संक्लेशो बाधा।
भक्षणे
स्थयें
हिंसाया। चकारात्स्थैर्ये
व्यक्तायां वाचि
विलेखने। विलेखनमुत्पाटनम
अव्यक्ते शब्दे
गतियाचनयोः
शब्दे
हिंसायाम्
कुत्सिते शब्दे
दशने। दशनमिहदन्द- शुककर्तृकं
दन्तकर्म ।
बन्ध
परमैश्वर्ये । परमैश्वर्यं परमेशनक्रिया
To remove
हटाना
To be redish, to go
लाल होना, जाना
To unite
एक होना To go to embrace, to जाना, गले लगाना, प्रेरित करना
suggest to act
To know
To go constantly
To sprinkle in small
quantity
To ooje
To shine
To bind
To dwell
To be kind, to go, to compete
To hurt, to kill
To eat
To be firm
To kill, to be firm
To speak distinctly To carve
To speak indistinctly
To go, to beg To sound
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
To kill
To rumble
To bite
To bind
To be lord
जानना
निरन्तर चलना
थोड़ा छिड़का
रिसना
चमकाना
बांधना
रहना
दया करना, जाना,
प्रतिस्पर्धा करना
चोट पहुँचाना,
मारना
खाना
स्थिर होना
मारना, स्थिर होना स्पष्ट बोलना
खोदना
अस्पष्ट बोलना
जाना, मांगना
शब्द करना
हिंसा करना
अव्यक्त शब्द करना
डंक मारना
बांधना
स्वामी होना
Page #596
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
579
To act in one part
310 विदु
अवयवे। अवयव एकदशः
अनेनस्वगता क्रिया लक्ष्यते। 311 णिदु
कुत्सायाम्। 312 ___टुनडु
समृद्धौ 313 चदु
दीप्त्यालादनयोः।
आह्लादनमानन्दोत्पादनम् 314 त्रदु
चेष्टयाम्। 315 कदु 316 क्रदु 317 रोदनाह्वानयोः।
To censure To be prosperous To shine, to make delightful To act To cry, to call
एक भाग में क्रिया करना निन्दा करना समृद्ध होना चमकना, हर्षित होना चेष्टा करना चिल्लाना, बुलाना
क्लदु
318 क्लिदु परिदेवने। परिदेवनं शोचनम् To lament
रोदन करना 318 गतिशोषणयोः।
To go, to dry
जाना, सुखाना 320 षिधू गत्याम्
To go
जाना 321 षिधौ शास्त्रमाङ्गल्ययोः। शास्त्रं शास्त्रविषयं To advise in
शास्त्रयुक्त सलाह शासनम्। माङ्गल्यं
scriptures
देना मङ्गलविषयाक्रिया 322 शुन्ध शुद्धौ
To be pure
शुद्ध करना 323 स्तन 324 धन 325 शब्दे
To sound
शब्द करना ध्वन 336 चन 327 स्वन 328 वन वन 330 षन भक्तौ। भक्तिर्भजनम्।
To pray togod, to go प्रार्थना करना, जाना 331 कनै
दीप्तिकान्तिगतिषु। दीप्तिः प्रकाशः। To shine, to be चमकना, सुन्दर कान्तिः शोभा।
beautiful
दिखना 332 गुपौ रक्षणे
To protect
रक्षा करना 333 तपं 334 धूप संतापे
To be hot or suffer सन्तप्त होना
pain 335 रप 336 लप 337 व्यक्ते वचने
To speak distinctly स्पष्ट बोलना जल्प 338 जप
मानसे च। मनोनिर्वत्ये वचने। To mutter, to speak जप करना, बोलना
वचने। चकाराव्यक्ते वचने 339
To consoleted सान्त्वना देना 340
To unite
एक होना 341 सृप्लू गतौ
To go
जाना मन्दायाम्। गता-वित्यनुवृत्तेर्मन्दायां To go slowly
धीरे जाना गतो 343 तुप 344 तुम्प 347 हिंसायाम
To kill
मारना तुफ 348 तुम्फ
सान्त्वने समवाये
342
चप
Page #597
--------------------------------------------------------------------------
________________
580
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
349 त्रुफ 350 त्रुम्फ 345 त्रुप 346 त्रुम्पे वर्फ 352 रफ 353
351
गतौ
To go
जाना
जाना
354 अर्ब 355 कर्ब 356 खर्ब 357 गर्ब 358 चर्ब 359 चर्ब 360 नर्ब 361 पर्ब 362 बर्ब 363 शर्ब 364 षर्ब 365 सर्ब 366 रिबु 367 रबु
368
कुबु
लुबु 370 जुबु
369 371
आच्छादने अर्दने वक्त्रसंयोगे। हिंसायाम्।
To cover To pain To kiss To kill
ढंकना कष्ट देना चुम्बन करना मारना
चुबु
372
सृभू (सृभ्) 373 सृम्भू (सृम्भ) 374 त्रिभू (त्रिभ) 375 षिम्भू (सिम्भ) 376 भर्भ (भ ) शुम्भ (शुम्भ) यभ (यम्)
377
भाषणे च। . मैथुने। मिथुनस्य कर्मणि भावे वा।
बोलना संभोग क्रिया करना
378
To speak To do act of intercourse To do act of intercourse To eat
जभ (जम्भ)
मैथुने। मिथुनस्य कर्मणि भावे वा।
संभोग क्रिया करना
अदने
खाना
चमू 381 छमू 382 जमू 383 झमू 384
जिमू
385
To walk
क्र
To stop
887
पादविक्षेपे। पादन्यास इत्यर्थः उपरमे। उपरमो निवृत्तिः शब्दे प्रह्वत्वे। प्रह्वत्वं नम्रत्वम् वैक्लव्ये। वैक्लव्यं कातरत्वम् शब्दभक्त्योः भक्तिर्भजनम्
यमूं स्यमू णमं षम 390 ष्टम अम
888
To sound To bend To be vigourless To sound, to pray
चलना स्थिर होना शब्द करना मोडना कातर होना शब्द करना, प्रार्थना करना
889 391
392
अम 393 द्रम 394
गतौ
To go
जाना
Page #598
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
397
399
400
403
405
406
407
410
411
हम्म 395 मीमृ
396 गम्लं
हय 398 हर्य
मव्य
सूक्ष्य 401 ई
402 ईर्ष्या
शुच्यै 404 चुच्यै
त्सर
क्मर
अभ्र 408 बभ्र 409
मभ्र
चर
घो
खोर्
412
413
दल 414 त्रिफला
415
मोल 416 श्मील 417 स्मील 418 क्ष्मील पील
419
420 णील
421
शील
༣
422
कील
423 कूल
424
शूल
425
तूल
426
पूल
427
मूल
428 फल
429 फुल्ल
430 चुल्ल
क्लान्तौ च चकाराद्वतौ।
बन्धने ।
ईर्ष्या
अभिषवे। द्रवेण द्रवाणां
परिवासनमभिषवः ।
छद्यगतौ। छद्यप्रकार इत्यर्थः
हूर्छ। हूर्छनं कौटिल्यम्
गौ
भक्षणे च । चकाराद्गतौ ।
गते चातुर्ये
बन्धे
आवरणे
रुजायाम्
निष्कर्षे निष्कर्षोऽन्त स्थस्य
बहिर्निःसारणम्
संघाते
प्रतिष्ठायाम्
निष्पत्तीनिष्पत्तिः सिद्धिः
To be weary, to go
To bind
To envy
विकसने
हावकरणे | मैथुनेच्छा - प्रेरितशरीर विकारो हावकरणम्।
To perfume a fluid
by another fluid
प्रतीघाते । गतेरित्यनु वृत्तेर्गतिप्रतीघाते To be lame
विशरणे
To be scattered
To concentrate
निमेषणे निमेषणं संकोचः । निमेषणे निमेषणं संकोचः । प्रतिष्टम्मे प्रतिष्टम्भो रोपणम् वर्णे । वर्णोपलक्षितायां क्रियायाम् । समाधौ समाधिरैकाप्रधम्
To concentrate To erect in ground To be green
To contemplate in a thing
To bind
To cover
To be ill
To draw out
To cheat
To be crooked
To go
To eat, to walk
To walk skilfully
To bloom
To sport with a wish
of intercourse
थकान होना, जाना
बांधना
ईर्षा करना
एक द्रव्य से अन्य
द्रव्य को सुगन्धित
करना
छलकपट करना
टेढा होना
जाना
खाना, चलना
सावधान होकर
चलना
विकलांग होना बिखेरना
581
एकाग्र होना
एकाग्र होना जमीन में गाड़ना
हरित होना
समाधिस्थ होना
बांधना
ढंकना
रोगी होना
बाहर निकालना
To unite
To root
To fulfil according to इच्छानुसार पूर्ण
wish
एक होना स्थापित करना
करना विकसित होना संभोगेच्छा करना
Page #599
--------------------------------------------------------------------------
________________
582
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
431 चिल्ल
शैथिल्ये च। चकाराद्धावकरणे
To become loose, to sport with a wish of intercourse
शिथिल होना, मैथुन क्रीडा करना
432
To go
जाना
पेल 433 फेल 434 गतौ शेल 435 पेल 436 सेलू 437 वेल्ह 438 सल 439 तिल 440 तिल्ल 441 पल्ल 442 वेल्ल वेल 444 चेल 445 चलने केल 446 क्वेल 447 खेल 448 स्खल खल
संचये च। चकाराच्चलने
443
To move
चलना
449
To collect, to move
450 452 453
श्वल 451 श्वल्ल गल चर्व पूर्व 455 पर्व 456
आशु गतौ अदने। गलः स्रवणेऽप्यनेकार्थत्वात् अदने पूरणे
To go quickly To eat, to ooze To eat, to ooxe To fill
एकत्रित करना, चलना शीघ्र जाना खाना, रिसना खाना, रिसना भरना
457
To go
जाना
460
To be proud
गर्व करना
463 465 466
जीव
To spit out To live To be fat
थूकना प्राणधारण करना मोटा होना
मर्व 458 धवु 459 गतौ शव कर्व 461 खर्व 462 गर्व ष्ठिवू 464 क्षिवू निरसने
प्राणधारणे पीव 467 मीव स्थौल्ये 468 तीव 469 नीव उर्वै 471 तुर्वै 472 हिंसा करना थुर्वै 473 दुर्वै 474 धुर्वे 475 जुर्वे 476 अर्व 477 भर्व 478 शर्व मुवै 480 मव
बन्धने गुर्वै
उद्यमे
470
To kill
हिंसा करना
To bind To work
बंधन में डालना काम करना
481
Page #600
--------------------------------------------------------------------------
________________
583
To sprinkle
छिडकाव करना
धात्वर्थसूची 482 पिवु 483 मिवु सेचने
484 निवु 485 हिवु 486 दिवु 487 प्रीणने
जिवु 488 इवु
व्याप्तौ च। चकारात्प्रीणने
To please
प्रसन्न होना
To pervade, to please
489
अव
रक्षणगतिकान्तिप्रीति तृप्त्यवगमनप्रवेश- श्रवणस्वाम्यर्थ याचन-क्रियेच्छादीप्त्यवाप्त्यालिङ्गनहिंसादहनभाव वृद्धिषु एकोनविंशतावर्थेषु।
To protect, to go, To be beautiful, to love, to be tranquiled, to know, to enter, to hear, to work for owner, to work for money, to beg, to wish, to shine, to earn, to kiss, to kill, to burn, to be, to increase
व्याप्त करना, प्रसन्न करना रक्षा करना, प्रसन्न करना, सुन्दर बनाना, प्रेम करना. तृप्त करना, जानना, प्रवेश करना, सुनना, मालिक के लिये कार्यकरना, पैसे के लिए कार्य करना, मांगना, इच्छा करना, चमकना, कमाना,
चुम्बन
करना,
शब्दे
490 491
कश मिश 492 मश
रोषे च। चकाराच्छब्दे
493
शश
प्लुतिगतौ। प्लुतिभिर्गमने उत्प्लुत्य गमन इत्यर्थः समाधौ।
494 णिश
495 496
प्रेक्षणे। दशने। दशनं दन्तकर्म
मारना, जलाना,
होना, बढना। To sound
शब्द करना To be angry, to क्रोध करना, शब्द sound
करना To walk while कूदते हुए चलना jumping To comtemplate in a समाधिस्थ होना thing To see
देखना To bite
डंक मारना To sound
शब्द करना To suck up
पान करना To be tranquilled तृप्त करना To be fat
मोटा होना To steal
चोरी करना To give birth to जन्म देना To be kill
हिंसा करना
हैEE FREE
497
शब्दे
पाने
498 499 500 501
तुष्टी वृद्धौ
लुष 502 मूष
स्तेये
503
प्रसवे (प्रसवोऽभ्यनुज्ञानम्) रुजायाम्।
504
ऊष
Page #601
--------------------------------------------------------------------------
________________
584
धातुरलाकर प्रथम भाग
505 506 507
कृषं
To collect Toplough To kill, to injure
इकट्ठा करना हल जोतना हिंसा करना, चोट पहुँचाना
ईष
उञ्छे। उच्छमुच्चयनम्।
विलेखने। विलेखनं हलोत्कर्षणम्। कष 508 शिष 509 हिंसायाम् जष 510 झष 511 वष 512 मष, 513 मुष 514 रुष 515 रिष 516 यूष 517 जूष 518 शष 519 चष
संघाते च। चकाराहिसायाम्।
वृष
To unite, to kill
एक होना, हिंसा करना भर्त्सना करना छिड़कना
भर्त्सने। भर्त्सनं कुत्सितशब्दकरणम् सेचने
To bark To sprinkle
भष जिषू 523 विषू 524 मिषू 525 निषू 526 पृषू 527
वृष
छिड़कना
528 529
To sprinkle To burn
जलना
534
मृषू
सहने च। चकारात्सेचने उषू 530 श्रिषू 531 दाहे श्लिषू 532 ए॒षु, 533 प्लु) धृषू
सहर्बे अलीके
पुष्टौ भूष 538 तसु अलङ्कारे तुस 540 हृस 541 शब्दे ह्रस 542 रस लस
श्लेषणक्रीडनयो
हवू
535 536 537 539
पुष
To attack To lie To be powerful To adorn To sound
आक्रमण करना झूठ बोलना पुष्ट होना शोभित करना शब्द करना
543
To enbrace, to sport
544 545 546
To eat To laugh To go
गले लगना, लीला करना भोजन करना हँसना जाना
घस्लं
अदने हसे
हसने पिसृ 547 पेसृ 548 गतौ वेस शसू
हिंसायाम् शंसू
स्तुतौ च। चकाराद् हिंसायाम् मिहं
सेचने। दह
भस्मी करणे
मारना
549 550 551 552
To kill To praise, to kill To sprinkle To burn
प्रसन्न करना, मारना छिड़कना
जलाना
Page #602
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
585
चह
कल्कने। कल्कनं शाठ्यम्
शठता करना
553 554
त्यागे
त्याग करना
To deceive To abandon To go Te grow
555
जाना
गतौ वृद्धौ
556
बढना
559
दुह 557 दृहु 558 वृह वृह 560 वृह उह 562 तुहू 563
शब्दे च। चकारावृद्धौ अर्दने
To sound, to grow To hurt
शब्द करना, बढना चोट पहुँचाना
561
564
अर्ह 565 मह
उक्ष रक्ष
566 567 568 570
पूजायाम् सेचने पालने संघाते व्याप्तौ च चकारात्संघाते
