Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 835
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिरुनूरन्तदि इसके लेखक एक अलवार हैं। उन्होंने जैनधर्म धारण किया था। कहते हैं कि जब वह एक दिन जिनालय के पास से जा रहे थे, उन्होंने मन्दिर के भीतर मोक्ष तथा मोक्षमार्ग का उपदेश करते हुए जैनाचार्य को सुना। उससे आकृष्ट होकर वह मन्दिर के भीतर गये और उन्होंने आचार्य से उनका उपदेश श्रवण करने की आज्ञा माँगी। उसके बाद उन्होंने जैनधर्म को अंगीकार कर लिया और अपने इस परिवर्तन की स्मृति में माइलपुर के नेमिनाथ भगवान् को सम्बोधित करते हुए यह ग्रन्थ बनाया। यह भक्तिरस का अत्यन्त सुन्दर ग्रन्थ है। अन्तदि एक प्रकार की विशेष रचना है, जिसमें पूर्व पद्य का अन्तिम शब्द दूसरे पद्य का प्रथम तथा मुख्य शब्द हो जाता है। अन्तदि का अर्थ है-अन्त और आदि, इसमें पद्यों की एक पंक्ति शब्दविशेष से परस्पर सम्बन्धित रहती है, जो पूर्व पद्य में अन्तिम शब्द होता है और बाद के पद्य में पहला। तिरुनूरन्तदि सौ पद्यों की ऐसी ही एक रचना है। यह मदुरा के तमिल संगम के द्वारा संचालित शेन तमिल पत्र में टिप्पणी सहित छपा था। तिरुक्कलम्बगम् यह भी भक्तिरस का ग्रन्थ है। इसके लेखक उदीचिदेव नाम के जैन हैं। वे थोण्ड मण्डल देश के अन्तर्गत वेलोर जिले के अर्णी के पास अरपगई नामक स्थान के निवासी थे। रुलम्बगम् का अर्थ है-लघु कविताओं का ऐसा मिश्रण, जिसमें अनेक छन्दों के पद्य हों। यह ग्रन्थ केवल भक्तिरस पूर्ण ही नहीं है, किन्तु सैद्धान्तिक भी गणित, ज्योतिष तथा फलित विद्या-सम्बन्धी ग्रन्थों के निर्माण में भी जैनों का योग रहा है। ऐंचूवडि गणित का प्रचलित ग्रन्थ है तथा जिनन्द्रमौलि ज्योतिष का प्रचलित ग्रन्थ है। जो व्यापारी परम्परा के अनुसार अपना हिसाब-किताब रखते हैं, वे प्रारम्भ में ऐंचूवडि नामक गणित ग्रन्थ का अभ्यास करते हैं। इसी प्रकार तमिल ज्योतिषी जिनेन्द्र मौलि का अभ्यास करते हैं। प्रो. आयंगर ने लिखा है कि दुर्भाग्य से विविध विषयों से सम्बद्ध बहुत-सा जैन तमिल साहित्य मठों और भण्डारों में बन्द पड़ा है। यह आशा की जाती है कि दक्षिण के शिक्षित जैन भाई उसे प्रकाश में लाएँगे और तब हम यह सिद्ध कर सकेंगे कि दक्षिण भारत के साहित्यिक इतिहास में जैनों का कितना महान भाग रहा है। (साभार-दक्षिण भारत में जैनधर्म) 826 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only

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