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सामान्य व्यवहार भी सम्भव नहीं है। अनेकान्तवाद सर्वत्र व्यापक है, इतना ही नहीं अपित अनेकान्तवाद को गुरु की उपमा दी गई है। गुरु जिस तरह से अज्ञान का नाशक एवं ज्ञानरूपी दीपक होता है, उसी प्रकार अनेकान्तवाद तत्त्वज्ञ के अज्ञान का नाशक एवं सम्यग्ज्ञान स्वरूपी दीपक का प्रकाश है। इसके विपरीत जो एकान्तवादी बनकर तत्त्व की खोज करने निकलता है, वह कभी भी सम्यक्त्व को प्राप्त नहीं होता है। अतः यहाँ अनेकान्तवाद को नमस्कार किया गया है। .
अनेकान्तवाद की व्याख्यादि करने से पूर्व हमें भारतीय दार्शनिक परम्परा का किंचित् स्वरूप जानना आवश्यक है। भारतीय दार्शनिक परम्परा में प्राचीन काल से ही सत् के स्वरूप को लेकर विभिन्न विचारधाराएँ प्रचलित रही हैं । सत् क्या है और उसका स्वरूप क्या है, -यह चिन्तन का विषय रहा है। "किसी ने सत् को नित्य माना है, तो किसी ने सत् को अनित्य माना है। किसी ने सत् को न नित्य और न अनित्य माना है, किसी ने तो यहाँ तक कह दिया कि सत् के स्वरूप का कथन करना सम्भव नहीं है। तब किसी ने कहा कि सत् नित्य और अनित्य दोनों स्वरूप है। जिन्होंने सत् को नित्य माना वे शाश्वतवादी कहलाए
और जिन्होंने सत् को अनित्य माना, वे उच्छेदवादी कहलाए। यह परस्पर विपरीत विचारधारा है। इसीलिए हमारे प्राचीनकाल के ऋषियों ने कहा है कि -एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति । अर्थात् एक ही सत् को विद्वान् भिन्न-भिन्न रूप से देखते हैं और उसके स्वरूप का कथन करते हैं। सत् का वास्तविक स्वरूप क्या रहा होगा, --यह एक बहुत ही बड़ा प्रश्न रहा है। सत् के स्वरूप के विषय में बहुत ही बड़ा रहस्य रहा ही है, किन्तु जब उसमें आग्रह जुड़ता है, तब यह प्रश्न और– भी जटिल बन जाता है। कोई यह कहने लगे कि सत् तो मात्र नित्य ही है, अनित्य सम्भव ही नहीं है और कोई यह करने लगे कि सत् अनित्य ही है, नित्य होना सम्भव ही नहीं। तब अनेक दार्शनिक प्रश्न उपस्थित हो जाते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है कि
य एव दोषाः किल नित्यवादे विनाशवादेऽपि समास्त एव। परस्परध्वंसिषु कण्टकेषु जयत्यधृष्यं जिनशासनं ते॥
अन्ययोग व्यवच्छेदिका-26 नित्य एकान्तवाद में जो दोष आते हैं, वे ही दोष अनित्य एकान्तवाद में समान रूप से आते हैं। जब शत्रु एक-दूसरे का विध्वंस करने में लगे रहते हैं, तब जिनशासन (अनेकान्तवादी शासन) विजयी होता है।
नित्यवादी सत् को नित्य सिद्ध करने में लगे हैं और अनित्यवाद का खंडन करते हैं। अनित्यवादी-क्षणिकवादी सत् को क्षणिक सिद्ध करने में लगे हैं और नित्यवाद का खंडन करने में लगे हैं। दोनों ही वादी परस्पर एक-दूसरे के पक्ष का खंडन करने में ही व्यस्त रहते हैं, किन्तु पदार्थ न तो सर्वथा सत् है, या न तो सर्वथा असत् है। पदार्थ सत् भी है और असत् भी है, अर्थात् वस्तु अनेकान्तात्मक है। जैनदर्शन के अनुसार प्रत्येक द्रव्य प्रति-क्षण उत्तर
190 :: जैनधर्म परिचय
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