To worship To sprinkle To protect To gather To pervade, to gather
मक्ष 569 मुक्ष अक्षौ
पूजा करना छिड़कना रक्षा करना एकत्रित होना व्याप्त होना, एकत्रित होना पतला करना, खण्डित करना चुम्बन करना
571 तक्षौ 572 त्वक्षौ
तनूकरणे। तनूकरणं काय॑म्।।
To thin, to chop
चुम्बने। चुम्बनं वक्वसंयोगः गतो
To kiss To go
जाना
573 णिक्ष
तृक्ष 575 स्तृक्ष
576 णक्ष 577 वक्ष 578 त्वक्ष
रोषे
To be angry त्वचने। त्वचनं त्वग्ग्रहणं सवरणं वा। To catch a skin, to
cover अनादरे
To disrespect काङ्क्षायाम्
To desire
क्रोधित होना त्वचा ग्रहण करना, ढंकना अनादर करना इच्छा करना
सूर्भ काक्षु 581 वाक्षु 582 माक्षु द्राक्षु 584 ध्राक्षु 585 ध्वाक्षु
घोरवाशिते च। चकारात्काङ्क्षायाम्
To cry out, to desire
चिल्लाना, इच्छा
करना
जाना
१७
To go To smile To fly To sound
डीङ्
मुस्कुराना उडना शब्द करना
586 गाङ्
गतौ 587 मिङ्
ईषद्धसने 588
विहायसांगतौ। 589 उंङ् 590 कुंङ् 591 शब्दे
गुंङ् 592 धुंङ् 593
कुङ् 594 च्युङ् 595 ज्युङ गतौ
596 जुंङ् 597 प्रुङ्
To go
जाना
Page #603
--------------------------------------------------------------------------
________________
586
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
598 प्लुं रुंङ्
599
To kill, to go
मारना, जाना
600 601 602
पूङ मूङ् धूङ मेङ् दें 605 3ङ्
रेषणे च। चकाराद्गतौ रेषणं हिंसाशब्दः। पवने। पवनं नीरजीकरणम बन्धने अविध्वंसने प्रतिदाने। प्रतिदान प्रत्यर्पणम् पालने गतौ
शुद्ध करना बाँधना धारण करना वापिस करना रक्षा करना
603
604
606
श्यङ्
जाना
607
वृद्धौ
प्यङ् 608 षकुङ् 609 मकुङ् 610 अकुङ 611 शीकृङ् 612 लोकृङ् 613 श्लोकृङ्
To purify, cleanse To bind To hold To return To protect To go To grow To be crooked To adorn To mark To sprinkle To see To unite, to collect
कौटिल्ये मण्डने लक्षणे। लक्षणं चिन्हम् सेचने। दर्शने। संघाते। संघातः संहननं संहन्यमानश्च
बढ़ना टेढा होना अलंकृत करना चिह्नित करना छिड़कना देखना एक होना, इकठ्ठा करना प्रसन्नता से बोलना, अधिक बोलना शंका करना
614
देकृङ् 615 घेकृङ्
शब्दोत्साहे। शब्द स्योत्साहऔद्धत्यं वृद्धिश्च शङ्कायाम्। शङ्का संदेहः पूर्वस्यार्थः द्वितीयस्य त्रासश्च लौल्ये। लौल्यं गर्धश्चापलञ्च
To speak happily To speak more To doubt
रेकृङ् 617 शकुङ्
618
ककि
कुकि 620 वृकि चकि
आदाने तृप्तिप्रतीघातयोः
To long for, to be unfirm To take To be satisfied, to beat To go
लोलुपता करना, चञ्चल होना ग्रहण करना संतुष्ट होना, प्रतिघात करना
621
622
गतौ लङ्घिर्भोजन- निवृत्यथोंऽपि
जाना
ककुङ् 623 श्वकुङ् 624 त्रकुङ् 625 श्रकुङ, 626 श्लकुङ् 627 ढौकृङ्, 628 नौकृङ् 629 ष्वष्कि 630 बस्कि 631 मस्कि 632 तिकि 633 टिकी 634 टीकृङ् 635 सेकृङ् 636
Page #604
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
639
641
642
644
645
646
647
648
649
650
651
653
654
656
657 658
659
662
663
664
स्नेकुड् 637 रघुङ्
638 लघुङ्
अघुड् 640 वपुड्
मधुद
राघृङ् 643 लाघृङ्
द्राघृङ्
श्लाघृङ्
लोचृङ्
पचि
शचि
कचि
मचुङ्
पचुङ् टुचि
ang
कचुङ्
श्वचि 652 यचुद गती श्वचुङ्
वर्चि
दीप्तौ
मचि 655 मुचुङ्
कल्कने। कल्कनं दम्भ: शाठ्यं
क्वथनञ्च
एइ 660 जू
661 भाजि
इजुङ्
ईजि
ऋषि
गत्याक्षेपे । गतेराक्षेपो वेग आरम्भ उपलम्भा
कैतवे च । कैतवे वञ्चना । चकाराद्रत्याक्षेपे
सामर्थ्ये
आयासे च । चकारा - त्सामर्थ्ये ।
आयासः कदर्थनम्
कत्थने । कत्थनमुत्कर्षाख्यानम्
दर्शने
सेचने । सेचनं सेवनं
भजनमितियावत्
व्यक्तायां वाचि
बन्धने
दीप्तौ च । चकाराद्बन्धने
धारणोच्छ्रायपूजनेषु च
चकारात्कल्क
व्यक्तीकरणे
प्रसादे
दीप्तौ
गतौ
कुत्सने च । चकाराद्रतौ गतिस्थानार्जनोर्जनेषु ऊर्ध्वं प्राणनम्
To go fast, to start To experience intercourse
To deceit, to go fast
to state, to
experience intercourse
To enable
To enable, to effort
To praise
To see
To pray.
To speak distinctly To bind
To shine, to bind
To go
To shine
To pretend, to
deceive
to boil
To hold, to grow, to worship, to pretend, to deceive, to boil.
To speak clear
To please, to be
pleased
To shine
To go
To censure, to go
To go, to stand, to earn, to breathe
587
शीघ्र गमन करना, प्रारम्भ करना, सुख का अनुभव करना जुआ खेलना, सुख का अनुभव करना
सामर्थ्य देना सामर्थ्य देना, प्रयत्न
करना
प्रसन्न करना
देखना
प्रार्थना करना
स्पष्ट बोलना बांधना
चमकना, बांधना
जाना
चमकना
दम्भ करना, शठता
करना, उबालना
धारण करना, बढना, पूजा करना,
दम्भ करना, छल
करना, उबालना
स्पष्ट बोलना
प्रसन्न करना, प्रसन्न
होना
चमकना
जाना
निन्दा करना, जाना जाना, स्थिर होना,
कमाना, श्वास लेना
Page #605
--------------------------------------------------------------------------
________________
588
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
665 ऋजुङ् 666 भृजेंङ् भर्जने भर्जनं पाकप्रकार: 667 तिजि
क्षमानिशानयोः निशानंतक्ष्णीकरणम्
(668 669
To fry To endure, to make pointed To move To move To attempt To be united To twist, to wallow to decrease To kill, to transgress
तलना, भूनना क्षमा करना, तीक्ष्ण करना जाना जाना चेष्टा करना एक होना लपेटना, गँथना,
घट्टि
चलने स्फुटि
विकसने चेष्टि
चेष्टायाम्। चेष्टेहा गोष्टि 672 लोष्टि । वेष्टि
वेष्टने। वेष्टनं ग्रन्थनं लोटनं .
परिहाणिश्च अट्टि
हिंसातिक्रमयोः। अतिक्रम उल्लङ्घनम्
670
671 673
संघाते
674
To distress To care
675 677 679 680
एठि 676 हेठि मठुङ् 678 कठुङ् मुठुङ् वठुङ्
विबाधायाम् शोकोशोकोऽत्राध्यानम् पलायने एकचर्यायाम्। एक्सया-सहायस्य चर्यागतिस्तस्याम् गतौ
मारना, अतिक्रमण करना चिन्ता करना सोचना भागना अकेले जाना
To run away To go alone
जाना
681 683 685
अठुङ् 682 पडुङ् हुडुङ् 684 पिडुङ् शडुङ्
संघाते
To go To unite To be sick, to unite
एक करना रोगी होना, एक
रुजायाञ्च। चकारात्संघाते
होना
686 687 688 189
ताडने मदे मन्थे गतिवैकल्ये
तडुङ् कडुङ् खडुङ् खुडुङ कुडुङ् वडुङ् 692 मडुङ् भडुङ् मुडुङ्
To beat To be proud To churn To walk like drunker To burn To envelope To speak To clean, to censure
690 691
दाहे
693
वेष्टने परिभाषणे मज्जने। मज्जनं शोधनं न्यग्मावश्च
694
ताडित करना गर्व करना मन्थन करना वक्रगति से चलना जलाना लपेटना बोलना साफ करना. निन्दा करना मारना स्वीकार करना क्रोध करना काटना स्तुति करना डूबकी लगाना अनादर करना
695
तुडुङ्
तोडने। तोडनं हिंसा (696 भुडुङ्
वरणे। वरणं स्वीकारः 697 चडुङ्
कोपे 698 द्राङ् 699 धाडङ् विशरणे 700 शाडङ् श्लाघायाम् 701 वाङ्
आप्लाव्ये। आप्लाव्यमाप्लावनम् 702 हेडङ् 703 होडङ् अनादरे
To kill To admitt To be angry To be scattered To praise To dive and swim To disrespect
Page #606
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
704
705
708
710
711
712
714
716
717
718
हिडुङ्
घिगुड़ 706 घुण्ड्
707 घृणुङ् घुणि 709 पूर्णि
722
पणि
723
यतैड्
युतृङ् 713 जुतृङ् विथुङ् 715 वेथु
नाथूड्
719 कत्थि
720
श्चिदुङ्
श्रथुङ्
ग्रथुद्द
721 बदुइ
भदुङ्
मदुङ्
स्पदुङ्
क्लिदुङ्
724
725
726 मुदि
727
ददि
728
हर्दि
गतौ च । चकारादनादरे
ग्रहणे
भ्रमणे
व्यवहारस्तुत्योः
प्रयत्ने
भासने
याचने
उपताप उपघात:
शैथिल्ये । शैथिल्यगाढा
कौटिल्ये । कौटिल्यं कुसृतिर्बन्धश्च
श्लाघायाम्। श्लाघागुणारोपः श्वैत्ये। श्वेत्यं श्वेतगुणक्रिया।
स्तुत्यभिवादनयोः । स्तुतिर्गुणैः प्रशंसा अभिवादनं पादयोः
प्रणिपातः । सुखकल्याणयोः । सुखं सद्वेद्यकर्मोदयाच्छुभानुभवनम् । कल्याणं श्रेयः ।
स्तुतिमोदमदस्वप्नगतिषु । मोदो हर्ष:
मदो दर्पः । स्वप्ने नालस्यमपि
लक्ष्यते
To go, to disrespect
किञ्चिच्चलने
परिदेवने । परिदेवनं शोचनम्
हर्षे
दाने
पुरीषोत्सर्गे
To take
उपतापेश्वर्याशीः षु च। चकाराद्याचने । To pain, to be
powerful
To wander
To make business, to
praise
To try
To make shining
To beg, to favour
To relax
To bind, to show
which is unreal by majic
To praise, to bow down
To be happy, to be benfecial
To praise, to be delighted, to be
जाना, अनादर
करना
ग्रहण करना
To move
To lament
To be jolly
To give
To excrement
भ्रमण करना
प्रकट करना
To praise
स्तुति करना
To make white, to be श्वेत होना, श्वेत
white
व्यवहार करना,
स्तुति करना
यत्न करना
589
चमकाना
मांगना, पक्षपात
करना
कष्ट देना,
शक्तिशाली होना शिथिल होना
बाँधना, असत्य को
जादू द्वारा सत्य में
करना
स्तुति करना, नमन
करना
proud to sleep, to be सोना, आलस्य
idle, to go
करना, जाना
चलना
रोदन करना
प्रसन्न होना
देना
मलविसर्जन
प्रसन्न होना, लाभान्वित होना
प्रशंसा करना, प्रसन्न होना, गर्वित होना,
Page #607
--------------------------------------------------------------------------
________________
590
729
732
733
736
737
738
739
740
741
742
743
744
785
786
747
748
749
750
753
754
यदि 730 स्वदि
731 स्वादि
उर्दि
कुर्दि 734 गुर्दि
735 गुदि
षूदि
ह्वादि
ह्णादैङ्
पर्दि
एधि
स्पर्धि
गाधृङ्
बाधृङ्
दधि
बधि
नाधृङ्
पनि
मानि
तिपुर 751 ष्टिपूड,
752 स्टेपुड्
तेषूङ्
टुवेपृङ् 755 केपृङ् 756 19 757
कपुड्
आस्वादने । आस्वादनं जिह्वया लेहः
मानक्रीडयोश्च । चकारादास्वादने। मानं मिति: । क्रीडायाम
क्षरणे । क्षरणं निरसनम् ।
शब्दे
सुखे च चकाराच्छब्दे ।
कुत्सितेशब्दे । पायुध्वनी वर्त्तते आप्रवणे । आप्रवणमुत्प्लुत्य गमनमास्कन्दनं वा
वृद्धौ
संघर्षे संघर्ष पराभिभवेच्छा।
प्रतिष्ठालिप्साग्रन्थेषु । प्रतिष्ठास्पदम् । लब्धुमिच्छा लिप्सा ग्रन्थनं ग्रन्थः । प्रतिष्ठायामकर्मकोऽयं
लिप्साग्रन्थयोः सकर्मकः ।
रोटने । रोटनं प्रतिघातः
धारणे
बन्ध
नाशृङ्खत्। उपतापैश्वर्याशीर्याज्ञास्वर्थेषु नाथूवदयं वर्तते। लाघवार्थमेवं निर्देशवर्णक्रमानुसारणात्तु नेकत्राधीती
स्तुतौ
पूजायाम् क्षरणे
कम्पने च चकारात्क्षरणे
चलने
To taste with pallet
To measure, to sport
To sport
To split
To sound
To be happy, to sound
To break wind
To walk, to attact
To grow
To compete, to vie with
To make firm, to
long
for a thing
To give pain
To hold
To bind
To give pain, to be lord, To bless, to beg
To praise
To worship
To ooxe
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
आस्वादन
To tremble, to ooxe
To move
मापना, खेलना
खेलना
तोड़ना
शब्द करना
सुखी होना, शब्द
करना
कुत्सित शब्द करना
चलना, आक्रमण
करना
बढ़ना
स्पर्धा करना
प्रतिष्ठा करना, इच्छा
करना
पीड़ित करना
धारण करना
बाँध
पीडा देना, प्रभुत्व दिखाना, आशीर्वाद देना, मांगना
प्रशंसा करना
पूजा करना
रिसना
कम्पित करना
चलना
Page #608
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
591
758 ग्लेपृङ्
दैन्ये च। चकाराच्चलन
To be poor, to move
दीन होना, चलना
759
गतौ
To go
जाना
मेपृङ् 760 रेपृङ् 761 लेपृङ् त्रपौषि गुपि
762 763
लज्जायाम् गोपनकुत्सनयोः
लज्जित होना रक्षा करना
764 766
अबुङ् 765 रबुङ् । लबुङ्
शब्दे अवस्रंसने च। चकारा-च्छब्दे लम्बते प्रलम्बते अवलम्बते आलम्बते उल्लम्बते विलम्बते इत्यनेकार्थत्वमुपसर्गद्यौवितमन्यत्राप्युदाहार्यम् वर्णे। वर्णो वर्णनं शुक्लादिश्च
To be ashamed To protect, to censure To sound To be mannerless, to be perishable, to sound
शब्द करना व्यवहारशून्य, नष्ट होना, शब्द करना
767
कबृङ्
To describe, to be coloured To be feeble To be proud To praise
वर्णन करना, रंग देना नपुंसक होना गर्व करना स्तुति करना
