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धातुरत्नाकर प्रथम भाग
872 ग्लहौङ् 873 बहुङ् 874 महुङ् 875 दक्षि
ग्रहणे वृद्धौ शैघ्रये च। शैघ्रयं शिघ्रता चकारावृद्धौ संदीपनक्लेशनजीवनेषु।
To take To grow To be quick, to grow
लेना बढ़ना शीघ्रता करना, बढना बढ़ाना, केश करना, प्राण धारण करना
876
धुक्षि 877 धिक्षि
To encourage, to quarrel, to live
वृक्षि शिक्षि
878 879 880 881
भिक्षि
दीक्षि
वरणे। विद्योपादाने। याञ्चायाम् मोण्डयेज्योपनयन नियमव्रतादेशेषु।। मोण्ड्यं वपनम्। इज्या यजनम्। उपनयनमौजी बन्धः। नियमः संयमः व्रतादेशः संस्कारादेशः
स्वीकार करना सीखना मांगना मुण्डन कराना, यज्ञ करना, नियम व्रतादि में यज्ञोपवीत धारण करना
ईक्षि
श्रिम्
882 883 884 885
दर्शने सेवायाम प्रापणे
णीग् हंग
देखना सेवा करना ले जाना हरण करना
हरणे
To accept To learn To beg To root out hairs from head, to sacrifice, to invest, wish sacred thread, to act according to sacred books 'To see To serve To carry. To take away By force To nourish To hold To do To speak indistinctly To go, to sound indistinctly To beg To prepare food To shine To serve To colour To tell, to beg
886 887
भरणे धारणे
धृग डुकृङ् हिक्की अञ्चूग्
करणे अव्यक्ते शब्दे गतौ च। चकारादव्यक्ते शब्दे
890
891 डुयाग 892 डुपचींष् 893 राजृग् 894 टुभ्राजि 895
भजी 896 रर्जी 897 रेट्टा
याञ्चायाम् पाके दीप्तौ सेवायाम् रागे परिभाषणयाचनयोः
पोषण करना धारण करना करना अस्पष्ट शब्द करना जाना, अस्पष्ट शब्द करना मांगना पकाना चमकना सेवा करना रंगना भाषण करना, मांगना जाना, जानना, सजग होना, हानिलाभ का विचार
898
वेणग्
गतिज्ञानचिन्तानिशाम . नवादित्रग्रहणेषु। वादित्रस्य वाद्यभाण्डस्य वादनाय ग्रहणम्
To go, to know, to care for, to contemplate, to take musical instrument
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