Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 822
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निंब राष्ट्रकूट सम्राट का सामन्त था। गोमटेश्वर चरितों में श्रवणबेळगोळ और कार्कल में गोमटेश्वर मूर्तियों की प्रतिष्ठा का सविवर चित्रण मिलता है। पद्मनाथ कवि विरचित 'जिनदत्तराय चरिते' (1680 ई.) में कनार्टक के प्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र हुंचा (शिमोगा जिला) के राजवंशों का इतिहास और माता पद्मावति यक्षी की महिमा का वर्णन है। सभी चरित ग्रन्थों में तत्कालीन समाज की भाषा, आचरण, सामाजिक व्यवस्था, विवाह पद्धति, शिक्षण आदि से सम्बन्धित उपयुक्त विवरण मिलते हैं। जैन परम्परा के रामायण ग्रन्थों में नागचन्द्र का 'रामचन्द्रचरित पुराण' (1100 ई.चम्पू), पम्परामायण के नाम से प्रसिद्ध है। काव्य में रावण के उदात्त व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है। काव्य समीक्षक उसे उदात्त रावण, दुरन्त रावण मानते हैं। कुमुदेन्दु कवि का कुमुदेन्दु रामायण (1275 ई.) षट्पदि छन्द में लिखा गया है। देवप्प कवि का 'रामविजय' 1525 में, देवचन्द्र का 'रामकथावतार' 1800 ई. में रचित है। चन्द्रसागरवर्णि, शिशुमायण ने भी रामकथा काव्य रचे हैं। जैन परम्परा के महाभारत कथाओं में साळ्व कवि का 'जिन भारत' प्रसिद्ध है। ब्रह्मशिव की 'समयपरीक्षा' (1150 ई.), वृत्तविलास की 'धर्मपरीक्षा' (1350 ई.) विडम्बनात्मक साहित्य के निदर्शन है। मल्लिकार्जुन का 'सूक्तिसुधार्णव', अभिनववादि विद्यानन्द का 'काव्यसार' (1550 ई.) प्राचीन काव्य कृतियों से चुने हुये पद्यों के संकलन हैं। ___ छन्द की दृष्टि से भी जैन साहित्यकारों की देन वैविध्यपूर्ण है। जैनधर्म की प्रभावना हेतु जनभाषा प्रयोग करने की परम्परा महावीर तीर्थंकर के समय से ही जारी है। कन्नड़ साहित्य के इतिहास से प्रतीत होता है कि कन्नड़ कवि भी तत्कालीन लोक की निकटतम वस्तु, भाषा, शैली व छन्द का प्रयोग करते आये हैं। चम्पू छन्द में रचित कन्नड़ काव्यों में अन्य धर्म की तुलना में जैन कवियों और काव्यों की संख्या अधिक है। लगभग 37 कवियों द्वारा विरचित जैन काव्यों की संख्या करीब 50 है। सांगत्य छन्द के सम्बन्ध में ध्यान देने की बात है कि 100 से अधिक कवियों द्वारा 140 से अधिक काव्य रचे गये हैं। लगभग 11 शतक उपलब्ध हैं, जिनमें रत्नाकर के रत्नाकर शतक, अपराजितेश्वर शतक व त्रिलोक शतक अत्यन्त जनप्रिय हैं। इसके अलावा यक्षगान (संगीतमय नाट्यरूप) आदि साहित्यिक प्रकारों में भी कृतियों की रचना की गयी। पंचबाण के गीत, चन्दणवर्णि का कन्दर्पकोरवंलि, देवचन्द्र का पद्मावति यक्षगान उल्लेखनीय है। भाषा की दृष्टि से कन्नड़ जैन कवियों ने शिष्ट व प्रौढ़ भाषा के प्रयोग के साथ उचित मात्रा में देशी शैली को भी अपनाया है। 13वीं सदी के कवि आंडय्या का स्थान अनन्य है। उसने अपने 'कब्बिगर काव' में संस्कृत शब्दों के प्रयोग किये बिना, केवल कन्नड़ शब्दों से ही पूर्ण काव्य की रचना की है। कई कन्नड़ कवियों ने शिलालेखों की भी रचना की है। रत्न कवि का 'लक्कुंडि कन्नड़ जैन साहित्य :: 813 For Private And Personal Use Only

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