To eat To be courageous To sound
खाना धूर्तता करना शब्द करना
To stand still
अवरुद्ध होना
768 क्लीबृङ्
आधाष्ट्ये 769 क्षीबृङ्
मदे 770 शीभृङ् 771 वीभृङ् कत्थने।
772 शल्भि 773 वल्भि
भोजने 774 गल्भि
धाष्टये 775 रेभृङ् 776 अभुङ् शब्दे
777 रभुङ् 778
लभुङ् 779 ष्टभुङ् 780 स्तम्भे। स्तम्भः क्रियानिरोधः।
स्काभुङ् 781
ष्टभूङ् 782 जभुङ् 783 जभैङ् गात्रविनामे।
784 जमुङ् रभिं
राभस्ये। राभस्य कार्योपक्रमः डुलभिष्
प्राप्तौ भामि
क्रोधे 788 क्षमौषि
सहने 789 कमू
कान्तौ। कान्तिरभिलाषः 790 अयि 791 वयि गतौ
792 पयि 793
To be pale
फीका पड़ना
785
प्रारम्भ करना
786
787
To begin To obtain To be angry To endure To long for
प्राप्त करना क्रोध करना सहन करना अभिलाषा करना
To go
जाना
Page #609
--------------------------------------------------------------------------
________________
592
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
मयि, 794 नयि 795 चयि 796 रयि तयि 798 णयि दयि
797 799
रक्षणे। चकाराद्गतौ। दानगतिहिंसादहनेषु च। चाद्रक्षणे।
800
ऊयैङ्
To protect, to go To give, to go, to kill, Toprotect To weave To be dispersed, to smell bad
तन्तुसन्ताने। दुर्गन्धविशरणयोः।
801
पूयैङ्
रक्षा करना, जाना देना, जाना, मारना, रक्षा करना बुनना बिखेरना, दुर्गन्धयुक्त करना शब्द करना कम्पित करना बढाना
803
802 नूयैङ्
क्ष्मायैङ् 804 स्फायैङ् 805
ओप्यायैङ् 806 ताङ्
शब्दोन्दनयोः। उन्दनं क्लेदनम विधूनने। वृद्धौ
To sound, to wet To tremble To grow
संतानपालनयोः। संतानः प्रबन्धः।।
807
वलि 808 वल्लि
संवरणे चलने च। चकारात्संवरणे।
To protect, to compose To cover To move, to cover To hold To speak, to kill, to
रक्षा करना, रचना करना ढंकना चलना, ढंकना धारण करना बोलना. मारना, देना
809
शलि
धारणे
810 812
मलि 811 मल्लि भलि 813 भल्लि
परिभाषणहिंसादानेषु
give
814 815
कलि कल्लि
To sound, to count To be silent
शब्द करना, गिनना चुप होना
शब्दसङ्ख्यानयोः अशब्दे। शब्दस्या-भावोऽशब्दं तृष्णीभावः देवने
816
तेवृङ् 817 देवृङ्
खेलना, जीतने की इच्छा करना
To play, to wish for conquer, to make, commence, to shine, to praise, to go To serve
818
सेवने
सेवा करना
वेवृङ् 819 सेवृङ् 820 केवृङ् 821 खेवृङ्, 822 गेवृङ् 823 ग्लेवृङ्, 824 पेवृङ् 825 प्लेवृङ् 826 मेवृङ् 827 म्लेवृङ् रेवृङ् 829 पवि काशृङ् क्लेशि
828
To go
जाना
830 831
गतौ दीप्तौ विबाधने
To shine To quarrel, to speak distinctly
चमकना केश करना, अव्यक्त शब्द करना
Page #610
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
593
832
भाषि च
To speak distinctly
स्पष्ट बोलना
व्यक्तायां वाचि। प्रकृते परश्चकार: प्रवृत्ति-मनुकर्षति। तेन क्लेशिर्भाषिश्च व्यक्तायां वाचि। गतिहिंसादर्शनेषु अन्विच्छायाम्। अन्विच्छान्वेषणम्
ईषि गेषङ
833 834 835 836
To go, to kill, to see To search for To attempt To go
जाना, मारना, अन्वेषण करना प्रयत्न करना
येषङ्
प्रयत्ने
जाना
जेषङ् 837 णेषङ् 838 एपृङ् 839
हेङ्
840
रेषङ् 841 हेपृङ्
अत्यने शब्द
अव्यक्त शब्द करना
To speeak indistinctly To be gummy To beautify To be proud To cough To shine
चिकना करना चमकाना अभिमान करना खाँसना चमकना
842 पर्षि
स्नेहने। 843 घुषुङ्
कान्तीकरणे। 844 स्रंसूङ्
प्रमादे। प्रमादोपलेपः 845 कासृङ्
शब्दकुत्सायाम् शब्दस्य कुत्सारोग: 846 भ्रासि 847 टुभ्रासि दीप्तौ
848 टुभ्लासृङ् 849 रासृङ् 850 णासृङ् शब्दे 851 णसि
कौटिल्ये 852 भ्यसि
भये 853 आङशसू
इच्छायाम्। आङ इति आङ:पर एवायं प्रयुज्यते नान्योपसर्गानापि
केवल इति ज्ञापनार्थम 845 ग्रसूङ् 846 ग्लसूङ् अदने 846 घसुङ्
करणे 847 ईहि
चेष्टायाम् 848 ___ अहुङ् 849 प्लिहि गतौ 860 गर्हि 861 गल्हि 862 वर्हि 863 वल्हि 864 बर्हि 865 बल्हि परिभाषणहिंसाच्छादनेष
To sound To be crooked To fear To wish
शब्द करना कुटिल होना भय करना
इच्छा करना
खाना
To eat To do To do something To go To censure To be chief To tell, to kill, to over
कुत्सने प्राधान्ये
करना चेष्टा करना जाना निन्दा करना प्रधान होना बोलना, मारना, ढंकना प्रयत्न करना
866
प्रयत्ने
To attempt
वेहङ् 867 जेह्रङ 868 वाह्रङ् द्राह्रङ्
869
ऊहि
870 871
निक्षेपे तर्के। तर्क उत्प्रेक्षा। विलोडने। विलोडनं परिमलनम्।
To establish To imagine To dive
स्थापित करना तर्क करना डूबकी लगाना
गाहौङ्
Page #611
--------------------------------------------------------------------------
________________
594
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
872 ग्लहौङ् 873 बहुङ् 874 महुङ् 875 दक्षि
ग्रहणे वृद्धौ शैघ्रये च। शैघ्रयं शिघ्रता चकारावृद्धौ संदीपनक्लेशनजीवनेषु।
To take To grow To be quick, to grow
लेना बढ़ना शीघ्रता करना, बढना बढ़ाना, केश करना, प्राण धारण करना
876
धुक्षि 877 धिक्षि
To encourage, to quarrel, to live
वृक्षि शिक्षि
878 879 880 881
भिक्षि
दीक्षि
वरणे। विद्योपादाने। याञ्चायाम् मोण्डयेज्योपनयन नियमव्रतादेशेषु।। मोण्ड्यं वपनम्। इज्या यजनम्। उपनयनमौजी बन्धः। नियमः संयमः व्रतादेशः संस्कारादेशः
स्वीकार करना सीखना मांगना मुण्डन कराना, यज्ञ करना, नियम व्रतादि में यज्ञोपवीत धारण करना
ईक्षि
श्रिम्
882 883 884 885
दर्शने सेवायाम प्रापणे
णीग् हंग
देखना सेवा करना ले जाना हरण करना
हरणे
To accept To learn To beg To root out hairs from head, to sacrifice, to invest, wish sacred thread, to act according to sacred books 'To see To serve To carry. To take away By force To nourish To hold To do To speak indistinctly To go, to sound indistinctly To beg To prepare food To shine To serve To colour To tell, to beg
886 887
भरणे धारणे
धृग डुकृङ् हिक्की अञ्चूग्
करणे अव्यक्ते शब्दे गतौ च। चकारादव्यक्ते शब्दे
890
891 डुयाग 892 डुपचींष् 893 राजृग् 894 टुभ्राजि 895
भजी 896 रर्जी 897 रेट्टा
याञ्चायाम् पाके दीप्तौ सेवायाम् रागे परिभाषणयाचनयोः
पोषण करना धारण करना करना अस्पष्ट शब्द करना जाना, अस्पष्ट शब्द करना मांगना पकाना चमकना सेवा करना रंगना भाषण करना, मांगना जाना, जानना, सजग होना, हानिलाभ का विचार
898
वेणग्
गतिज्ञानचिन्तानिशाम . नवादित्रग्रहणेषु। वादित्रस्य वाद्यभाण्डस्य वादनाय ग्रहणम्
To go, to know, to care for, to contemplate, to take musical instrument
Page #612
--------------------------------------------------------------------------
________________
धार्थ
चतेग
प्रोग्
मिशृग्
मेथुग्
903
चदेग
904 ऊबुन्दृग्
899
900
901
902
905
907
909
910
918
919
णिदृग् 906 णेदृग्
मिदृग् 908 मेदृग्
मेधृग्
912 बुधृग्
913
खनूग्
914 दानी
915
916
917
शृधृग् 911 मृधूग्
922
शानी
शपीं
चायृग्
व्ययी
अली
920 धावूग् 921 चीवृग्
दाशृग्
याचने ।
पर्याप्तौ पर्याप्तिः पूर्णता मेधाहिंसयोः
संगमे च चकारान्मेधा-हिंसयो ।
याचने
निशामने। निशामनमोलोचनम् ।
कुत्सासन्निकर्षयोः ।
मेधाहिंसयोः
संगमे च । चकारान्मेधा हिंसयोः
उन्दे । उन्दः क्लेदनम्
बोधने
अवदारणे
अवखण्डने ।
तेजने
आक्रोशे आक्रोशो विरुद्धानुध्यानम् पूजानिशामनयोः
गतौ
भूषणपर्याप्तिवारणेषु ।
अतिशुद्धयोः
झषीवत् । झषी आदान संवरणयोः
वक्ष्यते तद्धदयमपि आदान
संवरणयोरित्यर्थः ।
दाने ।
To beg
To be complete
To be prudent, to kill
To unite, to be
prudent, to kill
To censure, to be
near
To beg
To think for credit or हानि-लाभ का discredit
To unite, to be
prudent, to kill
विचार करना
निन्दा करना, निकट
होना
To be prudent, to kill मेधायुक्त होना,
मारना एकत्रित करना, युक्त होना,
To moisten with
liquid
To know
To dig
To break down
To sharpen
To curse
To worship, to
consider gain and loss
To go
To adorn, to be fit to do away
To go, to be pure
To take, to cover
To give
करना, वाद्ययन्त्र
उठाना
मांगना
पूर्ण करना
मेधायुक्त होना,
595
मारना
मिलना, मेधायुक्त
होना, मारना
मांगना
मारना
गीला करना
जानना
खोदना
तोड़ना
तीक्ष्ण करना
शाप देना
पूजा करना, हानिलाभ का विचार
करना
जाना
सजाना, उद्यम के लिए तैयार होना
जाना, शुद्ध करना लेना, ढँकना
देना
Page #613
--------------------------------------------------------------------------
________________
596
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
923 924 925
झषी भेषग श्रेषग्
आदानसंवरणयोः भये। चलने च। चकाराद्भये
To take, to cover To fear To weave, to walk, to fear
926
पषी
बाधनस्पर्शनयोः। स्पर्शनं ग्रन्थनम्
To injure, to weave
लषी चषी छषी त्विषीं अषी 932 असी
927 928 929 930 931 933 934 935 936 937 938
कान्तौ। कान्तिरिच्छा भक्षणे। हिंसायाम् दीप्तौ गत्यादानयोश्च दाने माने। मानं वर्तनम संवरणे। भक्षणे दीप्तौ अभिप्रीत्याज। चकाराद् दीप्तौ। अभिप्रीतिरभिलाष: परिवर्तने प्रतीपाते।
दासृग माहृम्
लेना, ढंकना भय करना बुनना, चलना, भय करना ताडित करना, बुनना इच्छा करना खाना मारना चमकना जाना, लेना दान करना वर्तन करना ढंकना खाना चमकना प्रीति करना, चमकना परिवर्तित करना प्रतिघात करना
To wish To eat To kill To shine To go, to take To give To act, to behave To cover To eat To shine To long for, to shine
गुहौग भ्लक्षी
द्युति
रुचि
To be altered To strike
श्विताङ्
वर्णे
स्नेहने। स्नेहनं स्नेहयोगः। मोचने च। चकारा- त्स्नेहने
939 घुटि 940 रुटि 941 लुटि
942 लुठि 943 944 जिमिदांङ् 945 जिश्विदाङ् 946
अिष्विदांङ् 947 शुभि 948 949 णभि 950 तुभि 951 स्रम्भूङ् विश्वासे
भ्रंशूङ् 953 स्रंसूङ् 954 ध्वंसूङ् 955 वृतूङ् 956 स्यन्दौङ् 957 वृधूङ् 958 शृधूङ्
क्षुभि
दीप्तौ संचलने। संचलनं रूपान्यथात्वम् हिंसायाम्
To be white To be gummy To release, to be gummy To shine To agitate To kill To believe To perish To go, to be perished To be have To ooze To grow To break wind
श्वेत होना चिकना करना मुक्त करना, चिकना करना चमकना क्षुब्ध करना मारना विश्वास करना नष्ट करना जाना, नष्ट होना वर्तन करना स्रवित होना वृद्धि करना करना
952
अवस्रसंने। गतौ च। चकारादवप्रेसने वर्तने। वर्तनं स्थिति। स्रवणे।
वृद्धौ
शब्दकुत्सायाम्। शब्दकुत्सापायुशब्दत्वात्।
Page #614
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
597
959
सामर्थ्य
To be strong
समर्थ होना
कृपौङ् वृत् वृतादिः। वृत धुतादिः 23 धुतादिः 5 वृतादिश्चान्तर्गणौ वर्तितौ समाप्तावित्यर्थः। ज्वल कुच
960 961
To shine To mix, to be wicked; To stop, to pull, to plough
दीप्तौ सम्पर्चन कौटिल्यप्रति ष्टम्भविलेखनेषु सम्पर्चनं मिश्रता। प्रतिष्ठम्भो रोधनम् विलेखनं कर्षणम्। गतौ निष्पाके विलोडने
चमकना मिलाना, कुटिलगति करना, रुकना, खींचना, हल जोतना जाना उबालना मंथन करना
962 964
पत्ल 963 पथे क्वथे मथे अध
To go To boil To churn
965
दान्तौ
966
षद्लं
क्षय होना, जाना, हतोत्साहित करना पतला करना
967 968
शलूं बुध टुवमु
To rot, to go, to discourage To make thine To know To vomit To wonder To ooze, to flow
जानना
969
970
वमन करना घूमना करना
971
क्षर
विशरणगत्यवसादनेषु। विशरणं शटनम् अवसादोऽनुत्साहः शातने। शातनं तनूकरणम अवगमने। अवगमनं ज्ञापनम् उद्गिरणे। उद्गिरणं भुक्तस्योर्ध्वगतिः। चलने संचलने। क्षरतिगौर्दुग्धं क्षरति जलम्। कम्पने। घात्ये। घात्यं जडत्वम तैक्ष्ण्यमित्यर्थः। वैक्लव्ये। विक्लव एव वैक्लव्यम्। स्थाने विलेखने विलेखनं कर्षरम्
972 973
चल जल
To tremble To be heavy
कम्पित होना जड़ होना
