Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 860
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुशल लाभ का जिनरक्षित-सन्धि (सं. 1621), कनकसोम का हरिकेशी-सन्धि (सं. 1640), गुणराज का सम्मति-सन्धि (सं. 1630), चारित्र सिंह का प्रकीर्णक-सन्धि (सं. 1631), विमल विनय का अनाथी-सन्धि (सं. 1647), विनय समुद्र का नमिसन्धि (सं. 17वीं शती), गुणप्रभ सूरि का चित्र-सम्भूति-सन्धि (सं. 1759) आदि। ऐसे पचासों सन्धि-काव्य भंडारों में बिखरे पड़े हुए हैं। 3. चरित-काव्य चरित ग्रन्थों में कवियों ने मानव की सहज प्रकृति और रागादि विकारों का सुन्दर वर्णन किया है। मध्यकालीन कतिपय चरित-काव्य इस प्रकार हैं-सघारु का प्रद्युम्नचरित (सं. 1411), ईश्वरसूरि का ललितांग चरित (सं. 1561), ठकुरसी का कृष्ण चरित (सं. 1580), जयकीर्ति का भवदेवचरित (सं. 1661), गौरवदास का यशोधर चरित (सं. 1581), मालदेव का भोजप्रबन्ध (सं. 1612, पद्य 2000), पांडे जिनदास का जम्बूस्वामी चरित (सं. 1642), नरेन्द्रकीर्ति का सगर प्रबन्ध (सं. 1646), वादिचन्द्र का श्रीपाल आख्यान (सं. 1651), परिमल्ल का श्रीपाल चरित्र (सं. 1651), पामे का भरतभुजबलि चरित्र (सं. 1616), ज्ञानकीर्ति का यशोधर चरित्र (सं. 1658), पार्श्वचन्द्र सूरि का राजचन्द्र प्रवहण (सं. 1661), कुमुदचन्द्र का भरत बाहुबली छन्द (सं. 1670), नन्दलाल का सुदर्शन चरित (सं. 1663), बनवारी लाल का भविष्यदत्त चरित्र (सं. 1666), भगवती दास का लघुसीता सतु (सं. 1684), कल्याण कीर्तिमुनि का चारुदत्त प्रबन्ध (सं. 1612), लालचन्द्र का पद्मिनी चरित्र (सं. 1707), रामचन्द्र का सीता चरित्र (सं. 1713), जोधराज गोदीका का प्रीतंकर चरित्र (सं. 1721), जिनहर्ष का श्रेणिक चरित्र (सं. 1724), विश्वभूषण का पार्श्वनाथ चरित्र (सं. 1738), किशनसिंह के भद्रबाहु चरित्र (सं. 1783) और यशोधर चरित (सं. 1781), लोहट का यशोधर चरित्र (सं. 1721), अजयराज का यशोधर चरित्र (सं. 1721), अजयराज पाटणी का नेमिनाथ चरित्र (सं. 1793), दौलत राम कासलीवाल का जीवन्धर चरित्र (सं. 1805), भारमल का चारुदत्त चरित्र (सं. 1813), शुभचन्द्रदेव का श्रेणिक चरित्र (सं. 1824), नाथमल मिल्लाका नागकुमार चरित्र (सं. 1810), चेतन विजय का सीता चरित्र और जम्बूचरित्र (सं. 1853), पांडे लालचन्द का वरांगचरित्र (सं. 1827), हीरालाल का चन्द्रप्रभ चरित्र, टेकचन्द का श्रेणिक चरित्र (सं. 1883), और ब्रह्म जयसागर का सीताहरण (सं. 1835)। इन चरित काव्यों में तीर्थंकरों युवा-महापुरुषों के चरित का चित्रण कर मानवीय भावनाओं का बड़ी सुगमता पूर्वक चित्रण किया गया है। यद्यपि यहाँ काव्य की अपेक्षा चरित्रांकन अधिक हुआ है, परन्तु चरित्र प्रस्तुत करने का ढंग और उसका प्रवाह प्रभावक है। आनन्द और विषाद, राग और द्वेष तथा धर्म हिन्दी जैन साहित्य :: 851 For Private And Personal Use Only

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