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चित्र भी दर्शनीय है।
कागज पर चित्रित प्राचीनतम पाण्डुलिपि कल्पसूत्र, कालकाचार्य कथानक, यशोधरचित्र, शान्तिनाथ चरित, आदिपुराण, तत्त्वार्थसूत्र, भक्तामर, महापुराण, सुगन्ध दशमी कथा आदि ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं, जिनमें विभिन्न शैलियों का उपयोग किया गया है। इनमें सोने व चांदी की स्याहियों का उपयोग मिलता है। जिसे समृद्ध शैली कहा गया है। कुछ प्रतियों में पश्चिमी चित्रण शैली का भी प्रयोग हुआ। गुजरात, राजस्थान और कर्नाटक में इन शैलियों का प्रयोग अधिक मिलता है।
ताड़पत्रों और कागजों पर लिखी प्रतियों को दो काष्ठ की पट्टियों से सुरक्षित रखा जाता है। इन पट्टियों पर भी चित्रकला के नमूने मिलते हैं। जैसलमेर के भण्डार में ओघनियुक्ति की पटलियों पर विद्यादेवियों की मूर्तियों का अंकन, महावीर का आसन, भक्त-दम्पति का चित्रण, पशु-पक्षियों आदि का चित्रण अजन्ता-ऐलोरा की परम्परा को लिये हुए है। वादिदेव और कुमुदचंद्र के बीच हुए शास्त्रार्थ को भी यहाँ एक प्रति में दर्शाया गया है।
पटचित्रों की भी परम्परा का उल्लेख आदि पुराण, हरिवंश पुराण आदि ग्रन्थों से मिलती हैं। चिन्तामणि नामक परचित्र पर धरणेन्द्र-पदमावती आदि के चित्र तथा एक संगीत पटचित्र पर पार्श्वनाथ, समवसरण आदि के चित्र अंकित हैं । रंगावाले और धूलि चित्रों का भी उल्लेख हुआ है। विधान काल में माडन इसी शैली में बनाये जाते है।
काष्ठ शिल्प
काष्ठ शिल्प के लिए गुजरात और राजस्थान का नाम अधिक है। वहाँ के उष्ण वातावरण के कारण इस कला को विशेष प्रश्रय मिला। काष्ठ शिल्प का निर्माण 17वीं से 19वीं शती के बीच हुआ। इसका उपयोग आवास-गृह के अलंकरण तथा मूर्ति और मन्दिर के निर्माण में देखा जाता है। कारंजा मन्दिर इसका उदाहरण है। इस शैली में स्तम्भों, महलों, गवाक्षों, द्वारों, छतों, तोरणों, भित्तियों आदि पर काष्ठ-कला का प्रदर्शन किया गया। कलाकारों में अष्टमंगल, पत्र-पुष्प अहमदावाद का शान्तिनाथ देरासर (1390 ई.) तथा पाटन का लल्लूभाई दन्ती का भवन देरासर उल्लेखनीय है। कहा जाता है कि महावीर के जीवनकाल में उनकी चन्दनकाष्ठ प्रतिमा बनाई गई थी, जो आज उपलब्ध नहीं है।
अभिलेखीय व मुद्राशास्त्रीय शिल्प
अभिलेखों तथा मुद्राओं पर भी चित्रांकन हुआ है। कंकाली टीला से प्राप्त आयागपट्ट (प्रथम शती) पर महिला-युगल का अंकन हुआ है। इसी तरह 132 ई. की सरस्वती मूर्ति भी वहाँ उपलब्ध होती है, जिसे प्राचीनतम जैन सरस्वती की मूर्ति के रूप में पहचाना गया है। अभिलेखों में गुप्तकाल का रामगुप्त अभिलेख, उदयगिरि, मथुरा,पभोसा,
श्रमण जैन संस्कृति और पुरातत्त्व :: 81
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