976 977
टल 975 ट्वल ष्ठल हल
978 979
णल बल
गन्धे। गन्धोऽर्दनम्। प्राणनधान्यावरोधयोः प्राणनं
To be discourageous विकलांग होना To be firm
दृढ करना To plough, to pull हल जोतना,
खींचना To pain
कष्ट देना To breathe, to do प्राणधारण करना, something about धान एकत्रित करने hoarding of grain, to
की क्रिया करना, be great
महान् होना To be great
महान् होना
जीवनम्।
धज्ञनयमवरुध्यते यत्रेति धान्यावरोधः कुसूलः महत्त्वे
980
पुल
Page #615
--------------------------------------------------------------------------
________________
598
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
981
कुल
बन्धुसंस्त्यान्योः। संस्त्यानं संघात:
To have family to unite, to pile
परिजनों को संगठित करना
To go
जाना
982 पल 983 फल 984 गतौ
शल 985 हुल
हिंसासंवरणयोश्च 986 क्रुशं
आह्वानरोदनयोः 987
गतौ
जन्मनि 989 रमिं
क्रीडायाम् 990
षहि वृत ज्वलादिः। मषण। मर्षणं क्षमा। ज्वालाद- यो वृत्ताः
समाप्ताइत्यर्थः 991 यजी
देवपूजासंगतिकरणदानेषु 992 वेग्
तन्तुसंघाते 993 व्यंग
संवरणे। संवरणमाच्छादनम् __वेंग्
स्पर्धाशब्दयोः।
To kill, to cover To call, to lament To go To be produced To sport To forgive
हिंसा करना, ढंकना बुलाना, रोदन जाना जन्म देना खेलना क्षमा करना
988
To worship, to go पूजा करना, जाना To weave
बुनना To cover
आच्छादन करना To compete, to make स्पर्धा करना, शब्द noise
करना To sow the seeds बीज बोना
To carry To go, to grow To speak To dwell
ले जाना जाना, बढना बोलना निवास करना
वद
999
घटिष
995 डुवपीं
बीजसंताने। बीजानां संतानः क्षेपे
विस्तारणम् 996 वहीं
प्रापणे। 997 ट्वोश्वि
गतिवृद्ध्योः । 998
व्यक्तायां वाचि वसं वृत यजादिः। निवासे। वर्तिताः समापिता
यजादय इत्यर्थः 1000
चेष्टायाम्। चेष्टेहा क्षजुङ्
गतिदानयोः 1002 व्यथिए
भयचलनयोः 1003 प्रथिष्
प्रख्याने। प्रख्यानं प्रसिद्धिः 1004 म्रदिष् 1005 स्खदिष्
खदने। खदनं विदारणम् 1006 कदुङ् 1007 क्रदुङ् वैक्लव्ये। विक्लव: कातरस्तस्य
1008 क्लदुङ् भावः कर्म- वैक्लव्यम्। 1009 क्रपि
कृपायाम्। 1010 जित्विरिष्
संभ्रमे। संभ्रमोऽत्राकारिता 1011 प्रसिष्
विस्तारे
1001
गुप
मर्दने
To do something To go, to give To fear, to move To be published To rub gently To tear off To be feeble, to be powerless To show mercy To hasten To spread
चेष्टा करना गति करना, देना भय करना, चलना प्रकाशित करना मालिश करना फाड़ना दुबला होना, शक्तिहीन होना दया करना जल्दबाजी करना विस्तार करना
Page #616
--------------------------------------------------------------------------
________________
धाव
1012 दक्षि
1013
श्रां
1014
स्मृ
1015 दृ
1016
नृ
1017 ष्टक 1018 स्तक
1019
चक
1020
1021
1022
1023
1024
1025
1037
1040
1041
1043
लय स
1031
1033 णट
1034 गड
1035
1036
अक
कखे
अग अकवत् ।
1049
रंगे
लगे
गे 1026 गे 1027 षगे 1028
सगे 1029 ष्ठगे 1030 स्थगे
वट 1032 भट
लड
फण 1038 कण
1039 रण
चण
शण 1042 श्रण
स्नथ 1044 वनथ
1045 क्रथ 1046
क्लथ
1047 छद
1048
मदै
गुष्टन 1050 स्तन
1051 ध्वन
हिंसागत्योः
पाके
आध्याने आध्यानमुत्कण्ठा
भये
नये
प्रतीघाते
तृप्तौ च चकारात्प्रतीघाते
कुटिलायां गतौ
उसने
अक कुटिलायां गतौ पठितोऽयमपि तदर्थो लाघवार्थं तथा निर्दिश्यते
शङ्कायाम्
सङ्गे
संवरणे । संवरण- माच्छादनम् ।
परिभाषणे
ततौ
सेचने
वेष्टने
जिह्वोन्मन्थने । जिह्वाया उन्मन्थनं
जह्वोन्मन्थनम्।
गतौ
हिंसादानयोश्च । हिंसायांदाने चकाराद्रती
दाने
हिंसार्था:
ऊर्जने। ऊर्जनं प्राणनं बलख हर्षग्लपनयोः ।
शब्दे
To kill
To cook
To long earnestly
To fear
To carry To strike
To be contented, to strike
To walk astray
To laugh
To walk astray
To doubt
To accompany
To cover
To tell
To bend
To sprinkle
To twist
To loll the tongue
To go
To kill, to give, to go
To give
To kill
To burn, to breathe
To be delighted, to tremble
To make noise
मारना
पकाना
उत्कण्ठित होना
भय करना
ले जाना
ताड़न करना
तूस करना, ताड़न
करना
कुटिल गति करना हँसना
कुटिल गति करना
शंका करना
संग करना
ढँकना
599
कहना
झुकना
छिड़कना
लपेटना
जिह्वा को मथना
जाना
मारना, देना, जाना
देना
मारना
जलना, श्वास लेना हर्षित होना,
शब्द करना
Page #617
--------------------------------------------------------------------------
________________
600
1052
स्वन
1053 चन
1054 ज्वर
1055 चल
1056
1058 ज्वल
1059
अदं 1060 सांक्
1061
भांक्
1062
यांक्
1063 वांक्
1064
1065
1066
ह्वल 1057 हाल
ष्णांक्
श्रांक
द्रांक्
1067
पांक्
1068
लांक्
1069 शंक
1070
1071
1072
1073
1074
1075
1076
1080
1081
1082
दांवक्
ख्यांक्
प्रांक्
मांक्
इंक्
इंण्क्
वींक्
1077
द्युक् 1078 बुंक्
1079 तुक्
युक्
णुक्
क्ष्णुक्
अवतंसने
हिंसायाम्
रोगे
कम्पने
चलने
दीप्तौ च । चकाराच्चलने
भक्षणे
दीप्तौ
प्रापणे
गतिगन्धनयोः ।
शौचे
पाके
कुत्सितगतौ । कुत्सिता गतिः
पलायनं स्वप्नश्च
रक्षणे
आदाने
दाने
लवने।
प्रथने
पूरणे
माने मानं वर्तनम्।
स्मरणे
गतौ
प्रजनकान्त्यसनखादनेषु च । चकाराद्रतौ प्रजनः प्रथमगर्भग्रहणम्
असनं क्षेप
अभिगमने
प्रसवेश्वर्ययोः
वृत्तिहिंसापूरणेषु
मिश्रणे
स्तुतौ
तेजने
To decorate
To kill
To be feverish
To tremble
To move
To shine, to move
To eat
To shine
To go
To go, to perfume
To bathe
To cook
To be broken, to
sleep
To protect
To take
To give
To cut down
To publish
To fulfil
To contain
To remember
To go
To conceive first
time, to wish, to
throw, to eat
To go forward
To consent, to be
lord
To maintain himself,
to kill, to fulfil
To mix
To praise
To make pointed to
sharp
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
सजाना
मारना
रोगी होना
कम्पित होना
चलना
चमकना, चलना
खाना
चमकना
जाना
जाना, सुगन्धित
करना
स्नान करना
पकाना
भाग जाना, शयन
करना
रक्षा करना
लेना
दान करना
काटना
प्रकाशित करना पूर्ण करना समाविष्ट होना
स्मरण करना
जाना
प्रथम प्रसव, इच्छा करना, फेंकना,
खाना
आगे चलना
प्रसव, प्रभुत्व
दिखाना
वृत्ति, हिंसा, पूर्ण
करना
मिश्रण करना
स्तुति करना तीक्ष्ण करना
Page #618
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
601
To ooze
प्रस्रवण करना
प्रस्नवने। प्रस्नवनं क्षरणम् शब्दे
To make noise
शब्द करना
1083 स्तुक् 1084 टुक्षु। 1085 रु
1086 कुंक् 1087 रुदृक् 1088 बिष्वपंक् 1089 अन 1090 श्वसक
अश्रुविमोचने शवे प्राणने। प्राणनं जीवनम
To shed tears To sleep To live, to breathe
आँसू बहाना सोना
प्राणधारण करना
भक्षहसनयोः
दुर्गती
खाना, हँसना दरिद्र होना जागना
1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097
जक्षक् दरिद्राक् जागृक् चकासृक् शासूक् वचंक् मृजौक्
निद्राक्षये दीप्तौ अनुशिष्टौ। अनुशिष्टिनियोगः
To eat, to laugh To be poor To be awaked To shine To rule To speak Topurify, to be pure
चमकना
भाषणे शुद्धौ
शासन करना बोलना शुद्ध करना, शुद्ध
होना
सोना
स्वप्ने
1098 सस्तुक्
स्वप्ने 1099 विदक्
ज्ञाने 1100 हनंक्
हिंसागत्योः। 1101 वशक्
कान्तौ। कान्तिरिच्छा 1102 असक्
भुवि। भवनं भूः सत्ताः 1103
षसक् 1104 इंकू
अध्ययने 1105 शीफू
स्वप्ने 1106 ढुङ्
अपनयने। अपनयनमपलापः। 1107 षूङौक्
प्राणिगर्भविमोचने। 1108 पृचैङ् 1109 पृजुङ् मिश्रणम् सम्पर्चने। सम्पर्चनं
1110 पिजुकि 1111 वृजैकि 1112 णिजुकि 1113 शिजुकि
अव्यक्ते शब्दे 1114 ईडिक्
स्तुती 1115 ईरिक
गतिकम्पनयोः 1116 ईशिक 1117
आच्छादने 1118 आङः शासूकि इच्छायाम 1119 आसिक्
उपवेशने
To sleep To know To kill, to go To desire To be To sleep To study To sleep To conceal To beget, to deliver To mix
जानना हिंसा करना, जाना इच्छा करना होना शयन करना अध्ययन करना शयन करना अपलाप करना जन्म देना मिश्रित करना
वर्जने
To abandon To be pure To speak indistinctly To praise To go, to tremble To be To cover To wish To sit
त्याग करना शुद्ध होना अस्पष्ट बोलना प्रशंसा करना जाना, काँपना होना ढंकना इच्छा करना बैठना
ऐश्वर्ये
वसिक्
Page #619
--------------------------------------------------------------------------
________________
602
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
जाना, नीचे करना चुम्बन करना बोलना आच्छादन करना
स्तुत
1120 कसुकि 1121 णिसुकि 1122 चक्षिक 1123 ऊर्णग्क् 1124 ष्टुंग्क् 1125 बॅग्क् 1126 द्विषीक् 1127 दुहीक् 1128 दिहींक 1129 लिहीं 1130 हुंक्
वाचि
गतिशातनयोः चुम्बने वक्तायां वावि आच्छादने स्तुतो व्यक्तायां अप्रीतौ क्षरणे लेपे आस्वादनम् दानादनयोः। दानमत्र हविष्प्रक्षेपः। अदनंभक्षणम्
To go, to fall down To kiss To speak To dever To prose To speak clear To hote To milk To plaster To lick Togive in sacrifice, to eat
स्पष्ट बोलना गरम करना दोहना लेप करना आस्वाद करना यज्ञ में हवि देना, भोजन करना त्याग करना भय करना लज्जित करना रक्षा करना, पूर्ण करना जाना
त्यागे
भये
1131 ओहांक 1132 जिमीक् 1133 ह्रींक 1134 पृक्
To abandon To fear To be ashamed To protect, to fulfil
लज्जायाम पालनपूरणयोः
गतो
1135 1136 1137
अंक ओहां मां
जाना
गतौ मानशब्दयोः
नापना, शब्द करना
:138 1139 1140 1141
डुदांग्क् डुधांग्क् टुडुभुंग्क् णित्रकी
दाने धारणे च। चकारादाने पोषणे च। चकाराद्धारणे शौचे च। चकारात्पोषणे
To go To go To measure, to sound To give To hold, to give To nourish To cleanse, to nourish To separate
जाना धारण करना पोषित करना निर्मल करना, पोषण करना अलग करना
1142
पृथग्भावे
1143
व्याप्ती
To pervade
रक्षा करना
विज़की अथ षान्त: विष्लूकी इति किददादिगणः सम्पूर्णः । अथ श्यविकरणा दिवादयो वर्णक्रमेणनिदिश्यन्ते। तत्रापि पूर्वाचार्यप्रसिद्धयनुरोधेनादौ दिदूच्
1144
क्रीडाजयेच्छापणिधुतिस्तुतिगतिषु।
क्रीड़ा करना, इच्छा
To sport, to wish, to win, to make
Page #620
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्यसूची
1145
1147
1148
1150
1151
1152
1153
1154
1155
1156
1157
1158
1159
1160
1164
1165
1166
1168
1169
1170
1171
1172
1173
1175
1176
1177
1178
ज्ष् 1146 झष्च्
जरसि
शीच्
दों 1149 छोट्
घोंच्
व्रीडच
नृतैव
कुथच्
पुथच्
गुधच्
राधचं
व्यधंच्
क्षिपंच
पुष्पच्
तिम 1161 तीम
1162 टिम 1163
ष्टीमच
पिवूच्
श्रिवच्
ष्ठिवू 1167 शिवूच्
इषच्
ष्णसूच्
क्रसूच्
सैय्
प्युसच्
वह 1174 षुहच्
पुषंच्
उचच्
लुटच्
ष्विदांच्
जयेच्छा विजिगीषा । पणिर्व्यवहारः
क्रयादिः
जरसि । जरावयोहानिः
तक्षणे। तक्षणं तनूकरणम् ।
छेदने
अन्तकर्मणि । अन्तकर्म विनाश
लजायाम्
नर्तने । नर्तन नाट्यम्
पूतिभावे | पूतिभावोदुर्गन्धः केदः
हिंसायाम्
परिवेष्टने
वृद्धौ
ताडने
प्रेरणे
विसकने
आर्द्रभावे
उतौ उतिर्वानं तन्तुसंतान इत्यर्थः
गतिशोषणयोः
निरसने
गतौ
निरसने
वृतिदीप्त्योः वृतिः कौटिल्यम्
भये
दाहे
शक्तौ
पुष्टौ
समवाये। समवाय ऐक्यम्
विलोटने गात्रप्रक्षरणे गात्रप्रक्षरणं धर्मस्तुतिः
business, to shine, to praise, to go
To grow old
To make pointed
To cut
To perish
To feel shame
To dance, to play, to perform drama
To be wet and of nauseous smeil
To kill
To twist
To grow
To beat
To throw
To bloom
To be wet
To weave
To go, to be dried
To spit
To go
To spit
To be crooked
To fear
To burn
To be powerful
To be fat
To unite
To wallow
To perspire
करना, जीतना, व्यापार करना,
चमकना, प्रशंसा करना, जाना
वृद्ध होना
छिलना
काटना
विनाश करना
लज्जित होना
नाचना, खेलना,
