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हिन्दी के आदिकाल को अधिकांश रूप में जैन कवियों ने समृद्ध किया है। इनमें गुजराती और राजस्थानी कवियों का विशेष योगदान रहा है । यहाँ हम अपभ्रंश कवियों को छोड़कर गुजराती और राजस्थानी हिन्दी जैन साहित्यकारों का विशेष उल्लेख कर रहे हैं। उनका समय साधारणतः 13-14वीं शती के बीच होता है। इस युग में काव्य और रासा साहित्य ही अधिक मिलता है । इसलिए यहाँ हम प्रवृत्ति-गत उल्लेख न कर आचार्य-क्रम से उसका विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। 11-12वीं शती का साहित्य अपभ्रंश- मूलक है। इसलिए उसे यहाँ विस्तारभय से छोड़ा जा रहा है।
13वीं शती के हिन्दी जैन कवि
अभयदेव सूरि-नवांगी वृत्तिकार अभयदेव (सं. 1139) का 'जयति - हुमणस्तोत्र' तथा द्वितीय अभयदेव का 'जयन्तविजय काव्य' (सं. 1285) प्रसिद्ध है ।
आसिग (सं. 1257 ) - आपकी तीन रचनाएँ मिलती हैं- जीवदयारास, (53 गा.) चन्दनवाला रास (35 पद्य) और शान्तिनाथ रास। इनकी भाषा का उदाहरण है- "केधिर सालि दालि भुजंता, धिम धलहलु मज्झे विलहंता" ।
श्रावक जगडू (13-14वीं शती) - खरतरगच्छीय आचार्य जिनेश्वर सूरि के शिष्य थे। आपकी रचना 'सम्यक्त्व माइ चउपइ (64 पद्य), उपलब्ध है। इसकी भाषा का उदाहरण देखें - " समकित विणु जो क्रिया करेइ, तालइलोहि नीरु घालेइ " ।
जिनेश्वर सूरि (सं. 1207 ) - आप जिनपति के पट्टधर थे। आपकी चार रचनाएँ उपलब्ध हैं- 1. महावीर जन्माभिषेक (14 पद्य), 2. श्रीवासुपूज्य बोलिका, 3. चर्चरी, और 4. शान्तिनाथ बोली ।
अन्य प्रमुख आदिकालीन हिन्दी जैन कवि इस प्रकार हैं- जयमंगलसूरि (13वीं शती) - महावीर जन्माभिषेक | जयदेवगण ( 13वीं शती) - ' भावना सन्धि' काव्य । देलहण - गयसुकुमालरास (34 पद्य) - सं. 1300 । धर्मसूरि-जम्बूस्वामीचरित (41 पद्य) - सं. 1266, स्थूलभद्ररास (47 पद्य) । सुभद्रासती चतुष्पदिकार (42 पद्य), मयणरेहारास (36 पद्य) । नेमिचन्द्र भंडारी - षष्टिशतक ( 160 गाथा, प्राकृत) गुरुगुणवर्णन (35 पद्य) । पृथ्वीचन्द्र - मातृका प्रथमाक्षर दोहा (58 दोहे) (सं. 1265), ( रसविलास ) । पाल्हण - आबूरास (नेमिनाथ रासो) - ) - 50 पद्य (सं. 1289 ) । पुण्यसागर - श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टकम् (सं. 1205), भत्तउ - - श्रीमज्जिनपतिसूरीणां गीतम् (20 द्विपदिकाएँ) - 13वीं शती । यश: कीर्ति ( प्रथम ) - जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला - (13वीं शती) । रत्नप्रभ सूरि'अन्तरंग सन्धि' काव्य (सं. 1227) - 37 कुलक । शाहरयण - जिनपति सूरि धवलगीत (सं. 1277 ) । श्रावक लखण - जिनचन्द्रसूरि काव्याष्टकम् (13वीं शती) । पंडित लाखूजिणदत्तचरिउ (सं. 1275 ) । श्रावकलखमसी - जिनचन्द्रसूरि वर्णनारास (सं. 1371)।
842 :: जैनधर्म परिचय
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