Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 841
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व वर माँगना प्रमुख रहा है। माझे बोल पवित्र कोमल तुझ्या श्रोत्रीं न का बिंबती। वाक्ये हे श्रवणांत झोंबति तई पाषाण ही फूटती।।" बारहमासा की परम्परा हिन्दी में बहुत समृद्ध रही है। बारहमासा विरहगीत है। मराठी में विरहगीत 'विराणी' व शृंगारिक लावणी के रूप में हैं, पर बारहमासा प्रत्येक महीने की पार्श्वभूमि में विरह-वेदना को व्यक्त करने के कारण विशिष्ट है। इसका मूल कालिदास के ऋतुसंहार में खोजा जा सकता है। जैनों की वीतराग-परम्परा में राजीमती ही ऐसा पात्र है, जिसे आधार बनाकर बारहमासा लिखे गये हैं। मराठी में भी दिनासा कवि ने बारामासी रचकर इस लोककाव्य की परम्परा का मराठी में श्रीगणेश किया। लोकगीत लोरी को मराठी में अंगाई/अंगाईगीत कहते हैं। लोरियों का प्रारम्भ जो जो (झोप-झोप) अर्थात् सो जा सो जा इन शब्दों में होता है। पाळणागीत कुछ इसी प्रकार के हैं। गुणकीर्तिकृत 'नेमिनाथपाळणा' मराठी का पहला पाळणा (झूला) है। इसका प्रारम्भ भी 'जो जो' शब्द से है। इसके पश्चात् महावीरपाळणा, पद्मावतीचा पाळणा, चक्रवर्तीचा पाळणा, नेमीश्वरपाळणा आदि पाळणा-गीत मिलते हैं। ये पाळणागीत इन चरितनायकों के जन्मोत्सव हैं। मराठी में प्रचलित लावणी, पोवाडा, कीर्तन, भूपाळी आदि लोककाव्य के प्रकार भी जैनकवियों ने आत्मसात किये हैं। लावणी का प्रयोग हाव-भाव प्रदर्शित कर नाचने के लिए रचित शृंगारिक गीत के रूप में हुआ है, जिसका उपयोग महतीसागर ने अपने गुरु की स्तुति 'देवेन्द्रलावणी' में किया है। पोवाडा यशोगान होता है। भूपाळी प्रभाती होती है। इसके अतिरिक्त अनेक पद व गीत लिखे गये हैं। पिंगा, फुगडी, चेंडूफळी, टिपरी, लयलाखोटा, झम्पा आदि खेलों के लिए बालकों के खेलते समय गाये जाने वाले गीत लिखे गये हैं, जिनके द्वारा बालमन पर धार्मिक संस्कार उत्पन्न करने का भाव है। मराठी जैन कवियों ने पजाएँ व आरतियाँ बडी तन्मयता से लिखी हैं। गेयता इनका मुख्य गुण है। ये मन्दिरों में वाद्यों के साथ सामूहिक रूप से गायी जाती थीं। कुछ आरतियाँ अर्थ की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। ये आरतियाँ मन्दिरों व मूर्तियों के इतिहास की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं । प्रायः आरतियों में स्थान, मन्दिर व मूलनायक का उल्लेख मिलता है। पद्यकाव्यों के अतिरिक्त जैनाचार्यों ने मराठी साहित्य को परमहंसकथा के रूप में एक सुन्दर चम्पू काव्य दिया है। एक हजार ओवियों के मध्य वर्णन गद्य में हैं। गद्य में छोटे-छोटे वाक्य हैं-दूताचे वृत्तांत सांगितले, मग तो दुताप्रति बोलला। 832 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only

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