नाटक करना
गीला होना तथा दुर्गन्धयुक्त होना
हिंसा करना
लपेटना
बढ़ना
ताड़ित करना
फेंकना
विकसित होना
गीला करना
सीलना
जाना, सुखाना
थूकना
603
जाना
थूकना
वक्र होना
भयभीत होना
जलना
शक्तिशाली होना मोटा होना
एक होना लोटना परसेवा करना
Page #621
--------------------------------------------------------------------------
________________
604
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
1179 1180
कूिदौच जिमिदाच्
आर्द्रभावे स्नेहने
करना
1181 जिक्ष्विदाच्
मोचने च। चकारात्स्नेहने
बुभुक्षायाम् शौचे। शौचं नैर्मल्यम्
कोपे
1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190
क्षुधंच् शुंधंच् क्रुधंच् षिधूंच् ऋधूच् गृधूच
संराद्धौ। संराद्धि निष्पत्तिः वृद्धौ अभिकाङ्क्षायाम् हिंसासंराध्योः। संराद्धि: पाक: प्रीतौ। प्रीति: सौहित्यम् हर्षमोहनयो: मोहनंगवः
To be wet
गीला होना To be gummy, to चिकना होना, प्रेम love To release, to be मुक्त करना, चिकना gummy, to love होना, प्रेम करना To be hungry
भूखा होना To cleanse
निर्मल होना To be angry
कुपित होना To be ready
तैयार होना To grow
बढ़ना To long for
लोप करना To kill, to cook मारना, पकाना To be tranquil तृप्त होना To be pleased, to be प्रसन्न होना, गर्वित proud
होना To be angry
कुपित होना To be confused व्याकुल होना To be disturbed विचलित होना
रधौच्
तृपौच दृपौच
1191 1192
कुपच् गुपच्
क्रोधे व्याकुलत्वे विमोहने
1193
1196 1197 1198 1199 1200 1202
युप् 1194 रुप, 1195 लुपच डिपच् टुपच् लुभच् क्षुभच् णभ 1202 तुभच् नशौच
क्षेपे समुछाये गायें। गाय॑मभिकाङ्क्षा संचलने। संचलनं रूपान्यथान्यम् हिंसायाम् अदर्शने। अदर्शनमनुपलब्धिः
फेंकना, भेजना बढ़ना लालची होना हिचकिचाना हिंसा करना अदृश्य होना, भाग जाना, नष्ट होना
1203 कुशच् 1204 भृश् 1205 भ्रंशूच् 1206 वृशच् 1207
कुशच् 1208 शुषंच् 1209
दुषंचू 1210 श्लिषंच् 1211 1212 जितूंषच् 1213 तुषं 1214 हषच्
श्लेषणे अध: पतने वरणे तनुत्वे शोषणे वैकृत्ये। वैकृत्यं रूपभङ्गः आलिङ्गने दाहे पिपासायाम् तुष्टौ। तुष्टिः प्रीतिः
To throw, to send To grow To be greedy To be agitated To kill To be invisible, to take a flight, to perish To embrace, to joint To depress To accept To grow thin To dry To be corrupted To embrace To burn To be thirsty To be pleased
गले लगना, जोड़ना पतित होना स्वीकार करना पतला होना सुखाना दूषित होना गले लगना जलाना प्यासा होना हर्षित होना
Page #622
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
605
1215 1216
रोषे विभागे
1219 1220 1221 1222 1223 1224 1226 1227 1228 1229 1230 1232 1233
रुषच् प्युष, 1217 प्युस 1218 पुसच् विसच् कुसच् असूच यसूच जसूच तसू 1225 दसूच वसूच वुसच् मुसच् मसैच् शमू 1231 दमूच् तमूच् श्रमूच्
प्रेरणे श्लेषे क्षेपणे प्रयत्ने मोक्षणे उपक्षये स्तम्भे उत्सर्गे। उत्सर्गस्त्यागः खण्डने परिणामे। परिणामोविकार: उपशमे काङ्क्षायाम् खेदतपसोः
To be angry To separate, to divide To throw, to send To embrace To throw To try To release To fade away To be proud To abandon To break To be altered To be calm To long for To be sorry, to go in retirement To wander
रोष करना अलग होना, विभाजित होना फेंकना, भेजना गले लगना फेंकना प्रयत्न करना मुक्त करना क्षीण होना गर्वित होना त्याग करना तोड़ना रूपातंरित होना शांत होना अभिलाषा करना खेद प्रकट करना, तपस्या करना भ्रमण करना
1234
भ्रमूच
अनवस्थाने। अनवस्थानं देशान्तरगमनम् खहने
क्षमौच्
To allow, to endure
हर्षे ग्लानौ
आज्ञा देना, सहन करना हर्षित होना क्षीण होना
To be pleased To fade away
1237
मदैच् क्लमूच् अवसित शमादीना सप्तकमष्टकश्च मुहौच
1238
वैचित्त्ये। वैचित्यमविवेकः
म
1239
दुहौच
जिघांसायाम्
To be excited, to विवेकरहित होना, beauty
मोहित होना To wish for killing to मारने की इच्छा be imprudent
करना To vomit
वमन करना To love
प्रेम करना
1240 ष्णुहोच् उद्भिरणे 1241 ष्णिहौच वृत पुषादिः। प्रीतौ
पुषादिर्दिवाद्यन्तर्गणो
वर्तित सम्पूर्ण इत्यर्थः 1242 षूडौच्
प्राणिप्रसवे 1243 दूच्
परितापे। परितापखेदः 1244 दीच्
To deliver To be sorry To decrease
जन्म देना खेद प्रकट करना क्षीण होना
क्षये
Page #623
--------------------------------------------------------------------------
________________
606
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
रींच्
डीच्
गतौ
1245 धींच् 1246 मींच् 1247 1248 लीच् 1249 1250 व्रींच् वृत्स्वादिः 1251 पीच् 1252 1253 प्रींच् 1254 युजिच्
पाने
पीना
1255 1256 1257 1258 1259
सृजिंच् वृतूचि पदिच विदिंच खिदिंच
1260 1261 1262 1264 1265 1266 1267
युधिंच् अनो रुधिंच बुधिं 1263 मनिच् अनिच् जनैचि दीपैचि तर्पिच
अनादरे
To disrespect
अनादार करना हिंसायाम्
To kill
मारना स्रवणे
To ooze
रिसना श्लेषणे
To embrace
गले लगना To go
जाना वरणे
To accept
स्वीकार करना
To drink गतौ
To go
जाना प्रीती
To love
प्रेम करना समाधौ। समाधिश्चित्तवृत्तिनिरोधः To contemplate in समाधिस्थ होना
solitude विसर्गे
To make, to arrange बनाना, रचना वरणे
To accept
स्वीकार करना गतौ। गतिर्यानं ज्ञानश्च
To go
जाना सत्तायाम्। सत्ता भावः
To become
होना दैन्ये।
To be sorry, to be खेद प्रकट करना, poor
दीन होना सम्प्रहारे। सम्प्रहारो हननम् To fight
युद्ध करना कामे। काम इच्छा
To wish
इच्छा करना ज्ञाने
To know
जानना प्राणने
To breathe
प्राण धारण करना प्रादुर्भावे। प्रादुर्भाव
To be produced उत्पन्न करना दीप्तौ
To shine
चमकना ऐश्वर्ये वा। तपंधूप संतापे इत्यस्यैवैश्वर्ये To be lord
स्वामी होना दिवादित्वामात्मनेपदं वा विधीयते आप्यायने। आप्यायनं
To increase
वृद्धि होना जरायाम्। जरा वयोहानिः
To grow old
वृद्ध होना To go
जाना स्तम्भे
To be proud
अभिमान करना त्वरायाम्। घुरादय: षडपि हिंसायां
To haste
उतावला होना चकाराद्यथापथमुक्तेषु जरादिषु दाहे
To burn
जलाना उपतापे
To be afflicted दुखित होना अल्पत्वे
To be small
छोटा होना दीप्तौ
To shine
चमकना To make noise शब्द करना
1268 1269 1271 1273 1274
गतै
पूरैचि घूरैङ् 1270 जूरैचि धूरैङ् 1272 गूरैचि शूरैचि तूरैचि घुरादयः हिंसायाश्च चूरैचि किशिच् लिशिंच् काशिच् वाशिच्
1275 1276 1277 1278 1279
शब्दे
Page #624
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
607
मर्षणे। मर्षणं क्षमा पूतिभावे। पूतिभावः केदः
रञ्जींच
रागे
1280 शकींच 1281 शुगैच 1282 1283 शपांच 1284 मृषीच 1285 1286 षुग्ट्
To forgive To be wet To be coloured To curse To forgive To bind To extract juice
आक्रोशे तितिक्षायाम्। तितिक्षाक्षमा बन्धने अभिषवे। अभिषवः केदनं संधानाख्यं पीडनमन्थने वा बन्धने निशाने। निशानं तनूकरणम्
क्षमा करना गीला होना रंग करना शाप देना क्षमा करना बांधना अर्क निकालना
णहींच्
पिंग्ट 1288 शिंग्ट्
प्रक्षेपणे
चिंग्ट्
डुमिंग्ट 1290 1291 धूग्ट 1292 स्तृगूट 1293
इंग्ट् 1294 1295 1296 1297 1298 1299 - स्मृट्
चयने कम्पने आच्छादने हिंसायाम् वरणे गतिवृद्ध्योः श्रवणे उपतापे प्रीतौ पालने च। चकारात्प्रीती
To bind
बाँधना To make pointed तीक्ष्ण करना sharpen To make over वृद्धि करना To collect
इकट्ठा करना To tremble
कंपित होना To cover
ढकना To kill
मारना To forgive
क्षमा करना To go, to grow जाना, बढ़ना To hear
सुनना To afflict
दुखित होना To love
प्रेम करना To protect, to love रक्षा करना, प्रेम
करना To be able
योग्य होना To kill
मारना
शक्ती
1300 1301
शकू तिक 1302 तिग 1303 षघट
हिंसायाम्
1304
संसिद्धौ। संसिद्धिः
To be equal to
समान होना
1306
वृद्धौ व्याप्तौ
1307 1308 1309 1310 1311 1312 1313
फलसंपत्ति। ऋधूट आप्लंट तृपट दम्भूट कृवुट् धिवुट् जिधृषाट्
प्रीणने दम्भे हिंसाकरणयोः गतौ प्रागल्भ्ये आस्कन्दने
To grow To pervade To please To find excuse To kill To go To proud To shout
वृद्धि करना व्याप्त होना प्रसन्न करना ० बहाना ढूँढना मारना जाना गर्व करना चिल्लाना
ष्टिधिट
Page #625
--------------------------------------------------------------------------
________________
608
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
1314 1315 1316 1317 1318
अशौटि तुदीत् भ्रस्जीत् क्षिपीत्
व्यापतौ व्यथने पाके प्रेरणे अतिसर्जने। अतिसर्जनं त्यागः विलेखने मोक्षणे
दिशीत्
1319
क्षरणे
1320 1321 1322 1323 1324 1325 1326 1327 1328 1330 1331 1332 1333 1334 1335 1336 1337 1339 1340 1341 1342
कृषीत् मुच्छ्रुती षिचीत् विद्लँन्ती लुप्लुन्ती लिपीत् कृतैत् खिदंत् पिशत् वृतः मुचादिः रिं 1329 पित् धिंत् क्षित्
लाभे छेदने उपदेहे। उपदेहो वृद्धि: छेदने परिघाते अवयवे गतौ धारणे निवासगत्योः प्रेरणे प्राणत्यागे
To pervade
व्याप्त होना To afflict
दुखित होना To cook
पकाना To send
भेजना To give alms दान देना To pull
खींचना To abandon
त्याग करना To sprinkle
छिड़कना To increase
वृद्धि करना To cut
काटना To grow
बढ़ना To cut
काटना To kill
मारना To crush
पीसना To go
जाना To hold
धारण करना To live To inspire
प्रेरित करना To die
प्राण त्याग करना To throw
फेंकना To dine
भोजन करना To write
लिखना To speak
बोलना To cover
ढंकना To praise
स्तुति करना To cut
छेदन करना To be tempted by इन्द्रियों से अभिभूत senses
होना
रहना
षत्
भृतं
विक्षेपे
कृत् गृत् लिखत्
निगरणे। निगरणं भोजनम्। अक्षरविन्यासे परिभाषणे संरवणे। संयरणमाच्छादनम्।
जर्च 1338 झर्चत्
त्वचत् ऋचत्
स्तुतौ
ओव्रस्जौत् ऋछत्
छेदने इन्द्रियप्रलयमूर्तिभावयोः इन्द्रियाणां प्रलये मोहे मूर्तिभावे च
1343
गतौ
1344
1345
विछत उछैत् मिछत उछुत प्रछंत्
विवासे। विवासोऽतिक्रमः उत्केशे। उत्केशो बाधनम् उञ्छे। उञ्छ उच्चयः। ज्ञीप्सायाम्। त्रीप्सा जिज्ञासा
1346 1347
To go
जाना To transgress उल्लंघन करना To give pain
दुःख देना To To be eager, to know जिज्ञासु होना,
जानना To be plain
सरल होना To create
रचना करना
1348 1349
उब्जत् सृजंत्
आर्जवे विसर्गे
Page #626
--------------------------------------------------------------------------
________________
1350
1351
1352
1353 जर्ज 1354 झर्झत्
1355
उद्झत्
1356
जुडत्
1357
पृड 1358 मृडत्
1359
कडत्
1360
पृणत्
1361
तुणत्
1362
मृणत्
1363 दुणत्
1364
पुणत्
1365
मुणत्
1366 कुणत्
1367
1369
1370
1371
1372
रुजत्
भुजोत्
टुमस्जॉत्
1381
1383
1385
1387
1389
1390
घुण 1368 घूर्णत्
चृतैत्
णुदत्
पद्लृत्
विधत्
1373
1375
1376
1377
तृफ 1378 तृम्फत्
1379 ऋफ 1380 ॠम्फत
जुन 1374 शुनत्
छुपत्
रिफत्
दृफ 1382 दृम्फत्
गुफ 1384 गुम्फत्
उभ 1386 उम्भत्
शुभ 1388 शुम्भत्
दुधैत्
लुभत्
भने
To break
तोड़ना
कौटिल्ये
To be crooked
टेडा करना शुद्ध शुद्धा स्नानं बुडनं च लक्ष्यते । To bathe, to sink in स्नान करना, में डूबना
पानी
water
To talk
बातचीत करना
To abandon
To go
To make happy
To be proud
To please
To be crooked
To kill
To be crooked, to go
To do auspicious act To promise
To sound, to support
परिभाषणे
उत्सर्गे
गतौ
सुखने
मदे
प्रीवणे
कौटिल्ये
हिंसायाम्
गतिकौटिल्ययोश्च चकारार्द्धिसायाम्
शुभे शुभ शुभविषया क्रिया
प्रतिज्ञाने
शब्दोपकर्णयोः
भ्रमणे
हिंसाग्रन्थयो:
प्रेरणे
अवसादने
विधाने
गतौ
स्पर्श
कथनयुद्धहिंसादानेषु
तृप्तौ
हिंसायाम्
उत्क्लेशे
ग्रन्थेने
पूरणे
शोभार्थे
ग्रन्थे
विमोहने विमोहनं व्याकुलीकरणम् ।
