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आदि के ग्रन्थों के विषयों से अनभिज्ञ मराठी पाठकों के समक्ष उन विषयों को उनकी भाषा में प्रस्तुत करने से हुआ है। ऐसा करते हुए कवियों ने कथावस्तु में परिवर्तन करना अनुचित समझा है। जनार्दन कवि नवरसों की निर्मिति की दृष्टि से शोक का प्रसंग प्रस्तुत करते हैं, तुरन्त इसे अपराध मानकर क्षमा याचना करते हैं। इन्होंने कथाओं को सर्वज्ञमुख से निर्गत तथा परम्परा प्राप्त होने से इनकी शुद्धता बनाए रखना अपना दायित्व माना है।
मराठी जैन साहित्य विविध विधाओं में प्राप्त होता है। इनमें पुराण, चरित और कथाकाव्यों के रूप में प्राप्त प्रबन्धात्मक काव्य प्रमुख हैं। पौराणिक महाकाव्यों में गुणकीर्तिकृत पद्मपुराण, जिनदासकृत हरिवंशपुराण, महीचन्द्रकृत आदिनाथपुराण व देवेन्द्रकीर्तिकृत कालिकापुराण, चरितकाव्यों में गुणदासकृत श्रेणिकचरित्र, जनार्दनकृत श्रेणिक चरित्र, नागो आया कृत जसोधरचरित्र, गुणनन्दीकृत जसोधरपुराण, मेघराज का जसोधररास, दामापण्डित का जम्बूस्वामीचरित, वीरदासकृत सुदर्शनचरित, जिनसागरकृत जीवन्धरपुराण उल्लेखनीय हैं। ये पौराणिक-चरितग्रन्थ पद्मपुराण, हरिवंशपुराण व आदि पुराण आदि प्रसिद्ध संस्कृत पुराणों के आधार पर विकसित तो हैं ही, पर इनके साक्षात् प्रेरणास्रोत ब्रह्म जिनदास द्वारा गुजराती में रचित क्रमश: रामायणरास, हरिवंशरास व आदिनाथरास हैं। ब्रह्म जिनदास राजस्थानी-हिन्दी के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। देवगिरि (मराठवाड़ा) में जनमे मराठी हरिवंशपुराण के रचयिता ब्रह्म जिनदास गुजराती-राजस्थानी काव्यों के रचयिता ब्रह्म जिनदास से भिन्न हैं। गुजराती ब्रह्म जिनदास ने अपने शिष्य गुणदास (गुणकीर्ति) को मराठी में रचना करने की प्रेरणा दी थी। इन काव्यों से इन कवियों के पाण्डित्य व इनकी कवित्वशक्ति का पता चलता है। मराठी-साहित्य के इतिहासकारों के अनुसार नामदेव के पश्चात् तथा एकनाथ के आगमन तक मराठी साहित्य में एक शून्य-सा निर्मित हो गया था। इस शून्य को भरने का काम जैनाचार्यों ने किया है। धर्म-कथा की अपनी सीमाओं में इन्होंने अपनी समर्थ अभिव्यक्ति व प्रौढ़भाषाशैली से इन प्रबन्धों को काव्यात्मक गुणों से सम्पन्न किया है।
कालिका पुराण का महत्त्व साहित्येतर-दृष्टि से भी है। मध्ययुग में विशेषतः महाराष्ट्र में दुर्गा या काली का समीकरण पद्मावती के साथ हुआ। यह कालिकापुराण काली या पद्मावती के माहात्म्य का वर्णन करता है। इसके प्रथम आठ प्रकरणों में श्रेणिकराज कथा, चतुर्थ व पंचम काल का वर्णन, कुलकरों का वर्णन, महाबलराजा की कथा, सोमवंश व पाण्डवों की उत्पत्ति, परशुराम की कथा व माहोरक्षेत्र की निर्मिति आदि प्रसंग हैं। शेष 21 तक के अध्यायों में महकावती के बोगार व उनका लिंगायतों से संघर्ष, तगा बोगारों की उत्पत्ति, मुसलमानों से होने वाले कष्टों का वर्णन है। इसी भाग में तत्कालीन महाराष्ट्र में जैनों के अपने अस्तित्व के लिए संघर्षों का विवरण है। कासार, बोगार, तगरबोगारों के व्यापारी समाज की जानकारी पौराणिक पद्धति से
828 :: जैनधर्म परिचय
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