Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 853
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरुतुंग-प्रबन्ध चिन्तामणि (सं. 1361)। मोदमदिर-चतुर्विंशति जिनचतुष्पदिका (27 छन्द)। मंडलिक-पेथड़ रास (65 पद्य) (सं. 1360)। रल्ह-जिणदत्तचरित्र (सं. 1354)। मुनिराजतिलक-शालिभद्ररास (35 पद्य)- सं. 1332। राजकीर्ति-चउवीस जिन स्तवन (25 गा.)। राजबल्लभ-थूलिभद्दफाग (सं. 1340) । रामभद्र-शान्तिनाथकलश (10 गा.)। श्रावक लखमसी-जिनचन्द्रसूरिवर्णनारास (सं. 1341)। लाखम (लक्ष्मणदेव)णेमिणाहचरिउ (सं. 1510)। लक्ष्मीतिलक उपाध्याय-प्रत्येक बुद्धचरित्र (10130 पद्य)सं. 1311। श्रावक धर्मप्रकरण बृहद्वृत्ति (15131 पद्य) (सं. 1317) । शान्तिदेवरास (सं. 1313) । वस्तिग-वीस विहरमानरास (सं. 1462) चिहुंगति चउपई। विनयचन्द्रसूरिनेमिनाथचतुष्पादिका (40 पद्य)। बारव्रतरास (41 पद्य), आनन्द प्रथमोपासक सन्धि। वीरप्रभ-श्री चन्द्रप्रभ कलश (16 गाथा)। श्रीधर-भविष्यदत्तकथा, चन्द्रप्रभचरित, वड्ढमाणचरिउ, शान्तिजिनचरित। शान्तिभद्र-चतुर्विंशतिनमस्कार (14वीं शती)। शान्तिसूरि-सीमन्धर स्तवन (8 गा.) । सहज ज्ञान-श्री जिनचन्द्रसूरि विवाहलउ। सारमूर्तिजिनपद्मसूरि पट्टाभिषेक (सं. 1390) । सोममूर्ति-श्रीजिनेश्वर सूरि संयम श्री विवाह वर्णनारास (33 पद्य) । जिनप्रबोध सूरि चर्चरी (16 गा.)। जिनप्रबोधसूरि बोलिका (12 गा.)। सोलणु-चर्चरिका (38 पद्य)। हेमभूषणगणि-युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि चर्चरी (सं. 1341) (25 पद्य)। अज्ञातकर्तृक रचनाएँ-जिनचन्द्रसूरि फागू (सं. 1341), श्री जिणचन्द सूरि चतुष्पदी (10 गा.), सप्तक्षत्री रास (सं. 1327) 119 पद्य, बारहव्रत चौपाई, स्तम्भतीर्थ अजित स्तवन (25 गा.), अनाथी कुलक (36 कडी)। धना सन्धि (61 गाथा), केसी गोयम सन्धि, अनाथी मुनि चौपाई (63 गा.)। आनन्द सन्धि, हेमतिलकसूरि सन्धि, युगवर गुरु स्तुति (गा. 6)। अन्तरंगरास (67 कडी), कर्मगति चौपाई। रत्नशेखररास (268 पद्य), मातृका चउपइ (64 छन्द)। आदिकालीन कवियों के इस संक्षिप्त विवरण को देखने पर हमारा ध्यान इस काल की विविध विधाओं की ओर खिंच जाता है, जिनका प्रयोग इन कवियों ने किया है। इन काव्य-रूप विधाओं में रासा, चउपइ, चर्चरी, फागु, रूपक, विवाहलउ, रेलुआ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। काव्य-रूप अपभ्रंश की काव्य-विद्या आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में अनेक रूपों में प्रवाहित हुई है। चरित, आख्यान, सन्धि, लावणी आदि सभी-कुछ इसी के अंग हैं। प्रबन्ध काव्यों को छन्द, प्रबन्ध, रास-रासो, चरिउ आदि कहा गया है। समरारास, पेथड़रास, वस्तुपाल-तेजपाल रास वस्तुतः प्रबन्ध-काव्य हैं। गणपतिकृत माधवानल, जयशेखरसूरिकृत त्रिभुवनदीपक, प्रबन्ध लाख का जिणदत्तचरिउ, वरदत्त का वैरसामिचरित्र, 844 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only

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