To wander, to hurt
To hurt
To drive
To be unhappy
To cut, to honour, to work_according to
rite
To go
To touch
To tell, to fight
To be contented
To kill, to hurt
To fell distressed
To sew
To fill
To shine
To fasten to arrange
To perplex
त्याग करना
जाना
प्रसन्न होना
गर्वित होना
प्रसन्न होना
वक्रता करना
मारना
वक्रता करना, जाना
शुभकार्य करना वचन देना
609
शब्द करना, आधार देना
घूमना, आहत
करना
आहत करना
प्रेरणा देना
दुःखी करना
छेदन करना, आदर करना, विधि के
अनुसार कार्य करना
जाना
स्पर्श करना कहना,
तृप्त होना
हिंसा करना, आहत
युद्ध करना
करना
पीड़ा देना
बुनना
भरना
चमकना
गूँथना
उलझना
Page #627
--------------------------------------------------------------------------
________________
610
1391
1392
1393
1394
1395
1396
1397
1398
1400
1401
1402
1403
1405
1406
1407
1408
1409
1410
1411
1412
1413
1415
1416
1417
1419
1420
कुरत्
क्षुरत्
खुरत्
घुरत्
पुरत्
मुरत्
इलत्
हिलत्
शिल 1404 सिल
तिलत्
चलत्
चिउत्
क्लित्
बिलत्
णिलत्
मिलत्
सुरत्
स्फर, 1399 स्फलत् स्फुरणे
किलत्
स्पृशत्
रुशं 1414 रिशंत्
विशंत्
भृशत्
लिश (अथ
षान्तास्त्रयः सेट)
1417 ऋत्
इषत्
मिषत्
शब्दे
विखनने
छेदने च छेदन विलेखनम् चकारा
ख
भीमार्थशब्दयोः
अग्रगमने
संवेष्टने
ऐश्वर्यदीप्त्योः
चैत्यक्रीडनयोः ।
गतिस्वप्नप्रश्लेपणेषु
हावकरणे
उच्छे
स्नहने
विलसने
वसने
वरणे
भेटने
गहने
श्लेषणे
संस्पर्शे
हिंसायाम्
प्रवेशने
आमर्शने आमर्शनं
गतौ
इच्छायाम् स्पर्द्धायाम्
To sound
To scratch
To scratch, to cut
To say a terrible
meaning, to grunt To go forth
To surround, to अच्छी प्रकार
entwine
लपेटना
To govern, to shine
शासन करना,
चमकना
फड़कना
खिलाना, श्वेत करना
To sport amorously,
To wanton to dally
To glean
To be greasy
To frolic about
To throb, to quiver
To make one play,
to be white
To add, to go to जमा करना, शयन sleep
करना
हावभाव करना
To put on clothes
To cover, to divide
To break
To give pain
To collect
To touch
To kill
To enter
To touch, to handle
To go
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
शब्द करना
काटना
काटना, छेदन
करना
To wish
To compete with
भयानक शब्द
करना
आगे बढ़ना
बीनना
चिकना करना विलास करना
कपड़े पहनना
ढकना, विभाजित
करना
तोड़ना
पीड़ा देना
इकट्ठा करना स्पर्श करना
मारना
प्रवेश करना स्पर्श करना,
संभालना
जाना
इच्छा करना प्रतिस्पर्धा करना
Page #628
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
611
1421
वृहौत्
उद्यमे। उद्यम उद्धरणम्
one
उन्नति करना
To make prosperous To kill
1422
हिंसायाम्
मारना
तृहौ 1423 तुंहौ, 1424 स्तृहौ, 1425 स्तुहौत् कुटत्
1426 1427 1428 1429
कौटिल्ये पुरीषोत्सर्गे गतिस्थैर्ययीः स्तवने
1430
धूत्
विधूनने संकोचने व्याजीकरणे
1431 1432 1433 1434
To be crooked
वक्रता करना To void excrement अरण्य में जाना To go, to stand जाना, स्थिर होना To tremble, to praise कंपित होना, प्रशंसा
करना To shake
कंपित होना To be thrifty
संकोचित करना To excuse
बहाना ढूँढना To sound
शब्द करना To give pain, to give पीड़ा देना, a counterblow, to प्रत्याघात करना, resist
रोकना To cut
छेदन करना
व्यचत् गुजत्
शब्दे
घुटत्
प्रतीघाते
1435
छेदने
1438 1439 1440
चुट् 1436 छुट 1437 त्रुटत् तुटत् मुटत् स्फुटत् पुट (अथ ठान्त: सेट् च) 1442 लुठत् कृडत् कुडत्
कलहकर्मणि आक्षेपप्रमर्दनयो विसकने संश्लेषणे
To break To blame To expand To join
तोड़ना निन्दा करना विकसित करना जोड़ना
1441
1443 1444
घसने। घसनं भक्षणम् बाल्ये च. चकाराद्घसने
रक्षायाम्
1445 1446 1447 1448
To eat To eat, to act as a child To preserve To bind To break To cover
गुडत् जुडत तुडत लुड1449 थुड, 1450 स्थुडत् वुडत्
बन्धे
खाना खाना, बाल-चेष्टा करना रक्षण करना बाँधना तोड़ना ढंकना
तोडने। तोडन भेदः संवरणे
1451
उत्सर्गे च। चकारात्संवरणे।
To discharge, to छुट्टी देना, त्याग abandond, to give करना, दान देना, alms, to cover ढंकना To collect, to cover इकट्ठा करना,
ढंकना
1452
Qड 1453 भ्रडत
संघाते
सयारा
Page #629
--------------------------------------------------------------------------
________________
612
1454
1457 चुणत्
1458
डिपत्
1459
1460
1461
1471
1472
1473
1474
दुड 1455 हुड
1456 त्रुडत
1462
1464
1465 पृङत्
1466
इंडत्
1467
धृत्
1468
ओविजैति
1469
1479
1480
1481
छुरत्
स्फुरत्
स्फुलत्
1482
कुंड् 1463 कूड्
गुरैति
ओलजेंड 1470
औलस्जैति
ष्वजित
जुवैति
तिच्छविकरणस्तुदादिर
ण: सम्पूर्णः
रुधूपी
रिम्पो
1475
1476
1477 भिदृपी
1478
छिपी
विम्पो
युजम्मी
क्षुदृपी
उहृदपी
उतदृषी
पृचैप्
1483 वृचैप्
1484
1486
त 1485 तञ्जप्
भजोंप्
निमज्जने
छेदने
क्षेपे
छेदने
स्फुरणे
संचये च। चकारात्स्फुरणे
शब्दे
उद्यमे
व्यायामे । व्यायाम उद्योग
आदरे
स्थाने
भयचलनयो
व्रीडे
संगे
प्रीतिसेवनयोः
आधरणे । आवरणं व्यापित्वम्
विरेचने। विरेचनं नि सारणम्।
पृथग्भावे ।
योगे
विदारणे
द्वैधीकरणे अद्वधस्य पृथकृत्वे
संपेशे
दीप्तिदेवनयोः
हिंसानादरयोः ।
संपर्के
धरणे
संकोचने
आर्द
To sink, to make one डूबना, डूबाना
sink
To cut
To throw
To cut
To accompany
To love, to serve
To throb
फड़कना
To throb to quiver, फड़कना, इकट्ठा
to collect
करना
To sound
शब्द करना
To exert
उद्यम करना
To take exercise
व्यापार करना
To respect
आदर करना
To live, to hold
रहना, धारण करना
To fear
भय करना लज्जित होना
To be ashamed
To cover
To
evacuate
to separate
to join
To tear
To divide, to cut
purge,
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
To unite, to mingle
To choose
To contract
To break
छेदन करना
फेंकना
छेदन करना
मैत्री करना प्रेम करना, सेवा
करना
To pound
To shine
To hurt to disrespect आहत करना,
अनादार करना
एक होना, मिश्रण
करना
स्वीकार करना संकुचित करना तोड़ना
ढँकना
to शुद्धि करना, खाली
करना
अलग करना
जोड़ना
भेदन करना
विभाजित करना,
छेदन करना
कुचलना
चमकना
Page #630
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्यसूची
613
1487
भुजंप्
पालनाभ्यवहारयोः अभ्यवहारी
To protect, to eat
रक्षण करना, खाना
भोजनम्।
1488
अञ्जोंप्
व्यक्तिम्रक्षणगतिषु। व्यक्तिः प्रकटता। भक्षणं घृतादिसेकः। . भयचलनयोः। वेष्टने
1489. 1490
ओविजेप कृतैप्
1491 1492 1493 1494 1496
उन्दैप् शिष्लूपू पिष्लृप् हिसु 1495 तृहप् खिदिप
केदने विशेषणे। विशेषणं गुणान्तरोत्पादनम् सञ्चूर्णने हिंसायाम् दैन्ये
To manifest, to go, प्रगट करना, जाना, to sprinkle
छिड़कना To fear, to move भय करना, जाना To encompass, to कांपना, लपेटना twist To moisten
गीला होना To qualify
स्थापन करना Topound, to grind कुचलना, पीसना To hurt
आहत करना To be afflicted, to be दु:खी होना, खेद depressed
प्रकट करना To think
विचार करना To shine
चमकना
हिंसायाम् गतौ
विस्तारित होना देना आहत करना जाना खाना, चरना
चमकना
1497 विदिंप
विचारणे 1498 जिइन्धैपि इति दीप्तौ
श्नविकरण: पिदुधाः
दिर्गणः सम्पूर्णः 1499 तनूयी
विस्तारे 1500 षणूयी
दाने 1501 क्षणूय 1502 क्षिणूयी 1503 ऋणूयी 1504 तृणूयी
अदने 1505 घृणूयी
दीप्तौ 1506 वनूयि
याचने 1507 मनूयि
बोधने 1508 डुक्रींग्श्
द्रव्यविनिमये। विनिमयः परिवर्तः 1509 विंग्श्
बन्धने 1510 पोंग्श्
तीतिकान्तयोः कान्तिरभिलाष: 1511 श्रींग्श्
पाके 1512 मींग्श्
हिंसायाम् 1513 युंग्श्
बन्धने 1514 स्कुंग्श्
आप्रवणे। आप्रवणमुद्धरणम् 1515 नूग्श् 1516 दुग्श्
To spread To give To hurt To go To eat, to graze To shine To desire To know To purchase To bind To satisfy To cook To hurt To bind To uphold To sound To hurt, to kill
इच्छा करना जानना खरीदना बँधना सन्तुष्ट होना पकाना आहत करना बँधना उद्धार करना शब्द करना आहत करना, मारना लेना, स्वीकार करना
शब्दे
हिंसायाम्
1517
ग्रहीश्
उपादाने। उपादानं स्वीकारः।
To take, to accept
Page #631
--------------------------------------------------------------------------
________________
614
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
1518 1519 1520 152] 1522
पूग्श् लूग्श् धूग्श् स्तृग्श् कृग्श्
पवने। पवनं शुद्धिः छेदने कम्पने आच्छादने हिंसायाम्
To purify To cut To shake To cover To kill, to hurt
शुद्ध करना छेदन करना हिलाना ढंकना मारना, आहत करना स्वीकार करना क्षीण होना, बढ़ना जाना, आहत करना गले लगाना स्वीकार करना जाना
वरणे
वृग्श् ज्यांश
1523 1524 1525 1526
रीश्
To choose To oppress, to grow To go, to hurt To embrace To choose, to accept To go
हार्नो गतिरेषणयः । रेषणं हिंसा श्लेषणे वरणे गतौ
लींश्
1527
ब्लींश् ल्वीश् 1530 मृ
मारना
1528 1529 1531 1532 1533 1534
हिंसायाम् पालणपूरणयोः। भरणे भर्जने च। भर्जनं पाकः। चकाराद्भरणे
To kill To protect, to kill To nourish To cook, to nourish
दृश्
विदारणे वयीहानौ
रक्षा करना, मारना पोषण करना पकाना, पोषण करना फाड़ना वृद्ध होना ले जाना शब्द करना जाना
1535 1536 1537 1538 1539 1540 1541 1542 1543
नये
ऋश्
To tear To grow old To carry To sound To go To know To kill To choose To nourish To recreate
जानना
झांश् क्षिष्श्
वों
शब्दे गतौ अवबोधने हिंसायाम् वरणे भरणे भूतप्रादुर्भावे। भूतप्रादुर्भावोऽतिक्रान्तोत्पत्तिः सुखने मोचनप्रतिहर्षयोः विलोडने संदर्भे। संदर्भो बन्धनम् संक्लेशे
मारना स्वीकार करना पोषण करना पुन: उत्पन्न करना
भ्रींश् हेडश्
1544
1545 1546
1547 1548 1549 1550 1551
मृडश् श्रन्थश् मन्थश् ग्रन्थ कुन्थश् मृदश् गुधश्
To make happy Torelease, to delight To churn To bind, to gather To suffer To crush To be angry
सुखी होना छोड़ना, प्रसन्न होना मंथन करना बँधना, गूंथना दुःख देना पीसना क्रोध करना
क्षोदे
रोषे
Page #632
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसची
615
बँधना
1552 1553 1554
बन्धंश् क्षुभश् णम् 1555 तुभश्
1556
खवश्
बन्धने
To bind संचलने
To agitate
कंपित होना To move, to shake, चलना, कंपित to kill
होना, मारना हेठश्वत्। यथा हेठश् भूतप्रादुर्भावे To make prosper उन्नति करना तथायमपिवर्णक्रमानुरोधेन तु तत्रैव न पठितः। विबाधने
To narrate a past भूतकाल का स्मरण thing
करना भोजने
To eat
खाना
1557 क्लिशौश्
अशश्
1558 1559 1560
विषश्
विप्रयोगे
1561
पृष 1562 प्लुषश्
स्नेह सेचन पूरणेषु
स्तेये
1563 1564 1565 1566 1567
मुषश् पुषश् कुषश् घ्रसूश् वृश्
निषकर्षे। निषकर्षो बहिष्कर्षणम
उञ्छ
संभक्तौ। संभक्ति संसेवा।
चुरण
स्तेये
1568 1569 1570
पण
पूरणे
भरना
स्रवणे
To separate, to अलग करना, disjoin
वियोग करना To moisten, to गीला करना, sprinkle
छिड़कना To steal
चोरी करना To nourish
पोषण करना To draw out
बाहर निकालना To collect
इकट्ठा करना To serve well अच्छी प्रकार सेवा
करना To steal
चोरी करना To fill To sprinkle over, to छिड़कना, गीला wet
करना To speak
बोलना To destroy
नष्ट करना To trouble
कष्ट देना To bind
बँधना To praise
प्रशंसा करना To hammer
वार करना To extend
विस्तार करना To speak indistinctly अस्पष्ट बोलना To be strong, to live बलवान होना, जीना To kill, to be strong, मारना, बलवान to give, to live होना, देना, प्राण
धारण करना
1571 1573 1575 1577 1578
श्वल्क 1572 वल्कण् भाषणे नक्क 1574 धक्कण नाशने चक्क 1576 चुक्कण् व्यथने टकुण्
बन्धने अर्कण्
स्तवने पिचण्
