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बैंकट रमन आयंगर ने इसका प्रकाशन किया था।
चूळामणि
यह ग्रन्थ जैन कवि तोला मोलित्तेवर के द्वारा रचा गया है। वह कारवेट नगर के अधिपति विजय के आश्रित थे। इसका आधार जिनसेन रचित महापुराण की एक पौराणिक कथा है। कथा का नायक तिविट्टन या त्रिविष्टप नौ वासुदेवों में से एक है। इसका काव्य-सौन्दर्य चिन्तामणि के समान है। इसमें कुल 12 सर्ग और 2131 पद्य हैं।
मेरुमन्दरपुराण
यह भी तमिल भाषा का एक महान् ग्रन्थ है। साहित्यिक शैली की उत्तमता की दृष्टि से यह तमिल भाषा के श्रेष्ठतम साहित्य के सदृश है। यह मेरु और मन्दर सम्बन्धी पौराणिक कथा के आधार पर रचा गया है। इसी से मेरु और मन्दर युवराजों के नाम पर इसे मेरुमन्दर पुराण कहते हैं। इस कथा का वर्णन महापुराण में आया है और इसे विमलनाथ तीर्थंकर के समय की घटना बतलाया है। नीलकेशि के टीकाकार वामन मुनि ही इसके रचयिता हैं। वे बुक्कराय के समय में 14वीं सदी के लगभग विद्यमान थे। जैनधर्म के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों के प्रतिपादन के लिए ही उन्होंने इस कथा का आश्रय लिया है। इसमें 30 अध्याय तथा 1405 पद्य हैं। प्रो. ए. चक्रवर्ती ने इसे भूमिका और टिप्पण के साथ प्रकाशित कराया था।
श्रीपुराण
तमिल के जैनों में यह बहु प्रचलित है। यह तमिल-संस्कृत मिश्रित गद्य में रचा गया है। इसका आधार जिनसेन स्वामी का महापुराण है। इसमें 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण, 9 बलदेव-इन 63 शलाकापुरुषों का चरति वर्णित है। इसी से इसे त्रेसठ शलाकापुरुष पुराण भी कहते हैं। इसके रचयिता का नाम अज्ञात है।
याप्यरुंगलम्कारिकै
यह तमिल छन्दशास्त्र का ग्रन्थ अमृतसागर के द्वारा रचा गया है। यह लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन माना जाता है। इसके मंगलाचरण के एक श्लोक में अर्हन्त परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। अत: यह स्पष्ट है कि यह जैन ग्रन्थकार की कृति है। स्वयं ग्रन्थकार ने यह सूचित किया है कि यह एक संस्कृत ग्रन्थ के आधार पर रचा गया है। इस पर गुणसागर रचित टीका है। यह छन्दशास्त्र का मुख्य ग्रन्थ है। छन्दों तथा पद्य-रचनाओं के सम्बन्ध में इसे प्रमाण माना जाता है। इसके द्योतक
824 :: जैनधर्म परिचय
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