Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 824
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'छन्दोविचिति', 1330 ई. के केशीराज का 'शब्दमणिदर्पण', 17वीं शताब्दी के भट्टाकळंक का 'शब्दानुशासन', गुणचन्द्र का 'छन्दसार' भाषाविज्ञान सम्बन्धी कृतियाँ है। इनके अलावा जैन कवियों द्वारा विरचित विज्ञान, गणित, वैद्य आदि क्षेत्रों से सम्बन्धित कई कृतियाँ उपलब्ध हैं। सैगोट्ट शिवमार का 'गजाष्टक', तीसरे मंगरस का 'सूपशास्त्र', साळ्व कवि का 'वैद्यसांगत्य', चन्द्रम का 'गणितसार', पद्मण्ण पंडित का 'हयसार', आदि महत्त्वपूर्ण माने गए हैं। 11वीं शताब्दी के श्रीधराचार्य द्वारा रचित 'जातकतिलक' कन्नड़ का प्रथम ज्योतिषग्रन्थ है। दूसरे नागवर्ण के 'शब्दस्मृति', 'भाषाभूषण', 'काव्यावलोकन', 'वस्तुकोश', छन्दोविचित कन्नड़ काव्य व्यासंग के सहायक व्याकरण, अलंकार, छन्द से सम्बन्धित हैं । शास्त्र पांडित्य, संकलनकौशल, प्रयोग नैपुण्य के साथ सूक्ष्म रसग्रहण शक्ति, समन्वय दृष्टिकोण से युक्त ये कृतियाँ महत्त्वपूर्ण मानी गयी हैं। आधुनिक युग में 20वीं सदी के कन्नड़ साहित्य ने पाश्चिमात्य साहित्य के प्रभाव से नया रूप धारण कर लिया। इस युग में भी जैन लेखकों व विद्वानों की सभी साहित्यिक प्रकारों में देन उल्लेखनीय है। सृजनशील साहित्य के दो जनप्रिय प्रकार हैं - उपन्यास व कथा (कहानी)। मिर्जि अण्णराय, जि. ब्रह्मप्पा आदि लेखकों ने जैन महापुरुषों के कथानक के साथ-साथ सामाजिक उपन्यासों की भी रचना की है। चामुंडराय, खारबेल, दानचिन्तामणि, रत्नाकर आदि के उपन्यास प्रसिद्ध ऐतिहासिक जैन साधकों से कन्नड़ वाचकों को परिचित कराते हैं। आचार्यों व अन्य धार्मिक व्यक्तियों का जीवन चित्रण 'चारित्र चक्रवर्ति' आदि कृतियों में किया गया है। प्राचीन कन्नड़ काव्यों को शास्त्रीय विधान में सम्पादित करके कई विद्वानों ने जैन साहित्य परम्परा को संरक्षित किया है। पंडितरत्न ए. शान्तिराजशास्त्री ने बाहुबलि का 'नागकुमार चरित', तीसरे मंगरस का 'नेमिजिनेश संगति' जैसे काव्यों का सम्पादन करके मौलिक प्रस्तावना लिखी है। डॉ. हं. प. नागराजय्या ने 'साळ्व भारत', 'धन्यकुमार चरिते', 'शान्तिपुराण', 'नागकुमार षट्पदि', चन्द्रसागरवर्णि के काव्यों को सम्पादित किया है। डॉ. एम. ए. जयचन्द्र ने इन्द्रदेवरस विरचित 'श्रीपालचरित', अज्ञात कवयित्री विरचित 'चन्दनांबिकेय कथे' आदि काव्यों को सम्पादित किया है। सुकुमार चरिते का संग्रह, चामुंडराय पुराण, भरतेश वैभव आदि काव्यों का सम्पादन डॉ. कमला हेपना द्वारा हुआ है। पंडित प. नागराजय्या ने जीवन्धर चरितेय संग्रह, अजितपुराण संग्रह आदि कृतियों की रचना की है। __ भाषान्तर क्षेत्र में इस युग में गणनीय साधना दिखायी देती है। पंडितरत्न ए. शान्तिराजशास्त्री द्वारा जिनसेनाचार्य के महापुराण (संस्कृत) अमितगति के धर्मपरीक्षा (संस्कृत) नेमिचन्द्राचार्य के द्रव्यसंग्रह (प्राकृत), मिर्जि अण्णराय द्वारा समयसार (प्राकृत), रत्नकरंडक श्रावकाचार (संस्कृत) भारतीय संस्कृति के जैनधर्मद कोड़गे (हिन्दी), रविषेण रामायण (संस्कृत), भुवनहळ्ळि डि. पद्मनाभशर्म द्वारा सर्वार्थसिद्धि (संस्कृत), कन्नड़ जैन साहित्य :: 815 For Private And Personal Use Only

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