कुट्टने पचुण
विस्तारे म्लेछण
म्लेच्छने। म्लेच्छनम व्यक्ता वाक् ऊर्जण्
बलप्राणनयोः। प्राणनं जीवनम्। तुजु 1584 पिजुश् हिंसाबलदाननिकेतेनेष । निकेतनं गृहम
1579
1580 1581 1582 1583
Page #633
--------------------------------------------------------------------------
________________
616
1585 क्षजुण्
1586
1587
1589
1590
1592
1593
1594
1598
1599
1602
1604
1606
1609
1610
1612
1613
1614
1615
1616
* पूजण
गज 1588 मार्जणू
तिजण्
व्रज 1591 व्रजण्
1619
1620
1621
रुजण्
नटण
तुट 1595 चुट 1596
चुटु 1597 छुटण्
कुट्टण्
1607
स्निटण्
1608 घट्टण्
खट्ट
पट्ट 1611 स्फिरण
पुट्ट 1600 चुट्ट
1601 पट्टण्
पुट 1603 मुटण्
अट्ट1605 स्मिटण्
लुटण्
स्फुटुण
कीटण
वटुण
रुदण
शठ 1617 श्वठ
1618 श्वण्
शुठण्
शुठुण्
गुठुण्
1622 लडण्
1623
स्फुडुण्
1624
ओलडुण्
1625
पीडण
कृच्छ्रजीवने
पूजायाम्
शब्दे
निशाने
मार्गणसंस्कारगत्योः । बाणस्तस्यसंस्कारे गतौ हिंसायाम्
अवस्पन्दने । अवस्यन्दनं भ्रंशः
छेदने
कुत्सने चकाराच्छेदने अल्पीभावे
संचूर्णने
अनादरे
स्तेये च । चकारादनादरे
स्नेहने
चलने
संवरणे
हिंसायाम्
परिहासे
वर्णने
विभाजने
रोषे
संस्कारगत्याः
आलस्ये
शोषणे
वेष्टने
उपसेवायाम् ।
परिहासे
उत्क्षेपे
गहने गहनं बाधा
To live, to distress
To worship
To sound
To sharpen
मार्गणो To cleanse an arrow
to go
To kill
To degrade
To cut
To cut, to censure
To become small
To grind, to speak
To disrespect
To disrespect,
steal
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
प्राण धारण करना,
दुःखी होना
पूजा करना
शब्द करना तीक्ष्ण करना
बाण को साफ
to
To moisten
To move
To cover
To kill
To jest, joke, laugh
To describe
To divide, to share
To be angry
To go, to make well
To be idle
To become dry
To wind or twist
round
To fondle
To jest or laugh
To throw
To trouble
करना, जाना
हिंसा करना
पतित करना
छेदना
छेदना, निन्दा करना
छोटा हो जाना
पीसना, बोलना
अनादर करना
अनादर करना,
चुराना
गीला करना
चलना
ढंकना
हिंसा करना
हँसी उड़ाना
वर्णन करना
विभाजित करना,
बाँटना
क्रोधित होना
जाना, अच्छा
बनाना
आलस करना
सुखाना
लपेटना
आलिंगन करना
परिहास करना
फेंकना
बाधित करना
Page #634
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
1626
1627
1629
1630
1631
1635
1636
1637
1638
1632
चुडुण्
1633 मडुण्
1634
भडुण्
1641
1643
1644
1645
1646
1648
1649
1650
1652
1653
तडण्
खड 1628 खडुण्
1654
1655
1656
1657
1658
1659
1660
1661
1662
1663
कडुण्
कुडुण्
गुडुण्
पिडुण्
ईडण्
चडुण्
जुड 1639 चूर्ण
1640 वर्ण
चूण 1642 तूणण्
भ्रणण्
पूणण्
चितुण्
पुस्त 1647 बुस्तण्
मुस्तण्
कृतण्
स्वर्त 1651 पथुण्
श्रथण्
पृथण्
प्रथण्
छदण्
चुदण्
मिदुण्
गुर्दण्
छर्दण्
बुधुण्
वर्धण्
गर्धण्
बन्ध 1664 बधण्
आघाते
भेदे
खण्डने च । चकाराद्भेदे
रक्षणे
वेष्टने च चकाराद्ररक्षणे
छेदने
भूषायाम्
कल्याणे
संघाते
स्तुतौ
कोपे
प्रेरणे प्रेरणं दलनम्।
संकोचने
दाने
संघाते
स्मृत्याम् ।
आदरानादरयोः ।
संघाते
संशब्दे । संशब्दः ख्याति
गतौ
प्रतिहर्षे ।
प्रक्षेपणे
प्रख्याने
संवरणे
संचोदने । संचोदनं नोदनम्
स्नेहने
निकेतने
वमने
हिंसायाम् ।
छेदनपरणयोः ।
अभिकाङ्क्षायाम्।
संयमने
To beat
To break
To pierce
To protect
रक्षा करना
To protect to twist रक्षा करना, मोड़ना
round
To break
तोड़ना
To decorate
सजाना
To make fortunate, भाग्यशाली होना
to be fortunate
To collect
To praise
To be angry
To pound
To contract
To give
To collect
To remember
To
respect,
disrespect
To gather together
To glorify
To go
To be glad
To put in, to fly
to
To publish
To cover
To drive
To be greasy
To inhabit
To vomit
To kill
To cut
To desire
To control, to bind
मारना
तोड़ना
भेदित करना
संग्रह करना
प्रशंसा करना
दुःखी होना
गड्डा खोदना
617
संकुचित करना देना
संग्रह करना
याद करना
आदर करना,
आनादर करना
एकत्रित करना ख्याति देना
जाना
हर्षित होना
स्थापित करना,
उड़ना
प्रसिद्ध करना
ढ़कना
प्रेरणा देना
चिकना होना
निवास करना
उलटी करना
हिंसा करना
काटना
इच्छा करना
रोकना, बाँधना
Page #635
--------------------------------------------------------------------------
________________
618
1665
1666
1667 ष्ट्रपण्
1668
डिपण्
1669
ह्रपण्
1670
1672
1673
छपुण्
क्षपुण्
1692
1693
1694
1695
1696
1674
1676
1677
1678
1680
1681
1682
1683
यत्रुण्
1684 कुदुण्
1699
1700
1701
1671
शूर्पण
शुल्बण्
डबु 1675 डिबण्
सम्बण्
1685 श्वभ्रण्
1686
तिलण्
1687 जलण्
1688 क्षलण्
1689 पुलण्
1690 बिलण्
1691
तलण्
कुण्
लबु 1679 तुबुण्
पुर्वण्
यमण्
व्ययण
तुलण्
दुलण्
बुलण्
मूलण्
कल 1697 किल
1698 पिलण्
पलण्
इलण्
चलण्
गतौ
क्षान्तौ
समुच्छ्राये
क्षेपे
व्यक्तायां वाचि ।
संघाते
माने
सर्जने च चकारान्माने
क्षेपे
सम्बन्धे
आच्छादने
अर्दने
निकेतने
परिवेषणे
क्षये
संकोचने
अनृतभाषणे
गतौ
स्नेहने
अपवारणे
शौचे। शौच शौचकर्म
समुच्छाये
भेदे
प्रतिष्ठायाम्।
उन्माने ।
उत्क्षेपे
निमड़ने
रोहणे
क्षेपे
रक्षणे ।
प्रेरणे
भूतौ ।
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
To go
जाना
To be patient, to सहनशील होना
forbear
To erect
To throw
To speak distinctly
To make a heap of
To measure
To
create
To throw
To join
To cover
measure,
To torment, harass
To dwell
To supply
To waste
To contract
To tell a lie
To go
To make greesy
To cover, to screen
To wash
To weigh
To throw up
To sink, to plunge
To grow
To send
साफ करना
To heap up
ऊँचा बढ़ना
To split
तोड़ना
To be a helper, to स्थापित करना
establish
To protect
To direct
To foster, to serve
ऊँचा बढ़ना
फेंकना
स्पष्ट बोलना
इकठ्ठा करना
मापना
to मापना, सर्जन
करना
फेंकना
जोड़ना
ढकना
पीड़ा पहुँचाना निवास करना
परोसना
बेकार करना
सकुंचित करना
झूठ बोलना
जाना चिकना करना ढंकना, ढक्कन लाना
तोलना
ऊपर फेंकना
डूबना, निविष्ट
करना
वृद्ध होना भेजना
रक्षा करना प्ररेणा देना नौकरी करना, सेवा
Page #636
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
619
करना 1702 सान्त्वण सामप्रयोगे
To consoll, to tell शान्त करना, प्रिय good words to
वचन करना 1703 धूशण कान्तीकरणे
To adron, to decorate शोभित करना, 1704 श्लिषण श्लेषणे।
To embrace, to join गले लगना, जोड़ना 1705 लूषण हिंसायाम्।
To hurt, to kill हिंसा करना, मारना 1706 रुषण रोषे।
To be angry
क्रोध करना 1707 प्युषण उत्सर्गे
Themit toghandon दान देना. त्याग
करना 1708 पसुण नाशने
To destroy
नष्ट करना 1709 जसुण रक्षणे
To proect
रक्षा करना 1710 पुंसण अभिमर्दने
To crush, to grind, to कुचलना, पिसना,
trouble, to punish कष्ट देना, दण्ड देना 1711 ब्रुस 1712 पिस हिंसायाम्।
To hurt, to kill हिंसा करना 1713 जस 1714
बर्हण 1715 ष्णिहण स्नेहने
To be greesy, to love चिकना करना, प्रेम
करना 1716 म्रक्षण म्लेच्छने
To speak indistinctly अस्पष्ट बोलना 1717 भक्षण
To eat
खाना 1718 पक्षण परिग्रहे
To seize loosely, to बन्द करना, लेना,
take, to accept स्वीकार करना 1719 लक्षीण दर्शनाङ्कयोः। अङ्क चिह्नम्। To show
दिखाना 1720 ज्ञाण्
मारणादिनियोजनेषु। मारणादयो To beat, to please, to मारना, खुश करना, मारणतोषणनिशानेज्ञश्चेतिसूत्रोक्तास्तेषु sharpen
तीक्ष्ण करना नियोजे चार्थे जानातिश्चुरादिः। 1721 च्युण सहने
To endure
सहन करना 1722 भूण अवकल्कने। अवकल्कनं मिश्रीकरणम् To mix
मिश्रण करना 1723 बुक्कण भषणे।
To bark at
भाषण देना 1724 रक 1725 लक आस्वादने
To taste
चाटना 1726 रग 1727
लगण 1728 लिगुण चित्रीकरणे
To paint, to inflict a चित्रित करना, noun according to its
gender 1729 चर्चण अध्ययने
To study
अध्ययन करना 1730 अञ्चण् विशेषणे। विशेषणमतिशयः
To qualify, to clear विशिष्ट होना, स्पष्ट
अदने
Page #637
--------------------------------------------------------------------------
________________
620
1731
मुचण्
1732 अर्जण्
1733
भजण
1734 चट 1735 स्फुटण्
1736
घटण्
1737 कणण्
1738
यतणू
1738
2
1739
1740
1741
1742
1743
1744
1745
1746
निरश्च
शब्दण्
षूदण्
आङः क्रन्दण्
ष्वदण्
आस्वदः सकर्मकात्
मुदण्
शृधण्
कृपण्
1747
जभुण्
1748 अमण्
1749 चरण्
1750 पूरण्
1751 दलण्
1752
1754 पषण्
1755
पुषण्
दिवण 1753 पश
प्रमोचने ।
प्रतियत्रे । प्रतियत्नः संस्कारः ।
विश्राणने । विश्राणनं विपचनम्
भेदे
संघाते
निमीलने
निकारोपस्कारयोः । निकारः खेदनम्
प्रतिदाने । निरः परो यति प्रतिदानेऽर्थे to return
चुरादिः ।
।
उपसर्गाद् भाषाविष्कारयोः भाषणे To sound to speak भाषणम् । भाषे आविष्कारे। भाषे आविष्कारे चार्थे शब्द इत्ययं धातुरुपसर्गात्परशुरादिः । आसवणे
भवति
संसर्ग
प्रसहने प्रसहनमभिभवः ।
नाश
रोगे
सकर्मकाण्णिजू
असंशये
आप्यायने
विदारणे
To release, to throw To arrange
To cook, to give
To break, to pierce
To collect
To be blind
To close, to torture, to reflect
To mix, to blend To strive to defeat
to win अवकल्कने। अवकल्कनं मिश्रीकरणं To mix to be strong
सामर्थ्यञ्च
अर्दने
बन्धने
धारणे
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
करना,
छोड़ना, फैकना
To excite, to ooze, to drop
सातत्ये। आङः परः क्रन्द इत्ययं to cry to lament to चिल्लायाना, रोधन धातुः सातत्येऽर्थे चुरादिः ।
be permanent
करना, स्थाई होना
आस्वादने
To taste
चाटना
आपूर्वात्स्वदतेः
To destroy
To be ill
To think
To fill
To tear
To trouble
To bind
To nourish
क्रमबद्ध करना
पकाना देना
तोड़ना, भेदना
इकट्ठा करना अन्धा होना
बन्द करना, कष्ट देना, प्रतिबिम्बित
करना
वापस देना
शब्द करना, बोलना
उकसाना, टपकना, गिराना
मिश्रण करना
अभिभूत करना,
हराना, जितना मिश्रण करना,
समर्थ होना
नष्ट करना
रोगी बनना
विचार करना
भरना
फाड़ डालना
पीड़ा देना
बाँधना
पोषण करना
Page #638
--------------------------------------------------------------------------
________________
अलङ्कारे
उत्क्षेपे
1764
असने
धात्वर्थसूची
621 1756 घुषण विशब्दने। विशब्दनं विशिष्टशब्दकरणं To sound
उद्घोषणा करना नानाशब्दनं वा। 1757 भूष 1758 तसुण्
To decorate
शुशोभित करना 1759 जसण ताडने
To beat
ताडना देना 1760 त्रसण वारणे
To move, to hold, to भ्रमण करना, धारण oppose, to push करना, विरोध
करना, धक्का देना 1761 वसण स्नेहच्छेदावहरणेषु
To cut, to make काटना, चिकना greesy, to kill, to करना, हिंसा करना, beat
मारना 1762 ध्रसण
To throw
उछालना 1763 ग्रसण् ग्रहणे
To devour
ग्रहण करना लसण शिल्पयोगे
To exercise at art कारीगरी करना 1765 अर्हण पूजायाम्
To worship
पूजा करना 1766 मोक्षण
To throw
उछालना 1767 लोक 1768 तर्क भासार्थाः। लोकृतर्कादयः स्वार्थे To look at, to shine प्रकाशित करना, 1769 रघु 1770 णिचमुत्पादयन्ति भासार्थाश्च
चमकना लघु 1771 लोच 1772 विछ 1773 अजु 1774 तुजु 1775 पिजु 1776 लजु 1777 लुजु 1778 भजु 1779 पट 1780 पुट 1781 लुट 1782 घट 1783 घटु 1784 वृत 1785 पुथ 1786 नद 1787 वृध 1788 गुप 1789 धूप 1790 कुप 1791 चीव 1792 दशु 1793 कुशु 1794 त्रसु 1795 पिसु 1796 कुसु 1797 दसु 1798 वर्ह 1799
Page #639
--------------------------------------------------------------------------
________________
622
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
वृहु 1800 वल्ह 1801 अहु 1802
वहु 1803 1804 1805 1806 वञ्चिण् 1807 ___ कुटिए 1808 मदिण्
युणि गृणि
