Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 845
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org भाषान्तर किया । जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले ने लगभग 20 ग्रन्थों का मराठी व हिन्दी अनुवाद किया है। मोतीचन्द हीराचन्द गांधी ने भी कई ग्रन्थों का अनुवाद किया । विशेष यह है कि तमिल कुरल काव्य व श्वेताम्बर आचार्य सिद्धर्षिकृत उपमितिभव प्रपंचाकथा का भी अनुवाद किया है। महावीरचरित्र व तीर्थवंदना विस्तृत स्वतन्त्र पुस्तकें हैं । अनुवादों के अतिरिक्त आधुनिक युग में जिन स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना हुई, उनमें तात्या पांगळ का भ. महावीर के निर्वाण के बाद की पाँच शताब्दियों का इतिहास वाला कुन्दकुन्दाचार्यचरित्र, जैनधर्म, रावजी नेमचन्द शहा का जैनधर्मादर्श, जैनधर्म विषयक आक्षेपों का निरसन, तीर्थंकरों की प्राचीनता, पूजा व सद्य:स्थिति, जगदुद्धारक जैनधर्म, जैन व हिन्दू, पंढरपुर का विठोबा, आचार्य आनन्दऋषिजी की जैनधर्म की विशेषता, बाबगौंडा भुजगौंडा पाटील का 'दक्षिणभारत व जैनधर्म' 'ऐतिहासिक जैनवीर' आप्पा : भाऊ मगदूम के नेमिसागरचरित, सप्त सम्राट, जैनवीर स्त्रियाँ, चौदा रत्ने, वनराज व वासन्ती शहा का पहिला सम्राट उल्लेखनीय हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण नाम है दत्तत्रय भिमाजी रणदिवे का, जिन्होंने प्राचीन पारम्परिक जैन चरितों पर काव्य व उपन्यास के साथ सामान्य रूप में भी 25 उपन्यास लिखे हैं 120 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पूर्ण मराठी जैन साहित्य का मुख्य प्रदेय यह है कि इन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह को सर्वोच्च जीवनमूल्य माना है । दया, क्षमा, शान्ति, संयम त्याग गुणों की उपासना की है। मानव जीवन को सुखी बनाने के लिए उदात्त जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की है। सामाजिक दृष्टि से जैन समाज के पृथक् अस्तित्व बनाये रखने में इस मराठी जैन साहित्य का महत्त्वपूर्ण योगदान है। जैन समाज के लोप से जैनधर्म का लोप स्वाभाविक था । अतः यह धार्मिक सामाजिक कार्य इनका बहुत महत्त्वपूर्ण प्रदेय है । इसी से सम्बद्ध एक दूसरा प्रदेय यह है कि इसमें तत्कालीन जैन समाज चित्रित हुआ है। उनके जन्मोत्सव, विवाह, भोज, विशालकाय मन्दिर, पूजा-अर्चा, मुनि - जीवन व्यापार, व्यापार में हानि-लाभ आदि के चित्र हैं । मांसाहार अत्यन्त निन्द्य था । छुआछूत था । सत्पात्रों को दान तथा संघपति बनाकर तीर्थयात्रा कराना मुख्य कार्य था । चित्रपोथी, पुस्तक, सुवर्णशलाका, विद्यार्थियों को लेखन-सामग्री व क्षुल्लिकाओं को साड़ी - दान करने के उल्लेख हैं । 836 :: जैनधर्म परिचय श्रमण साहित्य की परम्परा को अखण्डित रखना तथा पूर्ववर्ती साहित्य का उत्तराधिकार मराठी भाषा तक पहुँचाना एक श्रेष्ठ कार्य है । मराठी भाषा की समृद्धि में जैनों ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया है । व इन्होंने मराठी . भाषा को अनेक नई काव्य-1 - विधाएँ, विषय, शब्दसम्पदा, छन्द, लोकोक्तियाँ व मुहावरे दिये हैं । For Private And Personal Use Only

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