Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 867
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org 11. फागु, बेलि, बारहमासो और विवाहलो साहित्य फागु में भी कवि अत्यन्त भक्तविभोर और आध्यात्मिक सन्त-सा दिखाई देता है। इसमें कवि तीर्थंकर या आचार्य के प्रति समर्पित होकर भक्ति रस को उड़ेलता है। मलधारी राजशेखर सूरि की नेमिचन्द फागु (सं. 1405), हलराज की स्थूलभद्र फागु (सं. 1409), सकलकीर्ति की शान्तिनाथ फागु (सं. 1480), सोमसुन्दर सूरि की नेमिनाथ वरस फागु (सं. 1450), ज्ञानभूषण की आदीश्वर फागु (सं. 1560), मालदेव की स्थूलभद्र फागु (सं. 1612), वाचक कनक सोम की मंगल कलश फागु (सं. 1649), रत्नकीर्ति, धनदेवगण, समंधर, रत्नमंडल, रायमल, अंचलकीर्ति, विद्याभूषण आदि कवियों की नेमिनाथ तीर्थंकर पर आधारित फागु रचनाएँ काव्य की नई विधा को प्रस्तुत करती है, जिनमें सरसता, सहजता और समरसता का दर्शन होता है । नेमिनाथ और राजुल के विवाह का वर्णन करते समय कवि अत्यन्त भक्तविभोर और आध्यात्मिक संत-सा दिखाई देता है। इसी तरह हेमविमल सूरि फागु (सं. 1554), पार्श्वनाथ फागु (सं. 1558), वसन्त फागु, सुरंगानिध नेमि फागु, अध्यात्म फागु आदि शताधिक फागु रचनाएँ आध्यात्मिकता से जुड़ी हुई हैं । इनके अतिरिक्त फागुलमास वर्णन सिद्धिविलास (सं. 1763), अध्यात्म फागु, लक्ष्मीबल्लभ फागु रचनाओं के साथ ही धमाल - संज्ञक रचनाएँ भी जैन कवियों की मिलती हैं, जिन्हें हिन्दी में धमार कहा जाता है । अष्टछाप के कवि नन्ददास और गोविन्ददास आदि ने वसन्त और टोली पदों की रचना धमार नाम से ही की है। लगभग 15-20 ऐसी ही धमार रचनाएँ मिलती हैं, जिनमें जिन समुद्रसूरि की नेमि - होरी रचना विशेष उल्लेखनीय है । 858 :: जैनधर्म परिचय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बेलि साहित्य में वाछा की चहुँगति वेलि (सं. 1520 ई.), सकलकीर्ति ( 16वीं शताब्दी) की कर्पूरकथ बेलि, महारक वीरचन्द की जम्बूस्वामी बेलि (सं. 1690), ठकुरसी की पंचेन्द्रिय बेलि (सं. 1578), मल्लदास की क्रोधबेलि (सं. 1588), हर्षकीर्ति की पंचगति बेलि (सं. 1683 ), ब्रह्म जीवन्धर की गुणणा बेलि (16वीं शताब्दी), अभयनंदि की हरियाल बेलि (सं. 1630), कल्याणकीर्ति की लघु- बाहुबली बेलि (सं.1692), लाखाचरण की कृष्णरुक्मणि बेलि टब्बाटीका (सं. 1638), तथा 6वीं शती के वीरचन्द्र, देवानंदि, शांतिदास, धर्मदास की क्रमशः सुदर्शन बलि, जम्बूस्वामिनी बेलि, बाहुबलिनी बेलि, भरत बेलि, लघुबाहुबलि बेलि, गुरुबेलि और 17वीं शती के ब्रह्मजयसागर की मल्लिदासिनी बेलि व साह लोहठकी षड्लेश्याबेलि का विशेष उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें भक्त कवियों ने अपने सरस भावों को गुनगुनाती भाषा में उतारने का सफल प्रयत्न किया है। For Private And Personal Use Only

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