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________________ 12 क्रिया के पौनःपुन्य अर्थ में हेमचन्द्र भी यङ् प्रत्यय का विधान करते हैं । यङ् में ङ् का अनुबन्ध आत्मनेपद के लिए है। यङ् में भी सन् के समान धातुओं को द्वित्व हो जाता है। पाणिनिव्याकरण के समान हैमव्याकरण में भी यङ्लुगन्त धातुओं की निष्पत्ति - प्रक्रिया प्रदर्शित की गई है। यह भी क्रिया के पौनःपुन्य अर्थ को ही प्रतिपादित करता है । यङ्लुगन्त धातुओं से सर्वदा परस्मैपदी प्रत्यय ही होते हैं। हेमचन्द्र ने नामधातुओं का भी निरूपण किया है। नामधातुओं में काम्य, क्यङ् णिच्, क्विप्, तथा क्यन् प्रत्ययों का विधान किया गया है। हेमचन्द्र ने ह्यस्तनी, अद्यतनी, तथा क्रियातिपत्ति की स्थिति में धातु के आदि में अट् आगम का विधान किया है। पाणिनि के समान हेमचन्द्र लुङ् लकार में च्लि प्रत्यय करके उसके स्थान में अङ् क्स्, चङ् तथा चिण् आदेश का विधान नहीं करते हैं। अपितु उन्होंने सीधे ही सिच् आदि प्रत्ययों की व्यवस्था की है । हैमव्याकरण के चतुर्थ अध्याय के अन्तिम पाद में धातुओं में होने वाले परिवर्तनों तथा धातु के स्थान में होने वाले आदेशों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। धातुरूपों की निष्पत्ति प्रक्रिया में उक्त विवरण अतिमहत्त्वपूर्ण है। हेमचन्द्र ने अपने व्याकरणतन्त्र में धातुओं में इट्-अनिट् की व्यवस्था के लिये भी एक विस्तृत प्रकरण निर्धारित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001920
Book TitleDhaturatnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLavanyasuri
PublisherRashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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