________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अवतरण तमिल साहित्य में पाये जाते हैं। इन्हीं अमृत-सागर के द्वारा रचित याप्यरुंगलविरुत्ति नामक एक तमिल छन्दशास्त्र का और भी ग्रन्थ है। यह प्रकाशित हो चुका है।
नेमिनाथम्
यह तमिल व्याकरण का ग्रन्थ है। इसके रचयिता गुणवीर पण्डित हैं। यह मलयपुर में रचा गया है। वहाँ नेमिनाथ भगवान् का मन्दिर है। इसी से इसे नेमिनाथम् नाम दिया गया है। इसके रचयिता गुणवीर पण्डित कलन्दै के वाचानन्द मुनि के शिष्य थे।
चूँकि पहले के तमिल व्याकरणग्रन्थ बहुत विशाल और बहुश्रमसाध्य थे, इसलिए इस व्याकरण ग्रन्थ की रचना की गयी। इसके आरम्भ के पद्यों में लिखा है कि जलप्रवाह के द्वारा मलयपुर के जैनमन्दिर के विनाश के पूर्व यह ग्रन्थ रचा गया था। अत: इसको ई. सन् के प्रारम्भ काल की रचना कहा जाता है।
नन्नू लू
यह तमिल व्याकरण पर दूसरा ग्रन्थ है। यह सबसे अधिक प्रचलित है, तोलकाप्पियम् के बाद इसी की प्रतिष्ठा है। शियगंग नामक सामन्त के अनुरोध पर बावनन्दि मुनि ने इसकी रचना की थी। इसके रचयिता तोलकाप्पियम् अगत्तियम् तथा अविनयम् नामक तमिल व्याकरण ग्रन्थों में ही प्रवीण नहीं थे, किन्तु संस्कृत व्याकरण जैनेन्द्र में भी प्रवीण थे। इस पर बहुत-सी टीकाएँ हैं। इनमें मुख्य टीका मल्लिनाथ की बनाई हुयी है। यह स्कूल और कॉलेजों में पाठ्यपुस्तक के रूप में निर्धारित है।
तमिल कोष साहित्य में भी जैनों की देन महत्त्वपूर्ण है। तमिल कोषों में तीन ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण हैं -दिवाकर निघण्टु, पिंगल निघण्टु और चूड़ामणि निघण्टु । ये तीनों कोष पद्य में रचित हैं। प्रथम कोष के रचयिता दिवाकर मुनि हैं, दूसरे के पिंगल और तीसरे के मण्डल पुरुष। तमिल विद्वानों का अभिमत है कि ये तीनों जैन थे। प्रथम दिवाकर निघण्टु का अस्तित्व तो लुप्त हो चुका है, शेष दोनों उपलब्ध हैं। इनमें से अन्तिम चूड़ामणि निघण्टु का खूब प्रचार है। उसकी भूमिका के पद्यों से ज्ञात होता है कि उसका रचयिता जैन ग्राम पेरु मन्दिर का निवासी था, जो दक्षिण अर्काट जिले के तिन्दिवन तालुका से कुछ मील दूरी पर है। इसके सिवाय लेखक ने जिनसेनाचार्य के शिष्य गुणभद्राचार्य का उल्लेख किया है। ये गुणभद्र उत्तरपुराण के रचयिता हैं। इससे स्पष्ट है कि मण्डल पुरुष गुणभद्र के पश्चात् हुए हैं। वह दो और निघण्टुओं का भी उल्लेख करते हैं। चूड़ामणि-निघण्टु विरुत्तम छन्द में लिखा गया है। उसमें बारह अध्याय हैं। जाफना के स्वअर मुख नावलर रचित टीका के साथ वह प्रकाशित हो चुका है।
तमिल जैन साहित्य :: 825
For Private And Personal Use Only