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हेमचन्द्र के धातुपाठ की एक अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि उन्होंने धातुपाठ में आए हुए प्रत्येक धातु के अन्त में एक अनुबन्ध रखा है। उस अनुबन्ध को देखकर धातुपाठ का अध्येता अच्छी तरह से जान लेता है कि कौन सी धातु किस गण की है। हेमचन्द्र ने ऐसे आठ अनुबन्धों का प्रयोग किया है। ये अनुबन्ध व्यंजन के रूप में ही है। आठ अनुबन्ध आठ भिन्न-भिन्न गणों को इंगित करते हैं। एक गण की धातुओं में उन्होंने कोई अनुबन्ध नहीं पढ़ा है। ये सभी धातुएँ भ्वादिगण की धातुएँ हैं। पाणिनि के धातुपाठ में भ्वादिगण प्रथम गण है जबकि हेमचन्द्र के धातुपाठ में यह अन्तिम गण है। हेमचन्द्र के द्वारा उक्त आठ अनुबन्ध निम्न हैं
अदादयः कानुबन्धाश्चानुबन्धा दिवादयः । स्वादयष्टानुबन्धास्तानुबन्धास्तुदादयः।। रुधादयः पानुबन्धाः यानुबन्धास्तनादयः। क्यादयः शानुबन्धा णानुबन्धाश्चुरादयः ।।
- हैमलघुप्रकिया अर्थात् - १. जिन धातुओं के अन्त में क् अनुबन्ध पढ़ा गया है वे धातुएँ अदादिगण की धातुएँ हैं। २. जिन धातुओं के अन्त में च् अनुबन्ध पढ़ा गया है वे दिवादिगण की धातुएँ हैं। ३. जिन धातुओं के अन्त में ट् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे धातुएँ स्वादिगण की हैं। ४. जिन धातुओं के अन्त में त् अनुबन्ध पढ़ा गया है, वे तुदादिगण की धातुएँ हैं। ५. जिन धातुओं के अन्त में प् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे रुधादिगण की धातुएँ हैं। ६. जिन धातुओं के अन्त में य् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे धातुएँ तनादिगण की हैं। ७. जिन धातुओं के अन्त में स् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे धातुएँ क्रियादिगण की हैं। ८. जिन धातुओं के अन्त में न् अनुबन्ध में पढ़ा गया है वे धातुएँ चुरादिगण की हैं।
यह हेमचन्द्राचार्य की नूतन परिकल्पना है। संस्कृत व्याकरण के अन्य धातुपाठों में यह परिकल्पना कहीं भी दिखाई नहीं देती।
धातुरूपों की निष्पत्ति-प्रक्रिया में हेमचन्द्र कातन्त्र व्याकरण के ऋणी हैं। कातन्त्र व्याकरण की शैली में ही उन्होंने पाणिनिविहित लट् आदि लकारों के स्थान में 'वर्तमान' आदि अन्वर्थ संज्ञाओं का विधान किया है। वे अपनी व्याकरण में लट् लकार के लिए 'वर्तमान', लिट् लकार के लिए 'परोक्ष', लुट् लकार के लिए 'श्वस्तनी', लट् लकार के लिए 'भविष्यन्ती', लोट् लकार के लिए 'पंचमी', लङ् लकार के लिए 'ह्यस्तनी', विधिलिङ् के लिए 'सप्तमी', आशीर्लिङ् के लिए 'आशी:', तथा लुङ् लकार के लिए 'क्रियातिपत्ति' शब्द का प्रयोग करते हैं। पाणिनि द्वारा विहित लेट् लकार के वर्ण्यविषय को हैम-व्याकरण में छोड़ दिया गया है। क्योंकि लेट् लकार का विषय मात्र वैदिक भाषा है। पारिभाषिक शब्दों के रूप में लट् आदि के लिए 'वर्तमान' आदि का शब्दों या संज्ञाओं का प्रयोग इनके अर्थबोध को अधिक सुकर व अधिक सुस्पष्ट बना देता है। पाणिनि को अष्टाध्यायी में लकार आदि के अर्थों का प्रतिपादन करने के
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