जुगुप्सायाम्। विज्ञाने प्रलम्भने। प्रलम्भनं मिथ्याफलाख्यानम् प्रतापने तृप्तियोगे
1809
विदिण
चेतनाख्याननिवासेषु
To censure
निन्दा करना To know
जानना To deceive
ठगना To warm
तपाना To be satisfied or तृप्त होना delighted To declare, to dwell, घोषणा करना, to exprience
कहना, अनुभव
करना To be proud
अभिमान करना To see, to behold देखना, निरूपण
करना To suffer pain, to पीड़ित होना, रोधन lament, to screech, to करना, चिल्लाना, squeat To conceive
कल्पित करना
1810 1811
मनिण बलि 1812 भलिण
स्तम्भे। स्तम्भो गर्वः आभण्डने। आभण्डनं निरूपणम
1813
दिविण
परिकुजने
1814
वृषिण
शक्तिबन्धे।
giftnaet: प्रजननसामर्थ्यम्। शक्तिसम्बन्धश्च अवक्षेपे आलोचने
1815
कुत्सिण लक्षिण
1816
To abuse, to revile निन्दा करना To discriminate योग्य-अयोग्य पर between right and विचार करना wrong To hurt, to kill हिंसा करना
1817
1818 हिंसायाम्।
हिष्कि किष्किण् निष्किण्
1819
परिमाणे
1820
तर्जिण
संतर्जने
1822 1823 1824 1825 1826 1827 1828
कूटिण् त्रुटिण् शठिण कूणिण् तूणिण भ्रूणिण् चितिण वस्ति 1829 गन्धिण्
अप्रमादे छेदने ग्लाघायाम्। सङ्कोचने पूरणे आशायाम्। संवेदने अर्दने
To weigh, to तोलना, मापना measure To threaten, to scold, डराना, तर्जना to deride
करना, To be active क्रियाशील होना To cut
काटना To praise
प्रशंसा करना To contract
संकुचित करना To fill
भरना To hope
आशा रखना To experience अनुभव करना To torment
दुःख देना
है
Page #640
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
623
1830
1836
1837
1838 1839 1840
1841
मन्त्रिण
1842
दंशिण
1843 1844 1845 1846
दंसिण
डपि 1831 डिपि संघाते
To collect
इकट्ठा करना 1832 डम्पि 1833 डिम्पि 1834 डम्भि 1835 डिम्भिण् स्यमिण वितर्के
To consider, to तर्क देना, reflect
प्रतिबिम्बित करना शमिण आलोचने
To see, to देखना, आलोचना discriminate
करना कुस्मिण
कुस्मयने। कुत्सितं स्मयनं कुस्मयनम्। To smile improperly बुरा हँसना गूरिण उद्यमे
To throw
फेंकना तन्त्रिण
कुटुम्बधारणे। कुटुम्बः परिवारः। To maintain the परिवार का पोषण उपलक्षणञ्चैतत्
family
करना गुप्तभाषणे
To talk privately गुप्त बात करना ललिण् ईप्सायाम्।
To fondle
इच्छा करना स्पशिण ग्रहणश्लेषणयोः
To perform
ग्रहण करना दशने
To bite
डंक मारना दर्शने च। चकाराद् दशने
To bite, to see डंक मारना, देखना भर्त्तिण सन्तजने
To abuse
निन्दा करना यक्षिण पूजायाम्
To worship
पूजा करना अङ्कण् लक्षणे
To mark
चिह्नित करना ब्लष्कण् दर्शने
To see सुख 1851 दु:खण् तक्रियायाम्। सुखनं दुःखनञ्च To be happy, to be सुख भोगना, दु:ख तक्रिया
unhappy
भोगना अङ्गण पदलक्षणयोः
To mark or stamp चिह्नित करना,
with पापकरणे
To commit a sin पाप करना रचण् प्रतियत्ने
To arrange
रचना करना सूचण् पेशन्ये
To pierce, to betray, भेदना, धोखा देना, to intimate, to spy सूचना देना,
जासूसी करना भाजण पृथक्कर्मणि।
To separate
अलग करना सभाजण प्रीतिसेवनयोः।
To please, to serve प्रेम करना, सेवा
करना लज 1859 लजुण प्रकाशने
To shine, to be चमकना, प्रकाशित manifest
करना कूटण दाहे ।
To burn
जलाना पट 1862 वटण् ग्रन्थे। ग्रन्थो वेष्टनम्
To twist round गोल लपेटना
1847 1848 1849 1850
देखना,
1852
अघण
1853 1854 1855
1856 1857
1858
1860 1861
Page #641
--------------------------------------------------------------------------
________________
624
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
1863 1864 1865 1866 1867
1869 1870
1871
1872
1873
भेदे
1874 1875 1876
खेटण भक्षणे
To eat
खाना खोडण क्षेपे
To throw
फेंकना पुटण संसर्गे
To accompany
साथ करना वटुण विभाजने
To divide
विभाजित करना शठ 1868 श्वठण सम्यम्भाषणे
To speak well अच्छी प्रकार से elegantly
कहना दण्डण् दण्डनिपाते
To punish
दण्ड देना व्रण गात्रविचूर्णने
To hurt, to wound हिंसा करना, पीड़ा
पहुँचाना वर्णण
वर्णक्रियाविस्तारगुणवचनेषु। To relate, to extol, to वर्णन करना, वर्णक्रिया वर्णनं वर्णकरणं वा। colour
विस्तार करना, रंगों विस्तारे वर्णनेयम्। गुणवचनं स्तुतिः
का वर्णन करना शुकाधुक्तिर्वा पर्णण हरितभावे
To make green or हरित करना
verdant कर्णण
To pierce, to bore भेदना, छेदन करना तूणण संकोचने
To contract
संकुचित करना गणण संख्याने
To count
गिनना कुण 1877 गुण आमन्त्रणे आमन्त्रणं गूढोक्तिः। To go
जाना 1878 केतण् पतण गतौ वा। वाशब्दो To go
जाना णिजदन्तत्वयोर्युगपद्विकल्पार्थः वातण गतिसुखसेवनयोः
To go, to enjoy जाना, प्रसन्न होना कथण् वाक्यप्रबन्धे
To tell
कहना श्रन्थण दौर्बल्ये
To be weak
दुर्बल होना द्वैधीकरणे
To divide
विभाजित करना गदण् गर्जे। गर्जो मेघशब्दः
To thunder
गर्जना करना अन्धण् दृष्ट्युपसंहारे
To make blind
अन्धा करना स्तनण गर्जे। ग| मेघशब्दः
To thunder
गर्जना करना ध्वनण् शब्दे
To sound
शब्द करना चौर्ये
To steal
चोरी करना ऊनण परिहाणे
To lose
कमी होना कृपण दौर्बल्ये
To be weak
दुर्बल होना रूपण रूपक्रियायाम्।
रूपक्रिया To fashion, to सुसज्जित होना, मंच राजमुद्रादिरूपस्य करणम्
represent on the पर प्रतिनिधित्व stage, to feign
करना, क्षप 1893 लाभण प्रेरणे
To send, to miss भेजना, प्रेरणा करना
1879
1880
1881
1882
1883
छेदण
1884
1885
1886 1887 1888
स्तेनण
1889
1890 1891
1892
Page #642
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
625
-
1894 1895
1896 1897 1898
भामण गोमण सामण श्रामण स्तोभण व्ययण सूत्रण
1899
1900
प्रस्रवणे
1901 1902
मूत्रण पार 1903 तीरण
1904 1906
कत्र 1905 गात्रण चित्रण
1907 1908 1909 1910
छिद्रण मिश्रण वरण
स्वरण
क्रोधे
To be angry
क्रोधित होना उपलेपने
To anoint, to plaster लिपना सान्त्वने। सान्त्वन प्रीणनम्
To console, to please खुश करना आमन्त्रणे
To invite
आमंत्रण देना श्लाघायाम्
To praise
प्रशंसा करना वित्तसमुत्सर्गे। वित्तसमुत्सर्गस्त्यागः। To spend
खर्च करना विमोचने। विमोचनं मोचनाभावो To twist or sew Dथना ग्रन्थनमिति यावत्।
together
To make water पेशाब करना कर्मसमाप्तौ।
To accomplish a कार्यपूर्ण करना
work शैथिल्ये
To be weak
कमजोर होना चित्रक्रियाकदाचिद्दष्ट्योः।
To draw (a picture), चित्र बनाना, देखना
to see भेदे
To make a hole छेद करना संपर्चने। सम्पर्चनं श्लेषः।
To mix
मिश्रण करना ईप्सायाम्।
To ask for, to choose इच्छा करना आक्षेपे
To blame, to censure आरोप देना, निन्दा
करना दौर्बल्ये
To be weak
दुर्बल होना To sport, to blame क्रीड़ा करना, निन्दा
करना संख्यानगत्योः।
To count, to go गिनना, जाना उपधारणे। उपधारणमभ्यास: परिचयो To form a habit, to प्रवृत्ति बनाना,
form an acquaitance परिचय करना उपदेशे
To advise
उपदेश देना लवनपवनयोः।
To reap (corn) काटना, साफ करना समाघाते। समाघातो विभाजनम To purify
शुद्ध करना अनुपसर्गः। धातुरनुपसर्गोऽदन्तो णइचमुत्पादयन्ति मार्गणे। मार्गणं शोधनम्
To seek
अन्वेषण करना क्षान्तौ। क्षान्तिस्तितिक्षा
To endure
सहन करना आस्वादनस्नेहनयोः
To taste, to love, to स्वाद लेना, प्रेम moisten
करना, गीला करना उपसेवायाम्।
To serve
सेवा करना आच्छादने
To cover, to clothe
ढकना, कल्कने। कल्कनं दम्भः
To make a pretext
बहाना ढूँढना
1911 1912
शारण कुमारण
क्रीडायाम्
कलण
1913 1914
शीलण
1915 1917 1918 1919
वेल 1916 कालण् पल्यूलण् अंशण
पषण
1920 1921 1922
गवेषण मृषण रसण
1923 1924 1925
वासण् निवासण चहण
Page #643
--------------------------------------------------------------------------
________________
626
1925
चहण्
1926
महण्
1927
रहण
1928
रहुण्
1929
स्पृहणू
1930
रुक्षण्
1931
मृगणि
1932 अर्थणि
1933
1934
1935
1937
1938
1939
1940
1941
1942
1943
1944
1951
1952
1953
पदणि
संग्रामणि
शूर 1936 वीरणि
1954
1955
1956
सत्रणि
स्थूलणि
गर्वणि
गृहणि
कुहणि
1945
प्रीगण्
1946
धूग्ण्
1947 वृग्ण्
1948
नृण्
1949
चीक 1950 शीकण्
युजण्
लण्
मीण
मार्गण्
पृचण्
रिचण्
वचण्
अर्चिण्
हर्जेण्
कल्कने कल्कर्न दम्भः
पूजायाम् ।
त्यागे
गतौ
ईप्सायाम्।
पारुष्ये
अन्वेषणे
उपयाचने
गतौ
युद्धे
विक्रान्ती
संदानक्रियायाम् ।
परिवृंहणे । परिवृंहणं पीनत्वम् ।
माने
ग्रहणे
विस्मापने
संपर्चने
द्रवीकरणे
मतौ। मतिर्मननम्।
तर्पणे
कम्पने
आवरणे
वयोहानौ
आमर्षणे
अन्वेषणे
संपर्चने
वियोजने च । चकारात्सं पर्चने
भाषणे
पूजायाम् ।
वर्जने
To make a pretext
To worship
To abandon
To go
To desire for
To be harsh
To seek for
To beg for
To go
To fight
To be powerful to
make
vigorous
exertions
To practise charity
To be fat
To be proud
To take
To
deceive
To mix
To liquidify
To think, to reflect
surprise,
To please
To shake
To cover
To grow old
To suffer to touch
to be impatient
To seek for
To mix
To separate, (to mix)
To speak
To worship
To avoid
धातुरत्नाकर प्रथम भाग
बहाना ढूँढना
पूजा करना
त्याग करना
जाना
इच्छा करना
कठोर होना अन्वेषण करना
माँगना
जाना
लड़ना
पराक्रमी होना,
दान देना मोटा होना
गर्व करना
ग्रहण करना
to आश्चर्यचकित
करना, मूर्ख बनाना मिश्रण करना
प्रवाही करना
सोचना, मनन
करना
खुश करना
हिलाना
ढकना
वृद्ध होना
सहन करना, स्पर्श
करना, सहन न
करना
अन्वेषण करना
मिश्रण करना
अलग करना,
मिश्रण करना
कहना
पूजा करना
त्याग करना
Page #644
--------------------------------------------------------------------------
________________
धात्वर्थसूची
627
1957
मृजौण्
बाँधना
1958 1959 1961 1963
कठुण श्रन्थ 1960 ग्रन्थण क्रथ 1962 अदिण श्रथण
1964 1965 1966
वदिण् छदण् आङ: सदण्
1967
दण्
संदीपने
श्रद्धाघाते
1968 शुन्धिण 1969 तनूण 1969.2 उपसर्गाद् 1970 मानण् 1971
तपिण 1972 तृपण
शौचालङ्कारयो।
To purify, to शुद्ध करना, decorate
सुशोभित करना शोके
To grieve for
शोक करना संदर्भे। संदर्भो बन्धनम्
To bind हिंसायाम्।
To kill
हिंसा करना बन्धने च। चकारार्द्धिसायाम्। To hunt, to kill, to हिंसा करना, मारना,
bind
बाँधना भाषणे
To speak
कहना अपवारणे (अपवारणमाच्छादनम्) To cover
ढकना गतौ। आङः परः सद इत्ययं Togo
जाना धातुर्गतावर्थे युजादिः
To kindle, to burn, to उतेजित करना, shine
जलाना, चमकना शुद्धौ
To purify
शुद्ध करना To lose faith
विश्वास खोना दैये। उपसर्गपूर्वस्तनूदैयेऽर्थे युजादिः To be long दीर्घ होना पूजायाम्
To adore, to worship पूजा करना To burn
जलाना प्रीणने
To please, to satisfy प्रसन्न करना, संतुष्ट
करना लम्भने। लम्भन प्राप्तिः
To obtain
प्राप्त करना भये
To fear
डरना क्षेपे। क्षेपः प्ररणम्
To discharge, to फेंकना, उत्तेजित excite, to cast, to go करना, डालना,
जाना तितिक्षायाम्
To suffer
सहन करना असर्वोपयोगे।
To leave as a शेष बचना, असर्वोपयोगोऽनुपयुक्तत्वम्
remainder, to share विशेषित करना अतिशये। अतिशय उत्कर्षः। विपूर्वः शिषिरतिशये युजादिः परितर्कणे
To reason, to be तर्क करना, सन्तुष्ट satisfied
होना प्रसहने। प्रसहनभमिभवः
To insult, to assail निन्दा करना, हराना हिंसायाम्।
To hurt, to kill हिंसा करना, मारना विनिन्दने
To censure
निन्दा करना मर्षणे
To endure
सहन करना
1973 1974 1975
आप्Mण् दृभैण् ईरण
1976 1977
मृषिण शिषण
1977- विपूर्वः
1978
जुषण
1979 1980 1981 1982
घृषण हिसुण गर्हण षहण
Page #645
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #646
--------------------------------------------------------------------------
________________