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और अधर्म आदि भावों की अभिव्यक्ति बड़ी सरस हुई है। ___ इस प्रकार मध्यकालीन हिन्दी जैन चरित काव्य भाव, भाषा और अभिव्यक्ति की दृष्टि से उच्च कोटि के हैं। वस्तु और उद्देश्य बड़ी सूक्ष्मता से समाहित है। पात्रों के व्यक्तित्व को उभारने में जैन सिद्धान्तों का अवलम्बन जिस ढंग से किया गया है, वह प्रशंसनीय है। सांसारिक विषमताओं का स्पष्टीकरण और लोकरंजनकारी तत्त्वों की अभिव्यंजना जैन साधक कवियों की लेखनी की विशेषता है। प्राचीन काव्यों में चरितार्थक पवीडो काव्य भी उपलब्ध होते हैं। इसी सन्दर्भ में भगवतीदास के वृहद् सीता सतु और लघु सीता सतु-जैसे सत्-संज्ञक काव्य भी उल्लेखनीय हैं।
4. कथा-काव्य मध्यकालीन हिन्दी जैन कथा-काव्य विशेष रूप से व्रत, भक्ति और स्तवन के महत्त्व की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किए गये हैं। वहाँ इन कथाओं के माध्यम से विषयकषायों की निवृत्ति, भौतिक सुखों की अपेक्षा शाश्वत सुख की प्राप्ति का मार्ग दर्शाया गया है। उनमें चित्रित पात्रों के भाव चरित्र, प्रकृति और वृत्ति को स्पष्ट करने में ये कथा- काव्य अधिक सक्षम दिखाई देते हैं। ऐसे ही कथा-काव्यों में ब्रह्मजिनदास (वि. सं. 1520) की रविव्रत-कथा, विद्याधर-कथा, सम्यक्त्व कथा आदि, विनयचन्द्र की निर्जरपंचमी-कथा (सं. 1576), ठकुरसी की मेघमालाव्रत-कथा (सं. 1580), देवकलश की ऋषिदत्ता (सं. 1569), रायमल्ल की भविष्यदत्तकथा (सं. 1633), वादिचन्द्र की अम्बिका-कथा (सं. 1651), छीतर ठोलिया की होलिका कथा (सं. 1660), ब्रह्मगुलाल की कृपण जगावनद्वार कथा (सं. 1671), भगवतीदास की सुगन्धदसमी कथा, पांडे हेमराज की रोहणीव्रत कथा, महीचन्द की आदित्यव्रत कथा, टीकम की चन्द्रहंस कथा (सं. 1708), जोधराज गोदीका का कथाकोश (सं. 1722), विनोदीलाल की भक्तामरस्तोत्र कथा (सं. 1747), किशनसिंह की रात्रिभोजन कथा (सं. 1773), टेकचन्द्र का पुण्यास्रवकथाकोश (सं. 1822), जगतराय की सम्यक्त्व कौमुदी (सं. 1721) उल्लेखनीय है। ये कथा-काव्य कवियों की रचना-कौशल्य के उदाहरण कहे जा सकते हैं। 5. रासा-साहित्य
हिन्दी जैन कवियों ने रासा-साहित्य के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया है। सर्वेक्षण करने से स्पष्ट है कि रासा-साहित्य को जन्म देनेवाले जैन कवि ही थे। जन्म से लेकर विकास तक जैनाचार्यों ने रासा-साहित्य का सृजन किया है। रासा का सम्बन्ध रास, रासा, रासु, रासौ आदि शब्दों से रहा है, जो 'रासक' शब्द के ही परिवर्तित और विकसित रूप हैं। 'रासक' का सम्बन्ध नृत्य, छन्द अथवा काव्य
852 :: जैनधर्म परिचय
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