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धातुरत्नाकर प्रथम भाग
598 प्लुं रुंङ्
599
To kill, to go
मारना, जाना
600 601 602
पूङ मूङ् धूङ मेङ् दें 605 3ङ्
रेषणे च। चकाराद्गतौ रेषणं हिंसाशब्दः। पवने। पवनं नीरजीकरणम बन्धने अविध्वंसने प्रतिदाने। प्रतिदान प्रत्यर्पणम् पालने गतौ
शुद्ध करना बाँधना धारण करना वापिस करना रक्षा करना
603
604
606
श्यङ्
जाना
607
वृद्धौ
प्यङ् 608 षकुङ् 609 मकुङ् 610 अकुङ 611 शीकृङ् 612 लोकृङ् 613 श्लोकृङ्
To purify, cleanse To bind To hold To return To protect To go To grow To be crooked To adorn To mark To sprinkle To see To unite, to collect
कौटिल्ये मण्डने लक्षणे। लक्षणं चिन्हम् सेचने। दर्शने। संघाते। संघातः संहननं संहन्यमानश्च
बढ़ना टेढा होना अलंकृत करना चिह्नित करना छिड़कना देखना एक होना, इकठ्ठा करना प्रसन्नता से बोलना, अधिक बोलना शंका करना
614
देकृङ् 615 घेकृङ्
शब्दोत्साहे। शब्द स्योत्साहऔद्धत्यं वृद्धिश्च शङ्कायाम्। शङ्का संदेहः पूर्वस्यार्थः द्वितीयस्य त्रासश्च लौल्ये। लौल्यं गर्धश्चापलञ्च
To speak happily To speak more To doubt
रेकृङ् 617 शकुङ्
618
ककि
कुकि 620 वृकि चकि
आदाने तृप्तिप्रतीघातयोः
To long for, to be unfirm To take To be satisfied, to beat To go
लोलुपता करना, चञ्चल होना ग्रहण करना संतुष्ट होना, प्रतिघात करना
621
622
गतौ लङ्घिर्भोजन- निवृत्यथोंऽपि
जाना
ककुङ् 623 श्वकुङ् 624 त्रकुङ् 625 श्रकुङ, 626 श्लकुङ् 627 ढौकृङ्, 628 नौकृङ् 629 ष्वष्कि 630 बस्कि 631 मस्कि 632 तिकि 633 टिकी 634 टीकृङ् 635 सेकृङ् 636
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